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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Sanju@

Well-Known Member
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20,253
188
अध्याय - 100
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




मैं और भाभी जीप में बैठे आगे बढ़े चले जा रहे थे। मैं धीमी गति से ही जीप चला रहा था। जब से भाभी जीप में बैठीं थी तब से वो ख़ामोश थीं और ख़यालों में खोई हुई थीं। मैं बार बार उनकी तरफ देख रहा था। वो कभी हौले से मुस्कुरा देती थीं तो कभी फिर कुछ सोचने लगती थीं। इधर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं उनसे जानना चाहता था कि आख़िर उन्होंने अनुराधा से क्या बातें की थीं?

"आख़िर कुछ तो बताइए भाभी।" जब मुझसे बिल्कुल ही न रहा गया तो मजबूर हो कर मैंने उनसे पूछा____"मैं काफी देर से देख रहा हूं कि आप जाने क्या सोच सोच कर बस मुस्कुराए जा रही हैं। मुझे भी तो कुछ बताइए। मैं जानना चाहता हूं कि आपने अनुराधा से क्या बातें की अकेले में?"

"आय हाय! देखो तो सबर ही नहीं हो रहा जनाब से।" भाभी ने एकदम से मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ा____"वैसे क्या जानना चाहते हो तुम?"

"वही जो आपने अकेले में उससे बातें की हैं।" मैं उनके छेड़ने पर पहले तो झेंप गया था फिर मुस्कुराते हुए पूछा____"आख़िर कुछ तो बताइए। अकेले में ऐसी क्या बातें की हैं आपने?"

"अगर मैं ये कहूं कि वो सब बातें तुम्हें बताने लायक नहीं हैं तो?" भाभी ने मुस्कुराते हुए तिरछी नज़र से मुझे देखा____"तुम्हें तो पता ही होगा कि हम औरतों के बीच भी बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जिन्हें मर्दों को नहीं बताई जा सकतीं।"

"ये बहुत ग़लत बात है भाभी।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"आपको मुझे छेड़ना ही है तो बाद में छेड़ लीजिएगा लेकिन अभी बताइए ना कि आपने उससे क्या बातें की हैं? आपको अंदाज़ा भी नहीं है कि उतनी देर से सोच सोच कर मेरी क्या हालत हुई जा रही है?"

मेरी ये बात सुनते ही भाभी एकदम से खिलखिला कर हंसने लगीं। हंसने से उनके सच्चे मोतियों जैसे दांत चमकने लगे और उनकी मधुर आवाज़ फिज़ा में मीठा संगीत सा बजाने लगी। उन्हें हंसता देख मुझे बहुत अच्छा लगा। यही तो चाहता था मैं कि वो अपने सारे दुख दर्द भूल कर बस हंसती मुस्कुराती रहें।

"अच्छा एक काम करो।" फिर उन्होंने अपनी हंसी को रोकते हुए किंतु मुस्कुराते हुए ही कहा____"तुम अपनी अनुराधा से ही पूछ लेना कि हमारी आपस में क्या बातें हुईं थी?"

"बहुत ज़ालिम हैं आप, सच में।" मैंने फिर से बुरा सा मुंह बना कर कहा____"आज तक किसी लड़की अथवा औरत में इतनी हिम्मत नहीं हुई थी कि वो मुझे आपके जैसे इस तरह सताने का सोचे भी।"

"तुम ये भूल रहे हो वैभव कि मैं कौन हूं?" भाभी ने कहा____"आज तक तुम्हारे जीवन में जो भी लड़कियां अथवा औरतें आईं थी वो सब ग़ैर थीं और निम्न दर्जे की सोच रखने वाली थीं जबकि मैं तुम्हारी भाभी हूं। दादा ठाकुर की बहू हूं मैं। क्या तुम मेरी तुलना उन ग़ैर लड़कियों से कर रहे हो?"

"नहीं नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर झट से कहा____"मैं आपकी तुलना किसी से भी करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। मैंने तो ऐसा सिर्फ मज़ाक में कहा था वरना आप भी जानती हैं कि आपके प्रति मेरे मन में कितनी इज्ज़त है।"

"हां जानती हूं मैं।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम मेरे प्रति ऐसे भाव रखते हो। मुझे पता है कि तुम मेरे होठों पर मुस्कुराहट लाने के लिए नए नए तरीके अपनाते हो। सच कहूं तो मुझे तुम्हारा ऐसा करना अच्छा भी लगता है। मुझे गर्व महसूस होता है कि तुम्हारे जैसा लड़का मेरा देवर ही नहीं बल्कि मेरा छोटा भाई भी है। मेरे लिए सबसे ज़्यादा खुशी की बात ये है कि तुम खुद को बदल कर एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चल रहे हो। तुम हमेशा एक अच्छे इंसान बने रहो यही मेरी तमन्ना है और इसी से मुझे खुशी महसूस होगी।"

"फ़िक्र मत कीजिए भाभी।" मैंने कहा____"मैं हमेशा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा और आपकी खुशी का ख़याल रखूंगा।"

"और अनुराधा तथा रूपा की खुशी का ख़याल कौन रखेगा?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे फिर से छेड़ा_____"मत भूलो कि अगले साल दो दो बीवियों के बीच फंस जाने वाले हो तुम। फिर मैं भी देखूंगी कि दोनों की खुशियों का कितना ख़याल रख पाते हो तुम।"

"अरे! इसमें कौन सी बड़ी बात है भाभी।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"इस मामले में तो मुझे बहुत लंबा तज़ुर्बा है। दोनों को एक साथ खुश रखने की क्षमता है मुझमें।"

"ज़्यादा उड़ो मत।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जिस दिन बीवियों के बीच हमेशा के लिए फंस जाओगे न तब समझ आएगा कि बाहर की औरतों को और अपनी बीवियों को खुश रखने में कितना फ़र्क होता है।"

"आप तो बेवजह ही डरा रही हैं मुझे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"ये मत भूलिए कि आपके सामने ठाकुर वैभव सिंह बैठे हैं।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"फिर तो अनुराधा से ब्याह करने के लिए तुम्हें अपनी इस भाभी की मदद की कोई ज़रूरत ही नहीं हो सकती, है ना?"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला____"आपकी मदद के बिना तो मेरी नैया पार ही नहीं हो सकती। कृपया ऐसी बातें न करें जिससे मेरी धड़कनें ही रुक जाएं।"

मेरी बात सुन कर भाभी एक बार फिर से खिलखिला कर हंस पड़ीं। इधर मैं अपना मुंह लटकाए रह गया। मेरी सारी अकड़ छू मंतर हो गई थी। उन्होंने मेरी कमज़ोर नस पर वार जो कर दिया था। ख़ैर मैं विषय को बदलने की गरज से उनसे फिर ये पूछने लगा कि उनकी अनुराधा से क्या बातें हुईं हैं लेकिन भाभी ने कुछ नहीं बताया मुझे। बस यही कहा कि मैं अगर इतना ही जानने के लिए उत्सुक हूं तो अनुराधा से ही पूछूं। भाभी मेरी हालत का पूरा लुत्फ़ उठा रहीं थी और ये बात मैं बखूबी समझता था। ख़ैर मुझे उनके न बताने से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ रहा था, अलबत्ता इस बात की खुशी थी कि इस सफ़र में भाभी खुश थीं। ऐसी ही नोक झोंक भरी बातें करते हुए हम हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होता देख रूपा पहले तो चौंकी फिर सम्हल कर बैठ गई। आज काफी समय बाद उसके बड़े भाई ने उसके कमरे में क़दम रखा था। दोनों की उमर में सिर्फ डेढ़ साल का अंतर था। हालाकि दोनों को देखने से यही लगता था जैसे दोनों ही जुड़वा हों। एक वक्त था जब दोनों भाई बहन का आपस में बड़ा ही प्रेम और लगाव था।

बचपन से ही दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। बढ़ती उम्र के साथ जैसे जैसे दोनों में समझदारी आती गई वैसे वैसे दोनों एक दूसरे का छोटा बड़ा होने के नाते आदर और सम्मान करने लगे थे। रूपा वैसे भी एक लड़की थी इस लिए उसे अपनी मर्यादा में ही रहने की नसीहतें मिलती रहती थीं किंतु रूपचंद्र के मन में हमेशा से ही अपनी छोटी बहन रूपा के लिए विशेष लगाव और स्नेह था। फिर जब रूपचंद्र को अपनी बहन रूपा का वैभव के साथ बने संबंध का पता चला तो वो रूपा से बहुत नाराज़ हुआ। एक झटके में अपनी बहन से उसका बचपन का लगाव और स्नेह जाने कहां गायब हो गया और उसकी जगह नाराज़गी के साथ साथ गुस्सा भी भरता चला गया। उसे लगता था कि उसकी बहन ने वैभव के साथ ऐसा संबंध बना कर बहुत ही नीच और गिरा हुआ कार्य किया है और साथ ही खानदान की इज्ज़त को दाग़दार किया है। उसने ये समझने की कभी कोशिश ही नहीं की थी कि उसकी बहन ने अगर ऐसा किया था तो सिर्फ अपने प्रेम को साबित करने के चलते किया था।

आज मुद्दतों बाद रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होते देख रूपा चौंकी तो थी ही किंतु एक अपराध बोझ के चलते उसने अपना सिर भी झुका लिया था। ये अलग बात है कि अपने भाई के प्रति उसके मन में भी नाराज़गी और गुस्सा विद्यमान था। उधर रूपचंद्र कमरे में दाखिल हुआ और फिर अपनी बहन की तरफ ध्यान से देखने लगा। उसने देखा रूपा उसकी तरफ देखने से कतरा रही थी। ये देख उसके दिल में एक हूक सी उठी जिसके चलते कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर वेदना के चिन्ह उभरते नज़र आए। उसने ख़ामोशी से पलट कर दरवाज़े को अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर उसी ख़ामोशी के साथ पलंग के एक कोने में सिमटी बैठी रूपा की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो उसके क़रीब पहुंच गया। कुछ पलों तक वो रूपा को निहारता रहा और फिर आहिस्ता से पलंग के किनारे बैठ गया।

"मैं जानता हूं कि तू अपने इस भाई से बहुत नाराज़ है।" फिर उसने अधीरता से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"और नाराज़ होना भी चाहिए। मैंने कभी भी तुझे समझने की कोशिश नहीं की बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि मैंने तुझे समझने के बारे में सोचा तक नहीं। तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आज मुद्दतों बाद मुझे खुद ही ये एहसास हो रहा है कि मैंने अपनी उस बहन को कभी नहीं समझा जिसे कभी मैं बहुत प्रेम करता था और जो कभी मेरी धड़कन हुआ करती थी। मैंने हमेशा वैभव के साथ तेरे संबंध को ग़लत नज़रिए से सोचा और तेरे बारे में तरह तरह की ग़लत धारणाएं बनाता रहा। शायद यही वजह थी कि मेरे अंदर तेरे लिए नाराज़गी और गुस्सा हमेशा ही कायम रहा। जबकि मुझे समझना चाहिए था और सबसे बड़ी बात तुझ पर भरोसा करना चाहिए था। मुझे समझना चाहिए था कि जब किसी इंसान को किसी से प्रेम हो जाता है तो वो उसके लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता है। वो अपना सब कुछ अपने प्रेम में न्यौछावर कर देता है, क्योंकि उसकी नज़र में उसका अपने आप पर कोई अधिकार ही नहीं रह जाता है। काश! इतनी सी बात मैं पहले ही समझ गया होता तो मैं तेरे बारे में कभी ग़लत न सोचता और ना ही तुझसे नाराज़ रहता। मुझे माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं तेरा गुनहगार हूं। कई दिनों से तेरे पास आ कर तुझसे माफ़ी मांगना चाहता था मगर शर्मिंदगी के चलते हिम्मत ही नहीं होती थी। आज बहुत हिम्मत जुटा कर तेरे पास आया हूं। मैं जानता हूं कि मेरी मासूम बहन का दिल बहुत बड़ा है और वो अपने इस नासमझ भाई को झट से माफ़ कर देगी।"

"भ...भैया!!" रूपचंद्र की बात ख़त्म हुई ही थी कि रूपा एकदम से रोते हुए किसी बिजली की तरह आई और रूपचंद्र के गले से लिपट गई। उसकी आंखों से मोटे मोटे आंसुओं की धारा बहने लगी थी। रूपचंद्र खुद भी अपनी आंखें छलक पड़ने से रोक न सका। उसने रूपा को अपने सीने से इस तरह छुपका लिया जैसे कोई मां अपने छोटे से बच्चे को अपने सीने से छुपका लेती है।

"आह! आज मुद्दतों बाद तुझे अपने सीने से लगा कर तेरे इस भाई को बड़ा ही सुकून मिल रहा है रूपा।" रूपचंद्र ने रुंधे गले से कहा____"इतने समय से मेरा जलता हुआ हृदय एकदम से ठंडा पड़ गया सा महसूस हो रहा है।"

"मैं भी ऐसा ही महसूस कर रही हूं भैया।" रूपा ने सिसकते हुए कहा____"आप नहीं समझ सकते कि आज आपके इस तरह मुझे अपने सीने से लगा लेने से मेरी आत्मा पर से कितना बड़ा बोझ हट गया है। ऐसा लगता है जैसे मेरे अस्तित्व का फिर से एक नया जन्म हो गया है।"

"कुछ मत कह पगली।" रूपचंद्र ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"देर से ही सही मगर अब मैं तेरी भावनाओं को बखूबी समझ रहा हूं। मुझे एहसास हो गया है कि तूने अब तक किस अजीयत के साथ अपने दिन रात गुज़ारे हैं लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। तेरा ये भाई तुझे वचन देता है कि अब से तुझे कोई दुख नहीं सहना पड़ेगा। तेरे रास्ते की हर रुकावट को मैं दूर करूंगा और हर पल तेरे लिए दुआ करूंगा कि तू हमेशा खुश रहे। तुझे वो मिले जिसकी तूने ख़्वाईश की है।"

"ओह! भैया।" रूपा अपने भाई की बातें सुन कर और भी ज़्यादा ज़ोरों से उससे छुपक गई। उसकी आंखें फिर से मोटे मोटे आंसू बहाने लगीं।

रूपचंद्र ने उसे खुद से अलग किया और अपने हाथों से उसके आंसू पोंछने लगा। रोने की वजह से रूपा का खूबसूरत चेहरा बुरी तरह मलिन पड़ गया था। रूपचंद्र की आंखें भी भींगी हुईं थी जिन्हें उसने साफ करने की ज़रूरत नहीं समझी बल्कि जब रूपा ने देखा तो उसने ही अपने हाथों से उसकी भींगी आंखों को पोंछा। बंद कमरे में भाई बहन के इस अनोखे प्यार और स्नेह का एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था इस वक्त।

"मुझसे वादा कर कि अब से तू आंसू नहीं बहाएगी।" रूपचंद्र ने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"तुझे जिस किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तू मुझसे कहेगी। यूं समझ ले कि अब से तेरा ये भाई तेरी खुशी के लिए कुछ भी कर जाएगा।"

"आपने इतना कह दिया मेरे लिए यही बहुत है भैया।" रूपा ने अधीरता से कहा____"मुझे अपने सबसे ज़्यादा प्यार करने वाले भैया वापस मिल गए। मेरे लिए यही सबसे बड़ी खुशी की बात है।"

"तूने मुझे माफ़ तो कर दिया है ना?" रूपचंद्र ने उसकी आंखों में देखा।

"आपने ऐसा कुछ किया ही नहीं है जिसके लिए आपको मुझसे माफ़ी मांगनी पड़े।" रूपा ने बड़ी मासूमियत से कहा____"मेरा ख़याल है कि आपने वही किया है जो हर भाई उन हालातों में करता या सोचता।"

"नहीं रूपा।" रूपचंद्र ने सहसा खेद भरे भाव से कहा____"कम से कम तेरे बारे में मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था। मैं तुझे बचपन से जानता था। हम दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। मुझे अच्छी तरह पता है कि मेरी बहन के मन में भूल से भी कभी कोई ग़लत ख़याल नहीं आ सकता था। खोट तो मेरे मन में था मेरी बहना। मन तो मेरा ही मैला हो गया था जिसकी वजह से मैंने अपनी सबसे चहेती बहन के बारे में ग़लत सोचा और इतना ही नहीं जब तुझे सबसे ज़्यादा मेरी ज़रूरत थी तब मैं तेरे साथ न हो कर तेरे खिलाफ़ हो गया था।"

"भूल जाइए भैया।" रूपा ने बड़े स्नेह से रूपचंद्र का दायां गाल सहला कर कहा____"इस दुनिया में सबसे ग़लतियां होती हैं। अगर आपसे हुई हैं तो मुझसे भी तो हुई हैं। मैंने भी तो अपने खानदान और अपने परिवार की मान मर्यादा का ख़याल नहीं रखा था।"

"छोड़ ये सब बातें।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूं। तू भी उस बुरे वक्त को भूल जा। अब तो बस खुशियां मनाने की बारी है। अरे! तेरी सबसे बड़ी ख़्वाईश पूरी होने वाली है। अगले साल हमेशा के लिए तुझे वो शख़्स मिल जाएगा जिसे तूने बेहद प्रेम किया है। चल अब इसी बात पर मुस्कुरा के तो दिखा दे मुझे।"

रूपचंद्र की ये शरारत भरी बात सुन कर रूपा एकदम से शर्मा गई और उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर मुस्कान उभर आई। लेकिन अगले ही पल उसकी वो मुस्कान गायब हो गई और उसके चेहरे पर उदासी के बादल मंडराते नज़र आए। रूपचंद्र ने भी इस बात पर गौर किया।

"क्या हुआ?" फिर उसने फिक्रमंद हो कर उससे पूछा____"अचानक तेरे चेहरे पर ये उदासी क्यों छा गई है? बता मुझे, आख़िर तेरी इस उदासी की वजह क्या है?"

"कुछ नहीं भैया।" रूपा ने बात को टालने की गरज से कहा____"कोई ख़ास बात नहीं है।"

"तुझे बचपन से जानता हूं मैं।" रूपचंद्र ने कहा____"तेरी हर आदत से परिचित हूं मैं। इस लिए यकीन के साथ कह सकता हूं कि तेरी इस उदासी की वजह कोई मामूली बात नहीं है। तू मुझे बता सकती है रूपा। अपने इस भाई पर भरोसा रख, मैं तेरी हर परेशानी को दूर करने के लिए अपनी जान तक लगा दूंगा।"

"नहीं नहीं भैया।" रूपा ने घबरा कर झट से अपनी हथेली रूपचंद्र के मुख पर रख दी____"ऐसा कभी दुबारा मत कहिएगा। इस परिवार में अब सिर्फ आप ही तो बचे हैं, अगर आपको भी कुछ हो गया तो हम सब जीते जी मर जाएंगे। रही बात मेरी उदासी की तो आप चिंता मत कीजिए और यकीन कीजिए ये बस मामूली बात ही है। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।"

"अगर तू कहती है तो मान लेता हूं।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ली, फिर सहसा मुस्कुराते हुए बोला____"अच्छा ये बता मेरे होने वाले जीजा श्री से मिलने का मन तो नहीं कर रहा न तेरा? देख अगर ऐसा है तो तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मेरे रहते जीजा जी की तरफ जाने वाले तेरे रास्ते पर कोई रुकावट नहीं आएगी।"

"धत्त।" रूपा बुरी तरह शर्म से सिमट गई। उसे अपने भाई से ऐसी बात की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी, बोली____"ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?"

"अरे! इसमें ग़लत बात क्या है भला?" रूपचंद्र ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा____"मैं तो अपनी प्यारी बहन की खुशी वाली बात ही कर रहा हूं। एक भाई होने के नाते ये मेरा फर्ज़ है कि मैं अपनी बहन की हर खुशी का ख़याल भी रखूं और उसे खुश भी रखूं। अब क्योंकि मुझे पता है कि आज के समय में अगर मेरी बहन की मुलाक़ात उसके होने वाले पतिदेव से हो जाए तो उसे कितनी बड़ी खुशी मिल जाएगी इसी लिए तो तुझसे वैसा कहा मैंने।"

"बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा बुरी तरह शर्मा तो रही ही थी किंतु वो बौखला भी गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने भाई की बातों का वो क्या जवाब दे। हालाकि एक सच ये भी था कि अपने भाई से अपने होने वाले पतिदेव से मिलने की बात सुन कर उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी और साथ ही उसके मन का मयूर नाचने लगा था।

"हद है भई।" रूपचंद्र ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा अब। ठीक है फिर, अगर तू यही चाहती है तो यही सही। वैसे आज मैंने अपने होने वाले जीजा श्री से भी मिलने का सोचा हुआ था। सोचा था अपनी बहन की खुशी का ख़याल करते हुए उनसे तेरे मिलने का कोई बढ़िया सा जुगाड़ भी कर दूंगा मगर अब जब तेरी ही इच्छा नहीं है तो मैं उन्हें मना कर दूंगा।"

"न...न...नहीं तो।" रूपा बुरी तरह हड़बड़ा गई। बुरी तरह हकलाते हुए बोल पड़ी____"म..मेरा मतलब है कि......नहीं...आप....जाइए मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।"

रूपा लाज के चलते खुल कर जब कुछ बोल ना पाई तो अंत में बुरा सा मुंह बना कर रूपचंद्र से रूठ गई। ये देख रूपचंद्र ठहाका लगा कर हंसने लगा। पूरे कमरे में उसकी हंसी गूंजने लगी। इधर उसे यूं हंसता देख रूपा ने और भी ज़्यादा मुंह बना लिया।

"अरे! अब क्या हुआ तुझे?" रूपचंद्र ने फौरन ही अपनी हंसी रोकते हुए उससे पूछा____"इस तरह मुंह क्यों बना लिया तूने?"

"मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।" रूपा ने पूर्व की भांति ही रूठे हुए लहजे से कहा____"आप बहुत ख़राब हैं।"

"अरे! भला मैंने ऐसा क्या कर दिया?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं तो तेरी भलाई की बात ही कर रहा था। अब जब तुझे ही मंज़ूर नहीं है तो मैं क्या करूं भला?"

"सब कुछ जानते समझते हुए भी आप मुझसे ऐसी बात कर रहे हैं।" रूपा ने अपनी आंखें बंद कर के मानों एक ही सांस में कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि आपको हर चीज़ का बखूबी एहसास है, फिर ये क्या है?"

"अरे! तो इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है?" रूपचंद्र ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"तुझे अगर जीजा श्री से मिलना ही है तो साफ साफ कह दे ना। मैं ख़ुद तुझे उन महापुरुष के पास ले जाऊंगा।"

"सच में बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा का चेहरा लाजवश फिर से लाल सुर्ख पड़ गया, नज़रें झुकाए बोली____"आप ये क्यों नहीं समझते कि एक बहन अपने बड़े भाई से इस तरह की कोई बात नहीं कह सकती।"

"हां जानता हूं पागल।" रूपचंद्र ने कहा___"मैं तो बस तुझे छेड़ रहा था। तुझे इन सब बातों के लिए मुझसे शर्माने की कोई ज़रूरत नहीं है। तू मुझसे बेझिझक हो कर कुछ भी कह सकती है। मैं तो बस ये चाहता हूं कि मेरी बहन हर तरह से खुश रहे। और हां, मैं जानता हूं कि तू वैभव से मिलना चाहती है। उससे ढेर सारी बातें करना चाहती है। इसी लिए तो तुझसे कहा था मैंने कि मैं तेरी मुलाक़ात करवा दूंगा उससे।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर रूपा बोली तो कुछ नहीं लेकिन खुशी के मारे उसके गले ज़रूर लग गई। रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए उसकी पीठ सहलाई और फिर उसे खुद से अलग कर के कहा____"फ़िक्र मत कर, जल्दी ही मैं तेरी ये इच्छा पूरी करूंगा। अब चल मुस्कुरा दे....।"

रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।

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भाभी और वैभव के बीच का वार्तालाप बहुत ही मजेदार था वही दूसरी और रूपचंद्र की भी आंखे खुल चुकी है उसने वैभव और रूपा के रिश्ते को मान लिया है और रूपा को अपने बचपन वाला भाई मिल गया है जो उसे बहुत प्यार करता है रूपा और रूपचंद्र के बीच चटपटी नोक झोंक का जो चित्रण किया है वह बहुत ही शानदार और लाज़वाब है
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
Awesome update

Bohot badiya update

Superb update

यह सब क्या है ? कम से कम सभी रीडर्स के कमेन्ट पर सिर्फ एक शब्द" थैंक्स " भी तो कह सकते थे । जब से वापस आए है और अपडेट देना शुरू किए है तब से आपका रीडर्स के प्रति रवैया बहुत अधिक उदासीन रहा है । आते है और अपडेट देकर खिसक जाते है । कौन क्या रिव्यू दे रहा है , कौन क्या बोल रहा है उससे आपको मतलब ही नही। :mad:
अगर आपकी पर्सनल लाइफ मे फिर से कोई प्रॉब्लम हो तो आप फिर से इस स्टोरी को एकाध साल के लिए प्राइवेट सेक्शन मे डाल सकते है । हम इंतजार कर लेंगे।

Lazwaab update

Super se bhi upar

Honi Ko koi nahin taal Sakta, yah baat kah kar kulguru ne spasht kar Diya ki vibhav ke nasib me 1 nahi 2 biwiyon ka youg hai.
रागिनी के विषय में भी कहदिया की उसकी और आपकी भलाई इसी में है उसकी शादी वैभव से करा दे।
Dada thakur और सुगंधा देवी आखिर मान ही लिया के दो से भले तीन

Rupa jab vaibhav se milegi aur apni raaye rakhegi toh vaibhav kaise Rupa ko manayega, do shadi ke liye.
yeh interesting rahega ......

Bahut bahut dhanyawad Bhai update dene ke liye jindagi ka koi bharosha nahi h ...... Marne se pahle ye story to Puri padh lu....


मुझे तो इस बात से कोई दिक्कत नही दिख रही, लेखक अपडेट दे रहा है यह भी पर्याप्त है। वैसे भी उनका कार्य अच्छा अपडेट देना ना की कमेंट्स पर अच्छे अच्छे reply करना और देखा जाए तो कमेंट्स भी बहुत खास नही कर रहे इधर के रीडर्स बस आते है और पढ़ कर निकल जाते है या ज्यादा से ज्यादा nice update लिख देते है।

और मैं तो बिल्कुल भी इंतजार नही कर सकता इस स्टोरी का, वैसे तो बहुत सी स्टोरी पढ़ी है पर कभी भी किसी में इतना सस्पेंश नहीं था की कुछ भी guess ना कर पाऊं, and for that ये कहानी इसी रफ्तार में चलनी चाहिए
कहानी पढ़ कर दिल को सुकून बहुत मिलता है..

भाई सबसे पहले धन्यवाद एक साथ दो दो अपडेट के लिए,
भाभी और वैभव की bonding वक्त के साथ और भी मजबूत होती जा रही है और ये देख कर अच्छा लगता है की at least रागिनी वापस से अपने दुखो से उभर रही है।
गुरुजी ने कहा वैभव की 2 पत्नी होंगी पर उन्होंने ये तो नही कहा की उसकी 3 पत्नी नही हो सकती, but क्या वैभव 3 पत्नी manage कर पाएगा।

सफेद नकाबपोश कुछ खास पता नही चला पर यदि उस सफेद नकाबपोश को पता चला की वैबव की शादी रूपा और अनुराधा से होने वाला है तो क्या वो उन पर हमला करके वैभव को दुख पहुंचाने की कोशिश करेगा।


अगले अपडेट की प्रतीक्षा में

Noise......🧠🧠🧠

इस फोरम की विशेषता यही है कि यहां राइटर और रीडर्स के बीच डायरेक्ट संवाद होता है । लोग अक्सर उपन्यास या कोई कहानी पढ़ते होंगे लेकिन रीडर्स चाहकर भी अपनी बात राइटर के पास नही पहुंचा सकते थे।
इस फोरम के द्वारा हम अपने फेवरेट राइटर के साथ डायरेक्ट कम्युनिकेशन्स मे रहते है और यही इस फोरम की उपलब्धि है।
शुभम भाई अपडेट लिख तो रहे है लेकिन मुझे लगता है वो अभी भी अपने कुछ पर्सनल प्रॉब्लम से जूझ रहे है । वो नौजवान है और काफी मिलनसार थे । उनके पोस्ट देखिए , आप जान जाएंगे कि वो पहले चैटिंग करना कितना पसंद करते थे !
कुछ तो जरूर है जो वो किसी से शेयर करना नही चाहते । इंसान का मन मस्तिष्क अच्छा रहता है तो सबकुछ अच्छा लगता है । शायद यही कारण रहा होगा जो कई दिनो तक फोरम से दूर रहे वो।

Behtreen update...ab kahin me dekhna hai vaibhav ki kitni Saadi hoti hai ..kahin Rupa bhabhi ya Anu me se kisi ko kuch ho na jaye...kyunki guru ji ne 2 Saadi ki bat kahi hai

शुभम भाई की इस कहानी के 💯अपडेट होने पर शुभकामनाएं

घटनाक्रम सकारात्मक बनता जा रहा है

लेकिन नियति को कौन जान पाया है (लेखक के सिवाय:D)

दादा ठाकुर को कुल गुरू ने बिल्कुल सही बात कही। रागिनी की शादी वैभव से जरूर होनी चाहिए थी । यह इस फैमिली के लिए अच्छा होता ही पर खुद रागिनी के लिए इससे बढ़कर और कुछ भी अच्छा नही होता।

वो विधवा है पर बहुत ही कम उम्र की है । एक जवान लड़की को पुरी जीवन वैधव्य बनकर अपना जीवन काटना काफी मुश्किल और पीड़ादायक होता है । वो खुबसूरत है , जवान है और सबसे बड़ी बात कि उसे अपने पहले हसबैंड से कोई मातृत्व सुख प्राप्त नही हुआ है ।
अगर वो किसी बच्चे की मां होती तो कम से कम अपने बच्चे के सहारे अपना जीवन काट लेती।
गुरू जी की बात से मै पुरी तरह सहमत हूं । मै जानता हूं कि रागिनी इस नये रिश्ते को फिलहाल तो स्वीकार नही करेगी । वो वैभव को अपना भाई समान समझती है लेकिन असलियत यह है कि वो अबतक अपने दिवंगत पति की यादों को भुला नही पाई है । और यह यादें उसे ताउम्र दुखद करेगी । यदि वो फिर से अपना घर बसा ले तो समय के साथ धीरे धीरे अपने नये संसार मे रम जायेगी।
लेकिन जैसा कि गुरू जी ने कहा कि वैभव के जीवन मे दो पत्नी का सुख लिखा है । और अगर रागिनी उसकी पत्नी बनी तो फिर दूसरी पत्नी कौन ? क्या रूपा दूसरी पत्नी होगी या फिर अनुराधा ?
काफी दुविधाग्रस्त स्थिति बन गई है वैभव की । कहीं रूपा को कुर्बानी तो नही देनी होगी ? रूपा मुस्कराते हुए बिस्तर पर लेटे हुए जिस पंखे को निहार रही थी , कहीं वह पंखा ही उसके मृत्यु का निमित्त साधन तो नही ? यह सोचकर दिल दहल जा रहा है । 😞
बहुत कठीन सिचुएशन मे आपने इन चारों का जीवन ला खड़ा किया है आपने शुभम भाई ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

ye vachan dene ki baat pe ek film yaad aa gayi jisme ajay aur karishma the ,aur unke baap dushman ,ek amrish puri aur dusra shayad danny ...jo shadi ka vaada karte hai ..( update padhna baaki hai )

lovely update. sugandha ji ka sochna bhi sahi hai ki koi apne beti ka byah aise ladke se kyu karayega jo bigda hua hai aur kisi aur se prem karta hai .
ek nayi baat saamne aa gayi thakur sahab se sugandha ji ke saamne ki vaibhav ki 2 biwiya ho sakti hai .
apni bahu ke liye chinta to hai dono me par abhi faisla lene ka sahi waqt nahi hai jabtak ragini ke mann me kya hai ye pata naa lag jaaye ,,

Bahot jabardast update the dost. I think best update the. Next update ka intajaar rahegaa dost 👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍

lovely update ..bhabi aur vaibhav ke bich ki baate majedar thi aur kahi na kahi vaibhav ke prati ek sachcha sneh dikhayi diya bhabhi ki baato me ..

rupchandr rupa se milne aaya aur unke bich bhi pyar bhari baate huyi ..aaj rupchandr ko apne galti ka ehsas hua hai ki usne rupa ko galat samjha .par uska ye kehna ki wo rupa ke raste ki har badha ko hata dega iska matlab ye to nahi ki wo anuradha ko raste se hata dega 🤔🤔..
rupa sharm se laal ho gayi jab rupchandr ne vaibhav se mulakat karne ki baat kahi .

aisa to mat socho ,,rupa ek best character hai .

Fantastic update
देर सवेर फूलवती और साहूकारों को भी अपने द्वारा किए कुकर्त्य समझ में आ गए । फूलवती को ये भी एहसास हो गया कि उसके ससुर ने जो कहा था वो आज सच हो गया है उनके साथ कोई भी रिश्ता जोड़ने को तैयार नहीं है
रूपा के बारे में गौरी शंकर ने जो कहा है वह एक तरह से सही है जबरदस्ती की शादी में प्यार नही होता है केवल रिश्ता एक बोझ हो जाता है लेकिन वैभव ऐसा नहीं करेगा हमे ये विश्वास है भाभी ने वैभव और अनुराधा की शादी का वादा कर दिया है वैभव और भाभी के बीच हुई वार्तालाप बहुत ही सुंदर और मजेदार था

भई - कहानी फिर से शुरू करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! इस फ़ोरम पर कुछ ही कहानियाँ हैं, जो पढ़ने योग्य हैं (मेरे हिसाब से)। आपकी कहानी उनमें से एक है। इसलिए जब भी ये बंद होती है, खराब लगता है। बुद्धवार से आपने सात अपडेट दिए हैं, वो सब पढ़ लिए। अलग अलग सभी की समीक्षा क्या ही करी जाय! बातें शुभ हो रही हैं, इसलिए शुभ बातें ही चर्चा में होंगी।
वैभव के तो मज़े ही मज़े हो गए हैं! दो दो पत्नियों का योग बन रहा है उसका। यहाँ एक ही शादी की सोच कर मन में ऐसे ऐसे लड्डू फूटने लगते हैं, कि क्या कहें! तो यहाँ भाई की क्या हालत होगी, बयान नहीं की जा सकती।
सभी यही सोच रहे हैं कि कम से कम अनुराधा तो एक पत्नी बनेगी। इस बात पर मुझे महाराज विक्रमादित्य से सम्बंधित, बेताल पचीसी की कहानियाँ याद हो आईं। उसी लॉजिक को लगा कर मैंने सोचा कि वैभव की दो पत्नियाँ कौन हो सकती हैं? न्याय से देखें तो, रूपा ने वैभव की जान बचा कर, उसको एक तरह से जीवन / जीवन दान दिया है, इसलिए वो उसकी माँ समान हुई। ऐसे में उससे शादी संभव नहीं है। है वो बहुत ही अच्छी - किसी अन्य समय में वैभव और रूपा का संग उचित है। लेकिन फिर उन दोनों के परिवारों के इतिहास में खटास है। हाँ, उससे शादी कर के दोनों परिवारों और गाँव में शांति अवश्य आएगी, लेकिन वो एक तरह से राजनीतिक शादी होगी। वैसे भी वैभव उससे प्रेम नहीं करता - वो उसका एहसान मानता है। शादी कर के वो अपने पिता की बात का मान रखना चाहता है, और शायद उसके एहसान का बदला देना चाहता है।
अब आगे बढ़ते हैं। अनुराधा के कारण उसको सन्मार्ग मिला। उसने अपना लम्पट वाला मार्ग छोड़ा, और अच्छा आदमी बनने का प्रयास किया। उसी की ही तरह रागिनी के कारण भी उसको अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ। कुल जमा, जो सही रास्ता दिखाए, वो ही सही और सच्चा साथी है। नीति के हिसाब से उसकी शादी रागिनी और अनुराधा से होनी चाहिए।
बाकी ऊपर संजू भाई ने कुछ बातें लिखी हैं, रागिनी के फ़ेवर में। वो बातें भी इंटरेस्टिंग हैं। वैसे ठकुराईन की बात सही है - रागिनी को घर की बहू के रूप में ही देखना, अपना स्वार्थ तो है!
बहुत ही बढ़िया तरीके से, और बड़ी तेजी से आपने कहानी आगे बढ़ाई है। आनंद आ गया।

अजीत और विभोर दोनो को विदेश भेज दिया है यह ठाकुर साहब के लिए एक तरह से सही फैसला था एक तो दोनो का भविष्य सुधर जायेगा दूसरा वो वहा ज्यादा सुरक्षित रहेंगे वैभव भाभी को अनुराधा से मिलाने ले जा रहा है इस बीच दोनो के बीच जो नोक झोंक हुई वह बहुत ही सुंदर और मजेदार थी
गौरी शंकर ने ठाकुर साहब को अनुराधा और वैभव के प्रेम के बारे मे बता दिया है अब सोचने वाली बात ये है कि ठाकुर साहब क्या फैसला करते हैं

भाभी को अनुराधा की सादगी पसंद आ गई है इसलिए भाभी ने सरोज काकी को अपनी मां और अनुराधा को अपनी छोटी बहन मान लिया है सरोज काकी से हुई वार्तालाप से यह तो बात स्पष्ट हो गई कि रागिनी भाभी एक सभ्य सरल और गुणवान है उनकी बातो से उनकी सादगी झलकती है सरोज काकी को भी वैभव ने रूपा के बारे में बता दिया है और वचन दिया है कि वह अनुराधा से शादी जरूर करेगा अब देखते हैं आगे क्या होता है

बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
कुलगुरु की बाते सच हो रही है वैभव का दो से ज्यादा औरतों से शादी का योग बन रहा है कुलगुरू ने रागिनी के लिए सही कहा है अगर उसकी शादी वैभव के साथ हुई तो रागिनी भी खुश रहेगी और वैभव भी एक अच्छा इंसान बनकर रहेगा ठाकुर साहब ने सुगंधा से रागिनी के मन की बात जानने के लिए कहा है देखते हैं सुगंधा रागिनी को वैभव से शादी के लिए मना पाएगी या नहीं ???

भाभी और वैभव के बीच का वार्तालाप बहुत ही मजेदार था वही दूसरी और रूपचंद्र की भी आंखे खुल चुकी है उसने वैभव और रूपा के रिश्ते को मान लिया है और रूपा को अपने बचपन वाला भाई मिल गया है जो उसे बहुत प्यार करता है रूपा और रूपचंद्र के बीच चटपटी नोक झोंक का जो चित्रण किया है वह बहुत ही शानदार और लाज़वाब है

:congrats: 100 अध्याय होने पर
Thanks all
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
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354
अध्याय - 101
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रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।


अब आगे....


हवेली पहुंचे तो पता चला पिता जी अपने नए मुंशी के साथ कहीं गए हुए हैं। इधर मां भाभी से पूछने लगीं कि उन्हें खेतों में घूमने पर कैसा लगा? जवाब में भाभी ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोल कर जो कुछ उन्हें बताया उसे सुन कर मैं खुद भी मन ही मन चकित रह गया। अगर मां मुझसे पूछतीं तो यकीनन मुझसे जवाब देते ना बनता क्योंकि मैं भाभी को ले कर खेत गया ही नहीं था। ख़ैर मां के साथ साथ बाकी सब भी भाभी का खिला हुआ चेहरा देख कर खुश हो गए थे। मां ने भाभी को अपने कमरे में जा कर आराम करने को कहा तो वो चली गईं। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा क्योंकि मुझे भी अपने कमरे में आराम करना था।

दूसरी तरफ आ कर जब मैं भाभी के पीछे पीछे सीढियां चढ़ने लगा तो भाभी ने सहसा पलट कर मुझसे कहा____"आज तुम्हारी वजह से मुझे मां जी से झूठ बोलना पड़ा। इस बात से मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा है।"

"आपको मां से झूठ बोलने की ज़रूरत ही नहीं थी।" मैंने अधीरता से कहा____"आप मां से सब कुछ सच सच बता देतीं। मां को तो वैसे भी एक दिन इस सच्चाई का पता चलना ही है कि मैं एक मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता हूं।"

"वो तो ठीक है लेकिन सच का पता सही वक्त पर चले तभी बेहतर परिणाम निकलते हैं।" भाभी ने कहा____"यही सोच कर मैंने मां जी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। ख़ैर छोड़ो, जाओ तुम भी आराम करो अब।"

भाभी कहने के साथ ही वापस सीढियां चढ़ने लगीं। जल्दी ही हम दोनों ऊपर आ कर अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। सच कहूं तो आज मैं बड़ा खुश था। सिर्फ इस लिए ही नहीं कि मैंने भाभी को अनुराधा से मिलवाया था बल्कि इस लिए भी कि उन्हें अनुराधा का और मेरा रिश्ता मंज़ूर था और वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचाने में मेरा साथ देने को बोल चुकीं थी।

अपने कमरे में आ कर मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर लुंगी लपेट कर पलंग पर लेट गया। ऊपर मैंने बनियान पहन रखा था। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए आज घटित हुई बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरे बेहद ही नज़दीक कोई खड़ा है। मैंने फ़ौरन ही अपनी आंखें खोल दी। नज़र पलंग के दाईं तरफ बिल्कुल मेरे चेहरे के क़रीब खड़ी नए मुंशी की बेटी कजरी पर पड़ी। वो मेरे चेहरे को बड़े ही गौर से देखने में लगी हुई थी और फिर जैसे ही उसने मुझे पट्ट से आंखें खोलते देखा तो बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही दो क़दम पीछे हट गई। उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए घबराहट के भाव उभरे थे किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर अपने होठों पर मुस्कान सजा ली थी।

"ये क्या हरकत है?" मैं क्योंकि उसकी हरकतों और आदतों से आजिज़ आ गया था इस लिए फ़ौरन ही उठ कर थोड़ा सख़्त भाव से बोल पड़ा____"चोरी छुपे मेरे कमरे में आने का क्या मतलब है?"

"ज...जी?? ह...हमारा मतलब है कि ये आप क्या कह रहे हैं कुंवर जी?" कजरी हड़बड़ाते हुए बोली____"हम तो आपको ये कहने के लिए आपके कमरे में आए थे कि खाना खा लीजिए। नीचे सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

"उसके लिए तुम मुझे दरवाज़े से ही आवाज़ दे कर उठा सकती थी।" मैंने पहले की तरह ही सख़्त भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"चोरी छुपे इस तरह मेरे बिस्तर के इतने क़रीब आ कर क्यों खड़ी थी तुम?"

"अ...आप सो रहे थे न।" कजरी ने अपनी हालत को सम्हालते हुए कहा____"इस लिए हम सोच में पड़ गए थे कि आपको आवाज़ दे कर उठाएं या ना उठाएं? हमने सुना है कि सोते में अगर आपको कोई उठा देता है तो आप नाराज़ हो जाते हैं।"

मैं अच्छी तरह जानता था कि कजरी बहाने बना रही थी। वो खुद को निर्दोष साबित करने पर लगी हुई थी किंतु उसे सबक सिखाने का ये सही वक्त नहीं था इस लिए मैंने भी ज़्यादा उससे बात करना ठीक नहीं समझा। उसे जाने का बोल कर मैं वापस लेट गया। कजरी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक उसके बारे में सोचता रहा और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा। कुछ ही देर में मैं नीचे आ कर सबके साथ खाना खाने लगा। कजरी की वजह से मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया था। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि वो मुझसे क्या चाहती थी किंतु उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि वो किस आग से खेलने की तमन्ना कर बैठी थी।

गुज़रे हुए वक्त में मैं यकीनन एक बुरा इंसान था और लोग मुझे अय्याशियों के लिए जानते थे लेकिन आज के वक्त में मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर था। मैंने अनुराधा को ही नहीं बल्कि अपनी भाभी को भी वचन दिया था कि अब से मैं एक अच्छा इंसान ही बनूंगा। कजरी की हरकतें उसके निम्न दर्जे के चरित्र का प्रमाण दे रहीं थी और ये मेरे लिए सहन करना ज़रा भी मुमकिन नहीं था। मैंने मन ही मन फ़ैसला किया कि उसके बारे में जल्द से जल्द कुछ करना ही होगा। बहरहाल खाना खाने के बाद मैंने अपने कमरे में लगभग एक घंटा आराम किया और फिर मोटर साइकिल ले कर खेतों की तरफ चला गया।

शाम तक मैं खेतों पर ही रहा। भुवन से मैं अक्सर राय परामर्श लेता रहता था और साथ ही पुराने मजदूरों से भी जिसके चलते मैं काफी कुछ सीख गया था और काफी कुछ समझने भी लगा था। इतने समय में मुझे ये समझ आया कि खेती बाड़ी के अलावा भी ज़मीनों पर कोई ऐसी चीज़ उगाई जाए जिससे कम समय में फसल तैयार हो और उसके द्वारा अच्छी खासी आय भी प्राप्त हो सके। ऐसा करने से मजदूरों को भी खाली नहीं बैठना पड़ेगा, क्योंकि खाली बैठने से उनका भी नुकसान होता था। आख़िर उन्हें तो उतनी ही आय प्राप्त होती थी जितने दिन वो मेहनत करते थे। यही सोच कर मैंने ये सब करने का सोचा था। भुवन के साथ साथ कुछ मजदूर लोग भी मेरी इस सोच से सहमत थे और खुश भी हुए थे। अतः मैंने ऐसा ही करने का सोच लिया और अगले ही दिन से कुछ मजदूरों को हमारी कुछ खाली पड़ी ज़मीन को अच्छे से तैयार करने का हुकुम दे दिया। मजदूर लोग दोगुने जोश के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए थे। शाम को मैं वापस हवेली आ गया। आज काफी थक गया था अतः खाना खा कर और फिर अपने कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया।

✮✮✮✮

उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। आज आसमान साफ तो था किन्तु क्षितिज पर से चांद नदारद था। अनगिनत तारे ही अपनी टिमटिमाहट से धरती को रोशन करने की नाकाम कोशिशों में लगे थे। पूरा गांव सन्नाटे के आधीन था। घरों के अंदर लोग गहरी नींद में सोए हुए थे। बिजली हमेशा की तरह गुल थी इस लिए घरों की किसी भी खिड़की में रोशनी नज़र नहीं आ रही थी। पूरे गांव में गहन तो नहीं किंतु नीम अंधेरा ज़रूर विद्यमान था।

इसी नीम अंधेरे में सहसा चंद्रकांत के घर का दरवाज़ा खुला। अंदर छाए गहन अंधेरे से निकल कर बाहर नीम अंधेरे में किसी साए की तरह जो व्यक्ति नज़र आया वो चंद्रकांत था। नीम अंधेरे में उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद कमीज धुंधली सी नज़र आई, अलबत्ता नीचे शायद उसने लुंगी लपेट रखी थी।

दरवाज़े से बाहर आ कर वो एकदम से ठिठक कर इधर उधर देखने लगा और फिर घर के बाएं तरफ चल पड़ा। कुछ ही पलों में वो उस जगह पहुंचा जहां पर कुछ दिन पहले उसने अपने बेटे रघुवीर की खून से लथपथ लाश पड़ी देखी थी। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा उसने क़रीब चार फुट ऊंची बाउंड्री बनवा रखी थी। बाएं तरफ उसी लकड़ी की बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुक गया। कुछ पलों तक उसने नीम अंधेरे में इधर उधर देखा और फिर दोनों हाथों से अपनी लुंगी को जांघों तक उठा कर वो उसी जगह पर बैठता चला गया। कुछ ही पलों में ख़ामोश वातावरण में उसके पेशाब करने की मध्यम आवाज़ गूंजने लगी।

चंद्रकांत पेशाब करने के बाद उठा और अपनी लुंगी को जांघों से नीचे गिरा कर अपनी नंगी टांगों को ढंक लिया। चंद्रकांत को इस जगह पर आते ही अपने बेटे की याद आ जाती थी जिसके चलते वो बेहद दुखी हो जाया करता था। इस वक्त भी उसे अपने बेटे की याद आई तो वो दुखी हो गया। कुछ पलों तक दुखी अवस्था में जाने क्या सोचते हुए वो खड़ा रहा और फिर गहरी सांस ले कर वापस घर के दरवाज़े की तरफ भारी क़दमों से चल पड़ा।

अभी वो कुछ ही क़दम चला था कि सहसा गहन सन्नाटे में उसे किसी आहट का आभास हुआ जिसके चलते वो एकदम से अपनी जगह पर रुक गया। उसकी पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अंजाने भय की वजह से एकदम से रुक गईं सी प्रतीत हुईं। हालाकि जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर होश में ले आया। उसके कान किसी हिरण के जैसे किसी भी आहट को सुनने के लिए मानों खड़े हो गए थे। उसने महसूस किया कि अगले कुछ ही पलों में उसकी धड़कनें किसी हथौड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोंट करने लगीं हैं।

जब कुछ देर तक उसे किसी आहट का आभास न हुआ तो वो इसे अपना वहम समझ कर हौले से आगे बढ़ चला। हालाकि उसके दोनों कान अब भी किसी भी प्रकार की आहट को सुनने के लिए मानों पूरी तरह तैयार थे। अभी वो अपने घर के दरवाज़े के बस थोड़ा ही क़रीब पहुंचा था कि सहसा फिर से आहट हुई और इस बार उसने आहट को साफ सुना। आहट उसके पीछे से आई थी। पलक झपकते ही इस एहसास के चलते उसके तिरपन कांप गए कि इस गहन सन्नाटे और अंधेरे में उसके क़रीब ही कहीं कोई मौजूद है।

बिजली की तरह ज़हन में उसे अपने बेटे के हत्यारे का ख़याल कौंध गया जिसके चलते उसके पूरे जिस्म में मौत की सिहरन सी दौड़ गई। कुछ पलों तक तो उसे समझ में ही न आया कि क्या करे किंतु तभी इस एहसास ने उसके जबड़े सख़्त कर दिए कि उसके बेटे का हत्यारा उसके आस पास ही मौजूद है। ये उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका है अपने बेटे के हत्यारे से बदला लेने का। वो भी उस हरामजादे को वैसी ही मौत देगा जैसे उसने उसके बेटे को दी थी, बल्कि उससे भी ज़्यादा बद्तर मौत देगा वो उसे।

अगले कुछ ही पलों में बदले की भावना के चलते चंद्रकांत के अंदर आक्रोश, गुस्सा और नफ़रत ने अपना प्रबल रूप धारण कर लिया। अगले ही पल वो एक झटके से पलटा और उस दिशा की तरफ मुट्ठियां भींचे देखने लगा जिस तरफ से उसे आहट सुनाई दी थी। उससे कुछ ही क़दम की दूरी पर लकड़ी की बाउंड्री थी जो उसे धुंधली सी नज़र आ रही थी। चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर तेज़ी से आगे बढ़ चला। बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुका और आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा किंतु एक तो उमर का तकाज़ा दूसरे नीम अंधेरा जिसके चलते उसे कोई नज़र न आया। चंद्रकांत सख़्त भाव लिए और मुट्ठियां भींचे चारो तरफ देखने लगा। सहसा तभी एक जगह पर उसकी निगाह ठहर गई। बाउंड्री के बीच लकड़ी के दरवाज़े के बगल में उसे कोई आकृति खड़ी हुई नज़र आई। उसने आंखें सिकोड़ कर उस आकृति को पहचानने की कोशिश की किंतु पहचान न सका।

चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर एक झटके में उस आकृति की तरफ बढ़ चला। बदले की प्रबल भावना में डूबे चंद्रकांत को ये तक ख़याल नहीं रहा था कि इस वक्त वो निहत्था है और अगर सच में यहां पर उसके बेटे का हत्यारा मौजूद है तो वो निहत्था कैसे उसका सामना कर सकेगा? ख़ैर जल्दी ही वो उस आकृति के क़रीब पहुंच गया। क़रीब पहुंचने पर उसे नीम अंधेरे में साफ दिखा कि वो आकृति असल में किसी इंसानी साए की थी।

एक ऐसे साए की जिसके जिस्म का कोई भी अंग नज़र नहीं आ रहा था बल्कि उसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। सिर से ले कर पांव तक वो सफ़ेद लिबास में खुद को छुपाए हुए था। उसके दोनों हाथ चंद्रकांत को नज़र ना आए। शायद उसने उन्हें अपने पीछे छुपा रखा था। उस सफ़ेद लिबास में छुपे साए को देख चंद्रकांत पलक झपकते ही बुत बन गया। समूचे जिस्म में डर की वजह से मौत की सिहरन दौड़ गई।

सहसा उसके ज़हन में एक ज़ोरदार धमाका सा हुआ। बिजली की तरह उसके ज़हन में पंचायत के दिन दादा ठाकुर द्वारा पूछी गई बात गूंज उठी। दादा ठाकुर ने उससे ही नहीं बल्कि गौरी शंकर से भी पूछा था कि क्या वो किसी सफ़ेदपोश को जानते हैं अथवा क्या उनका संबंध सफ़ेदपोश से है? उस दिन दादा ठाकुर के इन सवालों का जवाब ना गौरी शंकर के पास था और ना ही खुद उसके पास। दोनों ने सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी।

'तो क्या यही है वो सफ़ेदपोश?' गहन सोचों में डूब गए चंद्रकांत के ज़हन में ये सवाल उभरा____'क्या यही वो सफ़ेदपोश है जिसने दादा ठाकुर के अनुसार उनके बेटे वैभव को कई बार जान से मारने की कोशिश की थी?'

चंद्रकांत आश्चर्यजनक रूप से ख़ामोश हो गया था और जाने क्या क्या सोचे जा रहा था। उसे ये तक ख़याल नहीं रह गया था कि कुछ देर पहले वो किस तरह की भावना में डूबा हुआ उस आकृति की तरफ बढ़ा था। अचानक चंद्रकांत के मन में ख़याल उभरा कि क्या इस सफ़ेदपोश ने मेरे बेटे की हत्या की होगी? अगर हां तो क्यों? अगले ही पल उसने सोचा____'किन्तु इससे तो मेरी अथवा मेरे बेटे की कोई दुश्मनी ही नहीं थी। फिर भला ये क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा? बल्कि इसकी दुश्मनी तो दादा ठाकुर के बेटे वैभव से है। यकीनन वैभव ने इसकी भी बहन बेटी अथवा बीवी के साथ बलात्कार कर के इसके ऊपर अत्याचार किया होगा। तभी तो इसने कई बार वैभव को जान से मार देना चाहा था। वो तो उस हरामजादे की किस्मत ही अच्छी थी जो वो हर बार इससे बच गया था मगर कब तक बचेगा आख़िर?'

"लगता है मुझे अपने इतने क़रीब देख कर तू किसी और ही दुनिया में पहुंच गया है।" तभी सहसा सन्नाटे में सामने मौजूद सफ़ेदपोश की अजीब सी किन्तु धीमी आवाज़ गूंजी जिससे चंद्रकांत पलक झपकते ही सोचों के भंवर से बाहर आ गया। उसने हड़बड़ा कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा।

"क...क...कौन हो तुम???" चंद्रकांत उसको पहचानते हुए भी मारे हड़बड़ाहट के पूछ बैठा____"और यहां किस लिए आए हो?"

"इस गांव की बड़ी बड़ी हस्तियां मुझे सफ़ेदपोश के नाम से जानती हैं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"और हां तू भी जानता है मुझे। मेरे सामने अंजान बनने की तेरी ये कोशिश बेकार है चंद्रकांत। रही बात मेरे यहां आने की तो ये समझ ले कि मौत नाम की बला कभी भी कहीं भी आ जा सकती है।"

सफ़ेदपोश की आवाज़ में और उसकी बातों में जाने ऐसा क्या था कि सुन कर चंद्रकांत के समूचे जिस्म में सर्द लहर दौड़ गई। उसने अपनी टांगें कांपती हुई महसूस की। चेहरा पलक झपकते ही पसीना छोड़ने लगा। उसके हलक से कोई आवाज़ न निकल सकी। सूख गए गले को उसने ज़बरदस्ती तर करने की कोशिश की और फिर पलक झपकते ही ख़राब हो गई अपनी हालत को काबू करने की कोशिश में लग गया।

"ल...लेकिन यहां क्यों आए हो तुम?" फिर उसने बड़ी मुश्किल से सफ़ेदपोश से पूछा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सफ़ेदपोश उसके घर के बाहर क्यों आ गया था और अगर उससे ही मिलने आया था तो आख़िर वो क्या चाहता था उससे?

"लगता है अपने बेटे की मौत का ग़म बड़ा जल्दी भूल गया है तू।" सफ़ेदपोश ने ठंडे स्वर में कहा____"क्या तेरी रगों में दौड़ता हुआ लहू सच में पानी हो गया है चंद्रकांत?"

"न...नहीं तो।" चंद्रकांत अजीब भाव से बोल पड़ा____"कुछ भी नहीं भूला हूं मैं। अपने बेटे के हत्यारे को पाताल से भी खोज निकालूंगा और अपने बेटे की हत्या करने की उसे अपने हाथों से सज़ा दूंगा।"

"बहुत खूब।" सफ़ेदपोश अपनी अजीब सी आवाज़ में कह उठा____"बदला लेने के लिए सीने में कुछ ऐसी ही आग होनी चाहिए। वैसे क्या लगता है तुझे, तू या कोई भी तेरे बेटे के हत्यारे का पता लगा सकेगा?"

"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत बुरी तरह चकरा गया, फिर जल्दी ही सम्हल कर बोला____"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"

"वो इस लिए क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू क्या किसी के बाप के फ़रिश्ते भी उस शख़्स का पता नहीं लगा सकते जिसने तेरे बेटे की हत्या की है।" सफ़ेदपोश ने बड़े अजीब भाव से किंतु अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मैं....मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे। इसी वक्त तुझे बता सकता हूं कि तेरे बेटे का हत्यारा कौन है?"

"क....क्या????" चंद्रकांत बुरी तरह उछल पड़ा____"म...मेरा मतलब है कि क्या तुम सच कह रहे हो? क्या सच में तुम इसी वक्त मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता सकते हो?"

"बेशक।" सफ़ेदपोश ने कहा____"मैं सब कुछ बता सकता हूं क्योंकि मैं फरिश्तों से भी ऊपर की चीज़ हूं। जो कोई नहीं कर सकता वो मैं कर सकता हूं।"

चंद्रकांत किसी बेजान पुतले की तरह आश्चर्य से आंखें फाड़े सफ़ेदपोश की धुंधली सी आकृति को देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में विस्फोट सा हुआ तो जैसे उसे होश आया। उसने अपने ज़हन को झटक कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा। लकड़ी की बाउंड्री के उस पार वो सफ़ेद किंतु धुंधली सी आकृति के रूप ने नज़र आ रहा था। चंद्रकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो सचमुच फ़रिश्तों से ऊपर की ही चीज़ है।

"म...मुझे बताओ।" चंद्रकांत एकदम से व्याकुल और पगलाए हुए अंदाज़ में बोल पड़ा____"मुझे जल्दी से बताओ कि वो हत्यारा कौन है जिसने मेरे इकलौते बेटे की हत्या कर के मेरे वंश का नाश कर दिया है? भगवान के लिए जल्दी से उस हत्यारे का नाम बता दो मुझे। मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं। बस एक बार उसका नाम बता दो, बदले में तुम मुझसे जो मांगोगे मैं बिना सोचे समझे तुम्हें दे दूंगा।"

"बदले में क्या कर सकता है तू मेरे लिए?" सामने खड़े सफ़ेदपोश ने कुछ पलों तक सोचने के बाद सर्द लहजे में उससे पूछा।

"जो भी तुम कहोगे...मैं करूंगा।" चंद्रकांत ने झट से कहा____"बस तुम मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का नाम बता दो।"

"जिस तरह तू अपने बेटे के हत्यारे का नाम जानने के लिए मरा जा रहा है, सोच रहा हूं पहले तुझे उस हत्यारे का नाम ही बता दूं।" सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"लेकिन ये भी सोचता हूं कि अगर मैंने तुझे उसका नाम बता दिया और बाद में तू मेरे लिए कुछ भी करने से मुकर गया तो...??"

"नहीं नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा।" चंद्रकांत ने हड़बड़ाते हुए झट से कहा____"मैं अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा कर कहता हूं कि बाद में मैं किसी भी बात से नहीं मुकरूंगा। बल्कि वही करूंगा जो करने को तुम कहोगे।"

"ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि मैं किसी से अपना काम करवाने से पहले सामने वाले पर भरोसा कर के खुद उसका भला करने जा रहा हूं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"मैं अभी इसी वक्त तुझे तेरे बेटे के हत्यारे का नाम बताए देता हूं किंतु एक बात तू अच्छी तरह समझ ले। अगर बाद में तू अपने वादे से मुकर कर मेरा कोई काम नहीं किया तो ये तेरे और तेरे परिवार के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"म...मेरा यकीन करो।" चंद्रकांत ने पूरी दृढ़ता से कहा____"मैं सच में वही करूंगा जो तुम कहोगे। अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा चुका हूं मैं। क्या इतने पर भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?"

"यकीन हो गया है तुझ पर तभी तो तुझसे अपना काम करवाने से पहले मैंने तेरा भला करने का सोच लिया है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"लेकिन तुझे आगाह इस लिए किया है कि अगर तू बाद में अपने वादे से मुकर गया तो फिर अपने और अपने परिवार के बुरे अंजाम का ज़िम्मेदार तू ख़ुद ही होगा।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को अपना कान उसके क़रीब लाने को कहा तो चंद्रकांत पहले तो चौंका, फिर अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आगे बढ़ा। उसने अपना एक कान सफ़ेदपोश की तरफ बढ़ाया तो सफ़ेदपोश आगे बढ़ कर उसके कान में काफी देर तक जाने क्या कहता रहा।

"उम्मीद है कि अब तू उस हत्यारे से अपने बेटे की हत्या का बदला ले कर अपने दिल की आग को ठंडा कर लेगा।" सफ़ेदपोश ने उसके कान से सफ़ेद नक़ाब में छुपा अपना मुंह हटा कर कहा____"और हां, तेरे पास समय बिल्कुल ही कम है। मैं कल रात किसी भी वक्त यहां पर आ सकता हूं और फिर तुझे अपना काम करने का हुकुम दे सकता हूं। अपना वादा तोड़ कर मेरा काम न करने की सूरत में क्या होगा इस बात को भूलना मत।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने इधर उधर अपनी निगाह घुमाई और फिर पलट कर हवा के झोंके की तरह कुछ ही पलों में अंधेरे में ग़ायब हो गया। उसके ग़ायब होते ही चंद्रकांत को जैसे होश आया। अगले कुछ ही पलों में उसके अंदर एक ऐसी आग सुलग उठी जिससे उसके जबड़े कस गए और मुट्ठियां भिंच गईं। दिलो दिमाग़ में मचल उठी आंधी को लिए वो पलटा और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ता चला गया।

✮✮✮✮

सफ़ेदपोश अंधेरे में भी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला जा रहा था। कुछ ही दूरी पर आसमान से थोड़ा नीचे धुंधली सी आकृति के रूप में उसे पेड़ पौधे दिखने लगे थे। उसकी रफ़्तार और भी तेज़ हो गई। ज़ाहिर है वो अपनी मंजिल पर पहुंचने में देर नहीं करना चाहता था। ज़मीन पर तेज़ तेज़ पड़ते उसके क़दमों से ख़ामोश वातावरण में अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रहीं थी। कुछ ही देर में उसे धुंधले नज़र आने वाले पेड़ पौधे थोड़ा स्पष्ट से नज़र आने लगे। तेज़ चलने की वजह से उसकी सांसें भारी हो गईं थी।

अभी वो उन पेड़ पौधों से थोड़ा इधर ही था कि तभी वो चौंका और साथ ही ठिठक भी गया। अपनी एड़ी पर फिरकिनी की मानिंद घूम कर उसने एक तरफ निगाह डाली तो नीम अंधेरे में उसे हिलते डुलते कुछ साए नज़र आए। ये देख वो फ़ौरन ही वापस घूमा और लगभग दौड़ते हुए उन पेड़ पौधों की तरफ भाग चला। उसने भागते हुए ही पलट कर देखा कि हिलते डुलते नज़र आने वाले वो साए भी बड़ी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ लगा चुके थे। सफ़ेदपोश जल्द ही पेड़ पौधों के पास पहुंच गया। यहां कई सारे पेड़ पौधे थे। ऐसा लगता था जैसे ये कोई बगीचा था। सफ़ेदपोश तेज़ी से ढेर सारे पेड़ पौधों के बीच घुसता चला गया। यहां की ज़मीन पर शायद पेड़ों के सूखे पत्ते मौजूद थे जिसकी वजह से सफ़ेदपोश द्वारा तेज़ तेज़ चलने से फर्र फर्र की आवाज़ें पैदा होने लगीं थी जो फिज़ा में छाए सन्नाटे में अजीब सा भय पैदा करने लगीं थी।

सफ़ेदपोश बगीचे के अंदर अभी कुछ ही दूर चला था कि तभी एक तरफ से कोई ज़ोर से चिल्लाया। कदाचित सूखे पत्तों से पैदा होने वाली आवाज़ों को सुन कर ही कोई चिल्लाया था और बोला था____"कौन है उधर?"

इस आवाज़ को सुन कर सफ़ेदपोश बुरी तरह हड़बड़ा गया। यकीनन वो घबरा भी गया होगा किंतु वो रुका नहीं बल्कि और भी तेज़ी से आगे की तरफ भागने लगा। तभी फिर से कोई ज़ोर से चिल्लाते हुए पुकारा। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि पुकारने वाला उसके पीछे ही भागता हुआ आने लगा है तो वो झटके से रुक गया। अपने एक हाथ को उसने सफ़ेद लबादे में कहीं घुसाया। कुछ ही पलों में उसका वो हाथ उसके लबादे से बाहर आ गया। अपनी जगह पर खड़े खड़े ही वो आहिस्ता से पलटा और अपने उस हाथ को हवा में उठा दिया। अगले ही पल ख़ामोश वातावरण में धांय की बड़ी तेज़ आवाज़ गूंज उठी। ऐसा लगा जैसे सन्नाटे में कोई धमाका हो गया हो। सफ़ेदपोश के हाथ में शायद रिवॉल्वर था जिससे उसने गोली चलाई थी। गोली चलते ही किसी की ज़ोरदार चीख़ फिज़ा में गूंज उठी और साथ ही सूखे पत्तों पर किसी के भरभरा कर गिरने की आवाज़ भी हुई।

सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।




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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 101
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रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।


अब आगे....


हवेली पहुंचे तो पता चला पिता जी अपने नए मुंशी के साथ कहीं गए हुए हैं। इधर मां भाभी से पूछने लगीं कि उन्हें खेतों में घूमने पर कैसा लगा? जवाब में भाभी ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोल कर जो कुछ उन्हें बताया उसे सुन कर मैं खुद भी मन ही मन चकित रह गया। अगर मां मुझसे पूछतीं तो यकीनन मुझसे जवाब देते ना बनता क्योंकि मैं भाभी को ले कर खेत गया ही नहीं था। ख़ैर मां के साथ साथ बाकी सब भी भाभी का खिला हुआ चेहरा देख कर खुश हो गए थे। मां ने भाभी को अपने कमरे में जा कर आराम करने को कहा तो वो चली गईं। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा क्योंकि मुझे भी अपने कमरे में आराम करना था।

दूसरी तरफ आ कर जब मैं भाभी के पीछे पीछे सीढियां चढ़ने लगा तो भाभी ने सहसा पलट कर मुझसे कहा____"आज तुम्हारी वजह से मुझे मां जी से झूठ बोलना पड़ा। इस बात से मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा है।"

"आपको मां से झूठ बोलने की ज़रूरत ही नहीं थी।" मैंने अधीरता से कहा____"आप मां से सब कुछ सच सच बता देतीं। मां को तो वैसे भी एक दिन इस सच्चाई का पता चलना ही है कि मैं एक मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता हूं।"

"वो तो ठीक है लेकिन सच का पता सही वक्त पर चले तभी बेहतर परिणाम निकलते हैं।" भाभी ने कहा____"यही सोच कर मैंने मां जी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। ख़ैर छोड़ो, जाओ तुम भी आराम करो अब।"

भाभी कहने के साथ ही वापस सीढियां चढ़ने लगीं। जल्दी ही हम दोनों ऊपर आ कर अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। सच कहूं तो आज मैं बड़ा खुश था। सिर्फ इस लिए ही नहीं कि मैंने भाभी को अनुराधा से मिलवाया था बल्कि इस लिए भी कि उन्हें अनुराधा का और मेरा रिश्ता मंज़ूर था और वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचाने में मेरा साथ देने को बोल चुकीं थी।

अपने कमरे में आ कर मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर लुंगी लपेट कर पलंग पर लेट गया। ऊपर मैंने बनियान पहन रखा था। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए आज घटित हुई बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरे बेहद ही नज़दीक कोई खड़ा है। मैंने फ़ौरन ही अपनी आंखें खोल दी। नज़र पलंग के दाईं तरफ बिल्कुल मेरे चेहरे के क़रीब खड़ी नए मुंशी की बेटी कजरी पर पड़ी। वो मेरे चेहरे को बड़े ही गौर से देखने में लगी हुई थी और फिर जैसे ही उसने मुझे पट्ट से आंखें खोलते देखा तो बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही दो क़दम पीछे हट गई। उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए घबराहट के भाव उभरे थे किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर अपने होठों पर मुस्कान सजा ली थी।

"ये क्या हरकत है?" मैं क्योंकि उसकी हरकतों और आदतों से आजिज़ आ गया था इस लिए फ़ौरन ही उठ कर थोड़ा सख़्त भाव से बोल पड़ा____"चोरी छुपे मेरे कमरे में आने का क्या मतलब है?"

"ज...जी?? ह...हमारा मतलब है कि ये आप क्या कह रहे हैं कुंवर जी?" कजरी हड़बड़ाते हुए बोली____"हम तो आपको ये कहने के लिए आपके कमरे में आए थे कि खाना खा लीजिए। नीचे सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

"उसके लिए तुम मुझे दरवाज़े से ही आवाज़ दे कर उठा सकती थी।" मैंने पहले की तरह ही सख़्त भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"चोरी छुपे इस तरह मेरे बिस्तर के इतने क़रीब आ कर क्यों खड़ी थी तुम?"

"अ...आप सो रहे थे न।" कजरी ने अपनी हालत को सम्हालते हुए कहा____"इस लिए हम सोच में पड़ गए थे कि आपको आवाज़ दे कर उठाएं या ना उठाएं? हमने सुना है कि सोते में अगर आपको कोई उठा देता है तो आप नाराज़ हो जाते हैं।"

मैं अच्छी तरह जानता था कि कजरी बहाने बना रही थी। वो खुद को निर्दोष साबित करने पर लगी हुई थी किंतु उसे सबक सिखाने का ये सही वक्त नहीं था इस लिए मैंने भी ज़्यादा उससे बात करना ठीक नहीं समझा। उसे जाने का बोल कर मैं वापस लेट गया। कजरी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक उसके बारे में सोचता रहा और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा। कुछ ही देर में मैं नीचे आ कर सबके साथ खाना खाने लगा। कजरी की वजह से मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया था। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि वो मुझसे क्या चाहती थी किंतु उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि वो किस आग से खेलने की तमन्ना कर बैठी थी।

गुज़रे हुए वक्त में मैं यकीनन एक बुरा इंसान था और लोग मुझे अय्याशियों के लिए जानते थे लेकिन आज के वक्त में मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर था। मैंने अनुराधा को ही नहीं बल्कि अपनी भाभी को भी वचन दिया था कि अब से मैं एक अच्छा इंसान ही बनूंगा। कजरी की हरकतें उसके निम्न दर्जे के चरित्र का प्रमाण दे रहीं थी और ये मेरे लिए सहन करना ज़रा भी मुमकिन नहीं था। मैंने मन ही मन फ़ैसला किया कि उसके बारे में जल्द से जल्द कुछ करना ही होगा। बहरहाल खाना खाने के बाद मैंने अपने कमरे में लगभग एक घंटा आराम किया और फिर मोटर साइकिल ले कर खेतों की तरफ चला गया।

शाम तक मैं खेतों पर ही रहा। भुवन से मैं अक्सर राय परामर्श लेता रहता था और साथ ही पुराने मजदूरों से भी जिसके चलते मैं काफी कुछ सीख गया था और काफी कुछ समझने भी लगा था। इतने समय में मुझे ये समझ आया कि खेती बाड़ी के अलावा भी ज़मीनों पर कोई ऐसी चीज़ उगाई जाए जिससे कम समय में फसल तैयार हो और उसके द्वारा अच्छी खासी आय भी प्राप्त हो सके। ऐसा करने से मजदूरों को भी खाली नहीं बैठना पड़ेगा, क्योंकि खाली बैठने से उनका भी नुकसान होता था। आख़िर उन्हें तो उतनी ही आय प्राप्त होती थी जितने दिन वो मेहनत करते थे। यही सोच कर मैंने ये सब करने का सोचा था। भुवन के साथ साथ कुछ मजदूर लोग भी मेरी इस सोच से सहमत थे और खुश भी हुए थे। अतः मैंने ऐसा ही करने का सोच लिया और अगले ही दिन से कुछ मजदूरों को हमारी कुछ खाली पड़ी ज़मीन को अच्छे से तैयार करने का हुकुम दे दिया। मजदूर लोग दोगुने जोश के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए थे। शाम को मैं वापस हवेली आ गया। आज काफी थक गया था अतः खाना खा कर और फिर अपने कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया।

✮✮✮✮

उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। आज आसमान साफ तो था किन्तु क्षितिज पर से चांद नदारद था। अनगिनत तारे ही अपनी टिमटिमाहट से धरती को रोशन करने की नाकाम कोशिशों में लगे थे। पूरा गांव सन्नाटे के आधीन था। घरों के अंदर लोग गहरी नींद में सोए हुए थे। बिजली हमेशा की तरह गुल थी इस लिए घरों की किसी भी खिड़की में रोशनी नज़र नहीं आ रही थी। पूरे गांव में गहन तो नहीं किंतु नीम अंधेरा ज़रूर विद्यमान था।

इसी नीम अंधेरे में सहसा चंद्रकांत के घर का दरवाज़ा खुला। अंदर छाए गहन अंधेरे से निकल कर बाहर नीम अंधेरे में किसी साए की तरह जो व्यक्ति नज़र आया वो चंद्रकांत था। नीम अंधेरे में उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद कमीज धुंधली सी नज़र आई, अलबत्ता नीचे शायद उसने लुंगी लपेट रखी थी।

दरवाज़े से बाहर आ कर वो एकदम से ठिठक कर इधर उधर देखने लगा और फिर घर के बाएं तरफ चल पड़ा। कुछ ही पलों में वो उस जगह पहुंचा जहां पर कुछ दिन पहले उसने अपने बेटे रघुवीर की खून से लथपथ लाश पड़ी देखी थी। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा उसने क़रीब चार फुट ऊंची बाउंड्री बनवा रखी थी। बाएं तरफ उसी लकड़ी की बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुक गया। कुछ पलों तक उसने नीम अंधेरे में इधर उधर देखा और फिर दोनों हाथों से अपनी लुंगी को जांघों तक उठा कर वो उसी जगह पर बैठता चला गया। कुछ ही पलों में ख़ामोश वातावरण में उसके पेशाब करने की मध्यम आवाज़ गूंजने लगी।

चंद्रकांत पेशाब करने के बाद उठा और अपनी लुंगी को जांघों से नीचे गिरा कर अपनी नंगी टांगों को ढंक लिया। चंद्रकांत को इस जगह पर आते ही अपने बेटे की याद आ जाती थी जिसके चलते वो बेहद दुखी हो जाया करता था। इस वक्त भी उसे अपने बेटे की याद आई तो वो दुखी हो गया। कुछ पलों तक दुखी अवस्था में जाने क्या सोचते हुए वो खड़ा रहा और फिर गहरी सांस ले कर वापस घर के दरवाज़े की तरफ भारी क़दमों से चल पड़ा।

अभी वो कुछ ही क़दम चला था कि सहसा गहन सन्नाटे में उसे किसी आहट का आभास हुआ जिसके चलते वो एकदम से अपनी जगह पर रुक गया। उसकी पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अंजाने भय की वजह से एकदम से रुक गईं सी प्रतीत हुईं। हालाकि जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर होश में ले आया। उसके कान किसी हिरण के जैसे किसी भी आहट को सुनने के लिए मानों खड़े हो गए थे। उसने महसूस किया कि अगले कुछ ही पलों में उसकी धड़कनें किसी हथौड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोंट करने लगीं हैं।

जब कुछ देर तक उसे किसी आहट का आभास न हुआ तो वो इसे अपना वहम समझ कर हौले से आगे बढ़ चला। हालाकि उसके दोनों कान अब भी किसी भी प्रकार की आहट को सुनने के लिए मानों पूरी तरह तैयार थे। अभी वो अपने घर के दरवाज़े के बस थोड़ा ही क़रीब पहुंचा था कि सहसा फिर से आहट हुई और इस बार उसने आहट को साफ सुना। आहट उसके पीछे से आई थी। पलक झपकते ही इस एहसास के चलते उसके तिरपन कांप गए कि इस गहन सन्नाटे और अंधेरे में उसके क़रीब ही कहीं कोई मौजूद है।

बिजली की तरह ज़हन में उसे अपने बेटे के हत्यारे का ख़याल कौंध गया जिसके चलते उसके पूरे जिस्म में मौत की सिहरन सी दौड़ गई। कुछ पलों तक तो उसे समझ में ही न आया कि क्या करे किंतु तभी इस एहसास ने उसके जबड़े सख़्त कर दिए कि उसके बेटे का हत्यारा उसके आस पास ही मौजूद है। ये उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका है अपने बेटे के हत्यारे से बदला लेने का। वो भी उस हरामजादे को वैसी ही मौत देगा जैसे उसने उसके बेटे को दी थी, बल्कि उससे भी ज़्यादा बद्तर मौत देगा वो उसे।

अगले कुछ ही पलों में बदले की भावना के चलते चंद्रकांत के अंदर आक्रोश, गुस्सा और नफ़रत ने अपना प्रबल रूप धारण कर लिया। अगले ही पल वो एक झटके से पलटा और उस दिशा की तरफ मुट्ठियां भींचे देखने लगा जिस तरफ से उसे आहट सुनाई दी थी। उससे कुछ ही क़दम की दूरी पर लकड़ी की बाउंड्री थी जो उसे धुंधली सी नज़र आ रही थी। चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर तेज़ी से आगे बढ़ चला। बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुका और आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा किंतु एक तो उमर का तकाज़ा दूसरे नीम अंधेरा जिसके चलते उसे कोई नज़र न आया। चंद्रकांत सख़्त भाव लिए और मुट्ठियां भींचे चारो तरफ देखने लगा। सहसा तभी एक जगह पर उसकी निगाह ठहर गई। बाउंड्री के बीच लकड़ी के दरवाज़े के बगल में उसे कोई आकृति खड़ी हुई नज़र आई। उसने आंखें सिकोड़ कर उस आकृति को पहचानने की कोशिश की किंतु पहचान न सका।

चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर एक झटके में उस आकृति की तरफ बढ़ चला। बदले की प्रबल भावना में डूबे चंद्रकांत को ये तक ख़याल नहीं रहा था कि इस वक्त वो निहत्था है और अगर सच में यहां पर उसके बेटे का हत्यारा मौजूद है तो वो निहत्था कैसे उसका सामना कर सकेगा? ख़ैर जल्दी ही वो उस आकृति के क़रीब पहुंच गया। क़रीब पहुंचने पर उसे नीम अंधेरे में साफ दिखा कि वो आकृति असल में किसी इंसानी साए की थी।

एक ऐसे साए की जिसके जिस्म का कोई भी अंग नज़र नहीं आ रहा था बल्कि उसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। सिर से ले कर पांव तक वो सफ़ेद लिबास में खुद को छुपाए हुए था। उसके दोनों हाथ चंद्रकांत को नज़र ना आए। शायद उसने उन्हें अपने पीछे छुपा रखा था। उस सफ़ेद लिबास में छुपे साए को देख चंद्रकांत पलक झपकते ही बुत बन गया। समूचे जिस्म में डर की वजह से मौत की सिहरन दौड़ गई।

सहसा उसके ज़हन में एक ज़ोरदार धमाका सा हुआ। बिजली की तरह उसके ज़हन में पंचायत के दिन दादा ठाकुर द्वारा पूछी गई बात गूंज उठी। दादा ठाकुर ने उससे ही नहीं बल्कि गौरी शंकर से भी पूछा था कि क्या वो किसी सफ़ेदपोश को जानते हैं अथवा क्या उनका संबंध सफ़ेदपोश से है? उस दिन दादा ठाकुर के इन सवालों का जवाब ना गौरी शंकर के पास था और ना ही खुद उसके पास। दोनों ने सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी।

'तो क्या यही है वो सफ़ेदपोश?' गहन सोचों में डूब गए चंद्रकांत के ज़हन में ये सवाल उभरा____'क्या यही वो सफ़ेदपोश है जिसने दादा ठाकुर के अनुसार उनके बेटे वैभव को कई बार जान से मारने की कोशिश की थी?'

चंद्रकांत आश्चर्यजनक रूप से ख़ामोश हो गया था और जाने क्या क्या सोचे जा रहा था। उसे ये तक ख़याल नहीं रह गया था कि कुछ देर पहले वो किस तरह की भावना में डूबा हुआ उस आकृति की तरफ बढ़ा था। अचानक चंद्रकांत के मन में ख़याल उभरा कि क्या इस सफ़ेदपोश ने मेरे बेटे की हत्या की होगी? अगर हां तो क्यों? अगले ही पल उसने सोचा____'किन्तु इससे तो मेरी अथवा मेरे बेटे की कोई दुश्मनी ही नहीं थी। फिर भला ये क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा? बल्कि इसकी दुश्मनी तो दादा ठाकुर के बेटे वैभव से है। यकीनन वैभव ने इसकी भी बहन बेटी अथवा बीवी के साथ बलात्कार कर के इसके ऊपर अत्याचार किया होगा। तभी तो इसने कई बार वैभव को जान से मार देना चाहा था। वो तो उस हरामजादे की किस्मत ही अच्छी थी जो वो हर बार इससे बच गया था मगर कब तक बचेगा आख़िर?'

"लगता है मुझे अपने इतने क़रीब देख कर तू किसी और ही दुनिया में पहुंच गया है।" तभी सहसा सन्नाटे में सामने मौजूद सफ़ेदपोश की अजीब सी किन्तु धीमी आवाज़ गूंजी जिससे चंद्रकांत पलक झपकते ही सोचों के भंवर से बाहर आ गया। उसने हड़बड़ा कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा।

"क...क...कौन हो तुम???" चंद्रकांत उसको पहचानते हुए भी मारे हड़बड़ाहट के पूछ बैठा____"और यहां किस लिए आए हो?"

"इस गांव की बड़ी बड़ी हस्तियां मुझे सफ़ेदपोश के नाम से जानती हैं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"और हां तू भी जानता है मुझे। मेरे सामने अंजान बनने की तेरी ये कोशिश बेकार है चंद्रकांत। रही बात मेरे यहां आने की तो ये समझ ले कि मौत नाम की बला कभी भी कहीं भी आ जा सकती है।"

सफ़ेदपोश की आवाज़ में और उसकी बातों में जाने ऐसा क्या था कि सुन कर चंद्रकांत के समूचे जिस्म में सर्द लहर दौड़ गई। उसने अपनी टांगें कांपती हुई महसूस की। चेहरा पलक झपकते ही पसीना छोड़ने लगा। उसके हलक से कोई आवाज़ न निकल सकी। सूख गए गले को उसने ज़बरदस्ती तर करने की कोशिश की और फिर पलक झपकते ही ख़राब हो गई अपनी हालत को काबू करने की कोशिश में लग गया।

"ल...लेकिन यहां क्यों आए हो तुम?" फिर उसने बड़ी मुश्किल से सफ़ेदपोश से पूछा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सफ़ेदपोश उसके घर के बाहर क्यों आ गया था और अगर उससे ही मिलने आया था तो आख़िर वो क्या चाहता था उससे?

"लगता है अपने बेटे की मौत का ग़म बड़ा जल्दी भूल गया है तू।" सफ़ेदपोश ने ठंडे स्वर में कहा____"क्या तेरी रगों में दौड़ता हुआ लहू सच में पानी हो गया है चंद्रकांत?"

"न...नहीं तो।" चंद्रकांत अजीब भाव से बोल पड़ा____"कुछ भी नहीं भूला हूं मैं। अपने बेटे के हत्यारे को पाताल से भी खोज निकालूंगा और अपने बेटे की हत्या करने की उसे अपने हाथों से सज़ा दूंगा।"

"बहुत खूब।" सफ़ेदपोश अपनी अजीब सी आवाज़ में कह उठा____"बदला लेने के लिए सीने में कुछ ऐसी ही आग होनी चाहिए। वैसे क्या लगता है तुझे, तू या कोई भी तेरे बेटे के हत्यारे का पता लगा सकेगा?"

"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत बुरी तरह चकरा गया, फिर जल्दी ही सम्हल कर बोला____"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"

"वो इस लिए क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू क्या किसी के बाप के फ़रिश्ते भी उस शख़्स का पता नहीं लगा सकते जिसने तेरे बेटे की हत्या की है।" सफ़ेदपोश ने बड़े अजीब भाव से किंतु अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मैं....मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे। इसी वक्त तुझे बता सकता हूं कि तेरे बेटे का हत्यारा कौन है?"

"क....क्या????" चंद्रकांत बुरी तरह उछल पड़ा____"म...मेरा मतलब है कि क्या तुम सच कह रहे हो? क्या सच में तुम इसी वक्त मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता सकते हो?"

"बेशक।" सफ़ेदपोश ने कहा____"मैं सब कुछ बता सकता हूं क्योंकि मैं फरिश्तों से भी ऊपर की चीज़ हूं। जो कोई नहीं कर सकता वो मैं कर सकता हूं।"

चंद्रकांत किसी बेजान पुतले की तरह आश्चर्य से आंखें फाड़े सफ़ेदपोश की धुंधली सी आकृति को देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में विस्फोट सा हुआ तो जैसे उसे होश आया। उसने अपने ज़हन को झटक कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा। लकड़ी की बाउंड्री के उस पार वो सफ़ेद किंतु धुंधली सी आकृति के रूप ने नज़र आ रहा था। चंद्रकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो सचमुच फ़रिश्तों से ऊपर की ही चीज़ है।

"म...मुझे बताओ।" चंद्रकांत एकदम से व्याकुल और पगलाए हुए अंदाज़ में बोल पड़ा____"मुझे जल्दी से बताओ कि वो हत्यारा कौन है जिसने मेरे इकलौते बेटे की हत्या कर के मेरे वंश का नाश कर दिया है? भगवान के लिए जल्दी से उस हत्यारे का नाम बता दो मुझे। मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं। बस एक बार उसका नाम बता दो, बदले में तुम मुझसे जो मांगोगे मैं बिना सोचे समझे तुम्हें दे दूंगा।"

"बदले में क्या कर सकता है तू मेरे लिए?" सामने खड़े सफ़ेदपोश ने कुछ पलों तक सोचने के बाद सर्द लहजे में उससे पूछा।

"जो भी तुम कहोगे...मैं करूंगा।" चंद्रकांत ने झट से कहा____"बस तुम मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का नाम बता दो।"

"जिस तरह तू अपने बेटे के हत्यारे का नाम जानने के लिए मरा जा रहा है, सोच रहा हूं पहले तुझे उस हत्यारे का नाम ही बता दूं।" सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"लेकिन ये भी सोचता हूं कि अगर मैंने तुझे उसका नाम बता दिया और बाद में तू मेरे लिए कुछ भी करने से मुकर गया तो...??"

"नहीं नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा।" चंद्रकांत ने हड़बड़ाते हुए झट से कहा____"मैं अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा कर कहता हूं कि बाद में मैं किसी भी बात से नहीं मुकरूंगा। बल्कि वही करूंगा जो करने को तुम कहोगे।"

"ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि मैं किसी से अपना काम करवाने से पहले सामने वाले पर भरोसा कर के खुद उसका भला करने जा रहा हूं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"मैं अभी इसी वक्त तुझे तेरे बेटे के हत्यारे का नाम बताए देता हूं किंतु एक बात तू अच्छी तरह समझ ले। अगर बाद में तू अपने वादे से मुकर कर मेरा कोई काम नहीं किया तो ये तेरे और तेरे परिवार के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"म...मेरा यकीन करो।" चंद्रकांत ने पूरी दृढ़ता से कहा____"मैं सच में वही करूंगा जो तुम कहोगे। अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा चुका हूं मैं। क्या इतने पर भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?"

"यकीन हो गया है तुझ पर तभी तो तुझसे अपना काम करवाने से पहले मैंने तेरा भला करने का सोच लिया है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"लेकिन तुझे आगाह इस लिए किया है कि अगर तू बाद में अपने वादे से मुकर गया तो फिर अपने और अपने परिवार के बुरे अंजाम का ज़िम्मेदार तू ख़ुद ही होगा।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को अपना कान उसके क़रीब लाने को कहा तो चंद्रकांत पहले तो चौंका, फिर अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आगे बढ़ा। उसने अपना एक कान सफ़ेदपोश की तरफ बढ़ाया तो सफ़ेदपोश आगे बढ़ कर उसके कान में काफी देर तक जाने क्या कहता रहा।

"उम्मीद है कि अब तू उस हत्यारे से अपने बेटे की हत्या का बदला ले कर अपने दिल की आग को ठंडा कर लेगा।" सफ़ेदपोश ने उसके कान से सफ़ेद नक़ाब में छुपा अपना मुंह हटा कर कहा____"और हां, तेरे पास समय बिल्कुल ही कम है। मैं कल रात किसी भी वक्त यहां पर आ सकता हूं और फिर तुझे अपना काम करने का हुकुम दे सकता हूं। अपना वादा तोड़ कर मेरा काम न करने की सूरत में क्या होगा इस बात को भूलना मत।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने इधर उधर अपनी निगाह घुमाई और फिर पलट कर हवा के झोंके की तरह कुछ ही पलों में अंधेरे में ग़ायब हो गया। उसके ग़ायब होते ही चंद्रकांत को जैसे होश आया। अगले कुछ ही पलों में उसके अंदर एक ऐसी आग सुलग उठी जिससे उसके जबड़े कस गए और मुट्ठियां भिंच गईं। दिलो दिमाग़ में मचल उठी आंधी को लिए वो पलटा और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ता चला गया।

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सफ़ेदपोश अंधेरे में भी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला जा रहा था। कुछ ही दूरी पर आसमान से थोड़ा नीचे धुंधली सी आकृति के रूप में उसे पेड़ पौधे दिखने लगे थे। उसकी रफ़्तार और भी तेज़ हो गई। ज़ाहिर है वो अपनी मंजिल पर पहुंचने में देर नहीं करना चाहता था। ज़मीन पर तेज़ तेज़ पड़ते उसके क़दमों से ख़ामोश वातावरण में अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रहीं थी। कुछ ही देर में उसे धुंधले नज़र आने वाले पेड़ पौधे थोड़ा स्पष्ट से नज़र आने लगे। तेज़ चलने की वजह से उसकी सांसें भारी हो गईं थी।

अभी वो उन पेड़ पौधों से थोड़ा इधर ही था कि तभी वो चौंका और साथ ही ठिठक भी गया। अपनी एड़ी पर फिरकिनी की मानिंद घूम कर उसने एक तरफ निगाह डाली तो नीम अंधेरे में उसे हिलते डुलते कुछ साए नज़र आए। ये देख वो फ़ौरन ही वापस घूमा और लगभग दौड़ते हुए उन पेड़ पौधों की तरफ भाग चला। उसने भागते हुए ही पलट कर देखा कि हिलते डुलते नज़र आने वाले वो साए भी बड़ी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ लगा चुके थे। सफ़ेदपोश जल्द ही पेड़ पौधों के पास पहुंच गया। यहां कई सारे पेड़ पौधे थे। ऐसा लगता था जैसे ये कोई बगीचा था। सफ़ेदपोश तेज़ी से ढेर सारे पेड़ पौधों के बीच घुसता चला गया। यहां की ज़मीन पर शायद पेड़ों के सूखे पत्ते मौजूद थे जिसकी वजह से सफ़ेदपोश द्वारा तेज़ तेज़ चलने से फर्र फर्र की आवाज़ें पैदा होने लगीं थी जो फिज़ा में छाए सन्नाटे में अजीब सा भय पैदा करने लगीं थी।

सफ़ेदपोश बगीचे के अंदर अभी कुछ ही दूर चला था कि तभी एक तरफ से कोई ज़ोर से चिल्लाया। कदाचित सूखे पत्तों से पैदा होने वाली आवाज़ों को सुन कर ही कोई चिल्लाया था और बोला था____"कौन है उधर?"

इस आवाज़ को सुन कर सफ़ेदपोश बुरी तरह हड़बड़ा गया। यकीनन वो घबरा भी गया होगा किंतु वो रुका नहीं बल्कि और भी तेज़ी से आगे की तरफ भागने लगा। तभी फिर से कोई ज़ोर से चिल्लाते हुए पुकारा। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि पुकारने वाला उसके पीछे ही भागता हुआ आने लगा है तो वो झटके से रुक गया। अपने एक हाथ को उसने सफ़ेद लबादे में कहीं घुसाया। कुछ ही पलों में उसका वो हाथ उसके लबादे से बाहर आ गया। अपनी जगह पर खड़े खड़े ही वो आहिस्ता से पलटा और अपने उस हाथ को हवा में उठा दिया। अगले ही पल ख़ामोश वातावरण में धांय की बड़ी तेज़ आवाज़ गूंज उठी। ऐसा लगा जैसे सन्नाटे में कोई धमाका हो गया हो। सफ़ेदपोश के हाथ में शायद रिवॉल्वर था जिससे उसने गोली चलाई थी। गोली चलते ही किसी की ज़ोरदार चीख़ फिज़ा में गूंज उठी और साथ ही सूखे पत्तों पर किसी के भरभरा कर गिरने की आवाज़ भी हुई।

सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।





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Interesting update bro zabardast
 
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सफेदपोश जो भी हो पर है वो औरत ही । यह आपके शब्दावली से आभास होता है। और यह औरत कौन है , कुछ कुछ शक भी है मुझे।
और जहां तक कजरी की बात है , बेहतर यही होता कि वैभव उसे अच्छी तरह समझा देता कि उसके दिल मे कजरी के लिए कुछ भी नही है । बेजुबान होना कभी कभी बहुत घातक भी हो जाता हे । वैभव सेक्स के खेल का खिलाड़ी रह चुका है और फिलहाल वो अपने चरित्र के बदलाव के दौर पे है । यह शोभा नही देता कि अब भी वो इस मामले मे मुक दर्शक बना रहे।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

12bara

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Nakabposh ki wajah se sahukar ke ghar ke kitne log mare gaye,munsi ka beta mara gaya vaibhav ke chacha aur bhai mare gaye .Anu ke papa aur chacha mare gaye kabila ka mukhiya mara gaya inspecter ki maa Mari gai haweli ke do naukar mare gaye aur bhi bahot se log mare gaye .. lekin is safedposh wale insaan ki dushmani aur badle ki aag sant nhi ho rahi hai ... Nakabposh ki nafrat ne kia ghar parivaar barbad kar diye .. .aisi konsi dushmani hai haweli walo se is nakabposh ki.khair ab dekhna hai vaibhav ke jindagi me kon 2 Bibi ban ke aati hai .bhabhi ka koi lena dena to nhi hai is nakabposh se.
 
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