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15 अगस्त 1932 की रात…
शिमला पर बादलों ने अपनी चादर तानी थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा पेड़ों के पत्तों से फुसफुसा रही थी, मानो कुछ कहना चाहती हो… या किसी भयानक राज़ को धीरे-धीरे खोलना चाहती हो।
ब्लैकवुड कोठी — एक समय अंग्रेज़ हुकूमत की शान मानी जाने वाली हवेली, अब अजीब सी खामोशी में लिपटी थी। कोठी के चारों ओर ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे सदियों से कुछ देख रहे हों…
उस रात आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट , पर हर कोना कांप रहा था।
किसी को कुछ पता नहीं चला, पर कुछ बदल चुका था।
कोठी के मुख्य हॉल में, एक पुरानी अंग्रेज़ी दीवार घड़ी अपनी सुइयों को खींचते-खींचते 12 बजाने से ठीक पहले रुक गई — जैसे वक़्त खुद उस रात को ठहरकर देखना चाहता हो कि क्या होने वाला है।
कैप्टन जेम्स ब्लैकवुड, ब्रिटिश इंडियन आर्मी का एक बहादुर और अनुशासित अफसर, उस घड़ी के नीचे खड़ा था। हाथ में उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर थी — वही हथियार जिससे वह कई जंग जीत चुका था।
पर उस रात…
जंग बाहर नहीं, उसके अपने घर के भीतर थी।
उसके सामने खड़ी थी उसकी पत्नी एलिज़ाबेथ, जो आम तौर पर अपनी पोशाक में सजी-संवरी, सौम्य और शांत रहती थी… पर आज वो किसी और ही दुनिया की लग रही थी। बाल बिखरे हुए थे, चेहरा पसीने से गीला, और उसकी गोद में एक बच्चा था।
एलिज़ाबेथ की आवाज़, जो कभी संगीत जैसी मधुर होती थी, अब किसी सर्द कब्र से निकलती फुसफुसाहट जैसी थी।
“जेम्स… ये हमारा बच्चा नहीं है...” ये इंसान का बच्चा नहीं हो सकता है ये तो शे.....
जेम्स ने हिचकते हुए बच्चे की ओर देखा।
बच्चा चुप था… पर उसकी आँखें... उनमें कुछ था।
कोई सफ़ेद हिस्सा नहीं था, बस गहरा काला रंग... जैसे वो आँखें नहीं, किसी और लोक के द्वार हों।
वो रो नहीं रहा था, पर उसकी मौन उपस्थिति पूरे कमरे को दम घोंटने वाली शांति में बदल चुकी थी।
"मैंने इसे मार डाला था... अपने हाथों से... कुएं में फेंका था, जेम्स..."
एलिज़ाबेथ की आँखों में आँसू और भय था।
“वो कुआँ… जहाँ नौकर तक पानी लेने से डरते हैं… वही पुराना कुआँ… पर ये वापस आ गया।”
जेम्स की पकड़ ढीली हो गई। उसकी रिवॉल्वर अब हाथ में नहीं, सिर्फ़ उंगलियों से लटक रही थी।
“वो बाहर खड़ा था, मुस्कुरा रहा था… उसी जगह जहाँ तुमने गुलाब के फूल लगाए थे… उसकी त्वचा गीली थी, बर्फ जैसी ठंडी… और वो जिंदा था… जेम्स… ज़िंदा!”
तभी बिजली चमकी — एक तेज़ सफ़ेद रोशनी पूरे हॉल में फैली और एक पल के लिए बच्चे का चेहरा अजीब ढंग से चमका।
उसकी गर्दन धीरे-धीरे मुड़ी… फिर और मुड़ी…
...180 डिग्री।
अब वो जेम्स को घूर रहा था।
उसकी आंखों में पुतलियां नहीं थी या फिर सफेद रंग की नहीं थी आंखे काली थी।
और उसकी मुस्कान में इंसानियत का एक कतरा भी नहीं था।
“तू… कौन है?”
जेम्स की आवाज़ कांपी, और जैसे ही उसने ये कहा…
पूरी कोठी की बत्तियाँ गुल हो गईं।
चारों तरफ़ अँधेरा छा गया।
दीवार पर लगी जेम्स और एलिज़ाबेथ की फैमिली फ़ोटो ज़मीन पर गिर पड़ी — और कांच की जगह अब लकड़ी की फ्रेम में दरारें थीं… जैसे उस पल कुछ टूट गया हो।
घड़ी — ठीक 12:00 बजे — हमेशा के लिए रुक गई।
जेम्स ने रिवॉल्वर उठाई…
बच्चा अब हँस रहा था — लेकिन वो हँसी इंसानी नहीं थी।
धाँय!!
शिमला पर बादलों ने अपनी चादर तानी थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा पेड़ों के पत्तों से फुसफुसा रही थी, मानो कुछ कहना चाहती हो… या किसी भयानक राज़ को धीरे-धीरे खोलना चाहती हो।
ब्लैकवुड कोठी — एक समय अंग्रेज़ हुकूमत की शान मानी जाने वाली हवेली, अब अजीब सी खामोशी में लिपटी थी। कोठी के चारों ओर ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे सदियों से कुछ देख रहे हों…
उस रात आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट , पर हर कोना कांप रहा था।
किसी को कुछ पता नहीं चला, पर कुछ बदल चुका था।
कोठी के मुख्य हॉल में, एक पुरानी अंग्रेज़ी दीवार घड़ी अपनी सुइयों को खींचते-खींचते 12 बजाने से ठीक पहले रुक गई — जैसे वक़्त खुद उस रात को ठहरकर देखना चाहता हो कि क्या होने वाला है।
कैप्टन जेम्स ब्लैकवुड, ब्रिटिश इंडियन आर्मी का एक बहादुर और अनुशासित अफसर, उस घड़ी के नीचे खड़ा था। हाथ में उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर थी — वही हथियार जिससे वह कई जंग जीत चुका था।
पर उस रात…
जंग बाहर नहीं, उसके अपने घर के भीतर थी।
उसके सामने खड़ी थी उसकी पत्नी एलिज़ाबेथ, जो आम तौर पर अपनी पोशाक में सजी-संवरी, सौम्य और शांत रहती थी… पर आज वो किसी और ही दुनिया की लग रही थी। बाल बिखरे हुए थे, चेहरा पसीने से गीला, और उसकी गोद में एक बच्चा था।
एलिज़ाबेथ की आवाज़, जो कभी संगीत जैसी मधुर होती थी, अब किसी सर्द कब्र से निकलती फुसफुसाहट जैसी थी।
“जेम्स… ये हमारा बच्चा नहीं है...” ये इंसान का बच्चा नहीं हो सकता है ये तो शे.....
जेम्स ने हिचकते हुए बच्चे की ओर देखा।
बच्चा चुप था… पर उसकी आँखें... उनमें कुछ था।
कोई सफ़ेद हिस्सा नहीं था, बस गहरा काला रंग... जैसे वो आँखें नहीं, किसी और लोक के द्वार हों।
वो रो नहीं रहा था, पर उसकी मौन उपस्थिति पूरे कमरे को दम घोंटने वाली शांति में बदल चुकी थी।
"मैंने इसे मार डाला था... अपने हाथों से... कुएं में फेंका था, जेम्स..."
एलिज़ाबेथ की आँखों में आँसू और भय था।
“वो कुआँ… जहाँ नौकर तक पानी लेने से डरते हैं… वही पुराना कुआँ… पर ये वापस आ गया।”
जेम्स की पकड़ ढीली हो गई। उसकी रिवॉल्वर अब हाथ में नहीं, सिर्फ़ उंगलियों से लटक रही थी।
“वो बाहर खड़ा था, मुस्कुरा रहा था… उसी जगह जहाँ तुमने गुलाब के फूल लगाए थे… उसकी त्वचा गीली थी, बर्फ जैसी ठंडी… और वो जिंदा था… जेम्स… ज़िंदा!”
तभी बिजली चमकी — एक तेज़ सफ़ेद रोशनी पूरे हॉल में फैली और एक पल के लिए बच्चे का चेहरा अजीब ढंग से चमका।
उसकी गर्दन धीरे-धीरे मुड़ी… फिर और मुड़ी…
...180 डिग्री।
अब वो जेम्स को घूर रहा था।
उसकी आंखों में पुतलियां नहीं थी या फिर सफेद रंग की नहीं थी आंखे काली थी।
और उसकी मुस्कान में इंसानियत का एक कतरा भी नहीं था।
“तू… कौन है?”
जेम्स की आवाज़ कांपी, और जैसे ही उसने ये कहा…
पूरी कोठी की बत्तियाँ गुल हो गईं।
चारों तरफ़ अँधेरा छा गया।
दीवार पर लगी जेम्स और एलिज़ाबेथ की फैमिली फ़ोटो ज़मीन पर गिर पड़ी — और कांच की जगह अब लकड़ी की फ्रेम में दरारें थीं… जैसे उस पल कुछ टूट गया हो।
घड़ी — ठीक 12:00 बजे — हमेशा के लिए रुक गई।
जेम्स ने रिवॉल्वर उठाई…
बच्चा अब हँस रहा था — लेकिन वो हँसी इंसानी नहीं थी।
धाँय!!
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