अगले दिन सुबह-सुबह सर पकड़े हुए वो जागी.. उन्हे बस रात का याद था कि मैंने उन्हे जबरदस्ती उठाकर खाना खिलाया था और दिन का वो टकिला का शॉट लेकर उन लड़कियों के बीच जाना...
उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन मार्च का महीना चल रहा था.. उन्हे पुरा फिजिकल स्टॉक मिलाकर पूरे ऑडिट का काम करवाना था.. मैंने उन्हे आराम करने बोली और उनके जगह मै चली गई...
मै मॉल पहुंचकर वहां के सुपरवाइजर और मुख्य मैनेजर से मिली... रिक्वायरमेंट की लिस्ट चेक करके मैंने सभी परचेसिंग को सीधा आधा कर दी और फिजिकल स्टॉक जो ले चुके थे वहां किसी एक प्रोडक्ट को उठाकर क्रॉस वेरिफिकेशन करवाने लगी...
सब सुनिश्चित करने के बाद मै ऑडिट रूम में जाकर फिर सारे पेपर को अकाउंटिंग स्टाफ को दे दी.. वो लोग अपना काम करने लगे और मै अपने समय से कोचिंग निकल गई, लौटकर भी सीधा मै मॉल ही चली गई...
ये मार्च महीना भी मेरे लिए खींचा हुआ सा लग रहा था.. क्योंकि 6 बजे लौटने के बाद, मै प्राची दीदी का हाल लेकर सीधा रजनीश भैया के काम मे लग जाती.. हमारे सहर के मॉल के भी ऑडिट का पेपर मेरे पास ही था...
रात के तकरीबन 8 बजे पता चला कि प्राची दीदी तेज बुखार से ग्रसित हो गई है.. वो ठंड के मारे कांप रही थी.. नौबत डॉक्टर के पास ले जाने की हो गई.. अगले 3-4 दिन तक उन्हे घर पर ही रहने दिया और मै शॉपिंग मॉल, कोचिंग और फिर रजनीश भैया..
पांचवा दिन रविवार का था और छठे दिन सोमवार को दीदी अपने मॉल गई... 8 बजे सुबह वो अपने रूटीन के हिसाब से गई लेकिन 10 बजे वो लौट आयी… आते ही चिल्लाना शुरू... "अकाउंट डिपार्टमेंट मे हंस्तछेप क्यों की, क्यों वहां के ऑडिटर के फाइनल फिगर को, इनकम टैक्स ऑफिस मे जमा नहीं की"..
आते ही वो मुझ पर चिल्लाना शुरू हो गई. गुस्से में पता नहीं क्या-क्या वो बोल गई, जबकि वो ये तक नहीं देख पाई की लाइन पर मै वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए किनसे बातें कर रही हूं...
उन्हे जो बोलना था वो बोलकर जब शांत हुई, तब मै उन्हे कहने लगी चुप-चाप बैठ जाओ और सुनो यहां क्या बातें हो रही है... मै रजनीश भैया को पिछले 2 साल का सरा डेटा भेज चुकी थी, उन्हे भी फाइनल बैलेंस शीट मे वही गड़बड़ी नजर आयी जो मुझे नजर आ रही थी.. या यूं कहे कि टैक्स चोरी करने के लिए जबरदस्ती कुछ जोड़ घटाव करके कहानी आगे बढ़ाई गई थी...
राजवीर अंकल के कहने पर प्राची दीदी इस बात के लिए राजी हो गई की मै जो कर रही हूं वो मुझे करने दिया जाए और कुछ फीस देकर किसी थर्ड पार्टी से क्रॉस वेरिफिकेशन ले लेना, जो ऑडिट सही हो उसे है फाइनल सबमिट करना..
6 दिन के समय में रजनीश भैया ने पुरा काम कर दिया.. जिसमे मैंने उनकी पूरी हेल्प की थी.. 25 मार्च को हमने अपना फाइल प्राची दीदी के हाथ में दे दिया..
28 मार्च को वो मुझे सुबह से ही सॉरी-सॉरी कहती हुई नजर आ रही थी और मै मुंह फुलाए.. क्योंकि ये सही समय था गुस्सा होने का... मै इतनी गुस्सा थी की पूरे एक हफ्ते उनसे बात नहीं कि... फिर जब प्राची दीदी ने बीच में नकुल को घसीटा तब जाकर मानी…
मार्च के महीने में तैयारी बिल्कुल ही धीमी हो गई थी और मुझे वो पुरा अप्रैल में कवर चाहिए था.. मै वर्मा सर से फोन करके बात की, उन्होंने मुझसे इतना ही कहा, "जो लड़की काम पुरा होने के बाद आराम करती थी, वो आज कह रही है एक महीना पीछे चली गई.. ऐसा नहीं हुआ है, सोच बदलो.."
"मेरे हिसाब से तुम जो 2 महीने आगे थी, उसका एक महीना घट गया, कोई बात नहीं अच्छे कामो के लिए घटा है वो एक महीना, क्योंकि सीए इंटरमीडिएट की पढ़ाई को तो पुरा प्रैक्टिकल कर चुकी हो तुम वो भी लगभग 6 महीने से, इसलिए जो बीत गया उसे मत पकड़ने की कोशिश करो, आने वाले समय में कितना कर सकती है वो देख लो.."
सर की बातों ने जैसे मुझे हौसला दिया हो.. मै अपने काम में लग चुकी थी.. तैयारी अपने जोरों पर और अंततः मई महीने का वो दिन मुझे याद है जब प्राची दीदी ने एग्जाम हॉल के बाहर छोड़ा और फिर पूरे एग्जाम वो मेरा इंतजार करती रही..
सभी एग्जाम जब समाप्त हुए तब मै एक लंबे हॉलिडे पीरियड में थी, जिसमे एग्जाम से लेकर रिजल्ट और रिजल्ट से लेकर एडमिशन के लिए डेट अनाउंस होना.. फिर उसके बाद काउंसिलिंग करवाकर एडमिशन लेना.. और वो एडमिशन के बाद पूरी काउंसिलिंग और एडमिशन क्लोज होने के बाद क्लास शुरू करना..
प्राची दीदी मुझसे पहले ही बोल चुकी थी कि इस बार वो हॉलिडे प्लान करेगी और क्या हॉलिडे प्लान किया था.. पहला एक शिफ्ट रिजल्ट निकलने के बाद काउंसिलिंग की डेट आने तक यूके और यूरोप घूमना.. और उसके बाद एडमिशन करवाकर क्लास शुरू होने से पहले तक गांव..
यूरोप का नाम सुनकर ही मेरी आंखें बड़ी हो गई.. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि मै क्या प्रतिक्रिया दूं.. जाने का मन तो मेरा भी था, लेकिन घरवाले मानते की नहीं इस बात की चिंता.. मै कुछ बोल ही नहीं पाई.. अभी तो एग्जाम देकर आयी थी और अभी ही...
फिर अचानक ही जैसे पुरा फ्लैट ही लोगों से भर गया हो.. सरप्राइज़ सरप्राइज़ चिल्लाते हुए मुझे सब घेर चुके थे.. उन्हे देखकर मेरा पूरा चेहरा ही खिल गया. मै तो अंदर से झूमने लगी थी...
मेरा पूरा खानदान ही यूके और यूरोप घूमने के लिए पहुंचा हुआ था... इस प्रकार के सरप्राइज़ की तो मैंने उम्मीद भी नहीं की थी... प्राची दीदी ने तो मासी और मौसा तक को नहीं छोड़ा था...
हां लेकिन इतने लोगों को देखकर मै तो यही भुल गई की मैंने पहना क्या हुआ है.. रूपा भाभी मुझे टोकती हुई कहने लगी... "बड़ी प्यारी लग रही है इन कपड़ों में".. धत तेरे की, मुझे याद ही नहीं रहा कि मै क्या पहनकर गई थी..