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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

Prime
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अध्याय 20 भाग:- 1





ना जाने किस दिशा ये ज़िन्दगी करवट ले रही थी, लेकिन जो भी हो रहा था अच्छा लग रहा था.. हर्ष सामाजिक हो रहा था, सुनकर मै कितनी खुश थी यह मेरी अंदर की भावना समझ रही थी, बाहर से अभी कोई साझेदार नहीं था जिससे साझा कर सकती.…


अगले दिन तकरीबन डेढ़ बजे मै अपने शहर में थी और शरारत अपने शीर्ष पर... जिस दरवाजे पर खड़ी थी वहां के बोर्ड पर लिखा था डीएम आवास… हालांकि मुक्ता दीदी बच गई, क्योंकि मैं तो जनवरी महीने में डीएम ऑफिस में घुसकर उन पर गुलाल उड़ाती… सोचा तो ऐसा ही थी, वो अलग बात है कि इतनी हिम्मत शायद ही कर पाती..


लेकिन मेरे लिए तो जैकपॉट लगा था, क्योंकि एसीपी आंनद बाबू अपना पाऊं तुड़वाकर घर में थे और मुक्ता दीदी डीएम आवास से ही सारा काम देख रही थी... मै और प्राची दीदी दोनो चली डीएम आवास… बिना किसी रोक टोक के दाखिल हुए... घर के मुख्य द्वार पर खड़ा दरवान कहने लगा.. "आप ऑफिस में बैठिए, मैडम अभी लंच कर रही है"..


कोई नया बहाली था. बाहर खड़े बॉडीगार्ड ने कहा जाने दो ये मैडम की बहने है...


वो गार्ड तो जिद करने लगा कि अंदर इन्फॉर्म करते है, लेकिन मै उसे धमकाती हुई, दबे पाऊं अंदर घुसी.. बाहर का हॉल खाली... "कहां अंदर जा रही है.. यहीं से आवाज़ लगाते है"…


मै:- अरे चुपचाप चलते है ना, जरूर बेडरूम में रोमांस जता रहे होंगे, वहीं गुलाल डाल देंगे उनके ऊपर...


प्राची दीदी:- तो क्या तू उन्हे शर्मिंदा करेगी, उनकी रास लीला देखकर


मै:- अरे जीजू का पाऊं टूटा है.. कौन सा शर्मिंदा होने वाला रोमांस करेंगे.. वैसे भी डीएम होकर लंच के बहाने घुसी है बेडरूम में, गलत है कि नहीं...


प्राची दीदी:- तू ना बहुत ही बदतमीज होती जा रही है.. चुपचाप बैठ यहीं..


मै हुंह करती वहीं सोफे पर बैठ गई और चिल्लाने लगी... "रोमांस खत्म हो जाए तो बाहर आ जाना... हम तबतक बैठे है"..


प्राची दीदी मुझे देखकर हंसती हुई... "तेरा ये झुंझलाया सा चेहरा.. बड़ा मज़ा आ रहा मुझे तो"..


"तो फिर ये लो मज़ा..."… कमर ने बांधी बैग में हाथ डालकर गुलाल निकली और उड़ा दी प्राची दीदी के मुंह पर... वो गुस्से से मेरे ओर दौरी.. इतने में मुक्ता दीदी बाहर आयी और भागी... "पागल लड़की, ठंड में कौन होली खेलता है"… मुक्ता दीदी अपनी बात कहते वापस बेडरूम में भागी...


मै मुक्ता दीदी के पीछे और प्राची दीदी मेरे पीछे... मुक्ता दीदी कमरे का दरवाजा लगाने में कामयाब होती, उससे पहले ही मैंने धराम से दरवाजा खोल दिया.. और वो पीछे हटने लगी.. इतने में ही प्राची दीदी मेरे पीछे पहुंची और कमर में हाथ डालकर मुझे पीछे से पकड़ ली... "मुक्ता दीदी, इसे रंग खेलने का बहुत मन करता है.. पोत दो रंग"…. प्राची दीदी कही..


मै:- अरे बहन हो कि भौजाई.. जो ऐसे पकड़म-पकड़ाई करके रंग पोतने का मन कर रहा...


आंनद जीजू:- वाउ.. ऐसा शानदार नजारा रोज-रोज देखने थोड़े ना मिलता है... कम ऑन.. आगे बढ़ो..


प्राची दीदी मुझे नीचे उतरकर आंनद जीजू को घूरती... "कितने मज़े कर रहे थे हम तीनों.. बेकार मे ही फोकस मे आ गए"….


फिर मंगवाया गया नेलपॉलिश.. हाथ और पाऊं के नाखून रंग गए.. लाल रंग पाऊं मे लगाया गया .. और गाल पर गुलाल.. उन्हे देखकर हम तीनों की हंसी ही नहीं रुक रही थी... एक ग्रुप फोटो के फ्रेम में हम चारो आए.. और मुक्ता दीदी ने वो सेल्फी अपने वॉल पर पोस्ट करती हुई नीचे लिखी... "जब आपका परिवार पास हो तो दुनिया का सबसे बेस्ट डेस्टिनेशन घर होता है..."…


ये भी ना फिर से भावुक हो गई... फिर हमे यह भी पता चला कि पाऊं तुड़वाने के दौरान ही मुक्ता दीदी ने अपना दूसरा बच्चा भी प्लान कर लिया था... मै और प्राची दीदी हंस हंस कर पागल होते हुए कहने लगे... "बेचारी मुक्ता दीदी … यहां भी पूरे मेहनत अकेले ही कि.. बच्चा प्लान करने से लेकर एक्साइटेड करने तक और जीजू बस चीत पतंग लेटे रहे"... बेचारी शर्म से पानी पानी हो गई...


बहुत मज़े किए हम सब वहां बैठकर, मुक्ता दीदी ने सभी अपॉइंटमेंट को डिपुटी डीएम के ऑफिस में ट्रांसफर करवा दिया.. बातों का दौर चलता रहा... रात हम दोनों वहीं रुके.. और मुक्ता दीदी को बोल दी किसी को बताने नहीं...


अगली सुबह 6 बजे के करीब मै गांव पहुंची... ठंड का वक्त था और मै पुरा मुंह कवर करके चुपके से गांव के रास्ते चल रही थी... पूरे गांव में जो 2-4 लोग मिले उन्हे नमस्ते करते आगे बढ़ती रही और वो सब कंफ्यूज होते रहे...


"आह अपने आंगन कि गली"… सुकून की श्वांस मै अंदर खींचती, तिराहे पर खड़े होकर मै अपनी गली को सुकून से देख रही थी... शायद ये गलियां कभी मेरे नसीब में नहीं थी.. जब छोटी थी तो खेल नहीं पाई और जब बड़ी हुई तो यहां रह नहीं पाती...


मै सुकून से कुछ पल देखती रही, तभी पीछे कंधे पर हाथ परा… "कौन हो तुम, और किसके यहां जाना है"… मेरे पापा थे जो मुझे पहचान नहीं पाए... मै पहले सोची पाऊं छु लूं, लेकिन दिमाग में शरारत सूझी और उनके हाथ में जो उनका बैग हमेशा रहता है, उसे छीनकर मै घर के ओर ही भागने लगी... पापा भी चोर-चोर चिल्लाते मेरे पीछे भागे...


मै भागती हुई आंगन में दाखिल हुई और पीछे से पापा का हल्ला सुनकर मेरे गली के लोग भी घर में.. सबने मेरा रास्ता ब्लॉक कर दिया था.. गांव के लोग मोटी बुद्धि... सब झपटे मारने के लिए… "अरे रुक जाओ.. चोर की जान नहीं होती क्या… सब मिलकर मार ही डालोगे"…


मेरी आवाज़ सुनकर पापा ने सबको रोका, इधर मेरा पूरा परिवार जमा हो गया था... कोहरे घने ठंड के माहौल में मैंने सबको रजाई से बाहर निकालकर अपने घर में जमा करवा दिया... कहानी यहीं थोड़े ना खत्म हुई, जिस जिस ने सुना कि अनूप मिश्रा के घर चोर पकड़ी गई है.. लड़की चोर देखने की जिज्ञासा से गांव वाले जुटने लगे..


और ये मेरी मां थी या जल्लाद पता नहीं... 8 महीने बाद लौट रही थी... उससे पहले किसी तरह का कोई कॉन्टैक्ट नहीं, फिर भी पूरे पंचायत को चाय बनाकर पिलाने के काम पर लगा दिया... मुझे तो कभी-कभी शक होता है मै इन्हीं की बेटी हूं या बेटी की इक्छा मे कहीं से उठा लाए थे.. निष्ठुर लोग.. इस कनिका मिश्रा के पति को 10-20 मीटर दौरा क्या दी, अपने पति को परेशान करने का अच्छा बदला ली मुझसे...


प्यार तो देखो मेरी मां का.. कहती है, रूपा, कुणाल और किशोर के पास है... अब तू किचेन मे है तो नाश्ता भी पका ही ले..


मै झुंझलाते हुए... "ओय कनिका मिश्रा, पति को 20 मीटर दौरा क्या दी, मुझ पर तो अत्याचार पर अत्याचार की जा रही हो"….


मां:- बेटी तूने ठीक से देखा नहीं... पीछे से तुम्हारी मासी भी खड़ी थी भिड़ मे और वो तेरे ही कमरे में चली गई तेरा ड्रामा देखकर...


मै:- आप झूठ बोल रही हो ना...


मां:- नाना बेटा.. झूट बोलना मेरे मां और बाबूजी ने तो कभी सिखाया ही नहीं..


मै:- तो क्या मेरे दादा-दादी ने मेरे पिताजी को झूठ बोलना सिखाया था... दादी ने ठीक से शासन नहीं किया ना इसलिए आपके इतने पर निकले हुए है... पापा पल्लू मे छिप जाओ अपने बीवी के, जैसे मेरे भाई रहते है.. सुन भी रहे हो दादा दादी को क्या कह दिया मां ने.. मै तो इस घर में एक मिनट भी नहीं रुक सकती...


"क्यों पंख निकल आए हैं या पाऊं मे पहिए बांध लिए है"… मासी गुस्से में तमतमाई हुई पहुंची... मै उन्हे देखकर उनके पास जाकर गले लगाने की कोशिश की लेकिन अपने हाथ आगे बढ़ाती… "कल कहां थी"..


मै:- मुक्ता दीदी के पास थी...


मासी:- क्यों ये बात हमे कल बताकर भी जा सकती थी, या दिल्ली से लौटकर पहले यहां आती फिर पूछकर जाती..


मै:- वो मुझे सुबह-सुबह सबको सरप्राइज़ करना था इसलिए..


मासी:- मै तुझे रिस्पांसिबल समझती थी, लेकिन तेरा बचपना अभी तक गया नहीं है... मुझे लगा मैक्स और गौरी तुम्हारे जिम्मे दिल्ली भेजूंगी, लेकिन अब लग रहा है कि पहले साल भर तेरे साथ दिल्ली में रुककर तुम्हे जिम्मेदार बना दूं..


मै:- सॉरी मासी, जिंदगी में ये पहली बार था, जो मै बिना बताए वहां रुक गई...


मासी:- तू रूपाली के यहां जा, अनुराधा के यहां जा, या मुक्ता के यहां... बहन से मिलने और उसके यहां 1-2 दिन रुकने के लिए तुझे कौन मना करेगा.. लेकिन सूचना तो होनी चाहिए थी.. मुझे वाकई ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा…


मनीष भैया:- बस मासी.. पापा और मुझे पता था और मेनका हम दोनों को बता चुकी थी.…


मनीष भैया ने जैसे ही सच बताया, आव मेरी मासी, उसंका चेहरा रोने जैसा हो गया... बताया था ना मेरी मासी एंटीक पीस है.…. मुझे डांटते हुए उनका अंदर से कलेजा कांपता है... डांटने के बाद अकेले में उदास बैठी रहेगी, लेकिन जहां भी उन्हे गलत दिखेगा वो डांटने से पीछे नहीं हटती...


आज कुछ ज्यादा ही मुझे बोल दी थी और जब पता चला कि मै उनकी गलती पर पर्दा डालने के लिए चुप रह गई और सच नहीं बताई, तो उनका रोना रुक ही नहीं रहा था... बहुत कोशिश के बाद शांत हुई और बहुत ज्यादा मेहनत के बाद वो खुलकर हंसी...


मै और मासी... उस पूरे दिन हम दोनों ने केवल और केवल बातें की.. रात का वक्त था, और मुझे आए सुबह से रात हो गयी थी, लेकिन कुत्ता बस शक्ल दिखाकर भाग गया था..."


रात के 8 बज रहे थे.. ठंड का समय रात के 8, गांव में रात के 2 बजे के बराबर होता है... मै दरवाजा पिटी, आशा भाभी झुंझलाकर दरवाजा खोलती... "बेटा, क्यों रात में अब तुम दोनो हल्ला गुल्ला करोगे.. एक काम कर ना, सुबह आना और उसके बिस्तर पर पानी डाल देना"..


मै:- अच्छा ठीक है भाभी, आप मुझे सुबह जगा देना..


भाभी:- हां ठीक है...


मै वहां लौटने लगी और भाभी दरवाजा लगाने लगी.. मै अपने घर के दरवाजे के पास पहुंची ही थी कि आशा भाभी मुझे आवाज लगाई.. "हां भाभी" कहकर मै उनके पास पहुंची..


भाभी मेरे सर पर हाथ फेरकर मेरा माथा चूमती.. "माफ करना अभी-अभी आंख लगी थी, तो थोड़ा चिढ़ गई... आज तो तू अपनी मासी से ही मिली.. हम सबको भुल ही गई"..


मै:- भाभी, हॉल में बिछावन लगाओ.. रात में बतियाते सोएंगे..


आशा भाभी खुश होती... "तू सच कह रही है"..


मै, भाभी के दोनो गाल खींचती... "हां भाभी सच्ची"…


मै मां को बताकर चली आयी… भाभी के पास बिस्तर लगाकर मै सो गई... हम दोनों बात करने लगे तभी 9 बजे के करीब मेरा फोन बजने लगा... "उठा ले फोन"..


मै फोन उठाकर... "कॉल यू टॉमोरो, राइड नऊ आई एम् विथ माय मॉम"… कॉल हर्ष का था, और मैंने उसे समझा दिया... उफ्फ ये घर के लोगों का डर इश्क मे क्या होता है.. एक फोन की घंटी समझा गई…


मै जैसे ही फोन काटी… "ये सजरिटो (लवर का हंगरियन रूपांतरण Szereto)"… कैसा नाम है, और उसके कॉल आने से इतनी घबराई क्यों है"..


मै:- जर्मनी की लड़की है भाभी, वो मैंने इसे वादा किया था कि एग्जाम बाद गांव घूमाने लाऊंगी… आप सबको सरप्राइज़ करने की इतनी हड़बड़ी थी कि उसका ख्याल ही दिमाग में नहीं आया...


भाभी:- कमाल है, 5 साल पहले रखी चीज जिसके ध्यान में हो... एक अनजान रास्ते से चलते उस रास्ते में पड़ने वाली कौन सी चीज कहां है, झलकियों मे पाहचानने वाली लड़की अपना वादा भुल गई... मेनका तू झूठ बोल रही है ना…


मै:- ये कैसी बात कर रही हो भाभी... बात करवाऊं क्या?


भाभी:- हां बात करवा.. वरना मन में सवाल उठते रहेंगे...


"ओवर स्मार्ट मेनका"… खुद पर ही व्यंग करती, जी किया खुद का ही गला दबा दूं... हर्ष को कॉल लगाई... "हेल्लो सजरिटो माय मॉम वांट टू टॉक एंड एक्सप्रेस हर अपॉलॉजी"..


मैंने फोन भाभी को पकड़ा दी और भाभी टूटी-फूटी इंगलिश मे कुछ देर बात करने के बाद... "बेचारी को किसी स्पीच थेरेपी वाले के पास ले जाना.. अब तक तुतलाती है.. तू कैसे समझ जाती है उसकी बात"…


मै:- उसे बोलने कहां देती हूं भाभी...


मेरी इस बात को सुनकर भाभी जोड़-जोड़ से हंसने लगी.. उनके साथ मै भी हंसने लगी... सोते-सोते हमे रात के 2 बज गए. अगली सुबह प्यारा घर का माहौल और मेरी मां का मेरा कान पकड़कर आलसी कहना... वक्त भले ही मैंने 8 महीने बीता दिए बिना मिले, बिना बात किए, लेकिन कुछ भी तो नहीं बदला था.. लगा ही नहीं की मै कई दिनों बाद मिल रही हूं.…
 

nain11ster

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अध्याय 20 भाग:- 2





घर पर जब थी, कैसे वक्त बीत जाता पता ही नहीं चलता... 3-4 दिन हो गए थे... भरी दोपहरी थी और मै गांव भ्रमण पर निकली थी... आराम से चलती हुई मुखिया चाचा के घर के रास्ते पर थी... तभी उधर से हर्ष का कॉल आ गया...


उसका कॉल देखते ही... "आह् ! लगता है मैं अपना संसार बसने से पहले उजाड़ लूंगी"… सोचती हुई मै जैसे ही कॉल उठाई... "कोई मसला तो नहीं हुआ, 4 दिनों से मै घबराया-घबराया घूम रहा हूं"…


मै:- तो 4 दिन क्या, 13 दिन बाद फोन करते, पता करने तेहरवी तो नहीं चल रही...


हर्ष:- सॉरी, उस रात तुमसे बात करने की इतनी तेज इक्छा हो रही थी कि मैंने कॉल लगा दिया... तुम्हे पता नहीं उसके बाद से केवल पचता ही रहा था...


मै:- मुझे लगा मुझसे बात करने के लिए तरपे होगे, यहां तो गिल्ट के कारण याद किया जा रहा था...


हर्ष:- ये तरप क्या होता है मेमनी, वो भी दिखाने की चीज है क्या?


मै:- ओह अच्छा, फिर क्या दिखाने की चीज है..


हर्ष:- देखो तुम्हारे लिए तो तरप लिया अब फोन पर ये बताऊं की तुम्हारे बिना क्या हाल था, या तुमसे बात करना कितना एक्साइटिंग लग रहा है वो जताऊं...


मै:- ओह हो … काफी उच्च विचार है हर्ष बाबू... तुम तो बात करने की एक्साइटमेंट जाता रहे, लेकिन वो फील कहां आ रहा...


हर्ष:- अच्छा तुम्हे फोन पर फील भी चाहिए... ठीक है तुम्हे फील करवाता हूं... एक बार की बात है मेनका नाम कि लड़की बिस्तर पर लेती थी, पीछे से टॉप फटा था और सामने से श्वांस चढ़ी...


मै:- बस बस हो गया फील.. बुद्धू.. तुम्हारे टेक्स्ट बुक मे ये आ गया क्या जो अब सिचुएशन एनालाइज करके मुझे बता रहे की तुम उस वक्त कितने बड़े बुद्धू थे..


हर्ष:- कौन सा पहला मौका था मेमनी, प्यार जब परवान चढ़ेगी तो फिर मौके को भी मौका ढूंढना होगा हमे कैसे अलग करे…


मै:- प्यार परवान चढ़ेगी तो उतरेगा भी... तुम ही तो कहते हो ना, जिसका उत्थान होता है उसका पतन भी निश्चित है..


हर्ष:- मै बेवकूफी करूं तो थप्पड़ मार लेना.. मै समझ जाऊंगा की मै समझाने से भी नहीं समझा, फिर 2-4 घंटे छोड़ देना... फिर कोई शिकायत नहीं होगी... और हां सॉरी फिर बकवास हो गई. ये परवान चढ़ना और उतरना सब बकवास है... बस सिम्पल मै तुम और अपनो के साथ बचपना...


मै:- हर्ष मै कल कॉल करती हूं...


हर्ष:- हां लेकिन इंतजार रहेगा...


मै, थोड़ी संजीदा होती... "किस बात का हर्ष"


हर्ष:- बढ़ी धड़कने काबू करके काम करो. जब तुम समझ जाओगी की मै किस बात का इंतजार कर रहा, तो मुझे तुम्हे बताने की जरूरत ही नहीं... और यदि नहीं समझ पाई की मै किस बात के इंतजार मे हूं, फिर बताने का कोई मतलब नहीं... और..


मै:- हम्मम ! और क्या हर्ष..


हर्ष:- और मै जानता हूं कि तुम शुरू से जानती हो मै किस बात के इंतजार मे हूं...


मै:- बुद्धू, तुम बेकार मे इंतजार कर रहे हो.. रात भर सोचना.. समझ जाओगे... और नहीं समझ पाए तो मुझे थोड़ा सा दर्द होगा, लेकिन कोई नहीं मै हूं ना, समझा दूंगी.. अब रखती हूं..


जैसे ही कॉल डिस्कनेक्ट हुआ... मै मुस्कुराती हुई आगे बढ़ने लगी... "क्या हुआ मेनका, चेहरे पर खिली हुई हंसी, ये उछल कूद वाली खिली सी चाल.... फोन पर ननदोई था क्या?"..


गांव की अगले टोल की एक भाभी मुझे टोकती हुई पूछने लगी…. मै भी उन्हे आड़े हाथ लेते... "क्यों भाभी जलन तो नहीं हो रही की मेनका के पास लड़को के कॉल आ रहे और कोई आपको देखने वाला नहीं... चौपाल पर मेरे भाइयों में से किसी ने आपको टोका नहीं तो उसका गुस्सा मुझ पर कहे उतार रही"…


भाभी:- तू काहे चिंता करती है.. मुझे देखने के लिए मेरे मां पिताजी ने तेरे भाई को ढूंढ दिया है.. उसके लिए मै सदा जवान रहूंगी...


मै:- हिहिहिहिहि... तो इधर आओ ना हमरी जवान नखरिली भौजी.. एक सेल्फी हमरे साथ भी ले लो..


भाभी:- नाना तू वो फेसबुक पर डाल देगी.. अभी मैं बेकार दिख रही..


गांव के एक भैया... "काहे भौजी अभी तो कहत रहलू अमरनाथ भैया के लिए हमेशा जवान रहबू... त इ फेसबुक पर मेकअप वाला फोटो अपन पुराण यार खातिर ला लगैबू की.. देख हम अभियो जवान छी"…


"हाहाहाहाहा.… खूब ताना बाना चला.. फिर सेल्फी का दौर चला, कुछ को जानती थी उनके साथ सेल्फी ली... कुछ को नहीं जानती थी तो उसके साथ परिचय हुआ.. और एक चिपकू से तो दूर ही रही... याद है वो छठ का समय और वो घोंचू दीपक..."


हे भगवान दीपक से याद आया दीप्ति की... 4 दिन हुए गांव मे, उससे मिलने नहीं गई... उल्टी खोपड़ी है वो.. सोचकर बैठी होगी की... "अब मै सेलेब्रिटी हो गई हूं तो उससे अच्छे से नहीं मिलूंगी... कहीं मेरा मिलना पसंद ना आया तो.." नाना.. ऐसे नहीं उसके लिए प्यारी सी गिफ्ट लेकर जाऊंगी खुश हो जाएगी...


बस इतना सोचती हुई मै आगे बढ़ गई वरुण भैया के घर... वरुण भैया नहीं थे, पटना गए हुए थे.. लेकिन जब उनको पता चला कि मै आयी हूं... उन्होंने पहले पूछा कितने दिन हूं फिर कहने लगे आराम से काम निपटाकर आता हूं..


बहरहाल मै अपनी एमजी हेक्टर निकाली और चल दी भाभी को लेकर शॉपिंग करने… बहुत दिन बाद मै भाभी और बच्चों के साथ थी, सबने पुरा दिन खूब एन्जॉय किया.. मै दीप्ति के गिफ्ट को लेकर थोड़ी कंफ्यूज जरूर हुई लेकिन फिर मैंने उसके लिए एक प्यारी सी रागा, टाइटन की एक घड़ी सेलेक्ट कर ली...


जब मै घड़ी ले रही थी तब मैंने साक्षी और केशव (बड़ी भाभी के बच्चे) की नजर देखी, मै बस मुस्कुराई और जब वो दोनो भाभी के पास थे उनके लिए भी घड़ी ले ली... अब जब लेने लगी तो फिर नकुल की भी याद आ गई.. और फिर दोनो भाई.. फिर पापा और मौसा भी अछूता क्यों रहते...


गई थी दीप्ति के लिए गिफ्ट लेने फिर चुपके से सब के लिए कुछ ना कुछ ले ही ली... शाम ज्यादा हो गई थी इसलिए मै दीप्ति के पास नहीं गई... बाकी सबको उनका-उनका गिफ्ट दे दिया...


मुद्दा यह नहीं कि आप क्या और कितने का गिफ्ट दे रहे है.. पर रिटर्न मे मिलने वाले उस मुस्कान की तुलना नहीं कर सकते.….


रात के वक्त मुझे कुछ शरारत सूझी... मैंने अपना फेसबुक खोला और जितने लोगों ने मुझे टैग करके आज मेरी तस्वीर पोस्ट की थी, उनके पोस्ट पर जाकर मैंने कमेंट किया और अपने लंबे चौड़े कमेंट लिख डाले..


फ्रेंड रिक्वेस्ट मे गई तो थी अपने गांव के लोगो को ढूंढने लेकिन पेंडिंग रिक्वेस्ट इतनी थी कि फिर स्क्रॉल करने का मन ही नहीं किया... हां बस दीप्ति के सारे पोस्ट पर कमेंट नहीं किया.. लेकिन पुरा पढ़े जरूर थे...


उसने अपनी और मेरी कई सारी साथ की फोटो शेयर की थी, जिसके पब्लिक रिएक्शन मै देख रही थी.. वो भी मै नहीं देखती लेकिन अजीब ये था कि उसने जितनी भी फोटो पोस्ट की सब पर 2,3 लड़के-लड़कियों ने कमेंट कर डाला था कि दीप्ति ने एडिट करके लगाई है फोटो.. फेकू कहीं की.. मुझे अंदर तक ये बात चुभ गई..


खैर मुझे दीप्ति भी ऑनलाइन ही दिख रही थी, लेकिन मुझे जो शरारत करनी थी वो मैंने कर दी थी... मै सुबह के काम निपटाकर तकरीबन 10 बजे पहुंची उसके यहां.. दीप्ति ने मुझे जैसे ही देखा... "मां बड़े-बड़े लोग आए है अपने यहां, आरती की थाल ले आओ.."


मै:- कौन आया है दीप्ति, कहीं कोई लड़के वाले तो नहीं आए..


दीप्ति:- वो तो तेरे लिए आएंगे ना... सेलेब्रिटी जो हो गई है.. नए-नए लोगों से जान पहचान बढ़ा रही है... और क्या लिखती है... अरे मै तो कुछ भी नहीं जिन्होंने मेरी तस्वीर पोस्ट की है, उसने मुझे मैथमेटिक्स सिखाया.. अर्थमेटिक सिखाया… गांव के सभी लोग बहुत कॉपरेटिव है.. सिवाय दीप्ति के जिसके पोस्ट पर कोई कॉमेंट नहीं की...


मै:- जो सच था वहीं लिखी ना.. चाची कुछ बोलती क्यों नहीं...


दीप्ति की मां:- मुझे मोबाइल चलाने आता है जो मै देखूं या समझूं की क्या करते हो तुम लोग उस फेसबुक पर.. एक बार तो ये किसी लड़के की तस्वीर देख रही थी.. अरे वही भैंसे का बच्चा, राजेंद्र का बेटा पंकज था.. अब उसकी तस्वीर देखकर ये हंसे जाए और मै इसे मारने के लिए उठ गई...


मै:- लेकिन पंकज की तस्वीर देखकर दीप्ति काहे हंसी.. और उसके लिए आप क्यों मारने जा रही थी..


चाची:- उस करिए ने बिल्कुल अपनी तस्वीर दूध सी गोरी करके लगा रखी थी.. और मुझे लगा किसी लड़के की तस्वीर देखकर हंस रही...


उनकी बात करने का अंदाज ऐसा था कि हम दोनों ही हंसने लगे... मै दीप्ति के गले लगती कहने लगी, "खबरी लाल तुझे जब पता था कि मै आ गई तो तू आयी क्यों नहीं... तुझे क्या लगा मै तुझ से मिलूंगी नहीं... उसी का बदला लिया कल रात… और ये तेरे लिए... (गिफ्ट देती हुई) देखकर बता पसंद आया कि नहीं, वरना चलकर बदल लूंगी..."


गिफ्ट देखकर क्या खिला सा चेहरा था दीप्ति का... देखकर ही पैसे वसूल हो गए... फिर मै उससे पूछने लगी कि ये अंकिता कौन है जो हर तस्वीर मे कहती है कि तूने मेरी फेक फोटो लगाई है..


दीप्ति चिढ़ती हुई कहने लगी... "कॉलेज में मेरे साथ है, बाहर से आयी है और टिप टॉप मे रहती है तो खुद को ज्यादा स्मार्ट समझती है"…


मै:- और उसी के वजह से तू कॉलेज नहीं जा रही...


दीप्ति:- तूने भी वो पोस्ट पढ़ी क्या..


मै:- तू एक बार फोन नहीं कर सकती थी झल्ली.. उसकी तो मैं बैंड बजा दूंगी... पोल डालकर तुझे झूठी का टैग लगवाया है ना उसने... आज उसका टैगलाइन हम फिक्स करेंगे.. तू कॉलेज चल.. आज आर या पार..


दीप्ति:- रहने दे छोड़.. तू इतने दिन बाद आयी है क्या करेगी उस गंदगी मे जाकर...


"अरे बस मज़े करेंगे दीप्ति"… इतना कहकर मैं एफबी पर दीप्ति मे साथ लाइव आयी.. खुल्ला अनाउंस कर दिया कि तुमलोग जो मेरी बहन को फेकू कह रहे हो, वो मुझे तब से जानती है जब से मै कोई टॉपर नहीं थी और आज भी मै एक आम सी लड़की ही हूं... बस मेरे लिए 4 लाइन क्या बोल दी मेरी बहन ने, तुम सब फेकू कहने लगे..."

"मै आ रही हूं दीप्ति के साथ कॉलेज, जिसे भी कन्फर्म करना हो आ जाना... और हां एक जो लड़की है अंकिता उससे मै इतना ही कहूंगी... बहनजी आइना देखकर निकला करो... इतनी ज्यादा फेक प्रोफाइल तो एंगल और सोना प्रोफाइल वाले भी नहीं करते..."


दीप्ति को लेकर मै और नकुल दोनो कॉलेज पहुंच चुके थे... वाह रे ये ऑनलाइन वाले.. कॉलेज में तो सच मे कन्फर्म करने वालों की भिड़ लगी थी और उस भिड़ ने जो ही हूटिंग की उस लड़की अंकिता के लिए.. दीप्ति पूरे खुश हो गई….


बाद में तो दीप्ति ने जैसे दिल जीत लिया हो… अंकिता और उसके भाई को उसने ट्रीट भी दिया यह कहते हुए "कि तुमने मेरा मज़ाक बनाया और मेनका को गुस्सा आ गया.. उसने तुम्हारा मज़ाक बनाया... बात बराबर हो गई..."


चलो यह भी अच्छा ही रहा... डेढ़ बजे वहां से हम तीनो लौटे... और मै घर के लोगों में व्यस्त हो गई... रात को जब फुर्सत मे अकेली हुई और मोबाइल पर ध्यान दिया तो पता चला 12 मिस कॉल और 100 से ज्यादा टेक्स्ट थे... इनमे से 1 कॉल हर्ष का था और सारे संदेश उसी ने भेजे थे...


गलती से जो सुबह मोबाइल साइलेंट करके बैग में डाली थी सो अभी निकाला था... मैंने हर्ष के हर टेक्स्ट को पहले पढ़ी... आह क्या लिखता है हर्ष.. पढ़कर ही मन झूमने लगा..


मैंने बड़ी बड़ी शॉकिंग इमोजी के साथ हर्ष को संदेश भेज दी... "इतने सारे मैसेज.… आज कोई काम नहीं था क्या"…


हर्ष:- काम कैसे नहीं था... पूरी दुनिया के साथ सोशल हो गया 8 महीने में... अब जो मेरी दुनिया है उसके साथ सोशल हो रहा हूं...
 

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259
अध्याय 20 भाग:- 3





मै:- और यह सोशल होने का काम खत्म करने के बाद..


हर्ष:- मतलब..


मै:- बुद्धू.. मतलब मै तुम्हारे साथ सोशल हो गई उसके बाद क्या...


हर्ष:- वही तो समझ में नहीं आया, तुम ऐसा पूछ क्यों रही हो...


मै:- अब जब पूछ ही ली तो जवाब भी दे ही दीजिए..


हर्ष:- डफु (डफर का छोटा नाम) सोशल होना तो पूरी उम्र का प्रोसेस है.. ये एक ऐसा काम है जिसके लिए मैंने पूरे उम्र का टाइम शेड्यूल किया है...


मै:- बातें बहुत प्यारी करने लग गए हो...


हर्ष:- ऐसे मैसेज मत करो जिसका रिप्लाइ मे मुझे सोचना परे.. मै चाहता हूं तुमसे सारी उम्र दिल खोल के बिना सोचे हर बात कह दूं... कभी दिल में ये ख्याल ना आए की तुमसे बात करने के लिए सोचना परे..


मै:- अच्छा बचू और इसकी आड़ मे तुम मुझे ब्रेकअप भी कह दो.. खुद फ्री बर्ड भी बन जाओ.. और समझदारी दिखाना तो पूरे मेरे हिस्से में आए...


हर्ष:- हाहाहाहाहा... नहीं समझदारी के साथ गुस्सा भी दिखा लेना.. थप्पड़ भी लगा देना...


मै:- भाई को थप्पड़ मरो तो प्यार होता है.. लेकिन तुम्हे थप्पड़ मारूंगी तो बेइज्जती होगी...


हर्ष:- अकेले मे उतार लेना इज्जत कौन देखने आएगा..


मै:- फालतू की बकवास ना करो इतनी रात में.. अच्छा सुनो, ये सारे टेक्स्ट डिलीट कर देना..


हर्ष:- सो तो मै कर लूंगा लेकिन टेक्स्ट थोड़ा बोरिंग नहीं हो रहा... टाइप करते करते कलाई दुखने लगी...


मै:- हां देख रही हूं... मेरे लिए थोड़ा कष्ट भी नहीं उठा सकते...


हर्ष:- मुझे अपने कष्ट की चिंता नहीं... बस तुम्हारा ख्याल आता है तो दिल कांप जाता है...


मै:- पागल, ऐसा क्या हो गया जो तुम्हारा दिल कांप गया था...


हर्ष:- ट्रेन में हम साथ थे और कितनी जल्दी तुम दोनो बुआ भतीजे ने उस खडूस प्रोफेसर को भी अपने परिवार का हिस्सा बना लिया... मुझे लगा मेरा होने या न होने से तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ेगा... लेकिन तुम्हारे ना होने से...


मै:- तुम ऐसी बातें करोगे तो मै जा रही हूं... कल तो दिमाग कितना सही चल रहा था... कितना सही कहे थे कुछ समय मिलता है, उसमे तड़प दिखाऊं या चाहत... अब क्या हो गया है...


हर्ष:- क्योंकि पहले मुझे ही लगा था कि केवल मै तड़पा हूं.. लेकिन तुम्हारा 8 महीने का खुद को बंद कर लेना, उस कहानी को बयान कर गया, जहां मुझे एहसास हुआ कि तुम्हे मेरा ख्याल ना आए और खुद को मुझसे दूर रख सको, इसके लिए 8 मंथ घर से निकली ही नहीं...


मै:- पागल हो क्या... मै बस अपने सेलेब्स को कंप्लीट कर रही थी... क्यों घर में रहकर तुम्हारी याद नहीं आती, या किसी बाबा का ताबीज बांधे थी घर के द्वार पर..


हर्ष:- मै वर्मा सर और रजनीश भैया से मिला था... उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा मेनका की तो सीए फाइनल तक कि तैयारी हो चुकी है... इंस्टीट्यूट वाले अभी उसका सीए फाइनल एग्जाम ले, तो एक साथ पूरे पेपर निकाल ले..


मै:- ये उनका केवल प्यार बोल रहा है..


हर्ष:- बात इतनी भी साधारण नहीं... कल जब तुमने कहा ना की मेरा इंतजार बेकार है.. तब से सोच रहा था.. फिर मैंने उस दिन कि कहानी को तुम्हारे नजरिए से सोचा.. पता चला तुमने तो कभी ब्रेकअप जैसा ना तो मुझसे कहा और ना ही तुम्हारे अंदर के इमोशन ने कभी ब्रेकअप जैसा जाहिर किया.. तुम तो बस मुझे सोचने का समय दे रही थी. चीजों को खुद से समझने का, ना की दूसरों की तरह बैठकर क्या करना चाहिए और क्या नहीं उस पर लेक्चर...


मै:- इतना लंबा टाइप कर रहे हो मुझे उबासी आ रही है.. मै सोने जा रही, कल बात करूंगी.. मै टेक्स्ट डिलीट कर रही हूं.. कल आराम से फोन पर समझा देना...


हर्ष:- अपनी जिंदगी में मुझे संजोए रखने का शुक्रिया... इतने लोगों में मै भी तुम्हारे लिए खास हूं.. साला ये फीलिंग ही कुछ और है... सोचता हूं कि कैसे मुझे खुद से सब कुछ समझने के लिए.. और खुद को मुझसे दूर रखने के लिए बिना किसी से बात किए तुमने 8 महीने निकाल दिए, तो मेरे आशु ही नहीं रुकते.. सो जाओ.. कल बात करेंगे.. लेकिन इसपर नहीं...


कुछ अनकही बातें जिस विषय में मै अपने आप से भी चर्चा करना उचित नहीं समझी, उसे हर्ष ने भांप लिया... हां ये सही है कि यदि मै सबसे बात करती रही और हर्ष के ख्याल आते रहे तो मै खुद को रोक नहीं पाती... उससे बात कर लेती और पिघलकर सब कुछ कह देती, की बुद्धू तुम्हारा कमरे से बाहर करना केवल बुरा लगा था... वरना तुमने जिंदगी में अपनी मां और किताबों के अलावा जिंदगी को जाना ही कितना है...


सोते हुए आज खिला सा चेहरा था, क्योंकि कुछ महीनों से लगता था कि सबकी चाहत एक ओर और हर्ष की चाहत एक ओर... रात की इस बेला में मेहसूस हो रहा था, मुझे भी कोई सच्चे दिल से चाहने वाला मिल गया है"….


आह अब तो वक्त की कमी सी पड़ने लगी थी... अब दिल हर्ष से ज्यादा बात करने को कर रहा था और घर के लोगों पर तो कभी-कभी चिढ़ सी हो जाती, जब मुझे पकड़ के ही रखे रहते..... लेकिन ये अनुभव भी प्यारा था...


"इट्स क्रेजी क्रेजी फीलिंग"… मुझे साउथ की मूवी ज्यादा पसंद नहीं, लेकिन हर्ष के कहने पर मैंने देखी... अच्छी प्यारी रोमांटिक मूवी थी.. आज कल उसका ही सोंग मेरे दिमाग के बैकग्राउंड में चलते रहता... "इट्स क्रेजी क्रेजी फीलिंग"..


कभी रजाई के अंदर दुबक कर 2 बजे तक बातें होती रहती तो कभी सबसे आंख बचाकर दिन में चोरी छिपे.. आशा भाभी के पास का केस मुझे याद था.. यहां यदि कोई खुद को होशियार समझती है तो उससे भी ज्यादा होशियार कोई और भी होता है... ये बात ध्यान रखने की ज्यादा जरूरत थी..


किसी को शक ना हो इसलिए बड़े ही एतिहात से हर्ष से बात करना पड़ता था... अब क्या करे.. खुद को तो समझा लेती थी, मेनका ज्यादा लगाव अच्छा नहीं फसेगी.. लेकिन जब हर्ष की याद आती तो दिल में अजब ही हलचल सी मचने लगती थी... फिर मेरी सब समझदारी कहां गायब होती पता भी नहीं चलता...


आह ये रिस्क वाला इश्क करने में भी अपना ही मज़ा था.. डर और उत्सुकता के बीच मै जीवन के नए रंग का पुरा अनुभव उठा रही थी... महीना दिन बीत चुके थे.. अब तो हमारे बीच लगभग हर प्रकार की बातें भी होने लगी थी.. लेकिन मै सेक्सी बातों से थोड़ा सा परहेज ही करती, क्योंकि अंदर से कुछ कुछ होने लगता था.… लेकिन क्या करूं सुनने में मज़ा भी आता था इसलिए पुरा मज़ा लेने के बाद हर्ष को डांट दिया करती थी...


इस नोक झोंक के खेल मे मै एक बार हर्ष से नाराज चल रहा थी और हमारे बीच पिछले 8 घंटे में ना तो कोई भी टेक्स्ट हुआ था और ना ही कोई बात... हारकर हर्ष ने ही संदेश भेजा, जिसे मैंने नोटिफिकेशन से पढ़कर उसके हाल-ए-दिल तो समझ गई लेकिन मैंने कोई जवाब नहीं दिया...


नाराजगी के 8 से 16 घंटे के बीच हर्ष ने टेक्स्ट कर करके मेरा मोबाइल टेक्स्ट से भर दिया.. फिर भी इग्नोर किया.. उसने कॉल किए तो फोन को साइलेंट करके मैंने अपने बैग मे डाल लिया... हां वो अलग बात है कि हर बार जब मेरे नज़रों के सामने स्क्रीन की लाइट फ़्लैश हुई थी.. दिल जोड़ से धड़कते हुए बगावत पर उतर आता...


16 से 24 घंटे के बीच 112 मिस कॉल.. हालांकि कॉल तो मैंने जानबूझकर मिस किया था, हर्ष ने तो पूरी बात करने की कोशिश की थी... लगभग 28 घंटे हो चुके थे... बहुत तड़पी भी थी और तड़पायी भी थी, अभी वक्त हो चला था बेसब्र दिल को सुकून देने का...


लेकिन आज तो सितम का दिन था, जो ये घर के लोग कर रहे थे.. मुझे हर्ष से बात करनी थी और कोई मुझे अकेला ही नहीं छोड़ता.… मायूस होकर मै फोन को देखती हुई कहती.. "सॉरी जानू, अभी कॉल या टेक्स्ट का जवाब नहीं दे सकती"…


हल्का अंधेरा हो रहा था.. मां ने छत पर कपड़े लाने भेजी.. थोड़ा सा वक्त था तो मैंने हर्ष को कॉल लगा लिया… उसने कॉल नहीं उठाया... 2 बार, 3 बार की.. कोई प्रतिक्रिया नहीं"…


खुद को ही 2 थप्पड़ मारने का मन किया... "अटिट्यूड दिखाने वाली कम अक्ल.. ठीक कर रहा रहा हर्ष तेरे साथ"…


मै रेलिंग पर मायूस बैठ गई.. फोन रेलिंग पर रख दी और हर्ष का फोन जल्दी आ जाए, ऐसी प्राथना करने लगी… लगता है भगवान ने सुन ली और मैंने उत्सुकता से जैसे ही फोन उठाया, तभी पीछे से मां ने मेनका कहा और मै पूरी तरह से चौंक गई.…. "आआआआआआआआ".. और तेज चीख के साथ मै छत से नीचे गिर गई...


मै चिल्लाई, फिर पीछे से मां चिल्लाती हुई बेहोश होकर वहीं छत पर धराम से गिर गई... नीचे भाभी को लगा कि छत पर कुछ हुआ, वो भागती हुई छत पर आयी और मां को बेहोश देखकर वो भी चिल्लाई... मेरा तो दर्द से ऐसा बुरा हाल था कि पता नहीं कहां कितना नुकसान हुआ था...


कर्रहते हुए मै बेहोश हो चुकी थी... आंख खुली तो मै हॉस्पिटल में थी.. जागते ही मै व्याकुलता से मां को ढूंढने लगी... सुकून मिला जब उन्हे नजरो के सामने देखी... मेरी हालत देखकर पापा हंसते हुए कहने लगे... "खुद कहां से टूटी-फूटी है उसका ख्याल नहीं, लेकिन आंख खुलते ही मां को ढूंढ रही"…


फिर मैंने अपनी हालत का जायजा लिया... सर में 6 टांके आए थे और मेरे प्यारे लंबे घने बाल, दाएं ओर से बिल्कुल बीच से छिल दिए गए थे… दाए ओर से सर फूटा था, दाएं कंधे की बोन डीस्लोकेट हो गई थी और दाएं पाऊं मे लकड़ी के कोने लगने सीधे लंबे लाइन बनाकर पुरा चिरा हुआ था जिसमें 16 टांके आए थे.. पाऊं की हड्डी सलामत थी...


कुल मिलाकर मै दो, ढाई महीने के लिए बुक हो गई थी और सबसे ज्यादा अफ़सोस मुझे मेरे बालों का ही थी.. इतना आरा तिरछा सर फूटा था कि पुरा बाल ही दान करना पड़ेगा ऐसा मुझे समझ में आ रहा था.. 36 घंटे से बेहोश थी और अंत में पता चला, मेरे प्यार जताने का मशीन यानी की मोबाइल पूरी तरह से बेकार हो चुका था...


रात के 1 बजे के आसपास नींद खुली थी, इसलिए वहां केवल पापा और मम्मी ही थे... मां अब भी रो रही थी.. वो खुद को कोस रही थी कि पीछे से क्यों उन्होंने आवाज दिया जो ये सारा कांड हो गया...


मै इशारों मे उन्हे अपने करीब बुलाई और बाएं हाथ से उनके आशु साफ करके मुस्कुराती हुई कहने लगी… "मां दर्द बहुत हो रहा है लेकिन वो तो बर्दास्त हो जाता है.. आपका ये रोना बर्दास्त नहीं होगा... गलती मेरी थी, रेलिंग पर मै बैठी थी"…


मां फिर से रोने लगी... "बहुत दर्द हो रहा है क्या.. मिश्रा जी जाकर डॉक्टर को बुलाए ना"…


पापा उठकर डॉक्टर को बुलाने गए और जब डॉक्टर मेरे आखों के सामने आया, मेरी आखें बड़ी हो गई... "हर्ष तुम यहां"…


हर्ष:- श्रीमान राजवीर सिंह का फोन आया था.. मै नर्स कम डॉक्टर हूं... अंकल आपकी लड़की है बहुत हिम्मत वाली, बहुत दर्द बर्दास्त करती है...


हर्ष इंजेक्शन तैयार कर रहा था और मै अब भी बड़ी-बड़ी आखें किए उसे देख रही थी, तभी उसने मेरा ध्यान तोड़ते कहा... "करवट लेटो"..


मै:- नहीं.. बांह में ही इंजेक्शन दे दो..


हर्ष:- देखिए, एक ही बांह बचा हुआ है, उसमे कितना इंजेक्शन देते रहेंगे... आप प्लीज मुझे मेरा काम करने दीजिए...


दर्द मे थी, लेकिन घूरती नज़रों से धमकाना भी कम नहीं किया था... "तुम्हे बाद मे देखती हूं हर्ष के बच्चे"..


मै बाएं घूमकर करवट लेट गई और हर्ष मुझे बाएं कूल्हे मे इन्हे इंजेक्शन लगाकर वहां से जाने लगा... "हर्ष बेटा वो जो एक्सरे के बाद कंधे का इलाज शुरू करते.. तो वो भी कर ही लेते ना..."


हर्ष:- आप और आपकी तरह मेनका की चिंता करने वाले लोग, बहुत ज्यादा ही परेशान रहते है... आप आराम से रहिए, कल सुबह सारा काम खत्म करके दिन तक मेनका को लेकर चलेंगे घर... चलिए स्माइल कीजिए...


पापा:- तुम्हारा धंधा नहीं चलने वाला हर्ष.. डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा एडमिट रखते है, और तुम मरीज को जल्द से जल्द घर भेज रहे...
 

nain11ster

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Nain bhai नए साल के 5 दिन होने को हैं, पर आपके पोस्ट तो दूज के चांद हो गए हैं। आ कर कुछ पोस्ट कर ही दीजिये और नव वर्ष की खुशी में चार चाँद लगा दीजिये।
Chand दिख जाए तो समझ में आता है 4 चांद लगाकर मै balance Nahi बिगाड़ना चाहता इसलिए पोस्ट नहीं कर पाया था
 
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