• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
भाई साहब आपका बहुत बहुत धन्यवाद और बधाईयां इस कथा को पुनः जीवित करने के लिए। आपकी us टिप्पणी से हृदय खिन्न और दुःखी हो गया था जब आपने लिखा की आप इसे पूरा करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि इस पर आपकी इच्छानुरूप कमेंट्स और लाइक्स नहीं आ रहे थे।

इस कथा में नए प्राण फूंकने के लिया मैं आपका सहृदय आभारी हूं। लेटेस्ट अपडेट्स निस्संदेह अत्यंत रोमांचक और प्रेमल लिखे हैं आपने।
Reader's agar writer ki mehnat ko samjhe aur update padhne ke baad bina koi vichaar byakt kiye chupchap nikal jaye to mood kharaab ho jata hai bhai.... Khair chutiyo ko kya hi kah sakte hain...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
अध्याय - 133
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"त...तू?????" पिता जी की तरह मैं भी चकरा गया____"तू है सफ़ेदपोश??? न....नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

मैं हलक फाड़ कर चीखा और पीछे हटता‌ चला गया। मुझे तेज़ झटका लगा था और साथ ही इतनी तेज़ पीड़ा हुई थी कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाता नज़र आया।



अब आगे....


हवेली में अजीब सा आलम था।
हर किसी की नींद खुल चुकी थी। सुगंधा देवी को जब से पता चला था कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है तभी से उनकी ये सोच सोच कर धड़कनें बढ़ीं हुईं थी कि जाने कौन होगा सफ़ेदपोश। दादा ठाकुर और वैभव के जाने के बाद एकाएक ही उनकी बेचैनी बढ़ने लगी थी। मन में जहां सफ़ेदपोश के बारे में जानने की तीव्र उत्सुकता थी वहीं मन ही मन वो ये प्रार्थना भी कर रहीं थी कि उनके पति और बेटे को सफ़ेदपोश के द्वारा कोई नुकसान न पहुंचे। हालाकि ऐसा संभव तो नहीं था क्योंकि उन्हें भी पता था कि सुरक्षा के लिए ढेरों आदमी वहां पर मौजूद हैं किंतु नारी का कोमल हृदय प्रतिपल नई नई आशंकाओं के चलते घबराहट से भर उठता था।

हवेली में हुई हलचल से एक एक कर के सबकी नींद खुल चुकी थी। सबसे पहले तो निर्मला ही जगी थी और उसने अपने पति किशोरी लाल को भी जगा दिया था। उसके बाद वो कमरे से निकल कर नीचे सुगंधा देवी के पास आ गई थी जोकि अंदर वाले छोटे से हाल में ही कुर्सी पर बैठीं थी। उसके बाद हवेली में ही रहने वाली दो नौकरानियां भी जग कर आ गईं थी।

रात के सन्नाटे में आवाज़ें गूंजी तो हवेली की मझली ठकुराईन मेनका भी जग कर अपने कमरे से आ गई थी। बदहवासी के आलम में जब मेनका ने पूछा कि क्या हुआ है तो सुगंधा देवी ने सबको बताया कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है। ये भी बताया कि ठाकुर साहब और वैभव कुछ देर पहले ही ये देखने के लिए हवेली से गए हैं कि सफ़ेदपोश कौन है?

सुगंधा देवी की बात सुन कर सभी के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर आए थे। कुछ पलों तक तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि जो उन्होंने सुना है वो सच है किंतु यकीन न करने की कोई वजह भी नहीं थी क्योंकि सच तो सच ही था।

"अगर ये सच है।" किशोरी लाल ने खुद को सम्हालते हुए संतुलित भाव से कहा____"तो ये बहुत ही बढ़िया हुआ। जाने कब से ठाकुर साहब उसके चलते चिंतित और परेशान थे। ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि वो पकड़ा गया लेकिन ये सब हुआ कैसे?"

"इस बारे में तो फिलहाल उन्होंने कुछ नहीं बताया था।" सुगंधा देवी ने कहा____"शायद सारी बात उन्हें भी उस वक्त पता नहीं थी। उनसे इतना ही पता चला था कि दो लोग आए थे उन्हें इस बात की सूचना देने।"

"फिर तो मुझे पूरा भरोसा है कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली बात सच ही है।" किशोरी लाल ने दृढ़ता से कहा____"क्योंकि इतनी बड़ी बात बेवजह ही कोई ठाकुर साहब को बताने यहां नहीं आएगा। ठाकुर साहब से झूठ बोलने का दुस्साहस भी कोई नहीं कर सकता। यानि ये सच बात है कि हम सबका सुख चैन हराम करने वाला वो सफ़ेदपोश पकड़ा गया है।"

"बिल्कुल।" सुगंधा देवी ने कहा____"अब तो बस ये जानने की उत्सुकता है कि आख़िर वो मरदूद है कौन जो मेरे बेटे का जानी दुश्मन बना हुआ था? काश! मैं भी ठाकुर साहब के साथ जा पाती ताकि मैं भी उसे अपनी आंखों से देखती और फिर उससे पूछती कि मेरे बेटे ने आख़िर उसका क्या बिगाड़ा था जिसके चलते वो मेरे बेटे की जान लेने पर तुला हुआ था?"

"फ़िक्र मत कीजिए दीदी।" मेनका ने कहा____"अब तो वो पकड़ा ही गया है ना। देर सवेर हमें भी पता चल ही जाएगा उसके बारे में। उसके बाद हम सब उससे पूछेंगे कि उसने ऐसा क्यों किया था?"

"मैं तो उस कमीने का मुंह नोच लूंगी मेनका।" सुगंधा देवी ने एकाएक गुस्से वाले लहजे में कहा____"काश! ठाकुर साहब उसे घसीट कर मेरे पास ले आएं।"

"शांत हो जाइए दीदी।" मेनका ने कहा____"जेठ जी गए हैं न तो यकीन रखिए उन पर। मुझे उन पर पूरा भरोसा है कि वो उसे यहां ज़रूर ले आएंगे। आप अपने जी को शांत रखिए, रुकिए मैं आपके लिए पानी ले कर आती हूं।"

कहने के साथ ही मेनका पानी लेने के लिए चली गई। इधर सुगंधा देवी खुद को शांत करने लगीं किंतु मन शांत होने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा था। एक तूफ़ान सा उठा हुआ था उनके अंदर।

थोड़ी ही देर में मेनका पानी ले आई और सुगंधा देवी को दिया। सुगंधा देवी ने पानी पिया और गिलास वापस मेनका की तरफ बढ़ा दिया।

"आप बैठिए दीदी।" फिर उसने कहा____"मैं ज़रा कुसुम को देख कर आती हूं। वैभव भी जेठ जी के साथ गया हुआ है तो इस वक्त ऊपर वो अकेली ही होगी।"

"हां देख तो ज़रा उसे।" सुगंधा देवी ने कहा____"सबकी नींद खुल गई है लेकिन वो लगता है अपने प्यारे भैया की तरह ही हाथी घोड़े बेंच कर सो रही है। जा देख ज़रा।"

मेनका फ़ौरन ही कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गई। सीढ़ियों से चढ़ कर कुछ ही पलों में वो ऊपर कुसुम के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गई। अगले ही पल वो ये देख कर चौंकी कि कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं है। किसी अंजानी आशंका के तहत उसने दरवाज़ा पूरी तरह खोला और कमरे में दाख़िल हो गई।

कमरे में एक तरफ रखे पलंग पर कुसुम नहीं थी। पलंग पूरी तरह खाली था। मेनका को तीव्र झटका लगा। बिजली की तरह मन में सवाल उभरा कि कहां गई कुसुम? अपने इस सवाल के जवाब में उसने पूरा कमरा छान मारा मगर कुसुम कहीं नज़र ना आई।

अचानक ही उसके मन में बिजली सी कौंधी और वो जड़ सी हो गई। चेहरा फक्क सा पड़ गया किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और पलट कर दरवाज़े की तरफ लपकी। चेहरे पर एकाएक घबराहट के भाव उभर आए थे और साथ ही पसीना छलछला आया था। अगले ही पल ख़ुद को सुलझाते हुए वो सीढ़ियों से उतर कर अपने कमरे की तरफ भागती नज़र आई।

✮✮✮✮

बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला। हालाकि अंदर से टूट सा गया था मैं। आंखें जो देख रहीं थी उस पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था मुझे लेकिन आख़िर कब तक मैं उस पर विश्वास न करता? जीता जागता सच तो मेरी आंखों के सामने ही मूर्तिमान हो कर बैठा था, एकदम सहमा सा।

"य...ये तू है मेरी गुड़िया??" दुख और पीड़ा के चलते फूट पड़ने वाली अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए मैं लगभग चीख पड़ा था____"नहीं नहीं, मैं नहीं मान सकता कि ये तू है। मेरी आंखें ज़रूर धोखा खा रही हैं।"

मेरी बातें सुनते ही सामने सफ़ेद लिबास में बैठी कुसुम की आंखें छलक पड़ीं। उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव उभर आए और अगले ही पल वो फूट फूट कर रो पड़ी। ये देख मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। अपनी पीड़ा को भूल कर मैं झपट पड़ा उसकी तरफ और अगले ही पल खींच कर उसे अपने गले से लगा लिया।

"मत रो, तू अच्छी तरह जानती है कि तेरा ये भाई तेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकता।" मैं उसे सीने से लगाए रो पड़ा____"तू वो नहीं हो सकती जो मुझे दिखा रही है। कह दे ना गुड़िया कि ये तू नहीं है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। तू मुझसे बहुत प्यार करती है। तू मेरी जान की दुश्मन नहीं हो सकती। मैं सच कह रहा हूं ना गुड़िया? बोल ना....चुप क्यों है तू?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" कुसुम ने बुरी तरह मुझे जकड़ लिया____"ये मैं ही हूं। हां भैया, मैं ही सफ़ेदपोश हूं। मैं ही आपकी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"नहीं।" मैं उसे खुद से अलग कर के हलक फाड़ कर चीखा____"मैं किसी कीमत पर नहीं मान सकता कि मेरी इतनी नाज़ुक सी गुड़िया अपने इस भाई की जान की दुश्मन हो सकती है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। मुझे बता कि सच क्या है? आख़िर किसे बचाने की कोशिश कर रही है तू?"

"क...किसी को नहीं भैया।" कुसुम ने एकदम से नज़रें चुराते हुए कहा____"मेरा यकीन कीजिए, मैं ही सफ़ेदपोश हूं और शुरू से ही आपकी जान लेना चाहती थी।"

"तो फिर ठीक है।" मैंने एक झटके में उसका हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोला_____"यही बात मेरी क़सम खा कर बोल। मेरी आंखों में देखते हुए बता कि तू ही सफ़ेदपोश है और तू ही मेरी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"न...नहीं।" कुसुम ने रोते हुए एक झटके में अपना हाथ मेरे सिर से खींच लिया, फिर बोली_____"मैं ये नहीं कर सकती लेकिन मेरा यकीन कीजिए। मैं ही सफेदपो....।"

"झूठ...झूठ बोल रही है तू।" मैं फिर से चीख पड़ा____"अगर सच में तू सफ़ेदपोश होती और मेरी जान की दुश्मन होती तो मेरी क़सम खाने में तुझे कोई संकोच न होता। आख़िर तेरे हिसाब से मैं तेरा सबसे बड़ा दुश्मन जो होता लेकिन तू मेरी क़सम नहीं खा सकती। इसका मतलब यही है कि तू अपने इस भाई को बहुत प्यार करती है। मेरे साथ बुरा हो ऐसा तू सपने में भी नहीं सोच सकती। फिर तू सफ़ेदपोश कैसे हो सकती है? मेरी जान की दुश्मन कैसे हो सकती है गुड़िया? नहीं नहीं, ज़रूर तू किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।"

"नहीं, मैं किसी को नहीं बचा रही।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"आप मेरी बात का यकीन क्यों नहीं कर रहे? मैं ही सफ़ेदपोश हूं।"

"तुम्हारे भाई की बात से हम भी सहमत हैं बेटी।" सहसा पिता जी ने हमारे क़रीब आ कर कुसुम से कहा_____"हमें भी इस बात का यकीन नहीं है कि हमारी फूल जैसी बेटी सफ़ेदपोश हो सकती है और जिस भाई पर उसकी जान बसती है उसकी जान की वो दुश्मन हो सकती है। एक बात और, हम इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि अगर सचमुच तू ही सफ़ेदपोश होती तो इस वक्त अपने भाई के सामने तू इस तरह रो नहीं रही होती बल्कि उसे अपना दुश्मन समझ कर उसकी आंखों में आंखें डाल कर उससे नफ़रत से बातें कर रही होती। इसी से ज़ाहिर हो जाता है कि तू सफ़ेदपोश नहीं है।"

कुसुम को कोई जवाब न सूझा। बस सिर झुकाए सिसकती रही वो। मुझे उसको इस हालत में देख कर बहुत तकलीफ़ हो रही थी लेकिन वक्त की नज़ाकत को देख कर मैं फिलहाल ख़ामोश था।

"तू खुद को ज़बरदस्ती सफ़ेदपोश कह रही है बेटी।" पिता जी ने पुनः कहा____"जबकि सफ़ेदपोश जैसी शख्सियत से तेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। स्पष्ट है कि तू किसी को बचाने का प्रयास कर रही है। यकीनन वो कोई ऐसा व्यक्ति है जो तेरा अपना है और जिसे तू बहुत प्यार करती है। हम सच कह रहे हैं ना बेटी?"

पिता जी की बातों पर कुसुम ने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे उसने एकदम से चुप्पी साध ली हो। उधर पिता जी की आख़िरी बातें सुन कर मैं एकदम से चौंक पड़ा। बिजली की सी तेज़ी से मेरे ज़हन में कई सवाल चकरा उठे। कुसुम के तो सभी अपने ही थे किंतु उसके सगे वाले अपनों में उसकी मां ही थी। उसके दोनों भाई तो विदेश पढ़ने गए हुए थे। तो क्या मेनका चाची????? नहीं नहीं, मेनका चाची सफ़ेदपोश नहीं हो सकतीं और ना ही वो मेरी जान की दुश्मन हो सकती हैं। वो मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं। तो फिर दूसरा कौन हो सकता है? मेरे दिमाग़ में एकाएक हलचल सी मच गई थी। कई चेहरे, कई नाम ज़हन में उभरने लगे। क्या रागिनी भाभी? वो भी तो कुसुम की अपनी ही थीं। रागिनी भाभी को कुसुम बहुत मानती है तो क्या रागिनी भाभी सफ़ेदपोश हो सकती हैं? मगर....मगर वो तो यहां हैं ही नहीं, तो फिर और कौन हो सकता है? सोचते सोचते मेरा बुरा हाल सा हो गया।

"चुप क्यों हो बेटी?" पिता जी की आवाज़ से मैं सोचो से बाहर आया_____"आख़िर किसे बचाने का प्रयास कर रही हो तुम?"

"आपके इस सवाल का जवाब मैं देती हूं जेठ जी।" अचानक कमरे में एक नारी की मधुर आवाज़ गूंजी तो हम सब चौंक पड़े।

गर्दन घुमा कर दरवाज़े की तरफ देखा। दरवाज़े के बीचो बीच मेनका चाची खड़ीं थी। कुसुम ने उन्हें देखा तो उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उभर आए। आंखों में आंसू भर आए।

"च...चाची आप?" मैं सकते की सी हालत में उन्हें देखा।

"क्यों, क्या मैं यहां नहीं हो सकती?" मेनका चाची ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा।

मुझे समझ ना आया कि क्या जवाब दूं? बस हैरत से उनके चेहरे की तरफ देखता रहा। उधर पिता जी और शेरा भी चकित से देखे जा रहे थे उन्हें। मेनका चाची अपने विधवा लिबास में थीं। सिर पर हल्का सा घूंघट लिया हुआ था उन्होंने।

"तो तुम हो वो।" पिता जी ने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"जिसे कुसुम बचाने का प्रयास कर रही थी?"

"दुर्भाग्य से यही सच है जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा_____"हालाकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि मेरी बेटी को ये कैसे पता चला कि उसकी मां ही सफ़ेदपोश है? इस वक्त इसे यहां पर इस रूप में बैठा देख कर मैं समझ सकती हूं कि इसने अपनी मां को बचाने के लिए खुद का बलिदान देना चाहा।"

"आपको यहां नहीं आना चाहिए था मां।" कुसुम ने पीड़ा भरे भाव से कहा।

"दुनिया में अक्सर माता पिता ही औलाद के लिए खुद का बलिदान देते हैं मेरी बच्ची।" मेनका चाची ने दर्द भरे स्वर में कहा____"तू तो मेरी बहुत ही ज़्यादा मासूम और निर्दोष बेटी है। भला मैं ये कैसे सहन कर लेती कि मेरी बेटी अपनी मां को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दे? हवेली में दीदी के द्वारा जब मुझे ये पता चला कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है तो मैं ये सोच कर चकित रह गई थी कि मेरे अलावा कोई दूसरा सफ़ेदपोश कहां से पैदा हो गया? और पैदा हुआ भी तो इतना जल्दी पकड़ा कैसे गया? यही सोच सोच कर मेरा सिर फटा जा रहा था। तभी मैं ये देख कर चौंकी कि हवेली में लगभग सभी जग चुके हैं और एक जगह इकट्ठा हो गए हैं लेकिन मेरी बेटी घोड़े बेंच कर अपने कमरे में कैसे सोई हुई है? अपनी बेटी के बारे में इतना तो मैं जानती ही थी कि वो इस तरह कभी घोड़े बेंच कर नहीं सोती है। इसके बाद भी अगर वो जग कर सबके पास नहीं आई है तो ज़रूर कोई वजह है। मैं फ़ौरन ही इसके कमरे में इसे देखने पहुंची लेकिन ये अपने कमरे में नहीं थी। स्वाभाविक रूप से मुझे बड़ी हैरानी हुई और सोचने पर मजबूर हो गई कि आख़िर ये गई कहां? फिर अचानक से मुझे ख़याल आया कि इसके साथ कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई? आख़िर मां हूं फ़िक्र तो होनी ही थी मुझे। मन में ये ख़याल भी बार बार उभरने लगा था कि कहीं ये ही तो नहीं सफ़ेदपोश बन कर हवेली से चली गई थी और पकड़ ली गई है? बात असंभव ज़रूर थी लेकिन ऐसी परिस्थिति में हर असंभव बात सच ही लगने लगती है। यही सोच कर मैं अपने कमरे की तरफ भागी। कमरे में पहुंच कर मैंने झट से संदूक खोला और ये देख कर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई कि संदूख से सफ़ेदपोश वाले कपड़े गायब हैं। बस, ये देख मन में मौजूद रही सही शंका भी दूर हो गई। पहले तो समझ ही न आया कि इस पगली ने ऐसा क्यों किया लेकिन जब गहराई से सोचा तो अनायास ही आंखें भर आईं। मैं समझ गई कि मेरी बेटी को मेरे सफ़ेदपोश होने का राज़ पता चल गया है। यकीनन इस भेद के चलते उसे बहुत पीड़ा हुई होगी लेकिन अपनी मां को इस हाहाकारी संकट से बचाने के लिए इस पगली को जो सूझा वही कर बैठी। उस वक्त लगा कि धरती फटे और मैं उसमें समा जाऊं लेकिन बेटी को कलंकित कर के मौत के मुंह पर अकेला छोड़ कर दुनिया से नहीं जा सकती थी मैं। इस लिए हवेली से चुपचाप यहां चली आई।"

मेनका चाची के चुप होते ही सन्नाटा छा गया कमरे में। कुसुम का सफ़ेदपोश बनना तो समझ आ गया था लेकिन अब सबसे ज़्यादा ये जानने की उत्सुकता थी कि अगर मेनका चाची ही सफ़ेदपोश हैं तो क्यों हैं? आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि उन्होंने सफ़ेदपोश का रूप धारण किया? मैं तो हमेशा यही समझता था कि मेनका चाची मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं तो फिर ऐसा क्यों था कि वो मुझे अपना दुश्मन समझती थीं और मेरी जान लेने पर आमादा थीं?

पहले ये देख कर तीव्र झटका और पीड़ा हुई थी कि मेरी लाडली बहन सफ़ेदपोश है और जब उससे उबरा तो अब ये जान कर झटके पे झटका लगे जा रहा था कि मेनका चाची ने सफ़ेदपोश बन कर ऐसा क्यों किया?

कुछ ही क़दम की दूरी पर खड़े पिता जी के चेहरे पर सोचो के भाव तो थे ही किंतु गहन पीड़ा के भाव भी थे। उन्हें देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अचानक ही उन्हें किसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया हो जिसके चलते वो एकदम से असहाय हो गए हैं।

हम सबके मन में अनगिनत सवाल थे जिनके जवाब सिर्फ और सिर्फ मेनका चाची के पास थे। मेरे और पिता जी के लिए ये बड़ा ही पीड़ादायक पल था। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेनका चाची सफ़ेदपोश हो सकती हैं।



━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
अध्याय - 134
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




कमरे में एकदम से सन्नाटा छाया हुआ था। मेनका चाची एकाएक चुप हो गईं थी और अपनी बेटी को देखे जा रहीं थी। उस बेटी को जिसके चेहरे पर दुख और संताप के गहरे भाव थे। पिता जी किसी सदमे जैसी हालत में थे। शेरा एक कुर्सी ले आया था जिसमें वो बैठ गए थे। इधर मैं कुसुम से कुछ ही दूरी पर कमरे की ज़मीन पर असहाय सा बैठा था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चल रहीं थी और मस्तिष्क एकदम से कुंद पड़ गया था।

"क्यों चाची?" फिर मैं अपने अंदर मचलते जज़्बातों को किसी तरह काबू करते हुए बोल पड़ा____"आख़िर क्यों किया आपने ऐसा? भगवान के लिए कह दीजिए कि आपने जो कुछ कहा है वो सब झूठ है। कह दीजिए कि ना तो आप सफ़ेदपोश हैं और ना ही आप मुझसे नफ़रत करती हैं। चाची, मेरी सबसे प्यारी चाची। मैंने हमेशा आपको अपनी मां ही समझा है और आपको वैसा ही प्यार व सम्मान दिया है। आप भी तो मुझे अपना बेटा ही मानती हैं। फिर मैं ये कैसे मान लूं कि आपने ही ये सब किया है?"

"इस दुनिया में हर कोई अपने चेहरे पर एक मुखौटा लगाए रखता है वैभव।" चाची ने धीर गंभीर भाव से कहा____"ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इसी से उन्हें खुशी मिलती है, उनका भला होता है और हमेशा वो दूसरों की नज़रों में महान बने रहते हैं। मगर वो अपनी होशियारी में ये भूल जाते हैं कि वो ज़्यादा समय तक अपने असल चेहरे को दुनिया से छुपा के नहीं रख सकते। एक दिन दुनिया वालों को उनका चेहरा ही नहीं बल्कि उनकी असलियत भी पता चल जाती है और फिर पलक झपकते ही उनकी वो महानता चूर चूर हो जाती है जिसे बुलंदी तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जाने कितने ही जतन किए थे और जाने कितने ही लोगों के विश्वास को अपने दोगलेपन से छला था। तुम सोच रहे होगे कि मैं ये सब क्या कह रही हूं जबकि तुम्हें समझना चाहिए कि इंसानी दुनिया के इस जंगल में ऐसे ही कुछ लोग पाए जाते हैं।"

मैं एकटक उन्हें ही देखे जा रहा था। उन्हें, जिनके सुंदर चेहरे पर इस वक्त बड़े ही अजीब से भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। कभी कभी उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव भी आ जाते थे जिन्हें वो पूरी बेदर्दी से दबा देती थीं।

"ये बड़ी लंबी कहानी है वैभव।" मेनका चाची ने एक नज़र पिता जी पर डालने के बाद मुझसे कहा____"कब शुरू हुई, कैसे शुरू हुई और क्यों शुरू हुई ये तो जैसे ठीक से किसी को पता ही नहीं चला मगर इतना ज़रूर पता था कि इस कहानी को इसके अंजाम तक हर कीमत पर पहुंचाना है। आज की दुनिया में हर इंसान सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ही कर्म करता है। हर इंसान की यही हसरत होती है कि उनकी और उनके बच्चों की स्थिति बाकी हर किसी से लाख गुना बेहतर हो। ऐसी हसरतें जब अंधा जुनून का रूप ले लेती हैं तो इंसान अपनी उन हसरतों को पूरा करने के लिए किसी भी हद से गुज़र जाता है। मैं और तुम्हारे चाचा ऐसी ही हद से गुज़र गए थे।"

"क...क्या मतलब???" मैं बुरी तरह चौंका____"चाचा भी? ये क्या कह रही हैं आप?"

"तुम्हें क्या लगता है वैभव कि इस तरह का काम एक अकेली औरत जात कर सकती थी?" चाची ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"नहीं वैभव, ये तो किसी भी कीमत पर संभव नहीं हो सकता था। मैंने तो सिर्फ उनके गुज़र जाने के बाद उनकी जगह ली थी। उनके बाद सफ़ेदपोश का सफ़ेद लिबास पहनना शुरू कर दिया था मैंने और इस कोशिश में लग गई थी कि उनकी तरह पूरी कुशलता से मैं उनका काम पूरा करूंगी। लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि मर्द तो मर्द ही होता है ना वैभव। एक औरत कैसे भला एक मर्द की तरह हर काम कर सकती है? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन नहीं कर सकी। मेरे लिए तो सबसे बड़ी समस्या मेरा अपना ही डर था। किसी के द्वारा पकड़ लिए जाने का डर। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और ऐसे दो काम कर ही डाले जिसके तहत मुझे आत्मिक खुशी प्राप्त हुई। जेठ जी ने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला साहूकारों से तो ले लिया था लेकिन चंद्रकांत और उसके बेटे को सही सलामत छोड़ दिया था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि उस समय उन्हें चंद्रकांत की असलियत पता नहीं थी। उसके बाद पंचायत में भी चंद्रकांत और उसके बेटे की करतूत के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई। मैं भला कैसे ये सहन कर लेती कि मेरे पति का हत्यारा बड़ी शान से अपनी जिंदगी की सांसें लेता रहे? बस, मैंने फ़ैसला कर लिया कि चंद्रकांत और उसके बेटे को उसकी करनी की सज़ा अब मैं दूंगी।"

"तो आपने रघुवीर की हत्या की थी?" मैं चकित भाव से पूछ बैठा____"मगर कैसे?"

"मैं तो इसे अपनी अच्छी किस्मत ही मानती हूं वैभव।" चाची के कहा____"क्योंकि मुझे खुद उम्मीद नहीं थी कि मैं ऐसा कर पाऊंगी। हालाकि ऐसा करने का दृढ़ संकल्प ज़रूर लिया हुआ था मैंने। अपने मरे हुए पति की क़सम खा रखी थी मैंने। अक्सर रात के अंधेरे में चंद्रकांत के घर पहुंच जाती थी और मुआयना करते हुए ये सोचती थी कि मैं किस तरह अपना बदला ले सकती हूं? क‌ई रातें ऐसे ही गुज़र गईं किंतु मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कैसे अपना बदला लूं? किंतु तभी एक बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। मैंने महसूस किया कि चंद्रकांत और उसका बेटा रघुवीर लगभग हर रात पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि मुझे उनकी इसी स्थिति पर कुछ करने का सोचना चाहिए। उसके बाद मैंने और भी तीन चार रातों में दोनों बाप बेटे की उस आदत को परखा। जब मैं निश्चिंत हो गई कि वो दोनों अलग अलग समय पर लगभग हर रात ही पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं तो मैंने उनमें से किसी एक की जान लेने का निश्चय कर लिया। आख़िर एक रात मैं पहुंच गई चंद्रकांत के घर और वहां उस जगह पर जा कर छुप गई जिस जगह पर वो दोनों बाप बेटे पेशाब करने आते थे। शायद किस्मत भी उस रात मुझ पर मेहरबान थी क्योंकि पास ही रखी एक कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ गई थी। वैसे मेरे पास तुम्हारे चाचा का रिवॉल्वर था जिससे मैं उनमें से किसी एक की जान ले सकती थी लेकिन मैं ये भी जानती थी कि रिवॉल्वर से गोली चलने पर तेज़ आवाज़ होगी जिससे लोगों के जाग जाने का पूरा अंदेशा था और उस सूरत में मेरे लिए ख़तरा ही हो जाना था। हालाकि मैं यही सोच कर आई थी कि एक को गोली मार कर फ़ौरन ही गायब हो जाऊंगी लेकिन उस रात जब मेरी नज़र कुल्हाड़ी पर पड़ी तो मैंने सोचा इससे तो और भी बढ़िया तरीके से मैं अपना काम कर सकती हूं और कोई शोर शराबा भी नहीं होगा। बस, कुल्हाड़ी को अपने हाथ में ले लिया मैंने और फिर बाप बेटे में से किसी एक के बाहर आने का इंतज़ार करने लगी। इत्तेफ़ाक से उस रात रघुवीर ही बाहर आया और फिर मैंने वही किया जिसका मैं पहले ही निश्चय कर चुकी थी। रघुवीर को जान से मार डालने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई। उस कमीने को स्वप्न में भी ये उम्मीद नहीं थी कि उस रात वो पेशाब करने के लिए नहीं बल्कि मेरे हाथों मरने के लिए घर से बाहर निकला था।"

"और उसके बाद आपने चंद्रकांत के हाथों उसकी ही बहू की हत्या करवा दी।" मैंने पूछा____"ऐसा क्यों किया आपने? मेरा मतलब है कि आप तो दोनो बाप बेटे को मारना चाहती थीं न तो फिर रजनी की हत्या उसके हाथों क्यों करवाई आपने?"

"रजनी का भले ही मेरे पति अथवा तुम्हारे भाई की मौत में कोई हाथ नहीं था।" मेनका चाची ने कहा____"लेकिन दूध की धुली तो वो भी नहीं थी। उसके जैसी चरित्र हीन औरत के जीवित रहने से कौन सा इस संसार में सतयुग का आगमन हो जाना था? उसके पति को मारने के बाद मैं चंद्रकांत का ही क्रिया कर्म करना चाहती थी लेकिन फिर ख़याल आया कि एक झटके में उसे मौत देना ठीक नहीं होगा। उसने और उसके बेटे ने मेरे पति की हत्या कर के मुझे जीवन भर का दुख दे दिया था तो बदले में उसी तरह उसे भी तो जीवन भर दुख भोगना चाहिए। इससे भी बढ़ कर अगर कुछ हो जाए तो उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता था। मैं हर रोज़ यही सोचती थी कि ऐसा क्या करूं जिससे चंद्रकांत सिर्फ दुखी ही न हो बल्कि हमेशा तड़पता भी रहे? उधर रघुवीर की हत्या हो जाने से पूरे गांव में हंगामा सा मचा हुआ था। जेठ जी और महेंद्र सिंह जी उसके हत्यारे को खोजने में लगे हुए थे। मैं जानती थी कि अगर ऐसे हालात में मैंने कुछ करने का सोचा तो मैं जल्द ही किसी न किसी के द्वारा पकड़ ली जाऊंगी और मेरे पकड़ लिए जाने से सिर्फ यही बस पता नहीं चलेगा कि रघुवीर की हत्या मैंने की है बल्कि ये भी खुलासा हो जाएगा कि जिस सफ़ेदपोश ने जेठ जी की रातों की नींद हराम कर रखी थी वो कोई और नहीं बल्कि मैं थी, यानि हवेली की मझली ठकुराईन।"

"तब मैंने हालात के ठंडा पड़ जाने का इंतज़ार करना ही उचित समझा।" एक गहरी सांस लेने के बाद मेनका चाची ने फिर से बताना शुरू किया____"जब मैंने महसूस किया कि हालात वाकई में ठंडे पड़ गए हैं तो मैं अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचने लगी। इस बीच मैंने सोच लिया था कि चंद्रकांत को किस तरीके से जीवन भर तड़पने की सज़ा देनी है। उसकी बहू के बारे में मैं ही क्या लगभग सभी जानते थे कि वो कैसे चरित्र की औरत है इस लिए मैंने उसके इसी चरित्र के आधार पर एक योजना बनाई जिसको मुझे चंद्रकांत के कानों तक पहुंचानी थी। मैं जानती थी कि चंद्रकांत अपने इकलौते बेटे की हत्या हो जाने से और उसके हत्यारे का अभी तक पता न लग पाने से बहुत ज़्यादा पगलाया हुआ है। मैं समझ गई कि अगर उसकी ऐसी मानसिक स्थिति में मैं सफ़ेदपोश बन कर उसके पास जाऊं और उसे बता दूं कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है तो यकीनन वो पागल हो जाएगा। वही हुआ....एक रात सफ़ेदपोश बन कर मैं पहुंच गई उसके घर और उसके बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। कुछ ही समय में जब वो बाहर आया और पेशाब करने के बाद वापस घर के अंदर जाने लगा तो मैंने हल्की सी आवाज़ के साथ उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उसके बाद तुम्हें और जेठ जी को भी पता है कि सफ़ेदपोश के रूप में मैंने उससे क्या कहा था जिसके बाद उसने अपनी ही बहू की हत्या कर दी थी।"

"ऐसा करने के पीछे क्या सिर्फ यही वजह थी कि उसने और उसके बेटे ने चाचा जी की हत्या की थी?" मैंने उनकी तरफ देखते हुए पूछा____"या कोई और भी वजह थी?"

"हां सही कहा तुमने।" चाची ने इस बार बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेरे ऐसा करने के पीछे एक दूसरी वजह भी थी और वो वजह थे तुम। हां वैभव, तुम भी एक वजह बन गए थे।"

"म...मैं कुछ समझा नहीं।" मैं उलझ सा गया____"मैं भला कैसे वजह बन गया था?"

"नफ़रत, गुस्सा और ईर्ष्या एकाएक प्यार और ममता में बदल गई थी।" चाची ने अजीब भाव से कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी जब मैंने ये देखा कि तुम अपने छोटे भाइयों की कितनी फ़िक्र करते हो और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें विदेश भेजना चाहते हो तो मुझे ये सोच कर पहली बार एहसास हुआ कि कितने ग़लत थे हम। आत्मग्लानि से डूबती चली गई थी मैं। उस दिन खुद को बहुत छोटा और बहुत ही गिरा हुआ महसूस किया था मैंने। ये सोच कर हृदय हाहाकार कर उठा था कि जिस लड़के ने हमेशा मुझे अपनी मां समझ कर मुझे मान सम्मान दिया, जिस लड़के ने हमेशा अपने चाचा को अपने पिता से भी ज़्यादा महत्व दिया उस लड़के से हमने सिर्फ नफ़रत की? अगर उसका कोई नाम था, कोई शोहरत थी तो ये उसके कर्मों का ही तो परिणाम था ना। हमारे बेटे भी तो ऐसा कर्म कर के नाम और पहचान बना सकते थे मगर ये उनकी कमी थी कि वो ऐसा नहीं कर पाए। तो फिर इसमें तुम्हारा क्या दोष था? यकीन मानों वैभव, उस दिन किसी जादू की तरह जैसे सारे एहसास बदल गए। वो सब कुछ याद आने लगा जो हमने किया था और जो हमारे साथ हुआ था। उस दिन एहसास हुआ कि कितनी गिरी हुई सोच थी हमारी। इतने बड़े खानदान में ऊपर वाले ने हमें भेजा था और हम इतने गिरे हुए काम करने पर आमादा थे। ऐसा लगा जैसे धरती फटे और मैं उसमें समाती चली जाऊं। उसी समय तुम्हें अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोने को जी चाह रहा था। तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ियां मांगने का मन कर रहा था लेकिन नहीं कर सकी। हां वैभव, नहीं कर सकी ऐसा...हिम्मत ही नहीं हुई। ये सोच सोच कर जान निकली जा रही थी कि सब कुछ जानने के बाद तुम क्या सोचोगे मेरे बारे में? पलक झपकते ही तुम्हारी चाची तुम्हारी नज़रों में क्या से क्या बन जाएगी? जिस चाची को तुम हमेशा बड़े स्नेह से अपनी सबसे प्यारी और सबसे सुंदर चाची कहते थे वो एक ही पल में एक डायन नज़र आने लगती तुम्हें। ये सब सोच कर ही जान निकली जा रही थी मेरी। मैं ये सहन नहीं कर सकती थी कि मैं तुम्हारी नज़रों से गिर जाऊं या तुम्हारी नज़रों में मेरी छवि बदसूरत बन जाए। इस लिए उस दिन कुछ नहीं बताया तुम्हें। अंदर ही अंदर पाप का बोझ ले कर घुट घुट के मरना मंजूर कर लिया मैंने। आख़िर दिल को ये तसल्ली तो थी कि तुम्हारी नज़र में मैं अब भी तुम्हारी सबसे प्यारी चाची हूं। मगर किस्मत देखो कि इसके बाद भी कभी एक पल के लिए भी सुकून नहीं मिला मुझे। हर पल ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी कि या तो मुझे अपने पास बुला ले या फिर कुछ ऐसा कर दे कि कोई मुझे ग़लत न समझे। चंद्रकांत के बेटे को और फिर उसके द्वारा उसकी बहू को मरवा देने के पीछे एक वजह यही थी कि ऐसा कर के मैं तुम्हारे भाई की मौत का बदला भी ले लूंगी। शायद मेरे अपराध कुछ तो कम हो जाएं।"

"वैसे ये सब कब से चल रहा था?" सहसा पिता जी ने गंभीरता से पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि हमारे प्यार में कहां कमी रह गई थी जिसके चलते हमारे ही भाई ने ऐसा करने का मंसूबा बना लिया था? अगर उसको हवेली, धन संपत्ति और ज़मीन जायदाद की ही चाह थी तो उसे हमसे कहना चाहिए था। यकीन मानो बहू, अपने छोटे के कहने पर हम पलक झपकते ही सब कुछ उसके नाम कर देते और खुद अपने बीवी बच्चों को ले कर कहीं और चले जाते।"

"माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" मेनका चाची उनके सामने घुटनों के बल गिर पड़ीं। फिर रोते हुए बोलीं____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब हमारे मन में ऐसा नीच कर्म करने का ख़याल आया था।"

"इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा छल?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हे विधाता! ये जानने के बाद भी हमारे प्राण नहीं निकले...क्यों? आख़िर अब और कौन सी बिजली हमारे हृदय पर गिराने का सोच रखा है तुमने?"

"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"ईश्वर करे आपको कभी कुछ न हो। हम सबकी उमर लग जाए आपको।"

"मत दो हमें ऐसी बद्दुआ।" पिता जी खीझ कर बोले____"ईश्वर जानता है कि हमने कभी किसी के बारे में ग़लत नहीं सोचा। हमेशा सबका भला ही चाहा है। सारा जीवन हमने लोगों की भलाई के लिए समर्पित किया। कभी अपने और अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं चाहा इसके बावजूद हमारे साथ इतना बड़ा छल किया गया। बताओ बहू, आख़िर किस अपराध की सज़ा दी है तुम दोनों ने हमें? इतने समय से हम अपने छोटे भाई के जाने का दुख सहन कर रहे थे और आज तुम हमें ये बता रही हो कि उसने और तुमने मिल कर हमारे साथ इतना बड़ा छल किया? क्यों बताया तुमने बहू? हमें इसी भ्रम में जीने दिया होता कि हमारा भाई हमें बहुत मानता था?"

पिता जी की हालत एकाएक दयनीय हो गई। मैंने उनकी आंखों में तब आंसू देखे थे जब चाचा जी और भैया की मौत हुई थी और अब देख रहा था। यकीनन ऐसा होने की उन्होंने कल्पना नहीं की थी। हालाकि शुरआत में हमारे मन में चाचा जी के प्रति शक भी पनपा था किंतु तब हमने यही सोचा था कि ऐसा शायद इस लिए हो सकता है क्योंकि हमारा दुश्मन है ही इतना शातिर। यानि वो चाहता ही यही है कि हम आपस में ही एक दूसरे पर शक करें जिसका परिणाम ये निकले कि हम बिखर जाएं। नहीं पता था कि उस समय हमारा चाचा जी पर शक करना हमारे किसी दुश्मन की शातिराना चाल नहीं थी बल्कि कहीं न कहीं उसमें सच्चाई ही थी।

"आप तो महान हैं जेठ जी।" चाची की करुण आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ____"आपके जैसा दूसरा कभी कोई नहीं होगा। आपने हमेशा दूसरों का भला चाहा। ये तो हमारा दुर्भाग्य था कि ऐसे महान इंसान के पास रह कर भी हम बुरे बन गए। हमें माफ़ कर दीजिए।"

"तुम दोनों ने जो किया वो तो किया ही लेकिन जिस बेटी को हमने हमेशा अपनी बेटी समझा।" पिता जी ने सहसा कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"उसने भी हमें सिर्फ दुख ही दिया। हमारे विश्वास और हमारे प्यार का मज़ाक बना दिया।"

"नहीं ताऊ जी।" कुसुम भाग कर आई और पिता जी के घुटनों से लिपट कर रोने लगी____"मैंने आपके प्यार का मज़ाक नहीं बनाया। अपने माता पिता से ज़्यादा मैं आपको, ताई जी को और अपने सबसे अच्छे वाले भैया को मानती हूं। मेरा यकीन कीजिए ताऊ जी। आपकी बेटी आपको दुख देने का सोच भी नहीं सकती है। वो तो....वो तो मेरी बदकिस्मती थी कि अपनी मां को बचाने के लिए मुझे जो सुझा कर दिया मैंने। अपनी बेटी की इस नादानी के लिए माफ़ कर दीजिए ना।"

"हां जेठ जी इसे माफ़ कर दीजिए।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"इस पगली का इसमें कोई दोष नहीं है। इसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था लेकिन आज इसने ये सब कैसे किया मुझे नहीं पता। शायद किसी दिन इसने मुझे सफ़ेद लिबास पहने देख लिया होगा।"

"मैंने आपको तब देखा था जब एक रात आप सफ़ेदपोश के रूप में कमरे से बाहर जाने वाली थीं।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"उस रात मेरा पेट दर्द कर रहा था इस लिए मैं दवा लेने के लिए आपके कमरे में आई थी। आपके कमरे का दरवाज़ा बंद तो था लेकिन दो उंगली के बराबर खुला हुआ भी नज़र आ रहा था। अंदर बल्ब जल रहा था। मैं जैसे ही आपको आवाज़ देने को हुई तो अचानक दो अंगुल खुले दरवाज़े के अंदर मेरी नज़र आप पर पड़ी। आपको सफ़ेद मर्दाना कपड़ों में देख मैं हक्की बक्की रह गई थी। अगर आपने अपने चेहरे पर नक़ाब लगाया होता तो मैं जान भी न पाती कि वो आप थीं। आपको उन कपड़ों में देख कर मैं डर भी गई थी। सफ़ेदपोश के बारे में तो मैंने भी सुना था लेकिन मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि जो सफ़ेदपोश मेरे सबसे अच्छे वाले भैया की जान का दुश्मन था वो आप हैं। उसके बाद फिर मेरी हिम्मत ही न हुई कि आपको आवाज़ दूं या कमरे में जाऊं। कुछ देर डरी सहमी मैं आपको देखती रही और फिर वहां से चुपचाप चली आई थी।"

"अगर तुझे पता चल ही गया था कि वो मैं ही थी।" चाची ने कहा____"तो इतने दिनों से चुप क्यों थी? मुझे या हवेली में किसी को बताया क्यों नहीं इस बारे में?"

"मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।" कुसुम ने कहा____"और फिर किसी से क्या बताती मैं? क्या ये कि आप ही सफ़ेदपोश हैं ताकि आप पकड़ी जाएं और फिर आपको मौत की सज़ा दे दी जाए? नहीं मां, मैं भला कैसे ये चाह सकती थी कि मेरी मां सफ़ेदपोश के रूप में पकड़ी जाएं और फिर कोई उनकी जान ले ले? अपने पिता जी को तो खो ही चुकी थी। अब मां को नहीं खोना चाहती थी। यही सोच सोच कर रात दिन हालत ख़राब थी मेरी। जानती थी कि आज नहीं तो किसी न किसी दिन लोग सफ़ेदपोश के रूप में आपको पकड़ ही लेंगे और फिर जाने अंजाने आपकी जान भी ले सकते हैं। मुझे लगा अगर आपको कुछ हो गया तो मेरे दोनों भाई बिना मां के हो जाएंगे। इस लिए सोचा कि मैं ही सफ़ेदपोश बन जाती हूं। अगर किसी के द्वारा पकड़ी गई या जान से मार दी गई तो सफ़ेदपोश का किस्सा ही हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा। उसके बाद कोई भी आपके साथ कुछ नहीं कर पाएगा।"

"तो ऐसे पता चला तुझे और इसी लिए तूने मुझे बचाने के लिए सफ़ेदपोश बन कर अपनी बली देनी चाही?" मेनका चाची का गला भर आया, आंखों से आंसू छलक पड़े, बोलीं____"तुझे मुझ जैसी मां के लिए अपना बलिदान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी मेरी बच्ची। मैंने और तेरे पिता ने जो किया है वो माफ़ी के लायक नहीं है।"

बड़ा गमगीन माहौल हो गया था। समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहें किंतु अभी भी बहुत कुछ ऐसा था जिसे जानना बाकी था। इतना तो समझ आ गया था कि ये सब अपने और अपने बच्चों के लिए किया था उन्होंने लेकिन ये कब शुरू हुआ और कैसे शुरू हुआ ये जानना बाकी था।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
Dosto....
Update 133 & 134 me aakhir open ho gaya safedposh ka raaz.... :declare:



Intzaar rahega ab aap sabke vichaaro ka.. :declare:

Koi kanjusi nahi karega warna iske aage ke updates post nahi karunga...Believe me :smoking:
 
Last edited:

R@ndom_guy

Member
413
642
93
अध्याय - 133
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"त...तू?????" पिता जी की तरह मैं भी चकरा गया____"तू है सफ़ेदपोश??? न....नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

मैं हलक फाड़ कर चीखा और पीछे हटता‌ चला गया। मुझे तेज़ झटका लगा था और साथ ही इतनी तेज़ पीड़ा हुई थी कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाता नज़र आया।



अब आगे....


हवेली में अजीब सा आलम था।
हर किसी की नींद खुल चुकी थी। सुगंधा देवी को जब से पता चला था कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है तभी से उनकी ये सोच सोच कर धड़कनें बढ़ीं हुईं थी कि जाने कौन होगा सफ़ेदपोश। दादा ठाकुर और वैभव के जाने के बाद एकाएक ही उनकी बेचैनी बढ़ने लगी थी। मन में जहां सफ़ेदपोश के बारे में जानने की तीव्र उत्सुकता थी वहीं मन ही मन वो ये प्रार्थना भी कर रहीं थी कि उनके पति और बेटे को सफ़ेदपोश के द्वारा कोई नुकसान न पहुंचे। हालाकि ऐसा संभव तो नहीं था क्योंकि उन्हें भी पता था कि सुरक्षा के लिए ढेरों आदमी वहां पर मौजूद हैं किंतु नारी का कोमल हृदय प्रतिपल नई नई आशंकाओं के चलते घबराहट से भर उठता था।

हवेली में हुई हलचल से एक एक कर के सबकी नींद खुल चुकी थी। सबसे पहले तो निर्मला ही जगी थी और उसने अपने पति किशोरी लाल को भी जगा दिया था। उसके बाद वो कमरे से निकल कर नीचे सुगंधा देवी के पास आ गई थी जोकि अंदर वाले छोटे से हाल में ही कुर्सी पर बैठीं थी। उसके बाद हवेली में ही रहने वाली दो नौकरानियां भी जग कर आ गईं थी।

रात के सन्नाटे में आवाज़ें गूंजी तो हवेली की मझली ठकुराईन मेनका भी जग कर अपने कमरे से आ गई थी। बदहवासी के आलम में जब मेनका ने पूछा कि क्या हुआ है तो सुगंधा देवी ने सबको बताया कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है। ये भी बताया कि ठाकुर साहब और वैभव कुछ देर पहले ही ये देखने के लिए हवेली से गए हैं कि सफ़ेदपोश कौन है?

सुगंधा देवी की बात सुन कर सभी के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर आए थे। कुछ पलों तक तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि जो उन्होंने सुना है वो सच है किंतु यकीन न करने की कोई वजह भी नहीं थी क्योंकि सच तो सच ही था।

"अगर ये सच है।" किशोरी लाल ने खुद को सम्हालते हुए संतुलित भाव से कहा____"तो ये बहुत ही बढ़िया हुआ। जाने कब से ठाकुर साहब उसके चलते चिंतित और परेशान थे। ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि वो पकड़ा गया लेकिन ये सब हुआ कैसे?"

"इस बारे में तो फिलहाल उन्होंने कुछ नहीं बताया था।" सुगंधा देवी ने कहा____"शायद सारी बात उन्हें भी उस वक्त पता नहीं थी। उनसे इतना ही पता चला था कि दो लोग आए थे उन्हें इस बात की सूचना देने।"

"फिर तो मुझे पूरा भरोसा है कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली बात सच ही है।" किशोरी लाल ने दृढ़ता से कहा____"क्योंकि इतनी बड़ी बात बेवजह ही कोई ठाकुर साहब को बताने यहां नहीं आएगा। ठाकुर साहब से झूठ बोलने का दुस्साहस भी कोई नहीं कर सकता। यानि ये सच बात है कि हम सबका सुख चैन हराम करने वाला वो सफ़ेदपोश पकड़ा गया है।"

"बिल्कुल।" सुगंधा देवी ने कहा____"अब तो बस ये जानने की उत्सुकता है कि आख़िर वो मरदूद है कौन जो मेरे बेटे का जानी दुश्मन बना हुआ था? काश! मैं भी ठाकुर साहब के साथ जा पाती ताकि मैं भी उसे अपनी आंखों से देखती और फिर उससे पूछती कि मेरे बेटे ने आख़िर उसका क्या बिगाड़ा था जिसके चलते वो मेरे बेटे की जान लेने पर तुला हुआ था?"

"फ़िक्र मत कीजिए दीदी।" मेनका ने कहा____"अब तो वो पकड़ा ही गया है ना। देर सवेर हमें भी पता चल ही जाएगा उसके बारे में। उसके बाद हम सब उससे पूछेंगे कि उसने ऐसा क्यों किया था?"

"मैं तो उस कमीने का मुंह नोच लूंगी मेनका।" सुगंधा देवी ने एकाएक गुस्से वाले लहजे में कहा____"काश! ठाकुर साहब उसे घसीट कर मेरे पास ले आएं।"

"शांत हो जाइए दीदी।" मेनका ने कहा____"जेठ जी गए हैं न तो यकीन रखिए उन पर। मुझे उन पर पूरा भरोसा है कि वो उसे यहां ज़रूर ले आएंगे। आप अपने जी को शांत रखिए, रुकिए मैं आपके लिए पानी ले कर आती हूं।"

कहने के साथ ही मेनका पानी लेने के लिए चली गई। इधर सुगंधा देवी खुद को शांत करने लगीं किंतु मन शांत होने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा था। एक तूफ़ान सा उठा हुआ था उनके अंदर।

थोड़ी ही देर में मेनका पानी ले आई और सुगंधा देवी को दिया। सुगंधा देवी ने पानी पिया और गिलास वापस मेनका की तरफ बढ़ा दिया।

"आप बैठिए दीदी।" फिर उसने कहा____"मैं ज़रा कुसुम को देख कर आती हूं। वैभव भी जेठ जी के साथ गया हुआ है तो इस वक्त ऊपर वो अकेली ही होगी।"

"हां देख तो ज़रा उसे।" सुगंधा देवी ने कहा____"सबकी नींद खुल गई है लेकिन वो लगता है अपने प्यारे भैया की तरह ही हाथी घोड़े बेंच कर सो रही है। जा देख ज़रा।"

मेनका फ़ौरन ही कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गई। सीढ़ियों से चढ़ कर कुछ ही पलों में वो ऊपर कुसुम के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गई। अगले ही पल वो ये देख कर चौंकी कि कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं है। किसी अंजानी आशंका के तहत उसने दरवाज़ा पूरी तरह खोला और कमरे में दाख़िल हो गई।

कमरे में एक तरफ रखे पलंग पर कुसुम नहीं थी। पलंग पूरी तरह खाली था। मेनका को तीव्र झटका लगा। बिजली की तरह मन में सवाल उभरा कि कहां गई कुसुम? अपने इस सवाल के जवाब में उसने पूरा कमरा छान मारा मगर कुसुम कहीं नज़र ना आई।

अचानक ही उसके मन में बिजली सी कौंधी और वो जड़ सी हो गई। चेहरा फक्क सा पड़ गया किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और पलट कर दरवाज़े की तरफ लपकी। चेहरे पर एकाएक घबराहट के भाव उभर आए थे और साथ ही पसीना छलछला आया था। अगले ही पल ख़ुद को सुलझाते हुए वो सीढ़ियों से उतर कर अपने कमरे की तरफ भागती नज़र आई।

✮✮✮✮

बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला। हालाकि अंदर से टूट सा गया था मैं। आंखें जो देख रहीं थी उस पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था मुझे लेकिन आख़िर कब तक मैं उस पर विश्वास न करता? जीता जागता सच तो मेरी आंखों के सामने ही मूर्तिमान हो कर बैठा था, एकदम सहमा सा।

"य...ये तू है मेरी गुड़िया??" दुख और पीड़ा के चलते फूट पड़ने वाली अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए मैं लगभग चीख पड़ा था____"नहीं नहीं, मैं नहीं मान सकता कि ये तू है। मेरी आंखें ज़रूर धोखा खा रही हैं।"

मेरी बातें सुनते ही सामने सफ़ेद लिबास में बैठी कुसुम की आंखें छलक पड़ीं। उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव उभर आए और अगले ही पल वो फूट फूट कर रो पड़ी। ये देख मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। अपनी पीड़ा को भूल कर मैं झपट पड़ा उसकी तरफ और अगले ही पल खींच कर उसे अपने गले से लगा लिया।

"मत रो, तू अच्छी तरह जानती है कि तेरा ये भाई तेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकता।" मैं उसे सीने से लगाए रो पड़ा____"तू वो नहीं हो सकती जो मुझे दिखा रही है। कह दे ना गुड़िया कि ये तू नहीं है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। तू मुझसे बहुत प्यार करती है। तू मेरी जान की दुश्मन नहीं हो सकती। मैं सच कह रहा हूं ना गुड़िया? बोल ना....चुप क्यों है तू?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" कुसुम ने बुरी तरह मुझे जकड़ लिया____"ये मैं ही हूं। हां भैया, मैं ही सफ़ेदपोश हूं। मैं ही आपकी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"नहीं।" मैं उसे खुद से अलग कर के हलक फाड़ कर चीखा____"मैं किसी कीमत पर नहीं मान सकता कि मेरी इतनी नाज़ुक सी गुड़िया अपने इस भाई की जान की दुश्मन हो सकती है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। मुझे बता कि सच क्या है? आख़िर किसे बचाने की कोशिश कर रही है तू?"

"क...किसी को नहीं भैया।" कुसुम ने एकदम से नज़रें चुराते हुए कहा____"मेरा यकीन कीजिए, मैं ही सफ़ेदपोश हूं और शुरू से ही आपकी जान लेना चाहती थी।"

"तो फिर ठीक है।" मैंने एक झटके में उसका हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोला_____"यही बात मेरी क़सम खा कर बोल। मेरी आंखों में देखते हुए बता कि तू ही सफ़ेदपोश है और तू ही मेरी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"न...नहीं।" कुसुम ने रोते हुए एक झटके में अपना हाथ मेरे सिर से खींच लिया, फिर बोली_____"मैं ये नहीं कर सकती लेकिन मेरा यकीन कीजिए। मैं ही सफेदपो....।"

"झूठ...झूठ बोल रही है तू।" मैं फिर से चीख पड़ा____"अगर सच में तू सफ़ेदपोश होती और मेरी जान की दुश्मन होती तो मेरी क़सम खाने में तुझे कोई संकोच न होता। आख़िर तेरे हिसाब से मैं तेरा सबसे बड़ा दुश्मन जो होता लेकिन तू मेरी क़सम नहीं खा सकती। इसका मतलब यही है कि तू अपने इस भाई को बहुत प्यार करती है। मेरे साथ बुरा हो ऐसा तू सपने में भी नहीं सोच सकती। फिर तू सफ़ेदपोश कैसे हो सकती है? मेरी जान की दुश्मन कैसे हो सकती है गुड़िया? नहीं नहीं, ज़रूर तू किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।"

"नहीं, मैं किसी को नहीं बचा रही।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"आप मेरी बात का यकीन क्यों नहीं कर रहे? मैं ही सफ़ेदपोश हूं।"

"तुम्हारे भाई की बात से हम भी सहमत हैं बेटी।" सहसा पिता जी ने हमारे क़रीब आ कर कुसुम से कहा_____"हमें भी इस बात का यकीन नहीं है कि हमारी फूल जैसी बेटी सफ़ेदपोश हो सकती है और जिस भाई पर उसकी जान बसती है उसकी जान की वो दुश्मन हो सकती है। एक बात और, हम इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि अगर सचमुच तू ही सफ़ेदपोश होती तो इस वक्त अपने भाई के सामने तू इस तरह रो नहीं रही होती बल्कि उसे अपना दुश्मन समझ कर उसकी आंखों में आंखें डाल कर उससे नफ़रत से बातें कर रही होती। इसी से ज़ाहिर हो जाता है कि तू सफ़ेदपोश नहीं है।"

कुसुम को कोई जवाब न सूझा। बस सिर झुकाए सिसकती रही वो। मुझे उसको इस हालत में देख कर बहुत तकलीफ़ हो रही थी लेकिन वक्त की नज़ाकत को देख कर मैं फिलहाल ख़ामोश था।

"तू खुद को ज़बरदस्ती सफ़ेदपोश कह रही है बेटी।" पिता जी ने पुनः कहा____"जबकि सफ़ेदपोश जैसी शख्सियत से तेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। स्पष्ट है कि तू किसी को बचाने का प्रयास कर रही है। यकीनन वो कोई ऐसा व्यक्ति है जो तेरा अपना है और जिसे तू बहुत प्यार करती है। हम सच कह रहे हैं ना बेटी?"

पिता जी की बातों पर कुसुम ने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे उसने एकदम से चुप्पी साध ली हो। उधर पिता जी की आख़िरी बातें सुन कर मैं एकदम से चौंक पड़ा। बिजली की सी तेज़ी से मेरे ज़हन में कई सवाल चकरा उठे। कुसुम के तो सभी अपने ही थे किंतु उसके सगे वाले अपनों में उसकी मां ही थी। उसके दोनों भाई तो विदेश पढ़ने गए हुए थे। तो क्या मेनका चाची????? नहीं नहीं, मेनका चाची सफ़ेदपोश नहीं हो सकतीं और ना ही वो मेरी जान की दुश्मन हो सकती हैं। वो मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं। तो फिर दूसरा कौन हो सकता है? मेरे दिमाग़ में एकाएक हलचल सी मच गई थी। कई चेहरे, कई नाम ज़हन में उभरने लगे। क्या रागिनी भाभी? वो भी तो कुसुम की अपनी ही थीं। रागिनी भाभी को कुसुम बहुत मानती है तो क्या रागिनी भाभी सफ़ेदपोश हो सकती हैं? मगर....मगर वो तो यहां हैं ही नहीं, तो फिर और कौन हो सकता है? सोचते सोचते मेरा बुरा हाल सा हो गया।

"चुप क्यों हो बेटी?" पिता जी की आवाज़ से मैं सोचो से बाहर आया_____"आख़िर किसे बचाने का प्रयास कर रही हो तुम?"

"आपके इस सवाल का जवाब मैं देती हूं जेठ जी।" अचानक कमरे में एक नारी की मधुर आवाज़ गूंजी तो हम सब चौंक पड़े।

गर्दन घुमा कर दरवाज़े की तरफ देखा। दरवाज़े के बीचो बीच मेनका चाची खड़ीं थी। कुसुम ने उन्हें देखा तो उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उभर आए। आंखों में आंसू भर आए।

"च...चाची आप?" मैं सकते की सी हालत में उन्हें देखा।

"क्यों, क्या मैं यहां नहीं हो सकती?" मेनका चाची ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा।

मुझे समझ ना आया कि क्या जवाब दूं? बस हैरत से उनके चेहरे की तरफ देखता रहा। उधर पिता जी और शेरा भी चकित से देखे जा रहे थे उन्हें। मेनका चाची अपने विधवा लिबास में थीं। सिर पर हल्का सा घूंघट लिया हुआ था उन्होंने।

"तो तुम हो वो।" पिता जी ने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"जिसे कुसुम बचाने का प्रयास कर रही थी?"

"दुर्भाग्य से यही सच है जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा_____"हालाकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि मेरी बेटी को ये कैसे पता चला कि उसकी मां ही सफ़ेदपोश है? इस वक्त इसे यहां पर इस रूप में बैठा देख कर मैं समझ सकती हूं कि इसने अपनी मां को बचाने के लिए खुद का बलिदान देना चाहा।"

"आपको यहां नहीं आना चाहिए था मां।" कुसुम ने पीड़ा भरे भाव से कहा।

"दुनिया में अक्सर माता पिता ही औलाद के लिए खुद का बलिदान देते हैं मेरी बच्ची।" मेनका चाची ने दर्द भरे स्वर में कहा____"तू तो मेरी बहुत ही ज़्यादा मासूम और निर्दोष बेटी है। भला मैं ये कैसे सहन कर लेती कि मेरी बेटी अपनी मां को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दे? हवेली में दीदी के द्वारा जब मुझे ये पता चला कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है तो मैं ये सोच कर चकित रह गई थी कि मेरे अलावा कोई दूसरा सफ़ेदपोश कहां से पैदा हो गया? और पैदा हुआ भी तो इतना जल्दी पकड़ा कैसे गया? यही सोच सोच कर मेरा सिर फटा जा रहा था। तभी मैं ये देख कर चौंकी कि हवेली में लगभग सभी जग चुके हैं और एक जगह इकट्ठा हो गए हैं लेकिन मेरी बेटी घोड़े बेंच कर अपने कमरे में कैसे सोई हुई है? अपनी बेटी के बारे में इतना तो मैं जानती ही थी कि वो इस तरह कभी घोड़े बेंच कर नहीं सोती है। इसके बाद भी अगर वो जग कर सबके पास नहीं आई है तो ज़रूर कोई वजह है। मैं फ़ौरन ही इसके कमरे में इसे देखने पहुंची लेकिन ये अपने कमरे में नहीं थी। स्वाभाविक रूप से मुझे बड़ी हैरानी हुई और सोचने पर मजबूर हो गई कि आख़िर ये गई कहां? फिर अचानक से मुझे ख़याल आया कि इसके साथ कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई? आख़िर मां हूं फ़िक्र तो होनी ही थी मुझे। मन में ये ख़याल भी बार बार उभरने लगा था कि कहीं ये ही तो नहीं सफ़ेदपोश बन कर हवेली से चली गई थी और पकड़ ली गई है? बात असंभव ज़रूर थी लेकिन ऐसी परिस्थिति में हर असंभव बात सच ही लगने लगती है। यही सोच कर मैं अपने कमरे की तरफ भागी। कमरे में पहुंच कर मैंने झट से संदूक खोला और ये देख कर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई कि संदूख से सफ़ेदपोश वाले कपड़े गायब हैं। बस, ये देख मन में मौजूद रही सही शंका भी दूर हो गई। पहले तो समझ ही न आया कि इस पगली ने ऐसा क्यों किया लेकिन जब गहराई से सोचा तो अनायास ही आंखें भर आईं। मैं समझ गई कि मेरी बेटी को मेरे सफ़ेदपोश होने का राज़ पता चल गया है। यकीनन इस भेद के चलते उसे बहुत पीड़ा हुई होगी लेकिन अपनी मां को इस हाहाकारी संकट से बचाने के लिए इस पगली को जो सूझा वही कर बैठी। उस वक्त लगा कि धरती फटे और मैं उसमें समा जाऊं लेकिन बेटी को कलंकित कर के मौत के मुंह पर अकेला छोड़ कर दुनिया से नहीं जा सकती थी मैं। इस लिए हवेली से चुपचाप यहां चली आई।"

मेनका चाची के चुप होते ही सन्नाटा छा गया कमरे में। कुसुम का सफ़ेदपोश बनना तो समझ आ गया था लेकिन अब सबसे ज़्यादा ये जानने की उत्सुकता थी कि अगर मेनका चाची ही सफ़ेदपोश हैं तो क्यों हैं? आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि उन्होंने सफ़ेदपोश का रूप धारण किया? मैं तो हमेशा यही समझता था कि मेनका चाची मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं तो फिर ऐसा क्यों था कि वो मुझे अपना दुश्मन समझती थीं और मेरी जान लेने पर आमादा थीं?

पहले ये देख कर तीव्र झटका और पीड़ा हुई थी कि मेरी लाडली बहन सफ़ेदपोश है और जब उससे उबरा तो अब ये जान कर झटके पे झटका लगे जा रहा था कि मेनका चाची ने सफ़ेदपोश बन कर ऐसा क्यों किया?

कुछ ही क़दम की दूरी पर खड़े पिता जी के चेहरे पर सोचो के भाव तो थे ही किंतु गहन पीड़ा के भाव भी थे। उन्हें देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अचानक ही उन्हें किसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया हो जिसके चलते वो एकदम से असहाय हो गए हैं।

हम सबके मन में अनगिनत सवाल थे जिनके जवाब सिर्फ और सिर्फ मेनका चाची के पास थे। मेरे और पिता जी के लिए ये बड़ा ही पीड़ादायक पल था। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेनका चाची सफ़ेदपोश हो सकती हैं।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Bhai dimag hila diya yr pura
Kaise koi soch sakta tha
Menka chachi ke baare me
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,816
41,496
259
अध्याय - 133
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"त...तू?????" पिता जी की तरह मैं भी चकरा गया____"तू है सफ़ेदपोश??? न....नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

मैं हलक फाड़ कर चीखा और पीछे हटता‌ चला गया। मुझे तेज़ झटका लगा था और साथ ही इतनी तेज़ पीड़ा हुई थी कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाता नज़र आया।



अब आगे....


हवेली में अजीब सा आलम था।
हर किसी की नींद खुल चुकी थी। सुगंधा देवी को जब से पता चला था कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है तभी से उनकी ये सोच सोच कर धड़कनें बढ़ीं हुईं थी कि जाने कौन होगा सफ़ेदपोश। दादा ठाकुर और वैभव के जाने के बाद एकाएक ही उनकी बेचैनी बढ़ने लगी थी। मन में जहां सफ़ेदपोश के बारे में जानने की तीव्र उत्सुकता थी वहीं मन ही मन वो ये प्रार्थना भी कर रहीं थी कि उनके पति और बेटे को सफ़ेदपोश के द्वारा कोई नुकसान न पहुंचे। हालाकि ऐसा संभव तो नहीं था क्योंकि उन्हें भी पता था कि सुरक्षा के लिए ढेरों आदमी वहां पर मौजूद हैं किंतु नारी का कोमल हृदय प्रतिपल नई नई आशंकाओं के चलते घबराहट से भर उठता था।

हवेली में हुई हलचल से एक एक कर के सबकी नींद खुल चुकी थी। सबसे पहले तो निर्मला ही जगी थी और उसने अपने पति किशोरी लाल को भी जगा दिया था। उसके बाद वो कमरे से निकल कर नीचे सुगंधा देवी के पास आ गई थी जोकि अंदर वाले छोटे से हाल में ही कुर्सी पर बैठीं थी। उसके बाद हवेली में ही रहने वाली दो नौकरानियां भी जग कर आ गईं थी।

रात के सन्नाटे में आवाज़ें गूंजी तो हवेली की मझली ठकुराईन मेनका भी जग कर अपने कमरे से आ गई थी। बदहवासी के आलम में जब मेनका ने पूछा कि क्या हुआ है तो सुगंधा देवी ने सबको बताया कि सफ़ेदपोश पकड़ा गया है। ये भी बताया कि ठाकुर साहब और वैभव कुछ देर पहले ही ये देखने के लिए हवेली से गए हैं कि सफ़ेदपोश कौन है?

सुगंधा देवी की बात सुन कर सभी के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर आए थे। कुछ पलों तक तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि जो उन्होंने सुना है वो सच है किंतु यकीन न करने की कोई वजह भी नहीं थी क्योंकि सच तो सच ही था।

"अगर ये सच है।" किशोरी लाल ने खुद को सम्हालते हुए संतुलित भाव से कहा____"तो ये बहुत ही बढ़िया हुआ। जाने कब से ठाकुर साहब उसके चलते चिंतित और परेशान थे। ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि वो पकड़ा गया लेकिन ये सब हुआ कैसे?"

"इस बारे में तो फिलहाल उन्होंने कुछ नहीं बताया था।" सुगंधा देवी ने कहा____"शायद सारी बात उन्हें भी उस वक्त पता नहीं थी। उनसे इतना ही पता चला था कि दो लोग आए थे उन्हें इस बात की सूचना देने।"

"फिर तो मुझे पूरा भरोसा है कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली बात सच ही है।" किशोरी लाल ने दृढ़ता से कहा____"क्योंकि इतनी बड़ी बात बेवजह ही कोई ठाकुर साहब को बताने यहां नहीं आएगा। ठाकुर साहब से झूठ बोलने का दुस्साहस भी कोई नहीं कर सकता। यानि ये सच बात है कि हम सबका सुख चैन हराम करने वाला वो सफ़ेदपोश पकड़ा गया है।"

"बिल्कुल।" सुगंधा देवी ने कहा____"अब तो बस ये जानने की उत्सुकता है कि आख़िर वो मरदूद है कौन जो मेरे बेटे का जानी दुश्मन बना हुआ था? काश! मैं भी ठाकुर साहब के साथ जा पाती ताकि मैं भी उसे अपनी आंखों से देखती और फिर उससे पूछती कि मेरे बेटे ने आख़िर उसका क्या बिगाड़ा था जिसके चलते वो मेरे बेटे की जान लेने पर तुला हुआ था?"

"फ़िक्र मत कीजिए दीदी।" मेनका ने कहा____"अब तो वो पकड़ा ही गया है ना। देर सवेर हमें भी पता चल ही जाएगा उसके बारे में। उसके बाद हम सब उससे पूछेंगे कि उसने ऐसा क्यों किया था?"

"मैं तो उस कमीने का मुंह नोच लूंगी मेनका।" सुगंधा देवी ने एकाएक गुस्से वाले लहजे में कहा____"काश! ठाकुर साहब उसे घसीट कर मेरे पास ले आएं।"

"शांत हो जाइए दीदी।" मेनका ने कहा____"जेठ जी गए हैं न तो यकीन रखिए उन पर। मुझे उन पर पूरा भरोसा है कि वो उसे यहां ज़रूर ले आएंगे। आप अपने जी को शांत रखिए, रुकिए मैं आपके लिए पानी ले कर आती हूं।"

कहने के साथ ही मेनका पानी लेने के लिए चली गई। इधर सुगंधा देवी खुद को शांत करने लगीं किंतु मन शांत होने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा था। एक तूफ़ान सा उठा हुआ था उनके अंदर।

थोड़ी ही देर में मेनका पानी ले आई और सुगंधा देवी को दिया। सुगंधा देवी ने पानी पिया और गिलास वापस मेनका की तरफ बढ़ा दिया।

"आप बैठिए दीदी।" फिर उसने कहा____"मैं ज़रा कुसुम को देख कर आती हूं। वैभव भी जेठ जी के साथ गया हुआ है तो इस वक्त ऊपर वो अकेली ही होगी।"

"हां देख तो ज़रा उसे।" सुगंधा देवी ने कहा____"सबकी नींद खुल गई है लेकिन वो लगता है अपने प्यारे भैया की तरह ही हाथी घोड़े बेंच कर सो रही है। जा देख ज़रा।"

मेनका फ़ौरन ही कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गई। सीढ़ियों से चढ़ कर कुछ ही पलों में वो ऊपर कुसुम के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गई। अगले ही पल वो ये देख कर चौंकी कि कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं है। किसी अंजानी आशंका के तहत उसने दरवाज़ा पूरी तरह खोला और कमरे में दाख़िल हो गई।

कमरे में एक तरफ रखे पलंग पर कुसुम नहीं थी। पलंग पूरी तरह खाली था। मेनका को तीव्र झटका लगा। बिजली की तरह मन में सवाल उभरा कि कहां गई कुसुम? अपने इस सवाल के जवाब में उसने पूरा कमरा छान मारा मगर कुसुम कहीं नज़र ना आई।

अचानक ही उसके मन में बिजली सी कौंधी और वो जड़ सी हो गई। चेहरा फक्क सा पड़ गया किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और पलट कर दरवाज़े की तरफ लपकी। चेहरे पर एकाएक घबराहट के भाव उभर आए थे और साथ ही पसीना छलछला आया था। अगले ही पल ख़ुद को सुलझाते हुए वो सीढ़ियों से उतर कर अपने कमरे की तरफ भागती नज़र आई।

✮✮✮✮

बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला। हालाकि अंदर से टूट सा गया था मैं। आंखें जो देख रहीं थी उस पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था मुझे लेकिन आख़िर कब तक मैं उस पर विश्वास न करता? जीता जागता सच तो मेरी आंखों के सामने ही मूर्तिमान हो कर बैठा था, एकदम सहमा सा।

"य...ये तू है मेरी गुड़िया??" दुख और पीड़ा के चलते फूट पड़ने वाली अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए मैं लगभग चीख पड़ा था____"नहीं नहीं, मैं नहीं मान सकता कि ये तू है। मेरी आंखें ज़रूर धोखा खा रही हैं।"

मेरी बातें सुनते ही सामने सफ़ेद लिबास में बैठी कुसुम की आंखें छलक पड़ीं। उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव उभर आए और अगले ही पल वो फूट फूट कर रो पड़ी। ये देख मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। अपनी पीड़ा को भूल कर मैं झपट पड़ा उसकी तरफ और अगले ही पल खींच कर उसे अपने गले से लगा लिया।

"मत रो, तू अच्छी तरह जानती है कि तेरा ये भाई तेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकता।" मैं उसे सीने से लगाए रो पड़ा____"तू वो नहीं हो सकती जो मुझे दिखा रही है। कह दे ना गुड़िया कि ये तू नहीं है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। तू मुझसे बहुत प्यार करती है। तू मेरी जान की दुश्मन नहीं हो सकती। मैं सच कह रहा हूं ना गुड़िया? बोल ना....चुप क्यों है तू?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" कुसुम ने बुरी तरह मुझे जकड़ लिया____"ये मैं ही हूं। हां भैया, मैं ही सफ़ेदपोश हूं। मैं ही आपकी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"नहीं।" मैं उसे खुद से अलग कर के हलक फाड़ कर चीखा____"मैं किसी कीमत पर नहीं मान सकता कि मेरी इतनी नाज़ुक सी गुड़िया अपने इस भाई की जान की दुश्मन हो सकती है। तू सफ़ेदपोश नहीं हो सकती। मुझे बता कि सच क्या है? आख़िर किसे बचाने की कोशिश कर रही है तू?"

"क...किसी को नहीं भैया।" कुसुम ने एकदम से नज़रें चुराते हुए कहा____"मेरा यकीन कीजिए, मैं ही सफ़ेदपोश हूं और शुरू से ही आपकी जान लेना चाहती थी।"

"तो फिर ठीक है।" मैंने एक झटके में उसका हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोला_____"यही बात मेरी क़सम खा कर बोल। मेरी आंखों में देखते हुए बता कि तू ही सफ़ेदपोश है और तू ही मेरी जान की दुश्मन बनी हुई थी।"

"न...नहीं।" कुसुम ने रोते हुए एक झटके में अपना हाथ मेरे सिर से खींच लिया, फिर बोली_____"मैं ये नहीं कर सकती लेकिन मेरा यकीन कीजिए। मैं ही सफेदपो....।"

"झूठ...झूठ बोल रही है तू।" मैं फिर से चीख पड़ा____"अगर सच में तू सफ़ेदपोश होती और मेरी जान की दुश्मन होती तो मेरी क़सम खाने में तुझे कोई संकोच न होता। आख़िर तेरे हिसाब से मैं तेरा सबसे बड़ा दुश्मन जो होता लेकिन तू मेरी क़सम नहीं खा सकती। इसका मतलब यही है कि तू अपने इस भाई को बहुत प्यार करती है। मेरे साथ बुरा हो ऐसा तू सपने में भी नहीं सोच सकती। फिर तू सफ़ेदपोश कैसे हो सकती है? मेरी जान की दुश्मन कैसे हो सकती है गुड़िया? नहीं नहीं, ज़रूर तू किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।"

"नहीं, मैं किसी को नहीं बचा रही।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"आप मेरी बात का यकीन क्यों नहीं कर रहे? मैं ही सफ़ेदपोश हूं।"

"तुम्हारे भाई की बात से हम भी सहमत हैं बेटी।" सहसा पिता जी ने हमारे क़रीब आ कर कुसुम से कहा_____"हमें भी इस बात का यकीन नहीं है कि हमारी फूल जैसी बेटी सफ़ेदपोश हो सकती है और जिस भाई पर उसकी जान बसती है उसकी जान की वो दुश्मन हो सकती है। एक बात और, हम इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि अगर सचमुच तू ही सफ़ेदपोश होती तो इस वक्त अपने भाई के सामने तू इस तरह रो नहीं रही होती बल्कि उसे अपना दुश्मन समझ कर उसकी आंखों में आंखें डाल कर उससे नफ़रत से बातें कर रही होती। इसी से ज़ाहिर हो जाता है कि तू सफ़ेदपोश नहीं है।"

कुसुम को कोई जवाब न सूझा। बस सिर झुकाए सिसकती रही वो। मुझे उसको इस हालत में देख कर बहुत तकलीफ़ हो रही थी लेकिन वक्त की नज़ाकत को देख कर मैं फिलहाल ख़ामोश था।

"तू खुद को ज़बरदस्ती सफ़ेदपोश कह रही है बेटी।" पिता जी ने पुनः कहा____"जबकि सफ़ेदपोश जैसी शख्सियत से तेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। स्पष्ट है कि तू किसी को बचाने का प्रयास कर रही है। यकीनन वो कोई ऐसा व्यक्ति है जो तेरा अपना है और जिसे तू बहुत प्यार करती है। हम सच कह रहे हैं ना बेटी?"

पिता जी की बातों पर कुसुम ने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे उसने एकदम से चुप्पी साध ली हो। उधर पिता जी की आख़िरी बातें सुन कर मैं एकदम से चौंक पड़ा। बिजली की सी तेज़ी से मेरे ज़हन में कई सवाल चकरा उठे। कुसुम के तो सभी अपने ही थे किंतु उसके सगे वाले अपनों में उसकी मां ही थी। उसके दोनों भाई तो विदेश पढ़ने गए हुए थे। तो क्या मेनका चाची????? नहीं नहीं, मेनका चाची सफ़ेदपोश नहीं हो सकतीं और ना ही वो मेरी जान की दुश्मन हो सकती हैं। वो मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं। तो फिर दूसरा कौन हो सकता है? मेरे दिमाग़ में एकाएक हलचल सी मच गई थी। कई चेहरे, कई नाम ज़हन में उभरने लगे। क्या रागिनी भाभी? वो भी तो कुसुम की अपनी ही थीं। रागिनी भाभी को कुसुम बहुत मानती है तो क्या रागिनी भाभी सफ़ेदपोश हो सकती हैं? मगर....मगर वो तो यहां हैं ही नहीं, तो फिर और कौन हो सकता है? सोचते सोचते मेरा बुरा हाल सा हो गया।

"चुप क्यों हो बेटी?" पिता जी की आवाज़ से मैं सोचो से बाहर आया_____"आख़िर किसे बचाने का प्रयास कर रही हो तुम?"

"आपके इस सवाल का जवाब मैं देती हूं जेठ जी।" अचानक कमरे में एक नारी की मधुर आवाज़ गूंजी तो हम सब चौंक पड़े।

गर्दन घुमा कर दरवाज़े की तरफ देखा। दरवाज़े के बीचो बीच मेनका चाची खड़ीं थी। कुसुम ने उन्हें देखा तो उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उभर आए। आंखों में आंसू भर आए।

"च...चाची आप?" मैं सकते की सी हालत में उन्हें देखा।

"क्यों, क्या मैं यहां नहीं हो सकती?" मेनका चाची ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा।

मुझे समझ ना आया कि क्या जवाब दूं? बस हैरत से उनके चेहरे की तरफ देखता रहा। उधर पिता जी और शेरा भी चकित से देखे जा रहे थे उन्हें। मेनका चाची अपने विधवा लिबास में थीं। सिर पर हल्का सा घूंघट लिया हुआ था उन्होंने।

"तो तुम हो वो।" पिता जी ने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"जिसे कुसुम बचाने का प्रयास कर रही थी?"

"दुर्भाग्य से यही सच है जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा_____"हालाकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि मेरी बेटी को ये कैसे पता चला कि उसकी मां ही सफ़ेदपोश है? इस वक्त इसे यहां पर इस रूप में बैठा देख कर मैं समझ सकती हूं कि इसने अपनी मां को बचाने के लिए खुद का बलिदान देना चाहा।"

"आपको यहां नहीं आना चाहिए था मां।" कुसुम ने पीड़ा भरे भाव से कहा।

"दुनिया में अक्सर माता पिता ही औलाद के लिए खुद का बलिदान देते हैं मेरी बच्ची।" मेनका चाची ने दर्द भरे स्वर में कहा____"तू तो मेरी बहुत ही ज़्यादा मासूम और निर्दोष बेटी है। भला मैं ये कैसे सहन कर लेती कि मेरी बेटी अपनी मां को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दे? हवेली में दीदी के द्वारा जब मुझे ये पता चला कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है तो मैं ये सोच कर चकित रह गई थी कि मेरे अलावा कोई दूसरा सफ़ेदपोश कहां से पैदा हो गया? और पैदा हुआ भी तो इतना जल्दी पकड़ा कैसे गया? यही सोच सोच कर मेरा सिर फटा जा रहा था। तभी मैं ये देख कर चौंकी कि हवेली में लगभग सभी जग चुके हैं और एक जगह इकट्ठा हो गए हैं लेकिन मेरी बेटी घोड़े बेंच कर अपने कमरे में कैसे सोई हुई है? अपनी बेटी के बारे में इतना तो मैं जानती ही थी कि वो इस तरह कभी घोड़े बेंच कर नहीं सोती है। इसके बाद भी अगर वो जग कर सबके पास नहीं आई है तो ज़रूर कोई वजह है। मैं फ़ौरन ही इसके कमरे में इसे देखने पहुंची लेकिन ये अपने कमरे में नहीं थी। स्वाभाविक रूप से मुझे बड़ी हैरानी हुई और सोचने पर मजबूर हो गई कि आख़िर ये गई कहां? फिर अचानक से मुझे ख़याल आया कि इसके साथ कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई? आख़िर मां हूं फ़िक्र तो होनी ही थी मुझे। मन में ये ख़याल भी बार बार उभरने लगा था कि कहीं ये ही तो नहीं सफ़ेदपोश बन कर हवेली से चली गई थी और पकड़ ली गई है? बात असंभव ज़रूर थी लेकिन ऐसी परिस्थिति में हर असंभव बात सच ही लगने लगती है। यही सोच कर मैं अपने कमरे की तरफ भागी। कमरे में पहुंच कर मैंने झट से संदूक खोला और ये देख कर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई कि संदूख से सफ़ेदपोश वाले कपड़े गायब हैं। बस, ये देख मन में मौजूद रही सही शंका भी दूर हो गई। पहले तो समझ ही न आया कि इस पगली ने ऐसा क्यों किया लेकिन जब गहराई से सोचा तो अनायास ही आंखें भर आईं। मैं समझ गई कि मेरी बेटी को मेरे सफ़ेदपोश होने का राज़ पता चल गया है। यकीनन इस भेद के चलते उसे बहुत पीड़ा हुई होगी लेकिन अपनी मां को इस हाहाकारी संकट से बचाने के लिए इस पगली को जो सूझा वही कर बैठी। उस वक्त लगा कि धरती फटे और मैं उसमें समा जाऊं लेकिन बेटी को कलंकित कर के मौत के मुंह पर अकेला छोड़ कर दुनिया से नहीं जा सकती थी मैं। इस लिए हवेली से चुपचाप यहां चली आई।"

मेनका चाची के चुप होते ही सन्नाटा छा गया कमरे में। कुसुम का सफ़ेदपोश बनना तो समझ आ गया था लेकिन अब सबसे ज़्यादा ये जानने की उत्सुकता थी कि अगर मेनका चाची ही सफ़ेदपोश हैं तो क्यों हैं? आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि उन्होंने सफ़ेदपोश का रूप धारण किया? मैं तो हमेशा यही समझता था कि मेनका चाची मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती हैं तो फिर ऐसा क्यों था कि वो मुझे अपना दुश्मन समझती थीं और मेरी जान लेने पर आमादा थीं?

पहले ये देख कर तीव्र झटका और पीड़ा हुई थी कि मेरी लाडली बहन सफ़ेदपोश है और जब उससे उबरा तो अब ये जान कर झटके पे झटका लगे जा रहा था कि मेनका चाची ने सफ़ेदपोश बन कर ऐसा क्यों किया?

कुछ ही क़दम की दूरी पर खड़े पिता जी के चेहरे पर सोचो के भाव तो थे ही किंतु गहन पीड़ा के भाव भी थे। उन्हें देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अचानक ही उन्हें किसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया हो जिसके चलते वो एकदम से असहाय हो गए हैं।

हम सबके मन में अनगिनत सवाल थे जिनके जवाब सिर्फ और सिर्फ मेनका चाची के पास थे। मेरे और पिता जी के लिए ये बड़ा ही पीड़ादायक पल था। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेनका चाची सफ़ेदपोश हो सकती हैं।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
मेनका के होने की आशंका तो पहले से थी मुझे, लेकिन घर में रहते हुए इतनी गहरी साजिश कैसे रच डाली इसने?
 

R@ndom_guy

Member
413
642
93
Bhai bawandar la diye yr
Rishte bhi pahado ke rasto ke jaise upar niche ubad khabad ho gye h
Kaise hua ye sb
Chacha aur chachi aise bn gye ye to kbhi laga hi ni
Ek waqt pr chacha pr shaq jrur hua tha
Lekin unke marne ke baad yakeen ho gya tha wo nhi hain

Bechari kusum ko samne aana pad gya
Ab Kaise vaibhav ka samna kregi kaise tau aur taii ji pyari beti bnegi

Bhuchaal sa mach jayega haveli me

ab kya menka chachi ko sbke samne pesh kiya jayega?
Kya unhe sabke samne saja di jayegi?

dada thakur ki kya pratikriya hogi?
Vaibhav kaise smbhalega sbko?

aur kusum or vaibhav ke pyare aur sneh se paripurn rishte me kya khatas aa jayegi
Waise to ye sambhav nhi h
Kintu soch pr asar to hone ki sambhavna jrur h
अध्याय - 134
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




कमरे में एकदम से सन्नाटा छाया हुआ था। मेनका चाची एकाएक चुप हो गईं थी और अपनी बेटी को देखे जा रहीं थी। उस बेटी को जिसके चेहरे पर दुख और संताप के गहरे भाव थे। पिता जी किसी सदमे जैसी हालत में थे। शेरा एक कुर्सी ले आया था जिसमें वो बैठ गए थे। इधर मैं कुसुम से कुछ ही दूरी पर कमरे की ज़मीन पर असहाय सा बैठा था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चल रहीं थी और मस्तिष्क एकदम से कुंद पड़ गया था।

"क्यों चाची?" फिर मैं अपने अंदर मचलते जज़्बातों को किसी तरह काबू करते हुए बोल पड़ा____"आख़िर क्यों किया आपने ऐसा? भगवान के लिए कह दीजिए कि आपने जो कुछ कहा है वो सब झूठ है। कह दीजिए कि ना तो आप सफ़ेदपोश हैं और ना ही आप मुझसे नफ़रत करती हैं। चाची, मेरी सबसे प्यारी चाची। मैंने हमेशा आपको अपनी मां ही समझा है और आपको वैसा ही प्यार व सम्मान दिया है। आप भी तो मुझे अपना बेटा ही मानती हैं। फिर मैं ये कैसे मान लूं कि आपने ही ये सब किया है?"

"इस दुनिया में हर कोई अपने चेहरे पर एक मुखौटा लगाए रखता है वैभव।" चाची ने धीर गंभीर भाव से कहा____"ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इसी से उन्हें खुशी मिलती है, उनका भला होता है और हमेशा वो दूसरों की नज़रों में महान बने रहते हैं। मगर वो अपनी होशियारी में ये भूल जाते हैं कि वो ज़्यादा समय तक अपने असल चेहरे को दुनिया से छुपा के नहीं रख सकते। एक दिन दुनिया वालों को उनका चेहरा ही नहीं बल्कि उनकी असलियत भी पता चल जाती है और फिर पलक झपकते ही उनकी वो महानता चूर चूर हो जाती है जिसे बुलंदी तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जाने कितने ही जतन किए थे और जाने कितने ही लोगों के विश्वास को अपने दोगलेपन से छला था। तुम सोच रहे होगे कि मैं ये सब क्या कह रही हूं जबकि तुम्हें समझना चाहिए कि इंसानी दुनिया के इस जंगल में ऐसे ही कुछ लोग पाए जाते हैं।"

मैं एकटक उन्हें ही देखे जा रहा था। उन्हें, जिनके सुंदर चेहरे पर इस वक्त बड़े ही अजीब से भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। कभी कभी उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव भी आ जाते थे जिन्हें वो पूरी बेदर्दी से दबा देती थीं।

"ये बड़ी लंबी कहानी है वैभव।" मेनका चाची ने एक नज़र पिता जी पर डालने के बाद मुझसे कहा____"कब शुरू हुई, कैसे शुरू हुई और क्यों शुरू हुई ये तो जैसे ठीक से किसी को पता ही नहीं चला मगर इतना ज़रूर पता था कि इस कहानी को इसके अंजाम तक हर कीमत पर पहुंचाना है। आज की दुनिया में हर इंसान सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ही कर्म करता है। हर इंसान की यही हसरत होती है कि उनकी और उनके बच्चों की स्थिति बाकी हर किसी से लाख गुना बेहतर हो। ऐसी हसरतें जब अंधा जुनून का रूप ले लेती हैं तो इंसान अपनी उन हसरतों को पूरा करने के लिए किसी भी हद से गुज़र जाता है। मैं और तुम्हारे चाचा ऐसी ही हद से गुज़र गए थे।"

"क...क्या मतलब???" मैं बुरी तरह चौंका____"चाचा भी? ये क्या कह रही हैं आप?"

"तुम्हें क्या लगता है वैभव कि इस तरह का काम एक अकेली औरत जात कर सकती थी?" चाची ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"नहीं वैभव, ये तो किसी भी कीमत पर संभव नहीं हो सकता था। मैंने तो सिर्फ उनके गुज़र जाने के बाद उनकी जगह ली थी। उनके बाद सफ़ेदपोश का सफ़ेद लिबास पहनना शुरू कर दिया था मैंने और इस कोशिश में लग गई थी कि उनकी तरह पूरी कुशलता से मैं उनका काम पूरा करूंगी। लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि मर्द तो मर्द ही होता है ना वैभव। एक औरत कैसे भला एक मर्द की तरह हर काम कर सकती है? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन नहीं कर सकी। मेरे लिए तो सबसे बड़ी समस्या मेरा अपना ही डर था। किसी के द्वारा पकड़ लिए जाने का डर। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और ऐसे दो काम कर ही डाले जिसके तहत मुझे आत्मिक खुशी प्राप्त हुई। जेठ जी ने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला साहूकारों से तो ले लिया था लेकिन चंद्रकांत और उसके बेटे को सही सलामत छोड़ दिया था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि उस समय उन्हें चंद्रकांत की असलियत पता नहीं थी। उसके बाद पंचायत में भी चंद्रकांत और उसके बेटे की करतूत के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई। मैं भला कैसे ये सहन कर लेती कि मेरे पति का हत्यारा बड़ी शान से अपनी जिंदगी की सांसें लेता रहे? बस, मैंने फ़ैसला कर लिया कि चंद्रकांत और उसके बेटे को उसकी करनी की सज़ा अब मैं दूंगी।"

"तो आपने रघुवीर की हत्या की थी?" मैं चकित भाव से पूछ बैठा____"मगर कैसे?"

"मैं तो इसे अपनी अच्छी किस्मत ही मानती हूं वैभव।" चाची के कहा____"क्योंकि मुझे खुद उम्मीद नहीं थी कि मैं ऐसा कर पाऊंगी। हालाकि ऐसा करने का दृढ़ संकल्प ज़रूर लिया हुआ था मैंने। अपने मरे हुए पति की क़सम खा रखी थी मैंने। अक्सर रात के अंधेरे में चंद्रकांत के घर पहुंच जाती थी और मुआयना करते हुए ये सोचती थी कि मैं किस तरह अपना बदला ले सकती हूं? क‌ई रातें ऐसे ही गुज़र गईं किंतु मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कैसे अपना बदला लूं? किंतु तभी एक बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। मैंने महसूस किया कि चंद्रकांत और उसका बेटा रघुवीर लगभग हर रात पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि मुझे उनकी इसी स्थिति पर कुछ करने का सोचना चाहिए। उसके बाद मैंने और भी तीन चार रातों में दोनों बाप बेटे की उस आदत को परखा। जब मैं निश्चिंत हो गई कि वो दोनों अलग अलग समय पर लगभग हर रात ही पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं तो मैंने उनमें से किसी एक की जान लेने का निश्चय कर लिया। आख़िर एक रात मैं पहुंच गई चंद्रकांत के घर और वहां उस जगह पर जा कर छुप गई जिस जगह पर वो दोनों बाप बेटे पेशाब करने आते थे। शायद किस्मत भी उस रात मुझ पर मेहरबान थी क्योंकि पास ही रखी एक कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ गई थी। वैसे मेरे पास तुम्हारे चाचा का रिवॉल्वर था जिससे मैं उनमें से किसी एक की जान ले सकती थी लेकिन मैं ये भी जानती थी कि रिवॉल्वर से गोली चलने पर तेज़ आवाज़ होगी जिससे लोगों के जाग जाने का पूरा अंदेशा था और उस सूरत में मेरे लिए ख़तरा ही हो जाना था। हालाकि मैं यही सोच कर आई थी कि एक को गोली मार कर फ़ौरन ही गायब हो जाऊंगी लेकिन उस रात जब मेरी नज़र कुल्हाड़ी पर पड़ी तो मैंने सोचा इससे तो और भी बढ़िया तरीके से मैं अपना काम कर सकती हूं और कोई शोर शराबा भी नहीं होगा। बस, कुल्हाड़ी को अपने हाथ में ले लिया मैंने और फिर बाप बेटे में से किसी एक के बाहर आने का इंतज़ार करने लगी। इत्तेफ़ाक से उस रात रघुवीर ही बाहर आया और फिर मैंने वही किया जिसका मैं पहले ही निश्चय कर चुकी थी। रघुवीर को जान से मार डालने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई। उस कमीने को स्वप्न में भी ये उम्मीद नहीं थी कि उस रात वो पेशाब करने के लिए नहीं बल्कि मेरे हाथों मरने के लिए घर से बाहर निकला था।"

"और उसके बाद आपने चंद्रकांत के हाथों उसकी ही बहू की हत्या करवा दी।" मैंने पूछा____"ऐसा क्यों किया आपने? मेरा मतलब है कि आप तो दोनो बाप बेटे को मारना चाहती थीं न तो फिर रजनी की हत्या उसके हाथों क्यों करवाई आपने?"

"रजनी का भले ही मेरे पति अथवा तुम्हारे भाई की मौत में कोई हाथ नहीं था।" मेनका चाची ने कहा____"लेकिन दूध की धुली तो वो भी नहीं थी। उसके जैसी चरित्र हीन औरत के जीवित रहने से कौन सा इस संसार में सतयुग का आगमन हो जाना था? उसके पति को मारने के बाद मैं चंद्रकांत का ही क्रिया कर्म करना चाहती थी लेकिन फिर ख़याल आया कि एक झटके में उसे मौत देना ठीक नहीं होगा। उसने और उसके बेटे ने मेरे पति की हत्या कर के मुझे जीवन भर का दुख दे दिया था तो बदले में उसी तरह उसे भी तो जीवन भर दुख भोगना चाहिए। इससे भी बढ़ कर अगर कुछ हो जाए तो उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता था। मैं हर रोज़ यही सोचती थी कि ऐसा क्या करूं जिससे चंद्रकांत सिर्फ दुखी ही न हो बल्कि हमेशा तड़पता भी रहे? उधर रघुवीर की हत्या हो जाने से पूरे गांव में हंगामा सा मचा हुआ था। जेठ जी और महेंद्र सिंह जी उसके हत्यारे को खोजने में लगे हुए थे। मैं जानती थी कि अगर ऐसे हालात में मैंने कुछ करने का सोचा तो मैं जल्द ही किसी न किसी के द्वारा पकड़ ली जाऊंगी और मेरे पकड़ लिए जाने से सिर्फ यही बस पता नहीं चलेगा कि रघुवीर की हत्या मैंने की है बल्कि ये भी खुलासा हो जाएगा कि जिस सफ़ेदपोश ने जेठ जी की रातों की नींद हराम कर रखी थी वो कोई और नहीं बल्कि मैं थी, यानि हवेली की मझली ठकुराईन।"

"तब मैंने हालात के ठंडा पड़ जाने का इंतज़ार करना ही उचित समझा।" एक गहरी सांस लेने के बाद मेनका चाची ने फिर से बताना शुरू किया____"जब मैंने महसूस किया कि हालात वाकई में ठंडे पड़ गए हैं तो मैं अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचने लगी। इस बीच मैंने सोच लिया था कि चंद्रकांत को किस तरीके से जीवन भर तड़पने की सज़ा देनी है। उसकी बहू के बारे में मैं ही क्या लगभग सभी जानते थे कि वो कैसे चरित्र की औरत है इस लिए मैंने उसके इसी चरित्र के आधार पर एक योजना बनाई जिसको मुझे चंद्रकांत के कानों तक पहुंचानी थी। मैं जानती थी कि चंद्रकांत अपने इकलौते बेटे की हत्या हो जाने से और उसके हत्यारे का अभी तक पता न लग पाने से बहुत ज़्यादा पगलाया हुआ है। मैं समझ गई कि अगर उसकी ऐसी मानसिक स्थिति में मैं सफ़ेदपोश बन कर उसके पास जाऊं और उसे बता दूं कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है तो यकीनन वो पागल हो जाएगा। वही हुआ....एक रात सफ़ेदपोश बन कर मैं पहुंच गई उसके घर और उसके बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। कुछ ही समय में जब वो बाहर आया और पेशाब करने के बाद वापस घर के अंदर जाने लगा तो मैंने हल्की सी आवाज़ के साथ उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उसके बाद तुम्हें और जेठ जी को भी पता है कि सफ़ेदपोश के रूप में मैंने उससे क्या कहा था जिसके बाद उसने अपनी ही बहू की हत्या कर दी थी।"

"ऐसा करने के पीछे क्या सिर्फ यही वजह थी कि उसने और उसके बेटे ने चाचा जी की हत्या की थी?" मैंने उनकी तरफ देखते हुए पूछा____"या कोई और भी वजह थी?"

"हां सही कहा तुमने।" चाची ने इस बार बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेरे ऐसा करने के पीछे एक दूसरी वजह भी थी और वो वजह थे तुम। हां वैभव, तुम भी एक वजह बन गए थे।"

"म...मैं कुछ समझा नहीं।" मैं उलझ सा गया____"मैं भला कैसे वजह बन गया था?"

"नफ़रत, गुस्सा और ईर्ष्या एकाएक प्यार और ममता में बदल गई थी।" चाची ने अजीब भाव से कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी जब मैंने ये देखा कि तुम अपने छोटे भाइयों की कितनी फ़िक्र करते हो और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें विदेश भेजना चाहते हो तो मुझे ये सोच कर पहली बार एहसास हुआ कि कितने ग़लत थे हम। आत्मग्लानि से डूबती चली गई थी मैं। उस दिन खुद को बहुत छोटा और बहुत ही गिरा हुआ महसूस किया था मैंने। ये सोच कर हृदय हाहाकार कर उठा था कि जिस लड़के ने हमेशा मुझे अपनी मां समझ कर मुझे मान सम्मान दिया, जिस लड़के ने हमेशा अपने चाचा को अपने पिता से भी ज़्यादा महत्व दिया उस लड़के से हमने सिर्फ नफ़रत की? अगर उसका कोई नाम था, कोई शोहरत थी तो ये उसके कर्मों का ही तो परिणाम था ना। हमारे बेटे भी तो ऐसा कर्म कर के नाम और पहचान बना सकते थे मगर ये उनकी कमी थी कि वो ऐसा नहीं कर पाए। तो फिर इसमें तुम्हारा क्या दोष था? यकीन मानों वैभव, उस दिन किसी जादू की तरह जैसे सारे एहसास बदल गए। वो सब कुछ याद आने लगा जो हमने किया था और जो हमारे साथ हुआ था। उस दिन एहसास हुआ कि कितनी गिरी हुई सोच थी हमारी। इतने बड़े खानदान में ऊपर वाले ने हमें भेजा था और हम इतने गिरे हुए काम करने पर आमादा थे। ऐसा लगा जैसे धरती फटे और मैं उसमें समाती चली जाऊं। उसी समय तुम्हें अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोने को जी चाह रहा था। तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ियां मांगने का मन कर रहा था लेकिन नहीं कर सकी। हां वैभव, नहीं कर सकी ऐसा...हिम्मत ही नहीं हुई। ये सोच सोच कर जान निकली जा रही थी कि सब कुछ जानने के बाद तुम क्या सोचोगे मेरे बारे में? पलक झपकते ही तुम्हारी चाची तुम्हारी नज़रों में क्या से क्या बन जाएगी? जिस चाची को तुम हमेशा बड़े स्नेह से अपनी सबसे प्यारी और सबसे सुंदर चाची कहते थे वो एक ही पल में एक डायन नज़र आने लगती तुम्हें। ये सब सोच कर ही जान निकली जा रही थी मेरी। मैं ये सहन नहीं कर सकती थी कि मैं तुम्हारी नज़रों से गिर जाऊं या तुम्हारी नज़रों में मेरी छवि बदसूरत बन जाए। इस लिए उस दिन कुछ नहीं बताया तुम्हें। अंदर ही अंदर पाप का बोझ ले कर घुट घुट के मरना मंजूर कर लिया मैंने। आख़िर दिल को ये तसल्ली तो थी कि तुम्हारी नज़र में मैं अब भी तुम्हारी सबसे प्यारी चाची हूं। मगर किस्मत देखो कि इसके बाद भी कभी एक पल के लिए भी सुकून नहीं मिला मुझे। हर पल ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी कि या तो मुझे अपने पास बुला ले या फिर कुछ ऐसा कर दे कि कोई मुझे ग़लत न समझे। चंद्रकांत के बेटे को और फिर उसके द्वारा उसकी बहू को मरवा देने के पीछे एक वजह यही थी कि ऐसा कर के मैं तुम्हारे भाई की मौत का बदला भी ले लूंगी। शायद मेरे अपराध कुछ तो कम हो जाएं।"

"वैसे ये सब कब से चल रहा था?" सहसा पिता जी ने गंभीरता से पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि हमारे प्यार में कहां कमी रह गई थी जिसके चलते हमारे ही भाई ने ऐसा करने का मंसूबा बना लिया था? अगर उसको हवेली, धन संपत्ति और ज़मीन जायदाद की ही चाह थी तो उसे हमसे कहना चाहिए था। यकीन मानो बहू, अपने छोटे के कहने पर हम पलक झपकते ही सब कुछ उसके नाम कर देते और खुद अपने बीवी बच्चों को ले कर कहीं और चले जाते।"

"माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" मेनका चाची उनके सामने घुटनों के बल गिर पड़ीं। फिर रोते हुए बोलीं____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब हमारे मन में ऐसा नीच कर्म करने का ख़याल आया था।"

"इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा छल?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हे विधाता! ये जानने के बाद भी हमारे प्राण नहीं निकले...क्यों? आख़िर अब और कौन सी बिजली हमारे हृदय पर गिराने का सोच रखा है तुमने?"

"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"ईश्वर करे आपको कभी कुछ न हो। हम सबकी उमर लग जाए आपको।"

"मत दो हमें ऐसी बद्दुआ।" पिता जी खीझ कर बोले____"ईश्वर जानता है कि हमने कभी किसी के बारे में ग़लत नहीं सोचा। हमेशा सबका भला ही चाहा है। सारा जीवन हमने लोगों की भलाई के लिए समर्पित किया। कभी अपने और अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं चाहा इसके बावजूद हमारे साथ इतना बड़ा छल किया गया। बताओ बहू, आख़िर किस अपराध की सज़ा दी है तुम दोनों ने हमें? इतने समय से हम अपने छोटे भाई के जाने का दुख सहन कर रहे थे और आज तुम हमें ये बता रही हो कि उसने और तुमने मिल कर हमारे साथ इतना बड़ा छल किया? क्यों बताया तुमने बहू? हमें इसी भ्रम में जीने दिया होता कि हमारा भाई हमें बहुत मानता था?"

पिता जी की हालत एकाएक दयनीय हो गई। मैंने उनकी आंखों में तब आंसू देखे थे जब चाचा जी और भैया की मौत हुई थी और अब देख रहा था। यकीनन ऐसा होने की उन्होंने कल्पना नहीं की थी। हालाकि शुरआत में हमारे मन में चाचा जी के प्रति शक भी पनपा था किंतु तब हमने यही सोचा था कि ऐसा शायद इस लिए हो सकता है क्योंकि हमारा दुश्मन है ही इतना शातिर। यानि वो चाहता ही यही है कि हम आपस में ही एक दूसरे पर शक करें जिसका परिणाम ये निकले कि हम बिखर जाएं। नहीं पता था कि उस समय हमारा चाचा जी पर शक करना हमारे किसी दुश्मन की शातिराना चाल नहीं थी बल्कि कहीं न कहीं उसमें सच्चाई ही थी।

"आप तो महान हैं जेठ जी।" चाची की करुण आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ____"आपके जैसा दूसरा कभी कोई नहीं होगा। आपने हमेशा दूसरों का भला चाहा। ये तो हमारा दुर्भाग्य था कि ऐसे महान इंसान के पास रह कर भी हम बुरे बन गए। हमें माफ़ कर दीजिए।"

"तुम दोनों ने जो किया वो तो किया ही लेकिन जिस बेटी को हमने हमेशा अपनी बेटी समझा।" पिता जी ने सहसा कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"उसने भी हमें सिर्फ दुख ही दिया। हमारे विश्वास और हमारे प्यार का मज़ाक बना दिया।"

"नहीं ताऊ जी।" कुसुम भाग कर आई और पिता जी के घुटनों से लिपट कर रोने लगी____"मैंने आपके प्यार का मज़ाक नहीं बनाया। अपने माता पिता से ज़्यादा मैं आपको, ताई जी को और अपने सबसे अच्छे वाले भैया को मानती हूं। मेरा यकीन कीजिए ताऊ जी। आपकी बेटी आपको दुख देने का सोच भी नहीं सकती है। वो तो....वो तो मेरी बदकिस्मती थी कि अपनी मां को बचाने के लिए मुझे जो सुझा कर दिया मैंने। अपनी बेटी की इस नादानी के लिए माफ़ कर दीजिए ना।"

"हां जेठ जी इसे माफ़ कर दीजिए।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"इस पगली का इसमें कोई दोष नहीं है। इसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था लेकिन आज इसने ये सब कैसे किया मुझे नहीं पता। शायद किसी दिन इसने मुझे सफ़ेद लिबास पहने देख लिया होगा।"

"मैंने आपको तब देखा था जब एक रात आप सफ़ेदपोश के रूप में कमरे से बाहर जाने वाली थीं।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"उस रात मेरा पेट दर्द कर रहा था इस लिए मैं दवा लेने के लिए आपके कमरे में आई थी। आपके कमरे का दरवाज़ा बंद तो था लेकिन दो उंगली के बराबर खुला हुआ भी नज़र आ रहा था। अंदर बल्ब जल रहा था। मैं जैसे ही आपको आवाज़ देने को हुई तो अचानक दो अंगुल खुले दरवाज़े के अंदर मेरी नज़र आप पर पड़ी। आपको सफ़ेद मर्दाना कपड़ों में देख मैं हक्की बक्की रह गई थी। अगर आपने अपने चेहरे पर नक़ाब लगाया होता तो मैं जान भी न पाती कि वो आप थीं। आपको उन कपड़ों में देख कर मैं डर भी गई थी। सफ़ेदपोश के बारे में तो मैंने भी सुना था लेकिन मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि जो सफ़ेदपोश मेरे सबसे अच्छे वाले भैया की जान का दुश्मन था वो आप हैं। उसके बाद फिर मेरी हिम्मत ही न हुई कि आपको आवाज़ दूं या कमरे में जाऊं। कुछ देर डरी सहमी मैं आपको देखती रही और फिर वहां से चुपचाप चली आई थी।"

"अगर तुझे पता चल ही गया था कि वो मैं ही थी।" चाची ने कहा____"तो इतने दिनों से चुप क्यों थी? मुझे या हवेली में किसी को बताया क्यों नहीं इस बारे में?"

"मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।" कुसुम ने कहा____"और फिर किसी से क्या बताती मैं? क्या ये कि आप ही सफ़ेदपोश हैं ताकि आप पकड़ी जाएं और फिर आपको मौत की सज़ा दे दी जाए? नहीं मां, मैं भला कैसे ये चाह सकती थी कि मेरी मां सफ़ेदपोश के रूप में पकड़ी जाएं और फिर कोई उनकी जान ले ले? अपने पिता जी को तो खो ही चुकी थी। अब मां को नहीं खोना चाहती थी। यही सोच सोच कर रात दिन हालत ख़राब थी मेरी। जानती थी कि आज नहीं तो किसी न किसी दिन लोग सफ़ेदपोश के रूप में आपको पकड़ ही लेंगे और फिर जाने अंजाने आपकी जान भी ले सकते हैं। मुझे लगा अगर आपको कुछ हो गया तो मेरे दोनों भाई बिना मां के हो जाएंगे। इस लिए सोचा कि मैं ही सफ़ेदपोश बन जाती हूं। अगर किसी के द्वारा पकड़ी गई या जान से मार दी गई तो सफ़ेदपोश का किस्सा ही हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा। उसके बाद कोई भी आपके साथ कुछ नहीं कर पाएगा।"

"तो ऐसे पता चला तुझे और इसी लिए तूने मुझे बचाने के लिए सफ़ेदपोश बन कर अपनी बली देनी चाही?" मेनका चाची का गला भर आया, आंखों से आंसू छलक पड़े, बोलीं____"तुझे मुझ जैसी मां के लिए अपना बलिदान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी मेरी बच्ची। मैंने और तेरे पिता ने जो किया है वो माफ़ी के लायक नहीं है।"

बड़ा गमगीन माहौल हो गया था। समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहें किंतु अभी भी बहुत कुछ ऐसा था जिसे जानना बाकी था। इतना तो समझ आ गया था कि ये सब अपने और अपने बच्चों के लिए किया था उन्होंने लेकिन ये कब शुरू हुआ और कैसे शुरू हुआ ये जानना बाकी था।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,816
41,496
259
अध्याय - 134
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




कमरे में एकदम से सन्नाटा छाया हुआ था। मेनका चाची एकाएक चुप हो गईं थी और अपनी बेटी को देखे जा रहीं थी। उस बेटी को जिसके चेहरे पर दुख और संताप के गहरे भाव थे। पिता जी किसी सदमे जैसी हालत में थे। शेरा एक कुर्सी ले आया था जिसमें वो बैठ गए थे। इधर मैं कुसुम से कुछ ही दूरी पर कमरे की ज़मीन पर असहाय सा बैठा था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चल रहीं थी और मस्तिष्क एकदम से कुंद पड़ गया था।

"क्यों चाची?" फिर मैं अपने अंदर मचलते जज़्बातों को किसी तरह काबू करते हुए बोल पड़ा____"आख़िर क्यों किया आपने ऐसा? भगवान के लिए कह दीजिए कि आपने जो कुछ कहा है वो सब झूठ है। कह दीजिए कि ना तो आप सफ़ेदपोश हैं और ना ही आप मुझसे नफ़रत करती हैं। चाची, मेरी सबसे प्यारी चाची। मैंने हमेशा आपको अपनी मां ही समझा है और आपको वैसा ही प्यार व सम्मान दिया है। आप भी तो मुझे अपना बेटा ही मानती हैं। फिर मैं ये कैसे मान लूं कि आपने ही ये सब किया है?"

"इस दुनिया में हर कोई अपने चेहरे पर एक मुखौटा लगाए रखता है वैभव।" चाची ने धीर गंभीर भाव से कहा____"ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इसी से उन्हें खुशी मिलती है, उनका भला होता है और हमेशा वो दूसरों की नज़रों में महान बने रहते हैं। मगर वो अपनी होशियारी में ये भूल जाते हैं कि वो ज़्यादा समय तक अपने असल चेहरे को दुनिया से छुपा के नहीं रख सकते। एक दिन दुनिया वालों को उनका चेहरा ही नहीं बल्कि उनकी असलियत भी पता चल जाती है और फिर पलक झपकते ही उनकी वो महानता चूर चूर हो जाती है जिसे बुलंदी तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जाने कितने ही जतन किए थे और जाने कितने ही लोगों के विश्वास को अपने दोगलेपन से छला था। तुम सोच रहे होगे कि मैं ये सब क्या कह रही हूं जबकि तुम्हें समझना चाहिए कि इंसानी दुनिया के इस जंगल में ऐसे ही कुछ लोग पाए जाते हैं।"

मैं एकटक उन्हें ही देखे जा रहा था। उन्हें, जिनके सुंदर चेहरे पर इस वक्त बड़े ही अजीब से भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। कभी कभी उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव भी आ जाते थे जिन्हें वो पूरी बेदर्दी से दबा देती थीं।

"ये बड़ी लंबी कहानी है वैभव।" मेनका चाची ने एक नज़र पिता जी पर डालने के बाद मुझसे कहा____"कब शुरू हुई, कैसे शुरू हुई और क्यों शुरू हुई ये तो जैसे ठीक से किसी को पता ही नहीं चला मगर इतना ज़रूर पता था कि इस कहानी को इसके अंजाम तक हर कीमत पर पहुंचाना है। आज की दुनिया में हर इंसान सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ही कर्म करता है। हर इंसान की यही हसरत होती है कि उनकी और उनके बच्चों की स्थिति बाकी हर किसी से लाख गुना बेहतर हो। ऐसी हसरतें जब अंधा जुनून का रूप ले लेती हैं तो इंसान अपनी उन हसरतों को पूरा करने के लिए किसी भी हद से गुज़र जाता है। मैं और तुम्हारे चाचा ऐसी ही हद से गुज़र गए थे।"

"क...क्या मतलब???" मैं बुरी तरह चौंका____"चाचा भी? ये क्या कह रही हैं आप?"

"तुम्हें क्या लगता है वैभव कि इस तरह का काम एक अकेली औरत जात कर सकती थी?" चाची ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"नहीं वैभव, ये तो किसी भी कीमत पर संभव नहीं हो सकता था। मैंने तो सिर्फ उनके गुज़र जाने के बाद उनकी जगह ली थी। उनके बाद सफ़ेदपोश का सफ़ेद लिबास पहनना शुरू कर दिया था मैंने और इस कोशिश में लग गई थी कि उनकी तरह पूरी कुशलता से मैं उनका काम पूरा करूंगी। लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि मर्द तो मर्द ही होता है ना वैभव। एक औरत कैसे भला एक मर्द की तरह हर काम कर सकती है? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन नहीं कर सकी। मेरे लिए तो सबसे बड़ी समस्या मेरा अपना ही डर था। किसी के द्वारा पकड़ लिए जाने का डर। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और ऐसे दो काम कर ही डाले जिसके तहत मुझे आत्मिक खुशी प्राप्त हुई। जेठ जी ने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला साहूकारों से तो ले लिया था लेकिन चंद्रकांत और उसके बेटे को सही सलामत छोड़ दिया था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि उस समय उन्हें चंद्रकांत की असलियत पता नहीं थी। उसके बाद पंचायत में भी चंद्रकांत और उसके बेटे की करतूत के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई। मैं भला कैसे ये सहन कर लेती कि मेरे पति का हत्यारा बड़ी शान से अपनी जिंदगी की सांसें लेता रहे? बस, मैंने फ़ैसला कर लिया कि चंद्रकांत और उसके बेटे को उसकी करनी की सज़ा अब मैं दूंगी।"

"तो आपने रघुवीर की हत्या की थी?" मैं चकित भाव से पूछ बैठा____"मगर कैसे?"

"मैं तो इसे अपनी अच्छी किस्मत ही मानती हूं वैभव।" चाची के कहा____"क्योंकि मुझे खुद उम्मीद नहीं थी कि मैं ऐसा कर पाऊंगी। हालाकि ऐसा करने का दृढ़ संकल्प ज़रूर लिया हुआ था मैंने। अपने मरे हुए पति की क़सम खा रखी थी मैंने। अक्सर रात के अंधेरे में चंद्रकांत के घर पहुंच जाती थी और मुआयना करते हुए ये सोचती थी कि मैं किस तरह अपना बदला ले सकती हूं? क‌ई रातें ऐसे ही गुज़र गईं किंतु मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कैसे अपना बदला लूं? किंतु तभी एक बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। मैंने महसूस किया कि चंद्रकांत और उसका बेटा रघुवीर लगभग हर रात पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि मुझे उनकी इसी स्थिति पर कुछ करने का सोचना चाहिए। उसके बाद मैंने और भी तीन चार रातों में दोनों बाप बेटे की उस आदत को परखा। जब मैं निश्चिंत हो गई कि वो दोनों अलग अलग समय पर लगभग हर रात ही पेशाब करने के लिए घर से बाहर आते हैं तो मैंने उनमें से किसी एक की जान लेने का निश्चय कर लिया। आख़िर एक रात मैं पहुंच गई चंद्रकांत के घर और वहां उस जगह पर जा कर छुप गई जिस जगह पर वो दोनों बाप बेटे पेशाब करने आते थे। शायद किस्मत भी उस रात मुझ पर मेहरबान थी क्योंकि पास ही रखी एक कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ गई थी। वैसे मेरे पास तुम्हारे चाचा का रिवॉल्वर था जिससे मैं उनमें से किसी एक की जान ले सकती थी लेकिन मैं ये भी जानती थी कि रिवॉल्वर से गोली चलने पर तेज़ आवाज़ होगी जिससे लोगों के जाग जाने का पूरा अंदेशा था और उस सूरत में मेरे लिए ख़तरा ही हो जाना था। हालाकि मैं यही सोच कर आई थी कि एक को गोली मार कर फ़ौरन ही गायब हो जाऊंगी लेकिन उस रात जब मेरी नज़र कुल्हाड़ी पर पड़ी तो मैंने सोचा इससे तो और भी बढ़िया तरीके से मैं अपना काम कर सकती हूं और कोई शोर शराबा भी नहीं होगा। बस, कुल्हाड़ी को अपने हाथ में ले लिया मैंने और फिर बाप बेटे में से किसी एक के बाहर आने का इंतज़ार करने लगी। इत्तेफ़ाक से उस रात रघुवीर ही बाहर आया और फिर मैंने वही किया जिसका मैं पहले ही निश्चय कर चुकी थी। रघुवीर को जान से मार डालने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई। उस कमीने को स्वप्न में भी ये उम्मीद नहीं थी कि उस रात वो पेशाब करने के लिए नहीं बल्कि मेरे हाथों मरने के लिए घर से बाहर निकला था।"

"और उसके बाद आपने चंद्रकांत के हाथों उसकी ही बहू की हत्या करवा दी।" मैंने पूछा____"ऐसा क्यों किया आपने? मेरा मतलब है कि आप तो दोनो बाप बेटे को मारना चाहती थीं न तो फिर रजनी की हत्या उसके हाथों क्यों करवाई आपने?"

"रजनी का भले ही मेरे पति अथवा तुम्हारे भाई की मौत में कोई हाथ नहीं था।" मेनका चाची ने कहा____"लेकिन दूध की धुली तो वो भी नहीं थी। उसके जैसी चरित्र हीन औरत के जीवित रहने से कौन सा इस संसार में सतयुग का आगमन हो जाना था? उसके पति को मारने के बाद मैं चंद्रकांत का ही क्रिया कर्म करना चाहती थी लेकिन फिर ख़याल आया कि एक झटके में उसे मौत देना ठीक नहीं होगा। उसने और उसके बेटे ने मेरे पति की हत्या कर के मुझे जीवन भर का दुख दे दिया था तो बदले में उसी तरह उसे भी तो जीवन भर दुख भोगना चाहिए। इससे भी बढ़ कर अगर कुछ हो जाए तो उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता था। मैं हर रोज़ यही सोचती थी कि ऐसा क्या करूं जिससे चंद्रकांत सिर्फ दुखी ही न हो बल्कि हमेशा तड़पता भी रहे? उधर रघुवीर की हत्या हो जाने से पूरे गांव में हंगामा सा मचा हुआ था। जेठ जी और महेंद्र सिंह जी उसके हत्यारे को खोजने में लगे हुए थे। मैं जानती थी कि अगर ऐसे हालात में मैंने कुछ करने का सोचा तो मैं जल्द ही किसी न किसी के द्वारा पकड़ ली जाऊंगी और मेरे पकड़ लिए जाने से सिर्फ यही बस पता नहीं चलेगा कि रघुवीर की हत्या मैंने की है बल्कि ये भी खुलासा हो जाएगा कि जिस सफ़ेदपोश ने जेठ जी की रातों की नींद हराम कर रखी थी वो कोई और नहीं बल्कि मैं थी, यानि हवेली की मझली ठकुराईन।"

"तब मैंने हालात के ठंडा पड़ जाने का इंतज़ार करना ही उचित समझा।" एक गहरी सांस लेने के बाद मेनका चाची ने फिर से बताना शुरू किया____"जब मैंने महसूस किया कि हालात वाकई में ठंडे पड़ गए हैं तो मैं अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचने लगी। इस बीच मैंने सोच लिया था कि चंद्रकांत को किस तरीके से जीवन भर तड़पने की सज़ा देनी है। उसकी बहू के बारे में मैं ही क्या लगभग सभी जानते थे कि वो कैसे चरित्र की औरत है इस लिए मैंने उसके इसी चरित्र के आधार पर एक योजना बनाई जिसको मुझे चंद्रकांत के कानों तक पहुंचानी थी। मैं जानती थी कि चंद्रकांत अपने इकलौते बेटे की हत्या हो जाने से और उसके हत्यारे का अभी तक पता न लग पाने से बहुत ज़्यादा पगलाया हुआ है। मैं समझ गई कि अगर उसकी ऐसी मानसिक स्थिति में मैं सफ़ेदपोश बन कर उसके पास जाऊं और उसे बता दूं कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है तो यकीनन वो पागल हो जाएगा। वही हुआ....एक रात सफ़ेदपोश बन कर मैं पहुंच गई उसके घर और उसके बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। कुछ ही समय में जब वो बाहर आया और पेशाब करने के बाद वापस घर के अंदर जाने लगा तो मैंने हल्की सी आवाज़ के साथ उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उसके बाद तुम्हें और जेठ जी को भी पता है कि सफ़ेदपोश के रूप में मैंने उससे क्या कहा था जिसके बाद उसने अपनी ही बहू की हत्या कर दी थी।"

"ऐसा करने के पीछे क्या सिर्फ यही वजह थी कि उसने और उसके बेटे ने चाचा जी की हत्या की थी?" मैंने उनकी तरफ देखते हुए पूछा____"या कोई और भी वजह थी?"

"हां सही कहा तुमने।" चाची ने इस बार बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेरे ऐसा करने के पीछे एक दूसरी वजह भी थी और वो वजह थे तुम। हां वैभव, तुम भी एक वजह बन गए थे।"

"म...मैं कुछ समझा नहीं।" मैं उलझ सा गया____"मैं भला कैसे वजह बन गया था?"

"नफ़रत, गुस्सा और ईर्ष्या एकाएक प्यार और ममता में बदल गई थी।" चाची ने अजीब भाव से कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी जब मैंने ये देखा कि तुम अपने छोटे भाइयों की कितनी फ़िक्र करते हो और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें विदेश भेजना चाहते हो तो मुझे ये सोच कर पहली बार एहसास हुआ कि कितने ग़लत थे हम। आत्मग्लानि से डूबती चली गई थी मैं। उस दिन खुद को बहुत छोटा और बहुत ही गिरा हुआ महसूस किया था मैंने। ये सोच कर हृदय हाहाकार कर उठा था कि जिस लड़के ने हमेशा मुझे अपनी मां समझ कर मुझे मान सम्मान दिया, जिस लड़के ने हमेशा अपने चाचा को अपने पिता से भी ज़्यादा महत्व दिया उस लड़के से हमने सिर्फ नफ़रत की? अगर उसका कोई नाम था, कोई शोहरत थी तो ये उसके कर्मों का ही तो परिणाम था ना। हमारे बेटे भी तो ऐसा कर्म कर के नाम और पहचान बना सकते थे मगर ये उनकी कमी थी कि वो ऐसा नहीं कर पाए। तो फिर इसमें तुम्हारा क्या दोष था? यकीन मानों वैभव, उस दिन किसी जादू की तरह जैसे सारे एहसास बदल गए। वो सब कुछ याद आने लगा जो हमने किया था और जो हमारे साथ हुआ था। उस दिन एहसास हुआ कि कितनी गिरी हुई सोच थी हमारी। इतने बड़े खानदान में ऊपर वाले ने हमें भेजा था और हम इतने गिरे हुए काम करने पर आमादा थे। ऐसा लगा जैसे धरती फटे और मैं उसमें समाती चली जाऊं। उसी समय तुम्हें अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोने को जी चाह रहा था। तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ियां मांगने का मन कर रहा था लेकिन नहीं कर सकी। हां वैभव, नहीं कर सकी ऐसा...हिम्मत ही नहीं हुई। ये सोच सोच कर जान निकली जा रही थी कि सब कुछ जानने के बाद तुम क्या सोचोगे मेरे बारे में? पलक झपकते ही तुम्हारी चाची तुम्हारी नज़रों में क्या से क्या बन जाएगी? जिस चाची को तुम हमेशा बड़े स्नेह से अपनी सबसे प्यारी और सबसे सुंदर चाची कहते थे वो एक ही पल में एक डायन नज़र आने लगती तुम्हें। ये सब सोच कर ही जान निकली जा रही थी मेरी। मैं ये सहन नहीं कर सकती थी कि मैं तुम्हारी नज़रों से गिर जाऊं या तुम्हारी नज़रों में मेरी छवि बदसूरत बन जाए। इस लिए उस दिन कुछ नहीं बताया तुम्हें। अंदर ही अंदर पाप का बोझ ले कर घुट घुट के मरना मंजूर कर लिया मैंने। आख़िर दिल को ये तसल्ली तो थी कि तुम्हारी नज़र में मैं अब भी तुम्हारी सबसे प्यारी चाची हूं। मगर किस्मत देखो कि इसके बाद भी कभी एक पल के लिए भी सुकून नहीं मिला मुझे। हर पल ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी कि या तो मुझे अपने पास बुला ले या फिर कुछ ऐसा कर दे कि कोई मुझे ग़लत न समझे। चंद्रकांत के बेटे को और फिर उसके द्वारा उसकी बहू को मरवा देने के पीछे एक वजह यही थी कि ऐसा कर के मैं तुम्हारे भाई की मौत का बदला भी ले लूंगी। शायद मेरे अपराध कुछ तो कम हो जाएं।"

"वैसे ये सब कब से चल रहा था?" सहसा पिता जी ने गंभीरता से पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि हमारे प्यार में कहां कमी रह गई थी जिसके चलते हमारे ही भाई ने ऐसा करने का मंसूबा बना लिया था? अगर उसको हवेली, धन संपत्ति और ज़मीन जायदाद की ही चाह थी तो उसे हमसे कहना चाहिए था। यकीन मानो बहू, अपने छोटे के कहने पर हम पलक झपकते ही सब कुछ उसके नाम कर देते और खुद अपने बीवी बच्चों को ले कर कहीं और चले जाते।"

"माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" मेनका चाची उनके सामने घुटनों के बल गिर पड़ीं। फिर रोते हुए बोलीं____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब हमारे मन में ऐसा नीच कर्म करने का ख़याल आया था।"

"इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा छल?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हे विधाता! ये जानने के बाद भी हमारे प्राण नहीं निकले...क्यों? आख़िर अब और कौन सी बिजली हमारे हृदय पर गिराने का सोच रखा है तुमने?"

"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"ईश्वर करे आपको कभी कुछ न हो। हम सबकी उमर लग जाए आपको।"

"मत दो हमें ऐसी बद्दुआ।" पिता जी खीझ कर बोले____"ईश्वर जानता है कि हमने कभी किसी के बारे में ग़लत नहीं सोचा। हमेशा सबका भला ही चाहा है। सारा जीवन हमने लोगों की भलाई के लिए समर्पित किया। कभी अपने और अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं चाहा इसके बावजूद हमारे साथ इतना बड़ा छल किया गया। बताओ बहू, आख़िर किस अपराध की सज़ा दी है तुम दोनों ने हमें? इतने समय से हम अपने छोटे भाई के जाने का दुख सहन कर रहे थे और आज तुम हमें ये बता रही हो कि उसने और तुमने मिल कर हमारे साथ इतना बड़ा छल किया? क्यों बताया तुमने बहू? हमें इसी भ्रम में जीने दिया होता कि हमारा भाई हमें बहुत मानता था?"

पिता जी की हालत एकाएक दयनीय हो गई। मैंने उनकी आंखों में तब आंसू देखे थे जब चाचा जी और भैया की मौत हुई थी और अब देख रहा था। यकीनन ऐसा होने की उन्होंने कल्पना नहीं की थी। हालाकि शुरआत में हमारे मन में चाचा जी के प्रति शक भी पनपा था किंतु तब हमने यही सोचा था कि ऐसा शायद इस लिए हो सकता है क्योंकि हमारा दुश्मन है ही इतना शातिर। यानि वो चाहता ही यही है कि हम आपस में ही एक दूसरे पर शक करें जिसका परिणाम ये निकले कि हम बिखर जाएं। नहीं पता था कि उस समय हमारा चाचा जी पर शक करना हमारे किसी दुश्मन की शातिराना चाल नहीं थी बल्कि कहीं न कहीं उसमें सच्चाई ही थी।

"आप तो महान हैं जेठ जी।" चाची की करुण आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ____"आपके जैसा दूसरा कभी कोई नहीं होगा। आपने हमेशा दूसरों का भला चाहा। ये तो हमारा दुर्भाग्य था कि ऐसे महान इंसान के पास रह कर भी हम बुरे बन गए। हमें माफ़ कर दीजिए।"

"तुम दोनों ने जो किया वो तो किया ही लेकिन जिस बेटी को हमने हमेशा अपनी बेटी समझा।" पिता जी ने सहसा कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"उसने भी हमें सिर्फ दुख ही दिया। हमारे विश्वास और हमारे प्यार का मज़ाक बना दिया।"

"नहीं ताऊ जी।" कुसुम भाग कर आई और पिता जी के घुटनों से लिपट कर रोने लगी____"मैंने आपके प्यार का मज़ाक नहीं बनाया। अपने माता पिता से ज़्यादा मैं आपको, ताई जी को और अपने सबसे अच्छे वाले भैया को मानती हूं। मेरा यकीन कीजिए ताऊ जी। आपकी बेटी आपको दुख देने का सोच भी नहीं सकती है। वो तो....वो तो मेरी बदकिस्मती थी कि अपनी मां को बचाने के लिए मुझे जो सुझा कर दिया मैंने। अपनी बेटी की इस नादानी के लिए माफ़ कर दीजिए ना।"

"हां जेठ जी इसे माफ़ कर दीजिए।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"इस पगली का इसमें कोई दोष नहीं है। इसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था लेकिन आज इसने ये सब कैसे किया मुझे नहीं पता। शायद किसी दिन इसने मुझे सफ़ेद लिबास पहने देख लिया होगा।"

"मैंने आपको तब देखा था जब एक रात आप सफ़ेदपोश के रूप में कमरे से बाहर जाने वाली थीं।" कुसुम ने सिसकते हुए कहा____"उस रात मेरा पेट दर्द कर रहा था इस लिए मैं दवा लेने के लिए आपके कमरे में आई थी। आपके कमरे का दरवाज़ा बंद तो था लेकिन दो उंगली के बराबर खुला हुआ भी नज़र आ रहा था। अंदर बल्ब जल रहा था। मैं जैसे ही आपको आवाज़ देने को हुई तो अचानक दो अंगुल खुले दरवाज़े के अंदर मेरी नज़र आप पर पड़ी। आपको सफ़ेद मर्दाना कपड़ों में देख मैं हक्की बक्की रह गई थी। अगर आपने अपने चेहरे पर नक़ाब लगाया होता तो मैं जान भी न पाती कि वो आप थीं। आपको उन कपड़ों में देख कर मैं डर भी गई थी। सफ़ेदपोश के बारे में तो मैंने भी सुना था लेकिन मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि जो सफ़ेदपोश मेरे सबसे अच्छे वाले भैया की जान का दुश्मन था वो आप हैं। उसके बाद फिर मेरी हिम्मत ही न हुई कि आपको आवाज़ दूं या कमरे में जाऊं। कुछ देर डरी सहमी मैं आपको देखती रही और फिर वहां से चुपचाप चली आई थी।"

"अगर तुझे पता चल ही गया था कि वो मैं ही थी।" चाची ने कहा____"तो इतने दिनों से चुप क्यों थी? मुझे या हवेली में किसी को बताया क्यों नहीं इस बारे में?"

"मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।" कुसुम ने कहा____"और फिर किसी से क्या बताती मैं? क्या ये कि आप ही सफ़ेदपोश हैं ताकि आप पकड़ी जाएं और फिर आपको मौत की सज़ा दे दी जाए? नहीं मां, मैं भला कैसे ये चाह सकती थी कि मेरी मां सफ़ेदपोश के रूप में पकड़ी जाएं और फिर कोई उनकी जान ले ले? अपने पिता जी को तो खो ही चुकी थी। अब मां को नहीं खोना चाहती थी। यही सोच सोच कर रात दिन हालत ख़राब थी मेरी। जानती थी कि आज नहीं तो किसी न किसी दिन लोग सफ़ेदपोश के रूप में आपको पकड़ ही लेंगे और फिर जाने अंजाने आपकी जान भी ले सकते हैं। मुझे लगा अगर आपको कुछ हो गया तो मेरे दोनों भाई बिना मां के हो जाएंगे। इस लिए सोचा कि मैं ही सफ़ेदपोश बन जाती हूं। अगर किसी के द्वारा पकड़ी गई या जान से मार दी गई तो सफ़ेदपोश का किस्सा ही हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा। उसके बाद कोई भी आपके साथ कुछ नहीं कर पाएगा।"

"तो ऐसे पता चला तुझे और इसी लिए तूने मुझे बचाने के लिए सफ़ेदपोश बन कर अपनी बली देनी चाही?" मेनका चाची का गला भर आया, आंखों से आंसू छलक पड़े, बोलीं____"तुझे मुझ जैसी मां के लिए अपना बलिदान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी मेरी बच्ची। मैंने और तेरे पिता ने जो किया है वो माफ़ी के लायक नहीं है।"

बड़ा गमगीन माहौल हो गया था। समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहें किंतु अभी भी बहुत कुछ ऐसा था जिसे जानना बाकी था। इतना तो समझ आ गया था कि ये सब अपने और अपने बच्चों के लिए किया था उन्होंने लेकिन ये कब शुरू हुआ और कैसे शुरू हुआ ये जानना बाकी था।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
लालच क्या क्या नहीं करवाता इंसान से।

मेनका की सबसे बड़ी सजा उसके मरने में नही बल्कि जिंदा रहने में ही है, जिसमे उसके खुद के बच्चे ही उसकी अवहेलना करे।

बाकी मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ ये जान कर कि पूरी साजिश चाचा चाची की थी। हां ये जरूर आश्चर्य का विषय है कि मेनका ने बाद में भी सफेदपोश का नाटक जारी ही नही रखा बल्कि सबूत को भी नही नष्ट किया।
 
Top