UPDATE 61
पापा विमला को देख कर गदगद हो गए और एक बार अच्छे विमला की जवानी का एक्सरे करने के बाद उसे अंदर आने का आमंत्रण दिया ।
पापा - आइयें बहन जी आईये अन्दर चलते है । रागिनी भी अंदर है
फिर विमला मौसी आगे गयी और फिर उनके पीछे पापा उनकी मटकती गाड़ को देखते चले और उनके पीछे मै था
गोदाम के रेस्टरूम मे पहुचे जहा मा बैठी हुई थी और विमला को देख कर वो गले मिली और फिर अपने बगल मे बिठाया
पापा बिस्तर पर बैठ गये और मुझसे बोले - बेटा जा 4 कोल्ड ड्रिंक बोल दे
विमला - नही भाईसाहब हम लोग तो खाना खा के आये है ।
मा - और बता बच्चे कैसे है
विम्ला मुस्कुरा कर - सब ठीक है रागिनी लेकिन तुने मुझे अचानक से क्यू बुलाया
मा - अब तू हम लोगो को पराया समझने लगी है तो क्या करती बुलाना ही पडेगा
विमला सोच मे पड़ गई- मैने कब तुम लोगो को पराया समझा ,, तुम लोग ही तो हो जिनके साथ मै परिवार का मतलब मह्सूस करती हू नही तो ....
इत्ना बोलकर विमला चुप हो गयी
मा - आगे बोल ना अब रुक क्यू नही
विमला की आँखो मे आसू थे - क्या रागिनी मै समझी नही
मा थोडा गुस्से मे - यही कि नही तो तेरे देवरो ने तो तेरी जिन्दगी नर्क बना रखी है ,,,
विमला की आखे बड़ी हो गई और आंसू छलक कर गालो तक आ गये और वो एक नजर मुझे देखी उसे लग रहा था कि कहीं मैने उस दिन जंगल मे हुई बात को कही मा से तो नही ना बता दीया
मा - उसको मत देख और बता तुझे मेरी कसम है
विमला फफ्क पड़ी और रोते हुए - क्या बताऊ रागिनी पिछ्ले 4 सालो मे मेरी जिन्दगी जह्नम बन गयी है ,,,, मेरे ही देवरो ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी हवस का शिकार बनाया और मेरे पति की जायजाद के सारे कागज हड़प लिये और अब वो
इतना बोल के विम्ला रोने लगी
मा - और अब वो कोमल को भी अपनी हवस मे शामिल करना चाहते है क्यू
विमला अचरज और आसुओ से भरी आखो से मा की तरफ देखी मानो मा को कैसे सब पता चल गया
मा - देख क्या रही है विमला मुझे सब पता है लेकिन एक बार भी तुने मुझे अपना समझ कर बताने की कोसिस नही की
विमला रोते हुए मा से - मुझे माफ कर दे बहन ,,मै तुझे कोई तकलीफ नही देना चाहती थी
मा - ठीक है ये रोना बंद कर और चल मूह धुल के आ उठ
फिर मा विमला को लेके पीछे मुह धुलवा के आई और फिर उनको पानी पीने को दिया
पापा - देखिये बहन जी हम सब आपके अपने ही है आप जरा खुल के बतायेगी ये सब कब कहा से सुरु हुआ
विमला एक नजर मुझे देखी तो पापा बोले - उसे यही रहने दिजीये ,,, सबसे पहले उसी ने हमे बताया कि आप कितनी जिल्लत झेल रही है और उसे ये सब कोमल बिटिया के माधयम से पता चला
मा - और तू सुन ले खबरदार जो मेरी फुल सी बेटी को डाटा इसके लिए तो
विमला थोडी हसी - हा ठीक है बाबा नही बोलूंगी कुछ तेरी चमेली के फूल जैसी बेटी को
फिर सब हसने लगे
पापा - बहन जी प्लीज बताईये न
फिर हम सब शांत हो गये
विम्ला ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरु किया - उन दिनो मेरा संसार उजड़ गया था । मेरे पति की ट्रेन दुर्घटना मे मौत हो गयी और हम अकेले पड गये । ऐसे में मेरे सामने मेरे परिवार का फरिश्ता बन कर आया मेरा बड़ा देवर महेश ,
रोते को जानवर भी सहारा देदे तो लोग उसको अपना मान लेते हैं जबकि महेश घर का था । उसने मेरे भाई दीदी जीजा के सामने मेरे परिवार के देखभाल की जिम्मेदारी ली और मेरे पति के क्रियाकर्म से लेकर ब्रह्मभोज तक की जिम्मेवारी अपने सर लेके किया । सबको यकीन हो गया था कि सुख दुख मे महेश एक अच्छे परिवार के सद्स्य के तरह हमारा साथ देगा ।
लेकिन हम सब गलत थे धीरे धीरे समय बीता और वो हमसे बहुत घुल मिल गया जिसमे मेरी बड़ी देवरानी भी शामिल थी ।
"उसकी मीठी बाते याद करती हू तो आज मेरा कलेजा जल जाता है भाईसाहब " , विमला गुस्से से लाल होते हुए बोली
पापा - आप शांत रहे बहन जी , आगे बतायीये
विमला - फिर समय के महेश मेरे साथ नजदीकिया बढाने लगा और धीरे धीरे मै भी उसके बातो के जाल मे फस कर उसके एहसानो के कर्ज तले दब कर उसकी हवस का शिकार हो गई ।
विमला - ऐसे ही एक दिन महेश ने मुझे बताया कि ट्रेन हादसे मे मरे हुओ को सरकार उनकी संपति जाच कर एक लाख का मुआवजा देने का ऐलान की है और मै भोली अनपढ उसकी ये शातिर चाल को समझ ना पाई और उसने मेरे घर के कागजात अपने पास रख लिये थे ।
जब मै उससे बोलती कि कागज का क्या हुआ तो वो हर बार नये बहाने मारने लगा और मुझे समझ आने लगा कि वो मेरे कागज हड़प चूका है । क्योकि आये दिन उसके व्यवहार बदलने लगे और उसने इस घिनौने काम मे अपने छोटे भाई को भी शामिल किया और फिर मुझे ब्लैकमेल कर जबरन मेरे छोटे देवर सुरेश से सम्बंध बनवाये ,, लेकिन इस बात का पता जब छोटी देवरानी को चला तो वो घर छोड कर मायके चली गयी ।
लेकिन इन दोनों हैवानो के चंगुल मे मै फस गयी और अब ये मुझसे मेरी बेटी का सौदा करना चाहते हैं और मेरे बेटे को पीटते हैं । मेरे बडे देवर का बेटा गुलशन आये दिन मेरी बच्ची को परेसान करता है
ये सब बाते बोल कर विमला फिर से रोने लगी
मा ने वापस विमला को चुप करवाया और बोली - ठीक है अब शांत हो जा ,, सब ठीक हो जायेगा
पापा - हा बहन जी आप बिलकुल चिन्ता ना किजीये मेरा एक मित्र वकिल है वो आपके कागजात दिलवाने मे हमारी कानूनन मदद करेगा ।
विमला अपने आसुओ को साफ करते हुए उम्मीद भरे नजरो से पापा की बाते ध्यान से सुनती है ।
पापा - जहा तक मेरा अंदाजा है वो कागज अभी आपके पति के नाम से होंगे उन्हे आपके नाम पर करवाना पडेगा बस। जो मामूली फारमैलिटी से भी हो जायेगा । बाकी महेश और सुरेश को सबक कैसे सिखाना है उसका इन्तेजाम मै कर लूंगा ।
पापा की बाते सुन कर हम सब के चेहरे पर मुस्कान आ गई । खास कर मुझे तो बहुत खुशी थी कि मैने मदद के सही आदमी का हाथ थामा था ।
इधर विमला उठी और मेरे पास आई । पहले उसने मुझे प्यार से देखा और मेरे माथे को चूम कर मुझे अपने सीने से लगा लिया ।
विमला - तेरा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा ,,इतने सालो से जो हिम्मत मै नही दिखा पाई वो तुने कर दिया
मै उनसे अलग होकर - इसमे शुक्रिया कैसा मौसी , क्या मै आपका बेटा नही हू
विमला रोते हुए वापस से मुझे अपने सीने से लगाते हुए - हा बेटा तू तो मेरा राजा बेटा है मेरे लाल
मै धीरे से अलग होकर विमला के कान मे - मौसी छोडो ये सब अकेले मे करते है हग वग , आप सबके सामने किये हो
मेरी बाते सुन कर विमला हस पड़ी - बदमाश कही का
और मेरे गाल को चूम ली
मै विमला से अलग होकर सबके सामने अपने गाल पोछते हुए - क्या मौसी सब गिला गिला कर दिया
विमला ह्स्ते हुए वापस से मेरे दुसरे गाल को भी चूम ली जिससे मम्मी पापा भी हसने लगे
मै - ओहोहो अब छोड भी दो ब्च्चे की जान लोगे क्या
पापा हस्ते हुए - अरे बेटा कोई प्यार करे तो मना नही करते है ,,,और तेरी तो कितनी अच्छी किस्मत है कि दोनो गालो पर चुम्मीया मिल रही है ,,,मुझे देख सब सुखा सुखा है हाहाह्हाह्हा
मा हस्ते हुए - क्या जी बच्चे के सामने कैसी बाते करते हो आप भी
पापा - अब जो है वो कह रहा हू ,,,,देख नही रही बहन जी ने सामने से ही मुझसे मुह फेर लिया
इस बार विमला पापा की बातो से शर्मा कर लाल हो गयी ।
मा - अब बस भी करो वो शर्मा रही है जी
फिर हम सब हसने लगे ।
पापा - बहन जी आप बिलकुल निश्चिंत हो जाईये अब पहले मै मेरे वकिल दोस्त से बात कर लूंगा फिर जैसा होगा आपको बता दूँगा फिर आगे जो होगा उसी हिसाब से किया जायेगा
विमला पापा के बगल मे बिस्तर पर बैठ कर हाथ जोडते हुए - बहुत बहुत मेहरबानी होगी भाईसाहब
विमला को हाथ जोडते देख पापा ने तुरंत विमला के हाथ रोक लिये - अरे अरे बहन जी ये क्या पाप करवा रही है मुझसे ,, आप मेरे पत्नी की सहेली है उसकी बहन जैसी है मेरे लिये आप घर की एक सद्स्य की तरह है
पापा - प्लीज आप मुझे अपना ही समझिये
विमला - माफ करना भाईसाहब ,,, कोमल के पापा के जाने के बाद जितनी इज्ज्त आप लोगो ने दी शायद मै इस जन्म मे सोच भी पाती और ये सब आपका बड़प्पन है जो मुझ अबला को सहारा दे रहे है ।
मा - बस विमला अब शांत हो जा बहुत हो गया ,,,इन्होने कह दिया ना तो हो गया समझ
मा - बेटा राज जा 4 ग्लास जूस बोल दे ठण्डा
पापा - हा बेटा वो बबलू काका होगे दूकान मे उनको बोल दे वो लेते आयेंगे
मै उठ कर दुकान मे गया और बबलू काका को 4 ग्लास पपीता शेक लाने को बोला और वाप्स आ गया ।
यहा आया तो देखा कि अभी विमला का हाथ पापा के हाथ मे ही है और वो ऐसे ही बाते कर रहे है ।
फिर ऐसे ही बाते चली और फिर काका जूस लेके आये
विमला - अरे इसमे तो आइक्रिम है
पापा - अरे पीजिए बहन जी थोडा मन भी शांत होगा और ताकत भी आयेगी ।
फिर सबने जूस खतम की और मै विमला को लिवा कर वापस उसके घर छोडने को बाहर आया
मै - चलो मौसी रिक्शा आ गया
विमला - अरे उसकी जरुरत नही है मै चली जाऊंगी बेटा तू रहने दे ,, हा अगर घर पर रुकना हो तो बता हिहिही
मै - अभी तो आना जाना है ही मौसी कभी घर भी रुक जाऊंगा
फिर विमला सबसे विदा होकर अपने घर चली गयी । मा भी पापा को बोल कर मुझे लेके घर की तरफ चली गयी
घर पहूचा तो देखा की दुकान पर अनुज बैठा था आज
मै - अरे मा ये स्कूल नही गया
मा - नही बेटा मैने ही रोका था
मै अनुज की तरीफ मे - ओह्ह लग रहा है अब अनुज भी दुकान देख स्म्भाल लेता है
अनुज थोडा खुश मन से - और क्या ,,अब मै घुमने भी नही जाता हूँ
मा उसके बालो मे हाथ फेरते हुए - हा मेरा अनुज भी बड़ा हो गया है
हम अक्सर ऐसा करते है कि छोटे बच्चों के कंधो पर हल्की फुल्की जिम्मेदारीया देके उनकी आदतो मे सुधार ले आते है और बदले मे उनकी तारिफ कर उनका अच्छे काम के लिये मनोबल बढ़ाते है ।वही सब मा अनुज के साथ कर रही थी ताकि मेरी अनुपस्थिति मे वो दुकान को थोडा बहुत सम्भाल सके ।
लेकिन एक दिक्कत भी बढ़ जाती है जब बच्चो को नये काम से मज़ा आने लगता है तो वो जिद करके वहा से हटना नही चाहते क्योकि बाल स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है और वही अनुज करने वाला था आने वाले पलो मे ।
शाम के 3 बज गए थे और आज मैने मा को चोदा नही था मैने मा को इशारा भी किया तो वो मुस्कुरा कर अनुज की तरफ इशारा करते हुए ना बोल देती ।
मै थोडा उदास चेहरा बना कर उनसे गुजारिश करने लगा
मा मुस्करा कर - अनुज बेटा ऐसा कर अब तू जा थोडा टहल ले
अनुज दुकान मे लगी घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हुए इधर उधर घुमा रहा था - नही मा मुझे यही अच्छा लग रहा है
मा - अरे बेटा थोडा बहुत घुमना खेलना भी चाहिये जिससे देह मे ताकत बनी रहती है ,,, जा थोडी देर अपने दोस्तो के साथ खेल ले
अनुज उदास सा मुह बनाकर -- नही मा मै नही जाऊंगा ,,,वो सब बहुत गंदे है
मा - क्या मतलब गंदे है
अनुज रुआस सा होकर - नही मा मै नही ब्ताऊगा बस
मा थोडा सख्ती से अनुज के कन्धे हिला कर - बता क्या बात है अनुज
अनुज कुर्सी पर बैठे बैठे गरदन नीची किये आसू बहा रहा था - लेकिन कुछ बोला नही
वही मै अनुज के गंदे दोस्तो का मतलब समझ गया था ।
समय के साथ अनुज बड़ा हो गया था और इस साल 9वी मे पढ भी रहा था तो मुहल्ले और स्कूल के लडके कैसे आपस मे बाते करते है मै समझ सकता था ।
ये वो दौर होता है जब बच्चे अपने युवा अवस्था मे अपने कदम रखते है । उनके तन मन मे यौवन का बीज फलना सुरु हो जाता है , लिंग के आस पास झाटो के रोए निकलना शुरु हो जाते है , हल्की मूछ के बाल भी दिखने लगते है ।
इसी समय लड़को को अपने हमउम्र की लड़कियो के प्रति उनकी शर्ट और कुर्ती मे निकले छातियो के उभारो पर आकर्षण होने लगता है ,,,वही पहली महवारी मे आते ही लडकीया अपने से बडे दिदी या क्लास की लडकियो के संपर्क मे आकर समय से पूर्व ही सजना सवरना शुरू कर देती है। जिनसे इस दौरान लड़को मे होड़ भी सुरु हो जाती है कि कौन किसकी है ।
वही दुसरी तरफ लडके गाव या एरिया के लोगो के संगत मे आकर सेक्स की बाते करना सुरु कर देते है । धीरे धीरे महज एक साल का अंतर एक नादान बच्चे को युवा वर्ग मे ला देता है ।
ये सब मेरे मासूम अनुज के साथ भी हो रहा था और पहले मेरे साथ भी हुआ था तो मै उसके दिल की बात समझ सकता था कि कैसे कोई लड़का सीधा सेक्स के मुद्दो पे बाते करे ।
लेकिन मा उसे बार बार सख्ती से बोल रही थी और वो बस सर निचे किये रो रहा था
मै - अरे मा रहने दो क्यू डाट रही हो ,,अच्छा है कि वो उन गंदे दोस्तो के साथ नही जाना चाहता था
मा - लेकिन राज
मै मा को इशारा करके बोला की मै बात करूँगा
मै - चलो अनुज जाओ तुम मुह धुल कर आओ फिर तुम्हे दुकान मे बैठना है मै कोचिंग जाऊंगा ना
अनुज मेरी बाते सुन के सर उपर किया तो उस्का चेहरा पुरा आसुओ से चखत गया था
अनुज - हा ठीक है भैया आता हू
फिर वो छत पर गया
मा - राज तुने मुझे रोका क्यू
मै - मा मै जानता हू वो क्या बात होगी जो अनुज नही बोल रहा है आपके सामने ,, याद मै जब इसकी उम्र का था तो मै भी आवारा दोस्तो का साथ छोड दिया था
मा - हा अचानक से कयू
मै मा को आश्व्त कर - वो मै बाद मे ब्ताऊगा और आज अनुज को लिवा कर मै नये घर सोने जाउँगा ताकि वो मुझे खुल कर अपनी बाते बताये ।
मा खुश होकर - ठीक है बेटा ,,, कितना ख्याल रखता है तू सबका
मै - मा वो मेरा ही भाई है और समय रहते मुझे उसे गलत रास्ते पे जाने से रोकना भी मेरा फर्ज है ।
मा - हा सही कह रहा है तू , और मुझे लग रहा है कि वो जरुर आवारा लड़को ने कुछ गलत बात बोली होगी तभी मेरा अनुज नही जाता है घुमने
मै - हो सकता है मा या नही भी , अब वो अनुज से बात करने पर पता चलेगी ।
मै - आप चिन्ता ना करे मै उसे समझा दूँगा ।
फिर अनुज निचे आया और मै तैयार होने उपर चला गया ।
और समय से दिदी के साथ कोचिंग चला गया
शाम को कोचिंग से घर आया तो पापा भी आ गये थे और दुकान मे मा से बाते कर रहे थे ।
मुझे आता देख पापा ने मुझे दुकान मे ही रोक लिया जबकि दिदी उपर चली गयी ।
मै - पापा क्या हुआ आप बात किये वो वकिल अंकल से
पापा - हा बेटा मैने तुम लोगो के जाने के बाद सुभाष से बात की थी और बोला है कि कागज विमला जी के नाम पर करवाने के लिए वो कागज कोर्ट मे पेश करना जरुरी है तभी बात आगे बढ़ पायेगी
मै थोडा सोच मे पड़ गया कि अब क्या होगा क्योकि कागज तो महेश के पास है और वो देगा नही इतनी आसानी से
मै - पापा लेकिन कागज तो उस महेश के पास है ना
पापा - हा बेटा पता है हमे
मै - तो फिर कैसे बात आगे बढेगी
पापा मुस्कुरा कर - वो मैने सोच लिया है बेटा तू फिकर ना कर
मै खुश होकर - तो बताओ ना पापा कैसे मिलेगा
पापा थोडा संकोच करते हुए कभी मुझे तो कभी मा को देख कर हस रहे थे
मै - प्लीज पापा बताओ ना
पापा - बेटा वो मै तुझे अभी नही बता सकता
मै - क्यू पापा
पापा - अरे भई समझ , सब कुछ तुझे नही जानना चाहिये ।
मै थोडा अजीब सा मुह बना कर - ऐसा क्या बात है जो मै नही जान सकता
पापा - देख बेटा ये काम निकलवाने के लिए मैने मेरे मित्र संजीव ठाकुर की मदद ली है
मै सन्जीव ठाकुर का नाम सुन कर चौक गया क्योकि उसके पिता राजीव ठाकुर चमनपुरा के सबसे बड़े और समृध इन्सान थे । चमनपुरा क्या आस पास जितनी बस्तिया थी वो सब के मालिकार भी थे । उसी राजीव ठाकुर की नातिन थी मालती जिसका दीवाना मेरा लंगोटीया यार चंदू था ।
मै खुश होकर भी अचरज मे - लेकिन संजीव ठाकुर से आपकी दोस्ती कैसे हुई
पापा थोडा गर्व और मुझे इत्मिनान देते हुए - बस कुछ रिश्तो की कोई वजह नही होती बेटा वो खुद ब खुद बन जाते है । मेरे जवानी के समय मे मैने एक बार संजीव भाई की जान बचाई थी ।
मै - लेकिन कब और कैसे
पापा - बेटा वो हुआ यू था कि संजीव भाई अपनी राजदूत मोटरसाइकिल से किसी रिश्तेदार के यहा से आ रहे थे लेकिन बरसात के मौसम मे उनकी गाड़ी चमनपुरा की सीमा पर फिसल गयी और उनको बहुत चोट लगी ।
उस दिन मै अपने बाऊजी के साथ खेत मे घान की रोपाई करवा कर लौट रहा था और मेरी नजर उन पे गयी तो वो राजदूत के नीचे दबे हुए थे और पैर मे काफी चोट लग गई थी ,,,उस दिन मैने और बाऊजी ने मिल के उनको पास के गाव के हस्पताल ले गये । बस उस दिन से उन्होने मुझे अपना दोस्त बना लिया
मै - वाह पापा
मै - तो फिर आगे बताओ ना कैसे ये काम होगा
पापा - वो सब तू मुझ पर छोड दे । किस्मत ने साथ दिया बस कुछ ही हफ्तो मे ये काम हो जायेगा ।
मै - लेकिन मुझे भी बताईये न
मा - बेटा जिद मत कर तेरे पापा ने जो सोचा होगा अच्छा ही सोचा होगा ।
मै खुश होकर - ठीक है पापा जैसा आपको ठीक लगे लेकिन काम खत्म होने के बाद मुझे बताना जरुर
पापा हस्ते हुए - अच्छा ठीक है अब जा फ्रेश हो ले और कुछ चाय नासता कर ले
फिर मै उपर चला गया और रात के खाने के बाद अनुज को भी अपने साथ लिवा कर नये घर पर सोने चला गया ।
देखते हैं दोस्तो कहानी आगे जाकर क्या मोड लेती है ।
आप सभी की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा
पढ कर अपना रेवियू जरुर दे
धन्यवाद