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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Chutiyadr

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मित्रों मैं पूरी कोशिश करूंगा कि कहानी समाप्त करके जाऊँ, पर चूंकि समय कम है और तैयारी बहुत ज्यादा यूनिट ग्लेशियर जा रही है तो ज्यादातर समय फिटनेस चेक मे जा रहा है. यदि कहानी ईन दो दिनों मे पूरी ना हो पायी तो फिर 90 दिन बाद ही अपडेट आ पाएगा

असुविधा के लिए माफी चाहूँगा
Pahle kaam fir story ... :thumbup:
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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गुजारिश वाला हाल मत पैदा कर देना फौजी भाई। अभी तक उस औरत को हम ढूंढ रहे है जो नायक को सरोवर के किनारे मिली थी। :D
काश, वो औरत मिलती ही न नायक से... जिसके बारे मे सोच कर आज तक दिमाग की मैया.. दुच जाती है...
और,
काश, .... कवीर ने किसे देखा ये शिघ्रातीशिघ्र हम जान पाएँ ।
 

Studxyz

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आज भी अपडेट नहीं आया अब तो 90 दिन की तलवार का सर पर लटक रहा साया असली नज़र आ रहा है 90 दिन बाद ये भी न भूल जाये निशा कबीर की बहन ही थी या प्रेमिका
 

Tiger 786

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आज भी अपडेट नहीं आया अब तो 90 दिन की तलवार का सर पर लटक रहा साया असली नज़र रहा है 90 दिन बाद ये भी न भूल जाये निशा कबीर की बहन ही थी या प्रेमिका
Bhai jindhagi jine ke liye kaam bi jaroori hai nokari bi to bhai pehle family baad mai sab story.ab aap samaz gaye honge bhade bhai🙏🙏🙏
 

Luckyloda

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Aap 1chaho to ise final karte jao.....


Aur suspense sare aise hi rahne do.... 90 din tak lagane ko sab ko apne apne idea....



90 din baad aake tasalli se kahani ka end kar dena with details.....



Baki jaisa aap uchit samjho....



Baki sab aapke Haath m hai....


Ham to intjaar kar hi rahe hai...
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Supreme
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HalfbludPrince मुसाफिर - अपनी यात्रा पर अग्रसर है हम सब यहाँ पर उनकी रोमांचक दुनिया में खोए हुए हैं अगर अभी इस रोमांचक सफर के बारे में जानकारी नहीं मिली तो सब पुनः पढ़ना पड़ेगा जब आपका अपडेटेड आयेगा 90 दिन के बाद.. पर क्या करें कोई ऑप्शन भी नहीं है 😍 सिवाय इंतजार के...
आप ग्लेशियरों के साथ समय व्यतीत करते हुए स्वस्थ रहें.. 😍
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#116

गड्ढे में पड़े कंकाल के टुकड़े चीख चीख कर बता रहे थे की क्यों राय साहब और अभिमानु उसे तलाश नहीं कर पाए थे, करते भी कैसे वो तो यहाँ दफ़न था और उसे दफ़न करने वाली कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी पत्नी थी, वो पत्नी जिसने इतने बड़े राज को बड़े आराम से छिपाया हुआ था .मुझे शक तो उसी पल हो गया था जब उन गहनों को देख कर भी चाची की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी. मैंने तभी ये जा फेंकने का सोच लिया था और किस्मत देखो चाची फंस गयी थी .



मैं- क्यों किया ये सब , जरा भी नहीं सोची की अगर राय साहब को मालूम हुआ तो क्या करेंगे वो तुम्हारे साथ.



चाची- आदमी के पापो का घड़ा जब भर जाता है न कबीर तो वो घड़ा अपने आप नहीं फूटता , किसी न किसी को हिम्मत करनी पड़ती है उसे फोड़ने के लिए, जिसे तू अपना चाचा समझता है न वो राक्षस था और राक्षसों का अंत होना ही उचित है. मैं नहीं मारती तो अभिमानु मार देता छोटे ठाकुर को मैंने बस अभिमानु के हाथ गंदे नहीं होने दिए.



मैं- तो क्या भैया जानते है इस बात को



चाची- एक वो ही तो है जो सबके किये पर मिटटी डाले हुए है



मैं बहुत कुछ समझ रहा था चाचा की मौत को भैया ने चाची की वजह से छिपाया था अगर पिताजी को मालुम होती तो वो बक्शते नहीं चाची को .

मैं- तो वो क्या कारण था जो तुमने अपने हाथो से अपना सुहाग उजाड़ दिया.

चाची - सुहाग के नाम कर कालिख था ये आदमी. सच कहूँ तो आदमी कहलाने के लायक ही नहीं था ये नीच. हवस में डूबे इस आदमी ने रमा की बेटी का बलात्कार किया था . एक मासूम फूल को उजाड़ दिया था इसने. ये बात अभिमानु को भी मालूम हो गयी थी, अपनी शर्म में उसने जैसे तैसे इस बात को दबा दिया. रमा ने बहुत गालिया दी उसे. पर वो चुप रहा . सब सह गया ताकि परिवार की बदनामी न हो . पर तेरा चाचा सिर्फ वही तक नहीं रुका. उसने वो किया जो करते हुए उसके हाथ कांपने चाहिए थे.



चाची ने पास रखे मटके से गिलास भरा और अपना गला तर किया. कुछ देर वो खामोश रही पर वो दो लम्हों की ख़ामोशी मुझे बरसो के इंतज़ार सी लगी.



चाची- छोटे ठाकुर ने अंजू का बलात्कार किया था .



चाची के कहे शब्दों का भार इतना ज्यादा था की मैंने खुद को उस बोझ तले दबते हुए महसूस किया. .



चाची- अंजू का हमारे घर में बहुत बड़ा ओहदा है, जैसे की तू और अभिमानु ,हमारे घर की सबसे प्यारी बेटी अंजू. सुनैना को बहुत मानते थे जेठ जी. उनकी कोई बहन नहीं थी शायद इस वजह से, सुनैना की मौत के बाद अंजू को दो पिताओ का प्यार मिला. रुडा और जेठ जी. ये रमा की बेटी की मौत के कुछ दिनों बाद की बात होगी. अंजू अक्सर कुवे पर आती थी . इस जंगल में बहुत जी लगता था उसका. पर एक शाम नशे में धुत्त तेरे चाचा की आँखों पर वासना की ऐसी पट्टी चढ़ी की वो समझ नहीं पाया की जिस वो भोग रहा है वो उसके ही घर की बेटी है .



मैं और अभिमानु जब यहाँ पहुंचे तो अंजू को ऐसी हालात में देख कर घबरा गए. हमारे सीने में ऐसी आग थी की उस पल अगर दुनिया भी जल जाती न तो कोई गम नहीं होता. जब अंजू ने उसके गुनेहगार का नाम बताया तो हमें बहुत धक्का लगा. एक तरफ बेटी की आन थी दूसरी तरफ पति का पाप. मैंने अपनी बेटी को चुना. छोटे ठाकुर को तो मरना ही था , मैं नहीं मारती तो चौधरी रुडा मार देता. अभिमानु मार देता या फिर जेठ जी मार देते. मेरा दिल बहुत टुटा था, उस इन्सान की हर खता माफ़ की थी मैंने , पर अगर ये पाप माफ़ करती तो फिर कभी खुद से नजरे नहीं मिला पाती. अपनी बेटी के न्याय के लिए मैंने छोटे ठाकुर को मार दिया और यहाँ दफना दिया ताकि कोई उसे तलाश नहीं कर पाए.

“दर्द सिर्फ तेरे हिस्से में नहीं है , यहाँ बहुत है जिन्होंने दर्द पिया है , दर्द जिया है ” अंजू के कहे ये शब्द मेरे कलेजे को बेध रहे थे .

तो ये था वो सच जो मेरी दहलीज में छिपा था .ये था वो राज वो भैया हर किसी से छिपाने की कोशिश कर रहे थे . अब मैंने जाना था की अंजू क्यों इतनी अजीज थी मेरे घर में . मैं समझा था की सोने के लिए ये सब काण्ड हुए है पर असली कारण ये था .



नफरत से मैंने चाचा के कनकाल पर थूका और उस गड्ढे को वापिस मिटटी से भरने लगा. जिन्दगी वैसी तो बिलकुल नहीं थी जिसे मैं सोचते आया था . समझते आया था . अगर मेरे सामने ऐसी हरकत चाचा ने की होती तो मैं भी उसे मार देता . फर्क सिर्फ इतना था की भैया और चाची उसकी मौत को छिपा गए थे मैं सरे आम चौपाल पर मारता उसे, ताकि फिर कोई कीसी की बहन-बेटी की आबरू तार-तार न कर सके.

चाची के गले लग कर बहुत रोया मैं उस रात. घर वापसी में मेरे कदम जिस बोझ के तले दबे थे वो मैं ही जानता था .मैंने देखा की भैया छज्जे के निचे सोये हुए थे, मैं उनके बिस्तर में घुसा, झप्पी डाली और आँखे बंद कर ली.



सुबह मैं उठा तो देखा की अंजू आँगन में बैठी थी . मैं उसके पास गया.

अंजू- क्या हुआ क्या चाहिए.

मैंने उस से कुछ नहीं कहा. बस उसके पांवो पर हाथ लगा कर अपने माथे पर लगा लिया. मेरे आंसू उसके पैरो पर गिरने लगे. उसने मुझे अपने पास बिठाया और बोली- क्या हुआ .

मैं कह नहीं पाया उस से की क्या हुआ. मेरा गला जकड़ गया . उसके सीने से लग कर मैं बस रोता ही रहा . वो मेरी पीठ सहलाती रही . बिना बोले ही हम लोग बहुत कुछ समझ गए थे.

मैं भाभी के पास गया और उनसे निशा के बारे में बात की . कल निशा को लेकर आना था मुझे.

भाभी- ले आ उसे देखा जायेगा जो होगा

मैं- कुछ पैसे चाहिए थे , शहर जाकर कपड़े गहने लाने है उसके लिए

भाभी- ये तेरा काम नहीं है , मैं देख लुंगी उसे. मैंने पूजारी को बता दिया है चंपा के फेरे होते ही तुरंत तुम दोनों के फेरे करवा देगा .

निशा को तो मैं ले ही आने वाला था पर मुझे उस से पहले कुछ राज और मालूम करने थे , गले में पड़े लाकेट को पकड़ कर मैंने दाई बाई घुमाया और सोचने लगा की मेज पर उकेरे शब्द और उन चुदाई की किताबो का क्या नाता हो सकता है .
 
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