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गुड्डू ने मेरी गांड़ को सहलाते हुए मुझे थोड़ा सा साइड किया, मैने एक झलक अच्छे से अपने बेटे कम सैयां को देखा फिर शर्म के मारे अपनी नजरें चुराने लगी। गुड्डू ने मेरे गाल पर किस्स किया और मदहोश होते हुए कहा “ऊऊहह माँ….तू सच में कमाल औरत है”
मैंने एक पल उसकी तरफ देखा फिर अपनी गर्दन नीचे करके पूछा “आपको अच्छा लगा?”
गुड्डू ने कोई जवाब नही दिया बस मेरी आंखो में देखता हुआ झुक कर मेरे नर्म और नाज़ुक होंठों को अपने सख्त और मर्दाना होठों से मिला दिया, पहले किस्स किया फिर मेरे होठों को अपने होठों में दबा कर चूसने लगा। मुझ पर भी उत्तेजना का असर होने लगा और मैं उसके बालों को सहलाते हुए उसके होठों को उसी तरह चूसने लगी।
उसने अपना एक हाथ मेरी गोल- गोल और सॉफ्ट चूचियों पर रख दिया या उनकी मालिश करने लगा और एक हाथ से मेरी सुडोल गांड़ को सेहनाने और दबाने लगा। मैं भी अपने बेटे का पूरा साथ दे रही थी और इस सब में हम ये भूल चुके थे की किचन के ठीक बाहर मेरी सास और ससुर मोजूद हैं। मैं दुनिया से बेखबर अपने ही बेटे के साथ अपने ही घर की किचन में उससे अपनी गांड़ और चूचियों की मालिश करवा रही थी।
काफी देर तक यूंही एक दूसरे के साथ प्यार करने के बाद मैंने उसके होठों से अपने होंठ अलग किये और ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी लेकिन अब वो मेरी गर्दन को चूमते हुए मेरी नरम गुदाज चूचियों को दबाने लगा।
कुछ देर इसी तरह मुझे प्यार करने के बाद गुड्डू मुझसे दूर हुआ, मैं कुछ समझ नही पाई और उसे हैरानी से देखती रही मेरी सवालिया नज़रों को समझते हुए गुड्डू ने कहा "बस, अब ज़्यादा नही वरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊंगा और अभी हम हमारे रूम में नही है।"
मैने उसका हाथ पकड़ कर फिर से अपने सीने पर रख दिया और कहा "तो क्या हुआ, आप मत रोको खुदको।"
गुड्डू ~ "अभी हम किचन में है मम्मी और बाहर दादा, दादी बैठे हैं।"
मैं ~ "क्यों कोई होगा तो अपनी मम्मी को प्यार नही करोगे? " (मैने गुड्डू की कल वाली बात दोहरा दी)
गुड्डू अब मेरी बात का मतलब समझ गया और मेरी कमर में हाथ डाल और मुझे फिर से पास खींच लिया और मेरी एक चूची को अपने हाथ में लेते हुए कहा। "अपनी सास और ससुर का डर नही है तुझे"
मैने भोला चेहरा बनाते हुए सिर्फ ना में सर हिला दिया। गुड्डू को मेरी ये अदाएं बहुत अच्छी लग रही थी उसने मेरे चेहरे को अपने मर्दाना हाथो में थाम और कहा "तो मेरी श्रद्धा को अब डर नही लगता।"
मै ~ "जब से आपसे प्यार हुआ है तब से नही लगता।"
गुड्डू ~ "और किसी को पता लग गया तो?"
मैं ~ "मुझे अब किसी से कोई फर्क नही पड़ता, मुझे अब सिर्फ आपका साथ चाहिए।"
ये सुन कर गुड्डू के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई और उसने कहा "तो मेरी श्रद्धा को अपने बेटे से किचन में चुदना है।"
मैंने इस बार बहुत खुशी और एक्सिटमेंट दिखाते हुए हां में गर्दन हिलाई।
ये देख कर गुड्डू ने मुझे फिर से किस्स करना शुरू कर दिया कभी मेरे होंठ फिर मेरी गर्दन और फिर गर्दन से होते हुए मेरे होंठ और फिर कुछ देर बाद मेरे सीने के ऊपर आ गया या चारों दिशाओं में चूमने लगे।
मेरे मुँह से धीरे धीरे बस “आआआआआअहह” की सिस्कारियाँ फूटने लगी। गुड्डू का एक हाथ मेरी साड़ी को ऊपर करके मेरी जांघो से होता हुआ मेरी कल की चुदाई से थोड़ी सुजी हुई और चिकनी चूत तक पहुँचने लगा।
गुड्डू एक हाथ से मेरे बूब्स और दूसरे हाथ को मेरी जांघो से होते हुए मेरी चूत तक ले जा रहा था और उसके सख्त हाथो का एहसास मुझे पागल बना रहा था। मैं उससे चिपक कर धीरे धीर आंहे भर रही थी. लेकीन गुडु के लिए मेरी साड़ी के कारण मेरी चूत तक जाना मुश्किल हो रहा था तो गुड्डू ने साड़ी के ऊपर से मेरी चूत पर हाथ रख कर दबा दिया.. और कहा
"अपनी साड़ी उठाओ श्रद्धा"
मैने बिना कुछ कहे चुप चाप झुक कर अपनी साड़ी और पेटीकोट पकड़ कर ऊपर करना शुरू कर दिया । पहले मेरे पैर नंगे हुए, फिर जांघें और फिर मेरी गीली कामरस टपकाती नंगी चूत गुड्डू की आंखो के सामने आ गई।
मेरी चूत को इस तरह पैंटी के बिना देख कर उसने कहा,
"आज पेंटी नही पहनी!"
मैं ~ "नहीं।"
गुड्डू ~ "क्यों?"
मैं ~ "पैंटी पहनती तो आपको परेशानी होती इस तक आसानी से पहुंचने में।"
इस पर गुड्डू के चेहरे पर लंबी मुस्कान आ गई और वो फर्श पर बैठ कर मेरी चूत को अच्छे से देखने लगा। मैं किचन में अपनी साड़ी को ऊपर उठाए खड़ी थी और मेरा अपना जवान बेटा फर्श पर बैठ कर मेरी भीगी और चिकनी फूली हुई चूत को देख रहा था। एक दम से मैने अपनी दोनो तांगे फेला कर उसे अच्छे से अपनी चूत दिखाते हुए कहा,
"ये लो देख लो अपनी मम्मी की चूत जहां से आप पैदा हुए थे।"
गुड्डू ~ "उउउउफ श्रद्धाआआ ये तो सच में जन्नत है"
और एक दम से वहीं बैठ कर मेरी चूत को चूम लिया और फिर चाटने लगा।
मैं ~ "उउउउम गुड्डू जी की आप अपने पापा की तरह बिलकुल नहीं है, आप को अपनी औरत को खुश रखना आता है। इस्स्स्स माआआ कब से आप की श्रद्धा की चूत इस प्यार के लिए तड़प रही थी मेरे राजा मैं बता नहीं सकती"
कुछ देर तक गुड्डू मेरी चूत का रस इस ही पिता रहा। मेरी चूत से पानी रिस रिस कर गुड्डू के मुंह में जा रहा था और थोड़ा मेरी जांघो से होते हुए ज़मीन पर गिर रहा था। मैने अपने दोनो हाथो से अपनी साड़ी पकड़ी हुई थी।
मैं ~ "आआआह गुड्डू जी आप सच में अपनी श्रद्धा के असली मर्द हो जिसे पता है कि उसकी लुगाई को क्या जरूरत है पर अब इसे छोड़ दो और अपने मोटे और लम्बे लंड को डाल कर इस निगोड़ी चूत को ठंडा कर दो क्यूकि हमारे पास ज्यादा वक्त नही है।"
ये सुन कर गुड्डू उठा और मुझे घुमा कर किचन काउंटर की तरफ़ घुमा कर झुका दिया अब मेरी गांड़ और चूत उभर गई थी। गुड्डू मेरी पीछे की तरफ उभरी हुई चूत पर अपना लन्ड लगा कर उसे ऊपर नीचे सहलाने लगा।
मैं बेसब्र हो रही थी और अपने होंटो को दांतो से काट रही थी की कब मेरा बेटा उसका लन्ड मेरी चूत में डालेगा।
मैं ~ "यूएफएफएफ, डाल दो ना जानू।"
गुड्डू ~ "डाल दूंगा पहले मेरे एक सवाल का जवाब दे।"
मैं ~ "कैसा सवाल गुड्डू जी?"
गुड्डू ~ "तू सच में मेरी बीवी बनना चाहती है?"
मैं ~ "मेरा तन और मन दोनों आपका है जान, अब बीवी बनाना है या कुछ और मैं आपके लिए सब बनने को तैयार हूं।"
मैं ~ "सब कुछ मंजूर है जान मैं भी आपकी बीवी के सारे फर्ज निभाना चाहती हूं।"
गुड्डू ~ "तेरे पति यानी मेरे पापा का क्या होगा?"
मैं ~ "वो अब मेरे ससुर जी है और पति आप हो।"
गुड्डू ने इस बात पर अपना लोड़ा मेरी चूत के छेद पर लगा दिया।
गुड्डू ~ "वो तुझे बीवी मान कर छूने की कोशिश करेगा तो?"
मैं ~ "सीईईईईईई... मुझे आपके अलावा अब कोई नही छू सकता। मैं कुछ भी करके उन्हे हाथ नही लगाने दूंगी। मुझ पर बस आपका हक है सिर्फ आपका और किसी का नही"
गुड्डू ने ये सुनते ही अपने लोड़े को धक्का देना शुरू कर दिया और वो मेरी चूत में जाने लगा।
गुड्डू का पूरा लंड मेरी गीली हो चुकी चूत में घुसता चला गया । मैं मदहोशी में आँखे बंद करके सिसकारी लेते हुए बोली।
"अहह ........ गुड्डू जी बहुत अच्छा लग रहा है"
गुड्डू के मोटे लंड से मुझे अपनी टाइट चूत में कुछ दर्द सा भी महसूस हो रहा था लेकिन दर्द के साथ साथ बहुत कामसुख भी मिल रहा था।
लन्ड को चूत में घुसते ही गुड्डू ने कहा,
"और बच्चो का क्या ? तू सच में बच्चे पैदा करेगी मेरे"
मैं गुड्डू के प्यार और उसके लन्ड से चुदाती हुई बोली,
"हां जान, आपकी श्रद्धा आपकी सगी मां आपके बच्चे पैदा करेगी। मैं नहीं जानती कैसे लेकिन मैं जरूर करूंगी। जितने आप चाहोगे उतने।"
गुड्डू ने आगे झुक कर मेरे गाल को चूम लिया और लन्ड को मेरी चूत में अंदर बाहर करते हुए बोला।
"तुझ से बेहतर औरत मुझे नही मिल सकती थी श्रद्धा।"
मैं ~ "मैं भी आआआआआ.... आप जैसा मर्द पाकर खुद को खुशनसीब समझती हूं जान।।।।"
गुड्डू के मेरी चूत पर पड़ते धक्कों से मेरी सिसकारियां बढ़ रही थी । लेकिन मैं ज्यादा तेज़ आवाज़ नही निकल सकती थी क्योंकि किचन के बाहर ही मेरी सास बैठी थी जिसे हमारी मेरी सिसकियां सुनाई दे सकती थी इसीलिए मेने अपनी सारी का पल्लू अपने मुंह में दबा लिया ताकि आवाज बाहर तक न जाए।