“मैं उसी अर्जुन का बेटा हूँ बाबा ” मैंने कहा
उस बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा पर उसकी आँखों के चमक बहुत कुछ कह रही थी. रुद्रपुर से मैं सीधा अपनी बंजर जमीन पर आया, बावड़ी की सीढियों की मरम्मत हो चुकी थी , अन्दर से सफाई हो चुकी थी बस अब इसे पानी से भरना था . बरसात गिर पड़ती तो मैं उसके बाद इस जमीन पर ट्रक्टर चलाना चाहता था . दिमाग में लाखो ख्याल थे,पर मैं थका था मैंने पेड़ो के निचे चारपाई लगाई और कुछ देर के लिए सो गया.
मेरी नींद टूटी तो हल्का हल्का अँधेरा हुआ पड़ा था . टूटे बदन को सँभालते मैंने आँखे खोली की सामने देख कर आँखों को एक बार जैसे यकीन ही नहीं हुआ. मेरे सामने मिटटी के डोले पर मीता बैठी हुई थी.
“कहाँ थी तू, कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और वहां मिटटी में क्यों बैठी है ” मैंने कहा
मीता- अब तूने याद ही इतनी शिद्दत से किया की मुझे आना पड़ा और ये मिटटी , जो सुख इसकी पनाह में है वो और कहाँ भला.
मैं- बात तो सही कही पर तू थी कहाँ कितने दिन हुए तुझे देखे हुए,
मीता- और भला कहाँ जाना , कभी इधर कभी उधर. चाचा की तबियत ख़राब थी उसे शहर में हॉस्पिटल में दाखिल करवाया था तो वहीँ रुकना पड़ा.
मैं- मुझे तो बता सकती थी न .
मीता- तुझे परेशानी होती.
मैं- परेशानी वो भी तुझसे , हद करती है तू भी .
मीता- और बता क्या चल रहा है
मैं- कुछ नहीं बस तेरी याद आ रही थी .
मीता- यादो का क्या है, यादे तो आणि जानी है
मैं- और तू
मीता- मैं भी यादो जैसी ही हूँ. मैंने तुझे मना किया था न रुद्रपुर में धक्के मत खाना
मैं- मेरी नियति मुझे वहां बार बार ले जाती है
वो- वहां तुझे कुछ नहीं मिलेगा.
मैं- तू तो मिली न
वो- मेरा मिलना न मिलना एक सा ही है
मैं- अभी तो मिली न मुझे तू
मीता ने झोले से एक डिब्बा निकाला और मुझे दिया.
मैं- क्या है इसमें
वो- शहर से लायी हूँ तेरे लिए.
मैने डिब्बा खोला उसमे जलेबिया थी .
“तुझे पसंद है न ” उसने कहा
मैं- तुझे कैसे मालूम
वो- उस दिन हलवाई की दूकान पर तूने जलेबी ही तो खिलाई थी .
मैं मुस्कुरा दिया और जलेबी खाने लगा.
“तेरे बिना सब सूना सूना सा लगता है ” मैंने कहा
वो- अभी तेरे साथ हूँ कौन सा बहारे आ गयी
मैं- काश तुझे बता सकता .
वो- बताने की जरुरत नहीं
मैं- तेरे गाँव में मेला लगने वाला है , मिलेगी न वहां पर
वो- तू आएगा वहां
मैं- मुझे तो आना ही है , इसी बहाने तेरे साथ वक्त गुजारने का मौका मिलेगा
वो- बड़ी हिम्मत है तुम्हारी, मेरे गाँव में मेरा हाथ पकड़ कर घूमना चाहता है
मैं- इतना तो हक़ है मेरा और फिर क्या तेरा क्या मेरा
मीता- इस दोस्ती की शर्ते भूल गया क्या तू
मैं- वो दोस्ती ही क्या जिसमे शर्ते हो
वो मुस्कुरा पड़ी. अँधेरा थोडा और घना होने लगा.
मैं- सावन शुरू हो जाए तो फिर कुछ करे इधर
मीता- दिन तो पुरे हो गए है , देखो कब झड़ी लगती है
मैं- दिल कहता है ये सावन अनोखा होगा. तू बता तेरे सितारे क्या कहते है
मीता- सितारों की क्या बात करनी, बात तो तेरी मेरी चल रही है .
मैं- तो ये बता हमारे सितारे क्या कहते है .
मीता- क्या ही कहना है कुछ दुःख तेरे, कुछ दर्द मेरे
मैं- किसी ने मुझसे कहा की दो बर्बाद मिलकर एक आबाद दुनिया बसा सकते है .
मीता- इतना आगे की क्या सोचना, आज की बात कर
मैं- मेरा आज मेरी आँखों के सामने बैठा है .
मीता- चल मैं चलती हूँ,
मैं- थोड़ी देर तो रुक , बड़े दिनों बाद तो मिली है
मीता- रात काली हो रही है
मैं- होने दे. या तो तू वादा कर की रोज मिलेगी या आज यही रुक जा
मीता-वादा तोड़ कर ही तो आई हूँ तेरे पास
मैं- रुक जा न , क्या मुझ पर भरोसा नहीं
मीता- भरोसा है तभी तो आई. खैर अब मैं जो बात पुछू तू सच बताना मुझे
मैं- तुझसे झूठ बोला क्या कभी
मीता- दादा ठाकुर से क्या पंगा हुआ तेरा
मैं- सच कहूँ तो कुछ नहीं , मतलब पंगा गाँव के लडको से हुआ था , दद्दा से एक दो बार मुलाकात हुई मेरी.
मैंने उसे शिवाले वाली घटना बताई.
मीता- ददा ठाकुर बड़ा मीठा है , तू इसके झांसे में बिलकुल मत आना, कब तेरे साथ खेल कर जायेगा तुझे मालूम भी नहीं होगा.
मैं- पर कुछ तो ऐसा है जो वो अपने कलेजे में दबाये बैठा है
मीता- सब के मन में कुछ न कुछ राज़ तो होते ही है.
मैं-तू मेरी मदद करेगी क्या मेरे सवालो के जवाब तलाश करने में
मीता- मुझे कहाँ उलझा रहा है तू.
मैं- एक तू ही तो है जिससे अपने मन की बात कर सकता हूँ मैं
मीता- ये मन बावला होता है मनीष , मन की मत सुनियो
मैं- तो किसकी सुनु
मीता- छोड़ अब ये सब, यही रुकना है तो दो चार ईंटे उठा ले, और कुछ लकडिया मैं चूल्हा सुलगाती हूँ .
मैं- कमरे में कुछ रखा होगा खाने पिने का देखते है
मैंने कमरे का दरवाजा खोला वहां पर मजदूरो के खाना बना ने का सामान था , मैंने ईंटे उठाई तब तक मीता ने कुछ लकडिया तोड़ ली.
वो- वैसे तुझे खाने में क्या पसंद है
मैं- सच कहूँ तो मीट और उसकी तरी में भीगी हुई रोटिया , खाने पीने का बहुत शौक रहा पर हालात ऐसे थे की मन को समझाना पड़ा
मीता- कोई न अबकी बार तू घर आएगा तो तेरी ये इच्छा मैं पूरी करुँगी. अभी तो इन्ही आलू से काम चला ले.
मैं- चूल्हे की आंच में बड़ी खूबसूरत दिखती है , जी करता है उम्र भर तुझे यूँ देखता रहू. हौले से जुल्फों को संवारना गजब है तेरा.
मीता- ये तारीफों के डोरे तू मुझ पर नहीं डाल पायेगा
मैं- उसकी जरुरत नहीं मुझे
मीता- थाली आगे कर रोटी परोस दू तुझे
मैं- तू बना ले फिर साथ ही खायेंगे, ये मौके फिर मिले न मिले.
मीता- जब तेरा दिल करे , तू मेरे घर आजा खाने के लिए
मैं- मेरा दुश्मन वो ताला हुआ है जो दरवाजे पर लगा है
मीता- ठीक है बाबा , आगे से कहीं भी जाउंगी तो ताला नहीं लगा कर जाउंगी पर मेरा कुछ भी सामान चोरी हुआ तो तुझ से पैसे लुंगी उसके
मैं- मेरा तो सब कुछ तेरा ही है.
बाते करते हुए हम दोनों ने खाना खाया और फिर एक दुसरे के किनारे चारपाई लगा ली . अपनी अपनी चारपाई पर लेटे हुए सितारों को देखते हुए हम हसीं रात का लुत्फ़ ले रहे थे की अचानक आई उस चीख ने हम दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए..............................