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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

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अध्याय 27 भाग:- 1




18th दिसंबर की रात के मुलाकात के बाद मेरी हर्ष से कोई भी मुलाकात नहीं हुई थी, और 18 दिसंबर के बाद से संदेश भी आने बंद हो गए थे... 21 को दिल्ली जाने से पहले मै एक बार हर्ष से मिलना चाहती थी, इसलिए राजवीर अंकल और उपासना आंटी से मिलने मै पहुंच गई.…..


यहां जब आयी तो पता चला कि अंकल और आंटी ही नदारत थे, और प्राची अपने ससुराल में व्यस्त. मुझे समझ आ गया की हर्ष, अंकल-आंटी के साथ निकला है और उसके साथ भी वही सिचुएशन हुई है जो मेरे गांव आने पर होती है..


प्रायः ये होता है कि घर के अभिभावक की मन्नत होती है यदि बेटी की शादी अच्छे से हो गई, तब फलाने जगह माथा टेकने जाएंगे.. पैदल यात्रा करेंगे या अन्य कोई मन्नत.. शायद वही उतारने हर्ष के साथ निकले हो..


हालांकि ये भी अजीब था, क्योंकि शादी के चौथे दिन विदाई की रश्म होती है, और भी अन्य रस्में जिनमे मायका पक्ष का होना अनिवार्य होता है.. लेकिन यहां तो तीसरे दिन ही सब खाली.. मन में सवाल के साथ मै दिल्ली के लिए निकल गई.…


हर्ष की देखने की छोटी सी ख्वाइश थी लेकिन पूरी ना हो पाई.. इकोनॉमी फोरम पर यह मेरा लगातार दूसरा साल था जब कॉलेज के लिए मुझे ही चुना गया था... दिसंबर से लेकर शुरवाति जनवरी तक इतना टाइट शेड्यूल था कि मुझे श्वास लेने की भी फुरसत नहीं थी..


रोज ही लगभग मेरी नकुल और प्राची से बात हो रही थी, घुमा फिराकर मै हर्ष के बारे में पूछती और वो दोनों एक ही उत्तर देते... यूके गया है कोई कॉन्फ्रेंस मे.. लौटा नहीं है...


मै यहां दिल्ली में थी और नकुल, प्राची के साथ अपने सहर.. दोनो दिल्ली आने का नाम ही नहीं ले रहे थे और ना ही अब पहले जैसी बातें हो रही थी.. पर्दे के पीछे कुछ तो कहानी चल रही थी.. जिसका ज्ञान मुझे नहीं था..


1 जनवरी का कोई विश ना हुआ और ना ही 2 जनवरी तक मेरे पास किसी के कॉल आए. किसी का फोन से मतलब ना तो मेरे घर से और ना ही नकुल के घर से. नकुल का तो क्या ही कह दूं, 3 दिन से तो मुझे बस इतना ही कह रहा था कि अभी व्यस्त हूं, रखता हूं.…


8 जनवरी 2015, मै सभी सेमिनार और इकोनॉमी फोरम को अटेंड करने के बाद 3 दिन से फ्री बैठी हुई थी और सोच रही थी कि एक बार गांव जाकर मामला समझ तो लिया जाए कि वहां चल क्या रहा है..


मै सोच ही रही थी कि उधर से मां का फोन आ गया और बहुत ही कड़क लहजे में वो पूछ रही थी कि "क्या मेरे और हर्ष के बीच कोई प्रेम प्रसंग का मामला है".. मां के मुंह से यह सुनकर मेरे कलेजा कितनी जोड़ से धड़का होगा, वो मुझे भी पता नहीं... मै बिल्कुल ख़ामोश थी और जवाब ना पाकर वो फोन पर ही चिल्लाने लगी..


मै मौन स्वीकृति दे चुकी थी और मां रो रोकर चिल्ला रही थी. अंत में एक ही बात कही.. "गांव वापस लौटकर मत आना, तेरे लिए सब मर गए है.." उनके फोन रखते ही तुरंत एक के बाद एक सबके कॉल आने शुरू हो गए, और अंत में नकुल का कॉल आया....


"तुम उस फ्लैट में हो इसलिए हम दिल्ली नहीं आ पा रहे. इससे ज्यादा कोई बात नहीं हो पाएगी.. तुम बस वहां से कहीं भी चली जाओ"…


घर गया, रिश्तेदार गए और आखरी मे रिश्ता भी चला गया. मै गरीब हो गई लेकिन कैसे, ये मुझे दूर-दूर तक पता नहीं था.. क्या करना था वो मै बाद मे सोचती, पहले तो दिल में चुभन सी हो रही थी और मुझे ये घर छोड़ना था...


मै बुत बनी असहाय सी मेहसूस कर रही थी, घर की घंटी बजी और मै किसी तरह जब दरवाजा खोली तो सामने मौसा, मौसी, गौरी और मैक्स खड़े थे.. मै लड़खड़ाई मासी के ऊपर ही लगभग गिरी और सिसकती हुई किसी तरह कहने लगी.. "नकुल ने मुझे घर छोड़कर जाने के लिए बोल दिया"….


मुझे उसके बाद फिर होश नहीं... डबडबाती आखें ना जाने कितने दिनों की भोर और सांझ नहीं देख पाई.. कहां हूं कुछ समझ नहीं पाई। वहां मेरे पास मेरी प्यारी मां यानी की मेरी मासी थी.. आखों मे उनके आशु नहीं थे, मुस्कुराकर वो मेरे सर पर हाथ फेरती बस यही दिलासा दे रही थी, "मै हूं तू चिंता क्यों करती है..."


किन्तु हम दोनों ही जानते थी कि वो अंदर से कितनी दर्द मे थी... फिर पहुंचे मेरे दोनो भाई, और साथ में थी मेरी दोनो भाभी और सभी बच्चे.. मै क्या प्रतिक्रिया देती.. बस अपने आशु समेटकर तुरंत ही मुस्कुराती हुई साक्षी के गले लगकर उसे चूमती हुई पूछने लगी... "मेरा बेटा कैसा है"..


उसकी मासूम नजरें, मेरे चेहरे को देख रही थी.. वो बड़े ही ध्यान से मुझे देख रही थी, मानो पूछ रही हो, "दीदी क्या तुम रो रही हो?".. मै उससे नजरे मिलाने में असमर्थ हो चुकी थी और उसका खिला सा चेहरा पुरा ही उतर चुका था...


12 फरबरी, सब लोग जा रहे थे.. मासी जाते हुए मुझसे बस इतना ही कहकर गई... "जब लौटो तो मेरी बेटी मेनका को भी साथ लेकर लौटना. जबतक वो नहीं लौटेगी मेरे हलख से खाना का निवाला बड़ी मुश्किल से नीचे उतरेगा... मैक्स, गौरी, अपनी बहन मेनका के साथ ही लौटना".. मेरी पथराई आखें बस सबको जाते हुए देख रही थी... वहां मैक्स और गौरी के अलावा, मनीष भैया और रूपा भाभी रुके, जो मुझसे पूछ रहे थे "आगे क्या सोचा है?"


हर्ष, प्राची और नकुल के शादी के दूसरे दिन ही घर छोड़कर कहीं चला गया था... सबके लिए बस एक ही संदेश छोड़कर गया था…. "कुछ घुटन सी हो रही है कई दोनो से, मै ज़िन्दगी की तलाश में जा रहा हूं"…


एक हफ्ते पहले जब कुछ सामान्य हुई थी तब रूपा भाभी वह संदेश पढ़कर सुनायी थी... मेरे दिमाग के अंदर 1000 सवाल थे.. लेकिन केवल सवाल..


उधर राजवीर और उपासना सिंह पुत्र वियोग में थे. जैसे ही मेरी और हर्ष की कहानी सामने आयी, बिना कारन के ही हर्ष के घर छोड़ जाने का कारन बन गई... हां, संभवतः हर्ष के घर छोड़ जाने का कोई पुख्ता कारन ना मिल पाने पर हमारा मामला प्राची ने ही सबके सामने रखा होगा..


द्वेष ने मन में ऐसा खटास पैदा किया, राजवीर सिंह और पापा के बीच में विवाद बढ़ता ही चला गया.. फिर कहानी भी वही होती है, जिसकी लाठी उसकी भैंस.. ऊपर से प्रेम प्रसंग के किस्से मे फजीहत तो लड़की और लड़की के घरवालों को हो उठानी पड़ती है...


मेरी मां जब तक हिम्मत से डट सकती थी डटी, लेकिन पापा की बेइज्जती ने उनका भी हौसला तोड़ दिया शायद और 27 दिसंबर से चल रहे मसले मे, मां टूटकर 7 जनवरी को मुझे ही पूरे प्रसंग मे दोषी मानकर सबसे माफी मांगी, और कह दी, "लौटकर फिर वापस नहीं आना..."


इन सभी घटनाओं के पीछे का जवाब एक ही लड़का था, हर्ष.. वो भी अपने जाने से पहले एक बड़ा सा सवाल छोड़े जा चुका था, जिसका जवाब तो उससे मिलने के बाद ही पता चलता...


मै आधी फरबरी से लेकर आधे मार्च तक रूपा भाभी और मनीष भईया के साथ यूरोप के चक्कर काटती रही, लेकिन ये काम हमारे बूते का नहीं था... मार्च आखरी तक कुछ और भी ज्यादा सामान्य थी, क्योंकि जिस बात के लिए सबसे ज्यादा रोई थी, मेरी मां.. उन्होंने मुझे सामने से कॉल करके माफी मांगी और कहने लगी.. "ढूंढ कर लाओ उस हर्ष को कहीं से भी, तभी अब दिल को सुकून मिलेगा.? अगर कहीं मर गया हो तो उसकी लाश पता लगाना, लेकिन उसके छोड़े संदेश के पूरे जवाब के साथ लौटना..."


मन में अब हर्ष के लिए केवल घृणा ही बची थी, उससे ज्यादा कुछ नहीं... मार्च का महीना, इस वर्ष भी काफी सारे ऑडिट होने थे और मै अभी मात्र एक ट्रेनी थी, जिसका सर्टिफिकेट उसका सीए देता... और तब जाकर मै सीए फाइनल के एग्जाम में बैठती...


रजनीश भईया को थोड़ी कहानी पता थी और उन्होंने जनबरी मे ही कॉल करके कहा था.. तुम जो कर रही हो वो करती रहो… सेर्टिफाई करना तो मेरे हाथ में है.. निश्चिंत होकर काम पर लौटना...


32 हजार की सैलरी मेरी बराबर आ रही थी, लेकिन आर्थिक स्थिति अब पहले जैसे नहीं थी.. मनीष भईया जब मेरे अकाउंट्स मे अपनी शाविंग्स डालते, तो आज बहुत ही अजीब लग रहा था... ऐसा लग रहा था मै घूमकर फिर से अपने घर की चार दिवारी मे आ गई, जहां पूरी तरह से मै अपने पिता और भाइयों पर आश्रित थी..


मन में विद्रोह सा था, घर के अंदर अपने पापा का, अपने घर का काम तो कर देती थी, यहां तो मेरी भाभी और मेरा भाई अपना काम भी छोड़े है, मेरा भी काम कर रहे और उल्टा मुझे पाल भी रहे...


ये एक ऐसी फीलिंग थी जहां मै सोचने पर मजबूर हो गई थी क्या हासिल कर लिया घर छोड़कर, अंत में बदनामी और जिल्लत... मै कुछ वक्त खुद को अकेली देना चाहती थी, इसलिए कहीं किसी पार्क के ओर जा रही थी... सामने फिर से वहीं नेशनल लाइब्रेरी थी.. जहां कुछ महीने पहले एक संतुष्टि के भाव लेकर गई थी... आज सामने फिर से वही लाइब्रेरी थी.. और सबसे ज्यादा रुलाने वाली वही इंसान था, बस आज जब मै लाइब्रेरी से लौटूंगी तो वो नहीं होगा..


मै फिर से लाइब्रेरी मे थी, मुझे वो बाबा मिले जो उस शाम मिले थे… आज वो कुछ ज्यादा ही खुश थे.. मेरे चेहरे पर अजीब ही मुस्कान थी, कुछ यूं की मै नहीं तो कम से कम तुम तो खुश हो बाबा...


वो बाबा मुस्कुराए और पूरे हक से मेरा हाथ पकड़कर वही पास के पार्क में ले आए.. मुझे देखते हुए कहने लगे... "मै एक आत्मकथा सुनना पसंद करूंगा"…


मै उन्हे हैरानी से देख रही थी, मानो पूछने की कोशिश कर रही हूं "बाबा आप ऐसे क्यों बोल रहे".. लेकिन मै बस उन्हे एक बार देखकर सामने देखती हुई...


"मंजिल से तो कभी भटके नही, ना ही अपना कारवां गलत था"
"बस वक्त को कुछ और मंजूर था और हालात अपने बस में ना था"…


बाबा:- ज़िन्दगी के पन्ने पर हम एक-एक दिन, एक-एक पल लिखते हुए आगे बढ़ते है.. कभी उन पन्नों को शुरू से पलटने का वक्त मिले तो पलट देना चाहिए... हो सकता है जिन हालतों से हम अब हार मान रहे है, उन्हे झेलनी की गुत्थी जिंदगी के शुरवात किताब में हो, जिसकी तस्वीर दिमाग में धूमिल सी भी नहीं..


मै:- कभी दिल किया तो जरूर पलट दूंगी बाबा, लेकिन आपको देखकर हौसला मिला है मुस्कुराने का.. कोई हल्का-फुल्का कॉमेडी नॉवेल…


बाबा हंसते हुए वापस आ गए और पुराने कॉमिक्स थामा गए... "इस वक्त तुम्हे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है"..


मेरे हाथ में थी चाचा चौधरी, बिल्लो, और पिंकी.. दिन अच्छा कट रहा था, बीच मे ही मनीष भईया का कॉल आ गया और पूछने लगे की घर कब तक लौट रही हो.. मैंने उन्हे बताया कि मै नेशनल लाइब्रेरी मे हूं, देर हो जायेगी..


बहुत दिन के बाद मै बिल्कुल सामान्य रूप से और पहले जैसी टोन मे बात कर रही थी... कुछ देर और वो बुक पढ़ने के बाद जैसे ही मै निकलने लगी, बाबा मुझे रोकते हुए कहने लगे यहां आओ.. मै जब गई तो उनके बहुत से पुराने साथी वीडियो कॉन्फ्रेंस पर थे और उन सबको मिलवाने के लिए वो सब मुझे धन्यवाद कह रहे थे...


मै थोड़ी हैरान और चेहरे से मुस्कुराती... "आपको कैसे पता की ये मेरा किया है"…


बाबा:- बेटा हम अनुभवी लोग है... हमे कोई सामने से आकर बहला दे, तो इतना ही सोचते है, जानते हम सब कुछ है लेकिन तुम ही खुश रहो…


मै:- मै जब भी यहां आयी हूं कुछ अच्छा और संतुष्टि के भाव ही लेकर गई हूं... वरना ये दुनिया तो वही मानती है जो उन्हे सामने से दिखता है...


बाबा:- वो उनके लिए जो जीने के लिए जीते है, अब तो हम मरने के लिए जीते है, इसलिए पल-पल दिल खोलकर जीते है..


मै:- हिहीहिहिही... आपको तो योके पसंद थी फिर सेल्मा दादी की बात क्यों कर रहे है... (वही अज्ञेय जी द्वारा रचित 'अपने-अपने अजनबी" नॉवेल की चर्चा)


बाबा:- योके कभी गलत थी ही नहीं.. अपनी उम्र में वो अपनी जिंदगी और तजुर्बा के साथ जी रही थी, और तुम्हारी सेल्मा दादी भी तो पूर्व मे योके ही थी, हृदय परिवर्तन और सोचने की चेतना ने उसे बदला और जिंदगी के तजुर्बों ने उन्हे जीना सिखाया..


मै:- मुझे एक ही अफ़सोस है कि मै जिंदगी में आपसे पहले क्यों नहीं मिली.. आपकी उम्र में बहुत कम लोग जीवित रहते है...


बाबा:- तुम मुझसे मोह बस जुड़ रही हो और मै तुम्हे अपने जिंदगी का एक अधूरा हिस्सा समझ कर जुड़ रहा हूं...
 

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अध्याय 27 भाग:- 2




मुझे बाबा से पूछना तो था कि बाबा कैसा अधूरा हिस्सा लेकिन उससे पहले ही सीढ़ियों से तेज कान में चिल्लाने की आवाज आयी, और मुड़कर देखी तो रवि मुझे आवाज लगा रहा था...


रवि को देखकर मै फीकी सी मुस्कान दी और बाबा को बोलते निकली "अभी हमारी कहानी अधूरी है... अगली बार पुरा सुनना चाहूंगी..." "तुम्हे यहां से हंसते वापस जाते देख दिल में सुकून सा होता है, आराम से आना और अगली बार हंसती हुई आना और हंसती हुई जाना"….


मै उन्हे सुनती हुई रवि के पास पहुंची... "तुमसे यहां मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी?"…


रवि:- तुम्हारा लाइब्रेरी प्रेम गया नहीं क्या?


मै:- तुम्हे नहीं लगता कि कुछ अच्छी आदतें जानी नहीं चाहिए.. वैसे भी मेरे जीवन में लाइब्रेरी का अहम हिस्सा रहा है, जब भी यहां होती हूं कुछ अच्छा ही होता है... जिंदगी में दोस्त की कमी सी खल रही थी, और तुम ने भी क्या सही वक्त पर आवाज दी है...


रवि:- सॉरी..


मै:- अब ये सॉरी क्यों?


रवि:- तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया और मुझे होश तक नहीं... होली मे गांव गया था तब पूरी कहानी पता चली..


मै थोड़ी मायूस होती... "प्लीज बहुत मुश्किल से उबर पाई हूं मै, मत कुरेदो, छोड़ दो"..


रवि:- छोड़ दिया, लेकिन ये बताओ मेनका मिश्रा को भूलने कि बीमारी कब से लग गई...


मै:- जब ये एहसास हो गया की कुछ लोग मुझे भी भुल सकते है, तबसे मैंने भी चीजों को भुलाना सीख लिया..


रवि:- तुम कहती हो बीती बातें याद मत दिलाओ, खुश भी दिख रही चेहरे से, फिर भी ये ऐसे उखड़ी-उखड़ी बातें..


मै:- जिंदगी में कुछ चीजें छोटे समय के लिए होती है रवि लेकिन असर बहुत गहरा और खतरनाक होता है... कितना भी छोड़ दो लेकिन उसका असर कुछ ना कुछ रह ही जाता है...


रवि:- आज रात डिस्को..


मै:- नहीं आज रात नहीं.. इनफैक्ट अब मुझे चलना चाहिए..


रवि:- तुमने पूछा नहीं की मै यहां कैसे पहुंचा..


मै:- सीरियसली ये सवाल मुझे करना चाहिए था क्या?


रवि:- क्या पता.. मेरी दोस्त मेनका होती तो पहले शुरू करती की मेरा पीछा कर रहे हो क्या?


मै:- अब भी वही मेनका हूं, वक्त के साथ हर किसी में थोड़ा बदलाव होता है, मुझमें भी हुआ है.. अब मैंने सोचना बंद कर दिया है.. अच्छा लगे तो ठीक वरना रास्ता बदल लो और हो सके तो उस ओर जाना ही छोड़ दो..


रवि:- बाप रे ये नई मेनका तो पुरानी से काफी खतरनाक हो गई... इतनी बातें तुम कब करती थी.. 4 लाइन के बाद तो मामला क्लोज करके चलते बनती थी..


मै:- हिहिहिहिहि.. आज बात बनाने का मन कर रहा है.. आज बहुत दिन के बाद कुछ अच्छा-अच्छा लग रहा है.. शायद तुम्हे समझने में काफी वक्त लगे.. लेकिन वादा करती हूं जिस दिन समझोगे, कहोगे मै भी कितना डफर हूं..


रवि:- वो तो मैं शुरू से हूं... यदि मै पुष्पा और अमृता से नहीं मिला होता तो शायद कहानी ही कुछ और होती..


मै:- रवि अब मै जा रही हूं... आज बहुत ज्यादा बात हो गई.. कल फ्री हो क्या?


रवि:- ओय उड़ती तितली, अभी तुम्हारे नए फ्लैट गया था वहां से यहां का पता मिला, तो भगा चला आया.. कल क्या अब रोज मिलना होगा.. खुद ही कही थी ना मार्च बाद हमारे मंत्री जी के ऑडिट का काम करोगी..


मै:- नहीं अभी मै कोई काम हाथ में नहीं लूंगी.. अब कोई काम नहीं...


रवि:- एक काम करो तुम जाओ घर मै भी चला.. बाकी मै भी देखता हूं कि कैसे काम नहीं करती..


मै:- तुम मुझे चैलेंज कर रहें हो क्या रवि?


रवि:- नहीं मै तुम्हे वापस तुम्हारी जिंदगी की ओर मोड़ रहा हूं...


मै कितनी बात बनाऊं एक ही दिन में.. अब ऊब सी रही थी रवि की बातों से.. मै चुपचाप निकल गई.. हां लेकिन लाइब्रेरी से लौटकर जैसे जिंदगी पटरी पर चल रही हो.. मै अपने अंदर योके को मेहसूस कर रही थी जो 3 महीने के कब्र में थी.. जर्मन सैनिक के साथ फंसी, और तो और पहाड़ से गिरकर भी खुद को बचाने में कामयाब रही थी.. योके.. मै जीती हूं क्योंकि मै जानती हूं कि जीती हूं..


लाइब्रेरी मानो मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका हो.. रोज सुबह आना, बाबा के साथ बैठकर किताबो को और करीब से जानना... कितना अनुभव था उन्हे... बातों-बातों में एक गहरी बात याद दिला गए जो मां सिखाया करती थी...


"कभी-कभी छोड़ना ज्यादा अच्छा होता है, लगातार पीछे भागने से"… तब मतलब समझी भी थी और नहीं भी, लेकिन आज पुरा समझ गई थी... आधा अप्रैल यानी 15 अप्रैल 2015 तक मनीष भईया गांव वापस जा चुके थे, खुश थे क्योंकि मै हंस रही थी और लगातार हर्ष के पीछे दिमाग दौराने के बाद उसे छोड़ चुकी थी...


संभवतः नकुल और उसके पक्ष के बारे में सोचकर मैं उसे भी छोड़ चुकी थी.. मै अपनी मनोदशा किससे साझा करूं इसलिए मेरे पास शायद रवि था.. मै अपने अंदर हो रहे बदलाव और पूरी सोच साझा करती थी..


मेरे लिए वो भी बेचारा नियमित रूप से शाम को लाइब्रेरी आता.. मै जब आंख दिखाती तो छोटा सा मुंह बनाकर महाभारत पढ़ने बैठ जाता और जितना वो पढ़ता उतने मे हम सारी नीति डिस्कस करते थे..


दोस्ती तो रवि से थी, लेकिन एक बात जो उसकी आंखों में साफ झलकता था, वो है उसकी चाहत.. यही कारन था कि दिल्ली आने के बाद भी मै रवि से मिलने मे कभी रुचि नहीं रखती थी, जबकि मिलने की इक्छा तो बराबर हुआ करती थी... ऐसा नहीं है कि रवि नहीं समझता यह बात लेकिन कुछ बाते अनकही ही रहे तो ज्यादा अच्छा लगता है..


30 अप्रैल मै थी एक्सटर्नल और इंटरनल होम मिनिस्ट्री के दफ्तर में.. जहां केवल सिक्का चलता था उमाशंकर मिश्रा.. छोटे पुजारी. बाहर मिलो तो कितने सीधे और सरल, उनकी वाणी कर्ण रश घोले.. लेकिन ऑफिस में उनका अंदाज ठीक उलट था, कर्कास और बिल्कुल खड़ी बोली.. ना तो चेहरे पर मुस्कुराहट और ना ही गुस्सा.. एक गंभीर सा चेहरा जो सुबह 8 बजे आता था और रात के 11 बजे ऑफिस से जाता था..


जिस दिन नहीं आता, उस दिन भी 2 घंटे तो ड्यूटी करके ही जाता था.. एक्सटर्नल और इंटरनल अफेयर मिनिस्टर, श्याम प्रसाद शुक्ला जी के एक स्तम्भ.. उमाशंकर एक स्तंभ थे, तो रवि अग्रवाल दूसरा स्तंभ.. यूं तो क्लार्क था, लेकिन इस ऑफिस की कोई भी फाइल रवि अग्रवाल के नजरो के सामने से बिना स्कैन हुए, साइन नहीं किए जा सकते थे, और रवि जिस फाइल को मंजूरी दिया, उसको फिर कभी मंत्री जी देखते नहीं थे..


दोनो स्तंभों ने ऐसा ऑफिस के अंदर ताना-बाना बुना हुआ था कि श्याम प्रसाद शुक्ला जी अब तो नेक्स्ट स्टेप, वाणिज्य मंत्रालय की ओर तैयारी मे लगे थे.. कुछ कंक्रीट सा उन्हे मिल नहीं रहा था कि कैसे वो सिद्ध करे की वो वाणिज्य मंत्रालय के योग्य है, इसलिए कई सारे अर्थशास्त्री को बिठाकर वो दिन भर अर्थशास्त्र और देश दुनिया की तमाम अर्थशास्त्र नीति के अध्ययन में जुटे रहते....


मेरा यह पहला अवसर था जब मै किसी सेंट्रल मिनिस्ट्री के दफ्तर का काम काज देख रही थी.. बाहर से भले लगता हो सरकारी दफ्तरों में क्या काम होता होगा.. लेकिन यहां के दफ्तर में मेरे ख्याल से 16 घंटे काम होता था...


मै लगभग 2 घंटे बिना काम के बैठी रही. बॉडीगार्ड के काफिले के बीच चले आ रहे थे श्याम प्रसाद शुक्ला जी, आते ही ऑफिस में गए और उनके पीछे अपने उमाशंकर मिश्रा..


उन दोनों के साथ एक सरकारी पीए भी था जो अंदर चला.. 25-26 साल की एक मैरिड लड़की हाथो में फाइल लिए बाहर खड़ी थी और मंत्री जी से मिलने वाले कुछ लोग वेटिंग लौंग मे..


आधे घंटे बाद उमा शंकर ने दरवाजा खोला और उस लड़की को अंदर आने के लिए कहा गया... वो लड़की तकरीबन 15 मिनट बाद लौटी और वहां पास के एक बॉडीगार्ड से कुछ बात करके निकल गई... आप भी सोच रहे है ये सब मै क्या बता रही हूं...


सच कहूं तो मनहूस सी ये जगह मुझे लग रही थी.. इतना बोर तो मै तब भी नहीं हुई.. आगे तुलना करने को कुछ है है नहीं, जो मै किसी घटना का विवरण भी दे सकूं.. बस भाग जाने का मन कर रहा था...


मै बोरियत को इस कदर मेहसूस कर रही थी कि वहां बैठे स्टाफ के हेयर कट तक को नोटिस कर रही थी.. बहरहाल उस लड़की के निकलने के 2 मिनट बाद, रवि मंत्री जी के चेंबर मे गया और फिर एक चपरासी ने मुझे अंदर जाने के लिए कहा...


कुछ औपचारिक परिचय के बाद मंत्री शयम प्रसाद शुक्ला कहने लगे... "मै तुम्हे 1 साल से जानता हूं, जब तुम इकोनॉमिक्स फोरम में भाषण दे रही थी.. तुम पहली ऐसी वक्ता थी जिसे मै समझ सका था"…


मै:- "बहुत-बहुत धन्यवाद सर, लेकिन अगर आप मुझे अपने इस बोरिंग ऑफिस में काम ऑफर कर रहे है तो जवाब है ना.. इससे अच्छा मेरे गले में फांसी लगाकर लटका दीजिए..."

ध्यान से सुनिए, जब मै आयी.. ये छोटे पुजारी जो मुझे देखकर स्माइल दिया करते थे, वो एक नजर डालकर फिर ऐसे काम मे लग गया जैसे पहली बार देख रहा हो.. ये रवि मेरा दोस्त, मेरा करीबी.. 2 घंटे से बैठी हूं, पूछने तक नहीं आया... 42 स्टाफ, 8 बॉडीगार्ड, 6 सिक्योरिटी गार्ड, 8 कमांडो, 1 आईपीएस, 2 आईएएस इतने लोग है ऑफिस के फ्रंट में, जो आखों के सामने से गुजरे..

थर्ड कॉरिडोर के अंदर ऑफिस की एक आंटी, एक अंकल के साथ पेपर की फेका फेकी खेल रहे थे, उमाशंकर के अंदर जाते ही.. आपने अपने सभी स्टाफ को एक ही सैलून मे जाने की सलाह दी है, इसलिए सबके बाल एक जैसे कटे हुए है..

आप समझ सकते हो कि आपका ऑफिस कितना बोरिंग है, बहुत कुछ बताया नहीं है क्योंकि वो तो दाग धब्बे थे, की किन दीवार पर धूल के दाग है, पानी के दाग है.. बला बला बला..


मंत्री जी मुझे आश्चर्य से घूरते... "तुम वाकई कमाल की हो, रवि ने गलत नहीं कहा था तुम्हारे बारे में... ऑफिस में नहीं रखना है बल्कि तुम्हे निजी सलाहकार (पीए) बनाना है.."


मै:- नाह! मै 2 घंटे की बोरिंग ऑफिस मे, एक लड़की के लिपस्टिक को नोटिस नहीं करूंगी क्या... नहीं बनना मुझे आपका पीए..


मंत्री जी:- "तुम्हे मेरे साथ 24 घंटे रहकर निजी रूप से सहायता करे, वो पीए की जरूरत नहीं है... क्योंकि उसके लिए गवर्नमेंट अपॉइंट लोग है.. और मेरे टाइम शेड्यूल और इवेंट्स को उनसे बेहतर कोई मैनेज नहीं कर सकता.. लेकिन कुछ फाइल का मैनेजमेंट उनको नहीं दे सकते.. और ना ही कुछ मामलो मे उनकी सलाह सही होगी.."

"ना तो तुम्हे ऑफिस आना है ना ही मेरे साथ घूमना है.. मेरे घर रोज 2-3 घंटे आ जाओगी तो तुम्हे पुरा काम समझ में आ जाएगा.. शुरवात के कुछ दिन तुम्हे उमाशंकर बता देगा की क्या करना है, उसके बाद एक ऑफिस तुम्हारे जिम्मे...


मै:- लेकिन सर मै तो अभी पढ़ ही रही हूं.. सीए बनी भी नहीं...


मंत्री:- तुम पढ़ाई जारी रखो, मैंने मना थोड़े ना किया है... वैसे भी तुम्हारे गांव की मिट्टी में कुछ तो बात जरूर है, जो भी मिलता है, पहली मुलाकात मे भा जाता है... तुम मेरी बेटी हो और तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं होगा..


मै:- सर मै पॉलिटीशियन के बीच ही पली बढ़ी हूं.. इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकती.. मै काम करूंगी लेकिन मुझे जब कभी भी लगेगा कि मेरे साथ कुछ ग़लत करने की कोशिश हो रही है, मै काम छोड़ दूंगी...


मंत्री जी:- मुझे मंजूर है...


पता नहीं क्यों लेकिन मै ना नहीं कह सकी.. शायद बीते दिनो की मेरी जरूरतों ने मुझे हां कहने पर मजबूर कर दिया हो.. हां एक बात ईमानदारी भरी थी, वो मंत्री ठरकी पुरा था लेकिन वो केवल और केवल पैसे लेकर आने वाली लड़कियों को बुलाता था.. अपने साथ काम करने वाले किसी भी महिला कर्मचारी या फिर उनसे मिलने आयी किसी भी महिला पर ना तो बुरी नजर डालता था और ना ही बाहर से आयी किसी भी महिला के जिस्म की नुमाइश के प्रलोभन में फंसता था...


कुल मिलाकर वो जिस जगह पर था उस जगह पर बने रहने के लिए अपनी सोच के साथ अग्रसर था... ईमानदार लोगों की उतनी ही कद्र भी करता था, श्याम प्रसाद शुक्ला.


काम करते हुए मुझे 3 महीने हो चुके थे, मई से जुलाई की अवधि मै पूरी कर चुकी थी.. ऐसे ही एक रात की बात थी, जब मै और रवि डिस्को गए हुए थे.. वहां किसी से मेरी छोटी सी बहस हो गई थी...


रात के तकरीबन 12.30 बज रहे होगे... रवि ने सीधा फोन लगाया था श्याम प्रसाद शुक्ला को और डॉट 5 मिनट में पूरी फोर्स उस डिस्को में थी... शुक्ला जी ने वापस फोन किया था रवि को जब वहां फोर्स पहुंची... "रवि बताओ क्या करना है, डिस्को को सील करवाना है क्या?"..


डिस्को का मालिक वो अरबपति आदमी, खुद आकर, सरकारी ऑफिस के एक स्टाफ से माफी मांगकर गया था.. ये होता है रेंज श्याम प्रसाद शुक्ला के ऑफिस स्टाफ का.. हां लेकिन उसके लिए पहले क्रेडिट भी बनानी पड़ती है... जो की रवि, उमाशंकर, नूतन, श्रेश, अरविंद और राजीव नाम के लोगों ने अपनी बनाई थी...


खैर, 3 माह की अवधि समाप्त होने के बाद मंत्री जी के घर पर ही हमारी एक कैजुअल मीटिंग थी.. जिसमे सभी विश्वसनीय स्टाफ के साथ, मुझे भी बुलाया गया था... शुक्ला जी सबके सामने बोल दिए... "यार बेईमानी तो बहुत की है, कुछ अच्छा करना चाहता हूं, जो वाकई मे दिल को सुकून देने वाला काम हो और मुझे पॉलिटिकल माइलेज भी उतना ही मिले..."


सब अपने अपने सुझाव दे रहे थे.. मै ख़ामोश सबको सुन रही थी... ये परियोजना, वो परियोजना.. जिसका जो हिसाब हुआ बोलते चला गया... अचानक ही शुक्ला जी मुझसे पूछ बैठे, "तुम क्यों ख़ामोश हो, कुछ बोल क्यों नहीं रही..?"


मै:- सबको सुन रही थी, अच्छा लग रहा था..


मंत्री:- अब हम सब तुम्हे सुनना चाहेंगे..


मै:- मेरे पास कुछ भी नहीं है ऐसा जो आपके काम का हो..


रवि:- मंत्री जी इसने अगर बोल दिया तो समझ लीजिए कि आप हम जिस प्वाइंट को कभी सपने में भी नहीं सोच सकते, वो ये कह देगी..


मै:- भगवान हूं ना मै रवि..
 

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23,618
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259
अध्याय 27 भाग:- 3




मंत्री:- फिर भी हम तुम्हे सुनना चाहेंगे.. कुछ भी जो दिल में आ रहा हो..


मै, कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद... "मेरी बहन है गौरी, मुझसे 1 साल छोटी है, लेकिन हम दोस्त की तरह है.. यहीं दिल्ली मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रही है.. दिसंबर 2014 की बात है, हम दोनों ऐसे ही बात कर रहे थे, तब मै उससे कही की मेरे पास 7 करोड़ रुपया है जो किसी काम का नही, तू उसे ले ले और खर्च कर दे.."

"हो गया वो सुनी.. हमारी चर्चा आगे बढ़ी, उसने कहा चल कुछ पागलपन करते है.. मैंने हामी भर दी.. 2 बस किराए पर लिए.. सहर के 30 किलोमीटर के पश्चिमी सीमा से लेकर सहर होते हुए, 25 किलोमीटर उत्तर और पूर्व की सीमा तक बस को दौरा लिए.. 82 वृद्ध जो किसी मजबूरी बस भीख मांगने पर मजबूर थे, उन्हे बस में बिठाया.."

"गौरी ने इतना ही कहा, मेरा पागलपन खत्म अब तेरा शुरू होता है... पैसे इस तरह से खर्च कर की इनका अपना घर हो और घर की फिक्स इनकम हो.. मैंने 5 करोड़ मे 100 कमरे का होटल खरीदी.. 2 करोड़ बैंक मे टर्म डिपॉज़िट दिया, जिसका ब्याज हमे 18 लाख सालाना मिलता.. थोड़े कम थे, क्योंकि हमारा लक्ष्य 150 लोग थे और उनको देखने के लिए 4 कर्मचारी... 2 रेगुलर विजिटिंग डॉक्टर और मेडिकल इमरजेंसी के लिए पैसे।"

"सो उस 2 करोड़ के टर्म डिपॉज़िट को 5 करोड़ करवाया.. अब 3 लाख 75 हजार फिक्स इनकम है महीने का.. 2 लाख 70 हजार से 2 लाख 90 हजार महीने का खर्च है, बचे पैसे मेडिकल इमरजेंसी के लिए जमा हो जाता है.. ऑटोनोमस सिस्टम है, जिसने उन वृद्ध को किसी का आशा नहीं देखना पड़ता.. बस ये थी छोटी सी कहानी जिसमे मेरी बहन की ख्वाइश अच्छा करने की थी और मेरे पास पैसे थे..."


बड़े ध्यान से सब मेरी बात सुन रहे थे, जैसे ही मेरी बात समाप्त हुई, सभी एक साथ गहरी श्वांस लेते और छोड़ते, खुद को रिलैक्स किए. कुछ देर तक मेरे बात पर सोचने के बाद मंत्री जी... "मेरे पास पैसा है, क्या तुम्हारी बहन कुछ अच्छा कर सकती है क्या"..


मै:- ये तो वही बता सकती है.. मै क्या कह दूं..


मंत्री:- तुम दोनो बहन को पागलपन करने की पूरी छूट है.. 100 करोड़ की सहायता राशि मेरे ब्लैक फंड से.. बिना नजर मे आए, कर दो पागलपन... हर पागलपन के लिए मै तुम्हे और तुम्हारी बहन को 10 लाख मेहनताना दूंगा..


मै:- मुझे एक टीम चाहिए होगी और कुछ सुकून वाला इलाका... क्योंकि जहां हमारा फ्लैट है वहां मेरी भाभी है और मेरा छोटा भाई है.. ऐसे में वहां मीटिंग वगैरह करना अच्छा नहीं लगेगा..


मंत्री:- उमाशंकर, मेनका को कनौट प्लेस में एक सुरक्षित ऑफिस और तुम अपनी टीम को लेकर मेनका का काम देखो... और कुछ मेनका..


मै:- नहीं सर मीटिंग किसी ऑफिस में नहीं.. रवि या उमा मे से किसी के घर पर कर लेंगे...


मंत्री:- "तुम उमाशंकर से ही बात कर लो, आज से उमाशंकर को ऑफिस से निकालकर तुम्हारे हवाले किया.. गौरी अपनी इक्छा बताएगी, तुम पैसे और एस्टीमेट तैयार करके फाइल उमाशंकर को सौप देना और बाकी वो कर लेगा.."

"100 करोड़ पहली सहायता राशि है जो एक महीने में खर्च करने है वो भी तुम्हारे उस ऑटोनोमस सिस्टम के हिसाब से.. उसके बाद हम नेक्स्ट स्टेप लेंगे.. हां लेकिन 100 करोड़ का पॉलिटिकल माइलेज भी उतना ही मिलना चाहिए.."


मै:- उसकी गारंटी मै नहीं ले सकती की पॉलिटिकली आपको कितना फायदा हुआ.. हां वो सुकून की जो बात आपने की थी, गारंटीड है..


मंत्री:- हम्मम ! मै संतुष्ट मतलब वो पॉलिटिकल माइलेज के भी ऊपर हो गया मेनका.. तुम बेफिक्र होकर काम शुरू करो...


100 करोड़ का इन्वेस्टमेंट प्लान बना. गौरी का पागलपन तो देखने लायक था.. उसने आंख मूंदकर एक स्टेट चुना, जो की था कर्नाटक. और वहां के आधे राज्य में शुरू करवानी थी फ्री वाईफाई हाई स्पीड इंटरनेट सर्विस. गौरी ने प्लान दे दिया, उसके बाद शुरू हुई मीटिंग.. सर्विस प्रोवाइडर्स से बातचीत और 7 दिन मे सब फाइनल होकर काम शुरू हो चुका था.. 9 अगस्त 2015 को काम शुरू हुआ और 29 अगस्त तक काम खत्म करने की आखरी तारिख थी...


आधे स्टेट मे, वहां पूरी केवल लाइन बिछा. एमजी (मेनका-गौरी, एमजी) ट्रस्ट के नाम खुद का इंटरनेट सरवर खरीदा, फ्री-फाय इंटरनेट सर्विस शुरू हुई और हर डिस्ट्रिक्ट तालुका और पिछड़े से पिछड़े इलाके में फ्री वाईफाई प्रोवाइड करवाने का काम शुरू हो गया.. इस पूरे सिस्टम को ऑपरेट करने के लिए 60 से 70 लोगों को स्थाई रोजगार भी मिली, जिसकी सैलरी और वाईफाई मेंटेनेंस के साथ उसका सालाना खर्च, उसी ऑटोनोमस सिस्टम के जरिए जारी होना था जिसकी राशि 10 करोड़, वाईफाई सर्विस के नाम अकाउंट में पहले से जमा करा दी गई थी..


10 अगस्त से मै और उमाशंकर रोज उसी के घर पर मिला करते थे.. ऑफिस के बाहर उसका काफी क्यूट व्यवहार था. बिल्कुल किसी बच्चे की तरह, जो हंसता बोलता और नादानियां करता था... शायद मेरे वजह से वो भी कई सालों बाद अपना ये खाली समय देख रहा था.. क्योंकि 10 अगस्त से हम दोनों रोज उसके घर पर मिलते और केवल काम की रिपोर्ट लेने उसके अलावा हमारे पास कोई काम नहीं होता था, सिवाय बात करने के...


18 अगस्त आते-आते तो मै उसे छेड़ भी दिया करती थी, और उफ्फ वो उसका भोला सा चेहरा.. क्या मासूमियत थी.. 19 अगस्त की सुबह की बात है.. काम लगभग फाइनल हो रहा था... मै बैठी हुई थी और बंगलौर सिटी से वीडियो फुटेज देख रही थी, तभी एक हॉट लड़की पीछे से गुजरी..


मै उमाशंकर को देखती... "दिल्ली में भी ऐसे नजारे मिल जाते है, छोड़ दीजिए छोटे पुजारी, बंगलौर की लड़कियों को"…


उमाशंकर:- धत मेनका जी आप बहुत छेड़ती है..


मै:- अच्छा, मै छेड़ती हूं तो आप ही क्यूं छिड़ जाते हो..


उमाशंकर:- आप कभी नहीं बदल सकती है.. वही पहली मुलाकात वाली मेनका है..


मै:- ऐसा नहीं है उमाशंकर जी, बहुत से बदलाव आए है तब की मेनका और आज की मेनका मे.. तब मै सुंदर नहीं दिखती थी, मेरे बदन पर मांस नहीं चढ़ा था, तब आप मुझे अनदेखा करते थे.. लेकिन जैसे-जैसे मैं जवानी की दहलीज पर कदम रखते गई आप का झुकाव मेरी ओर बढ़ने लगा..


उमाशंकर:- कैसी बातें कर रही है आप.. हां ये सही है कि मै नजरे चुराता था, लेकिन वो इसलिए क्योंकि मेरा हृदय सदैव आपको देखकर ऐसे धड़कता था कि वो बेकाबू सा हो जाता था..


मै:- झूट है ये उमाशंकर जी... ऐसा था तो आपने कभी बताया क्यों नहीं..


उमाशंकर:- डरता था कि कहीं आप कुछ गलत ना सोच ले.. फिर ख्याल आया की क्यों ना आपकी पढ़ाई पूरी होने तक मै खुद को साबित कर सकूं, ताकि सीधा आपके घर जाकर आपका हाथ मांग सकूं..


मै:- हिहिहिहिहि... बहुत भोले है आप उमाशंकर जी.. खैर अब तो मेरे आखों से हर सपना ही समाप्त हो गया है..


उमाशंकर:- मेनका एक बार भरोसा करके देखिए, आपकी जिंदगी मै खुशियों से भर दूंगा...


उमाशंकर मेरे करीब आकर मेरा हाथ थामने की हिम्मत कर चुका था.. वो मेरी आंखों में झांकता अपनी बात कह गया.. शायद ये मेरा ही उकसाव था.. मै नजरें नीची करके केवल "सॉरी" कहीं और वहां से चली गई..


20 अगस्त की सुबह जब पहुंची तब घंटे भर मे अपना सारा काम निपटाने के बाद मै जैसे ही जाने को हुई, उमाशंकर मेरा हाथ थामकर रोकते हुए...


"या तो हां कह दीजिए या ना कह दीजिए, जलता है दिल आपको इतना पास देखकर, आपसे कुछ ना कह पाने की स्तिथि में. मानाकि आपके लेवल का नहीं हूं.. मात्र 60 हजार रुपया महीना कमाता हूं और जमीन के नाम पर बस नाना जी का एक छोटा सा घर है, लेकिन एक बार आप कह दीजिए की आपको किस लेवल का लड़का पसंद है, मै हर लेवल को मैच कर जाऊंगा"


मै:- उमाशंकर जी आपका लेवल मुझसे बहुत ऊंचा है और मै वो लेवल कभी मैच नहीं कर सकती... मेरा नाम पहले ही एक लड़के के साथ जोड़ा जा चुका है फिर आप समझ ही सकते है कि मै किसी के नजर ने कुंवारी नहीं अब..


उमाशंकर:- आप मुझे लोगों में क्यों सामिल कर रहे हो..


मै:- मै जानती हूं कि आप भिड़ मे गिनती लायक नहीं है.. मुझे अभी अपने हाल पर तो छोड़ ही सकते है.. और हां मेरे घर वाले राजी हो गए तो मेरे हां या ना कहने का कोई मतलब ही नहीं.. आप यहां वक्त गंवाने से अच्छा है कि उनसे बात क्यों नहीं कर लेते...


उमाशंकर:- मुझमें ऐसा क्या नहीं जो मै आपके दिल के करीब नहीं हो सकता...


बिल्कुल मासूम सा चेहरा बनाए वो मुझे ऐसे देख रहा हो, मानो सालों के अरमान एक साथ चेहरे की भावना से इजहार कर रहा हो.. मै कहीं खो सी गई उमाशंकर को देखकर.. इतनी मासूम सी अर्जी पर मै इतनी भी खुदगर्जी तो नहीं ही दिखा सकती थी.. मै आगे बढ़कर उसके होंठ को छूकर पीछे हटी...


"मैंने प्रेम वाश आपको नहीं चूमा, बस आप बहुत प्यारे लग रहे थे, और आपको चूमकर मैंने अपनी फीलिंग बताई है"…


मेरी हरकत और मेरी बात सुनकर उसका पूरा चेहरा खिल गया, जवाब में मै भी उमाशंकर को एक प्यारी सी मुस्कान देती चली... लड़के का चेहरा देखने लायक था.. मै दर्द से तो उलझी ही थी, कम से कम एक सच्ची चाहत को तो उसकी मंज़िल मिल जाती...


मै वापस आयी अपने घर.. मैक्स लेटकर अपनी किताब में उलझा हुआ था और गौरी किचेन मे थी.. मै दबे पाऊं मैक्स के कमरे में घुसी उसके कान में चिल्लाने के लिए, लेकिन अंदर पहुंचकर तो लड़के ने मुझे सरप्राइज़ कर दिया..


मै पीछे खड़ी होकर देख रही थी और सामने दूसरी स्क्रीन वाली ने शायद मुझे देख लिया हो, वो झट से स्क्रीन से गायब हो गई और मैक्स हड़बड़ा कर उठते हुए... "दीदी ये गलत है, तुमने मेरे प्राइवेसी मे सेंध मार दी"…


मै:- हिहिहिहि... कौन है बड़ी खूबसूरत थी.. और हॉट भी..


मैक्स:- अनीता नायर नाम है.. कर्नाटक से..


मै:- गर्लफ्रेंड है या कुछ सीरियस अफेयर..


मैक्स:- अफेयर तो सीरीयस ही होता है, हां बस आगे जाकर किसका माथा घूम जाए किसे पता.. इसलिए नथिंग सीरियस…


मै:- अच्छा हम दोनों (मै और गौरी) मे से कोई ये बात कहे तो..


मैक्स:- नहीं कर सकती ना..


मै:- यदि कहीं कर दे तो..


मैक्स:- नहीं कर सकती बस... और हमारा कोई सीरियस अफेयर नहीं है.. साथ पढ़ते है एक दूसरे को अच्छे लगे तो थोड़ा सा वक्त दे रहे है.. मै उसे अपनी फैमिली और कल्चर बता रहा था और वो अपनी बता रही थी.. यदि हम दोनों को सब कुछ पसंद आ गया तो फिर रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे वरना.. खत्म..


मै:- ओह इसलिए वो इनरवियर में अपना कल्चर बता रही थी..


मैक्स मेरे सर पर एक हाथ मारते... "गंवार कहीं की वो शर्ट्स मे थी और ऊपर स्लीवलेस टॉप थी, इनरवियर तो अंदर था..


मै:- देख भाई इतने कम कपड़े वाली बहू लाएगा तो तेरे कपड़े का तो खर्च घट जाएगा, लेकिन मेरी मासी हार्ट पेशेंट जरूर हो जाएगी..


मैक्स:- धत तेरे की ये रिश्ता ही नहीं जमने वाला.. अच्छी लड़की हाथ से निकल गई..


मै:- इतने छोटे कपडे पहनती है, ओपन ख्याल की होगी.. 5-6 बॉयफ्रेंड तो होगी ही..


मैक्स:- नहीं उसका बस एक बॉयफ्रेंड था जिससे 1 साल पहले ब्रेकअप हो गया..


मै:- कारन..


"क्योंकि वो लड़का अमेरिका जाना चाहता था और अनीता का कहना था कि बहुत ज्यादा सैलरी का अंतर होगा तो 1 लाख रुपए का अंतर होगा, वो भी बहुत ज्यादा बोल गई. अमेरिका जाने से कोई बिल गेट्स नहीं बनने वाला.. ना ही अरबपति.. दिखावे में आकर भेड़ चाल चल दिए.. इसी बात पर बहस हो गई.. वो अपने ही देश के बारे में बुरा बुरा बोल रहा था और अनीता उसे एक चिपका कर चली आयी"… गौरी हमे ज्वाइन करती हुई बोली...


हमने अपने हाथो मे चाय के कप ले लिया, और बैठ गए बातें करने.. गौरी को मैक्स ने सब बता रखा था. अनीता के बारे में सुनकर तो अच्छा ही लगा हमे.. वो बैंगलोर से 18 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा टाउन है, चिक्काबियादराकल्लू, वहीं के किसान परिवार से है अनीता, जिसे सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर से शुरू से नफ़रत रही थी इसलिए मेडिकल की तैयारी की और डॉक्टर बनना एंबिशन है...


बातो ही बातो मे फिर हमने तय किया कि फिर चला जाए पहले अनीता का ही कल्चर समझ लिया जाए, लेकिन उसके घरवालों को पता चला कि प्रेम प्रसंग का मामला है तो कहीं हम लौटकर भी ना आने दे...


मैक्स हंसते हुए कहने लगा.. "वो बिहार का कोई सहर नहीं की बोले बॉयफ्रेंड है तो तलवार भाला चल जाए.. वो लोग एक्सेप्ट करते है लड़की की पसंद, और लड़का अच्छा लगे तो हां कह देते है"..


मै:- ओ भाई उड़ मत.. अभी बात केवल कल्चर समझने की हो रही है.... उसके बाद रिश्ता आगे बढ़ेगा. दोनो को लगेगा कि शादी कर सकते हो तब ना.. की पहले ही..


मैक्स:- दोनो बहने उसमे रुचि ले रही हो.. मतलब वो अच्छी ही होगी..


बातें तो होती ही रही.. इसी बीच रूपा भाभी भी पहुंच गई.. काफी थकी हुई लग रही थी... "क्या हो गया ऐसे बदहाली में कहां से आ रही हो"…


भाभी:- पता नहीं, तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही.. बहुत तेज दर्द उठा था पेट में, ऐसा की बर्दास्त से बाहर था.. मै तो सड़क के किनारे ही बैठ गई थी...


मैक्स:- चलो हॉस्पिटल चलते है..


भाभी:- 2-2 डॉक्टर घर में है और मै हॉस्पिटल जाऊं..


मैक्स:- पागल हो क्या.. अभी मै दूसरे और गौरी पहले ही साल मे है.. वैसे भी ये पथरी का दर्द लगता है.. चलो चलकर देख लेते है..


भाभी:- पथरी.. चल फिर कौन ये दर्द झेलते रहे. जल्दी से निकाल दो फिर.. मुझे तो दर्द से उल्टियां तक हो गई.. और ये कैसा सहर है, दर्द से मै छटपटा गई और सब केवल मुंह देखकर चले जाते..

 

nain11ster

Prime
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अध्याय 27 भाग:- 4




हम सब तुरंत ही हॉस्पिटल पहुंच गए. मैक्स ने सही अंदाज लगाया था, भाभी को गाल ब्लैडर मे 10 मम के 3 पत्थर थे.. मैक्स ने पहले ही समझा दिया था कि यदि पथरी हुई तो वो कहेंगे पहले 6 महीने ट्रीटमेंट लेने, लेकिन सीधा कहना ऑपरेशन ही करना गई।


हमने भी वही कहा.. बहुत बढ़िया सुविधा थी यहां. सुबह ऑपरेशन किया और शाम तक डिस्चार्ज. हमने तो किसी को बताया तक नहीं की भाभी के पथरी का ऑपरेशन है.. इधर वाईफाई का सरा काम के प्रोग्रेस को चेक कैसे करना है उमाशंकर तो समझ ही गया था, इसलिए मैंने कह दिया था कि एक हफ्ते बाद ही मिलूंगी...


हफ्ते दिन के लिए मैक्स और गौरी ने भी अपने सभी कार्यक्रम न्यूनतम कर दिए.. ऑपरेशन के तीसरे दिन था जब मैक्स हमे सरप्राइज़ करते अनीता को अपने साथ ले आया.. हाय उसे कर्ली बाल.. कितनी प्यारी लग रही थी...


रंग थोड़ा मध्यम था, लेकिन चेहरा की बनावट और चेहरे से छलकता उसका नूर, उसे अति खूबसूरत से भी ऊपर की श्रेणी में लेकर चला जाता है... गौरी के साथ ही पढ़ रही थी अनीता, मैक्स से एक साल जूनियर...


ओह अब याद आया तो बता दूं कि मैंने ही गौरी को सजेस्ट की थी... "जो मेहनत तैयारी मे लगाओगी, वो एमबीबीएस के किताबों में लगा देना, जहां समझ में ना आए मैक्स है.. उससे हर बात डिटेल मे समझ लेना.. फिर जुगाड टेक्नोलॉजी और हमारे कुछ पॉलिटिकल एप्रोच के बाद गौरी का अप्रैल में मेडिकल कॉलेज में दाखिला हो गया.."


हम सब बातें करने बैठ गए. वो हम सब को ऑब्जर्ब कर रही थी और हम उसे. तकरीबन 3 घंटे वो हमारे पास रुकी थी, इन 3 घंटे में हमे कहीं से लगा ही नहीं की हमारे बीच कल्चर का कोई गैप है.. बस उसकी हिंदी को छोड़कर..


अनीता को हिंदी बोलने में काफी असहजता होती थी, इसलिए वो हिंदी के साथ इंगलिश का भी प्रयोग कर लिया करती थी, और उसके हिंदी का प्यारा उच्चारण, मस्त था..


अनीता जाते-जाते आखिर कह ही गई, तुमने जैसा बताया उससे कहीं ज्यादा प्यारे तुम्हारे रिलेटिव्स है, और जहां रिलेटिव्स के बीच प्यार हो, उनकी फैमिली तो मिलनसार होगी ही. मुझे पसंद आया तुम्हारा कल्चर और फैमिली.. तुम कब आ रहे हो मैक्स..


मैक्स:- न्यू ईयर तुम्हारे यहां, तब छुट्टियां भी होगी और कोई एग्जाम भी नहीं होगा..


लो जी भाभी के ऑपरेशन और हमारे मैक्स भईया ने अपनी डेट भी फिक्स कर ली... लड़की तो मुझे और गौरी को भी दिल से पसंद थी, बस मुझे जरा अपनी मासी को समझना होगा कि थोड़ा तो मेरी खातिर सुधर जाओ...


एक हफ्ते की छुट्टी समाप्त हो चुकी थी और उसी के साथ लगभग काम पूरा.. 98 करोड़ 56 लाख लगे थे प्रोजेक्ट मे, बाकी का पैसा मैंने ट्रांसफर करवा दिया... 1 सितंबर के दिन मीडिया मे आकर हमारे होम मिनिस्टर जी ने भाषण दिया, और शुरवात..


"जो सहर आईटी फील्ड का हब है केवल वहीं नहीं, बल्कि आधे कर्नाटक में हमने फ्री वाईफाई सर्विस शुरू करवा दी है, वो भी एक वक्त मे 8 करोड़ यूजर कैपेसिटी के साथ, 18 एमबीपीएस की स्पीड मे.."


फिर उन्होंने अपने लंबे चौड़े भाषण में उनकी निह स्वार्थ सेवा भावना के काम जारी रखने का वादा किया.. उन्होंने यहां तक कह दिया कि नेता पहले वादा करके, कई साल बहाने बनाने के बाद नींद से नहीं जागते. किन्तु हमारा नारा है, पहले कर दो फिर बताओ की आपके लिए यह सब खुशियों का इंतजाम हमने किया है..


महीने के पहली तारीख को ही मंत्री जी ने ऐसा बॉम्ब फोड़ा था कि पुरा असेम्बली हिला हुआ था, उसी दिन शाम को आयकर विभाग वालों का छापा भी पड़ गया.. मंत्री जी के पास फाइल पहले से तैयार थी. कितना धन उन्होंने अपने जमा पूंजी से लगाई उसकी डिटेल, गुप्त दान के जरिए कितना पैसा आया और किन-किन उद्योगपियों ने मदद की सबका लेखा जोखा मिल गया..


अन्तिम सवाल उनका, इस पूरे फ्री सर्विस का मालिकाना हक किसके पास है.. तब उन्होंने एमजी ट्रस्ट के पेपर को थमाते हुए कहने लगे...


"अपने देश के छोटे से गांव की 2 बहने है जो पहले से अच्छा काम कर रही है, उन्ही एमजी ट्रस्ट को दिया गया है.. ये लोग 122 वृद्ध के रहने खाने और मेडिकल की सुविधा, बिना किसी से आर्थिक लाभ लिए पहले ही कर चुके है.."


आयकर वाले जब सवाल-जवाब कर रहे थे तब मंत्री जी ने पुरा लाइव आकर अपना साक्षात्कार दिया था.. 1 सितम्बर को मंत्री जी ने हिलाया और अपने भाषण के अंतिम चरण मे यह भी कह डाले,


"मै अपनी पार्टी और पार्टी मुखिया का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने हमेशा मुझे कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करते रहे... फ्री सर्विस शुरू करना एक बात होती है, लेकिन उसे जारी रखने के लिए जो आर्थिक तंगी साल दर साल झेलनी पड़ती है, इसलिए कोई चाहकर भी मुफ्त सेवा लगातार दे नहीं पता.. लेकिन वाणिज्य मेरा पसंदीदा विषय रहा है और हमने ऑटोनोमस सैलरी जेनरेट सिस्टम से आने वाले सालों में होने वाले खर्च का जरिया निकाल लिया है.. इसी के साथ वादा रहा की आने वाले समय में आपको मंत्री शयाम सुन्दर शुक्ला का सरप्राइज़ मिलता रहेगा"…


1 सितंबर को मंत्री शायम सुन्दर शुक्ला छाए रहे, जिसमे उन्होंने अपनी सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से जता दिए की उन्हे क्या चाहिए... वहीं 2 से 5 सितंबर तक खुश हुई जानता, पुरा देश के मीडिया के सामने खड़ा होकर कहने लगे, सरकार को श्याम प्रसाद शुक्ला सीखना चाहिए... कैसे मुफ्त सेवाएं दे और साल दर साल उसका मैंटेनेस होता रहे...


6 सितंबर 2015 को श्याम प्रसाद शुक्ला ने एक छोटा सा एनालिसिस मीटिंग रखा, जिसमे उसके सभी खास लोग सम्मिलित थे.. मंत्री जी आते ही तालियों से मेरा स्वागत किये.. बोलते वक्त जो उत्साह था, वो देखते बनता था..


सभी बातों पर चर्चा होने के बाद, शायम प्रसाद शुक्ला ने मुझे कहा... अगले पागलपन के लिए आवंटित राशि 1000 करोड़.. और इस बार पूरे पागलपन करने के 5 करोड़ तुम दोनों बहन को मेहनताना...


मै, आश्चर्य से उन्हे देखती... "सर इन पैसों का हिसाब देना पड़ता है... ऐसे ही नहीं उठाकर खर्च कर सकते है... ब्लैक मनी जमा करना बेहद आसान है, लेकिन उसे अपने ही देश में खर्च करना उतना ही मुश्किल..."


मंत्री:- तो फिर क्या करना चाहिए..


मै:- सितंबर चल रहा है, मै पहले पैसों का लेखा जोखा आराम से प्लान करूंगी. आने वाले महीना यानी फेस्टिवल सीजन. इस दीवाली मे इन पैसों से पूरे देश मे पटाखे जलाएंगे.. तब तक आप भी आराम कीजिए और मै तो वैसे भी आराम करूंगी..


मंत्री:- क्यों ?


मै:- क्योंकि आपके चहेते उमाशंकर जी मेरा हाथ मांगने जा रहे है, मेरे गांव..


जैसे ही ये बात मै बोली, मंत्री जी और बाकी के सारे स्टाफ बिल्कुल खुश हो गए.. वो अपने पीए के कान में कुछ बोले और पीए एक फ्लैट के पेपर और चाभी मेरे पास रखते.… "तुम दोनो का संयुक्त गिफ्ट..."


मै उस गिफ्ट को वापस करते... "मुझे नेशनल लाइब्रेरी के पास फ्लैट दो सर, मै कनॉट प्लेस में घर लेकर अपनी बेटी को मॉडल नहीं बनना चाहती और ना ही अपने बेटे को लाल बाल वाला जोकर..."

"नेशनल लाइब्रेरी के पास घर होना ही अपने आप में सुकून है.. और हां सभी कर्मचारी को आपने 3 बीएचके गिफ्ट किया है, और यहां हम दोनों का मिलाकर सिर्फ 1, 3 बीएचके... ये मेरे साथ नाइंसाफी क्यूं.."


श्याम प्रसाद शुक्ला ने अपने पीए से बोलकर कल ही मेरे पसंद की जगह पर 2 फ्लैट रजिस्ट्रेशन करवाने का आदेश देकर वहां का सभा स्थगित कर दिया और रवि उमा शंकर का गला दबोचते... "चल पार्टी दे पुजारी"…


मै रवि को आंख दिखती... "खबरदार जो मेरे सामने इनसे दिल्लगी की"..


रवि:- ऊप्स !!! मेनका मिश्रा फॉर्म मे लौटती..


मै:- नहीं किसी के सच्चे प्यार को मेहसूस करती...


रवि:- तुम मेरी रूड दोस्त.. और ये मेरा प्यारा सा दोस्त.. तुमसे कहना बेकार है.. उमाशंकर पार्टी दे..


मै:- जहां बोलोगे वहां मै पार्टी दे दूंगी लेकिन आज नहीं.. उमाशंकर जी को गांव से लौट आने दो...


वहीं से मै सबको अलविदा कहकर, उमाशंकर का हाथ थामि और हज़रत निज़ामद्दीन के ओर निकल गई.. रास्ते में हम दोनों एक दूसरे को ही देख रहे थे... "पिछले 2 हफ्तों में मेरी ज़िन्दगी तुमने पूरी बदल दी.. मुझे अब भी यकीन नहीं की तुम मेरे साथ हो"…


मै:- उमाशंकर जी शायद दिल में वो जज्बात नहीं जो किसी के लिए हुआ करते थे, लेकिन आप जब साथ होते हो, तो वो जज्बात भी याद नहीं आते.. किसी को तो उसकी सच्ची मोहब्बत मिले... आप बस अपने चेहरे पर ऐसे ही प्यारी मुस्कान बनाए रखना, मै ये खिला सा चेहरा देखकर जी लूंगी...


उमाशंकर:- तुम साथ हो तो मेरा गला काटकर नीचे गिर आए, तब भी मै मुस्कुराता ही रहूंगा..


मै:- प्यार जताने के लिए मरने से तुलना करना जरूरी है क्या, आपको तो अंत तक मेरे साथ रहना है..


बातों के दौरान हम जंक्शन पहुंच चुके थे.. मै पलटकर जैसे ही दरवाजा खोलने लगी, उमाशंकर ने मेरे हाथ को थाम लिया... हम दोनों की नजरे मिल रही थी, और मै उसके मासूम से चेहरे की अर्जी और दिल की भावना पढ़ सकती थी.. मै अपनी पलकें झुकाती हुई... "मै लड़की हूं उमाशंकर जी और अपनी मां की बेटी. गांव में पली बढ़ी.. हर बार मुझे आगे बढ़ने मे झिझक होगी"…


मेरी बात सुनकर उमा शंकर मुस्कुराकर मेरी ओर बढ़ा और मेरे ऊपर आकर मेरे चेहरे को देखने लगा। उसकी नजर पड़ते ही मेरी पलकें झुक गई.. वो कुछ पल मुझे निहारने के बाद, आहिस्ते से अपने होंठ से मेरे होंठ को स्पर्श करते हुए कार का दरवाजा खोला... "तुम पीछे मत आओ, वरना मै जा नहीं पाऊंगा"…


मै उसकी बात पर मौन रहकर बस "हां" में सर हिला दी.. और वो मेरी नजरो से ओझल होता गया.. उमाशंकर ओझल होता जा रहा था और मेरी आंखें डबडबा रही थी.. ना चाहते हुए भी कुछ यादें ताज़ा हो ही जाती है... और जब भी ऐसा होता, मै खुद को रोने से रोक नहीं पाती.. मुझे पता है, हर्ष जहां भी होगा, मुझे रुलाकर चैन से नहीं होगा...


2 दिन बाद उमाशंकर का कॉल आया, वो बता रहा था कि आज के सुबह 11 से पहले का अच्छा महुरत है, सुबह ही शादी का प्रस्ताव लेकर जाऊंगा... मैंने उन्हे बेस्ट ऑफ लक कही और कह दी की कोई समस्या हो तो मुझे कॉल कर लीजिएगा, घबराएं नहीं..


उमाशंकर भी कमाल की चीज थे, बोले "दुनिया में सिर्फ तुम ही मुझे घबराने पर मजबूर कर देती हो, बाकी कोई डारा नहीं सकता".. फोन रखने से पहले मैंने उन्हे बता दिया कि दोनो फ्लैट मिल गए है, और मेरे पसंदीदा लोकेशन पर मिले.... मंत्री जी काफी दिलदार निकले.. एक फ्लोर पर ससुराल तो दूसरे फ्लोर पर मायका बाना दिया.. मायका थोड़ा गरीब है क्योंकि बेटी का रिश्ता अपने से बड़े खानदान मे होगा ना इसलिए... मायका 2 बीएचके और ससुराल 3000 सक्वेयर फिट का डुप्लेक्स फ्लैट..


मंत्री जी की भावना सुनकर उमाशंकर हंसते हुए कहने लगा, कभी-कभी तो ये ओवर कर देते है.. फिर उन्हे बताया कि "मै खाली थी इसलिए आपके हिस्से की सुबह 8 से रात के 11 की ड्यूटी मैंने संभाल ली है.. आप अपने पूरे परिवार और रिश्तेदारों से सुकून से मिलिए, यहां के ऑफिस से आपको फोन नहीं जाएगा..."


मैंने जैसे ही यह साझा किया था, उमाशंकर झटका खा गया.. क्योंकि उसे भी पता था कि मै कितनी नफ़रत करती थी उस बोरिंग ऑफिस से.. कई बार उमाशंकर से, तो कई बार रवि से और अंत में मंत्री जी से भी तीखी बहस हो चुकी थी... वो लोग मुझे 5 घंटे के लिए ऑफिस मे आने की जिद करते रहे, और मै अपने हाथ सीधा खड़ा कर देती, आज 15 घंटे की ड्यूटी मे थी...


खैर मै जिस काम के लिए गई थी उसे धीरे-धीरे शुड्यूल कर रही थी.... हां इस चक्कर में ऑफिस के अंदर मंत्री जी और रवि के ताने जरूर झेल लेती.… "कहते रह गए नहीं आयी, आज होने वाले पति के लिए बिना पगार के काम कर रही..."


उनकी बात सुनकर मै मुस्कुराती हुई केवल इतना ही कहती, "पति के लिए नहीं करूंगी तो किसके लिए करूंगी.."


उमाशंकर की बात जब मंत्री जी से हुई और उन्होंने भी जब उमाशंकर को बोल दिया कि मेनका को ऑफिस में ही रहने दो और तुम परमानेंट छुट्टी पर जा सकते हो.. वो हंसते हुए फिर बोल दिए, "बहुत सालों बाद चिंतामुक्त लग रहा हूं.. मैं अक्टूबर मे ही मिलूंगा..."


शादी की बात करने गए मामले में, उमाशंकर अपनी मां के साथ मेरे शादी के प्रस्ताव के लिए पहुंचे थे.. जिसे मेरी मां ने शहर्ष स्वीकार करती हुई कह दी.. "शादी तो बिटिया की हम उसके सीए रिजल्ट बाद ही करेंगे, उसके बाद ही हम इस रिश्ते की बात को आगे बढ़ाएंगे"... मां को सुनने के बाद उमाशंकर, मां से कहने लगे.. 'मेनका ने पहले ही सब कुछ बता दिया था, बस आप सबकी हामी की दरकार थी.." हमारी शादी लगभग तय ही थी...


उधर उमाशंकर ने शादी की बात कर ली.. कई सालों बाद सुकून की छुट्टी पर थे और अपने परिवार के साथ वक्त बिता रहे थे.. लेकिन मै यहां... उफ्फ.… होने वाले पति का ऑफिस बहुत ज्यादा से भी कई गुना ज्यादा बोरिंग था.

2 हफ्ते में मै पूरी ऊब चुकी थी.. पिछले एक हफ्ते से तो इतनी हिम्मत नहीं बचती कि घर पहुंच पाऊं. पास मे ही 5 मिनट की दूरी पर लाइब्रेरी वाला फ्लैट था, वहीं जाकर सो जाती.. खा पीकर 12 बजे सोती और फिर सुबह 7 बजे उठकर ऑफिस के लिए तैयार होना...


मै तो अचंभे मे थी कि ये उमाशंकर इंसान ही है ना.. खैर 2 हफ्ते बीत चुके थे, शनिवार की शाम थी और कल रविवार को मै घोड़े बेचकर सोना चाहती थी..


ऑफिस से निकली तो थोड़ी मस्ती के मूड में थी.. मै साढ़े 11 बजे तक रवि के दरवाजे पर दस्तक दे रही थी. 2 बार बेल बजाई कोई रेस्पॉन्स ही नहीं.. मै निराश होकर जाने लगी तभी देखी तो फ्लैट का दरवाजा खुला हुआ था..


मै सोची शायद बाथरूम में है, इसलिए रेस्पॉन्स नहीं आया, और मै दरवाजा खोलकर अंदर गई. हॉल से आगे बढ़ी ही थी उसके बेडरूम की ओर, तभी अंदर के कमरे से अलग प्रकार की तेज आवाज आयी..


"कमीना कहीं का"…. मेरे लिए रुकना यहां उचित नहीं था इसलिए मै जाने लगी. मै मुड़ती उससे पहले ही वो पागल नंगे ही मतवाली चाल मे बाहर आया और अंदर तेजी से भागते हुए... "रुकना, जाना मत"..


मै गुस्से में वहां रुकी. 2 मिनट बाद एक 32-33 साल की औरत, लैगी टॉप मे वहां से मुंह छिपाकर तेजी से भागी.. उसके 2 मिनट बाद रवि जैसे ही आया, मेरे हाथ में मोबाइल था मै वही खींचकर दे मारी..


सुकून मिला निशाना सही लगा था, उसका नाक, और नाक से खून निकल आया.. "तुमने मुझे रोका क्यों है, मै जा रही हूं"..


रवि:- हर कोई अपनी सेक्स लाइफ जीता है पागल, मै कौन सा सड़को पर कुछ कर रहा था.. नाक तोड़ दी..


मै:- तुम्हारे साथ मेरी इज्जत को खतरा है, इसलिए जा रही थी.. गुड बाय..


रवि:- पागल अब मुझे गड़े मुर्दे उखाड़ने पर मजबूर मत करो.. एक तो नाक तोड़ दी, दूसरे किसी के घर के बेडरूम की बात को लेकर इतनी खफा हो.. तुम्हे तो उस बेचारी के दर्द का पता ही नहीं.. बेचारी का पति 4 साल से सऊदी में रहता है..

 

nain11ster

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Sarvpratham welcome back nain11ster bhai.
Khub surat parstuti. lekhani kamal ki hai lekin mera manana tha ki Menaka ka charector samay ke saath dire dhire mature hogi lekin mai shayad kathanak ko galat aank gaya. Menaka aur Nakul vastav mai genious hai aur is mayane mai aap ki ye story aapki anya story se milti julti hai.
Mai vastav mai aapke lekhani ka prashanshak hun.
Aap main lekhak hone ki sari khubiya hai. aage ke kisi story main mai chahunga ki aap general sadharn charector ke saath bhi story likhe.

Vastav mai jis taraha Menaka aur nakul ek dusare ko samajh rahe hai aur ek dusre ka support system hai vo dekha kar achchha laga. ye sambandh ab dhire dire chhote saharo main hi simit rah gaya hai.

Aapne jis taraha aapne girls charactor ko develop kiya hai uske liye SADHUVAAD...............................
Must appreciate...

Kabhi kabhi kahani ke bhav kuch aur hi hote hai jaise hum shurwat me padhte hain... unse bilkul alag...

Kahani anth tak me bahut kuch aur badli hogi .. storyline hi kuch aisi thi ... Khair agli baar kabhi likha to complete realistic story likhne ki kosis karunga filhaal ye ek kalpnik kahani hai
 

nain11ster

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so yeh surprised tha... kya baat hai menka har mein ek step aur aage jaa rahi hai... waise prashansa ki dabedar toh hai woh itni chhoti si umar mein itne bade bade kaam...
so admission ke liye abhi jana... well menka ki request par baaki to tour jaari rahenge.. Par yeh kya... oh ho.. oh ho...akhir Kar kulta upashana bol hi padi..
Oh toh uske sur mein sur milayi hawas ki pujaran Prachi ne bhi...
aur is kutte harsh ko dekho... harami nautanki kar ke aisa dikha raha hai... jaise ushe koi dilachaspee hi nahi menka ko leke..
baat yahi nahi ruki... woh ladki sabi uske sath close hona... yeh bhi planning ki hi hissa hai... taki menka lage ki woh harsh kitna loyal hai... dairy bhi khulla am chhod diya kamine ne... taaki usme likhe jhuthi baat menka padh ke impressed ho jaaye us kutte se..
lekin andar ki baat yeh hai yeh pura Saryanta is kamine family ne hi racha hai.. aur sabse bada kamina woh rajveer.. :D kamina ushe toh chance mile toh menka ki moushi ki upor hi chhad jaaye sare aam... :mad2:
Khair mujhe kya bhaad mein jaaye ye log...
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nain11ster ji :yourock: :yourock:

Hahahaha ... Haan bol hi diya Uapasna aur Prachi ne bhi dar rahi thi aapse lekin kya hi kar sakte hain bina bole kaam nahi banega.. bechari .. they were crying ki maine muh kyon khola :D

Gahri sajis manne to lage hai naina ji... Wo kahin South wali dengerous khiladi 2 to na dekh aaye hain ... Jahan Allu Arjun aise hi fansta hai home minister ki beti ko.. pata lagaege jara :laughing:

Sajis ka jald pata lagaya jaye jabtak main kaahani end karta hun :dwarf:
 
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