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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Tiger 786

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#1

“तेज और तेज ” घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .



“न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र ” कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

“बस थोड़ी देर की बात और है ” कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

“अब तुमको क्या हुआ ” कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

“क्या मुसीबत है ” कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

“आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा ” अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

“सियार ” उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

“जरा तेज तेज चला साइकिल को ” मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .



“इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ ” कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

“कोई है ” कोचवान ने आवाज दी .

“कोई है , ” उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

“क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो ” उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

“ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का ” उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

“मंगू, साइकिल रोक जरा, ” मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .


“आईईईईईईईईईईईइ ”जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
Fauji bhai nayi kahani ke liye mubarkbaad
Awesome lazwaab shuruaat👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
Last edited:

Tiger 786

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#2

मंगू इतनी जोर से चीखा था की एक पल के लिए मेरी भी फट गयी . मैंने तुरंत उस आदमी को मंगू के ऊपर से हटाया तो मालूम हुआ की वो हमारे गाँव का ही हरिया कोचवान था .

“रे बहनचोद हरिया , गांड ही मार ली थी तूने तो मेरी ” अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए मंगू ने हरिया को गाली दी .

पर हरिया को कोई फर्क नहीं पड़ा. वो अपने हाथो से हमें इशारा कर रहा था .

मैं- हरिया क्या चुतियापा मचाये हुए है तू मुह से बोल कुछ

पर कोचवान अपने हाथो को हिला हिला कर अजीबो गरीब इशारे कर रहा था . तभी मेरी नजर हरिया उंगलियों पर पड़ी जो टूट कर विपरीत दिशाओ में घूमी हुई थी ,अब मेरी गांड फटी . कुछ तो हुआ था कोचवान के साथ जो वो हमें समझाने की कोशिश कर रहा था .

“बैठ ” मैंने उसे शांत करने की कोशिश की , उसकी घबराहट कम होती तभी तो वो कुछ बताता हमें.

मंगू- भाई इसका शरीर पीला पड़ता जा रहा है

मैं- मंगू इसे तुरंत वैध जी के पास ले जाते है

मंगू- हाँ भाई

मैंने और मंगू ने हरिया को गाड़ी में पटका . अपनी साइकिल लादी और करीब आधे घंटे बाद उसे गाँव में ले आये. रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर हमें भला कहाँ चैन मिलता . ये कोचवान जो पल्ले पड़ गया था .

“बैध जी बैध जी ” मंगू गला फाड़े चिल्ला रहा था पर मजाल क्या उस रात कोई अपने गरम बिस्तरों से उठ कर दरवाजा खोल दे. जब कई देर तक इंतज़ार करने के बाद भी बैध का दरवाजा नहीं खुला तो मैंने एक पत्थर उठा कर उसकी खिड़की पर दे मारा .

“कौन है कौन है ” चिल्लाते हुए बैध ने दरवाजा खोला .

“तुम , तुम दोनों इस वक्त यहाँ पर क्या कर रहे हो और मेरी खिड़की का कांच क्यों तोडा तुमने, क्या चोरी करने आये हो .” बैध ने अपना चस्मा पकड़ते हुए कहा

मैं- आँखों को खोल कर देखो बैध जी

बैध ने चश्मा लगाया और मुझे देखते हुए बोला- अरे बेटा तुम इतनी रात को , सब राजी तो है न

तब तक मंगू हरिया को उतार कर ला चूका था .

मैं- ये हमें जंगल में मिला.

जल्दी ही हम वैध जी के घर में वैध को हरिया की पड़ताल करते हुए देख रहे थे .

मैं- मार पीट के निशान है क्या

वैध- नहीं बिलकुल नहीं

मैं- तो इसकी उंगलिया कैसे मुड़ी और ये बोल क्यों नहीं पा रहा

वैध- जीभ तालू से चिपक गयी है .

मैं- हुआ क्या है इसे

वैध- समझ नही आ रहा

मंगू- तो क्या घंटा के बैध हो तुम

वैध- कुंवर, तुम्हारी वजह से मैं इसे बर्दाश्त कर रहा हूँ वर्ना इसके चूतडो पर लात मारके भगा देता इसे.

मैं- माफ़ करो वैध जी, इसे भी हरिया की फ़िक्र है इसलिए ऐसा बोल गया . पर वैध जी आप तो हर बीमारी के ज्ञाता हो , न जाने कितने लोगो की बीमारी ठीक की है आपने , आप ही इसका मर्म नहीं पकड़ पा रहे तो क्या होगा इसका.

वैध - फ़िलहाल इसे कुछ औषधि दे देता हूँ किसी तरह रात कट जाये फिर सुबह देखते है



मंगू- चल भाई घर चलते है

मैं- इस घोडा गाड़ी का क्या करे , हरिया के घर इस समय छोड़ेंगे तो उसके परिवार को बताना पड़ेगा वो लोग परेशां हो जायेंगे

मंगू- परेशां तो कल भी हो जाना ही है

मैं- कम से कम रात को तो चैन से सो लेंगे.

घोड़ो की व्यवस्था करने के बाद मैंने मंगू को उसके घर छोड़ा और फिर दबे पाँव अपने चोबारे में घुस ही रहा था की .....

“आ गए बरखुरदार ”

मैंने पलट कर देखा भाभी खड़ी थी .

मैं- आप सोये नहीं अभी तक .

भाभी- जिस घर के लड़के देर रात तक घर से बाहर रहे वहां पर जिम्मेदार लोगो को भला नींद कैसे आ सकती है

मैं- क्या भाभी आप भी

भाभी- इतनी रात तक बाहर रहना ठीक नहीं है , रातो को दो तरह के लोग ही बाहर घूमते है एक तो चोर दूसरा आशिक

मैं- यकीन मानिये भाभी , मैं उन दोनों में से कोई भी नहीं हूँ . सो जाइये रात बहुत हुई. कोई आपको ऐसे जागते देखेगा तो हैरान होगा.

भाभी- अच्छा जी, रातो को बाहर घुमो तुम और हैरानी हमसे वाह जी वाह

मैं बस मुस्कुरा दिया और चोबारे में घुस गया . गर्म लिहाफ ओढ़े हुए मैं बस हरिया कोचवान के बारे में सोचता रहा .



सुबह जब आँख खुली तो सर में हल्का हल्का दर्द था , निचे आया तो देखा की भैया कुर्सी पर बैठे थे . मैंने उनको परनाम किया और हाथ मुह धोने लगा .

भैया- कुंवर तुमसे कुछ बात करनी थी

मैं - जी भैया

भैया- हमने तुमसे कहा था की छोटी मोटी जिमीदारिया निभाना सीखो . कल तुम फिर से न जाने कहाँ गायब थे , चाची के खेत बिना पानी के रह गए. तुमसे कहा था की वो काम तुमको करना है . फसल बर्बाद होगी तो नुकसान होगा.

मैं- भैया, आज रात पानी दे दूंगा आइन्दा से आपको शिकायत नहीं होगी.

तभी भाभी चाय के कप लिए हुए हमारी तरफ आई

भाभी- मजदूरो को क्यों नहीं भेज देते , वैसे भी मजदुर खेतो पर काम करते तो हैं

भैया- तुम्हारे लाड ने ही इसे इतना बिगाड़ दिया है की ये हमारी भी नहीं सुनता. इसे भी अपनी जमीन से उतना ही प्यार होना चाहिए जितना हमें है . माना की ये सब इसका ही है पर हमारा ये मानना है की पसीने का दाम चुकाए बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता .

मैंने भाभी के हाथ से चाय का कप लिया और घूँट भरी. कड़क ठंडी की सुबह में गजब करार आ गया . भाभी मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा पड़ी.

हम बात कर ही रहे थे की तभी वैध जी का आना हुआ

वैध- मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है

मैं- कहिये

वैध- तुमसे नहीं कुंवर, बड़े साहब से .


सुबह सुबह मेरा दिमाग घूम गया कायदे से वैध को मुझे हरिया के बारे में बताना चाहिए था पर वो भैया से कोई बात करने आया था . उत्सुकता से मैंने अपने कान लगा दिए पर भैया उसे लेकर घर से बाहर चले गए. मैं उनके पीछे पीछे दरवाजे पर पहुंचा ही था की तभी धाड़ से मैं टकरा गया . “हाय राम ” दर्द से मैं बोला . अपने आप को सँभालते हुए मैं जब तक उठा वो दोनों भैया की गाड़ी में बैठ कर जा चुके थे ... पर कहाँ ...........
Behtreen update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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सर्वप्रथम आपको एक नई कहानी की शुरुआत के लिए बधाई। वैसे तो गुजारिश 2 पढ़ने वाला था परंतु उसके 70 अपडेट्स लिखे जा चुके थे, और फिलहाल के लिए समय निकालना कुछ कठिन है, कारण, मैं आपकी लेखनी से परिचित हूं और जानता हूं कि यदि एक बार उसे पढ़ना शुरू किया तो पूर्ण करने से पूर्व रुक नही पाऊंगा। खैर, देखते हैं कब कुछ खाली समय मिलता है और उसे पढ़ने का संयोग बनेगा। बहरहाल, दिल अपना प्रीत पराई... :bow: शब्द नही हैं उसकी तारीफ के लिए!! आभार आपका कि आपने ये कालजयी कहानी लिखी।

तो, “तेरे प्यार में", कहानी की शुरुआत हुई है एक कोचवान और उस जंगल से जिसमें इस कहानी का मुख्य भाग बसा दिखाई पड़ रहा है। कहानी का नायक अपने साथी मंगू के साथ जंगल के रास्ते निकल रहा था और वहीं से वो कोचवान भी। कोचवान ने निश्चित ही कोई ऐसी चीज़ देखी जिसके कारण उसका डर से बुरा हाल हो गया। क्या कोई मृत देह..? या फिर कुछ और, कहानी अभी शुरू ही हुई है परंतु पहले ही भाग से रोमांच पैदा होना आरंभ हो गया है।

देखते हैं कि नायक को उसकी नियति जो यहां लाई है, आगे उसके साथ क्या होता है। बहरहाल, लगता है कि कोचवान ने ही मंगू को पीछे से पकड़ लिया है, शायद डर के कारण। शुरुआत,बेहतरीन है भाई, यूंही लिखते रहिए।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
स्वागत है मित्र, उम्मीद है कि आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी ये कहानी
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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भाई नई स्टोरी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और ढेर सारी बधाई , 2 updates में ही पता चल गया के यह एक हॉरर और ट्रेलर स्टोरी है bahut maja aaega aapke sath iss story per thank you
 

Rajizexy

punjabi doc
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Dhansu2

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“तेज और तेज ” घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .



“न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र ” कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

“बस थोड़ी देर की बात और है ” कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

“अब तुमको क्या हुआ ” कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

“क्या मुसीबत है ” कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

“आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा ” अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

“सियार ” उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

“जरा तेज तेज चला साइकिल को ” मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .



“इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ ” कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

“कोई है ” कोचवान ने आवाज दी .

“कोई है , ” उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

“क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो ” उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

“ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का ” उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

“मंगू, साइकिल रोक जरा, ” मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .


“आईईईईईईईईईईईइ ”जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
Welcome back fauji bhai Bahut acha laga apko wapis dekh kr
 
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