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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आप चुनिंदा कुछ ऐसे लेखको में से हैं, जिनकी लेखनी पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे आंखों के सामने घटनाएं चल रही है । सलाम है मेरा आपकी लेखनी को । 🙏💕धन्यवाद🙏💕
Thanks
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कैसी असमंजस वाली स्तिथि में डाल दिया है आने वैभव को, और ऐसा लगता है कि इस स्तिथि से अब भाभी ही निकाल सकती है उसे।

वैसे ये किशोरी लाल का कैरेक्टर धीरे धीरे बहुत इंपोर्टेंट होता जा रहा है, और कहीं कजरी फिर से तो नही आयेगी वैभव की दिनचर्या में?
Aisi situation to honi hi thi uski. Baaki dekhiye kaun kya karta hai..

Dekhiye kya hota hai...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Rupa jaisa prem sach me devi ki bhakti se hi mil skta hai
Aur ye sabit karta hai ki devi ki bhakti or sachcha prem kabhi nishfal ni hota
Bhai ye baat to pahle bhi comment me bol chuke the...fir dubara wahi comment karne ki kya zarurat thi...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Kahe bhaiya fr kane nhi aaiyega
Aap itna ache se pure bhav aur atmiyata se likhte hain
Or stories likhiyega

Ye story mere favorites me se ek hai
Agar itni hi favourite hoti bhai to last me comment karne nahi aate....imandari se shuru se sath bane rahte aur reviews dete...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 119
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



रूपा की मूक सहमति के बाद रूपचंद्र ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा और फिर अपनी जीप में बैठ कर चला गया। उसके जाने के बाद रूपा ने एक गहरी सांस ली और फिर पलट कर मकान के अंदर की तरफ देखने लगी। उसके मन में अब बस यही सवाल था कि आख़िर वो किस तरह से वैभव को राज़ी करे?


अब आगे....


मकान में चौकीदारी करने वाले सभी लोग मुझसे ये कह कर जंगल की तरफ चले गए कि वो मकान के चारो तरफ लकड़ी की बाउंड्री बनाने के लिए बल्लियां लेने जा रहे हैं। मैं मकान के अंदर आया तो देखा अंदर का कायाकल्प हो चुका था। हर जगह बहुत अच्छे से साफ सफाई कर दी गई थी। मैंने सरसरी तौर पर हर जगह निगाहें घुमाई और फिर थैले को अपने कमरे में रख दिया।

जहां एक तरफ मेरे दिलो दिमाग़ में अनुराधा अभी भी छाई हुई थी वहीं ज़हन में रूपा का भी बार बार ख़याल आ रहा था। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि उसका भाई खुद उसे ले कर यहां आया था और बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी बल्कि ये भी थी कि वो अपनी बहन को मेरे पास सिर्फ इस लिए छोड़ कर जाने वाला है ताकि उसकी बहन यहां मेरे साथ रहते हुए मुझे इस मानसिक स्थिति से निकाल सके।

मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि रूपा का भाई इतना बड़ा क़दम कैसे उठा सकता है? यकीनन ये सिर्फ उसकी मर्ज़ी से नहीं हो सकता था। ज़ाहिर है इसमें उसके समस्त परिवार की भी सहमति थी। तभी तो अपनी बातों में उसने इस बात का भी ज़िक्र किया था कि उसके काका यानि गौरी शंकर ने इस मामले में मेरे पिता जी से बातें कर ली हैं। इस बात का ख़याल आते ही मेरे मस्तिष्क में एकदम से झनाका सा हुआ। मुझे सुबह बैठक में पिता जी की कही हुई बातें याद आ गईं। इसका मतलब वो इसी बारे में मुझसे कह रहे थे कि यहां आने पर अगर कोई मुझे मिले और मेरे साथ रहना चाहे तो मैं इसके लिए मना न करूं।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे किसी के आने का आभास हुआ। मैं पलटा तो मेरी नज़र रूपा पर पड़ी। वो अजीब सी घबराहट और कसमकस में अपने हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में उमेठती कभी मुझे तो कभी नीचे ज़मीन पर देखती नज़र आई।

"म...मैं जानती हूं कि तुम अनुराधा से बेहद प्रेम करते हो और उसके इस तरह चले जाने से तुम्हें बहुत धक्का लगा है।" फिर उसने धीर गंभीर भाव से कहा____"सच कहूं तो मुझे भी उस मासूम के इस तरह गुज़र जाने से बहुत दुख हो रहा है। तुम्हारे आने से पहले मैं उसी की चिता के पास बहुत देर तक बैठी रही थी। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि ऐसा कुछ हो चुका है। काश! ये सब न हुआ होता। काश! ऊपर वाला उसकी जगह मुझे अपने पास बुला लेता।"

कहते कहते सहसा रूपा की आवाज़ भारी हो गई और उसकी आंखें भर आईं। इधर उसकी बातें सुन कर मेरे अंदर हूक सी उठी। आंखों के सामने अनुराधा का चेहरा उभर आया।

"तुम्हें पता है वैभव।" उधर रूपा ने किसी तरह खुद को सम्हाल कर फिर से कहा____"अनुराधा को ले कर मैंने जाने कितने ही हसीन सपने सजा लिए थे। शुरुआत में भले ही मुझे इस बात से तकलीफ़ हुई थी कि तुम किसी दूसरी लड़की से प्रेम करते हो मगर फिर एहसास हुआ कि प्रेम किसी के करने से नहीं बल्कि वो तो अपने आप ही हो जाया करता है। जैसे मुझे तुमसे हो गया वैसे ही तुम्हें उस लड़की से हो गया। अगर मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लेना चाहती हूं तो उसी तरह तुम भी तो अपने प्रेम को हमेशा के लिए अपना बना लेना चाहते थे। हर प्रेम करने वाले की यही तो हसरत होती है। यानि इसमें न तो तुम्हारा कोई दोष था और ना ही इसमें मुझे कोई आपत्ति होनी चाहिए थी। बस, जब मुझे ये एहसास हो गया तो जैसे सब कुछ सामान्य हो गया। उसके बाद फिर मेरे मन में लेश मात्र भी अनुराधा के प्रति जलन की भावना न रही थी। वैसे भी तुम्हारी खुशी में ही तो मेरी खुशी थी। अगर तुम ही खुश न रहते तो फिर किसी बात का कोई मतलब ही नहीं रह जाना था। मेरे घर वाले उस मासूम को ले कर जाने क्या क्या सोचने लगे थे। ज़ाहिर है वो सिर्फ मेरी खुशी ही चाहते थे तभी तो उन्होंने ऐसा सोचा था लेकिन मैं जानती थी कि उचित क्या है। मेरी नज़र में सबसे ज़्यादा उचित यही था कि जिसे मैं प्रेम करती हूं वो खुश रहे, फिर भले ही उसकी खुशी के लिए मुझे अपने प्रेम का बलिदान ही क्यों न कर देना पड़े। यकीन करो वैभव, अगर तुम मुझसे ब्याह करने के लिए हां ना भी कहते तो मुझे तुमसे कोई शिकायत न होती। मैंने ये भी सोच लिया था कि तुम्हारे सिवा मैं किसी की दुल्हन भी कभी न बनूंगी। सारा जीवन ऐसे ही तुम्हारी खूबसूरत यादों के सहारे गुज़ार देती। मेरे घर वाले अथवा ये समाज क्या कहता मुझे इसकी कोई परवाह न होती।"

रूपा एकदम से चुप हुई तो कमरे में सन्नाटा छा गया। मेरे दिलो दिमाग़ में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं? बस ख़ामोशी से अपनी जगह बुत की मानिंद खड़ा था।

"इतने दिनों से बस एक ही बात सोचती आई हूं कि आख़िर ऊपर वाले ने ऐसा क्यों किया?" सहसा रूपा के शब्द एक बार फिर मेरे कानों से टकराए____"हम में से किसी के प्रेम को तो पूर्ण हो जाने दिया होता। आख़िर उस गुड़िया ने किसी के साथ ऐसा कौन सा अपराध किया था जिसके कारण उस निर्दोष को इतनी निर्दयता से मार दिया गया? काश! उसकी जगह मेरे प्राण ले लिए होते उस कंजर ने।"

"उसे मेरी वजह से मार दिया गया।" मैं एकदम हताश भाव से बोल पड़ा____"मेरी अनुराधा को मेरे कुकर्मों की सज़ा दी गई है। उसका हत्यारा चंद्रकांत नहीं बल्कि मैं हूं। हां रूपा मैं....उसका असल हत्यारा मैं ही हूं। अगर मैंने उससे प्रेम न किया होता तो आज मेरी अनुराधा इस दुनिया में ज़िंदा होती।"

"ऐसा मत कहो वैभव।" रूपा तड़प कर मेरे क़रीब आ गई, फिर बोली____"ये सच नहीं है। तुम अनुराधा की मौत के लिए खुद को दोष मत दो। सच तो यही है कि चंद्रकांत पागल हो गया था। अपने पागलपन में पहले उसने अपनी बहू को मार डाला और फिर अनुराधा को।"

"मुझे झूठी दिलासा मत दो।" मैंने खीझते हुए कहा____"सच क्या है ये तुम भी अच्छी तरह समझती हो और सच यही है कि चंद्रकांत ने मुझसे बदला लेने के लिए मेरी निर्दोष अनुराधा को मार डाला। अगर अनुराधा के जीवन में मेरा कोई दखल न होता तो आज वो जीवित होती। उसे मेरे कुकर्मों ने ही नहीं बल्कि मेरे प्रेम ने भी मार डाला रूपा।"

कहने के साथ ही मेरे घुटने मुड़ गए और मैं वहीं पर बिलख बिलख कर रो पड़ा। दिलो दिमाग़ में अचानक से जज़्बातों की ऐसी आंधी चल पड़ी कि मैं चाह कर भी उसे काबू न कर सका। रूपा ने मुझे रोते देखा तो वो बुरी तरह तड़प उठी। झपट कर उसने मुझे अपने सीने से छुपका लिया और फिर खुद भी सिसकने लगी। जाने कितनी ही देर तक मैं उससे छुपका रोता रहा और वो मुझे शांत कराने की कोशिश करती रही।

"त...तुम जाओ यहां से।" अचानक मैं उससे एक झटके से अलग हुआ और फिर बोला____"तुम्हें मेरे क़रीब नहीं रहना चाहिए और ना ही मुझसे प्रेम करना चाहिए। मुझसे प्रेम करने वाला हर व्यक्ति अनुराधा की तरह मार दिया जाएगा। जाओ, चली जाओ यहां से। आज के बाद कभी मेरे क़रीब मत आना और.....और हां...मुझसे ब्याह भी मत करना।"

"य...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" रूपा बुरी तरह घबरा गई____"शांत हो जाओ मेरे दिलबर।"

"नहीं नहीं।" मैं छिटक कर उससे दूर हट गया____"जाओ यहां से। चली जाओ....मेरे पास रहोगी तो कोई तुम्हें भी मार डालेगा। मेरे कुकर्मों की सज़ा तुम्हें भी मिल जाएगी। जाओ, चली जाओ यहां से।"

"ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो तुम?" रूपा बुरी तरह रोते हुए मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर बोली____"भगवान के लिए शांत हो जाओ और अपने से दूर मत करो मुझे। किसी को अगर मेरी जान ही लेनी है तो आ कर ले ले मगर मैं कहीं नहीं जाऊंगी। तुम्हारे पास ही रहूंगी, अपने दिलबर के पास। अपने वैभव के पास। मौत आएगी भी तो कम से कम अपने देवता के पास तो मौजूद रहूंगी। अपने महबूब की बाहों में दम निकलेगा तो ये मेरे लिए खुशी की ही बात होगी।"

"बकवास मत करो" मैंने उसे झटक दिया और पूरी शक्ति से चीखा____"मुझ जैसे कुकर्मी के पास तुम हर्गिज़ नहीं रह सकती। मेरी परछाई भी तुम्हारे लिए घातक है।"

"मेरे घर वालों ने विदा कर के मुझे मेरे देवता के पास भेज दिया है।" रूपा ने रुंधे गले से कहा____"मेरा भाई मुझे मेरे होने वाले पति के पास छोड़ गया है। इस वक्त मैं अपने घर में अपने पति के पास हूं। अब इस घर से मेरी अर्थी ही जाएगी।

रूपा की बातें सुन कर जाने क्यों मैं गुस्से से पागल हो उठा। मेरे अंदर अजीब सा झंझावात चालू हो गया था। गुस्से से दांत पीसते हुए मैं अभी कुछ करने ही वाला था कि तभी जाने क्या सोच कर मैं ठिठक गया और फिर पैर पटकते हुए कमरे से बाहर निकल गया। मुझे इस तरह बाहर जाते देख रूपा हड़बड़ा गई और फिर वो भी मेरे पीछे पीछे बाहर की तरफ लपकी।

✮✮✮✮

रूपचंद्र जब अपने घर पहुंचा तो सबको बैठक में ही बैठा पाया। सभी घर वाले किसी सोच में डूबे हुए नज़र आ रहे थे और उससे भी ज़्यादा चिंतित दिखाई दे रहे थे। रूपचंद्र को आया देख सबके सब चौंके और साथ ही बड़े व्याकुल से नज़र आने लगे।

"अरे! बड़ी जल्दी आ गए तुम?" फूलवती जैसे खुद को रोक न सकी थी, इस लिए मारे उत्सुकता के बोली____"सब ठीक तो है ना बेटा और....और रूपा कैसी है? क्या तुम्हारे होने वाले बहनोई से तुम्हारी मुलाक़ात हुई?"

"एक साथ इतने सारे सवाल मत पूछिए बड़ी मां।" रूपचंद्र ने एक जगह बैठते हुए कहा____"पहले मेरे लिए एक लोटा पानी तो मंगवाइए, प्यास लगी है।"

रूपचंद्र की बात सुनते ही फूलवती ने पास ही खड़ी स्नेहा को पानी लाने के लिए भेज दिया। जल्दी ही स्नेहा पानी ले आई जिसे रूपचंद्र ने पिया और फिर लोटा वापस स्नेहा को पकड़ा दिया।

"अब जल्दी से बताओ बेटा कि वहां सब कैसा है?" फूलवती फिर से मारे व्याकुलता के पूछ बैठी____"कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न वहां?"

"फ़िक्र वाली बात नहीं है बड़ी मां।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन जैसा कि आप सबको पहले से ही आशंका थी वैसा ही हुआ।"

"क्या मतलब है तेरा?" ललिता देवी घबराहट के चलते झट से पूछ बैठी____"आख़िर क्या हुआ है वहां?"

रूपचंद्र ने सारी बात बता दी। उसने बताया कि वैभव ने साफ कह दिया है कि रूपा को उसके साथ वहां रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अंत में उसने ये बताया कि वो फिलहाल ये कह कर आया है कि वो किसी ज़रूरी काम से शहर जा रहा है इस लिए तब तक रूपा उसके साथ वहीं पर रहेगी और जब वो शहर से वापस आएगा तो रूपा को अपने साथ ले जाएगा।

"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी शंकर ने चिंतित भाव से कहा____"इसका मतलब रूपा बिटिया को जिस मकसद से हमने उसके पास रहने भेजा है वो व्यर्थ गया?"

"लगता तो ऐसा ही है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन मैं भी हार न मानने वाली तर्ज़ पर ही रूपा को शहर जाने का बहाना कर के उसके पास छोड़ कर आया हूं। मैं रूपा से साफ शब्दों में कह आया हूं कि अब ये सिर्फ उसी पर है कि वो कैसे खुद को वैभव के पास रहने का कोई मार्ग निकालती है? आप सब तो जानते ही हैं कि हम किसी भी तरह की ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं क्योंकि ऐसे में बात बिगड़ सकती है। हमारी किसी भी तरह की बात अथवा तर्क वितर्क की बातों से वैभव आहत अथवा नाराज़ हो सकता है लेकिन अगर रूपा खुद कोई कोशिश करेगी तो बहुत हद तक संभव है कि वो ऐसा न कर सके। आख़िर उसे भी पता है कि रूपा उसे प्रेम करती है और उसने अपने इस प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है उसके लिए। वैभव भले ही इस समय ऐसी मानसिक हालत में है लेकिन मुझे यकीन है कि रूपा के प्रति उसका रवैया इस हद तक तो कठोर नहीं हो सकता कि वो उसकी कोई बात ही न सुने।"

"हम्म्म्म सही कह रहे हो तुम।" गौरी शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"मुझे भी विश्वास है कि वैभव का रवैया हमारी बिटिया के प्रति इतना सख़्त नहीं हो सकता। तुम रूपा को उसके पास छोड़ कर यहां चले आए ये अच्छा किया। तुम्हारी मौजूदगी में वो वैभव से कोई बात भी नहीं कर सकती थी। आख़िर इतना तो क़ायदा है उसमें कि वो अपने बड़े भाई के सामने वैभव से बात न करे। ख़ैर, अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि रूपा बिटिया अपनी कोशिश में कामयाब हो जाए और जल्द ही वैभव की मानसिक अवस्था ठीक हो जाए।"

"ज़रूर ठीक हो जाएगी काका।" रूपचंद्र ने दृढ़ता से कहा____"मुझे अपनी बहन पर और उसके प्रेम पर पूर्ण विश्वास है। ख़ैर आप लोग दोपहर के भोजन की तैयारी कीजिए। मैं औपचारिक रूप से उन दोनों के लिए खाना ले कर जाऊंगा। अगर सब ठीक रहा तो रूपा वहीं रहेगी अन्यथा मजबूरन मुझे उसको अपने साथ वापस ले कर आना ही पड़ेगा।"

रूपचंद्र की बात सुन कर फूलवती ने फ़ौरन ही सबको भोजन बनाने का हुकुम दे दिया। वहां मौजूद कुछ औरतें और लड़कियां फ़ौरन ही हरकत में आ गईं। रूपचंद्र, गौरी शंकर, फूलवती और ललिता देवी इसी संबंध में और भी बातें करती रहीं। उधर वक्त धीरे धीरे गुज़रता रहा।

✮✮✮✮

मैं आंधी तूफ़ान बना तेज़ क़दमों से जंगल की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। दिलो दिमाग़ में भौकाल सा मचा हुआ था। इस वक्त मेरे अंदर गुस्सा भी था और इस बात का अपराध बोझ भी कि मेरे ही कुकर्मों की वजह से अनुराधा को चंद्रकांत ने मार डाला था। यानि अगर मैं उसके जीवन में इस तरह से न आया होता तो आज वो जीवित होती। अपनी अनुराधा का असल हत्यारा मैं ही था।

दिलो दिमाग़ में दोनों तरह के विचारो का भीषण बवंडर चल रहा था जो मुझे पागल भी किए दे रहा था और बुरी तरह रुला भी रहा था। आंखों के सामने बार बार अनुराधा का चेहरा चमक उठता। ख़ास कर उस दिन का मंज़र जिस दिन वो एक लाश के रूप में पेड़ पर रस्सी के सहारे लटकी हुई थी।

मेरे पीछे रूपा भागती हुई चली आ रही थी और मुझे आवाज़ लगाए जा रही थी लेकिन मुझे जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। मैं अपने दिलो दिमाग़ में चल रही आंधी में खोया बदस्तूर बढ़ता ही चला जा रहा था। जल्दी ही मैं जंगल में दाख़िल हो गया। कुछ दिन पहले तेज़ बारिश हुई थी इस लिए जंगल के अंदर की ज़मीन में हल्का गीलापन था। घने पेड़ पौधों की वजह से सूरज की धूप कम ही आ रही थी वहां।

जंगल के अंदर आने पर भी मेरी रफ़्तार में कोई कमी नहीं आई। जैसे मुझे आभास ही नहीं था कि मैं जंगल के अंदर हूं। पीछे से रूपा की आवाज़ें अब भी आ रही थीं लेकिन मैं कहीं खोया हुआ बढ़ता ही चला जा रहा था। तभी अचानक मेरा पैर किसी पत्थर पर टकरा गया तो मैं बुरी तरह लड़खड़ा गया और झोंक में भरभरा कर सीने के बल गिर पड़ा। मेरे गिरते ही वातावरण में रूपा की चीख गूंज उठी। इधर गिरने की वजह से मैं भी विचारों के बवंडर से बाहर आ गया।

अभी मैं उठ ही रहा था कि तभी भागती हुई रूपा मेरे पास आ गई। उसने जल्दी से मुझे सम्हाला और फिर बड़े ही एहतियात से वहीं बैठा दिया। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। वो सिसक रही थी लेकिन इसके बावजूद वो चिंतित अवस्था में मेरे जिस्म के हर हिस्से को टटोल टटोल कर देखे जा रही थी। शायद वो ये देखना चाहती थी कि गिरने की वजह से कहीं मुझे चोट तो नहीं लग गई?

"नहीं...दूर हट जाओ।" उसके इस तरह मुझे टटोलने से मैं एकदम से उसे धक्का दे कर चीखा____"मेरे पास आने की कोशिश मत करो। चली जाओ यहां से....वरना...वरना तुम्हें भी मेरे कुकर्मों की सज़ा मिल जाएगी।"

"अगर मिलती है तो मिल जाए।" वो तड़प कर रोते हुए बोली_____"मुझे अपने मर जाने की कोई परवाह नहीं है। मुझे सिर्फ तुम्हारी परवाह है वैभव।"

"फिर से वही बकवास?" मैं एक बार फिर गुस्से से चीख पड़ा____"मैंने कहा न चली जाओ यहां से। तुम्हें एक बार में मेरी बात समझ में क्यों नहीं आती?"

"हां नहीं आती मुझे।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"और मैं ऐसी कोई बात समझना भी नहीं चाहती जिसमें मेरे वैभव और मेरे प्रेम पर कोई आंच आए। अपने आपको सम्हालो वैभव और खुद को किसी बात के लिए इस तरह दोष दे कर दुखी मत करो। भगवान के लिए शांत हो जाओ, अपने लिए या मेरे लिए न सही किंतु अपनी अनुराधा के लिए तो शांत हो जाओ। ज़रा सोचो कि इस वक्त तुम्हारी ऐसी हालत देख कर तुम्हारी अनुराधा कितना दुखी होगी। क्या तुम अपनी अनुराधा को उसके मरने के बाद भी खुश नहीं देखना चाहते? क्या तुम अपनी अनुराधा की आत्मा को तड़पाना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं पूरी शक्ति से चीख उठा____"मैं अपनी अनुराधा को तड़पाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। उसे ज़रा सा भी दुख नहीं दे सकता। मैं तो....मैं तो उसे हमेशा खुशी से शरमाते हुए ही देखना चाहता हूं। हां हां...मेरी अनुराधा जब खुशी से शर्माती है तो मुझे बहुत सुंदर लगती है...बहुत प्यारी लगती है मुझे। मैं एक पल के लिए भी उसके चेहरे पर दुख के भाव नहीं रहने दे सकता।"

"अगर तुम सच में ऐसा चाहते हो।" रूपा ने सहसा मेरे क़रीब आ कर बड़े प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"तो खुद को इस तरह दुख में मत डुबाओ। हां वैभव, अगर तुम खुद को इसी तरह दुखी रखोगे और उसकी मौत के लिए खुद को दोष देते रहोगे तो वो कभी खुश नहीं रह सकेगी। तुम्हारी अनुराधा तो मुझसे भी ज़्यादा तुमसे प्रेम करती है ना, फिर भला वो ये कैसे देख सकेगी कि उसका महबूब इसके लिए इस तरह खुद को दुखी रखे और सबसे विरक्त हो जाए? वो तो यही चाहेगी न कि उसका महबूब हर हाल में उसे सिर्फ प्रेम करे और प्रेम से ही उसे याद करे? जब तुम उसे प्रेम से याद करोगे तो उसे बहुत ही अच्छा लगेगा। उसकी आत्मा को बड़ा सुकून मिलेगा। क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी अनुराधा की आत्मा को सुकून मिले?"

"नहीं नहीं।" मैं एकदम से हड़बड़ा कर बोल पड़ा____"मैं अपनी अनुराधा को हमेशा सुकून में देखना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरी अनुराधा बहुत ज़्यादा खुश रहे।"

"और ऐसा तभी होगा ना जब तुम अपनी ऐसी हालत से बाहर निकल कर उसके लिए कुछ अच्छा करोगे।" रूपा ने बड़े ही प्यार से समझाते हुए कहा_____"हां वैभव, तुम्हें अपनी अनुराधा के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे कि वो खुश रहने लगे और उसकी आत्मा सुकून और तृप्ति को प्राप्त कर सके।"

"हां सही कह रही हो तुम।" मैं कुछ सोचते हुए झट से बोल पड़ा____"मुझे अपनी अनुराधा के लिए सच में कुछ अच्छा करना चाहिए मगर....।"

"मगर???" रूपा ने उसी प्यार से पूछा।

"मगर मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी अनुराधा हमेशा खुश रहे और उसकी आत्मा को शांति मिलती रहे?" मैंने सहसा व्याकुल हो कर कहा____"त...तुम मुझे बताओ रूपा...मुझे बताओ कि मुझे अपनी अनुराधा के लिए क्या करना चाहिए?"

"सबसे पहले तो हमें यहां से वापस मकान में चलना चाहिए।" रूपा के चेहरे पर सहसा राहत और खुशी के भाव उभर आए, बोली____"वहीं पर तसल्ली से बैठ कर सोचेंगे कि हम दोनों को अनुराधा के लिए क्या करना चाहिए?"

"ह...हम दोनों को?" मैंने अनायास ही चौंक कर उसकी तरफ सवालिया भाव से देखा।

"हां वैभव हम दोनों को।" रूपा ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"माना कि अनुराधा तुम्हारी सब कुछ थी लेकिन वो मेरी भी तो छोटी बहन थी। मैंने तो ये भी सोच लिया था कि मैं अनुराधा को अपनी छोटी गुड़िया बना लूंगी और उसे बहुत सारा प्यार और स्नेह दिया करूंगी लेकिन....ये मेरी बदकिस्मती ही थी कि मेरे नसीब में मेरी छोटी गुड़िया को प्यार और स्नेह देना लिखा ही नहीं था।"

कहने के साथ ही रूपा की आवाज़ भर्रा गई और आंखों से आंसू छलक पड़े। उसकी बातों से मेरे अंदर एक हूक सी उठी। ना चाहते हुए भी मेरे हाथ स्वतः ही ऊपर उठे और फिर उसके गालों पर लुढ़क आए आंसू की दोनों लकीरों को पोंछ दिए। ये देख रूपा की दोनों आंखों से फिर से आंसू के कतरे छलक पड़े और फिर से आंसू की दो लकीर बना गए। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और फिर मुझे ले कर खड़ी हो गई।

कुछ ही देर में वो मुझे मकान में ले आई। मैं महसूस कर रहा था कि अब मेरे अंदर पहले जैसा तूफ़ान नहीं था। थोड़ा हल्का सा महसूस हो रहा था किंतु अब इस बात को जानने की उत्सुकता तीव्र हो उठी थी कि वो ऐसा क्या करने का सुझाव देगी जिससे कि मेरी अनुराधा को खुशी के साथ साथ सुकून भी मिलेगा?



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R@ndom_guy

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Agar itni hi favourite hoti bhai to last me comment karne nahi aate....imandari se shuru se sath bane rahte aur reviews dete...
Bhai agr join hi last me kiya ho to kaise past me ja skte hain

Agr aap ye soche ki maine comment q kiya hai
Q ki achi lgi apni writing, thoughts, skill isiliye hna

agr pehle aa jata to pehle bhi bol deta
But koi ni aap jaise chahe vichar rkh skte hain🤐
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 120
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दोपहर का वक्त था।
हवेली के बैठक कक्ष में दादा ठाकुर के साथ कई लोग बैठे हुए थे। महेंद्र सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह, गौरी शंकर तथा किशोरी लाल। सभी के चेहरों पर गहन सोचो के भाव गर्दिश कर रहे थे। अभी कुछ देर पहले ही ये लोग यहां आए थे।

"ऐसी परिस्थिति में यूं तो वैभव का उस सुनसान जगह पर अकेले रहना उचित नहीं है।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन क्योंकि उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं है इस लिए उस पर किसी तरह की रोक टोक अथवा ज़ोर ज़बरदस्ती करना भी उचित नहीं है। काश! चंद्रकांत ने ऐसा संगीन क़दम न उठाया होता। काश! उस लड़की को इस तरह निर्दयता से मारने से पहले उसके मन में ये ख़याल आया होता कि वो लड़की हर तरह से निर्दोष है।"

"कहना तो नहीं चाहिए लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि उस लड़की की इस तरह से हुई हत्या का ज़िम्मेदार खुद वैभव भी है।" अर्जुन सिंह ने सबकी तरफ निगाह घुमाते हुए गंभीरता से कहा____"चंद्रकांत असल में वैभव को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था। ज़ाहिर है उसकी इस दुश्मनी की वजह उसकी घर की औरतों के साथ वैभव के नाजायज़ ताल्लुक़ात ही थे। हालाकि सारा दोष सिर्फ वैभव पर मढ़ना और फिर ये सब कर गुज़रना कहीं से भी उचित नहीं था लेकिन शायद दोनों बाप बेटों की ऐसी ही मानसिक स्थिति बन चुकी थी। जब अपनों पर कोई बस न चला तो दूसरों पर ही अपने गुस्से और नफ़रत का सारा लावा उड़ेल देना उनकी मानसिक स्थिति बन चुकी थी। इतना कुछ करने के बाद भी जब उसने ये देखा कि उसका असल दुश्मन तो अभी भी जीवित अवस्था में बड़े शान से घूम फिर रहा है तो वो वैभव को तोड़ डालने का यही हौलनाक क़दम उठा बैठा। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं रह गया था कि जिसकी वो हत्या करने जा रहा है उसका कहीं कोई दोष भी है या नहीं। बल्कि उसे तो सिर्फ इस बात से मतलब था कि उसे किसी भी हालत में अपने सबसे बड़े दुश्मन यानि वैभव का अहित करना है। इसमें कोई शक नहीं कि उसने ऐसा कर के सच में वैभव का बहुत बड़ा अहित कर दिया है। इंसान जिस व्यक्ति को दिल की गहराइयों से प्रेम कर रहा होता है उसके साथ अगर कोई ऐसा कर दे तो यकीनन प्रेम करने वाले व्यक्ति की वैसी ही दशा हो जाती है जैसे कि इस समय वैभव की है।"

"माना कि ये एक कड़वा सच है अर्जुन सिंह।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं रहा। अब तो सिर्फ ये सोचना है कि सफ़ेदपोश कौन है? जो रहस्यमय व्यक्ति इसके पहले वैभव का जानी दुश्मन बना हुआ था वो इतने समय बाद अचानक से चंद्रकांत के मामले में कैसे जुड़ गया? उसने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में क्यों झूठी कहानी सुनाई? आख़िर क्यों उसने चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू को मरवा दिया?"

"क्या रघुवीर के हत्यारे के बारे में अब तक आपको कुछ पता नहीं चला?" दादा ठाकुर ने पूछा____"हैरत की बात है कि बीस दिन होने वाले हैं और अभी तक वो हमें नज़र नहीं आया। हमारे आदमी आज भी मुस्तैदी से उसके आने की प्रतिक्षा कर रहे हैं किंतु वो उस दिन के बाद से अब तक दुबारा नज़र ही नहीं आया। ऐसा लगता है जैसे वो फिर से कहीं ग़ायब हो गया है और अचानक से फिर वो किसी दिन एक नए मामले में जुड़ा हुआ नज़र आएगा।"

"सफ़ेदपोश की तलाश करना तो आपका ही काम है ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हालाकि हम भी अपने तरीके से उसका पता करने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन हमें ये भी लगता है कि वो हमारी पहुंच से बाहर की ही चीज़ है। इस बीच हमने इस बात की छानबीन ज़रूर की है कि उसने चंद्रकांत को उसके बहू के संबंध में जो कहानी सुनाई थी वो झूठी थी अथवा सच।"

"तो क्या पता चला?" दादा ठाकुर के साथ साथ बाकी लोगों के चेहरों पर भी उत्सुकता के भाव उभर आए थे।

"ये तो आप भी समझते हैं कि ऐसे संबंध ज़्यादा दिनों तक किसी से छुपे नहीं रहते हैं।" महेंद्र सिंह ने कहा____"एक न एक दिन ऐसे संबंधों की भनक लोगों को लग ही जाती है। सबसे पहले तो आस पड़ोस वालों को ही पता लग जाता है। उसके बाद धीरे धीरे ऐसी बातें चारो तरफ फैल जाती हैं। हमारे आदमियों ने आपके गांव के लोगों से ही नहीं बल्कि आस पास के गांवों के लोगों से भी इस बारे में पूछताछ की लेकिन सभी ने यही कहा कि ऐसे किसी भी व्यक्ति से रजनी के संबंधों का उन्हें पता नहीं है। अलबत्ता वैभव से उसके संबंधों का उन्हें ज़रूर शक था। इतनी पूछताछ के बाद हम इसी नतीजे पर पहुंचे हैं कि सफ़ेदपोश ने रजनी के संबंध में चंद्रकांत को जो कुछ बताया था वो सरासर झूठ था। स्पष्ट है कि वो अपने ही किसी मकसद के तहत चंद्रकांत के द्वारा ऐसा करवाना चाहता था। वरना आप ही सोचिए कि चंद्रकांत को अगली रात मिलने का कह कर भी वो क्यों नहीं आया? चंद्रकांत उसका इंतजार करते करते मर भी गया लेकिन उसका अब तक कहीं कोई अता पता नहीं है।"

"इस बात की आशंका तो हमें पहले ही हो गई थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"सफ़ेदपोश ने यकीनन ये सब अपने किसी मकसद के तहत ही करवाया है। उसे रजनी के चरित्र का बखूबी पता था जिसके आधार पर उसने ऐसी कहानी बना कर चंद्रकांत को सुनाई। उसे पूरा यकीन था कि चंद्रकांत उसकी कहानी को बिना सोचे समझे इस लिए सच मान लेगा क्योंकि वो खुद भी अपनी बहू के गंदे चरित्र से वाक़िफ है। चंद्रकांत की मानसिक अवस्था का भी उसे बखूबी एहसास था। वो जानता था कि चंद्रकांत अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जानने के लिए एकदम से पगलाया हुआ है। ऐसे में अगर उसे कहीं से भी उसके बेटे के हत्यारे के बारे में पता चलेगा तो उसका बर्ताव कुछ इसी तरह का होगा। यानि वो गुस्से में पागल हो जाएगा और फिर बिना सोचे समझे वो अपने बेटे के हत्यारे का खून कर देगा, जैसा कि उसने किया भी। ये सारी बातें साफ ज़ाहिर करती हैं कि सफ़ेदपोश बड़ा ही शातिर है। अब सवाल ये है कि उसकी चंद्रकांत से क्या दुश्मनी थी जिसके चलते उसने इतने शातिराना ढंग से ऐसा काम करवा लिया? एक बात और, अगर चंद्रकांत से उसकी कोई दुश्मनी थी ही तो अब तक उसने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया था?"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"ये दो तीन सवाल ऐसे हैं जो उस दिन से हमारे मन में खलल डाले हुए हैं। बहुत सोचते हैं लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आता। अगर वजह का पता चल जाए तो यकीनन ये भी समझ आ जाएगा कि सफ़ेदपोश कौन है और उसने ऐसा क्यों किया?"

"सबसे बड़ी विडंबना तो यही रही है कि सफ़ेदपोश की हमसे अथवा चंद्रकांत से दुश्मनी की वजह ही समझ नहीं आई कभी।" दादा ठाकुर ने बेचैन भाव से गहरी सांस ली____"उसके जैसा शातिर और दुस्साहसी व्यक्ति अपने जीवन में हमने कभी नहीं देखा। उसका सबसे बड़ा दुस्साहस तो यही था कि उसने हमारी हवेली के बाहर बने एक कमरे से दरबानों की मौजूदगी में जगन को निकाल ले गया था। क्या आप में से किसी को उससे इतने बड़े दुस्साहस की उम्मीद हो सकती थी?"

"नहीं, बिल्कुल नहीं।" अर्जुन सिंह ने इंकार में सिर हिला कर कहा____"सचमुच उसने ये बड़ा ही दुस्साहस का परिचय दिया था। ऐसा तो वही कर सकता है जिसे अपनी मौत का ज़रा भी खौफ़ ना हो।"

"वैसे एक सवाल शुरू से ही मेरे मन में है कि जब चंद्रकांत ने रात अपनी बहू की इतनी निर्ममता से हत्या की थी।" गौरी शंकर ने कहा____"तो उसके घर वालों को पता कैसे नहीं चला? घर के अंदर उसकी बीवी और बेटी भी तो थीं? क्या वो नींद में इस तरह अंटा गाफिल थीं कि उन्हें अपने आस पास ही कहीं पर रजनी की ऐसी भयानक हत्या होने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ? भला ऐसा कैसे हो सकता है?"

"हमारे मन में भी ये सवाल उभरा था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"किंतु उस समय ऐसे हालात थे कि पूछने का मौका ही नहीं मिला अथवा ये कहें कि पूछने का ध्यान ही नहीं रहा था। उसके बाद फिर अचानक उस लड़की की हत्या का मामला हो गया जिसके चलते माहौल ही अलग हो गया था। हालाकि कुछ दिन पहले ही हम चंद्रकांत के घर इस सारे मामले की पूछताछ करने गए थे।"

"तो क्या पता चला आपको?" दादा ठाकुर ने पूछा।

"यही कि ना तो चंद्रकांत की बीवी को इस भयानक हादसे का आभास हुआ और ना ही उसकी बेटी को।" महेंद्र सिंह ने कहा____"उनका कहना था कि अगर उनमें से किसी को ऐसा कुछ आभास हुआ होता और अगर वो रजनी की चीख सुन कर जाग जाते तो शायद ऐसा हो ही नहीं पाता।"

"हमारा खयाल है कि वो दोनों मां बेटी सच बोल रहीं हैं।" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए कहा____"यकीनन अगर उन्हें पता चल जाता तो ऐसा हो ही नहीं सकता था लेकिन उन्हें पता ही नहीं चला। इसका मतलब यही हुआ कि चंद्रकांत ने किसी को पता चलने ही नहीं दिया होगा।"

"बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"उनकी बातों से हम भी इसी नतीजे पर पहुंचे थे। यानि चंद्रकांत ने ज़रा सा भी उन्हें पता नहीं चलने दिया था। ज़ाहिर है इतना ख़तरनाक काम करने से पहले उसने अपनी बहू का मुंह बंद कर दिया रहा होगा ताकि उसके चीखने की आवाज़ उसके हलक से बाहर निकल ही न सके।"

"या फिर सोते में ही उसने एक झटके में अपनी बहू की गर्दन काट दी होगी।" दादा ठाकुर ने जैसे संभावना ब्यक्त की____"इतना तो वो भी समझता था कि अगर उसके द्वारा किए जा रहे कृत्य का पता उसकी बीवी और बेटी को चल गया तो वो उसे इतना भयानक हत्याकांड नहीं करने देंगी। इस लिए उसने सोते में ही एक झटके में अपनी बहू की गर्दन काट दी होगी। वैसे भी अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जानने के लिए वो पहले से ही पगलाया हुआ था और जब उसे हत्यारे का पता चला तो उसने अपना सम्पूर्ण आपा खो दिया होगा। वो अंदर अपनी बहू के कमरे में गया होगा। वहां बिस्तर पर उसने अपनी बहू को बड़े आराम से सोता हुआ देखा होगा। बहू के रूप में उसे अपने बेटे का हत्यारा नज़र आया जिससे उसका खून खौल उठा और फिर उसने एक ही झटके में तलवार से रजनी की गर्दन काट दी होगी। उस एक ही वार में रजनी मर गई होगी लेकिन चंद्रकांत को शायद इतने से भी तसल्ली अथवा शांति न मिली होगी। इस लिए उसने रजनी के शरीर को जगह जगह तलवार से चीर दिया। जैसा कि उसकी लाश देखने से ही पता चल रहा था। रजनी को चीखने चिल्लाने का जब कोई मौका ही नहीं मिला होगा तो भला कैसे उस घर में ही मौजूद उसकी बीवी और बेटी को इस सबका पता चल पाता?"

"वाकई, ऐसा ही हुआ होगा।" महेंद्र सिंह ने गंभीरता से सिर हिलाया____"ख़ैर, अगर सच में सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत से ये सब अपनी किसी दुश्मनी के चलते ही करवाया है तो यकीनन ये बड़ा ही हैरतअंगेज कारनामा किया है उसने।"

"हमारा ख़याल तो ये है कि उसका सबसे बड़ा कारनामा ये है कि आज तक हम में से किसी को भी उसके बारे में ज़रा सा भी सुराग़ नहीं मिल सका है।" दादा ठाकुर ने कहा____"हर किसी से अपनी असलियत को छुपाए रख कर बड़ी ही सफाई से इतना कुछ कर गुज़रना किसी चमत्कार से कम नहीं है।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"वाकई ये चमत्कार ही है। ना आज तक किसी को उसका मकसद समझ आया और ना ही किसी को उसके बारे में ज़रा सा भी कुछ पता चल सका है। इससे बड़ा चमत्कार वास्तव में कुछ और नहीं हो सकता।"

"जो भी हो लेकिन जब तक वो पकड़ा नहीं जाता।" गौरी शंकर ने कहा____"तब तक किसी न किसी अनहोनी अथवा अनिष्ट की आशंका तो बनी ही रहेगी। इस लिए बेहतर यही है कि उसे हर हाल में खोज कर पकड़ लिया जाए।"

"कहते तो तुम ठीक हो गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन वो पकड़ में तो तब आएगा न जब वो किसी को कहीं नज़र आएगा। पिछले बीस दिनों से हमारे आदमी अपनी आंखें गड़ाए हुए हैं और उसको पकड़ने के लिए पूरी तरह से मुस्तैद हैं लेकिन वो तो ऐसे ग़ायब है जैसे उसका कहीं कोई वजूद ही नहीं है। उसके बारे में सबसे ज़्यादा हम ही चिंतित हैं और जब तक वो हमारी पकड़ में नहीं आ जाता हमें चैन नहीं मिल सकता।"

कुछ देर और इसी सिलसिले में बातें होती रहीं उसके बाद सब इजाज़त ले कर चले गए। सबसे आख़िर में गौरी शंकर गया क्योंकि बाकी लोगों के जाने के बाद उसने ख़ास तौर पर दादा ठाकुर से अपनी भतीजी रूपा और वैभव के बारे में चर्चा की थी।

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मैं और रूपा जब वापस मकान के पास पहुंचे तो देखा मकान के बाहर शेरा खड़ा था। उसके साथ आए कुछ आदमी जीप से सामान निकाल कर मकान के अंदर रख रहे थे। मुझ पर नज़र पड़ते ही शेरा मेरे क़रीब आया और मुझे सलाम किया।

"तुम यहां किस लिए आए हो?" मैंने निर्विकार भाव से उससे पूछा____"और ये लोग मकान के अंदर क्या रख रहे हैं?"

"आपकी ज़रूरत का कुछ सामान है छोटे कुंवर।" शेरा ने कहा____"एक बोरी में चावल दाल और आटा है। एक में फल और सब्जियां हैं। कुछ बिस्तर वाले कपड़े हैं और साथ ही कुछ बर्तन हैं।"

"वो तो ठीक है।" मेरे माथे पर शिकन उभर आई थी____"लेकिन इतना सारा सामान यहां भिजवाने की क्या ज़रूरत थी?"

"अब इस बारे में मैं क्या कहूं छोटे कुंवर?" शेरा ने सिर झुकाते हुए कहा____"मालिक का हुकुम था इस लिए मैं ले आया।"

शेरा की इस बात के बाद मैंने उससे कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि इसमें उसका कोई कसूर नहीं था, बल्कि उसने तो अपने मालिक यानि कि मेरे पिता जी के हुकुम का पालन ही किया था। ख़ैर कुछ ही देर में सारा सामान सलीके से रख दिया गया। उसके बाद शेरा मुझसे इजाज़त ले कर अपने सभी आदमियों के साथ चला गया।

दूसरी तरफ मकान की चौकीदारी करने वाले आदमी मकान के चारो तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा क़रीब चार फुट ऊंची चारदीवारी बनाने में लगे हुए थे। रूपा मेरे क़रीब ही खड़ी थी और वो भी ये सब देख रही थी। मैंने उस तरफ से ध्यान हटाया और रूपा की तरफ पलटा।

"तुमने कहा था कि हमें अनुराधा के लिए कुछ अच्छा सा करना चाहिए।" फिर मैंने उससे पूछा____"तो अब बताओ कि क्या करना चाहिए?"

"जैसा कि मैंने कहा था कि इसके लिए सबसे पहले तुम्हें खुद को शांत रखना है और खुद को दुखी नहीं रखना है।" रूपा ने संतुलित भाव से कहा____"क्योंकि अगर तुम दुखी रहोगे तो अनुराधा को भी इससे दुख होगा। अब रही बात उसके लिए कुछ करने की तो इस बारे में हम दोनों को ही तसल्ली से सोचने की ज़रूरत है।"

"हां पर क्या सोचूं मैं?" मैं जैसे एकाएक परेशान और हताश हो उठा____"कुछ समझ में नहीं आ रहा मुझे।"

"समझ में तो तब आएगा न जब तुम पूरी तरह से शांत हो जाओगे।" रूपा ने कहा____"तुम अभी भी पूरी तरह से शांत नहीं हो। तुम्हारे अंदर द्वंद सा चल रहा है और जब तक ऐसा रहेगा तब तक तुम ठीक से सोच ही नहीं पाओगे कि तुम्हें अपनी अनुराधा की खुशी के लिए क्या करना चाहिए।"

रूपा की बात सुन कर मैं मूर्खों की तरह उसकी तरफ देखने लगा। मैंने महसूस किया कि सच में मेरे अंदर अभी भी शांति नहीं थी और अजीब सा द्वंद चल रहा था। मैंने अपनी आंखें बंद कर के खुद को शांत करने की कोशिश की मगर कामयाब न हो सका। रूपा बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखे जा रही थी। जब उसने मुझे परेशान बेचैन और हताश होता देखा तो उसने बड़े स्नेह से मेरा हाथ पकड़ लिया।

"इतना परेशान मत हो।" फिर उसने बड़े प्यार से कहा____"सब ठीक हो जाएगा। इतना तो तुम भी जानते हो न कि दुनिया में हर चीज़ अपने तय समय पर ही होती है। हम ये सोचते हैं कि सब कुछ हमारे मन के मुताबिक हो और जल्दी हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ करता। जैसे बारह घंटे का दिन गुज़र जाने के बाद ही रात होती है उसी तरह इस संसार की बाकी चीज़ों का भी अपना एक समय होता है। इस लिए इतना ज़्यादा हलकान मत हो। हम दोनों मिल कर हमारी अनुराधा के लिए ज़रूर कुछ अच्छा करेंगे और बहुत जल्द करेंगे। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

मैंने हौले से हां में सिर हिलाया। मैं अभी भी थोड़ा परेशान हालत में था किंतु जाने क्यों ये एहसास हो रहा था कि रूपा अनुराधा के लिए यकीनन कुछ अच्छा करने में मेरी मदद करेगी।

"ठीक है फिर।" रूपा ने कहा____"अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा है तो अब किसी बात की चिंता मत करो। आओ अंदर चल कर देखें कि तुम्हारे पिता जी ने हमारे लिए क्या क्या भिजवाया है?"

"ह...हमारे लिए मतलब?" मैं अनायास ही चौंका।

"हां हमारे लिए।" रूपा ने धड़कते दिल से मेरी तरफ देखा____"मेरा मतलब है कि मैं भी तो यहां पर तुम्हारे साथ हूं और जब तक तुम यहां रहोगे मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूंगी। तभी तो हम दोनों मिल कर ये सोच पाएंगे कि हमें अनुराधा के लिए कुछ अच्छा सा क्या करना चाहिए। क्या तुम्हें मेरे यहां रहने से एतराज़ है?"

उसकी बात सुन कर मैं कुछ बोल ना सका। बस ख़ामोशी से उसके हल्के घबराए चेहरे को देखता रहा। ये सच है कि अब मुझे उसके यहां रहने पर कोई एतराज़ नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब वो मेरी अनुराधा के लिए कुछ अच्छा करने में मेरी मदद करने वाली थी।

"ठीक है।" फिर मैंने धीमें स्वर में कहा____"लेकिन मेरे साथ तुम्हारा यहां रहना क्या उचित होगा? मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे घर वाले इसके लिए मानेंगे?"

"क्यों नहीं मानेंगे?" रूपा ने राहत की सांस लेते हुए कहा____"भला उन्हें इससे क्या आपत्ति हो सकती है? तुम कोई ग़ैर थोड़ी ना हो। उनके होने वाले दामाद हो और सबसे बड़ी बात मेरी जान हो, मेरा सब कुछ हो तुम। अगर उन्हें इस बात से इंकार भी होता तब भी मैं तुम्हारे साथ ही रहती, आख़िरी सांस तक।"

रूपा की आंखों में असीमित प्रेम और अपने प्रति दीवानगी देख मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। समझ में न आया कि क्या कहूं? वो कुछ देर मेरी तरफ देखती रही उसके बाद हल्के से मुस्कुराते हुए और मेरा हाथ वैसे ही पकड़े मकान के अंदर की तरफ चल पड़ी।

शेरा जो समान ले कर आया था उसे सलीके से ही रख दिया गया था लेकिन फिर भी हर सामान को उसकी उचित जगह पर रखना ज़रूरी था। अब क्योंकि हर सामान आ गया था और मेरे साथ रूपा को भी यहीं रहना था इस लिए हर चीज़ को उचित ढंग से रखना जैसे ज़रूरी हो गया था। मैं अगर अकेला ही यहां रहता तो यकीनन मुझे किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं रहना था।

बेमन से ही सही लेकिन रूपा के ज़ोर देने पर मुझे सारे सामान को उसकी बताई हुई जगह पर रखने में लग जाना पड़ा। वो ख़ुद भी मेरे साथ लग गई थी। कुछ ही देर में अंदर का मंज़र अलग सा नज़र आने लगा मुझे। मैंने देखा रूपा एक तरफ रसोई का निर्माण करने में लगी हुई थी जिसमें एक अधेड़ उमर का आदमी उसकी मदद कर रहा था। वो आदमी बाहर से ईंटें ले आया था और उससे चूल्हे का निर्माण कर रहा था। दूसरी तरफ रूपा रसोई का सामान दीवार में बनी छोटी छोटी अलमारियों में सजा रही थी। ये देख मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ लेकिन मैंने कहा कुछ नहीं और बाहर निकल गया।




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