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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
इस बारे में मैं केवल इतना कहूँगा कि इस तरह के शुभ कार्य में मन से लग कर हिस्सा लीजिए।
नहीं तो अगली लड़की के लिए बड़ी अपमानजनक बात होगी। अर्धांगिनी वो आपकी बनेगी - घरवालों की नहीं।
इसलिए मजबूरी में मत कीजिए ये काम - दिल से कीजिए। मानता हूँ, ये सब कहना मेरा प्लेस नहीं है, लेकिन फिर भी!
Ab jo bhi hoga October ya November me hi hoga...
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
अध्याय - 64
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....


जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।

✮✮✮✮

सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।

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Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
279
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अध्याय - 64
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जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।


✮✮✮✮

सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।


━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
ये तो obvious था की साहूकार इसमें शामिल है लेकिन इन सब के पीछे का जो mastermind है वो भी शांत नहीं बैठेगा, और वो कौन है जिसके अंदर इतनी ताकत है की शेरा भी उससे बराबरी नहीं कर पा रहा था और कितना चलाक है।
देखते है अपनी घर की बहु बेटियो की चिंता में साहूकार वापस आते है या नहीं

धन्यवाद भाई इस शानदार अपडेट के लिए
 

Pagal king

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अध्याय - 64
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अब तक....


जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।


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सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।


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Emotional 😭💔💔😭😭💔💔
 

Sanju@

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Samajh me nahi aa raha ki kya kahu kyoki mera kuch bhi kahna logo ko bahana hi lagega. :dazed:

Sanju bhaiya, pichhle mahine ek aur dukhad ghatna ho gayi. Jis ladki se meri shadi honi thi uska swargwas ho gaya. Usne suicide kar liya. Ram nauvmi ke din usne apni jeewan lila samaapt kar li. Yu to usse mujhe koi ghanisht prem nahi hua tha lekin pichhle do dhaayi mahine se daily baat cheet hoti thi to zaahir hai ek judaav aur ek lagaav ho gaya tha. Sab kahte the ki uske jaisi sanskaari, padi likhi aur shaant swabhaav wali ladki aas paas ke kisi bhi gaav me nahi thi. Do dhaayi mahine ki baat cheet me main khud bhi is baat ko samajh chuka tha aur sach kahu to sirf isi baat ka sabse zyada dukh aur malaal hai. Khair wo apne naseeb me hi nahi thi to chali gayi :dazed:

Is abhaasi duniya me koi bhi ye sochna nahi chahta ki jis tarah unki life hoti hai aur unki life me pareshaniya hoti hain usi tarah hamari bhi zindagi dukh dard aur pareshaniyo se ghiri hoti hai. Pichhle kuch saalo me hamare ghar pariwar me aur khud meri life me aisi aisi baate huyi hain ki agar koi aur hota to jane kya kar chuka hota magar main is sabke baad bhi zinda hu aur apne dard aur apne aansuo ko kisi ko bhi na dikhate huye zabardasti muskurata rahta hu. Khair chhodiye main to ab yahi dekhna chahta hu ki upar baitha vidhata mere naseeb me aur kya kya likhe baitha hai :sigh:

Logo ne kaha ki jo hota hai achhe ke liye hota hai is liye kisi cheez ke bare me itna mat socho aur aage badho to bas ab badhte ja rahe hain....Ab apne paas kaam ke siva koi kaam nahi hai. Samay nikaal kar der se hi sahi par kahaniyo me update deta rahuga. Apne dost bhaiyo se itna hi kahuga ki kahani ka aghaaz hua hai to uska der se hi sahi lekin anjaam bhi zarur hoga. Mujhe zara bhi is baat se khushi nahi milti hai ki log mere bare me galat dhardaaye bana le. Mujhe mere wakt aur halaato ne bebas kar rakha hai warna aise ruswa na hota. Bas dhairya rakhe aur viswaas rakhe.....Dhanyawad 🙏🙏
पढ़ कर बहुत बुरा लगा सच में भाई आंसु आ गए हैं लेकिन उस लड़की ने गलत किया हर परेशानी का हल सुसाइड नही होता है आपकी मनोस्थिति समझता हूं लेकिन हम कुछ भी नही कर सकते हैं ये ही प्रभु की इच्छा है
 

Sanju@

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अध्याय - 63
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अब तक....

"अब तो नर संघार होगा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर के हलक से एकाएक गुर्राहट निकली____"अभी तक हम चुप थे लेकिन अब हमारे दुश्मन हमारा वो रूप देखेंगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। एक एक को अपनी जान दे कर इस सबकी कीमत चुकानी होगी।"

कहने के साथ ही दादा ठाकुर ने शेरा को वापस चलने का हुकुम दिया। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़े ही खूंखार भाव नज़र आ रहे थे। दादा ठाकुर को अपने जलाल पर आया देख अर्जुन सिंह पहले तो सहम सा गया लेकिन फिर राहत की सांस ली। जीप वापस हवेली की तरफ चल पड़ी थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी जैसे माहौल का आभास होने लगा था। ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला था?


अब आगे....


दादा ठाकुर के पहुंचने से पहले ही हवेली तक ये ख़बर जंगल में फैलती आग की तरह पहुंच गई थी कि जगताप और अभिनव को हवेली के दुश्मनों ने जान से मार डाला है। बस फिर क्या था, पलक झपकते ही हवेली में मानों कोहराम मच गया था। नारी कंठों से दुख-दर्द और करुणा से मिश्रित चीखें पूरी हवेली को मानों दहलाने लगीं थी। हवेली की ठकुराईन सुगंधा देवी, मझली ठकुराईन मेनका देवी, और हवेली की लाडली बेटी कुसुम इन सबका मानों बुरा हाल हो गया था। जगताप के दोनों बेटे विभोर और अजीत भी रो रहे थे और सबको सम्हालने की कोशिश कर रहे थे। हवेली में काम करने वाली नौकरानियां और नौकर सब के सब इस घटना के चलते दुखी हो कर रो रहे थे।

उस वक्त तो हवेली में और भी ज़्यादा हाहाकार सा मच गया जब दादा ठाकुर हवेली पहुंचे। उन्हें बखूबी एहसास था कि जब वो हवेली पहुंचेंगे तो उन्हें बद से बद्तर हालात का सामना करना पड़ेगा और साथ ही ऐसे ऐसे सवालों का भी जिनका जवाब दे पाना उनके लिए बेहद मुश्किल होगा। अंदर से तो अब भी उनका जी चाह रहा था कि औरतों की तरह दहाड़ें मार मार कर रोएं मगर बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपने जज़्बातों को कुचल कर खुद को जैसे पत्थर का बना लिया था। पूरा नरसिंहपुर हवेली के बाहर जमा था, जिनमें मर्द और औरतें तो थीं ही साथ में बच्चे भी शामिल थे। सबके सब रो रहे थे। जैसे जैसे ये ख़बर फैलती हुई लोगों के कानों तक पहुंच रही थी वैसे वैसे हवेली के चाहने वाले हवेली की तरफ दौड़े चले आ रहे थे।

"कहां है हमारा बेटा जगताप और अभिनव?" दादा ठाकुर अभी बैठक में दाखिल ही हुए थे कि अचानक उनके सामने सुगंधा देवी किसी जिन्न की तरह आ गईं और रोते हुए उनसे मानों चीख पड़ीं____"आप उन दोनों को सही सलामत अपने साथ क्यों नहीं ले आए?"

दादा ठाकुर ने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो जवाब देने की मानसिकता में थे ही नहीं। उनके अंदर तो इस वक्त भयानक चक्रवात सा चल रहा था जिसे वो किसी तरह सम्हाले हुए थे। उनके साथ दूसरे गांव का उनका मित्र अर्जुन सिंह भी था और साथ ही कुछ और भी लोग जिनसे उनके घनिष्ट सम्बन्ध थे।

"आप चुप क्यों हैं?" जब दादा ठाकुर कुछ न बोले तो ठकुराईन सुगंधा देवी बिफरे हुए अंदाज़ में चीख पड़ीं_____"आप बोलते क्यों नहीं कि हमारे बेटे कहां हैं? क्या हमें इतना भी हक़ नहीं है कि अपने बेटों के मुर्दा जिस्मों से लिपट कर रो सकें? आप इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं दादा ठाकुर? क्या उनके लहू लुहान जिस्मों को देख कर भी आपका कलेजा नहीं फटा?"

"खुद को सम्हालिए ठकुराईन।" अर्जुन सिंह ने बड़े धैर्य से कहा_____"ठाकुर साहब पर ऐसे शब्दों के वार मत कीजिए। वो अंदर से बहुत दुखी हैं।"

"नहीं, हर्गिज़ नहीं।" सुगंधा देवी इस बार गुस्से से चीख ही पड़ीं_____"ये किसी बात से दुखी नहीं हो सकते क्योंकि इनके सीने में जज़्बातों से भरा दिल है ही नहीं। ये भी अपने बाप पर ग‌ए हैं जिन्हें लोगों को दुख और कष्ट देने में ही खुशी मिलती थी। हमने न जाने कितनी बार इनसे पूछा था कि हवेली के बाहर आख़िर ऐसा क्या चल रहा है जिसके चलते हमारे अपनों के साथ ऐसी घटनाएं हो रहीं हैं लेकिन ये हमेशा हमसे सच को छुपाते रहे। अगर हम कहें कि जगताप और अभिनव की मौत के सिर्फ और सिर्फ आपके ये ठाकुर साहब ही जिम्मेदार हैं तो ग़लत न होगा। इनकी चुप्पी और बुजदिली के चलते आज हमने अपने शेर जैसे दोनों बेटों को खो दिया है।"

कहने के साथ ही सुगंधा देवी फूट फूट कर रो पड़ीं। उनके जैसा ही हाल मेनका और कुसुम का भी था। दोनों के मन में कहने के लिए तो बहुत कुछ था मगर दादा ठाकुर से कभी जुबान नहीं लड़ाया था इस लिए ऐसे वक्त में भी कुछ न कह सकीं थी। बस अंदर ही अंदर घुटती रहीं। इधर सुगंधा देवी की बातों से दादा ठाकुर के अंदर जो पहले से ही भयंकर चक्रवात चल रहा था वो और भी भड़क उठा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वो तेज़ी से अंदर की तरफ बढ़ते चले गए। कुछ देर में जब वो लौटे तो उनके हाथ में बंदूक थी और आंखों में धधकते शोले। उनके तेवर देख सबके सब दहल से गए। अर्जुन सिंह फ़ौरन ही उनके पास गए।

"नहीं ठाकुर साहब, ऐसा मत कीजिए।" अर्जुन सिंह ने कहा_____"अभी ऐसा करना कतई उचित नहीं है। हमें सबसे पहले ये पता करना होगा कि मझले ठाकुर जगताप और बड़े कुंवर अभिनव पर किसने हमला किया था?"

"अब किसी बात का पता करने का वक्त नहीं रहा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर गुस्से में गुर्राए____"अब तो सिर्फ एक ही बात होगी और वो है_____नर संघार। हमें अच्छी तरह पता है कि ये सब किसने किया है, इस लिए अब उनमें से किसी को भी इस दुनिया में जीने का हक नहीं रहा।"

"माना कि आपको सब पता है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा_____"लेकिन इसके बावजूद इस वक्त आपको ऐसा रुख अख्तियार करना उचित नहीं है। इस वक्त हवेली में आपका रहना बेहद ज़रूरी है और इस सबकी वजह से जो दुखी हैं उनको सांत्वना देना आपका सबसे पहला कर्तव्य है। एक और बात, हवेली के बाहर इस वक्त सैकड़ों लोग जमा हैं, वो सब आपके चाहने वाले हैं और इस सबकी वजह से वो सब भी दुखी हैं। उन सबको शांत कीजिए, समझाइए और उन्हें वापस घर लौटने को कहिए। इसके बाद ही आपको कोई क़दम उठाने के बारे में सोचना चाहिए।"

अर्जुन सिंह की बातों ने दादा ठाकुर के अंदर मानों असर डाला। जिसके चलते उनके अंदर का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ और फिर वो बैठक से बाहर आ गए। हवेली के सामने विसाल मैदान पर लोगों की भीड़ को देखते हुए उन्होंने बड़े ही शांत भाव का परिचय देते हुए उन सबका पहले तो अभिवादन किया और फिर सबको लौट जाने का आग्रह किया। आख़िर दादा ठाकुर के ज़ोर देने पर सब एक एक कर के जाने लगे किंतु बहुत से ऐसे अपनी जगह पर ही मौजूद रहे जो दादा ठाकुर के कहने पर भी नहीं गए। उनका कहना था कि जब तक हवेली के दुश्मनों को ख़त्म नहीं कर दिया जाएगा तब तक वो कहीं नहीं जाएंगे और खुद भी दुश्मनों को ख़त्म करने के लिए दादा ठाकुर के साथ रहेंगे।

वक्त और हालात की गंभीरता को देखते हुए अर्जुन सिंह ने बहुत ही होशियारी से दादा ठाकुर को कोई भी ग़लत क़दम उठाने से रोक लिया था और साथ ही हवेली की सुरक्षा व्यवस्था के लिए आदमियों को लगा दिया था। अपने एक दो आदमियों को उन्होंने अपने गांव से और भी कुछ आदमियों को यहां लाने का आदेश दे दिया था।

गांव के जो लोग रह गए थे उन्हें ये कह कर वापस भेज दिया गया था कि जल्दी ही उन्हें दुश्मनों को ख़त्म करने का अवसर दिया जाएगा। सब कुछ व्यवस्थित करने के बाद अर्जुन सिंह दादा ठाकुर को बैठक में ले आए। इस वक्त बैठक में कई लोग थे जो गंभीर सोच के साथ बैठे हुए थे। इधर दादा ठाकुर के चेहरे पर रह रह कर कई तरह के भाव उभरते और फिर लोप हो जाते। उनकी आंखों के सामने बार बार अपने छोटे भाई जगताप और उनके बेटे अभिनव का चेहरा उजागर हो जाता था जिसके चलते उनकी आंखें नम हो जाती थीं। ये वो ही जानते थे कि इस वक्त उनके दिल पर क्या बीत रही थी।

शहर से पुलिस विभाग के कुछ आला अधिकारी भी आए हुए थे जो ऐसे अवसर पर दादा ठाकुर को यही सलाह दे रहे थे कि खुद को नियंत्रित रखें। असल में कानून के इन नुमाइंदों को अंदेशा ही नहीं बल्कि पूरा यकीन था कि जो कुछ भी हुआ है उसके बाद बहुत कुछ अनिष्ट हो सकता है जोकि ज़ाहिर है दादा ठाकुर के द्वारा ही होगा इस लिए वो चाहते थे कि किसी भी तरह का अनिष्ट न हो। जगताप और अभिनव के मृत शरीरों की जांच करने के लिए उन्होंने अपने कुछ पुलिस वालों के साथ शहर भेज दिया था। हालाकि दादा ठाकुर ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहते थे किंतु आला अधिकारियों के अनुनय विनय करने से उन्हें मानना ही पड़ा था।


✮✮✮✮

"नहीं, ये नहीं हो सकता।" शेरा के मुख से सारी बातें सुनते ही मैं हलक फाड़ कर चीख पड़ा था और साथ ही शेरा का गिरेबान पकड़ कर गुस्से से बोल पड़ा_____"कह दो कि ये सब झूठ है। कह दो कि मेरे चाचा जी और मेरे भैया को कुछ नहीं हुआ है।"

बेचारा शेरा, आंखों में आसूं लिए कुछ बोल ना सका। उसे यूं चुप देख मेरा खून खौल उठा। दिलो दिमाग़ में बुरी तरह भूचाल सा आ गया। मारे गुस्से के मैंने शेरा को ज़ोर का धक्का दिया तो वो फिसलते हुए पीछे जा गिरा। उसने उठने की कोई कोशिश नहीं की। इधर मैं उसी गुस्से में आगे बढ़ा और झुक कर उसे उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया।

"तुम्हारी ज़ुबान ख़ामोश क्यों है?" मैं ज़ोर से चीखा____"बताते क्यों नहीं कि किसी को कुछ नहीं हुआ है?"

घर के बाहर इस तरह का शोर शराबा सुन कर अंदर से सब भागते हुए बाहर आ गए। मुझे किसी आदमी के साथ इस तरह पेश आते देख सबके सब बुरी तरह चौंक पड़े थे।

"रुक जाइए वैभव महाराज।" वीरेंद्र फौरन ही मेरे क़रीब आ कर बोला____"ये क्या कर रहे हैं आप और ये आदमी कौंन है? इसने ऐसा क्या कर दिया है जिसके लिए आप इसके साथ इस तरह से पेश आ रहे हैं?"

वीरेंद्र के सवालों से आश्चर्यजनक रूप से मुझ पर प्रतिक्रिया हुई। मेरी हरकतों में एकदम से विराम सा लग गया। आसमान से गिरी बिजली जो कहीं ऊपर ही अटक गई थी वो अब जा कर मेरे सिर पर पूरे वेग से गिर पड़ी थी। ऐसा लगा जैसे जिस जगह पर मैं खड़ा था उस जगह की ज़मीन अचानक से धंस गई है और मैं उसमें एकदम से समा गया हूं। आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया और इससे पहले कि चक्कर खा कर मैं वहीं गिर पड़ता वीरेंद्र ने जल्दी से मुझे सम्हाल लिया।

मेरी हालत देख कर सब के सब सन्नाटे में आ गए। हर कोई समझ चुका था कि कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से मेरी ऐसी हालत हो गई है। मुझे फ़ौरन ही बैठक में रखे लकड़ी के तख्त पर लेटा दिया गया और मुझ पर पंखा किया जाने लगा। मेरी हालत देख कर सब के सब चिंतित हो उठे थे। वहीं दूसरी तरफ घर के कुछ लोग शेरा से पूछ रहे थे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से मेरी ये हालत हो गई है? उन लोगों के पूछने पर शेरा कुछ बोल नहीं रहा था। शायद वो समझता था कि सच जानने के बाद कोई भी इस सच को सहन नहीं कर पाएगा और यहां जिस चीज़ की वो सब खुशियां मना रहे थे उसमें विघ्न पड़ जाएगा।

जल्दी ही मेरी हालत में थोड़ा सुधार हुआ तो मुझे होश आया। मैं एकदम से उठ बैठा और बदहवास सा सबकी तरफ देखने लगा। हर चेहरे से होती हुई मेरी नज़र रागिनी भाभी पर जा कर ठहर गई। वो चिंतित और परेशान अवस्था में मुझे ही देखे जा रहीं थी। उन्हें देखते ही मेरे अंदर बुरी तरह मानों कोई मरोड़ सी उठी और मैं फफक फफक कर रो पड़ा। मुझे यूं रोते देख भाभी चौंकी और एकदम से घबरा ग‌ईं। वो फ़ौरन ही मेरे पास आईं और मुझे खुद से छुपका लिया।

"क्या हुआ वैभव?" वो मेरे चेहरे पर अपने कोमल हाथ फेरते हुए बड़े घबराए भाव से बोलीं_____"तुम इस तरह रो क्यों रहे हो? तुम तो मेरे बहादुर देवर हो, फिर इस तरह बच्चों की तरह क्यों रो रहे हो?"

भाभी की बातें सुनकर मैं और भी उनसे छुपक कर रोने लगा। मेरे अंदर के जज़्बात मेरे काबू में नहीं थे। सहसा मैं ये सोच कर कांप उठा कि भाभी को जब सच का पता चलेगा तो उन पर क्या गुज़रेगी? नहीं नहीं, उन्हें सच का पता नहीं चलना चाहिए वरना वो तो मर ही जाएंगी। एकाएक ही मेरे अंदर विचारों का और जज़्बातों का ऐसा तूफान उठा कि मैं उसे सम्हाल न सका। भाभी से लिपटा मैं बस रोए जा रहा था। मुझे रोता देख भाभी भी रोने लगीं। बाकी सबकी भी आंखें नम हो उठीं। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मैं इस तरह रोए जा रहा हूं। सबको किसी भारी अनिष्ट के होने की आशंका होने लगी थी। सबके ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे।

"तुम्हें मेरी क़सम है वैभव।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे सच सच बताओ कि आख़िर क्या हुआ है? बाहर मौजूद शेरा ने तुमसे ऐसा क्या कहा है जिसे सुन कर तुम इस तरह रोने लगे हो?"

"सब कुछ ख़त्म हो गया भाभी।" भाभी की क़सम से मजबूर हो कर मैंने रोते हुए कहा तो भाभी को झटका सा लगा, बोली____"स..सब कुछ ख़त्म हो गया, क्या मतलब है तुम्हारा?"

"बस इससे आगे कुछ नहीं बता सकता भाभी।" मैंने उनसे अलग हो कर तथा खुद को सम्हालते हुए कहा____"क्योंकि ना तो मुझमें कुछ बताने की हिम्मत है और ना ही आप में से किसी में सुनने की।"

मेरी बात सुन कर जहां भाभी एकदम से अवाक सी रह गईं वहीं बाकी लोगों के चेहरे भी फक्क से पड़ गए। मैंने बड़ी मुस्किल से अपने जज़्बातों को काबू किया और तख्त से उठ कर खड़ा हो गया। मेरे लिए अब यहां पर रुकना मुश्किल पड़ रहा था। मैं जल्द से जल्द हवेली पहुंच जाना चाहता था। मैं अच्छी तरह समझ सकता था कि इस समय हवेली में मेरे अपनों का क्या हाल हो रहा होगा।

"मुझे सच जानना है वैभव।" भाभी ने कठोर भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"आख़िर क्या छुपा रहे हो मुझसे?"
"बस इतना ही कहूंगा भाभी।" मैंने उनसे नज़रें चुराते हुए गंभीरता से कहा____"कि जितना जल्दी हो सके यहां से वापस हवेली चलिए। मैं बाहर आपके आने का इंतजार करूंगा।"

कहने के साथ ही मैं तेज़ क़दमों के साथ बाहर आ गया। मेरे पीछे बैठक में सब के सब भौचक्के से खड़े रह गए थे। उधर मेरी बात सुनते ही भाभी ने बाकी सबकी तरफ देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चली गईं। उन्हें भी समझ आ गया था कि बात जो भी है बहुत ही गंभीर है और अगर मैंने वापस हवेली चलने को कहा है तो यकीनन उनका जाना ज़रूरी है।

बाहर आया तो देखा भाभी के पिता और उनके भाई शेरा के पास ही अजीब हालत में खड़े थे। उनकी आंखों में आसूं देख मैं समझ गया कि शेरा ने उन्हें सच बता दिया है। मुझे देखते ही वीरेंद्र मेरी तरफ लपका और मुझसे लिपट कर रोने लगा।

"ये सब क्या हो गया वैभव जी?" वीरेंद्र रोते हुए बोला_____"एक झटके में मेरी बहन विधवा हो गई। इतना बड़ा झटका कैसे बर्दास्त कर सकेगी वो?"

"चुप हो जाइए वीरेंद्र भैया।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"भाभी को अभी इस बात का पता नहीं चलना चाहिए, वरना वो ये सदमा बर्दास्त नहीं कर पाएंगी। मैं इसी वक्त उन्हें ले कर गांव जा रहा हूं।"

"मैं भी आपके साथ चलूंगा।" वीरेंद्र अपने आंसू पोंछते हुए बोला____"ऐसे वक्त में हम आपको अकेला यूं नहीं जाने दे सकते।"

"सही कहा तुमने बेटे।" भाभी के पिता जी ने दुखी भाव से कहा_____"इस दुख की घड़ी में हम सबका वहां जाना आवश्यक है। एक काम करो तुम अपने भाइयों को ले कर जल्द ही इनके साथ यहां से निकलो।"

"नहीं बाबू जी।" मैंने कहा____"इन्हें मेरे साथ मत भेजिए। ऐसे में भाभी को शक हो जाएगा कि कोई बात ज़रूर है इस लिए आप इन्हें हमारे जाने के बाद आने को कहिए।"

मेरी बात सुन कर उन्होंने सिर हिलाया। अभी हम बात ही कर रहे थे कि तभी भाभी अपना थैला लिए हमारी तरफ ही आती दिखीं। उन्हें देख कर एक बार फिर से मेरे दिल पर मानों बरछियां चल गईं। मैं सोचने लगा कि इस मासूम सी औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा ज़ुल्म क्यों कर दिया? बड़ी मुश्किल से तो उनकी जिंदगी में खुशियों के पल आए थे और अब तो ऐसा हो गया है कि चाह कर भी कोई उनके दामन में खुशियां नहीं डाल सकता था। मुझे समझ न आया कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी भाभी को कोई दुख तकलीफ छू भी न सके। अपनी बेबसी और लाचारी के चलते मेरी आंखें छलक पड़ीं जिन्हें फ़ौरन ही पलट कर मैंने उनसे छुपा लिया।

कुछ ही देर में मैं जीप में भाभी को बैठा कर शेरा और अपने कुछ आदमियों के साथ अपने गांव नरसिंहपुर की तरफ चल पड़ा। मेरे बगल से भाभी बैठी हुईं थी। वो गुमसुम सी नज़र आ रहीं थी, ये देख मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि क्या होगा उस वक्त जब उन्हें सच का पता चलेगा? आख़िर कैसे उस अहसहनीय दुख को सह पाएंगी वो? मैंने मन ही मन ऊपर वाले से उन्हें हिम्मत देने की फरियाद की।

गांव से निकल कर जब हम काफी दूर आ गए तो भाभी ने मुझसे फिर से पूछना शुरू कर दिया कि आख़िर क्या बात हो गई है? उनके पूछने पर मैंने बस यही कहा कि हवेली पहुंचने पर उन्हें खुद ही पता चल जाएगा। मैं भला कैसे उन्हें सच बता देता और उन्हें उस सच के बाद मिलने वाले दुख से दुखी होते देखता? जीवन में कभी ऐसा भी वक्त आएगा इसकी कल्पना भी नहीं की थी मैंने। आंखों के सामने बार बार अभिनव भैया का चेहरा दिखने लगता था और न चाहते हुए भी मेरी आंखें भर आती थीं। अपने आंसुओं को भाभी से छुपाने के लिए मैं जल्दी से दूसरी तरफ देखने लगता था। मेरा बस चलता तो किसी जादू की तरह सब कुछ ठीक कर देता और अपनी मासूम सी भाभी के पास किसी तरह की तकलीफ़ न आने देता मगर मेरे बस में अब कुछ भी नहीं रह गया था।

मुझे याद आया कि जो लोग मुझे चंदनपुर में जान से मारने के इरादे से आए थे उनमें से एक ने मुझे बताया था कि वो लोग किसके कहने पर मेरी जान लेने आए थे? साहूकारों पर तो मुझे पहले से ही कोई भरोसा नहीं था लेकिन वो इस हद तक भी जा सकते हैं इसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने। मुझ पर उनका कोई बस नहीं चल पाया तो उन्होंने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई को मार दिया। मुझे समझ में नहीं आया कि ये सब कैसे संभव हुआ होगा उनके लिए? मेरे चाचा और भैया उन लोगों को कहीं अकेले तो नहीं मिल गए होंगे जिसके चलते वो उन्हें मार देने में सफल हो गए होंगे। ज़ाहिर है वो लोग पहले से ही इस सबकी तैयारी कर चुके थे और मौका देख कर वो लोग उन पर झपट पड़े होंगे।

सोचते सोचते मेरे अंदर दुख तकलीफ़ के साथ साथ अब भयंकर गुस्सा भी भरता जा रहा था। मैं तो पहले ही ऐसे हरामखोरों को ख़ाक में मिला देना चाहता था मगर पिता जी के चलते मुझे रुकना पड़ गया था मगर अब, अब मैं किसी के भी रोके रुकने वाला नहीं था। जिन लोगों ने चाचा जगताप और मेरे भाई की जान ली है उन्हें ऐसी मौत मारुंगा कि किसी भी जन्म में वो ऐसा करने की हिमाकत न कर सकेंगे।

क़रीब सवा घंटे बाद मैं हवेली पहुंचा। इस एहसास ने ही मुझे थर्रा कर रख दिया कि अब क्या होगा? मेरी भाभी कैसे इतने भयानक और इतने असहनीय झटके को बर्दास्त कर पाएंगी? मेरी नज़रें हवेली के विशाल मैदान के चारो तरफ घूमने लगीं जहां पर कई हथियारबंद लोग मुस्तैदी से खड़े थे। ज़ाहिर है वो किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार थे। वातावरण में बड़ी अजीब सी शान्ति छाई हुई थी किंतु हवेली के अंदर किस तरह का हड़कंप मचा हुआ है इसका एहसास और आभास मुझे बाहर से ही हो रहा था।

हवेली के मुख्य दरवाज़े के क़रीब जीप को मैंने रोका और फिर उतर कर मैं दूसरी तरफ आया। मैंने देखा भाभी मुख्य दरवाज़े की तरफ ही देखे जा रहीं थी। उनके मासूम से चेहरे पर अजीब से भाव थे। उन्हें देख कर एक बार फिर से मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर उठे तूफान को काबू किया और भाभी की तरफ का दरवाज़ा खोल दिया जिससे भाभी ने एक नज़र मुझे देखा और फिर सावधानी से नीचे उतर आईं।

अपने सिर पर साड़ी का पल्लू डाले वो अंदर की तरफ बढ़ गईं तो मैंने जीप से उनका थैला लिया और शेरा को जीप ले जाने का इशारा कर के भाभी के पीछे हो लिया। जैसे जैसे भाभी अंदर की तरफ बढ़ती जा रहीं थी वैसे वैसे मेरी सांसें मानों रुकती जा रहीं थी। जल्दी ही भाभी बैठक को पार करते हुए अंदर की तरफ बढ़ गईं जबकि मैं बैठक में ही रुक गया। मेरी नज़र जब कुछ लोगों से घिरे पिता जी पर पड़ी तो मैं खुद को सम्हाल न सका। बैठक में बैठे लोगों को भी पता चल चुका था कि मैं आ गया हूं और साथ ही मेरे साथ भाभी भी आ गईं हैं। मैं बिजली की सी तेज़ी से पिता जी के पास पहुंचा और रोते हुए उनसे लिपट गया। मुझे यूं अपने से लिपट कर रोता देख पिता जी भी खुद को सम्हाल न सके। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और उनके अंदर का गुबार मानों एक ही झटके में फूट गया। मुझे अपने सीने से यूं जकड़ लिया उन्होंने जैसे उन्हें डर हो कि मैं भी उनसे वैसे ही दूर चला जाऊंगा जैसे चाचा जगताप और बड़े भैया चले गए हैं।

जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।


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दादा ठाकुर के परिवार पर बहुत बड़ी विपदा आ गई है दुःखी तो सभी बहुत है लेकिन रागिनी भाभी सब से ज्यादा दुखी होगी वो तो जवानी में विधवा हो गई अब जाके थोड़ी बहुत खुशी उनकी झोली में आई थी कि भगवान ने वो भी छीन ली दुश्मन ये सब करके अपनी जीत का जश्न मना रहा होगा लेकिन देखते हैं अब वैभव क्या करता है दादा ठाकुर को तो अर्जुन ने रोक लिया है लेकिन अभी तक इनको पता नही है कि असली दुश्मन कोन है ????
 
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