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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

Chutiyadr

Well-Known Member
16,889
41,092
259
:lotpot:

Ek kaam karuga main, aur wo ye ki jaha par sex scene aayega waha ka sara sex scene dr sahab se likhwa liya karuga,,,, :D
aisa gajab mat karna sex sences likhna to mujhe bhi bahut bhari lagta hai , aap apna natural likho , baki story to badiya ban rahi hai ..
agala update kab de rahe ho aise :D
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
aisa gajab mat karna sex sences likhna to mujhe bhi bahut bhari lagta hai , aap apna natural likho , baki story to badiya ban rahi hai ..
agala update kab de rahe ho aise :D
SANJU ( V. R. ) bhaiya ji ne bhi salaah di hai ki sex ko khul kar likhu. Isme sankoch karne ki koi zarurat nahi hai. Is liye ab main apni masumiyat ko ek kinare par rakh ke besharm ban jaauga,,,,:yes1:

Next update jald hi duga dr sahab, likh raha hu abhi,,,,:innocent:
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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SANJU ( V. R. ) bhaiya ji ne bhi salaah di hai ki sex ko khul kar likhu. Isme sankoch karne ki koi zarurat nahi hai. Is liye ab main apni masumiyat ko ek kinare par rakh ke besharm ban jaauga,,,,:yes1:
sahi hai :good:
ab masoomiyat chhod hi diye ho to hamari stories bhi padh lena :D
 

Naik

Well-Known Member
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258
☆ प्यार का सबूत ☆
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अध्याय - 02

अब तक,,,,

गुस्से में जलते हुए मैं गेहू काटता जा रहा था और रुका भी तब जब सारा गेहू काट डाला मैंने। ये चार महीने मैंने कैसे कैसे कष्ट सहे थे ये सिर्फ मैं और ऊपर बैठा भगवान ही जनता था। ख़ैर गेहू जब कट गया तो मैं उसकी पुल्लियां बना बना कर एक जगह रखने लगा। ये मेरी कठोर मेहनत का नतीजा था कि बंज़र ज़मीन पर मैंने गेहू उगाया था। आज के वक़्त में मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं थी। चार महीने पहले जो कुछ था भी तो उससे ज़रूरी चीज़ें ख़रीद लिया था मैंने और ये एक तरह से अच्छा ही किया था मैंने वरना इस ज़मीन पर ये फसल मैं तो क्या मेरे फ़रिश्ते भी नहीं उगा सकते थे।

अब आगे,,,,,

गेंहू की पुल्लियां बना कर मैंने एक जगह रख दिया था। ज़मीन का ये टुकड़ा ज़्यादा बड़ा नहीं था। मुश्किल से पच्चीस किलो गेहू का बीज डाला था मैंने। घर वालोें के द्वारा भले ही कष्ट मिला था मुझे मगर ऊपर वाला ज़्यादा तो नहीं पर थोड़ी बहुत मेहरबान ज़रूर हुआ था मुझ पर। जिसकी वजह से मैं इस ज़मीन पर फसल उगाने में कामयाब हो पाया था।

आस पास के गांव के लोगों को भी पता चल गया था कि ठाकुर प्रताप सिंह ने अपने छोटे बेटे को गांव से निकाल दिया है और उसका हुक्का पानी बंद करवा दिया है। सबको ये भी पता चल गया था कि गांव के हर ब्यक्ति को शख्ती से कहा गया था कि वो मुझसे किसी भी तरह से ताल्लुक न रखें और ना ही मेरी कोई मदद करें। ये बात जंगल के आग की तरह हर तरफ फ़ैल गई थी जिसकी वजह से दूसरे गांव वाले जो मेरे पिता को मान सम्मान देते थे उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया था। हालांकि मेरे पिता जी ने दूसरे गांव वालों को ऐसा करने के लिए नहीं कहा था किन्तु वो इसके बावजूद उनके ऐसे फैसले को अपने ऊपर भी ले लिए थे।

दुनिया बहुत बड़ी है और दुनिया में तरह तरह के लोग पाए जाते हैं जो अपनी मर्ज़ी के भी मालिक होते हैं। कहने का मतलब ये कि दूसरे गांव के कुछ लोग ऐसे भी थे जो चोरी छिपे मेरे पास आ जाया करते थे और मेरी मदद करते थे। उन्हीं में से एक आदमी था मुरारी सिंह।

मुरारी सिंह मेरी ही बिरादरी का था किन्तु उसकी हैसियत मेरे बाप जैसी नहीं थी। अपने खेतों पर वो भी काम करता था और रात में देसी दारु हलक के नीचे उतार कर लम्बा हो जाता था। उसके अपने परिवार में उसकी बीवी और दो बच्चे थे। एक लड़की थी जिसका नाम अनुराधा था और लड़के का नाम अनूप था। उसकी लड़की अनुराधा मेरी ही उम्र की थी। हल्का सांवला रंग जो कि उसकी सुंदरता का ही प्रतीक जान पड़ता था।

मुरारी के ज़ोर देने पर मैं किसी किसी दिन उसके घर चला जाया करता था। वैसे तो मुझ में नशा करने वाला कोई ऐब नहीं था किन्तु मुरारी के साथ मैं भी बीड़ी पी लिया करता था। वो मुझसे देसी दारु पीने को कहता तो मैं साफ़ इंकार कर देता था। बीड़ी भी मैं तभी पीता था जब वो मेरे पास झोपड़े में आता था। उसके घर में मैं जब भी जाता था तो उसकी बीवी अक्सर मेरे बाप के ऐसे फैसले की बातें करती और उसकी बेटी अनुराधा चोर नज़रों से मुझे देखती रहती थी। अगर मैं अपने मन की बात कहूं तो वो यही है कि मुरारी की लड़की मुझे अच्छी लगती थी। हालांकि उसके लिए मेरे दिल में प्यार जैसी कोई भावना नहीं थी बल्कि मुझे तो हमेशा की तरह आज भी ज़िन्दगी के हर मज़े से लेने से ही मतलब है। प्यार व्यार क्या होता है ये मैं समझना ही नहीं चाहता था।

इन चार महीनों में मुझे एक ही औरत ने मज़ा दिया था और वो थी खुद मुरारी की बीवी सरोज किन्तु ये बात उसके पति या उसकी बेटी को पता नहीं थी और मैं भला ये चाह भी कैसे सकता था कि उन्हें इसका पता चले। मुरारी ने मेरी बहुत मदद की थी। मुझे तो पता भी नहीं था कि ज़मीन में कैसे खेती की जाती है।

शुरुआत में तो मैं हर रोज़ उस बंज़र ज़मीन पर उगी घास को ही हटाने का प्रयास करता रहा था। हालांकि मेरे ज़हन में बार बार ये ख़याल भी आता था कि ये सब छोंड़ कर शहर चला जाऊं और फिर कभी लौट के यहाँ न आऊं मगर फिर मैं ये सोचने लगता कि मेरे बाप ने मुझे यहाँ पर ला पटका है तो एक बार मुझे भी उसे दिखाना है कि मैं यहां क्या कर सकता हूं। बस इसी बात के चलते मैंने सोच लिया था कि अब चाहे जो हो जाये किन्तु मैं इस बंज़र ज़मीन पर फसल उगा कर ही दम लूंगा। शुरुआत में मुझे बहुत मुश्किलें हुईं थी। दूसरे गांव जा कर मैं कुछ लोगों से कहता कि मेरी उस ज़मीन पर हल से जुताई कर दें मगर कोई मेरी बात नहीं सुनता था। एक दिन मुरारी कहीं से भटकता हुआ मेरे पास आया और उसने मुझे उस बंज़र ज़मीन पर पसीना बहाते हुए और कुढ़ते हुए देखा तो उसे मुझ पर दया आ गई थी।

मुरारी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा था छोटे ठाकुर मैं जानता हूं कि आस पास का कोई भी आदमी तुम्हारी मदद करने नहीं आता है क्यों कि वो सब बड़े ठाकुर के तलवे चाटने वाले कुत्ते हैं लेकिन मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करुंगा।

उसी शाम को मुरारी अपने बैल और हल ले कर मेरे पास आ गया और उसने उस बंज़र ज़मीन का सीना चीरना शुरू कर दिया। मैं उसके साथ ही चलते हुए बड़े ग़ौर से देखता जा रहा था कि वो कैसे ज़मीन की जुताई करता है और कैसे हल की मुठिया पकड़ कर बैलों को हांकता है। असल में मैं इस बात से तो खुश हो गया था कि मुरारी मेरी मदद कर रहा था लेकिन मैं ये भी नहीं चाहता था कि उसके इस उपकार की वजह से उस पर किसी तरह की मुसीबत आ जाए। इस लिए मैं बड़े ग़ौर से उसे हल चलाते हुए देखता रहा था। उसके बाद मैंने उससे कहा कि वो मुझे भी हल चलाना सिखाये तो उसने मुझे सिखाया। आख़िर एक दो दिन में मैं पक्का हल चलाने वाला किसान बन गया। उसके बाद मैंने खुद ही अपने हाथ से अपने उस बंज़र खेत को जोतना शुरू कर दिया था।

ज़मीन ज़्यादा ठोस तो नहीं थी किन्तु फिर भी वैसी नहीं बन पाई थी जिससे कि उसमे फसल उगाई जा सके। मुरारी का कहना था कि अगर बारिश हो जाये तो उम्मीद की जा सकती है। मुरारी की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था कि इस ज़मीन को पानी कहां से मिले? भगवान को तो अपनी मर्ज़ी के अनुसार ही बरसना था। इधर ज़मीन की परत निकल जाने से मैं दिन भर मिट्टी के डेलों से घास निकालता रहता। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया मगर पानी का कहीं से कोई जुगाड़ बनता नहीं दिख रहा था। पानी के बिना सब बेकार ही था। उस दिन तो मैं निराश ही हो गया था जब मुरारी ने ये कहा था कि गेंहू की फसल तभी उगेगी जब उसको भी कम से कम तीन बार पानी दिया जा सके। यहाँ तो पानी मिलना भी भगवान के भरोसे ही था।

एक दिन मैं थका हारा अपने झोपड़े पर गहरी नींद में सो रहा था कि मेरी नींद बादलों की गड़गड़ाहट से टूट गई। झोपड़े के दरवाज़े के पार देखा तो धूप गायब थी और हवा थोड़ी तेज़ चलती नज़र आ रही थी। मैं जल्दी से झोपड़े के बाहर निकला तो देखा आसमान में घने काले बादल छाये हुए थे। हर तरफ काले बादलों की वजह से अँधेरा सा प्रतीत हो रहा था। बादलों के बीच बिजली कौंध जाती थी और फिर तेज़ गड़गड़ाहट होने लगती थी। ये नज़ारा देख कर मैं इस तरह खुश हुआ जैसे विसाल रेगिस्तान में मेरे सूख चुके हलक को तर करने के लिए पानी की एक बूँद नज़र आ गई हो। भगवान ने मुझ पर दया करने का निर्णय किया था। मेरा दिल कर कर रहा था कि मैं इस ख़ुशी में उछलने लगूं।

थोड़ी ही देर में हवा और तेज़ हो गई और फिर आसमान से मोटी मोटी पानी की बूंदें ज़मीन पर टपकने लगीं। हवा थोड़ी तेज़ थी जिससे मेरा झोपड़ा हिलने लगा था। हालांकि मुझे अपने झोपड़े की कोई परवाह नहीं थी। मैं तो बस यही चाहता था कि आज ये बादल इतना बरसें कि संसार के हर जीव की प्यास बुझ जाये और जैसे भगवान ने मेरे मन की बात सुन ली थी। देखते ही देखते तेज़ बारिश शुरू हो गई। बारिश में भीगने से बचने के लिए मैं झोपड़े के अंदर नहीं गया बल्कि अपने उस जुते हुए खेत के बीच में आ कर खड़ा हो गया। दो पल में ही मैं पूरी तरह भीग गया था। बारिश इतनी तेज़ थी कि सब कुछ धुंधला धुंधला सा दिखाई दे रहा था। मैं तो ईश्वर से यही कामना कर रहा था कि अब ये बारिश रुके ही नहीं।

उस दिन रात तक बारिश हुई थी। मेरे जुते हुए खेत में पानी ही पानी दिखने लगा था। मेरी नज़र मेरे झोपड़े पर पड़ी तो मैं बस मुस्कुरा उठा। बारिश और हवा की तेज़ी से वो उलट कर दूर जा कर बिखरा पड़ा था। अब बस चार लकड़ियां ही ज़मीन में गड़ी हुई दिख रही थीं। मुझे अपने झोपड़े के बर्बाद हो जाने का कोई दुःख नहीं था क्यों कि मैं उसे फिर से बना सकता था किन्तु बारिश को मैं फिर से नहीं करवा सकता था। ईश्वर ने जैसे मेरे झोपड़े को बिखेर कर अपने पानी बरसाने का मुझसे मोल ले लिया था।

बारिश जब रुक गई तो रात में मुरारी भागता हुआ मेरे पास आया था। हाथ में लालटेन लिए था वो। मेरे झोपड़े को जब उसने देखा तो मुझसे बोला कि अब रात यहाँ कैसे गुज़ार पाओगे छोटे ठाकुर? उसकी बात पर मैंने कहा कि मुझे रात गुज़ारने की कोई चिंता नहीं है बल्कि मैं तो इस बात से बेहद खुश हूं कि जिस चीज़ की मुझे ज़रूरत थी भगवान ने वो चीज़ मुझे दे दी है।

मुरारी मेरी बात सुन कर बस मुस्कुराने लगा था फिर उसने कहा कि कल वो मेरे लिए एक अच्छा सा झोपड़ा बना देगा किन्तु आज की रात मैं उसके घर पर ही गुज़ारूं। मैं मुरारी की बात सुन कर उसके साथ उसके घर चला गया था। उसके घर पर मैंने खाना खाया और वहीं एक चारपाई पर सो गया था। मुरारी ने कहा था कि आज तो मौसम भी शराबी है इस लिए वो बिना देसी ठर्रा चढ़ाये सोयेगा नहीं और उसने वही किया भी था।

ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं रात में मुरारी के घर पर रुक रहा था। ख़ैर रात में सबके सोने के बाद मुरारी की बीवी चुपके से मेरे पास आई और मुझे हल्की आवाज़ में जगाया उसने। चारो तरफ अँधेरा था और मुझे तुरंत समझ न आया कि मैं कहां हूं। सरोज की आवाज़ जब फिर से मेरे कानों में पड़ी तो मुझे अहसास हुआ कि मैं आज मुरारी के घर पर हूं। ख़ैर सरोज ने मुझसे धीरे से कहा कि आज उसका बहुत मन है इस लिए घर के पीछे चलते हैं और अपना काम कर के चुप चाप लौट आएंगे। सरोज की इस बात से मैंने उससे कहा कि अगर तुम्हारी बेटी को पता चल गया तो वो कहीं हंगामा न खड़ा कर दे इस लिए ये करना ठीक नहीं है मगर सरोज न मानी इस लिए मजबूरन मुझे उसके साथ घर के पीछे जाना ही पड़ा।

घर के पीछे आ कर मैंने सरोज से एक बार फिर कहा कि ये सब यहाँ करना ठीक नहीं है मगर सरोज पर तो जैसे हवश का बुखार चढ़ गया था। उसने ज़मीन में अपने घुटनों के बल बैठ कर मेरे पैंट को खोला और कच्छे से मेरे लिंग को निकाल कर उसे सहलाने लगी। मेरी रंगों में दौड़ते हुए खून में जल्दी ही उबाल आ गया और मेरा लिंग सरोज के सहलाने से तन कर पूरा खड़ा हो गया। सरोज ने फ़ौरन ही मेरे तने हुए लिंग को अपने मुँह में भर लिया और उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ने लगी जिससे मैंने अपने दोनों हाथों से सरोज के सिर को पकड़ा और उसके मुँह में अपने लिंग को अंदर तक घुसाते हुए अपनी कमर को आगे पीछे हिलाने लगा। सरोज जिस तरह से मेरे लिंग को अपने मुंह में डाल कर चूस रही थी उससे पलक झपकते ही मैं मज़े के सातवें आसमान में उड़ने लगा था।

मज़े की इस तरंग की वजह से मेरे ज़हन से अब ये बात निकल चुकी थी कि ये सब करते हुए अगर मुरारी ने या उसकी लड़की अनुराधा ने हमें देख लिया तो क्या होगा। कोई और वक़्त होता और कोई और जगह होती तो मैं सरोज के साथ तरीके से मज़े लेता मगर इस वक़्त बस एक ही तरीका था कि सरोज का घाघरा उठा कर उसकी योनि में अपने लिंग को घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दूं।

सरोज ने मेरे मना करने के बावजूद मेरे लिंग को जी भर के चूसा और फिर खड़ी हो कर अपने घाघरे को अपने दोनों हाथों से ऊपर उठाने लगी। उसकी चोली में कैद उसके भारी भरकम खरबूजे चोली को फाड़ कर बाहर आने को बेताब हो रहे थे। मुझसे रहा न गया तो मैंने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर उन्हें पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा जिससे सरोज की सिसकारियां शांत वातावरण में फ़ैल ग‌ईं।

सरोज के खरबूजों को मसलने के बाद मैंने उसे पलटा दिया। वो समझ गई कि अब उसे क्या करना था इस लिए वो अपने घाघरे को कमर तक चढा कर पूरी तरह नीचे झुक गई जिससे उसका पिछवाड़ा मेरे सामने मेरे लिंग के पास आ गया। मैंने लिंग को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसकी योनि में सेट कर के कमर को आगे कर दिया। मेरा लिंग उसकी दहकती हुई योनि में अंदर तक समाता चला गया। सरोज ने एक सिसकी ली और अपने सामने की दीवार का सहारा ले लिया ताकि वो आगे की तरफ न जा सके।

ऐसे वक़्त में तरीके से काम करना ठीक नहीं था इस लिए मैंने सरोज की योनि में अपना लिंग उतार कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने सरोज की कमर को अच्छे से पकड़ लिया था और तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। मेरे हर धक्के पर थाप थाप की आवाज़ आने लगी तो मैंने धक्के इस अंदाज़ से लगाने शुरू कर दिए कि मेरा जिस्म उसके पिछवाड़े पर न टकराए। उधर झुकी हुई सरोज मज़े से आहें भरने लगी थी। हालांकि उसने अपने एक हाथ से अपना मुँह बंद कर लिया था मगर इसके बावजूद उसके मुख से आवाज़ निकल ही जाती थी। तेज़ तेज़ धक्के लगाते हुए मैं जल्दी से अपना पानी निकाल देना चाहता था मगर ऐसा हो नहीं रहा था। इस वक़्त मेरे लिए मेरी ये खूबी मुसीबत का सबब भी बन सकती थी मगर मैं अब क्या कर सकता था?

सरोज कई दिनों की प्यासी थी इस लिए तेज़ धक्कों की बारिश से वो थोड़ी ही देर में झड़ कर शिथिल पड़ गई मगर मैं वैसे ही लगा रहा। थोड़ी देर में वो फिर से मज़े में आहें भरने लगी। आख़िर मुझे भी आभास होने लगा कि मैं भी अपने चरम पर पहुंचने वाला हूं इस लिए मैंने और तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए मगर तभी सरोज आगे को खिसक गई जिससे मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर आ गया। मुझे उस पर बेहद गुस्सा आया और मैं इस गुस्से में उससे कुछ कहने ही वाला था कि उसने कहा कि झुके झुके उसकी कमर दुखने लगी है तो मैंने उसकी एक टांग को ऊपर उठा कर खड़े खड़े सम्भोग करने के लिए कहा तो उसने वैसा ही किया। एक हाथ से उसने दीवार का सहारा लिया और फिर अपनी एक टांग को हवा में उठाने लगी। मैंने उसकी उस टांग को एक हाथ से पकड़ लिया और फिर आगे बढ़ कर उसकी योनि में अपने लिंग को डाल दिया।

एक बार फिर से तेज़ धक्कों की शुरुआत हो चुकी थी। सरोज की सिसकिया फिर से फ़िज़ा में गूंजने लगी थीं जिसे वो बड़ी मुश्किल से रोंक पा रही थी। कुछ ही देर में सरोज का जिस्म कांपने लगा और वो फिर से झड़ गई। झड़ते ही उसमे खड़े रहने की शक्ति न रही इस लिए मुझे फिर से अपने लिंग को उसकी योनि से बाहर निकालना पड़ा किन्तु इस बार उसने नीचे बैठ कर मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया था और मुझे इशारा किया कि मैं उसके मुँह में ही अपना पानी गिरा दूं। सरोज के इशारे पर मैं शुरू हो गया। कुछ देर मैं उसके मुख में ही धीरे धीरे धक्के लगाता रहा उसके बाद सरोज ने मेरे लिंग को पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया जिससे थोड़ी ही देर में मैं मज़े की चरम सीमा पर पहुंच गया और सरोज के मुख में ही अपना सारा पानी गिरा दिया जिसे उसने सारा का सारा हलक के नीचे उतार लिया। उसके बाद हम जिस तरह दबे पाँव आये थे उसी तरह दबे पाँव घर के अंदर भी चले आए।

अभी मैं अपनी चारपाई पर आ कर चुप चाप लेटा ही था कि अंदर कहीं से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मेरी रूह तक काँप ग‌ई। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि कहीं किसी को हमारे इस कर्म काण्ड का पता तो नहीं चल गया? उस रात यही सोचते सोचते मैं सो गया था। दूसरे दिन मैं उठा तो मेरी नज़र मुरारी की लड़की अनुराधा पर पड़ी। वो मेरी चारपाई के पास ही हाथ में चाय से भरा एक स्टील का छोटा सा गिलास लिए खड़ी थी। मैंने उठ कर उससे चाय का गिलास लिया तो वो चुप चाप चली गई।

मुरारी से मेरी पहचान को इतना समय हो गया था और मैं उसके घर भी आता रहता था किन्तु इतने दिनों में आज तक अनुराधा से मेरी कोई बात नहीं हो पाई थी। वो अपनी माँ से ज़्यादा सुन्दर थी। उसका साँवला चेहरा हमेशा सादगी और मासूमियत से भरा रहता था। मैं जब भी उसे देखता था तो मेरी धड़कनें थम सी जाती थी मगर उससे कुछ बोलने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं होती थी। उसकी ख़ामोशी देख कर मेरी हिम्मत भी जवाब दे जाती थी। हालांकि उसका छोटा भाई अनूप मुझसे बड़े अच्छे से बात करता था और मेरे आने पर वो खुश भी हो जाता था। ऐसा इस लिए क्योंकि मेरे आने से जब उसकी माँ मुझे नमकीन और बिस्कुट नास्ते में देती तो मैं उसे भी खिलाता था।

चाय पीते हुए मैं अनुराधा की तरफ भी देख लेता था। वो रसोई के पास ही बैठी हंसिया से आलू काट रही थी। मेरी नज़र जब भी उस पर पड़ी थी तो मैं उसे अपनी तरफ ही देखते हुए पाया था। हमारी नज़रें जब आपस में टकरा जातीं तो वो फ़ौरन ही अपनी नज़रें झुका लेती थी किन्तु आज ऐसा नहीं था। आज जब हमारी नज़रें मिलती थीं तो वो अजीब सा मुँह बना लेती थी। पहले तो मुझे उसका यूं मुँह बनाना समझ में न आया किन्तु फिर एकदम से मेरे ज़हन में कल रात वाला वाक्या उभर आया और फिर ये भी याद आया कि जब मैं और सरोज अपना काम करके वापस आये थे तो किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई थी।

मेरे दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से ये ख़याल उभरा कि कहीं रात में अनुराधा को हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया? मैं चारपाई पर जैसे ही लेटने लगा था वैसे ही किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई थी। हालांकि रात में हर तरफ अँधेरा था और कुछ दिख नहीं रहा था मगर अनुराधा का इस वक़्त मुझे देख कर इस तरह से मुँह बनाना मेरे मन में शंका पैदा करने लगा था जो कि मेरे लिए अच्छी बात हरगिज़ नहीं थी। इन सब बातों को सोचते ही मेरे अंदर घबराहट उभरने लगी और मुझे अनुराधा के सामने इस तरह चारपाई पर बैठना अब मुश्किल लगने लगा। मैंने जल्दी से चाय ख़त्म की और चारपाई से उठ कर खड़ा हो गया। मुरारी मुझे कहीं दिख नहीं रहा था और ना ही उसकी बीवी सरोज मुझे दिख रही थी। मैंने अनुराधा से पूछने का सोचा। ये पहली बार था जब मैं उससे कुछ बोलने वाला था या कुछ पूछने वाला था। मैंने उससे उसके पिता के बारे में पूछा तो उसने कुछ पल मुझे देखा और फिर धीरे से कहा कि वो दिशा मैदान को गए हैं।

"ठीक है फिर।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए संतुलित स्वर में कहा____"उनसे कहना कि मैं चाय पी कर अपने खेत पर चला गया हूं।"
"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूं?" मैं अभी दरवाज़े की तरफ बढ़ा ही था कि पीछे से उसकी आवाज़ सुन कर ठिठक गया और फिर पलट कर धड़कते हुए दिल से उसकी तरफ देखा।

"हां पूछो।" मैंने अपनी बढ़ चुकी धड़कनों को किसी तरह सम्हालते हुए कहा।
"वो कल रात आप और मां।" उसने अटकते हुए लहजे से नज़रें चुराते हुए कहा____"कहां गए थे अँधेरे में?"

उसके पूछने पर मैं समझ गया कि कल रात किसी चीज़ के गिरने से जो आवाज़ हुई थी उसकी वजह अनुराधा ही थी। किन्तु उसके पूछने पर मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या उसने हमें वो सब करते हुए देख लिया होगा? इस ख़्याल के साथ ही मेरी हालत ख़राब होने लगी।

"वो मुझे नींद नहीं आ रही थी।" फिर मैंने आनन फानन में उसे जवाब देते हुए कहा____"इस लिए बाहर गया था किन्तु तुम ये क्यों कह रही हो कि मैं और तुम्हारी माँ कहां गए थे? क्या काकी भी रात में कहीं गईं थी?"

"क्या आपको उनके जाने का पता नहीं है?" उसने अपनी आंखें सिकोड़ते हुए पूछा तो मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो ग‌ईं।
"मुझे भला कैसे पता होगा?" मैंने अपने माथे पर उभर आए पसीने को महसूस करते हुए कहा____"अँधेरा बहुत था इस लिए मैंने उन्हें नहीं देखा।"


---------☆☆☆---------
Behtareen update bhai shaandaar
Barish bhi ho gayi bagwan n sun li vaibhav babu ki lekin raat ka kand lagta kuch gad ho gaya shayab beti n dekh lia h aisa uske. Poochne se lag raha h dekhte h aage kia hota h
Behtareen update bhai
 
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Ek kaam karuga main, aur wo ye ki jaha par sex scene aayega waha ka sara sex scene dr sahab se likhwa liya karuga,,,, :D
डॉ साहब तो खुद ही डर डर कर लिखते हैं पर लगता है हाल फिलहाल थोड़ी हिम्मत आ गई है । :D
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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डॉ साहब तो खुद ही डर डर कर लिखते हैं पर लगता है हाल फिलहाल थोड़ी हिम्मत आ गई है । :D
Dr sahab aaj kal apni himmat daru pe ke gf ko call karne me dikha rahe hain,,,,:lol:

Abhi to kamdev99008 bhaiya ji nahi aaye. Dekhta hu wo is bare me apne kya vichaar prastut karte hain,,,,:D
Waise pata nahi kaha gaayab rahte hain aaj kal. Ham to moksh ki raaho me aas lagaye baithe hain,,,,:dazed:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 03
---------☆☆☆---------


अब तक,,,,

"वो मुझे नींद नहीं आ रही थी।" फिर मैंने आनन फानन में उसे जवाब देते हुए कहा____"इस लिए बाहर गया था किन्तु तुम ये क्यों कह रही हो कि मैं और तुम्हारी माँ कहां गए थे? क्या काकी भी रात में कहीं गईं थी?"

"क्या आपको उनके जाने का पता नहीं है?" उसने अपनी आंखें सिकोड़ते हुए पूछा तो मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो ग‌ईं।
"मुझे भला कैसे पता होगा?" मैंने अपने माथे पर उभर आए पसीने को महसूस करते हुए कहा____"अँधेरा बहुत था इस लिए मैंने उन्हें नहीं देखा।"


अब आगे,,,,,

मेरी बात सुन कर अनुराधा मुझे ख़ामोशी से देखने लगी थी। उसका अंदाज़ ऐसा था जैसे वो मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो और साथ ही ये पता भी कर रही हो कि मैं झूठ बोल रहा हूं या सच? उसके इस तरह देखने से मुझे मेरी धड़कनें रूकती हुई सी महसूस हुईं। जीवन में पहली बार मैं किसी लड़की के सामने अंदर से इतना घबराया हुआ महसूस कर रहा था। ख़ैर इससे पहले कि वो मुझसे कुछ और कहती मैं फौरन ही पलट कर दरवाज़े से बाहर निकल गया। पीछे से इस बार उसने भी मुझे रोकने की कोशिश नहीं की थी।

मुरारी के घर से मैं तेज़ तेज़ क़दमों से चलते हुए सीधा जंगल की तरफ निकल गया। मेरे कानों में अभी भी अनुराधा की बातें गूंज रही थीं और मैं ये सोचे जा रहा था कि क्या सच में उसे पता चल गया है या वो मुझसे ये सब पूछ कर अपनी शंका का समाधान करना चाहती थी? मैं ये सब सोचते हुए किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच सका, किन्तु मेरे मन में ये ख़याल ज़रूर उभरा कि अगर उसने सच में देख लिया होगा या फिर उसे पता चल गया होगा तो मेरे लिए ये ठीक नहीं होगा क्यों कि अनुराधा अब मेरे दिमाग में घर कर चुकी थी और मैं उसे किसी भी कीमत पर भोगना चाहता था। अगर उसे इस सबका पता चल गया होगा तो मेरी ये मंशा कभी पूरी नहीं हो सकती थी क्यों कि उस सूरत में मेरे प्रति उसके ख़याल बदल जाने थे। उसके मन में मेरे प्रति यही छवि बन जानी थी कि मैं एक निहायत ही गिरा हुआ इंसान हूं जिसने उसकी माँ के साथ ग़लत काम किया था।

जंगल में पहुंच कर मैं नित्य क्रिया से फ़ारिग हुआ और फिर नहा धो कर वापस अपने खेत पर आ गया था। मेरे दिमाग़ से अनुराधा का ख़याल और उसकी बातें जा ही नहीं थी और हर गुज़रते पल के साथ मेरे अंदर एक बेचैनी सी बढ़ती जा रही थी जो अब मुझे परेशान करने लगी थी। मेरा मन अब किसी भी काम में नहीं लग रहा था। जाने कितनी ही देर तक मैं अपने खेत के पास बैठा इन ख़यालों में डूबा रहा था।

"छोटे ठाकुर।" एक जानी पहचानी आवाज़ को सुन कर मैंने पलट कर आवाज़ की दिशा में देखा। मुरारी सिंह मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा था और उसी ने ज़ोर की आवाज़ देते हुए कहा था____"आज क्या तुमने तय कर लिया है कि सारी फसल काट कर और उसे गाह कर उसका सारा अनाज झोपड़े में रख लेना है?"

मुरारी की बातें सुन कर मैंने चौंक कर अपने हाथों की तरफ देखा। मेरे हाथ में गेहू की पुल्लियों का एक गट्ठा था जिसे मैं रस्सी से बाँध रहा था। गुज़र चुके दिनों की याद में मैं इस क़दर खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि मैं वर्तमान में क्या कर रहा था। मैंने खेत में चारो तरफ नज़र घुमाई तो देखा मैंने गेहू की सारी पुल्लियों को रस्सी से बाँध बाँध कर एक जगह इकठ्ठा कर लिया था। मुझे अपने द्वारा किये गए इस काम को देख कर बड़ी हैरानी हुई। फिर मुझे याद आया कि आज घर से भाभी आईं थी और मैं उनसे बात करते हुए बेहद गुस्सा हो गया था। गुस्से में मैंने जाने क्या क्या कह दिया था उन्हें। मुझे अहसास हुआ कि मुझे इस तरह उनसे गुस्से में बात नहीं करनी चाहिए थी। आख़िर उनकी तो कोई ग़लती नहीं थी।

वैसे हक़ीक़त ये थी कि मुझे गुस्सा भी इस बात पर आ गया था कि इन चार महीनों में मेरे घर का कोई भी सदस्य मुझसे मिलने नहीं आया था और ना ही ये देखने आया था कि घर गांव से निकाले जाने के बाद मैं किस तरह से यहाँ जी रहा हूं। भाभी ने ये कह दिया कि माँ मेरे लिए बहुत दुखी हैं तो क्या उससे मुझे संतुष्टि मिल जाएगी? मेरे माँ बाप को तो जैसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था कि मैं यहाँ किस हाल में हूं। अपने मान सम्मान को बढ़ाने के लिए कोई फैसला करना बहुत आसान होता है लेकिन अगर यही फैसला खुद उनके लिए होता और वो खुद ऐसी परिस्थिति में होते तब पता चलता कि कैसा महसूस होता है। सारी दुनियां मुझे बुरा कहे मगर मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। मेरे अंदर तो माँ बाप के लिए नफ़रत में जैसे और भी इज़ाफ़ा हो गया था।

इन चार महीनों में मैं इतना तो सीख ही गया था कि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता। सब साले मतलब के रिश्ते हैं और मतलब के यार हैं। जब मेरे अपनों का ये हाल था तो गैरों के बारे में क्या कहता? मेरे दोस्तों में से कोई भी मेरे पास नहीं आया था। जब भी ये सोचता था तो मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी धधक उठता था और मन करता था कि ऐसे मतलबी दोस्तों को जान से मार दूं।

"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" मुरारी ने मुझे ख़यालों में गुम देखा तो इस बार वो थोड़ा चिंतित भाव से पूछ बैठा था____"आज क्या हो गया है तुम्हें? कहां इतना खोये हुए हो?"

"काका देशी है क्या तुम्हारे पास?" मैंने गेहू के गट्ठे को एक बड़े गट्ठे के पास फेंकते हुए मुरारी से पूछा तो वो हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोला____"देशी??? ये क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर? क्या आज देशी चढ़ाने का इरादा है?"

"मुझे समझ आ गया है काका।" मैंने मुरारी के पास आते हुए कहा____"कि दुनिया में कोई भी चीज़ बुरी नहीं होती, बल्कि देशी जैसी चीज़ तो बहुत ही अच्छी होती है। अगर तुम्हारे पास है तो लाओ काका। आज मैं भी इसे पिऊंगा और इसके नशे को महसूस करुंगा।"

"छोटे ठाकुर।" मुरारी मुझे बड़े ध्यान से देखते हुए बोला____"आख़िर बात क्या है? कुछ हुआ है क्या?"
"क्या तुम्हें लगता है काका कि कुछ हो सकता है?" मैंने फीकी सी मुस्कान में कहा____"अपने साथ तो जो होना था वो चार महीने पहले ही हो चुका है। अब तो बस ये फसल गाह लूं और अपने बाप को दिखा दूं कि उसने मुझे तोड़ने का भले ही पूरा प्रबंध किया था मगर मैं ज़रा भी नहीं टूटा बल्कि पहले से और भी ज़्यादा मजबूत हो गया हूं।"

मुरारी मेरे मुख से ऐसी बातें सुन कर हैरान था। ऐसा नहीं था कि उसने ऐसी बातें मेरे मुख से पहले सुनी नहीं थी किन्तु आज वो हैरान इस लिए था क्योंकि आज मेरी आवाज़ में और मेरे बोलने के अंदाज़ में भारीपन था। मेरे चेहरे पर आज उसे एक दर्द दिख रहा था।

"ऐसे क्या देख रहे हो काका?" मैंने मुरारी के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा____"देशी हो तो निकाल कर दो न मुझे। यकीन मानो काका आज तुम्हारी देशी पीने का बहुत मन कर रहा है।"

"छोटे ठाकुर।" मुरारी ने संजीदगी से कहा____"अभी तो नहीं है मेरे पास लेकिन अगर तुम सच में पीना चाहते हो तो मैं घर से ले आऊंगा।"
"अरे तो तुम्हें क्या लगा काका?" मैंने मुरारी से दो कदम पीछे हटते हुए कहा____"मैं क्या तुमसे मज़ाक कर रहा हूं? अभी जाओ और घर से देशी लेकर आओ। आज हम दोनों साथ में बैठ कर देशी शराब पिएँगे।"

मुरारी मेरी बातों से अचंभित था और मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे कि मैं एकदम से पागल हो गया हूं। ख़ैर मेरे ज़ोर देने पर मुरारी वापस अपने घर की तरफ चला गया। वो तेज़ तेज़ क़दमों से चला जा रहा था और उसे जाता देख मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई थी। इस वक़्त सच में मेरे अंदर एक द्वन्द सा चल रहा था। एक आग सी लगी हुई थी मेरे अंदर जो मुझे जलाये जा रही थी और मैं चाहता था कि ये आग और भी ज़्यादा भड़के। मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से विचारों का बवंडर घूमे जा रहा था।

मुरारी के जाने के बाद मैं अपने झोपड़े की तरफ आ गया। आज बहुत ज्यादा मेहनत की थी मैंने और अब मुझे थकान महसूस हो रही थी। जिस्म से पसीने की बदबू भी आ रही थी इस लिए मैंने सोचा कि नहा लिया जाये ताकि थोड़ी राहत महसूस हो। मिट्टी के दो बड़े बड़े मटके थे मेरे पास जिनमे पानी भर कर रखता था मैं और एक लोहे की बाल्टी थी। मैंने एक मटके से बाल्टी में पानी भरा और झोपड़े के पास ही रखे एक सपाट पत्थर के पास बाल्टी को रख दिया। उसके बाद मैंने अपने जिस्म से बनियान और तौलिये को उतार कर उस सपाट पत्थर के पास आ गया।

पानी से पहले मैंने हाथ पैर धोये और फिर लोटे में पानी भर भर कर अपने सिर पर डालने लगा। मिट्टी के मटके का पानी बड़ा ही शीतल था। जैसे ही वो ठंडा पानी मेरे जिस्म पर पड़ा तो मुझे बेहद आनंद आया। हाथों से अच्छी तरह जिस्म को मला मैंने और फिर से लोटे में पानी भर भर कर अपने सिर पर डालने लगा। बाल्टी का पानी ख़त्म हुआ तो मटके से और पानी लिया और फिर से नहाना शुरू कर दिया। नहाने के बाद थोड़े बचे पानी से मैंने कच्छा बनियान धोया और गन्दा पानी फेंक कर बाल्टी को झोपड़े के पास रख दिया। गीले कच्छे बनियान को मैंने वहीं एक तरफ झोपड़े के ऊपर फैला कर डाल दिया।

नहाने के बाद अब मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। दिन ढलने लगा था और शाम का धुंधलका धीरे धीरे बढ़ने लगा था। नहाने के बाद मैंने दूसरा कच्छा बनियान पहन लिया और ऊपर से पैंट शर्ट भी। अभी मैं कपड़े पहन कर झोपड़े से बाहर आया ही था कि मुरारी आ गया।

मुरारी देशी शराब के दो ठर्रे ले कर आया था। मुरारी के बड़े उपकार थे मुझ पर और मैं हमेशा सोचता था कि अगर वो न होता तो क्या मैं इस बंज़र ज़मीन पर अकेले फसल उगा पाता? बेशक मैंने बहुत मेहनत की थी मगर खेत में हल चलाना और बीज बोना उसी ने सिखाया था मुझे। उसके बाद जब गेहू की फसल कुछ बड़ी हुई तो उसी की मदद से मैंने खेत को पानी से क‌ई बार सींचा था। सिंचाई के लिए कोई नशीन तो थी नहीं इस लिए उसकी बैल गाडी ले कर मैं जंगल जाता और जंगल के अंदर मौजूद उस नदी से ड्रमों में पानी भर कर लाता था। नदी से ड्रमों में पानी भर कर लाता और फिर उस पानी को अपने खेत में डालता था। किसी किसी दिन मुरारी इस काम में मेरा साथ देता था। उसके अपने भी खेत थे जिनमे वो ब्यस्त रहता था। किसी किसी दिन उसकी बीवी सरोज भी आ जाया करती थी और थोड़ी बहुत मेरी मदद कर देती थी। हालांकि उसके आने का प्रयोजन कुछ और ही होता था।

मुरारी के इन उपकारों के बारे में जब भी मैं सोचता तो मुझे अपने उस काम की याद आ जाती जो मैं उसकी बीवी के साथ करता था। हालांकि मैं उसकी बीवी के साथ जो भी करता था उसमे उसकी बीवी की भी बराबर रज़ामंदी होती थी किन्तु इसके बावजूद मुझे अपने अंदर एक ग्लानि सी महसूस होती थी और उस ग्लानि के लिए मैं ईश्वर से माफ़ी भी मांगता था।

मुरारी की बेटी अनुराधा से मैं बहुत कम बात करता था। उस दिन के हादसे के बाद मैं उसके सामने जाने से ही कतराने लगा था। हालांकि उस हादसे के बाद उसने कभी मुझसे उस बारे में कुछ नहीं पूछा था बल्कि अब तो ऐसा भी होता था कि अगर मैं मुरारी के साथ उसके घर जाता तो वो मुझे देख कर हल्के से मुस्कुरा देती थी। जब वो हल्के से मुस्कुराती थी तो मेरे मन के तार एकदम से झनझना उठते थे और दिल में जज़्बातों और हसरतों का तूफ़ान सा खड़ा हो जाता था मगर फिर मैं खुद को सम्हाल कर उसके सामने से हट जाता था। अनुराधा को अब तक जितना मैंने जाना था उसका सार यही था कि वो एक निहायत ही शरीफ लड़की थी जिसमे सादगी और मासूमियत कूट कूट कर भरी हुई थी।

मुरारी का घर गांव के एकांत में बना हुआ था जहां पर उसके खेत थे। मुरारी का एक भाई और था जिसका घर गांव में बना हुआ था। अनुराधा ज़्यादातर घर में ही रहती थी या फिर अपने माँ बाप और भाई के साथ खेतों पर काम करने चली जाती थी। मैं उसके बारे में हमेशा सोचता था कि गांव में ऐसी लड़की मेरे जैसे हवस के पुजारियों से अब तक कैसे बची हुई थी?

"छोटे ठाकुर।" मुरारी की आवाज़ से मैं ख़यालों से बाहर आया____"तुम्हारे लिए अलग से देशी का एक ठर्रा ले कर आया हूं और घर से चने भी भुनवा कर लाया हूं। वैसे मैं तो ऐसे ही पी लेता हूं इसे।"

"तो मैं भी ऐसे ही पी लूंगा इसे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"काकी को क्यों परेशान किया चने भुनवा कर?"
"क्या बात करते हो छोटे ठाकुर।" मुरारी ने बुरा सा मुँह बनाया____"ये चने तो मैंने अनुराधा बिटिया से भुनवाये हैं। तुम्हारी काकी तो ससुरी मेरी सुनती ही नहीं है कभी।"

"ऐसा क्यों काका?" मुरारी की इस बात से मैंने पूछा____"काकी तुम्हारी क्यों नहीं सुनती है?"
"अब तुमसे क्या बताऊं छोटे ठाकुर?" मुरारी ने देशी ठर्रे का ढक्कन खोलते हुए कहा____"उम्र में मुझसे छोटे हो और रिश्ते में मेरे भतीजे भी लगते हो इस लिए तुमसे वो सब बातें नहीं कह सकता।"

"उम्र में मैं छोटा हूं और रिश्ते में तुम्हारा भतीजा भी लगता हूं।" मैंने फिर से मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन दारू तो पिला ही रहे हो ना काका? क्या इसके लिए तुमने सोचा कुछ? जबकि बाकी चीज़ों के लिए तुम मुझे उम्र और रिश्ते का हवाला दे रहे हो।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है छोटे ठाकुर।" मुरारी ने देशी शराब को एक गिलास में उड़ेलते हुए कहा____"लेकिन इसकी बात अलग है और उसकी अलग।"
"अरे! क्या इसकी उसकी लगा रखे हो काका?" मैंने कहा____"हमारे बीच क्या रिश्ता है उसको गोली मारो। मैं तो बस इतना जानता हूं कि आज के वक़्त में मेरा तुम्हारे सिवा कोई नहीं है। इन चार महीनो में जिस तरह से तुमने मेरा साथ दिया है और मेरी मदद की है उसे मैं कभी नहीं भुला सकता। इस लिए तुम मेरे लिए हर रिश्ते से बढ़ कर हो।"

"तुम कुछ ज़्यादा ही मुझे मान दे रहे हो छोटे ठाकुर।" मुरारी ने एक दूसरे गिलास में देशी को उड़ेलते हुए कहा____"जब कि सच तो ये है कि मैंने जो कुछ किया है उसमे मेरा भी कोई न कोई स्वार्थ था।"

"सबसे पहले तो तुम मुझे छोटे ठाकुर बोलना बंद करो काका।" मैंने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"मुझे इस शब्द से नफ़रत हो गई है। तुम जब भी मुझे इस नाम से बुलाते हो तो मुझे इस नाम से जुड़ा हर रिश्ता याद आ जाता है, जो मुझे तकलीफ देने लगता है। इस लिए अब से तुम मुझे सिर्फ वैभव बुलाओगे।"

"मैं तुम्हें नाम से कैसे बुला सकता हूं छोटे ठाकुर?" मुरारी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"अगर कहीं से बड़े ठाकुर को इस बात का पता चल गया तो वो मेरी खाल उधेड़वा देंगे।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा काका।" मैंने शख्त भाव से कहा____"अगर होना होता तो पहले ही हो जाता। तुम्हें क्या लगता है तुम्हारे उस बड़े ठाकुर को क्या ये पता नहीं होगा कि तुम मेरी मदद करते हो? उसे ज़रूर पता होगा। वो अपने आदमियों के द्वारा मेरी हर पल की ख़बर रखता होगा लेकिन उसने आज तक तुम्हारे या तुम्हारे परिवार के साथ कुछ नहीं किया। इस लिए इस बात से बेफिक्र रहो और हां अगर वो ऐसा करेगा भी तो मैं तुम्हारे सामने तुम्हारी ढाल बन कर खड़ा हो जाउंगा। उसके बाद मैं भी देखूगा कि तुम्हारा वो बड़ा ठाकुर क्या उखाड़ लेता है।"

"अपने पिता से इतनी नफ़रत ठीक नहीं है छोटे ठाकुर।" मुरारी मेरी बातें सुन कर थोड़ा सहम गया था____"माना कि उन्होंने ये सब कर के अच्छा नहीं किया है मगर उनके ऐसा करने के पीछे भी कोई न कोई वजह ज़रूर होगी।"

"तुम मेरे सामने उस इंसान की तरफदारी मत करो काका।" मैंने गुस्से से कहा____"वो मेरा कोई नहीं है और ना ही मेरी नज़र में उसकी कोई अहमियत है। सोचा था कि आज तुम्हारे साथ देशी पिऊंगा और तुमसे अपने दिल की बातें करुंगा मगर तुमने मेरा मूड ख़राब कर दिया। ले जाओ अपनी इस शराब को।"

"छोटे ठाकुर।" मुरारी ने भय और आश्चर्य से बोला ही था कि मैं गुस्से से उबलते हुए चीख पड़ा____"ख़ामोश! अपना ये सामान समेटो और चले जाओ यहाँ से। मुझे किसी की ज़रूरत नहीं है। तुम सब उस घटिया इंसान के तलवे चाटने वाले कुत्ते हो। चले जाओ मेरी नज़रों के सामने से।"

मुझे इस वक़्त इतना गुस्सा आ गया था कि मैं खुद आवेश में कांपने लगा था। मुरारी मेरा ये रूप देख कर बुरी तरह घबरा गया था। मैं मिट्टी के बने उस छोटे चबूतरे से उठा और अँधेरे में ही जंगल की तरफ चल पड़ा। इस वक़्त मैं नफ़रत और गुस्से की आग में बुरी तरह जलने लगा था। मेरा मन कर रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूं।

मैं तेज़ी से जंगल की तरफ बढ़ता जा रहा था। मैं खुद नहीं जानता था कि इस वक़्त मैं अँधेरे में जंगल की तरफ क्यों जा रहा था। मैं तो बस इतना सोच पा रहा था कि अपने इस गुस्से से मैं किसी का खून कर दूं?

मैं जंगल में अभी दाखिल ही हुआ था कि मेरे कानों में मुरारी की आवाज़ पड़ी। वो पीछे से मुझे आवाज़ें लगा रहा था। उसकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि वो भागते हुए मेरी तरफ ही आ रहा है किन्तु मैं उसकी आवाज़ सुन कर भी रुका नहीं बल्कि जंगल में आगे बढ़ता ही रहा। हालांकि रात अभी नहीं हुई थी किन्तु शाम घिर चुकी थी और शाम का धुंधलका छा गया था। जंगल में तो और भी ज़्यादा अँधेरा दिख रहा था।

"रूक जाओ छोटे ठाकुर।" मुरारी की आवाज़ मुझे अपने एकदम पास से सुनाई दी। मैं उसे दिख तो नहीं रहा था किन्तु ज़मीन पर सूखे पत्तों पर मेरे चलने की आवाज़ हो रही थी जिससे वो अंदाज़े से मेरे पास आ गया था।

"छोटे ठाकुर रुक जाओ।" मुरारी हांफते हुए बोला____"मुझे माफ़ कर दो। मैं कसम खा के कहता हूं कि आज के बाद बड़े ठाकुर का ज़िक्र ही नहीं करुंगा और ये भी यकीन मानो कि मैं औरों की तरह उनके तलवे चाटने वाला कुत्ता नहीं हूं।"

"मैंने तुम्हें मना किया था ना कि मुझे छोटे ठाकुर मत कहो।" मैंने पलट कर गुस्से में मुरारी का गला पकड़ लिया और गुर्राते हुए बोला____"मगर तुम्हारे भेजे में मेरी ये बात अब तक नहीं घुसी। तुम्हें बताया था ना कि मुझे इस नाम से ही नफ़रत है? मेरा बस चले तो मैं अपने नाम से जुड़े हर नाम को मिट्टी में मिला दूं।"

"माफ़ कर दो वैभव।" मुरारी मेरे द्वारा अपना गला दबाये जाने से अटकते हुए स्वर में बोला____"आज के बाद मैं तुम्हें उस नाम से नहीं बुलाऊंगा।"

मुरारी के ऐसा कहने पर मैंने झटके से उसके गले से अपना पंजा खींच लिया। मुरारी ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से अपने गले को सहलाना शुरू कर दिया। उसकी साँसें चढ़ी हुई थी।

"अब चलो वैभव।" फिर मुरारी ने अपनी उखड़ी हुई साँसों को सम्हालते हुए कहा____"यहां से चलो। इस वक़्त यहाँ पर रुकना ठीक नहीं है। चलो हम साथ में बैठ कर देशी का लुत्फ़ उठाएंगे। क्या अपने काका की इतनी सी बात भी नहीं मानोगे?"

मुरारी की इन बातों से मेरे अंदर का गुस्सा शांत होने लगा और मैं चुप चाप जंगल से बाहर की तरफ वापस चल दिया। मेरे चलने पर मुरारी भी मेरे पीछे पीछे चल दिया। कुछ ही देर में हम दोनों वापस मेरे झोपड़े पर आ ग‌ए। झोपड़े पर लालटेन जल रही थी। मैं आया और चुप चाप मिट्टी के उसी चबूतरे पर बैठ गया जिसमे मैं पहले बैठा था। गुस्सा गायब हुआ तो मुझे अहसास हुआ कि मैंने मुरारी से जो कुछ भी कहा था और उसके साथ जो कुछ भी किया था वो बिल्कुल ठीक नहीं था। मुझे अपनी ग़लती का बोध हुआ और मुझे अपने आप पर शर्मिंदगी होने लगी। मुरारी रिश्ते और उम्र में मुझसे बड़ा था और सबसे बड़ी बात ये कि ऐसे वक़्त में सिर्फ उसी ने मेरा साथ दिया था और मैंने उसका ही गिरहबान पकड़ लिया था।

"मुझे माफ़ कर दो काका।" फिर मैंने धीमे स्वर में मुरारी से कहा____"मैंने गुस्से में तुम्हारे साथ ठीक नहीं किया। मेरी इस ग़लती के लिए मुझे जो चाहो सजा दे दो।"

"नहीं वैभव नहीं।" मुरारी ने मेरी तरफ बड़े स्नेह से देखते हुए कहा___"तुम्हें माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अच्छी तरह समझता हूं कि ऐसे वक़्त में तुम्हारी मनोदशा ही ऐसी है कि तुम्हारी जगह अगर कोई भी होता तो यही करता। इस लिए भूल जाओ सब कुछ और इस देशी का मज़ा लो।"

"तुम सच में बहुत अच्छे हो काका।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी तुम मेरे पास बैठे हो और सब कुछ भूल जाने को कह रहे हो।"
"अब छोड़ो भी इस बात को।" मुरारी ने अपना गिलास उठाते हुए कहा____"चलो उठाओ अपना गिलास और अपनी नाक बंद कर के एक ही सांस में पी जाओ इसे।"

"नाक बंद कर के क्यों काका?" मैंने ना समझने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या इसे नाक बंद कर के पिया जाता है?"
"हा हा हा हा नहीं वैभव।" मुरारी ने हंसते हुए कहा____"नाक बंद कर के पीने को इस लिए कह रहा हूं क्योंकि इसकी गंध बहुत ख़राब होती है। अगर पीते वक़्त इसकी गंध नाक में घुस जाये तो इंसान का कलेजा हिल जाता है और पहली बार पीने वाला तो फिर इसे पीने का सोचेगा भी नहीं।"

"अच्छा ऐसी बात है।" मैंने समझते हुए कहा____"फिर तो मैं अपनी नाक बंद कर के ही पियूंगा इसे मगर मेरी एक शर्त है काका।"
"कैसी शर्त वैभव?" मुरारी ने मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देखा।
"शर्त ये है कि अब से हमारे बीच उम्र और रिश्ते की कोई बात नहीं रहेगी।" मैंने अपना गिलास उठा कर कहा____"हम दोनों एक दूसरे से हर तरह की बातें बेझिझक हो कर करेंगे। बोलो शर्त मंजूर है ना?"

"अगर तुम यही चाहते हो।" मुरारी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तो ठीक है। मुझे तुम्हारी ये शर्त मंजूर है। अब चलो पीना शुरू करो तुम।"
"आज की ये शाम।" मैंने कहा____"हमारी गहरी दोस्ती के नाम।"

"दोस्ती??" मुरारी मेरी बात सुन कर चौंका।
"हां काका।" मैंने कहा____"अब जब हम एक दूसरे से हर तरह की बातें करेंगे तो हमारे बीच दोस्ती का एक और रिश्ता भी तो बन जायेगा ना?"
"ओह! हां समझ गया।" मुरारी धीरे से हँसा और फिर गिलास को उसने अपने अपने होठों से लगा लिया।

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