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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

Raj_sharma

Well-Known Member
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Bhai dhasu Update.
Or ye nokrani kahi wahi to nahi jo us din vaibhav ki chachi k sath khadi thi uske sath hi un dono bhaiyo ka aan milo sajna chal raha tha raat ko
 

Moon Light

Prime
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अध्याय - 33

दरोगा जी के जाने के बाद दादा ठाकुर और वैभव आपस मे काफी बात चीत करते हुए हवेली की तरफ आते हैं । जिसमे बस उस हत्या के बारे में ही जिक्र था आखिर कौन था वो क्यों उसने हत्या की , दोनों ही अपने अपने तर्क एक दूसरे को बता रहे...
.
दरोगा हवेली का बफादार है ऐसा किसलिए वो दादा ठाकुर ने तो बता दिया पर क्या सच मे वो बफादार होगा !! ये नही कह सकते as a रीडर ।
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वैभव की रक्षा में लगाये गए नकाबपोस को भी अब सतर्क रहने की जरूरत होगी ही क्योंकि उसने बचा लिया था एक बार वैभव को, और वैभव को नीचा दिखाने वाले उसको भी इसका दंड देना चाहेंगे...
.
हवेली में आते हैं यंहा वैभव सोच विचार में मग्न रहते हुए सोने की कोशिश करता है पर उसे नींद नही , रात्रि में बाहर जाने की सोचता है वो और बाहर जाकर कुसुम के कमरे की तरफ निकलता है ...
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रास्ते मे आने वाले सभी कमरों में सन्नाटा था सिवाए अंतिम कमरे के जो कि कुसुम का था , अंदर जिस्म की रगड़ाई चल रही थी और रगड़ने वाले थे चाचा के लड़के... सवाल कई हैं जो खुद राइटर समझ रहे फिर भी लिख ही देती हूं...
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अगर चाचा के लड़के कुसुम के कमरे में हैं साथ मे उस अनजान औरत के तो फिर कुसुम कंहा हैं ???

और कौन सी वजह है जिससे मजबूर है कुसुम ??
इतनी मजबूर की वो अपना कमरा भी दे देती है दोनों भाइयों को !!

क्या कुसुम को नही पता होगा उसके कमरे में क्या हो रहा है ???

क्या कुसुम को पता है वो चाय जो दे रही वैभव को उसमे मर्दानगी कम करने की दवा मिली है ???
.
बहुत से सवाल और जुड़ गए...

और हाँ राइटर जी थोड़ा सेक्स सीन को बढ़ाओ कहानी में,

पर दिक्कत ये है ये सब वैभव के नजरिये से है :(
थर्ड पर्सन के थ्रो भी लिखो बीच बीच मे तभी कुछ नया पता लगेगा हमे 😁😁
हां जो चीजों पता लगें वो क्लियर करवाना वैभव की नजरिये से पर कमसे हमें तो पता लग जायेगा हम सवाल नही करेंगे ये कबसे शुरू हुआ क्यों हुआ 😁😁

हाँ चाहो तो इसे भी क्लियर कर सकते हो उसी के पास्ट में जाकर 😜😜
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बिना थर्ड पर्सन के अय्यासी के किस्से बाहर नही आने वाले, क्योंकि फिर वैभव की नजरों में सब गिर जाएंगे..

और मुझे नही लगता सब मासूम हैं as a reader, और मासूम बनाने की जरूरत भी नही आपको as a writer...
इसलिए बस यही गुजारिश, थर्ड पर्सन के रूप में किस्से जरूर छापा :pray:
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जो भी सहमत है मेरी बात से ,इस बारे में जरूर चर्चा करें 😁😁😁
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ब्रिलियंट अपडेट
वेटिंग फ़ॉर नेक्स्ट
 

Dhansu2

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 33
----------☆☆☆----------





अब तक,,,,,,

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"रात के इस अँधेरे में उसके दूसरे साथी को या उसकी लाश को खोजना मुश्किल तो है लेकिन मैं कोशिश करुंगा उसे खोजने की, नहीं तो फिर दिन के उजाले में मैं इस पूरे क्षेत्र का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करुंगा। अगर सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी को भी इसी की तरह जान से मार दिया होगा तो यकीनन कहीं न कहीं उसके निशान मौजूद ही होंगे और अगर वो अभी ज़िंदा है तो ज़ाहिर है कि उसके निशान मिलना संभव नहीं होगा, बल्कि उस सूरत में उसे ढूंढना टेढ़ी खीर जैसा ही होगा।"

थोड़ी देर और दरोगा से इस सम्बन्ध में बातें हुईं उसके बाद पिता जी के कहने पर मैं उनके पीछे हमारी जीप की तरफ बढ़ गया जबकि दरोगा वहीं खड़ा रहा।


अब आगे,,,,,,


"क्या सोच रहे हैं पिता जी?" रास्ते में मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो हिम्मत कर के पूंछ ही बैठा____"जिस आदमी की लाश मिली है क्या वो सच में वही काला साया हो सकता है जो अपने एक और साथी के साथ मुझे मारने आया था?"

"बेशक़ हो सकता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से ही कहा____"लेकिन हम ये सोच रहे हैं कि जिस किसी ने भी उसकी जान ली है क्या उसी ने मुरारी की भी हत्या की होगी या फिर करवाई होगी?"

"आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" मैंने उनकी तरफ एक नज़र डाल कर कहा____"जबकि मुरारी काका की हत्या करने में और इस आदमी की हत्या करने में बहुत फ़र्क है। मुरारी काका की हत्या तेज़ धार वाले किसी हथियार से गला काट कर की गई थी जबकि इस आदमी की जान उसके सिर पर लट्ठ मारने से ली गई है और ये बात दरोगा खुद ही बता चुका है।"

"हम मानते हैं कि दोनों की हत्या करने का तरीका अलग अलग है।" पिता जी ने कहा____"किन्तु उस सफ़ेद कपड़े वाले को मत भूलो जिसने इस मरे हुए आदमी को कोई काम सौंपा था और जिस काम के नाकाम होने पर इस आदमी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।"

"आप कहना क्या चाहते हैं?" मैंने उलझ गए भाव से उनकी तरफ देखा____"मुझे कुछ समझ में नहीं आई आपकी बात।"
"दरोग़ा की सारी बातें सुनने के बाद इस मामले के सम्बन्ध में हमारे ज़हन में कुछ बातें चल रही हैं।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"दरोगा के अनुसार सफ़ेद कपड़े वाले ने इस आदमी को कोई काम सौंपा था जिसके नाकाम होने पर उसने इसे जान से मार दिया। मरे हुए आदमी के कपड़ों से ये बात साफ़ हो गई है कि ये वही आदमी है जो अपने एक दूसरे साथी के साथ उस शाम तुम्हें मारने आया था। इससे ये बात साफ़ समझ में आ जाती है कि सफ़ेद कपड़े वाले ने इसे कौन सा काम सौपा था। इन सब बातों को मद्दे नज़र रखते हुए कहानी को कुछ इस तरीके से समझो_____'कोई अज्ञात आदमी शुरू से ही तुम पर नज़र रख रहा था और उसका मकसद था तुम्हें हर हाल में नुकसान पहुंचाना। जिसके लिए उसने गुप्त तरीके से दो ऐसे आदमियों को चुना जो किसी भी तरह के काम करने में माहिर हों। उसके बाद उसने अपने उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाई और उस हत्या में तुम्हें फ़साने की कोशिश की। उसे अच्छी तरह पता था कि मुरारी की हत्या में तुम्हें फ़साने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता किन्तु इसके बावजूद उसने तुम्हें फंसाया। कदाचित उसका मकसद था तुम्हारे नाम को हत्या जैसे मामले में शामिल कर के तुम्हें हर तरफ बदनाम कर देना और ज़ाहिर है कि तुम्हारी वजह से हमारी और हमारे पूरे खानदान की भी छवि ख़राब हो जाती। ख़ैर इस सबके बाद जब उसने देखा कि वो अपने मकसद में उस तरीके से कामयाब नहीं हुआ है जिस तरीके से वो चाहता था तो गुस्से में आ कर उसने अपने उन आदमियों के द्वारा तुम पर ही हमला करवाना शुरू कर दिया और जब उसके आदमी अपने हर प्रयास के बावजूद तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सके तो गुस्से में आग बबूला हो कर आज उस अज्ञात आदमी ने अपने ही आदमी की जान ले ली।"

लम्बी चौड़ी बात कहने के बाद जब पिता जी चुप हो गए तो जैसे ख़ामोशी छा गई। ये अलग बात है कि जीप के इंजन की आवाज़ फिज़ा में गूँज रही थी। पिता जी की इन बातों ने मेरे मनो मस्तिष्क को जैसे कुछ देर के लिए कुंद सा कर दिया था। उन्होंने जो कुछ भी कहा था वो यकीनन वजनदार था और सच्चाई भी यही हो सकती थी।

"अगर आपकी बातों को सच मान लिया जाए तो फिर इसमें कई सवाल खड़े होते हैं।" कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा____"जैसे कि अगर वो अज्ञात आदमी मुझे कोई नुकसान ही पहुंचाना चाहता था तो उसे इतना सब कुछ करने की क्या ज़रूरत थी? मेरा मतलब है कि वो खुद भी कोई अच्छा सा मौका देख कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता था? इसके लिए उसे गुप्त रूप से आदमी लगाने की और उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाने की क्या ज़रूरत थी। अगर वो मुझे ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था तो वो सिर्फ मुझे ही नुकसान पहुँचाता या फिर मुझे जान से ही मार देता।"

"यही तो सोचने वाली बात है बरखुर्दार।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उसका मकसद सिर्फ तुम्हें नुकसान पहुंचाना ही बस नहीं था बल्कि तुम्हारे द्वारा हम सबकी छवि को ख़राब करना भी था। अगर वो तुम्हें हत्या जैसे मामले में न फंसाता तो क्या तुम्हारे साथ साथ हम सबकी छवि भी ख़राब हो सकती थी? उसके दुश्मन सिर्फ तुम ही नहीं हो बल्कि हम सब हैं।"

"हां यही बात हो सकती है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या लगता है आपको? ये सब किसने किया होगा? वो सफ़ेद कपड़े वाला कौन हो सकता है? क्या ये सब गांव के साहूकारों का किया धरा है?"

"ये सच है कि गांव के साहूकारों से हमेशा ही हमारा मन मुटाव रहा है और वो हमें अपना दुश्मन भी समझते रहे हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन इस सबके लिए हम फिलहाल उन पर आरोप नहीं लगा सकते। जैसा कि हमने पहले भी तुमसे कहा था कि हमें भले ही उन पर हर चीज़ के लिए शक हो लेकिन जब तक हमारे पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस प्रमाण नहीं होगा तब तक हम इस बारे में उनके खिलाफ़ कोई भी क़दम नहीं उठा सकते।"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि इस सबके लिए हम कुछ कर ही नहीं सकते।" मैंने थोड़ा खीझते हुए कहा तो पिता जी ने कहा____"ऐसी बात नहीं है बल्कि हमें तो अब ऐसा लग रहा है कि हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"

"ये आप क्या कह रहे हैं?" मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा।
"हमारे सामने दो तरह के मामले हैं।" पिता जी ने शांत भाव से जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"एक तो ऐसा मामला है जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने है और दूसरा वो है जो हमारी नज़र से दूर है, जिसके बारे में हम सिर्फ अनुमान ही लगाते रहे हैं। अभी का ये मामला अप्रत्यक्ष रूप वाला है लेकिन प्रत्यक्ष रूप वाला मामला ये है कि कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है और उसके घर वालों से अच्छे सम्बन्ध बनाने हैं। हमें यकीन है कि उसमे भी कुछ न कुछ पता चलेगा और आज के इस मामले में भी जल्द ही कुछ न कुछ होता नज़र आएगा।"

"ये आप कैसे कह सकते हैं?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"तुम्हें क्या लगता है इतना सब कुछ होने के बाद अब वो सफ़ेद कपड़े वाला शान्ति से बैठ जाएगा? हरगिज़ नहीं, बल्कि वो अपनी इस नाकामी से बुरी तरह झुलस रहा होगा और जल्द ही कुछ ऐसा करने का सोचेगा जिससे वो अपने मकसद में कामयाब हो सके। हमें भी उसके अगले क़दम के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होग, ख़ास कर तुम्हें।"

"वैसे उस दरोगा के बारे में आपका क्या ख़याल है पिता जी?" कुछ सोचते हुए मैंने पिता जी से कहा____"क्या आपको लगता है कि वो भरोसेमंद आदमी है?"
"हमें अच्छा लगा कि अब तुम इस मामले में गहराई से सोचने लगे हो।" पिता जी ने मेरी तरफ देखने के बाद कहा____"जिस तरह के हालात बने हुए हैं उसके लिए हमें हर पहलू के बारे में गहराई से सोचना ज़रूरी है। दरोगा के भरोसे पर सवाल खड़ा करना मौजूदा वक़्त में जायज़ भी है बुद्धिमानी भी है किन्तु हम तुम्हें बता दें कि दरोगा पर पूरी तरह भरोसा किया जा सकता है।"

"दरोग़ा पर भरोसा करने की वजह?" मैंने एक नज़र पिता जी की तरफ डालने के बाद कहा तो पिता जी ने कहा____"क्योंकि एक तरह से वो हमारा ही आदमी है। कुछ साल पहले हमने ही उसकी नौकरी लगवाई थी। उसका बाप बहुत अच्छा आदमी था। हमसे काफी अच्छे सम्बन्ध थे उसके। दरोगा उस समय पढ़ ही रहा था जब गंभीर बिमारी के चलते उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी मृत्यु पर हम गए थे उसके घर। धनञ्जय पढ़ने लिखने में बड़ा होशियार था और हम उसे बहुत मानते भी थे। उसके पिता रमाकांत की मृत्यु के बाद हमने खुद ही उसके परिवार की जिम्मेदारी के ली थी। ख़ैर धनञ्जय की जब पढ़ाई पूरी हो गई तो हमने पुलिस में उसकी नौकरी लगवा दी। असल में उसके पिता रमाकांत का सपना था कि उसका बेटा एक पुलिस वाला बने। धनञ्जय पुलिस वाला बन गया और अपनी माँ के साथ साथ छोटी बहन का भी सहारा बन गया। अभी पिछले साल ही धनञ्जय का तबादला इस शहर में हुआ है। इसके पहले वो अपनी माँ और बहन को ले कर दूसरी जगह रहता था।"

"इसका मतलब दरोगा हमारे लिए भरोसेमंद है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा।
"बिल्कुल।" पिता जी ने कहा____"हमने कुछ समय पहले यहीं पर उसे रहने के लिए एक जगह कमरा दिलवा दिया था और गुप्त रूप से मुरारी की हत्या की जांच करने के लिए कहा था। शहर से हर रोज़ यहाँ आना उसके लिए आसान तो था लेकिन हम नहीं चाहते थे कि वो यहाँ पर हमारे किसी अज्ञात दुश्मन की नज़र में आ जाए। इसके लिए हमने उसके उच्च अधिकारियों से बात भी कर ली थी।"

"तो उसके यहाँ रहने से।" मैंने कहा____"क्या मुरारी काका की हत्या के मामले में कुछ पता चला?"
"उसी काम में तो वो लगा हुआ था।" पिता जी ने कहा____"और शायद वो सफल भी हो जाता अगर वो सफ़ेद कपड़े वाला उसकी पकड़ में आ जाता।"

"मेरे मन में एक सवाल खटक रहा है पिता जी।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"आपने बताया था कि मेरी सुरक्षा के लिए आपने एक आदमी को लगा रखा है जो तभी मेरे पीछे लग जाता है जब मैं हवेली से निकलता हूं। सवाल है कि अगर वो मेरे पीछे ही लगा रहता है तो अब तक वो उन दो सायों को पकड़ क्यों नहीं पाया? इतना तो अब उसे भी पता ही है कि मुझे मारने के लिए उस शाम दो साए आए थे तो फिर उसने अब तक उनका पता क्यों नहीं लगाया?"

"उसका काम किसी का पता लगाने नहीं है।" पिता जी ने कहा____"उसका काम सिर्फ इतना ही है कि शाम को जब भी तुम हवेली से बाहर जाओ तो वो तुम्हारा साया बन कर तुम्हारे पीछे लग जाए और अगर तुम पर कोई हमला करता है तो वो उस हमले से तुम्हारी रक्षा करे।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा___"वैसे एक और बात भी है पिता जी और वो ये कि उस सफ़ेद कपड़े वाले का मकसद पूरा न होने देने के पीछे आपके उस आदमी का भी थोड़ा बहुत हाथ है जिसे आपने मेरी रक्षा के लिए लगाया हुआ है। उसकी वजह से उस शाम वो दोनों साए मुझे नुक्सान नहीं पहुंचा पाए थे।" मैंने ये कहा ही था कि तभी मेरे ज़हन में बिजली की तरह एक बात कौंधी तो मैंने चौंक कर पिता जी से कहा____"इसका मतलब आपके उस आदमी की जान को भी ख़तरा है पिता जी।"

"क्या मतलब???" पिता जी मेरी बात सुन कर चौंके।
"हां पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"कहीं न कहीं आपके उस आदमी का भी हाथ है उस सफ़ेद कपड़े वाले की नाकामी में। सफ़ेद कपड़े वाला अगर अपनी नाकामी में गुस्सा हो कर अपने आदमी को जान से मार सकता है तो आपके उस आदमी को भी तो जान से मार देना चाहेंगा।"

"यकीनन।" पिता जी के मस्तिष्क की जैसे बत्ती जल उठी____"ऐसा भी हो सकता है। ज़रूर वो सफ़ेद कपड़े वाला हमारे उस आदमी को भी जान से मारने की कोशिश करेगा लेकिन....!"
"लेकिन क्या पिता जी??" मैंने उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा वो आदमी इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसका कुछ बिगाड़ सके। हमें यकीन है कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो वो सफ़ेद कपड़े वाला खुद ही मात खाएगा और संभव है कि हमारे आदमी के द्वारा पकड़ा भी जाए।"

"अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा पिता जी।" मैंने कहा____"कि आगे क्या होता है इस सम्बन्ध में।"
"फिलहाल तुम इन सब बातों से ध्यान हटा कर कल के बारे में सोचो।" पिता जी ने कहा____"कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है। इस बात का ख़ास ख़याल रहे कि तुम्हारी किसी बचकानी हरकत की वजह से कुछ उल्टा सीधा न हो।"

"आप बेफिक्र रहिए पिता जी।" मैंने दृढ भाव से कहा____"मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। मुझे भी लगता है कि उन लोगों से बेहतर सम्बन्ध बना कर ही मुझे उनकी असलियत का पता चल पाएगा। वैसे एक सवाल है पिता जी, अगर आपकी इजाज़त हो तो पूछूं आपसे?"

"इसके पहले क्या तुमने अपने किसी सवाल के लिए हमसे इजाज़त मांगी थी?" पिता जी ने मेरी तरफ घूर कर देखा तो मैं एकदम से झेंप सा गया, जबकि उन्होंने कहा____"ख़ैर पूछो क्या पूछना चाहते हो?"

"गांव के साहूकारों से।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्या सच में हमारी कोई दुश्मनी है या फिर वो बेवजह ही हमें अपना दुश्मन समझते रहे हैं?"

"समय आने पर तुम्हें तुम्हारे इस सवाल का जवाब ज़रूर देंगे हम।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"फिलहाल हम ये चाहते हैं कि तुम सिर्फ़ एक चीज़ पर ध्यान दो और वो ये कि साहूकारों से अपने सम्बन्धों को अच्छा बनाओ और इस क़दर बनाओ कि वो ये यही समझने लगें कि अब तुम्हारे ज़हन में उनके प्रति कोई ग़लत भावना नहीं है।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिलाया और ख़ामोशी से जीप चलाता रहा। ख़ैर कुछ ही देर में जीप हवेली पहुंच ग‌ई। हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास मैंने जीप को रोका तो पिता जी जीप से उतर गए। मैं दूसरे छोर पर जीप को खड़ी करने चला गया। कुछ देर बाद मैं भी हवेली के अंदर आ गया।

अंदर आ कर सबसे पहले मैं ऊपर अपने कमरे में गया और कपड़े उतार कर नीचे गुसलखाने में चला गया। नहा धो कर मैं वापस अपने कमरे में आया और दूसरे कपड़े पहन ही रहा था कि भाभी मेरे कमरे में आईं और बोलीं कि खाना बन गया है इस लिए जल्दी से खाना खाने के लिए नीचे आ जाओ। भाभी इतना बोल कर वापस चली गईं।

कुछ देर बाद मैं नीचे गया और सबके साथ बैठ कर भोजन करना शुरू कर दिया। खाते वक़्त हमेशा की तरह सब ख़ामोश ही थे। मेरी नज़र बड़े भैया पर पड़ी तो देखा वो चुपचाप खाना खा रहे थे। उनके बगल से विभोर और अजीत भी बैठे खा रहे थे। हवेली की दो नौकरानियाँ खाना परोस रहीं थी।


☆☆☆

रात लगभग आधी गुज़र चुकी थी। हवेली में हर तरफ गहन सन्नाटा ब्याप्त था। हर रोज़ की तरह आज भी आधी रात को बिजली जा चुकी थी। खाना खाने के बाद मैं ऊपर अपने कमरे में आ गया था। पलंग पर लेटे लेटे ही मैंने फैसला कर लिया था कि आज तब तक नहीं सोऊंगा जब तक मेरे कुछ सवालों के जवाब नहीं मिल जाते। आज शाम की घटना ने भी मेरे मन में कुछ सवाल खड़े कर दिए थे जो पहले के सवालों के साथ ही जुड़ गए थे और सच तो ये था कि अब मैं इन सभी सवालों के बारे में सोचते सोचते पके हुए फोड़े की तरह ही पक गया था। मुझे अब हर हाल में सभी सवालों के जवाब चाहिए थे।

मेरे ज़हन में सबसे पहले कुसुम का ही ख़याल था और मैं हर हाल में जानना चाहता था कि कुसुम के सीने में ऐसी कौन सी बात या रहस्य दफ़न है जिसकी वजह से उसका ब्यक्तित्व बदल सा गया है? पलंग पर लेटे लेटे मैं सबके सो जाने का इंतज़ार कर रहा था और जब मुझे लगा कि हवेली का हर सदस्य अब गहरी नींद में जा चुका होगा तो मैंने अपने कमरे से निकलने का विचार बनाया।

मैं चुपके से अपने कमरे से निकला और लम्बी चौड़ी राहदारी की तरफ आहिस्ता से बढ़ चला। वैसे तो मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता था लेकिन जाने क्यों इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा बढ़ गईं थी। अँधेरे में चलते हुए मैं उस जगह पर आया जहां से एक तरफ को नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थी और एक तरफ वो गलियारा था जिसमें सबसे पहले बड़े भैया का कमरा था और उनके आगे विभोर अजीत तथा कुसुम का कमरा था।

मैं दबे पाँव गलियारे की तरफ बढ़ते हुए कुछ ही पलों में बड़े भैया के कमरे में के पास पहुंच गया। दरवाज़े के एकदम नज़दीक आ कर मैंने दरवाज़े पर अपना एक कान सटा दिया और कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा। हालांकि मैं जानता था कि मेरा ऐसा करना सरासर ग़लत है क्योंकि कमरे के अंदर बड़े भैया और भाभी थे और इस वक़्त वो किसी भी हालत में हो सकते थे। ख़ैर इस वक़्त मैं सही ग़लत के बारे में न सोचते हुए वही कर रहा था जो मेरे लिए निहायत ही ज़रूरी हो गया था। दरवाज़े पर अपना कान सटाए मैं कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था किन्तु काफी देर तक कान सटाए रहने के बाद भी जब अंदर से किसी तरह की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी तो मैं दरवाज़े से अपना कान हटा कर सीधा खड़ा हो गया। मैं समझ गया कि अंदर भैया और भाभी गहरी नींद में हैं, क्योंकि अगर वो जाग रहे होते तो यकीनन उनके द्वारा कोई न कोई आवाज़ सुनने को मुझे मिलती।

बड़े भैया के कमरे से हट कर मैं गलियारे में आगे की तरफ बढ़ चला। इस वक़्त मैं अपनी ही हवेली में चोर बना हुआ था और इस वक़्त अगर कोई मुझे इस जगह पर देख लेता तो यकीनन मेरे चरित्र के बारे में सोच कर वो मुझ पर लानत भेजने लगता और ये भी संभव ही था कि उसके बाद दादा ठाकुर तक बात पहुंच जाती। उसके बाद दादा ठाकुर मेरा क्या हश्र करते इसका अंदाज़ा लगाना ज़रा भी मुश्किल नहीं था। ख़ैर मैं दबे पाँव आगे बढ़ते हुए दाहिने तरफ विभोर और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। वैसे तो उन दोनों भाइयों का कमरा अलग अलग ही था किन्तु अक्सर वो दोनों एक ही कमरे में सो जाया करते हैं। दोनों भाइयों का आपस में बहुत गहरा प्रेम था।

बड़े भैया के कमरे के बाद दाहिनी तरफ विभोर का ही कमरा पड़ता था। मैंने विभोर के कमरे के पास पहुंच कर वही किया जो इसके पहले बड़े भैया के कमरे के पहुंच कर किया था। यानि दरवाज़े पर अपना कान सटा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा किन्तु परिणाम वही निकला जो बड़े भैया के कमरे के पास पहुंच कर निकला था। ख़ैर विभोर के कमरे से हट कर मैं थोड़ा आगे बढ़ा और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। अँधेरा गहरा था किन्तु मुझे हवेली के हर ज़र्रे का पता था इस लिए मैं बड़ी ही कुशलता से आगे बढ़ रहा था।

अजीत के कमरे के पास पहुंच कर एक बार फिर से मैंने वही क्रिया दोहराई जो इसके पहले बड़े भैया और विभोर के कमरे के पास पहुंच कर की थी। काफी देर तक मैं दरवाज़े पर अपना कान सटाए रहा लेकिन यहाँ भी मुझे निराशा ही मिली। मैं सीधा खड़ा हुआ और सोचने लगा कि ये साला हर तरफ सन्नाटा क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं बेकार में ही यहाँ झक मारने आ गया हूं? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरी बाईं तरफ कुछ आवाज़ हुई तो मैं एकदम से चौंका और साथ ही बिजली की तरह घूम कर बाएं तरफ देखा। बाएं तरफ गलियारे के उस पार कुसुम का कमरा था। आवाज़ उसी तरफ से आई थी और ये मेरा वहम नहीं था क्योंकि सन्नाटे में तो सुई के गिरने से भी तेज़ आवाज़ उत्पन्न होती है।

मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ा ही था कि फिर से आवाज़ आई। इस बार मेरे कान खड़े हो गए और मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। दिल की धड़कनें पहले से थोड़ा और ज़्यादा तेज़ हो ग‌ईं। मैं बड़ी ही सतर्कता से कुसुम के कमरे के पास पहुंचा और दरवाज़े पर अपना कान सटा दिया। मेरे ज़हन में ऐसे ऐसे ख़याल उभरने लगे थे जिनके बारे में मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हालांकि मेरे ख़याल बेवजह या फिर ग़लत भी हो सकते थे किन्तु फिर भी इस वक़्त मेरे मन पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था और मैं मन ही मन ईश्वर से सब कुछ अच्छा ही होने की कामना करने लगा था।

"आह्हहह मादरचोद दाँत क्यों गड़ा रही है?" मेरे कानों में विभोर की ये आवाज़ पड़ी तो मैं ये सोच कर बुरी तरह चौंका कि कुसुम के कमरे से विभोर की आवाज़ कैसे? उधर विभोर ने हल्के गुस्से में आगे कहा____"क्या लंड को ही खा जाएगी साली? आराम से नहीं चूस सकती?"

"हाहाहा ज़रा सम्हाल के भाई।" अजीत की इस आवाज़ से मैं एक बार फिर से चौंका, जबकि उधर अजीत ने धीमी आवाज़ में हंसते हुए कहा____"अँधेरे में इस रांड को कुछ दिख नहीं रहा है न इस लिए तुम्हारे लौड़े में अपने दाँत गड़ा देती है।"

"तू पीछे से इस बुरचोदी की गांड में अपना लंड डाल।" विभोर ने धीमी आवाज़ में कहा_____"और एक ही बार में पूरा लंड इसकी गांड में डाल दे, तभी इसको पता चलेगा कि दर्द क्या होता है।"
"इसको अब दर्द कहां होता है भाई?" अजीत ने कहा____"इसके तीनों बिल तो हम दोनों ने चोद चोद के बड़े कर दिए हैं इस लिए अब इसे दर्द नहीं होगा। वैसे इसकी गांड में अगर उस साले वैभव का लंड चला जाए तो पूरी हवेली इसकी दर्द भरी चीख से झनझना जाएगी।"

"तुझसे कितनी बार कहा है छोटे कि उस हरामज़ादे का नाम मेरे सामने मत लिया कर।" विभोर ने गुस्से से कहा____"उसका नाम सुन कर खून खौल जाता है मेरा। पता नहीं कब उस कम्बख़्त से मुक्ति मिलेगी हमें? उसकी वजह से होली वाले दिन पिता जी ने हमें सब के सामने थप्पड़ मारा था।"

"उसके थप्पड़ का हिसाब हम ज़रूर लेंगे भाई।" अजीत ने कहा____"बहुत जल्द उसकी गांड मारने का हमें मौका मिलेंगा।"
"बस उसी दिन के इंतज़ार में तो बैठा हूं मैं।" विभोर ने कहा____"बस कुछ समय की ही बात है। दवा के असर से जल्दी ही उसकी मर्दानगी उसके पिछवाड़े से निकल जाएगी। उसके बाद हम जैसे चाहेंगे उसकी गांड मारेंगे।"

"उस दवा को अभी कब तक चाय के साथ उसे पिलाना पड़ेगा भाई?" अजीत ने धीमी आवाज़ में पूछा____"दवा का असर धीरे धीरे न हो कर जल्दी हो जाता तो अच्छा होता। मुझे डर है कि कहीं किसी दिन उसे इस बात का पता न चल जाए।"

"गौराव ने बताया था कि उस दवा को नियमित रूप से उसे चाय के साथ पिलाना होगा।" विभोर ने कहा____"अगर नियमित रूप से दवा पिलाई जाएगी तो बीस दिन के अंदर ही उस हरामज़ादे की मर्दानगी फुस्स हो जाएगी। उसके बाद न तो कभी उसका लंड खड़ा होगा और ना ही उसमें इतनी ताक़त रहेगी कि वो हमारी झाँठ का बाल भी उखाड़ सके।"

कमरे के अंदर चल रही दोनों भाइयों की ये बातें जैसे मेरे कानों में खौलता हुआ लावा उड़ेलती जा रहीं थी। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे चाचा के इन दोनों सपूतों के अंदर मेरे प्रति इतना ज़हर भरा हुआ हो सकता है जिसकी वजह से वो मुझसे इतनी नफ़रत करते हैं। दोनों की ऐसी बातें सुन कर मेरे तन बदन में भयंकर आग लग गई थी और मेरा मन कर रहा था कि अभी अंदर जाऊं और दोनों की गांड में अपना हलब्बी लंड डाल कर दोनों के मुख से निकाल दूं लेकिन मैंने अपने खौलते हुए गुस्से को किसी तरह शांत करने की कोशिश की और ये सोच कर चुप चाप खड़ा ही रहा कि सुनूं तो सही कि ये और क्या बातें करते हैं मेरे बारे में। दूसरी बात मेरे लिए अब ये जानना भी ज़रूरी था कि अंदर दोनों के साथ तीसरी कौन है? न चाहते हुए भी मेरे मन में कुसुम का ख़याल आ जाता था किन्तु फिर मैं ये सोच कर अपने ऐसे ख़याल को झटक दे रहा था कि नहीं नहीं अंदर इन दोनों के साथ कुसुम नहीं हो सकती। माना कि ये दोनों बहुत हरामी हैं लेकिन इतने भी नहीं होंगे कि अपनी ही बहन के साथ मुँह काला करने लगें।

"दवा तो उसे नियमित रूप से ही चाय के साथ पिलाई जा रही है भाई।" अजीत की आवाज़ ने मुझे सोचो से बाहर किया____"मैं हर रोज़ कुसुम से इस बारे में पूछता हूं।"
"कुसुम पर अच्छे से नज़र रख तू।" विभोर ने कहा____"वो उस हरामज़ादे को हमसे ज़्यादा चाहती है। अगर किसी दिन वो आत्म ग्लानि का बोझ सह न पाई तो यकीनन हमारा सारा काम ख़राब कर देगी। वैसे मुझे लगता है कि उसे कुसुम पर किसी बात का शक हो गया है और इसी लिए वो अपने कमरे में कुसुम से कुरेद कुरेद कर कुछ पूंछ रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि मुझे इस रांड ने समय पर बता दिया था कि कुसुम वैभव के कमरे में गई है। इसकी बात सुन कर मैं फ़ौरन ही उसके कमरे की तरफ बढ़ गया था। उसके कमरे के बाहर खड़े हो कर मैंने दोनों की सारी बातें सुनी थी और फिर जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि कुसुम का मुख खुलने वाला है तो मैंने उसे आवाज़ लगा दी थी।"

"मुझे लगता है भाई की कुसुम अब ज़्यादा दिनों तक अपने अंदर इस बात को दफ़न नहीं कर पाएगी।" अजीत ने कहा____"वो अपराध बोझ में दबी जा रही है जिसके चलते वो यकीनन टूट जाएगी और सब कुछ बता देगी उसे। हमें कुछ न कुछ करना होगा इसके लिए।"

"तू सही कह रहा है छोटे।" विभोर ने कहा____"हमें कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। अरे! बस कर रे मादरचोद, झड़ा ही देगी क्या मुझे? अभी तो तुझे एक बार और जम के चोदना है।"

"इसकी बुर में अपना लंड डालो भाई।" अजीत ने धीमी आवाज़ में कहा____"तब तक मैं इसके मुँह में अपना लंड डालता हूं। बड़े मस्त तरीके से लंड चूसती है ये।"
"चल साली अपनी टाँगें फैला कर लेट जा।" विभोर ने कहा____"और हां अपनी हवस में ये मत भूल जाना कि तुझे क्या काम सौंपा है हमने। हमारे यहाँ न रहने पर तुझे कुसुम पर पैनी नज़र रखना है। अगर वो उस कमीने के कमरे में जाए तो उसे रोकना है तुझे। बाकी तो तुझे सब कुछ समझा ही दिया था मैंने।"

"आप चिंता क्यों करते हो छोटे ठाकुर?" अंदर से पहली बार किसी औरत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"आपकी बहन मेरी नज़रों में धूल झोंक कर कहीं नहीं जाएगी। मैंने उसे अच्छे से समझा दिया है कि अगर उसने आपके दुश्मन को इस बारे में कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"शाबाश!" विभोर ने कहा____"वैसे तूने मेरी बहन की मज़बूरी का कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया न?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती छोटे ठाकुर।" औरत ने कहा____"आह्हहह ऐसे ही, थोड़ा और ज़ोर से चोदिए मेरी इस प्यासी चूत को...शशशश...आहहहह...मैं तो बस समय समय पर आपकी बहन को याद दिलाती रहती हूं कि अगर उसने आपके दुश्मन को कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

औरत की इस बात के बाद दोनों में से किसी की भी आवाज़ नहीं आई। ये अलग बात है कि औरत की मस्ती में चूर सिसकारियों की आवाज़ ज़रूर आ रही थी जो कि धीमी ही थी। मैं समझ गया कि अंदर दोनों भाई उस औरत को पेलने में लग गए हैं। इधर बाहर दरवाज़े के पास खड़ा मैं ये सोच रहा था कि दोनों भाई एक साथ कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? वहीं मेरे ज़हन में ये भी सवाल था कि ऐसी कौन सी बात होगी जिसके लिए ये लोग कुसुम को मजबूर किए हुए हैं??


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Jabardast update
 

Yamraaj

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Aisi kahaniya ek hi baar me post kiya karo ..... Ek ek update padhke achha nhi lagta itna suspense aur sala apne hi log dhokha de to neend nahi aati....
 

Moon Light

Prime
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Aisi kahaniya ek hi baar me post kiya karo ..... Ek ek update padhke achha nhi lagta itna suspense aur sala apne hi log dhokha de to neend nahi aati....
:approve: ये बात मैं पहले ही बोल चुकी हूं,
राइटर जी कृपा नही कर रहे बस :verysad:

पर एक ही दिन में सब कुछ हासिल हो जाये
तो फिर इंतजार नाम की चीज खत्म हो जाएगी
जिसका अपना ही अलग मज़ा होता है....!!!

सो कीप वेटिंग फ़ॉर न्यू अपडेट
स्टे विथ राइटर, कीप कमेंट एंड इनकरेज :yo:
 

aalu

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update-33... revo....


"क्या सोच रहे हैं पिता जी?" रास्ते में मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो हिम्मत कर के पूंछ ही बैठा_ ..... yeh sochne ka kaam mera hain... bari mehnat se faltu ka soch soch ke sochandev ka tag maine paya hain... aadha update issi mein nikal deta hooon har baar.... aap bas sanskari bhabhi ko jaa ke samjhao... :D ..... aaah yeh sochne wala rog bara bekar hain bari teji se fail raha hain.... kusum se le ke dada thakur tak ko faila diya yeh sochan dev ne...

yeh kala peticoat wala mrit aadmi ka na toh chehre dekha in logo ne aur maan liya kee marne wala dushman tha... yeh bhi toh ho shakta hain jo vaibhaw ko bachane ke liye lagaya gaya tha wo bhi kala peticoat pehenta tha... safed kapre waale ne inhi ke admi ko maar ke bhag liya... yeh daroga bhi mila hua ho unse... chehre bigar ke bol diya kee marne wala inka dushman tha... kya pata inke hi aadmi ko pehchan ke unhone ne maar diya ho... aur yeh sochne wala rog le ke baithe hain dunno thakur...

इन सब बातों को मद्दे नज़र रखते हुए कहानी को कुछ इस तरीके से समझो__ hehehe heehhee kahani samjhayenge yeh... writer khud na samjha paya aur yeh chale hain kahani samjhane... heehehee ...

baat toh ghum phir ke wahee hai kee abhi koi baat nahin hain... yeh tharkee budhhe se bhi kuchh na bana.... manishankar ke ghar pe dawat urane toh jana hi tha... aur wo log isko dawat pe bula ke jaise sara raaz batane waale hain apne mansha jahir karte hue.... aur phir gehraai bhi batayenge...:D.. jo bhi roopa se chhut gaya tha...

ramakant ke marne ke baad dada thakur uske ghar bhi jaate the uski bewi ko samjhane...:akshay:... matlab doosro kee bewio ko samjhane ka purana dhandha hain inka...:winknudge:... aajkal sanskari bhaujee ka no. laga hua hain... waise kya ab bhi jaate hain samjhane ramakant kee bewi ko kya.... uhhunn uhhun...

"गांव के साहूकारों से।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्या सच में हमारी कोई दुश्मनी है //// समय आने पर तुम्हें तुम्हारे इस सवाल का जवाब ज़रूर देंगे हम।" पिता जी ने गंभीरता से कहा ..... :hehe:.. pure writer wala jawab isiilye kahani samjahne baithe the.... toh aajakal dada thakur mein tharkee blood kee aatam ghushi hui hai...:D

वैसे एक सवाल है पिता जी, अगर आपकी इजाज़त हो तो पूछूं आपसे?"/// "इसके पहले क्या तुमने अपने किसी सवाल के लिए हमसे इजाज़त मांगी थी?" पिता जी ने मेरी तरफ घूर कर देखा..... meri maal sanskari bahu... mera matlab hain kamaal kee sanskari bahu :lol1: ko tharkee najro se dekhte wakt ijjajat maangi jo ab puchh rahe ho... :bat1:....

aaj iska phora phorne ka time aa gaya hain... bhabhi ke kamre mein jhaank raha hain kaheen bhaiya andar hi na kheench le.... le saale dekh kya dekhna tha... pure kapre pehne hain humne... kaheen nakhun dekh ke khara toh na ho gaya tera... nahin bhaiya aapka nakhun dekh ke feeel nahin aati aajkal...:D

दोनों भाइयों का आपस में बहुत गहरा प्रेम था।... chalo saahukaro kee gehrai na pata chali thakuro se hi puchh le kitna gehra...:hinthint:

आह्हहह मादरचोद दाँत क्यों गड़ा रही है?" मेरे कानों में विभोर की ये आवाज़ पड़ी.//हाहाहा ज़रा सम्हाल के भाई।" "अँधेरे में इस रांड को कुछ दिख नहीं रहा है न इस लिए तुम्हारे लौड़े में अपने दाँत गड़ा देती है।"..... kaheen muh mein hi na rah jaaye...:lol:... bechara thakur randwa rah jayega...

aare dada ri ee toh apna chodan dev ka hi tower girane ke chakkar mein hain... aajkal waise bhi network nahin mil raha hain bichare ko... :laugh:.. chai se randwa banaye... kya pilan hain... waise dawa de rahe hain toh jaroor milane wala koi aur hoga... lekin saali nikli toh kusum कमरे में कुसुम से कुरेद कुरेद कर कुछ पूंछ रहा था। ... ab jyada mat kured dena khoon nikal jayega...:D...

shayad yahee baat hain jo wo batana chahti thee... lekin kusum kee bhala kaun si majboori inke haath lag gayee... kaheen kakri, kele ka vyapar ka pata toh na chal gaya unko...:lipsrsealed:... wo toh achha hua kee aaj iska phora pak gaya nahin toh bechara rajni ke baad ab roopa se bhi haath dho baithta...

waise in ganduo ko isse khunnas kahe hain... aur kusum ko yeh shab maloom hain... wo phir kiske kamre mein so rahi hain... baato se laga ke wo andar kamre mein na thee... isiliye har baar chai ka puchhti thee.. aur jab itna hi bhai se prem tha toh akele mein aagah toh kar hi shakti thee... ya phir jo bhi prem ka dikhawa tha wo shab natak tha.... agar khud se vaibhaw itna na puchhta toh shayad wo kabhi shaq bhi na hone deti...... apni izzat ke khatir bechare ke naag babu ko sula deti...

phir toh saara maal pe dada thakur haath saaf kar leta... :lol1:... waise yeh gaurav sahukaro ka launda hain ya phir inka koi aur dost... ab ek aur naya naam jur gaya hain iske dushmano ka...

ajeet aur vibhor toh thee hi kaminey lekin pichhe se khanjar toh kusum chubha rahi thee iska aage wala khanjar ko naakam kar ke... waise abhi tak toh lagta hain theek hee hain... nahin toh gore gore mukhre pe kala kala saari peheni chachi ka himalay ke ghaati mein kuttub minar thori na dikhta...

dukh hain lekin karne se hichki na... khud ko bachane ke liye kisi aur ke zindagi tabah kar dena aur phir bhai ke prem ka wasta deti thee.. akhir kitni safai se wo dhong kar ke nikal jaati thee... aur majboori se kya wasta kaheen kisi larke ke saath chakkar toh nahin tha kusum ka... aur bhala kya majboori ho shakti hain uski..... yeh khel naukrani ke saath inka mahino se chal raha hain aur ghar mein abhi tak kisi ko bhanak tak na lagee... bagal mein hi bhabhi ka kamra hain kya unhe ek baarge bhi shak na hua... aksar hawas ke unmaad mein aadmi satark rahna bhool jata hain aur galtiya kar deta hain... aur inki himmat itni badh gayee kee apni hi behen ko uske kamre se bhej ke rangraliya mana rahe hain...

baat ab yeh hain kee vaibhaw kya karta hain... phir se sochne baith jayega ya phir ab kusum se samne baith ke puchhne ka wakt aa gaya hain... bhala kis majboori mein usne apna emaan aur prem shab bech diya... doosro ke dohre chehre kee baat kar rahi hain... iske chehre pe chhipe nakab toh kisi ne utara hee nahin...

khair phora phutt gaya ....
 
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Naik

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 33
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अब तक,,,,,,

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"रात के इस अँधेरे में उसके दूसरे साथी को या उसकी लाश को खोजना मुश्किल तो है लेकिन मैं कोशिश करुंगा उसे खोजने की, नहीं तो फिर दिन के उजाले में मैं इस पूरे क्षेत्र का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करुंगा। अगर सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी को भी इसी की तरह जान से मार दिया होगा तो यकीनन कहीं न कहीं उसके निशान मौजूद ही होंगे और अगर वो अभी ज़िंदा है तो ज़ाहिर है कि उसके निशान मिलना संभव नहीं होगा, बल्कि उस सूरत में उसे ढूंढना टेढ़ी खीर जैसा ही होगा।"

थोड़ी देर और दरोगा से इस सम्बन्ध में बातें हुईं उसके बाद पिता जी के कहने पर मैं उनके पीछे हमारी जीप की तरफ बढ़ गया जबकि दरोगा वहीं खड़ा रहा।


अब आगे,,,,,,


"क्या सोच रहे हैं पिता जी?" रास्ते में मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो हिम्मत कर के पूंछ ही बैठा____"जिस आदमी की लाश मिली है क्या वो सच में वही काला साया हो सकता है जो अपने एक और साथी के साथ मुझे मारने आया था?"

"बेशक़ हो सकता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से ही कहा____"लेकिन हम ये सोच रहे हैं कि जिस किसी ने भी उसकी जान ली है क्या उसी ने मुरारी की भी हत्या की होगी या फिर करवाई होगी?"

"आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" मैंने उनकी तरफ एक नज़र डाल कर कहा____"जबकि मुरारी काका की हत्या करने में और इस आदमी की हत्या करने में बहुत फ़र्क है। मुरारी काका की हत्या तेज़ धार वाले किसी हथियार से गला काट कर की गई थी जबकि इस आदमी की जान उसके सिर पर लट्ठ मारने से ली गई है और ये बात दरोगा खुद ही बता चुका है।"

"हम मानते हैं कि दोनों की हत्या करने का तरीका अलग अलग है।" पिता जी ने कहा____"किन्तु उस सफ़ेद कपड़े वाले को मत भूलो जिसने इस मरे हुए आदमी को कोई काम सौंपा था और जिस काम के नाकाम होने पर इस आदमी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।"

"आप कहना क्या चाहते हैं?" मैंने उलझ गए भाव से उनकी तरफ देखा____"मुझे कुछ समझ में नहीं आई आपकी बात।"
"दरोग़ा की सारी बातें सुनने के बाद इस मामले के सम्बन्ध में हमारे ज़हन में कुछ बातें चल रही हैं।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"दरोगा के अनुसार सफ़ेद कपड़े वाले ने इस आदमी को कोई काम सौंपा था जिसके नाकाम होने पर उसने इसे जान से मार दिया। मरे हुए आदमी के कपड़ों से ये बात साफ़ हो गई है कि ये वही आदमी है जो अपने एक दूसरे साथी के साथ उस शाम तुम्हें मारने आया था। इससे ये बात साफ़ समझ में आ जाती है कि सफ़ेद कपड़े वाले ने इसे कौन सा काम सौपा था। इन सब बातों को मद्दे नज़र रखते हुए कहानी को कुछ इस तरीके से समझो_____'कोई अज्ञात आदमी शुरू से ही तुम पर नज़र रख रहा था और उसका मकसद था तुम्हें हर हाल में नुकसान पहुंचाना। जिसके लिए उसने गुप्त तरीके से दो ऐसे आदमियों को चुना जो किसी भी तरह के काम करने में माहिर हों। उसके बाद उसने अपने उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाई और उस हत्या में तुम्हें फ़साने की कोशिश की। उसे अच्छी तरह पता था कि मुरारी की हत्या में तुम्हें फ़साने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता किन्तु इसके बावजूद उसने तुम्हें फंसाया। कदाचित उसका मकसद था तुम्हारे नाम को हत्या जैसे मामले में शामिल कर के तुम्हें हर तरफ बदनाम कर देना और ज़ाहिर है कि तुम्हारी वजह से हमारी और हमारे पूरे खानदान की भी छवि ख़राब हो जाती। ख़ैर इस सबके बाद जब उसने देखा कि वो अपने मकसद में उस तरीके से कामयाब नहीं हुआ है जिस तरीके से वो चाहता था तो गुस्से में आ कर उसने अपने उन आदमियों के द्वारा तुम पर ही हमला करवाना शुरू कर दिया और जब उसके आदमी अपने हर प्रयास के बावजूद तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सके तो गुस्से में आग बबूला हो कर आज उस अज्ञात आदमी ने अपने ही आदमी की जान ले ली।"

लम्बी चौड़ी बात कहने के बाद जब पिता जी चुप हो गए तो जैसे ख़ामोशी छा गई। ये अलग बात है कि जीप के इंजन की आवाज़ फिज़ा में गूँज रही थी। पिता जी की इन बातों ने मेरे मनो मस्तिष्क को जैसे कुछ देर के लिए कुंद सा कर दिया था। उन्होंने जो कुछ भी कहा था वो यकीनन वजनदार था और सच्चाई भी यही हो सकती थी।

"अगर आपकी बातों को सच मान लिया जाए तो फिर इसमें कई सवाल खड़े होते हैं।" कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा____"जैसे कि अगर वो अज्ञात आदमी मुझे कोई नुकसान ही पहुंचाना चाहता था तो उसे इतना सब कुछ करने की क्या ज़रूरत थी? मेरा मतलब है कि वो खुद भी कोई अच्छा सा मौका देख कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता था? इसके लिए उसे गुप्त रूप से आदमी लगाने की और उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाने की क्या ज़रूरत थी। अगर वो मुझे ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था तो वो सिर्फ मुझे ही नुकसान पहुँचाता या फिर मुझे जान से ही मार देता।"

"यही तो सोचने वाली बात है बरखुर्दार।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उसका मकसद सिर्फ तुम्हें नुकसान पहुंचाना ही बस नहीं था बल्कि तुम्हारे द्वारा हम सबकी छवि को ख़राब करना भी था। अगर वो तुम्हें हत्या जैसे मामले में न फंसाता तो क्या तुम्हारे साथ साथ हम सबकी छवि भी ख़राब हो सकती थी? उसके दुश्मन सिर्फ तुम ही नहीं हो बल्कि हम सब हैं।"

"हां यही बात हो सकती है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या लगता है आपको? ये सब किसने किया होगा? वो सफ़ेद कपड़े वाला कौन हो सकता है? क्या ये सब गांव के साहूकारों का किया धरा है?"

"ये सच है कि गांव के साहूकारों से हमेशा ही हमारा मन मुटाव रहा है और वो हमें अपना दुश्मन भी समझते रहे हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन इस सबके लिए हम फिलहाल उन पर आरोप नहीं लगा सकते। जैसा कि हमने पहले भी तुमसे कहा था कि हमें भले ही उन पर हर चीज़ के लिए शक हो लेकिन जब तक हमारे पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस प्रमाण नहीं होगा तब तक हम इस बारे में उनके खिलाफ़ कोई भी क़दम नहीं उठा सकते।"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि इस सबके लिए हम कुछ कर ही नहीं सकते।" मैंने थोड़ा खीझते हुए कहा तो पिता जी ने कहा____"ऐसी बात नहीं है बल्कि हमें तो अब ऐसा लग रहा है कि हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"

"ये आप क्या कह रहे हैं?" मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा।
"हमारे सामने दो तरह के मामले हैं।" पिता जी ने शांत भाव से जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"एक तो ऐसा मामला है जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने है और दूसरा वो है जो हमारी नज़र से दूर है, जिसके बारे में हम सिर्फ अनुमान ही लगाते रहे हैं। अभी का ये मामला अप्रत्यक्ष रूप वाला है लेकिन प्रत्यक्ष रूप वाला मामला ये है कि कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है और उसके घर वालों से अच्छे सम्बन्ध बनाने हैं। हमें यकीन है कि उसमे भी कुछ न कुछ पता चलेगा और आज के इस मामले में भी जल्द ही कुछ न कुछ होता नज़र आएगा।"

"ये आप कैसे कह सकते हैं?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"तुम्हें क्या लगता है इतना सब कुछ होने के बाद अब वो सफ़ेद कपड़े वाला शान्ति से बैठ जाएगा? हरगिज़ नहीं, बल्कि वो अपनी इस नाकामी से बुरी तरह झुलस रहा होगा और जल्द ही कुछ ऐसा करने का सोचेगा जिससे वो अपने मकसद में कामयाब हो सके। हमें भी उसके अगले क़दम के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होग, ख़ास कर तुम्हें।"

"वैसे उस दरोगा के बारे में आपका क्या ख़याल है पिता जी?" कुछ सोचते हुए मैंने पिता जी से कहा____"क्या आपको लगता है कि वो भरोसेमंद आदमी है?"
"हमें अच्छा लगा कि अब तुम इस मामले में गहराई से सोचने लगे हो।" पिता जी ने मेरी तरफ देखने के बाद कहा____"जिस तरह के हालात बने हुए हैं उसके लिए हमें हर पहलू के बारे में गहराई से सोचना ज़रूरी है। दरोगा के भरोसे पर सवाल खड़ा करना मौजूदा वक़्त में जायज़ भी है बुद्धिमानी भी है किन्तु हम तुम्हें बता दें कि दरोगा पर पूरी तरह भरोसा किया जा सकता है।"

"दरोग़ा पर भरोसा करने की वजह?" मैंने एक नज़र पिता जी की तरफ डालने के बाद कहा तो पिता जी ने कहा____"क्योंकि एक तरह से वो हमारा ही आदमी है। कुछ साल पहले हमने ही उसकी नौकरी लगवाई थी। उसका बाप बहुत अच्छा आदमी था। हमसे काफी अच्छे सम्बन्ध थे उसके। दरोगा उस समय पढ़ ही रहा था जब गंभीर बिमारी के चलते उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी मृत्यु पर हम गए थे उसके घर। धनञ्जय पढ़ने लिखने में बड़ा होशियार था और हम उसे बहुत मानते भी थे। उसके पिता रमाकांत की मृत्यु के बाद हमने खुद ही उसके परिवार की जिम्मेदारी के ली थी। ख़ैर धनञ्जय की जब पढ़ाई पूरी हो गई तो हमने पुलिस में उसकी नौकरी लगवा दी। असल में उसके पिता रमाकांत का सपना था कि उसका बेटा एक पुलिस वाला बने। धनञ्जय पुलिस वाला बन गया और अपनी माँ के साथ साथ छोटी बहन का भी सहारा बन गया। अभी पिछले साल ही धनञ्जय का तबादला इस शहर में हुआ है। इसके पहले वो अपनी माँ और बहन को ले कर दूसरी जगह रहता था।"

"इसका मतलब दरोगा हमारे लिए भरोसेमंद है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा।
"बिल्कुल।" पिता जी ने कहा____"हमने कुछ समय पहले यहीं पर उसे रहने के लिए एक जगह कमरा दिलवा दिया था और गुप्त रूप से मुरारी की हत्या की जांच करने के लिए कहा था। शहर से हर रोज़ यहाँ आना उसके लिए आसान तो था लेकिन हम नहीं चाहते थे कि वो यहाँ पर हमारे किसी अज्ञात दुश्मन की नज़र में आ जाए। इसके लिए हमने उसके उच्च अधिकारियों से बात भी कर ली थी।"

"तो उसके यहाँ रहने से।" मैंने कहा____"क्या मुरारी काका की हत्या के मामले में कुछ पता चला?"
"उसी काम में तो वो लगा हुआ था।" पिता जी ने कहा____"और शायद वो सफल भी हो जाता अगर वो सफ़ेद कपड़े वाला उसकी पकड़ में आ जाता।"

"मेरे मन में एक सवाल खटक रहा है पिता जी।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"आपने बताया था कि मेरी सुरक्षा के लिए आपने एक आदमी को लगा रखा है जो तभी मेरे पीछे लग जाता है जब मैं हवेली से निकलता हूं। सवाल है कि अगर वो मेरे पीछे ही लगा रहता है तो अब तक वो उन दो सायों को पकड़ क्यों नहीं पाया? इतना तो अब उसे भी पता ही है कि मुझे मारने के लिए उस शाम दो साए आए थे तो फिर उसने अब तक उनका पता क्यों नहीं लगाया?"

"उसका काम किसी का पता लगाने नहीं है।" पिता जी ने कहा____"उसका काम सिर्फ इतना ही है कि शाम को जब भी तुम हवेली से बाहर जाओ तो वो तुम्हारा साया बन कर तुम्हारे पीछे लग जाए और अगर तुम पर कोई हमला करता है तो वो उस हमले से तुम्हारी रक्षा करे।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा___"वैसे एक और बात भी है पिता जी और वो ये कि उस सफ़ेद कपड़े वाले का मकसद पूरा न होने देने के पीछे आपके उस आदमी का भी थोड़ा बहुत हाथ है जिसे आपने मेरी रक्षा के लिए लगाया हुआ है। उसकी वजह से उस शाम वो दोनों साए मुझे नुक्सान नहीं पहुंचा पाए थे।" मैंने ये कहा ही था कि तभी मेरे ज़हन में बिजली की तरह एक बात कौंधी तो मैंने चौंक कर पिता जी से कहा____"इसका मतलब आपके उस आदमी की जान को भी ख़तरा है पिता जी।"

"क्या मतलब???" पिता जी मेरी बात सुन कर चौंके।
"हां पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"कहीं न कहीं आपके उस आदमी का भी हाथ है उस सफ़ेद कपड़े वाले की नाकामी में। सफ़ेद कपड़े वाला अगर अपनी नाकामी में गुस्सा हो कर अपने आदमी को जान से मार सकता है तो आपके उस आदमी को भी तो जान से मार देना चाहेंगा।"

"यकीनन।" पिता जी के मस्तिष्क की जैसे बत्ती जल उठी____"ऐसा भी हो सकता है। ज़रूर वो सफ़ेद कपड़े वाला हमारे उस आदमी को भी जान से मारने की कोशिश करेगा लेकिन....!"
"लेकिन क्या पिता जी??" मैंने उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा वो आदमी इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसका कुछ बिगाड़ सके। हमें यकीन है कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो वो सफ़ेद कपड़े वाला खुद ही मात खाएगा और संभव है कि हमारे आदमी के द्वारा पकड़ा भी जाए।"

"अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा पिता जी।" मैंने कहा____"कि आगे क्या होता है इस सम्बन्ध में।"
"फिलहाल तुम इन सब बातों से ध्यान हटा कर कल के बारे में सोचो।" पिता जी ने कहा____"कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है। इस बात का ख़ास ख़याल रहे कि तुम्हारी किसी बचकानी हरकत की वजह से कुछ उल्टा सीधा न हो।"

"आप बेफिक्र रहिए पिता जी।" मैंने दृढ भाव से कहा____"मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। मुझे भी लगता है कि उन लोगों से बेहतर सम्बन्ध बना कर ही मुझे उनकी असलियत का पता चल पाएगा। वैसे एक सवाल है पिता जी, अगर आपकी इजाज़त हो तो पूछूं आपसे?"

"इसके पहले क्या तुमने अपने किसी सवाल के लिए हमसे इजाज़त मांगी थी?" पिता जी ने मेरी तरफ घूर कर देखा तो मैं एकदम से झेंप सा गया, जबकि उन्होंने कहा____"ख़ैर पूछो क्या पूछना चाहते हो?"

"गांव के साहूकारों से।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्या सच में हमारी कोई दुश्मनी है या फिर वो बेवजह ही हमें अपना दुश्मन समझते रहे हैं?"

"समय आने पर तुम्हें तुम्हारे इस सवाल का जवाब ज़रूर देंगे हम।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"फिलहाल हम ये चाहते हैं कि तुम सिर्फ़ एक चीज़ पर ध्यान दो और वो ये कि साहूकारों से अपने सम्बन्धों को अच्छा बनाओ और इस क़दर बनाओ कि वो ये यही समझने लगें कि अब तुम्हारे ज़हन में उनके प्रति कोई ग़लत भावना नहीं है।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिलाया और ख़ामोशी से जीप चलाता रहा। ख़ैर कुछ ही देर में जीप हवेली पहुंच ग‌ई। हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास मैंने जीप को रोका तो पिता जी जीप से उतर गए। मैं दूसरे छोर पर जीप को खड़ी करने चला गया। कुछ देर बाद मैं भी हवेली के अंदर आ गया।

अंदर आ कर सबसे पहले मैं ऊपर अपने कमरे में गया और कपड़े उतार कर नीचे गुसलखाने में चला गया। नहा धो कर मैं वापस अपने कमरे में आया और दूसरे कपड़े पहन ही रहा था कि भाभी मेरे कमरे में आईं और बोलीं कि खाना बन गया है इस लिए जल्दी से खाना खाने के लिए नीचे आ जाओ। भाभी इतना बोल कर वापस चली गईं।

कुछ देर बाद मैं नीचे गया और सबके साथ बैठ कर भोजन करना शुरू कर दिया। खाते वक़्त हमेशा की तरह सब ख़ामोश ही थे। मेरी नज़र बड़े भैया पर पड़ी तो देखा वो चुपचाप खाना खा रहे थे। उनके बगल से विभोर और अजीत भी बैठे खा रहे थे। हवेली की दो नौकरानियाँ खाना परोस रहीं थी।

☆☆☆

रात लगभग आधी गुज़र चुकी थी। हवेली में हर तरफ गहन सन्नाटा ब्याप्त था। हर रोज़ की तरह आज भी आधी रात को बिजली जा चुकी थी। खाना खाने के बाद मैं ऊपर अपने कमरे में आ गया था। पलंग पर लेटे लेटे ही मैंने फैसला कर लिया था कि आज तब तक नहीं सोऊंगा जब तक मेरे कुछ सवालों के जवाब नहीं मिल जाते। आज शाम की घटना ने भी मेरे मन में कुछ सवाल खड़े कर दिए थे जो पहले के सवालों के साथ ही जुड़ गए थे और सच तो ये था कि अब मैं इन सभी सवालों के बारे में सोचते सोचते पके हुए फोड़े की तरह ही पक गया था। मुझे अब हर हाल में सभी सवालों के जवाब चाहिए थे।

मेरे ज़हन में सबसे पहले कुसुम का ही ख़याल था और मैं हर हाल में जानना चाहता था कि कुसुम के सीने में ऐसी कौन सी बात या रहस्य दफ़न है जिसकी वजह से उसका ब्यक्तित्व बदल सा गया है? पलंग पर लेटे लेटे मैं सबके सो जाने का इंतज़ार कर रहा था और जब मुझे लगा कि हवेली का हर सदस्य अब गहरी नींद में जा चुका होगा तो मैंने अपने कमरे से निकलने का विचार बनाया।

मैं चुपके से अपने कमरे से निकला और लम्बी चौड़ी राहदारी की तरफ आहिस्ता से बढ़ चला। वैसे तो मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता था लेकिन जाने क्यों इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा बढ़ गईं थी। अँधेरे में चलते हुए मैं उस जगह पर आया जहां से एक तरफ को नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थी और एक तरफ वो गलियारा था जिसमें सबसे पहले बड़े भैया का कमरा था और उनके आगे विभोर अजीत तथा कुसुम का कमरा था।

मैं दबे पाँव गलियारे की तरफ बढ़ते हुए कुछ ही पलों में बड़े भैया के कमरे में के पास पहुंच गया। दरवाज़े के एकदम नज़दीक आ कर मैंने दरवाज़े पर अपना एक कान सटा दिया और कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा। हालांकि मैं जानता था कि मेरा ऐसा करना सरासर ग़लत है क्योंकि कमरे के अंदर बड़े भैया और भाभी थे और इस वक़्त वो किसी भी हालत में हो सकते थे। ख़ैर इस वक़्त मैं सही ग़लत के बारे में न सोचते हुए वही कर रहा था जो मेरे लिए निहायत ही ज़रूरी हो गया था। दरवाज़े पर अपना कान सटाए मैं कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था किन्तु काफी देर तक कान सटाए रहने के बाद भी जब अंदर से किसी तरह की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी तो मैं दरवाज़े से अपना कान हटा कर सीधा खड़ा हो गया। मैं समझ गया कि अंदर भैया और भाभी गहरी नींद में हैं, क्योंकि अगर वो जाग रहे होते तो यकीनन उनके द्वारा कोई न कोई आवाज़ सुनने को मुझे मिलती।

बड़े भैया के कमरे से हट कर मैं गलियारे में आगे की तरफ बढ़ चला। इस वक़्त मैं अपनी ही हवेली में चोर बना हुआ था और इस वक़्त अगर कोई मुझे इस जगह पर देख लेता तो यकीनन मेरे चरित्र के बारे में सोच कर वो मुझ पर लानत भेजने लगता और ये भी संभव ही था कि उसके बाद दादा ठाकुर तक बात पहुंच जाती। उसके बाद दादा ठाकुर मेरा क्या हश्र करते इसका अंदाज़ा लगाना ज़रा भी मुश्किल नहीं था। ख़ैर मैं दबे पाँव आगे बढ़ते हुए दाहिने तरफ विभोर और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। वैसे तो उन दोनों भाइयों का कमरा अलग अलग ही था किन्तु अक्सर वो दोनों एक ही कमरे में सो जाया करते हैं। दोनों भाइयों का आपस में बहुत गहरा प्रेम था।

बड़े भैया के कमरे के बाद दाहिनी तरफ विभोर का ही कमरा पड़ता था। मैंने विभोर के कमरे के पास पहुंच कर वही किया जो इसके पहले बड़े भैया के कमरे के पहुंच कर किया था। यानि दरवाज़े पर अपना कान सटा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा किन्तु परिणाम वही निकला जो बड़े भैया के कमरे के पास पहुंच कर निकला था। ख़ैर विभोर के कमरे से हट कर मैं थोड़ा आगे बढ़ा और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। अँधेरा गहरा था किन्तु मुझे हवेली के हर ज़र्रे का पता था इस लिए मैं बड़ी ही कुशलता से आगे बढ़ रहा था।

अजीत के कमरे के पास पहुंच कर एक बार फिर से मैंने वही क्रिया दोहराई जो इसके पहले बड़े भैया और विभोर के कमरे के पास पहुंच कर की थी। काफी देर तक मैं दरवाज़े पर अपना कान सटाए रहा लेकिन यहाँ भी मुझे निराशा ही मिली। मैं सीधा खड़ा हुआ और सोचने लगा कि ये साला हर तरफ सन्नाटा क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं बेकार में ही यहाँ झक मारने आ गया हूं? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरी बाईं तरफ कुछ आवाज़ हुई तो मैं एकदम से चौंका और साथ ही बिजली की तरह घूम कर बाएं तरफ देखा। बाएं तरफ गलियारे के उस पार कुसुम का कमरा था। आवाज़ उसी तरफ से आई थी और ये मेरा वहम नहीं था क्योंकि सन्नाटे में तो सुई के गिरने से भी तेज़ आवाज़ उत्पन्न होती है।

मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ा ही था कि फिर से आवाज़ आई। इस बार मेरे कान खड़े हो गए और मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। दिल की धड़कनें पहले से थोड़ा और ज़्यादा तेज़ हो ग‌ईं। मैं बड़ी ही सतर्कता से कुसुम के कमरे के पास पहुंचा और दरवाज़े पर अपना कान सटा दिया। मेरे ज़हन में ऐसे ऐसे ख़याल उभरने लगे थे जिनके बारे में मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हालांकि मेरे ख़याल बेवजह या फिर ग़लत भी हो सकते थे किन्तु फिर भी इस वक़्त मेरे मन पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था और मैं मन ही मन ईश्वर से सब कुछ अच्छा ही होने की कामना करने लगा था।

"आह्हहह मादरचोद दाँत क्यों गड़ा रही है?" मेरे कानों में विभोर की ये आवाज़ पड़ी तो मैं ये सोच कर बुरी तरह चौंका कि कुसुम के कमरे से विभोर की आवाज़ कैसे? उधर विभोर ने हल्के गुस्से में आगे कहा____"क्या लंड को ही खा जाएगी साली? आराम से नहीं चूस सकती?"

"हाहाहा ज़रा सम्हाल के भाई।" अजीत की इस आवाज़ से मैं एक बार फिर से चौंका, जबकि उधर अजीत ने धीमी आवाज़ में हंसते हुए कहा____"अँधेरे में इस रांड को कुछ दिख नहीं रहा है न इस लिए तुम्हारे लौड़े में अपने दाँत गड़ा देती है।"

"तू पीछे से इस बुरचोदी की गांड में अपना लंड डाल।" विभोर ने धीमी आवाज़ में कहा_____"और एक ही बार में पूरा लंड इसकी गांड में डाल दे, तभी इसको पता चलेगा कि दर्द क्या होता है।"
"इसको अब दर्द कहां होता है भाई?" अजीत ने कहा____"इसके तीनों बिल तो हम दोनों ने चोद चोद के बड़े कर दिए हैं इस लिए अब इसे दर्द नहीं होगा। वैसे इसकी गांड में अगर उस साले वैभव का लंड चला जाए तो पूरी हवेली इसकी दर्द भरी चीख से झनझना जाएगी।"

"तुझसे कितनी बार कहा है छोटे कि उस हरामज़ादे का नाम मेरे सामने मत लिया कर।" विभोर ने गुस्से से कहा____"उसका नाम सुन कर खून खौल जाता है मेरा। पता नहीं कब उस कम्बख़्त से मुक्ति मिलेगी हमें? उसकी वजह से होली वाले दिन पिता जी ने हमें सब के सामने थप्पड़ मारा था।"

"उसके थप्पड़ का हिसाब हम ज़रूर लेंगे भाई।" अजीत ने कहा____"बहुत जल्द उसकी गांड मारने का हमें मौका मिलेंगा।"
"बस उसी दिन के इंतज़ार में तो बैठा हूं मैं।" विभोर ने कहा____"बस कुछ समय की ही बात है। दवा के असर से जल्दी ही उसकी मर्दानगी उसके पिछवाड़े से निकल जाएगी। उसके बाद हम जैसे चाहेंगे उसकी गांड मारेंगे।"

"उस दवा को अभी कब तक चाय के साथ उसे पिलाना पड़ेगा भाई?" अजीत ने धीमी आवाज़ में पूछा____"दवा का असर धीरे धीरे न हो कर जल्दी हो जाता तो अच्छा होता। मुझे डर है कि कहीं किसी दिन उसे इस बात का पता न चल जाए।"

"गौराव ने बताया था कि उस दवा को नियमित रूप से उसे चाय के साथ पिलाना होगा।" विभोर ने कहा____"अगर नियमित रूप से दवा पिलाई जाएगी तो बीस दिन के अंदर ही उस हरामज़ादे की मर्दानगी फुस्स हो जाएगी। उसके बाद न तो कभी उसका लंड खड़ा होगा और ना ही उसमें इतनी ताक़त रहेगी कि वो हमारी झाँठ का बाल भी उखाड़ सके।"

कमरे के अंदर चल रही दोनों भाइयों की ये बातें जैसे मेरे कानों में खौलता हुआ लावा उड़ेलती जा रहीं थी। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे चाचा के इन दोनों सपूतों के अंदर मेरे प्रति इतना ज़हर भरा हुआ हो सकता है जिसकी वजह से वो मुझसे इतनी नफ़रत करते हैं। दोनों की ऐसी बातें सुन कर मेरे तन बदन में भयंकर आग लग गई थी और मेरा मन कर रहा था कि अभी अंदर जाऊं और दोनों की गांड में अपना हलब्बी लंड डाल कर दोनों के मुख से निकाल दूं लेकिन मैंने अपने खौलते हुए गुस्से को किसी तरह शांत करने की कोशिश की और ये सोच कर चुप चाप खड़ा ही रहा कि सुनूं तो सही कि ये और क्या बातें करते हैं मेरे बारे में। दूसरी बात मेरे लिए अब ये जानना भी ज़रूरी था कि अंदर दोनों के साथ तीसरी कौन है? न चाहते हुए भी मेरे मन में कुसुम का ख़याल आ जाता था किन्तु फिर मैं ये सोच कर अपने ऐसे ख़याल को झटक दे रहा था कि नहीं नहीं अंदर इन दोनों के साथ कुसुम नहीं हो सकती। माना कि ये दोनों बहुत हरामी हैं लेकिन इतने भी नहीं होंगे कि अपनी ही बहन के साथ मुँह काला करने लगें।

"दवा तो उसे नियमित रूप से ही चाय के साथ पिलाई जा रही है भाई।" अजीत की आवाज़ ने मुझे सोचो से बाहर किया____"मैं हर रोज़ कुसुम से इस बारे में पूछता हूं।"
"कुसुम पर अच्छे से नज़र रख तू।" विभोर ने कहा____"वो उस हरामज़ादे को हमसे ज़्यादा चाहती है। अगर किसी दिन वो आत्म ग्लानि का बोझ सह न पाई तो यकीनन हमारा सारा काम ख़राब कर देगी। वैसे मुझे लगता है कि उसे कुसुम पर किसी बात का शक हो गया है और इसी लिए वो अपने कमरे में कुसुम से कुरेद कुरेद कर कुछ पूंछ रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि मुझे इस रांड ने समय पर बता दिया था कि कुसुम वैभव के कमरे में गई है। इसकी बात सुन कर मैं फ़ौरन ही उसके कमरे की तरफ बढ़ गया था। उसके कमरे के बाहर खड़े हो कर मैंने दोनों की सारी बातें सुनी थी और फिर जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि कुसुम का मुख खुलने वाला है तो मैंने उसे आवाज़ लगा दी थी।"

"मुझे लगता है भाई की कुसुम अब ज़्यादा दिनों तक अपने अंदर इस बात को दफ़न नहीं कर पाएगी।" अजीत ने कहा____"वो अपराध बोझ में दबी जा रही है जिसके चलते वो यकीनन टूट जाएगी और सब कुछ बता देगी उसे। हमें कुछ न कुछ करना होगा इसके लिए।"

"तू सही कह रहा है छोटे।" विभोर ने कहा____"हमें कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। अरे! बस कर रे मादरचोद, झड़ा ही देगी क्या मुझे? अभी तो तुझे एक बार और जम के चोदना है।"

"इसकी बुर में अपना लंड डालो भाई।" अजीत ने धीमी आवाज़ में कहा____"तब तक मैं इसके मुँह में अपना लंड डालता हूं। बड़े मस्त तरीके से लंड चूसती है ये।"
"चल साली अपनी टाँगें फैला कर लेट जा।" विभोर ने कहा____"और हां अपनी हवस में ये मत भूल जाना कि तुझे क्या काम सौंपा है हमने। हमारे यहाँ न रहने पर तुझे कुसुम पर पैनी नज़र रखना है। अगर वो उस कमीने के कमरे में जाए तो उसे रोकना है तुझे। बाकी तो तुझे सब कुछ समझा ही दिया था मैंने।"

"आप चिंता क्यों करते हो छोटे ठाकुर?" अंदर से पहली बार किसी औरत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"आपकी बहन मेरी नज़रों में धूल झोंक कर कहीं नहीं जाएगी। मैंने उसे अच्छे से समझा दिया है कि अगर उसने आपके दुश्मन को इस बारे में कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"शाबाश!" विभोर ने कहा____"वैसे तूने मेरी बहन की मज़बूरी का कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया न?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती छोटे ठाकुर।" औरत ने कहा____"आह्हहह ऐसे ही, थोड़ा और ज़ोर से चोदिए मेरी इस प्यासी चूत को...शशशश...आहहहह...मैं तो बस समय समय पर आपकी बहन को याद दिलाती रहती हूं कि अगर उसने आपके दुश्मन को कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

औरत की इस बात के बाद दोनों में से किसी की भी आवाज़ नहीं आई। ये अलग बात है कि औरत की मस्ती में चूर सिसकारियों की आवाज़ ज़रूर आ रही थी जो कि धीमी ही थी। मैं समझ गया कि अंदर दोनों भाई उस औरत को पेलने में लग गए हैं। इधर बाहर दरवाज़े के पास खड़ा मैं ये सोच रहा था कि दोनों भाई एक साथ कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? वहीं मेरे ज़हन में ये भी सवाल था कि ऐसी कौन सी बात होगी जिसके लिए ये लोग कुसुम को मजबूर किए हुए हैं??

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Ab in dono bhaiyon ke karname vaibhav k saamne aa gaye h achche se ab pelega inko achche se
Lekin dono kusum k kamre h tow kaha h soyi h
Dekhte h vaibhav kaise indono bhaiyon ko pelta h
Bahot behtareen zaberdast shaandaar update bhai
 

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एक बहुत ही सुंदर लाजवाब और धमाकेदार अपडेट है भाई
विभोर और अजित के द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र का पता लगने के बाद वैभव की क्या प्रतिक्रिया होती हैं
साथ ही साथ कुसूम की क्या मजबूरी है जिसका फायदा ये भाई ले रहे है
कमरे में दोनो भाई के साथ कौन है
देखते हैं अगले धमाकेदार अपडेट में
प्रतिक्षा रहेगी
 

TheBlackBlood

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 34
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अब तक,,,,,

"शाबाश!" विभोर ने कहा____"वैसे तूने मेरी बहन की मज़बूरी का कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया न?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती छोटे ठाकुर।" औरत ने कहा____"आह्हहह ऐसे ही, थोड़ा और ज़ोर से चोदिए मेरी इस प्यासी चूत को...शशशश...आहहहह...मैं तो बस समय समय पर आपकी बहन को याद दिलाती रहती हूं कि अगर उसने आपके दुश्मन को कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

औरत की इस बात के बाद दोनों में से किसी की भी आवाज़ नहीं आई। ये अलग बात है कि औरत की मस्ती में चूर सिसकारियों की आवाज़ ज़रूर आ रही थी जो कि धीमी ही थी। मैं समझ गया कि अंदर दोनों भाई उस औरत को पेलने में लग गए हैं। इधर बाहर दरवाज़े के पास खड़ा मैं ये सोच रहा था कि दोनों भाई एक साथ कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? वहीं मेरे ज़हन में ये भी सवाल था कि ऐसी कौन सी बात होगी जिसके लिए ये लोग कुसुम को मजबूर किए हुए हैं??


अब आगे,,,,,



अपने कमरे में आ कर मैंने दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर लेट गया। मेरे कानों में अभी भी दोनों भाइयों की बातें गूँज रही थी। मैं ये जान कर हैरत में पड़ गया था कि वो दोनों मुझे नामर्द बना देना चाहते हैं जिसके लिए वो हर रोज़ मुझे चाय के साथ दवा पिला रहे हैं। सुबह शाम मुझे चाय देने के लिए कुसुम ही मेरे कमरे में आती थी। उन दोनों ने कुसुम को जरिया बनाया हुआ था किन्तु सबसे ज़्यादा सोचने वाली बात ये थी कि कुसुम को इसके लिए उन लोगों ने मजबूर कर रखा है। मैं अच्छी तरह जानता था कि वो दोनों भले ही कुसुम के सगे भाई थे लेकिन कुसुम सबसे ज़्यादा मुझे ही मानती है और वो मेरी लाड़ली भी है लेकिन सोचने वाली बात थी कि कुसुम उनके कहने पर ऐसा काम कैसे कर सकती थी जिसमें मुझे किसी तरह का नुकसान हो? यकीनन उन लोगों ने कुसुम को कुछ इस तरीके से मजबूर किया हुआ है कि कुसुम के पास उनकी बात मानने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं होगा। अब सवाल ये था कि उन लोगों ने आख़िर किस बात पर कुसुम को इतना मजबूर कर रखा होगा कि वो उनके कहने पर अपने उस भाई को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिला रही है जिसे वो सबसे ज़्यादा मानती है?

पलंग पर लेटा मैं इस सवाल के बारे में गहराई से सोच रहा था किन्तु मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मेरे लिए जैसे ये सवाल भी एक बहुत बड़ा रहस्य बन गया था। वहीं सोचने वाली बात ये भी थी कि वो लोग कुसुम के कमरे में किसी औरत के साथ ऐसा काम कैसे कर सकते हैं? क्या कुसुम को उनके इस काम के बारे में सब पता है और क्या कुसुम खुद भी उसी कमरे में होगी? क्या ये दोनों भाई इतना नीचे तक गिर चुके हैं कि अपनी ही बहन की मौजूदगी में किसी औरत के साथ ऐसा काम करने में कोई शर्म ही नहीं करते? मेरा दिल इस बात को ज़रा भी नहीं मान रहा था कि कुसुम भी उसी कमरे में होगी। कुसुम ऐसी लड़की है ही नहीं कि इतना सब कुछ अपनी आँखों से देख सके और उसे सहन कर सके। वो खुदख़ुशी कर लेगी लेकिन ऐसी हालत में वो अपने कमरे में नहीं रुक सकती। मतलब साफ़ है कि वो या तो विभोर व अजीत के कमरे में रही होगी या फिर नीचे बने किसी कमरे में चली गई होगी। ऐसी परिस्थिति में कुसुम की क्या दशा होगी इसका एहसास मैं बखूबी कर सकता था।

इस सब के बारे में सोच सोच कर जहां गुस्से में मेरा खून खौलता जा रहा था वहीं मैं ये भी सोच रहा था कि मैं कुसुम से हर हाल में जान कर रहूंगा कि इन लोगों ने उसे आख़िर किस बात पर इतना मजबूर कर रखा है कि उनके कहने पर उसने अपने इस भाई को चाय में ऐसी दवा पिलाना भी स्वीकार कर लिया जिस दवा के असर से उसका ये भाई नामर्द बन जाएगा?

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरे ये दोनों चचेरे भाई इस हद तक मुझसे नफ़रत करते हैं। हालांकि मैंने कभी भी उनके साथ कुछ ग़लत नहीं किया था, बल्कि मैं तो हमेशा अपने में ही मस्त रहता था। हवेली के किसी सदस्य से जब मुझे कोई मतलब ही नहीं होता था तो किसी के साथ कुछ ग़लत करने का सवाल कहां से पैदा हो जाएगा?

मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे ज़हन में बिजली की तरह एक ख़याल उभरा। बड़े भैया भी तो ज़्यादातर उन दोनों के साथ ही रहते हैं तो क्या उन्हें इस सबके बारे में पता है? क्या वो जानते हैं कि वो दोनों भाई हवेली के अंदर और बाहर कैसे कैसे कारनामें करते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन दोनों ने बड़े भैया को भी मेरी तरह नामर्द बनाने का सोचा हो और भैया को इस सबके बारे में पता ही न हो? मेरी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उजागर हो गया और फिर मेरी आँखों के सामने होली के दिन का वाला वो दृश्य भी दिखने लगा जब बड़े भैया ने मुझे ख़ुशी से गले लगाया था और उसी ख़ुशी में मुझे भांग वाला शरबत पिलाया था। ये दृश्य देखते हुए मैं सोचने लगा कि क्या बड़े भैया उन दोनों के साथ मिले हुए हो सकते हैं? मेरा दिल और दिमाग़ चीख चीख कर इस बात से इंकार कर रहा था कि नहीं बड़े भैया उनसे मिले हुए नहीं हो सकते। उनके संस्कार उन्हें इतना नीचे तक नहीं गिरा सकते कि वो उन दोनों के साथ ऐसे घिनौने काम करने लगें। मेरे मन में सहसा एक सवाल उभरा कि क्या उनके ऐसे बर्ताव के पीछे विभोर और अजीत का कोई हाथ हो सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने बड़े भैया को कोई ऐसी दवा खिलाई हो जिसकी वजह से उनका बर्ताव ऐसा हो गया है? मुझे मेरा ये ख़याल जंचा तो ज़रूर लेकिन मैं अपने ही ख़याल पर मुतमईन नहीं था।

मेरे सामने फिर से कई सारे सवाल खड़े हो गए थे। कहां मैं अपने कुछ सवालों के जवाब खोजने के लिए अँधेरे में निकला था और कहां मैं कुछ ऐसे सवाल लिए लौट आया था जिन्होंने मुझे हैरत में डाल दिया था। हालांकि इतना तो मुझे पता चल चुका था कि मेरे चाचा जी के ये दोनों सपूत किस फ़िराक में हैं और किस बात के लिए उन दोनों ने कुसुम को मजबूर कर के उसे चारा बना रखा है लेकिन इसी के साथ अब ये सवाल भी खड़ा हो गया था कि आख़िर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसकी वजह से कुसुम उनका हर कहा मानने पर इतना मजबूर है?

मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे मन में ख़याल आया कि कुसुम के कमरे में विभोर और अजीत जिस औरत के साथ पेलम पेल वाला काम कर रहे थे वो कौन है? मुझे उसके बारे में पता करना होगा। उन दोनों की बातों से ये ज़ाहिर हो गया था कि उन्हीं के इशारे पर वो औरत कुसुम को कोई बात याद दिला कर उसे मजबूर करती है। इसका मतलब उसे कुसुम की वो मजबूरी पता है जिसकी वजह से वो मुझे दवा वाली चाय पिलाने पर मजबूर है।

मैं फ़ौरन ही पलंग से उठा और कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल आया। बिजली अभी भी नहीं आई थी इस लिए अभी भी हर तरफ अँधेरा था। मैं दबे पाँव कुछ ही देर में कुसुम के कमरे के पास पहुंच गया और दरवाज़े पर अपने कान सटा दिए।

"आज तो आप दोनों ने मुझे बुरी तरह पस्त कर दिया है।" अंदर से किसी औरत की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी। औरत की ये आवाज़ मेरे लिए निहायत ही अजनबी थी। हालांकि मैं अपने ज़हन पर ज़ोर डाल कर सोचने लगा था कि वो कौन हो सकती है। अभी मैं उसके बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में अजीत की आवाज़ पड़ी____"तुने भी तो हमें खुश कर दिया है। ख़ैर अब तू जा यहाँ से और हां सतर्कता से जाना। कहीं ऐसा न हो कि उस रात की तरह आज भी वो हरामज़ादा तुझे मिल जाए और तुझे दुम दबा कर भागना पड़ जाए।"

"उस रात तो मेरी जान हलक में ही आ कर फंस गई थी छोटे ठाकुर।" औरत ने धीमी आवाज़ में कहा____"वो तो अच्छा हुआ कि अँधेरा था इस लिए मैं अँधेरे में एक जगह छुप गई थी वरना अगर मैं उसकी पकड़ में आ जाती तो फिर मेरा तो भगवान ही मालिक हो सकता था। हालांकि वो काफी देर तक सीढ़ियों के पास खड़ा रहा था, इस उम्मीद में कि शायद उसे मेरे पायलों की आवाज़ कहीं से सुनाई दे जाए लेकिन मैं भी कम होशियार नहीं थी। मुझे पता था कि वो अभी ताक में ही होगा इस लिए मैं उस जगह से निकली ही नहीं, बल्कि तभी निकली जब मुझे उसके चले जाने की आहट सुनाई दी थी।"

"माना कि उस रात तूने होशियारी दिखाई थी।" विभोर ने कहा____"लेकिन तेरी उस होशियारी में भी काम बिगड़ गया है। अभी तक उस वैभव के ज़हन में दूर दूर तक ये बात नहीं थी कि हवेली के अंदर ऐसा वैसा कुछ हो रहा है लेकिन उस रात की घटना के बाद उसके ज़हन में कई सारे सवाल खड़े हो गए होंगे और मुमकिन है कि वो ये जानने की फ़िराक में हो कि आख़िर उस रात वो कौन सी औरत थी जो आधी रात को इस तरह ऊपर से नीचे भागती हुई गई थी?"

"अगर सच में ऐसा हुआ।" औरत ने घबराए हुए लहजे में कहा____"तो फिर अब क्या होगा छोटे ठाकुर? मेरी तो ये सोच कर ही जान निकली जा रही है कि अगर उसने किसी तरह मुझे खोज लिया और पहचान लिया तो मेरा क्या हश्र होगा?"

"चिंता मत कर तू।" विभोर ने जैसे उसे आस्वाशन देते हुए कहा____"हमारे रहते तुझे किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है लेकिन हां अब से तू हर पल होशियार और सतर्क ही रहना। चल अब जा यहाँ से।"
"ठीक है छोटे ठाकुर।" औरत की इस आवाज़ के साथ ही अंदर से पायल के बजने की आवाज़ हुई तो मैं समझ गया कि वो औरत अब कमरे से बाहर आने वाली है। इस लिए मैं भी दरवाज़े से हट कर फ़ौरन ही दबे पाँव लौट चला।

मैं अँधेरे में उस जगह पर आ कर छुप गया था जहां से मेरे कमरे की तरफ जाने वाला गलियारा था। कुछ ही दूरी पर नीचे जाने वाली सीढ़ियां थी। ख़ैर कुछ ही पलों में मुझे पायल के छनकने की बहुत ही धीमी आवाज़ सुनाई दी। मतलब साफ़ था कि वो औरत दबे पाँव इस तरफ आ रही थी। उसे भी पता था कि उसके पायलों की आवाज़ रात के इस सन्नाटे में कुछ ज़्यादा ही शोर मचाती है।

मैं चाहता तो इसी वक़्त उस औरत को पकड़ सकता था और उसके साथ साथ उन दोनों सूरमाओं का भी क्रिया कर्म कर सकता था लेकिन मैंने ऐसा करने का इरादा फिलहाल मुल्तवी कर दिया था। मैं इस वक़्त सिर्फ उस औरत का चेहरा देख लेना चाहता था लेकिन अँधेरे में ये संभव नहीं था। मैं बड़ी तेज़ी से सोच रहा था कि आख़िर ऐसा क्या करूं जिससे मुझे उस औरत का चेहरा देखने को मिल जाए? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी अँधेरे में मुझे एक साया नज़र आया। वो उस औरत का ही साया था क्योंकि उस साए के पास से ही पायल की आवाज़ धीमें स्वर में आ रही थी। मेरी धड़कनें फिर से थोड़ा तेज़ हो गईं थी।

वो औरत धीमी गति से सीढ़ियों की तरफ बढ़ती जा रही थी। इधर मैं समझ नहीं पा रहा था कि किस तरह उस औरत का चेहरा देखूं। वो औरत अभी सीढ़ियों के पास ही पहुंची थी कि तभी एक झटके से पूरी हवेली बिजली के आ जाने से रोशन हो गई। शायद भगवान ने मुझ पर मेहरबानी करने का फैसला किया था। बिजली के आ जाने से पहले तो मैं भी उछल ही पड़ा था किन्तु फिर जल्दी से ही सम्हल कर छुप गया। उधर हर तरफ प्रकाश फैला तो वो औरत भी बुरी तरह चौंक गई थी और मारे हड़बड़ाहट के इधर उधर देखने लगी थी। घाघरा चोली पहने उस औरत ने हड़बड़ा कर जब पीछे की तरफ देखा तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ गई। मैंने उसे पहचानने में कोई ग़लती नहीं की। ये वही औरत थी जो उस दिन मेनका चाची के पास खड़ी उनसे बातें कर रही थी।

हड़बड़ाहट में इधर उधर देखने के बाद वो फ़ौरन ही पलटी और सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गई। उसकी सारी सतर्कता और सारी होशियारी मेरे सामने मानो बेनक़ाब हो गई थी। ये देख कर मेरे होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। अभी मैं मुस्कुराया ही था कि तभी मेरे कानों में खट खट की आवाज़ पड़ी तो मैं आवाज़ की दिशा में देखने के लिए आगे बढ़ा। बाएं तरफ गलियारे पर विभोर और अजीत खड़े नज़र आए मुझे।

मैंने देखा कि अजीत ने अपने कमरे के दरवाज़े को अपने एक हाथ से हल्के से थपथपाया, जबकि विभोर अपने कमरे के दरवाज़े के पास खड़ा इधर उधर देख रहा था। कुछ ही देर में दरवाज़ा खुला तो अजीत ने शायद कुछ कहा जिसके बाद फ़ौरन ही दरवाज़े से कुसुम बाहर निकली और चुप चाप अपने कमरे में चली गई। उसके जाने के बाद अजीत ने विभोर की तरफ देखा और फिर वो दोनों अपने अपने कमरे के अंदर दाखिल हो ग‌ए।

कुछ पल सोचने के बाद मैं भी अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। कुसुम अजीत के कमरे में थी। जैसा कि मुझे यकीन था कि कुसुम किसी भी कीमत पर उन लोगों के साथ उस कमरे में नहीं रह सकती थी। इतना कुछ देखने के बाद ये बात भी साफ़ हो गई थी कि कुसुम को अपने उन दोनों भाइयों की हर करतूत के बारे में अच्छे से पता है।

अपने कमरे में आ कर मैंने दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर लेट कर ये सोचने लगा कि दोनों भाइयों को उस औरत के साथ अगर वही सब करना था तो उन्होंने वो सब अपने कमरे में क्यों नहीं किया? कुसुम के ही कमरे में वो सब करने की क्या वजह थी?

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रात में सोचते सोचते पता नहीं कब मेरी आँख लग गई थी। सुबह कुसुम के जगाने पर ही मेरी आँख खुली। मौजूदा हालात में मुझे कुसुम के इस तरह आने की उम्मीद नहीं थी क्योंकि मैं समझ रहा था कि वो एक दो दिन से मुझसे कतरा रही थी। मैंने कुसुम को ध्यान से देखा तो उसके चेहरे पर गुमसुम से भाव झलकते नज़र आए। मैं समझ सकता था कि कल रात जो कुछ मैंने देखा सुना था उसी बात को ले कर शायद वो गुमसुम थी। हालांकि इस वक़्त वो मेरे सामने सामान्य और खुश दिखने की कोशिश कर रही थी। मैंने भी सुबह सुबह इस बारे में कुछ पूंछ कर उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा इस लिए मैंने मुस्कुराते हुए उसके हाथ से चाय ले ली।

"सुबह सुबह तेरा चेहरा देख लेता हूं तो मेरा मन खुश हो जाता है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"एक तू ही तो है जिसमें तेरे इस भाई की जान बसती है। हर रोज़ सुबह सुबह तू अपने इस भाई के लिए चाय ले कर आती है। सच में कितना ख़याल रखती है मेरी ये लाड़ली बहन। वैसे ये तो बता कि आज भी इस चाय में तूने कुछ मिलाया है कि नहीं?"

"क्..क्..क्या मतलब???" मेरी आख़िरी बात सुन कर कुसुम एकदम से हड़बड़ा ग‌ई और पलक झपकते ही उसके चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए। किसी तरह खुद को सम्हाल कर उसने कहा____"ये आप क्या कह रहे हैं भैया? भला मैं इस चाय में क्या मिलाऊंगी?"

"वही, जो तू हर रोज़ मिलाती है।" मैंने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा तो मारे घबराहट के कुसुम के माथे पर पसीना उभर आया। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला उसने और फिर बड़ी मासूमियत से पूछा____"पता नहीं आप ये क्या कह रहे हैं? मैं भला क्या मिलाती हूं चाय में?"

"क्या तू इस चाय में अपने प्यार और स्नेह की मिठास नहीं मिलाती?" मैंने जब देखा कि उसकी हालत ख़राब हो चली है तो मैंने बात को बनाते हुए कहा____"मुझे पता है कि मेरी ये लाड़ली बहना अपने इस भाई से बहुत प्यार करती है। मेरी बहना का वही प्यार इस चाय में मिला होता है, तभी तो इस चाय का स्वाद हर रोज़ इतना मीठा होता है।"

"अच्छा तो आपके कहने का ये मतलब था?" मेरी बात सुन कर कुसुम के चेहरे पर राहत के भाव उभर आए और फिर उसने जैसे ज़बरदस्ती मुस्कुरा कर कहा था।
"और नहीं तो क्या?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"पर लगता है कि तूने कुछ और ही समझ लिया था, है ना?"

"आपने बात ही इस तरीके से की थी कि मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया था।" कुसुम ने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"ख़ैर अब जल्दी से चाय पीजिए और फिर नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर नीचे आ जाइए। नास्ता बन गया है।"

"चल ठीक है।" मैंने कहा____"तू जा मैं चाय पीने के बाद ही नित्य क्रिया करने जाऊंगा।"
"जल्दी आइएगा।" कुसुम ने दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए कहा____"ऐसा न हो कि देरी करने पर आपको ताऊ जी के गुस्से का शिकार हो जाना पड़े।"

कुसुम ये कह कर बाहर निकल गई थी और मैं अपने दाहिने हाथ से पकड़े हुए चाय के प्याले की तरफ देखने लगा था। अब जबकि मुझे पता था कि इस चाय में मेरी मासूम बहन के प्यार की मिठास के साथ साथ वो दवा भी मिली हुई थी जो मुझे नामर्द बनाने के लिए कुसुम के द्वारा दी जा रही थी तो मैं सोचने लगा कि अब इस चाय को कहां फेंकूं? कुसुम को मुझ पर भरोसा था कि मैं उसके हाथ की चाय ज़रूर पी लूँगा इस लिए वो मेरे कहने पर चली गई थी वरना अगर उसे ज़रा सा भी शक होता तो वो मेरे सामने तब तक खड़ी ही रहती जब तक कि मैं चाय न पी लेता। आख़िर ये उसकी विवशता जो थी।

चाय के प्याले को पकड़े मैं उसे फेंकने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरी नज़र कमरे की खिड़की पर पड़ी। खिड़की को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई। मैं पलंग से उठा और चल कर खिड़की के पास पहुंचा। खिड़की के पल्ले को खोल कर मैंने खिड़की के उस पार देखा। दूर दूर तक हरा भरा मैदान दिख रहा था जिसमें कुछ पेड़ पौधे भी थे। मैंने खिड़की की तरफ हाथ बढ़ाया और प्याले में भरी चाय को खिड़की के उस पार उड़ेल दिया। चाय उड़ेलने के बाद मैंने खिड़की को बंद किया और वापस पलंग के पास आ गया। खाली प्याले को मैंने लकड़ी के एक छोटे से स्टूल पर रख दिया और फिर नित्य क्रिया के लिए कमरे से बाहर निकल गया।

नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर मैं नहाया धोया और अच्छे वाले कपड़े पहन कर नीचे आ गया। इस बीच एक सवाल मेरे ज़हन में विचरण कर रहा कि मेरे दोनों चचेरे भाई मुझे नामर्द क्यों बना देना चाहते हैं? आख़िर इससे उन्हें क्या लाभ होने वाला है? उन दोनों का सम्बन्ध साहूकार के लड़के गौरव से है और उस गौरव के ही द्वारा उन्हें वो दवा मिली है, जिसे चाय में मिला कर मुझे पिलाई जा रही थी। गौरव के ही निर्देशानुसार ये दोनों भाई ये सब कर रहे थे। मुझे उस गौरव को पकड़ना होगा और अच्छे से उसकी गांड तोड़नी होगी। तभी पता चलेगा कि ये सब चक्कर क्या है।

नीचे आया तो कुसुम फिर से मुझे मिल गई। उसने मुझे बताया कि अभी अभी ताऊ जी ने मुझे बैठक में बुलाया है। कुसुम की ये बात सुन कर मैं बाहर बैठक की तरफ बढ़ गया। कुछ ही देर में जब मैं बैठक में पंहुचा तो देखा बैठक में पिता जी और जगताप चाचा जी के साथ साथ साहूकार मणि शंकर भी बैठा हुआ था। मणि शंकर को सुबह सुबह यहाँ देख कर मैं हैरान नहीं हुआ क्योंकि मैं समझ गया था कि वो यहाँ क्यों आया था। ख़ैर मैंने एक एक कर के सबके पैर छुए और उन सबका आशीर्वाद लिया। मेरे इस शिष्टाचार पर सबके चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए।

"हालाँकि हमने इन्हें उसी दिन कह दिया था कि वैभव समय से इनके घर पहुंच जाएगा।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"किन्तु फिर भी ये तुम्हें लेने आए हैं।"
"आपने भले ही कह दिया था ठाकुर साहब।" मणि शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ ही नहीं बल्कि मेरी ख़ुशी की भी बात है कि मैं खुद छोटे ठाकुर को यहाँ लेने के लिए आऊं और फिर अपने साथ इन्हें सम्मान के साथ अपने घर ले जाऊं।"

"इस औपचारिकता की कोई ज़रूरत नहीं थी मणि काका।" मैंने नम्र भाव से कहा____"मैं एक मामूली सा लड़का हूं जिसे आप अपने घर बुला कर सम्मान देना चाहते हैं, जबकि मुझ में ऐसी कोई बात ही नहीं है जिसके लिए मेरा सम्मान किया जाए। अब तक मैंने जो कुछ भी किया है उसके लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं और अब से मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं एक अच्छा इंसान बनूं। आपके मन में मेरे प्रति प्रेम भाव है और आप मुझे अपने घर बुला कर मेरा मान बढ़ाना चाहते हैं तो ये मेरे लिए ख़ुशी की ही बात है।"

"हमे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है कि हमारा सबसे प्यारा भतीजा पूरी तरह बदल गया है।" सहसा जगताप चाचा जी ने कहा____"आज वर्षों बाद अपने भतीजे को इस रूप में देख कर बहुत अच्छा लग रहा है।"

"आपने बिलकुल सही कहा मझले ठाकुर।" मणि शंकर ने कहा____"छोटे ठाकुर में आया ये बदलाव सबके लिए ख़ुशी की बात है। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। वक़्त बदलता है और वक़्त के साथ साथ इंसान को भी बदलना पड़ता है। छोटे ठाकुर के अंदर जो भी बुराइयां थी वो सब अब दूर हो चुकी हैं और अब इनके अंदर सिर्फ अच्छाईयां ही हैं।"

"नहीं काका।" मैंने मणि शंकर की तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरे बारे में इतनी जल्दी ऐसी राय मत बनाइए, क्योंकि अभी मैंने अच्छाई वाला कोई काम ही नहीं किया है और जब ऐसा कोई काम किया ही नहीं है तो मैं अच्छा कैसे साबित हो गया? सच तो ये है काका कि मुझे अपने कर्म के द्वारा ये साबित करना होगा कि मुझ में अब कोई बुराई नहीं है और मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर ही चल रहा हूं।"

"वाह! क्या बात कही है छोटे ठाकुर।" मणि शंकर ने कहा____"तुम्हारी इस बात से अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम पहले वाले वो इंसान नहीं रहे जिसके अंदर सिर्फ और सिर्फ बुराईयां ही थी बल्कि अब तुम सच में बदल गए हो और अब तुम्हारे अंदर अच्छाईयों का उदय हो चुका है।"

मणि शंकर की इस बात पर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही उसके बाद मणि शंकर ने पिता जी से जाने की इजाज़त ली और कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। पिता जी का हुकुम मिलते ही मैं मणि शंकर के साथ बाहर निकल गया। बाहर मणि शंकर की बग्घी खड़ी थी। मणि शंकर ने मुझे सम्मान देते हुए बग्घी में बैठने को बड़े आदर भाव से कहा तो मैंने उनसे कहा कि आप मुझसे बड़े हैं इस लिए पहले आप बैठिए। मेरे ऐसा कहने पर मणि शंकर ख़ुशी ख़ुशी बग्घी में बैठ गया और उसके बैठने के बाद मैं भी उसके बगल से बैठ गया। हम दोनों बैठ गए तो बग्घी चला रहे एक आदमी ने घोड़ो की लगाम को हरकत दे कर बग्घी को आगे बढ़ा दिया।

बग्घी में मणि शंकर के बगल से बैठा मैं सोच रहा था कि यहाँ से मेरी ज़िन्दगी का शायद एक नया अध्याय शुरू होने वाला है। अब देखना ये है कि इस अध्याय में कौन सी इबारत लिखी जाने वाली है। रास्ते में मणि शंकर से इधर उधर की बातें होती रही और कुछ ही देर में बग्घी मणि शंकर के घर के अंदर दाखिल हो गई। मणि शंकर के घर के सामने एक बड़ा सा मैदान था जहां घर के मुख्य दरवाज़े के सामने ही बग्घी को रोक दिया गया था। मैंने देखा दरवाज़े के बाहर मणि शंकर के सभी भाई और उनके लड़के खड़े थे। मणि शंकर के बाद मैं भी बग्घी से नीचे उतरा और आगे बढ़ कर मणि शंकर के सभी भाइयों के पैर छू कर उन सबका आशीर्वाद लिया। मेरे ऐसा करने पर जहां वो सब खुश हो गए थे वहीं उनके लड़के थोड़ा हैरान हुए थे। वो सब मुझे अजीब सी नज़रों से देख रहे थे लेकिन मैंने उन्हें थोड़ा और भी हैरान तब किया जब मैंने खुद ही उनसे नम्र भाव से उनका हाल चाल पूछा।

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