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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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मैं माफी चाहता हूं भाई भूल से आपका reply रह गया, भविष्य मे ऐसा हरगिज नहीं होगा
क्षमाप्रार्थी
Are aisa mat kaho humne to aise hi bol diya sabke reply dekh rahe the to hume hamara nahi dikha to bol diya, aap aisa mat bolo hume accha nahi lagta :sad: ulta hum to aapko dhyanwaad dete hai itni khubsurat kahani likhne ke liye :dost:
 
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सीने के जख्म जो ताजा थे दर्द उतर आया उनमे. न चाहते हुए भी मेरे होंठो से आह निकल गयी.

निशा- क्या हुआ

मैं- कुछ नहीं चोट का दर्द है ठीक हो जायेगा.

निशा- मैं चलती हूँ

मैं- मैं भी , क्या तुम मोड़ तक मेरे साथ चलना पसंद करोगी.

निशा- ठीक है

खामोश कदमो से वो मेरे बराबर चल रही थी . काले घाघरे-चोली में उसके खुले बाल . सच कहूँ तो दिल चाहता था की उसे बस देखता रहूँ. इतनी प्यारी लग रही थी वो की नजर हटे ही नहीं उस चेहरे से.

निशा- क्या सोच रहा है

मैं- यही की किसी दोपहर , किसी पनघट पर तेरी-मेरी मुलाकात हो . मैं ओक लगाऊ तू मटके को मेरी तरफ करे. तेरी खनकती चूडियो से वो पनघट में हलचल मच जाये. तेरे आँचल से अपने भीगे चेहरे को पोंछु मैं .

निशा ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- ये भरम पालने का क्या फायदा . मैं खुद हैरान हूँ , इन दो मुलाकातों के बारे में सोच कर .

मैं- तू क्यों सोचती है जब तूने सब कुछ नियति पर ही छोड़ा हुआ है तो इस मामले को भी नियति के हवाले कर दे.

निशा- हम दोनों की अपनी अपनी हदे है . मेरी हद ये जंगल है . तेरी हद वो गाँव है . इनके बीच जो फासला है वो बना रहना चाहिए इसी में सबकी नेकी है.

बातो ही बातो में हम उस रस्ते पर आ गए थे जहाँ से एक तरफ उसे जाना था तो एक तरफ मुझे. उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा मैंने उसे तब तक देखा जब तक की धुंध ने उसे लील नहीं लिया. पूरा गाँव सुनसान पड़ा था , यहाँ तक की कुत्ते भी दुबके हुए थे. मैंने चाची को जगाना उचित नहीं समझा और अपने चोबारे की तरफ जाने लगा. मैंने देखा की भाभी के कमरे की बत्ती जल रही थी . जैसे ही मैं सीढिया चढ़ने लगा भाभी ने मुझे पकड़ लिया.

भाभी- तो कैसी रही आवारागर्दी के लिए एक और रात

मैं- आप सोयी नहीं अभी तक

भाभी- जिस घर के दो जवान बेटे घर से बाहर हो तो किसी को तो नींद नहीं आयेगी न.

मैं- हमेशा आप पकड़ लेती है मुझे

भाभी- तुम्हे, तुमसे ज्यादा जानती हूँ .

मैं- सो तो है

भाभी- चूँकि तुम शहर नहीं गए तो तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए ये बताने में की इतनी रात तक तुम कहाँ थे .तमाम वो सम्भावनाये जिन पर मैं विचार कर सकती थी मैंने तलाश ली है .

मैं- भाभी आप जैसा सोच रही है वैसा बिलकुल भी नहीं है

भाभी- तो फिर बताओ न मुझे की आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसमे एक जवान लड़का रात रात भर जब और दुनिया रजाई में दुबकी ठण्ड से जूझ रही है , लड़का इन ठिठुरती रातो में घूम रहा है . ऐसी क्या वजह है जो तुम्हे राय साहब की भी परवाह नहीं है . मैं बहुत उत्सुक हूँ उस वजह को जानने के लिए.

मैं-सच कहूँ तो भाभी इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है

भाभी- क्या मेरा देवर गाँव की किसी लड़की या औरत के सम्पर्क में है

मैं- नहीं भाभी बिलकुल नहीं

भाभी- अगर ऐसा हुआ तो मैं उसे तलाश लुंगी देवर जी, और फिर जो होगा उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार होगा तो सिर्फ तुम

मैंने भाभी के चरणों को हाथ लगाया और चोबारे में घुस गया . बिस्तर पर लेटे लेटे मैं बस निशा के बारे में ही सोच रहा था . जब भी आँखे बंद करता वो चेहरा मेरी नींद चुरा लेता. और होता भी क्यों न जब वो जाग रही थी तो मुझे भला नींद कैसे आती.

सुबह मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और फिर खेतो के लिए घर से निकलने लगा. मैंने देखा की पिताजी घर पर नहीं थे . रस्ते में मुझे चंपा मिल गयी.

“रोक रोक साइकिल ” उसने कहा

मैं- क्या काम है जल्दी बोल

चंपा- खेतो पर जा रहा है तो मुझे बिठा ले चल

मैं- पैदल आ जाना तू मुझे जल्दी है

चंपा- मुझे भी जल्दी है , बिठा ले इतने भी क्या नखरे तेरे

मैं- ठीक है

चंपा- आगे बैठूंगी.

मैं- तू भी न , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

चंपा- यहाँ से लेकर खेतो तक न के बराबर लोग ही मिलेंगे हमें रस्ते में

चंपा से जिद करने का मतलब था खुद के सर में हथोडा मारना तो मैंने चुपचाप उसे आगे डंडे पर बिठा लिया. और साइकिल चलाने लगा.

मैं- डंडे पर क्या आराम मिलेगा तुझे पीछे आराम से बैठती.

मेरे पैर उसकी जांघो और कुलहो पर रगड़ खा रहे थे .

चंपा- डंडे पर ही तो बैठने का मजा है निर्मोही पर तू है की कुछ समझता ही नहीं .

मैं- ऐसी बाते करेगी तो यही उतार दूंगा.

चंपा - मेरी ऐसी बातो से तेरा डंडा झटके खाता है . वैसे तेरा डंडा है मजेदार

मैं- तेरे होने वाले पति का भी ऐसा ही होगा उस पर दिन रात बैठे रहना कोई नहीं रोकेगा तुझे.

चंपा- अभी तो बस तू और मैं है न

मैं- यही तो मुश्किल है

चंपा- चल छोड़ फिर ये बता पंच के लड़के को क्या हुआ है

मैं- मुझे क्या मालूम

चंपा- कल रात को एक काकी कह रही थी की हो न हो कुंवर पर ही किसी का साया है , कुंवर ही ये सारे हमले कर रहा है .

मैं- फिर तो तूने गलती की इस सुनसान में मैंने तुझ पर हमला कर दिया तो कौन बचाएगा तुझे.

चम्पा- मैं तो तरस रही हूँ उस दिन के लिए की तू कब मुझ पर चढ़ जाये.

उसकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .

चंपा- वैसे कबीर, अगर कभी ऐसा हमला मुझ पर हो गया तो तू क्या करेगा .

मैं- शुभ शुभ बोल चंपा. दुआ कर वो दिन कभी न आये. कभी न आये. तू हमारा परिवार है

चंपा - मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी .

बाते करते करते हम खेतो पर आ गए. मैंने साइकिल रोकी और पगडण्डी से होते हुए कुवे पर बने कमरे तक आ पहुंचे . जैसे हम उस जगह पर आये जहाँ मैं कल निशा के साथ था वहां कुछ ऐसा देखा की चंपा खुद को रोक नहीं पायी और उलटिया करने लगी................
Pyaar kar baithe hai ye to vo bhi ek dayan se
 

Ajju Landwalia

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सीने के जख्म जो ताजा थे दर्द उतर आया उनमे. न चाहते हुए भी मेरे होंठो से आह निकल गयी.

निशा- क्या हुआ

मैं- कुछ नहीं चोट का दर्द है ठीक हो जायेगा.

निशा- मैं चलती हूँ

मैं- मैं भी , क्या तुम मोड़ तक मेरे साथ चलना पसंद करोगी.

निशा- ठीक है

खामोश कदमो से वो मेरे बराबर चल रही थी . काले घाघरे-चोली में उसके खुले बाल . सच कहूँ तो दिल चाहता था की उसे बस देखता रहूँ. इतनी प्यारी लग रही थी वो की नजर हटे ही नहीं उस चेहरे से.

निशा- क्या सोच रहा है

मैं- यही की किसी दोपहर , किसी पनघट पर तेरी-मेरी मुलाकात हो . मैं ओक लगाऊ तू मटके को मेरी तरफ करे. तेरी खनकती चूडियो से वो पनघट में हलचल मच जाये. तेरे आँचल से अपने भीगे चेहरे को पोंछु मैं .

निशा ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- ये भरम पालने का क्या फायदा . मैं खुद हैरान हूँ , इन दो मुलाकातों के बारे में सोच कर .

मैं- तू क्यों सोचती है जब तूने सब कुछ नियति पर ही छोड़ा हुआ है तो इस मामले को भी नियति के हवाले कर दे.

निशा- हम दोनों की अपनी अपनी हदे है . मेरी हद ये जंगल है . तेरी हद वो गाँव है . इनके बीच जो फासला है वो बना रहना चाहिए इसी में सबकी नेकी है.

बातो ही बातो में हम उस रस्ते पर आ गए थे जहाँ से एक तरफ उसे जाना था तो एक तरफ मुझे. उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा मैंने उसे तब तक देखा जब तक की धुंध ने उसे लील नहीं लिया. पूरा गाँव सुनसान पड़ा था , यहाँ तक की कुत्ते भी दुबके हुए थे. मैंने चाची को जगाना उचित नहीं समझा और अपने चोबारे की तरफ जाने लगा. मैंने देखा की भाभी के कमरे की बत्ती जल रही थी . जैसे ही मैं सीढिया चढ़ने लगा भाभी ने मुझे पकड़ लिया.

भाभी- तो कैसी रही आवारागर्दी के लिए एक और रात

मैं- आप सोयी नहीं अभी तक

भाभी- जिस घर के दो जवान बेटे घर से बाहर हो तो किसी को तो नींद नहीं आयेगी न.

मैं- हमेशा आप पकड़ लेती है मुझे

भाभी- तुम्हे, तुमसे ज्यादा जानती हूँ .

मैं- सो तो है

भाभी- चूँकि तुम शहर नहीं गए तो तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए ये बताने में की इतनी रात तक तुम कहाँ थे .तमाम वो सम्भावनाये जिन पर मैं विचार कर सकती थी मैंने तलाश ली है .

मैं- भाभी आप जैसा सोच रही है वैसा बिलकुल भी नहीं है

भाभी- तो फिर बताओ न मुझे की आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसमे एक जवान लड़का रात रात भर जब और दुनिया रजाई में दुबकी ठण्ड से जूझ रही है , लड़का इन ठिठुरती रातो में घूम रहा है . ऐसी क्या वजह है जो तुम्हे राय साहब की भी परवाह नहीं है . मैं बहुत उत्सुक हूँ उस वजह को जानने के लिए.

मैं-सच कहूँ तो भाभी इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है

भाभी- क्या मेरा देवर गाँव की किसी लड़की या औरत के सम्पर्क में है

मैं- नहीं भाभी बिलकुल नहीं

भाभी- अगर ऐसा हुआ तो मैं उसे तलाश लुंगी देवर जी, और फिर जो होगा उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार होगा तो सिर्फ तुम

मैंने भाभी के चरणों को हाथ लगाया और चोबारे में घुस गया . बिस्तर पर लेटे लेटे मैं बस निशा के बारे में ही सोच रहा था . जब भी आँखे बंद करता वो चेहरा मेरी नींद चुरा लेता. और होता भी क्यों न जब वो जाग रही थी तो मुझे भला नींद कैसे आती.

सुबह मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और फिर खेतो के लिए घर से निकलने लगा. मैंने देखा की पिताजी घर पर नहीं थे . रस्ते में मुझे चंपा मिल गयी.

“रोक रोक साइकिल ” उसने कहा

मैं- क्या काम है जल्दी बोल

चंपा- खेतो पर जा रहा है तो मुझे बिठा ले चल

मैं- पैदल आ जाना तू मुझे जल्दी है

चंपा- मुझे भी जल्दी है , बिठा ले इतने भी क्या नखरे तेरे

मैं- ठीक है

चंपा- आगे बैठूंगी.

मैं- तू भी न , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

चंपा- यहाँ से लेकर खेतो तक न के बराबर लोग ही मिलेंगे हमें रस्ते में

चंपा से जिद करने का मतलब था खुद के सर में हथोडा मारना तो मैंने चुपचाप उसे आगे डंडे पर बिठा लिया. और साइकिल चलाने लगा.

मैं- डंडे पर क्या आराम मिलेगा तुझे पीछे आराम से बैठती.

मेरे पैर उसकी जांघो और कुलहो पर रगड़ खा रहे थे .

चंपा- डंडे पर ही तो बैठने का मजा है निर्मोही पर तू है की कुछ समझता ही नहीं .

मैं- ऐसी बाते करेगी तो यही उतार दूंगा.

चंपा - मेरी ऐसी बातो से तेरा डंडा झटके खाता है . वैसे तेरा डंडा है मजेदार

मैं- तेरे होने वाले पति का भी ऐसा ही होगा उस पर दिन रात बैठे रहना कोई नहीं रोकेगा तुझे.

चंपा- अभी तो बस तू और मैं है न

मैं- यही तो मुश्किल है

चंपा- चल छोड़ फिर ये बता पंच के लड़के को क्या हुआ है

मैं- मुझे क्या मालूम

चंपा- कल रात को एक काकी कह रही थी की हो न हो कुंवर पर ही किसी का साया है , कुंवर ही ये सारे हमले कर रहा है .

मैं- फिर तो तूने गलती की इस सुनसान में मैंने तुझ पर हमला कर दिया तो कौन बचाएगा तुझे.

चम्पा- मैं तो तरस रही हूँ उस दिन के लिए की तू कब मुझ पर चढ़ जाये.

उसकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .

चंपा- वैसे कबीर, अगर कभी ऐसा हमला मुझ पर हो गया तो तू क्या करेगा .

मैं- शुभ शुभ बोल चंपा. दुआ कर वो दिन कभी न आये. कभी न आये. तू हमारा परिवार है

चंपा - मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी .

बाते करते करते हम खेतो पर आ गए. मैंने साइकिल रोकी और पगडण्डी से होते हुए कुवे पर बने कमरे तक आ पहुंचे . जैसे हम उस जगह पर आये जहाँ मैं कल निशा के साथ था वहां कुछ ऐसा देखा की चंपा खुद को रोक नहीं पायी और उलटिया करने लगी................


Badi hi umda update he Fauzi Bhai, Nisha aur Kunwar ka yun milna bhi niyati ka hi khel he, kismat bhi chahti he ki in dono ke beech mel jol badhe........ lekin ek darr bhi laga rahta he, indan aur dayan ki dosti/pyar ka anjaam achcha nahi ho sakta............

Bhabhi ka pyar kunwar ke liye ek Maa ya Badi Bahan ki tarah lag raha he.......

Champa, is story me ab tak ka sabse bold character he...... jo ki aage chalkar kaafi majedar hone wala he........

Waiting for the next update.........
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#17

मैंने देखा की इधर उधर मांस के बड़े बड़े टुकड़े फैले हुए थे . निशा अपने निशाँ छोड़ गयी थी . मैंने चंपा को पानी लाकर दिया और तमाम उन टुकडो को वहां से साफ़ करके दूर फेंक दिया.

मैं- अब ठीक है

चंपा- हाँ पर ये किसने किया

मैं- कोई शिकारी जानवर रहा होगा. तू आराम कर मैं तब तक काम देखता हूँ . तबियत ठीक लगे तो आ जाना .

मैंने खेतो का दूर तक चक्कर लगाया . बीच बीच से क्यारी-धोरो को भी देखा . जो पगडण्डी कटी थी उसे सुधारा. एक हिस्से में काफी घने पेड़ थी जिनकी बरसो से कटाई नहीं हुई थी मैंने सोचा की इनकी कटाई से इस हिस्से को धुप भी मिलेगी और लकडिया भी .

जब मैं वापिस लौटा तो देखा की भाभी आई हुई थी .

मैं- अरे भाभी आप क्यों आई इधर

भाभी- क्यों मैं नहीं आ सकती क्या

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था .

भाभी- सोचा आज खाना मैं ले चलती हूँ , वैसे भी बहुत दिनों से घर से बाहर निकलना हुआ नहीं मेरा.

चंपा- बढ़िया किया भाभी .

भाभी मुस्कुराई और बोली- खाना खा लो तुम लोग.

खाना खाने के बाद चंपा कुछ सब्जिया तोड़ने चली गयी रह गए हम दोनों .

भाभी- मैं घूमना चाहती हूँ

मैं- जो आपका दिल करे. जहाँ तक जाना है जाइये

मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर लेट गया कमर सीढ़ी करने के लिए. पर मेरा दिल नहीं लग रहा था पल पल हर पल मुझ पर एक नशा चढ़ रहा था निशा का नशा . कल रात इसी जगह पर हम दोनों अलाव के पास बैठ कर बाते कर रहे थे . चारपाई के किनारे को चुमते हुए मुझे बस निशा का सुरूर ही था .

“हाय देखो कैसे चारपाई को चूम रहा है जिसे चूमना चाहिए उसे तो देखता भी नहीं ” चंपा ने मुझे घूरते हुए कहा.

मैं थोडा असहज हो गया.

मैं- तू कब आयी

वो- मैं या विदेश से आई हूँ इधर ही तो थी दो मिनट सब्जी लाने क्या गयी देखो हालत क्या हो गयी तुम्हारी

मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही

चंपा - हाय रे फूटी किस्मत मेरी. भाभी कहाँ है

मैं- इधर ही होंगी बोल रही थी की खेतो का चक्कर लगा कर आती हूँ .

चंपा - सुन .बड़े भैया या राय साहब से कह कर कीटनाशक मंगवा लेना शहर से .सब्जियों की कई क्यारिया ख़राब हो रही है . नुक्सान होगा इस बार .

मैं- तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे

वो- ये मेरा काम नहीं है सब्जिया तू और मंगू उगाते हो . तुम्हे मालूम होना चाहिए. आजकल तुम्हारा ध्यान न जाने कहा है

मैं- कोई बात कल ही शहर चला जाऊँगा.

चंपा- मुझे भी ले चल अपने साथ . बहुत दिन हुए

मैं- चाची या भाभी के साथ जाया कर न

वो- तेरे साथ अलग ही मजा रहेगा.

मैं- और उस मजे की सजा क्या होगी.

चंपा - किस बात की सजा

मैं- तू समझती क्यों नहीं

हम बाते कर ही रहे थे की एकाएक भाभी के चीखने की आवाजे आने लगी. हम दोनों तुरंत भाभी की तरफ भागे. भाभी खेतो के बीच खड़ी खड़ी कांप रही थी .

“भाभी, भाभी क्या हुआ ” मैंने भाभी के पास जाकर कहा . भाभी ने सामने की दिशा में अपना हाथ हिलाया . मैंने आगे आकर देखा सरसों में एक बच्चे की लाश पड़ी थी जिसे बुरी तरह से उधेडा गया था. खून बिलकुल ताजा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. भाभी खौफ के मारे मेरे सीने से लग गयी .

मैं दिलासा भी देता तो क्या देता. एक मासूम को किसी ने उधेड़ कर रख दिया था . हम भाभी को कमरे के पास लेकर आये और थोडा पानी दिया . भाभी ने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं देखा था तो वो बहुत ज्यादा घबरा गयी थी .

मैं- चंपा भाभी का ख्याल रखो

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर वो बेचारी खुद उबकाई ले रही थी . खैर मैंने कस्सी उठाई और उस मासूम की लाश की तरफ चल दिया. उसे ऐसे छोड़ता तो कोई और जानवर नाश करता उसके टुकडो का. मने एक गड्ढा खोदा और उस नन्ही सी जान को दफना दिया. मेरे दिल में आग लगी थी . आँखों के सामने तमाम वो द्रश्य आ रहे थे जब निशा अलाव की आंच में मांस के टुकड़े भुन रही थी . अब मुझे समझ आया वो टुकड़े किसी बकरे के नहीं उस मासूम के थे.

मेरे पैर कांप रहे थे. जी घबरा रहा था पर मुझे चंपा और भाभी को भी संभालना था . मैंने फिर हाथ पैर धोये और भाभी की गाड़ी लेकर हम लोग घर आ गए. भाभी को बुखार आ गया था वैध ने कुछ दवाई दी . जिसके असर से भाभी को नींद सी आ गयी. मैंने चंपा को हिदायत दे दी थी की घर में किसी को भी इस घटना के बारे में न बताये.

निशा ने मुझे बताया कुछ था और हो कुछ और रहा था . मैंने उस पर विश्वास किया था . एक डायन पर मैंने विश्वास किया था . पर उसके लिए विश्वास के भला क्या मायने थे . क्या उसके और मेरे दरमियान जो भी बाते हुई थी उनका कुछ नहीं था सिवाय किसी छलावे के. पिछले कुछ दिनों में मैं लगातार लाशे ही देख रहा था . कहीं ये सब मुझ को पागल तो नहीं कर रहा था . छज्जे पर खड़े खड़े मैं ये सब ही सोच रहा था की तभी मैंने पिताजी की गाड़ी को अन्दर आते हुए देखा. गाड़ी से उतरते हुए वो कुछ थके से लग रहे थे . वो सीधा अपने कमरे में चले गए.

मैंने पिताजी के दरवाजे पर दस्तक दी.

पिताजी- अन्दर आ जाओ

मैं अन्दर गया . पिताजी कुर्सी पर बैठे थे .

मैं- आपसे कुछ बात करनी थी .

पिताजी- कहो

मैंने पिताजी को सारी बात बताई की खेतो पर क्या हुआ था .

पिताजी- ये पहली घटना नहीं है इस तरह की , आसपास के गाँवो से लगतार शिकायते आई है हमारे पास . पिछले कुछ महीनो से भेड-बकरिया. घोड़े -मुर्गे गायब हो रहे थे . ठण्ड के मौसम में अक्सर जंगली जानवर गाँवों का रुख कर लेते है पर इस पूर्णिमा से हमले जानवरों पर नहीं इंसानों पर हो रहे है . कुछ गाँवो के मोजिज लोगो से मिल कर हमने सुरक्षा के जरुरी उपाय किये भी पर वो सब नाकाफी है .

मैं- ऐसा चलता रहा तो लोगो का घर से निकलना बंद ही हो जायेगा.

पिताजी खेती का इलाका खुला है जंगल के पास है . इतने बड़े इलाके की तार बंदी न मुमकिन है

मैं- लोगो की टोली उस तरफ भी अगर चोकिदारी करे रातो में तो

पिताजी- नहीं , इन हालात में ये भी मुमकिन नहीं

मैं- तो फिर क्या इलाज इस समस्या का

पिताजी- दरअसल अभी तो मालूम भी नहीं की असल में ये क्या समस्या है. फिर भी हमने एक ओझा को बुलवाया है कल वो पहुँच जायेगा फिर देखते है वो क्या बताता है क्या करता है .

मै वापिस से भाभी के कमरे में आ गया . चाची ने मुझे गर्म चाय का कप दिया . कुछ घूंटो ने मुझे बड़ी राहत दी थी . भाभी के चेहरे पर नींद में भी डर सा था . दूसरी तरफ शहर से भी कोई खबर नहीं आई थी अभी तक. मैंने सोच लिया था की अगर निशा का हाथ है इन सब में तो मैं निशा को रंगे हाथ ही पकडूँगा तब देखूंगा वो क्या कहेगी मुझसे. सोचते सोचते मेरी भी आँख लग गयी .




 

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#17

मैंने देखा की इधर उधर मांस के बड़े बड़े टुकड़े फैले हुए थे . निशा अपने निशाँ छोड़ गयी थी . मैंने चंपा को पानी लाकर दिया और तमाम उन टुकडो को वहां से साफ़ करके दूर फेंक दिया.

मैं- अब ठीक है

चंपा- हाँ पर ये किसने किया

मैं- कोई शिकारी जानवर रहा होगा. तू आराम कर मैं तब तक काम देखता हूँ . तबियत ठीक लगे तो आ जाना .

मैंने खेतो का दूर तक चक्कर लगाया . बीच बीच से क्यारी-धोरो को भी देखा . जो पगडण्डी कटी थी उसे सुधारा. एक हिस्से में काफी घने पेड़ थी जिनकी बरसो से कटाई नहीं हुई थी मैंने सोचा की इनकी कटाई से इस हिस्से को धुप भी मिलेगी और लकडिया भी .

जब मैं वापिस लौटा तो देखा की भाभी आई हुई थी .

मैं- अरे भाभी आप क्यों आई इधर

भाभी- क्यों मैं नहीं आ सकती क्या

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था .

भाभी- सोचा आज खाना मैं ले चलती हूँ , वैसे भी बहुत दिनों से घर से बाहर निकलना हुआ नहीं मेरा.

चंपा- बढ़िया किया भाभी .

भाभी मुस्कुराई और बोली- खाना खा लो तुम लोग.

खाना खाने के बाद चंपा कुछ सब्जिया तोड़ने चली गयी रह गए हम दोनों .

भाभी- मैं घूमना चाहती हूँ

मैं- जो आपका दिल करे. जहाँ तक जाना है जाइये

मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर लेट गया कमर सीढ़ी करने के लिए. पर मेरा दिल नहीं लग रहा था पल पल हर पल मुझ पर एक नशा चढ़ रहा था निशा का नशा . कल रात इसी जगह पर हम दोनों अलाव के पास बैठ कर बाते कर रहे थे . चारपाई के किनारे को चुमते हुए मुझे बस निशा का सुरूर ही था .

“हाय देखो कैसे चारपाई को चूम रहा है जिसे चूमना चाहिए उसे तो देखता भी नहीं ” चंपा ने मुझे घूरते हुए कहा.

मैं थोडा असहज हो गया.

मैं- तू कब आयी

वो- मैं या विदेश से आई हूँ इधर ही तो थी दो मिनट सब्जी लाने क्या गयी देखो हालत क्या हो गयी तुम्हारी

मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही

चंपा - हाय रे फूटी किस्मत मेरी. भाभी कहाँ है

मैं- इधर ही होंगी बोल रही थी की खेतो का चक्कर लगा कर आती हूँ .

चंपा - सुन .बड़े भैया या राय साहब से कह कर कीटनाशक मंगवा लेना शहर से .सब्जियों की कई क्यारिया ख़राब हो रही है . नुक्सान होगा इस बार .

मैं- तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे

वो- ये मेरा काम नहीं है सब्जिया तू और मंगू उगाते हो . तुम्हे मालूम होना चाहिए. आजकल तुम्हारा ध्यान न जाने कहा है

मैं- कोई बात कल ही शहर चला जाऊँगा.

चंपा- मुझे भी ले चल अपने साथ . बहुत दिन हुए

मैं- चाची या भाभी के साथ जाया कर न

वो- तेरे साथ अलग ही मजा रहेगा.

मैं- और उस मजे की सजा क्या होगी.

चंपा - किस बात की सजा

मैं- तू समझती क्यों नहीं

हम बाते कर ही रहे थे की एकाएक भाभी के चीखने की आवाजे आने लगी. हम दोनों तुरंत भाभी की तरफ भागे. भाभी खेतो के बीच खड़ी खड़ी कांप रही थी .

“भाभी, भाभी क्या हुआ ” मैंने भाभी के पास जाकर कहा . भाभी ने सामने की दिशा में अपना हाथ हिलाया . मैंने आगे आकर देखा सरसों में एक बच्चे की लाश पड़ी थी जिसे बुरी तरह से उधेडा गया था. खून बिलकुल ताजा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. भाभी खौफ के मारे मेरे सीने से लग गयी .

मैं दिलासा भी देता तो क्या देता. एक मासूम को किसी ने उधेड़ कर रख दिया था . हम भाभी को कमरे के पास लेकर आये और थोडा पानी दिया . भाभी ने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं देखा था तो वो बहुत ज्यादा घबरा गयी थी .

मैं- चंपा भाभी का ख्याल रखो

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर वो बेचारी खुद उबकाई ले रही थी . खैर मैंने कस्सी उठाई और उस मासूम की लाश की तरफ चल दिया. उसे ऐसे छोड़ता तो कोई और जानवर नाश करता उसके टुकडो का. मने एक गड्ढा खोदा और उस नन्ही सी जान को दफना दिया. मेरे दिल में आग लगी थी . आँखों के सामने तमाम वो द्रश्य आ रहे थे जब निशा अलाव की आंच में मांस के टुकड़े भुन रही थी . अब मुझे समझ आया वो टुकड़े किसी बकरे के नहीं उस मासूम के थे.

मेरे पैर कांप रहे थे. जी घबरा रहा था पर मुझे चंपा और भाभी को भी संभालना था . मैंने फिर हाथ पैर धोये और भाभी की गाड़ी लेकर हम लोग घर आ गए. भाभी को बुखार आ गया था वैध ने कुछ दवाई दी . जिसके असर से भाभी को नींद सी आ गयी. मैंने चंपा को हिदायत दे दी थी की घर में किसी को भी इस घटना के बारे में न बताये.

निशा ने मुझे बताया कुछ था और हो कुछ और रहा था . मैंने उस पर विश्वास किया था . एक डायन पर मैंने विश्वास किया था . पर उसके लिए विश्वास के भला क्या मायने थे . क्या उसके और मेरे दरमियान जो भी बाते हुई थी उनका कुछ नहीं था सिवाय किसी छलावे के. पिछले कुछ दिनों में मैं लगातार लाशे ही देख रहा था . कहीं ये सब मुझ को पागल तो नहीं कर रहा था . छज्जे पर खड़े खड़े मैं ये सब ही सोच रहा था की तभी मैंने पिताजी की गाड़ी को अन्दर आते हुए देखा. गाड़ी से उतरते हुए वो कुछ थके से लग रहे थे . वो सीधा अपने कमरे में चले गए.

मैंने पिताजी के दरवाजे पर दस्तक दी.

पिताजी- अन्दर आ जाओ

मैं अन्दर गया . पिताजी कुर्सी पर बैठे थे .

मैं- आपसे कुछ बात करनी थी .

पिताजी- कहो

मैंने पिताजी को सारी बात बताई की खेतो पर क्या हुआ था .

पिताजी- ये पहली घटना नहीं है इस तरह की , आसपास के गाँवो से लगतार शिकायते आई है हमारे पास . पिछले कुछ महीनो से भेड-बकरिया. घोड़े -मुर्गे गायब हो रहे थे . ठण्ड के मौसम में अक्सर जंगली जानवर गाँवों का रुख कर लेते है पर इस पूर्णिमा से हमले जानवरों पर नहीं इंसानों पर हो रहे है . कुछ गाँवो के मोजिज लोगो से मिल कर हमने सुरक्षा के जरुरी उपाय किये भी पर वो सब नाकाफी है .

मैं- ऐसा चलता रहा तो लोगो का घर से निकलना बंद ही हो जायेगा.

पिताजी खेती का इलाका खुला है जंगल के पास है . इतने बड़े इलाके की तार बंदी न मुमकिन है

मैं- लोगो की टोली उस तरफ भी अगर चोकिदारी करे रातो में तो

पिताजी- नहीं , इन हालात में ये भी मुमकिन नहीं

मैं- तो फिर क्या इलाज इस समस्या का

पिताजी- दरअसल अभी तो मालूम भी नहीं की असल में ये क्या समस्या है. फिर भी हमने एक ओझा को बुलवाया है कल वो पहुँच जायेगा फिर देखते है वो क्या बताता है क्या करता है .

मै वापिस से भाभी के कमरे में आ गया . चाची ने मुझे गर्म चाय का कप दिया . कुछ घूंटो ने मुझे बड़ी राहत दी थी . भाभी के चेहरे पर नींद में भी डर सा था . दूसरी तरफ शहर से भी कोई खबर नहीं आई थी अभी तक. मैंने सोच लिया था की अगर निशा का हाथ है इन सब में तो मैं निशा को रंगे हाथ ही पकडूँगा तब देखूंगा वो क्या कहेगी मुझसे. सोचते सोचते मेरी भी आँख लग गयी .
Har var ki tarah .... Majedar updates...vese kuwar ko Nisha apni or khich rahi hai..pr usne dono ke darmyan kuch hadde teh ki Hein...abb jese kuwar lagg Raha hai woh iss hadd ko todega jaroor .....abb todega ja nhi....or kya hoga...uska intzaar rahega.....
 
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