• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Game888

Hum hai rahi pyar ke
3,157
6,541
158
suspense ko ek pic per lekar jakar rok Diya bhai........akir kon hai safedposh
Vaibhav aur dada thakur itnaa chonky kyu, lagta hai koi bahut hi karibi insaan hai .
Important baat yeh hai ki talashi lete waqt shera ki saathi uljhan me kyu teh,
Lagta hai safedposh koi aurat hai aur dada thakur vaibhav iss thara ghabra Jana ho na ho mujhe lagta hai kahi menaka chichi toh nahi......
Besabri se intezaar rahega agle update ka bro.
And in another reason safedposh Jo Bandi Bana hai vo real safedposh na ho aur ki jagah kisi aise aurat ko safedposh banakar bheja ho Jo haveli ke behad karibi ho
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,909
15,046
159
Sabhi updates ek se badhkar ek he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Rupa ka pyar aur samparan aakhir kamyab ho hi gaya.............Vaibhav thik ho gaya aur apne jimmedariyo ko samjhane aur nibhane laga............

Vaibhav ne jis tarah se malti kaki ka ghar aur khet sahukar se chudwaya.......pehle wala vaibhav wapis aa gaya..............wahi dabang aur nidar vaibhav

Rupa aur Vaibhav ke beech ab prem ke beej ankurit ho gaye he.............vaibhav ne badi hi samajhdari rishta bhi nibhaya aur kahi bhi behka nahi..rupa aur apne parivaro ki izzat ka bhi bakhubi khyal rakha vaibhav ne...........

Safedposh................ab tak sabse rahasaymayi kirdar..............itni aasani se pakad me aa gaya ya fir yun kahun ki aa gayi, nakaq to hata diya vaibhav ne lekin chehra dekhkar buri tarah se chaunk gaya...................ho na ho safedposh koi najdiki hi he............

Agle update ki pratiksha rahegi Bhai
 

Napster

Well-Known Member
6,202
16,318
188
अध्याय - 130
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



दो हफ़्ते ऐसे ही गुज़र गए।
इन दो हफ़्तों में काफी कुछ बदलाव आ गया था। रूपा ने जिस तरह से मेरा ख़याल रखा था और जिस तरह से मेरा मनोबल बढ़ाया था उसके चलते मैं अब काफी बेहतर महसूस करने लगा था। अनुराधा की यादें मेरे दिल में थीं और जब भी उसकी याद आती थी तो मैं उदास सा हो जाता था लेकिन रूपा हर बार मुझे सम्हाल लेती थी। पिछले कुछ दिनों से हमारे बीच अच्छा ताल मेल हो गया था। अब मैं उससे किसी बात के लिए संकोच नहीं करता था। वो जब भी शरारतें करती तो मैं भी उसे छेड़ देता था। कहने का मतलब ये कि हम दोनों एक दूसरे से काफी सहज हो गए थे।

सरोज काकी भी अब पहले से काफी बेहतर थी। रूपा हर रोज़ उसके घर जाती थी और उसकी बेटी बन कर उसका ख़याल रखती थी। सरोज भी उसे अब खुल कर स्नेह करने लगी थी। उसका बेटा अनूप रूपा से काफी घुल मिल गया था। रूपा उसे अक्सर पढ़ाती थी और कहती थी कि अगले साल से वो विद्यालय में पढ़ेगा।

उधर मालती भी अपने बच्चों के साथ अपने घर में रहने लगी थी और अपने खेतों पर मेहनत करने लगी थी। इस काम में उसकी बड़ी और मझली बेटी भी उसकी मदद करतीं थी।

कहते हैं वक्त अगर किसी तरह का दुख देता है तो उस दुख को दूर करने का कोई न कोई इंतज़ाम भी करता है। देर से ही सही लेकिन इंसान अपने दुख और अपनी तकलीफ़ों से उबर कर जीवन में आगे बढ़ ही जाता है। सबकी तकलीफ़ें पूरी तरह भले ही दूर नहीं हुईं थी लेकिन काफी हद तक सामान्य हालत हो गई थी।

इधर मैं हर रोज़ अपने वचन को निभाते हुए हवेली में मां से मिलने जाता था जिससे मां भी खुश रहतीं थीं। भाभी को अपने मायके गए हुए पंद्रह दिन हो गए थे। मैं हर रोज़ मां से उनके बारे पूछता था कि वो कब आएंगी? जवाब में मां यही कहतीं कि उन्हें अपने माता पिता के पास कुछ समय रहने दो।

इधर पिता जी आज कल बहुत भाग दौड़ कर रहे थे। हर रोज़ मुंशी किशोरी लाल के साथ किसी न किसी काम से निकल जाते थे। सुरक्षा के लिए शेरा उनके साथ ही साए की तरह रहता था।

रूपचंद्र हर दिन अपनी बहन से मिलने दूध देने के बहाने आता था। अपनी बहन को मेरे साथ खुश देख वो भी खुश था। ज़ाहिर है वो सारी बातें अपने घर वालों को भी बताता था जिसके चलते उसके घर वाले भी खुश और बेफ़िक्र थे। उन्हें बस इसी बात की चिंता थी कि क्या होगा उस दिन जब मुझे, भाभी को और रूपा को कुल गुरु की भविष्यवाणी के बारे में पता चलेगा? रूपा के बारे में तो उन्हें यकीन था कि उसे कोई समस्या नहीं होगी किंतु इस बारे में मेरी और भाभी की क्या प्रतिक्रिया होगी यही सबसे बड़ी चिंता की बात थी सबके लिए।

अपने संबंधों को लोगों की नज़र में बेहतर दिखाने के लिए अक्सर दादा ठाकुर और गौरी शंकर एक साथ कहीं न कहीं जाते हुए लोगों को नज़र आते जिसके चलते लोग आपस में दबी ज़ुबान में कुछ न कुछ बोलते थे। हालाकि जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे लोगों की सोच और राय बदलती जा रही थी। इसी बीच पिता जी एक दिन गौरी शंकर के साथ उसकी परेशानी को दूर करने के लिए उस गांव में गए जहां पर गौरी शंकर के बड़े भाईयों की बेटियों का रिश्ता हुआ था। पिता जी के साथ रहने का ही ऐसा असर हुआ था कि उन लोगों ने फ़ौरन ही रिश्ते को फिर से बनाने के लिए हां कह दिया था। ये देख गौरी शंकर बड़ा खुश हुआ था। उसे पहले से ही इस बात का यकीन था कि दादा ठाकुर का अगर दखल हो गया तो उसकी ये सबसे बड़ी समस्या चुटकियों में दूर हो जाएगी और वही हुआ भी था। गौरी शंकर ने जब ये खुश ख़बरी अपने घर की औरतों को सुनाई तो पूरे घर में दर्द मिश्रित ख़ुशी का माहौल छा गया था।

ऐसे ही एक दिन जब मैं रूपा को सरोज के घर से वापस मकान की तरफ ला रहा था तो रूपा को थोड़ा उदास देखा। आम तौर पर वो जब भी मेरे साथ होती थी तो खुश ही रहती थी लेकिन आज उसके चेहरे पर उदासी थी। मैं जानता था कि पिछले बीस दिनों से वो मेरे साथ यहां रह रही थी और अपने घर नहीं गई थी। यूं तो हर रोज़ ही वो अपने भाई से मिलती थी लेकिन बाकी घर वालों से वो नहीं मिली थी। मैं समझ सकता था कि उसकी उदासी का कारण शायद यही था।

"क्या हुआ?" मैंने अंजान बनते हुए उससे पूछा____"तुम उदास नज़र आ रही हो आज? क्या कुछ हुआ है अथवा कोई ऐसी बात है जिसके चलते तुम उदास हो गई हो?"

"ऐसी कोई बता नहीं है।" उसने अनमने भाव से जवाब दिया____"अपने प्रियतम के साथ हूं तो भला मैं क्यों उदास होऊंगी?"

"झूठ मत बोलो।" मैंने कहा____"मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम किसी बात से उदास हो। तुम्हारे चेहरे पर आज वैसा नूर नहीं दिख रहा जैसे हर रोज़ दिखता है। बताओ ना क्या बात है? क्या घर वालों की बहुत याद आती है?"

"हां थोड़ी सी आती है।" रूपा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"ख़ैर जाने दो, देखो हम पहुंच गए अपने घर।"

जीप जैसे ही रुकी तो रूपा अपनी तरफ से उतर गई और फिर बोली____"मैं चाय बनाती हूं, तब तक तुम हाथ मुंह धो लो।"

इतना कह कर वो चली गई किंतु मैं अब सोच में पड़ गया था। आज उसके चेहरे की उदासी देख कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। अचानक ही ये सोच कर बुरा लगने लगा था कि मेरी वजह से वो कितना कुछ सह रही थी। पिछले बीस दिनों से वो मेरा एक बीवी की तरह ख़याल रख रही थी। अपने और मेरे कपड़े धोना, मेरी छोटी से छोटी बात का ख़याल रखना। मेरे हिस्से के काम भी वो ख़ुद ही कर रही थी। एक साथ रहने पर भी हमने अपनी मर्यादा भंग नहीं की थी और ना ही उसने कभी इसकी तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया था। हम दोनों ही नहीं चाहते थे कि हम अपने घर वालों के भरोसे को तोड़ कोई नाजायज़ क़दम उठाएं।

ख़ैर, एकदम से मुझे एहसास हुआ कि अंजाने में ही मेरे ऊपर उसके कितने एहसास हो गए हैं जिन्हें चुका पाना शायद ही कभी मुमकिन हो सकेगा।

जीप से उतर कर मैं गुसलखाने की तरफ चला गया। वहां से हाथ मुंह धो कर आया और अंदर ही चला गया। अंदर रूपा चूल्हे के पास बैठी चाय बना रही थी। मुझे आया देख उसके सूखे लबों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मैं कुर्सी को खिसका कर उसके पास ही बैठ गया। उसने चाय छान कर कप में डाली और मेरी तरफ बढ़ा दिया।

"कल सुबह अपना सामान समेट कर थैले में डाल लेना।" मैंने उसके हाथ से चाय का कप लेने के बाद कहा____"कल सुबह तुम्हें वापस अपने घर जाना है।"

"य...ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा मेरी बात सुन कर चौंकी____"क्या मुझसे कोई भूल हो गई है? क्या मेरे यहां रहने से तुम्हें तकलीफ़ होती है?

"ऐसी कोई बात नहीं है रूपा।" मैंने कहा____"बल्कि सच ये है कि अब मैं और ज़्यादा तुम्हें तकलीफ़ नहीं दे सकता। मेरी बेहतरी के लिए तुम पिछले बीस दिनों से अपना घर परिवार छोड़े मेरे साथ हो और मेरा हर तरह से ख़याल रख रही हो। इस लिए अब बहुत हुआ, मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। मेरा ख़याल रखने के लिए तुमने इतने दिनों से इतना कुछ सहा है और मैंने एक बार भी तुम्हारी तकलीफ़ों के बारे में नहीं सोचा। मुझे अब जा कर एहसास हो रहा है कि कितना स्वार्थी हूं मैं।"

"तुम ये कैसी बातें कर रहे हो वैभव?" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मैंने जो कुछ किया है वो मेरा फर्ज़ था, मेरा कर्तव्य था। तुम कोई ग़ैर नहीं हो, मेरे अपने हो। मेरे दिल के सरताज हो, मेरे सब कुछ हो। अपने महबूब के लिए मैंने जो भी किया है उससे मुझे अत्यंत खुशी मिली है और मैं चाहती हूं कि सारी ज़िंदगी मैं इसी तरह अपने दिलबर की सेवा करूं।"

"ठीक है, लेकिन मेरा भी तो कोई फर्ज़ होता है।" मैंने कहा____"तुम मुझसे प्रेम करती हो तो मेरे दिल में भी तो तुम्हारे प्रति वैसी ही भावनाएं हैं। मैं भी चाहता हूं कि जो लड़की मुझे इतना प्रेम करती है और मेरा इतना ख़याल रखती है उसकी ख़ुशी के लिए मैं भी कुछ करूं। उसे बहुत सारा प्यार करूं और उसे अपनी धड़कन बना लूं।"

"हां तो बना लो ना।" रूपा के चेहरे पर एकाएक ख़ुशी की चमक उभर आई____"मैंने कब मना किया है कि मुझे प्यार ना करो अथवा मुझे अपनी धड़कन न बनाओ? अरे! मैं तो कब से तरस रही हूं अपने दिलबर की आगोश में समा जाने के लिए।"

"आगोश में समाने का अभी वक्त नहीं आया है जानेमन।" मैंने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"जिस दिन आएगा उस दिन देखूंगा कि कितनी तड़प है तुम्हारे अंदर। फिलहाल तो मैं ये चाहता हूं कि तुम अपने घर जाओ और अपने परिवार के लोगों से मिलो।"

"हाय! मेरा महबूब कितना ज़ालिम है क्या करूं?" रूपा ने ठंडी आह सी भरी____"ख़ैर कोई बात नहीं सरकार। जब इतना इंतज़ार किया है तो थोड़ा समय और सही।"

"आज यहां पर तुम्हारी आख़िरी रात है।" मैंने कहा____"कल सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा।"

"तो क्या तुम यहीं रहोगे?" रूपा ने हैरानी से देखा मुझे____"क्या हवेली नहीं जाओगे तुम? देखो, अगर तुम ऐसा करने का सोच रखे हो तो फिर मैं भी अपने घर नहीं जाऊंगी। यहीं रहूंगी, तुम्हारे साथ।"

"अब ये क्या बात हुई?" मैंने कहा____"देखो, अब तुम्हें मेरे साथ यहां रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे प्रयासों से और तुम्हारे सच्चे स्नेह के चलते मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। इस लिए तुम्हें अब मेरे साथ रहने की ज़रूरत नहीं है। अब तुम्हारा अपने घर में ही रहना उचित होगा। वैसे भी मेरे खातिर तुमने और तुम्हारे घर वालों ने बहुत बड़ा क़दम उठाया था। ऐसा हर कोई नहीं कर सकता। मुझे ख़ुशी है कि तुमने और तुम्हारे घर वालों ने सच्चे दिल से मेरी बेहतरी के बारे में सोचा। अब मुझे भी ये सोचना चाहिए कि इस सबके चलते गांव समाज के लोग तुम्हारे और तुम्हारे घर वालों के बारे में कोई ग़लत बात न सोचें।"

"मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।" रूपा ने दृढ़ता से कहा____"और ना ही मेरे घर वालों को है। वैसे भी तुमने तो सुना ही होगा कि जब मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी? जिस दिन हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे और दोनों परिवारों के बीच एक अटूट रिश्ता जुड़ जाएगा तो गांव समाज के लोगों के मुंह अपने आप ही बंद हो जाएंगे।"

"बहुत खूब।" मैंने कहा____"मेरी होने वाली बीवी शादी से पहले ही अपने होने वाले पति से ज़ुबान लड़ाते हुए बहस किए जा रही है। धन्य हो आज की नारी।"

"चिंता मत करो पति देव।" रूपा ने मुस्कुराते हुए कहा____"शादी के बाद आपकी ये बीवी आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देगी।"

"क्या पता।" मैंने गहरी सांस ली____"जब शादी के पहले ये हाल है तो बाद में ऊपर वाला ही जाने क्या होगा। तुम्हें पता है मेरी चाची तो एक दिन मुझे चिढ़ा भी रहीं थी कि मैं अभी से जोरु का गुलाम बनने की कोशिश करने लगा हूं।"

"चाची जी से कहना कि उनकी होने वाली बहू उनके बेटे को अपना गुलाम नहीं बनाएगी।" रूपा ने कहा____"बल्कि वो अपने पति की दासी बन कर ही रहेगी।"

"ग़लत बात।" मैंने कहा____"पत्नी को दासी बना के रखना गिरे हुए लोगों की निम्न दर्जे की मानसिकता है। कम से कम ठाकुर वैभव सिंह की मानसिकता ऐसी गिरी हुई हर्गिज़ नहीं हो सकती। सच्चे दिल से प्रेम करने वाली को तो बस अपने हृदय में ही बसा के रखूंगा मैं।"

"फिर तो मैं यही समझूंगी कि जीवन सफल हो गया मेरा।" रूपा ने गदगद भाव से मुझे देखते हुए कहा____"मेरे दिलबर ने इतनी बड़ी बात कह दी। जी करता है अपने महबूब के होठों को चूम लूं।"

"घूम फिर कर तुम्हारी सुई वहीं आ कर अटक जाती है।" मैंने उसे घूर कर देखा____"बहुत बिगड़ गई हो तुम।"

"क्या करें जनाब?" रूपा ने शरारत से कहा____"तुम सुधरने की राह पर चल पड़े और हम बिगड़ने की राह पर। है ना कमाल की बात?"

"कमाल की बच्ची रुक अभी बताता हूं तुझे।" कहने के साथ ही मैं उसकी तरफ झपटा तो वो चाय का कप छोड़ अंदर कमरे की तरफ भाग चली। मैं भी उसके पीछे लपका।

रूपा मेरे कमरे में दाख़िल हो कर अभी दरवाज़े को बंद ही करने जा रही थी कि मैंने दरवाज़े पर अपने दोनों हाथ जमा दिए जिससे रूपा दरवाज़े को पूरी ताक़त लगाने के बावजूद भी बंद न कर सकी। उसकी हंसी और चीखें पूरे मकान में गूंजने लगीं थी। मैंने थोड़ी सी ताक़त लगा कर उसे पीछे धकेला और कमरे के अंदर दाख़िल हो गया। उधर रूपा ने जब देखा कि मैं अंदर आ गया हूं तो वो पलट कर पीछे की तरफ भागी किंतु ज़्यादा देर तक वो मुझसे भाग न सकी। जल्दी ही मैंने उसे पकड़ लिया। रूपा थोड़ी सी ही भाग दौड़ में बुरी तरह हांफने लगी थी। जैसे ही मैंने उसे पकड़ा तो एकाएक उसने खुद को मेरे हवाले कर दिया।

"अब दिखाऊं मैं अपना कमाल?" मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर ऊपर दीवार में सटाते हुए कहा तो दीवार में पीठ के बल चिपकी रूपा ने मेरी आंखों में देखते हुए बड़ी मोहब्बत से कहा____"हां दिखाओ ना।"

रूपा अपलक मुझे ही देखने लगी थी। उसकी सांसें भारी हो चलीं थी जिसके चलते उसके सीने के उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। उसके खूबसूरत चेहरे पर पसीने की बूंदें किसी शबनम की तरह झिलमिला रहीं थी। आज उसे इतने क़रीब से देख मैं खोने सा लगा लेकिन फिर जल्दी ही मैंने खुद को सम्हाला और उसको छोड़ कर उससे थोड़ा दूर हो गया।

"क्या हुआ?" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"डर गए क्या मुझसे?"

"डर नहीं गया हूं।" मैंने थोड़ा संजीदा हो कर कहा____"लेकिन ये सही नहीं है। हम दोनों को अपनी सीमाओं का भी ख़याल रहना चाहिए। हम दोनों के घर वालों ने यही विश्वास कर रखा होगा कि हम ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिसके चलते मर्यादा का उल्लंघन हो और समाज के लोग तरह तरह की बातें करने लगें।"

"हां मैं समझती हूं।" रूपा ने भी खुद को सम्हालते हुए गंभीर हो कर कहा____"और सच कहूं तो मेरा भी ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं तो बस तुम्हें छेड़ रही थी। अगर तुम्हें इस सबसे बुरा लगा हो तो माफ़ कर दो मुझे।"

"अरे! माफ़ी मत मांगो तुम।" मैंने कहा____"मुझे पता है कि तुम बस नोक झोंक ही कर रही थी। ख़ैर छोड़ो, आओ अब चलें। हम दोनों की चाय ठंडी हो गई होगी।"

"चलो मैं फिर से गर्म कर देती हूं।" कहने के साथ ही रूपा दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। मैं भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गया।

रात को खाना खाने के बाद हम दोनों कमरे में आ गए। रूपा अपना सामान इकट्ठा करने लगी और फिर उन्हें एक थैले में रखने लगी। उसके ज़ोर देने पर मैं भी हवेली जाने के लिए तैयार हो गया था। अपना सामान थैले में डालने के बाद वो मेरे कपड़े भी समेटने लगी। थोड़ी ही देर में सामान को एक जगह रखने के बाद वो नीचे ज़मीन में बिछे बिस्तर पर लेट गई। कुछ देर इधर उधर की बातें हुईं उसके बाद हम दोनों सोने की कोशिश करने लगे। रात देर से निदिया रानी ने आ कर हमें अपनी आगोश में लिया।

✮✮✮✮

सुबह क़रीब आठ बजे हम दोनों मकान से निकलने ही वाले थे कि रूपचंद्र डल्लू में दूध लिए आ गया। मुझे जीप में सामान रखते देख वो एकदम से चौंक पड़ा। उसके पूछने पर मैंने बताया कि मैं आज से हवेली में ही रहूंगा इस लिए वो भी अपनी बहन को ले कर घर जाए। पहले तो रूपचंद्र को लगा कि उसकी बहन और मेरे बीच कोई झगड़ा हो गया है जिसके चलते मैं ऐसा कह रहा हूं किंतु फिर उसे यकीन हो गया कि ऐसी कोई बात नहीं है। वो सबसे ज़्यादा ये जान कर खुश हुआ कि उसकी बहन की कोशिशें रंग लाईं जिसके चलते अब मैं बेहतर हो गया हूं और इतना ही नहीं ख़ुशी ख़ुशी हवेली भी लौट रहा हूं।

बहरहाल, कुछ ही देर में ज़रूरी सामान रख गया। रूपचंद्र मोटर साईकिल से आया था इस लिए सामान के साथ रूपा को मोटर साईकिल में बैठा कर ले जाना उसके लिए संभव नहीं था। अतः तय ये हुआ कि रूपा अपने सामान को ले कर मेरे साथ जीप में ही चलेगी।

मकान की चौकीदारी कर रहे मज़दूरों को मैंने कुछ ज़रूरी निर्देश दिए और फिर चल पड़ा वहां से। रूपचंद्र अपनी मोटर साईकिल से आगे आगे चला जा रहा था जबकि मैं और रूपा जीप में बैठे उसके पीछे थे। रूपा के चेहरे पर उदासी के भाव थे और वो जाने किन ख़यालों में खो गई थी?

"क्या हुआ?" मैंने उसकी तरफ एक नज़र डालने के बाद कहा____"अब क्यों उदास नज़र आ रही हो?"

"उदास न होऊं तो क्या करूं?" रूपा ने मेरी तरफ देखा____"इतने दिनों से तुम्हारे साथ रह रही थी तो बड़ा खुश थी लेकिन अब फिर से तुम मुझसे दूर हो जाओगे। इसके पहले तो किसी तरह तुम्हारे बिना रह ही लेती थी लेकिन अब अकेले नहीं रहा जाएगा मुझसे।"

"अच्छा तो ये सोच कर उदास हो?" मैंने हौले से मुस्कुरा कर कहा____"अरे! जिसके पास रूपचंद्र जैसा प्यार करने वाला भाई हो उसे किसी बात से उदास होने की क्या ज़रूरत है?"

"हां ये तो है।" रूपा ने उसी उदासी से कहा____"लेकिन इसमें मेरे भैया भी क्या कर सकेंगे?"

"अरे! कमाल करती हो तुम।" मैंने कहा____"क्या तुम इतना जल्दी ये भूल गई कि तुम्हारा भाई तुम्हारी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता है? याद करो कि उसी ने तुम्हें मुझसे मिलाने का इंतज़ाम किया था। मुझे यकीन है कि आगे भी वो तुम्हारी ख़ुशी के लिए ऐसा ही करेगा।"

"हां लेकिन मैं अपने भैया से ये नहीं कह सकूंगी कि मुझे तुम्हारी याद आती है और मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।।" रूपा ने कहा____"और लाज शर्म के चलते जब मैं ऐसा कह ही न सकूंगी तो वो भला कैसे कोई इंतज़ाम करेंगे?"

"तो क्या इसके पहले उसने तुम्हारे कहने पर मुझसे मिलवाने का इंतज़ाम किया था?" मैंने पूछा।

"न...नहीं तो।" रूपा ने झट से कहा____"मैंने तो उनसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा था।"

"फिर भी उसने तुम्हें मुझसे मिलवाया था ना।" मैंने कहा____"इसका मतलब यही हुआ कि उसे अपनी बहन की चाहत का और उसकी ख़ुशी का बखूबी ख़याल था इसी लिए उसने बिना तुम्हारे कुछ कहे ही ऐसा किया था। यकीन मानो वो आगे भी ऐसा ही करेगा और तुम्हें उससे कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

"हां शायद तुम सही कह रहे हो।" रूपा के चेहरे पर एकाएक ख़ुशी की चमक उभर आई____"मेरे भैया ज़रूर मेरी ख़ुशी के लिए फिर से तुमसे मिलाने का कोई इंतज़ाम कर देंगे। कितने अच्छे हैं ना मेरे भैया?"

"हां।" मैं उसकी आख़िरी बात पर मुस्कुराए बिना न रह सका____"काश! दुनिया की हर बहन के पास तुम्हारे भाई जैसा भाई हो जो अपनी बहन के लिए इतने महान काम करे।"

"अब तुम मेरे भैया पर व्यंग्य कर रहे हो।" रूपा ने मुझे घूरते हुए कहा____"ऐसा कैसे कर सकते हो तुम? तुम्हें अभी पता नहीं है कि मेरे भैया कितने अच्छे हैं।"

"अरे! मैं कहां कुछ कह रहा हूं तुम्हारे भाई को?" मैं उसकी बात से एकदम से चौंक पड़ा____"मैं भी तो वही कह रहा हूं कि तुम्हारा भाई बहुत अच्छा है।"

"अच्छा ये बताओ अब कब मिलोगे?" रूपा ने एकाएक बड़ी उत्सुकता से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"पहले की तरह मुझे तड़पाओगे तो नहीं ना?"

"एक काम करना तुम।" मैंने कहा____"अगर मैं तुमसे ना मिलूं अथवा अगर तुम्हें तड़पाऊं तो तुम सीधा हवेली आ जाना। वहां तो तुम मुझसे मिल ही लोगी।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो?" रूपा एकदम से आंखें फैला कर बोली____"न बाबा न, हवेली नहीं आऊंगी मैं। वहां सब लोग होंगे और मुझे इस तरह हवेली में आते देखेंगे तो सब क्या सोचेंगे मेरे बारे में? मैं तो शर्म से ही मर जाऊंगी।"

"अरे! क्या सोचेंगे वो...यही ना कि उनकी होने वाली बहू बिना ब्याह किए ही अपने ससुराल में पधार गई है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और ऐसा शायद इस लिए कि उनकी होने वाली बहू को अपने होने वाले पति से दूरी सहन नहीं हुई। इस लिए ब्याह होने से पहले ही ससुराल आ गई है।"

"हाय राम! कितने ख़राब हो तुम।" रूपा ने बुरी तरह लजाते हुए और झेंपते हुए कहा____"क्या तुम मुझे ऐसी वैसी समझते हो जो ऐसा कह रहे हो?"

"लो कर लो बात।" मैं उसकी दशा पर मन ही मन हंसते हुए बोला____"मैंने कब तुम्हें ऐसा वैसा समझा?"

"अब बातें न बनाओ तुम।" रूपा ने मुंह बनाते हुए कहा____"अच्छा मज़ाक मत करो और बताओ ना कब मिलोगे? मैं सच कह रही हूं घर में मुझसे अकेले न रहा जाएगा अब।"

"पर रहना तो पड़ेगा ना।" मैंने उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नहीं समझा इस लिए कहा____"हम दोनों को ही समाज के नियमों का पालन करना होगा वरना हम दोनों के ही खानदान पर समाज के लोग कीचड़ उछालने लगेंगे। क्या तुम्हें ये अच्छा लगेगा?"

"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" रूपा ने एकाएक गहरी सांस ली____"लेकिन पिछले बीस दिनों से तो हम दोनों साथ ही रहे हैं। अभी तक तो किसी ने कीचड़ नहीं उछाला हमारे खानदान पर?"

"हो सकता है कि लोगों को इस बारे में पता ही न चला हो।" मैंने कहा____"लेकिन ज़रूरी नहीं कि ऐसी बातें आगे भी लोगों को पता नहीं चलेंगी। तुमने भी सुना ही होगा कि इश्क़ मुश्क ज़्यादा दिनों तक दुनिया वालों से छुपे नहीं रहते।"

"हाय राम! अब क्या होगा?" रूपा मानों हताश हो उठी____"अगर ऐसा है तो फिर कैसे हमारी मुलाक़ात हो पाएगी? मैं सच कह रही हूं, मैं अब अपने कमरे में अकेले नहीं रह पाऊंगी। मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। आख़िर हमारे मिलने का कोई तो उपाय होगा।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने उसकी हताशा को देखते हुए कहा____"कोई न कोई उपाय सोचूंगा मैं और हां, तुम भी बेकार में खुद को दुखी मत रखना। तुम तो वैसे भी एक महान और बहादुर लड़की हो यार। जब इतने समय तक इतना कुछ सहा है तो थोड़ा समय और सह लेना। हालाकि अब तो दुखी होने जैसी बात भी नहीं है क्योंकि हमारा मिलना ब्याह के रूप में तय ही हो चुका है। इस लिए ख़ुशी मन से उस तय वक्त का इंतज़ार करो। बाकी उसके पहले एक दूसरे से मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लिया जाएगा।"

"ठीक है।" रूपा की हताशा दूर होती नज़र आई____"मैं सम्हाल लूंगी खुद को लेकिन तुम जल्दी ही मिलने का कोई रास्ता निकाल लेना।"

मैंने पलकें झपका कर हां कहा और सामने देखने लगा। जीप गांव में दाख़िल हो चुकी थी। चंद्रकांत का घर आ गया था और उसके बाद रूपा का ही घर था। अचानक रूपा को जैसे कुछ याद आया तो उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा।

"अरे! हां मैं तो भूल ही गई।" फिर उसने जल्दी से कहा____"आते समय मां (सरोज) से नहीं मिल पाई मैं। आज जब मैं उनके घर नहीं पहुंचूंगी तो वो ज़रूर परेशान हो जाएंगी मेरे लिए। मुझे ध्यान ही नहीं रहा था उनसे मिलने का और ये बताने का कि मैं घर जा रही हूं तो अब से उनसे नहीं मिल पाऊंगी।"

"चिंता मत करो।" मैंने कहा____"मैं दोपहर के बाद एक चक्कर लगा लूंगा उसके घर का और उसे बता दूंगा तुम्हारे बारे में। ख़ैर देखो तुम्हारा घर भी आ गया। तुम्हारा भाई घर के बाहर ही सड़क पर खड़ा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।"

कुछ ही पलों में जीप रूपचंद्र के सामने पहुंच कर रुकी। जीप के रुकते ही रूपा चुपचाप उतर गई। उधर रूपचंद्र जीप से रूपा का जो थोड़ा बहुत सामान था उसे निकालने लगा। रूपा ने एक नज़र अपने भाई की तरफ डाली और फिर जल्दी से मेरी तरफ देखा। चेहरे पर जबरन ख़ुशी के भाव लाने का प्रयास कर रही थी वो। उसकी आंखों में झिलमिलाते आंसू नज़र आए मुझे। ये देख मुझे भी अच्छा नहीं लगा। अगर रूपचंद्र न होता तो यकीनन अभी वो मुझसे कुछ कहती। फिर उसने आंखों के इशारों से मुझे समझाने का प्रयास किया कि मैं जल्दी ही उससे मिलने का कोई रास्ता निकाल लूंगा।

थोड़ी ही देर में जब रूपचंद्र जीप से उसका सामान निकाल चुका तो वो थैला लिए मेरे क़रीब आया। मैंने देखा उसके चेहरे पर खुशी तो थी किंतु झिझक के भाव भी थे, बोला____"मेरी बहन से अगर कोई भूल हुई हो तो उसे नादान और नासमझ समझ कर माफ़ कर देना वैभव।"

"ऐसी कोई बात नहीं है भाई।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"सच तो ये है कि भूल तो हमेशा मुझसे हुई है उसकी सच्ची भावनाओं को समझने में। ख़ैर मुझे खुशी है कि उसके जैसी नेकदिल लड़की को ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में लिखा है।"

मेरी बात सुन कर रूपचंद्र के चेहरे पर मौजूद ख़ुशी में इज़ाफा होता नज़र आया। फिर उसने अलविदा कहा और अपनी बहन को ले कर घर के अंदर की तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद मैंने भी जीप को हवेली की तरफ बढ़ा दिया।

रास्ते में मैं सोच रहा था कि जिस तरह मुझमें बदलाव आया था उसी तरह रूपचंद्र में भी बदलाव आया था। किसी जादू की तरह बदल गया था वो और अब अपनी बहन की ख़ुशी के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार था। ख़ैर यही सब सोचते हुए मैं हवेली पहुंच गया।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
रुपा और वैभव एक ही छत के निचे एक ही कमरें मे सोते थे लेकीन उन दोनों ने संयम रखकर ये साबित कर दिया की जीत प्रेम की होती हैं ना की हवस, वासना की
रुपा के प्रेम की ताकद ने वैभव को पुर्ण तया अनुराधा के शोक के सागर से बहार निकाल कर सामान्य होने में मदत की
वैसे वैभव और रुपा के बीच हुयी हंसी मजाक बडा ही मस्त हैं
अद्भुत अपडेट
 

big king

Active Member
621
1,056
123
अध्याय - 132
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



तीन दिन बाद।
उस वक्त रात के क़रीब बारह बज रहे थे।
हर तरफ अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था।
इसी अंधेरे और सन्नाटे से घिरा एक ऐसा साया बड़ी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ा चला जा रहा था जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। गांव की आबादी से थोड़ा दूर किनारे किनारे चलते हुए वो जल्दी ही धान बुए हुए खेतों में दाखिल हो गया। खेतों पर धान के घने पौधे थे जो उसके घुटनों के थोड़ा ऊपर तक थे। आसमान में छाए घने बादलों की वजह से आधे से कम मौजूद चांद की रोशनी खेतों पर नहीं पहुंच रही थी। गांव की आबादी से थोड़ी दूरी पर खेत थे। चारो तरफ खेत ही खेत थे। अगर अंधेरा न होता तो उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद लिबास चांद की मध्यम रोशनी में भी चमकता हुआ नज़र आता।

खेतों के बीच धान के पौधों को रौंदता हुआ वो सफ़ेदपोश तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ा चला जा रहा था। बीच बीच में ठिठक कर वो आस पास का जायजा भी ले लेता था और फिर से पलट कर उसी रफ़्तार से चल पड़ता था। कुछ ही समय में वो खेत पार कर के एक ऊंची मेढ़ पर आ गया। उसने अपनी भारी हो चली सांसों को कुछ पलों तक रुक कर नियंत्रित किया और फिर एक तरफ बढ़ता चला गया।

क़रीब पंद्रह मिनट बाद वो चंद्रकांत के घर के सामने पहुंच गया। रात के नीम अंधेरे में चंद्रकांत का घर किसी भूत की तरह नज़र आ रहा था। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा क़रीब चार फुट ऊंची चारदीवारी बनी हुई थी जिसके सामने बीचों बीच अंदर जाने के लिए रास्ता यानि द्वारा बना हुआ था। उस द्वार पर लकड़ी का ही बना हुआ दरवाज़ा लगा हुआ था। सफ़ेदपोश उस द्वार के पास आ कर रुक गया और चंद्रकांत के घर के दरवाज़े को घूरने लगा। घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा हुआ था। ज़ाहिर था चंद्रकांत के घर के अंदर इस वक्त कोई नहीं था। चंद्रकांत की मौत के बाद उसकी बीवी प्रभा और बेटी कोमल को आज से क़रीब दस दिन पहले उसके ससुराल वाले ले गए थे। कहने का मतलब ये कि चंद्रकांत की बीवी अपनी बेटी के साथ अब अपने मायके में ही रह रही थी। शायद उसके मायके वाले दोनों मां बेटी को अकेले यहां नहीं रहने देना चाहते थे।

सफ़ेदपोश काफी देर तक घर के दरवाज़े को देखता रहा। उसका चेहरा क्योंकि सफ़ेद नक़ाब में छुपा हुआ था इस लिए कोई नहीं बता सकता था कि इस वक्त उसके चेहरे पर किस तरह के भाव मौजूद होंगे? बहरहाल, वो वापस पलटा और आस पास का जायजा लेने के बाद एक तरफ को बढ़ चला। अभी वो क़रीब दस बारह क़दम ही चला था कि सहसा तभी सन्नाटे में उसे किसी हलचल का आभास हुआ जिसके चलते उसके क़दम अपनी जगह पर जाम से हो गए। उसने मात्र दो पल रुक कर हलचल को महसूस करने की कोशिश की और अगले ही पल मानों उसके जिस्म पर बिजली भर गई।

सफ़ेदपोश पूरी रफ़्तार से दौड़ते हुए एक तरफ भाग चला। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सैकड़ों भूत उसके पीछे पड़ गए हों। वैसे सच कुछ ऐसा ही था, फ़र्क बस इतना ही था कि उसके पीछे सैकड़ों भूत नहीं लग गए थे बल्कि कुछ इंसानी साए लग गए थे।

सफ़ेदपोश पूरी जी जान लगा कर एक तरफ को भागता चला जा रहा था किंतु वो महसूस कर रहा था कि उसका पीछा करने वाले निरंतर उसके क़रीब ही पहुंचते जा रहे हैं। इस एहसास के चलते वो और भी ज़्यादा तेज़ी से भागने की कोशिश करता जा रहा था किंतु अब इसका क्या किया जाए कि पीछा करने वालों के बीच का फ़ासला बढ़ने की बजाय निरंतर कम ही होता जा रहा था।

जल्दी ही सफ़ेदपोश को अपने सामने ऊंचे ऊंचे पेड़ पौधे नज़र आने लगे। इससे पहले कि वो उन पेड़ पौधों के क़रीब पहुंच कर उनमें खुद को ओझल करता पीछे से एक मर्दाना आवाज़ उसके कानों में पड़ी। मर्दाना आवाज़ में चेतावनी दी। एक पल के लिए तो सफ़ेदपोश की रफ़्तार धीमी हुई किंतु अगले ही पल जैसे उसने सब कुछ भुला कर फिर से अपनी रफ़्तार बढ़ा दी।

एक मिनट के अंदर ही सफ़ेदपोश ऊंचे ऊंचे पेड़ पौधों के क़रीब पहुंच गया और पेड़ों के बीच दाख़िल हो गया। ये कोई बग़ीचा था शायद जहां पहुंच कर सफ़ेदपोश ने थोड़ी राहत की सांस ली थी मगर आज शायद उसकी किस्मत ही ख़राब थी। क्योंकि तभी उसे महसूस हुआ कि बग़ीचे में उसके चारो तरफ बड़ी तेज़ी से हलचल होने लगी है। इस एहसास ने ही मानों उसके होश उड़ा दिए कि उसे चारो तरफ से घेर लिया गया है। उसने साफ महसूस किया कि बग़ीचे में उसके सामने और दाएं बाएं कई सारे लोग मौजूद हैं जो फिलहाल अंधेरे में उसे नज़र नहीं आ रहे थे। लेकिन वो उन्हें नज़र आ रहा होगा क्योंकि नीम अंधेरे में भी उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद लिबास धुंधली शक्ल में नज़र आ रहा था।

"तुम्हारा खेल ख़त्म हो चुका है सफ़ेदपोश।" तभी पीछे से उसके कानों में मर्दाना स्वर सुनाई दिया____"अगर तुमने कोई होशियारी दिखाने की कोशिश की तो यकीन मानों एक पल भी नहीं लगेगा तुम्हें यमराज के पास पहुंचाने में। तुम्हारे चारो तरफ मौजूद लोग तुम्हारी ज़रा सी भी ग़लत हरकत पर तुम्हें गोलियों से भून कर रख देंगे। इस लिए बेहतर यही होगा कि बग़ैर कोई हरकत किए तुम खुद को हमारे हवाले कर दो।"

सफ़ेदपोश के समूचे जिस्म में मौत की सर्द लहर दौड़ गई। मौत रूपी सर्द चेतावनी सुन कर वाकई उसने कोई ग़लत हरकत करने का इरादा नहीं बनाया बल्कि अपने दोनों हाथ उसने धीरे धीरे कर के सिर के ऊपर उठा दिए। नीम अंधेरे में उसकी हर क्रिया धुंधली सी नज़र आ रही थी जिससे स्पष्ट नज़र आ रहा था कि वो क्या कर रहा है।

"बहुत खूब।" तभी वही मर्दाना आवाज़ फिर उसके कानों में पड़ी____"तुमसे मुझे ऐसी ही समझदारी की उम्मीद थी। साथियों पूरी सतर्कता से आगे बढ़ो और सफ़ेदपोश को अपने क़ब्ज़े में ले लो।"

मर्दाना आवाज़ का इतना कहना था कि तभी वातावरण में हलचल होने लगीं। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि उसके चारो तरफ मौजूद साए उसकी तरफ बढ़ने लगे हैं। बग़ीचे की ज़मीन पर सूखे पत्ते पड़े हुए थे जिसके चलते चलने वालों की आवाज़ें स्पष्ट सुनाई दे रहीं थी। सफ़ेदपोश चाह कर भी कुछ न कर सका और कुछ ही देर में उसे कई सारे लोग नज़र आने लगे जिन्होंने उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।

"तुमने बहुत छकाया हमें।" सफ़ेदपोश के सामने आ कर उसी व्यक्ति ने कहा जिसने उसे चेतावनी दी थी। वो शेरा था, बोला____"तुम्हें पकड़ने के लिए हमने कैसे कैसे पापड़ बेले हैं ये हम ही जानते हैं। आख़िर आज हमारे हाथ लग ही गए तुम।"

सफ़ेदपोश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। सफेद नक़ाब में छुपे उसके चेहरे पर इस वक्त किस तरह के भाव थे ये अब भी कोई नहीं बता सकता था।

"इसके दोनों हाथ पीछे कर के रस्सी से बांध दो।" शेरा ने अपनी भारी आवाज़ में बाकी लोगों को जैसे हुकुम दिया____"तुम में से एक आदमी इसकी तलाशी लो। इसके पास रिवॉल्वर जैसा हथियार भी है। उसके बाद इसे मकान में ले जा कर एक कमरे में बंद कर दो।"

जल्दी ही शेरा के हुकुम का पालन हुआ और कुछ ही पलों में सफ़ेदपोश के दोनों हाथों को पीछे कर के दो आदमियों ने रस्सी से बांध दिया। हाथ बांधते वक्त दोनों आदमियों के चेहरों पर थोड़े चौंकने के भाव उभरे थे किंतु बोले कुछ नहीं।

"इसके पास कोई हथियार नहीं है शेरा भाई।" सफ़ेदपोश की तलाशी लेने वाले व्यक्ति ने कहा____"ये बिल्कुल निहत्था है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" शेरा के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"अच्छे से तलाशी लो। ये ऐसा शख़्स नहीं है जो बिना किसी हथियार के ऐसे ख़तरनाक कामों को अंजाम देने के लिए अपने बिल से निकलेगा। अच्छे से तलाशी लो इसकी।"

वो आदमी फिर से सफ़ेदपोश की तलाशी लेने लगा। तलाशी लेते वक्त वो एक दो बार हल्के से चौंका किंतु फिर ध्यान हटा कर वो तलाशी लेने लगा।

"नहीं है शेरा भाई।" फिर उसने कहा____"इसके पास कोई हथियार नहीं है। मैंने अच्छे से तलाशी ले ली है इसकी।"

"हैरत की बात है।" शेरा सफ़ेदपोश के क़रीब आते हुए उससे बोला____"ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके पास कोई हथियार ही नहीं है? पिछली बार जब हमने इसका पीछा किया था तो इसने हमारे एक आदमी पर इसी जगह गोली चलाई थी और हमारा वो आदमी मरते मरते बचा था।"

सफ़ेदपोश के दोनों हाथ रस्सी से बंधे हुए थे। चेहरे पर सफेद नक़ाब था। शेरा उसके थोड़ा और पास आया और ग़ौर से उसकी तरफ देखने लगा, फिर बोला____"मन तो बहुत कर रहा है कि तुम्हारा ये नक़ाब हटा कर देखूं कि कौन हो तुम मगर नहीं, मैं चाहता हूं कि सबसे पहले तुम्हारी सूरत पर मेरे मालिक की ही नज़र पड़े।"

"इसे ले जाओ यहां से और मकान के एक कमरे में बंद कर दो।" शेरा ने पलट कर अपने आदमियों से कहा____"और तुम में से दो लोग फ़ौरन हवेली जाओ और मालिक को इस बात की ख़बर दो कि हमने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है।"

"ठीक है शेरा भाई।" एक आदमी ने झट से कहा____"मैं और संपत अभी हवेली जाते हैं।"

कहने के साथ ही उसने संपत को इशारा किया और फिर वो दोनों हवेली की तरफ तेज़ी से बढ़ गए। इधर शेरा के कहने पर कुछ लोग सफ़ेदपोश को मकान के अंदर ले आए और उसे एक कमरे में बंद कर दिया। मकान में लालटेन जल रही थी। लालटेन की रोशनी में सभी के चेहरे खुशी से जगमगाते हुए नज़र आ रहे थे। आएं भी क्यों न, आख़िर उन सबने उस रहस्यमय इंसान को पकड़ लिया था जिसने इतने समय से दादा ठाकुर जैसे इंसान का सुख चैन हराम कर रखा था।

✮✮✮✮

हवेली में रात के उस वक्त थोड़ी हलचल सी मच गई जब एक दरबान ने दादा ठाकुर को ये बताया कि सफ़ेदपोश की खोजबीन करने वाले आदमियों में से दो लोग कोई ख़बर देने आए हैं। दादा ठाकुर फ़ौरन ही अपने कमरे से निकल कर बाहर आए जहां पर खड़े संपत और दसुआ बड़ी बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

दादा ठाकुर पर नज़र पड़ते ही दोनों ने सबसे पहले उन्हें हाथ जोड़ कर प्रणाम किया उसके बाद उन्हें बताया कि अभी कुछ देर पहले उन लोगों ने सफ़ेदपोश को आमों के बग़ीचे में पकड़ा है। दादा ठाकुर उनके मुख से ये सुनते ही पहले तो अवाक् से रह गए किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाला। उनके चेहरे पर पलक झपकते ही खुशी और जोश के भाव उभर आए थे।

"क्या तुम सच कह रहे हो?" ये जानते हुए भी कि उनसे वो झूठ बोलने का दुस्साहस नहीं कर सकते पूछ बैठे।

"जी हां मालिक।" संपत ने अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए कहा____"हम दोनों सच कह रहे हैं। कुछ देर पहले ही हम सबने मिल कर उसे घेर लिया था और फिर उसे पकड़ लिया। शेरा भाई के कहने पर हमने उस सफ़ेदपोश को मकान के एक कमरे में बंद कर दिया है। फिर शेरा भाई ने हमसे कहा कि इस बात की सूचना हम हवेली में जा कर आपको दें इस लिए हम दोनों आपको बताने यहां आ गए।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे कौन था वो जो सफेद लिबास में खुद को छुपा के रखता था?"

"ये तो हमने नहीं देखा मालिक।" दसुआ ने दीन हीन भाव से कहा____"बल्कि किसी ने भी उसका चेहरा नहीं देखा। शेरा भाई ने भी नहीं देखा है। उनका कहना है कि सबसे पहले आप ही उसका चेहरा देखें।"

"हम्म्म्म अच्छी बात है।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"ख़ैर बहुत ही बढ़िया काम किया है तुम लोगों ने। इस बड़े काम के लिए हम तुम सबको पुरस्कार देंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद मालिक।" संपत ने हाथ जोड़ कर खुशी से कहा____"आप बहुत महान हैं। हम सबके दाता हैं। हमारे भगवान हैं आप।"

"अच्छा अभी तुम लोग रुको।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम तैयार हो कर आते हैं।"

"जी ठीक है मालिक।" दसुआ झट से बोला।

दादा ठाकुर पलट कर अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। उनके चेहरे की चमक बता रही थी कि इस वक्त वो बेहद खुश हैं। खुशी की तो बात ही थी, क्योंकि ये वो ही जानते थे कि सफ़ेदपोश ने अब तक उनके दिलो दिमाग़ में कितना गहरा प्रभाव डाला हुआ था।

✮✮✮✮

मैं अपने कमरे में पलंग पर लेटा गहरी नीद में सो रहा था। नींद में ही मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि कहीं कुछ बज रहा है। एकाएक मेरे कानों में नारी स्वर टकराया तो मेरी नींद टूट गई। मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। आंखें मलते हुए मैंने इधर उधर नज़रें घुमाई। कमरे में लालटेन का बहुत ही धीमा प्रकाश फैला हुआ था। तभी मैं बुरी तरह चौंक पड़ा। कारण कमरे के दरवाज़े से मां की आवाज़ आई थी। रात के इस वक्त मां की आवाज़ सुन कर मैं फ़ौरन ही हरकत में आ गया। एक ही झटके में पलंग से कूद कर दरवाज़े के पास पहुंच गया और फिर दरवाज़ा खोला।

"क...क्या हुआ मां?" दरवाज़ा खोलते ही जब मेरी नज़र मां पर पड़ी तो मैंने उनसे पूछा____"आप इस वक्त यहां कैसे और....और दरवाज़ा क्यों पीट रहीं थी आप?"

"दरवाज़ा न पीटूं तो क्या करूं?" मां ने थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"तू तो एकदम हाथी घोड़े बेंच कर ही सो जाता है।"

"अब इसमें मेरी क्या ग़लती है मां?" मैंने मासूम सी शक्ल बनाते हुए कहा____"नींद तो नींद ही होती है ना। ख़ैर आप बताइए, रात के इस वक्त ऐसी क्या बात हो गई थी जिसके लिए आपको सीढियां चढ़ कर मुझे जगाने के लिए मेरे कमरे तक आना पड़ा?"

"हां वो...तेरे पिता जी ने बुलाया है तुझे।" मां ने कहा____"जल्दी से कपड़े पहन ले और नीचे आ जा।"

"अरे! ये क्या कह रही हैं आप?" मैं उनकी बात सुनते ही चौंक पड़ा____"रात के इस वक्त पिता जी ने किस लिए बुलाया है मुझे और कपड़े वगैरा पहन कर आने का क्या मतलब है? क्या मुझे उनके साथ कहीं जाना है?"

"हां, असल में बात ये है कि वो नासपीटा पकड़ा गया है।" मां ने कहा____"अभी थोड़ी देर पहले ही हमारे दो आदमियों ने यहां आ कर ये बताया है कि उन लोगों ने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है।"

"क्या????" मैं उछल ही पड़ा____"क्या आप सच कह रही हैं मां?"

"अरे! मैं भला तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?" मां ने मुझे घूरा____"और अब तू बातों में समय मत गवां। जल्दी से कपड़े पहन कर नीचे आ जा। तेरे पिता जी तैयार हो के बैठे हैं।"

कहने के साथ ही मां पलट कर चली गईं। इधर मैं अभी भी चकित अवस्था में खड़ा उन्हें जाता देख रहा था। बहरहाल मैंने अपने ज़हन को झटका दिया और पलट कर जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहनने लगा। मनो मस्तिष्क में एकाएक ही तूफ़ान सा चल पड़ा था। सफ़ेदपोश के पकड़े जाने की बात ने अभी तक मुझे हैरान कर रखा था। मेरे लिए ये बड़ी ही हैरान कर देने वाली बात थी कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है। वैसे झूठ का तो सवाल ही नहीं था किंतु फिर भी जाने क्यों ये बात हजम ही नहीं हो रही थी मुझे। ख़ैर जल्दी ही मैंने कपड़े पहने। उसके बाद अपनी रिवॉल्वर ले कर नीचे आ कर पिता जी से मिला। वो भी तैयार बैठे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।

"मां बता रहीं थी कि हमारे आदमियों ने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है?" मैंने आते ही पिता जी से पूछा____"क्या ये सच है पिता जी?"

"तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि हमारे आदमी हमसे किसी भी कीमत पर झूठ नहीं बोल सकते हैं।" पिता जी ने कहा____"ज़ाहिर है सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली उनकी बात सच है और अब हम दोनों को वहीं जाना है।"

"तो क्या सफ़ेदपोश को पकड़ कर वो लोग यहां नहीं लाए?" मैंने उत्सुकतावश पूछा।

"उसे हमारे आमों वाले बाग़ में पकड़ा गया है।" पिता जी ने कहा____"शेरा ने उसे वहीं मकान के एक कमरे में बंद कर के रखा है।"

मैंने इसके बाद उनसे कोई सवाल नहीं किया। जल्दी ही हम दोनों बाहर आ गए। मैं जीप ले कर आया तो पिता जी उसमें बैठ गए। उनके कहने पर संपत और दसुआ भी उसमें बैठ गए। उसके बाद मैंने जीप को हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ा दिया।

"क्या हमें इस बात की सूचना गौरी शंकर को भी देनी है?" रूपचंद्र के घर के पास पहुंचते ही मैंने पिता जी से पूछा____"क्या आप उसे भी साथ ले चलना चाहते हैं?"

"नहीं।" पिता जी सपाट लहजे से बोले____"इस वक्त हमें किसी को अपने साथ ले जाने में समय नहीं बर्बाद करना है। हम जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश के सामने पहुंच जाना चाहते हैं और फिर ये जानना चाहते हैं कि वो कौन है और उसने ये सब क्यों किया?"

पिता जी की बात सुन कर मैंने जीप को धीमा नहीं किया बल्कि आमों वाले बाग़ में बने मकान में पहुंच कर ही रोका। जीप की हेड लाइट जान बूझ कर मैंने बंद नहीं की ताकि रोशनी रहे। मकान के बाहर ही शेरा अपने सारे आदमियों के साथ मौजूद था। पिता जी को देखते ही उसने अदब से झुक कर सलाम किया। बाकी लोगों ने भी उसका अनुसरण किया।

"कोई समस्या तो नहीं हुई उसे पकड़ने में?" पिता जी ने शेरा से पूछा।

"बिल्कुल नहीं मालिक।" शेरा ने कहा____"हमने बहुत ही आसानी से उसे पकड़ लिया है। हमने उसे बच निकलने का कोई मौका ही नहीं दिया था। हमारे आदमियों ने उसे बाग़ में चारो तरफ से घेर लिया था।"

"अच्छा।" पिता जी ने अविश्वास से आंखें फैला कर पूछा____"क्या उसने तुम लोगों की पकड़ से खुद को बचाने के लिए बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया?"

"कैसे करता मालिक?" शेरा ने कहा____"हमारे आदमियों ने उसे चारो तरफ से घेर लिया था। उसके बाद मैंने उसे सख़्त चेतावनी भी दे दी थी कि अगर उसने किसी भी तरह की बेजा हरकत की तो हमारे आदमी उसे गोलियों से भून देंगे जिसके चलते उसकी जीवन लीला यहीं समाप्त हो जाएगी।"

"यानि मौत के डर से उसने कोई ग़लत हरकत नहीं की और ना ही खुद को बचाने का प्रयास किया?" पिता जी ने पूछा____"ख़ैर कहां नज़र आया था वो?"

"साहूकारों के खेतों की तरफ से आया था।" शेरा ने कहा____"वहां से चंद्रकांत के घर के बाहर ही आ कर रुका था वो। काफी देर तक उसके घर के बाहर खड़ा दरवाज़े को देखता रहा था। किसी काम से वहां पर आया था वो किंतु शायद उसे पता नहीं था कि वर्तमान में चंद्रकांत के घर में कोई नहीं रहता है। मैं वहीं पर अपने चार आदमियों के साथ आ गया था। मुझे लगा पिछली बार की तरह वो कहीं इस बार भी हमारे हांथ से ना निकल जाए इस लिए फ़ौरन ही मैंने उसे पकड़ लेने का सोच लिया था। मैंने जान बूझ कर उसे ये आभास कराया कि वो ख़तरे में है ताकि वो अपने बचाव के लिए आमों के बाग़ की तरफ ही जाए और फिर हम उसे चारो तरफ से घेर कर पकड़ लें।"

"हम्म्म्म।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर उसकी तलाशी ली तुमने?"

"जी ली थी मालिक।" शेरा ने कहा____"लेकिन उसके पास से हमें कोई हथियार नहीं मिला। वो बिल्कुल निहत्था था।"

"क्या???" पिता जी के साथ साथ मैं भी चौंक पड़ा____"ये क्या कह रहे हो तुम? वो बिल्कुल निहत्था था? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"यही सच है मालिक।" शेरा ने कहा____"मैंने दो बार उसकी अच्छे से तलाशी करवाई थी किंतु उसके पास से कुछ नहीं मिला।"

पिता जी ने मेरी तरफ देखा। उनके चेहरे पर सोचो के गहन भाव उभर आए थे। मैं भी ये सोच कर चकित था कि सफ़ेदपोश जैसा शातिर व्यक्ति रात के इस वक्त निहत्था कैसे कहीं जा सकता था जबकि उसे भली भांति पता था कि हर पल उसके पकड़े जाने का ख़तरा उसके आस पास बना हुआ है?

पिता जी के पूछने पर शेरा ने बताया कि उसने सफ़ेदपोश को मकान के अंदर कौन से कमरे में बंद कर रखा है। ख़ैर मैं, पिता जी और शेरा कमरे के पास पहुंचे। बाकियों का तो पता नहीं किंतु मेरा दिल अब ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था कि आख़िर कौन होगा सफ़ेदपोश?

शेरा ने दरवाज़े की कुंडी खोल कर दरवाज़े के दोनों पल्ले खोल दिए। कमरे के अंदर लालटेन का तीव्र प्रकाश था। गलियारे में एक मशाल भी जल रही थी। उधर मैं और पिता जी धड़कते दिल के साथ कमरे में दाख़िल हो गए। अगले ही पल कमरे के एक कोने में सिमटे बैठे सफ़ेदपोश पर हमारी नज़र पड़ी।

लालटेन के पीले प्रकाश में आज पहली बार मैं और पिता जी उसे स्पष्ट रूप से देख रहे थे। उसको, जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद चमकीला लिबास था। हाथों में सफ़ेद दस्ताने, पैरों में सफ़ेद जूते और चेहरे पर सफ़ेद नक़ाब। कुल मिला कर उसका समूचा जिस्म सफ़ेद लिबास में ही ढंका हुआ था। नक़ाब में कुल तीन छेंद थे जिनमें से दो आंखों पर और एक मुख पर।

हमें अंदर आया देख सफ़ेदपोश ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखा। नक़ाब के अंदर से झांकती आंखों में एकाएक कई भाव आते नज़र आए। मैं उसी को देखे जा रहा था। सहसा मैं उसकी तरफ बढ़ चला। चार क़दमों में ही मैं उसके पास पहुंच गया और फिर पैरों के पंजों के बल बैठ कर उसे बड़े ध्यान से देखने लगा। नक़ाब से झांकती आंखों ने दो पल के लिए मेरी तरफ देखा और फिर झट से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ थे जोकि रस्सी से बंधे हुए थे।

"इसके चेहरे से नक़ाब हटाओ।" पीछे से पिता जी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"ज़रा हम भी तो देखें कि सफ़ेद लिबास में छुपा वो चेहरा किसका है जिसने हमारे रातों की नींद उड़ा रखी थी?"

उधर पिता जी का वाक्य ख़त्म हुआ और इधर मैंने हाथ बढ़ा कर सफ़ेदपोश के चेहरे पर मौजूद नक़ाब को पकड़ कर एक झटके में खींच कर उसके ऊपर से निकाल दिया। नक़ाब के हटते ही जिस चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख चीख निकल गई मेरी। पिता जी को तो मानो चक्कर सा आ गया। शेरा ने फ़ौरन ही उन्हें सम्हाल लिया।

"त...तू?????" पिता जी की तरह मैं भी चकरा गया____"तू है सफ़ेदपोश??? न....नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

मैं हलक फाड़ कर चीखा और पीछे हटता‌ चला गया। मुझे तेज़ झटका लगा था और साथ ही इतनी तेज़ पीड़ा हुई थी कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाता नज़र आया।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Bhai update bahot romaanchak aur majedaar tha maja aa gaya bhai. Next update ka besabri se intajaar rahegaa bhai 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍
 

Kuresa Begam

Member
224
692
108
अध्याय - 131
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



रास्ते में मैं सोच रहा था कि जिस तरह मुझमें बदलाव आया था उसी तरह रूपचंद्र में भी बदलाव आया था। किसी जादू की तरह बदल गया था वो और अब अपनी बहन की ख़ुशी के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार था। ख़ैर यही सब सोचते हुए मैं हवेली पहुंच गया।


अब आगे....


रूपचंद्र के घर का आलम ही अलग था। घर की औरतें, दोनों बहुएं और सभी लड़कियां रूपा को घेर कर बैठ गईं थी। सबके चेहरे खिले हुए थे और रूपा के लिए बेहद प्यार और स्नेह झलक रहा था। रूपा को शर्म तो आ रही थी लेकिन ये देख कर उसे ख़ुशी भी हो रही थी कि मुद्दतों बाद आज सब उसे बड़े स्नेह से देख रहे थे और साथ ही ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अपनी पलकों में बैठा लेंगे।

गौरी शंकर खेतों की तरफ चला गया था इस लिए उसे रूपा के आने का पता ही नहीं था। रूपचंद्र ने ही सबको सारा हाल चाल बताया था जिसके बाद से ही सबके चेहरे खिले हुए थे। रूपा की मां, ताई और चाचियों ने तो उससे बस उतने ही सवाल किए थे जो मर्यादा के अनुकूल थे और जो वो सुनना चाहतीं थी किंतु जैसे ही रूपा अपने कमरे में पहुंची तो उसकी भाभियां और बहनें उससे ऐसे ऐसे सवाल करने लगीं जिनके जवाब देना तो दूर रूपा शर्म से ही पानी पानी हो गई थी। सब उसे छेड़े जा रहीं थी और पूरे कमरे में उनकी हंसी ठिठोली चालू थी। बड़ी मुश्किल से रूपा का उन सबसे पीछा छूटा था।

रूपा आज सही मायनों में ख़ुश थी और उसे आभास हो रहा था कि उसके घर वाले उसे सच्चे दिल से प्यार दे रहे थे। सहसा उसे पुरानी बातें याद आ गईं जिसके चलते अनायास ही उसका खिला हुआ चेहरा वेदना से बिगड़ने लगा और फिर अगले ही पल उसकी आंखों में आंसू तैरते नज़र आने लगे। उसने जल्दी ही ख़ुद को सम्हाला और फिर अपने कपड़े ले कर गुसलखाने में नहाने चली गई।

✮✮✮✮

उस वक्त पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ कहीं बाहर जाने के लिए हवेली से निकले ही थे जब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी। मैं जीप से उतरा और आगे बढ़ कर उनके पैर छुए। ये देख पहले तो वो हल्के से चौंके फिर सामान्य भाव से मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया।

"सब ठीक तो है ना?" पिता जी ने मुझे बड़े ध्यान से देखते हुए पूछा।
"जी पिता जी।" मैंने कहा____"अब पहले से बेहतर हूं।"

"बहुत बढ़िया।" पिता जी के चेहरे पर चमक उभर आई____"हमें पूरा यकीन था कि हमारा खून बड़े से बड़ा ज़ख्म और दर्द सह जाएगा और खुद को सम्हाल कर वापस लौट आएगा। ख़ैर हमें अच्छा लगा कि अब तुम बेहतर हो और वापस आ गए हो। अंदर जाओ और सबसे मिलो। हम एक ज़रूरी काम से बाहर जा रहे हैं। दोपहर बाद ही आना संभव होगा।"

"जी ठीक है।" मैंने कहा____"और अब से आपको अकेले कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। आपने जीवन भर दूसरों की खुशी के लिए संघर्ष किया है इस लिए मैं चाहता हूं कि अब आप आराम करें और अच्छे से अपना ख़याल रखें।"

"लगता है तुम हमें एकदम से बूढ़ा समझ बैठे हो बर्खुरदार।" पिता जी ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"अरे! अभी भी हम में वो जान है कि तुम्हारे जैसे जवान लड़कों को एक पल में पटकनी दे सकते हैं।"

"मेरे कहने का ये मतलब नहीं था पिता जी।" मैंने झेंपते हुए कहा____"लेकिन हां, मेरी ऊपर वाले से यही प्रार्थना है कि आपके अंदर हमेशा ऐसा ही जोशो जुनूं रहे।"

"इस संसार में हर इंसान प्रकृति और समय चक्र के नियमों से बंधा होता है।" पिता जी ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ से कहा____"इस लिए कोई भी इंसान सदा के लिए एक जैसा नहीं बना रह सकता। ख़ैर,अच्छा लगा हमें कि तुम अपने पिता के प्रति ऐसा स्नेह रखते हो। वैसे एक पिता के अंदर सच्चा जोशो जुनूं उसकी औलाद के अच्छे कर्मों से आता है। जब तुम हमारी जगह पर पहुंचोगे तो समझ जाओगे। फिलहाल अभी जाओ, बाद में मिलते हैं।"

मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर जीप से अपना थैला निकाल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चला। उधर पिता जी मंद मंद मुस्कुराते हुए किशोरी लाल और शेरा के साथ दूसरी जीप में बैठ कर निकल गए।

मां लोगों को जब पता चला कि अब मैं हवेली में ही रहूंगा तो सब बड़ा खुश हुईं। कुछ देर सबसे इधर उधर की बातें हुईं उसके बाद मैं अपना थैला ले कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

दोपहर को खाना पीना खा कर मैं मोटर साईकिल से निकल गया और सीधा सरोज काकी के घर पहुंचा। सरोज काकी रूपा को ले कर सच में परेशान थी। मैंने उसे सारी बात बताई तब जा कर उसे राहत मिली। थोड़ी देर उससे ज़रूरी मुद्दों पर बातें करने के बाद मैं अपने मकान की तरफ आ गया जहां कुछ देर मैं अनुराधा के विदाई स्थल पर बैठ कर उसको महसूस करने की कोशिश की। उसके बाद मैं अपने खेतों की तरफ निकल गया।

पिछले एक महीने से मैं अपनी ज़िम्मेदारियों से विमुख था। हालाकि मेरी ग़ैर मौजूदगी में भुवन ने सब कुछ सम्हाला हुआ था किंतु अब सब कुछ देखने की मेरी ज़िम्मेदारी थी।

भुवन से काफी देर तक अलग अलग विषय पर चर्चा की मैंने। ख़ास कर इस विषय पर कि सफ़ेदपोश को पकड़ने का जो जाल हमने फैलाया था उसका क्या हुआ?

बड़ी हैरत की बात थी कि चंद्रकांत के मामले के बाद से सफ़ेदपोश अब तक किसी को नज़र ही नहीं आया था। हम में से किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों था? आख़िर चाहता क्या है वो? अगर वो मेरी जान का दुश्मन था तो उसने मेरी जान लेने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया अब तक? क्यों अपने वजूद से हमारे लिए ख़तरा बना हुआ बैठा है? बहरहाल, हमारे पास उसका इंतज़ार करने के सिवा कोई चारा नहीं था।

शाम को बैठक में पिता जी से मुलाक़ात हुई। पिता जी इस बात से खुश थे कि मैं अब बेहतर हूं और वापस पहले की तरह सामान्य स्थिति में आ गया हूं।

"क्या तुम अब ठीक हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"और क्या अब तुम अपनी ज़िम्मेदारियों को सम्हालने के लिए फिर से तैयार हो?"

"जी पिता जी।" मैंने कहा____"मैं अब ठीक हूं और हर ज़िम्मेदारी को सम्हालने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी में यहां हमने कुछ मुद्दों को ले कर कुछ विशेष क़दम उठाए हैं। आशा है कि जल्द ही बेहतर परिणाम निकलेंगे। ख़ैर बाकी सब तो ठीक रहा लेकिन सफ़ेदपोश का अब भी कोई पता नहीं चल सका है और जब पता ही नहीं चल सका तो उसे पकड़ पाना तो असंभव ही था। हमें उम्मीद थी कि हवेली से बाहर एकांत जगह पर तुम्हारे रहने से शायद वो तुम पर कोई हमला करने की कोशिश करेगा। इसके लिए हम और हमारे ढेर सारे आदमी पूरी तरह से तैयार भी थे लेकिन सब व्यर्थ ही रहा। कहने का मतलब ये कि पिछले एक महीने से सफ़ेदपोश का कहीं पता नहीं चला। उसे पकड़ने के लिए तैयार बैठे हमारे आदमियों को सिर्फ और सिर्फ निराशा ही मिली है। हमें समझ नहीं आ रहा कि जो सफ़ेदपोश एक समय तुम्हारी जान का दुश्मन बना हुआ था और तुम्हारी हस्ती मिटाने के लिए जाने कैसे कैसे ताव पेंच आजमा रहा था वो अचानक से इस तरह अपने इरादों से पीछे क्यों हट गया है? इतना तो अब हम समझ चुके हैं कि चंद्रकांत से उसकी अपनी कोई दुश्मनी नहीं थी, क्योंकि अगर होती तो वो बहुत पहले ही उसे और उसके परिवार को तबाह कर देता किंतु उसने ऐसा नहीं किया था बल्कि किया भी तो तब जब उसके ऐसा करने का किसी को कोई कारण ही समझ में नहीं आया। महेंद्र सिंह को भी अब तक रघुवीर का हत्यारा नहीं मिला। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा कि आख़िर रघुवीर की हत्या किसने की होगी?"

"वाकई, ये बहुत ही ज़्यादा हैरानी और सोचने वाली बात है।" मैंने लंबी सांस ली____"सफ़ेदपोश का रहस्य तो ऐसा हो गया है जैसे वो कभी सुलझेगा ही नहीं। वैसे क्या लगता है आपको कि उसने मुझ पर हमला करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की?"

"इस बारे में हम यही कहेंगे कि कुछ समय पहले तुमने जो कयास लगाया था वही सच हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"हमारा मतलब है कि वो कभी तुम्हें जान से मारना ही नहीं चाहता था बल्कि तुम्हें इस हद तक बदनाम कर देना चाहता था कि लोगों की नज़र में तुम्हारी छवि एकदम शून्य हो जाए और लोग तुम्हें ऐसा व्यक्ति समझने लगें जिसे नर्क में भी जगह नहीं मिलनी चाहिए। ऐसी सूरत में तुम्हारी मानसिक हालत क्या हो जाती ये तुम खुद भी अंदाज़ा लगा सकते हो।"

"हां हो सकता है कि ऐसा ही हो।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन मुझे ये भी लगता है कि ये पूर्ण सत्य नहीं है। मेरे ऐसा कहने का मतलब उस कयास से है कि सफ़ेदपोश मुझे जान से नहीं मारना चाहता था। हां पिता जी, उसकी शुरुआत की गतिविधियों पर ग़ौर करेंगे तो यही लगेगा कि वो हर कीमत पर मुझे जान से मार डालना चाहता था। याद कीजिए जब उसने अपने दो नक़ाबपोशों के द्वारा मुझ पर आमों के बाग़ में हमला करवाया था। उस शाम अगर शेरा न होता तो यकीनन वो दोनों नक़ाबपोश मेरी जीवन लीला समाप्त कर चुके होते। इस तरह का हमला तो यही दर्शाता है कि सफ़ेदपोश की मंशा मेरी जान लेना ही थी।"

मेरी ये बात सुन कर पिता जी फ़ौरन कुछ बोल ना सके। शायद वो मेरी इन बातों से पूर्णतया सहमत थे और इसी लिए थोड़े सोच में पड़ गए थे।

"शायद तुम सही कह रहे हो।" फिर उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सफ़ेदपोश की शुरुआती गतिविधियां यकीनन तुम्हारी जान लेने वाली ही थीं। अब सवाल ये है कि अगर वो सच में तुम्हारी जान ही लेना चाहता था तो अब तक उसने ली क्यों नहीं? क्या वो अपनी नाकामियों से इस हद तक निराश और हताश हो गया कि उसने तुम्हारी जान लेने का अपना इरादा ही बदल दिया या फिर कोई और बात है?"

"यकीनन कोई और ही बात है पिता जी।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"हालाकि मैं ये बात भी नहीं मान सकता कि उसने अपनी नाकामियों से निराश हो कर मेरी जान लेने का इरादा बदल दिया होगा। आप भी समझते हैं कि जो व्यक्ति मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझता हो और मेरी जान लेने के लिए इतना कुछ कर सकता हो क्या वो महज अपनी कुछ नाकामियों के चलते मेरी जान लेने का अपना इरादा बदल देगा? उसकी जगह अगर मैं होता तो ऐसा हर्गिज़ नहीं करता क्योंकि अपने कट्टर दुश्मन को जीवित छोड़ कर मैं कभी अपने जीवन में चैन और सुकून से जी ही न पाता। अपने दुश्मन को ख़त्म करके जो असीम सुख और शांति मुझे मिलती उसे मैं किसी भी कीमत पर प्राप्त करता, फिर भले ही चाहे इसके चलते मेरी खुद की जान ही क्यों न चली जाती। यानि स्पष्ट है कि सफ़ेदपोश ने कभी मेरी जान लेने का अपना इरादा नहीं बदला। अब रहा सवाल ये कि इसके बावजूद उसने मेरी जान लेने के लिए इतने सुनहरे मौकों के बाद भी मुझ पर कोई हमला नहीं किया तो इस बारे में यही कह सकता हूं कि ज़रूर इसके पीछे कोई ऐसी वजह है जिसकी हम कल्पना नहीं कर पा रहे हैं।"

"हम तुम्हारी दलीलों से पूरी तरह सहमत हैं।" पिता जी ने कुछ पलों तक सोचने के बाद कहा____"किंतु सोचने वाला सवाल ये भी है कि सफ़ेदपोश ने आख़िर किस मकसद से चंद्रकांत के साथ वैसा खेल खेला? आख़िर चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू को हत्या करवा के उसे क्या हासिल हो गया होगा?"

"इससे भी पहले एक सवाल है पिता जी।" मैंने कहा____"और वो ये कि उसने चंद्रकांत से ये क्यों कहा कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जानता है जोकि खुद उसकी ही बहू है? चंद्रकांत को उसने मनगढ़ंत कहानी क्यों सुनाई? इसकी वजह सिर्फ उसके हाथों अपनी ही बहू की हत्या कर देना बस तो नहीं हो सकता।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" पिता जी के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे। किशोरी लाल तो सांसें रोके बड़ी दिलचस्पी से हमारी बातें सुनने में मगन था।

"मेरा ख़याल ये है पिता जी कि रघुवीर का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि सफ़ेदपोश ही है।" मैंने जैसे धमाका सा किया।

मेरी ये बात सुनते ही पिता जी आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगे जबकि किशोरी लाल कुर्सी पर बैठा इस तरह उछल पड़ा था मानों उसके पिछवाड़े में किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो।

"हो सकता है कि मेरा ये ख़याल ग़लत भी हो पिता जी।" उन्हें आश्चर्य से आंखें फाड़े देख मैंने आगे कहा____"लेकिन मेरे ऐसा सोचने का एक कारण भी है।"

"ऐसा सोचने का क्या कारण है तुम्हारे पास?" पिता जी ने जिज्ञासावश पूछ ही लिया। किशोरी लाल के चेहरे पर भी गहन उत्सुकता के भाव उभर आए थे।

"रघुवीर की हत्या हुए आज लगभग दो महीना होने को हैं।" मैंने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"लेकिन उसके हत्यारे का पता अब तक ना महेंद्र सिंह चाचा लगा पाए और ना ही हम लोग। इतना ही नहीं आगे भी उसके हत्यारे का पता लगने के दूर दूर तक कोई आसार नज़र नहीं आ रहे। बिल्कुल यही हाल सफ़ेदपोश के बारे में भी है। उसका भी पता अब तक हम में से कोई नहीं लगा पाया। हमें ये तक पता नहीं है कि आख़िर उसकी मुझसे क्या दुश्मनी है जिसके चलते वो मेरी जान का दुश्मन बना हुआ है? ज़रा ग़ौर कीजिए पिता जी....रघुवीर के हत्यारे में और सफ़ेदपोश में क्या एक जैसी समानता नहीं है? ना उसके हत्यारे के बारे में किसी को कुछ पता है और ना ही सफ़ेदपोश के बारे में। क्या आपको नहीं लगता कि सफ़ेदपोश ही वो व्यक्ति हो सकता है जिसने रघुवीर की हत्या की होगी?"

सन्नाटा छा गया बैठक में। पिता जी और किशोरी लाल मेरी तरफ ऐसे अंदाज़ में आंखें फाड़े देखते रह गए थे मानों मैं दुनिया का आठवां अजूबा था। काफी देर तक उनमें से किसी के मुख से कोई बोल ना फूटा था।

"ठ...ठाकुर साहब।" एकाएक किशोरी लाल पिता जी से मुखातिब हो कर बोला____"मुझे लगता है कि छोटे कुंवर बिलकुल ठीक कह रहे हैं। वो...वो सफ़ेदपोश ही होगा रघुवीर का हत्यारा।"

"सफ़ेदपोश रघुवीर का हत्यारा हो या न हो।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"किंतु इसकी बातों में वजन तो है और सच्चाई की बू भी आ रही है। हैरत की बात है कि हमारे ज़हन में अब तक ये समानता वाली बात क्यों नहीं आई थी? वाकई, दोनों में सबसे बड़ी और आश्चर्य कर देने वाली समानता यही है।"

"मुझे यकीन है पिता जी कि सिर्फ यही एक समानता काफी है ये मान लेने के लिए कि सफ़ेदपोश ने ही रघुवीर की हत्या की है।" मैंने बड़े जोश के साथ कहा____"और यही एक वजह भी है कि हमें अब तक ना रघुवीर का हत्यारा मिला और ना ही सफ़ेदपोश।"

"हां बिल्कुल।" पिता जी के मुख से बरबस ही निकल गया____"अब तो हमें भी यही लगता है।"

"देखा ठाकुर साहब आपने।" किशोरी लाल ने पिता जी की तरफ देखते हुए बड़े उत्साह से कहा____"छोटे कुंवर के सोचने समझने की शक्ति कितनी तीव्र है। कितनी कुशलता से इन्होंने इतनी बड़ी उलझन को सुलझा दिया है।"

किशोरी लाल की इस बात से पिता जी बस हल्के से मुस्कुराए। इधर मैं भी ये सोच कर थोड़ा खुशी का अनुभव कर रहा था कि मैंने पिता जी से पहले ही इस उलझन को सुलझा कर सफ़ेदपोश को रघुवीर का हत्यारा साबित कर दिया है।

"बहरहाल, अगर यही मान कर चलें कि सफ़ेदपोश ही रघुवीर का हत्यारा है।" पिता जी ने थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद कहा____"तो अब हमें सिर्फ सफ़ेदपोश पर ही अपना सारा ध्यान केंद्रित करना है और हर मुमकिन कोशिश कर के उसे पकड़ना है।"

"हां लेकिन सवाल ये है कि क्या ये इतना आसान है?" मैंने कहा____"मेरा मतलब है कि पिछले एक महीने से वो ग़ायब है और हम में से किसी को भी उसके बारे में छोटा सा कोई सुराग़ तक नहीं मिला है तो ऐसे में कैसे हम उसे पकड़ सकेंगे? अगर आगे भी वो इसी तरह ग़ायब रहा तो हमारे लिए उसे पकड़ पाना असम्भव ही है।"

"सबसे बड़ी समस्या यही तो है कि वो ग़ायब है और किसी को कहीं नज़र ही नहीं आ रहा।" पिता जी ने कहा____"ज़ाहिर है जब तक वो कहीं नज़र नहीं आएगा तब तक उसे पकड़ना असंभव ही है।"

"उसके ग़ायब रहने पर भी उसे पकड़ लेना बस एक ही सूरत में संभव है।" मैंने कहा____"यानि हमें ये पता चल जाए कि वो मुझे अपना दुश्मन क्यों समझता है अथवा उसने रघुवीर की हत्या क्यों की? वैसे सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि हमें उसके कारण का ना तो इल्म है और ना ही हम कोई अंदाज़ा लगा पा रहे हैं।"

"एक बात तो तय है कि जब तक वो अपने मकसद के लिए आर या पार कर डालने वाली बात नहीं कर लेगा तब तक वो पूर्ण रूप से शांत नहीं बैठेगा।" पिता जी ने जैसे अपनी संभावना ब्यक्त करते हुए कहा____"हमें नहीं पता कि वो इस तरह ग़ायब क्यों है अथवा आज कल उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही है लेकिन ये निश्चित बात है कि किसी न किसी दिन वो फिर अपने किसी कारनामे को अंजाम देने के लिए अपने बिल से बाहर निकलेगा।"

"बिल्कुल।" मैंने सिर हिलाया____"किंतु समस्या यही है कि तब तक हमें उसकी तरफ से सावधान भी रहना पड़ेगा और उसे पकड़ने के लिए घात भी लगाए रखनी होगी।"

"ख़ैर अब एक दूसरी बात सुनो।" पिता जी ने जैसे विषय बदला____"पिछले कुछ समय से हम कुछ ऐसे काम की तरफ ज़ोर दे रहे हैं जो इस गांव के लोगों की भलाई के लिए हों।"

"जी मैं कुछ समझा नहीं पिता जी।" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उन्हें देखा।

"हमने लोगों की भलाई के लिए इस गांव में एक अस्पताल और साथ ही एक विद्यालय बनवाने की पहल की है।" पिता जी ने कहा____"इसके लिए हमने ऊपर के अधिकारियों और मंत्रियों से भी बात की है। कुछ दिन पहले हमने एक याचिका भी दायर की है। उम्मीद है जल्द ही इस बारे में ऊपर से प्रस्ताव पारित हो जाएगा। उसके बाद जल्द ही इस गांव में अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है पिता जी।" मैंने खुश होते हुए कहा____"वैसे सोचने वाली बात है कि हमारे पूर्वज ही नहीं बल्कि दादा जी ने भी कभी ये नहीं सोचा कि लोगों की भलाई के लिए इस गांव में ये दो चीज़ें होनी चाहिए। जबकि पास के ही गांव में इस तरह की एक सुविधा जाने कब से उपलब्ध है। ये अलग बात है कि ग़रीब आदमी उस सुविधा का लाभ नहीं उठा पा रहा।"

"हमारे पूर्वज ऐसी सोच ही नहीं रखते थे।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"दूसरी बात ये भी है कि पहले लोग शिक्षा पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते थे। ग़रीब इंसानों की सोच बहुत ही सीमित थी। वो इसी सोच के साथ जीते थे कि वो पैदा ही बड़े लोगों की सेवा करने के लिए हुए हैं। जीवन भर वो बड़े लोगों की ज़मीनों पर मेहनत मज़दूरी करते थे और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यही पाठ पढ़ाते थे। ख़ैर धीरे धीरे समय बदला और बड़े लोगों ने सिर्फ अपने लिए शिक्षा को प्राथमिकता दी। ग़रीब आदमी को शिक्षा की तरफ ये सोच कर बढ़ने नहीं दिया कि अगर वो शिक्षित हो जाएंगे तो फिर वो लोग उनकी सेवा नहीं करेंगे और ना ही उनकी ज़मीनों पर मज़दूरी करेंगे। बहरहाल, रही तुम्हारे दादा जी की बात तो उनके बारे में तुम्हें भी पता है कि वो कैसे इंसान थे। उनकी नज़र में तो आम इंसान उनके पैरों की धूल ही थे। वो भला कैसे ये चाह सकते थे कि उनके पैरों की धूल उड़ कर उनके सिर तक पहुंच जाए इसी लिए उन्होंने इस सबके बारे में कभी सोचना ही गवारा नहीं किया। उनके बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तो हमारे लिए सिर्फ एक ही काम रह गया था और वो था गांव समाज के डरे सहमे लोगों को सबसे पहले सामान्य अवस्था में लाना और फिर उन्हें अपनी खुशी से पूर्ण आज़ादी के साथ जीने के लिए प्रेरित करना। तब से ले कर अब तक हम सिर्फ यही करते आए हैं और लोगों का इंसाफ़ करते रहे हैं। हम मानते हैं कि हमें इन दो चीज़ों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए किंतु ऐसा इस लिए नहीं हुआ क्योंकि इसका शायद उचित समय ही नहीं आया था। सब कुछ इंसान के अख़्तियार में नहीं होता बल्कि नियति के लेख के अनुसार ही होता है। आज जिस तरह के हालात हैं उससे प्रतीत होता है कि अब हमें ऐसी चीज़ों पर सिर्फ ध्यान ही नहीं देना चाहिए बल्कि पूरे जोश के साथ अमल भी करना चाहिए। वैसे भी पिछले कुछ समय से हमारे साथ जो कुछ हुआ है उससे हमारी शाख पर बहुत असर पड़ा है। दूर दूर तक के लोगों के मन में भी हमारे बारे में जाने कैसे कैसे ख़याल पैदा हो गए होंगे। ऐसे में अगर हम लोगों की भलाई के लिए इस तरह के काम करेंगे तो लोगों के दिलों में फिर से हमारे प्रति पहले जैसी आस्था कायम हो जाएगी। हालाकि हमें अपने लिए किसी से आस्था की कोई ख़्वाहिश नहीं है बल्कि हम तो सच्चे दिल से चाहते हैं कि हम अगर पूर्ण रूप से सक्षम हैं तो हमें सबकी भलाई के लिए ऐसे काम करने ही चाहिए।"

"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं पिता जी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"लोग हमें अपना सब कुछ मानते हैं तो उनकी खुशी और भलाई के लिए हमें भी बहुत कुछ करना चाहिए।"

"आने वाले समय में इन सारे कामों के चलते व्यस्तता बढ़ जाएगी।" पिता जी ने कहा____"हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि सब कुछ बिना किसी परेशानी से सफलतापूर्वक हो जाए। इस बीच हमें सफ़ेदपोश को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना है। गुप्त रूप से हमारे आदमी इस बात का ख़ास ख़याल रखेंगे कि वो कब अपने बिल से निकलता है और क्या करने वाला है? इधर ऊपर से जैसे ही प्रस्ताव के लिए मंजूरी मिल जाएगी वैसे ही यहां पर अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य भी शुरू करवा दिया जाएगा। उसके लिए एक दिन पहले ही डिग्गी पिटवा कर गांव वालों को सूचित कर दिया जाएगा जिससे कि सही समय पर मज़दूर मिल जाएं और निर्माण कार्य में कोई विलम्ब न हो। गौरी शंकर को भी इस सबके बारे में पता है। उसने कहा है कि उससे जितना हो सकेगा वो इस काम में हमारी सहायता करेगा। उसकी तरफ से उसका भतीजा रूपचंद्र ख़ास तौर से इन कामों में उपस्थित रहेगा। हम चाहते हैं कि तुम भी उससे अपना बढ़िया ताल मेल मिला कर रखो और उसके साथ इन सभी चीज़ों पर ध्यान दो।"

"आप बेफ़िक्र रहें पिता जी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मैं अपनी तरफ से आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद मैं बैठक से बाहर निकल कर मोटर साईकिल से खेतों की तरफ निकल गया। आज पिता जी से इस सबके बारे में सुन कर और चर्चा कर के मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। इस बात की खुशी भी हो रही थी कि जल्द ही हमारे गांव का विकास होने वाला है जिसके चलते आम लोगों को काफी राहत मिलेगी।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice update🙏
 

Kuresa Begam

Member
224
692
108
अध्याय - 132
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



तीन दिन बाद।
उस वक्त रात के क़रीब बारह बज रहे थे।
हर तरफ अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था।
इसी अंधेरे और सन्नाटे से घिरा एक ऐसा साया बड़ी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ा चला जा रहा था जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। गांव की आबादी से थोड़ा दूर किनारे किनारे चलते हुए वो जल्दी ही धान बुए हुए खेतों में दाखिल हो गया। खेतों पर धान के घने पौधे थे जो उसके घुटनों के थोड़ा ऊपर तक थे। आसमान में छाए घने बादलों की वजह से आधे से कम मौजूद चांद की रोशनी खेतों पर नहीं पहुंच रही थी। गांव की आबादी से थोड़ी दूरी पर खेत थे। चारो तरफ खेत ही खेत थे। अगर अंधेरा न होता तो उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद लिबास चांद की मध्यम रोशनी में भी चमकता हुआ नज़र आता।

खेतों के बीच धान के पौधों को रौंदता हुआ वो सफ़ेदपोश तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ा चला जा रहा था। बीच बीच में ठिठक कर वो आस पास का जायजा भी ले लेता था और फिर से पलट कर उसी रफ़्तार से चल पड़ता था। कुछ ही समय में वो खेत पार कर के एक ऊंची मेढ़ पर आ गया। उसने अपनी भारी हो चली सांसों को कुछ पलों तक रुक कर नियंत्रित किया और फिर एक तरफ बढ़ता चला गया।

क़रीब पंद्रह मिनट बाद वो चंद्रकांत के घर के सामने पहुंच गया। रात के नीम अंधेरे में चंद्रकांत का घर किसी भूत की तरह नज़र आ रहा था। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा क़रीब चार फुट ऊंची चारदीवारी बनी हुई थी जिसके सामने बीचों बीच अंदर जाने के लिए रास्ता यानि द्वारा बना हुआ था। उस द्वार पर लकड़ी का ही बना हुआ दरवाज़ा लगा हुआ था। सफ़ेदपोश उस द्वार के पास आ कर रुक गया और चंद्रकांत के घर के दरवाज़े को घूरने लगा। घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा हुआ था। ज़ाहिर था चंद्रकांत के घर के अंदर इस वक्त कोई नहीं था। चंद्रकांत की मौत के बाद उसकी बीवी प्रभा और बेटी कोमल को आज से क़रीब दस दिन पहले उसके ससुराल वाले ले गए थे। कहने का मतलब ये कि चंद्रकांत की बीवी अपनी बेटी के साथ अब अपने मायके में ही रह रही थी। शायद उसके मायके वाले दोनों मां बेटी को अकेले यहां नहीं रहने देना चाहते थे।

सफ़ेदपोश काफी देर तक घर के दरवाज़े को देखता रहा। उसका चेहरा क्योंकि सफ़ेद नक़ाब में छुपा हुआ था इस लिए कोई नहीं बता सकता था कि इस वक्त उसके चेहरे पर किस तरह के भाव मौजूद होंगे? बहरहाल, वो वापस पलटा और आस पास का जायजा लेने के बाद एक तरफ को बढ़ चला। अभी वो क़रीब दस बारह क़दम ही चला था कि सहसा तभी सन्नाटे में उसे किसी हलचल का आभास हुआ जिसके चलते उसके क़दम अपनी जगह पर जाम से हो गए। उसने मात्र दो पल रुक कर हलचल को महसूस करने की कोशिश की और अगले ही पल मानों उसके जिस्म पर बिजली भर गई।

सफ़ेदपोश पूरी रफ़्तार से दौड़ते हुए एक तरफ भाग चला। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सैकड़ों भूत उसके पीछे पड़ गए हों। वैसे सच कुछ ऐसा ही था, फ़र्क बस इतना ही था कि उसके पीछे सैकड़ों भूत नहीं लग गए थे बल्कि कुछ इंसानी साए लग गए थे।

सफ़ेदपोश पूरी जी जान लगा कर एक तरफ को भागता चला जा रहा था किंतु वो महसूस कर रहा था कि उसका पीछा करने वाले निरंतर उसके क़रीब ही पहुंचते जा रहे हैं। इस एहसास के चलते वो और भी ज़्यादा तेज़ी से भागने की कोशिश करता जा रहा था किंतु अब इसका क्या किया जाए कि पीछा करने वालों के बीच का फ़ासला बढ़ने की बजाय निरंतर कम ही होता जा रहा था।

जल्दी ही सफ़ेदपोश को अपने सामने ऊंचे ऊंचे पेड़ पौधे नज़र आने लगे। इससे पहले कि वो उन पेड़ पौधों के क़रीब पहुंच कर उनमें खुद को ओझल करता पीछे से एक मर्दाना आवाज़ उसके कानों में पड़ी। मर्दाना आवाज़ में चेतावनी दी। एक पल के लिए तो सफ़ेदपोश की रफ़्तार धीमी हुई किंतु अगले ही पल जैसे उसने सब कुछ भुला कर फिर से अपनी रफ़्तार बढ़ा दी।

एक मिनट के अंदर ही सफ़ेदपोश ऊंचे ऊंचे पेड़ पौधों के क़रीब पहुंच गया और पेड़ों के बीच दाख़िल हो गया। ये कोई बग़ीचा था शायद जहां पहुंच कर सफ़ेदपोश ने थोड़ी राहत की सांस ली थी मगर आज शायद उसकी किस्मत ही ख़राब थी। क्योंकि तभी उसे महसूस हुआ कि बग़ीचे में उसके चारो तरफ बड़ी तेज़ी से हलचल होने लगी है। इस एहसास ने ही मानों उसके होश उड़ा दिए कि उसे चारो तरफ से घेर लिया गया है। उसने साफ महसूस किया कि बग़ीचे में उसके सामने और दाएं बाएं कई सारे लोग मौजूद हैं जो फिलहाल अंधेरे में उसे नज़र नहीं आ रहे थे। लेकिन वो उन्हें नज़र आ रहा होगा क्योंकि नीम अंधेरे में भी उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद लिबास धुंधली शक्ल में नज़र आ रहा था।

"तुम्हारा खेल ख़त्म हो चुका है सफ़ेदपोश।" तभी पीछे से उसके कानों में मर्दाना स्वर सुनाई दिया____"अगर तुमने कोई होशियारी दिखाने की कोशिश की तो यकीन मानों एक पल भी नहीं लगेगा तुम्हें यमराज के पास पहुंचाने में। तुम्हारे चारो तरफ मौजूद लोग तुम्हारी ज़रा सी भी ग़लत हरकत पर तुम्हें गोलियों से भून कर रख देंगे। इस लिए बेहतर यही होगा कि बग़ैर कोई हरकत किए तुम खुद को हमारे हवाले कर दो।"

सफ़ेदपोश के समूचे जिस्म में मौत की सर्द लहर दौड़ गई। मौत रूपी सर्द चेतावनी सुन कर वाकई उसने कोई ग़लत हरकत करने का इरादा नहीं बनाया बल्कि अपने दोनों हाथ उसने धीरे धीरे कर के सिर के ऊपर उठा दिए। नीम अंधेरे में उसकी हर क्रिया धुंधली सी नज़र आ रही थी जिससे स्पष्ट नज़र आ रहा था कि वो क्या कर रहा है।

"बहुत खूब।" तभी वही मर्दाना आवाज़ फिर उसके कानों में पड़ी____"तुमसे मुझे ऐसी ही समझदारी की उम्मीद थी। साथियों पूरी सतर्कता से आगे बढ़ो और सफ़ेदपोश को अपने क़ब्ज़े में ले लो।"

मर्दाना आवाज़ का इतना कहना था कि तभी वातावरण में हलचल होने लगीं। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि उसके चारो तरफ मौजूद साए उसकी तरफ बढ़ने लगे हैं। बग़ीचे की ज़मीन पर सूखे पत्ते पड़े हुए थे जिसके चलते चलने वालों की आवाज़ें स्पष्ट सुनाई दे रहीं थी। सफ़ेदपोश चाह कर भी कुछ न कर सका और कुछ ही देर में उसे कई सारे लोग नज़र आने लगे जिन्होंने उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।

"तुमने बहुत छकाया हमें।" सफ़ेदपोश के सामने आ कर उसी व्यक्ति ने कहा जिसने उसे चेतावनी दी थी। वो शेरा था, बोला____"तुम्हें पकड़ने के लिए हमने कैसे कैसे पापड़ बेले हैं ये हम ही जानते हैं। आख़िर आज हमारे हाथ लग ही गए तुम।"

सफ़ेदपोश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। सफेद नक़ाब में छुपे उसके चेहरे पर इस वक्त किस तरह के भाव थे ये अब भी कोई नहीं बता सकता था।

"इसके दोनों हाथ पीछे कर के रस्सी से बांध दो।" शेरा ने अपनी भारी आवाज़ में बाकी लोगों को जैसे हुकुम दिया____"तुम में से एक आदमी इसकी तलाशी लो। इसके पास रिवॉल्वर जैसा हथियार भी है। उसके बाद इसे मकान में ले जा कर एक कमरे में बंद कर दो।"

जल्दी ही शेरा के हुकुम का पालन हुआ और कुछ ही पलों में सफ़ेदपोश के दोनों हाथों को पीछे कर के दो आदमियों ने रस्सी से बांध दिया। हाथ बांधते वक्त दोनों आदमियों के चेहरों पर थोड़े चौंकने के भाव उभरे थे किंतु बोले कुछ नहीं।

"इसके पास कोई हथियार नहीं है शेरा भाई।" सफ़ेदपोश की तलाशी लेने वाले व्यक्ति ने कहा____"ये बिल्कुल निहत्था है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" शेरा के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"अच्छे से तलाशी लो। ये ऐसा शख़्स नहीं है जो बिना किसी हथियार के ऐसे ख़तरनाक कामों को अंजाम देने के लिए अपने बिल से निकलेगा। अच्छे से तलाशी लो इसकी।"

वो आदमी फिर से सफ़ेदपोश की तलाशी लेने लगा। तलाशी लेते वक्त वो एक दो बार हल्के से चौंका किंतु फिर ध्यान हटा कर वो तलाशी लेने लगा।

"नहीं है शेरा भाई।" फिर उसने कहा____"इसके पास कोई हथियार नहीं है। मैंने अच्छे से तलाशी ले ली है इसकी।"

"हैरत की बात है।" शेरा सफ़ेदपोश के क़रीब आते हुए उससे बोला____"ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके पास कोई हथियार ही नहीं है? पिछली बार जब हमने इसका पीछा किया था तो इसने हमारे एक आदमी पर इसी जगह गोली चलाई थी और हमारा वो आदमी मरते मरते बचा था।"

सफ़ेदपोश के दोनों हाथ रस्सी से बंधे हुए थे। चेहरे पर सफेद नक़ाब था। शेरा उसके थोड़ा और पास आया और ग़ौर से उसकी तरफ देखने लगा, फिर बोला____"मन तो बहुत कर रहा है कि तुम्हारा ये नक़ाब हटा कर देखूं कि कौन हो तुम मगर नहीं, मैं चाहता हूं कि सबसे पहले तुम्हारी सूरत पर मेरे मालिक की ही नज़र पड़े।"

"इसे ले जाओ यहां से और मकान के एक कमरे में बंद कर दो।" शेरा ने पलट कर अपने आदमियों से कहा____"और तुम में से दो लोग फ़ौरन हवेली जाओ और मालिक को इस बात की ख़बर दो कि हमने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है।"

"ठीक है शेरा भाई।" एक आदमी ने झट से कहा____"मैं और संपत अभी हवेली जाते हैं।"

कहने के साथ ही उसने संपत को इशारा किया और फिर वो दोनों हवेली की तरफ तेज़ी से बढ़ गए। इधर शेरा के कहने पर कुछ लोग सफ़ेदपोश को मकान के अंदर ले आए और उसे एक कमरे में बंद कर दिया। मकान में लालटेन जल रही थी। लालटेन की रोशनी में सभी के चेहरे खुशी से जगमगाते हुए नज़र आ रहे थे। आएं भी क्यों न, आख़िर उन सबने उस रहस्यमय इंसान को पकड़ लिया था जिसने इतने समय से दादा ठाकुर जैसे इंसान का सुख चैन हराम कर रखा था।

✮✮✮✮

हवेली में रात के उस वक्त थोड़ी हलचल सी मच गई जब एक दरबान ने दादा ठाकुर को ये बताया कि सफ़ेदपोश की खोजबीन करने वाले आदमियों में से दो लोग कोई ख़बर देने आए हैं। दादा ठाकुर फ़ौरन ही अपने कमरे से निकल कर बाहर आए जहां पर खड़े संपत और दसुआ बड़ी बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

दादा ठाकुर पर नज़र पड़ते ही दोनों ने सबसे पहले उन्हें हाथ जोड़ कर प्रणाम किया उसके बाद उन्हें बताया कि अभी कुछ देर पहले उन लोगों ने सफ़ेदपोश को आमों के बग़ीचे में पकड़ा है। दादा ठाकुर उनके मुख से ये सुनते ही पहले तो अवाक् से रह गए किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाला। उनके चेहरे पर पलक झपकते ही खुशी और जोश के भाव उभर आए थे।

"क्या तुम सच कह रहे हो?" ये जानते हुए भी कि उनसे वो झूठ बोलने का दुस्साहस नहीं कर सकते पूछ बैठे।

"जी हां मालिक।" संपत ने अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए कहा____"हम दोनों सच कह रहे हैं। कुछ देर पहले ही हम सबने मिल कर उसे घेर लिया था और फिर उसे पकड़ लिया। शेरा भाई के कहने पर हमने उस सफ़ेदपोश को मकान के एक कमरे में बंद कर दिया है। फिर शेरा भाई ने हमसे कहा कि इस बात की सूचना हम हवेली में जा कर आपको दें इस लिए हम दोनों आपको बताने यहां आ गए।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे कौन था वो जो सफेद लिबास में खुद को छुपा के रखता था?"

"ये तो हमने नहीं देखा मालिक।" दसुआ ने दीन हीन भाव से कहा____"बल्कि किसी ने भी उसका चेहरा नहीं देखा। शेरा भाई ने भी नहीं देखा है। उनका कहना है कि सबसे पहले आप ही उसका चेहरा देखें।"

"हम्म्म्म अच्छी बात है।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"ख़ैर बहुत ही बढ़िया काम किया है तुम लोगों ने। इस बड़े काम के लिए हम तुम सबको पुरस्कार देंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद मालिक।" संपत ने हाथ जोड़ कर खुशी से कहा____"आप बहुत महान हैं। हम सबके दाता हैं। हमारे भगवान हैं आप।"

"अच्छा अभी तुम लोग रुको।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम तैयार हो कर आते हैं।"

"जी ठीक है मालिक।" दसुआ झट से बोला।

दादा ठाकुर पलट कर अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। उनके चेहरे की चमक बता रही थी कि इस वक्त वो बेहद खुश हैं। खुशी की तो बात ही थी, क्योंकि ये वो ही जानते थे कि सफ़ेदपोश ने अब तक उनके दिलो दिमाग़ में कितना गहरा प्रभाव डाला हुआ था।

✮✮✮✮

मैं अपने कमरे में पलंग पर लेटा गहरी नीद में सो रहा था। नींद में ही मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि कहीं कुछ बज रहा है। एकाएक मेरे कानों में नारी स्वर टकराया तो मेरी नींद टूट गई। मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। आंखें मलते हुए मैंने इधर उधर नज़रें घुमाई। कमरे में लालटेन का बहुत ही धीमा प्रकाश फैला हुआ था। तभी मैं बुरी तरह चौंक पड़ा। कारण कमरे के दरवाज़े से मां की आवाज़ आई थी। रात के इस वक्त मां की आवाज़ सुन कर मैं फ़ौरन ही हरकत में आ गया। एक ही झटके में पलंग से कूद कर दरवाज़े के पास पहुंच गया और फिर दरवाज़ा खोला।

"क...क्या हुआ मां?" दरवाज़ा खोलते ही जब मेरी नज़र मां पर पड़ी तो मैंने उनसे पूछा____"आप इस वक्त यहां कैसे और....और दरवाज़ा क्यों पीट रहीं थी आप?"

"दरवाज़ा न पीटूं तो क्या करूं?" मां ने थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"तू तो एकदम हाथी घोड़े बेंच कर ही सो जाता है।"

"अब इसमें मेरी क्या ग़लती है मां?" मैंने मासूम सी शक्ल बनाते हुए कहा____"नींद तो नींद ही होती है ना। ख़ैर आप बताइए, रात के इस वक्त ऐसी क्या बात हो गई थी जिसके लिए आपको सीढियां चढ़ कर मुझे जगाने के लिए मेरे कमरे तक आना पड़ा?"

"हां वो...तेरे पिता जी ने बुलाया है तुझे।" मां ने कहा____"जल्दी से कपड़े पहन ले और नीचे आ जा।"

"अरे! ये क्या कह रही हैं आप?" मैं उनकी बात सुनते ही चौंक पड़ा____"रात के इस वक्त पिता जी ने किस लिए बुलाया है मुझे और कपड़े वगैरा पहन कर आने का क्या मतलब है? क्या मुझे उनके साथ कहीं जाना है?"

"हां, असल में बात ये है कि वो नासपीटा पकड़ा गया है।" मां ने कहा____"अभी थोड़ी देर पहले ही हमारे दो आदमियों ने यहां आ कर ये बताया है कि उन लोगों ने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है।"

"क्या????" मैं उछल ही पड़ा____"क्या आप सच कह रही हैं मां?"

"अरे! मैं भला तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?" मां ने मुझे घूरा____"और अब तू बातों में समय मत गवां। जल्दी से कपड़े पहन कर नीचे आ जा। तेरे पिता जी तैयार हो के बैठे हैं।"

कहने के साथ ही मां पलट कर चली गईं। इधर मैं अभी भी चकित अवस्था में खड़ा उन्हें जाता देख रहा था। बहरहाल मैंने अपने ज़हन को झटका दिया और पलट कर जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहनने लगा। मनो मस्तिष्क में एकाएक ही तूफ़ान सा चल पड़ा था। सफ़ेदपोश के पकड़े जाने की बात ने अभी तक मुझे हैरान कर रखा था। मेरे लिए ये बड़ी ही हैरान कर देने वाली बात थी कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है। वैसे झूठ का तो सवाल ही नहीं था किंतु फिर भी जाने क्यों ये बात हजम ही नहीं हो रही थी मुझे। ख़ैर जल्दी ही मैंने कपड़े पहने। उसके बाद अपनी रिवॉल्वर ले कर नीचे आ कर पिता जी से मिला। वो भी तैयार बैठे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।

"मां बता रहीं थी कि हमारे आदमियों ने सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है?" मैंने आते ही पिता जी से पूछा____"क्या ये सच है पिता जी?"

"तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि हमारे आदमी हमसे किसी भी कीमत पर झूठ नहीं बोल सकते हैं।" पिता जी ने कहा____"ज़ाहिर है सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली उनकी बात सच है और अब हम दोनों को वहीं जाना है।"

"तो क्या सफ़ेदपोश को पकड़ कर वो लोग यहां नहीं लाए?" मैंने उत्सुकतावश पूछा।

"उसे हमारे आमों वाले बाग़ में पकड़ा गया है।" पिता जी ने कहा____"शेरा ने उसे वहीं मकान के एक कमरे में बंद कर के रखा है।"

मैंने इसके बाद उनसे कोई सवाल नहीं किया। जल्दी ही हम दोनों बाहर आ गए। मैं जीप ले कर आया तो पिता जी उसमें बैठ गए। उनके कहने पर संपत और दसुआ भी उसमें बैठ गए। उसके बाद मैंने जीप को हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ा दिया।

"क्या हमें इस बात की सूचना गौरी शंकर को भी देनी है?" रूपचंद्र के घर के पास पहुंचते ही मैंने पिता जी से पूछा____"क्या आप उसे भी साथ ले चलना चाहते हैं?"

"नहीं।" पिता जी सपाट लहजे से बोले____"इस वक्त हमें किसी को अपने साथ ले जाने में समय नहीं बर्बाद करना है। हम जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश के सामने पहुंच जाना चाहते हैं और फिर ये जानना चाहते हैं कि वो कौन है और उसने ये सब क्यों किया?"

पिता जी की बात सुन कर मैंने जीप को धीमा नहीं किया बल्कि आमों वाले बाग़ में बने मकान में पहुंच कर ही रोका। जीप की हेड लाइट जान बूझ कर मैंने बंद नहीं की ताकि रोशनी रहे। मकान के बाहर ही शेरा अपने सारे आदमियों के साथ मौजूद था। पिता जी को देखते ही उसने अदब से झुक कर सलाम किया। बाकी लोगों ने भी उसका अनुसरण किया।

"कोई समस्या तो नहीं हुई उसे पकड़ने में?" पिता जी ने शेरा से पूछा।

"बिल्कुल नहीं मालिक।" शेरा ने कहा____"हमने बहुत ही आसानी से उसे पकड़ लिया है। हमने उसे बच निकलने का कोई मौका ही नहीं दिया था। हमारे आदमियों ने उसे बाग़ में चारो तरफ से घेर लिया था।"

"अच्छा।" पिता जी ने अविश्वास से आंखें फैला कर पूछा____"क्या उसने तुम लोगों की पकड़ से खुद को बचाने के लिए बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया?"

"कैसे करता मालिक?" शेरा ने कहा____"हमारे आदमियों ने उसे चारो तरफ से घेर लिया था। उसके बाद मैंने उसे सख़्त चेतावनी भी दे दी थी कि अगर उसने किसी भी तरह की बेजा हरकत की तो हमारे आदमी उसे गोलियों से भून देंगे जिसके चलते उसकी जीवन लीला यहीं समाप्त हो जाएगी।"

"यानि मौत के डर से उसने कोई ग़लत हरकत नहीं की और ना ही खुद को बचाने का प्रयास किया?" पिता जी ने पूछा____"ख़ैर कहां नज़र आया था वो?"

"साहूकारों के खेतों की तरफ से आया था।" शेरा ने कहा____"वहां से चंद्रकांत के घर के बाहर ही आ कर रुका था वो। काफी देर तक उसके घर के बाहर खड़ा दरवाज़े को देखता रहा था। किसी काम से वहां पर आया था वो किंतु शायद उसे पता नहीं था कि वर्तमान में चंद्रकांत के घर में कोई नहीं रहता है। मैं वहीं पर अपने चार आदमियों के साथ आ गया था। मुझे लगा पिछली बार की तरह वो कहीं इस बार भी हमारे हांथ से ना निकल जाए इस लिए फ़ौरन ही मैंने उसे पकड़ लेने का सोच लिया था। मैंने जान बूझ कर उसे ये आभास कराया कि वो ख़तरे में है ताकि वो अपने बचाव के लिए आमों के बाग़ की तरफ ही जाए और फिर हम उसे चारो तरफ से घेर कर पकड़ लें।"

"हम्म्म्म।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर उसकी तलाशी ली तुमने?"

"जी ली थी मालिक।" शेरा ने कहा____"लेकिन उसके पास से हमें कोई हथियार नहीं मिला। वो बिल्कुल निहत्था था।"

"क्या???" पिता जी के साथ साथ मैं भी चौंक पड़ा____"ये क्या कह रहे हो तुम? वो बिल्कुल निहत्था था? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"यही सच है मालिक।" शेरा ने कहा____"मैंने दो बार उसकी अच्छे से तलाशी करवाई थी किंतु उसके पास से कुछ नहीं मिला।"

पिता जी ने मेरी तरफ देखा। उनके चेहरे पर सोचो के गहन भाव उभर आए थे। मैं भी ये सोच कर चकित था कि सफ़ेदपोश जैसा शातिर व्यक्ति रात के इस वक्त निहत्था कैसे कहीं जा सकता था जबकि उसे भली भांति पता था कि हर पल उसके पकड़े जाने का ख़तरा उसके आस पास बना हुआ है?

पिता जी के पूछने पर शेरा ने बताया कि उसने सफ़ेदपोश को मकान के अंदर कौन से कमरे में बंद कर रखा है। ख़ैर मैं, पिता जी और शेरा कमरे के पास पहुंचे। बाकियों का तो पता नहीं किंतु मेरा दिल अब ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था कि आख़िर कौन होगा सफ़ेदपोश?

शेरा ने दरवाज़े की कुंडी खोल कर दरवाज़े के दोनों पल्ले खोल दिए। कमरे के अंदर लालटेन का तीव्र प्रकाश था। गलियारे में एक मशाल भी जल रही थी। उधर मैं और पिता जी धड़कते दिल के साथ कमरे में दाख़िल हो गए। अगले ही पल कमरे के एक कोने में सिमटे बैठे सफ़ेदपोश पर हमारी नज़र पड़ी।

लालटेन के पीले प्रकाश में आज पहली बार मैं और पिता जी उसे स्पष्ट रूप से देख रहे थे। उसको, जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद चमकीला लिबास था। हाथों में सफ़ेद दस्ताने, पैरों में सफ़ेद जूते और चेहरे पर सफ़ेद नक़ाब। कुल मिला कर उसका समूचा जिस्म सफ़ेद लिबास में ही ढंका हुआ था। नक़ाब में कुल तीन छेंद थे जिनमें से दो आंखों पर और एक मुख पर।

हमें अंदर आया देख सफ़ेदपोश ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखा। नक़ाब के अंदर से झांकती आंखों में एकाएक कई भाव आते नज़र आए। मैं उसी को देखे जा रहा था। सहसा मैं उसकी तरफ बढ़ चला। चार क़दमों में ही मैं उसके पास पहुंच गया और फिर पैरों के पंजों के बल बैठ कर उसे बड़े ध्यान से देखने लगा। नक़ाब से झांकती आंखों ने दो पल के लिए मेरी तरफ देखा और फिर झट से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ थे जोकि रस्सी से बंधे हुए थे।

"इसके चेहरे से नक़ाब हटाओ।" पीछे से पिता जी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"ज़रा हम भी तो देखें कि सफ़ेद लिबास में छुपा वो चेहरा किसका है जिसने हमारे रातों की नींद उड़ा रखी थी?"

उधर पिता जी का वाक्य ख़त्म हुआ और इधर मैंने हाथ बढ़ा कर सफ़ेदपोश के चेहरे पर मौजूद नक़ाब को पकड़ कर एक झटके में खींच कर उसके ऊपर से निकाल दिया। नक़ाब के हटते ही जिस चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख चीख निकल गई मेरी। पिता जी को तो मानो चक्कर सा आ गया। शेरा ने फ़ौरन ही उन्हें सम्हाल लिया।

"त...तू?????" पिता जी की तरह मैं भी चकरा गया____"तू है सफ़ेदपोश??? न....नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

मैं हलक फाड़ कर चीखा और पीछे हटता‌ चला गया। मुझे तेज़ झटका लगा था और साथ ही इतनी तेज़ पीड़ा हुई थी कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाता नज़र आया।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
मजेदार अपडेट 🎉🙏
कहीं रूपा तो नहीं है सफेदपोश? 🧐🧐

अगले अपडेट बेसब्री से इंतजार है
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
2,234
7,061
159
Mughe to lagta h ye aurat h aur ye safedposh nhi h ..... Safedposh ki fir se koi chal h........ Safedposh to. Jyada age ka aadmi h 40-50 ki age ka ...
 
Top