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Romance लवली फ़ोन सेक्स ( Completed )

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The Immortal

Live Life In Process.
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update 78

स्नेहा ये सुनते ही मुझे फिर से चूमने लगी और अपनी जीभ से मुझे चाट चाटकर पूरा गीला कर दिया..और फिर बोली : आई प्रोमिस ..मैं ही तुम्हारी वर्जिनिटी लुंगी एक दिन...देख लेना.
मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया और फिर से उसे चूमने लगा और उसकी छोटी-२ बाल्स को दबाने लगा.
उसकी मम्मी के आने का टाईम हो रहा था, मैंने उसे अपना बेग लाने को कहा और हम वहीँ ड्राईंग रूम में ही बैठकर थोडा बहुत पढाई करने लगे.
उसकी मम्मी जैसे ही आई, और मुझे अंदर बैठे देखा तो बोली : अरे विशाल तुम, आज तो स्नेहा कह रही थी की तुम आओगे नहीं..
मैं : नहीं मेम..मैं दरअसल किसी काम से गया था और वो जल्दी निपट गया, इसलिए यहाँ आ गया.
किटी मेम : ओके...तुम बैठो..मैं चेंज करके आती हूँ.
और वो अंदर चली गयी..
उनके जाते ही स्नेहा भागकर मेरी गोद में आकर बैठ गयी और मुझे एक झक्कास वाला किस किया..और बोली : बाद में तो मम्मी के सामने गुड बाय किस कर नहीं पाऊँगी...इसलिए..
मैं भी उसकी इस बात पर मुस्कुरा दिया.
मैंने उसे दस मिनट और पढाया और फिर मैं लगभग सात बजे वापिस आ गया.
 
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The Immortal

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update 79

किटी मेम : ओके...तुम बैठो..मैं चेंज करके आती हूँ.
और वो अंदर चली गयी..
उनके जाते ही स्नेहा भागकर मेरी गोद में आकर बैठ गयी और मुझे एक झक्कास वाला किस किया..और बोली : बाद में तो मम्मी के सामने गुड बाय किस कर नहीं पाऊँगी...इसलिए..
मैं भी उसकी इस बात पर मुस्कुरा दिया.
मैंने उसे दस मिनट और पढाया और फिर मैं लगभग सात बजे वापिस आ गया.
*******
अब आगे
*******
रात को खाना खाकर मैं ऊपर छत्त पर जाकर टहलने लगा, मुझे सारे दिन की बातें याद आ रही थी, आज अंशिका ने मेरा लंड चूसा और अपनी चूत चुस्वयी..और शाम को स्नेहा के साथ भी कितना मजा आया.. खासकर वो लम्हा जब स्नेहा मेरे सामने नंगी लेटी हुई थी और मैंने उसकी चूत नहीं मारी, सिर्फ अंशिका को दिए वादे की वजह से..
मैंने अंशिका को फोन मिलाया
मैं : हाय...क्या कर रही हो
अंशिका : कुछ ख़ास नहीं, बताया था न की छोटी बहन कनिष्का आई हुई है, बस उसी के साथ बैठी हुई गप्पे मार रही थी..
मैं : अच्छा जी, क्या बातें हो रही हैं दोनों बहनों में.
अंशिका : ये समझ लो की तुम्हारी ही बात कर रहे थे.
मैं : मेरी बात?? तो तुमने उसे मेरे बारे में सब बता दिया..
अंशिका (हँसते हुए) : अरे नहीं, ऐसे ही बात हो रही थी की कोई बॉय फ्रेंड है या नहीं..वो अपनी बता रही थी और मैं अपनी..
मैं : तो क्या उसका भी बॉय फ्रेंड है ?
अंशिका : हाँ है...पर हमारी तरह उनमे कुछ नहीं हुआ है..वही सब बता रही थी वो की कैसे उसका बॉय फ्रेंड हर समय उसे छुने के लिए और चूमने के लिए मिन्नतें करता रहता है..पर कनिष्का उसे मना करती रहती है..उसे इन सब बातों से बड़ा डर लगता है, मैंने ही उसे ये सब ना करने के लिए कहा हुआ है..
मैं : यार, क्यों उसके आशिक को तरसा रही हो अपनी हुकुमत अपनी बहन के ऊपर चलाकर, मजे लेने दो न दोनों को..प्रोब्लम क्या है..
अंशिका : प्रोब्लम ये है की कन्नू अभी नासमझ है, और उसकी उम्र भी कम है, उसे अच्छे बुरे की पहचान नहीं है, कोई उसका फायदा उठा कर निकल जाए, मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती..आई लव माय सिस्टर वैरी मच....और हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होता..जो अपनी फ्रेंड का इतना ध्यान रखे..
मैं : अगर कहो तो तुम्हारे साथ-२ मैं उसका भी ध्यान रख लेता हूँ..
अंशिका (थोडा गुस्से में) : मैंने तुम्हे पहले भी कहा है न, मेरी बहन के बारे में गलत मत सोचना..
मैं : यार तुम भी अजीब हो, मान लो उसके फ्रेंड की जगह अगर मैं होता, तब भी क्या तुम अपनी बहन को मुझसे दूर रहने के लिए कहती..
अंशिका : नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारा नेचर जानती हूँ, तुम उसका गलत फायेदा नहीं उठाओगे..
मैं : येही तो मैं कह रहा हूँ, मैं उसका गलत फायेदा नहीं उठाऊंगा, सिर्फ दोस्ती और कुछ नहीं..
अंशिका (खीजते हुए) : अब तुम यहाँ मुझे छोड़कर मेरी बहन से फ्रेंडशिप करने की सोच रहे हो क्या ?
मैं समझ गया की बात तो बन सकती है पर अभी अंशिका से ये सब बातें करने का कोई फायदा नहीं है, कही वो भी हाथ से ना निकल जाए..
मैं : अरे यार , तुम तो बुरा मान गयी, ऐसा कुछ नहीं है..चलो छोड़ो इन सब बातों को, ये बताओ की तुम उसे मेरे बारे में क्या कह रही थी..
अंशिका (शर्माते हुए) : यही की बड़ा प्यारा दोस्त है, मिलते भी हैं हम, और कभी-२ किस्स वगेरह भी कर लेते हैं..
मैंने मन ही मन सोचा की सत्यानाश, ये सब बताने की क्या जरुरत थी, वो तो अब मुझे लाईन देगी ही नहीं..चलो कोई बात नहीं..
मैं : और वो क्या बोली...
अंशिका : बोलना क्या है, बस मुस्कुराती रही..और कुछ नहीं..
मैं : और तुमने आज दोपहर वाली बात भी बताई उसे, बोंटे पार्क वाली..
अंशिका : पागल हो गए हो क्या, मैंने उसे सिर्फ ये कहा है की कभी कभार किस्सेस और हग्स करते हैं, और कुछ नहीं...तुम भी कैसी बाते करते हो, मैं उसे अपने बारे में इतनी अन्दर की बातें क्यों बताउंगी भला..
 

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update 80

मैं : अरे उसे भी तो पता चले की उसकी बहन कितनी बड़ी ठरकी है...जिसे आजकल पब्लिक प्लेस में भी नंगा होने में शर्म नहीं आती...और उसकी चूत में रोज आग लगी होती है, जिसे मैं ही बुझा सकता हूँ, पर मौका नहीं मिलता...बोल देती ये सब भी .
अंशिका (शर्माते हुए) : तुम न..सच में पागल हो..वैसे भी मुझे दोपहर से कुछ हो रहा है, मेरी चूत पर तुम्हारे होंठो का एहसास अभी तक है, सच में, आज जितना मजा कभी नहीं आया, कहाँ से सीखा इतना मजा देना तुमने..
मैं : जब सामने तुम्हारी जैसी हसीन चूत हो तो ये सब अपने आप आ जाता है, वैसे एक बात बताओ, अगर वो हवलदार ना आता तो क्या तुम मुझसे वहीँ पार्क में चुदवा भी लेती क्या..?
अंशिका : शायद...
मैं (हैरानी से) : पर तुमने तो कहा था की सही मौका और सही जगह का इन्तजार करना होगा..
अंशिका : हम लड़कियों की हर बात का ऐतबार मत किया करो, हम तो ऐसी ही होती है, आज कुछ और कल कुछ और..हे हे..
मैं : समझ गया, अब देखना, अगली बार जहाँ भी मौका मिलेगा, चोद दूंगा तुम्हे..
अंशिका : चोद लेना, मैं तो आज भी तैयार थी, पर तुम्हारी किस्मत में शायद थोडा और इन्तजार लिखा है..
मैं : इन्तजार की माँ की चूत, कल ही लो, कल दोबारा चलेंगे उसी पार्क में, और मैं हवलदार को भी पहले से ही पैसे देकर बोल दूंगा की उस तरफ ना आये, ठीक है न..
अंशिका : तुम बड़ी जल्दी एक्सय्तीद हो जाते हो, पूरी बात तो सुनते नहीं मेरी...मैंने कहा था न की कनिष्का के एडमिशन के लिए जाना है दुसरे कॉलेज में, तो कल से मैं तीन दिनों की छुट्टी पर हूँ, उसके साथ चार पांच कॉलेज जाना है, और फार्मस भरने है.
मैं : यार , तुम भी न...वो अकेली नहीं जा सकती क्या..
अंशिका : नहीं..बिलकुल नहीं, अगर वो जाना भी चाहती तो नहीं जाने देती..उसे यहाँ के रास्ते सही ढंग से नहीं मालुम..
मैं : और जब वो कॉलेज जायेगी तो उसे रोज छोड़ने और लेने भी जाया करोगी क्या..
अंशिका : तुम मेरी हर बात को मजाक में क्यों लेते हो...मैं ज्यादा से ज्यादा , उसकी मदद करना चाहती हूँ...
मैं : ठीक है फिर, जब फुर्सत मिल जाए तो मुहे फोन भी कर लेना..
और मैंने गुस्से में फोन रख दिया.
उसने उसके बाद मुझे कई बार फ़ोन किया पर मैंने जान बुझकर उठाया नहीं, मुझे मालुम था की उसे थोडा बहुत सबक सिखाना ही पड़ेगा, नहीं तो वो समझेगी की उसकी कही हुई हर बात को मैं इसलिए मान लेता हूँ की मैं उसकी चूत मारना चाहता हूँ, लड़कियों को कभी-२ थोड़ी बहुत डोस देनी पड़ती है..मैंने फोन सायलेंट मोड पर रख दिया और सो गया.
अगली सुबह जब उठा तो मेरे सेल पर 27 मिस काल्स थी अंशिका की, आखिरी कॉल रात के २ बजे की थी..
मैं समझ गया की मेरा पासा सही पड़ा है.
मैं नहाने के लिए अन्दर चला गया, पापा ऑफिस जा चुके थे, मम्मी नाश्ता बना रही थी..
मैं नहा कर निकला तो बेल बजी, मैंने टावल पहना हुआ था, इसलिए मैंने वहीँ से चिल्ला कर मम्मी को दरवाजा खोलने को कहा..
मैं अलमारी से अपने कपडे निकाल कर प्रेस करने लगा, तभी पीछे से आवाज आई "गुड मोर्निंग..."
मैंने पीछे मुड कर देखा तो हैरान रह गया, मेरे सामने अंशिका खड़ी थी.
 
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update 81

अगली सुबह जब उठा तो मेरे सेल पर 27 मिस काल्स थी अंशिका की, आखिरी कॉल रात के २ बजे की थी..
मैं समझ गया की मेरा पासा सही पड़ा है.
मैं नहाने के लिए अन्दर चला गया, पापा ऑफिस जा चुके थे, मम्मी नाश्ता बना रही थी..
मैं नहा कर निकला तो बेल बजी, मैंने टावल पहना हुआ था, इसलिए मैंने वहीँ से चिल्ला कर मम्मी को दरवाजा खोलने को कहा..
मैं अलमारी से अपने कपडे निकाल कर प्रेस करने लगा, तभी पीछे से आवाज आई "गुड मोर्निंग..."
मैंने पीछे मुड कर देखा तो हैरान रह गया, मेरे सामने अंशिका खड़ी थी.
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अब आगे
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मैं अंशिका को अपने सामने देखकर हैरान रह गया..मैंने सिर्फ एक बार ही उसे अपना घर बाहर से ही दिखाया था, और वो आज मेरे घर आ भी गयी और मेरे कमरे में भी...मम्मी ने उसे अन्दर कैसे आने दिया..
मैं : अंशिका......!!!! तुम..तुम यहाँ कैसे..?
अंशिका (कातिल मुस्कान फेंककर से मेरी तरफ आते हुए) : पहले मुझे ये बताओ, तुमने मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया...मेरी कल वाली बात से इतने नाराज हो गए क्या..हूँ...बोलो...बोलो न..
वो कहती हुई बिलकुल मेरे पास आकर खड़ी हो गयी, मैं तो सिर्फ टावल लपेट कर खड़ा हुआ अपनी शर्ट प्रेस कर रहा था, मुझे क्या मालुम था की वो इस तरह से मेरे कमरे में आ जायेगी, मेरे कमरे में आने के लिए तो मम्मी भी बाहर से आवाज लगा कर अन्दर आती है, ये तो धड़ल्ले से अंदर चली आई...
वो मेरे बिलकुल सामने आकर खड़ी हो गयी, उसकी साँसे मेरी साँसों से टकरा रही थी, उसके शरीर से निकलती गर्मी मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, और मेरे पीछे खड़ी हुई प्रेस से निकलती गर्मी मुझे अपनी पीठ के ऊपर महसूस होने लगी...मैंने झट से पलट कर प्रेस को बंद कर दिया..
मैं : वो...वो. तुमने बात ही ऐसी करी थी की मुझे बुरा लगा...और उसके बाद मैंने सेल को सायलेंट मोड पर कर दिया..
अंशिका (मेरी गर्दन के दोनों तरफ अपने पंजे जमाते हुए , मेरी आँखों में देखते हुए) : लव मी...हेट मी....बट नेवर इग्नोर मी...अंडरस्टेंड ...
मुझे उसकी आवाज में एक तरह कठोरता थी...पर अगले ही पल उसके होंठो पर मुस्कान तेर गयी...और बोली " आई एम् सॉरी फॉर येस्टरडे ..प्लीस मुझे माफ़ कर दो...और ये कहते हुए उसने अपने होंठ मुझपर जमा दिए और उन्हें किसी पागल बिल्ली की तरह से चूसने लगी...
मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था...मुझे सबसे ज्यादा चिंता तो मम्मी की हो रही थी, जो बाहर थी, अगर उन्होंने अंशिका को अंदर आने दिया है तो वो भी कभी भी अंदर आ सकती है...मैंने उसकी किस को तोड़ते हुए उसे पीछे किया...उसकी आँखों में हेरत के भाव थे, मैंने पहली बार ऐसा किया था..
मैं : अंशिका....अंशिका...प्लीस..ये क्या कर रही हो...मम्मी बाहर ही है...वो अंदर आ जाएँगी..क्यों मुझे मरवाने के काम कर रही हो...
अंशिका के चूमने की वजह से मेरा लंड तन कर खड़ा हो चूका था, मैंने टावल के नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था..इसलिए मेरे टावल के सामने की तरफ एक टेंट सा बना हुआ था, जिसे देखकर अंशिका होले -२ मुस्कुराने लगी..
मैंने भी उसकी नजरों का पीछा करते हुए जब नीचे देखा तो तब मुझे पता चला की कमीना लंड खड़ा हो चूका है...
अंशिका : तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो, वो बाहर बैठकर मेरी बहन कनिष्का के साथ गप्पे मार रही है.
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो अपनी बहन को लेकर आई थी मेरे घर..
मैं : क्या !! तुम्हारी बहन भी आई है...तुमने क्या कहा उससे.
अंशिका : मैंने उसे तुम्हारे बारे में तो कल ही बता दिया था, और जब उसने मेरा मायूस चेहरा देखा तो वो मुझसे बोली की चलो पहले तुम्हारे घर ही चलते हैं..तुमसे मिलने, और जब हम यहाँ आये तो तुम्हारी मम्मी ने कहा की तुम अभी अंदर ही हो, मैंने उनसे पूछा की क्या मैं अंदर जाकर तुमसे मिल सकती हूँ तो उन्होंने मना नहीं किया, मैंने कनिष्का को इशारा करके कहा की तुम्हारी मम्मी को बातों में लगाये रखे..तो इसलिए तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो...सिर्फ अपने नीचे खड़े इस लंड की चिंता करो..जो तुम्हारे बस में नहीं है, और मुझे देखते ही खड़ा हो गया है..
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो बड़े आराम से ये सब बोले जा रही थी, और उसे मेरी मम्मी के अंदर आने का भी डर नहीं था, उसे पक्का विशवास था की उसकी बहन बाहर सब संभाल लेगी, पर ये करना क्या चाहती है..वो पिछले कई दिनों से पब्लिक प्लेसेस में आधे अधूरे सेक्स कर रही थी, जिसकी वजह से उसकी झिझक ख़त्म सी हो गयी थी, पर ये कोई पब्लिक प्लेस नहीं है, ये मेरा घर है, बाहर ये सब करने में मुझे कोई डर नहीं लगता था, पर अपने ही घर में मेरी गांड फट रही थी...और दूसरी तरफ अंशिका को तो जैसे इन सबमे एक अनोखा मजा आ रहा था. मैं आज उसकी ये हिम्मत देखकर सच में उसकी जवानी की आग का कायल हो गया.
मैं : तुम समझा करो अंशिका..ये सब यहाँ करना ठीक नहीं है..मैं अब तुमसे गुस्सा नहीं हूँ...चलो बाहर चलते हैं..
ये कहकर मैंने अपनी शर्ट उठाई और पहनने लगा..पर अंशिका ने झपटकर उसे छीन लिया..
अंशिका : तुम डर क्यों रहे हो, तुमने भी तो मेरे साथ कई बार ऐसी सिचुअशन में मजे लिए हैं...आज मैं भी तो वोही कर रही हूँ..
और ये कहते हुए उसने आगे बढकर मेरे टावल के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अंशिका......म्मम्म.....
अंशिका : और मैंने सोचा की अगर मैं पर्सनली आकर तुमसे "सॉरी" बोलूंगी तो तुम मुझे जरुर माफ़ कर दोगे...बोलो..करोगे न..
और उसने मेरे लंड को धीरे-२ दबाना शुरू कर दिया..
मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, गीले टावल के ऊपर से उसके हाथ मेरे लंड को पकडे हुए थे, और मेरा लंड एकदम स्टील जैसा कठोर हो चूका था, मुझमे सोचने समझने की हिम्मत ही नहीं थी...एक मन तो कर रहा था की इसे अपने बिस्तर पर पटकू और नंगा करके यहीं पेल दूँ, पर अगले ही पल बाहर बैठी उसकी बहन और अपनी मम्मी के बारे में सोचकर मुझे पसीना आने लगा..
मैं : रुको...एक मिनट...मुझे बाहर तो देखने दो की वो दोनों क्या कर रहे हैं..
अंशिका ने मुस्कुराते हुए मुझे जाने का रास्ता दे दिया..
 
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update 82

मैं लगभग भागते हुए दरवाजे के पास गया और उसे थोडा सा खोलकर बाहर की और देखा..मेरे कमरे और ड्राईंग रूम के बीच एक स्टोर रूम और बाथरूम है, और उसके बाड़ बीच में में सोफे के ऊपर बैठी हुई कनिष्का को जब मैंने देखा तो देखता ही रह गया..एकदम परी जैसी थी वो, पिंक कलर के सूट में वो बार्बी की गुडिया जैसी लग रही थी...एकदम गोरी, छाती भी पूरी भरी हुई, और बाल कंधे से थोडा नीचे तक थे..मैं उसे निहार रहा था की तभी मेरे पीछे से अंशिका के हाथ आगे की तरफ आकर मुझसे लिपट गए और उसके सोफ्ट सी ब्रेस्ट मेरी नंगी कमर के ऊपर रगड़ खाने लगी..अंशिका ने मेरे दोनों निप्पल पकड़कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया, मुझे थोड़ी गुदगुदी सी हो रही थी, और साथ ही साथ उसने अपने गीले होंठो से मेरी पीठ पर अनगिनत किस्सेस करनी शुरू कर दी.
ड्राईंग रूम के दूसरी तरफ किचन थी..मम्मी वहां खड़ी हुई चाय बना रही थी..और साथ ही साथ कनिष्का से कुछ बाते भी कर रही थी, कनिष्का का ध्यान मेरे कमरे की तरफ ही था, उसकी बहन जो अंदर थी, पर वो अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, मम्मी से गप्पे लगाकर उन्हें उलझाये रखने का..वो क्या बात कर रहे थे, मुझे सुनाई तो नहीं दे रहा था, पर बीच-२ में दोनों के हंसने की आवाजें जरुर सुनाई दे रही थी..कनिष्का जब भी मेरे कमरे की तरफ देखती तो मुझे डर लगने लगता की कहीं उसे मैं खड़ा हुआ तो दिखाई नहीं दे रहा, पर वो काफी दूर थी, और इतनी दुरी से दरवाजें में थोड़ी सी दरार को देखना लगभग नामुमकिन था..मुझे भी अब इस नए अड्वेंचर में मजा आने लगा था..खासकर अंशिका के "सॉरी" बोलने के तरीके पर
अब अंशिका का हाथ मेरी छाती से फिसलता हुआ नीचे की और आने लगा..और उसने फिर से मेरा लंड पकड़ लिया..और अगले ही पल दुसरे हाथ से उसने मेरा टावल खोल दिया..टावल मेरी टांगो के बीच आकर गिर गया और मेरा लंड अंशिका के हाथ में आ गया..
मैं अपने कमरे के दरवाजे में अब नंगा खड़ा हुआ था, और बाहर मेरी मम्मी और उसकी बहन थी, पर उसे इन बातों से जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था...वो तो बस "सॉरी" बोलने में लगी हुई थी..मैं तो नंगा था पर मुझे मालुम था की वो यहाँ नंगी नहीं हो सकती थी..पर अब मेरे जिस्म में भी अजीब सी तरंगे उठने लगी थी, मैं एकदम से उसकी तरफ घुमा और उसके होंठों को अपने होंठों से जकड कर जोरों से चूसने लगा...उसके गीले मुंह से निकलता सारा रस मेरे मुंह में जाने लगा, उसके होंठों का नमपन आज कुछ ज्यादा ही मीठा लग रहा था..मेरे दोनों हाथ उसकी छाती पर जम गए और उन्हें मसलने लगे, सूट और ब्रा पहनने के बावजूद उसके खड़े हुए निप्पल मुझे साफ़ महसूस हो रहे थे.
अंशिका भी हलकी -२ आवाजें निकलती हुई अपने शरीर को मेरे नंगे बदन से रगड़ रही थी..उसके दोनों हाथ मेरे लंड के ऊपर जमे हुए थे..और वो उन्हें काफी तेजी से आगे-पीछे कर रही थी..
मुझे लगा की अगर उसने एक-दो और झटके दिए तो मैं तो गया काम से...मैंने झट से उसके कंधे पर दबाव डाला और उसे नीचे बिठा दिया...और अगले ही पल मेरा पूरा लंड उसके मुंह के अंदर था..
अह्ह्ह्हह्ह .... यस बेबी ...सक मी....सक मी....हार्ड.....
मैंने दिवार से टेक लगाकर नीचे पंजो के बल बैठी अंशिका के मुंह में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया..और सर घुमाकर बाहर की और देखा कहीं कोई आ तो नहीं रहा..
मम्मी चाय बनाकर ले आई थी..और उन्होंने मुझे बाहर से ही आवाज लगायी..."विशाल्ल्ल....ओ विशाल...बेटा बाहर आओ, चाय बन चुकी है.."
मेरे लंड से एकदम से में ऐसा प्रेशर बन गया की किसी भी पल बाड़ आ सकती थी.....मैं वहीँ दरवाजे में खड़ा हुआ चिल्लाया..."कमिंग...आई एम् कमिंग....." और अगले ही पल मेरे लंड से पिचकारियाँ निकल-२ कर अंशिका के मुंह में जाने लगी...
अब बेचारी कनिष्का और मम्मी को थोड़े ही मालुम था की मैंने "कमिंग" किसलिए बोला था...
अंशिका ने मेरा सारा माल चूस-चूसकर पी लिया..और ऊपर की तरफ देखकर अपने उसी अंदाज में बोली...यम्मी...
मैंने उसे जल्दी से बाहर जाने को कहा, वो अपने रुमाल से चेहरा साफ़ करती हुई बाहर की और चली गयी..
बाहर जाकर उसकी आवाज मुझे सुनाई दी "आंटी...विशाल आ रहा है बस..."
और वो बैठकर अपनी बहन से खुसर फुसर करने लगी.
मैंने बिजली की तेजी से कपडे पहने और एक मिनट के अंदर ही मैं भी बाहर आ गया..
कनिष्का ने जब मुझे देखा तो वो मंत्रमुग्ध सी मुझे देखती हुई उठ खड़ी हुई..
अंशिका : विशाल, ये है मेरी सिस्टर..कनिष्का, इसी के एडमिशन के लिए मैंने तुमसे बात करी थी..
मैं भी कनिष्का की सुन्दरता देखकर अपनी सुध बुध खो सा बैठा..अंशिका की बात सुनकर मैं थोडा मुस्कुराया और कनिष्का की तरफ हाथ बढाकर कहा "हाय..कनिष्का, हाव आर यु..."
कनिष्का ने भी अपना हाथ मुझे थमा दिया, बिलकुल रुई जैसा था उसका एहसास.....मैंने उसे छुआ तो मेरे पुरे बदन में करंट सा लग गया, जिसे शायद कनिष्का ने भी महसूस किया होगा.
मैंने उन दोनों को चाय ऑफर की और मैं किचन में खड़ी हुई मम्मी के पास गया, जो अजीब सी नजरों से मुझे घूरे जा रही थी..
मम्मी : तेरी फ्रेंड्स भी है, तुने तो कभी बताया भी नहीं..
मैं : मम्मी, ये क्या बताने की बातें होती हैं...ये तो बस ऐसे ही..
मम्मी से मेरी काफी अच्छी बनती है, वो अक्सर मुझसे मेरे कॉलेज के बारे में और मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछती रहती है..पर मैं उनसे शर्म की वजह से कुछ नहीं बोल पाता..और वैसे भी आजकल के हर माँ बाप जानते है की उनके बच्चे अब ये सब नहीं करेंगे तो क्या उनकी उम्र में जाकर करेंगे..
मम्मी : वैसे दोनों बहने हैं काफी सुन्दर..तुझे कोनसी पसंद है..
मैं : मोम...आप भी ना...ऐसा कुछ नहीं है..
मम्मी : कुछ तो है बेटा, मैंने भी पूरी दुनिया देखि है, कोई लड़की पहली ही बार में लड़के के बेडरूम में नहीं चली जाती...खासकर जब उसकी मम्मी बैठि हो..
मैं : मोम..आजकल ये सब चलता है, आपके ज़माने में ऐसा नहीं होता होगा, और आपको ये सब अच्छा नहीं लगता इसलिए मेरी फ्रेंड्स घर नहीं आती, और ये आई तो अंदर भी चली गयी, इसमें कोनसी बड़ी बात है...वैसे भी ये अंशिका अपनी बहन के एडमिशन को लेकर काफी परेशान है, और मेरी एक-दो कॉलेज में अच्छी पहचान है, बस तभी ये उसे लेकर आई है, और आप है की पाता नहीं क्या-२ सोच रही हो..
मम्मी : ठीक है..ठीक है, नाराज क्यों होता है, मैं तो बस तेरी टांग खींच रही थी..हा हा .. चल बाहर चल, नहीं तो वो दोनों समझेंगी की मैं उन दोनों में से किसी को अपनी बहु बनाने के लिए तुझसे लडाई कर रही हूँ..
मैं और मम्मी हँसते हुए बाहर आ गए..
फिर सबने चाय पी, मैंने हल्का सा नाश्ता किया और मैं उन दोनों के साथ बाहर आ गया.
अंशिका आज अपने पापा की कार लेकर आई थी, मारुती स्विफ्ट. उसने चाभी मेरी तरफ फेंकी और खुद आगे जाकर बैठ गयी, कनिष्का पीछे जाकर बेठी और मैंने कार चलानी शुरू कर दी.
 

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मैं और मम्मी हँसते हुए बाहर आ गए..
फिर सबने चाय पी, मैंने हल्का सा नाश्ता किया और मैं उन दोनों के साथ बाहर आ गया.
अंशिका आज अपने पापा की कार लेकर आई थी, मारुती स्विफ्ट. उसने चाभी मेरी तरफ फेंकी और खुद आगे जाकर बैठ गयी, कनिष्का पीछे जाकर बेठी और मैंने कार चलानी शुरू कर दी.
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अब आगे
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कार के चलते ही पीछे बैठी हुई कनिष्का की चंचल अकाज गूंजी : "वाव दीदी...आपने तो कमाल कर दिया..आई एम् इम्प्रेस..."
मैं कुछ समझा नहीं की वो क्या बोल रही है.
और फिर कनिष्का मेरी तरफ सर घुमा कर बोली : यु नो विशाल, दीदी ने मुझे चेलेंज किया था की वो आज तुम्हारे कमरे में जाकर दिखाएगी...और वो भी पहली बार में ही..और इन्होने वो कर दिया..
ओहो..अब समझा, तो ये सब पहले से तय था और इसलिए वो इतनी दिलेरी दिखा रही थी..
मैं (कनिष्का की तरफ देखते हुए) : तो इसमें कोनसी बड़ी बात है..किसी के कमरे में जाना तो बहुत आसान है..कोई भी कर सकता है.
कनिष्का : नहीं, मेरी दीदी नहीं कर सकती ये सब, ये ऐसी है ही नहीं, तभी तो मैंने इन्हें ये चेलेंज दिया था, यहाँ आते वक़्त...
मैं (अंशिका की आँखों में देखकर मुस्कुराते हुए) : मुझे मालुम है की तुम्हारी दीदी ऐसी नहीं है, पर अब हो गयी है, मेरी संगत में आकर..
अंशिका ने शरमाकर अपना चहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी..
कनिष्का थोडा आगे खिसक आई और हम दोनों के बीच अपनी गर्दन लाकर बोली : वैसे क्या मैं पूछ सकती हूँ की आप दोनों इतनी देर तक कर क्या रहे थे अन्दर..??
उसकी बात सुनकर अंशिका के चेहरे की लालिमा और गहरी हो गयी..
मैं : तुम्हे इतनी फिकर हो रही थी अपनी दीदी की तो अन्दर ही आकर देख लेती की हम क्या कर रहे थे..
अब शर्माने की बारी कनिष्का की थी, मैंने इतने करीब से उसके चेहरे पर आते शर्म के भाव देखे की मेरा तो मन किया की उसे वहीँ चूम लू..उसमे से आती भीनी खुशबू पूरी कार में भरी हुई थी..और बड़ी मदहोश सी करने वाली थी..
अंशिका (अपनी बहन से) : तू अपने काम से काम रख कन्नू...अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है तू जो इन सबमे इतना इन्तरस्त ले रही है तू..
कनिका : ओहो दीदी..आप भी न, मुझे तो आप बच्ची ही समझते रहना, आई एम् यंग नाव..कॉलेज में आ गयी हूँ अब तो..
मैं उन दोनों बहनों की बातें सुनता रहा और मजे लेता रहा.
मैं : अच्छा अब मुझे ये बताओ की मुझे क्यों साथ लेकर आई हो तुम, और चलना कहाँ है..
अंशिका : वो तुम कल नाराज हो गए थे न, इसलिए मैंने सोचा की तुम्हे भी आज साथ ले चलू और तुम थोड़ी हेल्प भी करा देना हमारी , ठीक है न..
मैं क्या कहता, बस मुस्कुरा दिया और हम पहले कॉलेज में जा पहुंचे.
वहां बड़ी भीड़ थी,लम्बी-२ लाईन लगी हुई थी फार्म लेने के लिए.. पर मेरा एक दोस्त था उसी कॉलेज में, मैंने उसे फोन किया और सब बताया, उसने सिर्फ पांच मिनट में ही मुझे अन्दर जाकर फॉर्म लाकर दे दिया..इतनी जल्दी काम होते देखकर वो दोनों बहने बड़ी खुश हुई..
उसके बाद हम दो -तीन कॉलेज में और गए और हर बार मैंने किसी न किसी तरह की तिकड़म लगा कर उनका काम जल्दी करवा दिया..ये सब देखकर कनिष्का बड़ी खुश हुई..
कनिष्का : वाव विशाल, तुमने हमारा ये दो दिनों का काम एक ही दिन में करवा दिया, मुझे तो लगा था की इन पांच कॉलेजेस के फार्म लेने में ही दो दिन लग जायेंगे..
अंशिका : आखिर दोस्त किसका है..
कनिष्का : सिर्फ दोस्त..या..
अंशिका :सिर्फ दोस्त..और तू अपना दिमाग बेकार की बातों में मत चला..समझी.
उन दोनों बहनों की नोक-झोंक देखने में बड़ा मजा आ रहा था..
उसके बाद हम सभी खाना खाने के लिए एक अच्छे से रेस्तरो में गए, और फिर वापिस चल दिए..
रास्ते में कनिष्का अपनी आदत के अनुसार चबर चबर बोलती रही..और हम दोनों मजे ले लेकर उसकी बातें सुनते रहे..मैंने नोट किया की अंशिका कुछ चुप-चाप सी बैठी है..
मैं : क्या हुआ अंशिका..कोई प्रोब्लम है क्या..
अंशिका (धीरे से) : वो..वो..मुझे प्रेशर आया है..काफी तेज..
मैं समझ गया की उसे मूतना है..पर यहाँ कैसे, हम उस वक़्त हाईवे पर थे..दूर-२ तक कुछ भी नहीं था..
मैं : अभी थोडा आगे जाकर देखते हैं, कोई पेट्रोल पम्प या ढाभा हुआ तो वहां कर लेना..
अंशिका (बुरा सा मुंह बनाते हुए) : वहां तक के लिए रोक पाना मुश्किल है...प्लीस..कुछ करो.
कनिष्का : दीदी आप भी न, अभी जहाँ खाना खाया था वहीँ कर लेती..
अंशिका कुछ न बोली, वो बोलने की हालत में लग ही नहीं रही थी..
मैंने कार एक तरफ रोक दी, रोड के थोड़ी दुरी पर एक पेड़ था..
मैं : जाओ जल्दी से, वहां कर लो.
अंशिका मेरी तरफ देखकर बोली : यहाँ, खुले में..?
मैं : फिर बैठी रहो, आगे कोई होटल आएगा न तब आप कर लेना..
कनिष्का मेरी बात सुनकर हंसने लगी..
अंशिका : ठीक है ..ठीक है..जाती हूँ..
और वो कार से उतर गयी कर पेड़ की तरफ चल दी.
 
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उसके उतरते ही कनिष्का फिर से अपना चेहरा आगे करके मेरे पास आकर बोली : वैसे विशाल, दीदी तो मना कर रही है, पर मुझे मालुम है की तुम दोनों में कुछ न कुछ खिचड़ी तो बन ही रही थी अन्दर कमरे में..
मैंने भी मजे लेने के मूड में उससे कहा : अच्छा जी, तब तो बता ही दो की क्या चल रहा था मेरे कमरे में.
कनिष्का : तुम ही क्यों नहीं बता देते..
मैं : तो सुनो, जब अंशिका मेरे कमरे में आई तो मैं टावल में खड़ा हुआ था, और वो आकर मुझसे लिपट गयी और फिर उसने मुझे चूमा और मैंने भी उसके होंठो को अच्छी तरह से किस किया..और फिर मेरा टावल खुल गया...और उसके बाद...
कनिष्का : बस बस...मुझे और नहीं सुनना
उसका चेहरा देखने लायक था..शर्म से लाल सुर्ख..
मैं मुडकर उसे शर्माते हुए देखने लगा की तभी मेरी नजर पेड़ के पीछे छुप कर सुसु करती हुई अंशिका पर गयी..उसके मोटे कुल्हे दूर से साफ़ दिखाई दे रहे थे, उसका चेहरा दूसरी तरफ था और वो पेड़ के पीछे थी पर पूरी तरह से छुप नहीं पा रही थी..उसकी गांड देखकर तो मेरे मुंह में पानी आ गया..
तभी कनिष्का की आवाज आई : विशाल, क्या तुम मुझे अपना नंबर दे सकते हो..
मैं : क्यों ?
कनिष्का : वो..वो..अगर कोई प्रोब्लम हुई तो तुम्हारी हेल्प ले लिया करुँगी..
मैं : ठीक है, लिख लो.
और मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया.
तभी अंशिका उठ कड़ी हुई और अपने कपडे ठीक करने के बाद वापिस आने लगी.
मैं : वैसे हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था जैसा मैंने कहा या फिर जैसा तुमने सोचा..
कनिष्का हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी..
वो कुछ कहना चाहती थी पर तभी उसकी बहन अन्दर आ गयी.
अंशिका : अब ठीक है..चलो अब.
कनिष्का :नहीं ..अभी नहीं...वो क्या है की...मुझे भी..जाना है.
अंशिका : अब क्या हुआ...तू तो मुझे लेक्चर दे रही थी अभी..चल जा जल्दी से..
वो उतर कर चल दी उसी पेड़ के पीछे...
मुझे नहीं मालुम की उसे भी सुसु आया था या नहीं..कहीं वो जान बुझकर , मुझे अपनी गांड के जलवे दिखने के लिए तो वहां नहीं उतरी थी..
मैंने अपना चेहरा घुमा कर दूसरी तरफ कर लिया..ताकि अंशिका को ना लगे की मैं उसकी बहन को सुसु करते हुए देख रहा हूँ.
अंशिका : क्या बोल रही थी कन्नू...कुछ बताया तो नहीं तुमना..
मैंने सर घुमा कर उसकी तरफ देखा : तुम भी बच्चो जैसी बात करती हो..मैं कैसे उसे बता देता की तुमने आज सुबह मेरा लंड चूसकर मेरा सारा रस पी लिया..
मेरी बात सुनते ही उसने अपना सर शर्म से झुका लिया, बस इतना ही समय काफी था मुझे कनिष्का की तरफ देखने के लिए. जो अपने जींस उतार कर बैठी हुई आराम से अपनी गांड दर्शन मुझे करवा रही थी..पहले अंशिका और अब कनिष्का..दोनों बहनों की नंगी गांड देखकर तो मेरा बुरा हाल हो चूका था..वो उठी और अपनी जींस को ऊपर किया और अपने ग्लोबस को वापिस अन्दर छुपा लिया..और फिर हमारी तरफ आ गयी..
अन्दर आते ही कनिष्का बोली : दीदी, आपने कभी सोचा भी था की हम दोनों इस तरह से खुले में जाकर सुसु करेंगी..हे हे ..पर टाईम कुछ भी करा सकता है...है न..
अंशिका : हाँ मेरी माँ...अब चुप हो जा..
और उसके बाद हम तीनो हँसते हुए वापिस चल दिए..
शाम काफी हो चुकी थी ,मुझे स्नेहा के पास भी जाना था. पुरे दिन बाहर रहने की वजह से मेरे सेल की बेटरी भी ख़तम हो चुकी थी..मैं आधा घंटा देर से पोहचुंगा वहां...
मैंने अंशिका को कहा की वो मुझे किटी मेम के घर छोड़ दे, ताकि मैं स्नेहा को पड़ा सकूँ..
उसने कहा ठीक है और मुझे किटी में के घर के बाहर छोड़कर वो दोनों वापिस चली गयी..
मैं ऊपर गया और बेल बजायी...किटी में ने दरवाजा खोला : अरे विशाल तुम, आओ अन्दर आओ...
अन्दर आकर मैं सोफे पर बैठ गया, उसी जगह जहाँ कल शाम को स्नेहा मेरी बाँहों में नंगी थी और मैंने स्नेहा की चूत चाटी थी..मैं हाथ लगा कर सोफे पर लगे स्नेहा की चूत से निकले रस के निशान को रगड़ने लगा..
मैं : वो स्नेहा ..स्नेहा कहाँ है मेम..
किटी मेम : उसने तुम्हे बताया नहीं, मैंने कहा था की फोन कर दे तुम्हे, वो तो आज अपनी सहेली के घर गयी है, उसका बर्थडे है..स्कूल से सीधा चली गयी थी वो, साथ में अपनी ड्रेस भी ले गयी.
मैं : ओहो...एक्चुयल्ली मेरा फ़ोन डेड हो गया था आज, शायद इसलिए ...बात नहीं हो पायी उससे..ठीक है , कोई बात नहीं, मैं चलता हूँ..
किटी मेम : रुको..बैठो थोड़ी देर..मुझे तुमसे बात करनी है..
मैं उनकी बात सुनकर डर सा गया..कहीं उन्हें मेरे और स्नेहा के बारे में तो कुछ मालुम नहीं हो गया है..
 
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मैं उनकी बात सुनकर डर सा गया..कहीं उन्हें मेरे और स्नेहा के बारे में तो कुछ मालुम नहीं हो गया है..
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अब आगे
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किटी मेम अन्दर चली गयी, और मेरे लिए पानी लेकर आई.
मेरी नजर तो उनके तरबूजों पर ही थी..आज बिना चुन्नी के उनकी छाती पर लटके उन रसीले फलों को देखकर तो मेरा लंड जींस में से टाईट होने लगा..
पानी देने के बाद वो मेरे सामने बैठ गयी. वो मुझे घूरे जा रही थी..मानो मन में सोच रही हो की बात कहाँ से शुरू की जाए..
किटी मेम : तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड है क्या..?
मैं उनकी बात सुनकर घबरा गया..आज इनको क्या हो गया है जो मुझसे मेरी गर्ल फ्रेंड के बारे में पूछ रही है..अगर कोई और होता तो उसे शायद आज मैं अंशिका या स्नेहा के बारे में बता भी देता पर इनको तो येही मालुम है की अंशिका मेरी कजन है और स्नेहा तो इनकी सगी बेटी है..
मैं : जी...जी नहीं...
किटी मेम (हँसते हुए) : घबराओ मत...मैं किसी से नहीं कहूँगी..
मैं : नहीं मेम, ऐसी कोई बात नहीं है...मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है.
किटी मेम (मेरी आँखों में देखकर बोलते हुए) : तभी..तभी तुम ऐसे हो..
मैं फिर से घबरा गया, ये क्या कह रही है..
मैं : जी..मैं..मैं कुछ समझा नहीं..
किटी मेम : मेरे कॉलेज में मेरा पाला हर रोज तुम्हारी उम्र के लडको से पड़ता है..और उनकी नजरे देखकर ही मुझे पता चल जाता है की उनके दिमाग में क्या चल रहा है..
मेरा तो सर भन्ना गया..साली मेरे दिमाग का तो एक्सरे करने में नहीं लगी हुई...मेरे माथे पर पसीना आने लगा, मैंने दोबारा से पानी का गिलास उठाया और पूरा खाली कर दिया..
मेरी हालत देखकर वो मुस्कुराने लगी..
किटी : तुम क्यों घबरा रहे हो..मैंने तो अभी कुछ कहा भी नहीं..
मैं नजरे इधर उधर करके उन्हें अवोइड करने की कोशिश करने लगा.
मैं : आप क्या कह रही हैं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मेम..
किटी : अच्छा तो फिर सुनो, मैंने तुम्हे कई बार अपने यहाँ घूर कर देखते हुए पाया है...इसका क्या मतलब है.
उन्होंने अपनी भरी पूरी छातियों की तरफ इशारा किया..
मैं : जी..जी...मैं..मैं...नहीं.तो..मैंने तो...नहीं...
मेरी हालत देखकर वो फिर से हंसने लगी..
किटी : हे हे...घबराओ मत...मैं समझ सकती हूँ, मैं कॉलेज में हयूमन साईंस पढ़ाती हूँ...और आज कल के लडको की साईकोलोजी मैं अच्छी तरह से समझती हूँ..जो चीज तुम्हे मिल नहीं सकती उसे देखकर ही मन भर लेते हो...है न..!!
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की आज इन्हें हो क्या गया है...चाहता तो मैं भी कब से था की मैं उनके साथ इस तरह की बाते करूँ पर मुझे नहीं मालुम था की वो भी शायद ऐसा ही चाहती हैं..मैंने मन में सोचा की बेटा विशाल, आज ही मोका है, चांस लेकर देख ले..क्या पता किटी मेम की खीर खाने को मिल जाए..
मैंने अब घबराना छोड़ दिया था..मैंने भी हँसते हुए उनकी बातों का जवाब देना शुरू कर दिया.
मैं : वो..वो क्या है न मेम...मेरी कोई गर्ल फ्रेंड तो है नहीं..और मेरे सभी दोस्त मुझे हमेशा चिड़ाते रहते हैं...और अपने किस्से सुना सुनाकर मुझे जलाते हैं..इसलिए मेरी नजर अक्सर हर सुन्दर लड़की या औरत पर चली जाती है...इसलिए...इसलिए शायद आपको भी बुरा लगा होगा...मेरे ऐसे देखने से..
मेरे मुंह से सुन्दर औरत वाली बात सुनकर वो थोडा और चोडी हो गयी..
किटी : तो क्या मैं तुम्हे सुन्दर लगती हूँ..
मैं :जी...जी .आप बुरा तो नहीं मानेगी..
किटी : नहीं विशाल...बोलो..जो तुम्हारे मन मैं है बोलो..
मैं (शर्माते हुए) : मेम...सुन्दर तो आप है ही...और आपकी ये ...ये ...ब्रेस्ट..और भी शानदार है...इसे कोई भी देख ले तो उसकी नजर ही न हटे इसपर से..प्लीस आप बुरा मत मानना ...और ये सब अंशिका को मत बताना...प्लीस...
किटी : नहीं...मैं बुरा नहीं मान रही...और न ही मैं ये सब अंशिका को बताउंगी...मुझे मालुम है की वो तुम्हारे ऊपर कैसा रोब चलाती है...पर एक बात बताओ...क्या तुमने आज तक किसी भी लड़की या औरत की ब्रेस्ट को हाथ में लेकर या उन्हें...उन्हें..नंगा नहीं देखा..
उनकी आखिरी बात सुनकर जो हरकत मेरे लंड में हुई, मैं बता नहीं सकता...साली मेरे सामने अपने दोनों बर्तनों को भरकर बैठी हुई मुझसे इस तरह की बात करेगी तो मेरा तो क्या...आप पड़ने वालो का भी लंड पेंट फाड़ कर बाहर आ जाएगा...
मैं : जी...जी नहीं मेम...ऐसा कोई मौका ही नहीं आया आजतक..
मेरी बात सुनकर वो फिर से मुझे घूरने लगी..मानो कुछ तय करने की कोशिश कर रही हो...
किटी : देखो...तुम अगर किसी से कुछ न कहो..तो मैं..तुम्हे आज अपने ब्रेस्ट दिखा सकती हूँ..
मैं (चोंकते हुए) : क्या...आप..आप अपनी...अपनी ब्रेस्ट मुझे....वाव...आई मीन...कैसे...और मुझे क्यों...आप दिखाएगी..
किटी : देखो विशाल...तुमने स्नेहा के पापा को तो देखा ही है....उनकी उम्र नहीं रही अब ये सब करने की...मेरी भी कुछ तमन्नाये है...जो उनकी ढलती उम्र की वजह से अधूरी रह गयी है...और इसलिए मुझे जब भी मौका मिलता है...मैं तुम जैसे लडको के साथ कुछ मजे लेकर अपने अरमान पुरे कर लेती हूँ...बस इसलिए...और वैसे भी तुम मेरी बेटी की पढाई में मदद कर रहे हो...इसलिए मुझे भी तो तुम्हे थेंक्स कहने का मौका मिलना चाहिए न..
और वो उठकर मेरी बगल में आकर बैठ गयी...ठीक उसी जगह पर जहाँ उनकी बेटी कल नंगी मेरे साथ बैठी थी..
किटी मेम के शरीर से निकलती आग को मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था...पर बात वहीँ पर आकर अटक जानी थी जहाँ कल अटकी थी...मैं अंशिका की चूत मारे बिना इनकी भी नहीं मार पाउँगा...जब मेरे इस फेसले को वो कुंवारी स्नेहा की चूत ना बदल सकी तो ये चालीस साल की आंटी क्या बदल पाएगी...पर मजे लेने में तो कोई पाबंदी नहीं है ना..और वैसे भी इनके रसीले फलों का तो मैं शुरू से दीवाना रहा हूँ..इसलिए मैंने भी सोच लिया की उनके साथ किस हद तक मुझे मजे लेने है या....देने है.
मैं : तो क्या आप..आप अपने स्टुडेंट्स के साथ भी...ये सब करती है...
 
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