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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Tiger 786

Well-Known Member
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#34

हम दोनों के होश उड़ गए उस चीख को सुनकर, अब किसने अपनी माँ चुदवा ली थी, मैंने मन ही मन कहा. बड़ी मुश्किल से ये घडी आई थी जब मैं मीता के इतने करीब था, किस ने मेरी हसीं रात ख़राब की थी .

मीता- चल देखते है , क्या मालूम कोई मुसीबत में है

मैं - तू इधर ही रुक मैं देखता हूँ

मीता- मैं भी चलूंगी साथ

हम दोनों दौड़ कर खेतो की परली तरफ गए. मैंने टोर्च जला ली थी. और टोर्च की रौशनी में मैंने देखा की एक आदमी खून से लथपथ धरती पर पड़ा है और पास में चाची खड़ी थी . मीता ने उस आदमी को टटोल कर देखा और बोली- निकल लिया ये तो

मैं- चाची, तुझे क्या जरुरत थी इसे मारने की

चाची- मैंने इसे नहीं मारा, भला मैं क्यों करुँगी ऐसा काम

मैं- ये धरती पर पड़ा है और इसके पास तू है , इतने बेवकूफ तो हम भी नहीं है .

चाची ने एक नजर मीता पर डाली और बोली-चाहे मेरा यकीन करो या न करो मैंने इसे नहीं मारा. ये बस संयोग की बात है इसका मरना और मेरा यहाँ होना

मिता - अजीब संयोग है

चाची ने खा जाने वाली नजरो से मीता को देखा और बोली- तुझे क्या लेना देना है , मनीष कौन है ये लड़की

मैं- मेरी दोस्त है और क्या गलत पूछा है इसने तुम इतनी रात को इस संयोग में क्या कर रही थी .

चाची- तेरे चाचा को तलाश करने आई थी , पिछले कई दिनों से वो घर पर नहीं आये है

मैं- ये बात मुझे क्यों नहीं बताई

चाची- तू घर पर रहता ही कब है ,

मीता- चलो मान लेते है पर अभी इस लाश का क्या करना है , सुबह ये तुम्हारे खेतो पर ही पड़ा मिलेगा तो तुम्हारे लिए मुसीबत होगी वैसे भी दिलेर सिंह तो ताक में ही है .

चाची- कौन दिलेर सिंह

मैं- चाची तू थोड़ी देर शांत रह और मुझे कुछ सोचने दे. मैं समझ रहा हटा की हो न हो ये जब्बर का आदमी ही होगा.



पर क्या ये मेरी जासूसी कर रहा था ,हालाँकि मुझे चाची की बात पर जरा भी विश्वास नहीं था क्योंकि उस रात जिस तरह से उसने मुझे दिखाया था मुझे लगा था की ये औरत आर पार है . पर अभी मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था . मीता की बात में वजन था , दिलेर सिंह को ऐसे ही मौके की तलाश थी मेरी रेल बनाने के लिए.

मैं- चाची तू घर जा , हम थोड़ी देर में आयेंगे इसका कुछ करके

पर उस औरत ने अकेले जाने से मना कर दिया. थोड़ी देर विचार करने के बाद मैंने और मीता ने मिलकर गड्ढा खोदा और उसमे लाश पाट दी.

मीता- अब क्या

मैं- फिलहाल ये जगह सुरक्षित नहीं है , क्या मालूम ये आदमी कब से हमारे पीछे हो . मेरी वजह से तुझे कोई दिक्कत हो ये मुझे मंजूर नहीं

मीता- तू फ़िक्र न कर, इतनी कमजोर नहीं मैं

मैं- हम अभी घर चलेंगे.

मीता- ठीक है तुम जाओ मैं भी जाती हूँ

मैं- पागल हुई है क्या , तुझे अकेले जाने दूंगा क्या मैं तू भी मेरे घर चलेगी,

मीता- पर मैं कैसे, मेरा मतलब

मैं- कुछ मतलब नहीं, वो भी तेरा ही घर है

मैंने चाची की तरफ देखा, उसने कुछ नहीं कहा. हम तीनो घर के लिए चल पड़े. घर आने के बाद हमने हाथ मुह धोये और बैठ गए, मीता मेरे घर को देखने लगी, चाची चाय बना लाई. पर एक बात जो मुझे बेचैन कर रही थी वो ये थी की थोड़ी देर पहले एक आदमी मरा था , चाची का व्यवहार ऐसा था की जैसे उसे कुछ फर्क पड़ा ही नहीं था . ऐसा कैसे हो सकता था .

मैं-चाची, क्या कोई ई बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है .

चची- मुझे कुछ नहीं छुपाना

मैं- तो बताओ वो आदमी वहां पर क्या कर रहा था

चाची - मैं क्या जानू, हो सकता है वो कोई चोर हो

मैं- वहां कौन सा खजाना गडा है

मीता- क्या आप उस आदमी को पहले से जानती थी , हो सकता है की आप उस आदमी से मिलने ही गयी हो वहां पर

चाची- ये लड़की अपनी हद में रह. तू सीधा सीधा मुझ पर लांछन लगा रही है

मैं- मीता का वो मतलब नहीं था

चाची- इसका जो भी मतलब है इसे कह दे अपनी हद में रहे, और वैसे ये है कौन .

मैं- फिलहाल तो यूँ समझ लो की ये घर जितना मेरा है उतना ही इसका .

चाची- तो मैं तुझे कैसे विश्वास दिलाऊ की मैं बस तेरे चाचा को तलाशने गयी थी वहां पर

मैं- वहीँ पर क्यों

चाची- क्योंकि ना जाने तुम लोगो को उस जमीन से क्या लगाव है जब कहीं नहीं मिलते तो वहीं पर मिलते है .

न जाने क्यों चाची की बाते मुझे जम नहीं रही थी पर फिलहाल मैंने उसे कुछ और नहीं कहा और मीता को अपने चौबारे में ले आया.

“बस यही है मेरी दुनिया. ” मैंने बिखरे कपड़ो को एक तरफ रखते हुए कहा

उसने अलमारी में पड़ी कैसेट के ढेर को देखा और बोली- तो ये शौक भी है तुमको

मैं- जब से तुमसे मिला हूँ , इन पर ध्यान गया ही नहीं मेरा.

“और ये किताबे,” उसने कहा

मैं- बस कभी कभी पढता हूँ

वो खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी

मीता- कभी सोचा नहीं था ऐसे अचानक से तेरे घर यूँ आना होगा.

मैं- तू जब चाहे यहाँ आ सकती है

मीता- क्या करुँगी मैं यहाँ आकर

मैं- क्या पता तेरे नसीब में हमेशा यही की होकर रहना हुआ तो .

मीता- मेरा नसीब इतना बुरा भी नहीं है .

मैं- रात बहुत हुई तू आराम कर सो जा यहाँ मैं बाहर हूँ, किसी चीज़ की जरुरत हो तो आवाज दे न

मीता- तू यही रह मुझे कोई दिक्कत नहीं है .

कितनी सादगी थी इस लड़की में, इसे फर्क ही नहीं पड़ता था , इसका और मेरा एक जैसा ही था , उसे देखते हुए न जाने कब नींद ने मुझे आगोश में ले लिया.

सुबह मेरी आँख खुली तो मीता नहीं थी . मैं निचे आया तो चाची ने कहा की वो सुबह सुबह ही चली गयी . उसका यूँ जाना अच्छा तो नहीं लगा पर वो ऐसी ही थी . मैं सीधा ताई के पास गया .

मैं- मुझे कुछ पूछना था तुमसे

ताई- हाँ

मैं- चाची के बारे में तुम जो भी जानती हो सब का सब बताना मुझे.

ताई-अब क्या बात हो गयी

मैं- बस यूँ ही


ताई- यूँ ही कुछ नहीं होता

मैं- मुझे वो ठीक नहीं लगती, मुझे लगता है की वो किसी से सेट है , किसी से चक्कर चल रहा है उसका.


इस से पहले की मेरी बात होती ताई का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और मैं हैरत से उसे देखता रह गया.
Awesome update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#35

“तेरी हिम्मत कैसे हुई उसके बारे में ऐसी बात बोलने की, वो ही है जिसने इन बिखरी डोरियो को थामा हुआ है , इस घर को उसने ही घर बनाया है वो वहां पर क्या कर रही थी मैं नहीं जानती पर उसके बारे में उल्टा सीधा नहीं सुनने वाली मैं ” ताई ने गुस्से से कहा.

मैं- पर उसका वहां होना मेरे लिए मुसीबत कड़ी कर सकता था

ताई- मैंने तो तुझे भी कहा है की अपनी आने वाली जिन्दगी पर ध्यान दे, पर तुझे तो पड़ी लकड़ी उठानी है ,तेरी ख़ुशी के लिए मैंने वो भी किया जो होना ही नहीं चाहिए था पर तुझे हमारी, हम सब की परवाह कहाँ है . क्यों उलझा है तू उन बातो में जिसका कोई अंत नहीं .

मैं- पर मैं क्या करू ,

ताई- तू समझता क्यों नहीं अर्जुन बीता हुआ कल है, और जो बीत गया वो वापिस कभी नहीं आता, तुझे संवारने के लिए हमने न जाने क्या क्या किया है , पर तू समझता नहीं, मैं शुरू से खिलाफ हूँ तेरे रुद्रपुर जाने के पर तू मानता नहीं , जो आग बुझ चुकी है उसकी दबी राख को क्यों सुलगा रहा है तू

मैं- मेरा नसीब जाने उसने क्या लिखा है मेरे लिए

ताई- नसीब को बनाना पड़ता है मेहनत से.

इस से पहले की मैं और कुछ कह पाता मैंने देखा रीना हमारी तरफ ही चली आ रही थी तो मैंने बात ख़तम कर दी.

ताई- कैसे आई रीना.

रीना- आप कब से ऐसे पूछने लगी मुझसे .

ताई- मेरा वो मतलब नहीं था बेटी. तेरा ही तो घर है , तुम बाते करो मैं चाय लाती हूँ तुम्हारे लिए.

रीना- कल का याद है न तुझे

मैं- क्या है कल

रीना- अरे तू भीना आजकल बिलकुल बुद्धू हो गया है खुद ही वादा करता है खुद ही भूल जाता है

मैं- सीधे सीधे बता भी दे न यार

रीना- तूने ही तो कहा था न की मुझे मेले में ले चलेगा अभी जान बुझ कर टाल रहा है, तेरी होशियारी खूब समझती हूँ मैं

रीना की बात सुनकर अचानक ही मेरी धड़कने तेज हो गयी .

मैं- ये कैसे भूल सकता हूँ मैं , कल खूब मजा आएगा.

रीना- तुझे बता नहीं सकती कितनी उत्सुक हूँ मैं .

मैं- तेरी खुशी में ही मेरी ख़ुशी है .

रीना- पता नहीं क्यों आजकल रात दिन बस तेरा ही ख्याल रहता है मेरे दिल में

मैं- ऐसा क्यों भला

रीना- यही उलझन तो सुलझ नहीं रही .

मैं- मुझे भी तुझे देखे बिना कहाँ चैन आता है

तभी ताई चाय ले आई. हमने अपना अपना कप लिया . कुछ देर बाद रीना चली गयी . ताई भी जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

ताई- हाथ छोड़ मेरा

मैं- नाराज मत हो

ताई- तो क्या करू,

मैं ताई को अपनी बाँहों में भरते हुए - प्यार कर मुझसे .

ताई- ये प्यार भी तेरा बहाना है, मेरी सुनता ही कहाँ है तू

मैं- तेरी ही तो सुनता हूँ.

मैंने ताई के गालो पर पप्पी ली. ताई मेरी बाँहों में कसमसाने लगी . ताई के मादक नितम्बो को सहलाने लगा मैं.

ताई- छोड़ न , अभी वक्त नहीं है ये सब करने का

मैं- यही तो वक्त है ये करने का

ताई- मैंने कहा न अभी नहीं

मैं- बस एक बार

मैंने ताई के लहंगे में हाथ डाल दिया और उसकी चूत को मसलने लगा. कितना गजब अहसास था एक मदमस्त औरत की चूत को मसलने का.

ताई- छोड़ मुझे मैंने कहा न अभी नहीं रात को करुँगी तेरी इच्छा पूरी

हार कर मैंने ताई को छोड़ दिया. ताई ने एक नजर मेरे तने हुए हथियार पर डाली और फिर कमरे से बाहर चली गयी.

मेरे पास भी कुछ खास नहीं था करने को बाहर आकर देखा की चाचा की गाड़ी खड़ी थी गली में .मतलब वो लौट आया था .मैं उसके पास गया .

चाचा- तेरी चाची ने सब बताया मुझे , मैं कुछ न कुछ करूँगा तुम सब की सुरक्षा के लिए , साथ ही जब्बर से भी बात करूँगा तुम्हारा जो भी पंगा है ख़तम करवा दूंगा मैं

मैं- उसकी जरुरत नहीं है चाचा

चाचा- जरुरत है , मैं नहीं चाहता की तुम किसी भी चीज़ में उलझो जिस से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं हो.

मैं- आप कहाँ गए थे इतने दिन से

चाचा- कुछ काम से गया था पर अभी लौट आया हूँ.

चाची- मेरी तो सुनता ही नहीं है ये , दुश्मन समझता है मुझे तो

चाचा- तुम भी थोडा काबू में रहा करो, अब ये बच्चा नहीं रहा .

मैं- मुझे जब्बर से जरा भी डर नहीं है , मेरा वो कुछ नहीं बिगाड़ सकता

चाचा- दुश्मन को कमजोर मानना हार की तरफ पहला कदम होती है

मैं- समझता हूँ.

चूँकि उस दिन चाचा घर पर ही था तो मैं भी घर पर ही रहा पर मेरा टाइम पास नहीं हो रहा था . चोबारे में लेटे लेटे मैं कभी उस सुनहरे बक्से को देखता तो कभी उस हीरे को जिसमे अब लाल और काला धागा आपस में एक हो गए थे . मैंने एक बार फिर उसे अपने गले में पहनने को कोशिश करी पर हाल पहले जैसा ही था , वो धागा मेरा दम घोंटने पर उतारू हो गया. ये मुझे पहचान नहीं रहा था .

इस बात का मतलब ये था की ये मेरे पिता का भी नहीं था , और उस कागज पर भी लिखा था की इसका बोझ उठाना आसान नहीं है. किस तरह का बोझ था ये , उस हीरे की तपिश , आखिर क्या राज था उसका . और ये मेरे पिता का नहीं था तो किसका था ये.

लाला, जब्बर, दद्दा ठाकुर और मेरे पिता ये सब आपस में किसी न किसी तरह से जुड़े हुए थे . पर वो कड़ी थी क्या. चाचा का जब्बर से दबना एक अलग पहेली थी . सोचते सोचते मेरा गला सूखने लगा था तो मैं निचे आया पानी पिने के लिए , चाचा-चाची अपने कमरे में बात कर रहे थे एक बार मैंने फिर से कान लगा दिए.

“, मुझसे नहीं होता ये नाटक, कब तक मैं उसके आगे बुरी बनी रहूंगी. ”चाची कह रही थी



चाचा- तुम्हारा यही कठोर व्यवहार उसे मजबूत बना रहा है.

चाची- पर मेरे और उसके रिश्ते को कमजोर कर रहा है .और मैं बता दे रही हूँ जब्बर से कहो की अपने परो को काबू में रखे वो , मनीष को अगर जरा भी आंच आई न तो मैं भूल जाउंगी की मैं कौन हूँ मेरे हाथो ने हथियार छोड़े जरुर है चलाना नहीं भूले है

चाचा- धीरे बोल कहीं मनीष न सुन ले.

चाची- अब हम चाह कर भी उसे रोक नहीं पायेंगे , उसकी आँखों में मैंने आग देखि है .

चाचा- काश वो समझ पाता

चाची- समझना तो तुम्हे भी चाहिए, कितने दिन बीत गए है,हमें एक हुए,

चाचा- तुम तो जानती ही हो न .....

न जाने क्यों चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी..
 
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