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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

Jiashishji

दिल का अच्छा
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धक्के पर धक्का ,


जीजू की पिचकारी , साली की होली



और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को

“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”




और बजाय धक्के धीरे करने के, अगला धक्का एकदम तूफानी सीधे बच्चेदानी पर साथ में उनकी उँगलियाँ मेरे क्लिट पे, और अब उनसे नहीं रहा गया, तो वो भी मेरी चूची मसलते बोल पड़े

“स्साली, अरे अपनी माूँ की याद आ रही तो मेरी माँ का नाम ले रही है । अरे बहुत मन कर रहा है तुझे अपनी माँ चुदवाने का तो उस छिनार रंडी को भी चोद दूंगा । अरे सास को तो चोदना बनता है , जिस भोसड़े से दूध वालों से चोदवाकर दूध जैसी गोरी गोरी बिटिया पैदा की, उस भोंसड़े में तो…”


जीजू की गाली का असर, क्लिट पर उनकी ऊँगली का असर, जुबना पर उनके होंठो का असर, बच्चेदानी पर लगे मूसल के धक्के का असर, मेरी देह कांपने लगी, मेरी चूत अपने आप सिकुड़ फ़ैल रही थी। और मैंने झड़ना शुरू कर दिया ।

तूफान में पत्ते की तरह मेरी देह काँप रही थी, सुबह से कितनी बार किनारे पर जा जा जाकर रुक गयी थी,... लेकिन अब पूरी देह मन मष्तिस्क सब मथा जा रहा था, इत्ता अच्छा लग रहा था, कभी मन करता जीजू रुक जाएँ बस एक पल के लिए तो कभी मन करता नहीं ऐसे ही रगड़ रगड़ के चोदते रहें,... लेकिन जीजू ने छोड़ा नहीं




हाँ पल भर के लिए उनके धक्के रुक गए थे, पर लण्ड जड़ तक, सीधे मेरी बच्चेदानी तक ठूंसा हुआ , और लण्ड का बेस वो हलके हलके मेरी क्लिट पर रगड़ रहे थे । वो मेरा झड़ना बंद होने का इन्तजार कर रहे थे और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई शुरू हुयी की, हर धक्के पर मेरी चूल चूल हिल रही थी, नंबरी चोदू थे जीजू।



मैं भी रंग और गाली भूलकर जबरदस्त धक्कों का मजा ले रही थी, धक्कों का जवाब दे रही थी। जीजू न मेरी चूची छू रहे थे न क्लिट , सिर्फ धक्के पर धक्का। मैं आँखे बंद करके जीजू की चुदाई का मजा ले रही थी। और अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू ने चुदाई रोकी भी नहीं ।



मुझे लग था जैसे समय रुक गया है , बस मैं हौं और जीजू का मस्त मोटा तगड़ा लण्ड, और मैं चुद रही हूँ चुद रही हूँ । मैं सिसक रही थी तड़प रही थी, मेरी जाँघे फटी जा रही थी, और हल्के ह ल्के मैं भी नीचे से, कभी कभी जीजू के तगड़े धक्कों का जवाब रुक रुक के दे रही थी। पांच मिनट , दस मिनट पता नहीं कब तक , कितनी देर तक जीजू चोदते रहे , मैं चुदती रही, , मेरी आँखे बंद थी।



हाँ अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू भी साथ साथ।

मैं अपनी चूत में उनकी गाढ़ी मलाई म सूस कर ही थी। गिरते हुए बहते हुए , चूत मैंने कसकर भींच लिया था, मैं भी जीजू के लण्ड को निचोड़ रही थी।

बड़ी देर तक म दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में लथपथ, आँखे मेरी बंद । लग रहा था जीजू एक बार झड़ने के बाद दुबारा फिर मलाई की बार बार फुहार मेरे अंदर छूट रही थी , जीजू की पिचकारी का रंग ख़तम ही नहीं हो रहा था। उसके कुछ थक्के मेरी जाँघों पर भी, बह कर ।




जब जीजू ने अपना निकाला तो बस अभी भी उनकी पिचकारी,... मन कर रहा था , क्या मन कर रहा था ये भी नहीं समझ में आ रहा था।
Man kar raha ta ki ye Holi aise hi chalti rahe
 
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Incestlala

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सहेलियों की कुश्ती


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लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था, नीरज जो था, उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया



“तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी, चुस्सम चुस्साई, रगड़म रगड़ाई, घिसम घिसाई करती होगी , तो बस आज हम दोनों के सामने, और बस जो पहले झड़ेगी, उसकी गाण्ड पहले मारी जायेगी…”

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और जीजू क्यों चुप रहते , उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया

“मतलब मारी तो दोनों की गाँड़ जायेगी, हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी, तो बस…”

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और ये मौका मैं गवाना नहीं चाहती थी,


वो खेल सच में मैंने और ज्योती ने कितनी बार खेला था, जब हम दोनों की झांटे भी नहीं आई थी तब से। पर अभी गुलबिया और वो कहारिन भौजी , जो हमारे कुंए से पानी निकालती थी और गाँव के रिश्ते से भौजाई लगती थी, आज होली में जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की थी, गुलबिया से भी ज्यादा इस खेल की उस्ताद थी, उसकी रगड़घिस्स से मैंने जो गुन सीखे थे,..

ज्योती को धक्का देकर मैंने गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। पर ज्योति तगड़ी भी थी और कबड्डी चैम्म्पयन भी। कुछ देर में वो ऊपर, मैं नीचे और हम दोनों 69 की पोज में। कन्या कुश्ती चालू और आज तो, हमारी कोरी कुँवारी गाँड़ दांव पर लगी थी।

ज्योती हर बार इस खेल में मुझसे बीस पड़ती थी, और ऊपर से, आज वो ऊपर भी थी। सड़प सड़प, सड़प सड़प, शुरू से ही चौथे गियर में, लकिन मैंने गुलबबया की सिखाई पढ़ाई, , पहले सीधे सीधे जीभ की नोक से ज्योती की गुलाबो के किनारे किनारे जैसे लाइन खींच कर जीभ से ही दो संतरे की फांको को, दो फांक किया लेकिन जीभ अंदर नहीं घुसायी बस हलके हलके ।


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ज्योती की देह गिनगिनाने लगी, पर मेरी हालत कम खराब नहीं थी, ज्योती की चूत चुसाई मेरी चूत में आग लगा दी थी। मैंने थोड़ी देर तो डिफेन्स बढ़ाया यहाँ वहां ध्यान अपना इधर उधर लगाने की कोशिश की, पर ज्योती की जीभ मेरी चूत में सेंध लगा चुकी थी।

फिर मुझे ध्यान आया आज सुबह की होली का, एक मेरी दीदी गाँव के रिश्ते से, चार पांच साल मुझसे बड़ी, गौने के बाद पहली बार आई थी, ननद पहली बार ससुराल से अपने मायके आये तो बस, वो भी होली में, सारी गाँव की भौजाइयां पिल पड़ीं । लेकिन मेरी वो दीदी सब पर 20 पड़ रही थी। कोई भी उनको झड़ाने में कामयाब नहीं हो रहा था।



फिर वही कहारिन भौजी , बताया तो था जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी, गाली देने और ऐसे वैसे मजाक में गुलबिया से भी चार हाथ आगे, और गाूँव के रिश्ते में भौजी तो थी ही मेरी। उन्होंने दीदी की ऐसी की तैसी कर दी, पांच मिनट के अंदर ऊँगली होंठ , जीभ दांत सब इस्तेमाल किया एक साथ और बस मैंने भी व्ही ट्रिक ज्योति ऊपर। पहले तो फूंक फूंक कर कर हल्के हल्के, फिर तेजी से, उसकी गुलाबी फांको को के ऊपर , फिर दोनों फांको को फैला के अंदर तक । और ज्योति की हालत खराब हो गई।

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पर ये तो शुरुआत थी, उसके बाद मेरी जीभ फांको के ऊपर, कसकर चूसते हुए मेरी उँगलियों ने ज्योति की बुर फैलाई और अब मेरी जीभ अंदर। लेकिन मैं बजाय जीभ से चोदने के ज्योति की बुर के अंदर वो जादू का बटन ढूंढ़ने लगी जो मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखाया था, और मिल गया वो बस,



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जीभ की टिप से कभी उस बटन ( जी प्वाइंट ) को मैं रगड़ाती कभी खोदती, कभी सहलाती, मेरी सहेली हाथ पैर पटक रही थी , चूतड़ उछाल रही थी , मुझे हटाने की कोशिश कर रहे थी पर मेरी जीभ , ज्योति की बुर के अंदर उस जादू की बटन को,.. और साथ में मेरी ऊँगली और अंगूठा उसके क्लिट पे,...

पल भर में ज्योति की बुर एक तार की चासनी छोड़ने लगी,

फिर क्या था गोल गोल, गोल गोल मेरी जीभ उसकी बुर में और हर चक्कर पूरा होने के बाद थोड़ी देर उस जादू के बटन को दबा देती रगड़ देती। और ज्योति सिहर उठती, काँप जाती। जब मैंने जीभ बाहर निकाला उसकी लसलसी बुर से तो मेरी दो उँगलियाँ एक साथ, कुहनी के जोर से पूरे अंदर तक और साथ साथ मेरे होंठों ने ज्योति की फूली फुदकती क्लिट को दबोच लिया और लगी चूसने पूरी ताकत से।

दोनों अम्पायर ध्यान से देख रहे थे, कौन हारने वाली है किसकी गाँड़ मारी जायेगी,...

ज्योति की बुर में मेरी अब तीन तीन उँगलियाँ घुसी थीं और इंजन के पिस्टन की तरह उसे चोद रही थीं और होंठ वैक्यूम क्लीनर की तरह मैं अपनी सहेली की क्लिट पूरी ताकत से चूस रही थी.

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अब ज्योति ने हार कबूल कर ली,

बजाय मुझे झड़ाने के चक्कर में पड़ने के वो सिर्फ मजा ले रही थी। कुछ ही देर में वो झड़ने के कगार पर पहुँच गई, और मैंने अपने दांतो से से हल्के से ज्योति की क्लिट काट ली। बस जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा हो , तूफ़ान आ गया हो ज्योति कांप रही थी, सिसक रही थी , झड़ रही थी।

मैंने कनखियों से देखा , नीरज जीजू मेरे होंठ की शैतानी देख रहे थे, खूंटा उनका पूरा कड़क, ऊपर से मुठिया भी रहे थे।

ये बात मैंने कहारिन भौजी से सीखी थी की झड़ने के बाद तो दूनी ताकत से हमला,



और बस मेरी उँगलियाँ क्या कोई लण्ड चोदेगा, सटासट सटासट ,...


आज होली में मैंने एकदम बगल से देखा था, मम्मी कैसे सटासट पहले चार ऊँगली से अपनी ननद की , मेरी बूआ की बुर चोद रही थीं , फिर पूरी मुट्ठी कलाई के जोर से, और बीच बीच में मुझे देख के मुस्करा भी रही थीं , बस उसी तरह कलाई की पूरी ताकत से, जैसे मर्द कमर के जोर से लौंडिया चोदते हैं ।

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और होंठ अब एक बार फिर कुछ रुक के, क्लिट चूसने में लग गए, ज्योति तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी और अबकी दो मिनट में ही,... , जैसे मैंने अपना अंगूठा उसके क्लिट पर लगाया पहले से भी दूनी तेजी से वो झड़ने लगी। झड़ती रही झड़ती रही।

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और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होंठ वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूस रहे थी। फिर मैंने कनखियों से देिा, नीरज वहां नहीं थे , पर जीजू एकदम पास में। और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही झड़ती रही , झड़ती रही , एकदम थेथर हो गयी, पर मैंने चूसना नहीं रोका।

बोलने की ताकत भी नहीं बची थी, मुश्किल से बोल पायी “हार मानती हूँ मैं…”

विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने स्कोर अनाउंस कर दिया

“अब जो पहले झड़ा उसकी गाण्ड मारी जायेगी…”

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया, फन्नाया, बौराया, मोटा सुपाड़ा एकदम खुला , गाँड़ फाड़ने को एकदम तैयार,



पीछे से तब तक नीरज जीजू की आवाज आई “और जो बाद में झड़ा, उसकी बुर चोदी जायेगी…”
दीदी अपने रीडर्स की सेहत खराब कर देनी है मूड मरवा मरवा के
 
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दीदी अपने रीडर्स की सेहत खराब कर देनी है मूड मरवा मरवा के
ekdam sahi kaha
 

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ekdam sahi kaha
ekdam sahi kaha :laugh::laugh:
 

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Aap ke adesh ko kaise taal sakta hu .
nahi nahi mujhe dar lagayta hai,....aap aadesh de denge ki ' SAMAPT' likh kar kahanai close kar dun, isliye request kar deti hun ki kahaani abhi chal rahi hai
 
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Man kar raha ta ki ye Holi aise hi chalti rahe

aap ne kaha hai to HOLI ki ek do aur posten aur bahoot jald , bas aapke comments aate rahen
 
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Rang lagaane ka tarika itna majedaar ho to kon Holi nahi khelna chahe ga
ekdam aur lagaane vaali kunvaari Highschool men padhne vaali saaliyan hon to,...
 
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Sahi baat hai kis jija ki himmat hai jo sali ki baat ko taal de
agar taal diya to vo Jija nahi hoga
 
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Bahut masst
Thanks so much
 
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