• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
मेरे अधिकतर फ्रैंड फोरम को छोड़कर चले गए , चंद लोग ही बचे हैं जिसके साथ कुछ बढ़िया महसूस होता है ।
आप कुछेक दिन का ब्रेक ले सकते है । अपने काम पर पुरी तरह फोकस हो सकते है । फिर तरो-ताजा होकर वापसी कर सकते है ।
Shayad maine riky bhai ko reply kiya tha...unhen bataya tha ki kuch baaten hain jinhe main kisi se share nahi kar sakta...and is abhaasi duniya se door rahne ka man bahut pahle bana chuka tha. Is story ki vajah se hi ab tak yaha hu....
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
44,204
116,739
304

S M H R

TERE DAR PE SANAM CHALE AYE HUM
1,107
2,390
158
अध्याय - 119
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



रूपा की मूक सहमति के बाद रूपचंद्र ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा और फिर अपनी जीप में बैठ कर चला गया। उसके जाने के बाद रूपा ने एक गहरी सांस ली और फिर पलट कर मकान के अंदर की तरफ देखने लगी। उसके मन में अब बस यही सवाल था कि आख़िर वो किस तरह से वैभव को राज़ी करे?


अब आगे....


मकान में चौकीदारी करने वाले सभी लोग मुझसे ये कह कर जंगल की तरफ चले गए कि वो मकान के चारो तरफ लकड़ी की बाउंड्री बनाने के लिए बल्लियां लेने जा रहे हैं। मैं मकान के अंदर आया तो देखा अंदर का कायाकल्प हो चुका था। हर जगह बहुत अच्छे से साफ सफाई कर दी गई थी। मैंने सरसरी तौर पर हर जगह निगाहें घुमाई और फिर थैले को अपने कमरे में रख दिया।

जहां एक तरफ मेरे दिलो दिमाग़ में अनुराधा अभी भी छाई हुई थी वहीं ज़हन में रूपा का भी बार बार ख़याल आ रहा था। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि उसका भाई खुद उसे ले कर यहां आया था और बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी बल्कि ये भी थी कि वो अपनी बहन को मेरे पास सिर्फ इस लिए छोड़ कर जाने वाला है ताकि उसकी बहन यहां मेरे साथ रहते हुए मुझे इस मानसिक स्थिति से निकाल सके।

मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि रूपा का भाई इतना बड़ा क़दम कैसे उठा सकता है? यकीनन ये सिर्फ उसकी मर्ज़ी से नहीं हो सकता था। ज़ाहिर है इसमें उसके समस्त परिवार की भी सहमति थी। तभी तो अपनी बातों में उसने इस बात का भी ज़िक्र किया था कि उसके काका यानि गौरी शंकर ने इस मामले में मेरे पिता जी से बातें कर ली हैं। इस बात का ख़याल आते ही मेरे मस्तिष्क में एकदम से झनाका सा हुआ। मुझे सुबह बैठक में पिता जी की कही हुई बातें याद आ गईं। इसका मतलब वो इसी बारे में मुझसे कह रहे थे कि यहां आने पर अगर कोई मुझे मिले और मेरे साथ रहना चाहे तो मैं इसके लिए मना न करूं।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे किसी के आने का आभास हुआ। मैं पलटा तो मेरी नज़र रूपा पर पड़ी। वो अजीब सी घबराहट और कसमकस में अपने हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में उमेठती कभी मुझे तो कभी नीचे ज़मीन पर देखती नज़र आई।

"म...मैं जानती हूं कि तुम अनुराधा से बेहद प्रेम करते हो और उसके इस तरह चले जाने से तुम्हें बहुत धक्का लगा है।" फिर उसने धीर गंभीर भाव से कहा____"सच कहूं तो मुझे भी उस मासूम के इस तरह गुज़र जाने से बहुत दुख हो रहा है। तुम्हारे आने से पहले मैं उसी की चिता के पास बहुत देर तक बैठी रही थी। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि ऐसा कुछ हो चुका है। काश! ये सब न हुआ होता। काश! ऊपर वाला उसकी जगह मुझे अपने पास बुला लेता।"

कहते कहते सहसा रूपा की आवाज़ भारी हो गई और उसकी आंखें भर आईं। इधर उसकी बातें सुन कर मेरे अंदर हूक सी उठी। आंखों के सामने अनुराधा का चेहरा उभर आया।

"तुम्हें पता है वैभव।" उधर रूपा ने किसी तरह खुद को सम्हाल कर फिर से कहा____"अनुराधा को ले कर मैंने जाने कितने ही हसीन सपने सजा लिए थे। शुरुआत में भले ही मुझे इस बात से तकलीफ़ हुई थी कि तुम किसी दूसरी लड़की से प्रेम करते हो मगर फिर एहसास हुआ कि प्रेम किसी के करने से नहीं बल्कि वो तो अपने आप ही हो जाया करता है। जैसे मुझे तुमसे हो गया वैसे ही तुम्हें उस लड़की से हो गया। अगर मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लेना चाहती हूं तो उसी तरह तुम भी तो अपने प्रेम को हमेशा के लिए अपना बना लेना चाहते थे। हर प्रेम करने वाले की यही तो हसरत होती है। यानि इसमें न तो तुम्हारा कोई दोष था और ना ही इसमें मुझे कोई आपत्ति होनी चाहिए थी। बस, जब मुझे ये एहसास हो गया तो जैसे सब कुछ सामान्य हो गया। उसके बाद फिर मेरे मन में लेश मात्र भी अनुराधा के प्रति जलन की भावना न रही थी। वैसे भी तुम्हारी खुशी में ही तो मेरी खुशी थी। अगर तुम ही खुश न रहते तो फिर किसी बात का कोई मतलब ही नहीं रह जाना था। मेरे घर वाले उस मासूम को ले कर जाने क्या क्या सोचने लगे थे। ज़ाहिर है वो सिर्फ मेरी खुशी ही चाहते थे तभी तो उन्होंने ऐसा सोचा था लेकिन मैं जानती थी कि उचित क्या है। मेरी नज़र में सबसे ज़्यादा उचित यही था कि जिसे मैं प्रेम करती हूं वो खुश रहे, फिर भले ही उसकी खुशी के लिए मुझे अपने प्रेम का बलिदान ही क्यों न कर देना पड़े। यकीन करो वैभव, अगर तुम मुझसे ब्याह करने के लिए हां ना भी कहते तो मुझे तुमसे कोई शिकायत न होती। मैंने ये भी सोच लिया था कि तुम्हारे सिवा मैं किसी की दुल्हन भी कभी न बनूंगी। सारा जीवन ऐसे ही तुम्हारी खूबसूरत यादों के सहारे गुज़ार देती। मेरे घर वाले अथवा ये समाज क्या कहता मुझे इसकी कोई परवाह न होती।"

रूपा एकदम से चुप हुई तो कमरे में सन्नाटा छा गया। मेरे दिलो दिमाग़ में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं? बस ख़ामोशी से अपनी जगह बुत की मानिंद खड़ा था।

"इतने दिनों से बस एक ही बात सोचती आई हूं कि आख़िर ऊपर वाले ने ऐसा क्यों किया?" सहसा रूपा के शब्द एक बार फिर मेरे कानों से टकराए____"हम में से किसी के प्रेम को तो पूर्ण हो जाने दिया होता। आख़िर उस गुड़िया ने किसी के साथ ऐसा कौन सा अपराध किया था जिसके कारण उस निर्दोष को इतनी निर्दयता से मार दिया गया? काश! उसकी जगह मेरे प्राण ले लिए होते उस कंजर ने।"

"उसे मेरी वजह से मार दिया गया।" मैं एकदम हताश भाव से बोल पड़ा____"मेरी अनुराधा को मेरे कुकर्मों की सज़ा दी गई है। उसका हत्यारा चंद्रकांत नहीं बल्कि मैं हूं। हां रूपा मैं....उसका असल हत्यारा मैं ही हूं। अगर मैंने उससे प्रेम न किया होता तो आज मेरी अनुराधा इस दुनिया में ज़िंदा होती।"

"ऐसा मत कहो वैभव।" रूपा तड़प कर मेरे क़रीब आ गई, फिर बोली____"ये सच नहीं है। तुम अनुराधा की मौत के लिए खुद को दोष मत दो। सच तो यही है कि चंद्रकांत पागल हो गया था। अपने पागलपन में पहले उसने अपनी बहू को मार डाला और फिर अनुराधा को।"

"मुझे झूठी दिलासा मत दो।" मैंने खीझते हुए कहा____"सच क्या है ये तुम भी अच्छी तरह समझती हो और सच यही है कि चंद्रकांत ने मुझसे बदला लेने के लिए मेरी निर्दोष अनुराधा को मार डाला। अगर अनुराधा के जीवन में मेरा कोई दखल न होता तो आज वो जीवित होती। उसे मेरे कुकर्मों ने ही नहीं बल्कि मेरे प्रेम ने भी मार डाला रूपा।"

कहने के साथ ही मेरे घुटने मुड़ गए और मैं वहीं पर बिलख बिलख कर रो पड़ा। दिलो दिमाग़ में अचानक से जज़्बातों की ऐसी आंधी चल पड़ी कि मैं चाह कर भी उसे काबू न कर सका। रूपा ने मुझे रोते देखा तो वो बुरी तरह तड़प उठी। झपट कर उसने मुझे अपने सीने से छुपका लिया और फिर खुद भी सिसकने लगी। जाने कितनी ही देर तक मैं उससे छुपका रोता रहा और वो मुझे शांत कराने की कोशिश करती रही।

"त...तुम जाओ यहां से।" अचानक मैं उससे एक झटके से अलग हुआ और फिर बोला____"तुम्हें मेरे क़रीब नहीं रहना चाहिए और ना ही मुझसे प्रेम करना चाहिए। मुझसे प्रेम करने वाला हर व्यक्ति अनुराधा की तरह मार दिया जाएगा। जाओ, चली जाओ यहां से। आज के बाद कभी मेरे क़रीब मत आना और.....और हां...मुझसे ब्याह भी मत करना।"

"य...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" रूपा बुरी तरह घबरा गई____"शांत हो जाओ मेरे दिलबर।"

"नहीं नहीं।" मैं छिटक कर उससे दूर हट गया____"जाओ यहां से। चली जाओ....मेरे पास रहोगी तो कोई तुम्हें भी मार डालेगा। मेरे कुकर्मों की सज़ा तुम्हें भी मिल जाएगी। जाओ, चली जाओ यहां से।"

"ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो तुम?" रूपा बुरी तरह रोते हुए मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर बोली____"भगवान के लिए शांत हो जाओ और अपने से दूर मत करो मुझे। किसी को अगर मेरी जान ही लेनी है तो आ कर ले ले मगर मैं कहीं नहीं जाऊंगी। तुम्हारे पास ही रहूंगी, अपने दिलबर के पास। अपने वैभव के पास। मौत आएगी भी तो कम से कम अपने देवता के पास तो मौजूद रहूंगी। अपने महबूब की बाहों में दम निकलेगा तो ये मेरे लिए खुशी की ही बात होगी।"

"बकवास मत करो" मैंने उसे झटक दिया और पूरी शक्ति से चीखा____"मुझ जैसे कुकर्मी के पास तुम हर्गिज़ नहीं रह सकती। मेरी परछाई भी तुम्हारे लिए घातक है।"

"मेरे घर वालों ने विदा कर के मुझे मेरे देवता के पास भेज दिया है।" रूपा ने रुंधे गले से कहा____"मेरा भाई मुझे मेरे होने वाले पति के पास छोड़ गया है। इस वक्त मैं अपने घर में अपने पति के पास हूं। अब इस घर से मेरी अर्थी ही जाएगी।

रूपा की बातें सुन कर जाने क्यों मैं गुस्से से पागल हो उठा। मेरे अंदर अजीब सा झंझावात चालू हो गया था। गुस्से से दांत पीसते हुए मैं अभी कुछ करने ही वाला था कि तभी जाने क्या सोच कर मैं ठिठक गया और फिर पैर पटकते हुए कमरे से बाहर निकल गया। मुझे इस तरह बाहर जाते देख रूपा हड़बड़ा गई और फिर वो भी मेरे पीछे पीछे बाहर की तरफ लपकी।

✮✮✮✮

रूपचंद्र जब अपने घर पहुंचा तो सबको बैठक में ही बैठा पाया। सभी घर वाले किसी सोच में डूबे हुए नज़र आ रहे थे और उससे भी ज़्यादा चिंतित दिखाई दे रहे थे। रूपचंद्र को आया देख सबके सब चौंके और साथ ही बड़े व्याकुल से नज़र आने लगे।

"अरे! बड़ी जल्दी आ गए तुम?" फूलवती जैसे खुद को रोक न सकी थी, इस लिए मारे उत्सुकता के बोली____"सब ठीक तो है ना बेटा और....और रूपा कैसी है? क्या तुम्हारे होने वाले बहनोई से तुम्हारी मुलाक़ात हुई?"

"एक साथ इतने सारे सवाल मत पूछिए बड़ी मां।" रूपचंद्र ने एक जगह बैठते हुए कहा____"पहले मेरे लिए एक लोटा पानी तो मंगवाइए, प्यास लगी है।"

रूपचंद्र की बात सुनते ही फूलवती ने पास ही खड़ी स्नेहा को पानी लाने के लिए भेज दिया। जल्दी ही स्नेहा पानी ले आई जिसे रूपचंद्र ने पिया और फिर लोटा वापस स्नेहा को पकड़ा दिया।

"अब जल्दी से बताओ बेटा कि वहां सब कैसा है?" फूलवती फिर से मारे व्याकुलता के पूछ बैठी____"कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न वहां?"

"फ़िक्र वाली बात नहीं है बड़ी मां।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन जैसा कि आप सबको पहले से ही आशंका थी वैसा ही हुआ।"

"क्या मतलब है तेरा?" ललिता देवी घबराहट के चलते झट से पूछ बैठी____"आख़िर क्या हुआ है वहां?"

रूपचंद्र ने सारी बात बता दी। उसने बताया कि वैभव ने साफ कह दिया है कि रूपा को उसके साथ वहां रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अंत में उसने ये बताया कि वो फिलहाल ये कह कर आया है कि वो किसी ज़रूरी काम से शहर जा रहा है इस लिए तब तक रूपा उसके साथ वहीं पर रहेगी और जब वो शहर से वापस आएगा तो रूपा को अपने साथ ले जाएगा।

"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी शंकर ने चिंतित भाव से कहा____"इसका मतलब रूपा बिटिया को जिस मकसद से हमने उसके पास रहने भेजा है वो व्यर्थ गया?"

"लगता तो ऐसा ही है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन मैं भी हार न मानने वाली तर्ज़ पर ही रूपा को शहर जाने का बहाना कर के उसके पास छोड़ कर आया हूं। मैं रूपा से साफ शब्दों में कह आया हूं कि अब ये सिर्फ उसी पर है कि वो कैसे खुद को वैभव के पास रहने का कोई मार्ग निकालती है? आप सब तो जानते ही हैं कि हम किसी भी तरह की ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं क्योंकि ऐसे में बात बिगड़ सकती है। हमारी किसी भी तरह की बात अथवा तर्क वितर्क की बातों से वैभव आहत अथवा नाराज़ हो सकता है लेकिन अगर रूपा खुद कोई कोशिश करेगी तो बहुत हद तक संभव है कि वो ऐसा न कर सके। आख़िर उसे भी पता है कि रूपा उसे प्रेम करती है और उसने अपने इस प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है उसके लिए। वैभव भले ही इस समय ऐसी मानसिक हालत में है लेकिन मुझे यकीन है कि रूपा के प्रति उसका रवैया इस हद तक तो कठोर नहीं हो सकता कि वो उसकी कोई बात ही न सुने।"

"हम्म्म्म सही कह रहे हो तुम।" गौरी शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"मुझे भी विश्वास है कि वैभव का रवैया हमारी बिटिया के प्रति इतना सख़्त नहीं हो सकता। तुम रूपा को उसके पास छोड़ कर यहां चले आए ये अच्छा किया। तुम्हारी मौजूदगी में वो वैभव से कोई बात भी नहीं कर सकती थी। आख़िर इतना तो क़ायदा है उसमें कि वो अपने बड़े भाई के सामने वैभव से बात न करे। ख़ैर, अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि रूपा बिटिया अपनी कोशिश में कामयाब हो जाए और जल्द ही वैभव की मानसिक अवस्था ठीक हो जाए।"

"ज़रूर ठीक हो जाएगी काका।" रूपचंद्र ने दृढ़ता से कहा____"मुझे अपनी बहन पर और उसके प्रेम पर पूर्ण विश्वास है। ख़ैर आप लोग दोपहर के भोजन की तैयारी कीजिए। मैं औपचारिक रूप से उन दोनों के लिए खाना ले कर जाऊंगा। अगर सब ठीक रहा तो रूपा वहीं रहेगी अन्यथा मजबूरन मुझे उसको अपने साथ वापस ले कर आना ही पड़ेगा।"

रूपचंद्र की बात सुन कर फूलवती ने फ़ौरन ही सबको भोजन बनाने का हुकुम दे दिया। वहां मौजूद कुछ औरतें और लड़कियां फ़ौरन ही हरकत में आ गईं। रूपचंद्र, गौरी शंकर, फूलवती और ललिता देवी इसी संबंध में और भी बातें करती रहीं। उधर वक्त धीरे धीरे गुज़रता रहा।

✮✮✮✮

मैं आंधी तूफ़ान बना तेज़ क़दमों से जंगल की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। दिलो दिमाग़ में भौकाल सा मचा हुआ था। इस वक्त मेरे अंदर गुस्सा भी था और इस बात का अपराध बोझ भी कि मेरे ही कुकर्मों की वजह से अनुराधा को चंद्रकांत ने मार डाला था। यानि अगर मैं उसके जीवन में इस तरह से न आया होता तो आज वो जीवित होती। अपनी अनुराधा का असल हत्यारा मैं ही था।

दिलो दिमाग़ में दोनों तरह के विचारो का भीषण बवंडर चल रहा था जो मुझे पागल भी किए दे रहा था और बुरी तरह रुला भी रहा था। आंखों के सामने बार बार अनुराधा का चेहरा चमक उठता। ख़ास कर उस दिन का मंज़र जिस दिन वो एक लाश के रूप में पेड़ पर रस्सी के सहारे लटकी हुई थी।

मेरे पीछे रूपा भागती हुई चली आ रही थी और मुझे आवाज़ लगाए जा रही थी लेकिन मुझे जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। मैं अपने दिलो दिमाग़ में चल रही आंधी में खोया बदस्तूर बढ़ता ही चला जा रहा था। जल्दी ही मैं जंगल में दाख़िल हो गया। कुछ दिन पहले तेज़ बारिश हुई थी इस लिए जंगल के अंदर की ज़मीन में हल्का गीलापन था। घने पेड़ पौधों की वजह से सूरज की धूप कम ही आ रही थी वहां।

जंगल के अंदर आने पर भी मेरी रफ़्तार में कोई कमी नहीं आई। जैसे मुझे आभास ही नहीं था कि मैं जंगल के अंदर हूं। पीछे से रूपा की आवाज़ें अब भी आ रही थीं लेकिन मैं कहीं खोया हुआ बढ़ता ही चला जा रहा था। तभी अचानक मेरा पैर किसी पत्थर पर टकरा गया तो मैं बुरी तरह लड़खड़ा गया और झोंक में भरभरा कर सीने के बल गिर पड़ा। मेरे गिरते ही वातावरण में रूपा की चीख गूंज उठी। इधर गिरने की वजह से मैं भी विचारों के बवंडर से बाहर आ गया।

अभी मैं उठ ही रहा था कि तभी भागती हुई रूपा मेरे पास आ गई। उसने जल्दी से मुझे सम्हाला और फिर बड़े ही एहतियात से वहीं बैठा दिया। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। वो सिसक रही थी लेकिन इसके बावजूद वो चिंतित अवस्था में मेरे जिस्म के हर हिस्से को टटोल टटोल कर देखे जा रही थी। शायद वो ये देखना चाहती थी कि गिरने की वजह से कहीं मुझे चोट तो नहीं लग गई?

"नहीं...दूर हट जाओ।" उसके इस तरह मुझे टटोलने से मैं एकदम से उसे धक्का दे कर चीखा____"मेरे पास आने की कोशिश मत करो। चली जाओ यहां से....वरना...वरना तुम्हें भी मेरे कुकर्मों की सज़ा मिल जाएगी।"

"अगर मिलती है तो मिल जाए।" वो तड़प कर रोते हुए बोली_____"मुझे अपने मर जाने की कोई परवाह नहीं है। मुझे सिर्फ तुम्हारी परवाह है वैभव।"

"फिर से वही बकवास?" मैं एक बार फिर गुस्से से चीख पड़ा____"मैंने कहा न चली जाओ यहां से। तुम्हें एक बार में मेरी बात समझ में क्यों नहीं आती?"

"हां नहीं आती मुझे।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"और मैं ऐसी कोई बात समझना भी नहीं चाहती जिसमें मेरे वैभव और मेरे प्रेम पर कोई आंच आए। अपने आपको सम्हालो वैभव और खुद को किसी बात के लिए इस तरह दोष दे कर दुखी मत करो। भगवान के लिए शांत हो जाओ, अपने लिए या मेरे लिए न सही किंतु अपनी अनुराधा के लिए तो शांत हो जाओ। ज़रा सोचो कि इस वक्त तुम्हारी ऐसी हालत देख कर तुम्हारी अनुराधा कितना दुखी होगी। क्या तुम अपनी अनुराधा को उसके मरने के बाद भी खुश नहीं देखना चाहते? क्या तुम अपनी अनुराधा की आत्मा को तड़पाना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं पूरी शक्ति से चीख उठा____"मैं अपनी अनुराधा को तड़पाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। उसे ज़रा सा भी दुख नहीं दे सकता। मैं तो....मैं तो उसे हमेशा खुशी से शरमाते हुए ही देखना चाहता हूं। हां हां...मेरी अनुराधा जब खुशी से शर्माती है तो मुझे बहुत सुंदर लगती है...बहुत प्यारी लगती है मुझे। मैं एक पल के लिए भी उसके चेहरे पर दुख के भाव नहीं रहने दे सकता।"

"अगर तुम सच में ऐसा चाहते हो।" रूपा ने सहसा मेरे क़रीब आ कर बड़े प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"तो खुद को इस तरह दुख में मत डुबाओ। हां वैभव, अगर तुम खुद को इसी तरह दुखी रखोगे और उसकी मौत के लिए खुद को दोष देते रहोगे तो वो कभी खुश नहीं रह सकेगी। तुम्हारी अनुराधा तो मुझसे भी ज़्यादा तुमसे प्रेम करती है ना, फिर भला वो ये कैसे देख सकेगी कि उसका महबूब इसके लिए इस तरह खुद को दुखी रखे और सबसे विरक्त हो जाए? वो तो यही चाहेगी न कि उसका महबूब हर हाल में उसे सिर्फ प्रेम करे और प्रेम से ही उसे याद करे? जब तुम उसे प्रेम से याद करोगे तो उसे बहुत ही अच्छा लगेगा। उसकी आत्मा को बड़ा सुकून मिलेगा। क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी अनुराधा की आत्मा को सुकून मिले?"

"नहीं नहीं।" मैं एकदम से हड़बड़ा कर बोल पड़ा____"मैं अपनी अनुराधा को हमेशा सुकून में देखना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरी अनुराधा बहुत ज़्यादा खुश रहे।"

"और ऐसा तभी होगा ना जब तुम अपनी ऐसी हालत से बाहर निकल कर उसके लिए कुछ अच्छा करोगे।" रूपा ने बड़े ही प्यार से समझाते हुए कहा_____"हां वैभव, तुम्हें अपनी अनुराधा के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे कि वो खुश रहने लगे और उसकी आत्मा सुकून और तृप्ति को प्राप्त कर सके।"

"हां सही कह रही हो तुम।" मैं कुछ सोचते हुए झट से बोल पड़ा____"मुझे अपनी अनुराधा के लिए सच में कुछ अच्छा करना चाहिए मगर....।"

"मगर???" रूपा ने उसी प्यार से पूछा।

"मगर मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी अनुराधा हमेशा खुश रहे और उसकी आत्मा को शांति मिलती रहे?" मैंने सहसा व्याकुल हो कर कहा____"त...तुम मुझे बताओ रूपा...मुझे बताओ कि मुझे अपनी अनुराधा के लिए क्या करना चाहिए?"

"सबसे पहले तो हमें यहां से वापस मकान में चलना चाहिए।" रूपा के चेहरे पर सहसा राहत और खुशी के भाव उभर आए, बोली____"वहीं पर तसल्ली से बैठ कर सोचेंगे कि हम दोनों को अनुराधा के लिए क्या करना चाहिए?"

"ह...हम दोनों को?" मैंने अनायास ही चौंक कर उसकी तरफ सवालिया भाव से देखा।

"हां वैभव हम दोनों को।" रूपा ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"माना कि अनुराधा तुम्हारी सब कुछ थी लेकिन वो मेरी भी तो छोटी बहन थी। मैंने तो ये भी सोच लिया था कि मैं अनुराधा को अपनी छोटी गुड़िया बना लूंगी और उसे बहुत सारा प्यार और स्नेह दिया करूंगी लेकिन....ये मेरी बदकिस्मती ही थी कि मेरे नसीब में मेरी छोटी गुड़िया को प्यार और स्नेह देना लिखा ही नहीं था।"

कहने के साथ ही रूपा की आवाज़ भर्रा गई और आंखों से आंसू छलक पड़े। उसकी बातों से मेरे अंदर एक हूक सी उठी। ना चाहते हुए भी मेरे हाथ स्वतः ही ऊपर उठे और फिर उसके गालों पर लुढ़क आए आंसू की दोनों लकीरों को पोंछ दिए। ये देख रूपा की दोनों आंखों से फिर से आंसू के कतरे छलक पड़े और फिर से आंसू की दो लकीर बना गए। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और फिर मुझे ले कर खड़ी हो गई।

कुछ ही देर में वो मुझे मकान में ले आई। मैं महसूस कर रहा था कि अब मेरे अंदर पहले जैसा तूफ़ान नहीं था। थोड़ा हल्का सा महसूस हो रहा था किंतु अब इस बात को जानने की उत्सुकता तीव्र हो उठी थी कि वो ऐसा क्या करने का सुझाव देगी जिससे कि मेरी अनुराधा को खुशी के साथ साथ सुकून भी मिलेगा?



━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice update
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अर्जुन सिंह ने चंद्रकांत का मकसद बता कर clear कर दिया की आखिर अनु की हत्या क्यों हुई थी, और आश्चर्य नहीं होगा यदि चंद्रकांत अनु का हत्यारा ना निकले,
क्योंकि मुझे जहा तक लगता है की नकाबपोश की मंशा यही है की वो वैभव को ज्यादा से ज्यादा तकलीफ दे सके तो हो सकता है की नकाबपोश ने anu की हत्या की होगी।
Achha lagta hai jab is tarah se kirdaro ke bare me kayaas lagaye jate hain...Writer kabhi nahi judge kar sakta ki usne jo racha hai wo kaisa hai aur padhne walo par kya asar daalta hai. Use to aap logo se hi pata chalta hai aur wo romanch feel karta hai...

Anyway...itna hi kahuga ki is bare me aapka aisa sochna sach bhi ho sakta hai, baaki asal sach kya hai ye to aage pata chal hi jaayega...main bhi dekhna chahta hu ki aap log kya kya soch sakte huye sach tak pahuchte hain...
बस इंतजार है वैभव की मानसिक स्थिति फिर से ठीक होने का, क्योंकि उसके बाद ही कहानी का आगे बढ़ पाना संभव है।
Sahi kaha...
और रागिनी के साथ वैभव की love story कैसे आगे बढ़ेगी, क्योंकि परिवार के सीधे सीधे कह देने से ना तो वैभव मानेगा और ना ही रागिनी

अगर एक पल के लिए वैभव के मन में रागिनी के लिए दिल में कुछ जज्बात उठेंगे तो वह उन्हें यह कहकर झटक देगा की वो उसकी भाभी है ऐसा सोचना पाप है, हालंकि वैभव रागिनी के खूबसूरती पर मोहित था तो हो सकता है कुछ हो जाए
वही दूसरी तरफ रागिनी भी इस बात के लिए राजी नही होगी, हां कुंवारी होती तो अलग बात थी लेकिन विधवा होने के बाद शायद ही वो माने।
विधवा होने के बाद आमतौर मानसिक स्थिति ऐसी हो जाती है की स्त्रियां खुद को अशुभ समझने लगती है अब देखना है इन दोनो की complex love story कैसे आगे बढ़ेगी।
Maine pahle bhi kai baar is baat ka zikr Kiya tha ki ye story jab maine start ki thi to iska concept bilkul simple tha....main ek simple I story likhna chahta tha. But jab ye story aage badhi aur Sanju bhaiya, death king bhai jaise reader ke review mile to achanak hi man me khurafaat si hui aur ye khayaal ubhra ki main simple si story kaise likh sakta hu....mujhe thriller aur murder mystery pasand hai na? Bas uske baad sochna shuru kiya ki kaise isme mystery daali jaye aur ek adultery story ko thriller me convert kiya jaye. Ye usi ka effect hai ki uske baad fir is story me adultery nazar nahi aai....aur waise bhi sex likhna shuru se hi pasand nahi tha mujhe. CMS jaisi story me jo likha wo us story ke concept ka hissa bhi tha aur uski maang bhi....Khair,

Aapne kaha ki ragini aur vaibhav ke bich love story kaise badhegi...to is bare me yahi kahuga ki already sab kuch ho chuka hai. Bas intzaar kijiye....aur sochiye ki ye sab kaise hua hoga...
रही बात रूपा की तो वो मना ही लेगी, क्योंकि वैभव already जानता है की वो उससे कितना प्यार करती है और कही न कही वो उसे अपनी होने वाली पत्नी के रूप में स्वीकार कर चुका है।

उम्दा अपडेट भाई, प्रतीक्षा अगले अपडेट की❣️
Bilkul sahi kaha....

Thanks
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
बहुत ही सुंदर और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अब रुपा के प्रेम की कसौटी शुरु होने वाली हैं
बस ये देखना हैं की वो अपने प्रेम वैभव को किस तरहा से संभाल कर उसे सामान्य होने में मदत करती है
Jald hi aage pata chalega...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
Zabardast updates bro, Rupa vaibhav ke sath rahkar usey Anuradha ke dhuk se nikal kar sahi rasta par layegi.
Aisa lagta hai Rupa aik strong charector bhanker ubharegi
Wo strong character ke sath sath important character bhi hai..
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
TheBlackBlood Shubham Bhai,

Yah jankar bahut hi achcha laga ki aap hum kuch hi readers ki vajah se ye story aap puri kar rahe he.............

Aur sath hi sath behad dukh bhi hua ki aapne dobara forum par na aane ka nirnay liya he................
Ajju bhai dil gawaahi nahi de raha tha ki aise hi chala jaau...

Kuch baaten hain jinki vajah se aisa faisla kiya hai dost..
Ek baat kahu Bhai, aap un kuch selected writers me se ho jinki vajah se is forum par readers aa rahe he................varna chut loda bhang bhosda ki kahaniyo se internet bhara pada he
Forum bana rahega to ek se badh kar ek writer aate rahenge bhai...hamesha ke liye kaha koi raha karta hai...
Mera to yahi kehna he ya fir yun kahun ki aapse request he....chahe to aap ek break le lo...lekin story likhna please band na karna aap
Let's see future me kya hota hai...abhi to personal life ke issues ke chalte man vyathit hai. Yaha hasi mazaak kar ke khud ko bahla leta hu....bas aisi hi life hai,
 
Top