भाग १
यह कहानी एक ऐसे गांव की है जिसके यहां की औरतों को अतृप्त रहने का श्राप मिला हुआ था। किसने दिया ये श्राप ये आगे जानेंगे पर अभी के लिए इस गांव की हर औरत अतृप्त है। ये गांव पहले कभी बड़ा गांव हुआ करता था पर श्राप के कारण गिनती के ६० ७० घर ही बचे थे जो आपस में मिल जुल कर अपनी गुजर बसर कर रहे थे। लोगो को ऐसा लगा की गांव छोड़ देंगे तो श्राप भी उनका पीछा छोड़ देगा पर वो नही जानते थे की श्राप तो उनके खानदान पर लग चुका हैं। वो देश विदेश कही भी जाए ये श्राप उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। हर शादीशुदा औरत या फिर जवान लड़की हो उनकी चूत हमेशा चुदासी रहती थी। बस औरत ५५ पर करी नही उसकी बेचैनी यकायक खतम हो जाती थी। इस गांव का कमाने का एक ही जरिया था खेती बाड़ी। तो चलते है अपने मुख्य किरदार की तरफ जो इस समय जंगल की तरफ बड़े जा रहा था।
अमावस्या की रात गहराती जा रही थी। जंगल में विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं की आवाजे आ रही थी जो किसी भी साधारण से इंसान के रोंगटे खड़े कर दे। दूर कुत्ते के रोने की आवाज माहोल को और भयानक बना रही थी। पर इन सब चीज़ों से दूर एक लड़का जंगल के अंधेरे की ओर चले जा रहा था। वो मन ही मन बुदबुदाए जा रहा था की अब घर कभी नही जाऊंगा। सब उसे डांटते है कोई प्यार नही करता। ये और कोई नही हमारी कहानी का मुख्य पात्र हैं लल्लू उर्फ वीर प्रताप। लल्लू १९ साल का लड़का हैं।
बिलकुल साधारण सा और मंद बुद्धि। इसकी बुद्धि अभी भी १० साल के बच्चे के बराबर हैं। इसका दिमाग विकसित ही नही हुआ। ऐसा नहीं की इससे कोई प्यार नही करता, सब इस पर जान छिड़कते है बस परेशान है की उनका इकलौता सहारा ऐसा हैं। तो आइए लल्लू की यात्रा पर निकलने से पहले उसके परिवार के बारे में सब जानते हैं।
१. सबसे पहले लल्लू की मां सुधा। ४४ साल की गदरायी हुई महिला जिसमे यौवन कूट कूट कर भरा था। एक दम गांव की अल्हड़ महिला जिसे पुरुष संसर्ग पिछले १६ सालो से नही मिला क्युकी इसके पति की मृत्यु हो गई थी। ये चाहती तो थी पुरुष संसर्ग पर लोक लाज के डर के मारे अपनी इच्छाएं दबा कर रखी हुई थी। गांव में जब भी ये निकलती तो हर पुरुष की आह निकल जाती। इसके वक्ष तो जैसे कहर और इनकी गांड़ कयामत। हर समय सारी में रहती पर रात को सोते समय सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में क्योंकि कमरे में सोती थी और इनके साथ इनका लाडला लल्लू, जिसे औरत के जिस्म और उसके यौवन का कुछ पता नहीं था।
२. तेज प्रताप: ये लल्लू के पिता, जो अब मर चुके हैं। सांप काटने से इनका निधन हो गया, कोई रोल नही हैं इनका इस कहानी में।
३. कमला: लल्लू की सबसे बड़ी बहन। उम्र २३ साल। पूरी तरह गदराया हुआ बदन। इसे जवानी इस कदर चढ़ी थी की ये सिर्फ लन्ड और चूत की बात करती थी अपनी सहेलियों से। कुछ सहेलियां इसकी शादीशुदा थी जो जिनसे ये उनके किस्से सुन खुद को उनकी जगह हर रात को उंगली करती। कई मनचले इसके पीछे पड़े हैं पर अपनी मां और ताई के डर से ये किसी को घास नहीं डालती। पूरी तरह गांव की अल्हड़ जवानी।
४. सरला: लल्लू की छोटी बहन पर लल्लू से १ साल बड़ी। उम्र २० साल। घर की सबसे होशियार और समझदार लड़की। १२ वी क्लास में पूरे जिले में अव्वल आई थी और इसकी जिद्द आगे पढ़ने की थी तो किसी ने उसको माना नही किया। पास के शहर में कॉलेज में पड़ रही हैं। इसका दूसरा साल हैं एम बी बी एस का। हर शनिवार शाम घर आती हैं और संडे को खेत और डेयरी का पूरा हिसाब किताब देखती हैं। अगर फिगर की बात करे तो अपनी मां और बहन से साढ़े उन्नीस ही होगा। इसने थोड़ा अपने घर की औरते का पहनावा बदल दिया(वो आगे जाके पता पड़ेगा)। जवानी तो इस पर भी खूब चढ़ी है पर ये भी इच्छाएं दबा के अपना जीवन व्यापन कर रही हैं।
६: माया देवी: इस घर की मुखिया और इस गांव की भी और लल्लू की ताई। उम्र ५९ साल। चूत की भूख इनकी काम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। चूचे इतने बड़े की इक हाथ में समाय ना समय और गांड़ ऐसी थिरक के चलती जैसे हर समय लोड़ा घुसा हो इनकी गांड़ में। गांव के कई मर्दों के साथ हमबिस्तर हो चुकी है पर मजा नही आया। गाली तू हर समय इनके मुंह पर धरी रहती है। इनके गुस्से से घर क्या पूरा गांव घबराता हैं। जब गांव में निकलती तो पहलवानों की फौज चलती थी इनके साथ। किसी भी औरत पे जुल्म इनको बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था।
७: समर प्रताप: ये वीर के ताऊ। इक दिन घर से खेत के लिए निकले पर न ही कभी खेत पहुंचे अर्बन ही वापस घर। इनके साथ क्या हुआ कोई नही जानता। आगे ये क्या क्या गुल खिलाएंगे देखते रहे।
माया और समर की दो बेटियां है जिनकी शादी हो चुकी है और हम उनके बारे में बाद में जानेंगे। समय आने पर उनका परिचय दिया जायेगा।
८. सूर्य प्रताप: ये लल्लू के चाचा हैं। उम्र ४४ साल। इनकी रगो में खून कम और शराब ज्यादा थी। हर तरह के नशे के आदि। इनको घर बार या रुपया पैसे से कोई मतलब नहीं। मतलब है तो केवल इतना की इनके नशे का जुगाड हो जाए। इनका भी कोई ज्यादा काम नही हैं कहानी में।
९: रतना: ये लल्लू की चाची। उम्र ३९ साल। ३९ साल का एक दम कोरा मॉल, जिसको किसी ने भी नही छुआ हो। सुहागरात के दिन ही पति की असलियत पता लगी पर माया देवी के कारण कुछ न बोल पाई ना कर पाई। इसके हर एक अंग से मादकता टपकती थी। ये हर रात खुद को शांत करने की कोशिश करती पर होता कुछ भी नही। इसका और कमला का एक खास रिश्ता है। ये दोनो चाची भतीजी कम और सहेलियां ज्यादा थी।
१०: उषा ताई: ये ५० साल की औरत माया देवी की खास हैं। कहने को तो नौकरानी पर घर में सब इसे बहुत इज्जत देते क्योंकि माया देवी के बहुत मुंह चढ़ी थी। पूरे गांव में क्या हो रहा है इसे सब पता होता। एक नंबर की रण्डी।
ये तो हो गए चंद किरदार या यूं कहे अहम किरदार। बाकी किरदार समय के साथ जुड़ते जायेंगे। तो वापस चलते है लल्लू की तरफ जो इस समय जंगल के अंधेरे को चीरता हुआ आगे बड़ा जा रहा था।
लल्लू के कदमों की चाप जंगल के सन्नाटे को चीर रही थी। उसकी आंखो में आंसू और चेहरे पर रोश। माथे के बल उसके मजबूत इरादे की गवाही दे रहे थे, वो अंजान सफर पे अग्रसर था जिसकी मंजिल उसे खुद पता नही थी। बस मन में एक बात की अब घर नही जाना, इस गांव ने नही रहना क्युकी सब या तो उसे मरते है या उसका मजाक उड़ाते हैं। तभी उसके पैर एकदम से ठिठक जाते हैं। उसकी रफ्तार पर मानो जैसे किसी ने रोक लगा दी हो। उसकी नजरे को जो सामने दिख रहा था उसपे यकीन नही था। सामने थी इस गांव के जमेंदारो की पुरानी हवेली।
इस हवेली के बारे में गांव के कुछ लोग ही जानते थे और जो वो जानते थे वो इसके बारे में बात भी करने से डरते थे। ये हवेली २०० सालो से वीरान पड़ी थी पर मजाल है कोई इसकी हालत देख कर ऐसा बोल सके। इस हवेली की शानो शौकत देखते ही बनती थी।
लल्लू की आंखों में चमक आ गई। उसे उसका नया घर मिल गया था। पर बस मुश्किल इतनी थी अंदर कैसे जाया जाए। लल्लू उस हवेली की चार दिवारी के इर्द गिर्द घूम रहा था। तभी उसको एक बड़ा सा द्वार दिखाई दिया। लल्लू भागकर उस द्वार की तरफ गया। अब एक बार फिर लल्लू चौंक गया। द्वार पर इतना बड़ा ताला देख कर।
वो ताला इतना बड़ा था की लल्लू के हाथ भी छोटा था। वो ताला पूरी तरह कलावे से बंधा हुआ था। और द्वार को चारो ओर से लाल धागे से बांधा हुआ था। लल्लू जो देख रहा था उसे यकीन नही हुआ और उसके हाथ ताले को छू कर देखने के लिए आगे बड़े। लल्लू के दिल में डर भी था और जिज्ञासा भी। वो तो बस हवेली के अंदर जाके अपनी थकान मिटाना चाहता था। लल्लू के हाथ जैसे जैसे आगे बड़े वैसे उसके दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी। लल्लू को इस सर्द अमावस्या की रात में पसीने से बुरा हाल था। जैसे ही लल्लू ने ताले को छुआ उसे इतनी तेज करेंट लगा की वो १० फीट दूर जाके गिरा। लल्लू का डर के मारे बुरा हाल था, वो बस उस ताले को घूरे जा रहा था।
इधर जैसे ही लल्लू ने ताले को हाथ लगाया, पूरी हवेली अंदर से एक सेकंड के लिए जगमगा उठी। लल्लू नही देख पाया वो दृश्य पर अगर देख लेता तो डर के मारे भाग जाता। तभी कुछ आवाजे हवेली में गूंजने लगी। कोई आया। कोई जानवर होगा। किसी ने ताले को छुआ। कौन है वो। नही ये तो कोई मनुष्य है। अरे हां एक मर्द है। मिल गया मेरी मुक्ति का सहारा आ गया। शेरा ओ शेरा। और वो आवाजे शांत हो गई।
लल्लू एक टक उस ताले को घूर रहा था की किसी की कु कू ने उसका ध्यान आकर्षित किया। लल्लू को बहुत प्यारा काला कुत्ता दिया। उसकी आंखें एक दम नीली जो इस अंधेरे को चीर रही थी। वो लल्लू की तरफ देख कर पूंछ हिलाने लगा। लल्लू जो की अभी अभी बिजली का झटका खाया था वो अब इस कुत्ते को प्यार से अपने पास बुलाने लगा। कुत्ता भी पूंछ हिलाते हुए लल्लू की तरफ भड़ने लगा। लल्लू के पास पहुंच कर वो कुत्ता लल्लू को प्यार से चाटने लगा और लल्लू भी उससे खेलने लगा। वो भूल गया था की वो इस समय कहां पर हैं। वो कुत्ता लल्लू का कुर्ता खीच कर उसे उठाने लगा। लल्लू को समझ में आ गया की ये कुत्ता उसे कही ले जाना चाहता हैं। लल्लू भी उठ खड़ा हुआ और उस कुत्ते के पीछे चलने लगा। चलते चलते वो लोग हवेली के पीछे की तरफ पहुंच गए वहा दीवार थोड़ी सी टूटी हुई थी। एक आदमी आराम से निकल सकता था। लल्लू को उस कुत्ते पे बहुत प्यार आया। इंसान इंसान को नही समझता पर एक जानवर इंसान को कैसे समझ लेता हैं। हवेली के चारो तरफ बाग बगीचे थे जो की कही से भी उजाड़ नही लग रहे थे। लल्लू घूम कर हवेली के बिलकुल सामने खड़ा था। जो सीडियां हवेली के मुख्य द्वार की ओर जा रही थी उसके दोनो तरफ कुत्ते का स्टेच्यू बना हुआ था, पर एक तरफ का कुत्ता गायब था। लल्लू को थोड़ा अजीब लगा। लल्लू आगे बढ़ता हुआ हवेली के मुख्य द्वार पर आ पहुंचा। लल्लू उस बड़े से द्वार को धकेलता इससे पहले वो द्वार खुद खुल गया और हवेली जगमगा उठी।
लल्लू की हवा खराब हो गई थी। उसकी सांसे उसके गले में अटकी हुई थी। वो रह रहकर हवेली की मुख्य बैठक को चोर और घूम घूम कर देख रहा था। लल्लू ने हवेली में कदम रखा और वो हवेली की भव्यता में को गया। इतना बड़ा फानूस उसने जिंदगी में नही देखा था। ऐसा कालीन ऐसे सोफे और इतना बड़ा कमरा। जगह जगह पुराने जमींदारों की पेंटिंग लगी हुई। सामने से सीडी ऊपर की तरफ जाती हुई। तभी लल्लू को एक आवाज सुनाई दी।
आवाज: आओ वीर प्रताप, मैं भानु प्रताप तुम्हारा अपनी हवेली और रियासत में इस्तेकबाल करता हु।
लल्लू आवाज सुन के डर गया। पर फिर वो अपने डर को छुपाते हुए बोला।
लल्लू: ककक कौन हो आप। आप दिखाई क्यों नहीं दे रहे।
आवाज: हम मिलेंगे भी और दिखाई भी देंगे पहले तुम्हे भूख लगी होगी आओ पहले कुछ खा लो।
खाने का नाम सुनते ही लल्लू के मुंह में पानी आ जाता हैं और वो आवाज के पीछे पीछे चलने लगता हैं। चौखट पे निकली कील के कारण लल्लू की कलाई छील गई और दो बूंद खून की धरा के पटल पर गिर गई। जैसे ही खून गिरा वो गायब हो गया और तहखाने में एक हंसी गूंज उठी। " हां हां हां हां हां हां। अब आयेगा मजा, ये तो मेरा ही खून है, यानी मेरा वंशज"।
इधर लल्लू खाने की सजी हुई मेज को देख कर पागल हो गया।
जो जो उसे पसंद था वो सब था। भुना हुआ मुर्गा, मटन, खीर, पूरी, जलेबी, रबरी, पनीर, आलू की सब्जी और उसक मुंह में पानी आ गया। लल्लू ने जी भरके खाना खाया आज उसे रोकने वाला कोई नहीं था। खाना खाके लल्लू अब उस आवाज से मुखातिब हुआ।
लल्लू: बहुत बहुत शुक्रिया! ऐसा स्वादिष्ट भोजन तो मैने कभी नही किया।
आवाज: इसमें शुक्रिया जैसा क्या है, ये तुम्हारा ही घर हैं। अब ऐसा भोजन तुम रोज कर सकते हो।
लल्लू: हा सही है, अब मैं रोज ऐसा ही भोजन करूंगा। यही रहूंगा और घर कभी नही जाऊंगा।
आवाज: क्यू घर क्यू नही जाना हैं तुम्हे वीर प्रताप।
लल्लू: सब मुझे मरते हैं, मुझे मंद बुद्धि, बेवकूफ और पागल बोलते हैं। मैं पूरे गांव से नफरत करता हूं।
आवाज: हम गांव जरूर जायेंगे पर पीटने के लिए नही पीटने और जिसने भी तुमको अपशब्द कहे हैं उसकी खाट खड़ी करने।
बहुत सी बाते हो रही थी उस आवाज और लल्लू में।
उधर लल्लू के घर में उसके घरवालों की लिए ये एक कयामत की रात थी। सब लोग खाना पीना छोड़ कर बस लल्लू की ही प्रतीक्षा कर रहे थे। माया देवी के पहलवान गांव का हर कोना छान रहे थे पर लल्लू का कोई नामोनिशान नहीं। माया देवी के हुक्म से गांव का हर मर्द लल्लू की तलाश कर रहा था। सबको जंगल की तरफ जाने से मना किया था इसलिए वहा कोई नही गया।
घर में सबका रो रोकर बुरा हाल था। सुधा, माया देवी और रतना बस लल्लू की एक आवाज सुनने को व्याकुल थी। माया देवी खुद को कोस रही थी की क्यों उसने लल्लू पे हाथ उठाया। आज की रात इस घर में चौका चूल्हा भी नही हुआ। रोते रोते पूरी रात निकल गई। सूर्य की लालिमा अब अपना प्रकाश फैलाने को बेकरार थी।
सूर्य की पहली किरण के साथ ही हवेली का द्वार खुला। लल्लू ने अपना पहला कदम बाहर निकाला और चारो तरफ से हवेली को देखने लगा। लल्लू के चेहरे का तेज और आत्मविश्वास देखते ही बनता था। लल्लू सीढियां उत्तर कर हवेली के मुख्य द्वार की तरफ बड़ने लगा। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो अब वहा दोनो कुत्तो का स्टेच्यू यथावत था। इसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान फैल गई। लल्लू मुख्य द्वार के बिलकुल करीब पुहुच गया और उसने एक हल्की सी फूंक मारी और वो बड़ा सा ताला किसी खिलौने की तरह टूट गया और मुख्य द्वार खुल गया। लल्लू बाहर निकला और पीछे मुडकर देखा तो मुख्य द्वार वापस बंद हुआ और ताला वापस जैसा पहले था वैसे ही लटक गया। लल्लू तेज रफ्तार से भागने लगा। हवा भी पीछे रह जाए इतनी तेज़ी थी लल्लू में। इससे पहली की सूरज की पहली किरण अपना प्रकाश फैलाती लल्लू नदी के तट पर पहुंच गया। कीचड़ से सनी हुई जमीन पे लेट गया। ऐसा लग रहा था की जैसे नदी की लहरे उसे छोर तक लाई हैं।
रानी मां ओ रानी मां (माया देवी की पूरा गांव रानी मां कह कर बुलाता था) इस आवाज से सुधा, माया देवी और रतना का दिल बैठ गया। उन्हे कोई अनहोनी की आशंका हुई। लल्लू मिल गया। इस आवाज ने जैसे उन सब के कानो में शहद का काम किया। तीनों दरवाजे की तरफ भागी। देखा तो लल्लू को एक पहलवान अपनी गोद में उठाए हुए ला रहा हैं। पूरा कीचड़ में सना हुआ। लल्लू के आंखे खुली देखकर तीनो की सांस में सांस आई। माया देवी ने लल्लू को घर के अंदर लिया और पूरे गांव को धन्यवाद दिया और आज रात की दारु मुफ्त का ऐलान किया और घर के अंदर आ गई। उसने देखा सुधा और रतना लल्लू तो टटोल रही हैं की कही कोई चोट तो नही लगी और बार बार उसका चेहरा चूम रही हैं।
माया: आरी ओ सुधा, पहले निहला दे अपने लाल को फिर जी भर के प्यार कर लेना।
सुधा: (हा में गर्दन हिलाती हुई) चल लल्लू तू गुसलखाने में चल और अपने कपड़े उतार मैं गरम पानी लेके आती हूं।
लल्लू भी सुधा की बात सुनकर सीधे आंगन में बने गुसलखाने में चला गया और अपना कच्छा छोड़े सब कपड़े उतार दिए।
थोड़ी देर में सुधा आई और लल्लू को देखा तो उसे कुछ परिवर्तन लगा। उसकी छाती एक दम मर्दानी लग रही थी। उसके डोले उसके असीम बल की गवाही दे रहे थे और उसकी पुष्ट जांघें उसके पुरोषत्व की गवाही दे रही थी। पर उसको लगा की ये उसका वहम होगा। सारे खयालों को झटक के वो बाल्टी रखते हुए बोली।
सुधा: ये कच्छा कौन उतरेगा। बोला था ना सारे कपड़े उतारे रखना।
सुधा लल्लू के सामने बैठ गई और एक ही झटके में लल्लू का कच्छा नीचे खींच दिया और जो उसने देखा उसके सांसे थम सी गई और मुंह से चीख। और उसके मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
सुधा: यययय ये क्या है "लल्लू"।