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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#124



निशा- तुम्हे उसे जाने नहीं देना चाहिये था. कभी कभी लगता है की इतना पास आकर तुम्हारे कदम रुक जाते है .

मैं- जान कर जाने दिया रमा को मेरी जान. ताकि सही समय पर उसे राय साहब के साथ पकड सकू. रमा-मंगू-राय साहब तीनो ही मिले हुए है. तीनो ऐसा दर्शाते है की अलग है पर असल में एक है ये तीनो.राय साहब धुप-छाया का खेल खेल रहे है .

निशा- रमा ने ऐसा क्यों कहा की प्रकाश नहीं चाहता था की तुम अतीत जानो

मैं- परकाश राय साहब की नाजायज औलाद था .

मेरी बात सुन कर निशा की चेहरे का रंग बदल गया . मैंने उसे पूरी बात बता दी .

मैं- राय साहब को बाप कहते हुए शर्म आती है पर चाह कर भी मैं इस सच को झुठला नहीं सकता की मेरी रगों में उसका ही खून दौड़ रहा है.



निशा- तुम अलग हो कबीर . तुम सा कोई नहीं.

मैं- बस तुमने ही जाना मुझे मेरी जाना.

निशा- रिश्तो का बोझ बहुत भारी होता है कबीर, मुझे ख़ुशी है की मैने उस इन्सान का हाथ थामा है जो लायक है .

मैं- सोचा था की कल बड़ा खूबसूरत होगा. बरसते रंग में रंग दूंगा तेरी चुनरिया . हाथो में गुलाल लिए तुझे अपने आगोश में लिए ढलते सूरज की लाली में लाल रंगुंगा. रंग से भीगी तुम जब अपनी जुल्फों जो झटको गी तो ये नुरानी चेहरा देखूंगा . सिंदूर को अबीर बना कर तुम्हे जो रंग दूंगा , प्रेम का रंग फिर न छुटेगा तुम से.

“मैं तो रंग चुकी हूँ सरकार तुम्हारे प्रेम में .” निशा ने बेहद हौले से कहा.

जंगल में बहुत तलाश की पर हमें आदमखोर नहीं मिला. रह रह कर उसकी आवाजे तो आती रही पर वो नहीं मिला. रात के तीसरे पहर में मैंने निर्णय लिया की निशा को छोड़ आऊ , बेशक वो जाना नहीं चाहती थी पर मैंने जोर दिया. इस वादे के साथ की जल्दी ही उसे अपना बनाने मैं आऊंगा.

वापसी में मेरा एक एक कदम इतना भारी हो गया था की मैं क्या बताऊ उस बोझ के बारे में. आँखों के आगे चंपा का चेहरा घूम रहा था , ये मनहूस रात सब कुछ लूट ले गए थी हमसे.बरसो बाद घर में ख़ुशी आई थी , और अब हालात देख कर मैं सोच रहा था की काश ये ख़ुशी आती ही नहीं. कुछ थकान थी कुछ मुठभेड़ की चोटों का दर्द. मैंने घर जाने के बजाय खंडहर पर जाने का सोचा. थोड़ी देर मैं सोना चाहता था मैंने ख़ामोशी से छिपे कमरे को खोला और अन्दर दाखिल हो गया.



पर देखिये, किस्मत हमारी. नींद भी साली आज बेवफाई पर उतर आई थी . कमरे में मैंने जो देखा नींद रुसवाई कर गयी. कमरे में चिमनी की रौशनी में मेरी नजर जिस सक्श पर पड़ी. सात जन्मो में भी मैं यकीन नहीं कर सकता था की वो इन्सान मुझे वहां पर मिलेगा.



हम दोनों की नजरे मिली. हम दोनों थके थे , परेशान थे पर यहाँ इस जगह पर हम दोनों का होना सामान्य बिलकुल नहीं था .

“तुम सोच नहीं सकते जंगल ने अपने अन्दर क्या क्या छिपाया है. मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के शब्दों को दोहराया.



“तो अब कहने को क्या ही रह गया है ” मैंने चुप्पी को तोडा.

“जानता था तू आज नहीं तो कल यहाँ पहुँच ही जायेगा छोटे ” भैया ने टूटती आवाज में कहा .

मैं- ये मेरी ही जगह है भैया. पर आपका यहाँ पर होना बहुत कुछ कह रहा है मुझे, ये दीवारे चीख रही है . ये दीवारे पहले भी चीख रही थी बस मैं समझ नहीं पाया था उन चीखो को .

भैया- तेरी जगह , ह्म्म्म . तुझसे पहले न जाने कितने आये कितने गए जिन्होंने इस जंगल में अपनी जिन्दगी जी .तू जानता ही क्या है

मैं- जान जाऊंगा भैया जान जाऊंगा. आज आपको मेरे सवालो के जवाब देने ही होंगे. आज आपका कोई बहाना नहीं चलेगा,मैं चलने ही नहीं दूंगा. आज सिर्फ मैं बोलूँगा और आप सुनेंगे.

भैया अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ाई और बोले- अपने बड़े भाई से ऐसे बात करेगा तू

मैं- समझ नहीं आ रहा की कहाँ से शुरू करू . सवाल बहुत है और जवाब के लिए बड़ा बेकरार मैं तो सीधा मुद्दे पर आते है अपने भाई को तो बता सकते थे न की आदमखोर कौन है , जानता हूँ आप जानते थे की आपका राज खुल जायेगा जानता हूँ की आप मुझसे बेहद प्यार करते है इसलिए आपने अपनी दवाई की पुडिया मुझे दी ताकि मैं सुरक्षित रह सकू पर आप खुद पर काबू नहीं रख पाए और देखो क्या काण्ड हो गया.



भैया खामोश बैठे रहे कुर्सी पर कुछ नहीं बोले. उनकी ख़ामोशी और गुस्सा दिलाने लगी मुझे.

“बोलते क्यों नहीं ” जिंदगी में पहली बार मैंने भैया के सामने आवाज ऊंची की थी .

भैया- क्या बोलू. कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को जो है यही है .

भैया के शब्दों ने मेरे कलेजे पर चोट कर दी थी .

मैं- चंपा के सर पर हाथ रख कर कसम खाई है मैंने की उसके खुशियों के कातिल को सजा दूंगा . पर अब कैसे समझाऊ खुद को की कातिल भी मेरा अपना ही है .

भैया- सच के पथ पर चलना बड़ा कठिन होता है छोटे. जब जब तू इस सच को जान ही गया है तो तुझे अपने वादे को पूरा करना चाहिए. मैं जानता हूँ जो हुआ बेहद गलत हुआ है इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं .मैं भी तंग आ गया हूँ इस बोझ को उठाते उठाते . और फिर मुझसे खुशनसीब भला कौन होगा जो अपने भाई के हाथो रुखसत होगा.

भैया कुर्सी से उठे और मेरे पास आये , उन्होंने जेब से एक पिस्तौल निकाली और बोले- चला इसे और दाग दे सारे बारूद को मेरे अंदर. बस इतना ध्यान रहे यहाँ क्या हुआ ये इस दरवाजे के बाहर कभी नहीं जान पाए कोई.

बड़ी मुश्किल से आँखों में भर आये पानी के कतरे को मैंने बहने से रोका. मेरा भाई बहुत चाहता था मुझे. मैं चाह कर भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था की असली आदमखोर मेरा भाई था .मेरे हाथ कांपने लगे थे .

भैया- क्या सोच रहा है चला पिस्तौल

मैंने पिस्तौल भैया पर तान दी.........




 

Studxyz

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यहाँ तो पासा ही पलट गया वैसे तो लगता है की अभिमानु अभी भी कुछ झूट बोल रहा है पर आदमखोर ये नहीं होगा और कबीर ने भी हद कर दी बड़े भाई पर पिस्तौल तान दी जिस ने अपनी दवाई इसको दी वो भी किस के लिए उस चम्पा के लिए जो छुपी छुपाई कइयों से चुदती रही है चाहे लाख मज़बूरी हो लेकिन अपने सखा कबीर को तो बता सकती थी

इसलिए कबीर का भाई पर उस चुदी चुदाई चम्पा के लिए गोली मारना कतई न्यायसंगत नहीं है और फिर प्यार करने वाले भाई को मार कर चम्पा की चुत सील पैक तो होने से रही और अगर कबीर इतना ही न्याय पसंद है तो पहले मंगू प्रकाश रमा को मारता उसे साले चोदू शहेंशाह राये साहब को मारता पर ये तो यहाँ अपनी टाइट पिंक चुत वाली भाभी को विधवा बनाने पर तुला हुआ है
 
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अभिमानू भैया ने अपनी गुनाह कबुल कर ली । उनके शारीरिक क्षमता मे अचानक से तब्दीली सवालिया निशान तो छोड़ ही रहा था लेकिन फिर भी मुझे ऐसे नेक इंसान पर शक करना गवार नही रहा था।
कुछ तो दास्तान होंगी जो एक नेक बंदा इस फसाने का मुख्य विलेन बन गया! एक राम कलयुग का रावण बन बैठा!
बहुत ज्यादा दुखांत घड़ी है हमारे लिए। और कबीर के लिए ।
 

kamdev99008

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इंन दोनों कहानियों के लिंक शेयर करिए न... 😍
द डार्क साइड सागा ......... फौजी भाई ने xossip के बाद आगे लिखी ही नहीं......... वो यहाँ पीडीएफ़ में मौजूद है
मानु भाई ने "एक अनोखा बंधन-पुनः प्रारम्भ" के नाम से अपनी आत्मकथा यहाँ दोबारा शुरू कर दी है... लिंक नीचे दे रहा हूँ
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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सबसे पहले तो भाई जब तक मुझे इस बात का यकीन रहेगा की आप कहानी खत्म करने से पहले सारे सवालों का जवाब दे दोगे तब तक मुझे कोई दिक्कत नही आप कितने सारे अपडेट में और कब तक खत्म कर रहे

फौजी भाई अगर अभिमानु ही असली आदमखोर है तो उसे मरना ही चाहिए वो भी गांव वालो के सामने
At least कबीर के किरदार में इतनी रीड की हड्डी तो रखो

आगे कबीर आदमखोर को बस इस लिए छोड़ दिया की वो उसका भाई है तो फिर ये कहानी बिना सिर पैर के लगने लगेगी

बिल्कुल सस्पेंस वाली कहानी है और सच कहूं तो अब तक की सबसे best suspence कहानी में से एक है लेकिन सस्पेंस के पीछे लॉजिक भी सही समय पर आना चाहिए

अगर कबीर के किरदार में अब थोड़ा बहुत rudeness नही आया तो कोई मतलब नहीं रह जायेगा उसका होना ना होना

कबीर के विरक्त होने में क्या कमी रह गई हैं

उसका बाप मादरचोद है,
भाभी बहन की लौड़ी शुरू से गुमराह कर रही
मंगू बहन का लौड़ा और वो रण्डी चंपा अलग ही दोस्ती निभा रहे
रमा का इतना मदद किया वो अलग गांड़ मार गई
चाची को सब मालूम था इतना पूछा कबीर झांट कुछ तो बताती

पहले बुरा लग रहा था अंजू के साथ जो हुआ, अब लग रहा हैं उस दिन kiss करने के जगह पटक के चोदा होता उसको तो शेखर जिंदा होता
पर इन भोसडीवालों के चक्कर में निपट गया

ले दे के उसका भाई बचा था उसका भी रंडापा बाहर आ गया

ये मैं नही मेरा frustration बोल रहा है।

आप से request है की अगर कहानी का हीरो हैं तो at least कुछ तो dignity रखो की लगे वो हीरो है

और ठीक आप इस कहानी के writer हो आप जैसा चाहो कहानी वैसा लिखो लेकिन readers का भी कुछ ध्यान रखिए

readers में कबीर को लेकर patient खत्म हो गया है और अब iritate हो रहे है कबीर से
please अब इसे और मत बढ़ाइए


बाकी आज का अपडेट शानदार था, एक सवाल का जवाब मिला है आदमखोर कौन है
बाकी जवाबों को प्रतीक्षा में
 
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Devilrudra

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#124



निशा- तुम्हे उसे जाने नहीं देना चाहिये था. कभी कभी लगता है की इतना पास आकर तुम्हारे कदम रुक जाते है .

मैं- जान कर जाने दिया रमा को मेरी जान. ताकि सही समय पर उसे राय साहब के साथ पकड सकू. रमा-मंगू-राय साहब तीनो ही मिले हुए है. तीनो ऐसा दर्शाते है की अलग है पर असल में एक है ये तीनो.राय साहब धुप-छाया का खेल खेल रहे है .

निशा- रमा ने ऐसा क्यों कहा की प्रकाश नहीं चाहता था की तुम अतीत जानो

मैं- परकाश राय साहब की नाजायज औलाद था .

मेरी बात सुन कर निशा की चेहरे का रंग बदल गया . मैंने उसे पूरी बात बता दी .

मैं- राय साहब को बाप कहते हुए शर्म आती है पर चाह कर भी मैं इस सच को झुठला नहीं सकता की मेरी रगों में उसका ही खून दौड़ रहा है.



निशा- तुम अलग हो कबीर . तुम सा कोई नहीं.

मैं- बस तुमने ही जाना मुझे मेरी जाना.

निशा- रिश्तो का बोझ बहुत भारी होता है कबीर, मुझे ख़ुशी है की मैने उस इन्सान का हाथ थामा है जो लायक है .

मैं- सोचा था की कल बड़ा खूबसूरत होगा. बरसते रंग में रंग दूंगा तेरी चुनरिया . हाथो में गुलाल लिए तुझे अपने आगोश में लिए ढलते सूरज की लाली में लाल रंगुंगा. रंग से भीगी तुम जब अपनी जुल्फों जो झटको गी तो ये नुरानी चेहरा देखूंगा . सिंदूर को अबीर बना कर तुम्हे जो रंग दूंगा , प्रेम का रंग फिर न छुटेगा तुम से.

“मैं तो रंग चुकी हूँ सरकार तुम्हारे प्रेम में .” निशा ने बेहद हौले से कहा.

जंगल में बहुत तलाश की पर हमें आदमखोर नहीं मिला. रह रह कर उसकी आवाजे तो आती रही पर वो नहीं मिला. रात के तीसरे पहर में मैंने निर्णय लिया की निशा को छोड़ आऊ , बेशक वो जाना नहीं चाहती थी पर मैंने जोर दिया. इस वादे के साथ की जल्दी ही उसे अपना बनाने मैं आऊंगा.

वापसी में मेरा एक एक कदम इतना भारी हो गया था की मैं क्या बताऊ उस बोझ के बारे में. आँखों के आगे चंपा का चेहरा घूम रहा था , ये मनहूस रात सब कुछ लूट ले गए थी हमसे.बरसो बाद घर में ख़ुशी आई थी , और अब हालात देख कर मैं सोच रहा था की काश ये ख़ुशी आती ही नहीं. कुछ थकान थी कुछ मुठभेड़ की चोटों का दर्द. मैंने घर जाने के बजाय खंडहर पर जाने का सोचा. थोड़ी देर मैं सोना चाहता था मैंने ख़ामोशी से छिपे कमरे को खोला और अन्दर दाखिल हो गया.



पर देखिये, किस्मत हमारी. नींद भी साली आज बेवफाई पर उतर आई थी . कमरे में मैंने जो देखा नींद रुसवाई कर गयी. कमरे में चिमनी की रौशनी में मेरी नजर जिस सक्श पर पड़ी. सात जन्मो में भी मैं यकीन नहीं कर सकता था की वो इन्सान मुझे वहां पर मिलेगा.



हम दोनों की नजरे मिली. हम दोनों थके थे , परेशान थे पर यहाँ इस जगह पर हम दोनों का होना सामान्य बिलकुल नहीं था .

“तुम सोच नहीं सकते जंगल ने अपने अन्दर क्या क्या छिपाया है. मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के शब्दों को दोहराया.



“तो अब कहने को क्या ही रह गया है ” मैंने चुप्पी को तोडा.

“जानता था तू आज नहीं तो कल यहाँ पहुँच ही जायेगा छोटे ” भैया ने टूटती आवाज में कहा .

मैं- ये मेरी ही जगह है भैया. पर आपका यहाँ पर होना बहुत कुछ कह रहा है मुझे, ये दीवारे चीख रही है . ये दीवारे पहले भी चीख रही थी बस मैं समझ नहीं पाया था उन चीखो को .

भैया- तेरी जगह , ह्म्म्म . तुझसे पहले न जाने कितने आये कितने गए जिन्होंने इस जंगल में अपनी जिन्दगी जी .तू जानता ही क्या है

मैं- जान जाऊंगा भैया जान जाऊंगा. आज आपको मेरे सवालो के जवाब देने ही होंगे. आज आपका कोई बहाना नहीं चलेगा,मैं चलने ही नहीं दूंगा. आज सिर्फ मैं बोलूँगा और आप सुनेंगे.

भैया अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ाई और बोले- अपने बड़े भाई से ऐसे बात करेगा तू

मैं- समझ नहीं आ रहा की कहाँ से शुरू करू . सवाल बहुत है और जवाब के लिए बड़ा बेकरार मैं तो सीधा मुद्दे पर आते है अपने भाई को तो बता सकते थे न की आदमखोर कौन है , जानता हूँ आप जानते थे की आपका राज खुल जायेगा जानता हूँ की आप मुझसे बेहद प्यार करते है इसलिए आपने अपनी दवाई की पुडिया मुझे दी ताकि मैं सुरक्षित रह सकू पर आप खुद पर काबू नहीं रख पाए और देखो क्या काण्ड हो गया.



भैया खामोश बैठे रहे कुर्सी पर कुछ नहीं बोले. उनकी ख़ामोशी और गुस्सा दिलाने लगी मुझे.

“बोलते क्यों नहीं ” जिंदगी में पहली बार मैंने भैया के सामने आवाज ऊंची की थी .

भैया- क्या बोलू. कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को जो है यही है .

भैया के शब्दों ने मेरे कलेजे पर चोट कर दी थी .

मैं- चंपा के सर पर हाथ रख कर कसम खाई है मैंने की उसके खुशियों के कातिल को सजा दूंगा . पर अब कैसे समझाऊ खुद को की कातिल भी मेरा अपना ही है .

भैया- सच के पथ पर चलना बड़ा कठिन होता है छोटे. जब जब तू इस सच को जान ही गया है तो तुझे अपने वादे को पूरा करना चाहिए. मैं जानता हूँ जो हुआ बेहद गलत हुआ है इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं .मैं भी तंग आ गया हूँ इस बोझ को उठाते उठाते . और फिर मुझसे खुशनसीब भला कौन होगा जो अपने भाई के हाथो रुखसत होगा.

भैया कुर्सी से उठे और मेरे पास आये , उन्होंने जेब से एक पिस्तौल निकाली और बोले- चला इसे और दाग दे सारे बारूद को मेरे अंदर. बस इतना ध्यान रहे यहाँ क्या हुआ ये इस दरवाजे के बाहर कभी नहीं जान पाए कोई.

बड़ी मुश्किल से आँखों में भर आये पानी के कतरे को मैंने बहने से रोका. मेरा भाई बहुत चाहता था मुझे. मैं चाह कर भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था की असली आदमखोर मेरा भाई था .मेरे हाथ कांपने लगे थे .

भैया- क्या सोच रहा है चला पिस्तौल

मैंने पिस्तौल भैया पर तान दी.........
Amazing👍👍👍
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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“तो तुम ही हो वो ,” मैंने कहा

“नहीं मैं नहीं हूँ ” रमा ने शांति से कहा

मैं- तो फिर इस जंगल में जब मौत सर पर नाच रही है तुम क्यों भटक रही हो क्या इरादा है तुम्हारा. और हाँ इस बार कोई झूठ नहीं . मुझे रेस अहब तुम्हारे और मंगू के बीच जो भी है सब मालूम है . इस जंगल ने न जाने क्या क्या छिपाया है तुम्हारी लाश भी कहाँ गायब हुई कोई नहीं जान पायेगा.

रमा- मुझे मौत की धमकी दे रहे हो कुंवर.

रमा ने मुझे ताना मारा.

निशा- रमा, कबीर के सवाल का जवाब दो .

रमा- मुझे राय साहब ने बुलाया था जंगल में

रमा की बात ने हम दोनों को हैरान कर दिया .

मैं- क्या पिताजी भी जंगल में मोजूद है

रमा- शायद हाँ शायद न

निशा- क्या मतलब

रमा- उन्होंने बस इतना कहा था की जंगल में मिलना तुम्हारी जरुरत पड़ेगी.

मैं- जरुरत पर किसलिए

रमा- वो तो नहीं जानती .

मैं- ये तो जानती हो न की मंगू ही आदमखोर बन कर ये काण्ड कर रहा है .

रमा कुछ नहीं बोली

निशा- तो तुम जानती हो इस बारे में . परकाश की हत्या में तुम भी शामिल थी न. ये षड्यंत्र तुमने, मंगू और राय साहब के साथ मिल कर बनाया . प्रकाश को अपने हुस्न के जाल में फंसाया . उसे कुवे पर बुलाया जहाँ पर मंगू ने उसका काम तमाम कर दिया.

रमा की ख़ामोशी बता रही थी की निशा ने जो कहा सच कहा .

मैं- रमा बताओ क्या वजह थी जो परकाश की हत्या हुई.

रमा- उसको मरना ही था , जीना हराम कर दिया था उसने मेरा. उसकी मांगो को पूरा करते करते थक गयी थी मैं. उसे मेरे जिस्म की चाहत थी मैंने अपना जिस्म दिया उसे पर उसका लालच बढ़ता ही गया .इतना बढ़ा की पाप का घड़ा फोड़ना पड़ा. उसे मरना ही था , मैं या राय साहब या फिर मंगू हम तीनो ही हद नफरत करते थे उस से . हम तीनो के पास ही ठोस वजह थी उसे मारने की , पर राय साहब उसकी गलतियों को नजरअंदाज करते आ रहे थे न जाने क्यों ? पर मैंने और मंगू ने निर्णय किया और उसे ठिकाने लगा दिया. हम चाहते तो जंगल में गायब कर सकते थे उसे पर हमने उसकी लाश को खुले में फेंका ताकि दुनिया जान सके की एक कुत्ते को मारा गया .



रमा के होंठ गुस्से से थर थर कांप रहे थे.

निशा- राय साहब की क्या मज़बूरी थी जो प्रकाश को माफ़ किये जा रहे थे वो जबकि तुम तीनो में से सबसे आसानी से प्रकाश का काम तमाम वो ही करवा सकते थे बिना किसी शोर-शराबे के.

रमा- बस यही नहीं मालूम मुझे की क्यों चाहते थे वो उसे. यहाँ तक की वो राय साहब पर नाजायज दवाब बनाये हुए था तब भी वो उसे नजरअंदाज करे हुए थे .

मैं जानता था की वो राय साहब का प्रकाश की माँ से किया हुआ वादा था जिसे वो निभा रहे थे .

निशा- मंगू क्यों नफरत करने लगा था परकाश से.

मैंने भी इस सवाल पर गौर किया न जाने क्यों मेरी धड़कने बढ़ने लगी थी .

रमा- कुछ बाते राज ही रहनी चाहिए कुंवर. उन राजो को इतना गहरा दफ़न हो न चाहिए की वो कबी खुल न सके. इस राज को राज ही रहने दो , वर्ना तुम्हे अफ़सोस होगा की परकाश पहले क्यों नहीं मर गया . क्योंकि ये जानने के बाद तुम्हे जिन्दगी भर मलाल रहेगा की उसे तुम क्यों नहीं मार पाए.

रमा की बात ने हद से जायदा विचलित कर दिया था मुझे. दिल इतनी जोर से धडक रहा था की अगर छाती फाड़ कर बाहर आ गिरता तो कोई ताज्जुब नहीं होता.

“मैं फिर भी जानना चाहूँगा ” बड़ी मुश्किल से बोल पाया मैं

रमा- चंपा, चंपा का शोषण किया था उसने. चंपा को नोच-खसोट रहा था वो . अकेली चंपा ही नहीं बल्कि मैं और कविता भी . हम सब उसके जाल में फंसे थे . पर सबसे जायदा परेशां थी चंपा वो चाह कर भी किसी को बता नहीं पा रही थी की उसके साथ क्या हो रहा है .

रमा की बात ने मुझे और मेरे साथ निशा दोनों को ही हिला कर रख दिया. प्रकाश ने चंपा पर हाथ डाला था . सही ही कहा था रमा ने की मुझे ताउम्र ये मलाल रहेगा की मैं उसे क्यों नहीं मार पाया.

रमा- मंगू जान गया था इस बात को तबसे ही वो फ़िराक में था .

अब मैं समझा था की मंगू का अक्सर गायब रहने का क्या उद्दश्य था . वो ताक में रहता था की कब परकाश को निपटा दे.

रमा- हम ये जान गए थे की प्रकाश ने राय साहब पर दबाव बनाया हुआ है तो फिर मैंने और मंगू ने योजना बनाई और मौका देख कर उसे ढेर कर दिया.

निशा- अब मैं तुमसे सबसे महत्वपूर्ण प्रशन पूछना चाहूंगी. प्रकाश ने तुमसे कबीर को अपने झांसे में लेने के लिए क्यों कहा था . वो तुम्हारा इस्तेमाल कबीर के खिलाफ क्यों करना चाहता था . तुमने कबीर को वो ही सब दिखाया, बताया जो परकाश चाहता था . हमें बताओ क्या चाहता था वो .

रमा- परकाश नहीं चाहता था की कबीर की तलाश पूरी हो. वो नहीं चाहता की कबीर इस जंगल में तलाश करे.

निशा- उसने बताया की कबीर को क्या तलाश थी .

रमा-मुझे लगता है की कबीर जानता है , खैर मुझे राय साहब के पास जाना होगा.

रमा आगे बढ़ गयी रह गए हम दोनों. रमा की बातो ने तमाम मोहरों को फिर से घुमा कर रख दिया था .

निशा- क्या जानते हो तुम

मैं-अतीत, निशा, मुझे अतीत की तलाश है वो अतीत ही है जो हमारे आज को उलझाये हुए है.

निशा ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया . रात तेजी से बीत रही थी और हम खाली हाथ थे. सवाल अभी भी वही थे की असली आदमखोर कौन था .
सवाल पे सवाल, सवाल पे सवाल.... जो ज़बाब मिल भी रहे है वो वापस खुद को एक नये सवाल मे बनते हुये दिखाई दे रहे है... जाने क्या क्या रुत दिखाएगी ये स्याह सी रात,

कवीर ने जिसे देखा, वो रमा निकली... रमा जिसका कहना था की विषम्बर ने उसे बुलाया है,

अब सोचने बाली बात ये है की रमा तो विषम्बर से मिलने वहाँ आई थी, तो आजिब सी बात होगी विषम्बर भी अपने किसी घृतकार्य मे रमा की मदद की चाह हेतु वहाँ आया होगा । किंतु अभिमानु वहाँ किस उद्देश्य से आया हुआ था, उसकी गाड़ी भी तो वहाँ नज़र आई थी ।

रमा की दलीलि ने एक बार फ़िर से जो भी कुछ तार सुलझे थे उसे उलट फेर दिया ।

प्रकाश का वो घृणित सच आज कवीर को पता चला, जिसे अगर कवीर पहले जान जाता तो खुद प्रकाश की जान ले लेता ।

निशा, कवीर के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है, उम्मीद है की इस रात निशा की पहेली का भी आखिरी रात हो ।
 
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