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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Curiousbull

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#29

बैठे बैठे मेरे सर में दर्द हो ने लगा था तो सोचा की क्यों न वैध जी को दिखा लिया जाये दूसरा वैध से मिलने का मेरा एक उद्देश्य और था . मैं अपने सूजे हुए लिंग के बारे में भी उस से बात करना चाहता था क्योंकि अब तो काफी दिन हो गए थे पर इसकी सूजन कम हो ही नहीं रही थी . घुमते घुमते मैं वैध के घर पहुच गया और दरवाजा खडकाया .

“कौन है ” दरवाजा खुलते ही एक मधुर आवाज मेरे कानो में टकराई

मैंने देखा दरवाजे पर वैध की बहु कविता खड़ी थी .

कविता- ओह तुम हो कुंवर जी , माफ़ करना मैं पहचान नहीं पायी .

मैं- कोई न भाभी . तुम वैध जी को बुला दो मुझे कुछ काम है

भाभी- वो तो पड़ोस के गाँव में गए है मरीज को देखने के लिए . तुम इंतज़ार कर लो कह कर तो गए थे की शाम ढलने तक आ जायेंगे. मैं चाय बना देती हूँ तुम तक.

मैं- नहीं भाभी मैं फिर आ जाऊंगा.

कविता- मैंने कहा न आते ही होंगे. वैसे कोई समस्या है तो मुझे बता सकते हो उनकी अनुपस्तिथि में मैं भी मरीज देख लेती हूँ

अब उसको मैं क्या बताता की मेरे लंड इतना मोटा हो गया है की कच्चे में भी दीखता रहता है .

मैं- भाभी समस्या ऐसी है की उनको ही बता पाउँगा

भाभी- तो फिर थोडा इंतजार कर लो , इंतजार के बहाने ही हमारी चाय पी लो

मैं- ठीक है भाभी

मैं अन्दर जाकर बैठ गया कविता भाभी थोड़ी देर में ही चाय ले आई

कविता- जखम कैसे है अब

मैं- भर जायेंगे धीरे धीरे सर में दर्द हो रहा था मैंने सोचा की टाँके कही हिल तो नहीं गए दिखा आऊ

भाभी- सही किया स्वास्थ के मामले में लापरवाही करना ठीक नहीं होता. वैसे बड़ी बहादुरी से सामना किया तुमने उस हमला करने वाले का , पिताजी बता रहे थे की कोई और होता तो प्राण देह छोड़ गए होते.

मैं- कोशिश की थी उसे पकड़ने की

ये बहन का लंड वैध जब भी मैं आता था मिलता ही नहीं था . अँधेरा भी घिरने लगा था पर ये चुतिया न जाने कब आने वाला था .

मैं- देर ज्यादा ही कर दी वैध जी ने

कविता- कहे तो थे की दिन ढलने से पहले आ जायेंगे अब क्या कहे . तुम अगर चाहो तो मैं देख लू सर के टाँके .

मैं- जैसी आपकी इच्छा

मैंने उसका मन रखने को कह दिया . वो उठी तो उसका आंचल थोडा सरक गया .ब्लाउज से बाहर को झांकती उसकी सांवली छातियो ने मुझ पर अपना असर दिखा दिया. जब वो मेरे सर को देख रही थी तो उसके बदन की छुहन ने मेरे तन में तरंग पैदा करनी शुरू कर दी. उसके हाथ मेरे सर पर थे पर सीना मेरी पीठ से रगड़ खा रहा था तो मेरा लिंग उत्तेजना महसूस करने लगा.

“टाँके तो ठीक ही है कुंवर , शायद कमजोरी की वजह से दर्द हो रहा हो या फिर मौसम की वजह से तुम सर पर कुछ ओढा करो , जड़ी बूटी का लेप समय पर लगाया करो ” उसने कहा और उस तरफ गयी जहाँ पर वैध जी की दवाइयों की शीशी रखी थी .

जब वो झुकी तो मैंने उसके नितम्बो की गोलाई पर गौर किया चाची के बराबर की ही गांड थी वैध की बहु की . उसने मुझे दो पुडिया दी और बोली- गर्म दूध के साथ लेना आराम रहेगा.

मैं- भाभी वैध जी कब तक आयेंगे

कविता- तुम्हारा काम तो मैने कर दिया न अब वो जब आये तब आये.

मैं- भाभी मेरी समस्या ये सर का दर्द नहीं है कुछ और है .

भाभी- वो तो मैं तभी समझ गयी थी जब तुमने शुरू में कहा था . पर वो कहते है न की मर्ज को कभी वैध से छिपाना नहीं चाहिए . हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकू तुम्हारी.

मैं- तुम्हे मुझ से वादा करना होगा की ये बात सिर्फ तुम ही जानोगी किसी भी सूरत में अगर ये बात किसी तीसरे को मालूम हुई तो फिर तुम जानती ही हो

कविता- तुम निसंकोच मुझ पर विश्वास कर सकते हो कुंवर.

मैं- देखो भाभी बात ये है की .....

मैंने आखिरकार पूरी बात कविता भाभी को बता दी.

भाभी- तुम्हे उसी समय आना चाहिए था न , चलो दिखाओ मुझे उसे

मैं- आपको कैसे दिखाऊ भाभी, इतनी शर्म तो है मुझमे

कविता- भाभी नहीं वैध को दिखा रहे हो तुम . बिना अवलोकन किये कैसे मालूम होगा की मर्ज क्या है , संकोच मत करो .

मैंने धीरे से अपना पायजामा निचे किया और अगले ही पल कविता की आँखों के सामने मेरा लंड झूल रहा था . मैंने पाया की कविता की आँखे उस पर जम गयी थी हट ही नहीं रही थी वहां से .

मैं- अन्दर डाल लू भाभी इसे.

कविता- रुको जरा.

कविता ने उसे अपनी उंगलियों से छुआ. लिंग की गर्मी से उसकी हथेली को जो अनुभूति हुई उसे मैं समझ सकता था . एक लगभग अड़तीस-चालीस साल की औरत मेरे लिंग को सहला रही थी औरत का स्पर्श पाते ही वो साला अपनी औकात पर आ गया और पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर फुफकारने लगा.

मैं- माफ़ करना भाभी , शर्मिंदा हूँ मैं

पर कविता ने मेरी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया . अपनी मुट्ठी में लिए लंड को वो धीरे धीरे सहला रही थी .

मैं- भाभी क्या लगता है आपको

“तुम्हे तो उस कीड़े का आभारी होना चाहिए कुंवर ” अचानक ही भाभी के होंठो से ये शब्द निकले.

“कुर्सी पर बैठो ताकि मैं अच्छे से देख सकू ” कविता ने कहा

मैं कुर्सी पर बैठ गया वो घुटनों के बल बैठ कर मेरे लंड को देख रही थी . अपने हाथो से मसल रही थी उसे सहला रही थी . उसने अपने चेहरे को मेरे लंड के इतने पास ले आयी की उसकी सांसे लिंग की खाल पर पड़ने लगी. उसके होंठ मेरे लंड को छू ही गए थे की तभी बाहर से साइकिल की घंटी बजी तो वो तुंरत हट गयी मैने भी पायजामा ऊपर कर लिया .

वैध जी आ गए गए. कविता ने जाते जाते इतना ही कहा की बाबा को इस बारे में कुछ मत बताना दोपहर को आना उस से मिलने फिर वो इलाज करेगी . मैंने वैध के आगे वो ही सरदर्द का बहाना बताया और वहां से निकल गया .
Chaliye koi aur bhabhi hi sahi par bhabhi ka kaan to hoga hi.
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Kabir ki halat to jaada kharab us din se hi hai wah baat alag hai ki uski baato se wah normal lagta hai humne kaha bhi tha, mausam kuch yu karwat lenga kise pata tha, bhabhi bhi na jaane kis taar ko chedne me lagi hai, ab to lagta hai barsaat hoke ki rahegi..

Bahot accha update tha mitra! Intzaar rahega...
 

Pankaj Tripathi_PT

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#25

होश आया तो बदन दर्द से टूट रहा था . छाती पर बैलगाड़ी का पहिया पड़ा हुआ था . उसे हटाया , सर अभी भी घूम रहा था . गाडी के पहियों में लगने वाली लोहे की शाफ्ट का कुछ हिस्सा मेरी जांघ में घुसा हुआ था . दोनों बैलो के विक्षत शव जिन्हें बुरी तरफ से चीर-फाड़ा गया था मेरे पास ही पड़े थे. पहिये को हटाना चाहा तो हाथ से ताकत लगी ही नहीं दर्द हुआ सो अलग पाया की कंधे पर एक गहरा जख्म था मांस उखाड़ा गया था वहां का .

मैंने आँखे बंद कर ली और पड़े पड़े ही रात को क्या हुआ याद करने की कोशिश की पर याद आये ही नहीं . जैसे तैसे मैंने पहिये को हटाया और जांघ से वो लोहे का टुकड़ा निकाला. रक्त की मोटी धारा बह रही थी मिटटी और कपडा लगा कर मैंने खून को बहने से रोकने की कोशिश की .

उसी शाफ़्ट को पकड़ कर मैं खड़ा हुआ . मैंने देखा थोड़ी दूर वो कडाही उलटी पड़ी थी तब मुझे याद आया की कारीगर भी था मेरे साथ और अब वो दूर दूर तक नहीं दिख रहा था .

“कारीगर, कारीगर ” मैंने दो तीन बार आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया. मेरा दिल अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा. एक बार फिर परिस्तिथिया ऐसी थी की मैं ही गुनेहगार माना जाता और इस बार तो बचाव में भी कुछ नहीं था . शाफ़्ट का सहारा लिए लिए मैं वैध जी के घर तक बड़ी मुश्किल से पहुँच गया.



“कुंवर क्या हुआ तुम्हे ” वैध ने मुझे घर के अन्दर लिया और पूछा मुझसे

मैं- पता नहीं क्या हुआ है वैध जी , आप मेरे भैया तक सुचना पहुंचा दीजिये

वैध- जरुर पर पहले मैं निरिक्षण कर लू . मरहम पट्टी कर दू.

जांघ पर टाँके लगा दिए थे पर जब वैध काँधे को देख रहा था तो उसकी आँखों में दहशत देखि मैंने.

वैध- किस जानवर से पाला पड़ा था कुंवर शिकार करते समय

मैं- मालूम नहीं वैध जी. पर इतना जरुर है की जानवर नहीं था हमला करने वाला

वैध- यहाँ पर टाँके भी काम नहीं आयेंगे . ऐसे ही भरने देना होगा इस जख्म को मरहम पट्टी के सहारे ही .

पीठ में एक बड़ी कील भी थी उसे भी वैध ने निकाला और बोला- तुम कहते हो याद नहीं है हालत देख कर लगता है की संघर्ष खूब हुआ है .

वैध क्या कह रहा था मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था . मैं इस बात से घबराया था की अगर ये हमलावर वो ही था जिसने हरिया और बाकी लोगो का शिकार किया था तो क्या मेरी हालत भी वैसी ही हो जाएगी. क्या मेरे पास भी अब सिमित समय ही रह गया है .



“कबीर, मेरे भाई ” भैया आन पहुंचे थे .

भैया- कबीर क्या हुआ तुझे . किसने किया ये . नाम बता मुझे उसका . मेरे भाई की तरफ आँख उठाने की किसकी हिम्मत हो गयी मैं आग लगा दूंगा उसको. उन हाथो को उखाड़ दूंगा जिन हाथो ने मेरे भाई को छूने की हिमाकत की है .

जीवन में पहली बार मैंने भैया को क्रोध में देखा था . भैया ने मुझे अपने सीने से लगाया . उनकी आँखों से बहते आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

मैं- कुछ नहीं हुआ है भैया मामूली ज़ख्म है

भैया- मामूली जख्म भी मेरे रहते कैसे लग जायेंगे मेरे भाई को . तू बस इतना बता की क्या हुआ कौन लोग थे वो .

मैं- मुझे कुछ याद नहीं है भैया. जब होश आया तो मैं घायल था बस ये ही याद है .

शाम तक घर घर तक ये खबर पहुंच गयी थी की राय साहब के लड़के पर हमला हुआ है .सब लोग मेरे आगे पीछे फिर गए थे पर तमाम बातो के बीच कोई उस कारीगर की बात नहीं कर रहा था. जैसे की किसी को फ़िक्र ही नहीं थी की वो था या नहीं था . और मैं सब जानते हुए भी उसका जिक्र नहीं कर पा रहा था . इतना बेबस मैंने खुद को कभी नहीं पाया था .

पिताजी की आंखो में मैंने पहली बार नमी देखि थी उस दिन . चाची तो बेहोश ही हो गयी थी ये खबर सुन कर. भाभी मेरे पास ही बैठी रही .



पिताजी- हमारे लाख मना करने के बावजूद भी घर से बाहर जाने की क्या मज़बूरी थी . जिसके लिए तुम अपनी जान की परवाह भी नहीं करते हो

मैं- गलती हो गयी पिताजी

पिताजी- तुम तो गलती कह कर पल्ला झाड लोगे कबीर, अगर तुम्हे कुछ भी हो जाता तो हम पर क्या बीतती एक पल सोच कर देखो. इस बूढ़े आदमी की हिम्मत की परीक्षा मत लो बेटे, इस बूढ़े में इतनी हिम्मत नहीं है की जवान बेटे की अर्थी को कंधा दे सके. अवश्य ही कोई पुन्य था जो आड़े आ गया वर्ना मारने वाले ने कमी थोड़ी न छोड़ी थी.

भाई- पिताजी मैं जल्दी ही पता कर लूँगा की कौन लोग थे इसके पीछे

पिताजी- मेरे बेटे पर हमला करने की गुस्ताखी करने वाले की हिम्मत की दाद देनी होगी पर सवाल ये है की आखिर किस की हमसे दुश्मनी हो सकती है कौन ऐसा सांप पैदा हो गया .

भाई- कुचल देंगे उस सांप को पिताजी .

मैं- आप लोग यु ही बात को बड़ी कर रहे है , कोई जानवर ही रहा होगा.

भाई- तुम चुप रहो फिलहाल

उनके जाने के बाद मैंने वैध से पूछा की घर कब जा सकता हूँ.

वैध- मुझे थोड़ी तस्सली हो जाये उसके बाद

मैं- कैसी तस्सली

वैध- तुम जानते हो

मैं समझ गया वैध देखना चाहता था की मुझमे भी बाकि लोगो जैसे लक्षण आते है या नहीं .

एक पूरी रात वैध की निगरानी में रहने के बाद मैं घर आ गया.

भाभी- जी तो करता है की मैं बहुत मारू तुमको. हमारे लाड-प्यार का आखिर कितना नाजायज फायदा उठाओगे तुम .

मैंने कुछ नहीं बोला

भाभी- अब क्यों गूंगे बने हुए हो देख लिए न मनमर्जी करने का नतीजा . घर में मेहमान आये थे पर बेगैरत को क्या पड़ी थी इनको तो चस्का लगा था उसी लड़की के पास मुह मारने गए थे न

मैं- ऐसा कुछ नहीं था भाभी . मैंने गलती मान तो ली न

भाभी- हर बार का यही नाटक है , बस गलती मान लो.

भैया- बस भी करो अब , इसे आराम करने दो

भाभी- हाँ मैं कौन होती हूँ इन्हें कुछ कहने वाली.

मैं- भाभी माफ़ी दे भी दो

भाभी- तुम्हे कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता सोचा तुमने


भाभी ने मुझे सीने से लगाया और रोने लगी . एक मैं था जिसके लिए सारा परिवार इधर उधर भाग रहा था एक बेचारा वो कारीगर था जिसका कोई जिक्र ही नहीं था . उस लम्हे में मुझे खुद से नफरत हो गयी .
Super amazing thriller suspense se bharpur iss update ka koi jawaab nhi. Suspense pe suspense banaya ja rha hai lekin koi suraag nahi mil rha. Kabir ka yun chotil awstha me behosh pade rhna fir hosh ane ke baad
Kuchh bhi yaad nahi rhna yeh bhut hi rehasyamayi baat pratit Ho rhi hai. Ye kaise smbhaw Ho skta hai Kya kabir ko koi dimagi chot
Ayi hai jis wajah se yaad nahi arha. Jo bhi Ho sawaal to wahi uthta hai ki hamlawar hai kon? Param sundri nisha ji toh nahi
Ho skti kahin na kahin nisha ke Side bhi kabir ke liye soft corner hai woh to hmla krne se rhi. To fir ye hai kon champa ? Kuch kaha nahi ja skta kya pta bandi chidhi hui Ho rishtey ke ane se isliye iss baari kabir ko bhi nahi baksha uss khoon ke pyase khooni drinda/drindi jo bhi hai.. Karigar ka bhi koi ata pta nhi kahan hai kahin usko bhi to nahi nipta diya.. Jab nisha ji ko pta chalega
Ki uske mehboob pe hamlaa hua hai to uski pratikriya dekhne yogya hogi. Dekhte hai agey kyaa hota hai..
 

Lutgaya

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वैद्य की बहु भी झूला झूल कर ही इलाज कर पायेगी कबीर के मर्ज का।
वैसे भाई निशा को क्यों बचाकर रखा है अब तक।
थोडी लिपटा चिपटी तो करवा दो उसके संग।
 

Avinashraj

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बैठे बैठे मेरे सर में दर्द हो ने लगा था तो सोचा की क्यों न वैध जी को दिखा लिया जाये दूसरा वैध से मिलने का मेरा एक उद्देश्य और था . मैं अपने सूजे हुए लिंग के बारे में भी उस से बात करना चाहता था क्योंकि अब तो काफी दिन हो गए थे पर इसकी सूजन कम हो ही नहीं रही थी . घुमते घुमते मैं वैध के घर पहुच गया और दरवाजा खडकाया .

“कौन है ” दरवाजा खुलते ही एक मधुर आवाज मेरे कानो में टकराई

मैंने देखा दरवाजे पर वैध की बहु कविता खड़ी थी .

कविता- ओह तुम हो कुंवर जी , माफ़ करना मैं पहचान नहीं पायी .

मैं- कोई न भाभी . तुम वैध जी को बुला दो मुझे कुछ काम है

भाभी- वो तो पड़ोस के गाँव में गए है मरीज को देखने के लिए . तुम इंतज़ार कर लो कह कर तो गए थे की शाम ढलने तक आ जायेंगे. मैं चाय बना देती हूँ तुम तक.

मैं- नहीं भाभी मैं फिर आ जाऊंगा.

कविता- मैंने कहा न आते ही होंगे. वैसे कोई समस्या है तो मुझे बता सकते हो उनकी अनुपस्तिथि में मैं भी मरीज देख लेती हूँ

अब उसको मैं क्या बताता की मेरे लंड इतना मोटा हो गया है की कच्चे में भी दीखता रहता है .

मैं- भाभी समस्या ऐसी है की उनको ही बता पाउँगा

भाभी- तो फिर थोडा इंतजार कर लो , इंतजार के बहाने ही हमारी चाय पी लो

मैं- ठीक है भाभी

मैं अन्दर जाकर बैठ गया कविता भाभी थोड़ी देर में ही चाय ले आई

कविता- जखम कैसे है अब

मैं- भर जायेंगे धीरे धीरे सर में दर्द हो रहा था मैंने सोचा की टाँके कही हिल तो नहीं गए दिखा आऊ

भाभी- सही किया स्वास्थ के मामले में लापरवाही करना ठीक नहीं होता. वैसे बड़ी बहादुरी से सामना किया तुमने उस हमला करने वाले का , पिताजी बता रहे थे की कोई और होता तो प्राण देह छोड़ गए होते.

मैं- कोशिश की थी उसे पकड़ने की

ये बहन का लंड वैध जब भी मैं आता था मिलता ही नहीं था . अँधेरा भी घिरने लगा था पर ये चुतिया न जाने कब आने वाला था .

मैं- देर ज्यादा ही कर दी वैध जी ने

कविता- कहे तो थे की दिन ढलने से पहले आ जायेंगे अब क्या कहे . तुम अगर चाहो तो मैं देख लू सर के टाँके .

मैं- जैसी आपकी इच्छा

मैंने उसका मन रखने को कह दिया . वो उठी तो उसका आंचल थोडा सरक गया .ब्लाउज से बाहर को झांकती उसकी सांवली छातियो ने मुझ पर अपना असर दिखा दिया. जब वो मेरे सर को देख रही थी तो उसके बदन की छुहन ने मेरे तन में तरंग पैदा करनी शुरू कर दी. उसके हाथ मेरे सर पर थे पर सीना मेरी पीठ से रगड़ खा रहा था तो मेरा लिंग उत्तेजना महसूस करने लगा.

“टाँके तो ठीक ही है कुंवर , शायद कमजोरी की वजह से दर्द हो रहा हो या फिर मौसम की वजह से तुम सर पर कुछ ओढा करो , जड़ी बूटी का लेप समय पर लगाया करो ” उसने कहा और उस तरफ गयी जहाँ पर वैध जी की दवाइयों की शीशी रखी थी .

जब वो झुकी तो मैंने उसके नितम्बो की गोलाई पर गौर किया चाची के बराबर की ही गांड थी वैध की बहु की . उसने मुझे दो पुडिया दी और बोली- गर्म दूध के साथ लेना आराम रहेगा.

मैं- भाभी वैध जी कब तक आयेंगे

कविता- तुम्हारा काम तो मैने कर दिया न अब वो जब आये तब आये.

मैं- भाभी मेरी समस्या ये सर का दर्द नहीं है कुछ और है .

भाभी- वो तो मैं तभी समझ गयी थी जब तुमने शुरू में कहा था . पर वो कहते है न की मर्ज को कभी वैध से छिपाना नहीं चाहिए . हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकू तुम्हारी.

मैं- तुम्हे मुझ से वादा करना होगा की ये बात सिर्फ तुम ही जानोगी किसी भी सूरत में अगर ये बात किसी तीसरे को मालूम हुई तो फिर तुम जानती ही हो

कविता- तुम निसंकोच मुझ पर विश्वास कर सकते हो कुंवर.

मैं- देखो भाभी बात ये है की .....

मैंने आखिरकार पूरी बात कविता भाभी को बता दी.

भाभी- तुम्हे उसी समय आना चाहिए था न , चलो दिखाओ मुझे उसे

मैं- आपको कैसे दिखाऊ भाभी, इतनी शर्म तो है मुझमे

कविता- भाभी नहीं वैध को दिखा रहे हो तुम . बिना अवलोकन किये कैसे मालूम होगा की मर्ज क्या है , संकोच मत करो .

मैंने धीरे से अपना पायजामा निचे किया और अगले ही पल कविता की आँखों के सामने मेरा लंड झूल रहा था . मैंने पाया की कविता की आँखे उस पर जम गयी थी हट ही नहीं रही थी वहां से .

मैं- अन्दर डाल लू भाभी इसे.

कविता- रुको जरा.

कविता ने उसे अपनी उंगलियों से छुआ. लिंग की गर्मी से उसकी हथेली को जो अनुभूति हुई उसे मैं समझ सकता था . एक लगभग अड़तीस-चालीस साल की औरत मेरे लिंग को सहला रही थी औरत का स्पर्श पाते ही वो साला अपनी औकात पर आ गया और पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर फुफकारने लगा.

मैं- माफ़ करना भाभी , शर्मिंदा हूँ मैं

पर कविता ने मेरी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया . अपनी मुट्ठी में लिए लंड को वो धीरे धीरे सहला रही थी .

मैं- भाभी क्या लगता है आपको

“तुम्हे तो उस कीड़े का आभारी होना चाहिए कुंवर ” अचानक ही भाभी के होंठो से ये शब्द निकले.

“कुर्सी पर बैठो ताकि मैं अच्छे से देख सकू ” कविता ने कहा

मैं कुर्सी पर बैठ गया वो घुटनों के बल बैठ कर मेरे लंड को देख रही थी . अपने हाथो से मसल रही थी उसे सहला रही थी . उसने अपने चेहरे को मेरे लंड के इतने पास ले आयी की उसकी सांसे लिंग की खाल पर पड़ने लगी. उसके होंठ मेरे लंड को छू ही गए थे की तभी बाहर से साइकिल की घंटी बजी तो वो तुंरत हट गयी मैने भी पायजामा ऊपर कर लिया .

वैध जी आ गए गए. कविता ने जाते जाते इतना ही कहा की बाबा को इस बारे में कुछ मत बताना दोपहर को आना उस से मिलने फिर वो इलाज करेगी . मैंने वैध के आगे वो ही सरदर्द का बहाना बताया और वहां से निकल गया .
Nyc update mins kavita fasi
 

ASR

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Supreme
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मुसाफिर - आज का अध्याय एकदम शांति से गुजर गया.. वेद पुराण का प्रारंभ हुया अब तो कबीर को नया इलाज मिलेगा... वैसे सूजन अछि हो सकता है के विचार को मन में सुख देने वाले सभी को इसे उपयोग मे लाकर कहानी में irotika को आगे बढ़ाया जा सकता है, परंतु आपकी शैली से ये अलग होगा.. अगले अंक की प्रतीक्षा में 😊
 
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