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xoxo0781

Carrying Smiles, Hiding Scars
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Update: Week me mostly sunday ko milega

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Hero - Raj (20 sal)
Raj ki maa - Sakshi (42 sal) - Main Heroine
Raj ki Behen - Neha (18 sal)
Raj ke papa(late) - Rajdeep

Raj ki Mausi - Radha (43 sal)

Radha ki Beti - Preeti (19 sal)


Out off family

Sakshi ki Best Friend from her school = Naina (35 sal)
Raj's Best Friend from his childhood = Saurabh
Raj's classmate = Shreya (20 sal)



Amit Sir(Sports Teacher) - 45 sal = Tharki (Ladkibaazi se badnaam hai)

Vineet(Awara Student) - 18 sal = Neha ki class me padhta hai


For Readers:
→ Bhai apne option se mujhe likhne ki zabardasti mat karo. I can't able to write independently.
→ Suggestion dena hai to khushi-khushi do, acche ideas ho to DM bhi kar sakte ho.
→ Ye story poori tarah romantic-love story nahi hai, aur bhi bahut kuch hai ismein.
→ Comment & Like karo, taaki mera Likhne ka Motivation bana rahe

Thank you 🙂 for reading ...
 
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xoxo0781

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Update 2: साक्षी का आज का जीवन: एक खालीपन & संघर्ष

साक्षी का अतीत और वर्तमान: Loneliness

2012 की दिल्ली, जहाँ हर सुबह एक नई उम्मीद लेकर आती थी, वहां साक्षी के लिए यह सिर्फ़ एक और दिन था, अपनी ज़िंदगी के भारीपन को सहने का, उसकी आँखों में एक अजीब सी शून्य थी।

42 की उम्र में भी उसकी सुंदरता बरक़रार थी, लेकिन आज वो उसे महसूस भी नहीं करती थी।

"आज भी वह शीशे से आँखें चुरा लेती थी ”, उसको लगता था जैसे उसकी परछाई से कोई गहरी शिकायत है.…

कोई अनकहा दर्द जो 4 साल से उसके चेहरे पर लिखा हुआ था। जब से राजदीप चला गया, उसी दिन से उसने खुद को सजाना-संवारना छोड़ दिया था।

उसके रेशमी बाल, जो कभी हवा में लहराते थे, उसकी शान हुआ करते थे अब सिर्फ़ एक साधारण चोटी में कैद थे।
उसकी गोरी चमक, वो गहरी काली आँखें—जिनमें कभी सपने झिलमिलाते थे—आज बस एक थकी हुई निराशा से भरी थीं।
वह मुस्कुराती ज़रूर थी, पर वह मुस्कान अब सिर्फ़ एक formality थी... अंदर ही अंदर वो बुझी हुई, मुरझाई हुई थी।

सबसे बड़ी बात, इन 4 सालों में साक्षी ने कभी खुद को आईने में नहीं देखा। वो पहले की तरह तैयार नहीं होती थी, खुद पर ध्यान नहीं देती थी, काजल, बिंदी, चूड़ियों की खनक—सबको पीछे छोड़ चुकी थी।
उसकी सुंदरता, जो कभी पूरे मोहल्ले और School नाज़ करता था, आज वही साक्षी अपने ही रूप से अनजान बन गई थी।

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उसके गोरे गाल, काले घने बाल, चमकती आँखें—सब कुछ तो वैसे ही थे, पर अब उनमें वह जान नहीं थी।
उसको लगता था कि अब यह सब बेईमानी है... क्योंकि जिसकी नज़रों में वह सुंदर लगती थी, वह अब इस दुनिया में नहीं था

और इसीलिए, वह चुपचाप अपने आप से दूर भागती रही...
शायद इस डर से कि कहीं आईने में उसे वह खालीपन न दिख जाए, जो अब उसकी आँखों का हिस्सा बन चुका था।

साक्षी के जीवन का एकमात्र मकसद अब उसके बच्चे थे – राज और नेहा, वो maths पढ़ाती हुई School में अपने सौम्य स्वभाव और बच्चों के प्रति लगाव के लिए जानी जाती थी, पर घर आकर उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके बच्चों के इर्द-गिर्द सिमट जाती थी।

घर की ज़िम्मेदारियाँ और बच्चों की देखभाल, ये सब उसके कंधों पर थे।
राज भले ही 20 साल का हो गया था और अपनी माँ का सहारा बन रहा था, घर के छोटे-मोटे कामों में मदद करता था, पर साक्षी जानती थी कि उसे अभी भी राज और नेहा दोनों के लिए एक माँ और पिता दोनों की भूमिका निभानी है।

रात को जब राज गिटार बजाता या अपनी प्यारी बातों से उसे हँसाने की कोशिश करता, साक्षी के होठों पर एक फीकी सी मुस्कान आती। वो अपने बेटे के प्यार को महसूस करती, पर यह प्यार उसके अंदर के गहरे शून्य को भर नहीं पाता था।


अतीत की सुनहरी यादें

साक्षी ने अपनी जिंदगी में शादी से पहले किसीसे प्यार नहीं हुआ;

21 साल की उम्र में राजदीप के साथ शादी के बाद उसका love-life शुरू हुआ। साक्षी का अतीत किसी हसीन सपने से कम नहीं था। जब राजदीप साथ था, तो साक्षी ने जीवन में किसी कमी को नहीं महसूस किया।
उनका प्यार गहरा था, उनकी सेक्स लाइफ भी बहुत बढ़िया थी।

राजदीप एक successful businessman था, और उसने साक्षी को हर वो खुशी दी, जिसकी वो हकदार थी। उनका घर हँसी-खुशियों से गूँजता था, हर शाम प्यार और गर्माहट से भरी होती थी।
साक्षी को लगता था कि उसकी ज़िंदगी एक खूबसूरत पेंटिंग है, जहाँ हर रंग सटीक बैठा था।

उसे याद है वो सुबह, जब राजदीप सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए उसकी चोटी में फूल लगाया करता था।
उसे याद है वो रातें और प्यार भरी बातें जिनमें वो एक-दूसरे में खोये रहते थे, दुनिया की परवाह किए बिना।

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राजदीप के प्रति उसका प्यार इतना गहरा था कि जब उसके बेटे का जन्म हुआ, तो उसने तुरंत बेटे का नाम 'राज' रख दिया।
मानो इस छोटे से नाम में वह अपने पति की एक झलक, एक याद, एक जीता-जागता एहसास संजोना चाहती थी।
इसीलिए वो अपने बेटे राज से सबसे ज़्यादा प्यार करती है।

वो इतनी Loyal थी, "उसने राजदीप को ही अपनी दुनिया बना लिया था।
उसका प्यार इतना गहरा था कि जब वह चला गया, तो वह खालीपन के सिवा कुछ नहीं बचा।"


वर्तमान का अकेलापन और दर्द = साक्षी का अकेलापन: एक टूटा हुआ आईना

(रात का समय, साक्षी अपने कमरे में अकेली, उसने अपनी चोटी खोली। उसके घने काले बालों में चाँदनीसी चमक थी, पर आँखों में अँधेरा)

साक्षी: (शीशे से मुँह चुराते हुए) 4 साल हो गए... पर आज भी वो दर्द ताजा है। राजदीप... तुम्हारी यादें मुझे जीने नहीं देतीं। "मैंने खुद को भुला दिया... बस राज और नेहा के लिए जी रही हूँ।"

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राज: (दरवाज़े से) माँ... आप ठीक तो हैं?
साक्षी: (जल्दी से आँसू पोंछकर) हाँ बेटा... सो जाओ।
राज ने देखा - उसका Dard aur सूनापन। वो जानता था, यह void(खालीपन) कोई भर नहीं सकता... शायद वो खुद भी नहीं।
पर उसका दिल कहता था—"माँ, तुम अकेली नहीं हो। मैं हूँ ना?"
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2012 अगली सुबह, दिल्ली की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में, जहाँ हर कोई अपने सपनों के पीछे भाग रहा था, वही साक्षी की दुनिया एक अजीब से ठहराव में जी रही थी।
42 वर्ष की साक्षी, जिसकी सुंदरता समय के साथ और निखर गई थी, आज बस एक थकी हुई Teacher और Single mom थी। खुद को वो भूल चुकी थी

4 साल पहले, जब उसके पति, राजदीप, एक दर्दनाक हादसे में इस दुनिया से चला गया था, तब से साक्षी ने खुद को और अपनी भावनाओं को कहीं बंद कर लिया था।
पति के प्यार ने उसके जीवन को खुशियों से भर दिया था, एक ऐसा जीवन जहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं थी - बड़ा घर, पैसा और एक खुशहाल परिवार।

लेकिन जनवरी 2008 की एक सर्द सुबह, सब कुछ बिखर गया,एक दर्दनाक कार दुर्घटना ने राजदीप को उससे छीन लिया। राज, जो तब 10वीं में था, बच गया, पर साक्षी का संसार उजड़ गया।
उस दिन उसका दिल हमेशा के लिए टूट गया। पति को खोने का दर्द आज भी उसके दिल में एक गहरे ज़ख्म की तरह मौजूद हैं, जो कभी भर नहीं पाया।

साक्षी के भीतर एक अकेलापन था, एक ऐसा गहरा शून्य(खालीपन) जो पति की मौत के बाद से ही उसके दिल में घर कर गया था। वो कभी अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं करती थी, किसी से अपनी मुश्किलों को बताया नहीं करती थी।

उसने अकेले ही जीवन की हर चुनौती का सामना किया था, और इसी अकेलेपन ने उसे अंदर से खोखला कर दिया था। उसकी मुस्कान, जो बाहर से प्यारी दिखती थी, उसके अंदर के इस खालीपन को छुपाए हुए थी।

साक्षी की आँखों में अब एक अजीब-सी खालीपन था, वो अब खुद को किसी लायक नहीं समझती थी, अपनी सुंदरता भी उसे बेमानी लगती थी। उसका जीवन बस एक कर्तव्य का बोझ था, जिसे वो हर रोज़ उठा रही थी। वो अपनी ही ज़िंदगी में एक अजनबी बन गई थी, जिसे अपने अतीत के प्यार ने हमेशा के लिए जकड़ लिया था।

आज वो सिर्फ़ एक माँ और एक Teacher थी, और उसने अपनी Personal life को कहीं खो दिया था।
आज, साक्षी के भीतर एक असहनीय खालीपन था।
वो एक उदासी से भरी, चिड़चिड़ी सी महिला बन गई थी, वो अपने अतीत की यादों में खोई रहती, और आज की ज़िंदगी उसे बेईमानी लगती।


Raj writes in his diary: जब life में VOID(खालीपन) आता है --> तब उसको भरने के लिए कोई ना कोई जरूर आता है
 
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