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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
Bhai ek suggestion hai ki aap first page par index bana lijiye. Iss se readers ko thodi aasani hogi.

अभी तो शुरुवात हैं सिर्फ़ दो ही अपडेट्स पोस्ट किया हैं कुछ ओर अपडेट पोस्ट कर दू फिर इंडेक्स भी बनवा दुंगा
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
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10,660
144
Update - 3

सुबह का वक्त था। महल में सब उठ चुके थे। अपना अपना नित्य कर्म से निवृत्त हों एक एक कर आ रहे थे। नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे थे। भारतीय रीति रिवाज अनुसार सुबह के समय बड़े बुजुर्ग का चरण स्पर्श करना सभ्य और शालीनता का प्रतीक माना जाता हैं। राजेंद्र के पूर्वजों ने चरण स्पर्श करने के सभ्य और शालीनता के प्रतीक को बखूबी निभाया सिर्फ निभाया ही नहीं आने वाले पीढ़ी को इसका महत्व भी समझाया और पालन भी करवाया। लेकिन महल के एक शख्स को यह परम्परा बेहूदा और असभ्य लगता इसलिए चरण स्पर्श करने में आना कानी करते। समय के साथ काम का बोझ और भागा दौड़ी के चलते सभी परिवार वालों का एक साथ बैठ पाना संभव नहीं था तो जब महल का भागडोर राजेंद्र को सोफा गया तब राजेंद्र ने एक नया नियम बनाया सभी परिवार वालो को सुबह का नाश्ता साथ में करना था बाकी दिन या रात के भोजन में कोई पाबंदी नहीं था। सुबह का नाश्ता साथ में करना मतलब सुबह जल्दी उठना फिर तैयार हो'कर समय से आ'कर नाश्ते के टेबल पर बैठना। इस बात से सुकन्या को चीड़ थी क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत हैं। सिर्फ इतना ही नहीं सुकन्या को पति और मां-बाप के अलावा किसी और का पैर छुना गवारा नहीं, अनमने भाव से रोज सुकन्या सुबह के समय भोर में उठती फिर तैयार हो'कर नीचे आती और रावण के टोका टाकी करने पर अनमने भाव से बड़ो के पैर छूती थी। आज भी सुकन्या अनमने भाव से उठी फिर नित्य कर्म से निवृत्त हो'कर रावण के साथ नाश्ता करने आ रहीं थीं। आते समय सुकन्या बोली….सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ता करने के नियम और पैर छुने की परम्परा में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…पैर छुने में किया हर्ज हैं। घर के बड़े-बुजुर्गो का पैर छुना हमारी संस्कृति हैं फिर भी तुम्हें बुरा लगता हैं तो डार्लिंग जब तक महल का राजपाठ मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक बदलाव करवा दुंगा ।

सुकन्या…... सुनिए जी आप'के और मेरे मां बाप के आलावा किसी ओर का पैर छुना गवारा नहीं, न जानें वो दिन कब आएगा जब मैं मन मुताबिक काम करूंगी, सभी पर राज करूंगी। आप कुछ कर तो रहे नहीं सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों।

रावण….डार्लिंग सब होगा, हमारे भाग्य में भी परिवर्तन होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सभी पत्ते मेरे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या… न जानें समय का पहिया कब घूमेगी। आप'की चाल कब सफल होगा। मैं ओर प्रतिक्षा नहीं कर सकता। कब तक मुझे सुरभि के नीचे दब कर रहना पड़ेगा। आप जल्दी से कुछ कीजिए।

रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं प्रतिक्षा कर रहा हूं। तुम भाभी को कुछ दिन ओर सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में होगा, देखो दादाभाई और भाभी आ गए हैं। उनके सामने कुछ ऊंच नीच न करना न ही बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सामने देखा, नाश्ते के टेबल पर सुरभि और राजेंद्र बैठे थे। सुरभि को देख मुंह भिचकाते हुए मन में बोली…."कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।

दोनों टेबल के पास पहुंचे, बैठने से पहले रावण भाई-भाभी के पाव छुआ फिर बोला….दादाभाई भाभी कैसे हों?

राजेंद्र&सुरभि….ठीक हूं। तुम कैसे हों?

रावण...आप दोनों के आर्शीवाद और प्रभु की कृपा से स्वस्थ और सलामत हूं।

सुकन्या को सुबह का वृतांत पसन्द नहीं था इसलिए खड़ी रहती हैं और मुंह भिचकाती रहती हैं। सुकन्या को खडा देख रावण बोला…. सुकन्या तुम खड़ी क्यो हों चलो दादाभाई और भाभी के पांव छू आर्शीवाद लो ये हमारी परम्परा हैं। परम्परा निभाने में शर्म कैसा।

राजेन्द्र…रावण परम्परा मान से निभाया जाता हैं जिसका मन होगा वो निभाएगा मन नहीं होगा नहीं निभाएगा। जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं होगा। इसलिए बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि….देवर जी जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन होगा तब पांव छू लेगी। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। मुस्कुराते देख सुकन्या तिलमिला जाती हैं फिर मन में बोली…..छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे मेरा पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरा नाम नहीं।

सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहीं। रावण आंखो से इशारा किया तब जा'कर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छुआ फिर अपने जगह बैठ गई। अपश्यु लॉर्ड साहब की तरह मस्त मौला चला आ रहा था। यकायक सामने चल रहे दृश्य पर नज़र पड़ गया जो संभतः रोजाना देखने को मिलता था। अपश्यु को भी सुबह पैर छुना साथ में नाश्ता करना नाटकीय लगता था। इसलिए मन में बोला….साला क्या नाटक हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल अपस्यु जो चल रहा हैं, भाग ले'कर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।

अपश्यु सभी के पास पहुंच कर अच्छे और संस्कारी बच्चे का परिचय देते हुए बाप का पैर छूते हुए बोला….. पापा शुभरात्रि के बाद शुभ दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा।

मां के पास जा पांव छुआ सुकन्या सिर पर हाथ रख आर्शीवाद दिया लेकिन कुछ बोला नहीं, तब अपश्यु बोला…मां अपने तो आशीर्वाद देते हुए कुछ कहा नहीं। ऐसा क्यों?

सुकन्या…तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…. अपने मेरे सिर पर हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

मां बेटे के वृतांत और बाते सुन सुरभि और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सभी राजपाठ आपसे छीनकर मैं कब्जा कर लूं।

अपस्यु के सिर पर हाथ रख राजेंद्र बोला……मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा तुम्हारे सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास गया पांव छुते हुए मन में बोला…बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी मां का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।

सुरभि मन की भोली न जानें अपश्यु ने मन ही मन किया मांगा साफ मन से सिर पर हाथ रखते हुए बोली…. मेरे लाडले को प्रभु सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें ऐसा दुआ मांगता हूं।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ गया। उसी क्षण रघु आया। मन में न छल न कपट न ही बैर था। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए सफल और सुखद भविष्य की कामना करता हैं। अंत में मां का पैर छुआ तो सुरभि रघु को उठाकर गले से लगा लिया, स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की ओर देखते हुए बोली…मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

प्यारा सा खिला हुआ मुस्कान बिखेर रघु अपने जगह जा बैठ गया। सुरभि मुस्कुराते हुए सुकन्या की ओर देखा, सुकन्या को सुरभि का मुस्कुराना पसन्द न आया इसलिए मुंह भिचकाते हुए मन में बोली….सुंदर बहु तू क्या लायेगी सुंदर बहु तो मैं अपने लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।

सुकन्या को मुंह भिचकाते देख सुरभि मन में बोली….छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझ'में और मुझ'में फर्क क्या रह जायेगा। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरे ईट का जवाब पत्थर से देगी, मैं बैठे तमाशा देखूंगी।

नौकरों ने सभी को नाश्ता परोस दिया। भर पेट नाश्ता कर एक एक कर अपने अपने रूम में चले गए। रावण और सुकन्या दोनों साथ में रूम पहुंचे, रूम में पहुंचे ही सुकन्या भड़क गई।

सुकन्या….. आप जानते हों मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता फिर भी आप बार बार मुझे उनके पैर छुने पर मजबुर क्यों करते हों।

रावण….. suknyaaaa तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा न मानना फिर भी तुम बिना करण भड़क रही हों।

सुकन्या….. भड़कू न तो ओर किया करूं जान बूझ कर आप मुझे मजबुर करते हों सुनो जी मैं साफ साफ कह देती हूं बहुत हो गया अब ओर नहीं होता।

रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगा। सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण…..तुम्हें महल की रानी बना हैं, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए भाभी के साथ व्यवहार में बदलाव लाओ, सिर्फ भाभी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अच्छा बरताव करना होगा।

सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। मेरे मन सम्मान की आप'को जरा भी फिक्र नहीं, आप सोच कर देखिए उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं करने वाली।

रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोई भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना ही होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं ऑफिस जा रहा हूं। आने के बाद तुम्हे ढेर सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा दिया फिर रावण चला गया। बाकी बचे लोग भी अपने अपने काम में चले गए।

कलकत्ता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते हुए महेश बोला…. कमला बेटी आज कोई थोड़ फोड़ न करना। कल तुमने सब तोड़ दिया हैं। पहले खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा….. वाह जी वाह टोकने के जगह आप ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के जगह घर ही गिरा दे। रोज रोज की तोड़ा फोड़ी से मैं तंग आ गई हूं।

कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन गिरा दूंगी फिर आप ये न कहना मेरी बेटी ने मेरे सजाए घर को गिरा दिया।

मनोरमा कमला की बात सुन कुछ ढूंढें लगीं। कुछ नहीं मिला तो एक प्लेट उठा कर बोली…तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरा ही घर तोडने पे तुली हैं।

मां को गुस्से में देख कमला उठा भाग कर महेश के पीछे छिप गई फिर बोली….पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर तुली हैं।

मनोरमा…..आज तूझे कोई नहीं बचाएगा बहुत तोड़ फोड़ करने का मन करता हैं। आज तेरा हड्डी पसली टूटेगा तब तूझे पाता चलेगा।

कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं, मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होती तब कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को पकड़ लिया मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करने लगीं, लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई तब बोली….देखो जी आप इसके बहकावे में न आना, कमला मासूम और प्यारी बच्ची नहीं चांडी का रूप हैं। इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आप'का ही सिर फोड़ दूंगी।

कोमल... ही ही ही ही पापा मम्मी तो मुझे छोड़ आप पर भड़क गई अपका सिर फोड़ना चाहती हैं। आप मम्मी को पकड़ कर रखना मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन गई दो भगोना लिया एक सिर पर रखा दूसरा हाथ में लेकर बाहर आई फिर बोली……आओ मम्मी दोनों मां बेटी जामकर मुकाबला करेंगे देखते है कौन किसका सिर फोड़ते हैं।

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देख पेट पकड़ हॅंसने लगीं। बेटी को देख महेश भी खुद को रोक नहीं पाया इसलिए हंस दिया। मां बाप को बावलो की तरह हंसते देख कमला बोली… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं। अब देखो पेट पकड़ हॅंस रही हैं। ऐसा क्यों? मैंने कोई जोक सुना दिया?

मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कभी हाथ वाले भगोना तो कभी सिर वाले भागने को देख रही थीं। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगें फिर मनोरम कमला के पास जा हाथ से फिर सिर से भगोना ले निचे रख दिया फिर बोली…..छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जा।

सभी फिर से नाश्ता करने बैठ गए कमला और महेश नाश्ता करके कॉलेज और ऑफिस को चल दिया। मनोरमा घर के बचे काम करने लग गई।


आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:

Destiny

Will Change With Time
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Fantastic update
Congratulations for reboonting story. Bro


Ye story ummide bhi upper pdhne. Me lge. :congrats: :applause::applause::applause::applause::congrats:
Haa . Ye sahi hai.
Naina ji ki sunoge to Naam hi nahi story ka sab kuch change ho jayega. Romantic se hatkar murder mystery story ho jayega. :D
nice update
suknya ek dhurt kism ki aurat hai jo khud ko ehamiyat deti hai & bakiyon ko kuch bhi nhi smjhti
kamla to boht gusse wali nikli jisko psnd na hai ki koi ldka uske pass aaye ab raghu aur kamla ki mulaqat kaise hogi intezaar rahega
nice update ..mahal me jaha sab naukar ijjat dete hai surbhi ko aur rani maa kehke bulate hai wahi sukanya ko naagin ka darja diya hua hai sab naukro ne .
sukanya wakai me ek ghatiya aurat hai jo surbhi ke itne pyar se baat karne par bhi uski insult karte rehti hai 😡..
daai maa ne sahi samajhaya surbhi ko ki wo mahal ki jimmedar sukanya ka naa de warna sab ko uska nuksan bhugatna hoga ..

kamla ko kuch ladko ne chheda jo uski maa ki saheliyo ke ladke the aur un ladko ko peeta bhi kamla ne par jab gussa shant nahi hua to ghar aakar tod fod karne lag gayi 🤣..
us pakhandi Apasyu ko har update entry karwaiye :D
tabhi to maza aaye :lollypop:
AWESOME UPDATE BHAI
Bahot behtareen shaandaar update bhai
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waiting for the next update...

अगला अपडेट पोस्ट कर दिया हैं
 

Luffy

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अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 3



सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….
सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।
रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।
सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।
रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।
सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।
रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।
सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..
रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?
राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।
सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।
सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……
रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।
राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।
सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…
सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……
अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।
रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।
अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….
अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।
सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।
अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।
सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……
राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।
अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……
सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….
सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।
रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….
सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।
रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।
सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।
रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।
सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।
रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।
सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।
रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।
रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।
सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।
सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..
महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।
मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।
कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।
मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….
कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।
मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।
कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।
महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……
मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।
कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।
कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….
कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।
मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….
कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?
पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….
मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा
सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।
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अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 3



सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….

सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।

सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।

रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।

रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..

रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?

राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।

सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।

सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……

रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।

राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……

अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।

अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….

अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।

सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……

राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……

सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….

सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….

सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।

रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।

सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।

रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।

सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।

रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..

महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।

कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।

मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….

कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।

मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।

कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……

मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।

कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….

कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….

कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?

पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….

मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा

सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।
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सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….

सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।

सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।

रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।

रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..

रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?

राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।

सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।

सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……

रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।

राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……

अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।

अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….

अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।

सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……

राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……

सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….

सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….

सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।

रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।

सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।

रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।

सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।

रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..

महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।

कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।

मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….

कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।

मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।

कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……

मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।

कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….

कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….

कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?

पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….

मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा

सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।

Superb Updateee

Kamla ki entry kab hogi mahal mein aur woh kab Sukanya aur uske pati aur bete ki band bajayegi.
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 3



सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….

सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।

सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।

रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।

रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..

रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?

राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।

सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।

सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……

रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।

राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……

अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।

अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….

अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।

सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……

राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……

सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….

सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….

सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।

रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।

सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।

रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।

सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।

रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..

महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।

कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।

मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….

कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।

मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।

कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……

मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।

कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….

कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….

कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?

पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….

मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा

सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।

lagta hai kamla hi haveli me aakar shukanya ki band bajayegi....ab aage dekhte hai kamla ki shadi kis ke sath hogi....
 
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