कोमल जी
मनोविज्ञान पर आपकी पकड़ असाधारण हैं।
आपकी कहानी में भी ID, EGO और SUPER EGO स्तर निरंतर उपलब्ध रहते हैं।
पाठक अपनी पसंद या मनोस्थिति के अनुसार surfing करता रहता है।
मन का दर्द हो या काया का, दोनों में मानो एक होड़ सी लगी रहती है। कब कौनसा दर्द हावी होगा यह देश, काल, परिस्थिति पर निर्भर करता है।
आपकी सभी कहानियों में सभी के लिए पर्याप्त space होता है।
मुझे तो लगता है कि आपकी कहानियों का erotic पार्ट तो एक कलेवर मात्र है। असली बात तो मन के वे अंधेरे कोने हैं जहां बार - बार आप सहज ही पहुंचा देती हैं।
इतने सारगर्भित रिप्लाई के लिए हार्दिक आभार। आपके रिप्लाई का एक - एक शब्द सत्य है।
आप सचमुच धन्य है और आपके पाठक भी।
सादर