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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

DARK WOLFKING

Supreme
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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 24 )


अब तक,,,,,,,,,

रेखा को बेड पर सोये हुए क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि सहसा कमरे के दरवाजे की निचली सतह से एकाएक ही सफेद धुआॅ कमरे के अंदर की तरफ आने लगा। गाढ़ा सफेद धुऑ कमरे में एक जगह एकत्रित होकर इंसानी मानव आकृति में बदल गया।

कमरे का वातावरण एकाएक ही बड़ा रहस्यमय लगने लगा था। उस मानव आकृति ने सामने बेड पर सोई पड़ी रेखा को अपने दोनो हाॅथ जोड़ कर प्रणाम किया और फिर बेड की तरफ वह मानव आकृति बढ़ने लगी।

बेड के क़रीब पहुॅच कर वह मानव आकृति रेखा के सिरहाने पर जाकर खड़ी हो गई। कुछ पल तक रेखा के चेहरे को देखने के बाद उसने अपना एक हाथ बढ़ा कर रेखा के सिर पर हौले से रख दिया। हाॅथ रखते ही उसकी हथेली से एक सफेद रोशनी निकल कर रेखा के सिर पर फैल गई और फिर देखते ही देखते वह रोशनी लुप्त भी हो गई। बेड पर सोई हुई रेखा का जिस्म एक सेकण्ड के लिए झटका खाया था फिर शान्त पड़ गया था पहले की तरह।

मानव आकृति ने रेखा के सिर से अपना हाॅथ हटा लिया और वापस दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह मानव आकृति फिर से सफेद धुएॅ के रूप में दरवाजे की निचली दरारों से बाहर निकल गई।
___________________________


अब आगे,,,,,,,,

रात में खाना पीना करके मैं अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ था। मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे। कल मेरी असल माॅ का जन्मदिन है। अपनी जन्मदायनी माॅ से मिलने के लिए अब कुछ ज्यादा ही बेक़रारी और अधीरता छा रही थी मन में।

कभी कभी इंसान को अपनी सबसे अज़ीज़ चीज़ के मिलने की इतनी ज्यादा खुशी होती है कि वो उस खुशी को अपने अंदर जज़्ब ही नहीं कर पाता। मैं अच्छी तरह समझ सकता था कि ऐसा ही कुछ हाल मेरी उस असल माॅ का हो सकता था इसी लिए तो मैने काल को भेजा था उनके पास ताकि वो मेरी माॅ को ऐसी शक्ति प्रदान कर सके जिससे मेरी माॅ अपने बेटे के मिलने की उस खुशी को आसानी से जज़्ब कर सके। मेरे कहने पर काल ने वही किया था। यानी वह मेरी माॅ के पास गया और मेरी सोती हुई माॅ को शक्ति प्रदान कर वह वहाॅ से चला आया था।

रात के ग्यारह से ऊपर का समय हो गया था लेकिन मेरी ऑखों में नींद का दूर दूर तक कोई नामो निशान तक न था। मुझे लग रहा था कि ये रात कितना जल्दी गुज़र जाए और अगला दिन भी गुज़र जाए। उसके बाद शाम हो और मैं अपनी माॅ के जन्मदिन पर उनसे मिलने जाऊॅ। मगर ये शब तो जैसे एक ही जगह पर मुकीम हो गई थी।

अभी मैं सोचो के गहरे समुद्र में डूबा हुआ ही था कि मेरे बाएॅ साइड सिरहाने पर रखे मेरे फोन पर मैसेज टोन बजी। टोन के बजने से मैं ख़यालों के अथाह सागर से बाहर आ गया। हाथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और फिर जलती हुई स्क्रीन पर नज़र आ रहे मैसेज को देखा तो मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई। मैसेज रानी का था। उसने कोई ग़ज़ल भेजी थी जो इस प्रकार थी।


ख्वाब से निकल कर रूबरू मिला कीजिए।
पास रह कर अब यूॅ न फांसिला कीजिए।।

कोई चाहत कोई हसरत कोई आरज़ू क्या है,
हम बताएॅगे नहीं आप खुद पता कीजिए।।

हमको भी कभी नसीब-ए-विसाले यार हो,
हुज़ूर हमारे वास्ते बस यही दुवा कीजिए।।

एक मुद्दत से मरीज़ ए इश्क़ हुए बैठे हैं हम,
थाम कर बाहों में इस दिल की दवा कीजिए।।

इस दर्द से हमें कोई गिला तो नहीं है मगर,
सौगात ए हिज्र अब और न अता कीजिए।।


मैने रानी की भेजी हुई ये ग़ज़ल पढ़ी। उसकी इस ग़ज़ल का हर लफ्ज़ मेरे दिल में उतरता चला गया। मुझे समझने में कतई देरी न हुई कि रानी कहना क्या चाहती है। मैं समझ सकता था कि वो इस ग़ज़ल के ज़रिये मुझसे अपने प्रेम का इज़हार कर रही थी। मुझे तुरंत कुछ समझ में न आया कि मैं उसको क्या जवाब दूॅ? काफी देर तक मैं बस सोचता रहा। तभी मोबाइल पर फिर से उसका मैसेज आया।

"कैसी लगी आपको वो ग़ज़ल भइया?" रानी ने मैसेज में लिखा था___"दरअसल, मैं न आज कल पोएट्री लिखती हूॅ। सोचा आपको भेज दूॅ और फिर पूछूॅ कि कैसी है मेरी लिखी हुई पोएट्री?"

"हाॅ वो मैं पढ़ ही रहा था रानी।" मैने मैसेज टाइप किया___"बहुत अच्छा लिखती हो तुम? लेकिन ये सब तुम्हारे दिमाग़ में आता कैसे है?"
"पता नहीं भइया।" रानी ने मैसेज भेजा___"बस मन में जैसा ख़याल आता है उसे पोएट्री की शक्ल में लिख देती हूॅ।"

"ओह आई सी।" मैने मैसेज टाइप किया__"तो ये बात है। लेकिन तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल क्यों आते हैं बहना? ग़ज़ल को पढ़ कर तो यही लगता है कि जो कुछ इसमें है वो सब सच है और ये सब तुम्हारे खुद के ही दिल का हाल है। आम तौर पर शेरो शायरी या ग़ज़ल इंसान तभी लिखता है या करता है जब उस तरह का माहौल खुद के अंदर भी हो।"

"पता नहीं भइया।" रानी का मैसेज आया__"मुझे अपने अंदर का तो कुछ पता ही नहीं है। ख़ैर छोंड़िये ये बात और ये बताइये कि कल का क्या सोचा है आपने?"
"कल का तो मैने कुछ भी नहीं सोचा है।" मैने मैसेज किया___"बस वक्त और हालात के ऊपर है कि उस समय क्या होगा।"

"कल मैं आपके यहाॅ आऊॅगी।" रानी ने मैसेज भेजा___"और वहाॅ पर सबको माॅ के जन्मदिन पर आने के लिए निमंत्रित करूॅगी।"
"वैसे तो सबको निमंत्रित करने की ज़रूरत नहीं है बहना।" मैने मैसेज भेजा___"क्योंकि मैं सबको लेकर ही आऊॅगा। पर अगर तुम यहाॅ आना चाहती हो तो ये तुम्हारी मर्ज़ी की बात है।"

"मैं ज़रूर आऊॅगी भइया।" रानी ने मैसेज भेजा___"और वहाॅ सबसे मिलूॅगी भी।"
"चलो अच्छी बात है।" मैने मैसेज भेजा__"और अब सो जाओ, बहुत रात हो गई है।"
"अभी तो ऑखों में नींद ही नहीं है।" रानी ने मैसेज भेजा___"क्या आपको नींद आ रही है भइया? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं आपकी नींद ख़राब कर रही हूॅ?"

"नहीं रे पागल ऐसा कुछ नहीं है।" मैने मैसेज भेजा___"नींद तो मुझे भी नहीं आ रही।"
"आपको नींद क्यों नहीं आ रही?" रानी ने मैसेज में पूछा।
"कल का सोच सोच कर रानी।" मैने मैसेज भेजा___"मुझे लग रहा कितना जल्दी वो पल आए जब मैं अपनी माॅ के सामने पहुॅच जाऊॅ और....और माॅ मुझे अपने गले से लगा ले। मुझे अपने ममता के ऑचल में छुपा कर मुझे प्यार करे। ये रात ये पल जल्दी से गुज़र क्यों नहीं जाता बहना? अभी तक तो किसी तरह गुज़र ही जाता था मगर अब....अब ये पल नहीं गुज़र रहा।"

"आप अधीर न हों भइया।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब तेरह साल का वक्त गुज़र गया है तो ये रात का वक्त भी गुज़र ही जाएगा। जिस तरह का हाल आपका है वैसा ही हाल मेरा भी है। मैं भी तो पिछले तेरह साल से अपनी माॅ के प्यार के लिए तरस रही हूॅ। आपको पता है भइया, आज माॅ(रेखा) यहाॅ हमारे इस घर में आई थी। वो मेरी माॅ(सुमन) से मिली और अपने किये की उनसे माफ़ी माॅग रही थी। इतना ही नहीं माॅ ने बताया कि वो कह रही थी कि कल से हम सब उसी घर में साथ साथ रहेंगे और ये भी कहा कि मैं अपनी फूल सी बच्ची को खूब प्यार दूॅगी।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है।" मैने मैसेज में कहा___"अब कल से तुम सब एक साथ ही माॅ पापा के पास रहोगे।"
"और आप भी रहेंगे में।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब माॅ को पता चल जाएगा कि आप उनके बेटे ही हैं तो फिर भला वो कैसे आपको खुद से दूर रहने देंगी?"

"देखते हैं क्या होता है रानी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए मैसेज किया___"अभी तो सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये रात ही नहीं गुज़र रही।"
"देखना क्या है भइया?" रानी ने मैसेज में कहा___"ये तो पक्की बात है कि माॅ आपको पहचान जाएॅगी और फिर आपको वो अपने से दूर जाने ही नहीं देंगी। इस लिए अब आप भी यहीं पर रहने की तैयारी कर लीजिए।"

"मैं अकेला वहाॅ नहीं रहूॅगा रानी।" मैने मैसेज भेजा___"तुम जानती हो कि यहाॅ भी मेरे पास मेरी दो माॅ हैं, एक मामा हैं और एक चाचू हैं। मैं इन सबको छोंड़ कर वहाॅ रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता। मैं जहाॅ भी रहूॅगा ये सब मेरे साथ ही रहेंगे।"

"मैं जानती हूॅ भइया।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब माॅ को उन सबके बारे में पता चलेगा तो वो उन सबको भी अपने साथ ही रहने को कहेंगी।"
"अब ये तो कल ही पता चलेगा कि क्या क्या होता है।" मैने मैसेज में कहा___"चलो अब सो जाओ, कल मिलते हैं फिर।"

"ठीक है भइया।" रानी ने मैसेज में कहा__"गुड नाइट एण्ड स्वीट ड्रीम्स।"
"गुड नाइट।" मैने मैसेज किया और फोन रख दिया।

मैं रानी से मैसेज में बात करने के बाद आराम से ऑखें बंद किये लेट गया था। ज़ेहन में उसकी बातें अभी भी कत्थक कर रहीं थी। ख़ैर, काफी देर तक मैं करवॅटें बदलता रहा और फिर जाने कब मेरी ऑखों पर नींद की नज़रे इनायत हो गई।

सुबह हुई!
एक खूबसूरत दिन की शुरूआत हुई। जैसे ही मेरी ऑखें खुली तो मेरी नज़र सामने खड़ी मेरी दोनो माॅ यानी मेनका और काया पर पड़ी। वो दोनो मुझे देख कर मुस्कुराए जा रही थी। उनकी मुस्कुराते देख मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई।

"तो हमारे बेटे की नींद खुल गई?" काया माॅ ने मुस्कुराते हुए मगर नाटकीय अंदाज़ में कहा__"चलो शुकर है कि खुल गई। वरना जाने कब तक इन्तज़ार करना पड़ता?"
"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" मैने उठते हुए कहा था।
"वो क्या है न कि दिन के नौ बज रहे हैं।" काया माॅ ने कहा___"और हम दोनो पिछले दो घण्टे में जाने कितनी बार तुम्हारे कमरे में तुम्हें देखने आ चुके हैं। सोचा शायद अब जग गए होगे। मगर क्या पता था कि हमेशा ब्रम्हमुहूर्त में उठने वाला हमारा बेटा आज रामायण काल का कुम्भकर्ण बन गया है।"

"क्या कहा आपने, नौ बज गए?" मैं बुरी तरह उछल पड़ा___"ओफ्फो आपने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"लो कर लो बात।" काया माॅ ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"हमने सोचा था कि गहरी नींद में हो भला क्यों जगाएॅ तुम्हें? जब नींद पूरी हो जाएगी तो खुद ही जग जाओगे। जैसे अभी जग गए हो।"

"क्यों तंग कर रही हो तुम मेरे बेटे को?" तभी मेनका माॅ ने प्यार से कहा___"नौ बजे तक सोए या सारा दिन सोए उसकी मर्ज़ी है। कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है उसके सोए रहने से?"
"अरे तो मैने कब कहा दीदी कि पहाड़ टूट पड़ा है?" काया माॅ ने चौंकते हुए कहा__"मैं तो वैसे भी तसल्ली से उसे सोता हुआ देख ही रही थी। आप ही ने आकर उसे जगा दिया है। हाय मेरा बेटा कितना सुंदर और मासूम लग रहा था सोते हुए।"

"अब अगर उसे देख कर तुम्हारा मन भर गया हो तो चलें यहाॅ से?" मेनका माॅ ने हॅसते हुए कहा___"उसे अब फ्रेश होने दो। कालेज के लिए देर हो जाएगी उसे।"
"काश! मैं भी अपने बेटे के साथ उसके कालेज जाती।" काया माॅ ने कहा___"मैं भी देख पाती कि इंसानी दुनियाॅ में स्कूल कालेज कैसे होते हैं और वहाॅ पर किस तरह की पढ़ाई होती है?"

"हाहाहाहा आप और कालेज??" मुझे ज़ोर की हॅसी आई थी।
"ओए तुम हॅस क्यों रहे हो इस तरह?" काया माॅ ने कहा___"क्या तुम मुझे चिढ़ा रहे हो?
"नहीं माॅ, मैं भला आपको क्यों चिढ़ाऊॅगा?" मैने कहा___"मुझे तो बस इस लिए हॅसी आ गई कि आपने ये बात कहा ही ऐसे अंदाज़ में था जैसे कोई छोटा बच्चा हो।"

"हाॅ हाॅ मैं तो अभी बच्ची ही हूॅ।" काया माॅ ने कहा___"मैं जब चाहूॅ तुम्हारे जैसे कालेज जा सकती हूॅ। इसमें कौन सी बड़ी बात है?"
"हाॅ ये तो है।" मैने कहा___"बस कालेज में आपको देख कर कोई ऑटी जी न कह बैठे।"

"क्या बोला?" काया माॅ की ऑखें फैल गई, बोली___"क्या मतलब हुआ ऑटी जी न कह बैठे? रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।"

काया माॅ झपटते हुए बेड की तरफ बढ़ी जबकि बेड पर उनके पहुॅचने से पहले ही मैं जम्प मार कर अटैच बाथरूम में घुस गया था। बाथरूम का दरवाजा बंद कर अंदर से कुण्डी लगा ली थी मैने।

"देखा दीदी इसने क्या कहा मुझे?" कमरे में काया माॅ मेनका माॅ से मेरी शिकायत कर रही थी___"क्या मैं ऑटी जैसी लगती हूॅ?"
"अरे वो तो तुम्हें छेड़ रहा था।" मेनका माॅ ने मुस्कुराते हुए कहा___"तुम तो किसी भी एंगल से ऑटी नहीं लगती हो। सिर्फ अमा ही लगती हो।"

"क्या???? आप भी??" काया माॅ ने बुरा सा मुह बना लिया___"आप भी उसका पक्ष ले रही हैं।"
"अरे तो क्या ग़लत कहा मैने?" मेनका माॅ ने कहा___"तुम तो राज की अम्मा ही हो न।"
"हाॅ ये तो है।" काया माॅ ने कहा___"मैं राज की माॅ ही तो हूॅ। वो मेरा बेटा है। मेरा प्यारा बेटा। पता है दीदी, जब वो मुझे इस तरह तंग करता है और छेड़ता है तो मुझे भी बहुय मज़ा आता है।"

"हाॅ मैं जानती हूॅ कि तुम जानबूझ कर ऐसी हरकतें करती रहती हो जिससे वो तुम्हें छेंड़े है ना?" मेनका माॅ ने कहा।
"हाॅ ये सच है दीदी।" काया माॅ ने कहा__"इस दुनियाॅ में इंसान बन कर हर तरह से जीने का आनंद ही कुछ अलग है। उस शैतानी दुनियाॅ में तो हमने इन छोटी छोटी खुशियों की कल्पना भी न की थी।"

"तुम भले ही ढाई सौ साल की हो गई हो काया।" मेनका माॅ ने कहा___"मगर तुम्हारे अंदर एक छोटी सी बच्ची अभी भी मौजूद है।"

मेनका माॅ ने काया माॅ को अपने गले से लगा लिया। फिर वो दोनो कमरे से बाहर चली गई। मैं भी नहा कर बाथरूम से बाहर आया। कमरे में आकर मैने कालेज का यूनीफार्म पहना और फिर बैग लेकर नीचे आ गया। नीचे सब लोग मेरा ही इन्तज़ार कर रहे थे।

मैं भी अपनी दोनो माॅ के बीच कुर्सी पर बैठ गया। उसके बाद सब नास्ता करने लगे। मेरी दोनो माॅ हमेशा की तरह मुझे अपने हाॅथ से खिला रही थी।

"तो आज तुम्हारी असल माॅ का जन्मदिन है राज बेटे?" वीर चाचू ने कहा___"और तुम्हें उनके जन्मदिन की पार्टी पर जाना भी है। ये बहुत अच्छी बात है। आख़िर वो समय आ ही गया जब तुम्हें अपने लोगों से मिलना होगा।"
"मैं अकेला वहाॅ पर नहीं जाऊॅगा चाचू।" मैने कहा___"बल्कि आप सबको भी मेरे साथ वहाॅ चलना पड़ेगा। मेरी बहन रानी आप सबको लेने यहाॅ खुद आएगी।"

"अरे वाह हमारी बच्ची हम सबको लेने यहाॅ आएगी।" रिशभ मामा खुशी से कह उठे___"फिर तो आज आफिस जाना कैंसिल है हमारा। क्यों वीर?"
"बिलकुल रिशभ।" वीर चाचू ने कहा__"हम रानी के आने का यहीं पर इन्तज़ार करेंगे। वैसे राज कब तक आएगी वो यहाॅ?"

"अभी तो हम काॅलेज जाएॅगे।" मैने कहा___"कालेज में अपने ग्रुप के दोस्तों को शाम को आने का कह कर वापस आ जाएॅगे। रानी मेरे साथ ही यहाॅ आएगी।"
"ओह फिर तो ठीक है।" वीर चाचू ने कहा__"लेकिन जल्दी आना। हम भी अपनी बच्ची को अपनी ऑखों के सामने देखना चाहते हैं। उस बच्ची को जो तुम्हारी तरह ही अद्भुत है।"

"हाॅ लेकिन वो ये नहीं जानती कि वो असल में क्या चीज़ है?" मैने कहा___"और तब तक जानेगी भी नहीं जब तक उसे उसकी असलियत के बारे में बताया न जाए।"
"समय आने पर उसे बताना ही पड़ेगा राज बेटे।" रिशभ मामा ने कहा___"इंसान की वास्तविकता ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकती।"

"वो सब बाद में देखा जाएगा मामा जी।" मैने कहा___"अभी तो हम सब आज उस जगह जाएॅगे जिस जगह पर मेरी माॅ रहती है।"

अभी हम सब बातें ही कर रहे थे कि सहसा हमारे बीच काल आ गया। सबने उसे देखा। इस वक्त वो एकदम नार्मल इंसानों जैसा था। काल मेरा हमशक्ल था। अंतर सिर्फ इतना था कि वो रंगत से साॅवला था जबकि मैं गोरा था।

"क्या बात है काल?" मैने कहा___"तुम इस तरह यहाॅ कैसे?"
"आपको कुछ ज़रूरी सूचना देना है।" काल ने कहा।
"कैसी सूचना?" मैने कहा___"सब कुछ ठीक तो है न?"
"बाॅकी सब तो ठीक ही है लेकिन एक चीज़ ठीक नहीं है।" काल ने कहा___"आपके नाना जी यानी शैतानों के भूतपूर्व सम्राट विराट आपको पुनः हासिल करने के लिए साजिश और प्लान बना रहैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो एक झटके में उन्हें वहीं पर गर्क कर दूॅ।"

"नहीं काल।" मैने कहा___"आज खुशी का दिन है। आज मेरी माॅ का जन्मदिन है। आज मैं वर्षों बाद अपनी माॅ के सामने जाऊॅगा। इस खुशी के अवसर पर किसी की ज़िंदगी को खत्म करना अच्छी बात नहीं है। उनको जो करना है करने दो। अगर नियति में उनका मेरे हाॅथों मर जाना ही लिखा है तो वो ज़रूर होगा।"

"मैं तो उसी दिन उस दुरात्मा को खत्म कर देना चाहता था राज।" सहसा मामा जी ने आवेश में कहा___"लेकिन तुमने मुझे रोंक लिया था वरना आज ये नौबत ही न आती।"
"हर इंसान को एक बार सुधरने का मौका देना चाहिए मामा जी।" मैने कहा___"इसके बाद भी अगर सामने वाला नहीं सुधरता तो फिर उसे सबक सिखाना या दंड देना निश्चित हो जाता है।"

"तो अब ये साबित हो गया है कि वो दुस्ट दिये गए मौके में सुधरने की बजाय फिर से उसी रास्ते पर चल पड़ा है।" मामा जी ने कहा___"इस लिए अब तुम मुझे हर्गिज़ रोंकने की कोशिश मत करना राज। मैं खुद अपने हाॅथों से उस नीच का अंत करूॅगा।"

"ठीक है नहीं रोकूॅगा आपको।" मैने गहरी साॅस लेकर कहा__"फिलहाल तो शान्त हो जाइये और नास्ता कीजिए।"
"काल तुम जाओ और उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखना।" मैने काल से कहा।

काल, सिर को हल्का सा ख़म करके चला गया। उसके बाद हम सबने नास्ता किया। नास्ता करने के बाद मैं अपना बैग लेकर बाहर आ गया। गैराज से अपनी कार लेकर मैं रानी को लेने चला गया। रानी को उसके घर से पहले ही पिक करके मैं कालेज के निकल गया। रास्ते में रानी ने मुझे बताया कि आज सुबह ही माॅ और पापा हमें लेने आए थे। माॅ मुझसे मिली और मुझसे माफ़ी माग रही थी। उन्होने मुझे अपने सीने से लगाया और खूब रोई। उसके बाद साथ चलने को कहा तो मैने माॅ से कहा कि मैं कालेज के बाद खुद ही आ जाऊॅगी। फिर माॅ और पापा माॅ(सुमन) को लेकर चले गए और मैं आपके साथ कालेज आ गई।

रानी की इस बात से मुझे खुशी हुई। रानी का चेहरा आज काफी खिला खिला लग रहा था। आख़िर लगे क्यों न, आज माॅ ने उसे अपने सीने से लगा कर प्यार जो किया था। ख़ैर, कालेज में पहुॅच कर हम अपने दोस्तों से मिले। रानी ने सबको शाम सात बजे तक घर पहुॅचने को कहा। सभी दोस्त उसकी निमंत्रण से खुश हो गए। उसके बाद हम सब क्लास में चले गए। क्लास में एक दो पीरियड अटेन्ड करने के बाद मैं और रानी मेरे घर के लिए निकल पड़े।

घर आ कर मैने सबसे रानी को मिलवाया। सब रानी से मिल कर बेहद खुश हुए। मेरी दोनो माॅ तो रानी को अपने बीच में ही बैठा लिया था और बड़ा लाड प्यार कर रही थी उसे। वीर चाचू और मामा जी रानी को देख कर बहुत खुश हुए और उसे प्यार और दुवाएॅ दी।

"एक बेटी की कमी थी सो आज एक बेटी भी मिल गई मुझे।" मेनका माॅ ने कहा___"आज का दिन बहुत ही ज्यादा खुशी का दिन है। जैसा मैने सोचा था उससे कहीं ज्यादा प्यारी है मेरी बच्ची। किसी की नज़र न लगे।"

"आपने सही कहा दीदी।" काया माॅ ने कहा___"कितने खुशनसीब हैं हम जो एक ही जीवनकाल में इतना कुछ मिल गया हमे। इससे ज्यादा और क्या चाहिए हमे?"
"अच्छा ये बता बेटी कि ये राज तुझे ज्यादा तंग तो नहीं करता न?" मेनका माॅ ने रानी से पूछा था।

"नहीं माॅ।" रानी ने भोलेपन से कहा__"बल्कि मैं ही इन्हें तंग करती हूॅ।"
"बिलकुल ठीक करती है तू।" मेनका माॅ ने मुस्कुरा कर कहा___"ऐसे ही इसे तंग करना। ये तेरा हक़ है और अगर ये तुझे कुछ कहे तो मुझसे बताना। मैं इसकी पिटाई करूॅगी।"

"वाह क्या बात है।" मैने कहा__"बेटी मिल गई तो बेटे को पराया कर दिया। वाह माॅ बहुत खूब। मुझ मासूम पर अब यही सितम होना बाॅकी रह गया था।"
"तू चिंता मत कर राज।" काया माॅ ने मुझे अपने पास बैठाते हुए कहा___"मैं तो तेरे साथ ही हूॅ। मैं तुझे कभी पराया नहीं करूॅगी।"

"ओह माॅ बस आप ही का सहारा है अब।" मैने काया माॅ से छुपकते हुए कहा__"एक माॅ ने तो बेटी के मिलते ही पल्ला बदल लिया।"
"ऐसा कुछ नहीं है भइया।" रानी ने कहा__"माॅ तो आपसे ही ज्यादा प्यार करती हैं। पर मैं छोटी हूॅ न इस लिए मुझे थोड़ा आपसे ज्यादा इस वक्त लाड प्यार मिल रहा है।"

"देख ले तुझसे ज्यादा तो मेरी बेटी समझदार है।" मेनका माॅ ने कहा__"मेरी बेटी से कुछ बुद्धि ले ले अब।"
"हाॅ अब तो इससे ट्यूशन लेना ही पड़ेगा मुझे।" मैने कहा___"तो बताइये कब आऊॅ ट्यूशन पढ़ने?"

"ओए अब बस भी करो।" वीर चाचू ने कहा___"बातों के चक्कर में ये भी भूल गए कि रानी बेटी पहली बार गर आई है इस लिए उसे कुछ खिलाओ पिलाओ।"
"अरे हाॅ ये तो हम भूल ही गईं।" काया माॅ ने कहा___"रुको अभी अपनी बेटी के लिए कुछ स्पेशल लेकर आती हूॅ।"

काया माॅ ने रानी को प्यार से खूब आव भगत की और खिलाया पिलाया। ये अलग बात है कि रानी मना करते करते थक गई थी। उसके बाद रानी ने सबको शाम की पार्टी में आने के लिए कहा। कुछ देर और बैठने के बाद रानी घर जाने के लिए कहने लगी तो मैं उसे कार से घर के कुछ पास तक भेज आया। रानी को भेजने के बाद मैं वापस घर आ गया।

घर आया तो पता चला कि सब बाहर जा रहे हैं कुछ सामान खरीदने के लिए। मुझे भी जाने को कहा सबने मगर मैं न गया।
____________________________

वहीं दूसरी तरफ!
वैम्पायर्स के भूतपूर्व किंग सम्राट और वेयरवोल्फ किंग अनंत एक बार फिर उस गुफा के अंदर आमने सामने बैठे हुए थे। लेकिन उन सबके बीच जो एक चेहरा दिख रहा था वो चेहरा नितान्त अजनबी था। उसका पहनावा और वेशभूषा सब अलग थी।

"मित्र इनसे मिलो।" सम्राट अनंत कह रहा था___"ये हैं मोनिका। इनके द्वारा आपका मकसद ज़रूर पूरा हो जाएगा।"
"ये हैं कौन और आप इन्हें कहाॅ से लेकर आए हैं मित्र?" विराट ने न समझने वाले भाव से कहा___"और भला इनके द्वारा हमारा मकसद कैसे पूरा हो जाएगा?"

"आप इन्हें साधारण न समझें मित्र।" अनंत ने कहा___"इनके पास काफी अद्भुत शक्तियाॅ हैं। ये किसी भी ब्यक्ति का रूप बदल सकती हैं।"
"रूप तो हम और आप भी बदल सकते हैं मित्र।" विराट ने कहा___"इसमें कौन सी बड़ी बात है?"

"बड़ी बात ये है मित्र हमारे रूप बदलने से हमारी असलियत उस बला के सामने आ जाती है जिस बला को उस बालक ने खुद बनाया है उन चारो की सुरक्षा के लिए।" अनंत ने कहा___"हाॅ मित्र। अच्छा हुआ हम उस बालक के पास नहीं गए वर्ना उस बालक के बनाए हुए काल की नज़र में आ जाते। मोनिका ने ही बताया कि उस बालक के सभी चाहने वालों की देख रेख और सुरक्षा काल करता है।"

"अब ये काल कौन है मित्र?" विराट की ऑखें फैल गई___"और ये कहाॅ से आ गया?"
"काल रूपी बला को उस बालक ने ही बनाया है मित्र।" अनंत ने कहा___"जिसके बारे में अभी तक हम जानते ही नहीं थे। अगर हम वहाॅ जाते तो ज़रूर काल के द्वारा पकड़े जाते।"

"ये तो सचमुच हैरातअंगेज बात है महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"तो अब हम क्या करेंगे?"
"अब हम कुछ नहीं करेंगे मित्र।" अनंत ने कहा___"बल्कि अब जो कुछ करना है वो मोनिका करेगी। ये हमारी ही दुनियाॅ की है मगर हम सबसे अलग भी है। इनके पिता हमारे राजगुरू हुआ करते थे। उन्होंने अपनी मौत से पहले अपनी बेटी को अपनी समस्त शक्तियाॅ दे दी थी। मगर उनकी ये शक्तियाॅ तभी काम करेंगी जब ये उन शक्तियों को सम्हालने लायक हो जाती। इसके लिए इन्हें सौ वर्ष तक कठोर तप करना था। हम पिछली बार जब आपसे मिल कर गए थे तभी इनका सौ वर्षों का तप पूरा हुआ था और ये हमारे दूसरे दिन हमारे राजमहल में आई थी। अब ये हर तरह से उस बालक से टकराने के लिए सक्षम हैं।"

"ओह तो ये बात है।" विराट के चेहरे पर खुशी और उम्मीद की किरण नज़र आई, बोला___"फिर तो बहुत अच्छी बात है मित्र। इनसे कहो कि ये उस बालक को हमारे क़दमों में लाकर लेटा दें। हम उस बालक को अपनी उगलियों पर नचाएॅगे।"

"ज़रूर ऐसा ही होगा मित्र।" अनंत ने मुस्कुरा कर कहा___"ये वहाॅ जाकर उस बालक को पकड़ कर आपके पास लाएगी।"
"उस बालक को नहीं मित्र।" विराट के चेहरे पर कठोरता आ गई___"बल्कि उन चारों को यहाॅ लाना है। वो बालक तो खुद ही यहाॅ आएगा उनके लिए।"

"ऐसा ही होगा महाराज।" मोनिका ने अजीब भाव से कहा___"आप बिलकुल निश्चिंत रहें। बहुत जल्द वो चारो आपके सामने बंधनों में जकड़े हुए नज़र आएॅगे।"
"ठीक है हम उस पल का बेसब्री से इन्तज़ार करेंगे।" विराट ने कहा___"और आपका बहुत बहुत धन्यवाद महाराज अनंत आपकी मित्रता पूज्यनीय है। हम हमेशा आपके ऋणी रहेंगे।"

"ऐसा न कहें मित्र।" अनंत ने कहा__"हम तो बस अपनी मित्रता का फर्ज़ निभा रहे हैं।"
"अगर मोनिका ने ये सब कर दिया तो हम भी अपना वादा निभाएॅगे मित्र।" विराट ने कहा___"हमें याद है। आपके बेटे जयंत के साथ हम अपनी बड़ी बेटी मेनका की शादी करेंगे।"

"मोनिका अपने काम में ज़रूर सफल होगी मित्र।" अनंत ने कहा___"हमें इनके ऊपर पूर्ण विश्वास है।"
"तो ये काम कब शुरू करना है?" विराट ने पूछा___"क्योंकि अब तो हमसे पल भर का भी इन्तज़ार नहीं होगा। दूसरी बात ये भी है कि हमे हमारा राज्य भी वापस चाहिए।"

"तो फिर आप ही बताइये महाराज।" मोनिका ने कहा___"सबसे पहले कौन सा काम करूॅ मैं? वैसे सबसे पहले यही करना चाहिए कि राज्य पर अपना अधिकार पुनः स्थापित किया जाय। सोलेमान की शक्तियों का मैने मुआयना कर लिया है वो मेरी शक्तियों के सामने कुछ भी नहीं है।"

"मोनिका बिलकुल सही कह रही है महाराज विराट।" अनंत ने कहा___"सबसे पहले राज्य पर आपका अधिकार होना चाहिए। उसके बाद ही दूसरे काम को किया जाए। आख़िर कब तक आप सोलेमान के डर से यहाॅ गुफा में छुपे बैठे रहेंगे?"

"आप सही कह रहे हैं मित्र।" विराट ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"हमें सबसे पहले अपने राज्य को ही वापस हासिल करना चाहिए। तो फिर ठीक है, हम सबसे पहले सोलेमान से अपना राज्य ही हासिल करेंगे।"

"ठीक है महाराज।" मोनिका ने कहा__"मुझे आज्ञा दीजिए। मैं आपसे परसों मिलूॅगी। क्योंकि अभी मुझे कुछ ज़रूरी काम करना है। तब तक आप भी तैयारियाॅ कर लीजिएगा।"

"ठीक है हम इन्तज़ार करेंगे तुम्हारा।" विराट ने कहा।
विराट की बात सुन कर मोनिका पल भर में अपनी जगह से गायब हो गई। ये देख कर विराट हैरान भी हुआ और खुश भी।

"ये ज़रूर हमारी उम्मीदों को पूरा करेगी महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"और ये सब आपकी वजह से हुआ है। आप सच में हमारे सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं।"

कुद देर और ऐसी ही उनके बीच बातें होती रहीं फिर सम्राट अनंत गुफा से अपने राज्य की तरफ चला गया। जबकि विराज आने वाले समय के सुनहरे ख़यालों में खोने सा लगा था।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,

मुझे पता है आप बड़ी शिद्दत से अपडेट का इन्तज़ार कर रहे हैं। ये अपडेट मैने समय निकाल कर दो दिन में थोड़ा थोड़ा करके लिखा है। हो सकता है ये अपडेट आपकी उम्मीदों पर खरा न उतरे। क्योंकि आप सबने तो कुछ और ही उम्मीद कर रखी है। लेकिन धैर्य रखें....वो समय भी आएगा दोस्तो,,,,,,
nice update ..ab ye anant ne monica ko lekar aake virat ko thoda hausla diya hai ...solemaan se jyada taaqatwar monica hai ?..matlab yaha raj ki madad leni pad sakti hai solemaan ko ..
 

DARK WOLFKING

Supreme
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31,895
244
राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 25 )


अब तक,,,,,,,,

"आप सही कह रहे हैं मित्र।" विराट ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"हमें सबसे पहले अपने राज्य को ही वापस हासिल करना चाहिए। तो फिर ठीक है, हम सबसे पहले सोलेमान से अपना राज्य ही हासिल करेंगे।"

"ठीक है महाराज।" मोनिका ने कहा__"मुझे आज्ञा दीजिए। मैं आपसे परसों मिलूॅगी। क्योंकि अभी मुझे कुछ ज़रूरी काम करना है। तब तक आप भी तैयारियाॅ कर लीजिएगा।"

"ठीक है हम इन्तज़ार करेंगे तुम्हारा।" विराट ने कहा।
विराट की बात सुन कर मोनिका पल भर में अपनी जगह से गायब हो गई। ये देख कर विराट हैरान भी हुआ और खुश भी।

"ये ज़रूर हमारी उम्मीदों को पूरा करेगी महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"और ये सब आपकी वजह से हुआ है। आप सच में हमारे सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं।"

कुद देर और ऐसी ही उनके बीच बातें होती रहीं फिर सम्राट अनंत गुफा से अपने राज्य की तरफ चला गया। जबकि विराट आने वाले समय के सुनहरे ख़यालों में खोने सा लगा था।
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अब आगे,,,,,,,,

उधर अशोक श्रीवास्तव की कोठी आज किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजी थी। सारा दिन डेकोरेशन वाले इसी काम में लगे रहे थे। अशोक का आदेश था कि कहीं भी किसी भी चीज़ की कमी न रहने पाए। आज बड़ी मुद्दतों के बाद इस घर में कोई जश्न कोई खुशियाॅ मनाई जा रही थी।

अशोक की पहली पत्नी यानी रेखा खुद भी आज दुल्हन की तरह सजी हुई थी। उसके नूर टपकते चेहरे पर इस वक्त भले ही सबको खुशियाॅ नज़र आ रही थी मगर कोई नहीं ताड़ सकता था कि उस महज़बीं के खूबसूरत से चेहरे पर भी एक दर्द की बहुत ही हल्की शिकन थी। जो इस बात की गवाह थी कि वो इस खुशी के मौके पर भी पूरी तरह खुश नहीं थी। सुमन ने अपने हाॅथों से उसका बड़े प्यार से श्रंगार किया था। अशोक तो अपनी पत्नी की खूबसूरती को देख कर ढगा सा खड़ा रह गया था। उसे अपने आप पर गर्व हो रहा था कि रेखा जैसी हुस्न की मल्लिका उसकी अपनी पत्नी थी। वह अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझ रहा था।

मगर उसे भी नहीं पता था कि थोड़ी देर पहले उसकी इस पत्नी ने बंद कमरे में क्या किया था? दरअसल सुमन जब रेखा को तैयार कर चुकी तो रेखा ने कहा कि तुम सब बाहर जाओ मैं कुछ देर में ज़रूरी काम करके आती हूॅ। सुमन उसकी इस बात से जाने क्या सोच कर मुस्कुराई और फिर सुमन के साथ साथ जो एक दो औरतें और थी वो सब कमरे से बाहर चली गई थी।

उन सबके जाते ही रेखा ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और भागते हुए कमरे में रखी आलमारी के पास पहुॅची। आलमारी को खोल कर उसमे से उसने एक एलबम निकाला और उसे लेकर बेड पर आ गई। एलबम को खोल कर उसने पहले ही पेज पर अपने बेटे राज की तस्वीर को देखा। पलक झपकते ही उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। बेटे की तस्वीर पर हाॅथ फेरते हुए उसने उस तस्वीर को अपने सीने से लगा लिया और फिर फूट फूट कर रो पड़ी।

"ये मुझसे नहीं होगा।" रेखा रोते बिलखते हुए कहने लगी___"नहीं होगा मुझसे। तेरे बिना ये खुशियाॅ मैं नहीं मना सकती मेरे बेटे। मेरी सारी खुशी तो सिर्फ तू है। तू मुझे मिल जा तो मैं समझूॅगी कि मुझे संसार की हर दौलत हर खुशी मिल गई। मगर तेरे बिना तो मेरे लिए सब कुछ ज़हर के समान है बेटे। मुझसे ये सब नहीं होगा। यहाॅ की हर चीज़ में मुझे तेरी कमी नज़र आती है। मेरा दिल मेरी ममता सिर्फ तुझे चाहती है। तू अपनी इस दुखियारी माॅ के पास आजा मेरे लाल। हे भगवान! मेरे बेटे को मेरे पास भेज दे, मैं तुझसे अपने बेटे की भीख माॅगती हूॅ। बदले में तू चाहे तो कुछ भी माग ले मुझसे मगर मेरे लाल को मुझसे मिला दे ईश्वर।"

जाने क्या क्या कहती हुई रेखा अपने बेटे की तस्वीर को सीने से लगाए रोये जा रही थी। फिर सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। उसने जल्दी से उस तस्वीर को अपने सीने से अलग किया और अपने सारी के ऑचल से उस तस्वीर को अच्छे से साफ किया। फिर वह बेड से उठ कर पुनः आलमारी के पास गई। कपड़ों के बीच से एक थैला निकाल कर वापस बेड पर आ गई।

थैले से उसने एक पाॅलिथिन निकाली। उस पाॅलिथिन में पिंक कलर का शूट था। शूट बिलकुल किसी पाॅच साल के बच्चे की साइज़ का था। उस शूट को खोल कर रेखा ने उस तस्वीर की तरफ ऑसू भरी ऑखों से देख कर कहा___"ये देख मेरे लाल ये शूट भी बिलकुल वैसा ही है जैसा इस वक्त तूने पहन रखा है। बड़ी मुश्किल से बाज़ार में मिला है मुझे। मैने भी सोच लिया था कि मेरा बेटा पहनेगा तो सिर्फ वैसा ही शूट इस लिए कल मैने शहर की सारी दुकाने छान मारी थी और फिर ये शूट मिल ही गया। चल अब बता मुझे कि तुझे पसंद आया कि नहीं ये शूट?"

रेखा इस उम्मीद में बेटे की तस्वीर की तरफ देखती रही कि तस्वीर में बैठा उसका बेटा उसके सवाल का जवाब देगा मगर जब काफी देर तक भी उस तस्वीर से कोई आवाज़ न आई तो रेखा की ऑखों से ऑसू बह चले।

"तू न बहुत बिगड़ गया है आज कल।" रेखा ने अपने ऑसू पोंछते हुए मगर तुनक मिजाज़ के से भाव में कहा___"अपनी माॅ की किसी भी बात का जवाब नहीं देता तू। इतना ज्यादा मिजाज़ अच्छा नहीं होता। पर तू तो मिजाज़ी है ना, मेरा बेटा जो ठहरा।"

रेखा ने अपनी भावनाओं को इन बातों से कुछ हल्का किया और फिर उस तस्वीर की तरफ देख कर बोली___"मैने तेरे लिए शूट निकाल कर रख दिया है। अगर दिल करे तो पहन लेना और जल्दी से बाहर आ जाना। अगर तू मिजाज़ी है तो मैं भी हूॅ। तेरी माॅ हूॅ ये याद रखना।"

रेखा के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभरी और फिर वो उस तस्वीर को और उस शूट को बेड पर ही छोंड़ कर बाथरूम मे चली गई। थोड़ी देर बाद वह बाहर निकली और फिर आईने के सामने आकर उसने खुद के हुलिए को दुरुस्त किया। उसके बाद वह एक नज़र तस्वीर और शूट की तरफ देखते हुए कमरे से बाहर चली गई।


बाहर हर तरफ आज अलग ही रौनक थी। अशोक के कुछ खास जान पहचान वाले और कुछ उसकी कंपनी के एम्प्लाई भी आए हुए थे। कोठी तो दुल्हन की तरह सजी ही थी बाहर का लम्बा चौड़ा बड़ा सा लान भी बड़े करीने से सजा हुआ था।

एक तरफ म्यूजिक और डीजे चल रहा था। जहाॅ पर आए हुए कुछ मेहमानों के बच्चे नाच रहे थे। लाॅन में ही एक बड़ा सा मगर खूबसूरत स्टेज बनाया गया था। उसी में केक काटने का प्रोग्राम था।

अपनी माॅ को दुल्हन की तरह सजी देख रानी बहुत खुश हो रही थी। वो सीधा जाकर अपनी माॅ के पास पहुॅच गई थी। रेखा ने उसे अपने से छुपका लिया। जाने क्या सोच कर उसकी ऑखें नम हो गई लेकिन उसने खुद को सम्हाला और रानी के सुंदर से माथे पर प्यार से चूम लिया। सुमन पास में ही थी, वो खुद भी बहुत खूबसूरत लग रही थी किन्तु उसे सादगी में रहना पसंद था।

शाम के लगभग सात बज रहे थे। रानी बार बार लाॅन के बाहर लोहे वाले गेट की तरफ देख रही थी। उसके चेहरे पर बेचैनी साफ दिख रही थी। सुमन उसकी इस बेचैनी को भाॅफ चुकी थी। किन्तु उसे पता था कि रानी किसके आने इन्तज़ार कर रही है।

बड़े बड़े बिजनेसमैन्स की बीवियाॅ भी थी जो अपने पतियों के साथ आई हुईं थी। इस वक्त सब रेखा के पास ही वहीं लान में रखे सोफों पर बैठी गप शप कर रही थी। लाॅन के दूसरे छोर पर सबके खाने पीने का भी इन्तजाम किया गया था।

अशोक अपने उन खास जान पहचान वालों के पास ही था जिनसे उसके गहरे ताल्लुकात थे। वो सब अशोक को इस बात के लिए छेंड़ रहे थे कि अशोक दो दो बीवियों का पति था। उनका कहना था कि उनसे अपनी एक बीवी सम्हाली नहीं जाती और वो दो बीवियों के बीच अब तक सही सलामत कैसे बचा हुआ है? अब भला वो बेचारा क्या बताता कि उसके पास कहने के लिए दो बीवियाॅ थी मगर एक अरसे से वो उनके साथ एक ही बेड पर सोया नहीं था।

उधर रानी की बेचैनी पल पल बढ़ती जा रही थी। उसके काॅलेज के कोई भी दोस्त अब तक नहीं आए थे। जबकि उसने उन सबसे साफ शब्दों में कहा था कि सात बजे तक हर हाल में पहुॅच जाना।

"बेटा तुम्हारे दोस्तों में से तो अब तक कोई नहीं आया?" सहसा सुमन ने रानी से धीरे स्वर में कहा___"तुमने उन सबको समय तो ठीक से बताया था न?"
"हाॅ माॅ मैने उन सबको कहा था कि वो सब सात बजे तक आ जाएॅ यहाॅ।" रानी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"पर सात तो बज चुके हैं मगर वो लोग अब तक नहीं आए। अभी थोड़ी ही देर माॅ केक भी काटने के लिए स्टेज पर आ जाएॅगी।"

"और वो तेरा दोस्त जिसका नाम भी तेरे भाई राज जैसा है वो भी नहीं आया अब तक।" सुमन ने कहा___"तूने उसे ठीक से कहा तो था न?"
"हाॅ माॅ उसने बोला था कि वो अपनी फैमिली के साथ टाइम से पहुॅच जाएगा।" रानी ने कहा___"शायद वो सब आते ही होंगे।"

अभी सुमन कुछ बोलने ही वाली थी कि सामने गेट से अंदर दाखिल होते हुए रानी के सारे दोस्त नज़र आए। ये देख कर रानी के चेहरे पर थोड़ी राहत और खुशी के भाव पैदा हुए। मगर उसको इन्तज़ार तो अपने भाई के आने का था। ये सारा ताम झाम तो उसी के लिए था। माॅ का जन्मदिन तो था ही साथ में माॅ की उनके जन्मदिन पर उनके बेटे को तोहफे के रूप में पेश करना था।

कुछ ही पलों में रानी के दोस्त जिनमें लड़के और लड़कियाॅ दोनो थे वो सब रानी के पास आ गए। सबने एक दूसरे को हैलो हाय किया। रानी ने उन सबको बताया कि सुमन उसकी माॅ है तो उन सबने सुमन से नमस्ते किया। जवाब में सुमन ने भी उसका जवाब मुस्कुरा कर दिया।

"अच्छा बेटा तुम अपने दोस्तों को कंपनी दो मैं ज़रा दीदी के पास जा रही हूॅ।" सुमन ने कहा।
"ओके माॅ।" रानी ने कहा।

सुमन चली गई तो ये सब आपस में बातें करने लगे।
"राज अभी आया नहीं क्या?" पंकज ने रानी से पूछा था।
"आते ही होंगे।" रानी ने कहा___"शायद रास्ते में होंगे।"
"वैसे रानी कितनी वण्डरफुल बात है न कि अपनी माॅ के जन्मदिन पर वर्षों का खोया हुआ बेटा खुद को तोहफे के रूप में आकर अपनी माॅ को मिल जाएगा।" दीक्षा ने कहा___"अमेज़िंग यार रियली।"

"ये तुमने सही कहा दीक्षा।" सुधीर ने कहा___"ये अमेज़िंग तो है ही लेकिन, उससे भी बड़ी बात ये है कि वर्षों से अंदर ही अंदर तिल तिल कर मरती हुई माॅ को उसका बेटा मिल जाएगा और उसकी दुखी ममता को चैन मिल जाएगा।"

"यू आर राइट भाई।" पंकज बोला__"लेकिन जिसका सबको इन्तज़ार है वो महाशय हैं कहाॅ? अभी तक आए क्यों नहीं यार?"
"बंदा हाज़िर है भाई।" सहसा पंकज के पीछे से आते हुए मैने कहा___"इतनी मोहब्बत से कोई बुलाए तो तत्काल हाज़िर होना लाज़मी है न।"

मेरी आवाज़ सुन कर सब के सब पीछे पलटे और मुझे देख कर सब खुश हो गए। मगर मेरे साथ आए दो मर्द और दो औरतों को देख कर उनके चेहरों पर सवालिया भाव उभरे। मैने उन सबको बताया कि वो सब कौन हैं। मेरे बताने पर सबने मेरी दोनो माॅ और मामा, चाचू को नमस्ते किया।

तभी हम सबके कानों में एनाउंसमेन्ट की आवाज़ पड़ी। एनाउंसमेन्ट की आवाज़ स्टेज से आ रही थी। हम सब उस तरफ देखने लगे। मैने रानी को इशारा किया तो वो मेरी दोनो माॅ को अपने साथ ले गई।

हम सब दोस्त भी स्टेज की तरफ चल दिये। इधर मेरे दिल की धड़कन अनायास ही बढ़ चली थी। मुझे समझ न आया कि अपने अंदर के जज़्बातों को कैसे सम्हालूॅ?

उधर स्टेज के पास पहुॅच कर हम सभी दोस्त कुछ दूरी पर रुक गए। मैं सामने न जाकर कुछ लोगों के पीछे इस तरह खड़ा हो गया कि स्टेज पर से किसी को भी मेरा चेहरा स्पष्ट रूप से न दिखे। मैने देखा स्टेज पर मेरे पिता, उनके साथ उनके कुछ खास दोस्त तथा मेरी दो माॅ(रेखा,सुमन) एवं उनके साथ कुछ औरतें भी मौजूद थीं। तभी मैने देखा कि रानी मेरी दोनो माॅ (मेनका,काया) को लेकर स्टेज पर पहुॅच गई।

मैने एक बात ग़ौर की कि स्टेज में केक के पास खड़ी मेरी माॅ(रेखा) अजीब सी ब्याकुलता से स्टेज के सामने की तरफ हर चेहरे को देख रही थी। उनकी ऑखों की थिरकन से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो अपने सामने के जनसमूह पर किसी अपने को खोज रही हैं। माॅ का हृदय था न, शायद उन्हें आभास हो गया होगा कि उनके सामने दिख रहे इस जनसमूह में कहीं उनका बेटा मौजूद है।

ख़ैर, उधर पिता जी ने सबको संबोधित करने के बाद केक काटने वाले प्रोग्राम को आगे बढ़ाने के लिए माॅ के पास जाने लगे। तभी रानी पापा के पास पहुॅची और उनसे कुछ कहा तो पापा ने उनके सिर पर प्यार से हाॅथ फेरा फिर माइक को मुह के पास लाकर कहा___"अभी अभी मेरी बेटी ने कहा कि आप सबके साथ साथ मैं इसके सभी दोस्तों को भी इस स्टेज पर बुला लूॅ। उसके बाद ही केक काटा जाए। इस लिए आप सब आ जाएॅ यहाॅ पर प्लीज़।"

"चलो भाई स्टेज पर चलते हैं।" सुधीर ने मेरे कंधे पर हाॅथ का दबाव देते हुए कहा__"अब सामने आने का समय हो गया है।"
"तुम चलो मैं आता हूॅ।" मैने सुधीर से कहा तो वो मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगा तो मैने कहा___"क्या हुआ चलो न।"

सुधीर को कुछ समझ न आया लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि वो पलट कर स्टेज की तरफ जाने लगा। उसके जाते ही मैंने अपनी ऑखें बंद कर काल को इशारा किया। काल की आवाज़ मुझे मन में सुनाई दी। वो कह रहा था कि ठीक है मैं पहुॅच जाऊॅगा।

उधर स्टेज पर केक काटने की तैयारी हो चुकी थी। मेरी माॅ(रेखा) खूबसूरती से सजे टेबल पर रखे एक बड़े से केक के पास खड़ी थी। उनके बगल से रानी, सुमन माॅ, पापा, और फिर मेरी दूसरी माॅ(मेनका,काया)। बाॅकी सब लोग चारो तरफ से घेरा बना कर खड़े थे। टेबल पर बड़ा सा केक रखा हुआ था जिसके चारो तरफ कैण्डल लगे हुए थे।

माॅ अभी भी बार बार सबकी तरफ देख रही थी। उनके जैसा ही हाल रानी का और मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) का भी था। तभी पापा ने माॅ से केक काटने के लिए कहा। सुमन माॅ ने उससे पहले सारी कैण्डल्स को जला दिया था। केक के पास ही एक प्लास्टिक का चाकू रखा हुआ था।

माॅ ने एक बार फिर से चारो तरफ दिख रहे चेहरों की तरफ देखा। इस बार उनकी ऑखों में नमी साफ दिखी मुझे। ख़ैर, पापा के कहने पर माॅ ने बुझे मन से प्लास्टिक के उस चाकू को पकड़ा और केक के पास चारो तरफ जलती हुई कैण्डल्स को फूॅक मार कर बुझाने के लिए झुकी ही थी कि सहसा वो चौंक पड़ी। इतना ही नहीं वो एकदम से स्टैचू में तब्दील होती चली गईं। ऑखों में पहले तो आश्चर्य के भाव उभरे और फिर एकाएक ही उनके चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। कुछ कहने के लिए उनके गुलाबी होंठ थरथराए मगर कोई मुख से कोई लफ्ज़ न निकल सका।

उनकी ये हालत देख कर चारो तरफ खड़े सब लोग भौचक्के से रह गए। किसी को समझ न आया कि इन्हें अचानक क्या हो गया है? सबसे पहले रानी ने माॅ की नज़रों का पीछा किया और जो उसे नज़र आया उसे देख कर वो भी हैरान रह गई। इससे पहले कि कोई कुछ कह पाता मेरी माॅ के मुख से चीख निकल गई।

"मेरा बेऽऽटाऽऽऽ....।" थरथरा रहे होठों के बीच से देरी से ही सही मगर ये शब्द निकल ही गए।

माॅ के इन शब्दों को सुन कर सब बुरी तरह चौंके। सबने देखा कि मेरी माॅ कैसे एकदम से पागल सी नज़र आने लगी थी। वो अपने सामने टेबल के उस पार खड़े राज को देखे जा रही थी। उस राज को जो इस वक्त बिलकुल पाॅच साल के बच्चे के रूप में था और टेबल के उस पार खड़ा था। उसके बदन पर इस वक्त वही कपड़े थे जिसे माॅ कमरे में राज को पहनने का कह कर आई थी। मैंने काल को इसी बात का इशारा किया था कि वो माॅ के सामने उनका पाॅच साल का बेटा बनकर और उन्हीं कपड़ों को पहन कर जाए जिन कपड़ों को वो कमरे में अपने बेटे को पहन कर आने के लिए कह कर आई थी।

रेखा माॅ की अचानक बदली इस हालत से हर कोई हैरान था। जिस जगह पर उनकी नज़रें अपलक टिकी हुई थी उस जगह किसी को कुछ नहीं दिख रहा था। जबकि रेखा माॅ उसी जगह खड़े अपने पाॅच साल के बेटे को देख रही थी। वो उसे देख कर मुस्कुरा रहा था। रानी खुद भी हैरान थी कि ऐसा कैसे हो सकता है? सुमन माॅ या बाॅकी मेरी दोनो माॅ उनको भी कुछ नहीं दिख रहा था। मैं सिर्फ अपनी माॅ और बहन को दिखाई दे रहा था।

रेखा माॅ बिजली की सी तेजी से अपनी जगह से भागी और टेबल के उस पार खड़े अपने बेटे के पास पहुॅच गई। चारो तरफ खड़े लोग उनके इस तरह भागने से छितर बितर हो गए थे। हर कोई हैरान था ये देख कर।

उधर मेरी माॅ मेरे पास आते ही झपट कर मुझे अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोने लगी। वो मुझे कस कर अपने कलेजे से लगा चुकी थी। जैसे डर हो कि उनके छोंड़ते ही मैं फिर से कहीं खो जाऊॅगा। वो कुछ बोल नहीं पा रही थी बस रोये जा रही थी। मैं भी बच्चे के रूप में अपनी माॅ के हृदय से लगा असीम तृप्ति का अनुभव कर रहा था।

"कहाॅ चला गया था तू मुझे छोंड़ कर?" फिर माॅ ने मुझे सीने से लगाए हुए ही बिलखते हुए कहा___"तुझे पता भी है कि तेरे जाने के बाद से अब तक मैं कितनी बार मर चुकी हूॅ। तुझे अपनी माॅ का ज़रा सा भी ख़याल नहीं आया कि तेरे बिना कैसे मर मर के जीती रही हूॅ मैं?"

रानी को जैसे होश आया, वो अपनी जगह से हिली और माॅ के पास पहुॅची। उसने माॅ के कंधे पर हाॅथ रखा तो माॅ ने सिर को पीछे की तरफ करके रानी को देखा।

"बेऽऽटीऽऽ।" माॅ ने उसे भी एक हाथ से पकड़ कर खींचा और फिर उसे भी छुपका लिया, फिर रोते हुए बोली____"आज मुझे मेरे दोनो बच्चे मिल गए। अब मैं तुम दोनो को कहीं नहीं जाने दूॅगी। हमेशा अपने सीने से लगाए रखूॅगी।"

रानी कुछ बोल न सकी बस ऑखों से उसके ऑसू बहते रहे। वक्त जैसे ठहर गया था। चारो तरफ खड़े लोग जैसे पुतले बन गए थे। उधर मेरी दोनो माॅ और मामा चाचू हैरान थे कि मैं उन्हें दिख क्यों नहीं रहा? वो आस पास भी देख रहे थे मगर मैं कहीं नहीं था।

"ये क्या पागलपन है रेखा?" तभी वहाॅ छाए सन्नाटे में पापा की आवाज़ गूॅजी जो माॅ के पास आकर ज़रा बदहवास से बोल पड़े थे।
माॅ ने पलट कर देखा उनकी तरफ। उफ्फ माॅ का ऑसुओं से तर चेहरा देख कर उनका कलेजा हिल गया।

"ये तुम क्या कर रही हो रेखा?" फिर पापा ने दुखी भाव से कहा___"फिर से वही सब? तुमने मुझसे वादा किया था न कि अब से तुम वैसा हाल नहीं बनाओगी खुद का। फिर क्यों रेखा, तुम फिर से ऐसा क्यों करने लगी?"

"अरे ये तुम क्या कह रहे हो अशोक?" माॅ ने कहा___"देख नहीं रहे मैं अपने बेटे से मिल रही हूॅ। देख लो मेरा बेटा आ गया है मेरे पास। मैं कहती थी न कि मेरा बेटा अपनी माॅ के पास ज़रूर आएगा। देख लो अशोक, हमारा बेटा आ गया है। आज मैं बहुत खुश हूॅ। अपने बेटे के आने पर पूरे शहर को मिठाईयाॅ बाटूॅगी मैं। देखो न अशोक, हमारा बेटा बिलकुल वैसा ही है जैसा आज से पहले तब था जब ये मुझे छोंड़ कर गया था।"

"उफ्फ रेखा, होश में आओ प्लीज़।" पापा का जी चाहा कि वो अपने बाल नोंचने लगें, मगर खुद को सम्हालते हुए बोले___"देखो रेखा। यहाॅ सबके सामने ये तमाशा मत करो। सब क्या सोचेंगे हमारे बारे में?"

"तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या अशोक?" माॅ के हलक से गुर्राहट निकली, बोली___"तुम्हें दिख नहीं रहा कि मैं अपने दोनो बच्चों को प्यार से गले लगाए हुए हूॅ। मेरा बेटा राज आ गया है और मेरी बेटी रानी भी आ गई है। देखो मेरा बेटा कैसे मेरे सीने से लगा हुआ है?"

"कहाॅ है तुम्हारा बेटा रेखा?" पापा ने चीखते हुए कहा___"मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा। प्लीज़ रेखा, ये पागलपन बंद कर दो और आओ केक काटो। देखो सब लोग यहाॅ पर तुम्हारे केक काटने का इन्तज़ार कर रहे हैं।"

पापा की बात पर माॅ ने उन्हें अजीब भाव से देखा। फिर अपने दाहिने तरफ छुपकाए मेरी तरफ देखा तो चौंक पड़ी। अब वहाॅ पर मैं नहीं था। ये देख कर माॅ की हालत फिर से खराब होने लगी।

"नहींऽऽऽऽ।" माॅ के हलक से चीख़ निकल गई, बोली___"तू मुझे फिर से छोंड़ कर नहीं जा सकता। अगर तू फिर से चला गया तो मैं मर जाऊॅगी मेरे लाल। वापस आ जा, अपनी माॅ के पास वापस आजा मेरे बेटे।"

रानी माॅ से अलग होकर उन्हें सम्हालने लगी। तभी माॅ की नज़र मुझ पर पड़ी। वैसे ही पिंक शूट पहने मैं स्टेज के ऊपर आ रहा था। किन्तु इस वक्त मैं अब कोई पाॅच साल का बच्चा नहीं दिख रहा था बल्कि उन्नीस साल का नवजवान दिख रहा था। मैं चलते हुए आया और अपने दोस्त सुधीर के पास खड़ा हो गया।

माॅ मुझे एकटक देखे जा रही थी। मैं भी उन्हें देख रहा था। रानी की नज़र भी मुझ पर पड़ चुकी थी। किन्तु रानी के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो दुखी तो है माॅ की हालत देख कर मगर उसे थोड़ी देर पहले के दृष्य ने विष्मय में डाला हुआ था।

उधर एकटक मेरी तरफ देखती हुई माॅ अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलते हुए मेरी तरफ आने लगी। ये देख कर मेरे दिल की धड़कने मुझे रुकती हुई सी महसूस हुई। मुझे ऐसा लगने लगा जैसे हर तरफ सन्नाटा फैल गया हो। हर कोई माॅ को मूर्खों की तरह देखे जा रहा था। मेरी तरफ बढ़ती हुई माॅ सहसा रुक गईं और पलट कर रानी की तरफ देखा।

"बेटी, ये कौन है?" माॅ ने मेरी तरफ उॅगली का इशारा करते हुए पूछा था।
"म माॅ ये..... ।" रानी ने कहते हुए मेरी तरफ देखी तो मैने न में ईशारा किया उसे। तो रानी बोली___"ये मेरे कालेज के फ्रैण्ड्स हैं सब।"

रानी की बात सुन कर माॅ ने रानी को अजीब भाव से देखा। तभी रानी के पास सुमन माॅ भी आ गई। उन्होंने रानी से ऑखों ही ऑखों से कुछ कहा तो रानी ने पलकें झपका दी। सुमन माॅ मेरी तरफ देखने लगी। मैने उनसे अपनी नज़रें हटा ली।

तभी पापा माॅ के पास आए और बोले___"अब अगर पागलपन उतर गया हो तो केक भी काट दो रेखा। इन सब लोगों ने बहुत तमाशा देख लिया तुम्हारा। यही सब करना था तो पहले बता देती मुझे। मैं इन लोगों नहीं बुलाता यहाॅ।"

पापा के स्वर में कठोरता थी। उनकी इस बात से वापस पलट कर केक के पास उसी जगह चली गईं जहाॅ पर वो पहले खड़ी थी। वहाॅ पर उपस्थित सब लोग माॅ की तरफ अजीब भाव से देख रहे थे। मेरी दोनो माॅ (मेनका,काया) भी ही देख रही थी। उनकी ऑखों में मुझे गुस्सा नज़र आया। मैं समझ न पाया कि ऐसा क्यों? ख़ैर, माॅ ने केक के चारो तरफ लगी कैण्डल्स को फूॅक मार कर बुझाया फिर प्लास्टिक के चाकू से केक काटा। सबने ज़ोरदार तालियाॅ बजाई और हर तरफ से हैप्पी बर्थडे टू यू का शोर गूॅजने लगा।

केक काटने के बाद माॅ ने सबसे पहले केक का हल्का सा पीस रानी को खिलाया, रानी ने भी माॅ को खिलाया। फिर माॅ ने पापा को खिलाया, तो पापा ने भी माॅ को खिलाया। सुमन माॅ को माॅ ने खिलाया। पास में खड़ी मेरी दूसरी माॅ ने भी उनको खिलाया। रानी की नज़र मुझ पर बार बार पड़ रही थी। उसकी ऑखों में नमी थी।

सुधीर ने मेरे कान में कहा___"भाई मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम अपनी माॅ को कब बताओगे कि तुम उनके बेटे हो। यार तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती अपनी माॅ की हालत देख कर? मुझसे तो देखा नहीं जा रहा ये सब। तुम्हारे यहाॅ आने का मतलब ही क्या रहा फिर।"

सुधीर की बात का बाॅकी सब दोस्तों ने भी समर्थन किया। मैं जानता था कि वो सब सही कह रहे थे मगर मेरे मन में तो कुछ और ही था। मैंने उन लोगों को कोई जवाब न दिया बल्कि माॅ की तरफ जाने लगा। उधर सब लोग माॅ को शुभकामनाएॅ और उपहार वग़ैरा दे रहे थे।

मैं कुछ ही पल में उनके पास पहुॅच गया। रानी ने मुझे दुखी भाव से देखा। मेरी दोनो माॅ भी माॅ को उपहार दे चुकी थी। मैने प्लास्टिक का चाकू रानी के हाथ से लिया और उस केक से थोड़ा सा केक काटकर अपनी माॅ की तरफ देखा। सब के सब मेरी तरफ देखने लगे। माॅ भी ब्याकुल भाव से मुझे देखने लगी थी।

"जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएॅ माॅ।" मैने नम ऑखों से जैसे धमाका किया, और उस केक के छोटे से पीस को अपने हाॅ में लेकर माॅ के मुख की तरफ बढ़ा दिया।

माॅ का मुख स्वतः ही खुल गया और मैने उनको केक का वो पीस खिला दिया। उनकी ऑखों से ऑसू बह चले।

"आपके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में आपका बेटा हाज़िर है माॅ।" मैने कहा_" मुझे माफ़ कीजिए मैने आपको बहुत रुलाया माॅ। लेकिन अब नहीं रुलाऊॅगा आपको।"

मेरी बातों से जहाॅ माॅ की ऑखों से ऑसू बहने लगे थे वहीं बाॅकी सब लोग एक बार फिर से बुरी तरह हैरान रह गए थे।
"ऐ लड़के ये सब क्या बकवास है?" तभी पापा गुस्से में लाल पीले हुए मेरी तरफ बढ़े मगर माॅ की आवाज़ सुनकर रुक गए।

"ख़बरदार अशोक।" माॅ की आवाज़ में कठोरता थी, बोली___"ये मेरा बेटा है। मैं जानती थी कि मेरा बेटा मेरे आस पास ही कहीं है और इस बात का आभास मुझे शुरू से ही हो रहा था। और अब मेरा बेटा खुद मेरे सामने आ गया है।"

"तुम्हारे पागलपन की कोई सीमा नहीं है रेखा।" पापा ने कहा___"तुम किसी को भी अपना बेटा मान सकती हो। मगर मैं जानता हूॅ ये लड़का तुम्हारा बेटा नहीं है।"

"एक माॅ ने तो पहचान लिया कि ये लड़का उसका ही बेटा है मगर।" तभी मेनका माॅ सामने आकर बोल पड़ी___"मगर एक बाप को पहचान कराने के लिए सबूत देना पड़ेगा।"

"आप बीच में बोलने वाली होती कौन हैं? ये हमारे घर की बात है।" पापा बोले__"बेहतर होगा कि आप इस बारे में कोई टीका टिप्पड़ी न करें।"
"मैं राज की माॅ हूॅ भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"उस राज की जो आज से तेरह साल पहले आधी रात को माधवगढ़ के जंगल में मिला था। उस वक्त उसकी उमर पाॅच साल थी।"

"ये सच कह रही हैं पापा।" रानी ने कहा_"ये मेरे राज भइया ही हैं। आपको याद है जब आप मेरा एडमीशन कराने मेरे कालेज गए थे। तब कालेज की पार्किंग में मैने आपसे कहा था कि मैंने राज भइया को देखा है। मगर आप मेरी बात मेरा भ्रम कह रहे थे। जबकि उस दिन मैने इन्हें ही देखा था वहाॅ।"

रानी की बात से पापा को झटका लगा। वहाॅ मौजूद सब लोग तो चकित भाव से देख रहे थे। चौंकी तो माॅ (रेखा) भी थी और वो रानी की तरफ हैरानी से देखने लगी थी।

"अगर ये सच है तो फिर ये हमारे पास अब तक क्यों नहीं आया था?" पापा ने कहा।
"इसका जवाब हम देंगे पुत्र।" तभी वहाॅ पर जो आवाज़ गूॅजी उसने मुझे चौंका दिया। बाॅकी सब भी पलट कर आवाज़ की दिशा में देखने लगे।

स्टेज के नीचे तरफ गुरूदेव खड़े थे। उनके तेजस्वी शरीर से अलग ही आभा निकल रही थी। गुरूदेव को देखकर वहाॅ मौजूद हर कोई हत्प्रभ रह गया। जबकि मैं, मेरी दो माॅ और मामा चाचू स्टेज से उतर कर गुरुदेव के पास आए और उनके चरणों में नतमस्तक हो गए।

गुरूदेव का ब्यक्तित्व और प्रभाव ऐसा था कि वहाॅ पर मौजूद हर कोई उनके सामने श्रद्धा से झुक गया। मेरे माता पिता और रानी सब स्टेज से नीचे आ गए।

"तुम सबका कल्याण हो पुत्रो।" गुरूदेव ने सबकी तरफ देखते हुए फिर मेरे पिता जी की तरफ देखते हुए कहा___"पुत्र नियति को कोई नहीं बदल सकता। वक्त और हालात के सामने मजबूर ब्यक्ति वहीं करता है जो विधना उससे करवाती है। तुम्हारे इस बेटे के साथ भी वही हुआ जो इसके भाग्य के लेख में था। तेरह साल पहले जिस जंगल में ये बालक पाॅच साल की अल्पायु में इन चारों को मिला था उस जंगल में किसी भी प्राणी का जीवित बच जाना असंभव था किन्तु ये बालक बच गया। क्योंकि इसके भाग्य में जीवन शेष था। ये अलग बात है कि इसे अपहरण करने वाले उस जंगल में उसी रात मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। अब रहा तुम्हारे सवाल का जवाब कि ये अब तक तुम्हारे पास आया क्यों नहीं तो इसका जवाब ये है पुत्र कि तब से लेकर अब तक ये हमारे पास रहा।"

"क्या????" मेरी दोनो माॅ और पापा तो चौंके ही रानी भी बुरी तरह चौंकी थी, साथ में वहाॅ मौजूद लोग भी, जबकि पापा बोले__"ये आपके कैसे पहुॅच गया महात्मन?"
"इसे इसकी नियति हमारे पास खींच कर लाई पुत्र।" गुरुदेव ने कहा___"ख़ैर, बाॅकी सब बातें हम बाद में तुम्हें विस्तार से बताएॅगे। अभी के लिए इतना ही जान लेना काफी है कि ये तुम्हारा वही बेटा है जो तेरह साल पहले खो गया था।"

गुरूदेव की बात सुन कर पापा की ऑखों में ऑसू आ गए। वो मुझे करुण भाव से देखे जा रहे थे। जबकि माॅ एक पल भी अपनी जगह खड़ी न रह सकी। वो भाग कर मेरे पास आई और मुझे पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया। मैने भी उनको कस लिया। मुझे सीने से लगाए माॅ रोये जा रही थी।

"मैं तो पहले से ही जानती थी कि तू मेरा ही बेटा है।" माॅ रोते हुए कह रही थी___"मेरी अंतर्आत्मा चीख चीख कर कह रही थी कि तू ही मेरा बेटा है। तू आ गया मेरे पास। मेरा लाल अपनी माॅ के पास आ गया। आज तेरे मिलने से मुझे इतनी खुशी मिली है मेरे बच्चे कि अब अगर मुझे मौत भी आ जाए तो मुझे कोई ग़म न होगा।"

"नहीं माॅ नहीं।" मैने माॅ को ज़ोर से छुपकाते हुए कहा___"ऐसा कभी मत कहना। मुझे आपका प्यार और आपकी ममता का सहारा चाहिए जीवन भर।"
"हाॅ मेरे बच्चे।" माॅ ने मेरे माथे पर चूमते हुए कहा___"मैं तुझे जी भर के प्यार करूॅगी। हमेशा अपनी गोंद में लिये रहूॅगी। अब तुझे कहीं नहीं जाने दूॅगी।"

"र रेखा।" सहसा पापा हमारे पास में आते हुए माॅ से बोले___"मुझे भी तो अपने बेटे से मिलने दो। मुझे भी तो इसे अपने सीने से लगाने दो। वर्षों से विरह की आग को सीने में दबाये मैं जल रहा हूॅ। अपने बेटे को सीने से लगाऊॅगा तभी ये आग ठंडी होगी।"

माॅ ने मुझे खुद से अलग किया और पापा की तरफ देखा। मैने भी पापा की तरफ देखा। पापा की ऑखों पर इस वक्त ऑसुओं का समुंदर हिलोरें ले रहा था। झपट कर उन्होने मुझे अपने से छुपका लिया और फूट फूट कर रो पड़े। आज वो खुद को सम्हाल नहीं पाए। हृदय में भावनाओं और जज़्बातों का तूफान रुक नहीं सका बल्कि बाहर आ गया।

पापा मुझे बहुत देर तक यूॅ ही छुपकाए रोते रहे। फिर जब माॅ ने उनके कंधे पर अपना हाॅथ रखा था तो उन्होंने मुझे खुद से अलग किया। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। अपने माता पिता से मिल कर मेरी हालत भी खराब थी। मुझे लग रहा था कि मैं बस उनसे वैसे ही छुपका रहूॅ। रानी दौड़ कर आई और मुझसे लिपट गई। उसकी ऑखों में भी ऑसू थे। हम दोनो बहन भाई को इस तरह लिपटे देख मेरे माता पिता खुश हो गए।

"बेटी मुझे भी तो अपने बेटे से मिलने दो।" तभी सुमन माॅ ने रानी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा तो रानी मुझसे अलग हुई।

माॅ ने मुझे करुण भाव से देखा और फिर मुझे खुद से छपका लिया। आस पास मौजूद सब लोग इस वक्त खुश दिखाई दे रहे थे। काफी देर तक मिलना मिलाना चलता रहा। फिर गुरूदेव ने अपनी आवाज़ से हम सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा।

"अब हम चलते हैं पुत्र राजवर्धन।" गुरूदेव ने कहा___"अपने माता पिता के साथ सुखपूर्वक रहो और संसार का कल्याण करो।"
"जी गुरूदेव।" मैने श्रद्धा से हाॅथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए कहा।

"हमारे यहाॅ आने का दृष्य और हमारी बातें बाॅकी किसी को याद नहीं रहेगी।" गुरूदेव ने कहा___"बस तुम लोगों को ही याद रहेंगी। अब हम जा रहे हैं। सदा कल्याण हो तुम सबका।"

कहने के साथ ही गुरूदेव गायब हो गए। उनके गायब होते ही बाॅकी सब लोगों ने एक साथ एक गहरी साॅस ली और उनके मन से गुरूदेव के आने से जाने तक का सारा दृष्य मिट गया। सब लोग ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे कुछ ही न हो।

इसके बाद वहाॅ मौजूद लोगों ने खाना पीना किया और सब लोग वहाॅ से चले गए। मेरे कालेज के दोस्त लोग भी चले गए। अब वहाॅ पर हम सब घर वाले ही रह गए थे। मेरे पिता, चारो माॅ, रानी, मैं, और मामा चाचू।

मैने अपने माता पिता को बताया कि मेनका माॅ और काया माॅ ये दोनो भी मेरी सगी माॅ जैसी ही हैं। फिर राशभ मामा के बारे और चाचू के बारे में भी बताया उन्हें। सारी बातें सुनने के बाद पिता जी बड़ा खुश हुए। रेखा माॅ तो मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी। उन्होंने अपने हाॅथ में मेरा हाॅथ लिया हुआ था।

घर के सभी नौकर चाकर भी ये जान कर खुश थे कि मैं वापस आ गया हूॅ। सब मुझसे मिले भी। कुछ ऐसे थे जिन्होंने मुझे देखा नहीं था कभी और कुछ ऐसे थे जो मुझे बचपन में देख चुके थे।

हम सब घर के अंदर आ चुके थे और इस वक्त ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए थे। पिता जी के पूछने पर मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) और मामा चाचू उन्हें मेरी सारी कहानी बता रहे थे। कहानी में ये नहीं बताया उन्होंने कि वो सब कौन थे और कैसे इंसान बने, और ना ही ये बताया कि मुझमें अद्भुत शक्तियाॅ हैं।

उस रात मैं अपनी माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोया। बाॅकी सब भी किसी न किसी कमरे में सो गए थे। मैं अपनी माॅ के साथ आज पहली बार चैन की नींद सो रहा था। मुझे नहीं पता कि माॅ भी मेरी तरह सो रही थी या पहले की ही तरह वो मुझे बस एकटक देखे जा रही थी।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,,
nice update ..aakhir maa bete ka milan ho hi gaya ...bahut hi emotional tha sab jab kaal pink dress me 5 saal ka bankar rekha ke saamne aaya aur baad me asli raj ??
 

DARK WOLFKING

Supreme
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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 26 )


अब तक,,,,,,,,

मैने अपने माता पिता को बताया कि मेनका माॅ और काया माॅ ये दोनो भी मेरी सगी माॅ जैसी ही हैं। फिर राशभ मामा के बारे और चाचू के बारे में भी बताया उन्हें। सारी बातें सुनने के बाद पिता जी बड़ा खुश हुए। रेखा माॅ तो मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी। उन्होंने अपने हाॅथ में मेरा हाॅथ लिया हुआ था।

घर के सभी नौकर चाकर भी ये जान कर खुश थे कि मैं वापस आ गया हूॅ। सब मुझसे मिले भी। कुछ ऐसे थे जिन्होंने मुझे देखा नहीं था कभी और कुछ ऐसे थे जो मुझे बचपन में देख चुके थे।

हम सब घर के अंदर आ चुके थे और इस वक्त ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए थे। पिता जी के पूछने पर मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) और मामा चाचू उन्हें मेरी सारी कहानी बता रहे थे। कहानी में ये नहीं बताया उन्होंने कि वो सब कौन थे और कैसे इंसान बने, और ना ही ये बताया कि मुझमें अद्भुत शक्तियाॅ हैं।

उस रात मैं अपनी माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोया। बाॅकी सब भी किसी न किसी कमरे में सो गए थे। मैं अपनी माॅ के साथ आज पहली बार चैन की नींद सो रहा था। मुझे नहीं पता कि माॅ भी मेरी तरह सो रही थी या पहले की ही तरह वो मुझे बस एकटक देखे जा रही थी।
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अब आगे,,,,,,,

सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा कि मेरी माॅ(रेखा) मेरे सिर पर प्यार से हाॅथ फेरते हुए एकटक मुझे ही देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में अपने लिए प्यार और स्नेह का अथाह सागर नज़र आया मुझे। मैं तुरंत ही बेड पर उठ कर बैठ गया तो जैसे माॅ की तंद्रा टूटी।

"अरे उठ गया मेरा बेटा?" माॅ ने मुस्कुराते हुए मेरे माथे पर चूमा फिर बोली___"मैं तो तुझमें ही खोई हुई थी। मेरा दिल करता है कि बस तुझे यूॅ ही देखती रहूॅ।"
"इतना प्यार मत कीजिए मुझसे माॅ।" मैने हॅस कर कहा___"ये प्यार ये माया मोह बहुत ख़राब चीज़ें होती हैं। अच्छे भले इंसान को पागल और कमज़ोर बना देती हैं।"

"मैं तेरी माॅ हूॅ मेरे लाल।" माॅ ने डबडबा आई ऑखों से कहा___"वर्षों बाद तू मुझे वापस मिला है। तेरे लिए अब तक कितना तड़पी हूॅ इसका तो मुझे खुद पता नहीं। तू मेरे जिगर का टुकड़ा है मेरी जान है तू। तुझसे प्यार करना मेरा ही मेरा धर्म है और तू ऐसा क्यों कहता है कि ये प्यार ये माया मोह ख़राब चीज़ें हैं? अरे बेटा इन्हीं सबके सहारे तो ये दुनियाॅ अब तक टिकी हुई है। जिस संसार में प्रेम या प्यार नहीं होगा वो संसार पल भर में नस्ट हो जाएगा। माॅ का अपने बेटे से वैसा ही प्रेम और स्नेह होता है जैसे किसी प्रेमी का अपने प्रेमिका से होता है। अपने दिलो दिमाग़ से किसी के लिए प्यार निकाल देना किसी के बस में नहीं होता बेटे। तुझमें मेरी आत्मा बसती है, तू है तो मैं हूॅ वर्ना कुछ भी नहीं है।"

"आप सही कहती हैं माॅ।" मैने माॅ की गोंद में अपना सिर रखते हुए कहा__"प्रेम नहीं तो कुछ भी नहीं। मैं बहुत खुशनसीब हूॅ माॅ कि मुझे एक ही जन्म में चार चार प्यार करने वाली माॅ मिली हैं। आपको पता है माॅ बचपन से लेकर अब तक मुझे माॅ के प्यार की कमी महसूस नहीं हुई, क्योंकि ईश्वर ने मुझे एक माॅ से जुदा किया तो मेरे लिए दो दो माओं का बंदोबस्त पहले ही कर दिया था। उन दोनों ने मुझे बहुत प्यार और स्नेह दिया माॅ। उनके लिए मैं ही सब कुछ हूॅ।"

"तू सच कह रहा है बेटे।" माॅ ने कहा__"तेरी वो दोनो माएॅ सचमुच पूज्यनीय हैं। तुम उनको कभी पराया मत करना बेटा। भले ही तू मुझे पराया कर देना मगर उनको खुद से अलग मत करना।"
"आपने ये कह कर मेरी दुविधा और मेरे अंदर के एक बोझ को खत्म कर दिया माॅ।" मैने माॅ से कहा___"मैं इसी सोच में था कि आपके पास आ जाने के बाद मैं किस तरह उनका बेटा होने का फर्ज़ अदा कर पाऊॅगा? मगर आपने मेरी मुश्किल आसान कर दी माॅ। मुझे आपसे यही उम्मीद थी।"

"मैं तेरी माॅ ज़रूर हूॅ मेरे लाल।" माॅ ने मेरे चेहरे पर हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"मगर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूॅ कि किसी का हक़ भी छीन लूॅ। मैने तुझे जन्म दिया है मगर पाल पोस कर तो तुझे तेरी उन माओं ने ही बड़ा किया है न। इस लिए तुझ पर उनका हक़ मुझसे ज्यादा है। मुझे तो बस इतने से ही बेहद खुशी मिल गई है कि मेरा बेटा मुझे सही सलामत वापस मिल गया है।"


अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी कमरे में सब लोग आ गए। पापा, रानी, सुमन माॅ, मेनका/काया माॅ,रिशभ मामा और वीर चाचू। सब एक साथ मेरे कमरे में आ गए थे।

"हम सबको भी तो अपने बेटे से मिलने दो रेखा।" पापा ने मुस्कुराते हुए कहा___"तुम ही अकेले अकेले उससे मिल रही हो। अरे भाई हम सब भी लाइन में खड़े हैं।"
"अरे तो मैने कब मना किया है?" रेखा माॅ ने हॅसते हुए कहा__"आप सब भी मिल लो राज से। मगर इस पहले सुबह के काम से फुर्सत तो हो जाने दो।"

"फुर्सत तो वो तब होगा न जब तुम्हारे पास से उसे जाने का मौका मिलेगा।" पापा ने हॅसते हुए कहा___"राज बेटा, जाओ तुम फ्रेश हो लो। हम सब नास्ते की टेबल पर ही तुमसे मिल लेंगे।"
"जी पापा।" मैने कहा और बेड से उतर कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

मेरे बाथरूम में चले जाने से सब लोग वापस कमरे से बाहर चले गए। बाथरूम में मैं फ्रेश हुआ और नहाया धोया। उसके बाद कपड़े पहन कर मैं बाहर आ गया। मैने रात वाले ही कपड़े पहन लिए थे क्योंकि मेरे सारे कपड़े तो मेरे उस वाले घर में ही थे।

नास्ते की टेबल के पास पहुॅच कर मैं सीधा मेनका और काया माॅ के बीच वाली कुर्सी पर बैठ गया। रेखा माॅ ने मुझे उस जगह बैठते देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। मेनका और काया माॅ को शायद इस बात का आभास हो चुका था।

"राज, आज से तुम रेखा बहन के हाॅथ से ही खाना खाओगे।" मेनका माॅ ने कहा__"हम दोनो तो तुम्हें बचपन से ही अपने हाॅथ से खिलाते रहे हैं मगर अब ये हक़ तुम्हारी असल माॅ को भी मिलना चाहिए। उनकी ममता और उनके हृदय में बसे अथाह प्यार का लुत्फ भी लेना चाहिए तुम्हें।"

"नहीं मेनका बहन।" रेखा माॅ ने झट से कहा___"राज को आप दोनो ही अपने हाथों से खाना खिलाएॅगी। मुझे तो ये देख कर ही खुशी मिल जाएगी। और हाॅ, मैं अपनी बेटी को अपने हाॅथ से खाना खिलाऊॅगी। वर्षों बाद मैने इसे अपनी बेटी की नज़र से देखा है। मैने अपनी बेटी को बहुत दुख दिये हैं, वो मेरे प्यार के लिए वर्षों से तरस रही है। इस लिए अब मैं अपनी बेटी को खूब प्यार दूॅगी। सुमन, आओ न मेरे पास बैठो। हम दोनो ही अपनी बेटी को अपने हाॅथ से खिलाएॅगे।"

माॅ की बातें सुन कर सब खुश हो गए। सुमन माॅ अपनी जगह से उठ कर माॅ के पास आ गई। रानी उन दोनो के बीच में बैठ गई थी। उसकी ऑखों में खुशी के ऑसूॅ तैरते नज़र आने लगे थे। उसने मेरी तरफ देखा तो मैने उसे देख कर अपनी पलकें झपका दी। पापा, रिशभ मामा और वीर चाचू ये सब मुस्कुराते हुए देख रहे थे।

"आज वर्षों बाद इस घर में इतनी खुशियाॅ आईं हैं।" पापा कह उठे___"मेरा दिल करता है कि सारी दुनियाॅ के सामने खड़ा होकर खूब नाचूॅ गाऊॅ। भगवान का लाख लाख शुकर है कि उसने हमारे बेटे को हमारे पास वापस भेज दिया। इतना ही नहीं मेरे बेटे को प्यार करने वाली ऐसी माएॅ और ऐसे मामा और चाचू दिया।"

"तुमने बिलकुल सही कहा अशोक।" रेखा माॅ ने कहा___"और अब मैं ये कह रही हूॅ कि हम सब एक ही घर में साथ साथ रहें। मेनका बहन प्लीज मेरी आपसे विनती है कि आप सब यहीं हमारे साथ ही रहिये।"
"ये तुमने बहुत अच्छी बात कही रेखा।" पापा ने कहा___"मैं खुद भी यही कहना चाहता था। अब तो हम सब एक ही हैं इस लिए एक ही घर में हम सब रहें तो कितना अच्छा लगेगा।"

"जैसा आप कहें भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"हम सब अब यहीं रहेंगे। रिशभ वीर तुम दोनो उस घर से हमारा सारा सामान लाने की ब्यवस्था करो।"
"ठीक है बहना।" रिशभ मामा ने कहा__"हम दोनो नास्ता करने के बाद वहाॅ से सारा सामान ले आएॅगे।"

"अच्छा मैं एक बात आप लोगों से पूछना चाहता हूॅ।" सहसा पापा ने रिशभ मामा आदि लोगों की तरफ देखते हुए कहा__"कल वो महात्मा जो आए थे वो कौन थे? उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई ब्रम्हॠषि हों। कितना तेज़ था उनके चेहरे पर।"

"वो हमारे गुरूदेव हैं भाई साहब।" वीर चाचू ने कहा___"वो हिमालय से आए थे। हम पिछले तेरह साल से हिमालय में उनके पास ही तो थे।"
"क्या????" पापा के साथ साथ बाॅकी सब भी चौंक पड़े, जबकि पापा ने कहा__"आप हिमालय में कैसे पहुॅच गए थे?"

वीर चाचू ने पापा की बात पर मेनका माॅ की तरफ देखा तो माॅ ने कहा___"जब राज हमें मिला था तभी हम हिमालय चले गए थे। ये सब कैसे हुआ इसका जवाब तो ईश्वर या गुरूदेव ही दे सकते हैं। हलाॅकि गुरूदेव कह रहे थे कि ये सब ईश्वर का ही विधान था।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप लोग इतने पवित्र स्थान पर और इतने तेजस्वी गुरूदेव के पास रहे।" पापा ने कहा__"और अब मेरे मन में भी ये इच्छा जागृत हो चुकी है कि हम सब एक बार उस पवित्र स्थान पर जाएॅ और उन महात्मन से मिलें। उनका आशीर्वाद लें। क्या कहती हो रेखा?"

"मेरी भी यही इच्छा है अशोक।" रेखा माॅ ने कहा___"हमें उस पवित्र धरा पर ज़रूर जाना चाहिए और इनके गुरूदेव से मिलना चाहिए। तुम्हें याद है न कल उन्होने कहा था कि बाॅकि बातें वो हमें बाद में बताएॅगे। इस लिए हमें वहाॅ जाना चाहिए।"

"ठीक है तो फिर हम कल ही हिमालय के लिए प्रस्थान करेंगे यहाॅ से।" पापा ने कहने के साथ ही मेनका माॅ की तरफ देखा__"आप क्या कहती हैं इस बारे में?"
"ये तो खुशी की बात है भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"हमें तो बहुत खुशी होगी अगर हम उस पवित्र जगह पर फिर से पहुॅच जाएॅगे तो। हमारे लिए तो वो जगह सबसे अनमोल है।"

"तो फिर ये फैसला हो गया कि हम कल ही यहाॅ से हिमालय के लिए निकलेंगे।" पापा ने कहा___"आप सब लोग इसकी तैयारी कर लीजिएगा। हम सुबह बाई कार यहाॅ से चलेंगे।"

कुछ देर और इसी विषय पर बातें होती रही उसके बाद पापा, रिशभ मामा और चाचू अपने अपने ऑफिस के लिए निकल गए। मैं और रानी काॅलेज जाने के लिए रेडी होने के लिए कहा तो माॅ ने मना कर दिया। उनका कहना था कि आज मैं उनके पास ही रहूॅ। तो मैने कहा कि कल हम सबको हिमालय जाना है इस लिए उसके लिए हमें काॅलेज से छुट्टी लेनी होगी और छुट्टी के लिए कालेज जाना पड़ेगा। मेरी इस बात से माॅ ने हमें काॅलेज जाने की इजाज़त दे दी। उनकी इजाज़त मिलने पर मैं और रानी काॅलेज जाने के लिए तैयार होने लगे। मेरे कपड़े यहाॅ पर नहीं थे इस लिए मुझे यहाॅ से पहले अपने उस घर जाना था। रानी के तैयार होने पर मैं उसे लेकर अपने उस वाले घर की तरफ कार से निकल गया।
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माधवगढ़ पुलिस स्टेशन!
पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहने उस शख्स का नाम मेघनाद शर्मा था। ऊम्र यही कोई तीस के आस पास थी उसकी। पुलिस की वर्दी उसके कसरती बदन पर खूब जॅच रही थी। इस वक्त वो अपने केबिन में टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठा अखबार पर ऑखें गड़ाए बैठा था। उसके सामने टेबल के इस पार एक चालीस साल का मामूली सा हवलदार खड़ा था।

"तिवारी जी।" सहसा उस इंस्पेक्टर मेघनाद ने अखबार पर नज़रें गड़ाए हुए ही कहा___"ये साले अख़बार वालों के पास कोई दूसरी ख़बर नहीं होती क्या?"
"का बात है सर?" हवलदार तिवारी ने ना समझने वाले भाव से कहा___"ऐसा काहे कह रहे हैं आप?"

"मैं पिछले तीन दिनों से देख रहा हूॅ कि अख़बार वाला राइटर एक ही ख़बर को रोज़ाना छाप रहा है अपने अख़बार में।" मेघनाद ने कहा___"इसका मतलब ये है कि अब तक इस ख़बर पर हमारी सरकार का ध्यान नहीं गया है।"

"ऐसी का ख़बर है सर?" हवलदार तिवारी ने कहा___"जिस पर हमारी सरकार का ध्यान न गया अब तक? कौनव ख़ास ख़बर है का सर?"
"ख़बर ये है कि पिछले पंद्रह दिनों के भीतर माधवगढ़ से काफी लड़कियाॅ लापता हो चुकी हैं।" इंस्पेक्टर ने कहा___"और इस बारे में सरकार का ध्यान अभी तक नहीं गया। ये सारी लड़कियाॅ माधवगढ़ के अलग अलग इलाकों की हैं। हमारे थाना क्षेत्र में अभी तक ऐसा कोई वाक्या नहीं हुआ है। मगर सवाल ये है कि जिन इलाकों से लड़कियाॅ लापता हुई हैं उन लड़कियों के पैरेन्ट्स ने क्या इसकी रिपोर्ट अपने इलाके के थानों में नहीं की क्या?"

"ऐसा होना तो न चाहिए सर।" हवलदार तिवारी ने कहा___"मगर ख़बर से तो यही ज़ाहिर होता है कि अब तक तो किसी पैरेंट्स ने ऐसी कोई रिपोर्ट किसी थाने में दर्ज़ नहीं की है।"
"ये तो कमाल और हैरत की बात है तिवारी जी।" मेघनाद ने कहा___"कैसे पैरेंट्स हैं जिन्हें अपनी लड़कियों के लापता होने का कोई रंज़ ही नहीं है।"

"बात तो आपकी ठीक है सर।" तिवारी ने सोचने वाले भाव से कहा___"मगर ये बात अख़बार वाले को कैसे पता चली कि पिछले पंद्रह दिनों में माधवगढ़ से कितनी लड़कियाॅ लापता हुई हैं? आमतौर पर होता तो यही है कि ऐसे मामले में ऐसी ख़बर पीड़ित ब्यक्ति के द्वारा ही पुलिस या अख़बार वालों को होती है।"

अभी इंस्पेक्टर तिवारी की बात का जवाब देने ही वाला था कि सहसा तभी केबिन के बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ें आईं।
"तिवारी जी ये बाहर कौन चिल्ला रहा है?" मेघनाद ने कहा___"ज़रा देखिये तो।"
"जी सर अभी देखता हूॅ।" तिवारी कहने के साथ ही पलटा___"साला कौन ससुरा गला फाड़ रहा है हमरे थाने में?"

तिवारी केबिन के दरवाजे के पास पहुॅचा ही था कि एक अन्य हवलदार ऑधी की तरह केबिन में दाखिल हुआ फिर बोला___"सर एक आदमी और एक औरत आई है। और चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि दरोगा जी से मिलना है। मैने पूछा कि बात क्या है मगर वो एक ही रट लगाए हुए हैं कि आपसे मिलना है।"

"चलो देखते हैं कौन हैं वो?" मेघनाद ने कुर्सी से उठते हुए कहा__"और क्यों हमसे मिलने के लिए इतना चिल्ला रहे हैं?"
कहते हुए मेघनाद केबिन से बाहर निकल कर बाहर आ गया। उसके पीछे दोनो हवलदार भी आ गए।

बाहर आकर मेघनाद ने देखा कि दो लोग अजीब सी हालत में इधर उधर देखे जा रहे हैं। उन दोनो के पास पहुॅच कर मेघनाद ने उनसे कहा___"जी कहिए आपको क्या परेशानी है?"
"इंस्पेक्टर साहब।" वो आदमी बदहवास सा बोल पड़ा___"मेरी बेटी आशा कल शाम से घर नहीं लौटी है। मुझे लगता है कि अन्य लड़कियों की तरह मेरी बेटी भी लापता हो गई है। भगवान के लिए उसे ढूॅढ़ दीजिए। वो हमारी इकलौती बेटी है। कल कालेज गई थी उसके बाद से अब तक घर नहीं लौटी है।"

"तो आप ये कह रहे हैं कि आपकी बेटी भी अन्य लड़कियों की तरह लापता हो गई?" मेघनाद ने मन ही मन चौंकते हुए पूछा था।
"हाॅ इंस्पेक्टर साहब।" आदमी ने कहा__"कल से मेरी बेटी घर नहीं लौटी है। मैने हर जगह तलाश किया उसे मगर वो कहीं नहीं मिली। आज जब अखबार में और भी लड़कियों के लापता होने की ख़बर पढ़ी तो मेरे होश उड़ गए। मेरी बेटी को ढूॅढ़ दीजिए इंस्पेक्टर साहब। वो हमारी इकलौती औलाद है। उसके बिना हम दोनो मियां बीवी मर जाएॅगे। भगवान के लिए हमारी बेटी को ढूॅढ़ दीजिए।"

"आप चिंता मत कीजिए आपकी बेटी जहाॅ भी होगी हम उसे ज़रूर ढूॅढ़ लेंगे।" इंस्पेक्टर ने दिलासा देते हुए कहा___"सबसे पहले आप अपनी बेटी की गुमशुदगी की एफ आई आर करवाइये। उसके बाद अपनी बेटी की कोई साफ सुथरी फोटो हमें दीजिए। हम जल्द ही इसकी कार्यवाही करेंगे। ये मामला कोई साधारण मामला नहीं है। पिछले कुछ दिनों के भीतर भीतर कई सारी लड़कियों के लापला होने की ख़बर अख़बार में छप चुकी है। इस मामले किसी ऐसे संगठन का हाॅथ लगता है जो ग़ैर कानूनी तरीके से लड़कियों की तश्करी करता है।"

"हे भगवान अब क्या होगा?" आदमी के साथ आई औरत ने मानो गुहार लगाते हुए कहा___"वो लोग मेरी बेटी को कहीं बेंच देंगे। हाय मेरी बेटी के साथ जाने कैसा कैसा जुलम करेंगे वो लोग।"

"शान्त हो जाओ सावित्री।" आदमी ने सावित्री नाम की अपनी बीवी को सांत्वना देते हुए कहा___"हमारी बेटी को कुछ नहीं होगा। भगवान पर भरोसा रखो और इंस्पेक्टर साहब पर भी। ये बहुत जल्द हमारी बेटी को सुरक्षित हमारे पास ले आएॅगे।"

"देखिये इस तरह रोने धोने से कुछ नहीं होगा।" इंस्पेक्टर ने कहा__"आप प्लीज़ धैर्य रखिए। पुलिस एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा देगी आपकी बेटी को ढूॅढ़ने के लिए।"

इंस्पेक्टर के कहने पर और उस आदमी के समझाने पर किसी तरह वो औरत शान्त हो गई। ख़ैर, एफ आई आर दर्ज़ करवा कर और अपनी बेटी की एक फोटो इंस्पेक्टर को सौंप कर वो दोनो मियां बीवी चले गए वहाॅ से।

"लो जी साहब जी।" उनके जाते ही हवलदार तिवारी कह उठा___"आप तो कह रहे थे कि अभी तक कोई माई बाप अपनी लड़की के लापता होने की रपट लिखाने नहीं आए, लेकिन अब तो इस मामले में रपट लिखा भी दी गई। अब आप क्या करेंगे?"

"करना क्या है तिवारी जी।" मेघनाद ने कहा__"अब तो इस मामले की तफ्तीश शुरू करेंगे हम। ये लड़कियों के लापता होने का एक ही कारण समझ में आता है और वो यही है कि इतनी सारी लड़कियों की कोई तश्करी कर रहा है। साले ऐसे लोगों को तो बीच चौराहे पर नंगा करके उनकी गाॅड में गोली मारना चाहिए।"

"ये आपने बिलकुल सही कहा सर।" तिवारी ने कहा___"सरवा हमरे देश मा अइसन लोगन का इहै सजा देवै का चाही। मगर सर जी ई काम हम कहाॅ कर सकत हैं? सरवा हमरे हाॅथ कानून की मोटी मोटी ज़जीरन मा बॅधे हैं।"

"ये सब छोड़िये तिवारी जी।" इंस्पेक्टर मेघनाद ने कहा___"और अपने रिकार्ड से ऐसे मुजरिमों की लिस्ट निकालिये जो ऐसे काम करते हैं।"
"ठीक सर जी।" तिवारी ने कहा और एक तरफ दीवार से सटी आलमारी की तरफ बढ़ गया।
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उधर एक तरफ!
महेंद्र सिंह और रंगनाथ इस वक्त एक ऐसी जगह पर आमने सामने बैठे हुए थे जिस जगह पर वर्षों से बंद एक कारखाना था। एक छोटे से हाल में दो कुर्सियों पर इस वक्त दोनो बैठे हुए थे। रंगनाथ अभी थोड़ी देर पहले ही आया था। उसके हाॅथ में आज का अख़बार था। उस छपी ख़बर को वह महेन्द्र सिंह को सुना चुका था।

"इसका मतलब ये हुआ कि मामला गर्म हो गया है मित्र।" महेन्द्र ने कहा___"और अब बहुत जल्द पुलिस इस मामले में अपना काम शुरू कर देगी। इस लिए हमें जल्द से जल्द इन लड़कियों को अपने अड्डे पर ले जाना होगा। वरना इतने दिनों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।"

"बात तो तुम्हारी सही है मित्र।" रंगनाथ ने सोचते हुए कहा___"लेकिन इतनी लड़कियों को हम एक साथ अपने अड्डे पर कैसे ले जा सकेंगे? हमने शुरू से ही ग़लती की थी। हमें जैसे जैसे पूनम या अमावश्या की रात को जन्मी लड़की मिलती जाती तो हम उन्हें एक एक कर के अपने अड्डे पर चुपचाप पहुॅचा देते। मगर अब जबकि मामला पुलिस तक पहुॅच गया है तो हम ये काम अतिसीघ्र नहीं कर सकते। किसी भी वक्त हम पकड़े जाएॅगे।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"इतनी मुश्किल से इतनी लड़कियों का इंतजाम हुआ है तो हम इन्हें हाॅथ से जाने नहीं देंगे। अभी मामला इतना गर्म नहीं हुआ है। इस लिए हम आज रात ही इन लड़कियों को यहाॅ से अपने अड्डे पर ले जाएंगे। तुम किसी ऐसे वाहन का बंदोबस्त करो जिसमें एक साथ ये सारी लड़कियाॅ आ सकें। लेकिन ध्यान रहे वो वाहन ऐसा हो जिसके अंदर मौजूद इन लड़कियों को कोई देख न सके। दूसरी बात उस वाहन में ड्राइवर कोई दूसरा न हो बल्कि तुम खुद ही रहो।"

"अरे सीधा सीधा बोलो न कि इस तरह का वाहन मैं कहीं से चोरी करके लाऊॅ।" रंगनाथ ने कहा___"हो जाएगा। मेरी नज़र में इस तरह का वाहन आ चुका है और मैने तरकीब भी सोच रखी है। उस तरकीब से हम बड़े आराम से इन सारी लड़कियों को सुरक्षित ले जा सकते हैं।"

"अरे वाह।" महेन्द्र सिंह कह उठा___"बताओ कैसी तरकीब है वो?"
"अपना कान इधर लाओ।" रंगनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं वो तरकीब तुम्हारे कान में ही बताऊॅगा।"

महेन्द्र सिंह ने उसे अजीब भाव से देखा फिर उठ कर उसके पास गया और उसके मुख के पास अपना कान कर दिया। रंगनाथ ने उसके कान में जो कुछ कहा उसे सुन कर महेन्द्र सिंह खुश हो गया।

"ये सही तरकीब सोची है तुमने।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"ऐसे में यकीनन हम बड़ी आसानी से इन सारी लड़कियों को यहाॅ से ले जाएॅगे।"
"अब इस समस्या से तो मुक्ति मिल गई लेकिन अपने अंदर की समस्या से मुक्ति कैसे मिले?" रंगनाथ ने कहा___"बीस दिन हो गए यार। किसी औरत या लड़की को उस नज़र से देखा भी नहीं है हमने। कृत्या के साथ संभोग कर करके हमारे अंदर भी वैसी ही हवस की भूख बढ़ गई है।"

"ये सच कहा तुमने यार।" महेन्द्र सिंह ने आह सी भरते हुए कहा___"अब तो किसी से भरपूर तरीके से संभोग करने का मन कर रहा है। लड़कियाॅ तो बहुत हैं अपने पास मगर हम इनके साथ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि संभोग के बाद ये कुवाॅरी नहीं रह जाएॅगी। जबकि महाशैतान के सामने हमें कुवाॅरी लड़कियाॅ लेकर जाना है।"

"रात तक की बात है मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली, बोला___"इन लड़कियों को सही सलामत कृत्या के पास पहुॅचा कर हम कृत्या के साथ भरपूर संभोग का मज़ा लूटेंगे। उसके जैसा मज़ा इस दुनियाॅ की कोई औरत नहीं दे सकती।"

"ठीक है यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"तब तक के लिए किसी तरह अपने अंदर की गर्मी को शान्त रखना होगा। अब तुम जाओ और उस वाहन का बंदोबस्त करो और साथ ही उस सबका भी।"
"ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मैं जा रहा हूॅ सारी चीज़ों की ब्यवस्था करने। तुम उन लड़कियों पर भी ध्यान देना। मैं शाम तक आ जाऊॅगा।"

रंगनाथ की बात सुन कर महेन्द्र सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि रंगनाथ बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।



दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,,,
nice update ..mahendra ne ladkiyo ko kidnap karna shuru kar diya hai aur ab wo unhe lekar apne adde par jayenge ?..
par kaal ko iski khabar nahi hai abtak ?..
 

DARK WOLFKING

Supreme
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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 27 )


अब तक,,,,,,,

"ये सच कहा तुमने यार।" महेन्द्र सिंह ने आह सी भरते हुए कहा___"अब तो किसी से भरपूर तरीके से संभोग करने का मन कर रहा है। लड़कियाॅ तो बहुत हैं अपने पास मगर हम इनके साथ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि संभोग के बाद ये कुवाॅरी नहीं रह जाएॅगी। जबकि महाशैतान के सामने हमें कुवाॅरी लड़कियाॅ लेकर जाना है।"

"रात तक की बात है मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली, बोला___"इन लड़कियों को सही सलामत कृत्या के पास पहुॅचा कर हम कृत्या के साथ भरपूर संभोग का मज़ा लूटेंगे। उसके जैसा मज़ा इस दुनियाॅ की कोई औरत नहीं दे सकती।"

"ठीक है यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"तब तक के लिए किसी तरह अपने अंदर की गर्मी को शान्त रखना होगा। अब तुम जाओ और उस वाहन का बंदोबस्त करो और साथ ही उस सबका भी।"
"ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मैं जा रहा हूॅ सारी चीज़ों की ब्यवस्था करने। तुम उन लड़कियों पर भी ध्यान देना। मैं शाम तक आ जाऊॅगा।"

रंगनाथ की बात सुन कर महेन्द्र सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि रंगनाथ बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
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अब आगे,,,,,,,,

मैं रानी को लेकर पहले अपने घर गया, वहाॅ पर मैने अपने कपड़े बदले और फिर रानी के साथ अपनी कार से मैं कालेज चला गया। वहाॅ पर मैंने प्रिंसिपल के पास छुट्टी की अप्लीकेशन दी और फिर मैं वापस रानी के साथ घर आ गया। घर पर जब मैं आया तो देखा कि रिशभ मामा और वीर चाचू सारा सामान लेकर आ गए थे। जिसे वो अलग अलग कमरों में सजा रहे थे।

मैं ये चाह रहा था कि मुझे अपने लिए एक अलग कमरा मिल जाए ताकि मैं स्वतंत्र रूप से अपने किसी भी काम को कर सकूॅ। इसके लिए मैने किसी से कहा नहीं। क्योंकि मैं समझ चुका था कि मुझे अब से माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोना होगा। उन्होंने ये बात पहले ही सबको बता दी थी और मैं इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था। मुझे लगता था कि मेरे ऐसा कहने पर उन्हें दुख लगेगा। बात भी सही थी, मैं उन्हें आज वर्षों बाद मिला था इस लिए कोई भी माॅ यही चाहेगी कि उसका बेटा हर पल उसके पास ही रहे। हलाॅकि उन्होंने मेनका और काया माॅ के संबंध में अपनी बात साफ कर दी थी।

मेरे असल माता पिता और बहन मेरी उस असलियत से नावाकिफ़ थे। वो नहीं जानते थे कि मैं कोई आम इंसान नहीं हूॅ बल्कि अद्भुत शक्तियों से संपन्न एक असाधारण इंसान हूॅ। जिसे खुद ईश्वर ने संसार के कल्याण हेतु चुना था। हलाॅकि मुझे अभी तक ये पता नहीं था कि इतनी अद्भुत शक्तियों से विभूषित मैं ऐसा कौन सा काम करने वाला हूॅ भविष्य में? किन्तु इतना अवश्य समझ रहा था कि आने वाले समय में मुझे कोई बहुत बड़ा काम करना था। कोई ऐसा काम जो सिर्फ ऐसी अद्भुत शक्तियों के द्वारा ही हो सकेगा।

मेरे सामने अब नई समस्या यही थी कि अपनी इन शक्तियों के बारे में मुझे अपने असल माता पिता से किसी भी हाल में छुपा कर ही रखना था। माॅ के साथ उनके कमरे में रहने से आने वाले समय में मेरे लिए समस्या हो सकती थी। इस लिए मैंने इस समस्या से निजात पाने के लिए मेनका माॅ के पास गया और उनसे इस बारे में बात की।

"तो तुम ये चाहते हो कि तुम स्वतंत्र रूप से एक अलग कमरे में रहो।" मेनका माॅ ने सारी बात सुनने के बाद कहा___"ताकि किसी भी काम को करने में तुम्हें कोई परेशानी न हो सके। तुम्हें लगता है कि माॅ कमरे में उनके साथ रहते हुए किसी दिन तुम अपने असल काम में पकड़े न जाओ?"

"जी बिलकुल।" मैने कहा___"ये सब मेरी उस असलियत को हजम नहीं कर पाएॅगे माॅ। इस लिए मैं ऐसा चाहता हूॅ। अब आप ही कुछ कीजिए ऐसा जिससे मैं एक अलग कमरे में रह सकूॅ।"

"बात तो तुम्हारी यकीनन सही है।" मेनका माॅ ने कहा___"लेकिन तुम्हारे अलग कमरे में रहने की बात तुम्हारी अपनी माॅ से कौन कह सकता है और किस तरह कह सकता है? उनको इसकी क्या वजह बताएॅगे?"
"कोई न कोई ठोस वजह उन्हें बतानी ही पड़ेगी माॅ।" मैने कहा___"वरना आपको पता है कि ऐसे में किसी दिन उनको पता चल ही जाएगा।"

"कल हम सब हिमालय गुरूदेव के पास जा रहे हैं।" माॅ ने कहा___"उनसे ही इस बारे में बात करेंगे। वही बताएॅगे कि ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए?"
"हाॅ ये आपने सही कहा माॅ।" मैने खुशी से कहा___"गुरूदेव यकीनन इस समस्या का कोई न कोई समाधान बताएॅगे हमे। ठीक है फिर, अब गुरूदेव से बात करने के बाद ही आगे का काम करेंगे।"

"अच्छा एक बात बता मुझे।" मेनका माॅ ने कुछ सोचते हुए कहा___"रानी के बारे में क्या सोचा है तुमने?"
"क्या मतलब?" मैने सहसा चौंकते हुए कहा__"आप कहना कहना क्या चाहती हैं माॅ?"

"मैं क्या कहना चाहती हूॅ ये तू बखूबी समझ चुका है राज।" माॅ ने कहा___"फिर भी अगर मेरे मुख से ही सुनना चाहता है तो ठीक है सुन___मैने रानी की ऑखों में तेरे लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है। और ये भी समझ सकती हूॅ कि वो तेरे लिए कितना तड़प रही है। इस लिए मैं ये कहना चाहती हूॅ कि तू उसके प्रेम को कब स्वीकार करेगा? सब कुछ जानते बूझते हुए भी तू उस मासूम को इतनी तक़लीफ क्यों दे रहा है?"

"मैं जानता हूॅ माॅ कि रानी को तक़लीफ देकर मैं ग़लत कर रहा हूॅ।" मैने गंभीर लहजे से कहा__"और यकीन मानिये ये सब करके मैं ज़रा भी खुश नहीं हूॅ। रानी को तक़लीफ देने का मतलब है कि मैं अपने आपको ही तक़लीफ़ दे रहा हूॅ।"

"अगर ऐसा सोचता है तू तो फिर ऐसा कर ही क्यों रहा है बेटे?" मेनका माॅ ने नासमझने वाले भाव से कहा___"उस मासूम के प्रेम को खुले दिल से स्वीकार क्यों नहीं कर लेता? सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने वाली वो लड़की तन्हाईयों में कितना तड़पती होगी इसका एहसास है तुझे?"

"मुझे हर बात का एहसास है माॅ।" मैने पूर्वत गंभीरता से ही कहा__"मगर आप जानती हैं कि अगर मैं उसके प्रेम को स्वीकार कर लूॅगा और उसके बाद जब हम दोनों प्रेमी प्रेमिका जैसा बर्ताव करने लगेंगे तो ये बाद ज्यादा दिनों तक मेरे असल माता पिता से छुपी नहीं रह पाएगी। हलाॅकि मैं ये बात जानता हूॅ कि वो भी ये जानते हैं कि रानी अपने ही भाई से प्रेम करती है, मगर उनकी नज़र में उसका वो प्रेम उस सूरत में ज्यादा मायने नहीं रखता था जबकि उनको ये यकीन हो चुका था कि मैं इस दुनियाॅ में कहीं हूॅ ही नहीं। और जब मैं उनकी नज़र में कहीं था ही नहीं तो रानी के उस प्रेम से उन पर किसी तरह की कोई बात आती ही नहीं। मगर अब हालात बदल गए हैं माॅ, अब तो मैं उनकी नज़र में सही सलामत जीवित मौजूद हो गया हूॅ। ऐसी सूरत में जब उन्हें ये नज़र आएगा कि रानी और मैं दोनो ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं तो सोचिए उन्हें इस बात से कितनी तक़लीफ होगी? इस संसार में कोई हमारे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा।क्योंकि सगे भाई बहन के बीच ऐसा रिश्ता सर्वथा अनुचित कहलाता है, और पाप भी। समाज के बीच बनी अपने पिता की ऊॅची इज्ज़त और शान को मैं ये सब दिखा कर मिट्टी में नहीं मिलाना चाहता माॅ।"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि।" मेनका माॅ ने कहा___"तू रानी के प्रेम को ये सोच कर नहीं स्वीर करेगा कभी कि इससे तेरे पिता की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।"
"मजबूरी है माॅ।" मैने हताश भाव से कहा__"इतने वर्षों बाद मैं अपने माता पिता को मिला हूॅ, उनको खुशियाॅ देने की बजाय ये सब करके दुख नहीं देना चाहता मैं। मेरे ऐसा करने से उनके मन में यही ख़याल आएगा कि काश मैं लौट कर वापस आता ही नहीं।"

"बात तो तेरी एकदम सही है राज।" मेनका माॅ ने कहा___"यकीनन ऐसा होने से तेरे माता पिता के मन में यही बात आएगी। तो अब क्या करेगा तू? क्या सारी ज़िंदगी ऐसे ही तुम दोनो एक दूसरे के लिए तड़पते रहोगे?"
"शायद यही नसीब में है माॅ।" मैने भारी मन से कहा___"ख़ैर छोड़िये, जो होगा देखा जाएगा।"

मैंने कहा और माॅ के पास से वापस आकर सीधा बाहर की तरफ निकलता चला गया। मेरा मन बहुत भारी सा हो गया था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था मुझे। जब मैं बाहर आया तो मेरी नज़र एक तरफ खड़ी मेरी कार पर पड़ी। मेरी क़दम स्वतः ही उस तरफ बढ़ चले। कार के पास पहुॅच कर मैने का ड्राइंविंग डोर खोला और उसके अंदर शीट पर बैठ गया। पाॅकेट से कार की चाभी निकाल कर मैने उसे इग्नीशन पर लगा कर घुमाया तो कार स्टार्ट हो गई। कार के स्टार्ट होते ही मैने गियर लगाया और कार को मेन सड़क की तरफ दौड़ा दिया। मुझे नहीं पता था कि मैं अब कहाॅ जा रहा था? ख़ैर, शाम तक मैं यूॅ ही माधवगढ़ की सड़कों पर कार को घुमाता रहा। इस बीच मैने दो बार कार में पेट्रोल भी भरवाया था।

शाम का अॅधेरा जब छाने लगा तो मैने कार की हेडलाइट चालू की तब मुझे एहसास हुआ कि मैं सारा दिन यूॅ ही बावजह सड़कों पर भटकता रहा हूॅ। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया। मन में एक ही ख़याल आया कि अब तक किसी ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैने पैन्ट की पाॅकिट में अपना मोबाइल तलाश किया तो मोबाइल पाॅकेट में था ही नहीं। इसका मतलब मोबाइल मैं घर पर ही भूल आया था। मुझे समझते देर न लगी कि घर में सब लोग मेरे लिए परेशान होंगे। खासकर माॅ की तो हालत ख़राब हो गई होगी। ये ख़याल आते ही मैने कार को घर की तरफ मोड़ दिया और स्पीड से चल पड़ा घर की तरफ।

कुछ ही समय में मैं गर पहुॅच गया। सब लोग ड्राइंगरूम में ही बैठे थे। सबके चेहरों पर चिंता और परेशानी झलक रही थी। मुझे देखते ही सब के सब मुझसे सवाल करने लगे कि सारा दिन में कहाॅ रहा? उन सबके सवालों का जवाब मैंने अपने तरीके से देकर उन सबके मन को शान्त किया।

रात में खाना पीना खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए। मैं माॅ के साथ उनके ही कमरे में था। माॅ ने मुझसे पहले ढेर सारी बातें की फिर मुझे अपने सीने से छुपका कर सो जाने को कह दिया। मैंने भी उनकी बात मान कर अपनी ऑखें बंद कर ली।

अभी मुझे ऑख बंद किये कुछ ही देर हुई थी कि मेरे मोबाइल पर हल्की सी बीप की आवाज़ हुई। मैं हिल नहीं सकता था क्योंकि संभव है कि माॅ अभी सोई न हों, दूसरी बात उनका एक हाॅथ मेरी पीठ पर था। जिसके सहारे वो मुझे अपनी छाती पर छुपकाए हुए थीं। मैने माॅ की साॅसों को महसूस किया तो पता चला कि माॅ गहरी नींद में जा चुकी हैं। ये जान कर मैंने आहिस्ता से उनके हाथ को अपनी पीठ पर से हटा कर खुद को उनसे दूर किया। उसके बाद मैने अपनी पाॅकेट से मोबाइल निकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर रानी के मैसेज का नोटीफिकेशन शो कर रहा था। मैने उसे टच करके ओपेन किया और ये देख कर मेरे होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई कि रानी ने आज फिर से एक ग़ज़ल लिख कर भेजी थी। जो इस प्रकार थी,,,,,,,


किसी दिन हद से गुज़र जाते तो अच्छा था।
हाय उनकी याद में मर जाते तो अच्छा था।।

हम रो देते तो तौहीने वफ़ा हो जाती वर्ना,
अश्क़ ऑखों से गिर जाते तो अच्छा था।।

बंद पलकों की तरह हक़ीक़त में भी कभी,
मेरे कुछ ख़्वाब सवॅर जाते तो अच्छा था।।

फक़त इक यही आरज़ू थी के हर सू उनके,
ख़ुशबू की तरह बिखर जाते तो अच्छा था।।

समंदर के पास होने से तिश्नगी नहीं बुझती,
कभी समंदर में उतर जाते तो अच्छा था।।


रानी की ये ग़ज़ल पढ़ने के बाद मुझे समझ न आया कि मैं उसे क्या जवाब दूॅ? मैं समझ रहा था कि वो ग़ज़लों के बहाने अपने दिल का हाल मुझे बता देती है, मगर मैं सब कुछ समझते हुए भी उसकी बेहाल हो चुकी हालत के लिए कुछ कर नहीं पा रहा था। अभी तक तो ये था कि भले ही हम दोनो को एहसास है कि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं मगर ये बात लबों के बाहर नहीं आई है। जिस दिन बाहर आ जाएगी उस दिन से वक्त और हालात बदल जाएॅगे। अभी तो हम भाई बहन की तरह बर्ताव करते हैं मगर इस सबके होने के बाद भाई बहन वाला चक्कर नहीं रह जाएगा। बल्कि हम प्रेमी प्रेमिका बन जाएॅगे और उस सूरत में हमारे बीच बहुत सी ऐसी बातें हो सकती हैं जो हमारे उस रिश्ते को किसी दिन सबके सामने उजागर भी कर सकती थीं।

मैं नहीं चाहता था कि इस सबसे एक नया बखेड़ा और एक नया दुख मेरे माता पिता के ऊपर आ जाए। कुछ देर तक रानी की भेजी हुई ग़ज़ल को देखता रहा उसके बाद मैने भारी मन से मोबाइल को एक तरफ रख दिया। बेड के एक तरफ पड़ा मैं काफी देर तक यूॅ ही लेता रहा कि तभी,,,,,,,,


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रंगनाथ जब वापस आया तो पूरी तरह शाम हो चुकी थी। उसके हाथ में एक मध्यम साइज का बैग था। जिसके अंदर शायद कुछ सामान मौजूद था। कारखाने के अंदर आकर वह महेन्द्र से मिला।

"बड़ा समय लगा दिया तुमने।" महेन्द्र ने उसे देखते हुए कहा___"साला खाली पेट इन्तज़ार करते करते मेरी तो हालत ख़राब हो गई।"
"टेंशन मत लो मित्र।" रंगनाथ ने कंधे से बैग उतारते हुए कहा___"खाली पेट का भी इंतजाम करके ही आया हूॅ। लो पहले खाना खा लो। उसके बाद काम शुरू करेंगे।"

"वो तो होगा ही।" महेन्द्र ने रंगनाथ के हाथ से उस पैकेट को पकड़ते हुए कहा जिस पैकेट को रंगनाथ ने बैग से निकाला था, फिर बोला___"लेकिन उससे पहले भरपेट खाना खाऊॅगा मैं।"

पैकेट को खोल कर महेन्द्र ने देखा उसमें काफी सारी रोटियाॅ थी और एक पाॅलिथिन में गरम गरम सब्जी थी। ये देख महेन्द्र ने अपने सूखे होठों पर जीभ फिराई और फिर टूट पड़ा सब्जी रोटी पर।

"ये सेविंग करने का सामान है।" रंगनाथ ने कहा___"जब तक तुम खाना खाओगे तब तक मैं अपनी दाढ़ी बना लेता हूॅ। उसके बाद तुम भी बना लेना। वरना इतनी बड़ी दाढ़ियों में उस पोशाक में कोई भी हम पर शक कर सकता है।"

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" महेन्द्र ने कहा___"और वो वाहन ठीक ठाक है न? जिसमें हमे उन लड़कियों को ले चलना है?"
"अरे ऐसे वाहन बेहतर ही होते हैं।" रंगनाथ ने कहा___"गड़बड़ी का कोई चान्स ही नहीं होता उनमें। इस लिए बेफिकर रहो।"

"फिर तो अच्छी बात है।" महेन्द्र ने कहा और चुपचाप खाना खाने लगा। जबकि रंगनाथ अपनी दाढ़ी बनाने में लग गया।

लगभगर आधे घण्टे बाद दोनो यार तैयार थे। दोनो ने एक दूसरे के सिर के बालों को भी काट दिया था। सब कुछ करने के बाद रंगनाथ ने बैग से जो सामान निकाला वो आर्मी की पोशाक थी। दोनो ने उस पोशाक को पहनने के बाद सिर पर कैप भी लगा ली।

अब कोई भी उन्हें देख कर यही कहता कि ये दोनो हिन्दुस्तान के फौजी हैं। सिर से लेकर पाॅव तक सब कुछ फौजियों जैसा ही था। ख़ैर, दोनो तैयार होकर उस तरफ चल पड़े जिस तरफ इन लोगों ने लड़कियों को बेहोश करके रखा हुआ था। कुछ ही देर में ये दोनो एक हाल जैसे कमरे में पहुॅचे। हाल के फर्स पर सभी लड़किया अस्त ब्यस्त हालत में पड़ी हुई थी। सबके हाॅथ पीछे की तरफ बॅधे हुए थे और सबके मुख पर टेप लगा हुआ था ताकि किसी के मुझ से किसी तरह की आवाज़ न निकले।

"ये सब तो अभी भी बेहोश हैं मित्र।" रंगनाथ ने सभी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा__"क्या फिर से इन सबको इंजेक्शन दिया है तुमने?"
"वो तो देना ही था।" महेन्द्र ने कहा__"वो क्या है कि टाइम हो गया था इनके होश में आने का। इस लिए इन सबके पिछवाड़ों पर फिर से ठोंक दिया इंजेक्शन मैने।"

"चलो अच्छा ही है।" रंगनाथ ने कहा__"इस हालत में इन्हें यहाॅ से ले जाकर उस आर्मी वाले डग्गे में डालने में आसानी ही होगी। अब चलो, हमें देर नहीं करना चाहिए।"
"सही कहा।" महेन्द्र ने कहा__"चलो इन सबको उस डग्गे में डालते हैं।"

दोनो ही आगे बढ़े और फिर दोनो ही एक एक करके उन सभी लड़कियों को हाल से उठा कर बाहर अॅधेरे में खड़े डग्गे पर डाल दिया और फिर डग्गे से नीचे उतर कर दोनो ने डग्गे का पीछे वाला वो फटका बंद कर किया। डग्गे में पीछे साइड ही एक मोटा सा खाकी का कपड़ा लगा हुआ था, जिसे खींच कर इन दोनो ने डग्गे का पिछला सारा पोर्शन भी ढॅक दिया।

"यहाॅ पर अपना कोई सामान तो नहीं रह गया है न?" महेन्द्र ने कहा___"एक बार अंदर जाकर ठीक तरह से चेक कर के आओ।"

महेन्द्र के कहने पर रंगनाथ कारखाने के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद वह आया और डग्गे में ड्राइविंग शीट पर बैठे महेन्द्र के बगल वाली शीट पर बैठ गया। महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे डग्गे को स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। फौजी डग्गा था और ये लोग भी फौजी के भेष में ही थे इस लिए कहीं भी इन लोगों को समस्या नहीं हुई। माधवगढ़ की आबादी से निकल कर ये शहर से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ते चले गए।

"देखा मित्र।" रंगनाथ ने बड़े गर्व के साथ कहा___"हम दोनो बड़े आराम से आबादी से बाहर आ गए। कहीं पर भी किसी ने हमें नहीं रोंका, तलाशी लेने की तो बहुत दूर की बात है। साला कोई सोच भी नहीं सकता था कि हम लड़कियों को लेकर ऐसे बड़ी आसानी से निकल जाएॅगे।"

"मानना पड़ेगा मित्र।" महेन्द्र ने मुस्कुराते हुए कहा___"वहाॅ से सुरक्षित निकलने की क्या फाड़ू तरकीब निकाली थी तुमने। लेकिन यार, ये फौजी डग्गा तुम्हें मिल कैसे गया?"
"तुम्हें क्या लगता है दोस्त?" महेन्द्र ने कहा___"ये डग्गा सच में आर्मी वालों का हैं?"

"क्या मतलब?" महेन्द्र के माथे पर बल पड़ता चला गया।
"अरे इसे मैने मुहमागी रकम देकर बनवाया है डियर।" रंगनाथ ने कहा___"रियल फौजी डग्गा भला कैसे मिल जाता मुझे? इस लिए मैं एक ऐसे आदमी से मिला जो दो नंबर वाले काम करने में माहिर है। उसको मैने बताया कि फौजी डग्गा चाहिए। बस, वो समझ गया मेरी बात, इस लिए ज्यादा पैसों के लिए अपना मुह भाड़ की तरह फाड़ दिया। मैने भी सोचा यार गरज तो अपनी ही है। इस लिए ना नुकुर नहीं की मैने और उसे उसकी मुहमाॅगी कीमत दी। नतीजा तुम्हारे सामने है दोस्त।"

"और ये फौज की वर्दी और ये जूते?" महेन्द्र ने पूछा___"ये कहाॅ से लाए तुम?"
"यार आज कल मार्केट में हर चीज़ मिल जाती है।" रंगनाथ ने कहा___"ये सब भी मिल गया। अपना काम तसल्ली हो गया न?"
"हाॅ दोस्त।" महेन्द्र ने कहा___"ये ऐसा काम था जिसके लिए हमने जाने क्या क्या पापड़ नहीं बेले हैं अब तक?"

"पापड़ तो बेलने ही थे मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली___"हमें ऐसी लड़कियों को खोज कर उठाना था जिनका जन्म अमावश्या या पूनम की रात को ही हुआ हो। इस लिए ऐसे मुश्किल काम में इतने पापड़ तो बेलने ही पड़ते। आम लड़कियों को उठाना होता तो वो काम बहुत ही आसान था।"

"ये तो बिलकुल सही कहा मित्र।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"ऐसी लड़कियों की खोज करना ही बड़ा मुश्किल काम था। ख़ैर, अब तो ये सब हो ही गया। इन सबको महाशैतान को सुपुर्द करने के बाद हमें ऐसी ऐसी शक्तियाॅ मिल जाएॅगी जिसकी वजह से हम कुछ भी कर सकेंगे।"

"सही कहा मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"उन शक्तियों से सबसे पहले हम उस छोकरे से निपटेंगे जिसने उस दिन हमें छठी का दूध याद दिला दिया था।"
"हाॅ मित्र।" महेन्द्र की ऑखों के सामने उस रात का दृश्य घूम गया जब राज ने उसे और रंगनाथ को जंगल के किनारे जान से मारते मारते बचाया था, बोला___"उससे हम सबसे पहले निपटेंगे। उससे अपनी हार और अपने अपमान का बदला ज़रूर लेंगे हम। लेकिन मित्र, एक बात समझ में नहीं आई कि उसके पास इतनी खतरनाक शक्तियाॅ आई कहाॅ से? जिस तरह से उसे हमने वो सब करते देखा था तो यही लगता था जैसे कोई देव दूत धरती पर आ गया हो। किसी आम इंसान में ऐसी अद्भुत शक्तियों के होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।"

"कहीं न कहीं से तो मिली ही हैं उसे ऐसी शक्तियाॅ।" रंगनाथ ने कहा___"पिछले तेरह साल से वह गायब था। इन तेरह सालों में वह कहाॅ रहा और क्या करता रहा ये हम नहीं जानते। उसकी समस्त शक्तियाॅ ईश्वरी शक्तियों की तरह हैं। ऐसी शक्तियाॅ तो आज के युग में जीवन भर तप करने के बाद भी किसी इंसान को नहीं मिल सकती। लेकिन हैरत की बात है कि उसके पास ऐसी शक्तियों मानो भण्डार जमा है। इन तेरह सालों में उसने ऐसा क्या किया है कि उसके पास ऐसी शक्तियाॅ आ गईं?"

"कुछ तो ज़रूर किया है मित्र।" महेन्द्र सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"काश हमें भी ऐसी कोई तरकीब मिल जाए जिससे हमारे पास भी उसके जैसी ही शक्तियाॅ हो जाएॅ।"
"चिंता मत करो दोस्त।" रंगनाथ ने महेन्द्र के कंधे को अपने एक हाॅथ से हल्का सा दबाते हुए कहा___"हमारे पास भी ऐसी शक्तियाॅ होंगी। बहुत जल्द हम भी शक्तिमान बन जाएॅगे।"

अभी रंगनाथ ने ये सब कहा ही था कि अचानक ही महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे दिखने वाले डग्गे की स्पीड कम करके ब्रेक लगाया। रंगनाथ का बैलेन्स बिगड़ गया। अचानक ही ब्रेक लगाने से उसका पूरा जिस्म झोंक में सामने की तरफ तेज़ी से गया और डग्गे के सामने डायस से ज़ोर से टकराया। शुकर था कि सामने शीशे से नहीं टकराया वरना उसका सिर भी फट सकता था। ख़ैर, कुछ ही पल में महेन्द्र ने डग्गे को बीच सड़क पर रोंक दिया।

"क्या हुआ यार?" रंगनाथ ने खुद को सम्हालने के बाद ठीक से अपनी जगह पर बैठते हुए कहा___"इस तरह भी कोई ब्रेक मारता है क्या? मेरी तो कसम से जान हलक में आ गई थी। वैसे इस तरह से अचानक ब्रेक लगाने क्या ज़रूरत आ पड़ी थी?"

"सामने देखो।" महेन्द्र ने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ एकटक देखते हुए कहा___"तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा कि मैने अचानक इस तरह ब्रेक क्यों लगाया है?"

महेन्द्र सिंह के कहने पर रंगनाथ ने सामने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ देखा और जिस चीज़ पर उसकी नज़र पड़ी उसने उसे बुरी तरह चौंका दिया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। यही हाल स्टेयरिंग को दोनो हाथों से पकड़े महेन्द्र का भी हो गया था।

"ये ये यहाॅ कैसे आ गया?" रंगनाथ ने सहमे हुए लहजे मे कहा___"हे भगवान अब क्या होगा? आज ये हमें ज़िन्दा नहीं छोंड़ेगा मित्र। ये हम दोनो को जान से मार देगा आज।"
"जान से तो तब मारेगा दोस्त।" महेन्द्र ने सहसा कठोर भाव से कहा___"जब ये हमें जान से मारने के लिए जीवित बचेगा।"

"क्या मतलब?" रंगनाथ बुरी तरह चौंका।
"इसका किस्सा ही खत्म कर देता हूॅ में।" महेन्द्र ने गियर लगाते हुए कहा___"साले को इस डग्गे से कुचल देता हूॅ अभी।"
"क्या???" रंगनाथ ने हैरत से कहा था।

मगर महेन्द्र सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जबड़ों को कसे वह पूरी स्पीड से डग्गे को आगे सड़क पर दौड़ा दिया। उधर हेडलाइट की रोशनी में दिख रहे राज के समीप डग्गा पहुॅचा ही था कि सड़क पर खड़ा राज ऊपर की तरफ उछल गया। स्पीड में दौड़ता हुआ डग्गा काफी आगे तक चला गया। मगर महेन्द्र ने उसे रोंक लिया और बैक गीयर डाल कर फिर दौड़ा दिया उसे।

मगर पीछे तो कोई था ही नहीं। काफी दूर तक आ जाने के बाद भी कुछ ऐसा महसूस न हुआ जिससे पता चले कि कोई डग्गे से टकराया हो। डग्गा रोंक कर महेन्द्र ने सामने की तरफ देखा तो चौंक गया। क्यों कि राज तो अभी भी सामने तरफ ही खड़ा दिख रहा था। महेन्द्र को समझ न आया कि वो सामने तरफ कब और कैसे आ गया?
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बेड पर ऑखें बंद किये लेटे हुए सहसा मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी। मेरी नज़र बंद दरवाजे पर पड़ी। दरवाजे की निचली सतह पर मुझे गाढ़ा सफेद धुऑ अंदर की तरफ आता दिखा। ये देख कर मेरे मन में एक ही ख़याल आया___काल।

थोड़ी ही देर में वो गाढ़ा धुआॅ कमरे में आ गया और फिर कुछ ही पल में वो एक मानव आकृति का रूप लेते हुए स्पष्टरूप से मानव बन गया। तब तक मैं भी बेड पर आहिस्ता से उठ कर बैठ गया था।

"क्या बात है काल?" मैने एक नज़र माॅ की तरफ देखने के बाद कहा___"इस तरह यहाॅ आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो मन के द्वारा भी मुझे बता सकते थे।"
"माफ़ करना राज।" काल ने कहा___"वो मुझे जल्दी के चक्कर में ध्यान ही नहीं आया। इस लिए ऐसे आ गया मैं।"

"ख़ैर, छोड़ो ये बात।" मैने कहा___"अब बताओ ऐसी क्या बात थी जो इतना जल्दी थी तुम्हें यहाॅ आने की?"
"इस शहर में एक नया मामला सामने आया है।" काल ने कहा___"आज के अख़बार में इस मामले की ख़बर भी छपी थी।"

"कैसा मामला?" मैने पूछा।
"इस शहर में पिछले कई दिनों के भीतर काफी सारी लड़कियों के गायब होने का मामला है राज।" काल ने कहा___"मैने इस बारे में अपने तरीके से पता किया तो इस मामले में जिसका हाॅथ नज़र आया उसे तुम बखूबी जानते हो।"


काल की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी।
"कहीं तुम महेन्द्र सिंह और रंगनाथ की बात तो नहीं कर रहे?" मैने कहा।
"मैं उन्हीं दोनो की बात कर रहा हूॅ।" काल ने कहा___"इन दोनो ने मिल कर पिछले कुछ दिनों के भीतर ही काफी सारी लड़कियों को अपने कब्जे में किया है, और अब ये लोग उन सारी लड़कियों को ले जा रहे हैं। मैं चाहता तो उन दोनो को उनके इस जघन्य अपराध की सज़ा ज़रूर देता मगर मुझे याद आया कि तुमने इन लोगों को कहा था कि दुबारा इस तरह अगर मुलाक़ात हुई तो तुम उन्हें ज़िंदा नहीं छोंड़ोगे। इस लिए मैने उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।"

"वो लोग इस समय हैं कहाॅ?" मैने काल से पूछा___"आज उनको सच में ऐसे अपराध की सज़ा मौत ही मिलेगी।"
"वो लोग माधवखढ़ से आर्मी के डग्गे में उन लड़कियों को भर कर निकले हैं।" काल ने कहा___"वो दोनो खुद भी फौजी के भेष में हैं। इस वक्त वो माधवगढ़ की सीमा से बाहर पहुॅच गए होंगे। मेरे ख़याल से तुम्हें जल्द ही उन लोगों को रास्ते पर ही रोंक लेना चाहिए। अगर वो उस भयानक और खतरनाक जंगल की सीमा के अंदर दाखिल हो गए तो फिर तुम उनका कुछ नहीं कर पाओगे। रात में मायवी या आसुरी शक्तियाॅ बहुत प्रबल हो जाती हैं।"

"हाॅ ये सही कहा तुमने।" मैने बेड से उतरते हुए कहा___"मुझे जल्द ही वहाॅ पहुॅचना होगा। तुम यहीं घर के आस पास ही रहना।"
"ठीक है।" काल ने कहा___"मैं यहीं आस पास ही रहूॅगा। तुम ज़रा सावधान रहना और खुद का ख़याल भी रखना।"

मैं काल की बात पर मुस्कुराया और कमरे से गायब हो गया। मैं उस जगह पर प्रकट हुआ जिस रास्ते पर महेन्द्र और रंगनाथ रहे थे। ये रास्ता सीधा शहर से बाहर की तरफ जाता था। इसी रास्ते पर आगे वो जंगल पड़ता था। मैं उस जंगल के पहले ही इन लोगों को रोंक कर इन दोनो का काम तमाम करने वाला था।

थोड़ी ही देर में मुझे सामने तरफ से आते हुए किसी वाहन की हेडलाइट की रोशनी दिखी। मैं समझ गया ये वही डग्गा है जिसमें महेन्द्र और रंगनाथ लड़कियों को लिए आ रहे थे। कुछ ही देर में वो डग्गा मेरे पास आ गया। मैं बीच सड़क पर ही खड़ा था। इस वक्त मेरे जिस्म पर चुस्त दुरुस्त लिबास था जो कि ब्लैक लेदर का था।

मेरे नज़दीक पहुॅचते ही वो डग्गा अचानक से रुका। कदाचित् उन लोगों ने मुझे देखा नहीं था। ख़ैर,जैसे ही उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ी तो उन लोगों के होश उड़ गए। कुछ देर बाद ही टुस डग्गे को झटका लगा और वो तेज़ रफ्तार से चलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा। जैसे ही डग्गा मेरी तरफ आया मैं अपनी जगह से गायब हो गया। कुछ ही देर में फिर से वो डग्गा बैक होते हुए स्पीड से आया तो मैं फिर से गायब हो गया और डग्गे के सामने ही कुछ दूरी पर प्रकट हो गया।

महेन्द्र और रंगनाथ को कदाचित इतने में ही समझ आ चुका था कि वो इस तरह में मेरा बाल भी बाॅका नहीं कर सकते थे। मैं कुछ देर तक उनके किसी ऐक्शन का इन्तज़ार करता रहा जब उस तरफ से इस बार कुछ न किया गया तो मैं डग्गे की तरफ बढ़ चला।

कुछ ही देर में मैं डग्गे के पास पहुॅच गया। ड्राइविंग डोर के पास पहुॅच कर मैने झटके से गेट खोला और उछल कर महेन्द्र का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया। मेरे ऐसा करते ही महेन्द्र की चीख निकल गई। दूसरी तरफ बैठा रंगनाथ सकते की सी हालत में था, जैसे उसके सारे देवता कूच कर गए हों।

महेन्द्र को खींच कर मैने उसे सड़क पर पटक दिया। पक्की सड़क से जब उसका जिस्म ज़ोर से टकराया तो उसके कंठ से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मैने उसे उठने का मौका नहीं दिया बल्कि लातों की ठोकरों पर रख दिया से। वो चीखता चिल्लाता रहा। इधर पीछे मुझे किसी चीज़ की आहट हुई तो मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा।

रंगनाथ हाॅथ में लोहे का मोटा सा राड लिए बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ आ रहा था। वो राड शायद डग्गे में ही उसे मिला था। मेरे पास आते ही उसने उस राड को मेरे सिर पर ज़ोर से चलाया तो मैं झुक गया। नतीजा ये हुआ कि राड मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। ऊपर उठते ही मैने ज़ोर की फ्लाइंग किक रंगनाथ की पीठ पर मारी। किक ज़ोरदार थी, इस लिए रंगनाथ के हलक से हिचकी सी निकली और वह वहीं सड़क पर मुह के बल पसरता चला गया। वो राड उसके हाथ से छूट कर सड़क पर ही कुछ दूर जा गिरा था।

मैने रंगनाथ के नाटे जिस्म को पीछे से उठाया और सिर से ऊपर तक उठा कर उसे फिर से सड़क पर पटक दिया। रंगनाथ इस बार हलाल होते बकरे की तरह दर्द से चिल्लाया। वह उठने की हालत में नहीं रह गया था। सड़क पर पड़ा वह बिन पानी के मछली की तरह तड़पने लगा था। उसके कुछ ही दूरी पर महेन्द्र सिंह पड़ा था। उसके मुह और नाक से खून बह रहा था।

"तुम दोनो को मैने पहले ही चेतावनी दे दी थी।" मैने गुर्राते हुए खतरनाक भाव से कहा___"मगर तुम दोनो ने मेरी उस चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके फिर वैसा ही घटिया काम कर दिया जिसके लिए अब तुम दोनो को मौत नसीब हो रही है।"

"हमे माफ़ कर दो बेटा।" महेन्द्र बड़ी मुश्किल से खिसक कर मेरे पैरों के पास आया, और फिर मेरे पैर पकड़ कर बोला___"हमसे ग़लती हो गई। अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे हम। बस आख़िरी बार हमे माफ़ कर दो।"

"अब तो माफ़ी देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।" मैने कठोर भाव से कहा__"अब तो इस अपराध के लिए तुम दोनो को मौत ही मिलेगी। मैं किसी भी इंसान को सिर्फ एक बार ही सुधरने का मौका देता हूॅ। दूसरी बार तो सिर्फ मौत देता हूॅ। तुम दोनो ने अपना पहला और आख़िरी मौका गवाॅ दिया इस लिए अब मरने के लिए तैयार हो जाओ।"

"नहीं बेटा नहीं।" महेन्द्र मेरे पैरों पर लगभग लोट गया था, बोला___"अरे मैं तेरा चाचा लगता हूॅ। तू अपने चाचा को कैसे मार देगा बेटा। मैं मानता हूॅ कि मुझसे ग़लती हुई है और मैने तेरे दिये हुए मौके का सही उपयोग भी नहीं किया है मगर फिर भी बस अब की बार और माफ़ कर दे हमे। हम अपनी क़सम खाकर कहते हैं कि अब दुबारा कभी ऐसा काम नहीं करेंगे।"

"जब मौत सिर पर आई तो रिश्तेदारी जोड़ने लगे तुम।" मैने ज़ोर का झटका देकर उसे अपने पैरों से दूर उछाल दिया___"सब जानता हूॅ मैं तेरे बारे में। तेरी फितरत से भी अच्छी तरह वाक़िफ हूॅ मैं। तू तो वैसा ही है जैसे कुत्ते की पूॅछ होती है। जो कभी सीधी नहीं हो सकती। मुझे पता है कि अगर तुझे ऐसे हज़ार मौके भी दे दिये जाएॅ तब भी तू ऐसा ही घटिया काम करेगा।"

"अब नहीं करूॅगा बेटा।" महेन्द्र सिंह एक बार मेरे पास आकर घुटनों के बल बैठ गया, बोला___"और अगर करता हुआ पाया जाऊॅ तो तू बेझिझक मुझे जान से मार देना। मगर इस बार मुझे माफ़ कर दे।"

"हाॅ राज बेटा।" रंगनाथ भी वहीं पर आ गया था, बोला___"बस आख़िरी बार और माफ़ दो हमे। हम सच कहते हैं, अब से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो ग़लत हो।"
"तुम दोनो चाहे जितनी रहम की भीख माॅग लो मुझसे।" मैने कहा___"उससे मेरे फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं अपना उसूल और सिद्धान्त नहीं तोड़ता। इस लिए तुम दोनो को मेरे हाथों अब मौत से कोई नहीं बचा सकता।"

"ग़लतफहमी है तुम्हारी लड़के।" सहसा तभी एक नारी आवाज़ गूॅजी वहाॅ पर। मैने पलट कर देखा तो कुछ ही दूरी पर कृत्या खड़ी थी। कृत्या पर जैसे ही महेन्द्र और रंगनाथ की नज़र पड़ी तो उन दोनो में जाने कहाॅ से जान आ गई कि दोनो ही उठ कर खड़े हो गए और भागते हुए वो दोनो कृत्या के समीप पहुॅच गए। मैने उन दोनो की तरफ देखा तो अब उनके चेहरों के भाव बदल चुके थे।

"मौत तो अब तेरी होगी बेटा।" महेन्द्र ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"अपनी शक्तियों का बड़ा प्रदर्शन कर रहा था न तू उस दिन। अब कृत्या से मुकाबला करके दिखा। अब पता चलेगा तुझे ताकत और शक्ति क्या होती है?"

"मैने कहा था न महेन्द्र सिंह।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"कि तुम दोनो को अगर हज़ार मौके भी दिये जाएॅ तब भी तुम दोनो सुधर नहीं सकते। अपनी इस अम्मा के आ जाने से तुम जो शेर बन रहे हो न उसका भी पता चल जाएगा तुम्हें।"

"बहुत बड़ी बड़ी बातें करता है लड़के।" कृत्या ने कहा___"मगर यहाॅ बड़ी बड़ी बातों से जंग नहीं जीती जाती। उसके लिए मुकाबला करना होता है। अभी तक तो तू कमज़ोरों से मुकाबला कर रहा था, अब मुझसे कर मुकाबला।"

"ज़रूर।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर सबसे पहले वार करने का मौका मैं तुम्हें ही देता हूॅ कृत्या। क्योंकि मेरे वार के बाद तो तुम्हारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा।"

कृत्या मेरी इस बात से तिलमिला गई। ऑखों में गुस्से की ज्यादती के कारण खून उतर आया उसके। अपने हाॅथ में पकड़ी एक छड़ी को उसने मेरी तरफ किया। उसकी छड़ी से एक आग का गोला निकल कर मेरी तरफ बढ़ा। मैं अपनी जगह पर शान्त खड़ा रहा। वो गोला जैसे ही मेरे पास आया वैसे ही मेरे चारो तरफ एक सुरक्षा कवच बन गया। जिससे उसका वो गोला टकराते ही नस्ट हो गया।

अपने गोले के नस्ट होते ही कृत्या हैरान रह गई। उसने तुरंत ही ऑखें बंद करके मुख से कुछ बुदबुदाया और फिर ऑखें खोल कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। छड़ी से बिजली की तरंगे निकल कर मेरी तरफ बढ़ी। मगर मेरे चारो तरफ बने सुरक्षा कवच से टकराकर वो बिजली की तरंगें भी नस्ट हो गईं।

महेन्द्र और रंगनाथ ये सब ऑखें फाड़े देख रहे थे। उधर कृत्या ने फिर से कुछ बुदबुदा कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। इस बार छड़ी से ढेर सारे पत्थर निकले और उड़ते हुए मेरी तरफ आए। मगर सुरक्षा कवच से टकरा वो सारे पत्थर भी नस्ट हो गए। ये सब देख कर कृत्या फिर हैरान हुई।

मैं चुप चाप सुरक्षा कवच के भीतर खड़ा उसका ये तमाशा देख रहा था। इस बार कृत्या ने छड़ी को अपने माथे से लगाया और ऑखें बंद कर कुछ बुदबुदाने लगी। कुछ ही देर में वातावरण एकदम से बदलने लगा। हवा जो अब तक सामान्य थी वो अब तीब्र वेग से चलने लगी थी। देखते ही देखते हवा की तीब्रता इतनी बढ़ गई कि उसने भयंकर ऑधी तूफान का रूप ले लिया। आस पास के पेड़ पौधे ज़ोर ज़ोर से हिलते हुए टूट कर गिरने लगे।

तभी मैने देखा कि कृत्या के चारो तरफ काला धुऑ छाने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ इतना छा गया कि कृत्या उस धुएॅ में पूरी तरह ढॅक गई। अचानक ही वो धुऑ बड़ी तेज़ी से गोल गोल घूमने लगा। आसमान में भयंकर काले बादल छा गए और उस पर बिजलियाॅ कड़कने लगीं। गोल गोल घूमता हुआ वो धुऑ ऊपर की तरफ उठने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ छटने लगा। धुऑ जब पूरी तरह छॅट गया तो मैने देखा कि वहाॅ पर बहुत ही भयानक चेहरे वाली कोई राक्षसिनी खड़ी थी। उसका आकार लगभग बीस या बच्चीस फुट से कम न था।

महेन्द्र और रंगनाथ अपने इतने समीप उस बला को देखते ही थर थर काॅपने लगे। उधर भयानक चेहरे व आकार वाली वो राक्षसिनी ज़ोर का अट्टहास लगाते हुए तथा मेरी तरफ देखते हुए अपना मुह खोल दिया। नतीजतन उसके मुख से भयंकर आग निकलने लगी। किन्तु उसकी वो आग मेरे सुरक्षा कवच से टकरा कर नस्ट हो गई। उसके बाद तो कृत्या ने बार बार कोई न कोई उपाय किया जिससे वो मुझे मार सके मगर वो कुछ न कर सकी। इस बात से उसे बेहद गुस्सा आया और वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ी। मैने भी अपने चारो तरफ बने सुरक्षा कवच को हटा दिया और उससे खुल कर मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।

मैने कुछ ही पल में अपना आकार बढ़ा लिया और उसके जितना लम्बा हो गया। तीब्र वेग में भागते हुए वो जैसे ही मेरे पास आई मैने पूरी शक्ति से उसके चेहरे पर एक मुक्का जड़ दिया। परिणामस्वरूप वो उतनी ही तेज़ी से पीछे की तरफ उड़ते हुए गई और एक तरफ लगे मोटे से पेड़ से जा टकराई। पेड़ से टकराते ही वो पेड़ को तोड़ते हुए उसके ऊपर गिरी। मैं भागते हुए उसके पास गया। वो उठने की कीशिश कर रही थी। उसके मुख से बड़ी बयानक आवाज़ें निकल रही थी गुर्राने की। उसके पास पहुॅच कर मैने अपने दाहिने हाॅथ को हवा में किया तो मेरे हाथ में एक तेज़ रोशनी के साथ एक तलवार प्रकट हुई।

उस चमचमाती हुई तलवार को मैने घुमा कर कृत्या के सीने में दिल वाले स्थान पर घोंप दिया। राक्षसिनी बनी कृत्या के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ें निकलने लगी। उसके दिल वाले स्थान पर तलवार के घुसते सी उसका सम्पूर्ण जिस्म जलने लगा। वो ज़ोर ज़ोर से चीखने चिल्लाने लगी। उसके पूरे जिस्म से गाढ़ा काला धुऑ निकलते हुए उससे दूर जाने लगा था।

कुछ ही देर में वो जल कर खाक़ में मिल गई। ये सब देख कर महेन्द्र और रंगनाथ सकते में आ गए। कृत्या का ये हाल देख कर महेन्द्र और रंगनाथ की घिग्गी सी बॅध गई थी। कृत्या को खाक़ में मिलाने के बाद मैं पलटा। मेरी नज़र भागते हुए महेन्द्र और रंगनाथ पर पड़ी।

मैं एक दो क़दम में ही उन दोनो के पास पहुॅच गया। वो दोनो मुझे बिलकुछ छोटे से बच्चे की तरह दिख रहा थे। मैने हाॅथ बढ़ा कर उन दोनो को एक साथ ही मुट्ठी में पकड़ लिया। वो दोनो डर व भय से बुरी तरह चीखे जा रहे थे। उन दोनो को अपने चेहरे के पास लाकर मैने उनकी तरफ देखा।

"मौत से जितना भागोगे वो उतना ही तुम्हारे क़रीब आएगी मूर्ख।" मैने कहा___"मौत नाम की खूबसूरत बला से कोई नहीं बच सकता।"
"हमें छोंड़ दो।" दोनो एक साथ गिड़गिड़ाने लगे___"हमे माफ़ कर दो। हम कभी ऐसा काम नहीं करेंगे। बस एक बार हम पर रहम कर दो।"

उन दोनो के इस तरह गिड़गिड़ाने से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले इन लोगों का चेहरा देखते ही मुझ पर गुस्सा छा गया। मैने अपनी मुट्ठी में पकड़े उन दोनो को मुट्ठी को कस कर दबा कर चटनी बना दिया। दोनो किसी टमाटर की तरह दबाव लगते ही फट कर चटनी बन गए और उनकी प्राण पखेरू उनके जिस्मों से निकल कर भाग गए।

मुट्ठी खोल कर मैने उन दोनो को एक तरफ उछाल दिया और वहीं पेड़ के पत्तों से अपने हाॅथ की हथेली पर फैले उन दोनो के खून को साफ कर लिया। उसके बाद मैने अपना आकर छोटा कर लिया। कुछ देर पहले जो वातावरण भयावह हो गया था वो अब बिलकुल सामान्य हो गया था। तीनो का काम तमाम करने का बाद मैं डग्गे के पास आया और डग्गे की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर उसे स्टार्ट किया। डग्गे को वापस मोड़ कर मैं चल दिया माधवगढ़ की तरफ। शहर की आबादी के भीतर पहुॅच कर मैने डग्गे को ऐसे स्थान पर खड़ा किया जहाॅ पर सड़क के किनारे एक टेलीफोन बूथ लगा हुआ था।

डग्गे से उतर कर मैं उस टालीफोन बूथ के अंदर गया और अंदर रखे फोन पर पुलिस का नंबर डायल कर दिया। कुछ देर घण्टी बजती रही। उसके बाद उधर से एक आवाज़ उभरी। जो कह रहा था___"इंस्पेक्टर मेघनाद स्पीकिंग हेयर।"

"जिन लड़कियों के गायब होने की ख़बर आज तुमने अख़बार में पढ़ी थी।" मैने मोटी आवाज़ बना कर कहा___"वो सब लड़कियाॅ इस वक्त गली नंबर सत्रह के पास खड़े एक फौजी डग्गे में हैं।"

"कौन बोल रहे हो तुम?" उधर से मेघनाद की आवाज़ आई।
"इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए इंस्पेक्टर।" मैने मोटी आवाज़ में कहा__"मेरा काम तम्हें सूचना देना था, सो दे दिया। अब ये तुम्हारा काम है कि तुम यहाॅ आकर इन सभी लड़कियों को ले जाकर उन्हें उनके परिवार वालों को सौंप दो। गुड बाए।"

इतना कह कर मैने फोन रखा और बूथ से बाहर आकर मैं सड़क के उस पार एक ऐसे स्थान पर छिप गया जहाॅ से मैं बूथ के पास खड़े उस फौजी डग्गे को अच्छी तरह देख सकूॅ, किन्तु मुझे कोई न देख सके। ख़ैर, काफी देर बाद एक पुलिस जिप्सी आकर उस डग्गे के सामने रुकी। उसमें से इंस्पेक्टर मेघनाद और उसके साथ आए हुए कुछ पुलिस के शिपाही उतरे। मेघनाद के निर्देश पर उन शिपाहियों ने डग्गे की तलाशी लेना शुरू कर दिया। डग्गे के पीछे ढॅके कपड़े को हटा कर अंदर की तरफ दो शिपाहियों ने देखा, दोनो के हाॅथ में बड़ी सी टार्चें थी। अंदर देखने के तुरंत बाद ही वो दोनो शिपाही बाहर एक तरफ खड़े मेघनाद की तरफ देखते हुए ज़रा ऊॅची आवाज़ में कहा___"सर, यहाॅ तो सच में काफी सारी लड़कियाॅ मौजूद हैं। लेकिन लगता है ये सब बेहोशी की हालत में हैं अभी।"

"ओह! चलो ठीक है।" मेघनाद ने उन दोनो से कहा___"एक काम करो इस फौजी डग्गे को सीधा पुलिस स्टेशन ले चलो। मैं तुम लोगों के पीछे पीछे आता हूॅ।"
"ठीक है सर।" दोनो शिपाहियों ने एक साथ कहा और दोनो एक एक तरफ से डग्गे के आगे चढ़ गए। कुछ ही देर में वो डग्गा पुलिस जिप्सी के साइड से आगे बढ़ गया।

इधर बीच सड़क पर खड़े इंस्पेक्टर मेघनाद की नज़र टेलीफोन बूथ पर गई तो वो बूथ की तरफ बढ़ गया। बूथ के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद वह बूथ से बाहर आया और सड़क के दोनो तरफ बड़ी बारीकी से देखने लगा। अपने दाहिने हाथ में पकड़ मे पुलिसिया रुल को वह बाईं हथेली पर हल्के हल्के मारता भी जा रहा था। काफी देर तक वह इधर उधर जाकर देखता रहा। उसके बाद वह अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गया। जिप्सी में बैठने के बाद भी उसने एक बार दोनो तरफ खोजी दृष्टि से देखा। फिर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और गियर में डाल कर उसने जिप्सी को यूटर्न दिया और जिस तरफ से आया उस तरफ जिप्सी को दौड़ाता चला गया।

इंस्पेक्टर मेघनाद के जाने के बाद झाड़ियों के पास छिपा मैं भी गायब हो गया और सीधा घर में माॅ के कमरे में प्रकट हुआ। मैने देखा माॅ अभी भी गहरी नींद में सोई पड़ी थी। मैं भी आहिस्ता हे बेड में चढ़ा और चुपचाप लेट गया। इस वक्त मेरे जिस्म पर वही रात के कपड़े थे जिन्हें पहने मैं यहाॅ से जाने से पहले सो रहा था। मेरे मन में अभी कुछ समय पहले हुई वो घटना घूमती रही। उसके बाद मैंने अपने मन को सभी तरह के विचारों से मुक्त कर सो गया। अगली सुबह हम सबको हिमालय के लिए भी निकलना था। वहाॅ गुरूदेव से मिल कर कुछ बातों के लिए मार्गदर्शन लेना था मुझे।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,


अपडेट की देरी के लिए आप सबसे मुआफ़ी चाहता हूॅ। मगर इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी दोस्तो। दरअसल अपडेट तो मैं पहले ही लगभग पूरा लिख चुका था मगर एक ट्रेजडी हो गई मेरे साथ। जैसे ही मैने पेज ओपेन किया तो ग़लती से रिप्लाई के ऑप्शन पर मेरी उॅगली रख गई, उससे हुआ ये कि जिस बंदे के कमेंट के पास रिप्लाई के ऑप्शन पर उॅखली रखी थी उसी बंदे का कमेंट ब्रैकेट में आ गया और जो अपडेट मैने लिखा था वो सारा हट गया। यकीन मानिये दोस्तो, इस सबसे मेरा इतना ज्यादा दिमाग़ ख़राब हुआ कि लगा कि फोन को फर्स पर पटक दूॅ।

ख़ैर, अब क्या हो सकता था भला? मैने खुद के गुस्से को शान्त किया और सारा अपडेट फिर से लिखना शुरू किया। मुझे याद ही नहीं था कि मैने क्या क्या लिख डाला था पहले?


इस अपडेट के चक्कर में मैं अपनी पहली कहानी एक नया संसार का अपडेट भी नहीं लिख पाया। दोस्तो एक बार फिर से मुआफ़ी चाहता हूॅ आप सबसे। क्या करूॅ यारो, अब ग़लती तो हो ही गई।
nice update ..aakhir raj ne krutya aur mahndra ,rangnath ko maarkar un ladkiyo ko bacha hi liya ?...
 

Naik

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☆राज-रानी (बदलते रिश्ते)☆

**अपडेट** (01)


उस रात बहुत ही ख़राब मौसम था, हर तरफ अॅधेरा फैला हुआ था। मूसलाधार बारिश के साथ साथ आसमान में चमचमाती बिजलियाॅ और बादलों की भयंकर गर्जना से संपूर्ण वातावरण बेहद ही भयावह लग रहा था। ऐसा लगता था जैसे आज ही प्रलय आने वाली थी। रात के एक या दो बज रहे थे और इस वक्त घर से बाहर किसी इंसानी जीव का होना महज असंभव सी बात थी। इधर उधर लगे पेड़ पौधे हवा के तीब्र वेग से मानो जड़ से उखड़ रहे थे।

ऐसे भयंकर वातावरण में भी एक कार पक्की सड़क पर नागिन की तरह लहराती हुई दौड़ी जा रही थी। ब्लैक कलर की कार में लगे शीशों पर ब्लैक फिल्म थी जिससे अंदर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ये माधवगढ़ की सीमा थी किन्तु वो कार इस सीमा से पार होकर आगे उस जंगल की तरफ बढ़ गई जिस घनघोर जंगल में किसी को दिन में भी जाने की हिम्मत नहीं होती। लोगों का कहना है कि ये जंगल मायावी तथा भूत प्रेतों से भरा है। यहाॅ जो भी गया वो फिर कभी वापस लौटकर नहीं आया। भारत सरकार ने कानूनी रूप से इस जंगल में प्रवेश करना भी वर्जित कर रखा है। कुछ लोग कहते हैं कि इस जंगल के पेड़ पौधे भी बड़े खतरनाक हैं, ये किसी भी जीव को अपनी गिरफ्त में लेकर उसकी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं।

वो कार इसी जंगल के अंदर बेकाबू होकर आगे बढ़ती जा रही थी। कार की हेडलाइट के प्रकाश में आगे बढ़ती हुई कार अचानक ही रुक गई।

"क्या हुआ शंकर?" कार के अंदर बैठा एक शख्स कार चला रहे शंकर नाम के आदमी से अचानक ही कार रोंक देने पर पूॅछा था__"तूने गाड़ी क्यों रोंक दी?"

"अबे मैंने जानबूझ कर नहीं रोंकी है ये गाड़ी।" ड्राइविंग सीट पर बैठे शंकर ने कहा__"वो तो अपने आप ही रुक गई है।"
"अ अपने आप ही रुक गई??" दूसरा आदमी चौंका__"ये क्या बकवास कर रहा है तू? लगता है तुझे चढ़ गई है। बोला था कि अंग्रेजी न पी बल्कि अपनी देसी दारू ही पी, मगर नहीं...मेरा सुने तब न। मुफ्त की मिल रही थी न इसी लिए तो गले तक गपागप पी गया, अब भुगत साले।"

"ओए ज्यादा बकवास न कर।" शंकर ने उसे घुड़क कर कहा__"तुझे क्या लगता है ये अंग्रेजी मुझे चढ़ गई है? अरे ये साली क्या चीज़ है इसमें तो कोई नशा ही नहीं होता। तभी तो गपागप पी गया, मैं देखना चाहता था कि इसमें कोई बात है कि नहीं।"

"तो क्या समझा फिर?" दूसरे आदमी ने कहने के साथ ही अपनी सर्ट की ऊपरी जेब से एक बीड़ी का बंडल निकाला और उससे एक बीड़ी निकालकर माचिस से जलाया। फिर दो तीन गहरे कस खींचने के बाद धुआॅ छोंड़ते हुए बोला__"नशा हुआ कि नहीं?"

"घंटा नशा हुआ।" शंकर ने बुरा सा मुह बनाया__"साला फालतू में पेट ज़रू फूल गया। इससे अच्छी तो अपनी देसी ही थी, दो पउआ पिया और कचरा साफ करने वाली उस रूपा साली को जमीन में पटक कर रगड़ दिया। कसम से दीनू बड़ा मज़ा देती है साली।"

"ओए मेरा दिमाग़ न खराब कर समझा क्या।" दीनू ने आखें दिखाई__"साला खुद तो उस रंडी के मज़े ले लेता है और मुझे कभी उसकी सूरत तक नहीं दिखाई। साला दोस्त नहीं दुश्मन है तू मेरा।"

"फिक्र मत कर ये काम करके जब हम वापस चलेंगे न तो आज रात तेरा भी दिल खुश कर दूॅगा।" शंकर ने मुस्कुरा कर कहा__"अब चल ज़रा देखूॅ तो इस साली कार को। कैसे अपने आप अचानक बंद हो गई है?"

"चल मैं भी तेरे साथ ही चलता हूॅ।" दीनू ने कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतरते हुए कहा__"वैसे भी तू तो सिर्फ कार चलाना ही जानता है, जबकि मैं कार चलाने के साथ साथ कार का मिस्त्री भी हूॅ।"

"चल ठीक है तू ही देख ले कि क्या समस्या हो गई है।" शंकर वापस अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए कहा__"वैसे भी हम दोनो एक साथ कार से नीचे उतर उधर नहीं जा सकते।"

"अरे तू उसकी चिंता मत कर भाई।" दीनू ने लापरवाही से कहा__"वो बेहोश है और बेहोशी की हालत में वो कहीं नहीं जा सकता। फिर तू ये मत भूल कि वो अभी बच्चा ही है, वो इस भयावह जगह को देख कर डर जाएगा और कार से निकल कर कहीं भाग जाने का ख़याल नहीं करेगा वो।"

"तेरी बात ठीक है।" शंकर ने अजीब भाव से कार की पिछली सीट की तरफ देखा, फिर वापस पलट कर कहा__"मगर फिर भी मैं इसे यूॅ अकेला छोंड़ कर बाहर नहीं आऊॅगा। तू जल्दी से देख ले कि कार में क्या प्राब्लेम हुई है?"

"बस दो मिनट में मैं सारी प्राब्लेम को दूर कर देता हूॅ।" दीनू ने कार का बोनट उठाते हुए कहा__"तू बस देखता जा।"

दीनू ने कार का बोनट उठा कर देखा, शुकर था कि बोनट के अंदर का बल्ब जल उठा था जिससे वह अंदर की तरफ देख सकता था। बोनट के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद दीनू ने अपना सिर उठाकर शंकर से कहा__"ओए शंकर यहाॅ तो सब ठीक ही नज़र आ रहा है। तू ज़रा कार को फिर से स्टार्ट कर।"

दीनू के कहने पर शंकर ने कार की इग्नीशन पर लगी चाभी को अपने दाहिने हाॅथ से घुमाया मगर कोई आवाज़ तक न हुई। शंकर ने कई बार ऐसा किया किन्तु परिणाम वही ढाॅक के तीन पात जैसा।

"क्या हुआ?" उधर सामने दीनू ने ऊॅची आवाज़ में कहा__"साले सो गया क्या? कार स्टार्ट क्यों नहीं कर रहा?"
"अबे सो नहीं गया मैं।" शंकर ने झुॅझलाकर कहा__"ये साली स्टार्ट ही नहीं हो रही है। हैरत की बात है कोई आवाज़ तक नहीं कर रही।"

"चल छोंड़ मैं देखता हूॅ।" दीनू ने पास आते हुए कहा__"तुझसे कुछ नहीं हो सकता। साला उस रूपा को ठोंकना बस जानता है। चल हट इधर से।"

"भड़क क्यों रहा है साले?" शंकर ने ड्राइविंग सीट से हटते हुए कहा__"आ तू भी देख ले। मैं भी तो देखूॅ कि कैसे स्टार्ट करता है तू इसे?"

दीनू ने भी शंकर की तरह कई बार चाभी घुमा कर स्टार्ट करने की कोशिश की मगर कार स्टार्ट न हुई। दीनू भी ये देखकर हैरान हुआ कि इग्नीशन पर चाभी घुमाने से कोई आवाज़ तक क्यों नहीं हो रही? जबकि वह खुद देखकर आया था कि बोनट में कहीं भी कोई प्राब्लेम नहीं है।

"ये कैसे हो सकता है?" दीनू शंकर की तरफ देख कर बोला।
"साले मुझसे क्या पूॅछता है?" शंकर ने कहा__"मिस्त्री तो तू है, बड़ा बोल रहा था कि मेरे से कुछ नहीं होगा। अब क्या हुआ....माॅ चुदवा ली न अपनी।"

"अब क्या करें?" दीनू के चेहरे पर पहली बार गंभीरता के भाव नुमायां हुए__"अगर ये स्टार्ट न हुई तो हम यहाॅ से इस बच्चे को लेकर कैसे जाएंगे?"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा।" शंकर ने भी गंभीर होकर कहा__"साला दारू का नशा और बेमतलब की बातों ने काम तमाम कर दिया। समझ ही न आया कि किधर आ गए?"

"श शंकर।" दीनू ने एकाएक बुरी तरह चौंकते हुए कहा"यहाॅ पर बारिश नहीं हो रही। जबकि उधर देख, अभी भी आसमान में बिजलियाॅ कड़कने के साथ बारिश हो रही है। ये क्या चक्कर है?"

"अरे तो इसमें हैरान होने वाली क्या बात है साले?" शंकर ने कहा__"ऐसा तो होता ही रहता है। कोई जरूरी थोड़े न होता है कि अगर एक जगह बारिश हो तो उसी समय हर जगह बारिश हो।"

"मुझे बड़ा अजीब लग रहा है बे।" दीनू ने अपने चारो तरफ नज़रें घुमाते हूए कहा__"ये किस जगह आ गए हैं हम? यहाॅ तो हर तरफ भयानक जंगल और अॅधेरा फैला हुआ है।"

"अबे डर गया क्या?" शंकर ने हॅस कर कहा__"अबे साले मेरे रहते हुए तुझे कुछ नहीं होगा।"

अभी दीनू कुछ बोलने ही वाला था कि एक भयानक आवाज़ सुन कर चुप रह गया।

"ओए दीनू ये कैसी आवाज़ थी?" शंकर ने चौंकते हुए कहा__"ऐसा लगा जैसे कोई उल्लू चीखा हो।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" दीनू ने भयभीत होते हुए कहा__"मैं तो कहता हूॅ भाग लेते हैं यहाॅ से।"

"अबे डरता क्यों है?" शंकर ने दिलेरी से कहा__"मैं हूॅ न।"
"साले डरने वाली बात है इस लिए डर रहा हूॅ।" दीनू ने कहा__"ज़रा सोच यहाॅ आते ही हमारी कार अचानक बंद हो गई, जबकि उसमें कोई ख़राबी नहीं दिखी मुझे। हम यहाॅ इस भयानक अॅधेरे जंगल में फॅस गए हैं। कुछ होश है तुझे?"

"तो तू क्या चाहता है अब?" शंकर ने कहा__"हम यहां से निकल चलें?"
"अबे यहाॅ रुकने का कोई मतलब भी क्या है?" दीनू ने कहा__"मुझे किसी अनहोनी की आशंका हो रही है। चल यहाॅ से मैं तेरे हाॅथ जोड़ता हूॅ चल जल्दी।"

तभी किसी के रोने की आवाज़ सुन कर दोनो की हवा निकल गई। रोने की आवाज़ किसी औरत की थी। ऐसा लगा था जैसे वह किसी के द्वारा बुरी तरह तड़पाई जा रही हो।

"अबे यहाॅ तो हमारे अलावा कोई औरत भी है।" शंकर कह उठा__"लगता है किसी मुसीबत में है।"
"तो तू क्या उस औरत को उसकी मुसीबत से बचाने जाने वाला है?" दीनू ने अजीब भाव से कहा__"साले समझता क्यों नहीं कि यहाॅ कोई औरत नहीं है और न ही कोई मुसीबत में है। यहाॅ तो हम खुद ही मुसीबत में हैं।"

शंकर कुछ बोलने ही वाला था कि उस रोने की आवाज़ फिर से आई मगर इस बार पास से आई थी। दोनो की हालत खराब होने लगी। कार की हेडलाइट में सामने का मंज़र नज़र आ रहा था। जहाॅ घने पेड़ पौधे और झाड़ियाॅ दिख रही थी। साथ ही अजीब सा धुआॅ जैसा जंगल की ज़मीन पर मॅडराता नज़र आ रहा था। रोने की आवाज़ निरंतर आ रही थी। तभी हेडलाइट की रोशनी में सामने कुछ दूरी पर एक औरत नज़र आई। सफेद पोशाक पहने, बाल बिखरे हुए थे उसके। चेहरा दूसरी तरफ था, इन लोगों की तरफ उसकी पीठ थी। उस औरत के हाॅथ किसी चीज़ को लिए हुए जान पड़ते थे क्योंकि वो बार बार अपने दोनों हाॅथों को कभी ऊपर नीचे करती तो कभी दाएॅ से बाएॅ करती। वह उसी मुद्रा में निरंतर रोए जा रही थी। उसके रोने की आवाज़ इंसानी कलेजा चीरने के लिए काफी थी। अचानक ही उसका रोना बंद हो गया, साथ ही वह अपना सिर नीचे किए हुए कुछ करती नज़र आई फिर अचानक ही वह अपने दोनो हाथों को दाएं बाएं हिलाते हुए पुनः रोने लगी।

दीनू और शंकर साॅस बाॅधे एकटक उसी की तरफ देख रहे थे।

"अबे ये क्या चक्कर है?" शंकर कह उठा__"चल देखें ज़रा कि उसे क्या तक़लीफ़ है?"
"अबे तेरा दिमाग़ फिर गया है क्या?" दीनू ने कहा__"जो तू उसकी तकलीफ़ देखने जाने की बात कर रहा है। मैं तो कहता हूॅ कि यहाॅ से निकल लेते हैं वर्ना कहीं हम लोग किसी ऐसी मुसीबत न फॅस जाएॅ कि बाद में उससे बच कर निकल भी न पाएॅ।"

"इस बच्चे को यहीं छोंड़ देगा क्या?" शंकर ने कहा__"भूल मत कि बाॅस ने क्या कहा था?"
"बाॅस को मार गोली।" दीनू कह उठा__"जब हम न ज़िंदा बचेंगे तो कोई क्या कर लेगा भला?"

"ठीक है मगर एक बार देख तो ले उसे कहीं होश में तो नहीं आ गया वह?" शंकर बोला__"होश में आकर अगर उसने हमें पहचान लिया तो मुसीबत हो जाएगी।"

"पहचान भी लिया तो अब क्या कर लेगा वो?" दीनू ने कहा__"उसे तो मरना ही है अब। वहाॅ नहीं तो यहीं सही। बाॅस को बता देंगे कि हमने बच्चे का काम तमाम कर दिया है।"

"ये बड़े लोग भी कितने कमीने होते हैं न दीनू।" शंकर कह उठा__"सोचने वाली बात है कि सिर्फ अपनी खुशी के लिए ये किसी की भी जान ले लेते हैं। अब इस बच्चे को ही देख ले...भला इस मासूम की किसी से क्या दुश्मनी मगर फिर भी किसी और की दुश्मनी में खुद ही मौत के हवाले आ पहुॅचा।"

"ज्यादा साधू न बन।" दीनू ने कहा__"हम लोगों के मुख से ऐसी बातें निकलकर शोभा नहीं देती। हम सिर्फ पैसों से प्यार करते हैं। पैसों के लिए ही इस बच्चे को इसके स्कूल से उठाया है।"

अभी ये लोग बातें ही कर रहे थे कि अचानक ही कार के ऊपर कोई कूदा। जिससे कार बुरी तरह हिल गई साथ ही कार के अंदर बैठे ये दोनों भी। दोनो को समझ न आया कि ये क्या हुआ?

सामने नज़र पड़ी तो चौंक पड़े क्योकि हेडलाइट की रोशनी में कुछ दूरी पर पहले दिख रही वो औरत अब वहाॅ नहीं थी। कार के ऊपर से अजीब तरह के गुर्राने की आवाज़ आ रही थी जैसे कोई जंगली भेड़िया कार की छत पर मौजूद हो। इस सोच ने ही दोनो की हालत खराब कर दी।

अभी ये दोनो अपने होशो हवाश में आए भी न थे कि सामने नज़र आ रहे पेड़ एकाएक ही अपनी जगह से चलकर इनकी तरफ बढ़ने लगे। दीनू और शंकर ये देख बुरी तरह डर गए। आॅखें हैरत और भय से फट पड़ी तथा चेहरा पीला ज़र्द पड़ता चला गया। कार के ऊपर मौजूद कोई चीज़ ऊपर से नीचे कूद कर दरवाजे के पास आ गई।

कार के दरवाजे अंदर से बंद थे तथा शीशों पर चढ़ी काली फिल्म की वजह से उस तरफ का ठीक से कुछ नज़र न आया कि कार की छत से नीचे कूदने वाला कौन था किन्तु बाहर से गुर्राने की आवाज़ ज़रूर आ रही थी। इधर सामने हेडलाइट की रोशनी थी इस साफ साफ दिख रहा था कि कई सारे पेड़ चलकर कार के नजदीक आ चुके थे।

दीनू और शंकर की ये सब देखकर घिग्घी बॅध गई थी। थर थर काॅपते हुए दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे। तभी उन दोनो की ये देख कर चीख निकल गई कि हेडलाइट की रोशनी में वही बच्चा खड़ा है जिसे वो किडनैप करके तथा कार की पिछली सीट पर बेहोश करके लिटाया हुआ था। दीनू और शंकर ने बड़ी मुश्किल से गर्दन घुमाकर पिछली सीट की तरफ देखा। और दोनो ये देख कर उछल पड़े कि बच्चा पिछली सीट से गायब है। पिछली सीट से गर्दन घुमाकर जब फिर से सामने की तरफ देखा तो एक बार फिर वो दोनो उछल पड़े। दोनो के मुख से चीख निकल गई। सामने रोशनी में बच्चे के साथ वही औरत खड़ी थी जिसका चेहरा पूरी तरह आग में जला हुआ नज़र आ रहा था जबकि औरत की गर्दन से नीचे का पूरा हिस्सा किसी खूबसूरत औरत की तरह ही सही सलामत दिख रहा था। औरत और बच्चे के पीछे ही वो सारे पेड़ आकर खड़े हो गए थे।

तभी कार के बगल वाले दरवाजे की खिड़की का शीशा झनाक से टूटा और कोई चीज़ अंदर की तरफ आई। दीनू ड्राइविंग सीट पर था इस लिए वह डर के मारे जल्दी से ड्राइविंग डोर खोलकर बाहर कूद गया जबकि पीछे से शंकर की ह्रदय विदारक चीख वातावरण में गूॅज गई। शंकर को किसी चीज़ ने पकड़कर कार से बाहर की तरफ खींच लिया। उधर दीनू शंकर की चीख सुनकर पहले तो ठिठका फिर एक तरफ को दौड़ पड़ा मगर तभी किसी चीज़ से टकरा कर वह नीचे ज़मीन पर गिर गया। डर के मारे उसका पेशाब निकल गया। किसी तरह हिम्मत जुटा कर वह उठा और दूसरी तरफ दौड़ पड़ा।

इधर शंकर को किसी ने खींचकर बाहर हेडलाइट की रोशनी की तरफ फेंक दिया। शंकर मौत के डर से थर थर काॅपते हुए जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ कि तभी उसके सामने कोई आकर खड़ा हो गया। शकल सूरत इंसानों जैसी ही थी किन्तु चेहरा बिलकुल सफेद तथा आंखें लाल थीं उसकी। शंकर को देखकर उसने अजीब से अंदाज़ में अपना मुह खोला। शंकर ये देखकर बुरी तरह चीखा कि वह कोई शैतान था। उसके मुह खोलते ही उसके ऊपर के अगल बगल वाले दाॅत जो बाॅकी सभी दाॅतों से बड़े थे वो चमक उठे थे।

उस सफेद चेहरे और बड़े बड़े नुकीले दाॅतों वाले ने झपट कर शंकर के सिर को दोनो हाॅथों से पकड़ कर एक तरफ को झुकाया और खुद झुक कर उसने अपना मुह फैलाते हुए शंकर की गर्दन के बाएं साइड किसी सर्प की मानिंद डस लिया। शंकर की दर्द भरी चीख निकल गई। वह छटपटाने के सिवा कुछ न कर सका और कुछ ही पल में उस शैतान द्वारा छोंड़ देने पर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया। कुछ देर बुरी तरह तड़पने के बाद शान्त पड़ गया। जबकि उसकी गर्दन में चाबने के बाद शैतान के अजीब भाव से मुह फैलाते हुए औरत और बच्चे की तरफ देखा। उसके दोनो नुकीले दाॅत शंकर के खून से सने हुए थे।

तभी वातावरण में एक चीख गूॅजी। जिसे सुनकर शैतान के साथ साथ वह औरत बड़े ही अजीब ढंग से मुस्कराई।

"लगता है इसका दूसरा साथी काया के द्वारा शिकार कर लिया गया है।" औरत ने हॅस कर कहा।
"हमारे क्षेत्र में आने वाला ज़िंदा बच कर नहीं जा सकता मेनका।" शैतान ने ठंडे स्वर में कहने के साथ ही बच्चे की तरफ देखा__"अब इस बच्चे का भी ताज़ा खून पीकर इसे इसके जीवन से मुक्ति दे दिया जाए।"

"नहीं वीर।" मेनका ने कहा__"ये बच्चा हमारा शिकार नहीं बनेगा।"
"ये क्या कह रही हो तुम?" वीर ने चौंकते हुए कहा__"हमारे क्षेत्र में तथा हमारे बीच किसी इंसान का क्या काम?"

"ये अभी बच्चा है वीर।" मेनका ने कहने के साथ ही अपना रूप बदल लिया, अब उसका आग में जला हुआ नहीं बल्कि बेहद खूबसूरत नज़र आने लगा था, बोली__"मगर ये बहुत खास है। इसमें आम इंसानों वाली बात नहीं है बल्कि इसमें कुछ अलग बात है जो हमसे भी ऊपर है। इसके खून की गंध इंसानी खून के गंध जैसी नहीं है।"

"हाॅ ये तो मैंने भी महसूस किया है लेकिन हम इसे जीवित छोंड़ भी तो नहीं सकते।" वीर ने कहा__"क्योंकि ऐसा करने पर तुम्हारे पिता विराट हम पर गुस्सा करेंगे और मुमकिन हैं मृत्युदंड भी दे दें।"

"फिर क्या करें?" मेनका ने परेशान लहजे से कहा__"ये अभी हमारे संमोहन में है। किन्तु सम्मोहन से बाहर होते ही ये बच्चा इस भयानक जंगल के वातावरण को देख कर भय से मर भी सकता है या फिर इस जंगल के खूॅखार जानवरों द्वारा मारा भी जा सकता है।"

"क्या हुआ तुम लोग किस बारे में बातें कर रहे हो?" तभी वहाॅ पर एक लड़की की आवाज़ गूॅजी।
"हम इस बच्चे के विषय में बातें कर रहें हैं काया।" मेनका ने कहा।

"अरे तुम लोगों ने इसका अभी तक शिकार नहीं किया?" काया ने बच्चे को सही सलामत देख चौंकते हुए कहा__"हैरत की बात है।"

मेनका ने काया को बच्चे के बारे में सब कुछ बता दिया जिसे सुनकर काया हैरान रह गई।

"तो अब क्या सोचा है तुम लोगों ने इसके लिए?" काया ने कहा__"ये तो पक्की बात है कि कोई जीवित इंसान हम वैम्पायर के बीच नहीं रह सकता। पिता जी को इस बारे में पता चला तो अच्छा नहीं होगा हमारे लिए।"

"क्यों न हम लोग इस बच्चे को विराट जी के पास ले चलें?" वीर ने कहा__"वही तय करेंगे कि इस बच्चे का क्या करना है?"
"बात तो तुम्हारी ठीक है वीर।" मेनका ने कहा__"लेकिन पिता जी के स्वभाव को देख कर ऐसा करना उचित नहीं होगा। तुम सब तो जानते हो उनके ख्वाब के बारे में। वो इस दुनिया पर राज करना चाहते हैं, और इस बच्चे की वजह से उनका ख्वाब ज़रूर पूरा हो जाएगा।"

"ये तो अच्छी बात है न।" काया ने मुस्कुराकर कहा__"फिर सारी दुनियाॅ में हम वैम्पायर का ही राज़ होगा।"
"नहीं काया।" मेनका ने कहा__"इस दुनिया में सभी जीव को जीने का अधिकार है। भगवान की बनाई इस दुनियाॅ में सबका अपना अस्तित्व होना भी ज़रूरी है। पिता जी ये सब नहीं सोचते बल्कि वो इस मासूम बच्चे की अद्भुत शक्तियों द्वारा संसार के सभी दूसरे प्राणियों को मार कर संसार में सिर्फ हम वैम्पायर लोगों का ही अस्तित्व शेष रखेंगे। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।"

"तुम तो आज बड़ी आदर्शवादी बातें कह रही हो मेनका।" काया ने कहा__"जबकि अभी थोड़ी देर पहले हमने इंसानों का ही शिकार करके उन्हें खत्म कर दिया है, और तुमने खुद आज तक जाने कितने इंसानों की जानें ली हैं, उनका क्या?"

"मैंने जिनकी भी आज तक जानें ली हैं वो सब इस संसार के पापी लोग थे काया।" मेनका ने कहा__"वीर इस बात का साक्षी है कि मैंने कभी किसी मासूम या निर्दोश की जान नहीं ली।"

"मेनका सच कह रही है काया।" वीर ने कहा__"हम कुछ ही ऐसे वैम्पायर हैं जो ऐसी सोच वाले हैं वर्ना बाॅकी सब तो किसी का भी खून पीने से नहीं चूकते।"

"तो फिर ठीक है आज के बाद मैं भी अपनी बहन की तरह ही किसी भी मासूम या निर्दोश का खून नहीं पीऊॅगी।" काया ने कहा__"ये मेरा वचन है और अब से हम तीनों एक ही सोच और विचार के होंगे।"

"तीनों नहीं दोस्तो।" तभी एक अन्य आवाज़ वहाॅ गूॅजी__"बल्कि चार, तुम लोग रिशभ को कैसे भूल सकते हो?"

"अरे भाई तुम यहाॅ थे नहीं इस लिए ऐसा बोल गए।" वीर ने कहा__"अब आ गए हो तो हम चारों हो गए।"

"गुड, अब बताओ क्या बातें कर रहे थे तुम लोग?" रिशभ ने पूछा।

तीनो ने सब कुछ बता दिया रिशभ को बच्चे के विषय में। सुनकर रिशभ ने कहा__"मेरी मानो तो इसे इस जंगल से बाहर इसकी ही दुनियाॅ में छोंड़ आओ।"

"पर सवाल ये है कि ऐसे कैसे छोंड़ आएं?" मेनका ने कहा__"हम ये नहीं जानते कि ये बच्चा इंसानी दुनियाॅ में किसका बच्चा है? और वो लोग इसे किन हालात में यहाॅ लाए थे?"

"वैसे ये पता करना कोई मुश्किल नहीं है कि ये बच्चा किसका है?" रिशभ ने कहा__"वो तो हम पता कर लेंगे अपनी शक्तियों से किन्तु मेरे दिमाग़ में कुछ खास विचार उत्पन्न हुआ है इसके लिए।"

"कैसा विचार?" काया ने चौंकते हुए पूछा।
"यही कि ये बच्चा अपना प्रारब्ध खुद बनाए।" रिशभ ने कहा__"इसे इसके माता पिता से दूर किसी दूसरी जगह पहुॅचा दिया जाए। ये अपने बलबूते पर अपना भाग्य और अपनी पहचान खुद बनाएगा भी तथा अपनों को ढूॅढ़ेगा भी।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" मेनका ने हैरत से कहा__"इतने छोटे मासूम से बच्चे को जानबूझ कर दुनियाॅ की ठोंकरें खाने के लिए यूॅ ही छोंड़ दिया जाएगा? नहीं नहीं...ये तो इस मासूम के साथ महापाप और महाअत्याचार है रिशभ।"

"जैसा कि तुमने ही कहा कि ये बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है बल्कि इसमें अद्भुत बात है।" रिशभ ने कहा__"तो इसका क्रियाकलाप भी तो बचपन से अद्भुत ही होना चाहिए न। और तुम इसकी फिक्र क्यों करती हो कि ये दुनियाॅ में बेसहारा रहेगा। हम चारो हैं न इसकी देख रेख के लिए।"

"आख़िर मतलब क्या है तुम्हारा?" वीर कह उठा__"हम सब किस तरह इसकी देख रेख करेंगे जबकि हम अपनी दुनियाॅ से बाहर बहुत कम ही निकलते हैं। हम बाहर की इंसानी दुनियाॅ में दिन के उजाले में नहीं रह सकते। फिर कैसे इस बच्चे की देख रेख करेंगे?"

"दिन के उजाले में न सही रात के अॅधेरे में तो देख रेख कर सकते हैं न?" रिशभ ने कहा__"और वैसे भी हमें कौन सा इसके पास चौबीस घंटे रहना है। देख रेख का मतलब है कि दूर से हम देखेंगे कि ये बच्चा अपने बलबूते पर कैसे आगे बढ़ता है?"

"चलो ये समझ आ गया कि तुम क्या करना चाहते हो।" मेनका ने कहा__"किन्तु अब सवाल ये है कि इस बच्चे को आख़िर रखेंगे कहाॅ?"

"बस देखते जाओ।" रिशभ ने मुस्कुराकर कहा।
"कुछ भी करो रिशभ।" मेनका ने अजीब भाव से कहा__"लेकिन एक बात हमेशा याद रखना कि अगर इस बच्चे को किसी भी तरह की तकलीफ हुई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"ये तो सच कहा तुमने।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"तुमसे बुरा वास्तव में कोई नहीं है।"
"क्या कहा???" मेनका की भवें तन गईं__"ज़रा फिर से कहना तो।"

"अरे नहीं यार।" रिशभ ने हड़बड़ा कर कहा__"कुछ नहीं मैं तो बस ऐसे ही।"
"तो इस बच्चे को कब ले चलना है इंसानी दुनियाॅ में?" वीर ने कहा।

"अभी ले चलेंगे।" रिशभ ने कहा__"मेरे मन में एक अच्छी जगह है जहाॅ इसे रखना बिलकुल उचित होगा।"
"कौन सी जगह है वो?" काया ने उत्सुकता से पूछा।
"हिमालय।" रिशभ ने बताया।
"हिमालय??" सब एक साथ चौंके थे__"हिमालय क्यों?"

"ऐसे अद्भुत बच्चे को हिमालय में ही रखना उचित है।" रिशभ ने कहा__"वहाॅ पर अध्यात्मिक चीज़ें हैं जिसकी आवश्यकता इस बच्चे को पड़ेगी।"

रिशभ की बात से सब चुप हो गए। कदाचित उनमें से सबको रिशभ की बात और सोच सही लगी थी। फिर क्या था...वो चारो ही उस बच्चे को लेकर इंसानी दुनियाॅ में पहुॅच गए। रास्ते में वीर ने कहा कि हम हिमालय जैसी पवित्र जगह पर कैसे जाएंगे, संभव है वहाॅ पर हम पर ही न कोई मुसीबत आ जाए आखिरकार हैं तो हम शैतान ही। वीर की इस बात पर रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा कि हम भले ही शैतान हैं मगर सोच और विचार से ग़लत नहीं हैं और वैसे भी हम एक अच्छे कार्य के लिए पाक नीयत से ही वहाॅ जा रहे हैं। इस लिए हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।


कौन था वो बच्चा?

बच्चे को किस वजह से किडनैप किया गया था?

बच्चे के माॅ बाप कौन थे तथा बच्चे के गुम हो जाने पर उन पर इसका क्या असर हुआ?

बच्चे में ऐसी क्या खास बात थी कि वैम्पायर लोग उसे जान से मारने का खयाल न करके उसे हिमालय में ले गए?

हिमालय में बच्चे के साथ क्या क्या हुआ?

हिमालय में रह कर बच्चे को अध्यात्म का क्या और क्यों असर हुआ?

बड़ा होकर उस बच्चे ने किस तरह का कार्य करके अपनी पहचान बनाई?

क्या वो बच्चा बड़ा होकर अपने माॅ बाप से मिल सका, यदि हाॅ तो कैसे और फिर उसके जीवन में आगे क्या क्या हुआ??


इन सारे सवालों को जानने के लिए इन्तज़ार कीजिए समय का और कहानी के आने वाले सभी अपडेट्स का>>>>>
Shaandaar
 
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