• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller खजाने की तलाश (completed)

aamirhydkhan

Active Member
711
1,444
124
खजाने की तलाश Author : Zeashan
दोस्तों ये कहानी मेने एक दूसरी साईट पर पढ़ी मुझे पसंद आई इसीलिये मैं इसे आपके लिए लेकर आ रहा हूँ
इस कहानी पर मेरा कोई भी मौलिक अधिकार नहीं है

INDEX
Update 1update 2update 3update 4update 5
update 6update 7update 8update 9update 10
Update 11update 12update 13update 14update 15
update 16update 17update 18update 19update 20


Update 21update 2 2update 23update 24update 25
update 26

 
Last edited:

aamirhydkhan

Active Member
711
1,444
124
खजाने की तलाश

Update 24


वे लोग चीन्तिलाल और चोटीराज को लेकर इमारत के अन्दर बड़े से हाल में पहुंचे. बॉस उन्हें हाल में छोड़कर एक कमरे में पहुँचा. वहां कोने में रखे ट्रांसमीटर को ऑन किया और बोलने लगा, "डॉक्टर कोमोडो, तुम्हें अपने प्रयोग के लिए जैसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी, मैंने खोज निकाले हैं. अर्थात वे पागल भी हैं और शक्तिशाली भी."

"ठीक है. उन्हें मेरे पास भेज दो." डॉक्टर ने कहा.

"किंतु आप प्रयोग क्या कर रहे हैं मि० कोमोडो " बॉस ने पूछा.

"मैं उन व्यक्तियों को एक मशीन द्वारा कंट्रोल करने की सोच रहा हूँ. मैं उनके मस्तिष्क में एक ऑपरेशन करके उनका संपर्क उस मशीन से कर दूँगा. इस प्रकार वे वही सब करेंगे जो हम चाहेंगे. मैंने इस कार्य के लिए पागल इसलिए चुने क्योंकि उनका मस्तिष्क बहुत अधिक अस्त व्यस्त होता है. और उन्हें आसानी से कंट्रोल में किया जा सकता है." डॉक्टर ने बताया.

"विचार अच्छा है डॉक्टर. मैं उन पागलों को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ." बॉस ने कहा और ट्रांसमीटर बंद करके वापस हाल में आ गया. जहाँ चीन्तिलाल और चोटीराज फलों पर हाथ साफ़ कर रहे थे. तभी वहां रखे फोन की घंटी बज उठी. बॉस ने फोन उठाया और कुछ देर उसको सुनता रहा. रिसीवर रखने के बाद बोला, "यह फोन हमारे प्रतिद्वंदी ब्लू क्रॉस का था. वह दो व्यक्तियों को हमारे पास हेरोइन देकर भेज रहा है. तुम लोग बाहर जाओ और उसे रिसीव कर लो."

"किंतु बॉस, उन्हें अन्दर बुलाकर भी तो उनसे हेरोइन ली जा सकती है." एक साथी ने कहा.

"इसमें खतरा है मूर्ख. यह मत भूलो कि वे हमें सदेव हानि पहुँचने की सोच में रहते हैं. उन डिब्बों में हेरोइन की बजाय बम भी हो सकते हैं. अतः बाहर ही उन्हें उनसे लेकर बम प्रूफ़ थैले में डाल देना और तब अन्दर ले आना." बॉस बोला.

"ओ.के.बॉस." तीन चार व्यक्ति बाहर निकल गए.

"जब ये लोग खा चुकें तो इन्हें डॉक्टर कोमोडो के पास पहुँचा देना."हाल में शेष बचे व्यक्तियों से बॉस ने कहा और उन्होंने सर हिला दिया.

बॉस फ़िर अपने कमरे में पहुँच गया. फ़िर जब वह दुबारा बाहर निकला तो वे लोग अभी तक खा रहे थे.

"इनकी खुराक तो बहुत अधिक है. अब तक ये लोग तीस केले, बीस सेब और चालीस अमरुद चट कर चुके हैं." उन्हें भोजन करा रहा व्यक्ति बोला.

"माई गाँड, ये लोग मनुष्य है या जिन. इनमें ऐसी शक्ति ऐसे ही नहीं है....." बॉस की बात अधूरी रह गई क्योंकि उसके आदमी मारभट और सियाकरण को लेकर अन्दर आ रहे थे.

"अरे तुम लोग कहाँ चले गए थे." चीन्तिलाल और चोटीराज ने उन्हें देखते ही एक चीख मारी और दौड़कर उनसे लिपट गए.

"हम लोग तुम्हें ढूंढ ढूंढकर परेशान हो गए. वह यातिकम तो हमें धक्का देकर भाग गई थी." चीन्तिलाल ने कहा.

"हमने भी पीछे मुड़कर देखा तो तुम लोग गायब थे और यातिकम अपने आप चल रही थी." मारभट ने बताया. उधर बॉस इत्यादि उन लोगों को आश्चर्य से देख रहे थे.

"ये लोग तो इस प्रकार आपस में बातें कर रहे हैं मानो एक दूसरे को पहले से जानते हैं." बॉस ने कहा.
तभी वहां दो व्यक्ति दाखिल हुए और बॉस से बोले, "बॉस, उन डिब्बों में वास्तव में बम थे. हमने उन्हें बेकार कर दिया."

"ओह! तो मेरा शक सही था. इन लोगों को पकड़ लो." बॉस ने कहा फ़िर मारभट इत्यादि की ओर कई बंदूकें तन गईं.

"तो तुम लोग क्या लेकर आए हो?" बॉस ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया जो अब बाकी दोनों प्राचीन युगवासियों के साथ कुर्सियों पर बैठ गए थे.

"मुझे एक मनुष्य ने दो डिब्बे दिए थे और कहा था कि यहाँ पहुंचाना है. वही हम लेकर आये थे." मारभट ने उत्तर दिया.

"तुम लोग वहां कब से काम कर रहे हो?" बॉस ने फ़िर पूछा.

"उस मनुष्य से हम आज ही मिले हैं."

'ओह! इसका मतलब हुआ कि ये लोग निर्दोष हो सकते हैं. शायद इन्हें भी फंसाया गया है.' बॉस ने अपने मन में कहा. फ़िर वह बोला, "अगर तुम लोग अपने बारे में सही सही जानकारी दे दो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा. तुम लोग कौन हो और इन दोनों को कैसे जानते हो?"

इसके जवाब में सियाकरण अपनी पूरी कहानी सुनाने लगा कि किस प्रकार महर्षि प्रयोगाचार्य के एक प्रयोग द्वारा वह इस युग में पहुँचा और उसके बाद उसके साथ साथ क्या घटित हुआ. जब उसने अपनी कहानी समाप्त की तो बॉस इत्यादि कुछ देर बोलना ही भूल गए. फ़िर बॉस ने कहा, "हमें तुम्हारी कहानी पर तब यकीन आयेगा जब तुम हमें वह ताबूत दिखा दोगे जिसमें तुम लोग सोये थे. और तब तक तुम हमारी कैद में रहोगे."

उसके बाद बॉस फ़िर अपने कमरे में चला गया और ट्रांसमीटर पर डाँ0 कोमोडो को प्राचीन युगवासियों की कहानी बताने लगा.

"अगर उनकी कहानी सत्य है तो यह इस युग का आठवां आश्चर्य होगा. वैसे मुझे विश्वास है की अपने को बचाने के लिए उन्होंने झूठी कहानी गढ़ी है. खैर तुम इस बारे में पूरी छानबीन करो. वह ताबूत मेरे लिए काफी आकर्षण रखते हैं और मैं वह स्थान देखना चाहता हूँ की क्या वास्तव में उस समय महर्षि प्रयोगाचार्य जैसे अद्भुत वैज्ञानिक होते थे?"

"ओ.के. डॉक्टर. मैं उनके बारे में पूरी छानबीन करवा रहा हूँ."

फ़िर जल्दी ही बॉस को पता लग गया कि प्राचीन युगवासी मिकिर पहाडियों वाले इलाके से आये थे. अतः वहां चलने की तय्यारी शुरू हो गई. वहां जाने के लिए बनी टीम में बॉस, डाँ० कोमोडो और चारों प्राचीन युगवासियों के अतिरिक्त तीन व्यक्ति और थे. इस प्रकार कुल संख्या नौ थी. ये लोग हेलीकॉप्टर द्वारा वहां पहुंचे. फ़िर उस पड़ी की खोज शुरू हो गई और ये खोज पूरी तरह प्राचीन युगवासियों की स्मृति पर निर्भर थी क्योंकि किसी को उस स्थान का सही पता नहीं था.

वे लोग काफी देर तक जंगल में भटकते रहे किंतु पहाडियों में जाने वाला रास्ता नहीं मिला.

"लगता है ये लोग रास्ता भूल गए हैं." बॉस ने अपने साथ चल रहे डाँ० कोमोडो से कहा.

"मुझे भी यही लगता है. हम लोगों को चलते हुए तीन घंटे बीत चुके हैं. किंतु अभी तक हमें पहाडियों के अन्दर जाने का रास्ता नहीं मिला."

"यदि कुछ देर और रास्ता नहीं मिला तो हम लोग पडाव डाल देंगे. क्योंकि शाम का अँधेरा फैलने लगा है. और इस अंधेरे में हमें और रास्ता नहीं मिलेगा."

मारभट और सियाकरण सबसे आगे चल रहे थे. उनके पीछे चोटीराज और चीन्तिलाल थे. और उनके पीछे बाकी लोग थे.

कहानी जारी रहेगी

My Stories Running on this Forum
1. Letters from a Friend in Paris-classic story
2. Hindi- मजे - लूट लो जितने मिले
3. Fanny Hill: Memoirs of a Woman of Pleasure
4. खजाने की तलाश


My Completed Stories ..
चौदहवे दिन मस्त पंजाबन को चोद कर औलाद दी
सहेली का हलाला अपने शौहर से करवाया

हलाला के बाद
 

ashish_1982_in

Well-Known Member
5,573
18,877
188
खजाने की तलाश

Update 24


वे लोग चीन्तिलाल और चोटीराज को लेकर इमारत के अन्दर बड़े से हाल में पहुंचे. बॉस उन्हें हाल में छोड़कर एक कमरे में पहुँचा. वहां कोने में रखे ट्रांसमीटर को ऑन किया और बोलने लगा, "डॉक्टर कोमोडो, तुम्हें अपने प्रयोग के लिए जैसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी, मैंने खोज निकाले हैं. अर्थात वे पागल भी हैं और शक्तिशाली भी."

"ठीक है. उन्हें मेरे पास भेज दो." डॉक्टर ने कहा.

"किंतु आप प्रयोग क्या कर रहे हैं मि० कोमोडो " बॉस ने पूछा.

"मैं उन व्यक्तियों को एक मशीन द्वारा कंट्रोल करने की सोच रहा हूँ. मैं उनके मस्तिष्क में एक ऑपरेशन करके उनका संपर्क उस मशीन से कर दूँगा. इस प्रकार वे वही सब करेंगे जो हम चाहेंगे. मैंने इस कार्य के लिए पागल इसलिए चुने क्योंकि उनका मस्तिष्क बहुत अधिक अस्त व्यस्त होता है. और उन्हें आसानी से कंट्रोल में किया जा सकता है." डॉक्टर ने बताया.

"विचार अच्छा है डॉक्टर. मैं उन पागलों को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ." बॉस ने कहा और ट्रांसमीटर बंद करके वापस हाल में आ गया. जहाँ चीन्तिलाल और चोटीराज फलों पर हाथ साफ़ कर रहे थे. तभी वहां रखे फोन की घंटी बज उठी. बॉस ने फोन उठाया और कुछ देर उसको सुनता रहा. रिसीवर रखने के बाद बोला, "यह फोन हमारे प्रतिद्वंदी ब्लू क्रॉस का था. वह दो व्यक्तियों को हमारे पास हेरोइन देकर भेज रहा है. तुम लोग बाहर जाओ और उसे रिसीव कर लो."

"किंतु बॉस, उन्हें अन्दर बुलाकर भी तो उनसे हेरोइन ली जा सकती है." एक साथी ने कहा.

"इसमें खतरा है मूर्ख. यह मत भूलो कि वे हमें सदेव हानि पहुँचने की सोच में रहते हैं. उन डिब्बों में हेरोइन की बजाय बम भी हो सकते हैं. अतः बाहर ही उन्हें उनसे लेकर बम प्रूफ़ थैले में डाल देना और तब अन्दर ले आना." बॉस बोला.

"ओ.के.बॉस." तीन चार व्यक्ति बाहर निकल गए.

"जब ये लोग खा चुकें तो इन्हें डॉक्टर कोमोडो के पास पहुँचा देना."हाल में शेष बचे व्यक्तियों से बॉस ने कहा और उन्होंने सर हिला दिया.

बॉस फ़िर अपने कमरे में पहुँच गया. फ़िर जब वह दुबारा बाहर निकला तो वे लोग अभी तक खा रहे थे.

"इनकी खुराक तो बहुत अधिक है. अब तक ये लोग तीस केले, बीस सेब और चालीस अमरुद चट कर चुके हैं." उन्हें भोजन करा रहा व्यक्ति बोला.

"माई गाँड, ये लोग मनुष्य है या जिन. इनमें ऐसी शक्ति ऐसे ही नहीं है....." बॉस की बात अधूरी रह गई क्योंकि उसके आदमी मारभट और सियाकरण को लेकर अन्दर आ रहे थे.

"अरे तुम लोग कहाँ चले गए थे." चीन्तिलाल और चोटीराज ने उन्हें देखते ही एक चीख मारी और दौड़कर उनसे लिपट गए.

"हम लोग तुम्हें ढूंढ ढूंढकर परेशान हो गए. वह यातिकम तो हमें धक्का देकर भाग गई थी." चीन्तिलाल ने कहा.

"हमने भी पीछे मुड़कर देखा तो तुम लोग गायब थे और यातिकम अपने आप चल रही थी." मारभट ने बताया. उधर बॉस इत्यादि उन लोगों को आश्चर्य से देख रहे थे.

"ये लोग तो इस प्रकार आपस में बातें कर रहे हैं मानो एक दूसरे को पहले से जानते हैं." बॉस ने कहा.
तभी वहां दो व्यक्ति दाखिल हुए और बॉस से बोले, "बॉस, उन डिब्बों में वास्तव में बम थे. हमने उन्हें बेकार कर दिया."

"ओह! तो मेरा शक सही था. इन लोगों को पकड़ लो." बॉस ने कहा फ़िर मारभट इत्यादि की ओर कई बंदूकें तन गईं.

"तो तुम लोग क्या लेकर आए हो?" बॉस ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया जो अब बाकी दोनों प्राचीन युगवासियों के साथ कुर्सियों पर बैठ गए थे.

"मुझे एक मनुष्य ने दो डिब्बे दिए थे और कहा था कि यहाँ पहुंचाना है. वही हम लेकर आये थे." मारभट ने उत्तर दिया.

"तुम लोग वहां कब से काम कर रहे हो?" बॉस ने फ़िर पूछा.

"उस मनुष्य से हम आज ही मिले हैं."

'ओह! इसका मतलब हुआ कि ये लोग निर्दोष हो सकते हैं. शायद इन्हें भी फंसाया गया है.' बॉस ने अपने मन में कहा. फ़िर वह बोला, "अगर तुम लोग अपने बारे में सही सही जानकारी दे दो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा. तुम लोग कौन हो और इन दोनों को कैसे जानते हो?"

इसके जवाब में सियाकरण अपनी पूरी कहानी सुनाने लगा कि किस प्रकार महर्षि प्रयोगाचार्य के एक प्रयोग द्वारा वह इस युग में पहुँचा और उसके बाद उसके साथ साथ क्या घटित हुआ. जब उसने अपनी कहानी समाप्त की तो बॉस इत्यादि कुछ देर बोलना ही भूल गए. फ़िर बॉस ने कहा, "हमें तुम्हारी कहानी पर तब यकीन आयेगा जब तुम हमें वह ताबूत दिखा दोगे जिसमें तुम लोग सोये थे. और तब तक तुम हमारी कैद में रहोगे."

उसके बाद बॉस फ़िर अपने कमरे में चला गया और ट्रांसमीटर पर डाँ0 कोमोडो को प्राचीन युगवासियों की कहानी बताने लगा.

"अगर उनकी कहानी सत्य है तो यह इस युग का आठवां आश्चर्य होगा. वैसे मुझे विश्वास है की अपने को बचाने के लिए उन्होंने झूठी कहानी गढ़ी है. खैर तुम इस बारे में पूरी छानबीन करो. वह ताबूत मेरे लिए काफी आकर्षण रखते हैं और मैं वह स्थान देखना चाहता हूँ की क्या वास्तव में उस समय महर्षि प्रयोगाचार्य जैसे अद्भुत वैज्ञानिक होते थे?"

"ओ.के. डॉक्टर. मैं उनके बारे में पूरी छानबीन करवा रहा हूँ."

फ़िर जल्दी ही बॉस को पता लग गया कि प्राचीन युगवासी मिकिर पहाडियों वाले इलाके से आये थे. अतः वहां चलने की तय्यारी शुरू हो गई. वहां जाने के लिए बनी टीम में बॉस, डाँ० कोमोडो और चारों प्राचीन युगवासियों के अतिरिक्त तीन व्यक्ति और थे. इस प्रकार कुल संख्या नौ थी. ये लोग हेलीकॉप्टर द्वारा वहां पहुंचे. फ़िर उस पड़ी की खोज शुरू हो गई और ये खोज पूरी तरह प्राचीन युगवासियों की स्मृति पर निर्भर थी क्योंकि किसी को उस स्थान का सही पता नहीं था.

वे लोग काफी देर तक जंगल में भटकते रहे किंतु पहाडियों में जाने वाला रास्ता नहीं मिला.

"लगता है ये लोग रास्ता भूल गए हैं." बॉस ने अपने साथ चल रहे डाँ० कोमोडो से कहा.

"मुझे भी यही लगता है. हम लोगों को चलते हुए तीन घंटे बीत चुके हैं. किंतु अभी तक हमें पहाडियों के अन्दर जाने का रास्ता नहीं मिला."

"यदि कुछ देर और रास्ता नहीं मिला तो हम लोग पडाव डाल देंगे. क्योंकि शाम का अँधेरा फैलने लगा है. और इस अंधेरे में हमें और रास्ता नहीं मिलेगा."

मारभट और सियाकरण सबसे आगे चल रहे थे. उनके पीछे चोटीराज और चीन्तिलाल थे. और उनके पीछे बाकी लोग थे.

कहानी जारी रहेगी

My Stories Running on this Forum
1. Letters from a Friend in Paris-classic story
2. Hindi- मजे - लूट लो जितने मिले
3. Fanny Hill: Memoirs of a Woman of Pleasure
4. खजाने की तलाश


My Completed Stories ..
चौदहवे दिन मस्त पंजाबन को चोद कर औलाद दी
सहेली का हलाला अपने शौहर से करवाया

हलाला के बाद
Very nice update bhai maza aa gya.... Ab Charo saathi phir mil gye... Ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 
  • Like
Reactions: mashish

aamirhydkhan

Active Member
711
1,444
124
खजाने की तलाश

Update 25


"तुम्हें पक्का विश्वास है कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं?" सियाकरण ने पूछा.

"मुझे तो यही लगता है. वैसे भी हम लोगों को हर हालत में वह पहाडी ढूँढनी होगी. वरना हम उनको यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि हम लोग इनके दुश्मनों के साथी नहीं हैं."

अब काफी अन्धकार फ़ैल गया था अतः ब्लैक क्रॉस के आदमियों ने टोर्चें जला ली थीं.

"वह सामने रौशनी कैसी हो रही है?" सियाकरण ने सामने देखते हुए कहा जहाँ पदों के झुंड के पीछे से अजीब प्रकार की दूधिया रौशनी की किरणें आ रही थीं.

"चलो चल कर देखते हैं." मारभट ने कहा और वे लोग आगे बढ़ने लगे. कोमोडो इत्यादि ने भी वह रौशनी देख ली थी. और उसका रहस्य पता लगाने के उत्सुक थे. उन्होंने पेड़ों का झुंड पार किया और उन्हें रौशनी का स्रोत दिख गया. यह रौशनी पहाडी में जमे हुए एक ऐसे पत्थर से निकल रही थी जो पूरी तरह गोल था. यह रौशनी इतनी तेज़ थी कि ऑंखें उसपर रूक नही रही थीं.

"जाकर देखो, वह पत्थर क्यों इतना चमक रहा है." बॉस ने अपने आदमियों को संबोधित किया. दो लोग आगे बढे. और फ़िर जैसे ही उन्होंने पत्थर को हाथ लगाया, रौशनी का एक तेज़ झमाका हुआ और साथ ही उनकी चीखें वायुमंडल में गूँज उठीं. उनके शरीर धडाधड जलने लगे थे. और फ़िर उन्हें राख बनने में कुछ ही सेकंड लगे. बॉस इत्यादि बौखलाकर उधर भागे फ़िर ठिठक कर रूक गए.

तभी वायुमंडल में एक आवाज़ गूंजी, "अब कोई इस पत्थर के पास आने का प्रयत्न न करे." फ़िर वह पत्थर किसी द्वार की तरह खिसकने लगा और कुछ ही देर में वहां एक सुरंग का मुंह दिखाई पड़ रहा था. वही आवाज़ फ़िर गूंजी, "सियाकरण, तुम अपने साथियों को लेकर यहाँ आ जाओ. तुम्हारे अलावा कोई और यहाँ आने की कोशिश मत करे."

"तुम कौन हो? और हमारे साथियों को क्यों मार दिया?" बॉस ने चिल्लाकर पूछा.

"मैं एक शक्ति हूँ. मैंने तुम्हारे आदमियों को नहीं मारा बल्कि वे स्वयें अपनी गलती से मरे हैं. और यदि तुममें से कोई ऐसी गलती करेगा तो उसका भी यही अंजाम होगा.......मारभट, तुम लोग खड़े क्यों हो? अन्दर आ जाओ." यह अजीब प्रकार की आवाज़ थी. मानो कोई मशीन घरघरा रही थी.

प्राचीन युगवासियों को वहां जाने में हिचकिचाहट हो रही थी. अतः जब उस आवाज़ ने दुबारा बुलाया तब वे आगे बढे. फ़िर वे सुरंग में प्रविष्ट हो गए. उनके अन्दर घुसते ही पत्थर का दरवाज़ा फ़िर बंद हो गया और साथ ही उससे उत्पन्न हो रहा प्रकाश भी गायब हो गया. और वहां अन्धकार छा गया. कोमोडो इत्यादि को फ़िर टॉर्च जला लेनी पड़ी. टॉर्च के प्रकाश में अब वह साधारण पत्थर प्रतीत हो रहा था.

"यह क्या रहस्य है? क्या हम लोग सपना देख रहे हैं?" बॉस ने विस्मय से कहा.

"नहीं. है तो यह वास्तविकता. किंतु वह जो भी शक्ति है, हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली है. अतः हमको इसका पता लगाने के लिए अपनी पूरी टीम लेकर आना पड़ेगा." कोमोडो ने कहा.

"हाँ फिलहाल तो वापस चलते हैं. क्योंकि हम लोग पाँच में केवल तीन रह गए हैं."

"ठीक है. वैसे भी अभी हमें ब्लू क्रॉस को सबक सिखाना है. क्योंकि उसने हम लोगों को धोखा दिया है." कोमोडो ने कहा. फ़िर वे लोग वापसी के लिए मुड़ गए, यह तये करके की वे कभी न कभी वापस अवश्य आयेंगे. उस अदृश्य शक्ति का पता लगाने के लिए.

जैसे ही सुरंग का दरवाज़ा बंद हुआ, अन्दर तीव्र प्रकाश फ़ैल गया. इस प्रकाश में उन्हें हर वास्तु स्पष्ट दिख रही थी. वे लोग आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में एक बड़े से कमरे में पहुँच गए.

"मुझे यह स्थान कुछ जाना पहचाना लग रहा है." सियाकरण ने कहा.

"किंतु यह वह जगह तो हरगिज़ नहीं है जहाँ हम लोग सैंकडों वर्षों से सोये पड़े थे." मारभट ने कहा.

अचानक वही आवाज़ दोबारा गूंजी, "सियाकरण, क्या तुम अनुमान नहीं लगा सके की यह कौन सा स्थान है? तुम अपने चारों तरफ़ गौर से देखो तो शायद याद आ जाए." वह आवाज़ इन्हीं की भाषा में बोल रही थी. सियाकरण इत्यादि ने अपने चारों तरफ़ देखना शुरू किया. यह कमरा किसी प्राचीन युग की प्रयोगशाला से मिलता जुलता था. इस कमरे में चारों और पत्थर के कुछ बक्से रखे थे और उन बक्सों में प्रयोगों के लिए उपकरण रखे थे. फ़िर सियाकरण को याद आ गया.

"ओह! यह तो महर्षि प्रयोगाचार्य की प्रयोगशाला है. जहाँ उन्होंने अनेक अद्भुत आविष्कार किए हैं. इसी प्रयोगशाला में मैंने उनके साथ बीस वर्षों में कार्य किया था."

"तुम्हारी स्मरण शक्ति काफी अच्छी है सियाकरण. यह महर्षि की प्रयोगशाला ही है." उस आवाज़ ने कहा.

"किंतु तुम कौन हो? और कहाँ से बोल रहे हो?" सियाकरण ने आवाज़ के स्रोत की तलाश में इधर उधर दृष्टि दौडाई.

"मुझे देखने के लिए तुम बाएँ ओर के दरवाज़े में दाखिल हो जाओ. तुम मेरे पास पहुँच जाओगे."

"किंतु उधर तो ठोस दीवार है, कोई दरवाज़ा नहीं है." चोटीराज बोला.

"तुम उधर बढो. अभी दरवाज़ा बन जायेगा." उस आवाज़ ने कहा और ये लोग उधर बढ़ चले. फ़िर जैसे ही वे लोग दीवार के पास पहुंचे, उसका एक भाग चमकने लगा. और फ़िर वह एक ओर खिसक गया. ये लोग उसमें प्रविष्ट हो गए. यह एक और कमरा था जो पहले वाले से कुछ छोटा था. इस कमरे के बींचोबीच किसी धातु की एक मूर्ति खड़ी थी. उस मूर्ति के पैरों के पास एक ताबूत रखा था.

"महर्षि प्रयोगाचार्य!" मूर्ति को देखते ही सियाकरण के मुंह से निकला.

"हाँ. यह मूर्ति तो महर्षि प्रयोगाचार्य की है." मारभट ने कहा. मूर्ति आदमकद थी. अर्थात उन्हीं लोगों की तरह सात फुटी.

"किंतु वह आवाज़ किसकी है जो हमें सुनाई दे रही है?" चोटीराज ने पूछा. इतने में वही आवाज़ दुबारा गूंजी, "क्या अब भी तुम लोग आवाज़ के स्रोत के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाये?"

उन्होंने आश्चर्य से देखा. वह आवाज़ उसी मूर्ति से निकल रही थी. हालाँकि उसके होंठ नहीं हिल रहे थे. किंतु आवाज़ इस प्रकार आ रही थी मानो अन्दर कोई स्पीकर लगा है.

"तो क्या महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर खड़े हैं? किंतु यह कैसे हो सकता है? ओर फ़िर यह आवाज़ महर्षि की है भी नहीं." सियाकरण के चेहरे पर अनेक प्रश्न अंकित थे.

"महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर नहीं खड़े हैं बल्कि यह मूर्ति ही महर्षि प्रयोगाचार्य है." वही आवाज़ फ़िर बोली जो मूर्ति से आ रही थी.

"क्या? यह कैसे हो सकता है. भला यह बेजान मूर्ति महर्षि प्रयोगाचार्य कैसे हो सकती है." चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.

"यह तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम्हें पूरी कहानी नहीं पता. वह कहानी जो तुम लोगों के ताबूतों में सोने के बाद शुरू होती है. तुम लोग आराम से बैठ जाओ और चाहो तो भूख मिटाने वाली गोलियां ले लो. क्योंकि उनका यहाँ काफी भण्डार है. ये गोलियां कोने में रखे डिब्बे के अन्दर हैं.

मारभट इत्यादि ने गोलियां ले लीं और आकर बैठ गए. वे लोग महर्षि की कहानी सुनने के लिए पूरी तरह उत्सुक थे. मूर्ति ने कहना शुरू किया.

कहानी जारी रहेगी

My Stories Running on this Forum
1. Letters from a Friend in Paris-classic story
2. Hindi- मजे - लूट लो जितने मिले
3. Fanny Hill: Memoirs of a Woman of Pleasure
4. खजाने की तलाश


My Completed Stories ..
चौदहवे दिन मस्त पंजाबन को चोद कर औलाद दी
सहेली का हलाला अपने शौहर से करवाया

हलाला के बाद
 

sunoanuj

Well-Known Member
2,306
6,432
159
Bahut hee badhiya kahani hai … ab ye naya suspense aa gaya …
 
  • Like
Reactions: ashish_1982_in

ashish_1982_in

Well-Known Member
5,573
18,877
188
खजाने की तलाश

Update 25


"तुम्हें पक्का विश्वास है कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं?" सियाकरण ने पूछा.

"मुझे तो यही लगता है. वैसे भी हम लोगों को हर हालत में वह पहाडी ढूँढनी होगी. वरना हम उनको यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि हम लोग इनके दुश्मनों के साथी नहीं हैं."

अब काफी अन्धकार फ़ैल गया था अतः ब्लैक क्रॉस के आदमियों ने टोर्चें जला ली थीं.

"वह सामने रौशनी कैसी हो रही है?" सियाकरण ने सामने देखते हुए कहा जहाँ पदों के झुंड के पीछे से अजीब प्रकार की दूधिया रौशनी की किरणें आ रही थीं.

"चलो चल कर देखते हैं." मारभट ने कहा और वे लोग आगे बढ़ने लगे. कोमोडो इत्यादि ने भी वह रौशनी देख ली थी. और उसका रहस्य पता लगाने के उत्सुक थे. उन्होंने पेड़ों का झुंड पार किया और उन्हें रौशनी का स्रोत दिख गया. यह रौशनी पहाडी में जमे हुए एक ऐसे पत्थर से निकल रही थी जो पूरी तरह गोल था. यह रौशनी इतनी तेज़ थी कि ऑंखें उसपर रूक नही रही थीं.

"जाकर देखो, वह पत्थर क्यों इतना चमक रहा है." बॉस ने अपने आदमियों को संबोधित किया. दो लोग आगे बढे. और फ़िर जैसे ही उन्होंने पत्थर को हाथ लगाया, रौशनी का एक तेज़ झमाका हुआ और साथ ही उनकी चीखें वायुमंडल में गूँज उठीं. उनके शरीर धडाधड जलने लगे थे. और फ़िर उन्हें राख बनने में कुछ ही सेकंड लगे. बॉस इत्यादि बौखलाकर उधर भागे फ़िर ठिठक कर रूक गए.

तभी वायुमंडल में एक आवाज़ गूंजी, "अब कोई इस पत्थर के पास आने का प्रयत्न न करे." फ़िर वह पत्थर किसी द्वार की तरह खिसकने लगा और कुछ ही देर में वहां एक सुरंग का मुंह दिखाई पड़ रहा था. वही आवाज़ फ़िर गूंजी, "सियाकरण, तुम अपने साथियों को लेकर यहाँ आ जाओ. तुम्हारे अलावा कोई और यहाँ आने की कोशिश मत करे."

"तुम कौन हो? और हमारे साथियों को क्यों मार दिया?" बॉस ने चिल्लाकर पूछा.

"मैं एक शक्ति हूँ. मैंने तुम्हारे आदमियों को नहीं मारा बल्कि वे स्वयें अपनी गलती से मरे हैं. और यदि तुममें से कोई ऐसी गलती करेगा तो उसका भी यही अंजाम होगा.......मारभट, तुम लोग खड़े क्यों हो? अन्दर आ जाओ." यह अजीब प्रकार की आवाज़ थी. मानो कोई मशीन घरघरा रही थी.

प्राचीन युगवासियों को वहां जाने में हिचकिचाहट हो रही थी. अतः जब उस आवाज़ ने दुबारा बुलाया तब वे आगे बढे. फ़िर वे सुरंग में प्रविष्ट हो गए. उनके अन्दर घुसते ही पत्थर का दरवाज़ा फ़िर बंद हो गया और साथ ही उससे उत्पन्न हो रहा प्रकाश भी गायब हो गया. और वहां अन्धकार छा गया. कोमोडो इत्यादि को फ़िर टॉर्च जला लेनी पड़ी. टॉर्च के प्रकाश में अब वह साधारण पत्थर प्रतीत हो रहा था.

"यह क्या रहस्य है? क्या हम लोग सपना देख रहे हैं?" बॉस ने विस्मय से कहा.

"नहीं. है तो यह वास्तविकता. किंतु वह जो भी शक्ति है, हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली है. अतः हमको इसका पता लगाने के लिए अपनी पूरी टीम लेकर आना पड़ेगा." कोमोडो ने कहा.

"हाँ फिलहाल तो वापस चलते हैं. क्योंकि हम लोग पाँच में केवल तीन रह गए हैं."

"ठीक है. वैसे भी अभी हमें ब्लू क्रॉस को सबक सिखाना है. क्योंकि उसने हम लोगों को धोखा दिया है." कोमोडो ने कहा. फ़िर वे लोग वापसी के लिए मुड़ गए, यह तये करके की वे कभी न कभी वापस अवश्य आयेंगे. उस अदृश्य शक्ति का पता लगाने के लिए.

जैसे ही सुरंग का दरवाज़ा बंद हुआ, अन्दर तीव्र प्रकाश फ़ैल गया. इस प्रकाश में उन्हें हर वास्तु स्पष्ट दिख रही थी. वे लोग आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में एक बड़े से कमरे में पहुँच गए.

"मुझे यह स्थान कुछ जाना पहचाना लग रहा है." सियाकरण ने कहा.

"किंतु यह वह जगह तो हरगिज़ नहीं है जहाँ हम लोग सैंकडों वर्षों से सोये पड़े थे." मारभट ने कहा.

अचानक वही आवाज़ दोबारा गूंजी, "सियाकरण, क्या तुम अनुमान नहीं लगा सके की यह कौन सा स्थान है? तुम अपने चारों तरफ़ गौर से देखो तो शायद याद आ जाए." वह आवाज़ इन्हीं की भाषा में बोल रही थी. सियाकरण इत्यादि ने अपने चारों तरफ़ देखना शुरू किया. यह कमरा किसी प्राचीन युग की प्रयोगशाला से मिलता जुलता था. इस कमरे में चारों और पत्थर के कुछ बक्से रखे थे और उन बक्सों में प्रयोगों के लिए उपकरण रखे थे. फ़िर सियाकरण को याद आ गया.

"ओह! यह तो महर्षि प्रयोगाचार्य की प्रयोगशाला है. जहाँ उन्होंने अनेक अद्भुत आविष्कार किए हैं. इसी प्रयोगशाला में मैंने उनके साथ बीस वर्षों में कार्य किया था."

"तुम्हारी स्मरण शक्ति काफी अच्छी है सियाकरण. यह महर्षि की प्रयोगशाला ही है." उस आवाज़ ने कहा.

"किंतु तुम कौन हो? और कहाँ से बोल रहे हो?" सियाकरण ने आवाज़ के स्रोत की तलाश में इधर उधर दृष्टि दौडाई.

"मुझे देखने के लिए तुम बाएँ ओर के दरवाज़े में दाखिल हो जाओ. तुम मेरे पास पहुँच जाओगे."

"किंतु उधर तो ठोस दीवार है, कोई दरवाज़ा नहीं है." चोटीराज बोला.

"तुम उधर बढो. अभी दरवाज़ा बन जायेगा." उस आवाज़ ने कहा और ये लोग उधर बढ़ चले. फ़िर जैसे ही वे लोग दीवार के पास पहुंचे, उसका एक भाग चमकने लगा. और फ़िर वह एक ओर खिसक गया. ये लोग उसमें प्रविष्ट हो गए. यह एक और कमरा था जो पहले वाले से कुछ छोटा था. इस कमरे के बींचोबीच किसी धातु की एक मूर्ति खड़ी थी. उस मूर्ति के पैरों के पास एक ताबूत रखा था.

"महर्षि प्रयोगाचार्य!" मूर्ति को देखते ही सियाकरण के मुंह से निकला.

"हाँ. यह मूर्ति तो महर्षि प्रयोगाचार्य की है." मारभट ने कहा. मूर्ति आदमकद थी. अर्थात उन्हीं लोगों की तरह सात फुटी.

"किंतु वह आवाज़ किसकी है जो हमें सुनाई दे रही है?" चोटीराज ने पूछा. इतने में वही आवाज़ दुबारा गूंजी, "क्या अब भी तुम लोग आवाज़ के स्रोत के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाये?"

उन्होंने आश्चर्य से देखा. वह आवाज़ उसी मूर्ति से निकल रही थी. हालाँकि उसके होंठ नहीं हिल रहे थे. किंतु आवाज़ इस प्रकार आ रही थी मानो अन्दर कोई स्पीकर लगा है.

"तो क्या महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर खड़े हैं? किंतु यह कैसे हो सकता है? ओर फ़िर यह आवाज़ महर्षि की है भी नहीं." सियाकरण के चेहरे पर अनेक प्रश्न अंकित थे.

"महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर नहीं खड़े हैं बल्कि यह मूर्ति ही महर्षि प्रयोगाचार्य है." वही आवाज़ फ़िर बोली जो मूर्ति से आ रही थी.

"क्या? यह कैसे हो सकता है. भला यह बेजान मूर्ति महर्षि प्रयोगाचार्य कैसे हो सकती है." चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.

"यह तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम्हें पूरी कहानी नहीं पता. वह कहानी जो तुम लोगों के ताबूतों में सोने के बाद शुरू होती है. तुम लोग आराम से बैठ जाओ और चाहो तो भूख मिटाने वाली गोलियां ले लो. क्योंकि उनका यहाँ काफी भण्डार है. ये गोलियां कोने में रखे डिब्बे के अन्दर हैं.

मारभट इत्यादि ने गोलियां ले लीं और आकर बैठ गए. वे लोग महर्षि की कहानी सुनने के लिए पूरी तरह उत्सुक थे. मूर्ति ने कहना शुरू किया.

कहानी जारी रहेगी

My Stories Running on this Forum
1. Letters from a Friend in Paris-classic story
2. Hindi- मजे - लूट लो जितने मिले
3. Fanny Hill: Memoirs of a Woman of Pleasure
4. खजाने की तलाश


My Completed Stories ..
चौदहवे दिन मस्त पंजाबन को चोद कर औलाद दी
सहेली का हलाला अपने शौहर से करवाया

हलाला के बाद
lagta hai ki maharishi ne Koi computer type ka banaya hua hai jaise ki koi robot
 
  • Like
Reactions: mashish
340
678
108
Superb update.
 
  • Like
Reactions: ashish_1982_in

aamirhydkhan

Active Member
711
1,444
124
खजाने की तलाश

Update 26

"जब मैंने तुम लोगों को सदियों के बाद जागने के लिए ताबूतों में सुला दिया तो मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ की काश मैं भी तुम लोगों को उस युग में देख पाता जो तुम लोग हजारों वर्षों बाद देखने वाले थे. इसपर मैंने सोचना शुरू किया कि यह कैसे संभव हो सकता है. क्योंकि अपनी आयु बढ़ाना संभव नहीं था. कारण यह है कि मानव शरीर का आयु बढ़ने के साथ साथ क्षय होता रहता है. और यह क्षय अधिक आयु में इतना बढ़ जाता है कि उसे रोक पाना किसी शक्ति के बस का नहीं है. या फ़िर शरीर को इस प्रकार सुरक्षित कर लिया जाए जैसा कि तुम लोगों का किया था. किंतु मैं हजारों वर्ष पूरे होश - हवास के साथ बिताना चाहता था.

अब मैंने दूसरे पहलू से सोचना शुरू किया. मैंने सोचा कि पूरे शरीर की आयु बढ़ाने की बजाये यदि केवल अपना मस्तिष्क सुरक्षित कर लिया जाए तो उसको सतत रूप से किसी बाहरी स्रोत द्वारा ऊर्जा देकर उससे काफी समय तक काम लिया जा सकता है. फ़िर मैंने इस दिशा में काम शुरू कर दिया. मैंने एक विशेष प्रकार की धातु से यह मूर्ति बनाई जिसका क्षय नही होता था. इसकी संरचना हूबहू मानव शरीर जैसी थी. केवल इसमें मस्तिष्क नही था. अब समस्या थी इसमें अपना मस्तिष्क प्रत्यारोपित करने की और साथ ही ऐसा प्रबंध करना था कि यह मस्तिष्क कभी नष्ट न हो और साथ ही इसको अपना कार्य करने के लिए बराबर ऊर्जा मिलती रहे.

इस कार्य के लिए मैंने एक मशीन बनाई. यदि तुम इस मूर्ति के पीछे देखो तो एक बाक्स के आकार का यंत्र तुम्हें मूर्ति की पीठ से जुड़ा मिलेगा. इसका कार्य था मस्तिष्क को बराबर ऊर्जा पहुंचाते रहना और साथ ही ऐसा प्रबंध करना कि मस्तिष्क में हुई किसी भी टूट फ़ुट की तुंरत मरम्मत हो जाए.
यह प्रबंध करने के बाद अब समस्या थी कि मैं अपने मस्तिष्क को इस मूर्ति में कैसे प्रतिस्थापित करुँ. वास्तव में यही सबसे गहन समस्या थी. क्योंकि मैं स्वयें अपनी शल्य क्रिया करके अपने मस्तिष्क का प्रत्यारोपण इस मूर्ति में नहीं कर सकता था और किसी अन्य से यह कार्य नहीं करवा सकता था. क्योंकि किसी के पास इसकी योग्यता नहीं थी.

फ़िर मेरी इस समस्या का समाधान हो गया. क्योंकि महर्षि वीराचार्य ने मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया था. तुम लोग शायद महर्षि वीराचार्य को नहीं जानते होगे क्योंकि वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए चीन चले गए थे और वहां से तब लौटे जब तुम लोग ताबूतों में सो गए थे. उनके बराबर चिकित्सा में प्रवीण उस समय और कोई नहीं था. मैं भी नहीं.

फ़िर उसके बाद मेरे आपरेशन की तय्यारियां शुरू हो गईं. एक ऐसा ऑपरेशन जिसके असफल होने का मतलब था मेरी मौत. और साथ ही इसका सफल होना भी मेरी मौत ही था, क्योंकि उसके बाद मेरा शरीर मृत हो जाता. किंतु उसके बाद एक नया जीवन भी मुझे मिलने जा रहा था. मैं एक मज़बूत धातु का लगभग अमर शरीर पा जाता.

अगले एपिसोड में पढिये इस रोचक कहानी का ट्विस्टिंग अंत.
 

ashish_1982_in

Well-Known Member
5,573
18,877
188
खजाने की तलाश

Update 26

"जब मैंने तुम लोगों को सदियों के बाद जागने के लिए ताबूतों में सुला दिया तो मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ की काश मैं भी तुम लोगों को उस युग में देख पाता जो तुम लोग हजारों वर्षों बाद देखने वाले थे. इसपर मैंने सोचना शुरू किया कि यह कैसे संभव हो सकता है. क्योंकि अपनी आयु बढ़ाना संभव नहीं था. कारण यह है कि मानव शरीर का आयु बढ़ने के साथ साथ क्षय होता रहता है. और यह क्षय अधिक आयु में इतना बढ़ जाता है कि उसे रोक पाना किसी शक्ति के बस का नहीं है. या फ़िर शरीर को इस प्रकार सुरक्षित कर लिया जाए जैसा कि तुम लोगों का किया था. किंतु मैं हजारों वर्ष पूरे होश - हवास के साथ बिताना चाहता था.

अब मैंने दूसरे पहलू से सोचना शुरू किया. मैंने सोचा कि पूरे शरीर की आयु बढ़ाने की बजाये यदि केवल अपना मस्तिष्क सुरक्षित कर लिया जाए तो उसको सतत रूप से किसी बाहरी स्रोत द्वारा ऊर्जा देकर उससे काफी समय तक काम लिया जा सकता है. फ़िर मैंने इस दिशा में काम शुरू कर दिया. मैंने एक विशेष प्रकार की धातु से यह मूर्ति बनाई जिसका क्षय नही होता था. इसकी संरचना हूबहू मानव शरीर जैसी थी. केवल इसमें मस्तिष्क नही था. अब समस्या थी इसमें अपना मस्तिष्क प्रत्यारोपित करने की और साथ ही ऐसा प्रबंध करना था कि यह मस्तिष्क कभी नष्ट न हो और साथ ही इसको अपना कार्य करने के लिए बराबर ऊर्जा मिलती रहे.

इस कार्य के लिए मैंने एक मशीन बनाई. यदि तुम इस मूर्ति के पीछे देखो तो एक बाक्स के आकार का यंत्र तुम्हें मूर्ति की पीठ से जुड़ा मिलेगा. इसका कार्य था मस्तिष्क को बराबर ऊर्जा पहुंचाते रहना और साथ ही ऐसा प्रबंध करना कि मस्तिष्क में हुई किसी भी टूट फ़ुट की तुंरत मरम्मत हो जाए.
यह प्रबंध करने के बाद अब समस्या थी कि मैं अपने मस्तिष्क को इस मूर्ति में कैसे प्रतिस्थापित करुँ. वास्तव में यही सबसे गहन समस्या थी. क्योंकि मैं स्वयें अपनी शल्य क्रिया करके अपने मस्तिष्क का प्रत्यारोपण इस मूर्ति में नहीं कर सकता था और किसी अन्य से यह कार्य नहीं करवा सकता था. क्योंकि किसी के पास इसकी योग्यता नहीं थी.

फ़िर मेरी इस समस्या का समाधान हो गया. क्योंकि महर्षि वीराचार्य ने मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया था. तुम लोग शायद महर्षि वीराचार्य को नहीं जानते होगे क्योंकि वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए चीन चले गए थे और वहां से तब लौटे जब तुम लोग ताबूतों में सो गए थे. उनके बराबर चिकित्सा में प्रवीण उस समय और कोई नहीं था. मैं भी नहीं.

फ़िर उसके बाद मेरे आपरेशन की तय्यारियां शुरू हो गईं. एक ऐसा ऑपरेशन जिसके असफल होने का मतलब था मेरी मौत. और साथ ही इसका सफल होना भी मेरी मौत ही था, क्योंकि उसके बाद मेरा शरीर मृत हो जाता. किंतु उसके बाद एक नया जीवन भी मुझे मिलने जा रहा था. मैं एक मज़बूत धातु का लगभग अमर शरीर पा जाता.

अगले एपिसोड में पढिये इस रोचक कहानी का ट्विस्टिंग अंत.
Fantastic update bhai maza aa gya
 
  • Like
Reactions: mashish

aamirhydkhan

Active Member
711
1,444
124
खजाने की तलाश

Update 27


ऑपरेशन शुरू हो गया. महर्षि वीराचार्य ने मेरे मस्तिष्क को मेरे शरीर से निकालकर धातुई शरीर में स्थानांतरित कर दिया. उन्होंने उसका सम्बन्ध ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन से कर दिया था. किंतु यहीं पर गड़बड़ हो गई.इससे पहले की महर्षि मेरे शरीर का सम्बन्ध पूरी तरह मेरे धातुई शरीर से कर पाते, दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. किंतु उससे पहले वे ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन को चालू कर चुके थे. इस प्रकार अब मैं केवल देख और सोच सकता था. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों में किसी मूर्ति की तरह ही जड़ हो चुका था.

हमारे प्रयोग के बारे में जानने वालों ने यही समझा कि मैं और महर्षि वीराचार्य पूरी तरह मृत हो चुके हैं. अतः उन्होंने हम दोनों के शरीर भूमि में दफना दिए. और उसके बाद मेरी प्रयोगशाला को पत्थर से बंद कर दिया. इस प्रकार अब मैं प्रयोगशाला में अकेला बेजान मूर्ति की तरह खड़ा था. सोच सोचकर और एक ही दिशा में लगातार देखकर बोर होने के लिए. क्योंकि मैं अपनी पुतलियाँ भी नहीं हिला सकता था.

किंतु मानवीय मस्तिष्क पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली रचना है. वह कभी हार नहीं मानता. और हर कठिनाई के नए रास्ते निकाल ही लेता है. मेरे मस्तिष्क ने भी योग क्रिया द्वारा अपनी शक्ति बढानी शुरू कर दी. उसे मशीन द्वारा लगातार ऊर्जा मिल ही रही थी.

फ़िर लगभग सौ वर्षों में मेरे मस्तिष्क ने इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह अपने आसपास का कोई भी काम बिना हिले डुले केवल अपनी शक्ति किरणों से कर सकता था. और आसपास क्या हो रहा है, बिना वहां गए जान सकता था. फ़िर धीरे धीरे उसकी शक्ति और बढती गई और मेरा मस्तिष्क इतना विकसित हो गया कि शरीर की आवश्यकता ही समाप्त हो गई. मेरी शक्ति का एक नमूना तुम लोग देख चुके हो. जब मैंने उन दोनों व्यक्तियों को जला दिया था. इसके अलावा तुम जब अपने ताबूतों में लेटे थे तब भी मेरी नज़रों में थे और जब तुम्हारा संपर्क इस युग की दुनिया के साथ हुआ उस समय भी हर पल मेरी नज़रों में रहे. फ़िर मुझे उस साजिश का पता भी लग गया जो ब्लैक क्रॉस और ब्लू क्रॉस तुम लोगों के साथ करना चाहते थे. किंतु मैं उस समय कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरी शक्ति की पहुँच वहां तक नहीं थी. फ़िर संयोग से तुम लोग यहाँ पहुँच गए और मैंने तुम्हें अपने पास बुला लिया क्योंकि बाहरी दुनिया में अब तुम्हारे लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था. इस प्रकार तुम लोग इस समय मेरे मस्तिष्क के सामने खड़े हो." मूर्ति से आ रही आवाज़ ने अपनी बात समाप्त की.
-------------

सियाकरण इत्यादि आश्चर्य से महर्षि प्रयोगाचार्य की कहानी सुन रहे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की ऐसा भी संभव है. किंतु वे महर्षि की महानता से भी पूरी तरह अवगत थे अतः उन्होंने विश्वास कर लिया कि ये सारी बातें सत्य हैं.

"अब आपका क्या विचार है महर्षि?" सियाकरण ने पुछा.

"मैंने यह देखा कि तुम लोगों को बाहरी दुनिया में काफ़ी कठिनाई हुई. और इसका कारण यह था कि तुम लोगों के लिए वह दुनिया अपरिचित थी. न तो तुम लोग उसकी भाषा जानते थे और न ही उनके प्रयोग की वस्तुओं के बारे में जानते थे. अतः मैंने यह तये किया है की तुम्हें इस युग की सारी बातों से अवगत करा दूँ. वैसे भी मेरा जीवन अब बहुत कम रह गया है, क्योंकि मुझे ऊर्जा देने वाला स्रोत सूखता जा रहा है. इससे पहले की मेरा जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाए मैं अपने ज्ञान के भण्डार का कुछ अंश तुम लोगों को दे देना चाहता हूँ. फ़िर उसके बाद तुम लोग आराम से बाहरी दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करना."

"हमें आपके विचार जानकर बहुत प्रसन्नता हुई. हमें गर्व है की इस युग में भी हम आपके शिष्य होंगे." मारभट ने कहा. सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई.
फ़िर उनकी शिक्षा प्रारंभ हो गई जो महर्षि प्रयोगाचार्य का मस्तिष्क उन्हें दे रहा था. और इस शिक्षा के बाद उन्हें बाहरी दुनिया में घुलमिल जाना था.


--------समाप्त----------
कहानी जारी रहेगी

My Stories Running on this Forum
1. Letters from a Friend in Paris-classic story
2. Hindi- मजे - लूट लो जितने मिले
3. Fanny Hill: Memoirs of a Woman of Pleasure



My Completed Stories ..
चौदहवे दिन मस्त पंजाबन को चोद कर औलाद दी
सहेली का हलाला अपने शौहर से करवाया

हलाला के बाद
खजाने की तलाश Completed
 
Last edited:

ashish_1982_in

Well-Known Member
5,573
18,877
188
खजाने की तलाश

Update 27


ऑपरेशन शुरू हो गया. महर्षि वीराचार्य ने मेरे मस्तिष्क को मेरे शरीर से निकालकर धातुई शरीर में स्थानांतरित कर दिया. उन्होंने उसका सम्बन्ध ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन से कर दिया था. किंतु यहीं पर गड़बड़ हो गई.इससे पहले की महर्षि मेरे शरीर का सम्बन्ध पूरी तरह मेरे धातुई शरीर से कर पाते, दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. किंतु उससे पहले वे ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन को चालू कर चुके थे. इस प्रकार अब मैं केवल देख और सोच सकता था. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों में किसी मूर्ति की तरह ही जड़ हो चुका था.

हमारे प्रयोग के बारे में जानने वालों ने यही समझा कि मैं और महर्षि वीराचार्य पूरी तरह मृत हो चुके हैं. अतः उन्होंने हम दोनों के शरीर भूमि में दफना दिए. और उसके बाद मेरी प्रयोगशाला को पत्थर से बंद कर दिया. इस प्रकार अब मैं प्रयोगशाला में अकेला बेजान मूर्ति की तरह खड़ा था. सोच सोचकर और एक ही दिशा में लगातार देखकर बोर होने के लिए. क्योंकि मैं अपनी पुतलियाँ भी नहीं हिला सकता था.

किंतु मानवीय मस्तिष्क पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली रचना है. वह कभी हार नहीं मानता. और हर कठिनाई के नए रास्ते निकाल ही लेता है. मेरे मस्तिष्क ने भी योग क्रिया द्वारा अपनी शक्ति बढानी शुरू कर दी. उसे मशीन द्वारा लगातार ऊर्जा मिल ही रही थी.

फ़िर लगभग सौ वर्षों में मेरे मस्तिष्क ने इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह अपने आसपास का कोई भी काम बिना हिले डुले केवल अपनी शक्ति किरणों से कर सकता था. और आसपास क्या हो रहा है, बिना वहां गए जान सकता था. फ़िर धीरे धीरे उसकी शक्ति और बढती गई और मेरा मस्तिष्क इतना विकसित हो गया कि शरीर की आवश्यकता ही समाप्त हो गई. मेरी शक्ति का एक नमूना तुम लोग देख चुके हो. जब मैंने उन दोनों व्यक्तियों को जला दिया था. इसके अलावा तुम जब अपने ताबूतों में लेटे थे तब भी मेरी नज़रों में थे और जब तुम्हारा संपर्क इस युग की दुनिया के साथ हुआ उस समय भी हर पल मेरी नज़रों में रहे. फ़िर मुझे उस साजिश का पता भी लग गया जो ब्लैक क्रॉस और ब्लू क्रॉस तुम लोगों के साथ करना चाहते थे. किंतु मैं उस समय कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरी शक्ति की पहुँच वहां तक नहीं थी. फ़िर संयोग से तुम लोग यहाँ पहुँच गए और मैंने तुम्हें अपने पास बुला लिया क्योंकि बाहरी दुनिया में अब तुम्हारे लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था. इस प्रकार तुम लोग इस समय मेरे मस्तिष्क के सामने खड़े हो." मूर्ति से आ रही आवाज़ ने अपनी बात समाप्त की.
-------------

सियाकरण इत्यादि आश्चर्य से महर्षि प्रयोगाचार्य की कहानी सुन रहे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की ऐसा भी संभव है. किंतु वे महर्षि की महानता से भी पूरी तरह अवगत थे अतः उन्होंने विश्वास कर लिया कि ये सारी बातें सत्य हैं.

"अब आपका क्या विचार है महर्षि?" सियाकरण ने पुछा.

"मैंने यह देखा कि तुम लोगों को बाहरी दुनिया में काफ़ी कठिनाई हुई. और इसका कारण यह था कि तुम लोगों के लिए वह दुनिया अपरिचित थी. न तो तुम लोग उसकी भाषा जानते थे और न ही उनके प्रयोग की वस्तुओं के बारे में जानते थे. अतः मैंने यह तये किया है की तुम्हें इस युग की सारी बातों से अवगत करा दूँ. वैसे भी मेरा जीवन अब बहुत कम रह गया है, क्योंकि मुझे ऊर्जा देने वाला स्रोत सूखता जा रहा है. इससे पहले की मेरा जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाए मैं अपने ज्ञान के भण्डार का कुछ अंश तुम लोगों को दे देना चाहता हूँ. फ़िर उसके बाद तुम लोग आराम से बाहरी दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करना."

"हमें आपके विचार जानकर बहुत प्रसन्नता हुई. हमें गर्व है की इस युग में भी हम आपके शिष्य होंगे." मारभट ने कहा. सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई.
फ़िर उनकी शिक्षा प्रारंभ हो गई जो महर्षि प्रयोगाचार्य का मस्तिष्क उन्हें दे रहा था. और इस शिक्षा के बाद उन्हें बाहरी दुनिया में घुलमिल जाना था.


--------समाप्त----------
very nice update bhai maza aa gya Lekin story bhaut jaldi khatam Ho gyi
 
  • Like
Reactions: mashish
Top