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शालिनी ने जगदीश ने दिया हुआ कपड़ो का थेला जांचा. चार बढ़िया ड्रेस थे. ‘क्या टेस्ट है जेठ जी का! इतने अच्छे ड्रेस तो मैं भी नहीं ले पाई अब तक...’ ऐसा सोचते हुए अचानक शालिनी की नजर ब्रा और पेंटी के सेट पर गई.... उसने चेक किया. एकदम परफेक्ट साइज़ के थे ब्रा और पेंटी.... शालिनी अपनी आंखों पर हाथ रख कर लजा कर लाल लाल हो गई यह सोचते हुआ की : इतना परफेक्ट साइज़…! सिर्फ एक बार देख लिया मुहे ब्रा और पेंटी में इसलिए? या मैंने कही हुई साइज़ वो भूल नहीं पाए! ]
शाम ढल चुकी थी. बाहर जगदीश ने मोहिते से पूछा. ‘मुझे लगता है हमें अब मुंबई निकल जाना चाहिए.’
‘रुक जाओ दो तीन दिन...हुस्न बानो को भी दोबारा मिलना है. फिर चले जाना.’ मोहिते ने कहा.
‘नहीं दोस्त. मैं दो तीन दिन के बाद फिर मुंबई से आ जाऊंगा, पर अब ज्यादा रुक नहीं सकता.’
‘ठीक है, मेरा एक कलीग मुंबई जाने वाला है. अगर उस के साथ आप लोग निकल जाए तो मुझे कोई टेंशन नहीं रहेगा. मैं अभी उससे बात करके बताता हूँ की उसका कब निकलने का प्लान है.’ कहते हुए मोहिते ने अपना मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया.
***
शादी फार्म हाउस, पूना
शाम ढल चुकी थी. बारात ब्याह कर लौट चुकी थी. जुगल और चांदनी ने वापस मुंबई जाने की तैयारी शुरू कर दी.
अपनी और शालिनी की बेग को ठीक से बंद करने के बाद जुगल एक कमजोर उम्मीद के साथ गेस्ट हाउस के उस स्टाफर लड़के को ढूंढने गया जिसे उसने ५०० रुपीये दिए थे, शायद कोई गाउन धुलवाने वाली का पता चला हो तो..
अपना बेग पेक करते वक्त चांदनी ने शालिनी का गाउन अपने कपड़ो के नीचे छिपाकर रख दिया. यह सोचते हुए की मुंबई जा कर जुगल को पता न चले इस तरह धो कर शालिनी के कपड़ो में रख दूंगी. अगर मेरे पास इस गाउन को जुगल ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी...
***
मोबाइल पर अपनी बात करते हुए फोन होल्ड पर रख कर जगदीश से पूछा. ‘आज रात ग्यारह बजे वो मुंबई निकल रहा है, जाना है?’
जगदीश ने ‘हां’ के मतलब में अपना अंगूठा दिखाया. मोहिते ने फोन पर कहा. ‘ठीक है, मी. रस्तोगी और उनकी वाइफ – दो लोग है, तुम ग्यारह बजे निकलो तब यहां मेरी बुवा के घर से इनको पिकअप कर लेना. बाय.’
फिर फोन काट कर बोला. ‘चलो यह अच्छा हुआ. यह सूरी मेरा कलिग है और भरोसेमंद इंस्पेक्टर है. वो और उसकी वाइफ रात को मुंबई जा रहे है. कार में चार जने तो आराम से जा ही सकते है.’
‘क्यों एक कार में चार जने? मेरी भी कार है न!’ जगदीश ने याद दिलाया.
‘अपनी कार तुम यहीं छोड़ कर जाओ. कोई रिस्क मत लो. साजन भाई के गुंडों के पास तुम्हारी कार का नंबर हो सकता है. क्यों खामखां जोखिम लेना? मामला एकदम शांत हो जाए तब कार ले जाना. यहां तुम्हारी कार सलामत रहेगी. फिकर मत करो.’
जगदीश कुछ बोल नहीं पाया.
‘चलो तो तुम लोग रात का खाना खा कर जाना. मुंबई पहुंच कर फोन कर लेना. मैं अब ड्यूटी पर जाऊंगा.’
‘ओके बोस.’ जगदीश ने मुस्कुराकर कहा.
‘और वापस यहां कब आ रहे हो वो बताना. हुस्न बानो को मिलना है यह याद है न?’
हुस्न बानो को कैसे भूल सकता हूं ! – ऐसा मन में सोच कर जगदीश ने मोहिते से कहा. ‘हां याद है, मैं फोन करूंगा.’
***
शादी फार्म हाउस, पूना
दीक्षित परिवार को बाय कर के जुगल और चांदनी अपनी कार की ओर गए. जुगल ने स्टीयरिंग सम्हाला. चांदनी ने आगे, जुगल की बगल में बैठ कर कार का दरवाजा बंद किया.
तभी एक देहाती दिखती औरत रोता हुआ बच्चा ले कर तेजी से जुगल के पास आई और पूछने लगी. ‘भाई साहब बच्चा बहुत रो रहा है, बीमार है, मुझे मेईन रोड तक बिठा दो प्लीज़, डोक्टर के पास जाना है...’
जुगल कुछ बोले उस से पहले बच्चा फिर जोरों से रोने लगा. जुगल ने चांदनी की ओर देखा. चांदनी ने कार की पीछे की सीट का दरवाजा खोलते हुए कहा. ‘आओ, बैठ जाओ.’
वो औरत बच्चे के साथ मराठी भाषा में बात करते हुए कार में बैठ गई. बच्चा भी कार में बैठ कर रोना बंद कर कार निहारने लगा.
जुगल ने कार स्टार्ट की. चांदनी ने जगदीश को कॉल लगाया.
‘हम लोग पूना से निकल रहे है मुंबई के लिए...ओह आप लोग भी निकल रहे हो? .....क्यों इतनी रात? ओके ओके... ठीक है तब तो हम लोग आप लोगों से पहले मुंबई पहुंच जायेंगे. ठीक है… मिलते है आधी रात को.’ हंसते हुए चांदनी ने कहा और फोन काटते हुए जुगल से कहा. ‘वो लोग भी रात को ग्यारह बजे मुंबई के लिए निकलेंगे...’
‘ग्यारह बजे क्यों? भैया को इतनी रात को ड्राइव नहीं करना चाहिए. अभी क्यों नहीं निकल रहे?’
‘पता नहीं. बोले की मिल कर समझाता हूं, रात ग्यारह से पहले नहीं निकल पाएंगे.’
***
चांदनी से बात ख़तम कर के जगदीश शालिनी को ढूंढता हुआ किचन गया. शालिनी ने अभी भी नौवारी साड़ी पहनी थी और किचन में बैठ कर रोटी बना रही थी. बुवा कुछ और रसोई बना रही थी. जगदीश ने दूर से यह देखा और कुछ बोले बिना ‘शालिनी ने अब तक ड्रेस ट्राई किया होगा या नहीं? अभी भी साड़ी क्यों पहन रखी है? उसे क्या मैंने खरीदे हुए चार में से एक भी ड्रेस पसंद नहीं आया होगा?’ ऐसा सोचते हुए कमरे में जा कर लेट गया और आंखें मूंद कर अब तक जो कुछ हुआ उस बारे में सोचने लगा. घटनाए इतनी तेजी से घट रही थी की एक घटना पर सोचे उससे पहले दूसरी घटना घट जाती थी. फिलहाल वो हुस्न बानो के बारे में सोच रहा था. हुस्न बानो का व्यवहार उसके साथ बड़ा स्नेह पूर्ण था.और ऐसा सहज था जैसे की दोनों हमेशा से सेक्स करते रहे हो! ऐसा क्यों? – जगदीश इस बात में उलझा हुआ था.
***
हुस्न बानो के बारे में तो मोहिते भी सोच रहा था. अपने पुलिस थाने की ओर जाते हुए उसने अपने एक कलिग को फोन लगा कर मराठी भाषा में पूछा. ‘यूपी में अपना खबरी है न? एक इन्क्वायरी निकालनी है. में पुलिस स्टेशन जाकर डिटेल भेजता हूं. हुस्न बानो नाम की एक औरत है. अभी इनफार्मेशन ऐसी है की वो यूपी से है, दूसरी शादी कर के यहां महाराष्ट्र आई है. मेरे को डाउट है की वो यूपी की भी नहीं है और उसका नाम हुस्न बानो भी नहीं है. यूपी के उसके गांव का नाम, उसके पहले पति का नाम... सब डिटेल भेजता हूं. कन्फर्म कर के बताओ.’ कह कर मोहिते ने फोन काटा.
हुस्न बानो जगदीश को मसाज करने के बाद कमरे से निकली तब कुछ दूरी से मोहिते ने हुस्न बानो का निरीक्षण किया था. हुस्न बानो बहुत शांत और खुश दिख रही थी. मोहिते को कुछ शक सा हुआ. उसे लगा की जगदीश और हुस्न बानो के बीच कुछ है जो उसे पता नहीं. वो क्या हो सकता है? जगदीश कहता है कि हुस्न बानो उसकी मां के बारे में जानती है.
-कहीं हुस्न बानो ही जगदीश की मां तो नहीं! अभी उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं इसलिए शायद उसे याद न हो....
मोहिते को इतना अनुभव था की दिल की दुनिया का तंत्र अलग होता है. दिमाग काम न करे तब भी दिल बराबर काम करता है और अपने परायो को पहचान लेता है. हुस्न बानो का जगदीश से मिलने के बाद का व्यवहार मोहिते को इस शक के लिए उकसा रहा था.
***
how to change your pc screen resolution जगदीश आंखें मूंद कर बहुत कुछ सोचना चाहता था पर सारी सोच एक ओर हो जाती थी और उसके जहेन में बार बार हुस्न बानो का अर्ध नग्न शरीर आ रहा था, वो उसका अपना ब्लाउज़ खोल कर ब्रा खिसका देना, वो उसके भरे भरे स्तन! हुस्न बानो का वो अपना निपल जगदीश के मुंह में देना और स्नेह से सिर में हाथ घुमाना... बार बार जगदीश इस अनुभव को, इस दृश्य को दिमाग में दोहरा रहा था. उसे बहुत अच्छा लग रहा था यह सब याद करके. लिंग में हलकी सी उत्तेजना भी हो रही थी...
अचानक चूड़ियों की खनखनाहट से उसकी आंखें खुल गई. देखा तो शालिनी की कमर दिख रही थी...
शालिनी अपनी नौवारी साड़ी का छोर ठीक करने कमरे में आई थी. जगदीश तो बाहर मोहिते के साथ बात कर रहा है इस ख़याल में शालिनी ने पलंग पर वो सोया है यह भी देखा नहीं और पलंग के पास तिरछा खड़े हो कर आईने में देखते हुए वो अपना एक हाथ पीछे मोड़ कर साडी का छोर ठीक करने की कोशिश कर रही थी. जगदीश को न चाहते हुए भी यह ख़याल आया की इस तरह साडी ठीक करते हुए उसका ब्लाउज में लिपटा एक ओर का बड़ा सा स्तन, खुला पेट, हल्की सी दिखती नाभि और कमर का मोड़ , फिर नितंब का गोल उठाव यह सब कुल मिलकर एक इरोटिक विज्युअल खड़ा कर रहे है....इस तरह शालिनी को नहीं देखना चाहिए ऐसा सोच कर वो अपनी नजरे फेरने ही वाला था तभी शालिनी की नजर आईने में पलंग पर लेटे जगदीश पर पड़ी. वो चौंक कर बोल पड़ी. ‘भैया...आप!’ ....बौखलाहट में साड़ी का छोर कमर में लगाने के बजाय शालिनी के हाथ से सरक कर नीचे गिर गया. साडी नौवारी होने कारण उसका छोर इतना भारी था की शालिनी कमर पर एक ओर से साडी काफी नीचे तक खिसक गई. और यूं साडी खिसकने की वजह से शालिनी की कमर से लेकर नितंब नंगे होते हुए शालिनी के घुटने तक का हिस्सा खुला हो गया. शालिनी की चमकते पीले रंग की पेंटी में तना हुआ नितंब का गुबार खुल कर जगमगाने लगा....यह सब दो पल में हो गया.
***
हाइवे, पूना
‘कहां है डॉक्टर? यहां तो कोई डिस्पेंसरी दिख नहीं रही?’ जुगल ने हाईवे के सुमसाम नजारे देखते हुए बोला.
‘आगे लेफ्ट में एक गली दिखती है वहां टर्न ले लीजिये.’ पीछे की सीट पर बैठी औरत ने जवाब दिया.
‘उस गली में डिस्पेंसरी है क्या?’ जुगल ने उस गली को देखते हुए पूछा. चांदनी की नजर भी उस गली ओर गई.
‘नहीं. कोई और है जो आप से मिलना चाहता है.’
यह जवाब सुन कर चांदनी और जुगल ने चौंक कर पीछे मुड़ कर उस औरत को देखा. उस औरत के हाथ में रिवाल्वर तनी हुई थी. और उसकी गोद में बैठा बच्चा मासूमियत से उस रिवाल्वर को देख रहा था. नजरे मिलने पर उस औरत ने मुस्कुराकर बिनती के सुर में कहा.
‘प्लीज़?’
***
जगदीश ने अपना चहेरा दूसरी ओर मोड़ लिया. शालिनी ने तेजी से झुक कर साडी उठा कर अपना खुला नितंब ढकने की कोशिश की, और सफाई देने के अंदाज में कहा. ‘वो मुझे लगा की आप बाहर मोहिते के साथ बैठे है...सोरी भैया...’
जगदीश ने कुछ कहने अपना मुंह फेरा. शालिनी सर झुकाए खड़ी थी, उसने साडी का छोर उपर ले लिया था पर उस की कमर और नितंब अभी भी खुले ही थे. जिसका शायद शालिनी को अंदाजा नहीं था. जगदीश जोरों से हस पड़ा और फिर मुंह फेर कर बोला. ‘शालिनी, पहेले साडी ठीक करो ढंग से...’ शालिनी ने चौंक कर देखा और लजा कर अपना खुला हिस्सा ठीक से ढंका और बोली. ‘क्या पगली हूं मैं भी...’
जगदीश ने मुँह फेरे बिना पूछा. ‘ठीक की साडी?’
शालिनी ने चेक करते हुए कहा. ‘जी भैया.’
‘श्योर?’
शालिनी ने सकपकाकर फिर से अपनी कमर और नितंब का हिस्सा चेक किया और कहा. ‘जी श्योर भैया...’
जगदीश ने हंसते हुए मुंह फेर कर शालिनी के सामने देखा.
शालिनी ने रुआंसी आवाज़ में कहा. ‘ऐसे हंस क्या रहे हो? चाहिए तो मुझे डांटीये... अरे एक थप्पड़ भी मार दो तो चलेगा. पर हंसिये मत....’
‘सच में थप्पड़ मारू?’
शालिनी ने जगदीश की ओर देखा. उसका चेहरा गंभीर था.
‘मारिए. गलती की है तो थप्पड़ भी खा लुंगी.’
‘आओ करीब.’
शालिनी थोडा डरते हुए जगदीश के करीब गई : क्या जेठ जी सच में थप्पड़ मारंगे?
जगदीश ने थप्पड़ मारने के लिए बड़े जोश में अपना हाथ उपर उठाया. डर कर शालिनी ने अपनी आंखें मूंद ली...जगदीश ने शालिनी के गाल पर एक हल्की सी चपत लगाईं, जैसे की गाल को सहला रहा हो...शालिनी ने आश्चर्य से आंखें खोल कर जगदीश को देखा.
जगदीश फिर जोरों से हंस पड़ा.
शालिनी मुंह बना कर जगदीश के बगल में बैठ पड़ते हुऐ बोली.
‘मैंने कहा की चाहो तो मारो मुझे पर हंसो मत. पर आप को तो मेरा मजाक ही उड़ाना है...’
‘अरे पर जब यह मराठी स्टाइल की साडी तुम्हे पहननी जमती नहीं तो बारबार क्यों पहन लेती हो?’ पूछते हुए जगदीश फिर हंस पड़ा. उसको इतनी हंसी आ रही थी आंखों में आंसू आ गए. अपने आंसू पोंछते हुए जगदीश ने पूछा. ‘अब तो ड्रेस ले आया हूं न?’
‘मुंबई जा कर तो ये नौवारी पहन नहीं पाउंगी. यहां मौका मिला तो अपना शौक पूरा कर रही हूं. बस यह छोर पीछे की ओर लगाने में गड़बड़ हो जाती है और वो भी जब आप सामने होते है तब ही. सारा दिन मजे से साडी पहनकर कितना काम किया... कोई प्रॉब्लम नहीं पर आप को देखते ही पता नहीं क्या हो जाता है, ये दूसरी बार साड़ी का छोर दगा दे गया...’
‘ठीक है ठीक है भाई, कर लो अपना शौक पूरा. पर मैं जो कपडे लाया वो साइज़ में ठीक है क्या? चेक तो कर लेती?’
‘बहुत बढ़िया ड्रेस लाये हो भैया...थेंक यु सो मच...! ड्रेस में आप की टेस्ट की दाद देनी पड़ेगी, सच इतने मस्त ड्रेस आज तक मैंने खुद ने भी नहीं लिए...’ चहकती हुई आवाज में शालिनी ने कहा.
‘ओके ओके...पर साइज़ ठीक है?’
‘जी परफेक्ट है... पेंटी और ब्रा तो मैंने पहन भी लिए...’ शालिनी के मुंह से निकल गया और ये क्या बोल गई ऐसा एहसास उसे हो उसके पहले जगदीश के मुंह से जवाब निकल गया कि, ‘हां वो तो मैंने देखा...’
जगदीश बोल कर अटक गया. – शीट, ये क्या बोल दिया मैंने- सोचते हुए उसने अपनी बात को सुधारने की कोशिश में हिचकिचा कर कहा. ‘मेरा मतलब दिख गया...’
जगदीश जो ब्रा पेंटी के चार सेट ले आया था उस में से पिली ब्रा और पेंटी शालिनी ने पहन ली थी. अभी अभी साडी सरक जाने पर पिली पेंटी दिख गई थी, जेठ जी उसी का जीकर कर रहे है यह समझते हुए शालिनी लजा कर लाल लाल हो गई...
शालिनी ने जगदीश ने दिया हुआ कपड़ो का थेला जांचा. चार बढ़िया ड्रेस थे. ‘क्या टेस्ट है जेठ जी का! इतने अच्छे ड्रेस तो मैं भी नहीं ले पाई अब तक...’ ऐसा सोचते हुए अचानक शालिनी की नजर ब्रा और पेंटी के सेट पर गई.... उसने चेक किया. एकदम परफेक्ट साइज़ के थे ब्रा और पेंटी.... शालिनी अपनी आंखों पर हाथ रख कर लजा कर लाल लाल हो गई यह सोचते हुआ की : इतना परफेक्ट साइज़…! सिर्फ एक बार देख लिया मुहे ब्रा और पेंटी में इसलिए? या मैंने कही हुई साइज़ वो भूल नहीं पाए! ]
शाम ढल चुकी थी. बाहर जगदीश ने मोहिते से पूछा. ‘मुझे लगता है हमें अब मुंबई निकल जाना चाहिए.’
‘रुक जाओ दो तीन दिन...हुस्न बानो को भी दोबारा मिलना है. फिर चले जाना.’ मोहिते ने कहा.
‘नहीं दोस्त. मैं दो तीन दिन के बाद फिर मुंबई से आ जाऊंगा, पर अब ज्यादा रुक नहीं सकता.’
‘ठीक है, मेरा एक कलीग मुंबई जाने वाला है. अगर उस के साथ आप लोग निकल जाए तो मुझे कोई टेंशन नहीं रहेगा. मैं अभी उससे बात करके बताता हूँ की उसका कब निकलने का प्लान है.’ कहते हुए मोहिते ने अपना मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया.
***
शादी फार्म हाउस, पूना
शाम ढल चुकी थी. बारात ब्याह कर लौट चुकी थी. जुगल और चांदनी ने वापस मुंबई जाने की तैयारी शुरू कर दी.
अपनी और शालिनी की बेग को ठीक से बंद करने के बाद जुगल एक कमजोर उम्मीद के साथ गेस्ट हाउस के उस स्टाफर लड़के को ढूंढने गया जिसे उसने ५०० रुपीये दिए थे, शायद कोई गाउन धुलवाने वाली का पता चला हो तो..
अपना बेग पेक करते वक्त चांदनी ने शालिनी का गाउन अपने कपड़ो के नीचे छिपाकर रख दिया. यह सोचते हुए की मुंबई जा कर जुगल को पता न चले इस तरह धो कर शालिनी के कपड़ो में रख दूंगी. अगर मेरे पास इस गाउन को जुगल ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी...
***
मोबाइल पर अपनी बात करते हुए फोन होल्ड पर रख कर जगदीश से पूछा. ‘आज रात ग्यारह बजे वो मुंबई निकल रहा है, जाना है?’
जगदीश ने ‘हां’ के मतलब में अपना अंगूठा दिखाया. मोहिते ने फोन पर कहा. ‘ठीक है, मी. रस्तोगी और उनकी वाइफ – दो लोग है, तुम ग्यारह बजे निकलो तब यहां मेरी बुवा के घर से इनको पिकअप कर लेना. बाय.’
फिर फोन काट कर बोला. ‘चलो यह अच्छा हुआ. यह सूरी मेरा कलिग है और भरोसेमंद इंस्पेक्टर है. वो और उसकी वाइफ रात को मुंबई जा रहे है. कार में चार जने तो आराम से जा ही सकते है.’
‘क्यों एक कार में चार जने? मेरी भी कार है न!’ जगदीश ने याद दिलाया.
‘अपनी कार तुम यहीं छोड़ कर जाओ. कोई रिस्क मत लो. साजन भाई के गुंडों के पास तुम्हारी कार का नंबर हो सकता है. क्यों खामखां जोखिम लेना? मामला एकदम शांत हो जाए तब कार ले जाना. यहां तुम्हारी कार सलामत रहेगी. फिकर मत करो.’
जगदीश कुछ बोल नहीं पाया.
‘चलो तो तुम लोग रात का खाना खा कर जाना. मुंबई पहुंच कर फोन कर लेना. मैं अब ड्यूटी पर जाऊंगा.’
‘ओके बोस.’ जगदीश ने मुस्कुराकर कहा.
‘और वापस यहां कब आ रहे हो वो बताना. हुस्न बानो को मिलना है यह याद है न?’
हुस्न बानो को कैसे भूल सकता हूं ! – ऐसा मन में सोच कर जगदीश ने मोहिते से कहा. ‘हां याद है, मैं फोन करूंगा.’
***
शादी फार्म हाउस, पूना
दीक्षित परिवार को बाय कर के जुगल और चांदनी अपनी कार की ओर गए. जुगल ने स्टीयरिंग सम्हाला. चांदनी ने आगे, जुगल की बगल में बैठ कर कार का दरवाजा बंद किया.
तभी एक देहाती दिखती औरत रोता हुआ बच्चा ले कर तेजी से जुगल के पास आई और पूछने लगी. ‘भाई साहब बच्चा बहुत रो रहा है, बीमार है, मुझे मेईन रोड तक बिठा दो प्लीज़, डोक्टर के पास जाना है...’
जुगल कुछ बोले उस से पहले बच्चा फिर जोरों से रोने लगा. जुगल ने चांदनी की ओर देखा. चांदनी ने कार की पीछे की सीट का दरवाजा खोलते हुए कहा. ‘आओ, बैठ जाओ.’
वो औरत बच्चे के साथ मराठी भाषा में बात करते हुए कार में बैठ गई. बच्चा भी कार में बैठ कर रोना बंद कर कार निहारने लगा.
जुगल ने कार स्टार्ट की. चांदनी ने जगदीश को कॉल लगाया.
‘हम लोग पूना से निकल रहे है मुंबई के लिए...ओह आप लोग भी निकल रहे हो? .....क्यों इतनी रात? ओके ओके... ठीक है तब तो हम लोग आप लोगों से पहले मुंबई पहुंच जायेंगे. ठीक है… मिलते है आधी रात को.’ हंसते हुए चांदनी ने कहा और फोन काटते हुए जुगल से कहा. ‘वो लोग भी रात को ग्यारह बजे मुंबई के लिए निकलेंगे...’
‘ग्यारह बजे क्यों? भैया को इतनी रात को ड्राइव नहीं करना चाहिए. अभी क्यों नहीं निकल रहे?’
‘पता नहीं. बोले की मिल कर समझाता हूं, रात ग्यारह से पहले नहीं निकल पाएंगे.’
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चांदनी से बात ख़तम कर के जगदीश शालिनी को ढूंढता हुआ किचन गया. शालिनी ने अभी भी नौवारी साड़ी पहनी थी और किचन में बैठ कर रोटी बना रही थी. बुवा कुछ और रसोई बना रही थी. जगदीश ने दूर से यह देखा और कुछ बोले बिना ‘शालिनी ने अब तक ड्रेस ट्राई किया होगा या नहीं? अभी भी साड़ी क्यों पहन रखी है? उसे क्या मैंने खरीदे हुए चार में से एक भी ड्रेस पसंद नहीं आया होगा?’ ऐसा सोचते हुए कमरे में जा कर लेट गया और आंखें मूंद कर अब तक जो कुछ हुआ उस बारे में सोचने लगा. घटनाए इतनी तेजी से घट रही थी की एक घटना पर सोचे उससे पहले दूसरी घटना घट जाती थी. फिलहाल वो हुस्न बानो के बारे में सोच रहा था. हुस्न बानो का व्यवहार उसके साथ बड़ा स्नेह पूर्ण था.और ऐसा सहज था जैसे की दोनों हमेशा से सेक्स करते रहे हो! ऐसा क्यों? – जगदीश इस बात में उलझा हुआ था.
***
हुस्न बानो के बारे में तो मोहिते भी सोच रहा था. अपने पुलिस थाने की ओर जाते हुए उसने अपने एक कलिग को फोन लगा कर मराठी भाषा में पूछा. ‘यूपी में अपना खबरी है न? एक इन्क्वायरी निकालनी है. में पुलिस स्टेशन जाकर डिटेल भेजता हूं. हुस्न बानो नाम की एक औरत है. अभी इनफार्मेशन ऐसी है की वो यूपी से है, दूसरी शादी कर के यहां महाराष्ट्र आई है. मेरे को डाउट है की वो यूपी की भी नहीं है और उसका नाम हुस्न बानो भी नहीं है. यूपी के उसके गांव का नाम, उसके पहले पति का नाम... सब डिटेल भेजता हूं. कन्फर्म कर के बताओ.’ कह कर मोहिते ने फोन काटा.
हुस्न बानो जगदीश को मसाज करने के बाद कमरे से निकली तब कुछ दूरी से मोहिते ने हुस्न बानो का निरीक्षण किया था. हुस्न बानो बहुत शांत और खुश दिख रही थी. मोहिते को कुछ शक सा हुआ. उसे लगा की जगदीश और हुस्न बानो के बीच कुछ है जो उसे पता नहीं. वो क्या हो सकता है? जगदीश कहता है कि हुस्न बानो उसकी मां के बारे में जानती है.
-कहीं हुस्न बानो ही जगदीश की मां तो नहीं! अभी उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं इसलिए शायद उसे याद न हो....
मोहिते को इतना अनुभव था की दिल की दुनिया का तंत्र अलग होता है. दिमाग काम न करे तब भी दिल बराबर काम करता है और अपने परायो को पहचान लेता है. हुस्न बानो का जगदीश से मिलने के बाद का व्यवहार मोहिते को इस शक के लिए उकसा रहा था.
***
how to change your pc screen resolution जगदीश आंखें मूंद कर बहुत कुछ सोचना चाहता था पर सारी सोच एक ओर हो जाती थी और उसके जहेन में बार बार हुस्न बानो का अर्ध नग्न शरीर आ रहा था, वो उसका अपना ब्लाउज़ खोल कर ब्रा खिसका देना, वो उसके भरे भरे स्तन! हुस्न बानो का वो अपना निपल जगदीश के मुंह में देना और स्नेह से सिर में हाथ घुमाना... बार बार जगदीश इस अनुभव को, इस दृश्य को दिमाग में दोहरा रहा था. उसे बहुत अच्छा लग रहा था यह सब याद करके. लिंग में हलकी सी उत्तेजना भी हो रही थी...
अचानक चूड़ियों की खनखनाहट से उसकी आंखें खुल गई. देखा तो शालिनी की कमर दिख रही थी...
शालिनी अपनी नौवारी साड़ी का छोर ठीक करने कमरे में आई थी. जगदीश तो बाहर मोहिते के साथ बात कर रहा है इस ख़याल में शालिनी ने पलंग पर वो सोया है यह भी देखा नहीं और पलंग के पास तिरछा खड़े हो कर आईने में देखते हुए वो अपना एक हाथ पीछे मोड़ कर साडी का छोर ठीक करने की कोशिश कर रही थी. जगदीश को न चाहते हुए भी यह ख़याल आया की इस तरह साडी ठीक करते हुए उसका ब्लाउज में लिपटा एक ओर का बड़ा सा स्तन, खुला पेट, हल्की सी दिखती नाभि और कमर का मोड़ , फिर नितंब का गोल उठाव यह सब कुल मिलकर एक इरोटिक विज्युअल खड़ा कर रहे है....इस तरह शालिनी को नहीं देखना चाहिए ऐसा सोच कर वो अपनी नजरे फेरने ही वाला था तभी शालिनी की नजर आईने में पलंग पर लेटे जगदीश पर पड़ी. वो चौंक कर बोल पड़ी. ‘भैया...आप!’ ....बौखलाहट में साड़ी का छोर कमर में लगाने के बजाय शालिनी के हाथ से सरक कर नीचे गिर गया. साडी नौवारी होने कारण उसका छोर इतना भारी था की शालिनी कमर पर एक ओर से साडी काफी नीचे तक खिसक गई. और यूं साडी खिसकने की वजह से शालिनी की कमर से लेकर नितंब नंगे होते हुए शालिनी के घुटने तक का हिस्सा खुला हो गया. शालिनी की चमकते पीले रंग की पेंटी में तना हुआ नितंब का गुबार खुल कर जगमगाने लगा....यह सब दो पल में हो गया.
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हाइवे, पूना
‘कहां है डॉक्टर? यहां तो कोई डिस्पेंसरी दिख नहीं रही?’ जुगल ने हाईवे के सुमसाम नजारे देखते हुए बोला.
‘आगे लेफ्ट में एक गली दिखती है वहां टर्न ले लीजिये.’ पीछे की सीट पर बैठी औरत ने जवाब दिया.
‘उस गली में डिस्पेंसरी है क्या?’ जुगल ने उस गली को देखते हुए पूछा. चांदनी की नजर भी उस गली ओर गई.
‘नहीं. कोई और है जो आप से मिलना चाहता है.’
यह जवाब सुन कर चांदनी और जुगल ने चौंक कर पीछे मुड़ कर उस औरत को देखा. उस औरत के हाथ में रिवाल्वर तनी हुई थी. और उसकी गोद में बैठा बच्चा मासूमियत से उस रिवाल्वर को देख रहा था. नजरे मिलने पर उस औरत ने मुस्कुराकर बिनती के सुर में कहा.
‘प्लीज़?’
***
जगदीश ने अपना चहेरा दूसरी ओर मोड़ लिया. शालिनी ने तेजी से झुक कर साडी उठा कर अपना खुला नितंब ढकने की कोशिश की, और सफाई देने के अंदाज में कहा. ‘वो मुझे लगा की आप बाहर मोहिते के साथ बैठे है...सोरी भैया...’
जगदीश ने कुछ कहने अपना मुंह फेरा. शालिनी सर झुकाए खड़ी थी, उसने साडी का छोर उपर ले लिया था पर उस की कमर और नितंब अभी भी खुले ही थे. जिसका शायद शालिनी को अंदाजा नहीं था. जगदीश जोरों से हस पड़ा और फिर मुंह फेर कर बोला. ‘शालिनी, पहेले साडी ठीक करो ढंग से...’ शालिनी ने चौंक कर देखा और लजा कर अपना खुला हिस्सा ठीक से ढंका और बोली. ‘क्या पगली हूं मैं भी...’
जगदीश ने मुँह फेरे बिना पूछा. ‘ठीक की साडी?’
शालिनी ने चेक करते हुए कहा. ‘जी भैया.’
‘श्योर?’
शालिनी ने सकपकाकर फिर से अपनी कमर और नितंब का हिस्सा चेक किया और कहा. ‘जी श्योर भैया...’
जगदीश ने हंसते हुए मुंह फेर कर शालिनी के सामने देखा.
शालिनी ने रुआंसी आवाज़ में कहा. ‘ऐसे हंस क्या रहे हो? चाहिए तो मुझे डांटीये... अरे एक थप्पड़ भी मार दो तो चलेगा. पर हंसिये मत....’
‘सच में थप्पड़ मारू?’
शालिनी ने जगदीश की ओर देखा. उसका चेहरा गंभीर था.
‘मारिए. गलती की है तो थप्पड़ भी खा लुंगी.’
‘आओ करीब.’
शालिनी थोडा डरते हुए जगदीश के करीब गई : क्या जेठ जी सच में थप्पड़ मारंगे?
जगदीश ने थप्पड़ मारने के लिए बड़े जोश में अपना हाथ उपर उठाया. डर कर शालिनी ने अपनी आंखें मूंद ली...जगदीश ने शालिनी के गाल पर एक हल्की सी चपत लगाईं, जैसे की गाल को सहला रहा हो...शालिनी ने आश्चर्य से आंखें खोल कर जगदीश को देखा.
जगदीश फिर जोरों से हंस पड़ा.
शालिनी मुंह बना कर जगदीश के बगल में बैठ पड़ते हुऐ बोली.
‘मैंने कहा की चाहो तो मारो मुझे पर हंसो मत. पर आप को तो मेरा मजाक ही उड़ाना है...’
‘अरे पर जब यह मराठी स्टाइल की साडी तुम्हे पहननी जमती नहीं तो बारबार क्यों पहन लेती हो?’ पूछते हुए जगदीश फिर हंस पड़ा. उसको इतनी हंसी आ रही थी आंखों में आंसू आ गए. अपने आंसू पोंछते हुए जगदीश ने पूछा. ‘अब तो ड्रेस ले आया हूं न?’
‘मुंबई जा कर तो ये नौवारी पहन नहीं पाउंगी. यहां मौका मिला तो अपना शौक पूरा कर रही हूं. बस यह छोर पीछे की ओर लगाने में गड़बड़ हो जाती है और वो भी जब आप सामने होते है तब ही. सारा दिन मजे से साडी पहनकर कितना काम किया... कोई प्रॉब्लम नहीं पर आप को देखते ही पता नहीं क्या हो जाता है, ये दूसरी बार साड़ी का छोर दगा दे गया...’
‘ठीक है ठीक है भाई, कर लो अपना शौक पूरा. पर मैं जो कपडे लाया वो साइज़ में ठीक है क्या? चेक तो कर लेती?’
‘बहुत बढ़िया ड्रेस लाये हो भैया...थेंक यु सो मच...! ड्रेस में आप की टेस्ट की दाद देनी पड़ेगी, सच इतने मस्त ड्रेस आज तक मैंने खुद ने भी नहीं लिए...’ चहकती हुई आवाज में शालिनी ने कहा.
‘ओके ओके...पर साइज़ ठीक है?’
‘जी परफेक्ट है... पेंटी और ब्रा तो मैंने पहन भी लिए...’ शालिनी के मुंह से निकल गया और ये क्या बोल गई ऐसा एहसास उसे हो उसके पहले जगदीश के मुंह से जवाब निकल गया कि, ‘हां वो तो मैंने देखा...’
जगदीश बोल कर अटक गया. – शीट, ये क्या बोल दिया मैंने- सोचते हुए उसने अपनी बात को सुधारने की कोशिश में हिचकिचा कर कहा. ‘मेरा मतलब दिख गया...’
जगदीश जो ब्रा पेंटी के चार सेट ले आया था उस में से पिली ब्रा और पेंटी शालिनी ने पहन ली थी. अभी अभी साडी सरक जाने पर पिली पेंटी दिख गई थी, जेठ जी उसी का जीकर कर रहे है यह समझते हुए शालिनी लजा कर लाल लाल हो गई...
हुस्न बानो ने जगदीश को बांहों में भर कर उसके कान पर जीभ फेरनी शुरू की... जगदीश विह्वल हो उठा. पिछले कुछ दिनों से जाने अनजाने अपनी बहु शालिनी के इस तरह के संपर्क में वो बार बार आया था की उसकी कामेच्छा हर बार तंग धनुष्य की तरह टंकार बजाने लगती थी और हर बार वो किसी तरह अपने आप को संयम में बांध कर रह जाता था. पर हुस्न बानो जिस तरह उसे उकसा रही थी, जगदीश के लिए काबू में रहना मुश्किल होता जा रहा था... जगदीश की उंगलियों में उसकी प्यास स्थानांतरण कर के हुस्न बानो के अंगों को सहला कर तृप्ति खोजने की कोशिश में लग गई....]
हुस्न बानो के भरे भरे स्तनों को छूकर, दबोच दबोच कर भी जगदीश का जैसे मन नहीं भर रहा था... उसे समझ में नहीं आ रहा था की इन स्तनों के साथ क्या किया जाए तो मन की यह अतृप्ति मिटे. हुस्न बानो के स्तन इतने गदराये हुए थे की जगदीश की हथेली उन्हें पूरी तरह से थाम नहीं पा रही थी. वो जितनी भी कोशिश करे, जितना भी अलग अलग तरीका आजमाए दोनों स्तन इस तरह काबू के बाहर रह जाते थे जैसे झाग के बने हुए गुब्बारों को कितनी भी कोशिश कर लो, हम छू सकते है पर थाम नहीं सकते. हर कोशिश के बाद जगदीश हारा जुआरी दुगना खेले उस तरह ज्यादा जोश से उन्हें हाथ करने की कोशिश करता था और फिर निराश हो जाता था...
फिर जगदीश ने स्तनों के सिरे पर कब्ज़ा जमाना सोचा... उसने अपने दोनों हाथ के अंगूठे और पहली उंगली में हुस्न बानो के निपलों को जकड़ा फिर धीरे धीरे अपनी जकड़ को सख्त किया. इस दबाव के कारण निप्पलों के दाने तन कर अंगूठा और उंगलियों से फिसल कर बाहर की और निकल आये और जगदीश को यूं तकने लगे जैसे पूछ रहे हो की इतना जुल्म क्यों कर रहे हो हम पर! जगदीश उनको निहारते हुए मन में बोला : जुल्म नहीं करना है मुझे, मैं उलझ रहा हूँ की क्या करूं तो मेरे अंदर यह जो बेचैनी है उसे सुकून मिले. और फिर उसने उन दोनों अंगूर जैसे मुलायम पर किसमिस जैसे लचीले किंतु चेरी जैसे सख्त निपलों को अपने अंगूठे और उंगलियो की पकड़ में घेरा. उसे आश्चर्य हुआ की आखिर इन निप्पलों का मूल चरित्र क्या होगा? कोई एक ही वक्त मुलायम, लचीला और सख्त कैसे हो सकता है? उसने पेशोपेश में हुस्न बानो की ओर देखा. हुस्न बानो जगदीश की इन बचकानी हरकतों को स्नेह से निहार रही थी. जब जगदीश ने हुस्न बानो के चेहरे की ओर देखा तब उसने मुस्कुराकर जैसे उसे अपनी आंखों से पूछा : क्या हुआ? जगदीश क्या जवाब दे? उसने फिर से अपने कब्जे में गिरफ्तार दोनों निपलों को देखा. उसे लगा वो दोनों उसे घुर रहे है...नहीं घुर नहीं ललकार रहे है की तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे? जगदीश को लगा की वो दोनों उसे चुनौती दे रहे है. क्या सच में वो उनका कुछ नहीं कर सकता? बिलकुल कर सकता है वो उन दोनों को यूं मसल सकता है जैसे पके हुए काले शहतूत को पीसकर उनका रस निकाल कर चूसा जा सकता है वैसे. या फिर खट्टे भूरे बेर में ज्यों दांत गडा कर चखा जा सकता है वैसे इन्हें भी तो चखा जा सकता है! या फिर जैसे पुराने जमाने की घडी को चाबी देते थे वैसे इन निप्पलों को लेफ्ट टू राइट घुमाया जा सकता है! क्या निपलों को चाबी की तरह घुमाने से यह खुली तिजोरी जैसा बदन भी घड़ी की तरह चलने लगेगा? पर ये बदन और क्या चलेगा! ये ही तो चल रहा है बल्कि मचल रहा है अटल स्तनों की लहराती हुई धजाओं को लिए! निश्चल तो मैं खुद हूं- जगदीश ने सोचा. पर मुझे यूं निश्चल नहीं रहना...इस क्षण को, इस प्रस्तुति को, इस भरपूर कामुक देह के हर एक अंग को भोगना है... -जगदीश स्तन मंडल से इतना प्रभावित हो गया था की ‘बहुत कुछ करना है...’ ऐसे ख्याल से निजात पाकर ‘कुछ करने’ में प्रवृत्त नहीं हो पा रहा था.. हुस्न बानो ने जगदीश की इस सम्मोहित अवस्था को काफी देर निहारा फिर अंततः जगदीश के माथे को सहलाते हुए उसने अपना एक स्तन जगदीश के होठों पर रगडा. जगदीश की सोच और स्तनपान की प्रक्रिया आपस में धुल मिल गई... मुंह में आन पड़े निपल को जगदीश ने इस तरह जीभ से सहलाया जैसे लोग आचार का बंद डिब्बा खोलने के बाद उसके ढक्कन के साथ के पेकिंग मटिरियल को फेंकने से पहेले चाट लेते है. इस बात का जगदीश को हमेशा आश्चर्य होता था की लोग आचार का पूरा डिब्बा सामने होने के बावजूद ढक्कन के पेकिंग पेपर में लगे थोड़े से मसाले का मोह क्यों करते होंगे! और वही आश्चर्य उसे इस क्षण हुस्न बानो के अपने होठों के बीच आन पड़े निपल को चाटते वक्त भी हो रहा था की पूरा का पूरा स्तन उसके होठों के सामने मौजूद है और वो निपल को चाटने में क्यों अटका हुआ है? पर उसे मज़ा आ रहा था... निपल को वो इस तरह चाटने लगा जैसे चाट चाट कर वो निपल का कोई छिद्र खोल देगा और उस छिद्र में से दूध रिसना शुरू हो जाएगा...
निपल गिला हो कर अलग सा स्वाद दे रहा था. जगदीश को लगा शायद उसने कोई निपल में कोई छिद्र खोल दिया है और अब रस की धारा शुरू हो गई है... वो इतनी तन्मयता से उस स्तन के निपल को चूसने लगा जैसे कोई जोंक त्वचा को चिपक कर रक्त चूसती है...पर वो इतना व्याकुल क्यों हो रहा है! किस चीज की जल्दी है! किस बात की असुरक्षा है? पल भर थम कर उसने निपल को अपने मुंह से निकाल कर हुस्न बानो की ओर देखा,हुस्न बानो के चहेरे पर ऐसा सुकून था जैसे सूरज से तपते सूखे बियाबान में अपनी शीतल छाया में सोये हुए किसी यात्री को देख एक हरे भरे पेड़ के चहेरे पर हो सकता है. जगदीश को हुस्न बानो के चेहरे पर छाये इस सुकून की ईर्ष्या हो आई. उसे लगा मैं क्यों इतना बैचेन हूँ और यह क्यों इतनी तुष्ट है! जगदीश की आंखों में गोया यह सवाल हुस्न बानो ने पढ़ लिया हो उसने होले से मुस्कुराकर फिर अपना निपल जगदीश के होठों को सुपुर्द किया. जगदीश फिर निपल को चूसने लगा... अपनी आंखें मूंद कर जगदीश ने उस पूरे स्तन को दोनों हाथ से थाम कर दबाते हुए धीरे धीरे अपना मुंह खोल कर अंदर ले लिया जैसे सारा का सारा स्तन निगल लेना चाहता हो... उसका दम घुटने लगा.... पूरा स्तन तो मुंह में जा नहीं सकता था पर जितना गया था उससे जगदीश को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी. पर वो स्तन को छोड़ना नहीं चाहता था... उसे लग रहा था भले सांस रुक जाए, इसे आज नहीं छोडूंगा.....
और हुस्न बानो जगदीश के इस लड़कपन को खुश होते हुए यूं देखती रही जैसे कोई हथिनी अपने छोटे बच्चे को बेवजह का उधम मचाते देखती है…
***
कहीं दूर, एक आलीशान फ्लैट में :
झनक थक गई थी. उसने तेजी से नहा कर शॉर्ट्स और स्लीवलेस टी शर्ट पहने. चद्दर ओढ़ कर अभी सोने के लिए आंख मूंद रही थी की उसके रूम का दरवाजे पर दस्तक हुई.
‘कौन पापा?’ झनक ने पूछा.
पापा रूम में दाखिल हुए. झनक के पास पलंग पर बैठ गए. उनके हाथ में व्हिस्की का एक पेग था पीते पीते वो झनक के कमरे में आये थे.
‘सोहनलाल दीक्षित...’ झनक कुछ बोलने गई पर पापाने उसकी बात काटते हुए कहा. ‘भूल जाओ उसे. रात गई बात गई.’
‘मुझे यही जानना था की जो डेटा मैं सोहनलाल दीक्षित के लैपटॉप से ले आई, कुछ काम तो आएगा ना?’
‘बिलकुल बेटा बहुत काम आएगा, यु आर माय लकी चार्म.’ कहकर पापाने पेग से एक घूंट ले कर झनक को ऑफर करते हुए पूछा. ‘एक सीप?’
‘आप मुझे हर बुराई में धकेल कर ही दम लोगे!’ मुस्कुराकर झनक उठ बैठी और पापा के हाथ से पेग ले कर एक सीप लिया.
झनक के शरीर से चद्दर हट जाने पर दीखते हुए उसके शरीर को ताकते हुए पापाने पूछा. ‘ब्रा नहीं पहनी?’
‘सोते वक्त कोई ब्रा पहनता है?’ झनक ने झल्लाकर पूछा.
‘मै तो जागते वक्त भी नहीं पहनता.’ हंस कर पापाने कहा और पेग से सीप लिया.
‘वेरी बेड जोक ओके? चलो अब जाओ मुझे सोने दो.’ झनक फिर चद्दर ओढ़ कर लेटते हुए बोली.
पापा ने झुक कर झनक के गाल चूम कर कहा. ‘तेरा क्या करू, समझ में नहीं आता.’
कह कर जाते हुए पापा का हाथ झनक ने थाम लिया. पापा ने मुड कर झनक की ओर देखा.
‘शादी कर लो ना मुझसे?’ झनक ने मुस्कुराकर कहा.
‘बेवकूफ लड़की.’ अपना हाथ छुड़ा कर जाते हुए पापा ने कहा.
‘बीस की तो हूं पापा... अब मुझसे जवान तो मिलने से रही आप को.’
‘अब तू बेड जोक कर रही है...’ पापा ने कहा.
‘हर्ज ही क्या है पापा? मुझ से सुहागरात तो आप मना ही चुके हो!’
‘बेटा, यू डिजर्व यंग मेन. ओके?’
‘मै आप को डिजर्व नहीं करती?’
‘सो जाओ चुपचाप.’ कह कर पापा रूम के बाहर चले गए.
‘देखना पापा, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’ पापा के जाने के बाद झनक बडबडाइ और आंखें मूंद कर सोने की कोशिश करने लगी.
***
मोहिते और जगदीश लौटे तब शालिनी बुवा को किचन में हेल्प कर रही थी. दोनों के लिए वो पानी ले कर आई. जगदीश ने एक बड़ा थेला शालिनी को देते हुए कहा. ‘कुछ कपडे लाया हूं.’
‘ओह अच्छा.’ कह कर शालिनी ने थेला एक ओर रखा.
‘ये क्या भाभी आप देखेंगे भी नहीं की कैसे कपड़े है!’ मोहिते ने आश्चर्य से कहा. यह सुन कर शालिनी और जगदीश – दोनों को अजीब लगा. मोहिते ने आगे कहा. ‘पता है भाभी इन्हों ने आप के लिए कपड़े चुनने में जितना समय लिया इतना समय लेते हुए तो किसी औरत को भी मैंने नहीं देखा... दुकानदार कपड़े दिखा दिखा कर थक गया पर इन को कुछ पसंद ही नहीं आया. चार दुकान बदली तब कहीं ये कपडे ले पाए... यु आर सो लकी भाभी... इतना डिटेल से पत्नी के लिए कपड़े खरीदना आम बात नहीं है...’
जगदीश और शालिनी –दोनों मोहिते की बात से ऑकवर्ड स्थिति में आ गए. शालिनी ने जगदीश को मुस्कुराकर कहा. ‘अब कौन सी शादी में जाना है? कुछ भी ले लेते...’
‘हां, कोई खास शॉपिंग नहीं की है... तुम मोहिते की बातों में मत आओ.’ कह कर जगदीश बाहर निकल गया. मोहिते ने शालिनी को धीमी आवाज में कहा. ‘मजाक नहीं कर रहा हूँ – सच में अच्छी शॉपिंग की है आप खुद देख लो.’ और जगदीश के पीछे चला गया.
शालिनी को शर्म और सुकून की मिश्र भावना हो आई.
शर्म इसलिए क्योंकि जेठजी ने उसके कपड़ो के लिए इतना समय दिया और सुकून इसलिए क्योंकि इस का अब यह भी मतलब होता था की वो डर रही थी उतना जेठजी उससे नाराज नहीं.
बाहर जगदीश और मोहिते खुले में बैठे थे.
‘बहुत अच्छा लगता है यहां मोहिते. जी करता है यहीं रह जाऊं कुछ दिन.’
‘तो रहो आराम से! प्रॉब्लम क्या है? भाभीजी भी साथ में ही है – दोनों को ऐसा आउटिंग कब मिलेगा!’
मोहिते ने सरलता से कही हुई बात ने जगदीश को वास्तव में ला पटका : यहां ऐसे ज्यादा नहीं रुक सकते, साथ में शालिनी भी है…
‘नहीं यार, जाना पड़ेगा.’ कह कर जगदीश ने बात टाल दी.
‘मसाज कैसा किया हुस्न बानो ने? तुम तो कुछ बोले ही नहीं बाद में!’ मोहिते ने पूछा.
‘बहुत अच्छा मसाज किया. इतना अच्छा की नशा सा हो गया. कुछ बोलने का मन ही नहीं हो रहा था...’ जगदीश ने हंस कर कहा.
हुस्न बानो और उसके बीच जो हुआ वो किसी को बताने का कोई मतलब नहीं था. वैसे ही वो औरत अपनी सेक्स इच्छा के लिए बदनाम है. ऐसे में और एक किस्सा जोड़ना हुस्न बानो के लिए ठीक नहीं होगा ऐसा जगदीश का सोचना था. उसकी एक वजह यह भी थी कि जगदीश ने हुस्न बानो के साथ जो भी काम क्रीडा की उस दौरान उसे हुस्न बानो ‘सेक्स के लिए भूखी औरत’ कतई नहीं लगी थी. यह सच है की जगदीश को हुस्न बानो ने ही उकसाया पर हुस्न बानो की वो सारी हरकते अत्यंत नाजुक और प्रेमपूर्ण थी, कोई वासना से पीड़ित व्यक्ति का आक्रमण नहीं था. और हुस्न बानो के बारे में जो धारणाए उसने सुनी थी उसमे वो ग़लतफ़हमी नहीं जोड़ना चाहता था.
‘ओके. पर साजन भाई की बात उससे की तुमने? कुछ रिएक्ट किया क्या उसने?’
‘नहीं. साजन भाई के नाम पर भी वो चुप ही रही...पता नहीं.और एक दो बार कोशिश करते है फिर से मिल कर.’ जगदीश ने जवाब दिया. पर जवाब देते ही उसके मन ने उससे पूछा : सच बोलो जगदीश, क्या वाकई तुम सिर्फ साजन भाई के बारे में बात करने हुस्न बानो को फिर से मिलना चाहते हो?’
दूसरी ओर शालिनी ने जगदीश ने दिया हुआ कपड़ो का थेला जांचा. चार बढ़िया ड्रेस थे. ‘क्या टेस्ट है जेठ जी का! इतने अच्छे ड्रेस तो मैं भी नहीं ले पाई अब तक...’ ऐसा सोचते हुए अचानक शालिनी की नजर ब्रा और पेंटी के सेट पर गई.... उसने चेक किया. एकदम परफेक्ट साइज़ के थे ब्रा और पेंटी.... शालिनी अपनी आंखों पर हाथ रख कर लजा कर लाल लाल हो गई यह सोचते हुए की : इतना परफेक्ट साइज़…! सिर्फ एक बार देख लिया मुझे ब्रा और पेंटी में इसलिए? या मैंने कही हुई साइज़ वो भूल नहीं पाए!
तो हुस्न बानो के हुस्न पे जगदीश फिदा हो ही गया। अब फिर से वो चक्कर लगाना चाहता है मगर शालिनी के साथ भी कुछ होने वाला है या नही ये देखना पड़ेगा। ये झांक और उसके बाप की भी अलग ही कहानी लग रही है, कुछ तो बड़ा राज है उसमे भी जो उसने इतना रिस्क ले के शादी के घर से डाटा चोरी किया। शानदार अपडेट।
शालिनी ने जगदीश ने दिया हुआ कपड़ो का थेला जांचा. चार बढ़िया ड्रेस थे. ‘क्या टेस्ट है जेठ जी का! इतने अच्छे ड्रेस तो मैं भी नहीं ले पाई अब तक...’ ऐसा सोचते हुए अचानक शालिनी की नजर ब्रा और पेंटी के सेट पर गई.... उसने चेक किया. एकदम परफेक्ट साइज़ के थे ब्रा और पेंटी.... शालिनी अपनी आंखों पर हाथ रख कर लजा कर लाल लाल हो गई यह सोचते हुआ की : इतना परफेक्ट साइज़…! सिर्फ एक बार देख लिया मुहे ब्रा और पेंटी में इसलिए? या मैंने कही हुई साइज़ वो भूल नहीं पाए! ]
शाम ढल चुकी थी. बाहर जगदीश ने मोहिते से पूछा. ‘मुझे लगता है हमें अब मुंबई निकल जाना चाहिए.’
‘रुक जाओ दो तीन दिन...हुस्न बानो को भी दोबारा मिलना है. फिर चले जाना.’ मोहिते ने कहा.
‘नहीं दोस्त. मैं दो तीन दिन के बाद फिर मुंबई से आ जाऊंगा, पर अब ज्यादा रुक नहीं सकता.’
‘ठीक है, मेरा एक कलीग मुंबई जाने वाला है. अगर उस के साथ आप लोग निकल जाए तो मुझे कोई टेंशन नहीं रहेगा. मैं अभी उससे बात करके बताता हूँ की उसका कब निकलने का प्लान है.’ कहते हुए मोहिते ने अपना मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया.
***
शादी फार्म हाउस, पूना
शाम ढल चुकी थी. बारात ब्याह कर लौट चुकी थी. जुगल और चांदनी ने वापस मुंबई जाने की तैयारी शुरू कर दी.
अपनी और शालिनी की बेग को ठीक से बंद करने के बाद जुगल एक कमजोर उम्मीद के साथ गेस्ट हाउस के उस स्टाफर लड़के को ढूंढने गया जिसे उसने ५०० रुपीये दिए थे, शायद कोई गाउन धुलवाने वाली का पता चला हो तो..
अपना बेग पेक करते वक्त चांदनी ने शालिनी का गाउन अपने कपड़ो के नीचे छिपाकर रख दिया. यह सोचते हुए की मुंबई जा कर जुगल को पता न चले इस तरह धो कर शालिनी के कपड़ो में रख दूंगी. अगर मेरे पास इस गाउन को जुगल ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी...
***
मोबाइल पर अपनी बात करते हुए फोन होल्ड पर रख कर जगदीश से पूछा. ‘आज रात ग्यारह बजे वो मुंबई निकल रहा है, जाना है?’
जगदीश ने ‘हां’ के मतलब में अपना अंगूठा दिखाया. मोहिते ने फोन पर कहा. ‘ठीक है, मी. रस्तोगी और उनकी वाइफ – दो लोग है, तुम ग्यारह बजे निकलो तब यहां मेरी बुवा के घर से इनको पिकअप कर लेना. बाय.’
फिर फोन काट कर बोला. ‘चलो यह अच्छा हुआ. यह सूरी मेरा कलिग है और भरोसेमंद इंस्पेक्टर है. वो और उसकी वाइफ रात को मुंबई जा रहे है. कार में चार जने तो आराम से जा ही सकते है.’
‘क्यों एक कार में चार जने? मेरी भी कार है न!’ जगदीश ने याद दिलाया.
‘अपनी कार तुम यहीं छोड़ कर जाओ. कोई रिस्क मत लो. साजन भाई के गुंडों के पास तुम्हारी कार का नंबर हो सकता है. क्यों खामखां जोखिम लेना? मामला एकदम शांत हो जाए तब कार ले जाना. यहां तुम्हारी कार सलामत रहेगी. फिकर मत करो.’
जगदीश कुछ बोल नहीं पाया.
‘चलो तो तुम लोग रात का खाना खा कर जाना. मुंबई पहुंच कर फोन कर लेना. मैं अब ड्यूटी पर जाऊंगा.’
‘ओके बोस.’ जगदीश ने मुस्कुराकर कहा.
‘और वापस यहां कब आ रहे हो वो बताना. हुस्न बानो को मिलना है यह याद है न?’
हुस्न बानो को कैसे भूल सकता हूं ! – ऐसा मन में सोच कर जगदीश ने मोहिते से कहा. ‘हां याद है, मैं फोन करूंगा.’
***
शादी फार्म हाउस, पूना
दीक्षित परिवार को बाय कर के जुगल और चांदनी अपनी कार की ओर गए. जुगल ने स्टीयरिंग सम्हाला. चांदनी ने आगे, जुगल की बगल में बैठ कर कार का दरवाजा बंद किया.
तभी एक देहाती दिखती औरत रोता हुआ बच्चा ले कर तेजी से जुगल के पास आई और पूछने लगी. ‘भाई साहब बच्चा बहुत रो रहा है, बीमार है, मुझे मेईन रोड तक बिठा दो प्लीज़, डोक्टर के पास जाना है...’
जुगल कुछ बोले उस से पहले बच्चा फिर जोरों से रोने लगा. जुगल ने चांदनी की ओर देखा. चांदनी ने कार की पीछे की सीट का दरवाजा खोलते हुए कहा. ‘आओ, बैठ जाओ.’
वो औरत बच्चे के साथ मराठी भाषा में बात करते हुए कार में बैठ गई. बच्चा भी कार में बैठ कर रोना बंद कर कार निहारने लगा.
जुगल ने कार स्टार्ट की. चांदनी ने जगदीश को कॉल लगाया.
‘हम लोग पूना से निकल रहे है मुंबई के लिए...ओह आप लोग भी निकल रहे हो? .....क्यों इतनी रात? ओके ओके... ठीक है तब तो हम लोग आप लोगों से पहले मुंबई पहुंच जायेंगे. ठीक है… मिलते है आधी रात को.’ हंसते हुए चांदनी ने कहा और फोन काटते हुए जुगल से कहा. ‘वो लोग भी रात को ग्यारह बजे मुंबई के लिए निकलेंगे...’
‘ग्यारह बजे क्यों? भैया को इतनी रात को ड्राइव नहीं करना चाहिए. अभी क्यों नहीं निकल रहे?’
‘पता नहीं. बोले की मिल कर समझाता हूं, रात ग्यारह से पहले नहीं निकल पाएंगे.’
***
चांदनी से बात ख़तम कर के जगदीश शालिनी को ढूंढता हुआ किचन गया. शालिनी ने अभी भी नौवारी साड़ी पहनी थी और किचन में बैठ कर रोटी बना रही थी. बुवा कुछ और रसोई बना रही थी. जगदीश ने दूर से यह देखा और कुछ बोले बिना ‘शालिनी ने अब तक ड्रेस ट्राई किया होगा या नहीं? अभी भी साड़ी क्यों पहन रखी है? उसे क्या मैंने खरीदे हुए चार में से एक भी ड्रेस पसंद नहीं आया होगा?’ ऐसा सोचते हुए कमरे में जा कर लेट गया और आंखें मूंद कर अब तक जो कुछ हुआ उस बारे में सोचने लगा. घटनाए इतनी तेजी से घट रही थी की एक घटना पर सोचे उससे पहले दूसरी घटना घट जाती थी. फिलहाल वो हुस्न बानो के बारे में सोच रहा था. हुस्न बानो का व्यवहार उसके साथ बड़ा स्नेह पूर्ण था.और ऐसा सहज था जैसे की दोनों हमेशा से सेक्स करते रहे हो! ऐसा क्यों? – जगदीश इस बात में उलझा हुआ था.
***
हुस्न बानो के बारे में तो मोहिते भी सोच रहा था. अपने पुलिस थाने की ओर जाते हुए उसने अपने एक कलिग को फोन लगा कर मराठी भाषा में पूछा. ‘यूपी में अपना खबरी है न? एक इन्क्वायरी निकालनी है. में पुलिस स्टेशन जाकर डिटेल भेजता हूं. हुस्न बानो नाम की एक औरत है. अभी इनफार्मेशन ऐसी है की वो यूपी से है, दूसरी शादी कर के यहां महाराष्ट्र आई है. मेरे को डाउट है की वो यूपी की भी नहीं है और उसका नाम हुस्न बानो भी नहीं है. यूपी के उसके गांव का नाम, उसके पहले पति का नाम... सब डिटेल भेजता हूं. कन्फर्म कर के बताओ.’ कह कर मोहिते ने फोन काटा.
हुस्न बानो जगदीश को मसाज करने के बाद कमरे से निकली तब कुछ दूरी से मोहिते ने हुस्न बानो का निरीक्षण किया था. हुस्न बानो बहुत शांत और खुश दिख रही थी. मोहिते को कुछ शक सा हुआ. उसे लगा की जगदीश और हुस्न बानो के बीच कुछ है जो उसे पता नहीं. वो क्या हो सकता है? जगदीश कहता है कि हुस्न बानो उसकी मां के बारे में जानती है.
-कहीं हुस्न बानो ही जगदीश की मां तो नहीं! अभी उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं इसलिए शायद उसे याद न हो....
मोहिते को इतना अनुभव था की दिल की दुनिया का तंत्र अलग होता है. दिमाग काम न करे तब भी दिल बराबर काम करता है और अपने परायो को पहचान लेता है. हुस्न बानो का जगदीश से मिलने के बाद का व्यवहार मोहिते को इस शक के लिए उकसा रहा था.
***
how to change your pc screen resolution जगदीश आंखें मूंद कर बहुत कुछ सोचना चाहता था पर सारी सोच एक ओर हो जाती थी और उसके जहेन में बार बार हुस्न बानो का अर्ध नग्न शरीर आ रहा था, वो उसका अपना ब्लाउज़ खोल कर ब्रा खिसका देना, वो उसके भरे भरे स्तन! हुस्न बानो का वो अपना निपल जगदीश के मुंह में देना और स्नेह से सिर में हाथ घुमाना... बार बार जगदीश इस अनुभव को, इस दृश्य को दिमाग में दोहरा रहा था. उसे बहुत अच्छा लग रहा था यह सब याद करके. लिंग में हलकी सी उत्तेजना भी हो रही थी...
अचानक चूड़ियों की खनखनाहट से उसकी आंखें खुल गई. देखा तो शालिनी की कमर दिख रही थी...
शालिनी अपनी नौवारी साड़ी का छोर ठीक करने कमरे में आई थी. जगदीश तो बाहर मोहिते के साथ बात कर रहा है इस ख़याल में शालिनी ने पलंग पर वो सोया है यह भी देखा नहीं और पलंग के पास तिरछा खड़े हो कर आईने में देखते हुए वो अपना एक हाथ पीछे मोड़ कर साडी का छोर ठीक करने की कोशिश कर रही थी. जगदीश को न चाहते हुए भी यह ख़याल आया की इस तरह साडी ठीक करते हुए उसका ब्लाउज में लिपटा एक ओर का बड़ा सा स्तन, खुला पेट, हल्की सी दिखती नाभि और कमर का मोड़ , फिर नितंब का गोल उठाव यह सब कुल मिलकर एक इरोटिक विज्युअल खड़ा कर रहे है....इस तरह शालिनी को नहीं देखना चाहिए ऐसा सोच कर वो अपनी नजरे फेरने ही वाला था तभी शालिनी की नजर आईने में पलंग पर लेटे जगदीश पर पड़ी. वो चौंक कर बोल पड़ी. ‘भैया...आप!’ ....बौखलाहट में साड़ी का छोर कमर में लगाने के बजाय शालिनी के हाथ से सरक कर नीचे गिर गया. साडी नौवारी होने कारण उसका छोर इतना भारी था की शालिनी कमर पर एक ओर से साडी काफी नीचे तक खिसक गई. और यूं साडी खिसकने की वजह से शालिनी की कमर से लेकर नितंब नंगे होते हुए शालिनी के घुटने तक का हिस्सा खुला हो गया. शालिनी की चमकते पीले रंग की पेंटी में तना हुआ नितंब का गुबार खुल कर जगमगाने लगा....यह सब दो पल में हो गया.
***
हाइवे, पूना
‘कहां है डॉक्टर? यहां तो कोई डिस्पेंसरी दिख नहीं रही?’ जुगल ने हाईवे के सुमसाम नजारे देखते हुए बोला.
‘आगे लेफ्ट में एक गली दिखती है वहां टर्न ले लीजिये.’ पीछे की सीट पर बैठी औरत ने जवाब दिया.
‘उस गली में डिस्पेंसरी है क्या?’ जुगल ने उस गली को देखते हुए पूछा. चांदनी की नजर भी उस गली ओर गई.
‘नहीं. कोई और है जो आप से मिलना चाहता है.’
यह जवाब सुन कर चांदनी और जुगल ने चौंक कर पीछे मुड़ कर उस औरत को देखा. उस औरत के हाथ में रिवाल्वर तनी हुई थी. और उसकी गोद में बैठा बच्चा मासूमियत से उस रिवाल्वर को देख रहा था. नजरे मिलने पर उस औरत ने मुस्कुराकर बिनती के सुर में कहा.
‘प्लीज़?’
***
जगदीश ने अपना चहेरा दूसरी ओर मोड़ लिया. शालिनी ने तेजी से झुक कर साडी उठा कर अपना खुला नितंब ढकने की कोशिश की, और सफाई देने के अंदाज में कहा. ‘वो मुझे लगा की आप बाहर मोहिते के साथ बैठे है...सोरी भैया...’
जगदीश ने कुछ कहने अपना मुंह फेरा. शालिनी सर झुकाए खड़ी थी, उसने साडी का छोर उपर ले लिया था पर उस की कमर और नितंब अभी भी खुले ही थे. जिसका शायद शालिनी को अंदाजा नहीं था. जगदीश जोरों से हस पड़ा और फिर मुंह फेर कर बोला. ‘शालिनी, पहेले साडी ठीक करो ढंग से...’ शालिनी ने चौंक कर देखा और लजा कर अपना खुला हिस्सा ठीक से ढंका और बोली. ‘क्या पगली हूं मैं भी...’
जगदीश ने मुँह फेरे बिना पूछा. ‘ठीक की साडी?’
शालिनी ने चेक करते हुए कहा. ‘जी भैया.’
‘श्योर?’
शालिनी ने सकपकाकर फिर से अपनी कमर और नितंब का हिस्सा चेक किया और कहा. ‘जी श्योर भैया...’
जगदीश ने हंसते हुए मुंह फेर कर शालिनी के सामने देखा.
शालिनी ने रुआंसी आवाज़ में कहा. ‘ऐसे हंस क्या रहे हो? चाहिए तो मुझे डांटीये... अरे एक थप्पड़ भी मार दो तो चलेगा. पर हंसिये मत....’
‘सच में थप्पड़ मारू?’
शालिनी ने जगदीश की ओर देखा. उसका चेहरा गंभीर था.
‘मारिए. गलती की है तो थप्पड़ भी खा लुंगी.’
‘आओ करीब.’
शालिनी थोडा डरते हुए जगदीश के करीब गई : क्या जेठ जी सच में थप्पड़ मारंगे?
जगदीश ने थप्पड़ मारने के लिए बड़े जोश में अपना हाथ उपर उठाया. डर कर शालिनी ने अपनी आंखें मूंद ली...जगदीश ने शालिनी के गाल पर एक हल्की सी चपत लगाईं, जैसे की गाल को सहला रहा हो...शालिनी ने आश्चर्य से आंखें खोल कर जगदीश को देखा.
जगदीश फिर जोरों से हंस पड़ा.
शालिनी मुंह बना कर जगदीश के बगल में बैठ पड़ते हुऐ बोली.
‘मैंने कहा की चाहो तो मारो मुझे पर हंसो मत. पर आप को तो मेरा मजाक ही उड़ाना है...’
‘अरे पर जब यह मराठी स्टाइल की साडी तुम्हे पहननी जमती नहीं तो बारबार क्यों पहन लेती हो?’ पूछते हुए जगदीश फिर हंस पड़ा. उसको इतनी हंसी आ रही थी आंखों में आंसू आ गए. अपने आंसू पोंछते हुए जगदीश ने पूछा. ‘अब तो ड्रेस ले आया हूं न?’
‘मुंबई जा कर तो ये नौवारी पहन नहीं पाउंगी. यहां मौका मिला तो अपना शौक पूरा कर रही हूं. बस यह छोर पीछे की ओर लगाने में गड़बड़ हो जाती है और वो भी जब आप सामने होते है तब ही. सारा दिन मजे से साडी पहनकर कितना काम किया... कोई प्रॉब्लम नहीं पर आप को देखते ही पता नहीं क्या हो जाता है, ये दूसरी बार साड़ी का छोर दगा दे गया...’
‘ठीक है ठीक है भाई, कर लो अपना शौक पूरा. पर मैं जो कपडे लाया वो साइज़ में ठीक है क्या? चेक तो कर लेती?’
‘बहुत बढ़िया ड्रेस लाये हो भैया...थेंक यु सो मच...! ड्रेस में आप की टेस्ट की दाद देनी पड़ेगी, सच इतने मस्त ड्रेस आज तक मैंने खुद ने भी नहीं लिए...’ चहकती हुई आवाज में शालिनी ने कहा.
‘ओके ओके...पर साइज़ ठीक है?’
‘जी परफेक्ट है... पेंटी और ब्रा तो मैंने पहन भी लिए...’ शालिनी के मुंह से निकल गया और ये क्या बोल गई ऐसा एहसास उसे हो उसके पहले जगदीश के मुंह से जवाब निकल गया कि, ‘हां वो तो मैंने देखा...’
जगदीश बोल कर अटक गया. – शीट, ये क्या बोल दिया मैंने- सोचते हुए उसने अपनी बात को सुधारने की कोशिश में हिचकिचा कर कहा. ‘मेरा मतलब दिख गया...’
जगदीश जो ब्रा पेंटी के चार सेट ले आया था उस में से पिली ब्रा और पेंटी शालिनी ने पहन ली थी. अभी अभी साडी सरक जाने पर पिली पेंटी दिख गई थी, जेठ जी उसी का जीकर कर रहे है यह समझते हुए शालिनी लजा कर लाल लाल हो गई...
ये शालिनी भी मस्त कॉमेडी है, जब देखो तब जगदीश के सामने खुल जाती है। बेचारा इंसान करे भी तो किया करे। ये औरत जुगल को झनक या उसके बाप के पास तो नही ले जा रही है। कुछ बहुत बड़ा खेल होने वाला है। Dangerous game is about to begin.