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Horror 1932

Carry0

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15 अगस्त 1932 की रात…
शिमला पर बादलों ने अपनी चादर तानी थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा पेड़ों के पत्तों से फुसफुसा रही थी, मानो कुछ कहना चाहती हो… या किसी भयानक राज़ को धीरे-धीरे खोलना चाहती हो।

ब्लैकवुड कोठी — एक समय अंग्रेज़ हुकूमत की शान मानी जाने वाली हवेली, अब अजीब सी खामोशी में लिपटी थी। कोठी के चारों ओर ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे सदियों से कुछ देख रहे हों…

उस रात आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट , पर हर कोना कांप रहा था।
किसी को कुछ पता नहीं चला, पर कुछ बदल चुका था।

कोठी के मुख्य हॉल में, एक पुरानी अंग्रेज़ी दीवार घड़ी अपनी सुइयों को खींचते-खींचते 12 बजाने से ठीक पहले रुक गई — जैसे वक़्त खुद उस रात को ठहरकर देखना चाहता हो कि क्या होने वाला है।

कैप्टन जेम्स ब्लैकवुड, ब्रिटिश इंडियन आर्मी का एक बहादुर और अनुशासित अफसर, उस घड़ी के नीचे खड़ा था। हाथ में उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर थी — वही हथियार जिससे वह कई जंग जीत चुका था।

पर उस रात…
जंग बाहर नहीं, उसके अपने घर के भीतर थी।


उसके सामने खड़ी थी उसकी पत्नी एलिज़ाबेथ, जो आम तौर पर अपनी पोशाक में सजी-संवरी, सौम्य और शांत रहती थी… पर आज वो किसी और ही दुनिया की लग रही थी। बाल बिखरे हुए थे, चेहरा पसीने से गीला, और उसकी गोद में एक बच्चा था।


एलिज़ाबेथ की आवाज़, जो कभी संगीत जैसी मधुर होती थी, अब किसी सर्द कब्र से निकलती फुसफुसाहट जैसी थी।

“जेम्स… ये हमारा बच्चा नहीं है...” ये इंसान का बच्चा नहीं हो सकता है ये तो शे.....



जेम्स ने हिचकते हुए बच्चे की ओर देखा।
बच्चा चुप था… पर उसकी आँखें... उनमें कुछ था।

कोई सफ़ेद हिस्सा नहीं था, बस गहरा काला रंग... जैसे वो आँखें नहीं, किसी और लोक के द्वार हों।
वो रो नहीं रहा था, पर उसकी मौन उपस्थिति पूरे कमरे को दम घोंटने वाली शांति में बदल चुकी थी।



"मैंने इसे मार डाला था... अपने हाथों से... कुएं में फेंका था, जेम्स..."



एलिज़ाबेथ की आँखों में आँसू और भय था।

“वो कुआँ… जहाँ नौकर तक पानी लेने से डरते हैं… वही पुराना कुआँ… पर ये वापस आ गया।”



जेम्स की पकड़ ढीली हो गई। उसकी रिवॉल्वर अब हाथ में नहीं, सिर्फ़ उंगलियों से लटक रही थी।

“वो बाहर खड़ा था, मुस्कुरा रहा था… उसी जगह जहाँ तुमने गुलाब के फूल लगाए थे… उसकी त्वचा गीली थी, बर्फ जैसी ठंडी… और वो जिंदा था… जेम्स… ज़िंदा!”

तभी बिजली चमकी — एक तेज़ सफ़ेद रोशनी पूरे हॉल में फैली और एक पल के लिए बच्चे का चेहरा अजीब ढंग से चमका।

उसकी गर्दन धीरे-धीरे मुड़ी… फिर और मुड़ी…

...180 डिग्री।

अब वो जेम्स को घूर रहा था।

उसकी आंखों में पुतलियां नहीं थी या फिर सफेद रंग की नहीं थी आंखे काली थी।

और उसकी मुस्कान में इंसानियत का एक कतरा भी नहीं था।



“तू… कौन है?”
जेम्स की आवाज़ कांपी, और जैसे ही उसने ये कहा…



पूरी कोठी की बत्तियाँ गुल हो गईं।

चारों तरफ़ अँधेरा छा गया।
दीवार पर लगी जेम्स और एलिज़ाबेथ की फैमिली फ़ोटो ज़मीन पर गिर पड़ी — और कांच की जगह अब लकड़ी की फ्रेम में दरारें थीं… जैसे उस पल कुछ टूट गया हो।

घड़ी — ठीक 12:00 बजे — हमेशा के लिए रुक गई।

जेम्स ने रिवॉल्वर उठाई…
बच्चा अब हँस रहा था — लेकिन वो हँसी इंसानी नहीं थी।

धाँय!!
 
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Carry0

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अपडेट 1

(Shimla, 16 अगस्त 1932, सुबह)

शिमला की सुबहें अक्सर बादलों से ढकी होती हैं, लेकिन उस दिन जैसे पूरा शहर चुप था। धूप आई जरूर थी, मगर वो कोठी के चारों ओर बस एक हल्की रोशनी बनकर रह गई थी — जैसे सूर्य भी उस जगह पर अपनी पूरी ताकत दिखाने से पीछे हट रहे हो।

ब्लैकवुड कोठी के मुख्य गेट पर लगे लोहे के शेरों के मुंह खून से सने लग रहे थे, बगीचे की घास सुबह की ओस से भीगी हुई थी, लेकिन बीच-बीच में कुछ पैरों के निशान ऐसे थे जो मानो अंदर से बाहर गए हों — ना कि बाहर से अंदर।


कोठी के भीतर... सन्नाटा।

ड्राइंग रूम की खिड़कियाँ खुली थीं। पर्दे हवा से थरथरा रहे थे। लकड़ी की फ़र्श पर सूखे पत्तों के साथ-साथ कुछ गीली मिट्टी के निशान भी फैले थे। ये निशान दीवार की उस तस्वीर तक ले जाते थे, जो अब भी टूटी पड़ी थी — जेम्स और एलिज़ाबेथ की शादी की तस्वीर।

घड़ी अभी भी 12:00 पर रुकी थी।


कैप्टन जेम्स... ज़िंदा था।

लेकिन उसके माथे से खून बह रहा था। वो मुख्य हॉल में ज़मीन पर पड़ा था — रिवॉल्वर अब भी उसके हाथ में थी, लेकिन गोलियों का हिसाब गड़बड़ था। रिवॉल्वर खाली थी… लेकिन फर्श पर कोई गोली या गोली का खोल नहीं मिला ।

जेम्स की आँखें खुली थीं… और , सिर्फ़ एक जगह को घूर रही था — कमरे के एक कोने में रखे उस पुरानी अलमारी के पीछे, जहाँ कोई नहीं था।


कोठी के नौकर, जो सुबह तक छिपे रहे, आखिरकार पुलिस बुलाने गए। लेकिन पुलिस के आने से पहले ही एलिज़ाबेथ कोठी से गायब हो चुकी थी। कोई दरवाज़ा टूटा नहीं था, कोई आवाज़ नहीं हुई थी, लेकिन वो अब इस दुनिया में नहीं थी… शायद।

जाँच के दौरान एक पुराने संदूक के नीचे एक ढंकी हुई लकड़ी की स्लैब मिली। उठाने पर उसके नीचे एक गुप्त तहख़ाना था — बहुत पुराना, फफूंदी और चूने से भरा।

एक छोटा सा सीढ़ीनुमा रास्ता नीचे जाता था, और उसके नीचे...
एक लोहे का दरवाज़ा।

दरवाज़े पर किसी पुरानी भाषा में कुछ उकेरा गया था:

पुलिस ने वो दरवाजा खोलने को कहा।

कोठी के सबसे पुराने नौकर मोहन ने धीरे से कहा —

“इस दरवाज़े को मत खोलो साहब इसे आख़िरी बार 1897 में खोला गया था… और साहब के दादा अचानक पागल हो गए थे...”

जब पुलिस का एक अफ़सर उस दरवाज़े के पास पहुंचा, तो एक हल्की सी दस्तक सुनाई दी…
ठीक तीन बार...

ठक... ठक... ठक...

सब डर गए और पीछे हट गए।

ठीक उसी पल, कोठी के ऊपरी माले से एक औरत की चीख सुनाई दी — इतनी तीखी, जैसे किसी को जिंदा जला दिया गया हो।

पुलिस और सब सब नौकर जब दौड़कर ऊपर पहुँचे, तो वहां एक खिड़की खुली मिली — और एक टेबल, जिस पर किसी ने अपने नाखूनों से खरोंचते हुए लिखा था:

"मैंने उसे कुएँ में फेंका था... लेकिन अब वो अंदर है, मुझे बचाओ..."
पुलिस ने कुआं के बारे में पूछा तो नौकर उनको कुआं की तरफ इशारा कर के बोले वो है कुआं, उसके पास कोई नहीं जाता है वो कुआं....

कोठी के पीछे एक बहुत पुराना कुआँ था, जो वर्षों से बंद पड़ा था — लोहे की जंजीरों से बँधा होता था लेकिन उस सुबह वो खुला था।

कुएँ के किनारे एक गीला कपड़ा पड़ा था — बच्चे की कमीज़ जैसी। और पास ही मिट्टी पर एक छोटे से पैर का निशान था…

...पर उसके सामने था एक बड़ा, असामान्य रूप से बड़ा हथेली का निशान — मानो किसी ने उस बच्चे को उठाया हो… या खींचा हो।
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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15 अगस्त 1932 की रात…
शिमला पर बादलों ने अपनी चादर तानी थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा पेड़ों के पत्तों से फुसफुसा रही थी, मानो कुछ कहना चाहती हो… या किसी भयानक राज़ को धीरे-धीरे खोलना चाहती हो।

ब्लैकवुड कोठी — एक समय अंग्रेज़ हुकूमत की शान मानी जाने वाली हवेली, अब अजीब सी खामोशी में लिपटी थी। कोठी के चारों ओर ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे सदियों से कुछ देख रहे हों…

उस रात आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट , पर हर कोना कांप रहा था।
किसी को कुछ पता नहीं चला, पर कुछ बदल चुका था।

कोठी के मुख्य हॉल में, एक पुरानी अंग्रेज़ी दीवार घड़ी अपनी सुइयों को खींचते-खींचते 12 बजाने से ठीक पहले रुक गई — जैसे वक़्त खुद उस रात को ठहरकर देखना चाहता हो कि क्या होने वाला है।

कैप्टन जेम्स ब्लैकवुड, ब्रिटिश इंडियन आर्मी का एक बहादुर और अनुशासित अफसर, उस घड़ी के नीचे खड़ा था। हाथ में उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर थी — वही हथियार जिससे वह कई जंग जीत चुका था।

पर उस रात…
जंग बाहर नहीं, उसके अपने घर के भीतर थी।


उसके सामने खड़ी थी उसकी पत्नी एलिज़ाबेथ, जो आम तौर पर अपनी पोशाक में सजी-संवरी, सौम्य और शांत रहती थी… पर आज वो किसी और ही दुनिया की लग रही थी। बाल बिखरे हुए थे, चेहरा पसीने से गीला, और उसकी गोद में एक बच्चा था।


एलिज़ाबेथ की आवाज़, जो कभी संगीत जैसी मधुर होती थी, अब किसी सर्द कब्र से निकलती फुसफुसाहट जैसी थी।

“जेम्स… ये हमारा बच्चा नहीं है...” ये इंसान का बच्चा नहीं हो सकता है ये तो शे.....



जेम्स ने हिचकते हुए बच्चे की ओर देखा।
बच्चा चुप था… पर उसकी आँखें... उनमें कुछ था।

कोई सफ़ेद हिस्सा नहीं था, बस गहरा काला रंग... जैसे वो आँखें नहीं, किसी और लोक के द्वार हों।
वो रो नहीं रहा था, पर उसकी मौन उपस्थिति पूरे कमरे को दम घोंटने वाली शांति में बदल चुकी थी।



"मैंने इसे मार डाला था... अपने हाथों से... कुएं में फेंका था, जेम्स..."



एलिज़ाबेथ की आँखों में आँसू और भय था।

“वो कुआँ… जहाँ नौकर तक पानी लेने से डरते हैं… वही पुराना कुआँ… पर ये वापस आ गया।”



जेम्स की पकड़ ढीली हो गई। उसकी रिवॉल्वर अब हाथ में नहीं, सिर्फ़ उंगलियों से लटक रही थी।

“वो बाहर खड़ा था, मुस्कुरा रहा था… उसी जगह जहाँ तुमने गुलाब के फूल लगाए थे… उसकी त्वचा गीली थी, बर्फ जैसी ठंडी… और वो जिंदा था… जेम्स… ज़िंदा!”

तभी बिजली चमकी — एक तेज़ सफ़ेद रोशनी पूरे हॉल में फैली और एक पल के लिए बच्चे का चेहरा अजीब ढंग से चमका।

उसकी गर्दन धीरे-धीरे मुड़ी… फिर और मुड़ी…

...180 डिग्री।

अब वो जेम्स को घूर रहा था।

उसकी आंखों में पुतलियां नहीं थी या फिर सफेद रंग की नहीं थी आंखे काली थी।

और उसकी मुस्कान में इंसानियत का एक कतरा भी नहीं था।



“तू… कौन है?”
जेम्स की आवाज़ कांपी, और जैसे ही उसने ये कहा…



पूरी कोठी की बत्तियाँ गुल हो गईं।

चारों तरफ़ अँधेरा छा गया।
दीवार पर लगी जेम्स और एलिज़ाबेथ की फैमिली फ़ोटो ज़मीन पर गिर पड़ी — और कांच की जगह अब लकड़ी की फ्रेम में दरारें थीं… जैसे उस पल कुछ टूट गया हो।

घड़ी — ठीक 12:00 बजे — हमेशा के लिए रुक गई।

जेम्स ने रिवॉल्वर उठाई…
बच्चा अब हँस रहा था — लेकिन वो हँसी इंसानी नहीं थी।

धाँय!!
Congratulations 🎊 carry for new story 👍
Baat kare to pahla update shandaar tha, 👌🏻👌🏻👌🏻 thrill , horror sa
B feel ho raha tha, beshak chhota tha per badhiya tha👍
 
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Congratulations 🎊 carry for new story 👍
Baat kare to pahla update shandaar tha, 👌🏻👌🏻👌🏻 thrill , horror sa
B feel ho raha tha, beshak chhota tha per badhiya tha👍
शुक्रिया मेरे दोस्त तुम्हारे लिए पेश है गुलाबी दिल 🩷
 
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पुलिस जा चुकी थी, जैसे आई थी वैसे खाली हाथ, हवेली के सारे नौकर हवेली छोड़ कर अपने अपने घर भाग गए थे।
(रात 1:07 AM)

शिमला की हवा इस वक़्त अलग थी।

ना चाँद था, ना तारे।


ब्लैकवुड कोठी अब किसी घर जैसी नहीं लगती थी। वो अब एक जीवित व्यक्ति बन चुकी थी — दीवारें साँस ले रही थीं, फर्श हल्का-हल्का काँप रहा था, और खिड़कियाँ बिना हवा के अपने आप खुल-बंद हो रही थीं।



जेम्स की आँखों में संदेह और प्रेम... और भय

जेम्स को अपने कमरे से एलिज़ाबेथ की हल्की सी परछाई दिखी।
वो बालकनी की तरफ़ थी — पीठ किए खड़ी।
बाल अब सूखे और सुलझे थे, पर हिल नहीं रहे थे — जैसे हवा उसके शरीर को छू ही नहीं सकती हो

“एलिज़ाबेथ...?” जेम्स ने डरते हुए पुकारा।



बस धीमे से बोली:

“ हां जेम्स में हु एलिज़ाबेथ … मैं लौट आई हूँ।”


उसकी आवाज़ वैसी ही थी — मीठी, धीमी… पर ऐसा लग रहा था जैसे वो आवाज किसी पुराने कुएँ से आ रही हो।


जेम्स को लगा जैसे उसके पीछे कोई हो, जेम्स ने पलट कर देखा तो उसका बिस्तर हल्का-सा धँसा हुआ था, जैसे कोई उस पर बैठा हो… पर वहाँ कोई नहीं था।

तभी कमरे की बत्ती झपकने लगी।

टिक... टिक... टिक...

दीवार की घड़ी — जो रात को 12:00 पर रुक गई थी — अब धीरे-धीरे उल्टी दिशा में चलने लगी थी।

टाइम पीछे जा रहा था।

जेम्स ने जैसे ही एलिज़ाबेथ की तरफ दोबारा देखा, वो वहां नहीं थी वो अब बिस्तर के पास खड़ी थी —
या शायद कोई और उसकी शक्ल में खड़ा था।


"क्या तुम मुझे पहचानते हो?"

एलिज़ाबेथ अब मुस्कुरा रही थी।
लेकिन उसकी मुस्कान ऐसी थी जैसे किसी मरे हुए चेहरे को ज़बरदस्ती हँसने के लिए खींचा गया हो।

उसके होंठों के नीचे से हल्का सा गाढ़ा पानी बह रहा था…
और उसकी आँखें अब पूरी तरह काली हो चुकी थीं — पूरी… एकदम बिना रौशनी के।

“जेम्स... क्या तुम मुझे अब भी अपना समझते हो?”



जेम्स पीछे हटने लगा।

“क्योंकि मैं अब सिर्फ़ तुम्हारी नहीं रही...
मैं अब उसकी भी हूँ… जो नीचे है।”


नीचे, तहख़ाने में, वो लोहे का दरवाज़ा अब भी बंद था।
पर उसके पीछे से किसी हँसी की गूंज आई… जो अब इंसानी नहीं लगती थी।

वो हँसी धीरे-धीरे एलिज़ाबेथ की मुस्कान में बदल गई।


जेम्स ने कमरे के कोने में लगे आईने की तरफ देखा —
वहाँ एलिज़ाबेथ नहीं थी।

उसकी जगह एक काली आकृति थी — लंबी, चेहरा धुंधला, आँखों की जगह गड्ढे…
और उसके सीने में एक बच्चा छिपा हुआ था — जिसकी गर्दन उलटी थी।

अब कमरे में साँस लेना मुश्किल हो रहा था।
खून जमा देने वाली ठंड फैल रही थी।

दीवार पर लगी सारी तस्वीरें गिर गई थीं, जैसे कोठी की दीवार अब उन तस्वीरों को अपनाने से इनकार कर रही हो।

एलिज़ाबेथ धीरे-धीरे जेम्स की तरफ बढ़ रही थी।

“क्या तुम भी नीचे आओगे, जेम्स...?
उसके पास? मेरे पास? अपने बेटे के पास...?”



जेम्स ने रिवॉल्वर दोबारा उठाई।

लेकिन एलिज़ाबेथ अब पास थी — बहुत पास…

और फिर... वो गायब हो गई।

एक पल में वो वहाँ थी… अगले पल बस ठंडक और एक गीली गंध छोड़ गई।
 
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Carry0

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अपडेट 2
दिल्ली– 3 अक्टूबर 2024 सुबह 6 बजे



चार दोस्त “डर में ही जिनकी असली कमाई हैं…”


विक्रम, टीम का लीडर — कैमरे के सामने आत्मविश्वास से भरा और हर खतरे के लिए तैयार।



आदित्य, टेक्निकल मास्टरमाइंड — ड्रोन, नाइट-विज़न कैमरा, EVP डिवाइसेज़, सब उसका काम।



रिया, रिसर्चर — हर जगह की हिस्ट्री खंगालती थी और स्क्रिप्ट्स लिखती थी।



नील, सबसे शांत और संवेदनशील — लेकिन अजीब चीजों को सबसे पहले महसूस करने वाला।





इन चारों की यूट्यूब चैनल का नाम था — “Fear Frontier”

1 मिलियन सब्सक्राइबर और सैकड़ों हॉरर साइट्स कवर कर चुके थे।


कंटेंट की तलाश में नेहा पिछले 15 दिनों से लगी हुई थी, आखिरकार उसे पुराने ब्रिटिश रिकॉर्ड्स खंगालते वक्त एक खबर दिखी:



"1932 में शिमला की एक ब्रिटिश कोठी में हुआ था पूरा परिवार लापता... केस आज तक अनसुलझा…" जो गया वापसी लौट कर नहीं आया।




और साथ ही लोकल लोगों की कुछ कहानियाँ, जिनमें लिखा था:


“उस जगह का नक्शा नहीं बनता, GPS फेल हो जाता है…”

“रात में वहां वक़्त रुक जाता है…” और “कोठी के आसपास व्यक्ति तो क्या जानवर तक नहीं भटकते…”

रिया की आंखे चमक उठी, एक कॉल किया और अगले आधे घंटे में सब रिया के घर पर थे।
खबर पढ़ने के बाद सभी खुश हुए लेकिन नील गंभीर था।

“वहाँ चलें?” – विक्रम ने कहा, मुस्कुराते हुए।



“सरकार की प्रॉपर्टी है, अंदर जाना गैर-कानूनी होगा...” – आदित्य ने कहा।



“ज़्यादा रोमांच, ज्यादा खतरा तो ज़्यादा व्यूज़ और ज्यादा व्यूज तो ज्यादा पैसा।” – रिया ने जवाब दिया।



नील चुप रहा, लेकिन उसके मन में कुछ खटक थी।



अगले दिन शाम को, वो चारों अपनी कार से शिमला की ओर निकले। लोकल गाइड ने उन्हें आधे रास्ते तक छोड़ा, क्योंकि उन्होंने ब्लैकवुड कोठी का नाम लिया, जैसे ही उन्होंने ब्लैकवुड कोठी का नाम लिया — गाइड ने पीछे हटते हुए कहा:


“उधर मत जाओ बाबू… वहाँ जो गया वो वापस नहीं आया…”

विक्रम उसकी बात पर हंसा और बोला “चल भाग डरपोक चूहे”

नील को छोड़ कर सभी हंसने लगे।

काफी देर तक चलने के बाद उन्हें ब्लैकवुड कोठी दिखी



कोहरे के बीच, देवदार के पेड़ों के पीछे, एक भारी-भरकम गेट…

जिस पर लोहे में जंग लगे अक्षरों में लिखा था:


ब्लैकवुड कोठी – 1861

चारों दोस्तो ने जोर लगा कर गेट को खोला और अंदर की तरफ बढ़े

भीतर हॉल में कदम रखते ही नज़र गई एक पुरानी दीवार घड़ी पर

उसकी सुइयाँ अब भी 12:00 पर रुकी थीं।


लेकिन तभी…

घड़ी की सुइयाँ उल्टी दिशा में घूमने लगीं।



टिक... टिक... टिक...


कमरे के कोने में वही टूटी हुई तस्वीर —

जेम्स और एलिज़ाबेथ की …लेकिन वो अब मटमैली हो चुकी, पर चेहरों में कुछ अजीब था।

एलिज़ाबेथ की आँखें… अब तस्वीर में घूरती लगती थीं।



“ये लोग कौन थे?” – नील ने पूछा।



रिया ने कहा, “कोठी के मालिक … लेकिन कहते हैं कि औरत खुद गायब हो गई थी।”

सभी को एक अजीब सा अहसास लग रहा था, कुछ डरावना सा अहसास।

सभी लोग अपने काम पर लग गए, कोठी में हर जगह कैमरे लगा दिए थे और आवाज के लिए रिकॉर्ड हो इसके लिए माइक भी सेट कर दिए थे।


रात के 10 बजे का समय था।


रिया अपने नाइट विज़न कैमरे से शूट कर रही थी —

उसे कमरे में वहाँ एक पाँचवाँ व्यक्ति और दिख रहा था।

कमरे के कोने में खड़ा — एक छोटा बच्चा।

गंदे कपड़े, गीला शरीर… और उसकी आँखें काली थीं।



धर्मपुर 4 अक्टूबर 2024 सुबह 8.15 बजे

कैरी अपने बिस्तर पर सोया हुआ था लेकिन उसका काला अजगर पूरा खड़ा था, कारण था एक मटके जैसी गांड, कोमल रानी झाड़ू निकाल रही थी झुकी हुई और उसकी मटके जैसे गांड ऊपर उठी हुई थी, धीरे धीरे पीछे चलते हुए कोमल रानी अपनी गांड को कैरी के पास ला रही थी, जैसे ही कैरी का हाथ कोमल की मटके जैसी गांड तक पहुंचा या गांड हाथ तक पहुंची, कैरी ने पेटीकोट के ऊपर से ही पूरी गांड पर गोल गोल हाथ फिराने शुरू किए, कोमल रानी कुछ नहीं बोली बस उसी जगह झाड़ू निकालने लगी, वो तो यही चाहती थी।

कोमल रानी एक चूड़ाकड़ लड़की थी, और उसकी चूदाई की शुरुआत उसके भाई ने ही की थी, उसका भाई उसे रोज हचक हचक कर चोदता था, फिर उसके पिता ने भी अपना फर्ज निभाया और वो कोमल की गांड मारता था, कोमल को दर्द होता था लेकिन चूदाई की आग के आगे ये दर्द कुछ भी नहीं था।

कुछ दिनों बाद दोनों बाप बेटे मिल कर कोमल रानी की ऐसी तैसी करने लगे।

फिर कोमल कैरी के यहां आ गई नौकरानी बनके, कुछ दिनों बाद सबसे पहले केरी के पिता ने कोमल को लिटाया और फिर कैरी भी अपने पिता के रस्ते पर चल पड़ा।

सुबह बेटे का लंड और रात को पिता का लंड लेना अब कोमल का फर्ज हो गया था, कुछ दिन ऐसे ही निकल गए फिर रेखा के कहने पर कैरी ने धर्मपुर गांव को संभालना स्वीकार किया तो, कैरी के साथ कोमल रानी और उसकी बहन या बीबी शीतल उसके साथ यहां आ गए, तब से इस महल में कैरी कोमल रानी को दौड़ा दौड़ा कर चोदता है।

कैरी ने अपनी हाथ की एक उंगली कोमल की मोटी गांड के छेद पर फिरानी शुरू कर दी और पेटीकोट सहित हल्का जोर लगा कर अपनी उंगली कोमल की गांड में घुसा दी, कोमल हल्का सिसकी आह…

किसी स्क्रू ड्राइवर की तरह उंगली कोमल रानी की मटके जैसी गांड के छेद में घूमने लगी और दूसरा हाथ चूत पर चलना शुरू हो गया था, कोमल की सिसकियां अब बढ़ने लगी थी।

काफी देर ऐसे ही चलता रहा फर्श चूत के पानी से गिला हो गया है, कैरी की भी हालत खराब हो गई थी वो उठा और अपना शॉर्ट नीचे किया और कोमल रानी का साया ऊपर उठाया और अपने लंड को मोटा सुपाड़ा कोमल रानी की मटके जैसी गांड के खुल बंद होते भूरे छेद पर टिकाया और………
 
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