Sanju@
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अंजू ने जो कहा था वो सच है कबीर समझदार है और वो समझता है इसलिए सोने का मोह नहीं है बड़े बुजुर्ग लोगो ने सही कहा है कि मिला हुआ सोना दुर्भाग्य लाता है अब ये प्रश्न है कि पानी में जो सोना है वो इसका भाग है या अलग है इन दोनो के बारे में राय साहब को मालूम है लगता है ये सब किसी सिद्धि के लिए तो नही रखा है कबीर ने जो भी राय साहब से कहा है वो सही कहा है क्योंकि वो हमेशा से सब के सामने अच्छे आदमी बनकर अपना रोब जमाए हुए थे । दोनो के रिश्ते पहले जैसे नहीं होने वाले हैं राय साहब ने अपनी बाते मानी है और उनका खुद को जिम्मेदार ठहराया है देखते हैं इनकी भी कोई तो वजह रही होगी#
धरती की गहराई में मेरे सामने एक बेहद पुराना गड्ढा था जो ईंटो से बनवाया गया था मेहराबदार जैसे की छोटा कुवा हो. उसकी गहराई तो मैं नहीं जानता था पर इतना जरुर था की वो चाहे जितना गहरा हो . उसमे जो सामान था उसकी कीमत बहुत थी . वो गड्ढा ऊपर तक सिर्फ और सिर्फ सोने से भरा था .मैंने अनुमान लगाया यदि ये गड्ढा पांच-छ फूट गहरा भी हुआ तो भी हद, मतलब हद से जायदा सोना था यहाँ पर .
मेरा दिमाग और घूम गया . जंगल में जगह जगह सोना बिखरा हुआ था और दुनिया बहन की लौड़ी चूत के चक्कर में जंगल नाप रही थी . उस दिन मैंने जाना की सबसे बड़ा लालच इस दुनिया में चूत का ही है . बाकी सब उसके बाद . यहाँ पड़े सोने ने अंजू की बात की तस्दीक कर दी थी . पर मेरे सामने एक ऐसा यक्ष प्रशन खड़ा हो गया था की क्या पाने में पड़ा सोना इसका ही हिस्सा था या फिर दो अलग अलग खजाने थे .
मैंने गड्ढे को बंद किया और सुनैना की समाधी के टुकडो पर अपना सर रख कर इस कार्य के लिए माफ़ी मांगी .
“जब यहाँ तक आ ही पहुंचे तो फिर रुक क्यों गए . सोना सामने है ले क्यों नहीं जाते. ”
मैंने पलट कर देखा , राय सहाब खड़े थे.
मैं- ये सोना दुर्भाग्य है , अगर ये शुभ होता तो मुझसे पहले ही कई दावेदार थे न इसके, सुनैना की समाधी के लिए मैं शर्मिंदा हूँ , बाकि ये सोना न पहले मेरा था न आज है जिसका है वो ले जाये .
मैंने राय साहब की आँखों में आँखे मिला कर कहा.
पिताजी- अगर तुम्हे इसकी चाह नहीं तो फिर क्या चाहते हो तुम
मैं- जो मैं चाहता हूँ जल्दी ही ये सारा जमाना जान जायेगा. पर आज अभी इसकी वक्त मैं राय साहब ने जो मुखोटा ओढा हुआ है उस नकाब के पीछे क्या है वो जरुर जानना चाहूँगा.
पिताजी- लफ्जों पर लगाम लगाओ बरखुरदार
मैं- आपने रिश्तो को तार तार कर दिया , हमारे लफ्जों पर भी काबू ये तो नाइंसाफी है राय साहब.
पिताजी- हमारा बेटा हमारी ही आँखों में आँखे डाल कर खड़ा है , जिसके आगे दुनिया झुकती है तुम उस से आँखे मिला रहे हो.
मैं- दुनिया कहाँ जानती है की गरीबो का मसीहा , गरीबो की इज्जत अपने बिस्तर पर लूट रहा है . चंपा के साथ आपने जो भी किया न , मैं कभी नहीं भूलूंगा. आप जानते थे चंपा क्या है मेरे लिए इस घर में केवल दो बेटे ही नहीं थे ,एक बेटी भी थी जिसका नाम चंपा था और उसी बेटी के साथ आपने जो किया न मुझे शर्म है की मैं इस घटिया आदमी का खून हूँ .
“घर में चंपा, बाहर रमा और न जाने कितनी उसके जैसी औरतो ने आपके बिस्तर की शोभा बढाई होगी. जिस चाचा को आपने ये सब करने से रोका था आप भी उसके ही नक़्शे कदम पर चल निकले क्या फर्क रह गया . अरे मैं भी फर्क कैसे होगा, खून तो शुरू से ही गन्दा रहा है हमारा ” मैंने कहा .
राय साहब खामोश खड़े रहे .
मैं- ये ख़ामोशी कमजोरी की निशानी है राय साहब . मैं नहीं जानता आप किस रिश्ते को थाम रहे है किसको छोड़ रहे है पर मैं इतना जानता हूँ किसी भी रिश्ते को आपने इमानदारी से नहीं निभाया . सुनैना से लेकर रमा तक सबको आपने छला है . जो इन्सान खुद राते काली रहा है वो पंचायत में लाली को फांसी की सजा देता है , धूर्तता का चरम इस से ज्यादा क्या होगा.
पिताजी- उस पंचायत में ही हमने तुम्हारे अन्दर के विद्रोह को देख लिया था .हम जान गए थे की आने वाला वक्त मुश्किलों से भरा होगा. हम जो भी कर रहे है , हमने जो भी क्या उसके पूर्ण जिम्मेदार हम है सिर्फ हम और हमें नहीं लगता की हमें तुम्हे या किसी और को सफाई देने की जरूरत है .
मैं- सफाई नहीं मांग रहा मैं, बता रहा हूँ आपको की यदि आज के बाद मुझे भनक भी लगी न की आपने चंपा की तरफ नजर भी उठाई तो मेरा यकीं मानिए वो नजर, नजर नहीं रहेगी फिर.
पिताजी- अपनी औकात मत भूलो कबीर,
पिताजी जैसे दहाड़ उठे.
मैं- ये खोखला रुतबा मैं नहीं डरता इस से. मेरे शब्द अपने कानो में घोल लीजिये . वो दिन कभी नहीं आना चाहिए की मुझे अपने बाप का प्रतिकार करना पड़े.
“कबीर,,,, ” पिताजी ने अपना हाथ उठा लिया गुस्से से पर मारा नहीं मुझे , हल्का सा धक्का दिया और फिर वापिस मुड गए. मैं जान गया था की चोट गहरी लगी है बाप को . पर मैं कितना टालता इस दिन को ये आना ही था .
वहां से आने के बाद मैं सीधा रमा के पुराने घर गया पर वहां भी कोई नहीं था . मैं अन्दर गया . सब कुछ वैसा ही था . अलमारी में मुझे सोने के वो गहने मिले जो कल रात वो पहने हुई थी, पास में ही नोटों की गड्डी पड़ी थी. ये साला हो क्या रहा था इस गाँव में बहनचोद किसी को भी सोने से लगाव नहीं था . और जब जमीन , पैसे, गहनों का लालच न हो तो कारन सिर्फ एक ही हो सकता था नफरत या फिर मोहब्बत.
घर गया तो देखा की पुजारी आया हुआ था . मैंने उसे नमस्ते की और उसके पास बैठ गया .
भैया-भाभी-चाची सब कोई बैठे थे.मैं सोच रहा था की ये रात को क्यों आया था . मालूम हुआ की पुजारी फेरो में लगने वाला सामान लिखवाने आया था . तमाम चुतियापे के बीच मैं भूल ही गया था की ब्याह सर पर है . थोड़ी देर बाद पुजारी चला गया भैया ने मुझसे कहा की दो पेग लेगा पर मैंने मना किया .
“इतनी गहराई से क्या सोच रहे हो ” भाभी ने मेरे हाथ में खाने को कुछ दिया और मेरे पास ही बैठ गयी.
मैं- सोच रहा हूँ की इतने मेहमान आयेंगे शादी में , एक मेहमान मैं भी बुला लू क्या.
भाभी- वो नहीं आएगी
मैं- आप आज्ञा दे तो मैं ले आऊंगा उसे
भाभी- ठीक है , आती है तो ले आ. पर सिर्फ मेहमान की हसियत से. पर दुनिया से क्या कहोगे किस हक़ से लाओगे उसे यहाँ पर .
मैं- आप पूछ रही है ये. उसका हक़ नहीं तो फिर किसका हक़ . वो नहीं तो फिर और कौन . मैं आप से पूछता हूँ, आप हसियत की बात करती है उसे आने के लिए किसी हक़ की क्या जरुरत. वो जिन्दगी है मेरी .
भाभी ने अपना सर मेरे काँधे पर टिकाया और बोली- ले आना उसे, मेरी तरफ से न्योता देना उसे.
मेरी नजर आसमान में धुंध से आँख-मिचोली खेलते चाँद पर गयी. सीने में न जाने क्यों बेचैनी से बढ़ गयी....................
भाभी ने निशा को बुलाने कि हामी भर दी है देखते हैं वो आती है या नही
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