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लेत लेत तोहर लंडवा, बूर हो जाई भोंसरवा ( बेटा माई)

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rajeev13

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'माई ना… अब तू हो गइलू रानी'

भोरहीं के बेला, पसरील सन्नाटा,
अंगना में झाड़ू देत, मुनिया के माई के छटा।
पचास के पार, बाकिर देहवा कस,
साड़ी के भीतर लूके, लहके जवानी के रस।

छोरा बीस बरिस के, देख के चुपचाप रहल,
बाकिर नजरिया ओकरी कमर पे घुमात रहल।
झुकी त साड़ी सरकल, पिघलल दूधिया सेना,
लउकत रहे जइसे भगवान दे दिहले सीना।

“बेटा कह के ना बोलS,” ऊ धीरे से कहली,
“तोहर नजर से कब के जान गइनी, ना बेजाय कहली।”
लउकल ना अब लाज, ना उमिर के फांस,
दूनो देह मांगल बस एकहि साँस।

ओकर कमर पकड़ के, छोरा लगवलसे सीना,
ऊ मुस्काई- “बेटा अब ना, रउआ बन जाईं नसीब के मीना।”
कांपल ओकर देह, चूचियाँ में तनिक फड़फड़ाहट,
साड़ी के फाँक से झाँके गुलाबी लहराहट।

“रउवा चाहत बाड़S त उठाS हमार साया,
ए बूढ़ देह में अबहियों बा वासना के माया।”
लड़िका ना चूकल, चूम लेहल ओकर गाल,
कहलस- “आज ना माई, तू बनबू हमार माल।”

पलंग के कोना में ले गइलस चुपचाप,
चूड़ी खनकली, ओठ पर पसरल ताप।
साड़ी हटली, उफ्फ! दूधिया बदन उजियार,
जइसन पचास साल लुकवले रहले बहार।

लड़का चूमे लागल बड़-बड़ चूचियाँ,
ऊ सिसियाइल- “ए राजा! अब ना रूकीं इ लूचियाँ।”
बुरवा पर उँगरी चलवलस, ऊ करिहाई कँप-कँप,
“घुसा द, अब ना रोकS, चढ़ गइल बा हमार तन-बदन सब।”

धीरे से घुसवलस आपन जवानी के चाबुक,
ऊ तड़प के गइली- “हाय! इ लंडिया त बा एकदम रबड़!”
पेल-पेल के भरलस ओकरे पेट में तान,
जइसे हर अधूरी पियास के मिलल हो नया जान।

बुढ़िया चिचियाइल, “अब रोज करS ई खेल,
ए जवना में तू बाड़S देवता, हम हईं तोहार मेला।”
चूचियाँ चूसलस, बुरवा में घुसल रहल दम,
ऊ बोली- “ई पचास में मिलल जवानी के धरम।”

वैसे तो मेरी मातृभाषा भोजपुरी नहीं है, फिर भी उसमे लिखने का प्रयास किया है vyabhichari भाई से प्रेरणा लेकर!
 

rajeev13

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बुढ़िया बन गइल मालकिन

अगिला दिने साँझ, घाम ढ़लल,
बेटवा खेत से लउटल, आँखि में जलल।
अम्मा बइठल रहली, लिपिस्टिक के गंध,
बुलइली इशारा से- “आ जा, तू ही बा आज के संबंध।”

ओढ़नी तान के, साड़ी बन्हले ऊ tight,
चूचियाँ बाहर, जैसन मांगत होई fight।
बेटवा झपटल, बोला- “अम्मा, आज त बहुत तपल बानी…”
ऊ हँस के कहली- “हमहूँ त बानी बेशर्म जवानी।”

धक से साड़ी खोल के, फेंक देहलस गद्दा पर,
“बोलS ना राजा, अब कौन हिस्सा चुसब पहिलका बर?”
ऊ बोला- “पहिले चूची, फेर बुरवा के जादू,
तहार देह में लहर मारेला लंडवा के बादू।”

अम्मा चूची पकड़ के खुदे मुहवा में दिहली,
बेटवा चूसे लागल- “आह हाय! दूध आ गइल राजा जी!”
ओकर बुरवा से बह रहल महक,
ऊ चिचियाइल- “घुसा द, बना द हमके एक बेर अउरी बहक!”

बेटवा उँगरी घुसवले, अम्मा सिसियाइल,
“ई कवन झोपड़ी से तू आइल, हम त पिघल गइल।”
ओकरे बुरवा भींज के लसलस करे लागल,
अम्मा के देह दहके लागल, मन कस कस जागल।

घुसलस लंड, आह! पूरा देह हिल गइल,
अम्मा के आँखि घुर गइल, गरदन लरमिल गइल।
“मारS बेटा, मारS जोर से, अब ना रुकS पलभर,
हमार बुढ़ाई लउकत नईखे, भीतर बा जवानी के डर।”

बेटवा धकेले, ओकरे लतिया फैला,
“ले माई… अब ना माई, तू बाड़ू हमार खेला!”
हर ठोकरे पे चिचियाइल, चूची भींच के बोले-
“ऐ चोदा! तहार लंड त जइसे बाघवा डोले!”

घंटा बीतल, पसिना से लथपथ बिछौना,
बुढ़िया मुस्काइल- “अब रोज बनबू हमार सोना।
ना होई रोटी बिना ई लंडवा के स्वाद,
चूसी, चाटी, अब हर घरी देबू हमरा ई ईनाम खास।”
 

rajeev13

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विधवा के अंगनवा में जवानी के झोंका

गाम के छोर पर एगो घर बा सून,
जहँवा चिरई ना चिचियाए, ना बाजे कोई धून।
उहीं रहेली, विधवा ललिता- गोरी, गदराइल,
साड़ी में सिमटल जवानी, आँखिन में बरसात समाइल।

तीस बरिस के उमर, बाकिर देह पचपन के झुठियावे,
हर हरकत में बा आग, जवना के देख के मन डोल जावे।
लिपस्टिक ना, बाकिर ओठ गुलाबी,
घाघरा के फाँक से झाँके जाँघ- हर नजर होखे बेताबी।

पड़ोस के छोरा, नवीन, अभी बीस के भइल,
खेत में काम करत-करत ओकरा नजर उ पर अटकल।
ललिता हर दिन अंगना में झाड़ू दे, झुके,
नवीन के लंड सोच-सोच के टन टन झुलुकें।

एक दिन बरसात आ गइल बिन बोलावल,
ललिता के कपड़ा भींज के चिपक गइल- ऊ कसम से कमाल!
चूचियाँ जैसे नारियल, आ कमर- हाय! बर्फ घुलल,
नवीन बोलल- “चाची, अंदर चलS, तू त पूरा भींज गइल।”

ललिता मुस्काइल, नजर झुकल- “बेटा, तू बहुत अच्छा बा,
बाकिर ई बुढ़िया का अब काम के बा?”
नवीन बोलल- “देह बुढ़ाइल होला, चाह ना होईले कम,
हमरा आँख से देखS, तू बानी एकदम मस्त जवानी के बम।”

ललिता काँप गइल, हाथ पकड़ के अंदर ले गइलस,
भीतर कमरा, अधेरा, ओस से महकलस।
“तू त पागल बा बेटा…” ललिता धीरे से कहली,
नवीन ओकर कमर भींच के कान में फुसफुसइल-
“आज हमार मर्द बनावल जाव, चाची…?”

ललिता के होठ काँपल, आँख में पिघलल बरसात,
ओठवा से चूम लीहलस- “हम त कब से चाहत रहलS बात।”
 
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