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Incest बालकनी में मां और बेटा (short story)

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Mr.red

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गुड्डू ~ क्यों नहीं मेरे होने वाले बच्चो की माँ तुझे नहीं चोदूंगा तो किसे चोदूंगा मेरी जान और उसने मेरी गर्दन पकड़ कर अपने धक्के की रफ़्तार और बढ़ा दी।

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मैं ~ हाआं हाआंआआ ऐसे ही चोदिये अपनी कुतीया को गुड्डू जी बहुत दर्द हो रहा है पर उससे ज्यादा मजा आ रहा है। आपके लंड ने मेरी चूत को चीर कर रख दिया है

गुड्डू ~ क्यू जब मैं निकला था तो तेरी चूत चीरी नहीं थी?

मैं ~ वो तो हर औरत की चिरती है जब बच्चा होता है पर फिर कुछ दिनो में सही हो जाती है गुड्डू जीइइइइ.... और कस के चोदिये न उउउउम..... बड़ा मजा आआआ रहा है जब मैं आप के बच्चे पेदा करूंगी और जब वो बाहर आएंगे तब भी मेरी चूत चिरेगी आआआआआ.... मेरा फिर से आने वाला है, गुड्डू जीइइइइइ, आपके अलावा कभी आपके पापा तक ने कभी भी एक दिन में दो बार नही झड़ाया मुझे लेकिन आप ने मेरी चूत से पानी निकाल निकाल कर.... मुझे पागल बना दिया हैह्ह्ह...

गुड्डू ~ आज का दिन याद रख ले श्रद्धा बस बाकी सब भूल जा कि कब चुदी थी और मेरी टांगे फिर से खोल कर ताबड़ तोड़ चोदने लगा मेरी मुंह से बार चिंखे निकल रही थी।



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गुड्डू ~ आआह्ह्ह्ह...मेरी मां श्रद्धा...

मैं ~ आआआआआआह्ह्ह्ह.... जानु...क्या लंड है आपका..शशश... एकदम गहराइयो तक जा रहा है...शहहह...

गुड्डू ~ तेरी चूत भी सबसे मस्त है...आह्ह्ह्ह क्या मजा देती है....पूरी लाइफ चोदू तो भी मन नहीं भरेगा...

इसी तरह हम मां बेटा बाकी का पूरा दिन यूंही जानवरो की तरह चुदाई करते रहे। सुबह से दोपहर तो हमे छत पर ही हो गई थी लेकिन अब रूम में रास लीला करते हुए हमे शाम हो चुकी थी। इस बीच मैं कितनी बार झड़ी मैं गिनती भूल चुकी हूं और गुड्डू भी मेरी बच्चेदानी में ओर 2 बार अपना गरम गरम माल छोड़ कर उसे लबालब भर चुका था। हम पागल हो चुके थे और इस बीच में गुड्डू का लौड़ा एक भी बार मेरी चूत से बाहर नही आया था।


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मैं ~ आआआह्हह्हह्ह मैं फिर से झंडने वाली हूं जानू और अब आप भी एक बार ओर झड़ जाओ। मै थक गई हूंऊऊऊऊऊऊ .... मुझ मैं ताकत नही बची।

गुड्डू ~ बस थोड़ी देर और मम्मी बस मैं भी आने वाला हूं।

और हम ऐसे ही फिर से झड़ने वाले होते है और तभी मुझे सुनाई देता है...कि हमारे घर के मैन डोर की कुंडी खुली....मतलब मेरे सास ससुर वापस आ गए है।


लेकिन मेरी सिसकारियां अब मेरे काबू में नही थी तो मेरे मुंह से आवाज ना आए इसलिए गुड्डू ने मेरे मुंह में उसके बेड पर पड़ी हुई उसकी एक गंदी चड्डी को इस तरह घुसा दिया जिससे मेरे मुंह से आवाज न आ सके.....और चुदाई जारी रखी।


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गुड्डू ~ फुसफुसाते हुए....आआहहहहह मैं झड़ने वाला हूं मम्मी..आहहहह...

हम दोनो के लंड और चूत के रस से पलंग और उसकी बेडशीट भीग रही थी और पच पच की आवाज़ आ रही थी... इतनी लंबी चुदाई की वजह से दोनो पसीने से भीग चुके थे...

गुड्डू ~ आह्ह्ह्ह...बस थोड़ी देर और श्रद्धा ...आह्ह्ह्ह मैं झड़ने वाला हूं...आह्ह्ह्ह...और पलंग हमारी चुदाई से जोर जोर से हिलाने लगा.. .



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तभी मैं गांड उछाल उछाल के झड़ने लगी और वाइब्रेट करने लगी...पर गुड्डू की चड्डी मुंह में थी तो आवाज नहीं आ रही थी... पर गुड्डू की गंध वाली गंदी चड्डी को सूंघते हुए अपने दांतों के बीच भींच रही थी....
और थोड़ी देर में गुड्डू का भी ज्वालामुखी फट गया मेरी चूत में.... और मेरी आंखें फट गई...जैसे ही उसके मुसल लोड़े के वीर्य की धारा मेरी बच्चेदानी में बहने लगी... क्युकी मेरी बच्चेदानी पहले ही उसके वीर्य से लबालब भरी थी पर इस नई धार के कारण मेरी बच्चे दानी किसी पानी के गुब्बारे की तरह फूलने लगी।



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गुड्डू~ अह्ह्ह्हह्ह....श्रद्धा...हां अह्ह्ह्हह्ह...लो मेरा रस अपनी चूत में...आहाह्ह्ह्ह....निचोड़ रही है तेरी चूत मुझे....आह्ह्ह्ह।

और ऐसे ही वीर्य की आखरी बूंद तक मेरी कोख में भर कर गुड्डू अपना लोड़ा तकरीबन 5 - 6 घंटे की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मेरी चूत से बाहर निकाल लेता है जिसके कारण मेरी चूत से पलक्क की आवाज़ आती है।
गुड्डू मेरे ही करीब उसी पलंग पर लेट गया और मैं बेसुध सी जीभ बाहर निकाल कर कुतीया की तरह ज़ोर ज़ोर से हांफने लगी।



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तभी मेरी सास ने आवाज़ दी "श्रद्धा... ओ श्रद्धा बहु" लेकिन मेरे कानों तक उनकी आवाज़ नही आ रही थी मेरे दिमाग में आज हुई चूत चुदाई के मज़े और थकान के कारण अंधेरा छा चुका था न मेरा शरीर और न दिमाग अब ठीक से काम कर रहा था।

कोई जवाब न पाकर मेरी सास फिर आवाज़ लगाती है "अरी श्रद्धा बहु..... कहां है"। इस पर गुड्डू मेरी और देखता है और उसे मेरी हालत का अंदाज़ा हो जाता है इसीलिए वो खुद अपनी दादी को जवाब देता है " हां दादी कहिए क्या हुआ?"

सास ~ गुड्डू बेटा, तेरी मां कहां है?

गुड्डू ~ वो...दादी वो ...उनकी तबियत खराब थी तो वो दावा ले कर गहरी नींद में सो गईं है। आप मुझे बताइए क्या काम है।

सास ~ तबियत खराब हो गई??? अभी तो सुबह बिलकुल ठीक थी।

गुड्डू ~ दादी वो ... पता नही कैसे अचानक ही..

सास ~ अच्छा ठीक है कोई बात नही। आज मैं खाना बना दूंगी उसे आराम करने दे। वैसे भी बिचारी दिन भर घर का काम ही करती है।

गुड्डू ~ (मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए) हां दादी आपने सही कहा.. मम्मी सच में बहुत मेहनत करती है ... 😂😂




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TO be continue....
Dhdam dhdam kar ke pela hai bete ne age kya hoga pata nahi 😆
 

Esac

Maa ka diwana
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उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं। गुड्डू के साथ दिनभर की चुदाई ने मुझे इतना थका दिया था कि गहरी नींद आ गई। इतनी गहरी नींद में कि उसके बाद क्या हुआ, कब हुआ, और कैसे हुआ, मुझे कुछ भी याद नहीं। मैं बस, गुड्डू के बिस्तर पर बेहोश होकर मादरजात नंगी सो रही थी।

मेरी नींद सीधे अगली सुबह खुली जब मैने खुद को गुड्डू के रूम में उसके बेड पर नंगी सोते हुए पाया।


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अपने आप को इस हालत में देख कर मैं सोच में पड़ गई की "कल गुड्डू ने सब कुछ कैसे मैनेज किया होगा मैं तो उसी के कमरे में नंगी हो कर सो रही थी। हाय!! राम.. कहीं सासू मां या ससुर जी ने मुझे गुड्डू के रूम में देख लिया होता तो।"

मैं ये सब सोच ही रही थी की मुझे गुड्डू के बेड की साइड पर मेरे धुले हुए कपड़े ठीक से स्त्री किए हुए दिखे।


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जिन्हे देख कर मुझे आश्चर्य से ज्यादा खुशी हुई और चेहरे पर एक नटखट मुस्कान आ गई। मैं समझ गई कि ये ज़रूर गुड्डू ही लाया होगा। "ओह... मेरे प्यारे सैयां जी, अपनी मां कम माशूका का कितना ध्यान रखते हो। मुझे कल रात भी कोई तकलीफ नहीं होने दी और आज सुबह भी कोई परेशानी न हो इसलिए खुद से मेरे कपड़े ला कर यहां रख दिए"

मैंने वह साड़ी अपने साथ ले ली और गुड्डू के बाथरूम में नहाने चली गई और जल्दी से तैयार होकर बाहर आई। आईने में खुद को देखते हुए, मुझे अचानक खुद से ही शर्म महसूस होने लगी।



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अब मुझे पूरी तरह यकीन हो गया था कि गुड्डू किस तरह मुझे देखकर दीवाना हो गया होगा। समय का बिल्कुल ध्यान न रखते हुए, खुशी-खुशी नीचे की ओर बढ़ी, लेकिन मेरी निगाहें हर जगह गुड्डू को ही खोज रही थीं। हर कोने, हर कमरे में उसकी तलाश करती हुई, मैं एक उम्मीद के साथ आगे बढ़ रही थी कि कहीं न कहीं वह मुझे मिल जाए।

नीचे आते ही मुझे मैन हॉल मेरे बैठे मेरे साथ ससुर दिखाई दिए लेकिन गुड्डू कहीं नहीं दिखा। मैने रोज़ की तरह उनके पैर छुए



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तब मेरे सास ने कहा

सास ~ "अब तबियत कैसी है बहु... कल अचानक तबियत खराब हो गई, आज डॉक्टर के पास चलते है"

नीचे आते ही मैंने देखा कि मुख्य हॉल में मेरे सास और ससुर बैठे थे, लेकिन गुड्डू कहीं नजर नहीं आया। मैंने आदत के अनुसार उनके पैर छुए। मेरी सास ने मुस्कराते हुए कहा:

सास ~ "अब तबियत कैसी है, बहु? कल अचानक तुम्हारी तबियत खराब हो गई थी। आज डॉक्टर के पास चलना चाहिए।"

मैं ~ (थोड़ी घबराहट के साथ): "नहीं-नहीं, मम्मी जी, बस थोड़ा बुखार हो गया था। डॉक्टर के पास जाने की कोई जरूरत नहीं है। अब मैं पूरी तरह से ठीक हूँ।"

सास~ "अच्छा, अच्छा, मेरी बच्ची ठीक हो गई। वरना कल रात तो सारा काम तेरे बेटे ने ही संभाला था।"

मैं ~(हैरान होकर): "मतलब?"

सास ~ "मतलब ये कि जब तुम बीमार थी, तो तुम्हारी गैरमोजूदगी में सारे काम उसने ही किए। बाहर से खाना मंगवाया, गंदे बर्तन धोए, तुम्हारे ससुर जी को दवाई दी और मेरे पैरों की मालिश भी वही कर रहा था।"

यह सुनकर मुझे अपनी कोख पर गर्व महसूस हुआ। कल मेरे बेटे ने मेरी थकावट के बावजूद न केवल मेरा बल्कि पूरे घर का ख्याल रखा। पहले मैं उसे केवल आवारागर्दी करने वाला समझती थी, लेकिन शायद मेरे प्यार का ही असर है कि उसने इतना सब किया। इस सोच से मैं मन ही मन शर्माने लगी।

तभी मेरी सास ने पूछा:


सास ~ "कहां खो गई हो, बहु?"

मैं ~ "कुछ नहीं मम्मी जी, बस ऐसे ही..."

सास ~ "खैर, छोड़ो। हमारे लिए चाय बना ला।"

मैं ~ "जी, अभी लाती हूँ।" तभी अचानक रुकते हुए, मैंने कहा, "मम्मी जी, गुड्डू को कहीं देखा? पता नहीं, वो कहीं नजर नहीं आ रहा।"

सास ~ (हंसते हुए): "लगता है बुखार की वजह से तुम्हारी याददाश्त चली गई है। गुड्डू तो कब का स्कूल जा चुका है, भूल गई? आज सोमवार है। तुम भी न, बहु!"


तभी मुझे याद आया की आज तो सोमवार है और मैं गुड्डू के प्यार में भूल ही गई की वो अभी स्कूल में ही पढ़ता है



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और भूलती भी कैसे नही उसकी दमदार चुदाई और कसरती बदन से बिल्कुल पता नहीं चलता कि वो 18 की उम्र का 12th स्टैंडर्ड का स्टूडेंट है।


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To be continued....
 
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Esac

Maa ka diwana
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मैं गुड्डू के बारे में यही सब सोचते हुए किचन में आ गई और अपने सास-ससुर के लिए चाय बनाने लगी। पर अब मेरा मन पहले जैसा हल्का नहीं था।

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गुड्डू की याद मुझे बार-बार सताने लगी। कल दिन भर जो उसने मेरे शरीर के हर करते को तोड़ा था और मेरी चूत की कुटाई की थी की अब मेरे लिए मेरा गुड्डू ही सब कुछ बन गया था। इसके बाद अब उसकी दीवानगी, उसका प्यार, ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी जिंदगी का हर कोना उसी से भरा हुआ हो। उसके बिना अब एक पल भी बिताना मुश्किल सा लगने लगा था। चाय बनाते समय भी मेरे खयालों में वही घूम रहा था, और उसके बदन और लोड़े का ख्याल मेरे दिल में एक खालीपन सा छोड़ रहा था।

भले ही गुड्डू सिर्फ स्कूल ही गया था, लेकिन मेरा दिल चाहता था कि वो हर पल मेरे पास रहे, मेरे साथ रहे। सासू मां के सामने तो मैं बिना कुछ कहे आ गई, लेकिन अंदर से मेरा दिल जानता था कि गुड्डू के घर में न होने की खबर ने मुझे कितना दुखी कर दिया था। अब हालात ऐसे हो गए थे कि मैं इस कदर उससे प्यार करने लगी हूं कि उसकी थोड़ी सी भी दूरी मेरे लिए जीना मुश्किल कर रही है। उसकी गैरमौजूदगी का दर्द मेरे दिल को चीर रहा था, और इस बेचैनी के बीच चाय बनाते हुए मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े।


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मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि इतनी छोटी सी दूरी भी अब मेरे लिए इतनी भारी क्यों हो रही थी।

ख़ैर, मैं गुड्डू को हर पल याद करते हुए दिन बिताने लगी। ये मुश्किल तो था, पर मैं फिर भी बस उस पल का इंतज़ार कर रही थी, जब उसके स्कूल की छुट्टी होगी और वो घर वापस आएगा। मेरे साथ मेरी चूत भी अपने बेटे के लिए आंसू बहा रही थी। सच कहूं, तो आज किसी भी काम में मेरा मन नहीं लग रहा था, लेकिन फिर भी बेमन से सब कुछ कर रही थी। मेरे सास-ससुर ने भी पूछा कि मुझे क्या हुआ, लेकिन मैं उन्हें अपने दिल का हाल कैसे बता सकती थी? समय धीरे-धीरे गुजर रहा था, हर पल मेरे लिए भारी हो रहा था। और फिर आखिरकार वह पल आया जब गुड्डू के स्कूल की छुट्टी हुई, और कुछ ही देर बाद वह घर आ गया।

गुड्डू जब घर में दाखिल हुआ, तो उसकी आंखें मुझे ढूंढने लगीं। वो इधर-उधर नजर दौड़ा रहा था, शायद मेरी झलक पाने के लिए, लेकिन मैं उसे कहीं नजर नहीं आई क्योंकि मैं किचन के दरवाजे के पास छिपकर उसे देख रही थी।



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मेरी सासू मां अभी भी हॉल में बैठी थीं, इस वजह से मैं चुपचाप छिपकर गुड्डू को निहार रही थी। मन तो मेरा यही कर रहा था कि भागकर जाऊं और उसे कसकर गले लगा लूं, और उसके बदन से लिपट कर उसके पसीने की महक को महसूस करूं लेकिन हालात ऐसे थे कि मुझे खुद को रोकना पड़ा। मैं यहां उसके लिए पागल हो रही थी और वो वही अपनी दादी के पास बैठ कर उनसे बाते करने लगा और मैं इंतजार करने लगी की वो कब मेरे पास आयेगा।

कुछ ही देर बाद गुड्डू उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगा। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी, जो किचन के दरवाजे पर खड़ी, उसे प्यार भरी आंखों से देख रही थी। उसने ऊपर जाने का इरादा छोड़ दिया और फिर मेरी सासू मां से बचते हुए चुपके-चुपके मेरी ओर, किचन की तरफ आने लगा। उसकी हर कदम में एक उत्सुकता थी, जैसे वह भी उतना ही बेताब हो मुझसे मिलने के लिए, जितनी मैं थी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, यह सोचकर कि अब वह मेरे पास आ रहा है।

यह देख मैं तुरंत दरवाजे से हटकर किचन के अंदर चली गई और गैस चूल्हे के पास जाकर उसकी ओर पीठ करके खड़ी हो गई। गुड्डू मेरे पीछे आया और उसने मुझे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया।



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सच कहूं तो उसकी छुअन से मेरे दिल को जो शांति मिली, वो मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती, लेकिन मन में अब एक हल्का सा गुस्सा था—क्योंकि वो मुझे छोड़कर चला गया था। इसलिए मैं धीरे से उसकी पकड़ से निकलकर थोड़ा दूर हो गई।

गुड्डू को कुछ समझ नहीं आया, वो थोड़ा असमंजस में बोला, "क्या हुआ श्रद्धा? मेरा आना अच्छा नहीं लगा?"

मैं ~ (हल्की नाराज़गी के साथ): "आज दिन भर में सिर्फ एक ही चीज़ अच्छी हुई है, और वो ये कि आप घर वापस आ गए।"

गुड्डू ~ (परेशानी भरी निगाहों से): "फिर ये बेरुखी क्यों?"

मैं ~ (नम आंखों के साथ उसे देखते हुए): "आपको मेरी जरा भी फिक्र नहीं हुई कि आपके बिना मेरा क्या हाल होगा? आप मुझे छोड़कर क्यों चले गए? आपको मेरी ज़रा भी परवाह नहीं है, है ना?"


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मेरी आवाज़ में दर्द और बेचैनी साफ झलक रही थी। उसने फिर से मुझे अपनी बांहों में प्यार से भर कर कहा।

"अरे मेरी जान, मैं कहीं दूर थोड़ी न गया था। स्कूल ही तो गया था।"


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इस बार मेने अपने बेटे की बांहों से अलग होना सही नही समझा और वैसे ही रूठते हुए उससे कहा।

"तो किसने कहा था स्कूल जाने के लिए। आप मेरे पास घर पर नही रह सकते थे क्या?"

गुड्डू ~ हस्ते हुए "यार तुम पहली मां हो जो अपने बेटे को स्कूल जाने से मना कर रही हो"

मैंने मुंह फुलाते हुए कहा,
मैं ~ "हां, कर रही हूं मना, क्योंकि मैं अब आपके बिना एक पल भी नहीं रह सकती।"

गुड्डू ~ (मुस्कराते हुए): "अच्छा, और मेरी पढ़ाई का क्या होगा?"

मैं ~ "क्या करोगे पढ़ाई करके? वैसे भी आपको अपने पापा का काम संभालना है।"

गुड्डू ~ (शरारत भरे अंदाज में): "अच्छा, फिर मुझ अनपढ़ की शादी कैसे होगी? कौन देगा बारहवीं फेल को अपनी बेटी?"

मैंने बिना सोचे-समझे तुरंत जवाब दे दिया,
मैं ~ "मैं हूं ना आपके लिए, फिर किसी और की क्या जरूरत।"

ये कहते ही मुझे एहसास हुआ कि मैंने क्या कह दिया है, और खुद ही शर्म से मुस्कुराते हुए अपनी नजरें नीचे कर लीं।



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गुड्डू ~ (मुस्कराते हुए, शरारत भरी आवाज़ में) ~ "तो मेरी सगी मां को मेरी पत्नी बनना है?"

ये बोलते हुए गुड्डू मेरी गांड़ को सहलाने लगा पर मैं कुछ नहीं बोली, बस नज़रें नीचे किए धीरे-धीरे अपनी गर्दन हिलाकर सहमति जताई। मेरी इस अदा पर गुड्डू की मुस्कान और चौड़ी हो गई। उसने मेरी ठोड़ी को हल्के से उठाकर मेरी आंखों में देखा।

गुड्डू ~ मेरी गांड़ को कस कर दबाते हुए "और बच्चों का क्या? पापा को ढेर सारे पोते-पोतियां भी तो देने हैं।"


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उसकी इस बात पर मैं बिना कुछ कहे उसके गले से लग गई और अपना चेहरा उसकी छाती में छुपा लिया। मेरी धड़कनें तेज हो रही थीं, और मैंने धीमी आवाज़ में कहा,
मैं ~ "आआह्.... आपकी श्रद्धा सब कुछ करेगी।"

उसके सीने में छुपी, मैं खुद को सैफ महसूस कर रही थी।



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To be continued.....
 
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Esac

Maa ka diwana
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Bahut hee badhiya ji sabase badhiya hai aap kee lagan aur devnagari fonts me likhana aap mere sabase favorites writter hai sir
Mr.mrs patel ke story bhee aap ne jis kadhar re-create.kee thee vo too good thank
Thanks dost, Aap jese readers agar kisi writer ko mil jae toh uska Kaam safal ho jaata hai. Ye aap logo ki sachhi appreciation hi toh hai jisse hame yakin hota hai log hamare kaam ko padh rahe hai. Aapne jis tarah apne shabdo me baat kahi hai uske liye thanks again. 🙏

Kash baki readers bhi aap logo ki tarah ho jo har bar same shabdo me tarif karne ke bajaye Dil se padh kar kahani ko lekar apni baate kahe. :love3:
 
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