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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
रूपा ने वैभव के लिए अपने प्यार का सबूत तो दे दिया ............अपने ताऊ की साजिश को नाकाम करने की सोच कर....... लेकिन क्या रूपा की ये कोशिश कामयाब होगी
Ab ye to aage hi pata chalega..
इधर शेरा ने जब सफ़ेद नकाबपोश का पीछा किया तो वो बाग में एक पेड़ के पीछे जाकर गायब हो गया.............उस पेड़ के ताने का पोस्टमोर्टम करना होगा.... वहाँ से कोई गुप्त रास्ता हो सकता है
शायद मुनीम के घर के लिए
Point hai.... :approve:
काले नकाबपोश से कुछ खास जानकारी मिलने की मुझे उम्मीद नहीं लग रही........... वो साजिश रचने वालों में से नहीं............सिर्फ भाड़े का टट्टू है

देखते हैं आगे क्या होता है.....................
Sahi kaha, dekhiye kya hota hai...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 59
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अब तक....

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

अब आगे....

उस वक्त शाम के क़रीब नौ बजने वाले थे। रूपा अपनी भाभी कुमुद के साथ अपने घर से दिशा मैदान जाने के लिए निकली थी। यूं तो आसमान में आधे से कम चांद था जिसकी वजह से हल्की रोशनी थी किंतु आसमान में काले बादलों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता था जैसे रात के किसी प्रहर बारिश हो सकती थी। काले बादलों ने उस आधे से कम चांद को ढंक रखा था जिसकी वजह से उसकी रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पा रही थी। रूपा और कुमुद पर मानों काले बादलों ने मेहरबानी कर रखी थी। घर के पीछे आने के बाद वो दोनों लंबा चक्कर लगाते हुए सीधा हवेली पहुंच गईं थी। कुमुद ने साड़ी से घूंघट किया हुआ था और रूपा ने अपने दुपट्टे को मुंह में लपेट लिया था ताकि रास्ते में अगर कोई मिले भी तो वो उन दोनों को पहचान न सके। दोनों ने अपने अपने लोटे को घर के पीछे ही एक जगह छिपा दिया था।

ननद भौजाई दोनों ही पहली बार हवेली आईं थी। दादा ठाकुर की हवेली के बारे में सुना बहुत था दोनों ने लेकिन कभी यहां आने का कोई अवसर नहीं मिला था। दोनों की धड़कनें बढ़ी हुईं थी। कुमुद कई बार रूपा को बोल चुकी थी कि कहीं हम किसी के द्वारा पकड़े न जाएं इस लिए वापस घर लौट चलते हैं लेकिन रूपा ने तो जैसे ठान लिया था कि अब तो वो हवेली जा कर दादा ठाकुर को सब कुछ बता कर ही रहेगी।

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास पहुंच कर दोनों ही रुक गईं। हल्के अंधेरे में उन्हें हाथी दरवाज़े के पार दूर हवेली बनी हुई नज़र आई जो अंधेरे में बड़ी ही अजीब और भयावह सी नज़र आ रही थी। कुछ देर तक दोनों इधर उधर देखती रहीं उसके बाद आगे बढ़ चलीं। दोनों की धड़कनें पहले से और भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। अभी दोनों ने हाथी दरवाज़े को पार ही किया था कि सहसा एक तेज़ मर्दाना आवाज़ को सुन कर दोनों के होश उड़ गए। घबराहट के मारे पलक झपकते ही दोनों का बुरा हाल हो गया।

"कौन हो तुम दोनों?" सहसा एक आदमी अंधेरे में दोनों के सामने किसी जिन्न की तरह नमूदार हो कर कड़क आवाज़ में बोला____"और इस वक्त कहां जा रही हो?"

"ज...जी वो हमें दादा ठाकुर से मिलना है।" कुमुद से पहले रूपा ने हिम्मत जुटा कर धीमें स्वर में कहा।
"दादा ठाकुर से??" वो आदमी जोकि हवेली का दरबान था चौंकते हुए दोनों को देखा____"तुम दोनों को भला उनसे क्या काम है?"

"देखिए हमारा उनसे मिलना बहुत ही ज़रूरी है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा____"आप कृपया हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"
"अरे! ऐसे कैसे भला?" दरबान ने हाथ झटकते हुए संदिग्ध भाव से कहा____"पहले तुम दोनों ये बताओ कि कौन हो और रात के इस वक्त अंधेरे में कहां से आई हो?"

"देखिए आप समझ नहीं रहे हैं।" कुमुद ने सहसा आगे बढ़ कर कहा____"आपके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम कौंन है और कहां से आए हैं, बल्कि ज़रूरी ये है कि आप हमें जल्द से जल्द दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"

"आप हमें ग़लत मत समझिए।" रूपा ने कहा____"असल में बात कुछ ऐसी है कि हम सिर्फ़ दादा ठाकुर को ही बता सकते हैं। कृपा कर के आप या तो हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए या फिर आप ख़ुद ही जा कर दादा ठाकुर को बता दीजिए कि कोई उनसे मिलने आया है।"

दरबान दोनों की बात सुन कर सोच में पड़ गया। रात के इस वक्त दो औरतों का हवेली में आना उसके लिए हैरानी की बात थी किंतु आज कल जो हालात थे उसका उसे भी थोड़ा बहुत पता था इस लिए उसने सोचा कि एक बार दादा ठाकुर को इस बारे में सूचित ज़रूर करना चाहिए।

"ठीक है।" फिर उसने थोड़ा नम्र भाव से कहा___"तुम दोनों यहीं रुको। मैं दादा ठाकुर को तुम दोनों के बारे में सूचित करता हूं। अगर उन्होंने तुम दोनों को बुलाया तो मैं तुम दोनों को अंदर उनके पास ले चलूंगा।"

दरबान की बात सुन कर दोनों ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दरबान दोनों को यहीं रुकने का बोल कर तेज़ कदमों के साथ हवेली की तरफ बढ़ता चला गया। इधर कुमुद और रूपा अंधेरे में इधर उधर देखने लगीं थी। उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए अथवा वो दोनों किसी ऐसे आदमी के द्वारा न पकड़ी जाएं जो उन्हें पहचानता हो। दूसरा डर इस बात का भी था कि अगर दोनों को घर लौटने में ज़्यादा देर हो गई तो वो दोनों घर वालों को क्या जवाब देंगी?

ख़ैर कुछ ही देर में दरबान लगभग दौड़ता हुआ आया और हांफते हुए दोनों से अंदर चलने को कहा। दरबान के द्वारा अंदर चलने की बात सुन कर दोनों ने राहत की लंबी सांस ली और फिर दरबान के पीछे पीछे हवेली की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही समय में दोनों उस दरबान के साथ हवेली के अंदर बैठक में पहुंच गईं। दोनों के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे। दरबान उन दोनों को बैठक में छोड़ कर बाहर चला गया था। बैठक में इस वक्त कोई नहीं था। दोनों अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए बैठक की दीवारों को देखने लगीं थी। तभी सहसा किसी के आने की आहट से दोनों चौंकीं और फ़ौरन ही पलट कर पीछे देखा। नज़र एक ऐसी शख्सियत पर पड़ी जिनके लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे बदन पर सफ़ेद कुर्ता पजामा था। कुर्ते के ऊपर उन्होंने एक साल ओढ़ रखा था। चेहरे पर रौब और तेज़ का मिला जुला संगम था। बड़ी बड़ी मूंछें और क़रीब तीन अंगुल की दाढ़ी जिनके बाल आधे से थोड़ा कम सफ़ेद नज़र आ रहे थे।

"कौन हैं आप दोनों?" दादा ठाकुर ने अपने सिंहासन पर बैठने के बाद बड़े नम्र भाव से दोनों की तरफ देखते हुए पूछा____"और रात के इस वक्त हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?"

दादा ठाकुर की आवाज़ से दोनों को होश आया तो दोनों हड़बड़ा गईं और फिर खुद को सम्हाले हुए आगे बढ़ कर एक एक कर के दोनों ने झुक कर दादा ठाकुर के पांव छुए। दादा ठाकुर दोनों को ये करते देख हल्के से चौंके किन्तु फिर सामान्य भाव से दोनों को आशीर्वाद दिया। कुमुद ने तो उनके सामने घूंघट कर रखा था लेकिन रूपा ने अपने चेहरे से दुपट्टा हटा लिया।

"मैं रूपा हूं दादा ठाकुर।" रूपा ने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"मेरे पिता जी का नाम हरि शंकर है और ये मेरी भाभी कुमुद हैं।"
"हरि शंकर??" दादा ठाकुर एकदम से चौंके, फिर हैरानी से बोले___"अच्छा अच्छा, तुम साहूकार हरि शंकर की बेटी हो? हमें लग ही रहा था कि कहीं तो तुम्हें देखा है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि रात के इस वक्त इस तरह से यहां आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो सुबह दिन के उजाले में भी तुम आ सकती थी यहां।"

"सुबह दिन के उजाले में आती तो शायद देर हो जाती दादा ठाकुर।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"इस लिए रात के इस वक्त यहां आना पड़ा हम दोनों को।"

"हम कुछ समझे नहीं बेटी।" दादा ठाकुर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे, बोले____"आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तुम दोनों को रात के इस वक्त यहां आना पड़ा। एक बात और, तुम हमें दादा ठाकुर नहीं बल्कि ताऊ जी कह सकती हो। हम दादा ठाकुर दूसरों के लिए हैं, जबकि तुम तो हमारे घर परिवार जैसी ही हो। ख़ैर, अब बताओ बात क्या है?"

"वो बात ये है ताऊ जी कि आपके छोटे बेटे की जान को ख़तरा है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से सम्हालते हुए कहा____"अगर हम सुबह आते तो बहुत देर हो जाती इस लिए हम आपको इस बारे में बताने के लिए फ़ौरन यहां चले आए।"

"हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"ये क्या कह रही हो बेटी?"
"मैं सच कह रही हूं ताऊ जी।" रूपा ने कहा।

"पर तुम्हें कैसे पता कि हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह हैरान थे कि रूपा जैसी लड़की को इतनी बड़ी बात कैसे पता चली? उसी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले____"हम तुमसे जानना चाहते हैं बेटी कि इतनी बड़ी बात तुम्हें कहां से और कैसे पता चली?"

रूपा ने एक बार कुमुद की तरफ देखा और फिर गहरी सांस ले कर सब कुछ दादा ठाकुर को बताना शुरू कर दिया। उसने ये नहीं बताया कि वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला खुद उसका ताऊ मणि शंकर था। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच में डूब गए। सबसे ज़्यादा उन्हें ये सोच कर हैरानी हो रही थी कि इतनी बड़ी बात को बताने के लिए साहूकार हरि शंकर की बेटी अपनी भाभी के साथ रात के वक्त हवेली आ गई थी।

"इतनी बड़ी बात बता कर तुमने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है बेटी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"तुम्हारे इस उपकार का बदला हम अपनी जान दे कर भी नहीं चुका सकते। बस यही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे लेकिन बेटी इसके लिए तुम दोनों को खुद रात के इस वक्त यहां आने की क्या ज़रूरत थी? हमारा मतलब है कि ये बात तुम अपने पिता जी अथवा ताऊ जी को बताती। वो खुद हमारे पास आ कर हमसे ये सब बता सकते थे। इसके लिए तुम्हें खुद इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या ज़रूरत थी?"

"मैंने उस वक्त जब ये सब सुना था तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं?" दादा ठाकुर की बात सुन कर रूपा अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाले हुए बोली____"मेरे साथ कुमुद भाभी भी थीं तो मैंने इन्हें बताया। हम दोनों ने निश्चय किया कि जितना समय हमें अपने घर वालों को ये सब बताने में लगेगा उतने में तो हम खुद ही यहां आ कर आपको सब कुछ बता सकते हैं।"

"ख़ैर जो भी किया तुम दोनों ने बहुत ही अच्छा किया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए हम तुम दोनों से बेहद प्रसन्न हैं। हम अपने बेटे की जान को बचाने के लिए जल्द ही कुछ न कुछ करेंगे। ये सब होने के बाद हम तुम्हारे पिता और ताऊ से भी मिलेंगे और उन्हें खुशी खुशी बताएंगे कि उनकी बहू और बेटी ने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।"

"नहीं नहीं ताऊ जी।" रूपा बुरी तरह घबरा गई, फिर खुद को सम्हाले हुए बोली____"आप ये सब बातें हमारे पिता जी को या ताऊ जी को बिलकुल भी मत बताइएगा।"

"अरे! ये कैसी बात कर रही हो बेटी?" दादा ठाकुर ने हैरानी से कहा____"तुम दोनों ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है और हम तुम्हारे इतने बड़े उपकार को तुम्हारे ही घर वालों को न बताएं ये तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। आख़िर तुम्हारे पिता और ताऊ जी को भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी तरह उनकी बहू बेटी भी हमारे प्रति वफ़ादार हैं और हमारे अच्छे के लिए सोचती हैं। तुम चिंता मत करो बेटी, देखना ये सब जान कर तुम्हारे घर वाले भी बहुत प्रसन्न हो जाएंगे।"

"नहीं ताऊ जी।" रूपा का मारे घबराहट के बुरा हाल हो गया था, किसी तरह बोली____"मैं आपसे विनती करती हूं कि आप इस बारे में मेरे घर वालों में से किसी को भी कुछ मत बताइएगा। मेरे घर वाले बहुत ज़्यादा पुराने विचारों वाले हैं। अगर उन्हें पता चला कि उनके घर की बेटी और बहू रात के वक्त उनकी गैर जानकारी में हवेली गईं थी तो वो हम पर बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हो जाएंगे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा बेटी।" दादा ठाकुर ने मानो उसे आश्वासन दिया____"तुम दोनों को इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उन्हें समझाएंगे कि तुम दोनों ने रात के वक्त हवेली में आ कर कोई अपराध नहीं किया है बल्कि हवेली में रहने वाले दादा ठाकुर पर उपकार किया है। हमें यकीन है कि ये बात जान कर उन सबका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।"

"आप मुझे बेटी कह रहे हैं ना ताऊ जी।" रूपा ने इस बार अधीरता से कहा____"तो इस बेटी की बात मान लीजिए ना। आप हमारे घर वालों को इस बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे, आपको हम दोनों की क़सम है ताऊ जी।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दादा ठाकुर ने चकित भाव से कहा____"ख़ैर, अगर तुम ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है हम इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। तुमने हमें क़सम दे दी है तो हम तुम्हारी क़सम का मान रखेंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ जी।" रूपा ने कहने के साथ ही दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़े हो कर कहा____"अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए। काफी देर हो गई है हमें।"

रूपा के बाद कुमुद ने भी दादा ठाकुर के पांव छुए और फिर दादा ठाकुर की इजाज़त ले कर हवेली से बाहर निकल गईं। दादा ठाकुर हवेली के मुख्य दरवाज़े तक उन्हें छोड़ने आए। कुछ ही देर में दोनों अंधेरे में गायब हो गईं। उनके जाने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच और चिंता में डूब गए। उनके ज़हन में ख़्याल उभरा कि वैभव की जान को ख़तरा है अतः उन्हें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। रूपा के अनुसार वैभव को जान से मारने वाला सुबह ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएगा। दादा ठाकुर के मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन हो सकता है जो उनके बेटे को जान से मारने के लिए सुबह ही चंदनपुर के लिए निकलने वाला है? क्या वो इसी गांव का है या फिर किसी दूसरे गांव का?

✮✮✮✮

"वैभव महाराज कहां चले गए थे आप?" मैं जैसे ही घर पहुंचा तो वीरेंद्र ने पूछा____"हमने सोचा एक साथ ही दिशा मैदान के लिए चलेंगे पर आप तो जाने कहां गायब हो गए थे?"

"जी वो गांव तरफ घूमने निकल गया था।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"सोचा आप सब व्यस्त हैं तो अकेला ही घूम फिर आता हूं। वैसे आप फ़िक्र न करें, यहां से निकला तो राघव भैया मिल गए। उन्हीं से दरबार होने लगी तो समय का पता ही नहीं चला।"

"चलिए कोई बात नहीं।" वीरेंद्र ने कहा____"अगर आपको दिशा मैदान के लिए चलना हो तो चलिए मेरे साथ।"
"नहीं, अब तो सुबह ही जाऊंगा।" मैंने कहा____"आप फुर्सत हो आइए। मैं यहीं बाबू जी के पास बैठता हूं।"

वीरेंद्र सिर हिला कर निकल गया और मैं अंदर आ कर बैठक में भाभी के पिता जी के पास बैठ गया। बैठक में और भी कुछ लोग बैठे हुए थे जिनसे बाबू जी ने मेरा परिचय कराया। अब क्योंकि मैं भी दामाद ही था इस लिए सबने मेरे पांव छुए। मुझे अपने से बड़ों का इस तरह से पांव छूना अजीब लगता था लेकिन क्या करें उनका अपना धर्म था। सब मेरा और मेरे पिता जी का हाल चाल पूछते रहे उसके बाद गांव के लोग चले गए।

रात में हम सबने साथ ही भोजन किया। भाभी और भाभी की छोटी बहन कामिनी रसोई में थी जबकि वीरेंद्र की पत्नी अपने कमरे में अपने नन्हें से बच्चे के साथ थी। खाना परोसने का काम कंचन और मोहिनी कर रहीं थी। बड़े भैया के चाचा ससुर भी हम सबके साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। मैंने महसूस किया कि कंचन मुझसे नज़रें चुरा रही थी। ज़ाहिर था आज शाम को जो कुछ हमारे बीच हुआ था उससे उसका नज़रें चुराना लाज़मी था। मैं उसे पूरी तरह से नंगा देख चुका था और इस वजह से वो मेरे सामने शर्मा रही थी। आस पास सब लोग थे इस लिए उससे मैं कुछ कह नहीं सकता था वरना उसकी अच्छी खासी खिंचाई करता। ख़ैर जल्दी ही हम सब का खाना हो गया तो हम सब उठ गए।

गर्मी का मौसम था इस लिए घर के बाहर ही चारपाई लगा कर हम सबके सोने की व्यवस्था की गई। मेरे साथ जो आदमी आए थे उन सबको वीरेंद्र ने भोजन करवाया और उन लोगों को भी घर के बाहर ही अलग अलग चारपाई पर सोने की व्यवस्था कर दी। कुछ देर हम सब बातें करते रहे उसके बाद सोने के लिए लेट गए।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। आंखों के सामने बार बार जमुना के साथ हुई चुदाई का दृश्य उजागर हो जाता था जिसके चलते मेरा रोम रोम रोमांच से भर जाता था। सुषमा और कंचन के नंगे जिस्म भी आंखों के सामने उजागर हो जाते थे। मैं सोचने लगा कि अब जब दोनों से दुबारा अकेले में मुलाक़ात होगी तो वो दोनों कैसा बर्ताव करेंगी? मैं इस बारे में सोच जी रहा था कि सहसा मुझे अनुराधा का ख़्याल आ गया।

अनुराधा का ख़्याल आया तो एकदम से मेरे दिलो दिमाग़ में अजीब से ख़्याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि इस वक्त वो भी चारपाई पर लेटी होगी। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या वो भी मेरे बारे में सोचती होगी? मुझे याद आया कि उस दिन उसने कितनी बेरुखी से मुझसे बातें की थी और फिर मुझे वो सब कह कर उसके घर से चले जाना पड़ा था। क्या सच में अनुराधा को यही लगता है कि मैं बाकी लड़कियों की तरह ही उसे अपने जाल में फंसाना चाहता हूं? इस सवाल पर मैं विचार करने लगा। कुछ देर सोचने के बाद सहसा मुझे कुछ आभास हुआ। मैंने सोचा, अगर वो मेरे बारे में ऐसा सोचती है तो क्या ग़लत सोचती है? माना कि ये सिर्फ मैं जानता हूं कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता हूं लेकिन इस बात को भी तो नकारा नहीं जा सकता कि मेरा चरित्र पहले जैसा ही है।

एकदम से मुझे आभास हुआ कि मैं अपने उसी चरित्र की वजह से अभी कुछ घंटे पहले जमुना के साथ ग़लत काम कर के आया हूं और ये भी सच ही है कि जमुना के अलावा मैं सुषमा और कंचन को भी भोगने की हसरत पाले बैठा हूं। भला ये क्या बात हुई कि एक तरफ मैं अनुराधा की नज़र में अच्छा इंसान बनने का दिखावा कर रहा हूं वहीं दूसरी तरफ मैं अभी भी पहले की तरह हर लड़की और हर औरत को भोगने की ख़्वाइश रखे हुए हूं? इस बात के एहसास ने एकदम से मुझे सोचो के गहरे समुद्र में डुबा दिया। मैंने सोचा, अनुराधा ने अगर मुझसे वो सब कहा तो क्या ग़लत कहा था? मैं तो आज भी वैसा ही हूं जैसा हमेशा से था। फिर मैं अनुराधा से ये क्यों कहता हूं कि उसने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया है? क्या सच में मैं बदल गया हूं? नहीं, बिल्कुल नहीं बदला हूं मैं। अगर सच में बदल गया होता तो आज ना तो मैं सुषमा और कंचन को भोगने की इच्छा रखता और ना ही जमुना के साथ वो सब करता। इसका मतलब अनुराधा से मैंने अपने बदल जाने के बारे में जो कुछ कहा वो सब झूठ था। इस सबके बावजूद मैं ये ख़्वाइश रखता हूं कि अनुराधा मुझे समझे और वही करे जो मैं उससे चाहता हूं।

अचानक से मैंने महसूस किया कि मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं हैं। एक अजीब सा द्वंद चलने लगा था मेरे अंदर जिसकी वजह से एकदम से मुझे अजीब सा लगने लगा। मैंने बेचैनी और बेबसी से चारपाई पर करवट बदली और ज़हन से इन सारी बातों को निकालने की कोशिश करने लगा मगर जल्दी ही आभास हुआ कि ये इतना आसान नहीं है। काफी देर तक मैं इन सारी बातों की वजह से परेशान और व्यथित रहा और फिर ना जाने कब मेरी आंख लग गई।

✮✮✮✮

"मालिक आप यहां?" शेरा ने दरवाज़ा खोला और जैसे ही उसकी नज़र बाहर खड़े दादा ठाकुर पर पड़ी तो आश्चर्य से बोल पड़ा था____"अगर मेरे लिए कोई हुकुम था तो किसी आदमी के द्वारा मुझे बोलवा लिया होता। आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया मालिक?"

"कोई बात नहीं शेरा।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते हुए कहा____"वैसे भी बात ऐसी है कि उसके लिए हमारा खुद ही यहां आना ज़रूरी था।"

शेरा ने फटाफट चारपाई को सरका कर दादा ठाकुर के पास रखा तो दादा ठाकुर उस पर बैठ गए। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर शेरा जैसे अपने किसी गुलाम के घर आए थे। दादा ठाकुर ने एक नज़र घर की दीवारों पर डाली और फिर शेरा की तरफ देखा।

"तुम्हें इसी वक्त चंदनपुर जाना होगा शेरा।" फिर उन्होंने गंभीर भाव से कहा____"अपने साथ कुछ आदमियों को भी ले जाना। असल में हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला है कि वैभव की जान को ख़तरा है। हम नहीं जानते कि वो कौन लोग हैं लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वो सुबह ही चंदनपुर जाएंगे और वहां वैभव पर जानलेवा हमला करेंगे। तुम्हारा काम वैभव की जान को बचाना ही नहीं बल्कि उन लोगों को पकड़ना भी है जो वैभव को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे।"

"आप फ़िक्र मत कीजिए मालिक।" शेरा ने गर्मजोशी से कहा____"मेरे रहते छोटे ठाकुर को कोई छू भी नहीं सकेगा। मैं अपनी जान दे कर भी छोटे ठाकुर की रक्षा करूंगा और उन लोगों को पकडूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने शाल के अंदर से कुछ निकाल कर शेरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे अपने पास रखो और साथ में इस पोटली को भी लेकिन ध्यान रहे इसका स्तेमाल तभी करना जब बहुत ही ज़रूरी हो जाए।"

शेरा ने दादा ठाकुर के हाथ से कपड़े में लिपटी दोनों चीजें ले ली। शेरा ने एक चीज़ से कपड़ा हटाया तो देखा उसमें एक रिवॉल्वर था। दूसरी कपड़े की पोटली कुछ वजनी थी और उसमें से कुछ खनकने की आवाज़ भी आई। शेरा समझ गया कि उसमें रिवॉल्वर की गोलियां हैं।

"हमें पूरी उम्मीद है कि तुम अपना काम पूरी सफाई से और पूरी सफलता से करोगे।" दादा ठाकुर ने चारपाई से उठते हुए कहा____"कोशिश यही करना कि वो हमलावर ज़िंदा तुम्हारे हाथ लग जाएं।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चांदपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।

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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 59 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
 

Rekha rani

Well-Known Member
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शानदार अपडेट,
रूपा और कुमुद ने हवेली पहुच का दादा ठाकुर को वैभव पर होने वाले हमले की खबर पहुचा दी है।
दादा ठाकुर खुश भी है कि रूपा ने इतनी रात में उन्हें ये इतला दी। रूपा ने उन्हें अपनी कसम देकर अपने घर वालो को न बताने के बारे में मना लिया। रूपा ने बहुत अच्छे से अपने ताऊजी पर शके वाली बात छुपा ली।
उधर वैभव अपनी रास लीला में मग्न है लेकिन रात में अनुराधा का खयाल आने पर खुद ही अपने चरित्र के बारे में सोच रहा है और अनुराधा उसे सही लगती है और खुद गलत
उधर दादा ठाकुर शिवा को चंद्रपुर भेजने के लिए उसके कमरे पर पहुच गए और तुरन्त चंद्रपुर जाने को कहा,
अब आगे के लिए अगले अपडेट की प्रतिक्षा रहेगा
 
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