#25
होश आया तो बदन दर्द से टूट रहा था . छाती पर बैलगाड़ी का पहिया पड़ा हुआ था . उसे हटाया , सर अभी भी घूम रहा था . गाडी के पहियों में लगने वाली लोहे की शाफ्ट का कुछ हिस्सा मेरी जांघ में घुसा हुआ था . दोनों बैलो के विक्षत शव जिन्हें बुरी तरफ से चीर-फाड़ा गया था मेरे पास ही पड़े थे. पहिये को हटाना चाहा तो हाथ से ताकत लगी ही नहीं दर्द हुआ सो अलग पाया की कंधे पर एक गहरा जख्म था मांस उखाड़ा गया था वहां का .
मैंने आँखे बंद कर ली और पड़े पड़े ही रात को क्या हुआ याद करने की कोशिश की पर याद आये ही नहीं . जैसे तैसे मैंने पहिये को हटाया और जांघ से वो लोहे का टुकड़ा निकाला. रक्त की मोटी धारा बह रही थी मिटटी और कपडा लगा कर मैंने खून को बहने से रोकने की कोशिश की .
उसी शाफ़्ट को पकड़ कर मैं खड़ा हुआ . मैंने देखा थोड़ी दूर वो कडाही उलटी पड़ी थी तब मुझे याद आया की कारीगर भी था मेरे साथ और अब वो दूर दूर तक नहीं दिख रहा था .
“कारीगर, कारीगर ” मैंने दो तीन बार आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया. मेरा दिल अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा. एक बार फिर परिस्तिथिया ऐसी थी की मैं ही गुनेहगार माना जाता और इस बार तो बचाव में भी कुछ नहीं था . शाफ़्ट का सहारा लिए लिए मैं वैध जी के घर तक बड़ी मुश्किल से पहुँच गया.
“कुंवर क्या हुआ तुम्हे ” वैध ने मुझे घर के अन्दर लिया और पूछा मुझसे
मैं- पता नहीं क्या हुआ है वैध जी , आप मेरे भैया तक सुचना पहुंचा दीजिये
वैध- जरुर पर पहले मैं निरिक्षण कर लू . मरहम पट्टी कर दू.
जांघ पर टाँके लगा दिए थे पर जब वैध काँधे को देख रहा था तो उसकी आँखों में दहशत देखि मैंने.
वैध- किस जानवर से पाला पड़ा था कुंवर शिकार करते समय
मैं- मालूम नहीं वैध जी. पर इतना जरुर है की जानवर नहीं था हमला करने वाला
वैध- यहाँ पर टाँके भी काम नहीं आयेंगे . ऐसे ही भरने देना होगा इस जख्म को मरहम पट्टी के सहारे ही .
पीठ में एक बड़ी कील भी थी उसे भी वैध ने निकाला और बोला- तुम कहते हो याद नहीं है हालत देख कर लगता है की संघर्ष खूब हुआ है .
वैध क्या कह रहा था मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था . मैं इस बात से घबराया था की अगर ये हमलावर वो ही था जिसने हरिया और बाकी लोगो का शिकार किया था तो क्या मेरी हालत भी वैसी ही हो जाएगी. क्या मेरे पास भी अब सिमित समय ही रह गया है .
“कबीर, मेरे भाई ” भैया आन पहुंचे थे .
भैया- कबीर क्या हुआ तुझे . किसने किया ये . नाम बता मुझे उसका . मेरे भाई की तरफ आँख उठाने की किसकी हिम्मत हो गयी मैं आग लगा दूंगा उसको. उन हाथो को उखाड़ दूंगा जिन हाथो ने मेरे भाई को छूने की हिमाकत की है .
जीवन में पहली बार मैंने भैया को क्रोध में देखा था . भैया ने मुझे अपने सीने से लगाया . उनकी आँखों से बहते आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.
मैं- कुछ नहीं हुआ है भैया मामूली ज़ख्म है
भैया- मामूली जख्म भी मेरे रहते कैसे लग जायेंगे मेरे भाई को . तू बस इतना बता की क्या हुआ कौन लोग थे वो .
मैं- मुझे कुछ याद नहीं है भैया. जब होश आया तो मैं घायल था बस ये ही याद है .
शाम तक घर घर तक ये खबर पहुंच गयी थी की राय साहब के लड़के पर हमला हुआ है .सब लोग मेरे आगे पीछे फिर गए थे पर तमाम बातो के बीच कोई उस कारीगर की बात नहीं कर रहा था. जैसे की किसी को फ़िक्र ही नहीं थी की वो था या नहीं था . और मैं सब जानते हुए भी उसका जिक्र नहीं कर पा रहा था . इतना बेबस मैंने खुद को कभी नहीं पाया था .
पिताजी की आंखो में मैंने पहली बार नमी देखि थी उस दिन . चाची तो बेहोश ही हो गयी थी ये खबर सुन कर. भाभी मेरे पास ही बैठी रही .
पिताजी- हमारे लाख मना करने के बावजूद भी घर से बाहर जाने की क्या मज़बूरी थी . जिसके लिए तुम अपनी जान की परवाह भी नहीं करते हो
मैं- गलती हो गयी पिताजी
पिताजी- तुम तो गलती कह कर पल्ला झाड लोगे कबीर, अगर तुम्हे कुछ भी हो जाता तो हम पर क्या बीतती एक पल सोच कर देखो. इस बूढ़े आदमी की हिम्मत की परीक्षा मत लो बेटे, इस बूढ़े में इतनी हिम्मत नहीं है की जवान बेटे की अर्थी को कंधा दे सके. अवश्य ही कोई पुन्य था जो आड़े आ गया वर्ना मारने वाले ने कमी थोड़ी न छोड़ी थी.
भाई- पिताजी मैं जल्दी ही पता कर लूँगा की कौन लोग थे इसके पीछे
पिताजी- मेरे बेटे पर हमला करने की गुस्ताखी करने वाले की हिम्मत की दाद देनी होगी पर सवाल ये है की आखिर किस की हमसे दुश्मनी हो सकती है कौन ऐसा सांप पैदा हो गया .
भाई- कुचल देंगे उस सांप को पिताजी .
मैं- आप लोग यु ही बात को बड़ी कर रहे है , कोई जानवर ही रहा होगा.
भाई- तुम चुप रहो फिलहाल
उनके जाने के बाद मैंने वैध से पूछा की घर कब जा सकता हूँ.
वैध- मुझे थोड़ी तस्सली हो जाये उसके बाद
मैं- कैसी तस्सली
वैध- तुम जानते हो
मैं समझ गया वैध देखना चाहता था की मुझमे भी बाकि लोगो जैसे लक्षण आते है या नहीं .
एक पूरी रात वैध की निगरानी में रहने के बाद मैं घर आ गया.
भाभी- जी तो करता है की मैं बहुत मारू तुमको. हमारे लाड-प्यार का आखिर कितना नाजायज फायदा उठाओगे तुम .
मैंने कुछ नहीं बोला
भाभी- अब क्यों गूंगे बने हुए हो देख लिए न मनमर्जी करने का नतीजा . घर में मेहमान आये थे पर बेगैरत को क्या पड़ी थी इनको तो चस्का लगा था उसी लड़की के पास मुह मारने गए थे न
मैं- ऐसा कुछ नहीं था भाभी . मैंने गलती मान तो ली न
भाभी- हर बार का यही नाटक है , बस गलती मान लो.
भैया- बस भी करो अब , इसे आराम करने दो
भाभी- हाँ मैं कौन होती हूँ इन्हें कुछ कहने वाली.
मैं- भाभी माफ़ी दे भी दो
भाभी- तुम्हे कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता सोचा तुमने
भाभी ने मुझे सीने से लगाया और रोने लगी . एक मैं था जिसके लिए सारा परिवार इधर उधर भाग रहा था एक बेचारा वो कारीगर था जिसका कोई जिक्र ही नहीं था . उस लम्हे में मुझे खुद से नफरत हो गयी .