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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
अध्याय - 70
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।



अब आगे....

गांव से बाहर एक बड़े से पेड़ के पास पहुंचते ही सफ़ेदपोश ने जगन को रुकने को कहा तो जगन रुक गया। वो बुरी तरह हांफ रहा था और उसी के जैसे सफ़ेदपोश भी हांफ रहा था। यूं तो हल्के अंधेरे में जगन को उसकी कोई प्रतिक्रिया ठीक से समझ नहीं आ रही थी किंतु उसने इतना ज़रूर महसूस किया था कि सफ़ेदपोश उससे तेज़ नहीं भाग पा रहा था। बहरहाल, वो इसी बात से बेहद खुश था कि उस सफ़ेदपोश ने उसे दादा ठाकुर की क़ैद से निकाल लिया है। एक तरह से उसने उसकी जान बचा ली थी वरना वो तो अब यही समझ चुका था कि कल का दिन उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा।

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी जान बचा ली।" जगन ने हांफते हुए सफ़ेदपोश की तरफ देख कर कहा____"मैं जीवन भर अब आपकी गुलामी करूंगा।"

"अगर तुम ऐसा समझते हो।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"तो ये भी समझते होगे कि तुम्हें ये जो नई ज़िंदगी मिली है उस पर सबसे ज़्यादा अब हमारा अधिकार है।"

"बिल्कुल है मालिक।" जगन ने सफ़ेदपोश को मालिक शब्द से संबोधित करते हुए कहा____"आपने मेरी जान बचा कर मुझे नई ज़िंदगी दी है इस लिए मेरी इस ज़िंदगी में अब आपका ही हक़ है। अब से आप मेरे मालिक हैं और मैं आपका गुलाम जो आपके हर हुकुम का बिना सोचे समझे पालन करेगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने कहा____"अगर तुम हमारे हर हुकुम का पालन करोगे तो यकीन करो आज के बाद तुम्हारे अपने बीवी बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी हम ख़ुद लेते हैं। उन्हें अब किसी भी चीज़ का अभाव नहीं होगा।"

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया मालिक।" जगन इस बात से बेहद खुश और बेफ़िक्र सा हो गया, बोला____"आप सच में बहुत महान हैं। मुझे हुकुम दीजिए कि अब मुझे क्या करना है?"

"तुम्हें इसी वक्त माधोपुर की तरफ जाना है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"हमारा ख़याल है कि माधोपुर के रास्ते में ही कहीं तुम्हें वैभव सिंह मिलेगा। तुम्हारा काम उसको जान से मार डालना है। क्या तुम ये कर सकोगे?"

"मैं आपके इस हुकुम को अपनी जान दे कर भी पूरा करुंगा मालिक।" जगन वैभव का नाम सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया था किंतु अपनी घबराहट को छुपाते हुए बड़ी ही गर्मजोशी से बोला____"और अगर उसके साथ कोई और भी हुआ तो उसको भी जान से मार दूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि कल का सूरज वैभव सिंह की मौत का पैग़ाम ले कर ही उदय होगा। अगर तुम सच में उसको मारने में कामयाब हुए तो तुम्हें उपहार के रूप में मुंह मांगी मुराद मिलेगी।"

"धन्यवाद मालिक।" जगन मन ही मन गदगद होते हुए बोला।
"इसे अपने पास रखो।" सफ़ेदपोश ने अपने लिबास के अंदर से एक पिस्तौल निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसके माध्यम से तुम्हें वैभव सिंह को जान से मारने में आसानी होगी। अब तुम जाओ।"

सफ़ेदपोश से पिस्तौल ले कर जगन ने अदब से सिर झुका कर सफ़ेदपोश को सलाम किया और पलट कर तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया। कुछ ही पलों में वो अंधेरे में गायब हो गया। उसके जाने के बाद सफ़ेदपोश पलटा और वो भी उसी की तरह कुछ ही देर में अंधेरे में कहीं गायब हो गया।

✮✮✮✮

मैं चौंकने के बाद सोच में डूब ही गया था कि तभी अचानक मैं लड़खड़ा कर गिर गया। ज़मीन पर पड़े साए ने मेरा पैर पकड़ कर उछाल दिया था। मुझे उससे ऐसी हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इस लिए मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। कच्ची ज़मीन पर गिरते ही मैं बिजली की सी तेज़ी से उठ कर खड़ा हो गया। तभी मेरी नज़र साए पर पड़ी जो अपने दर्द को सहते हुए मुझे दबोचने के लिए मुझ पर झपट ही पड़ा था। इससे पहले कि वो मुझ तक पहुंचता मैंने दाएं घुटने का वार उसके जबड़े में किया तो वो दर्द से बिलबिलाते हुए एक तरफ को उलट गया।

"लगता है मरने की बहुत ही जल्दी है तुझे।" मैंने उसके पास पहुंचते ही उसकी ज़ख्म वाली जांघ पर पैर की ठोकर मारते हुए कहा तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इधर झुक कर मैंने उसकी गर्दन को पीछे से अपने हाथ की कैंची बना कर दबोच लिया और फिर गुर्राते हुए बोला____"तेरे जैसे नामर्द ठाकुर वैभव सिंह को मारने के ख़्वाब कब से देखने लगे? वैसे मुझे शक तो था लेकिन यकीन नहीं कर पा रहा था कि तू ऐसा कुछ कर सकता है।"

"तेरे जैसे मंद बुद्धि वाले लोग सोच भी नहीं सकते वैभव सिंह।" साया दर्द में भी नफ़रत से गुर्राया____"तू तो बस दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही जानता है। ये उसी का परिणाम है कि आज तुम सब इस हाल में पहुंच गए हो।"

"मान लिया कि मुझे सिर्फ दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही आता है।" मैंने उसी लहजे में कहा___"मगर ठाकुर वैभव सिंह उस जियाले का नाम है जो अपना हर काम डंके की चोट पर करता है। तेरे जैसे नामर्द तो छुप कर ही वार करते हैं।"

मेरी बात सुन कर साया बुरी तरह कसमसा कर रह गया। इधर मैं उसकी बेबसी को देखते हुए बोला___"ख़ैर ये तो बता क्या तेरी बीवी भी इस खेल में शामिल है?"

"नहीं।" साया ढीला पड़ते हुए बोला____"होगी भी कैसे? उसे तो तेरा मोटा लंड मिल रहा था। बुरचोदी बड़े मज़े से तुझसे चुदवाती थी। मैंने और मेरे बापू ने लोगों से सुना तो था पर यकीन नहीं था कि दादा ठाकुर का पूत मेरे ही घर की इज्ज़त को इस तरह लूट सकता है। एक दिन जब मैंने अपनी आंखों से देख लिया तो यकीन करना ही पड़ा। रजनी पर गुस्सा तो बहुत आया था मुझे, जी किया कि जान से मार दूं उसे लेकिन फिर सोचा कि क्यों न उसी के हाथों उसके यार को मरवाया जाए। मैंने एक दिन धर लिया उसे और उससे खुल कर पूछा। पहले तो साली मुकर रही थी और कह रही थी कि मैं बेवजह ही अपनी बीवी पर ऐसा घटिया आरोप लगा रहा हूं। फिर जब मैंने तबीयत से उसको कूटना शुरू किया तो जल्दी ही क़बूल कर लिया उसने। तब मैंने कहा कि अब वो वही करे जो मैं कहूं, अगर उसने ऐसा नहीं किया तो मैं उसे बेइज्ज़त कर के घर से निकाल दूंगा। उसके मायके में भी सबको बता दूंगा कि वो पूरे गांव के मर्दों का बिस्तर गरम करती है। मेरी इस धमकी से वो डर गई थी इस लिए उसने वो सब कुछ करना मंज़ूर कर लिया जो करने के लिए मैं उसे बोल रहा था।"

"अपनी बीवी के हाथों।" मैंने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा____"तू किस तरह मुझे मरवा देना चाहता था?"

"तू जब अपनी हवस मिटाने के लिए मेरे घर आता।" रघुवीर ने नफ़रत से कहा____"तो वो मेरे कहे अनुसार तेज़ धार वाले खंज़र से तेरा गला चीर देती। उसके बाद मैं तेरी लाश को सबकी नज़रों से छुपा कर कहीं दफ़ना देता।"

"वाह! बहुत खूब।" मैं उसकी बात सुन कर हल्के से मुस्कुराया, फिर बोला____"अगर तेरा यही मंसूबा था तो फिर तूने अपने इस मंसूबे को पूरा क्यों नहीं किया?"

"हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे कि ऐसा कुछ करने का मौका ही नहीं मिल सका मुझे।" रघुवीर ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा____"दूसरी बात ये भी कि उसके बाद से तू भी मेरे घर नहीं आया। मैं तो हर रोज़ तेरे आने की राह देखता था। इधर हालात कुछ ऐसे हो गए कि तू अपने बाप चाचा और भाई के साथ किसी और ही काम में उलझ गया। इसी बीच मुझे और बापू को एक और बात पता चली।"

"कौन सी बात?" मेरे माथे पर शिकन उभरी।
"मेरा मंसूबा पूरा नहीं हो पा रहा था इस लिए मैं बेहद गुस्से में था।" रघुवीर ने कहा____"और इसी गुस्से में मैंने एक दिन रजनी को फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसके मुख से अंजाने में ही कुछ ऐसा निकल गया जो मेरी कल्पनाओं में भी नहीं था।"

"क्या मतलब??" मैं पूछे बग़ैर न रह सका____"ऐसा क्या निकल गया था तेरी बीवी के मुख से?"

"शायद वो मेरे द्वारा बेमतलब कूटे जाने से गुस्से में आ गई थी।" रघुवीर ने कहा____"इसी लिए उसने गुस्से में मुझसे कहा कि मैं सिर्फ उसे ही क्यों मार रहा हूं जबकि मेरी मां के भी तो तेरे साथ उसी के जैसे संबंध हैं। रजनी के मुख से ये सुन कर मैं एकदम से सुन्न सा पड़ गया था। मुझे लगा वो मेरी मां पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही है इस लिए मैंने गुस्से में उसे फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसने कहा कि अगर मुझे यकीन नहीं है तो मैं खुद जा कर अपनी मां से इस बारे में पूछ लूं।"

"तो फिर तुमने अपनी मां से पूछा?" रघुवीर एकदम से चुप हो गया तो मैंने उत्सुकतावश उससे पूछ ही लिया।

"हिम्मत तो नहीं पड़ रही थी लेकिन मेरे अंदर गुस्सा भी था इस लिए जैसे ही मां गांव से आई तो मैंने उससे पूछ लिया।" रघुवीर ने कहा____"पहले तो मां मेरे मुख से ऐसी बातें सुन कर गुस्सा होते हुए मुझ पर खूब चिल्लाई मगर जब मैंने दहाड़ते हुए उसको मारने दौड़ा तो वो डर गई। ऊपर से रजनी भी आ गई और मेरे सामने ही मां को बताने लगी कि उसे सब पता है कि कैसे वो तेरे साथ अकेले में गुलछर्रे उड़ाती है। रजनी की बात सुन कर मां से कुछ कहते ना बन पड़ा था। मैं समझ गया कि रजनी मां के बारे में सच बोल रही है। मुझे इतना ज़्यादा गुस्सा आया कि मैं मां को मारने के लिए दौड़ पड़ा उसकी तरफ मगर तभी बापू की आवाज़ सुन कर रुक गया।"

"यानि इस सबकी वजह से तेरे बाप को भी सब पता चल गया?" मैंने पूछा तो उसने कहा____"उन्हें ये सब पहले से ही पता था किंतु ये बात उनके लिए भी हैरान कर देने वाली थी कि उनकी बूढ़ी बीवी ने अपने बेटे समान लड़के से यानि तुझसे ऐसा गंदा संबंध बनाया हुआ है। उस दिन बापू का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया और फिर उनके अंदर वर्षों से जो कुछ दबा हुआ था वो सब गुस्से में निकल गया।"

"ऐसा क्या था तेरे बाप के अंदर?" मैंने भारी उत्सुकता के साथ पूछा____"जो वर्षों से दबा हुआ था?"

"उस दिन उन्हीं के मुख से मुझे पता चला कि मेरी मां का हवेली से बहुत पुराना संबंध रहा है।" रघुवीर ने कहा____"बड़े दादा ठाकुर अपने मुंशी यानि मेरे बाप की बीवी को अपनी रखैल बनाए हुए थे।"

रघुवीर के मुख से ये सुनते ही मेरे पिछवाड़े से धरती गायब हो गई। साला मुंशी की बीवी प्रभा तो छुपी रुस्तम थी। मेरे दादा जी यानी बड़े दादा ठाकुर की रखैल थी वो और उनके बाद उनके पोते यानि मेरे साथ मज़े कर रही थी। मेरा तो ये सोचते ही सिर चकराने लगा था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि क्या प्रभा के ऐसे संबंध मेरे अपने पिता से भी हो सकते हैं? इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझरी सी पैदा कर दी। मुझे अपने पिता पर यकीन तो नहीं हुआ मगर ये सब सुन कर यही लगने लगा कि कुछ भी हो सकता है।

"ये तो बड़े ही आश्चर्य की बात है।" फिर मैंने रघुवीर से कहा____"लेकिन ये समझ नहीं आया कि जब तेरे बाप को अपनी बीवी के बारे में पहले से ही सब पता था तो वो इतने वर्षों से चुप क्यों था? क्या तेरे बाप का खून इतने वर्षों में कभी नहीं खौला?"

"उस दिन गुस्से में मैंने भी बापू से यही सब कहा था।" रघुवीर ने कहा____"जवाब में बापू ने यही कहा कि वो कुछ नहीं कर सकते थे। असल में बापू का ब्याह बड़े दादा ठाकुर ने ही मां से करवाया था। जब बापू को बड़े दादा ठाकुर के साथ अपनी बीवी के संबंधों का पता चला तो वो बहुत ख़फा हुए थे मां से। पूछने पर मां ने बताया था कि बड़े दादा ठाकुर से उनके संबंध तब से हैं जब उनका बापू से ब्याह भी नहीं हुआ था। मैंने भी लोगों से ही सुना था कि बड़े दादा ठाकुर ऐसे ही ठरकी आदमी थे। उन्हें जो भी लड़की या औरत पसंद आ जाती थी उसे वो फ़ौरन ही अपने हरम में पेश करवा लेते थे। दूर दूर तक के लोगों में उनका ख़ौफ था इस लिए कोई उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जा भी नहीं सकता था। यही वजह थी कि मेरे बापू कभी इस बारे में कुछ नहीं कर सके थे। जब बड़े दादा ठाकुर की मृत्यु हुई तब मेरे बापू ये सोच कर खुश हुए थे कि ऊपर वाले ने उनकी सुन ली और बड़े दादा ठाकुर जैसे पापी को उसके अपराध के चलते मौत मिल गई। बड़े दादा ठाकुर के बाद तेरे पिता दादा ठाकुर बन कर गद्दी पर बैठे। दादा ठाकुर के बारे में बापू बचपन से जानते थे इस लिए उन्होंने ये सोच कर कभी बदला लेने का नहीं सोचा कि वो अपने पिता के जैसे नहीं हैं। बस उसके बाद वो हमेशा शांत ही रहे और दादा ठाकुर की सेवा करते रहे मगर उस दिन जब उन्हें पता चला कि बड़े दादा ठाकुर के बाद बड़े दादा ठाकुर के पोते ने उनकी बीवी को अपनी हवस का शिकार बना लिया है तो उनके पुराने ज़ख्म फिर से ताज़ा हो गए।"

"वाह! काफी दिलचस्प कहानी है।" मैंने कहा____"मगर इस कहानी से मैं बस यही समझा हूं कि तेरा बापू एक नंबर का चूतिया और डरपोक आदमी था। बड़ी हैरत की बात है कि उसे अपनी बीवी के बारे में शुरू से सब पता था इसके बावजूद कभी उसका खून नहीं खौला। बड़े दादा ठाकुर के ख़ौफ ने उसके खून को पानी बना के रख दिया था। चलो मान लिया कि वो बड़े दादा ठाकुर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था मगर क्या वो अपनी बीवी का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता था? अरे! ऐसी बेवफ़ा बीवी को कभी भी वो ज़हर दे कर मार सकता था मगर नहीं उसने सब कुछ सह लिया और वर्षों तक कायरों का तमगा लिए घूमता रहा। ख़ैर, तो उस दिन तेरे बापू का पानी बना खून फिर से खून में तब्दील हुआ जिस दिन उसे ये पता चला कि उसकी बीवी ही नहीं बल्कि उसकी बहू भी मेरे साथ मज़े कर रही है?"

"हां।" रघुवीर ने जैसे क़बूल किया____"हम दोनों बाप बेटे इस सबसे बहुत दुखी थे। ये कैसी अजीब बात थी कि हम दोनों बाप बेटे की बीवियां तेरे साथ संबंध बनाए हुए थीं और हम नामर्द से बन गए थे। उसी दिन मैंने और बापू ने मिल कर ये फ़ैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए इसका बदला हम ले कर रहेंगे।"

अभी मैं रघुवीर की बात सुन कर उससे कुछ कहने ही वाला था कि तभी एक तरफ से अजीब सी आवाज़ हुई जिसे सुन कर मैं चौंक पड़ा। पलट कर मैंने दूर दूर तक अंधेरे में नज़र दौड़ाई मगर अंधेरे में कुछ समझ नहीं आया। मैंने गौर किया कि आवाज़ स्वाभाविक रूप से नहीं हुई थी। मैं एकदम से सतर्क हो गया। वैसे भी इस समय हालात अच्छे नहीं थे। मैंने रघुवीर को छोड़ा और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी कनपटी के खास हिस्से पर कर दिया। रघुवीर के मुख से घुटी घुटी सी चीख निकली और अगले कुछ ही पलों में वो अपने होश खोता चला गया। उसके बेहोश होते ही मैंने उसके जिस्म को उठा कर अपने कंधे पर डाला और अंधेरे में एक तरफ को बढ़ता चला गया।

✮✮✮✮

कुसुम अपनी भाभी के बिस्तर पर गहरी नींद में सो ही रही थी कि तभी किसी के द्वारा ज़ोर ज़ोर से हिलाए जाने पर उसकी आंख खुल गई। वो हड़बड़ा कर उठी और फिर बदहवास हालत में उसने इधर उधर देखा तो जल्दी ही उसकी नज़र अपने एकदम पास झुकी रागिनी पर पड़ी।

"भ...भाभी आप?" कुसुम एकदम से चौंकते हुए बोली____"क्या हुआ, आप इस तरह खड़ी क्यों हैं? सोई नहीं आप?"

"नींद ही नहीं आ रही थी मुझे।" रागिनी ने बुझे मन से कहा____"इस लिए तुम्हें सोता देख मैं कमरे से बाहर चली गई थी। बाहर गई तो मेरे मन में वैभव का ख़याल आ गया। वो पहले भी बहुत देर तक मेरे पास ही सिरहाने पर बैठा हुआ था। उसे भी नींद नहीं आ रही थी। मैंने उसे आराम करने के लिए भेजा था तो सोचा देखूं वो आराम कर रहा है या अभी भी जाग रहा है? जब मैं उसके कमरे में पहुंची तो देखा वहां उसके कमरे में बिस्तर पर विभोर सो रहा था जबकि वैभव नहीं था?"

"क...क्या???" कुसुम अपनी भाभी की बात सुन कर बुरी तरह चौंकी____"ये क्या कह रही हैं आप? वैभव भैया अपने कमरे में नहीं थे?"

"हां कुसुम।" रागिनी ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"वो अपने कमरे में नहीं था। अब तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वो हवेली से चला गया है, शायद मेरी शर्त पूरी करने।"

"श...शर्त...पूरी करने???" कुसुम का जैसे दिमाग़ ही चकरा गया____"ये सब आप क्या कह रही हैं भाभी? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"

रागिनी ने संक्षेप में कुसुम को वो बातें बता दी जो उसकी और वैभव के बीच हुईं थी। सारी बातें सुन का कुसुम के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं।

"अब क्या होगा भाभी?" कुसुम घबराए हुए भाव से बोली____"कहीं वैभव भैया सच में ही न आपकी शर्त पूरी करने चले गए हों मगर उन्हें रात के इस वक्त हवेली से बाहर नहीं जाना चाहिए था।"

"यही तो मैं भी सोच रही हूं कुसुम।" रागिनी ने चिंतित और परेशान भाव से कहा____"उसे मेरी शर्त को पूरा करने के लिए इस तरह का पागलपन नहीं दिखाना चाहिए था। अगर उसे कुछ हो गया तो उसकी ज़िम्मेदार मैं ही तो होऊंगी। अगर हवेली में किसी को इस बारे में पता चला तो कोई भी मुझे माफ़ नहीं करेगा। कोई क्या मैं ख़ुद अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगी।"

कहने के साथ ही रागिनी की आंखें छलक पड़ीं। ये देख कुसुम झट से उठी और रागिनी को बिस्तर पर बैठा कर उसे दिलासा देने लगी।

"शांत हो जाइए भाभी।" फिर उसने कहा____"वैभव भैया को कुछ नहीं होगा। भगवान इतना भी बेरहम नहीं हो सकता कि वो हम सबको एक ही दिन में इतना सारा दुख दे दे।"

"कौन भगवान? कैसा भगवान कुसुम?" रागिनी ने हताश भाव से कहा____"नहीं, कहीं कोई भगवान नहीं है। सब झूठ है। ये सब लोगों का फैलाया हुआ अंधविश्वास है। अगर सच में कहीं भगवान होता तो अपने होने का कोई तो सबूत देता। जब से मैंने होश सम्हाला है तब से उसकी पूजा आराधना करती आई हूं मगर क्या किया भगवान ने? नहीं कुसुम, सच तो यही है कि इस दुनिया में भगवान जैसा कुछ है ही नहीं। आज मैं भी एक वादा करती हूं कि अगर इस भगवान ने वैभव के साथ कुछ भी बुरा किया तो मैं अपने हाथों से हवेली में मौजूद भगवान की हर मूर्ति को उठा कर हवेली से बाहर फेंक दूंगी।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" रागिनी की बातें सुन कर कुसुम के समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, बोली____"आपकी ज़ुबान पर इतनी कठोर बातें ज़रा भी अच्छी नहीं लगती। यकीन कीजिए वैभव भैया के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा। अब चलिए आराम कीजिए आप।"

कुसुम ने ज़ोर दे कर रागिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद किनारे पर बैठी जाने किन ख़यालों में खो गई। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन कमरे के अंदर मौजूद दो इंसानों के अंदर जैसे कोई आंधी सी चल रही थी।



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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,534
34,467
219
अध्याय - 70
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"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।



अब आगे....

गांव से बाहर एक बड़े से पेड़ के पास पहुंचते ही सफ़ेदपोश ने जगन को रुकने को कहा तो जगन रुक गया। वो बुरी तरह हांफ रहा था और उसी के जैसे सफ़ेदपोश भी हांफ रहा था। यूं तो हल्के अंधेरे में जगन को उसकी कोई प्रतिक्रिया ठीक से समझ नहीं आ रही थी किंतु उसने इतना ज़रूर महसूस किया था कि सफ़ेदपोश उससे तेज़ नहीं भाग पा रहा था। बहरहाल, वो इसी बात से बेहद खुश था कि उस सफ़ेदपोश ने उसे दादा ठाकुर की क़ैद से निकाल लिया है। एक तरह से उसने उसकी जान बचा ली थी वरना वो तो अब यही समझ चुका था कि कल का दिन उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा।

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी जान बचा ली।" जगन ने हांफते हुए सफ़ेदपोश की तरफ देख कर कहा____"मैं जीवन भर अब आपकी गुलामी करूंगा।"

"अगर तुम ऐसा समझते हो।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"तो ये भी समझते होगे कि तुम्हें ये जो नई ज़िंदगी मिली है उस पर सबसे ज़्यादा अब हमारा अधिकार है।"

"बिल्कुल है मालिक।" जगन ने सफ़ेदपोश को मालिक शब्द से संबोधित करते हुए कहा____"आपने मेरी जान बचा कर मुझे नई ज़िंदगी दी है इस लिए मेरी इस ज़िंदगी में अब आपका ही हक़ है। अब से आप मेरे मालिक हैं और मैं आपका गुलाम जो आपके हर हुकुम का बिना सोचे समझे पालन करेगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने कहा____"अगर तुम हमारे हर हुकुम का पालन करोगे तो यकीन करो आज के बाद तुम्हारे अपने बीवी बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी हम ख़ुद लेते हैं। उन्हें अब किसी भी चीज़ का अभाव नहीं होगा।"

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया मालिक।" जगन इस बात से बेहद खुश और बेफ़िक्र सा हो गया, बोला____"आप सच में बहुत महान हैं। मुझे हुकुम दीजिए कि अब मुझे क्या करना है?"

"तुम्हें इसी वक्त माधोपुर की तरफ जाना है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"हमारा ख़याल है कि माधोपुर के रास्ते में ही कहीं तुम्हें वैभव सिंह मिलेगा। तुम्हारा काम उसको जान से मार डालना है। क्या तुम ये कर सकोगे?"

"मैं आपके इस हुकुम को अपनी जान दे कर भी पूरा करुंगा मालिक।" जगन वैभव का नाम सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया था किंतु अपनी घबराहट को छुपाते हुए बड़ी ही गर्मजोशी से बोला____"और अगर उसके साथ कोई और भी हुआ तो उसको भी जान से मार दूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि कल का सूरज वैभव सिंह की मौत का पैग़ाम ले कर ही उदय होगा। अगर तुम सच में उसको मारने में कामयाब हुए तो तुम्हें उपहार के रूप में मुंह मांगी मुराद मिलेगी।"

"धन्यवाद मालिक।" जगन मन ही मन गदगद होते हुए बोला।
"इसे अपने पास रखो।" सफ़ेदपोश ने अपने लिबास के अंदर से एक पिस्तौल निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसके माध्यम से तुम्हें वैभव सिंह को जान से मारने में आसानी होगी। अब तुम जाओ।"

सफ़ेदपोश से पिस्तौल ले कर जगन ने अदब से सिर झुका कर सफ़ेदपोश को सलाम किया और पलट कर तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया। कुछ ही पलों में वो अंधेरे में गायब हो गया। उसके जाने के बाद सफ़ेदपोश पलटा और वो भी उसी की तरह कुछ ही देर में अंधेरे में कहीं गायब हो गया।

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मैं चौंकने के बाद सोच में डूब ही गया था कि तभी अचानक मैं लड़खड़ा कर गिर गया। ज़मीन पर पड़े साए ने मेरा पैर पकड़ कर उछाल दिया था। मुझे उससे ऐसी हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इस लिए मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। कच्ची ज़मीन पर गिरते ही मैं बिजली की सी तेज़ी से उठ कर खड़ा हो गया। तभी मेरी नज़र साए पर पड़ी जो अपने दर्द को सहते हुए मुझे दबोचने के लिए मुझ पर झपट ही पड़ा था। इससे पहले कि वो मुझ तक पहुंचता मैंने दाएं घुटने का वार उसके जबड़े में किया तो वो दर्द से बिलबिलाते हुए एक तरफ को उलट गया।

"लगता है मरने की बहुत ही जल्दी है तुझे।" मैंने उसके पास पहुंचते ही उसकी ज़ख्म वाली जांघ पर पैर की ठोकर मारते हुए कहा तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इधर झुक कर मैंने उसकी गर्दन को पीछे से अपने हाथ की कैंची बना कर दबोच लिया और फिर गुर्राते हुए बोला____"तेरे जैसे नामर्द ठाकुर वैभव सिंह को मारने के ख़्वाब कब से देखने लगे? वैसे मुझे शक तो था लेकिन यकीन नहीं कर पा रहा था कि तू ऐसा कुछ कर सकता है।"

"तेरे जैसे मंद बुद्धि वाले लोग सोच भी नहीं सकते वैभव सिंह।" साया दर्द में भी नफ़रत से गुर्राया____"तू तो बस दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही जानता है। ये उसी का परिणाम है कि आज तुम सब इस हाल में पहुंच गए हो।"

"मान लिया कि मुझे सिर्फ दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही आता है।" मैंने उसी लहजे में कहा___"मगर ठाकुर वैभव सिंह उस जियाले का नाम है जो अपना हर काम डंके की चोट पर करता है। तेरे जैसे नामर्द तो छुप कर ही वार करते हैं।"

मेरी बात सुन कर साया बुरी तरह कसमसा कर रह गया। इधर मैं उसकी बेबसी को देखते हुए बोला___"ख़ैर ये तो बता क्या तेरी बीवी भी इस खेल में शामिल है?"

"नहीं।" साया ढीला पड़ते हुए बोला____"होगी भी कैसे? उसे तो तेरा मोटा लंड मिल रहा था। बुरचोदी बड़े मज़े से तुझसे चुदवाती थी। मैंने और मेरे बापू ने लोगों से सुना तो था पर यकीन नहीं था कि दादा ठाकुर का पूत मेरे ही घर की इज्ज़त को इस तरह लूट सकता है। एक दिन जब मैंने अपनी आंखों से देख लिया तो यकीन करना ही पड़ा। रजनी पर गुस्सा तो बहुत आया था मुझे, जी किया कि जान से मार दूं उसे लेकिन फिर सोचा कि क्यों न उसी के हाथों उसके यार को मरवाया जाए। मैंने एक दिन धर लिया उसे और उससे खुल कर पूछा। पहले तो साली मुकर रही थी और कह रही थी कि मैं बेवजह ही अपनी बीवी पर ऐसा घटिया आरोप लगा रहा हूं। फिर जब मैंने तबीयत से उसको कूटना शुरू किया तो जल्दी ही क़बूल कर लिया उसने। तब मैंने कहा कि अब वो वही करे जो मैं कहूं, अगर उसने ऐसा नहीं किया तो मैं उसे बेइज्ज़त कर के घर से निकाल दूंगा। उसके मायके में भी सबको बता दूंगा कि वो पूरे गांव के मर्दों का बिस्तर गरम करती है। मेरी इस धमकी से वो डर गई थी इस लिए उसने वो सब कुछ करना मंज़ूर कर लिया जो करने के लिए मैं उसे बोल रहा था।"

"अपनी बीवी के हाथों।" मैंने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा____"तू किस तरह मुझे मरवा देना चाहता था?"

"तू जब अपनी हवस मिटाने के लिए मेरे घर आता।" रघुवीर ने नफ़रत से कहा____"तो वो मेरे कहे अनुसार तेज़ धार वाले खंज़र से तेरा गला चीर देती। उसके बाद मैं तेरी लाश को सबकी नज़रों से छुपा कर कहीं दफ़ना देता।"

"वाह! बहुत खूब।" मैं उसकी बात सुन कर हल्के से मुस्कुराया, फिर बोला____"अगर तेरा यही मंसूबा था तो फिर तूने अपने इस मंसूबे को पूरा क्यों नहीं किया?"

"हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे कि ऐसा कुछ करने का मौका ही नहीं मिल सका मुझे।" रघुवीर ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा____"दूसरी बात ये भी कि उसके बाद से तू भी मेरे घर नहीं आया। मैं तो हर रोज़ तेरे आने की राह देखता था। इधर हालात कुछ ऐसे हो गए कि तू अपने बाप चाचा और भाई के साथ किसी और ही काम में उलझ गया। इसी बीच मुझे और बापू को एक और बात पता चली।"

"कौन सी बात?" मेरे माथे पर शिकन उभरी।
"मेरा मंसूबा पूरा नहीं हो पा रहा था इस लिए मैं बेहद गुस्से में था।" रघुवीर ने कहा____"और इसी गुस्से में मैंने एक दिन रजनी को फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसके मुख से अंजाने में ही कुछ ऐसा निकल गया जो मेरी कल्पनाओं में भी नहीं था।"

"क्या मतलब??" मैं पूछे बग़ैर न रह सका____"ऐसा क्या निकल गया था तेरी बीवी के मुख से?"

"शायद वो मेरे द्वारा बेमतलब कूटे जाने से गुस्से में आ गई थी।" रघुवीर ने कहा____"इसी लिए उसने गुस्से में मुझसे कहा कि मैं सिर्फ उसे ही क्यों मार रहा हूं जबकि मेरी मां के भी तो तेरे साथ उसी के जैसे संबंध हैं। रजनी के मुख से ये सुन कर मैं एकदम से सुन्न सा पड़ गया था। मुझे लगा वो मेरी मां पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही है इस लिए मैंने गुस्से में उसे फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसने कहा कि अगर मुझे यकीन नहीं है तो मैं खुद जा कर अपनी मां से इस बारे में पूछ लूं।"

"तो फिर तुमने अपनी मां से पूछा?" रघुवीर एकदम से चुप हो गया तो मैंने उत्सुकतावश उससे पूछ ही लिया।

"हिम्मत तो नहीं पड़ रही थी लेकिन मेरे अंदर गुस्सा भी था इस लिए जैसे ही मां गांव से आई तो मैंने उससे पूछ लिया।" रघुवीर ने कहा____"पहले तो मां मेरे मुख से ऐसी बातें सुन कर गुस्सा होते हुए मुझ पर खूब चिल्लाई मगर जब मैंने दहाड़ते हुए उसको मारने दौड़ा तो वो डर गई। ऊपर से रजनी भी आ गई और मेरे सामने ही मां को बताने लगी कि उसे सब पता है कि कैसे वो तेरे साथ अकेले में गुलछर्रे उड़ाती है। रजनी की बात सुन कर मां से कुछ कहते ना बन पड़ा था। मैं समझ गया कि रजनी मां के बारे में सच बोल रही है। मुझे इतना ज़्यादा गुस्सा आया कि मैं मां को मारने के लिए दौड़ पड़ा उसकी तरफ मगर तभी बापू की आवाज़ सुन कर रुक गया।"

"यानि इस सबकी वजह से तेरे बाप को भी सब पता चल गया?" मैंने पूछा तो उसने कहा____"उन्हें ये सब पहले से ही पता था किंतु ये बात उनके लिए भी हैरान कर देने वाली थी कि उनकी बूढ़ी बीवी ने अपने बेटे समान लड़के से यानि तुझसे ऐसा गंदा संबंध बनाया हुआ है। उस दिन बापू का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया और फिर उनके अंदर वर्षों से जो कुछ दबा हुआ था वो सब गुस्से में निकल गया।"

"ऐसा क्या था तेरे बाप के अंदर?" मैंने भारी उत्सुकता के साथ पूछा____"जो वर्षों से दबा हुआ था?"

"उस दिन उन्हीं के मुख से मुझे पता चला कि मेरी मां का हवेली से बहुत पुराना संबंध रहा है।" रघुवीर ने कहा____"बड़े दादा ठाकुर अपने मुंशी यानि मेरे बाप की बीवी को अपनी रखैल बनाए हुए थे।"

रघुवीर के मुख से ये सुनते ही मेरे पिछवाड़े से धरती गायब हो गई। साला मुंशी की बीवी प्रभा तो छुपी रुस्तम थी। मेरे दादा जी यानी बड़े दादा ठाकुर की रखैल थी वो और उनके बाद उनके पोते यानि मेरे साथ मज़े कर रही थी। मेरा तो ये सोचते ही सिर चकराने लगा था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि क्या प्रभा के ऐसे संबंध मेरे अपने पिता से भी हो सकते हैं? इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझरी सी पैदा कर दी। मुझे अपने पिता पर यकीन तो नहीं हुआ मगर ये सब सुन कर यही लगने लगा कि कुछ भी हो सकता है।

"ये तो बड़े ही आश्चर्य की बात है।" फिर मैंने रघुवीर से कहा____"लेकिन ये समझ नहीं आया कि जब तेरे बाप को अपनी बीवी के बारे में पहले से ही सब पता था तो वो इतने वर्षों से चुप क्यों था? क्या तेरे बाप का खून इतने वर्षों में कभी नहीं खौला?"

"उस दिन गुस्से में मैंने भी बापू से यही सब कहा था।" रघुवीर ने कहा____"जवाब में बापू ने यही कहा कि वो कुछ नहीं कर सकते थे। असल में बापू का ब्याह बड़े दादा ठाकुर ने ही मां से करवाया था। जब बापू को बड़े दादा ठाकुर के साथ अपनी बीवी के संबंधों का पता चला तो वो बहुत ख़फा हुए थे मां से। पूछने पर मां ने बताया था कि बड़े दादा ठाकुर से उनके संबंध तब से हैं जब उनका बापू से ब्याह भी नहीं हुआ था। मैंने भी लोगों से ही सुना था कि बड़े दादा ठाकुर ऐसे ही ठरकी आदमी थे। उन्हें जो भी लड़की या औरत पसंद आ जाती थी उसे वो फ़ौरन ही अपने हरम में पेश करवा लेते थे। दूर दूर तक के लोगों में उनका ख़ौफ था इस लिए कोई उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जा भी नहीं सकता था। यही वजह थी कि मेरे बापू कभी इस बारे में कुछ नहीं कर सके थे। जब बड़े दादा ठाकुर की मृत्यु हुई तब मेरे बापू ये सोच कर खुश हुए थे कि ऊपर वाले ने उनकी सुन ली और बड़े दादा ठाकुर जैसे पापी को उसके अपराध के चलते मौत मिल गई। बड़े दादा ठाकुर के बाद तेरे पिता दादा ठाकुर बन कर गद्दी पर बैठे। दादा ठाकुर के बारे में बापू बचपन से जानते थे इस लिए उन्होंने ये सोच कर कभी बदला लेने का नहीं सोचा कि वो अपने पिता के जैसे नहीं हैं। बस उसके बाद वो हमेशा शांत ही रहे और दादा ठाकुर की सेवा करते रहे मगर उस दिन जब उन्हें पता चला कि बड़े दादा ठाकुर के बाद बड़े दादा ठाकुर के पोते ने उनकी बीवी को अपनी हवस का शिकार बना लिया है तो उनके पुराने ज़ख्म फिर से ताज़ा हो गए।"

"वाह! काफी दिलचस्प कहानी है।" मैंने कहा____"मगर इस कहानी से मैं बस यही समझा हूं कि तेरा बापू एक नंबर का चूतिया और डरपोक आदमी था। बड़ी हैरत की बात है कि उसे अपनी बीवी के बारे में शुरू से सब पता था इसके बावजूद कभी उसका खून नहीं खौला। बड़े दादा ठाकुर के ख़ौफ ने उसके खून को पानी बना के रख दिया था। चलो मान लिया कि वो बड़े दादा ठाकुर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था मगर क्या वो अपनी बीवी का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता था? अरे! ऐसी बेवफ़ा बीवी को कभी भी वो ज़हर दे कर मार सकता था मगर नहीं उसने सब कुछ सह लिया और वर्षों तक कायरों का तमगा लिए घूमता रहा। ख़ैर, तो उस दिन तेरे बापू का पानी बना खून फिर से खून में तब्दील हुआ जिस दिन उसे ये पता चला कि उसकी बीवी ही नहीं बल्कि उसकी बहू भी मेरे साथ मज़े कर रही है?"

"हां।" रघुवीर ने जैसे क़बूल किया____"हम दोनों बाप बेटे इस सबसे बहुत दुखी थे। ये कैसी अजीब बात थी कि हम दोनों बाप बेटे की बीवियां तेरे साथ संबंध बनाए हुए थीं और हम नामर्द से बन गए थे। उसी दिन मैंने और बापू ने मिल कर ये फ़ैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए इसका बदला हम ले कर रहेंगे।"

अभी मैं रघुवीर की बात सुन कर उससे कुछ कहने ही वाला था कि तभी एक तरफ से अजीब सी आवाज़ हुई जिसे सुन कर मैं चौंक पड़ा। पलट कर मैंने दूर दूर तक अंधेरे में नज़र दौड़ाई मगर अंधेरे में कुछ समझ नहीं आया। मैंने गौर किया कि आवाज़ स्वाभाविक रूप से नहीं हुई थी। मैं एकदम से सतर्क हो गया। वैसे भी इस समय हालात अच्छे नहीं थे। मैंने रघुवीर को छोड़ा और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी कनपटी के खास हिस्से पर कर दिया। रघुवीर के मुख से घुटी घुटी सी चीख निकली और अगले कुछ ही पलों में वो अपने होश खोता चला गया। उसके बेहोश होते ही मैंने उसके जिस्म को उठा कर अपने कंधे पर डाला और अंधेरे में एक तरफ को बढ़ता चला गया।

✮✮✮✮

कुसुम अपनी भाभी के बिस्तर पर गहरी नींद में सो ही रही थी कि तभी किसी के द्वारा ज़ोर ज़ोर से हिलाए जाने पर उसकी आंख खुल गई। वो हड़बड़ा कर उठी और फिर बदहवास हालत में उसने इधर उधर देखा तो जल्दी ही उसकी नज़र अपने एकदम पास झुकी रागिनी पर पड़ी।

"भ...भाभी आप?" कुसुम एकदम से चौंकते हुए बोली____"क्या हुआ, आप इस तरह खड़ी क्यों हैं? सोई नहीं आप?"

"नींद ही नहीं आ रही थी मुझे।" रागिनी ने बुझे मन से कहा____"इस लिए तुम्हें सोता देख मैं कमरे से बाहर चली गई थी। बाहर गई तो मेरे मन में वैभव का ख़याल आ गया। वो पहले भी बहुत देर तक मेरे पास ही सिरहाने पर बैठा हुआ था। उसे भी नींद नहीं आ रही थी। मैंने उसे आराम करने के लिए भेजा था तो सोचा देखूं वो आराम कर रहा है या अभी भी जाग रहा है? जब मैं उसके कमरे में पहुंची तो देखा वहां उसके कमरे में बिस्तर पर विभोर सो रहा था जबकि वैभव नहीं था?"

"क...क्या???" कुसुम अपनी भाभी की बात सुन कर बुरी तरह चौंकी____"ये क्या कह रही हैं आप? वैभव भैया अपने कमरे में नहीं थे?"

"हां कुसुम।" रागिनी ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"वो अपने कमरे में नहीं था। अब तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वो हवेली से चला गया है, शायद मेरी शर्त पूरी करने।"

"श...शर्त...पूरी करने???" कुसुम का जैसे दिमाग़ ही चकरा गया____"ये सब आप क्या कह रही हैं भाभी? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"

रागिनी ने संक्षेप में कुसुम को वो बातें बता दी जो उसकी और वैभव के बीच हुईं थी। सारी बातें सुन का कुसुम के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं।

"अब क्या होगा भाभी?" कुसुम घबराए हुए भाव से बोली____"कहीं वैभव भैया सच में ही न आपकी शर्त पूरी करने चले गए हों मगर उन्हें रात के इस वक्त हवेली से बाहर नहीं जाना चाहिए था।"

"यही तो मैं भी सोच रही हूं कुसुम।" रागिनी ने चिंतित और परेशान भाव से कहा____"उसे मेरी शर्त को पूरा करने के लिए इस तरह का पागलपन नहीं दिखाना चाहिए था। अगर उसे कुछ हो गया तो उसकी ज़िम्मेदार मैं ही तो होऊंगी। अगर हवेली में किसी को इस बारे में पता चला तो कोई भी मुझे माफ़ नहीं करेगा। कोई क्या मैं ख़ुद अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगी।"

कहने के साथ ही रागिनी की आंखें छलक पड़ीं। ये देख कुसुम झट से उठी और रागिनी को बिस्तर पर बैठा कर उसे दिलासा देने लगी।

"शांत हो जाइए भाभी।" फिर उसने कहा____"वैभव भैया को कुछ नहीं होगा। भगवान इतना भी बेरहम नहीं हो सकता कि वो हम सबको एक ही दिन में इतना सारा दुख दे दे।"

"कौन भगवान? कैसा भगवान कुसुम?" रागिनी ने हताश भाव से कहा____"नहीं, कहीं कोई भगवान नहीं है। सब झूठ है। ये सब लोगों का फैलाया हुआ अंधविश्वास है। अगर सच में कहीं भगवान होता तो अपने होने का कोई तो सबूत देता। जब से मैंने होश सम्हाला है तब से उसकी पूजा आराधना करती आई हूं मगर क्या किया भगवान ने? नहीं कुसुम, सच तो यही है कि इस दुनिया में भगवान जैसा कुछ है ही नहीं। आज मैं भी एक वादा करती हूं कि अगर इस भगवान ने वैभव के साथ कुछ भी बुरा किया तो मैं अपने हाथों से हवेली में मौजूद भगवान की हर मूर्ति को उठा कर हवेली से बाहर फेंक दूंगी।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" रागिनी की बातें सुन कर कुसुम के समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, बोली____"आपकी ज़ुबान पर इतनी कठोर बातें ज़रा भी अच्छी नहीं लगती। यकीन कीजिए वैभव भैया के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा। अब चलिए आराम कीजिए आप।"

कुसुम ने ज़ोर दे कर रागिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद किनारे पर बैठी जाने किन ख़यालों में खो गई। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन कमरे के अंदर मौजूद दो इंसानों के अंदर जैसे कोई आंधी सी चल रही थी।



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लेकिन यहाँ वैभव को रजनी और रूपचन्द की कहानी सामने ला देनी चाहिए थी...........
अभी तो जगन बाकी है

देखते हैं
 

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लेकिन यहाँ वैभव को रजनी और रूपचन्द की कहानी सामने ला देनी चाहिए थी...........
अभी तो जगन बाकी है

देखते हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
तो ये साला मुंशी का बेटा रघुवीर वैभव के हत्थे चढ गया
वैभव ने उससे कई बातें उगलावा ली लेकीन इस पुरे षडयंत्र का सुत्रधार सामने आना बाकी है
ये सफेदपोश का राज जबतक सामने नहीं आता तबतक
रागिणी भाभी और कुसुम की चिंता भी बडी है देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Suniya

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Superb awesome fantastic mind blowing update bhai
 

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mast update. to vaibhav ko maarne ke liye raghuveer aaya tha jo kamiyab nahi ho paya .

munshi bhi shamil hai thakuro ko tabah karne ke jurm me .apne biwi ko maar nahi paya par thakuro ko maarne ki thaan li aur apne bete ko bhi saath mila liya.
par wo kaun shaks hai jisne jagan ko bachaya aur vaibhav ko maarne ka aadesh diya aur jagan bhi apna imaan bechke taiyar ho gaya ..

bhabhi to pareshan hai vaibhav ke ghar me na hone se .
 

rockstar987

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Bhut bdia kahani likhi h bhai aapne mein koi achi storyline wali movie dekhta tha aur uske baad writer ka naam aata tha k ye kese ho skta h k ek bande ne itni badia story likhi hogi but jab xforum par aap jese writers ki stories padhte hein to lagta h k bilkul ek insaan behtreen se behtreen writing skills rakh skta h aapke kuch updates to ese hein jese koi movie aankho k samne theatre mein 3d mein dekh rhe ho 🔥🔥🔥🔥
 
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