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Erotica उत्तेजक कहानी संचयन (incest+adultery+erotica)

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Mink

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महकती कविता - इरोटिका

मेरा बाप कमिना - इंसेस्ट

खेत के कौने में बने एक झोंपड़ी - एडल्टरी

खूबसूरत मां और उसकी 3 सौतेली बेटियां - एडल्टरी

चाची को चोद कर माँ बनाया - इंसेस्ट

अपंग बाप की वासना और मजबूरी - इंसेस्ट+एडल्टरी

चाची को चोद कर माँ बनाया - इंसेस्ट

Ladies Tailor Ki Dastan - एडलटरी

पेयिंग गेस्ट - एडलटरी

चुत की खुजली और मौसाजी - इंसेस्ट
 
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Mink

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Mink

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खेत के कौने में बने एक झोंपड़ी

मेरा नाम प्रीति है,
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मैं दिल्ली में रहती हूँ, अभी कुछ महीने पहले ही मैंने पहली बार रवि से चुदाई का मज़ा लिया है। कहानी लिखने का अनुभव नहीं था । मेरी कहानी छोटी सी है। और यह शुरू तब हुई जब मेरी दीदी की शादी हुई।

शादी का माहौल में मैं उन्नीस साल की अल्हड़ सी लड़की अपनी ही धुन में शादी की तैयारी में लगी थी। दीदी की शादी में खरीदारी की जिम्मेदारी कुछ हद तक मुझ पर भी थी। शादी से दो दिन पहले से ही मेहमान आने शुरू हो गए थे। दादी, बुआ, मौसी, भाभी सबका जमावड़ा लगने लगा था। आपको बता दूँ मेरी भाभियाँ बहुत शैतान हैं और बहुत मजाक करती है वो सब। मेरी तो जैसे शामत ही आ गई थी उनके आते ही। कभी कोई चुटकी काट लेती तो कोई गुदगुदा देती। या फिर सब का एक ही कथन : प्रीति तैयार हो जा अगला नंबर तेरा है, कोई कहती : प्रीति तू तो मस्त माल बन गई है तेरे तो मियां जी की लाटरी लगेगी तेरी शादी के बाद। मैं उनके मजाक के कारण अंदर ही अंदर गुदगुदा जाती।

आखिर शादी वाली रात भी आ गई। बारात आने वाली थी तो एक भाभी आई और बोली- प्रीति , अपने लिए भी कोई दूल्हा चुन लेना बारात में से... सुना है बहुत मस्त मस्त लड़के आये हैं बारात में.. मैं उस भाभी की बात सुन कर झल्लाई और पैर पटकती हुई अंदर चली गई। अंदर का माहौल तो और भी ज्यादा खतरनाक था। मेरी एक भाभी दीदी को सुहागरात के बारे में समझा रही थी। वो बता रही थी कि कैसे कैसे पति देव उसके बदन को मसलेंगे और उसको अपने पति को कैसे मज़ा देना है।

भाभी की बातें सुन कर दीदी शर्म से लाल हो गई थी और दीदी ही क्या, मेरी भी चूत गीली हो गई थी उनकी बात सुन कर। तभी भाभी ने मेरी तरफ देख कर कहा- प्रीति , तुम भी सुन लो, कल तुम्हारे भी काम आने वाला है यह सब कह कर वो तो क्या वहाँ बैठी दीदी और दीदी की सहेलियाँ सब हँस पड़ी। मैं झेंप गई और बाहर भाग गई।

मुझे अब पेशाब का जोर हो रहा था तो मैं बाथरूम में घुस गई। अपनी पेंटी नीचे उतार कर मैं जब पेशाब करने बैठी तो एक अजीब सी गुदगुदी महसूस हुई मुझे पेशाब करते हुए। ऐसा दिल कर रहा था कि कुछ घुसा दूँ चूत में। थोड़ी देर चूत को ऊँगली से सहलाया और फिर बाहर आ गई।

हँसी मजाक के माहौल में शादी की रस्में हुई। बारात में एक लड़के को देख कर मेरे दिल में भी कुछ हलचल हुई। पर लड़की थी ना तो अपने दिल की बात किसी को कह नहीं सकती थी। वो भी बार बार मुड़-मुड़ कर मुझे ही देख रहा था। शादी की दौरान वो मुझ से कई बार टकराया। एक दो बार तो मुझे महसूस हुआ कि वो जानबूझ कर टकराया है। पर उसका टकराना मुझे अच्छा लग रहा था।

विदाई का समय नजदीक आ गया था, मुझे तभी पेशाब का जोर हुआ तो मैं बाथरूम की तरफ गई। अंदर जाकर मैं पेशाब करके जैसे ही बाहर आई तो धक् से रह गई। वो बाथरूम के बाहर खड़ा था। उसने इधर उधर देखा और फिर मुझे लेकर बाथरूम में घुस गया। मैं चिल्लाना चाहती थी पर तब तक उसने अपने होंठों से मेरे मुँह को बंद कर दिया।

पहली बार किसी ने मुझे “किस” किया था और वो भी होंठों पर। कुछ देर तो मैंने उसको दूर करने की कोशिश की पर फिर पता नहीं क्या हुआ। मुझे उसका किस करना अच्छा लगने लगा। उसके बाद तो वो बेहताशा मुझे चूमता रहा। उसका एक हाथ मेरे चूचियों का माप ले रहा था। वो मेरी चूचियों को सहला रहा था और धीरे धीरे मसल भी रहा था। तभी बाहर हलचल महसूस हुई तो उसने मुझे छोड़ दिया और फिर मौका देख कर वो चला गया। उसके जाने के बाद मैं करीब पाँच दस मिनट तक बाथरूम में ही बैठी रही। पेंटी पूरी गीली हो गई थी मेरी। बाहर आई तो सब मुझे ही खोज रहे थे। फिर विदाई की रस्में हुई और दीदी अपने ससुराल चली गई।

अगले दिन सब रिश्तेदार भी चले गए तो मुझे अकेलापन महसूस होने लगा। जब भी अकेली बैठती तो वो लड़का मेरी नजर के सामने घूमने लगता और फिर वो बाथरूम का नजारा दिमाग में आते ही मेरी चूत पानी पानी हो जाती। मैं उससे मिलने को तड़प रही थी।

सावन का महीना आया तो रिवाज के मुताबिक़ दीदी अपने मायके आई। और फिर हरयाली तीज के बाद हमें दीदी को उसके ससुराल छोड़ने जाना था। अचानक पापा को एक जरूरी काम पड़ गया और भाई भी उस समय शहर में नहीं था तो जीजा खुद ही लेने आ गए। मैं उन दिनों फ्री थी तो दीदी ने कहा- प्रीति तुम भी मेरे साथ चलो ना। कुछ दिन मेरे साथ रहना।

मैं तो तैयार थी और फिर जब मम्मी-पापा ने भी हाँ कर दी तो मैं खुश हो गई और दीदी के साथ उसके ससुराल चली गई। जिस दिन हम गए तो उसी दिन दोपहर को मैं और दीदी बैठे दीदी की शादी की एल्बम देख रहे थे। तभी उस लड़के की फोटो सामने आई तो मैंने पूछ लिया- दीदी यह कौन है?

वो दीदी का देवर था और जीजाजी के चाचा का लड़का, रवि नाम था उसका।

मेरी आँखों में एक चमक सी आई कि शायद मुलाकात हो जाए। अभी हम बात कर ही रहे थे कि वो आ गया। उसको सामने देखते ही मेरे तो दिल की धड़कनें बढ़ गई। वो आकर मेरे पास बैठ गया। तभी दीदी बोली- मैं अभी चाय बना कर लाती हूँ। मैं भी दीदी के साथ जाना चाहती थी पर जैसे ही मैं उठने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर वापिस बैठा दिया। हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोला।

कुछ देर के बाद दीदी चाय ले आई और फिर हम सब चाय पीकर बहुत देर तक बातें करते रहे। वो बहुत खुशदिल था तो मैं उस पर मर मिटी थी। शाम का समय हो गया था तो दीदी ने उसको कहा- रवि , जाओ, प्रीति को खेत दिखा लाओ। मेरे दीदी के घर के पीछे ही उनके खेत थे जहा वो सब्जियाँ उगाते थे। वो तो जैसे तैयार ही बैठा था। और सच कहूँ तो मैं भी उस से अकेले में मिलने को बेचैन हो गई थी।

हम लोग बाहर आये तो बाहर बादल छाये हुए थे, दीदी बोली- प्रीति, बारिश आने वाली है तो जल्दी घर आ जाना। मैंने भी हाँ में सिर हिलाया और रवि के साथ चल दी। खेत में सब्जियाँ देखते हुए हम खेत में घूमते रहे और फिर खेत के कौने में बने एक झोंपड़े में चले गए। इस दौरान वो मुझे दो तीन बार आई लव यू बोलने को कह चुका था पर मैं हर बार उसकी बात को टाल रही थी और मुस्कुरा कर उसके दिल पर छुरियाँ चला रही थी। उसको तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

अभी हम झोंपड़े के पास पहुँचे ही थे कि बारिश शुरू हो गई। मैं घर की तरफ भागी पर उसने मुझे पकड़ कर झोपड़े में खींच लिया। तभी बारिश भी पूरे वेग से होने लगी।

“रवि , घर चलते हैं.... कोई क्या सोचेगा...”

पर उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैंने छुटने की थोड़ी कोशिश की पर उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और कुछ देर के बाद मैं अपनेआप में नहीं रही। अब तो मैं भी उसमें समा जाने को बेताब हो उठी।

उसने मेरी कमीज को ऊपर करना शुरू किया तो दिल जोर से धड़का पर उसकी मर्दानगी के आगे मैं लाचार थी। कुछ ही क्षण में उसने मेरी कमीज को मेरे बदन से अलग कर दिया । शमीज में कसी मेरी चूचियाँ देख कर वो पागल सा हो गया। उसने मेरी शमीज को ऊपर उठाया और मेरी गोरी गोरी चूचियों को देखने लगा। मैं तो मदहोश हो गई थी और मेरी आँखें बंद थी। तभी मुझे अपनी चुचूक पर उसके होंठों का एहसास हुआ। मेरा तो सारा शरीर झनझना उठा। वो मेरी चूची को मुँह में भर भर कर चूस रहा था और दूसरी को मसल रहा था।

एक बारिश तो बाहर हो रही थी और दूसरी मेरी पेंटी के अंदर। मेरी चूत पानी पानी हो रही थी। मेरी होंठ और चूचियों को चूसने के बाद रवि के होंठ नीचे बढ़ने लगे। पहले मेरी नाभि को चूमते हुए उसने मेरी सलवार के नाड़े को खोल दिया। सलवार अगले ही पल मेरे पाँव चूम रही थी। रवि पेंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा और चूमने लगा।

मेरे अंदर एक आग सी भरती जा रही थी। दिल कर रहा था कि रवि जल्दी से मेरी चूत में कुछ घुसा दे। तभी रवि ने मेरी पेंटी भी नीचे खींच दी। अब मैं बिल्कुल नंगी उसके सामने खड़ी थी। रवि ने मुझे वही पर पड़ी एक चारपाई पर लेटाया और मेरी टाँगें खुली करके मेरी चूत को चाटने लगा। चूत पर जीभ के एहसास मात्र से ही मेरी चूत झड़ गई। ये सब अति-उतेजना के कारण हुआ। रवि मेरी चूत से निकले सारे रस को पी गया। तभी रवि खड़ा होकर अपने कपड़े उतारने लगा। मैं उसको नंगा होते हुए देख रही थी। उसने अपनी कमीज और बनियान उतारी तो उसके बदन को देख कर उसकी मजबूती का एहसास हो रहा था।

फिर जब उसने अपनी पैंट उतारी तो उसके अंडरवियर पर मेरी नजर गई। उसके अंडरवियर में बनी गाँठ को देख कर मैं सिहर उठी। गाँठ से उसके मोटे लण्ड का अंदाजा लग रहा था। जब उसने अपना अंडरवियर उतारा तो उसके लम्बे और मोटे लण्ड को देख कर मेरे मुँह से “हाय राम” निकला तो वो हँस पड़ा। उसका लण्ड सात-आठ इंच लम्बा और तीन-चार इंच मोटा था। तन कर खड़ा लण्ड बहुत भयानक लग रहा था। जैसे किसी घोड़े या किसी गधे का लंड हो। मुझे चुदाई का कुछ भी पता नहीं था पर शादी वाले दिन और अपनी सहेलियों से जो पता लगा था उसके अनुसार तो यह मोटा सा लण्ड =======> मेरी छोटी सी चूत (.) में घुसने वाला था।

रवि आगे आया और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह की तरफ किया और मुझे चूसने के लिए बोला। पर मैंने पहले कभी ये नहीं किया था तो मैंने मना कर दिया और बहुत कहने पर भी मैंने वो अपने मुँह में नहीं लिया। जब मैं नहीं मानी तो रवि फिर से मेरी जांघों के बीच बैठ कर मेरी चूत चाटने लगा। मैं तो जैसे मस्ती के मारे मरी जा रही थी। बाहर बारिश अभी भी पूरे जोर से हो रही थी।

कुछ देर मेरी चूत चाटने और चूसने के बाद रवि ने थोड़ा सा थूक मेरी चूत और अपने लण्ड पर लगाया और अपना लण्ड मेरी चूत पर रख दिया। गर्म लोहे की छड़ जैसा लण्ड महसूस होते ही एक बार फिर से मेरा सारा शरीर झनझना उठा। दिल भी कर रहा था कि रवि पूरा घुसा दे, पर पहली बार था तो डर भी बहुत लग रहा था।

तभी रवि ने लण्ड जोर से चूत पर दबाया तो मुझे दर्द का एहसास हुआ। मैं डर के मारे रवि को अपने ऊपर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी। पर रवि पक्का खिलाड़ी था। उसने मुझे हिलने भी नहीं दिया और एक जोरदार धक्का लगा कर लण्ड का मोटा सुपारा मेरी चूत में घुसा दिया। सुपारा अंदर जाते ही जैसे मेरी तो जान ही निकल गई। लण्ड की मोटाई के लिए मेरी चूत बहुत तंग थी। अभी मैं संभल भी नहीं पाई थी कि रवि ने एक और जोरदार धक्का लगा कर करीब दो इंच लण्ड मेरी चूत में फंसा दिया। मेरी चीख निकल जाती वो तो रवि ने एक हाथ से मेरा मुँह दबा लिया।

मेरी आँखों से आँसुओं की धार बह निकली थी। सच में बहुत दर्द महसूस हो रहा था। रवि थोड़ा रुका और मेरी चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और मुझे समझाने लगा कि कुछ ही देर में दर्द खत्म हो जाएगा। बस थोड़ा सा सहन करो फिर बहुत मज़ा आएगा। पर मेरी चूत तो जैसे दो हिस्सों में फटने को हो रही थी। लग रहा था कि जैसे कोई चूत को किसी धारदार चीज से चीर रहा हो।

रवि के रुकने से दर्द कुछ कम हुआ ही था कि रवि ने लण्ड थोड़ा बाहर को खींचा और फिर एक जोरदार धक्के के साथ दुबारा चूत में घुसा दिया। धक्का इतना जबरदस्त था कि मुझे मेरी चूत फटती हुई महसूस हुई। मेरी चूत से कुछ बह निकला था।

रवि ने बेदर्दी दिखाई और दो धक्के एक साथ लगा कर आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में डाल दिया। मैं दर्द से दोहरी हो गई। “हाय.... फट गईई मेरी तो.... मुझे नहीं करवाना....बाहर निकल अपना.... निकाल कमीने...मैं मर जाऊँगी...” मैं चिल्ला रही थी पर रवि तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। बस वो तो मुझे मजबूती से पकड़ कर मेरे ऊपर लेटा हुआ था। जैसे ही मैं थोड़ा शांत हुई बेदर्दी ने दो धक्के फिर से लगा दिए और पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। मेरी हालत हलाल होते बकरे जैसी हो रही थी।

पूरा लण्ड घुसाने के बाद रवि बोला- बस मेरी रानी हो गया, अब दर्द नहीं होगा... अब तो बस मज़ा ही मज़ा... पहली बार इतनी मस्त कसी चूत मिली है...” वो मेरे ऊपर लेटा मेरी चुचूक मसल रहा था और दूसरे को मुँह में लेकर चूस रहा था और दांतों से काट रहा था। कुछ देर ऐसे ही रहने से मुझे दर्द कुछ कम होता लगा। चूत में दर्द के साथ साथ एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी थी। दिल मचलने लगा था कि रवि लण्ड को अंदर-बाहर करे। जब रवि ने कुछ नहीं किया तो मैंने ही अपनी गाण्ड थोड़ा हिलाई। रवि को जैसे मेरे दिल की बात पता लग गई और उसने धीरे से लण्ड को बाहर निकाला और फिर एकदम से अंदर ठूस दिया।

चूत एक बार फिर चरमरा उठी। पर अब रवि नहीं रुका और उसने लण्ड को धीरे धीरे अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। लण्ड जब भी चूत में जाता तो दर्द तो होता ही पर पूरे शरीर में एक अजीब सी गुदगुदाहट सी भी होती। दिल करता कि रवि और अंदर तक डाल दे। रवि धीरे धीरे स्पीड बढ़ा रहा था। करीब पाँच मिनट की चुदाई के बाद लण्ड ने अपने साईज के अनुसार चूत को फैला दिया था और अब लण्ड थोड़ा आराम से अंदर-बाहर हो रहा था। अब चूत ने भी पानी छोड़ दिया था जिस से रास्ता चिकना हो गया था।

अब दर्द लगभग खत्म हो गया था बस जब रवि कोई जोरदार धक्का लगाता तो थोड़ा दर्द महसूस होता पर अब दिल कर रहा था कि रवि ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगाए। मेरी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी। लग रहा था कि जैसे कुछ चूत से निकल कर बाहर आने को बेताब हो। अभी कुछ समझ ही नहीं पाई थी कि मेरी चूत से झरना बह निकला। मैं झड़ रही थी।

मेरा पूरा शरीर अकड़ रहा था और मैंने अपने दोनों हाथो से रवि की कमर को पकड़ लिया था और उसको अपने ऊपर खींच रही थी। दिल कर रहा था कि रवि पूरा का पूरा मेरे अंदर समा जाए। इसी खींचतान में रवि की कमर पर मेरे नाख़ून गड़ गए।

रवि क्यूंकि अभी नहीं झड़ा था तो वो अब भी पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। पर मैं झड़ने के बाद कुछ सुस्त सी हो गई थी। रवि के लण्ड की गर्मी और धक्कों की रगड़ ने मुझे जल्दी ही फिर से उत्तेजित कर दिया और मैं फिर से गाण्ड उठा उठा कर लण्ड अपनी चूत में लेने लगी। फिर तो करीब बीस मिनट तक रवि और मैं चुदाई का भरपूर मज़ा लेते रहे और फिर दोनों ही एक साथ परमसुख पाने को बेताब हो उठे। रवि का लण्ड भी अब चूत के अंदर ही फूला हुआ महसूस होने लगा था।

रवि के धक्कों की गति भी बढ़ गई थी। तभी मैं दूसरी बार पूरे जोरदार ढंग से झड़ने लगी। अभी मैं झड़ने का आनन्द ले ही रही थी कि रवि के लण्ड ने भी मेरी चूत में गर्म गर्म लावा उगलना शुरू कर दिया। कितना गर्म गर्म था रवि का वीर्य। मेरी पूरी चूत भर दी थी रवि ने। मैं तो मस्ती के मारे अपने होश में ही नहीं थी, दिल धाड़-धाड़ बज रहा था। मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी, भरपूर आनन्द आ रहा था। बिल्कुल वैसा ही जैसा मैंने मेरी सहेलियों और भाभियों से सुना था। दिल कर रहा था कि रवि ऐसे ही लण्ड को अंदर डाल कर लेटा रहे।

बाहर अब भी जोरदार बारिश हो रही थी। अंदर तो भरपूर बारिश हो चुकी थी, चूत भर गई थी। जैसे ही होश आया तो मैं शर्म के मारे लाल हो गई। रवि ने अपना लण्ड बाहर निकाला और पास पड़े एक कपड़े से साफ़ कर लिया और फिर मुझे दे दिया चूत साफ़ करने के लिए। मैंने भी अपनी चूत साफ़ की। चूत में दर्द हो रहा था। खड़ी होकर मैंने अपने कपड़े पहने। तब तक रवि भी कपड़े पहन चुका था। रवि ने मेरी तरफ देखा तो मैं भी शरमा कर उसकी बाहों में समा गई।

“आई लव यू प्रीति ...”

“तुम बहुत बेदर्द हो!”


लड़खड़ाते कदमो से मैं बाहर आई तो अभी भी सावन की फुव्वारे मौसम को रंगीन बना रही थी। जब बारिश की बूँदे मेरे ऊपर पड़ी तो एक नयी ताजगी सी महसूस हुई। उसके बाद मैं पूरा हफ्ते तक दीदी की ससुराल में रही और कम से कम आठ बार मैंने चुदाई का भरपूर आनन्द लिया। वहाँ से आने के बाद मुझे चुदाई का मज़ा नहीं मिला और मैं आज भी अपनी चूत के लिए रवि जैसे एक मोटे से लण्ड की तालाश में हूँ...
 
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Mink

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New story posted 😊
 

Mink

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अगली कहानी खूबसूरत मां और उसकी 3 सौतेली बेटियां
 

Mink

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खूबसूरत मां और उसकी 3 सौतेली बेटियां

मैं डॉक्टर हूँ.मैं अपने क्लीनिक में मरीज देख रहा था तभी 35-40 साल की एक सेक्सी महिला ने प्रवेश किया. उसके साथ 55-60 साल के एक सरदार जी थे, चुसे आम जैसा बेरौनक चेहरा.

जब तक उनका नम्बर आता मेरी आँखें कई बार उस महिला से टकराईं और मेरी पारखी नजरों ने ताड़ लिया कि यह बिस्तर तक पहुंच सकती है.
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उनका नम्बर आया तो वो महिला मेरे बगल में रखे स्टूल पर बैठ गई और सरदार जी सामने वाली कुर्सी पर.

मेरे पूछने पर महिला ने बताया कि दो दिन से बुखार है, हरारत है, कुछ खाने का मन नहीं कर रहा.
उसकी कटीली निगाहें बहुत कुछ कह रही थीं.

मैंने उसकी पीठ पर स्टेथोस्कोप लगाया और लम्बी सांस लेने को कहा. फिर उसकी छाती पर तीन चार जगह स्टेथोस्कोप लगाया और अंगूठे से उसका निप्पल दबा दिया जिसके जवाब में वो अपने पैर के अंगूठे से मेरी टांग कुरेदने लगी.
तीर सही निशाने पर लगा था.

मैंने उससे अन्दर चलने को कहा.
वो अन्दर जाकर बेड पर लेट गई.

मैं अन्दर गया और उससे बोला- दो बजे तक क्लीनिक खुला रहता है, तुम सवा दो बजे आओ. मेन गेट बंद मिलेगा, साइड गेट से आ जाना. पर्चे पर मेरा मोबाइल नम्बर लिखा है, जरूरत समझो तो कॉल कर सकती हो.

बाहर आकर मैंने पर्चा उठाया, नाम पूछा तो जवाब मिला- प्रीति कौर.
मैंने दवा लिख दी और वे पर्चा लेकर चले गए.
मैं मरीज देखने में व्यस्त हो गया.

दो बजे मेरे मोबाइल पर फोन आया- डॉक्टर साहब मैं प्रीति बोल रही हूँ, सवा दो बजे आ जाऊं?
मैंने जवाब दिया- आ जाइये.

थोड़़ी देर में मेरा कम्पाउंडर क्लीनिक बंद करके चला गया और मैं उस शेरनी का शिकार करने का इन्तजार करने लगा.

सवा दो बजे प्रीति आई तो मैंने उठकर दरवाजा बंद कर दिया और प्रीति से पूछा- वो सरदार जी कौन हैं?
“मेरे पति हैं.”
“तुम्हारे पति?”
“हां, डॉक्टर साहब. वो मेरे पति हैं, मैं उनकी दूसरी पत्नी हूँ, दस साल पहले इनकी पत्नी की मृत्यु हुई तो इनकी चार छोटी छोटी औलादें तीन लड़कियां और एक बेटा थे, हमारे रिश्तेदारों ने इनसे मेरी शादी करवा दी. अब बच्चे बड़े हो गये हैं, लड़कियां जवान हो गयी हैं. मेरे मां बाप गरीब थे इसलिये मेरी जवानी तड़प तड़प कर गुजर गई.

“अभी कहाँ गुजर गई, बहुत जवानी बाकी है. आओ जवानी का जश्न मनायें!”

इतना कहकर मैंने उसका हाथ पकड़ा और अन्दर कमरे में ले गया. कमरे में पहुंच कर प्रीति ने अपना दुपट्टा बेड पर रख दिया और अपनी बांहें फैला कर मुझे आमंत्रित किया.
मैंने प्रीति का सलवार सूट उतार दिया और अपनी पैन्ट शर्ट भी.

प्रीति ने आगे बढ़कर मेरी बनियान उतारी तो मैंने उसकी ब्रा खोल दी. प्रीति के बड़े बड़े कबूतर आजाद हो गये थे. मैंने प्रीति को बांहों में भर लिया और बेड पर लिटाकर उसकी चूचियां चूसने लगा. चूचियां चूसते चूसते मैं उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा.

मैंने प्रीति की पैन्टी भी उतार दी और उसकी ताजा ताजा शेव की हुई चूत में उंगलियां चलाने लगा. प्रीति की बेताबी जब ज्यादा बढ़ने लगी तो वो मेरा लण्ड सहलाने लगी.

मामला दोनों तरफ गर्म हो चुका था. मैंने अपना अण्डरवियर उतारा और प्रीति के मुंह में लंड दे दिया. प्रीति के चूसने से मेरा लण्ड और टाईट हो गया तो मैंने प्रीति के चूतड़ों के नीचे तकिया रखा, अपने लण्ड पर जेल लगाया और मेरा लण्ड सरदारनी की चूत में जाने के लिए तैयार हो गया.

प्रीति की टांगों के बीच आकर मैंने उसकी चूत के लब खोले और अपने लण्ड का सुपारा अन्दर कर दिया.
प्रीति के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो पूरा लण्ड लेने को बेताब है.
मैंने एक झटके में पूरा लण्ड उसकी चूत में पेल दिया.

अपना लण्ड प्रीति की चूत में पेलकर मैं उसकी चूचियां चूसने लगा. लेकिन प्रीति जल्दी चुदवाने के मूड में थी इसलिये अपने चूतड़ उचकाने लगी.
ऐसा देखकर मैंने अपनी ट्रेन चलाई तो प्रीति भी उचक उचक कर चुदवाने लगी.

लण्ड के धकाधक अन्दर बाहर होने से प्रीति की चूत ने पानी छोड़ दिया तो फचफच की आवाज आने लगी. मेरा भी डिस्चार्ज होने वाला था इसलिए मैंने स्पीड बढ़ा दी और उसकी चूत में फव्वारा छोड़ दिया.

अब यह रोज का क्रम हो गया, प्रीति सवा दो बजे आ जाती और आसन बदल बदल कर चुदवाती.

हम दोनों के बीच होने वाली बातचीत से मुझे यह पता चला कि प्रीति की बीस साल बड़ी बेटी मनमीत के लिए रिश्ते की तलाश हो रही है लेकिन काफी दुबली पतली होने के कारण दो बार रिजेक्ट हो चुकी है.

मैंने प्रीति से कहा- कभी लाओ उसको भी. विटामिन एल खायेगी तो दुरुस्त हो जायेगी.
थोड़़ी आनाकानी के बाद प्रीति मनमीत को लाने के लिए राजी हो गई.

दो दिन बाद प्रीति मनमीत को लेकर आई. मनमीत का कद 5 फुट 7 इंच, वजन 50-52 किलो, गोरा चिट्टा रंग, तीखे नैन नक्श. दुबली पतली टांगें और छोटे छोटे संतरे जैसी चूचियां. आंखों में उदासी भरी थी.
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मैंने उसको बिठाया, खानपान के बारे में पूछा. खानपान में कुछ बदलाव की सलाह दी और अपने पास से विटामिन के कैपसूल दिये.
“इन सबके साथ मसाज बहुत जरूरी है प्रीति जी!” आप इनको सोमवार, बुधवार, शुक्रवार हफ्ते में तीन दिन लाइये, मसाज करेंगे. दो तीन महीने में ये प्रियंका चोपड़ा जैसी हो जायेंगी.”

अगली बार प्रीति और मनमीत आईं तो प्रीति बाहर बैठ गई और मनमीत को मैं अन्दर ले गया.
मैंने मनमीत से कहा- सलवार सूट उतारकर लेट जाओ.

मनमीत थोड़ा हिचकिचाई तो मैंने कहा- बेटा शर्माओ नहीं, कपड़े उतारकर लेट जाओ.
मनमीत ने सलवार सूट उतारा और लेट गई.
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मैंने ऑलिव ऑयल हाथ में लिया और मनमीत की पीठ और टांगों पर मसाज करने लगा.

करीब बीस मिनट बाद मैंने उससे पलटने को कहा और उसकी बांहों और टांगों पर मसाज करने लगा.

एक घंटे तक मसाज करने के बाद मैंने मनमीत से कपड़े पहनने को कहा और पूछा- कैसा लग रहा है?
मनमीत ने कहा- फ्रेशनेस और चुस्ती फील कर रही हूँ.

मनमीत हर दूसरे दिन आने लगी, अब प्रीति साथ में नहीं आती थी. एक दिन मनमीत मसाज कराती और दूसरे दिन प्रीति चुदवाने आ जा जाती.

आज मनमीत का पांचवाँ दिन था, वो आई और सलवार सूट उतारकर बेड पर लेट गई. मैंने हथेली पर तेल लिया, मनमीत की पीठ पर लगाया और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया. पीठ पर मसाज करने के बाद जब वो पलटी तो मैंने उसकी ब्रा उसके शरीर से अलग कर दी.

हथेली पर तेल मलकर मैंने उसके संतरों की मसाज शुरू कर दी. संतरों की मसाज से मनमीत के निप्पल्स टाईट हो गये. टाईट तो मेरा लण्ड भी हो गया था लेकिन अभी इन्तजार बाकी था.

चूचियों की मसाज के बाद मनमीत ने सलवार सूट पहना और चली गई. मैं जूस मंगाकर रख लेता था, जो मैं और मनमीत पी लेते थे.

अब मसाज के समय मनमीत के शरीर पर केवल पैन्टी रहती थी. अब उसका उतरना भी नजदीक था.
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अबकी बार मनमीत आई, सलवार, सूट और ब्रा उतारकर पेट के बल लेट गई. मैंने तेल लिया और उसकी पीठ पर मसाज करने लगा. मेरा हाथ उसके कंधों से चूतड़ों की तरफ आया तो मैंने उसकी पैन्टी चूतड़ों से नीचे खिसका दी और उसके गोरे गोरे चूतड़ों की मसाज करने लगा.

चूतड़ों की मसाज करने के बाद मैंने उसकी पैन्टी ऊपर चढ़ा दी और उसे पलट दिया.

मनमीत के स़ंतरे देखकर मेरे मुंह में पानी आ गया. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने मनमीत का एक संतरा अपने मुंह में ले लिया.
उस जवान लड़की मनमीत का एक संतरा मैं चूस रहा था और दूसरा सहला रहा था. मनमीत को भी अच्छा लग रहा था.

थोड़़ी देर बाद मैंने उसके संतरे छोड़कर अपनी हथेली पर ऑलिव ऑयल लिया और मनमीत की पैन्टी नीचे खिसकाकर उसकी बुर पर मसाज करने लगा. हल्के गुलाबी रंग की बुर पर मुलायम झांटें ऑयल की मसाज से चमकने लगी थीं.

अब मैंने अपनी पैन्ट व अण्डरवियर उतार दिया. कई दिन से मनमीत की बुर में जाने की आस लगाया लण्ड फनफनाये नाग की तरह फुफकारने लगा. लण्ड पर ऑलिव ऑयल लगाकर चिकना किया.

और मैंने मनमीत की बुर के गुलाबी होंठ खोलकर लण्ड का सुपारा टिका दिया. मनमीत की पतली कमर पकड़कर लण्ड को अन्दर धकेला तो टप्प की आवाज के साथ सुपारा अन्दर हो गया.

मनमीत ने हल्की सी आह की आवाज की. मनमीत के संतरों पर हाथ फेरते हुए मैंने लण्ड को अन्दर खिसकाना जारी रखा.
लगभग आधा लण्ड अन्दर चला गया तो मैंने अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.

लण्ड के धीरे धीरे अन्दर बाहर होने से मनमीत भी आनन्दित हो रही थी लेकिन मेरा लण्ड पूरा घुसने को बेताब था. लण्ड को अन्दर बाहर करने की स्पीड बढ़ाते हुए मैंने एक बार जोर से धक्का मारा तो मनमीत की बुर की झिल्ली फाड़ते हुए पूरा लण्ड मनमीत की बुर में समा गया.
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मैं मनमीत की हिम्मत का कायल हो गया. खून से सना लण्ड अन्दर बाहर होने लगा और मैं आनंद की चरम बेला पर पहुंचने लगा तो लण्ड फूलकर और मोटा होने लगा. अन्ततः मेरे लण्ड से पिचकारी छूटी और मनमीत की बुर वीर्य से भर गई.

अब मनमीत रोज आने लगी.

करीब तीन महीने में उसका शरीर एकदम बदल गया, छोटी छोटी चूचियां बड़ी हो गईं, जांघें और चूतड़ भी सुडौल हो गये.

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लण्ड का विटामिन मिलने से मनमीत की पर्सनैलिटी बदल गई थी. अब मनमीत की शादी हो गई है और प्रीति का कहना है कि किसी दिन दूसरी बेटी गुरप्रीत को लेकर आऊंगी.

मनमीत की शादी के करीब एक महीने बाद प्रीति गुरप्रीत को लेकर आई.

गुरप्रीत अपनी बड़ी बहन मनमीत की कॉपी थी लेकिन थोड़े भरे बदन की थी जिसके कारण बहुत सेक्सी लग रही थी.
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मैंने उन दोनों को कोक पिलाई और काफी देर तक बातें कीं. बातचीत का सारांश यह है कि गुरप्रीत ने पिछले साल कक्षा 12 की परीक्षा पास की थी और डॉक्टरी में दाखिला लेने के मकसद से नीट का इम्तहान दिया था लेकिन रिजल्ट अच्छा नहीं रहा था, इस बार फिर से तैयारी कर रही है. सुबह 10 बजे से 1 बजे तक कोचिंग जाती है.

मैंने कहा- कोचिंग के बाद घर जाओ और दो ढाई बजे तक यहां आ जाया करो, मैं गाइड कर दूंगा.

अगले दिन से गुरप्रीत आने लगी. मैं कोक की बॉटल में व्हिस्की मिला कर रखता था, गुरप्रीत रोज कोक समझकर एक पेग व्हिस्की लेने लगी. व्हाट्सएप पर गुड मार्निंग, गुड नाईट से शुरू होकर पहले हल्के फुल्के जोक्स और फिर डबल मीनिंग जोक्स का आदान प्रदान करते मामला पोर्न वीडियो शेयर करने तक आ पहुंचा.

एक दिन गुरप्रीत नहीं आई तो मैंने फोन करके पूछा तो उसने बताया- उसका पीरियड शुरू हो गया है, इसलिये तीन दिन नहीं आयेगी.
मैंने कहा- पीरियड्स हैं तो क्या हुआ?

गुरप्रीत ने बताया कि पीरियड्स के दौरान ओवर ब्लीडिंग के कारण कमजोरी और दर्द होता है, इसलिये घर पर रहती हूँ.
“और मुझे जो तुम्हारी आदत हो गई है, मेरे तीन दिन कैसे कटेंगे?”
“मैं कम्पनसेट कर दूंगी.”
“कैसे?”
“दो घंटे के बदले चार घंटे आपके साथ रहकर.”

“चार घंटे साथ रहने से कुछ नहीं होगा, मुआवजा देना पड़ेगा.”
“दे दूंगी.”
“क्या दोगी?”
“जो आप कहेंगे.”
“संतरों का रस पिलाना पड़ेगा.”
“पिला दूंगी.” कहकर गुरप्रीत हंस दी.

अगले दिन दोपहर में प्रीति आई. पिछले दो महीने में एक दो बार ही चुद पाई थी, इसलिये बड़ी बेताब और परेशान थी, कहने लगी, अब आपको जवान लड़कियां मिलने लगीं तो हमको भुला दिया.

मैं खुद कई दिन का भरा हुआ था. मैंने जल्दी से पहले अपने कपड़े उतारे, फिर प्रीति के.
प्रीति का हाथ पकड़कर बेड पर खींच लिया और अपने लण्ड पर थूक लगाकर उसकी चूत में पेल दिया.
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अब मैंने प्रीति से कहा- मेरे लिए सबसे पहले तुम हो, बाद में वो जवान लड़कियां.
प्रीति अपने चूतड़ उचकाकर लण्ड का पूरा मजा लेते हुए बोली- आपका पानी निकालने वाली पचास होंगी लेकिन मेरा सहारा आप ही हैं.
मैंने कहा- बेफिक्र रहो, मैं हमेशा तुम्हारी केयर करूंगा.

इतने में मेरे मोबाइल की घंटी बजी, देखा तो गुरप्रीत का फोन था. मैंने फोन प्रीति को दिखाते हुए चुप रहने का इशारा किया और कॉल अटैण्ड करते हुए कहा, हैलो.
“सर, गुरप्रीत बोल रही हूँ.”
हां गुरप्रीत, कैसी हो?”
“मैं अच्छी हूँ, आप कैसे हैं?”
“बहुत बढ़िया, तुम्हारी तबियत ठीक है?”
“जी, काफी कुछ ठीक है. अभी क्या कर रहे हैं?”
“तुम्हारा इन्तजार, और क्या?”

“सच? इतनी बेकरारी?”
“जी, बेहद बेकरार हूँ.”
“किस बात की बेकरारी है, सर?”
“बेकरारी यह है कि, अब जिस दिन मिलोगी, वो तुम्हारी जिन्दगी का सबसे हसीन दिन होगा.”
“उस हसीन दिन का मुझे भी इन्तजार है, सोमवार को आती हूँ. बॉय!”
ओके, बॉय. कहकर मैंने फोन काट दिया.

इस दौरान लण्ड का अन्दर बाहर होना जारी था.

प्रीति बोली- तुमसे चुदवा कर मनमीत की तो जिन्दगी संवर गई. मैं भी जन्नत का आनंद ले रही हूँ. गुरप्रीत पर तुम्हारे लण्ड का क्या असर होता है, अब यह देखना है.

अन्दर बाहर करते करते मेरा लण्ड मूसल की तरह टाईट हो गया था. मैंने प्रीति को घोड़ी बना दिया और उसके पीछे जाकर उसकी चूत में अपना लण्ड पेल दिया.
घोड़ी बनाकर चोदने से चूत और टाईट हो जाती है, जिससे लण्ड बहुत फंसकर अन्दर जाता है, इसीलिये मुझे यह आसन बहुत पसन्द है.

चोदते चोदते मेरे लण्ड ने पिचकारी छोड़ दी.
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अब आया सोमवार का दिन. मैं सुबह से ही गुरप्रीत के इन्तजार में था. अपनी झांटें शेव करके लण्ड को एकदम चिकना कर दिया था.

दो बजे जैसे ही कम्पाउंडर ने मेन गेट बंद किया, मैं पीछे वाले कमरे में पहुंच गया. पांच मिनट में ही गुरप्रीत आ गई, अपना बैग रखकर वो मेरी तरफ मुड़ी और कातर निगाहों से देखने लगी.

मैं उठा, गुरप्रीत का दुपट्टा उतारकर बेड पर रख दिया और उसे अपने सीने से सटा लिया. काफी देर तक हम ऐसे ही लिपटे हुए खड़े रहे, चुपचाप. फिर मैंने फ्रिज से कोक की बॉटल निकाली और दो दो गिलास कोक पी. दो गिलास कोक मतलब दो पेग व्हिस्की अन्दर हो गई.

फिर अपनी शर्ट और बनियान उतार दी और उसके बाद गुरप्रीत की कुर्ती और ब्रा.

गुरप्रीत की ब्रा हटते ही उसके कबूतर उड़ने लगे. मैंने लपककर गुरप्रीत को अपने सीने से लगा लिया और फिर बेड पर लिटा दिया. उसके कबूतरों से छेड़छाड़ करते करते मैंने अपने होंठ गुरप्रीत के होंठों पर रख दिये. उसके होंठ आग की भठ्ठी की तरह तप रहे थे.

गुरप्रीत की चूत पर हाथ फेरा तो वहां भी भठ्ठी जलती दिखी. मैंने गुरप्रीत की सलवार और पैन्टी उतार दी.
पूरी तरह से नंगी गुरप्रीत आलिया भट्ट को भी मात दे रही थी.

मैं 69 की पोजीशन में आ गया और गुरप्रीत की चूत के धधकते होठों पर अपने होंठ रख दिये. उसके होठों की गर्मी कम करने के लिए मैंने अपनी जीभ फेरना शुरू किया तो गुरप्रीत अपनी टांगें चिपकाने लगी.

मैंने उसकी टांगें फैला दीं और अपनी जीभ नुकीली करके उसकी चूत के अन्दर कर दी. इससे गुरप्रीत चिहुंक गई, उसने मेरी पैन्ट की चेन खोलकर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और चूसने लगी.

वो मेरा लण्ड चूस रही थी और मैं उसकी चूत में शोले भर रहा था.

अचानक गुरप्रीत उठी और मुझ पर सवार हो गई, अपनी चूत के होंठों को फैलाकर मेरे लण्ड पर बैठ गई और रगड़ने लगी.
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लण्ड को चूत के अन्दर लेने की उसकी कोशिश नाकामयाब होते देख मैं उठा. मैंने अपनी पैन्ट और अण्डरवियर उतार दिया और अपने लण्ड पर जेल लगा लिया.
गुरप्रीत की टांगें उठाकर एक तकिया उसके चूतड़ों के नीचे रख दिया और उसकी टांगों के बीच आकर उसकी चूत के गुलाबी होंठ फैलाकर अपने लण्ड का सुपारा रख दिया.

पहले धक्के में सुपारा और दूसरे में पूरा लण्ड गुरप्रीत की चूत में समा गया. लण्ड को अन्दर बाहर करते हुए धक्के मारना शुरू कर दिया.
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गुरप्रीत लगातार आती रही, चुदवाती रही और तब तक चुदवाती रही जब तक मेडिकल कॉलेज में उसका एडमिशन नहीं हो गया.

अब प्रीति तो घर की दाल बराबर हो गई है. मनमीत और गुरप्रीत जब भी आती हैं, अपनी चूत का प्रापर चेकअप जरूर कराती हैं.

प्रीति की तीसरी बेटी हनीप्रीत अब साढ़े अठरह साल की हो गई है,

मैं प्रीति के पीछे पड़ा हुआ हूँ कि एक बार दीदार करा दे.

गुरप्रीत का मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हुए करीब तीन महीने हो चुके थे. मैं जब भी प्रीति से उसकी तीसरी बेटी हनीप्रीत से मिलवाने की बात करता, वो टाल जाती.

आज मैंने बहुत जोर देकर पूछा तो बोली- अभी बहुत छोटी है वो.
“कितनी छोटी है?”
“साढ़े अठरह साल की है.”
“तो? साढ़े अठरह साल की लड़की छोटी होती है क्या?”
“अच्छा, आप जिद करते हो तो कल ले आऊंगी.”

अगले दिन प्रीति आई तो साथ में हनी थी, आलिया भट्ट की छोटी बहन लग रही थी. कक्षा 12 में पढ़ती है, डांस और एक्टिंग में कई पुरस्कार जीत चुकी है.
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यह सब सुनकर मैंने कहा- इसे तो फिल्मी दुनिया में जाना चाहिए.
प्रीति ने कहा- ये तो जाना चाहती है लेकिन इसके पापा जाने दें तब ना.

मैंने कहा- मेरा एक कज़िन **** कपूर की कम्पनी में असिस्टेंट डायरेक्टर है, मैं उससे बात करता हूँ.

दो दिन बाद मैंने हनी को फोन करके बुलाया और उसे बताया कि अलग अलग ड्रेसेज में, अलग अलग हेयर स्टाइल में, अलग अलग एक्सप्रेशन्स में कम से कम 100 फोटो भेजनी हैं. कहीं भी फोटोशूट कराओगी तो एक से डेढ़ लाख रुपये का खर्च है. कर पाओगी?

यह सुनकर हनी उदास हो गई और बोली, मैं कहाँ कर पाऊंगी. और पापा सपोर्ट करेंगे नहीं.

मैंने कहा, एक ऑप्शन ये है कि कहीं से ड्रेसेज किराये पर ली जायें और खुद फोटोग्राफी की जाये. वैसे मैं अच्छा फोटोग्राफर हूँ और मेरे पास बेहतरीन कैमरा है.

मरता क्या न करता. यही तय हो गया और अगले दिन से फोटोशूट शुरू हो गया.

ड्रेसेज किराये पर लाकर एक से बढ़कर एक फोटो खींचे गये. एक दिन खींचे गये फोटो अगले दिन लैपटॉप की स्क्रीन पर देखकर हनी बहुत खुश होती. इस बीच वो मेरे साथ काफी कम्फर्टेबल हो गयी थी.

एक फोटो ‘राम तेरी गंगा मैली’ की मंदाकिनी जैसा भी होना चाहिये, इसके लिए मैंने हनी को राजी कर लिया.

मेरे कहने पर अगले दिन वो ऑरेंज कलर का सूट पहन कर आई. मेरे सामने ड्रेस चेंज करने की उसकी हिचक शुरुआती दो तीन दिनों में ही खत्म हो गई थी.

आज मैंने उससे सलवार सूट उतारने को कहा तो उसने उतार दिया. मेरे कहने पर उसने दुपट्टा ओढ़ लिया और फोटोशूट शुरू हो गया.

आठ दस फोटोज के बाद मैंने कहा कि ब्रा उतारकर दुपट्टा ओढ़ लो.

थोड़़ी हिचक और नानुकुर के बाद हनी ने ब्रा उतार दी. अब उसके शरीर पर सिर्फ पैन्टी थी. मेरे कहने पर वो दुपट्टा ओढ़कर खड़ी हो गई. ऑरेंज कलर के जॉर्जेट के दुपट्टे से उसकी चूचियां झलक रही थीं.

पोज़ सेट करने के लिए कई बार चेहरा, बॉडी या कपड़ों को फोटोग्राफर एडजस्ट करता है. आज कई सारी फोटो खींचने के दौरान कई बार मैं हनी को छू चुका था. एक फोटो खींचने के बाद अगली फोटो के लिए उसका पोज बनाते हुए मैं हनी की चूचियों पर हाथ फेरने लगा.

हनी ने मेरी ओर देखा और मेरी आँखों में प्रणय निवेदन देखकर कुछ नहीं बोली.

मैंने हनी के होठों पर अपने होंठ रख दिये और हम लोग आलिंगनबद्ध हो गये. मैंने हनी को गोद में उठा लिया और बेड पर ले आया.

हनी के होठों के बाद मैंने उसकी चूचियां चूसना शुरू कर दिया और धीरे से उसकी पैन्टी उतार दी. अपने होंठ हनी की बुर के होंठो पर रखकर मैं उसकी बुर का रसपान करने लगा.

थोड़ी देर बाद मैं फिर से हनी की चूचियां चूसने लगा और अपनी उंगली उसकी बुर में चलाने लगा.
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जब हनीप्रीत की बुर काफी गीली हो गई तो मैंने अपने कपड़े उतारे और अपने लण्ड पर ऑलिव ऑयल लगाकर धीरे धीरे से हनी की बुर में पेल दिया. लण्ड को आराम आराम से अन्दर बाहर करते करते मेरे डिस्चार्ज करने का समय आया तो मैंने अपनी स्पीड थोड़़ी बढ़ा दी और वक्त आने पर अपने लण्ड का सारा वीर्य हनीप्रीत की बुर में उड़ेल दिया.
 

Mink

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नई कहानी पोस्ट कर दिया है ..
 

NEHAVERMA

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Update -1

रोहण अपने तबादले पर कानपुर आ गया था। उसे जल्द ही एक अच्छा मकान मिल गया था। अकेला होने के कारण उसे भोजन बनाने, कपड़े धोने, घर की सफ़ाई में बहुत कठिनाई आती थी। संयोगवश उसे अपने मन की नौकरानी मिल ही गई।

एक जवान लड़की जो एक छोटे बच्चे को लेकर दरवाजे पर कुछ रात का बचा हुआ खाना मांगने आई थी, उसे उसने यूँ ही कह दिया था- कुछ काम वगैरह किया करो, ऐसे भीख मांगना ठीक नहीं है।

वो बोली- भैया, मुझे तो कोई काम देता ही नहीं है।
तो रोहण ने पूछा- मेरे घर पर काम करोगी?
तो वो मान गई थी।

रोहण ने पहले उसे ऊपर से नीचे तक देखा, नाम पूछा, उसका नाम कविता था और उसके बच्चे का नाम राजा था।
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और कहा- पहले तुम अच्छे से नहा धो लो, साफ़ सुथरी तो हो जाओ। फिर तुम दोनों कुछ खा पी लो, फिर बताऊँगा तुम्हें काम।

उसने उसे साबुन और एक पुराना तौलिया दे दिया। अन्दर के कमरों में ताला लगा कर बाहर के कमरे की चाबी दे कर रोहण ऑफ़िस चला आया। शाम को लौटा तो वो भूल ही चुका था कि उसने किसी को वहाँ रख छोड़ा था।

फिर वो मन ही मन हंस पड़ा। अन्दर गया तो मां बेटे दोनों ही सोये हुये थे। नहाने धोने से वे दोनों कुछ साफ़ से नजर आ रहे थे। रोहण ने उन्हें ध्यान से देखा, लड़की तो सुन्दर थी, साफ़ रंग की, दुबली पतली, रेशमी से बाल। वो जमीन पर सोई हुई थी। उसे देख कर रोहण को लगा कि यदि ये शेम्पू से अपने बाल धो कर संवारे तो निश्चित ही वो और सुन्दर लगेगी।

रोहण ने उसे जगाया, वो झट से उठ बैठी। बैठक जिसे मैं उसके लिये खोल कर गया था उसने झाड़ू लगा कर पोंछा करके चमका दिया था।

रोहण ने कमरों को खोला, उसे रसोई बताई, काम समझाया और फिर स्नान करने को चला गया।

रोहण ने उसे नजरों से नापा तौला और बाजार से उसके लिये कुछ कपड़े ले आया। बच्चे के लिये भी निक्कर और कमीज ले आया। रात के लिये कविता के लिये एक सूती पायजामा और एक कुरता भी ले आया था। रात को भोजन से पहले वो स्नान आदि करके आई तो वो सच में खूबसूरत सी लगने लगी थी। वो कुरता उसे ढीला-ढाला सा आया था। चूंकि रोहण ने किसी पहली लड़की को अपने घर में इतनी समीप से देखा था इसलिये शायद वो उसे सुन्दर लग रही थी।
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भोजन के लिये वो दोनों नीचे ही बैठ गये। लग रहा था कि वे बहुत भूखे थे। उन्होंने जम कर भोजन किया। पूछने पर पता चला कि उन्हें कभी भोजन मिलता था कभी नहीं भी मिलता था।

‘कहाँ रहती हो कविता?’
‘जी, कहीं नहीं!’
‘तो अब कहाँ जाओगी?’
‘कहीं भी…

फिर उसने भोजन करके राजा का हाथ पकड़ा और धीरे से मुस्कुरा कर थैंक्स कहा तो उसे एक झटका सा लगा। यह तो अंग्रेजी भी जानती है।
फिर उसने पीछे मुड़ कर पूछा- सवेरे मैं कितने बजे आऊँ?
‘यही कोई सात बजे…’
‘जी अच्छा…’

वो बाहर चली गई। रोहण ने अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। रोज की भांति उसने अपने कमरे में जाकर, जो कि पहली मंजिल पर था, टीवी खोल कर ब्ल्यू फिल्म लगाई और और देर रात को मुठ्ठ मार कर सो गया।

सवेरे वो ब्रश करता हुआ बालकनी पर आया तो उसे अपने वराण्डे में कोई सोता हुआ दिखा। उसे बहुत गुस्सा आया। वो नीचे आया तो देखा कि वहाँ कविता और राजा सोये हुये थे। कविता तो एकदम सिकुड़ी हुई सी, राजा को अपने शरीर से चिपकाये हुये सो रही थी।

वो झुन्झला सा गया, उसने उन दोनों को उठाया और गुस्से में बोला- अरे, यहीं सोना था तो अन्दर क्यों नहीं सो गई? कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?

वो कुछ नहीं बोली, बस सर झुका कर खड़ी हो गई।
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फिर कुछ देर बाद बोली- सात तो बज गए होंगे? चाय बना दूँ?

रोहण ने एक तरफ़ हट कर उसे अन्दर जाने का रास्ता दे दिया। जब तक वो स्नान आदि करके आया तो उसने चाय परांठा और अण्डा बना कर तैयार कर दिया था। उसे बहुत अच्छा लगा। उसने नाश्ता कर लिया, उन दोनों से भी नाश्ता करने को कह दिया।

अब से तुम दोनों रसोई में रहना, ठीक है?
कविता की आँखें चमक उठी- साहब, दोपहर को खाने पर आयेंगे ना?
‘अब दिन का… पता नहीं, ठीक है आ जाऊँगा।’

जब रोहण दिन को घर आया तो वो कविता को पहचान ही नहीं पाया। सलवार कुर्ते चुन्नी में और शेम्पू से धोये हुये बाल, मुस्कराती हुई! ओह कितनी सुन्दर लग रही थी। राजा भी साफ़-सुथरा बहुत मासूम लग रहा था।
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‘बहुत सुन्दर लग रही हो।’
‘जी, थेन्क्स! भोजन लगा दूँ?’

रोहण ने मां के अलावा इतना स्वादिष्ट भोजन कविता के हाथ का ही खाया था। फिर उसका मन ऑफ़िस जाने का नहीं हुआ। बस कमरे में ऊपर जाकर सो गया। उसने अपने गन्दे मोजे, चड्डी, बनियान, कमीज पैंट वगैरह स्नान के बाद यूँ ही डाल दिये थे। कविता उसके सोने के बाद कमरे में आ कर गन्दे कपड़े मोजे, जूते सभी कुछ ले गई, धुले प्रेस किये कपड़े, साफ़ मोजे, और जूते पॉलिश करके रख गई।
रोहण जब उठा, यह सब देखा तो उसे एक सुखद सा अहसास हुआ।

बस यूँ ही दिन कटने लगे। जाने कब रोहण के दिल में कविता के लिये कोमलता भर गई थी। शायद इन चार-पांच महीने में वो उसे पसन्द करने लगा था। कविता का तन भी इन चार-पांच महीनों में भर गया था और वो चिकनी-सलोनी सी लगने लगी थी।
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इतने दिनों में बातों में ही रोहण जान गया था कि उसका नाजायज बच्चा किसी राह चलते आदमी की औलाद थी जिसे वो जानती तक नहीं थी। रेलवे प्लेटफ़ार्म पर उसका दैहिक शोषण हुआ था। चार साल से वो यूं ही दर दर भटक रही थी। कोई काम देता भी तो उसकी खा जाने वाली वासना भरी नजरों से वो डर जाती और भाग जाती थी। मुश्किल उसकी ठण्ड और बरसात के दिनो में आती थी। बस रात कहीं ठिठुरते हुये निकाल लेती थी। अपने छोटे से बच्चे को वो अपने तन से चिपका कर गर्मी देती थी। कानपुर में ठण्ड भी तेज पड़ती थी।

कविता रोहण का बहुत ध्यान रखती थी। सर झुका कर सारे काम करती थी। रोहण के गुस्सा होने पर वो चुप से सर झुका कर सुन लेती थी। रोहण तो अब आये दिन उसके लिये नये फ़ैशन के कपड़े, राजा के लिये जीन्स वगैरह खरीदने लगा था।
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पर इन दिनों रोहण की बुरी आदतें रंग भी लाने लगी थी। रात को अकेले में ब्ल्यू फ़िल्म देखना उसकी आदत सी बन गई थी। फिर शनिवार को तो वो शराब भी पी लेता था। रोहण के बन्द कमरे की पीछे वाली खिड़की से एक बार कविता ने रोहण को ब्ल्यू फ़िल्म देखते फिर मुठ्ठ मारते देख लिया था।
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वो भी जवान थी, उसके दिल के अरमान भी जाग उठे थे। अब कविता रोज ही रात को करीब ग्यारह बजे चुपके से ऊपर चली आती और उस खिड़की से रोहण को ब्ल्यू फ़िल्म देखते देखा करती थी। वो इस दौरान अपने खड़े लण्ड को धीरे धीरे सहलाता रहता था। लण्ड को बाहर निकाल कर वो कभी अपने सुपाड़े को धीरे धीरे से सहलाता था। कभी कभी तो फ़िल्म में वीर्य स्खलन को देखते हुये वो अपना भी वीर्य लण्ड मुठ्ठ मार कर निकाल देता था।

बेचारी कविता के दिल पर सैकड़ो बिजलियाँ गिर जाती थी, दिल लहूलुहान हो उठता था, वो भी नीचे आकर अपनी कोमल चूत घिस कर पानी निकालने लगती थी।
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(बालों वाली चूत की घिसाई)
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(चिकनी चूत की घिसाई)

अब तो कविता का भी यह रोज का काम हो गया, रोहण को मुठ्ठ मारते देखती और फिर खुद भी हस्तमैथुन करके अपना पानी निकाल देती थी।
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कब तक चलता यह सब? कविता ने एक दिन मन ही मन ठान लिया कि वो रोहण को अब मुठ्ठ नहीं मारने देगी। वो स्वयं ही अपने आप को उससे चुदवा लेगी। रोहण उसके लिये इतना कुछ कर रहा था क्या वो उसके लिये इतना भी नहीं कर सकती? उसे भी तो अपने शरीर की ज्वाला शान्त करनी थी ना! तो क्या वो अपने आप को उसे सौंप दे? क्या स्वयं ही नंगी हो कर उसके कमरे में उसके सामने खड़ी हो जाये?

उफ़्फ़्फ़! नहीं ऐसे नहीं! फिर?
कहानी जारी रहेगी अगले भाग में।
Bahut hi sundar kahani
 

Mink

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Mink

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Sabhi story superb hai ek se badkar ek, ab koi coktail story bhi daliye inCst adultery aur erotica se. Bharpur
Thanks for suggestion next story cuckold pe adharit hogi...sath jude rahiye
 
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