संगीता के बारे में एक शब्द भी गलत नहीं बर्दाश्त मुझे....

मेरी छोटी बहन है

जो भी गलती है मानु की है...
स्त्री हमेशा बड़े या दूसरों को पसंद ना आनेवाले फैसले टालने और उनसे बचने, छुपने या अनदेखा करने का प्रयास करती है... वो किसी एक के साथ नहीं बहुमत/समाज के साथ खड़ी होकर अच्छा दिखना चाहती है.....
जो संगीता ने किया... सही-गलत होना नहीं सबको अच्छा दिखना
लेकिन मानु अपने पुरूष होने के उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर सका....
1-दया, क्षमा और दान पात्र को देखकर देने चाहिए अपात्र को दिया हुआ अनिष्टकर होता है.....
2-दूर तक सोचकर कदम उठाने और कठोर फैसले लेने चाहे कितने ही प्रिय को छोड़ना पड़े, चाहे कितने भी प्रिय की जान ही चली जाये
मैंने तो यही किया है अपने जीवन में, एक मोह के लिये बहुत से जीवन अधर में नहीं लटकाता...
ये कल्पना करने की ज़रुरत नहीं मुझे... मैं 19 वर्ष से प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा हूँ....
और इसका एकमात्र समाधान भी तभी कर लिया था....
कोई सवाल करने की बजाय जो स्वयं को सही लगे वो फैसला लेकर उस पर काम करना... चुप रहने वाला खुद रोयेगा, चिल्लायेगा और गिड़गिड़ायेगा भी... लेकिन आप गूंगे-बहरे बन जाओ
100% सही बात.......
ये ज्ञान किताबें नही जिंदगी का अनुभव सिखाता है
अपना वही है जो आपको 'पूरी तरह' से अपना ले... अधूरा सबके लिये परेशानियों की वजह बनता है
"प्यार है तो कबूल करलो दुनिया के सामने, वो जो छुपकर होता है उसे चुदाई कहते हैं "
जिम्मेदारियाँ ही ज़िन्दगी को मुकम्मल बनाती हैं...
अधूरी ख्वाहिशें, अधूरे सपनों की तरह कभी पूरी नही होतीं