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#124
निशा- तुम्हे उसे जाने नहीं देना चाहिये था. कभी कभी लगता है की इतना पास आकर तुम्हारे कदम रुक जाते है .
मैं- जान कर जाने दिया रमा को मेरी जान. ताकि सही समय पर उसे राय साहब के साथ पकड सकू. रमा-मंगू-राय साहब तीनो ही मिले हुए है. तीनो ऐसा दर्शाते है की अलग है पर असल में एक है ये तीनो.राय साहब धुप-छाया का खेल खेल रहे है .
निशा- रमा ने ऐसा क्यों कहा की प्रकाश नहीं चाहता था की तुम अतीत जानो
मैं- परकाश राय साहब की नाजायज औलाद था .
मेरी बात सुन कर निशा की चेहरे का रंग बदल गया . मैंने उसे पूरी बात बता दी .
मैं- राय साहब को बाप कहते हुए शर्म आती है पर चाह कर भी मैं इस सच को झुठला नहीं सकता की मेरी रगों में उसका ही खून दौड़ रहा है.
निशा- तुम अलग हो कबीर . तुम सा कोई नहीं.
मैं- बस तुमने ही जाना मुझे मेरी जाना.
निशा- रिश्तो का बोझ बहुत भारी होता है कबीर, मुझे ख़ुशी है की मैने उस इन्सान का हाथ थामा है जो लायक है .
मैं- सोचा था की कल बड़ा खूबसूरत होगा. बरसते रंग में रंग दूंगा तेरी चुनरिया . हाथो में गुलाल लिए तुझे अपने आगोश में लिए ढलते सूरज की लाली में लाल रंगुंगा. रंग से भीगी तुम जब अपनी जुल्फों जो झटको गी तो ये नुरानी चेहरा देखूंगा . सिंदूर को अबीर बना कर तुम्हे जो रंग दूंगा , प्रेम का रंग फिर न छुटेगा तुम से.
“मैं तो रंग चुकी हूँ सरकार तुम्हारे प्रेम में .” निशा ने बेहद हौले से कहा.
जंगल में बहुत तलाश की पर हमें आदमखोर नहीं मिला. रह रह कर उसकी आवाजे तो आती रही पर वो नहीं मिला. रात के तीसरे पहर में मैंने निर्णय लिया की निशा को छोड़ आऊ , बेशक वो जाना नहीं चाहती थी पर मैंने जोर दिया. इस वादे के साथ की जल्दी ही उसे अपना बनाने मैं आऊंगा.
वापसी में मेरा एक एक कदम इतना भारी हो गया था की मैं क्या बताऊ उस बोझ के बारे में. आँखों के आगे चंपा का चेहरा घूम रहा था , ये मनहूस रात सब कुछ लूट ले गए थी हमसे.बरसो बाद घर में ख़ुशी आई थी , और अब हालात देख कर मैं सोच रहा था की काश ये ख़ुशी आती ही नहीं. कुछ थकान थी कुछ मुठभेड़ की चोटों का दर्द. मैंने घर जाने के बजाय खंडहर पर जाने का सोचा. थोड़ी देर मैं सोना चाहता था मैंने ख़ामोशी से छिपे कमरे को खोला और अन्दर दाखिल हो गया.
पर देखिये, किस्मत हमारी. नींद भी साली आज बेवफाई पर उतर आई थी . कमरे में मैंने जो देखा नींद रुसवाई कर गयी. कमरे में चिमनी की रौशनी में मेरी नजर जिस सक्श पर पड़ी. सात जन्मो में भी मैं यकीन नहीं कर सकता था की वो इन्सान मुझे वहां पर मिलेगा.
हम दोनों की नजरे मिली. हम दोनों थके थे , परेशान थे पर यहाँ इस जगह पर हम दोनों का होना सामान्य बिलकुल नहीं था .
“तुम सोच नहीं सकते जंगल ने अपने अन्दर क्या क्या छिपाया है. मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के शब्दों को दोहराया.
“तो अब कहने को क्या ही रह गया है ” मैंने चुप्पी को तोडा.
“जानता था तू आज नहीं तो कल यहाँ पहुँच ही जायेगा छोटे ” भैया ने टूटती आवाज में कहा .
मैं- ये मेरी ही जगह है भैया. पर आपका यहाँ पर होना बहुत कुछ कह रहा है मुझे, ये दीवारे चीख रही है . ये दीवारे पहले भी चीख रही थी बस मैं समझ नहीं पाया था उन चीखो को .
भैया- तेरी जगह , ह्म्म्म . तुझसे पहले न जाने कितने आये कितने गए जिन्होंने इस जंगल में अपनी जिन्दगी जी .तू जानता ही क्या है
मैं- जान जाऊंगा भैया जान जाऊंगा. आज आपको मेरे सवालो के जवाब देने ही होंगे. आज आपका कोई बहाना नहीं चलेगा,मैं चलने ही नहीं दूंगा. आज सिर्फ मैं बोलूँगा और आप सुनेंगे.
भैया अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ाई और बोले- अपने बड़े भाई से ऐसे बात करेगा तू
मैं- समझ नहीं आ रहा की कहाँ से शुरू करू . सवाल बहुत है और जवाब के लिए बड़ा बेकरार मैं तो सीधा मुद्दे पर आते है अपने भाई को तो बता सकते थे न की आदमखोर कौन है , जानता हूँ आप जानते थे की आपका राज खुल जायेगा जानता हूँ की आप मुझसे बेहद प्यार करते है इसलिए आपने अपनी दवाई की पुडिया मुझे दी ताकि मैं सुरक्षित रह सकू पर आप खुद पर काबू नहीं रख पाए और देखो क्या काण्ड हो गया.
भैया खामोश बैठे रहे कुर्सी पर कुछ नहीं बोले. उनकी ख़ामोशी और गुस्सा दिलाने लगी मुझे.
“बोलते क्यों नहीं ” जिंदगी में पहली बार मैंने भैया के सामने आवाज ऊंची की थी .
भैया- क्या बोलू. कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को जो है यही है .
भैया के शब्दों ने मेरे कलेजे पर चोट कर दी थी .
मैं- चंपा के सर पर हाथ रख कर कसम खाई है मैंने की उसके खुशियों के कातिल को सजा दूंगा . पर अब कैसे समझाऊ खुद को की कातिल भी मेरा अपना ही है .
भैया- सच के पथ पर चलना बड़ा कठिन होता है छोटे. जब जब तू इस सच को जान ही गया है तो तुझे अपने वादे को पूरा करना चाहिए. मैं जानता हूँ जो हुआ बेहद गलत हुआ है इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं .मैं भी तंग आ गया हूँ इस बोझ को उठाते उठाते . और फिर मुझसे खुशनसीब भला कौन होगा जो अपने भाई के हाथो रुखसत होगा.
भैया कुर्सी से उठे और मेरे पास आये , उन्होंने जेब से एक पिस्तौल निकाली और बोले- चला इसे और दाग दे सारे बारूद को मेरे अंदर. बस इतना ध्यान रहे यहाँ क्या हुआ ये इस दरवाजे के बाहर कभी नहीं जान पाए कोई.
बड़ी मुश्किल से आँखों में भर आये पानी के कतरे को मैंने बहने से रोका. मेरा भाई बहुत चाहता था मुझे. मैं चाह कर भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था की असली आदमखोर मेरा भाई था .मेरे हाथ कांपने लगे थे .
भैया- क्या सोच रहा है चला पिस्तौल
मैंने पिस्तौल भैया पर तान दी.........
निशा- तुम्हे उसे जाने नहीं देना चाहिये था. कभी कभी लगता है की इतना पास आकर तुम्हारे कदम रुक जाते है .
मैं- जान कर जाने दिया रमा को मेरी जान. ताकि सही समय पर उसे राय साहब के साथ पकड सकू. रमा-मंगू-राय साहब तीनो ही मिले हुए है. तीनो ऐसा दर्शाते है की अलग है पर असल में एक है ये तीनो.राय साहब धुप-छाया का खेल खेल रहे है .
निशा- रमा ने ऐसा क्यों कहा की प्रकाश नहीं चाहता था की तुम अतीत जानो
मैं- परकाश राय साहब की नाजायज औलाद था .
मेरी बात सुन कर निशा की चेहरे का रंग बदल गया . मैंने उसे पूरी बात बता दी .
मैं- राय साहब को बाप कहते हुए शर्म आती है पर चाह कर भी मैं इस सच को झुठला नहीं सकता की मेरी रगों में उसका ही खून दौड़ रहा है.
निशा- तुम अलग हो कबीर . तुम सा कोई नहीं.
मैं- बस तुमने ही जाना मुझे मेरी जाना.
निशा- रिश्तो का बोझ बहुत भारी होता है कबीर, मुझे ख़ुशी है की मैने उस इन्सान का हाथ थामा है जो लायक है .
मैं- सोचा था की कल बड़ा खूबसूरत होगा. बरसते रंग में रंग दूंगा तेरी चुनरिया . हाथो में गुलाल लिए तुझे अपने आगोश में लिए ढलते सूरज की लाली में लाल रंगुंगा. रंग से भीगी तुम जब अपनी जुल्फों जो झटको गी तो ये नुरानी चेहरा देखूंगा . सिंदूर को अबीर बना कर तुम्हे जो रंग दूंगा , प्रेम का रंग फिर न छुटेगा तुम से.
“मैं तो रंग चुकी हूँ सरकार तुम्हारे प्रेम में .” निशा ने बेहद हौले से कहा.
जंगल में बहुत तलाश की पर हमें आदमखोर नहीं मिला. रह रह कर उसकी आवाजे तो आती रही पर वो नहीं मिला. रात के तीसरे पहर में मैंने निर्णय लिया की निशा को छोड़ आऊ , बेशक वो जाना नहीं चाहती थी पर मैंने जोर दिया. इस वादे के साथ की जल्दी ही उसे अपना बनाने मैं आऊंगा.
वापसी में मेरा एक एक कदम इतना भारी हो गया था की मैं क्या बताऊ उस बोझ के बारे में. आँखों के आगे चंपा का चेहरा घूम रहा था , ये मनहूस रात सब कुछ लूट ले गए थी हमसे.बरसो बाद घर में ख़ुशी आई थी , और अब हालात देख कर मैं सोच रहा था की काश ये ख़ुशी आती ही नहीं. कुछ थकान थी कुछ मुठभेड़ की चोटों का दर्द. मैंने घर जाने के बजाय खंडहर पर जाने का सोचा. थोड़ी देर मैं सोना चाहता था मैंने ख़ामोशी से छिपे कमरे को खोला और अन्दर दाखिल हो गया.
पर देखिये, किस्मत हमारी. नींद भी साली आज बेवफाई पर उतर आई थी . कमरे में मैंने जो देखा नींद रुसवाई कर गयी. कमरे में चिमनी की रौशनी में मेरी नजर जिस सक्श पर पड़ी. सात जन्मो में भी मैं यकीन नहीं कर सकता था की वो इन्सान मुझे वहां पर मिलेगा.
हम दोनों की नजरे मिली. हम दोनों थके थे , परेशान थे पर यहाँ इस जगह पर हम दोनों का होना सामान्य बिलकुल नहीं था .
“तुम सोच नहीं सकते जंगल ने अपने अन्दर क्या क्या छिपाया है. मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के शब्दों को दोहराया.
“तो अब कहने को क्या ही रह गया है ” मैंने चुप्पी को तोडा.
“जानता था तू आज नहीं तो कल यहाँ पहुँच ही जायेगा छोटे ” भैया ने टूटती आवाज में कहा .
मैं- ये मेरी ही जगह है भैया. पर आपका यहाँ पर होना बहुत कुछ कह रहा है मुझे, ये दीवारे चीख रही है . ये दीवारे पहले भी चीख रही थी बस मैं समझ नहीं पाया था उन चीखो को .
भैया- तेरी जगह , ह्म्म्म . तुझसे पहले न जाने कितने आये कितने गए जिन्होंने इस जंगल में अपनी जिन्दगी जी .तू जानता ही क्या है
मैं- जान जाऊंगा भैया जान जाऊंगा. आज आपको मेरे सवालो के जवाब देने ही होंगे. आज आपका कोई बहाना नहीं चलेगा,मैं चलने ही नहीं दूंगा. आज सिर्फ मैं बोलूँगा और आप सुनेंगे.
भैया अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ाई और बोले- अपने बड़े भाई से ऐसे बात करेगा तू
मैं- समझ नहीं आ रहा की कहाँ से शुरू करू . सवाल बहुत है और जवाब के लिए बड़ा बेकरार मैं तो सीधा मुद्दे पर आते है अपने भाई को तो बता सकते थे न की आदमखोर कौन है , जानता हूँ आप जानते थे की आपका राज खुल जायेगा जानता हूँ की आप मुझसे बेहद प्यार करते है इसलिए आपने अपनी दवाई की पुडिया मुझे दी ताकि मैं सुरक्षित रह सकू पर आप खुद पर काबू नहीं रख पाए और देखो क्या काण्ड हो गया.
भैया खामोश बैठे रहे कुर्सी पर कुछ नहीं बोले. उनकी ख़ामोशी और गुस्सा दिलाने लगी मुझे.
“बोलते क्यों नहीं ” जिंदगी में पहली बार मैंने भैया के सामने आवाज ऊंची की थी .
भैया- क्या बोलू. कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को जो है यही है .
भैया के शब्दों ने मेरे कलेजे पर चोट कर दी थी .
मैं- चंपा के सर पर हाथ रख कर कसम खाई है मैंने की उसके खुशियों के कातिल को सजा दूंगा . पर अब कैसे समझाऊ खुद को की कातिल भी मेरा अपना ही है .
भैया- सच के पथ पर चलना बड़ा कठिन होता है छोटे. जब जब तू इस सच को जान ही गया है तो तुझे अपने वादे को पूरा करना चाहिए. मैं जानता हूँ जो हुआ बेहद गलत हुआ है इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं .मैं भी तंग आ गया हूँ इस बोझ को उठाते उठाते . और फिर मुझसे खुशनसीब भला कौन होगा जो अपने भाई के हाथो रुखसत होगा.
भैया कुर्सी से उठे और मेरे पास आये , उन्होंने जेब से एक पिस्तौल निकाली और बोले- चला इसे और दाग दे सारे बारूद को मेरे अंदर. बस इतना ध्यान रहे यहाँ क्या हुआ ये इस दरवाजे के बाहर कभी नहीं जान पाए कोई.
बड़ी मुश्किल से आँखों में भर आये पानी के कतरे को मैंने बहने से रोका. मेरा भाई बहुत चाहता था मुझे. मैं चाह कर भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था की असली आदमखोर मेरा भाई था .मेरे हाथ कांपने लगे थे .
भैया- क्या सोच रहा है चला पिस्तौल
मैंने पिस्तौल भैया पर तान दी.........