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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

Prime
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अध्याय 11 भाग:- 1 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)




उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.


साड़ी पहनी, सोलह श्रृंगार किया और नकुल को कॉल करके घर में बुलाई. नकुल की नजर जैसे ही मुझ पर गई, वो किनारे से मेरे गले लगाते... "दीदी वाकई में बहुत प्यारी लग रही हो, रुको मै एक सेल्फी लेता हूं"..


तारीफ किसे पसंद नहीं थी, ऊपर से उसके मुंह से तरिफ सुनकर, मै थोड़ा शर्मा गई. हम दोनों अभी सेल्फी ले ही रहे थे कि पीछे से पापा आ गए, और मुझे देखकर, मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहने लगे... "साड़ी में बहुत प्यारी लग रही है, पापा के साथ एक सेल्फी नहीं लेगी क्या?"


मै मुस्कुराकर अपना चेहरा नीचे कर ली और पापा से सिमटकर.. "नकुल एक तस्वीर तो निकल"


नकुल:- दीदी आंख तो साफ कर लो, ऐसे रोते हुए तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी...


मै नकुल की बात सुनकर हंसने लगी और अपने आंसू साफ करके मुस्कुराती हुई पापा के साथ 3-4 तस्वीर निकाली. फिर तो देखते ही देखते पारिवारिक फोटो सेशन का माहौल चलने लगा. पंचायत के फैसले और इतने हंगामे के बाद रविवार के दिन जब मै अपना चैलेंज पुरा करने जा रही थी, तब नकुल ने सबसे कहा की... "आपको हम दोनों पर भरोसा करना चाहिए. पूरे खानदान के साथ चलने से लगेगा कि हम अब भी डरे है, इसलिए यह एक आम खरीदारी होगी और जैसे हम किराने का सामान लेकर आते है, वैसे ही आएंगे.."


उसकी बात सुनकर पुरा परिवार ही हसने लगा. पापा ने कहा हम वैसे भी नहीं आएंगे जाओ अब तुम दोनो... पापा की बातें कुछ अजीब सी थी, मै और नकुल एक दूसरे का चेहरा देखकर हैरानी सा रिएक्शन देते, बाजार के ओर चल दिए.


हम दोनों जब बाजार पहुंचे तब समझ में आया कि पापा ने ऐसा क्यों कहा. जैसे ही मै कार से नीचे उतरी, वहां जोर-जोर से ढोल बजने लगा. सड़क के दोनो ओर की ट्रैफिक रोक दी गई और एक बिल्कुल ब्रांड न्यू कार, एमजी हेक्टर, के पीछे 5-6 गाडियां रुकी.


मै नकुल का हाथ पकड़कर सामने का नजारा देखने लगी. कार से विधायक असगर आलम का एकमात्र जिंदा बेटा लियाकत उतरा. 4 ढोलकी और अपने कुछ लोगो के साथ धीरे धीरे वो आगे बढ़ने लगा.. उसके पीछे उसकी पत्नी आरती का थाल लिए थी. जैसे ही वो मेरे करीब पहुंचा, लियाकत अपनी पत्नी को इशारा किया.. उस औरत ने मेरी आरती उतारी और टिका लगाकर माला पहना दिया..


मै, लियाकत को हैरानी से देखती... "ये सब क्या है"..


लियाकत जोड़ से चिल्लाते... "अपनी शेरनी बहन का स्वागत कर रहा हूं. माफ करना मै राखी के दिन पहुंच नहीं पाया, इसलिए आज राखी बंधवाने आया हूं"..


अपनी बात कहकर वो कलाई आगे कर दिया. मै थोड़ी हैरान होकर नकुल को देखने लगी. नकुल अपनी पलकें झपकाकर सहमति देने लगा और मै आरती की थाल से राखी लेकर लियाकत को बांध दी.


लियाकत मुझे एक डिब्बे में नई कार की चाभी और साथ में एक लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया. जैसे ही उसने गिफ्ट थमाया... "सुनिए भैया, अब ये सब क्या है"..


लियाकत, बिल्कुल हमारे करीब आकर धीमे से कहने लगा… अंजाने मे जो तुमने मेरी मदद की है, उसके लिए लिफाफे मे मेरा छोटा सा धन्यवाद है. और ये कार अपनी बहन को मै राखी मे गिफ्ट कर रहा हूं. ना पसंद है तो मुझे बता दो, तुम्हे जो पसंद होगी वो कार हम ले लेंगे.. क्योंकि मै उपहार देने से ज्यादा पसंद की चीज देने में विश्वास रखता हूं..


मै:- लेकिन आप ये सब कर क्यों रहे है...


लियाकत अपनी गाड़ी में सवार होते... "कुछ चीजें लोग अपने पूरे अरमान के साथ करते है, वही मैंने भी किया है... तुम खुशी-खुशी इन्हे स्वीकार करके मेरा दिल रख लो.. और जिंदगी में कभी कोई समस्या हो तो ये तुम्हारा भाई, हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा मिलेगा"..


मै उसे जाते देख रही थी और नकुल मुझे हैरानी से देख रहा था. जैसे ही मेरा ध्यान नकुल पर गया.. "ओय अब तुझे क्या हो गया".


नकुल:- मेनका ये क्या बोलकर गया कुछ समझी..


मै:- क्या?


नकुल:- उल्लू, सुनी नहीं क्या उसने क्या कहा?


मै:- कहेगा क्या, असगर अली के बेटे को मैंने चैलेंज किया और उस चैलेंज को मैंने पूरा किया. उनकी इज्जत फटी हुई ना दिखे, इसलिए यहां मस्का पॉलिश और पॉलिटिकल एजेंडा वाला माहौल बाना रहा था...


नकुल:- कब तेरा दिमाग इस मामले में चलेगा पता नहीं. चल राशन का सामान खरीदते है, फिर मै तुम्हे रास्ते में सब समझता हूं..


मै:- लेकिन हम तो 2 कार से जाने वाले है... वो भी तो एक कार गिफ्ट करके गया है..

नकुल:- स्मार्ट गर्ल के लिए स्मार्ट कार देकर गया है... एमजी हेक्टर..


मै:- येस आई एम् ए स्मार्ट गर्ल..


नकुल:- स्मार्ट नहीं कम अक्ल. अभी तुम्हे पूरी बात नही समझ में नहीं आयी, सब समझाऊंगा तब कहेगी, ओह तो ये बात थी...


मै:- तू मुझे सस्पेंस से मत मार, चल घर जल्दी, और मुझे समझा कि वो क्या कहकर गया?


नकुल:- लिफाफा खोल कर चुपके से देख तो लो पहले घर जाना है कि पहले बैंक..


नकुल की बात मानकर जैसे ही मैंने लिफाफा खोला, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया... फटी आखों से मै नकुल को देखने लगी, साथ मे मुझे हिचकियां भी आ रही थी... मेरी हालत देखकर नकुल पूछने लगा.. "क्या हुआ कितना बड़ा अमाउंट है जो तू सदमे में चली गई"…. "ड.. ड.. डेढ़ करोड़"..


अमाउंट सुनकर नकुल चार गालियां लियाकत को देते... "कुत्ता साला इतना कम देकर गया"


मै फिर नकुल को हैरानी से देखती... "लेकिन वो ये देकर क्यों गया है"..


नकुल ने मुझे शांत रहने की सलाह दी. मैंने बैंक जाकर पहले चेक लगाया फिर राशन का थोड़ा बहुत सामान लेकर, हम घर पहुंचे. मेरे चेहरे की व्याकुलता नकुल समझ सकता था, इसलिए वो मेरा हैरान चेहरा देखकर बार-बार हंस रहा था...


उसकी हंसी तो मुझे और भी ज्यादा परेशान कर रही थी. कमरे में वो पहले तो 10 मिनट तक हंसता रहा फिर कहने लगा... "तुम्हारे मैटर के नाम पर उस लियाकत ने अपने सारे दुश्मन को एक साथ साफ कर दिया. सुनी नहीं उसने क्या कहा था.… अंजाने मे तुमने उसका काम किया है. मतलब साफ था कि उसने जितनो लोगो को साफ किया है, उसकी लिस्ट पहले से उसके दिमाग में थी."

"बस कोई स्ट्रॉन्ग वजह नहीं मिल रही थी, वरना तुम्हे छेड़ने और गांव की 2 बेटी को परेशान करने के लिए, बहुत ज्यादा से ज्यादा 3 लोगों को मारता. वो भी पंचायत मारने के लिए कभी नहीं कहती, बल्कि कहती 6 महीने या 1 साल जेल में डाल दो. यदि ऐसा होता तो लियाकत के उम्मीद पर पानी फिर जाता, इसलिए तो उसने पंचायत मे कहा था सजा वो खुद देगा, ताकि लाशों का ऐसा खेल खेले की उसका पॉलिटिकल ग्राफ सीधा ऊपर आ जाए."

"2 दिन में कई छोटे-बड़े दिग्गज को मरवाने का क्रेडिट ले गया है. आज के वक्त मे उससे भी बड़ा बाहुबली कोई होगा क्या? उसके इलेक्शन जितने और मंत्री पद संभालने का पूरा रास्ता ही क्लियर हो गया अब तो... साला ये लियाकत पक्का पॉलिटीशियन निकला.…
 

nain11ster

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अध्याय 11 भाग:- 2 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)





मै और नकुल, नकुल के कमरे में ही ये सारी बातें कर रहे थे और हमे क्या पता कि कुछ लोग छिपकर हमारी बात सुन रहे थे. जैसे ही नकुल की बातें खत्म हुई, नकुल के पापा रघुवीर भैया और उसकी मां आशा भाभी नकुल के कमरे में पहुंची और उसका कान मारोड़ते... "तो तू है वो जो मेनका को इन बाहरी बातो का ज्ञान देता है"..


मै, रघुवीर भैया का हाथ नकुल के कान से हटाती… "हम दोनों आपस में डिस्कस नहीं करेंगे, तो क्या आप लोगों से डिस्कस करने जाएंगे.. हमे जो सही-गलत लगता है, आपस में बातिया लेते है. आप लोग आते है अपनी बात हमे बताने.. तब तो कहते हो बच्चे हो.. नकुल को जितना पॉलिटिक्स का ज्ञान था वो मुझे बता रहा था"…


मां:- और तू तो हम सबकी नानी है मेनका. जितना तू नकुल के लिए मरती है, हम मे से किसी और के लिए उसका आधा भी मर लेती, तो समझते हम धन्य हो गए..


मै:- "नकुल मेरी हम उम्र बहन जैसी है... जैसे 2 बहनों का प्यार होता है, वैसे ही हम दोनों का है.. गलती आप लोगो कि है. क्यों बेटियो का गला घोट देती थी उसके पैदा होने से पहले. कितना कुछ छूट गया मेरा, आपको पता भी है... वो लता और मधु एक ही गली की है, रिश्ते में बहने और पक्की सहेली.. जहां भी जाती है साथ रहती है.. किसी का आशा नहीं रखना पड़ता उन्हे.."

"मै शुरू से जहां भी घूमने गई नकुल मेरा हाथ पकड़े था. भोज खाने जाना हो, शादी मे जाना हो, त्योहार मे जाना हो, मेले में जाना हो.. हर जगह तो नकुल ही था. कहां कोई लड़की मेरे साथ थी.. अब नकुल जैसा सोचता है, वैसा वो मुझसे बात करता है. और मै जैसा सोचती हूं वो मै नकुल को बताती हूं... इसलिए मेरे सोच में लड़को वाली सोच तो आएगी ही. वैसे भी नकुल के साथ होने से एक बात तो अच्छी है.. कम से कम आप लोगों की तरह मै चुगली करना पसंद नहीं करती. और ना ही दूसरे लड़की के पहनावे और गहनों को लेकर बातचीत करती हूं...


नकुल:- क्या बात कही हो दीदी, सभी की बोलती बंद कर दी..


मै:- मै किसी की बोलती नहीं बंद की बस सबको अपने दिल की बात बता रही हूं. सब अपने हम उम्र के साथ रहना पसंद करते है, सो मै भी करती हूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरा लगाव आप सब में से किसी से कम हो जाता है.. मै आप सबको भी उतना ही प्यार करती हूं.. नकुल सुबह-सुबह चला जाएगा फिर 2 महीने बाद देखूंगी, इसलिए बैठकर बातें कर रही थी, लेकिन आप सबको तो वो भी देखा नहीं जाता...


मां:- कहा था ना ये हमारी नानी है.. देखा दिल की बात बताते-बताते उलहाना भी दे दी. हम चुगली करते है, दूसरी औरतों के कपड़े और गहने देखकर उसके बारे में बात करते है..


मै:- सॉरी, ज्यादा बोल दी क्या?


आशा भाभी मेरे गले लगती... "हां थोड़ा ज्यादा हो गया, हम सब को लपेट ली. लेकिन कोई ना इतना चलता है. चलो चाची (मेरी मां) यहां से दोनो बहनों को बतीया लेने दो..


हमारे घर के लोग भी ना, पहले रंग में भंग डाल देंगे, फिर कहते है अकेला छोड़ दो. खैर मै भी नकुल से थोड़ी देर बात करके वापस घर आ गई. तकरीबन 12 बज रहे होंगे जब पापा घर आए. उनके आते ही मै उनके साथ उनके कमरे में चली गई, और पापा के साथ बैठकर उनसे पूछने लगी, क्या मेरे मुद्दे मे लियाकत ने अपनी दुश्मनी निकली है?


तब पापा ने कहा कि किसी से ये बात डिस्कस नहीं करने. पुरा मामला पंचायत के एक रात पहले ही तय हो गया था. तभी तो हम सब शॉक्ड हो गए थे कि जब सब कुछ तय हो गया था फिर ये दंगा भड़काने कौन आ गया..


पता चला विधायक के बड़े बेटे और वो मुखिया बख्तियार ने मिलकर ये योजना बनाई थी. फिर मामला को राजवीर जी ने संभाला. इधर वो लियाकत पहले से सब मन बाना चुका था, उसे मौका और सपोर्ट दोनो मिल गया और वो चढ़ गया सीढी.


मै:- पापा लियाकत ने मुझे डेढ़ करोड़ रुपए भी दिए है..


पापा:- वो तेरे पैसे है, किसी को बताना मत इस बारे में..


मै:- लेकिन क्यों पापा..


पापा:- बस ऐसे ही, मत बताना किसी को..


मै:- किसी को मतलब बाहरी को ही ना..


पापा:- नहीं घर के लोगों को.. बात ये नहीं कि लोग तुझ से पैसे मांग लेंगे. बात फिर हो जाती है कि तेरी मां किसी के पास बैठी और गलती से उसके मुंह से निकल गया.. ऐसे ही एक के मुंह से दूसरे और दूसरे के मुंह से तीसरे तक बात पहुंच जाती है.. और ये मामला बहुत नाजुक है..


मै:- पापा बस नकुल ये बात जानता है लेकिन विश्वास रखो वो किसी को कुछ नहीं कहेगा..


पापा:- हां मै जानता हूं कि वो किसी से कुछ नहीं कहेगा..


मै:- ठीक है पापा फिर ये बात मै किसी से नहीं कहूंगी. अब मै जाती हूं..


पापा:- अच्छा सुन बेटा, कुछ दिन के लिए तू कहीं घूम क्यों नहीं आती. इतना टेंशन भरे माहौल से गुजरी है और एक बड़े कांड का अहम हिस्सा हो, तो मै सोच रहा था 1-2 महीने के लिए कहीं हो आओ..


मै:- पापा आपको नहीं लगता कि आप बेकार मे टेंशन ले रहे. ठीक है मै 3 महीने के लिए घर में ही पैक हो जाती हूं, अपने कमरे से ही नहीं निकलूंगी..


पापा:- पागल घर है ये जेल नहीं.. जैसा तुम्हे ठीक लगे. बस लगा कि माहौल इतना टेंशन भरा था तो कुछ दिन बाहर घूम लोगी तो मन लगा रहेगा. वैसे भी एक लंबे समय से कहीं घूमने गई भी नहीं.


मै:- पापा बात क्या है, जो आदमी रोज रात को उठकर मुझे 2 बार देखकर जाता है, वो आज खुद से दूर करने की बात कर रहे.. सच-सच बताओ पापा..


पापा:- तुमने हिम्मत दिखाई मुझे खुशी हुई. तुम्हे पता है कहां छोड़ना चाहिए, कहां भिड़ना चाहिए और कहां पुरा भिड़ जाना चाहिए. लेकिन तुम्हारे नाम पर जो इतना बड़ा कांड हुआ है, उसके बाद बहुत से लोग घर आकर तुम्हे बधाइयां देंगे. सब सबाशी देंगे.. और ये सबशी बहुत खतरनाक होती है बेटा..


मै:- कैसे पापा, मुझे भी समझाओ ना...


पापा:- बस मै अपनी ज़िंदगी के कुछ पुराने पाप को देखकर ऐसा बोल रहा हूं मेनका.. काश वो सबाशि सुनकर मेरे दिल में बार-बार एक ही जैसे काम करने की इक्छा नहीं जागी होती, तो मै इतनी गलतियां नहीं करता..


मै:- बस पापा मुझे और नहीं जानना. हां मै गलत को गलत ही कहूंगी, लेकिन मै वो सुन नहीं पाऊंगी पापा. आप बस कोशिश करना की आप सारी गलतियों को सुधार सके.... आपकी इक्छा है तो मै कहीं घूम आती हूं, आप बताओ कहां चली जाऊं.. मामा के साथ जाऊं, या मै कविता मौसी के यहां हो आऊं. या फिर..


पापा:- फिर क्या मेनका..


मै:- आप डाटोगे तो नहीं..


पापा:- गुस्सा आएगा तो थोड़ा बोल दूंगा, सुन लेना और क्या?


मै:- पापा मै बड़े पापा के पास चली जाऊं क्या?


पापा मेरी बात सुनकर अपना मुंह फेर लिए. पता नहीं शायद उनके पुराने जख्म कुरेद दिए थे मैंने. वो कुछ बोल ही नहीं पाए… कुछ देर तक अपना मुंह दूसरी ओर ही घुमाए रहे... मै उनके कंधे पर हाथ रखती... "पापा आप रो रहे है"..


मुझे साफ पता चल रहा था कि पापा अपने आंख साफ कर रहे है. वो वापस मुड़ते... "कुछ बातें हमेशा खटकती है, मै पिछले 16 साल से सोच रहा हूं कि मैंने सही किया था या गलत."..


मै:- गलत किया था पापा.. इतनी दुविधा में क्यों है. अब भी एक मन से खुद को सांत्वना देने की कोशिश में क्यों जुटे है, जबकि आप सब कुछ समझते है..


पापा:- हां सही कही.. पंच का फैसला अपनी जगह था लेकिन मै तो उनका भाई था.. ये गलती चुभती है.. जमीन तक बेईमानी कर गया था मै.. तेरी मां ने नहीं समझाया होता तो..


मै:- पापा ये 16 साल तक भाई से दूर रहने वाली भी गलती नहीं होती पापा. बस झिझक मात्र से आप दूर है बड़े पापा से.. आप छोटे है, इसलिए झिझक छोड़कर आपको उनके पास जाना चाहिए था...


पापा:- हम्मम ! ठीक है एक काम करते है..


मै:- क्या पापा...


पापा:- तू कल नकुल के साथ कविता के पास चली जा.. वहां कुछ दिन रहना फिर यहां के कुछ पेंडिंग काम निपटाने के बाद मै वहां पहुंच जाऊंगा. वहां से फिर हम सब भैया के पास चलेंगे...


मै:- कुछ पेंडिंग काम निपटाने में कितने दिन लगेंगे..


पापा:- 10 दिन तो लग ही जाएंगे..


मै:- ठीक है सुबह आप कविता मासी को कॉल कर देना, किसी को बस स्टैंड भेज देने, मै बस स्टैंड मे उतर जाऊंगी, और नकुल अपना फ्लाइट पकड़ने पटना निकल जाएगा..


पापा:- ठीक है मै फोन कर देता हूं.. और सुन वहां किसी को तंग मत करना..


मै:- मै क्या साक्षी हूं जो सबको तंग करूंगी.. वैसे पापा क्या मै साक्षी और केशव को भी लेते चली जाऊं..


पापा:- नाना, उन दोनों को मत लेकर जा, वरना यहां झगड़ा हो जाएगा..


मै:- मै समझी नहीं, साक्षी को ले जाने से यहां क्यों झगड़ा हो जाएगा...


पापा:- बड़ी बहू के पिताजी की तबीयत खराब है, वो दोनो कल तक निकल जाएंगे. ऐसे में उसके नाना-नानी को पता चलेगा कि उसके नाति और नातिन कहीं और घूम रहे तो गृह युद्ध छिड़ जाएगा.. तू क्या अपनी बड़ी भाभी को नहीं जानती..


मै:- कोई बात नहीं, मै और मेरा लैपटॉप... मेरे तन्हाई का साथी..


पापा:- जितनी पढ़ाई जरूरी है, उतना ही पढ़ाई से ब्रेक लेना भी..


मै:- पापा ये कुछ अजीब तरह की बातें नहीं हो रही..


पापा:- अजीब कैसे हुई बिल्कुल सही बात है..


मै:- और वो कैसे..


पापा:- जैसे लगातार खेती के बाद जमीन को साल भर खाली छोड़ने से मिट्टी की उपजा वापस आ जाती है, वैसे ही घूम फिर कर आने के बाद दिमाग फ्रेश हो जाता है फिर सारी बातें बिल्कुल फटाफट दिमाग में घुसती है..


मै:- पापा..


पापा:- क्या हुआ..


मै:- दोनो बात का कोई संबंध नहीं है.. पढ़ाई रेगुलर होनी चाहिए और दिमाग को रोज ही ब्रेक भी मिलना चाहिए. फिर तो मुझे खाने का उदहारण देना होगा..


पापा:- कैसा उदहारण..


मै:- 5 दिन भूखा रखने के बाद पेट भी पुरा रिलैक्स रहेगा, तब जो भी खाओगे फटाफट पच जाएगा... पेट की सारी तकलीफ दूर हो जाएगी..


पापा:- ये एग्जाम्पल मैच नहीं कर रहा.. लॉजिक मे मै ही जीता हूं..


मै:- ठीक आप है जीते मै हारी.. आप फ्री है क्या?


पापा:- हां फ्री हूं.. तो चलिए मेरे साथ सहर, मुझे कुछ सामान खरीदना है..


पापा:- नकुल के साथ चली जा..


मै:- मुझे आपके साथ दिल कर रहा है जाने का, नकुल के साथ जाना होता तो पहले पूछ लेती ना...


पापा:- अच्छा ठीक है, अपनी मां को भी बोल से तैयार होने और कहना कि अपने पोते-पोती को छोड़ देने और अकेले मेरे साथ चले.. तू नकुल के साथ जा. मै और तुम्हारी मां अलग आते है..


मै:- जैसा आप कहो पापा.. मां को मै बोल देती हूं..


कुछ ही देर में हम तैयार थे. सहर पहुंचकर पापा ने अपनी कार सहर वाले घर में पार्क की और हमारे साथ ही चल दिए.. "मेनका तुम मुझे साथ मे क्यों लाई"..


नकुल:- बूढ़े लोग के साथ लाने पर 40% डिस्काउंट है इसलिए साथ लेकर आयी...


धीरे मेरे कान के पास नकुल ने ऐसे बोला की मेरी जोर की हंसी छूट गई.. पापा जोड़ से डांटते हुए पूछने लगे... "मेरे सवाल पर इसने ऐसा क्या बोला जो तुम हंसने लगी"


मै:- पापा नकुल कह रहा था दादा इतने बुद्धू कैसे हो सकते है, पैसे खर्च करवाने लाए है और किसलिए.…


पापा:- पैसे क्या पेड़ पर उगते है जो मै ऐसे ही खर्च कर दूं... सभी जरूरत की चीजें तो है ही इसके पास..


नकुल:- सही है दादा, बिलकुल सही है... वैसे तो दोनो बाप बेटी लाखो उड़ाने से पहले सोचोगे नहीं, लेकिन दिखाओगे ऐसे की पैसे हमेशा हिसाब से ही खर्च करते हो..


मां:- बहुत सही जवाब दिया मेरे पोते. वैसे तेरे दादा ने सोचा था कि तुझे आज एक नया मोबाइल दिला दे. लेकिन अब जब ऐसी बातें तुमने कर दी है तो तू देख ले..


नकुल:- दादा, वो तो चमरे की जुबान है, फिसल जाती है, प्लीज आप दिल से मत लेना.. कुछ तो बोलो.. दादा..


पापा:- मोबाइल दिलाना कैंसल..


नकुल:- नहीं नहीं नहीं दादा, क्या आप भी हम छोटे बच्चो की बात का बुरा मान जाते हो, दीदी तुम ही समझाओ ना..


मै:- ऐसा है बाबू की हम बाप बेटी तो लाखो लूटाने से पहले सोचते नहीं ना, इसलिए तुम्हारी बात सुनकर हमारे ज्ञान के द्वार खुल गए..


नकुल:- प्लीज बस मेरे मोबाइल आने तक अपने ज्ञान के द्वार को बंद कर लो..


पापा:- अच्छा मेरे एक सवाल का तू सही-सही जवाब दे, फिर मै तेरी बात को भुल जाऊंगा और तुझे मोबाइल भी दिला दूंगा..


नकुल:- आसान सा सवाल पूछना दादा, जिसका जवाब मै दे दूं..


पापा:- क्या तू अपना घूमना 20 दिन के लिए टाल सकता है..


नकुल:- हद है, कोई काम है तो सीधा बोल दो ना दादा, कौन सा मै बॉर्डर पर जंग लडने जा रहा जो देश का एक सिपाही कम हो जाएगा, 20 दिन बाद चला जाऊंगा घूमने..


मै:- पापा नहीं.. उसे जाने दो.. आप बिल्कुल ग़लत कर रहे है..


नकुल:- पहले दादा को बात तो करने दो, फिर ना गलत या सही का फैसला होगा..


मै:- मैंने बोल दिया है ना गलत है, मतलब गलत है.. तू कल बंगलौर के लिए अपनी फ्लाइट लेगा..


नकुल:- पर टिकट तो मैंने बृहस्पति वार को ही कैंसल करवाई थी..


मै:- लेकिन क्यों..


नकुल:- मुझे संगीता दीदी से टिकट लेना अच्छा नहीं लगा इसलिए..


मै:- हां वो मै समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- अभी तो बताया, मुझे अच्छा नहीं लगा.…


मै:- अभी तो मै भी कहीं ना, तेरी बात समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- बस ऐसे ही, उससे ज्यादा मत पूछो..


मां:- क्यों रे तू तो कल बंगलौर जाने की पूरी प्लांनिंग कर चुका था. तेरा बैग वग्रह सब पैक है, फिर तू बंगलौर कैसे जाता...


नकुल:- पहले सोचा सर्वे कर लूं फिर बंगलौर निकलूंगा..


मै:- चलो आ गया अपना शॉपिंग की जगह.. पापा आप यहां पहले आए थे कि नहीं..


मै, प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स दिखती हुई उनसे पूछने लगी. पापा ने ना में जवाब दिया और कहने लगे, कभी मौका ही नहीं मिला. ये राजवीर जी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है ना....


मै:- जी नहीं ये प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है…


पापा मेरी बात सुनकर हसने लगे और हम सब उस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुंच गए. मां पापा को वहां मैंने थोड़ी देर घुमाया, फिर पापा कहने लगे, मेनका यहां कुछ काम है तो वो कर लो, नहीं तो पहले मेरे साथ चलो, कुछ शॉपिंग मुझे भी करनी है फिर तुम मुझे यहां कुछ देर घुमा देना और नकुल के साथ चली जाना


मां:- ऐसे कौन सी हड़बड़ी मची है मिश्रा जी, जो मेनका को भागने मे लगे हो..


मै:- पापा आपको यहां फिल्म दिखने लाये है मां.. (मैंने ऐसे ही फिरकी ली)


मां:- फिल्म और तेरे पापा.. भुल जाओ.. 17 साल हो गए फिल्म दिखाए और 8 साल हो गए इनके साथ बाजार आए.. ये और इनका काम..


मै:- पापा मै ये कार छोड़ दूं और घर से कार उठा लू, या आप घर की कार लेकर आओगे..


पापा:- मै समझा नहीं..


मै:- पापा मुझे लगता है आपको मां की शिकायत पहले दूर करनी चाहिए, इसलिए मै अपने काम का समान लेकर यहां से निकलती हूं...


पापा:- हां यही ठीक रहेगा..


मां:- मिश्रा जी कभी-कभी आप भी ना हद करने लगते हो.. साथ चलेंगे सब...


नकुल:- दादी तो आप ही आंख मूंद लीजिए और दादा हद कार रहे है तो करने दीजिए. चलो दीदी..


पापा:- रुक दीदी के भतीजे, और जारा हम सब को बताओ की टिकट क्यों कैंसल की..


नकुल:- आप लोगों की सुई ना एक ही बात पर अटक जाती है... पंचायत में जब विधायक के बेटे लियाकत ने कहा कि वो सजा तय करेगा, तभी मैंने टिकट कैंसल करवा दिया था. मुझे नेताओं के बात पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं था. मेरा घूमना उतना जरूरी नहीं था जितना की ये मामला सुलझाना..


पापा:- तो ठीक है अब जब टिकट कैंसल हो ही गई है, तो पहले तू मेनका के साथ 20 दिन उसके हिसाब से घूम ले, बाद में वो तेरे हिसाब से घूम लेगी..


नकुल:- ठीक है दादा..


मै:- क्या ठीक है.. पापा इसे स्वार्थी होना कहते है..


नकुल:- दादा हम चलते है, आपने जैसा सोचा है वैसा ही होगा..


मै:- बहुत बड़ा हो गया है तू..


नकुल:- बिल्कुल ख़ामोश, जारा भी आवाज नहीं.. अभी यहां जो काम से आयी थी वो करो..


मै नकुल की बात का कोई जवाब न देकर सीधा फुटवेयर सेक्शन में चली गई और वहां से मैंने कुछ फुट वेयर खरीदे. फिर मै इलेक्ट्रॉनिक सेक्शन में जाकर एक टेरबाइट का हार्ड डिस्क उठा लाई. जैसे ही मेरी यहां की शॉपिंग खत्म हुई नकुल से पूछने लगी... "तुझे कुछ नहीं लेना क्या"..


नकुल:- क्या लूं मै..


मै:- स्पोर्ट शु लेले..


नकुल:- यहां से नहीं लूंगा बंगलौर से खरीदूंगा..


मै:- पक्का तुझे कुछ नहीं चाहिए या झिझक रहा है लेने में..


नकुल:- मुझे कुछ चाहिए भी नहीं और हां झिझक भी रहा हूं..


मै:- अब तुझे क्या हुआ जो मुंह फुलाए है..


नकुल:- अपने साथ आने से मना क्यों कर रही हो..


मै:- मना नहीं करूंगी तो मूड सही हो जाएगा ना..


नकुल:- येस..


मै:- ठीक है नहीं माना करती चल अब बता तुझे क्या चाहिए..


नकुल:- कहा तो कुछ नहीं चाहिए.. बंगलौर में खरीदेंगे..


"पागल कहीं का, चल चलते है" हम दोनों ही हसने लगे और वहां से निकलकर मै कंप्यूटर सेक्शन में आ गई. वहां से मैंने जैसे ही एक प्यारा सा मिनी टच स्क्रीन लैपटॉप उठाया, नकुल मुझे टोकते... "पैसे है तो बस लैपटॉप, मोबाइल और टैबलेट्स खरीदने में ही उड़ा दोगी क्या?"..


मै:- नहीं रे बाबा.. मै लगातार बाहर रहूंगी ना और घर का लैपटॉप कहीं ले नहीं जा सकती, इसलिए अपना सारा स्टडी मटेरियल इसमें ट्रांसफर मारकर देखती रहूंगी...


नकुल:- कहीं घूमने जाओगी तो वहां बैठकर पढ़ोगी क्या.. घूमने को घूमने के तरीके से लेना चाहिए...


मै:- तो मुझे क्या करना चाहिए...


नकुल:- ले लो लैपटॉप, मन ना लगा तो मूवी तो देख ही सकती है. साथ में एक पोर्टेबल स्पीकर मेरे लिए भी खरीद लेना.. गाने सुनने और मूवी देखने के लिए काम आएगा..


मै:- तो जाकर पसंद कर ले ना.. और सुन एक नेकबैंड और एक हेडसेट भी ले लेना..


नकुल:- अरे ये हेड फोन वग्रह सब बंगलौर से ले लेना.. वहां लेटेस्ट और अच्छे क्वालिटी के मिलेंगे.. यहां सब लोकल माल मिलेगा..


मै:- जी सर जैसा आप कहें...


हमारी आपस की छोटी-मोटी नोक-झोंक, हंसी मज़ाक और खरीदारी चलती रही. हम लोग अपनी शॉपिंग करके वहां से चले आए, और मै अपनी पैकिंग करने लगी. सुबह 7 बजे की बस से हमे निकालना था, इसलिए मै जल्दी सो गई. जाने से पहले मैंने दोनो भैया और भाभी को अपने 2 महीने का प्लान बता दिया. दोनो ही थोड़े हैरान थे और इस बात से चिंतित थे कि मै और नकुल इतने छोटे होकर उतने दूर बंगलौर अकेले कैसे जाएंगे....


नकुल ने भरोसा जताया कि कुछ चिंता कि बात नहीं है, हम वाराणसी से ही फ्लाइट लेकर सीधा बंगलौर और फिर वहां हमे संगीता दीदी लेने चली आएगी. लौटते वक्त यदि दिल ना माने तो आप हमे पटना लेने आ। जाना.. अब भी कोई चिंता है क्या?


अब पापा और मां ने हामी भरी थी तो वो लोग भी बेमन होकर बस इतना ही कहे की ठीक है पहले मासी के पास जाओ, बाकी बात बाद में होगी..
 

krish1152

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अध्याय 11 भाग:- 1 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)




उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.


साड़ी पहनी, सोलह श्रृंगार किया और नकुल को कॉल करके घर में बुलाई. नकुल की नजर जैसे ही मुझ पर गई, वो किनारे से मेरे गले लगाते... "दीदी वाकई में बहुत प्यारी लग रही हो, रुको मै एक सेल्फी लेता हूं"..


तारीफ किसे पसंद नहीं थी, ऊपर से उसके मुंह से तरिफ सुनकर, मै थोड़ा शर्मा गई. हम दोनों अभी सेल्फी ले ही रहे थे कि पीछे से पापा आ गए, और मुझे देखकर, मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहने लगे... "साड़ी में बहुत प्यारी लग रही है, पापा के साथ एक सेल्फी नहीं लेगी क्या?"


मै मुस्कुराकर अपना चेहरा नीचे कर ली और पापा से सिमटकर.. "नकुल एक तस्वीर तो निकल"


नकुल:- दीदी आंख तो साफ कर लो, ऐसे रोते हुए तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी...


मै नकुल की बात सुनकर हंसने लगी और अपने आंसू साफ करके मुस्कुराती हुई पापा के साथ 3-4 तस्वीर निकाली. फिर तो देखते ही देखते पारिवारिक फोटो सेशन का माहौल चलने लगा. पंचायत के फैसले और इतने हंगामे के बाद रविवार के दिन जब मै अपना चैलेंज पुरा करने जा रही थी, तब नकुल ने सबसे कहा की... "आपको हम दोनों पर भरोसा करना चाहिए. पूरे खानदान के साथ चलने से लगेगा कि हम अब भी डरे है, इसलिए यह एक आम खरीदारी होगी और जैसे हम किराने का सामान लेकर आते है, वैसे ही आएंगे.."


उसकी बात सुनकर पुरा परिवार ही हसने लगा. पापा ने कहा हम वैसे भी नहीं आएंगे जाओ अब तुम दोनो... पापा की बातें कुछ अजीब सी थी, मै और नकुल एक दूसरे का चेहरा देखकर हैरानी सा रिएक्शन देते, बाजार के ओर चल दिए.


हम दोनों जब बाजार पहुंचे तब समझ में आया कि पापा ने ऐसा क्यों कहा. जैसे ही मै कार से नीचे उतरी, वहां जोर-जोर से ढोल बजने लगा. सड़क के दोनो ओर की ट्रैफिक रोक दी गई और एक बिल्कुल ब्रांड न्यू कार, एमजी हेक्टर, के पीछे 5-6 गाडियां रुकी.


मै नकुल का हाथ पकड़कर सामने का नजारा देखने लगी. कार से विधायक असगर आलम का एकमात्र जिंदा बेटा लियाकत उतरा. 4 ढोलकी और अपने कुछ लोगो के साथ धीरे धीरे वो आगे बढ़ने लगा.. उसके पीछे उसकी पत्नी आरती का थाल लिए थी. जैसे ही वो मेरे करीब पहुंचा, लियाकत अपनी पत्नी को इशारा किया.. उस औरत ने मेरी आरती उतारी और टिका लगाकर माला पहना दिया..


मै, लियाकत को हैरानी से देखती... "ये सब क्या है"..


लियाकत जोड़ से चिल्लाते... "अपनी शेरनी बहन का स्वागत कर रहा हूं. माफ करना मै राखी के दिन पहुंच नहीं पाया, इसलिए आज राखी बंधवाने आया हूं"..


अपनी बात कहकर वो कलाई आगे कर दिया. मै थोड़ी हैरान होकर नकुल को देखने लगी. नकुल अपनी पलकें झपकाकर सहमति देने लगा और मै आरती की थाल से राखी लेकर लियाकत को बांध दी.


लियाकत मुझे एक डिब्बे में नई कार की चाभी और साथ में एक लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया. जैसे ही उसने गिफ्ट थमाया... "सुनिए भैया, अब ये सब क्या है"..


लियाकत, बिल्कुल हमारे करीब आकर धीमे से कहने लगा… अंजाने मे जो तुमने मेरी मदद की है, उसके लिए लिफाफे मे मेरा छोटा सा धन्यवाद है. और ये कार अपनी बहन को मै राखी मे गिफ्ट कर रहा हूं. ना पसंद है तो मुझे बता दो, तुम्हे जो पसंद होगी वो कार हम ले लेंगे.. क्योंकि मै उपहार देने से ज्यादा पसंद की चीज देने में विश्वास रखता हूं..


मै:- लेकिन आप ये सब कर क्यों रहे है...


लियाकत अपनी गाड़ी में सवार होते... "कुछ चीजें लोग अपने पूरे अरमान के साथ करते है, वही मैंने भी किया है... तुम खुशी-खुशी इन्हे स्वीकार करके मेरा दिल रख लो.. और जिंदगी में कभी कोई समस्या हो तो ये तुम्हारा भाई, हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा मिलेगा"..


मै उसे जाते देख रही थी और नकुल मुझे हैरानी से देख रहा था. जैसे ही मेरा ध्यान नकुल पर गया.. "ओय अब तुझे क्या हो गया".


नकुल:- मेनका ये क्या बोलकर गया कुछ समझी..


मै:- क्या?


नकुल:- उल्लू, सुनी नहीं क्या उसने क्या कहा?


मै:- कहेगा क्या, असगर अली के बेटे को मैंने चैलेंज किया और उस चैलेंज को मैंने पूरा किया. उनकी इज्जत फटी हुई ना दिखे, इसलिए यहां मस्का पॉलिश और पॉलिटिकल एजेंडा वाला माहौल बाना रहा था...


नकुल:- कब तेरा दिमाग इस मामले में चलेगा पता नहीं. चल राशन का सामान खरीदते है, फिर मै तुम्हे रास्ते में सब समझता हूं..


मै:- लेकिन हम तो 2 कार से जाने वाले है... वो भी तो एक कार गिफ्ट करके गया है..

नकुल:- स्मार्ट गर्ल के लिए स्मार्ट कार देकर गया है... एमजी हेक्टर..


मै:- येस आई एम् ए स्मार्ट गर्ल..


नकुल:- स्मार्ट नहीं कम अक्ल. अभी तुम्हे पूरी बात नही समझ में नहीं आयी, सब समझाऊंगा तब कहेगी, ओह तो ये बात थी...


मै:- तू मुझे सस्पेंस से मत मार, चल घर जल्दी, और मुझे समझा कि वो क्या कहकर गया?


नकुल:- लिफाफा खोल कर चुपके से देख तो लो पहले घर जाना है कि पहले बैंक..


नकुल की बात मानकर जैसे ही मैंने लिफाफा खोला, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया... फटी आखों से मै नकुल को देखने लगी, साथ मे मुझे हिचकियां भी आ रही थी... मेरी हालत देखकर नकुल पूछने लगा.. "क्या हुआ कितना बड़ा अमाउंट है जो तू सदमे में चली गई"…. "ड.. ड.. डेढ़ करोड़"..


अमाउंट सुनकर नकुल चार गालियां लियाकत को देते... "कुत्ता साला इतना कम देकर गया"


मै फिर नकुल को हैरानी से देखती... "लेकिन वो ये देकर क्यों गया है"..


नकुल ने मुझे शांत रहने की सलाह दी. मैंने बैंक जाकर पहले चेक लगाया फिर राशन का थोड़ा बहुत सामान लेकर, हम घर पहुंचे. मेरे चेहरे की व्याकुलता नकुल समझ सकता था, इसलिए वो मेरा हैरान चेहरा देखकर बार-बार हंस रहा था...


उसकी हंसी तो मुझे और भी ज्यादा परेशान कर रही थी. कमरे में वो पहले तो 10 मिनट तक हंसता रहा फिर कहने लगा... "तुम्हारे मैटर के नाम पर उस लियाकत ने अपने सारे दुश्मन को एक साथ साफ कर दिया. सुनी नहीं उसने क्या कहा था.… अंजाने मे तुमने उसका काम किया है. मतलब साफ था कि उसने जितनो लोगो को साफ किया है, उसकी लिस्ट पहले से उसके दिमाग में थी."

"बस कोई स्ट्रॉन्ग वजह नहीं मिल रही थी, वरना तुम्हे छेड़ने और गांव की 2 बेटी को परेशान करने के लिए, बहुत ज्यादा से ज्यादा 3 लोगों को मारता. वो भी पंचायत मारने के लिए कभी नहीं कहती, बल्कि कहती 6 महीने या 1 साल जेल में डाल दो. यदि ऐसा होता तो लियाकत के उम्मीद पर पानी फिर जाता, इसलिए तो उसने पंचायत मे कहा था सजा वो खुद देगा, ताकि लाशों का ऐसा खेल खेले की उसका पॉलिटिकल ग्राफ सीधा ऊपर आ जाए."

"2 दिन में कई छोटे-बड़े दिग्गज को मरवाने का क्रेडिट ले गया है. आज के वक्त मे उससे भी बड़ा बाहुबली कोई होगा क्या? उसके इलेक्शन जितने और मंत्री पद संभालने का पूरा रास्ता ही क्लियर हो गया अब तो... साला ये लियाकत पक्का पॉलिटीशियन निकला.…
zabardast update ..menka se rakhi bandhi liyakat ne aur ek car aur dedh karod rupiya gift diya 😁..
par nakul uski baato ko samajh gaya ki usne apne saare dushmano ko raste se hata diya .
waise liyakat sahi game khela isme koi dohray nahi hai ..
 

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अध्याय 11 भाग:- 2 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)





मै और नकुल, नकुल के कमरे में ही ये सारी बातें कर रहे थे और हमे क्या पता कि कुछ लोग छिपकर हमारी बात सुन रहे थे. जैसे ही नकुल की बातें खत्म हुई, नकुल के पापा रघुवीर भैया और उसकी मां आशा भाभी नकुल के कमरे में पहुंची और उसका कान मारोड़ते... "तो तू है वो जो मेनका को इन बाहरी बातो का ज्ञान देता है"..


मै, रघुवीर भैया का हाथ नकुल के कान से हटाती… "हम दोनों आपस में डिस्कस नहीं करेंगे, तो क्या आप लोगों से डिस्कस करने जाएंगे.. हमे जो सही-गलत लगता है, आपस में बातिया लेते है. आप लोग आते है अपनी बात हमे बताने.. तब तो कहते हो बच्चे हो.. नकुल को जितना पॉलिटिक्स का ज्ञान था वो मुझे बता रहा था"…


मां:- और तू तो हम सबकी नानी है मेनका. जितना तू नकुल के लिए मरती है, हम मे से किसी और के लिए उसका आधा भी मर लेती, तो समझते हम धन्य हो गए..


मै:- "नकुल मेरी हम उम्र बहन जैसी है... जैसे 2 बहनों का प्यार होता है, वैसे ही हम दोनों का है.. गलती आप लोगो कि है. क्यों बेटियो का गला घोट देती थी उसके पैदा होने से पहले. कितना कुछ छूट गया मेरा, आपको पता भी है... वो लता और मधु एक ही गली की है, रिश्ते में बहने और पक्की सहेली.. जहां भी जाती है साथ रहती है.. किसी का आशा नहीं रखना पड़ता उन्हे.."

"मै शुरू से जहां भी घूमने गई नकुल मेरा हाथ पकड़े था. भोज खाने जाना हो, शादी मे जाना हो, त्योहार मे जाना हो, मेले में जाना हो.. हर जगह तो नकुल ही था. कहां कोई लड़की मेरे साथ थी.. अब नकुल जैसा सोचता है, वैसा वो मुझसे बात करता है. और मै जैसा सोचती हूं वो मै नकुल को बताती हूं... इसलिए मेरे सोच में लड़को वाली सोच तो आएगी ही. वैसे भी नकुल के साथ होने से एक बात तो अच्छी है.. कम से कम आप लोगों की तरह मै चुगली करना पसंद नहीं करती. और ना ही दूसरे लड़की के पहनावे और गहनों को लेकर बातचीत करती हूं...


नकुल:- क्या बात कही हो दीदी, सभी की बोलती बंद कर दी..


मै:- मै किसी की बोलती नहीं बंद की बस सबको अपने दिल की बात बता रही हूं. सब अपने हम उम्र के साथ रहना पसंद करते है, सो मै भी करती हूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरा लगाव आप सब में से किसी से कम हो जाता है.. मै आप सबको भी उतना ही प्यार करती हूं.. नकुल सुबह-सुबह चला जाएगा फिर 2 महीने बाद देखूंगी, इसलिए बैठकर बातें कर रही थी, लेकिन आप सबको तो वो भी देखा नहीं जाता...


मां:- कहा था ना ये हमारी नानी है.. देखा दिल की बात बताते-बताते उलहाना भी दे दी. हम चुगली करते है, दूसरी औरतों के कपड़े और गहने देखकर उसके बारे में बात करते है..


मै:- सॉरी, ज्यादा बोल दी क्या?


आशा भाभी मेरे गले लगती... "हां थोड़ा ज्यादा हो गया, हम सब को लपेट ली. लेकिन कोई ना इतना चलता है. चलो चाची (मेरी मां) यहां से दोनो बहनों को बतीया लेने दो..


हमारे घर के लोग भी ना, पहले रंग में भंग डाल देंगे, फिर कहते है अकेला छोड़ दो. खैर मै भी नकुल से थोड़ी देर बात करके वापस घर आ गई. तकरीबन 12 बज रहे होंगे जब पापा घर आए. उनके आते ही मै उनके साथ उनके कमरे में चली गई, और पापा के साथ बैठकर उनसे पूछने लगी, क्या मेरे मुद्दे मे लियाकत ने अपनी दुश्मनी निकली है?


तब पापा ने कहा कि किसी से ये बात डिस्कस नहीं करने. पुरा मामला पंचायत के एक रात पहले ही तय हो गया था. तभी तो हम सब शॉक्ड हो गए थे कि जब सब कुछ तय हो गया था फिर ये दंगा भड़काने कौन आ गया..


पता चला विधायक के बड़े बेटे और वो मुखिया बख्तियार ने मिलकर ये योजना बनाई थी. फिर मामला को राजवीर जी ने संभाला. इधर वो लियाकत पहले से सब मन बाना चुका था, उसे मौका और सपोर्ट दोनो मिल गया और वो चढ़ गया सीढी.


मै:- पापा लियाकत ने मुझे डेढ़ करोड़ रुपए भी दिए है..


पापा:- वो तेरे पैसे है, किसी को बताना मत इस बारे में..


मै:- लेकिन क्यों पापा..


पापा:- बस ऐसे ही, मत बताना किसी को..


मै:- किसी को मतलब बाहरी को ही ना..


पापा:- नहीं घर के लोगों को.. बात ये नहीं कि लोग तुझ से पैसे मांग लेंगे. बात फिर हो जाती है कि तेरी मां किसी के पास बैठी और गलती से उसके मुंह से निकल गया.. ऐसे ही एक के मुंह से दूसरे और दूसरे के मुंह से तीसरे तक बात पहुंच जाती है.. और ये मामला बहुत नाजुक है..


मै:- पापा बस नकुल ये बात जानता है लेकिन विश्वास रखो वो किसी को कुछ नहीं कहेगा..


पापा:- हां मै जानता हूं कि वो किसी से कुछ नहीं कहेगा..


मै:- ठीक है पापा फिर ये बात मै किसी से नहीं कहूंगी. अब मै जाती हूं..


पापा:- अच्छा सुन बेटा, कुछ दिन के लिए तू कहीं घूम क्यों नहीं आती. इतना टेंशन भरे माहौल से गुजरी है और एक बड़े कांड का अहम हिस्सा हो, तो मै सोच रहा था 1-2 महीने के लिए कहीं हो आओ..


मै:- पापा आपको नहीं लगता कि आप बेकार मे टेंशन ले रहे. ठीक है मै 3 महीने के लिए घर में ही पैक हो जाती हूं, अपने कमरे से ही नहीं निकलूंगी..


पापा:- पागल घर है ये जेल नहीं.. जैसा तुम्हे ठीक लगे. बस लगा कि माहौल इतना टेंशन भरा था तो कुछ दिन बाहर घूम लोगी तो मन लगा रहेगा. वैसे भी एक लंबे समय से कहीं घूमने गई भी नहीं.


मै:- पापा बात क्या है, जो आदमी रोज रात को उठकर मुझे 2 बार देखकर जाता है, वो आज खुद से दूर करने की बात कर रहे.. सच-सच बताओ पापा..


पापा:- तुमने हिम्मत दिखाई मुझे खुशी हुई. तुम्हे पता है कहां छोड़ना चाहिए, कहां भिड़ना चाहिए और कहां पुरा भिड़ जाना चाहिए. लेकिन तुम्हारे नाम पर जो इतना बड़ा कांड हुआ है, उसके बाद बहुत से लोग घर आकर तुम्हे बधाइयां देंगे. सब सबाशी देंगे.. और ये सबशी बहुत खतरनाक होती है बेटा..


मै:- कैसे पापा, मुझे भी समझाओ ना...


पापा:- बस मै अपनी ज़िंदगी के कुछ पुराने पाप को देखकर ऐसा बोल रहा हूं मेनका.. काश वो सबाशि सुनकर मेरे दिल में बार-बार एक ही जैसे काम करने की इक्छा नहीं जागी होती, तो मै इतनी गलतियां नहीं करता..


मै:- बस पापा मुझे और नहीं जानना. हां मै गलत को गलत ही कहूंगी, लेकिन मै वो सुन नहीं पाऊंगी पापा. आप बस कोशिश करना की आप सारी गलतियों को सुधार सके.... आपकी इक्छा है तो मै कहीं घूम आती हूं, आप बताओ कहां चली जाऊं.. मामा के साथ जाऊं, या मै कविता मौसी के यहां हो आऊं. या फिर..


पापा:- फिर क्या मेनका..


मै:- आप डाटोगे तो नहीं..


पापा:- गुस्सा आएगा तो थोड़ा बोल दूंगा, सुन लेना और क्या?


मै:- पापा मै बड़े पापा के पास चली जाऊं क्या?


पापा मेरी बात सुनकर अपना मुंह फेर लिए. पता नहीं शायद उनके पुराने जख्म कुरेद दिए थे मैंने. वो कुछ बोल ही नहीं पाए… कुछ देर तक अपना मुंह दूसरी ओर ही घुमाए रहे... मै उनके कंधे पर हाथ रखती... "पापा आप रो रहे है"..


मुझे साफ पता चल रहा था कि पापा अपने आंख साफ कर रहे है. वो वापस मुड़ते... "कुछ बातें हमेशा खटकती है, मै पिछले 16 साल से सोच रहा हूं कि मैंने सही किया था या गलत."..


मै:- गलत किया था पापा.. इतनी दुविधा में क्यों है. अब भी एक मन से खुद को सांत्वना देने की कोशिश में क्यों जुटे है, जबकि आप सब कुछ समझते है..


पापा:- हां सही कही.. पंच का फैसला अपनी जगह था लेकिन मै तो उनका भाई था.. ये गलती चुभती है.. जमीन तक बेईमानी कर गया था मै.. तेरी मां ने नहीं समझाया होता तो..


मै:- पापा ये 16 साल तक भाई से दूर रहने वाली भी गलती नहीं होती पापा. बस झिझक मात्र से आप दूर है बड़े पापा से.. आप छोटे है, इसलिए झिझक छोड़कर आपको उनके पास जाना चाहिए था...


पापा:- हम्मम ! ठीक है एक काम करते है..


मै:- क्या पापा...


पापा:- तू कल नकुल के साथ कविता के पास चली जा.. वहां कुछ दिन रहना फिर यहां के कुछ पेंडिंग काम निपटाने के बाद मै वहां पहुंच जाऊंगा. वहां से फिर हम सब भैया के पास चलेंगे...


मै:- कुछ पेंडिंग काम निपटाने में कितने दिन लगेंगे..


पापा:- 10 दिन तो लग ही जाएंगे..


मै:- ठीक है सुबह आप कविता मासी को कॉल कर देना, किसी को बस स्टैंड भेज देने, मै बस स्टैंड मे उतर जाऊंगी, और नकुल अपना फ्लाइट पकड़ने पटना निकल जाएगा..


पापा:- ठीक है मै फोन कर देता हूं.. और सुन वहां किसी को तंग मत करना..


मै:- मै क्या साक्षी हूं जो सबको तंग करूंगी.. वैसे पापा क्या मै साक्षी और केशव को भी लेते चली जाऊं..


पापा:- नाना, उन दोनों को मत लेकर जा, वरना यहां झगड़ा हो जाएगा..


मै:- मै समझी नहीं, साक्षी को ले जाने से यहां क्यों झगड़ा हो जाएगा...


पापा:- बड़ी बहू के पिताजी की तबीयत खराब है, वो दोनो कल तक निकल जाएंगे. ऐसे में उसके नाना-नानी को पता चलेगा कि उसके नाति और नातिन कहीं और घूम रहे तो गृह युद्ध छिड़ जाएगा.. तू क्या अपनी बड़ी भाभी को नहीं जानती..


मै:- कोई बात नहीं, मै और मेरा लैपटॉप... मेरे तन्हाई का साथी..


पापा:- जितनी पढ़ाई जरूरी है, उतना ही पढ़ाई से ब्रेक लेना भी..


मै:- पापा ये कुछ अजीब तरह की बातें नहीं हो रही..


पापा:- अजीब कैसे हुई बिल्कुल सही बात है..


मै:- और वो कैसे..


पापा:- जैसे लगातार खेती के बाद जमीन को साल भर खाली छोड़ने से मिट्टी की उपजा वापस आ जाती है, वैसे ही घूम फिर कर आने के बाद दिमाग फ्रेश हो जाता है फिर सारी बातें बिल्कुल फटाफट दिमाग में घुसती है..


मै:- पापा..


पापा:- क्या हुआ..


मै:- दोनो बात का कोई संबंध नहीं है.. पढ़ाई रेगुलर होनी चाहिए और दिमाग को रोज ही ब्रेक भी मिलना चाहिए. फिर तो मुझे खाने का उदहारण देना होगा..


पापा:- कैसा उदहारण..


मै:- 5 दिन भूखा रखने के बाद पेट भी पुरा रिलैक्स रहेगा, तब जो भी खाओगे फटाफट पच जाएगा... पेट की सारी तकलीफ दूर हो जाएगी..


पापा:- ये एग्जाम्पल मैच नहीं कर रहा.. लॉजिक मे मै ही जीता हूं..


मै:- ठीक आप है जीते मै हारी.. आप फ्री है क्या?


पापा:- हां फ्री हूं.. तो चलिए मेरे साथ सहर, मुझे कुछ सामान खरीदना है..


पापा:- नकुल के साथ चली जा..


मै:- मुझे आपके साथ दिल कर रहा है जाने का, नकुल के साथ जाना होता तो पहले पूछ लेती ना...


पापा:- अच्छा ठीक है, अपनी मां को भी बोल से तैयार होने और कहना कि अपने पोते-पोती को छोड़ देने और अकेले मेरे साथ चले.. तू नकुल के साथ जा. मै और तुम्हारी मां अलग आते है..


मै:- जैसा आप कहो पापा.. मां को मै बोल देती हूं..


कुछ ही देर में हम तैयार थे. सहर पहुंचकर पापा ने अपनी कार सहर वाले घर में पार्क की और हमारे साथ ही चल दिए.. "मेनका तुम मुझे साथ मे क्यों लाई"..


नकुल:- बूढ़े लोग के साथ लाने पर 40% डिस्काउंट है इसलिए साथ लेकर आयी...


धीरे मेरे कान के पास नकुल ने ऐसे बोला की मेरी जोर की हंसी छूट गई.. पापा जोड़ से डांटते हुए पूछने लगे... "मेरे सवाल पर इसने ऐसा क्या बोला जो तुम हंसने लगी"


मै:- पापा नकुल कह रहा था दादा इतने बुद्धू कैसे हो सकते है, पैसे खर्च करवाने लाए है और किसलिए.…


पापा:- पैसे क्या पेड़ पर उगते है जो मै ऐसे ही खर्च कर दूं... सभी जरूरत की चीजें तो है ही इसके पास..


नकुल:- सही है दादा, बिलकुल सही है... वैसे तो दोनो बाप बेटी लाखो उड़ाने से पहले सोचोगे नहीं, लेकिन दिखाओगे ऐसे की पैसे हमेशा हिसाब से ही खर्च करते हो..


मां:- बहुत सही जवाब दिया मेरे पोते. वैसे तेरे दादा ने सोचा था कि तुझे आज एक नया मोबाइल दिला दे. लेकिन अब जब ऐसी बातें तुमने कर दी है तो तू देख ले..


नकुल:- दादा, वो तो चमरे की जुबान है, फिसल जाती है, प्लीज आप दिल से मत लेना.. कुछ तो बोलो.. दादा..


पापा:- मोबाइल दिलाना कैंसल..


नकुल:- नहीं नहीं नहीं दादा, क्या आप भी हम छोटे बच्चो की बात का बुरा मान जाते हो, दीदी तुम ही समझाओ ना..


मै:- ऐसा है बाबू की हम बाप बेटी तो लाखो लूटाने से पहले सोचते नहीं ना, इसलिए तुम्हारी बात सुनकर हमारे ज्ञान के द्वार खुल गए..


नकुल:- प्लीज बस मेरे मोबाइल आने तक अपने ज्ञान के द्वार को बंद कर लो..


पापा:- अच्छा मेरे एक सवाल का तू सही-सही जवाब दे, फिर मै तेरी बात को भुल जाऊंगा और तुझे मोबाइल भी दिला दूंगा..


नकुल:- आसान सा सवाल पूछना दादा, जिसका जवाब मै दे दूं..


पापा:- क्या तू अपना घूमना 20 दिन के लिए टाल सकता है..


नकुल:- हद है, कोई काम है तो सीधा बोल दो ना दादा, कौन सा मै बॉर्डर पर जंग लडने जा रहा जो देश का एक सिपाही कम हो जाएगा, 20 दिन बाद चला जाऊंगा घूमने..


मै:- पापा नहीं.. उसे जाने दो.. आप बिल्कुल ग़लत कर रहे है..


नकुल:- पहले दादा को बात तो करने दो, फिर ना गलत या सही का फैसला होगा..


मै:- मैंने बोल दिया है ना गलत है, मतलब गलत है.. तू कल बंगलौर के लिए अपनी फ्लाइट लेगा..


नकुल:- पर टिकट तो मैंने बृहस्पति वार को ही कैंसल करवाई थी..


मै:- लेकिन क्यों..


नकुल:- मुझे संगीता दीदी से टिकट लेना अच्छा नहीं लगा इसलिए..


मै:- हां वो मै समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- अभी तो बताया, मुझे अच्छा नहीं लगा.…


मै:- अभी तो मै भी कहीं ना, तेरी बात समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- बस ऐसे ही, उससे ज्यादा मत पूछो..


मां:- क्यों रे तू तो कल बंगलौर जाने की पूरी प्लांनिंग कर चुका था. तेरा बैग वग्रह सब पैक है, फिर तू बंगलौर कैसे जाता...


नकुल:- पहले सोचा सर्वे कर लूं फिर बंगलौर निकलूंगा..


मै:- चलो आ गया अपना शॉपिंग की जगह.. पापा आप यहां पहले आए थे कि नहीं..


मै, प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स दिखती हुई उनसे पूछने लगी. पापा ने ना में जवाब दिया और कहने लगे, कभी मौका ही नहीं मिला. ये राजवीर जी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है ना....


मै:- जी नहीं ये प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है…


पापा मेरी बात सुनकर हसने लगे और हम सब उस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुंच गए. मां पापा को वहां मैंने थोड़ी देर घुमाया, फिर पापा कहने लगे, मेनका यहां कुछ काम है तो वो कर लो, नहीं तो पहले मेरे साथ चलो, कुछ शॉपिंग मुझे भी करनी है फिर तुम मुझे यहां कुछ देर घुमा देना और नकुल के साथ चली जाना


मां:- ऐसे कौन सी हड़बड़ी मची है मिश्रा जी, जो मेनका को भागने मे लगे हो..


मै:- पापा आपको यहां फिल्म दिखने लाये है मां.. (मैंने ऐसे ही फिरकी ली)


मां:- फिल्म और तेरे पापा.. भुल जाओ.. 17 साल हो गए फिल्म दिखाए और 8 साल हो गए इनके साथ बाजार आए.. ये और इनका काम..


मै:- पापा मै ये कार छोड़ दूं और घर से कार उठा लू, या आप घर की कार लेकर आओगे..


पापा:- मै समझा नहीं..


मै:- पापा मुझे लगता है आपको मां की शिकायत पहले दूर करनी चाहिए, इसलिए मै अपने काम का समान लेकर यहां से निकलती हूं...


पापा:- हां यही ठीक रहेगा..


मां:- मिश्रा जी कभी-कभी आप भी ना हद करने लगते हो.. साथ चलेंगे सब...


नकुल:- दादी तो आप ही आंख मूंद लीजिए और दादा हद कार रहे है तो करने दीजिए. चलो दीदी..


पापा:- रुक दीदी के भतीजे, और जारा हम सब को बताओ की टिकट क्यों कैंसल की..


नकुल:- आप लोगों की सुई ना एक ही बात पर अटक जाती है... पंचायत में जब विधायक के बेटे लियाकत ने कहा कि वो सजा तय करेगा, तभी मैंने टिकट कैंसल करवा दिया था. मुझे नेताओं के बात पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं था. मेरा घूमना उतना जरूरी नहीं था जितना की ये मामला सुलझाना..


पापा:- तो ठीक है अब जब टिकट कैंसल हो ही गई है, तो पहले तू मेनका के साथ 20 दिन उसके हिसाब से घूम ले, बाद में वो तेरे हिसाब से घूम लेगी..


नकुल:- ठीक है दादा..


मै:- क्या ठीक है.. पापा इसे स्वार्थी होना कहते है..


नकुल:- दादा हम चलते है, आपने जैसा सोचा है वैसा ही होगा..


मै:- बहुत बड़ा हो गया है तू..


नकुल:- बिल्कुल ख़ामोश, जारा भी आवाज नहीं.. अभी यहां जो काम से आयी थी वो करो..


मै नकुल की बात का कोई जवाब न देकर सीधा फुटवेयर सेक्शन में चली गई और वहां से मैंने कुछ फुट वेयर खरीदे. फिर मै इलेक्ट्रॉनिक सेक्शन में जाकर एक टेरबाइट का हार्ड डिस्क उठा लाई. जैसे ही मेरी यहां की शॉपिंग खत्म हुई नकुल से पूछने लगी... "तुझे कुछ नहीं लेना क्या"..


नकुल:- क्या लूं मै..


मै:- स्पोर्ट शु लेले..


नकुल:- यहां से नहीं लूंगा बंगलौर से खरीदूंगा..


मै:- पक्का तुझे कुछ नहीं चाहिए या झिझक रहा है लेने में..


नकुल:- मुझे कुछ चाहिए भी नहीं और हां झिझक भी रहा हूं..


मै:- अब तुझे क्या हुआ जो मुंह फुलाए है..


नकुल:- अपने साथ आने से मना क्यों कर रही हो..


मै:- मना नहीं करूंगी तो मूड सही हो जाएगा ना..


नकुल:- येस..


मै:- ठीक है नहीं माना करती चल अब बता तुझे क्या चाहिए..


नकुल:- कहा तो कुछ नहीं चाहिए.. बंगलौर में खरीदेंगे..


"पागल कहीं का, चल चलते है" हम दोनों ही हसने लगे और वहां से निकलकर मै कंप्यूटर सेक्शन में आ गई. वहां से मैंने जैसे ही एक प्यारा सा मिनी टच स्क्रीन लैपटॉप उठाया, नकुल मुझे टोकते... "पैसे है तो बस लैपटॉप, मोबाइल और टैबलेट्स खरीदने में ही उड़ा दोगी क्या?"..


मै:- नहीं रे बाबा.. मै लगातार बाहर रहूंगी ना और घर का लैपटॉप कहीं ले नहीं जा सकती, इसलिए अपना सारा स्टडी मटेरियल इसमें ट्रांसफर मारकर देखती रहूंगी...


नकुल:- कहीं घूमने जाओगी तो वहां बैठकर पढ़ोगी क्या.. घूमने को घूमने के तरीके से लेना चाहिए...


मै:- तो मुझे क्या करना चाहिए...


नकुल:- ले लो लैपटॉप, मन ना लगा तो मूवी तो देख ही सकती है. साथ में एक पोर्टेबल स्पीकर मेरे लिए भी खरीद लेना.. गाने सुनने और मूवी देखने के लिए काम आएगा..


मै:- तो जाकर पसंद कर ले ना.. और सुन एक नेकबैंड और एक हेडसेट भी ले लेना..


नकुल:- अरे ये हेड फोन वग्रह सब बंगलौर से ले लेना.. वहां लेटेस्ट और अच्छे क्वालिटी के मिलेंगे.. यहां सब लोकल माल मिलेगा..


मै:- जी सर जैसा आप कहें...


हमारी आपस की छोटी-मोटी नोक-झोंक, हंसी मज़ाक और खरीदारी चलती रही. हम लोग अपनी शॉपिंग करके वहां से चले आए, और मै अपनी पैकिंग करने लगी. सुबह 7 बजे की बस से हमे निकालना था, इसलिए मै जल्दी सो गई. जाने से पहले मैंने दोनो भैया और भाभी को अपने 2 महीने का प्लान बता दिया. दोनो ही थोड़े हैरान थे और इस बात से चिंतित थे कि मै और नकुल इतने छोटे होकर उतने दूर बंगलौर अकेले कैसे जाएंगे....


नकुल ने भरोसा जताया कि कुछ चिंता कि बात नहीं है, हम वाराणसी से ही फ्लाइट लेकर सीधा बंगलौर और फिर वहां हमे संगीता दीदी लेने चली आएगी. लौटते वक्त यदि दिल ना माने तो आप हमे पटना लेने आ। जाना.. अब भी कोई चिंता है क्या?


अब पापा और मां ने हामी भरी थी तो वो लोग भी बेमन होकर बस इतना ही कहे की ठीक है पहले मासी के पास जाओ, बाकी बात बाद में होगी..
nice update ..menka ne sabki bolti band kar di apne dil ki baat batakar 😅..
aur ye papa ne apne bhai ko kisliye ghar se nikala tha 🤔🤔.aur panchayat ne kya faisla liya tha 🤔..
nakul ko mobile milte milte reh gaya 😁😁..
menka aur nakul ab bengalore jayenge kuch din ke liye ..kyunki menka ko sab shabasi dene nahi aaye aur menka shayad bhatak jaaye isliye mishra ji ne menka ko bahar bhejne ka faisla kiya hai ..
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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अध्याय 11 भाग:- 1 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)




उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.


साड़ी पहनी, सोलह श्रृंगार किया और नकुल को कॉल करके घर में बुलाई. नकुल की नजर जैसे ही मुझ पर गई, वो किनारे से मेरे गले लगाते... "दीदी वाकई में बहुत प्यारी लग रही हो, रुको मै एक सेल्फी लेता हूं"..


तारीफ किसे पसंद नहीं थी, ऊपर से उसके मुंह से तरिफ सुनकर, मै थोड़ा शर्मा गई. हम दोनों अभी सेल्फी ले ही रहे थे कि पीछे से पापा आ गए, और मुझे देखकर, मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहने लगे... "साड़ी में बहुत प्यारी लग रही है, पापा के साथ एक सेल्फी नहीं लेगी क्या?"


मै मुस्कुराकर अपना चेहरा नीचे कर ली और पापा से सिमटकर.. "नकुल एक तस्वीर तो निकल"


नकुल:- दीदी आंख तो साफ कर लो, ऐसे रोते हुए तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी...


मै नकुल की बात सुनकर हंसने लगी और अपने आंसू साफ करके मुस्कुराती हुई पापा के साथ 3-4 तस्वीर निकाली. फिर तो देखते ही देखते पारिवारिक फोटो सेशन का माहौल चलने लगा. पंचायत के फैसले और इतने हंगामे के बाद रविवार के दिन जब मै अपना चैलेंज पुरा करने जा रही थी, तब नकुल ने सबसे कहा की... "आपको हम दोनों पर भरोसा करना चाहिए. पूरे खानदान के साथ चलने से लगेगा कि हम अब भी डरे है, इसलिए यह एक आम खरीदारी होगी और जैसे हम किराने का सामान लेकर आते है, वैसे ही आएंगे.."


उसकी बात सुनकर पुरा परिवार ही हसने लगा. पापा ने कहा हम वैसे भी नहीं आएंगे जाओ अब तुम दोनो... पापा की बातें कुछ अजीब सी थी, मै और नकुल एक दूसरे का चेहरा देखकर हैरानी सा रिएक्शन देते, बाजार के ओर चल दिए.


हम दोनों जब बाजार पहुंचे तब समझ में आया कि पापा ने ऐसा क्यों कहा. जैसे ही मै कार से नीचे उतरी, वहां जोर-जोर से ढोल बजने लगा. सड़क के दोनो ओर की ट्रैफिक रोक दी गई और एक बिल्कुल ब्रांड न्यू कार, एमजी हेक्टर, के पीछे 5-6 गाडियां रुकी.


मै नकुल का हाथ पकड़कर सामने का नजारा देखने लगी. कार से विधायक असगर आलम का एकमात्र जिंदा बेटा लियाकत उतरा. 4 ढोलकी और अपने कुछ लोगो के साथ धीरे धीरे वो आगे बढ़ने लगा.. उसके पीछे उसकी पत्नी आरती का थाल लिए थी. जैसे ही वो मेरे करीब पहुंचा, लियाकत अपनी पत्नी को इशारा किया.. उस औरत ने मेरी आरती उतारी और टिका लगाकर माला पहना दिया..


मै, लियाकत को हैरानी से देखती... "ये सब क्या है"..


लियाकत जोड़ से चिल्लाते... "अपनी शेरनी बहन का स्वागत कर रहा हूं. माफ करना मै राखी के दिन पहुंच नहीं पाया, इसलिए आज राखी बंधवाने आया हूं"..


अपनी बात कहकर वो कलाई आगे कर दिया. मै थोड़ी हैरान होकर नकुल को देखने लगी. नकुल अपनी पलकें झपकाकर सहमति देने लगा और मै आरती की थाल से राखी लेकर लियाकत को बांध दी.


लियाकत मुझे एक डिब्बे में नई कार की चाभी और साथ में एक लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया. जैसे ही उसने गिफ्ट थमाया... "सुनिए भैया, अब ये सब क्या है"..


लियाकत, बिल्कुल हमारे करीब आकर धीमे से कहने लगा… अंजाने मे जो तुमने मेरी मदद की है, उसके लिए लिफाफे मे मेरा छोटा सा धन्यवाद है. और ये कार अपनी बहन को मै राखी मे गिफ्ट कर रहा हूं. ना पसंद है तो मुझे बता दो, तुम्हे जो पसंद होगी वो कार हम ले लेंगे.. क्योंकि मै उपहार देने से ज्यादा पसंद की चीज देने में विश्वास रखता हूं..


मै:- लेकिन आप ये सब कर क्यों रहे है...


लियाकत अपनी गाड़ी में सवार होते... "कुछ चीजें लोग अपने पूरे अरमान के साथ करते है, वही मैंने भी किया है... तुम खुशी-खुशी इन्हे स्वीकार करके मेरा दिल रख लो.. और जिंदगी में कभी कोई समस्या हो तो ये तुम्हारा भाई, हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा मिलेगा"..


मै उसे जाते देख रही थी और नकुल मुझे हैरानी से देख रहा था. जैसे ही मेरा ध्यान नकुल पर गया.. "ओय अब तुझे क्या हो गया".


नकुल:- मेनका ये क्या बोलकर गया कुछ समझी..


मै:- क्या?


नकुल:- उल्लू, सुनी नहीं क्या उसने क्या कहा?


मै:- कहेगा क्या, असगर अली के बेटे को मैंने चैलेंज किया और उस चैलेंज को मैंने पूरा किया. उनकी इज्जत फटी हुई ना दिखे, इसलिए यहां मस्का पॉलिश और पॉलिटिकल एजेंडा वाला माहौल बाना रहा था...


नकुल:- कब तेरा दिमाग इस मामले में चलेगा पता नहीं. चल राशन का सामान खरीदते है, फिर मै तुम्हे रास्ते में सब समझता हूं..


मै:- लेकिन हम तो 2 कार से जाने वाले है... वो भी तो एक कार गिफ्ट करके गया है..

नकुल:- स्मार्ट गर्ल के लिए स्मार्ट कार देकर गया है... एमजी हेक्टर..


मै:- येस आई एम् ए स्मार्ट गर्ल..


नकुल:- स्मार्ट नहीं कम अक्ल. अभी तुम्हे पूरी बात नही समझ में नहीं आयी, सब समझाऊंगा तब कहेगी, ओह तो ये बात थी...


मै:- तू मुझे सस्पेंस से मत मार, चल घर जल्दी, और मुझे समझा कि वो क्या कहकर गया?


नकुल:- लिफाफा खोल कर चुपके से देख तो लो पहले घर जाना है कि पहले बैंक..


नकुल की बात मानकर जैसे ही मैंने लिफाफा खोला, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया... फटी आखों से मै नकुल को देखने लगी, साथ मे मुझे हिचकियां भी आ रही थी... मेरी हालत देखकर नकुल पूछने लगा.. "क्या हुआ कितना बड़ा अमाउंट है जो तू सदमे में चली गई"…. "ड.. ड.. डेढ़ करोड़"..


अमाउंट सुनकर नकुल चार गालियां लियाकत को देते... "कुत्ता साला इतना कम देकर गया"


मै फिर नकुल को हैरानी से देखती... "लेकिन वो ये देकर क्यों गया है"..


नकुल ने मुझे शांत रहने की सलाह दी. मैंने बैंक जाकर पहले चेक लगाया फिर राशन का थोड़ा बहुत सामान लेकर, हम घर पहुंचे. मेरे चेहरे की व्याकुलता नकुल समझ सकता था, इसलिए वो मेरा हैरान चेहरा देखकर बार-बार हंस रहा था...


उसकी हंसी तो मुझे और भी ज्यादा परेशान कर रही थी. कमरे में वो पहले तो 10 मिनट तक हंसता रहा फिर कहने लगा... "तुम्हारे मैटर के नाम पर उस लियाकत ने अपने सारे दुश्मन को एक साथ साफ कर दिया. सुनी नहीं उसने क्या कहा था.… अंजाने मे तुमने उसका काम किया है. मतलब साफ था कि उसने जितनो लोगो को साफ किया है, उसकी लिस्ट पहले से उसके दिमाग में थी."

"बस कोई स्ट्रॉन्ग वजह नहीं मिल रही थी, वरना तुम्हे छेड़ने और गांव की 2 बेटी को परेशान करने के लिए, बहुत ज्यादा से ज्यादा 3 लोगों को मारता. वो भी पंचायत मारने के लिए कभी नहीं कहती, बल्कि कहती 6 महीने या 1 साल जेल में डाल दो. यदि ऐसा होता तो लियाकत के उम्मीद पर पानी फिर जाता, इसलिए तो उसने पंचायत मे कहा था सजा वो खुद देगा, ताकि लाशों का ऐसा खेल खेले की उसका पॉलिटिकल ग्राफ सीधा ऊपर आ जाए."

"2 दिन में कई छोटे-बड़े दिग्गज को मरवाने का क्रेडिट ले गया है. आज के वक्त मे उससे भी बड़ा बाहुबली कोई होगा क्या? उसके इलेक्शन जितने और मंत्री पद संभालने का पूरा रास्ता ही क्लियर हो गया अब तो... साला ये लियाकत पक्का पॉलिटीशियन निकला.…
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
aaj to menka ki chandi hone ke baad bhi nakul ke drishtikon se nuksaan hi hua hai,
Ab apni memani to baat karne mein bhi sabki ustad hoti ja rahi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai
 
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