UPDATE 177 B
लेखक की जुबानी
बन्द कमरे मे कमलनाथ की छटपटाहट और बढ़ रही थी ।
वो जल्दी से अपना पाजामा निकाल कर वही बेड पर फेक दिया और भिगे सने अंडरवियर पहने हुए जल्दी जल्दी अपना बैग खोलने लगा ।
बैग खोलते ही सामने एक थैली थी , अचरज की बात थी कमलनाथ के लिए कि पैकिंग के समय तो ऐसा कुछ भी नही था उसकी बैग मे ।
उसने वो थैली उठाई और खोला तो उसमे सिर्फ और सिर्फ ब्रा पैंटी भरी हुई । ये वही थैली थी जो अभी अभी कुछ समय पहले निशा जल्दीबाजी मे कमलनाथ के बैग मे डाल कर फुरर हो गयी थी ।
कमलनाथ का ध्यान कुछ पलो के लिए ही सही मगर वो रंग बिरंगे ब्रा पैंटी ने खिंच लिया था ।
वो सब कुछ भूल कर उन्हे बाहर निकाल देखने लगा ।
कप की साइज़ पढ कर कमलनाथ को लगा जरुर ये रीना का है और गलती से ये उसकी बैग मे डाल दी होगी ।
इससे पहले कमलनाथ अपने हाथ मे ली हुई ब्रा को फ़ोल्ड कर वापस थैली मे डाल पाता कि बाथरूम का दरवजा खडका और शिला एक तौलिया लपेटे बाहर निकली

सामने शिला दिखाई पड़ते ही कमलनाथ की निगाहे उसकी चिकनी गदराई जांघो मे अटक गयी और वो अपनी स्थिति से अंजान वैसे ही भिगे हुए अंडरवियर मे उभरे हुए लण्ड के साथ हाथो मे ब्रा को थामे खड़ा हो गया ।
शिला ने जैसे ही झटके भर की नजर मे सामने कमलनाथ को देखा तो अगले ही चंद पलो मे उसने एक एक करके लगातार कई प्रतिक्रियाए दे डाली ।
कमरे मे किसी शक्स अचानक आ टपकने से शिला बुरी तरह से चौक गयी और वो चीख पड़ी ।
जैसे ही उसकी आंखो ने कमलनाथ का विस्मित चेहरा देखा उसकी आंखे और फैल गयि और आवाज गले मे अटक गयी ।
अगले ही पल उसने बन्द दरवाजे की चटखनि देखी और उसका कलेजा एक भय से काप उठा ।
वो शर्म और भय से जैसे ही वापस बाथरूम की ओर घूमने को थी कि उसकी नजर पहले कमलनाथ की टांगो और फिर उसके अंडरवियर पर गयी ।
जिसमे लण्ड पल पल फूलता जा रहा था ।

शिला ने नजर फेर कर बाथरूम की ओर घूमी और अचानक से उसके जहन मे एक उलझन सी हुई और उसने वापस झटके से अपनी नजर कमलनाथ के अंडरवियर पर मारी
और आंखे महीन करती हुई कमलनाथ के अंडरवियर के दाई हो भिगे हुए हिस्से पर फोकस किया और वापस से शॉक हो गयी ।
उसने कमलनाथ को अब संसय भरी नजरो से देखा ।
अब कमलनाथ की हड़बड़ाहट शुरु हो गयी थी क्योकि जिस तरह ही स्थिति ने कमलनाथ हाथो मे ब्रा मे ब्रा पकड़े भिगे अंडरवियर मे बन्द कमरे मे खड़ा था ।
ऐसे मे कोई भी देख कर यही सोचता कि वो ब्रा को सून्घ कर या जिसकी ब्रा है उसकी याद मे मूठ मार रहा था ।
कमलनाथ तुरंत सफाई भर्र लहजे मे हकलाता हुआ - न न नही नही ऐसा कुछ नही है वो मै मै
कमलनाथ ने फौरन ब्रा झटक कर दूर किया और इधर उधर तौलिया खोजने लगा ।
शिला की उसकी हड़बड़ाहट और तिलमिलाहट से हसी छूटने जैसे थी ।
शिला ने मजे लेते हुए हस कर - हमम तो फिर ये कैसे हुआ ?
कमलनाथ झेप कर नजरे फेरने लगा और अटकता हुआ - वो तो मै आय तो ...
शिला - तो !!
कमलनाथ हस कर - तो आप नहा रही थी तो बस ।
शिला की आंखे फटी की फटी रह गयी और वो अचरज और एक हसी भरी प्रतिक्रिया के साथ मुस्कुरा कर - तो क्या आप ये मुझे देख कर!!
कमलनाथ उसी अवस्था मे शिला की ओर बढता हुआ - देखिये प्लीज आईम सॉरी , वो मै बाहर बोर हो रहा था और हर जगह औरते ही है इस घर मे । ले देके मुझे ये कमरा खुला दिखा और मुझे लगा आप नहा चुकी होगी तो मै सोचा क्यू ना यही आराम कर थोडा अकेले मे ।
कमलनाथ ने शिला जे पास खड़ा होकर उसको जल्दी जल्दी मे अपनी सारी बात समझाने की कोसिस मे लगा था ।
कमलनाथ का यू उसके करीब आ जाना वो भी जब वो सिर्फ तौलिये मे थी शिला के जिस्म की कपकपाहट बढने लगी ।
शिला के नथुने अब फुलने लगे थे , छातिया अब कसनी शुरु हो गयी थी और तेजी से उपर निचे होने लगी थी ।
मोटे मोटे दाने वाले निप्प्ल अब तौलिये मे उभर कर साफ दिखने शुरु ही गये थे।
कमलनाथ ने अपनी बात जारी रखि -और फिर बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आई । मैंने देखा कि आप ..?
शिला शरमाहत भरी उत्सुकता से -मैं क्या
कमलनाथ-आप शॉवर के नीचे खड़ी थी और साबुन लगा रही थी और उस दृश्य को देखकर किसी का ईमां डोल जाये तो
शिला तुनक कर -एक तो आप मुझे नहाते हुए देख रहे थे और अब ये बाते भी कर रहे है
शिला की हसी ने कमलनाथ को आगे बढ़ने का मौका दिया-वास्तव में , मैं उस समय अपने होश में नहीं था, मैं बस अटक गया था ।
शिला ने झिझक भरे स्वर में - कहा !
कमलनाथ समझ गया कि यह अवसर सही था और उसने अपने हाथ शिला के चुतडो पर रख कर सहलाते हुए - यहाँ !
शिला चिहुकी-सीउई उहजज आप क्या कर रहे हैं, हटीए ।
कमलनाथ ने लपक कर शिला की कलाई पकड़ी और धीरे से -शिला !!
कमलनाथ का स्पर्श और उसके मुह से अपने नाम का सम्बोधन पाकर शिला का रोम रोम थरथरा गया उसकी सासे तेज होने लगी , उसने कमलनाथ की मुठ्ठि मे अपनी कलाई कहने भर को घुमा कर छुड़ा रही थी ।
शिला - सीई आह्ह क्या कर रहे है आप छोडिए
कमलनाथ उसकी कलाई को खिन्च कर अपनी ओर करता हुआ - शिला , प्लीज एक बार !
शिला का दिल जोरो से धडक रहा था और उसको अपने सपने का सिन दिख रहा था जब कमलनाथ ऐसे ही उसकी कलाई पकड़े हुए उसमे लण्ड देना चाह रहा था ।
शिला चुत ये सब सोच कर कुलबुलाने लगी उसे उम्मीद नही थी कि ये सब इतना जल्दी शुरु हो जायेगा ।
शिला - क्या , मै समझी नही !
कमलनाथ - तुम नही समझ रही हो सच मे ?
शिला - आह्ह नही मै वो नही पकड सकती हु , प्लीज ये गलत होगा ।
कमलनाथ शिला की प्रतिक्रिया पर उसके हाथ और अपने लण्ड के बिच की दुरी देख कर समझ गया कि शिला क्या समझ कर बोल रही है ।
कमलनाथ - मै वो नही कह रहा हु ।
शिला - फिर ?
कमलनाथ - मै तुम्हारा ये देखना चाहता हु बस
शिला ने धडकते दिल के साथ - क्या !!
कमलनाथ ने आगे बढ़ा और तौलिये के उपर से उसकी चर्बीदार गाड़ को सहला कर - येहह
कमलनाथ का स्पर्श पाकर शिला सिहर उठी - लेकिन वो तो आप देख ही चुके है ना !!
कमलनाथ अपने पंजे सरकाता हुआ उसकी चिकनी जान्घो तक ले गया और उन गदराई जांघो के बिच अपनी उंगलिया फसा कर सहलात हुआ - एक बार और मन है , प्लीज शिला मान जाओ ना
शिला कपकपाहट भरी सासे लेते हुए - उम्म्ंम्ं बस वही ना और कुछ नही ना !
कमलनाथ मुस्कुरा कर उसी तरह उसकी जान्घे मसलता हुआ ना मे सर हिला कर - उहू ।
शिला ने कमलनाथ की उंगलिया अपने चुतड़ के किनारो पर मह्सूस करते हुए सिहरन भरी गहरी सास लेते हुए आगे बिस्तर की ओर बढ गयी ।
उसके पाव कांप रहे थे और धडकनें तेज थी , सुबह बाग की शरारतो से लेकर शाम तक के सपने की यादे ताज़ा हुई जा रही थी और अब ये कि उसने अभी अभी उसको देख कर मूठ मारी थी ।
ये बाते शिला को रोमांचित किये जा रही थी , उसकी चुत बुरी तरह से पनियाई हुई थी ।
अपनी चुत के फाके कचोटती हुई वो आगे बिस्तर के पास जाकर रुक गयी ।
उसके जहन मे अभी यही चल रहा था कि क्या उसे पूरी खोल कर नंगी हो जाना चाहिए या फिर चुतड की झलक ही दिखाये
इस उल्झन मे उसने गरदन फेर कर कमलनाथ की देखा तो वो सीधा तन कर खड़ा हुआ था और उसका एक हाथ उसके वीर्य से सने अंडरवियर वाले हिस्से पर उभरे हुए सुपाड़े को मिज रहा था ।
कमलनाथ का यू बेशरमी से अपना मुसल मसलना शिला को उत्तेजित कर गया मानो वो उसके साम्ने चुदने जा रही हो
।
शिला ने बेचैन होकर कमलनाथ के चेहरे पर नजर उठाई तो उसके आंखो वो तलब वो उफनाहट दिखी , जिसे देख कर शिला की सासे भी चढ़ने लगी ।
शिला समझ गयी कि अब ये खेल कैसे खेलना था ।
उसने कमलनाथ की बेताबी बढाते हुए बिना तौलिया खोले ऐसे ही एक पैर का घुटना उठा कर उपर बिस्तर रख दिया ।
जिससे तौलिया उसके उभरे हुए चुतडो पर कस गया ।
वही कमलनाथ शिला के आगे की ओर झुकने का इन्तजार कर रहा था
शिला ने शरारत भरी नजरो से गरदन घुमा कर कमलनाथ को मुस्कुरा कर देखा और दूसरा घुटना भी उपर कर बेड पर चढ़ गयी ।
इधर कमलनाथ की सासे तेज होने लगी और उसका लण्ड पूरी तरह से उफान पर आ गया था । वो तेजी से अपना सुपाडा मुठियाए जा रहा था ।
शिला अपनी अगली चाल पर हौले से अपने पंजो के पल आगे झुकी जिससे उसका तौलिया उपर की ओर हल्का सा खिंचा और निचे से उसके चुतडो के जांघो से लगे उभार दिखने शुरु हो गये ।
कमलनाथ की बेताबी और बढ़ गयी वो भी दो कदम आ गया ।
वही अगले ही पल शिला झटके के साथ अपने कोहनी के बल आगे झुकी और उसका तौलिया उपर चढ़ कर उसकी कमर तक आ गया और उसकी बड़ी सी चर्बीदार गुदाज गाड़ चुत की रसिली फाको के साथ कमलनाथ के सामने फैल गयि ।

शिला की गदराई मोटी मोटी जान्घे और उपर मुलायम पहाड़ जैसे बड़े बड़े चुतड के गहरी भूरी दरारो से फान्को सहित झांकती शिला की रस छोडती चुत देख कर कमलनाथ पागल सा हो गया ।
वो फटी आखे और मुह बाए सुपाड़े को लेके एक एक कदम आगे चलता हुआ शिला की ओर बढ़ने लगा और शिला उसी अवस्था मे गरदन घुमा कर पीछे देख्ने की कोसिस मे थी ।
दोनो की सान्से तेज थी और कमरे की गर्मी बढ गयि थी ।
दोनो चुप थे और कमलनाथ शिला के करीब जाकर हौले से अपना हाथ उसकी नरम चुतडो पर घुमाकर उसके दरारो को फैलाता गाड़ की सुराख का मुआयना करता है ।
वही शिला कमलनाथ के स्पर्श से सिस्क पड़ती है और कमलनाथ के उसके चुतडो पर रेंगते पंजे उसको कामोत्तेजक किये जा रहे थे ।
कमलनाथ पूरी गाड़ को सहलाता हुआ अपना अंगूठा शिला के गाड़ की सुराख पर रख कर उसको मलता है और दुसरे हाथ से अपना मुसल मसल रहा होता है ।
वही शिला हल्का हल्का सिस्कते हुए कमलनाथ के अगले कदम की कल्पना किये जा रही थी , जिस तरह से वो उसके गाड़ की सुराख को कुरेद रहा था उसे पुरा यकीन था कि वो बिना अपना लण्ड घुसाये रहा नही जायेगा
मगर शिला घर के ऐसे माहोल मे जहा ढेर सारे मेहमान भरे हुए हो एक बण्ड कमरे मे पराये मर्द के साथ इतना व्क़त रुकना उचित नही लग रहा था और फिर अगर कही वो चुदने बैठ गयी तो ना जाने कित्ना और समय लग जाये ।
एक डर सा शिला के जहन मे छाने लगा था ऐसे उसने गरदन घुमा कर कमलनाथ से - हो गया !
कमलनाथ थुक कर शिला की ओर देखा और अपना मुसल भींचते हुए - क्यू क्या हुआ ?
शिला झुके हुए- देखीये घर मे बहुत लोग है हमे ज्यादा देर रुकना नहीं चाहिए, समझिये
कमलनाथ शिला की बात समझ गया और वो रिक्वेस्ट करने के भाव से - बस एक मिनट
शिला ने हुन्कारि भरी और सीधी हो गयी और वही कमलनाथ हल्का सा झुका और अपने नथुनो के शिला के गाड़ की सुराख पर ले जाकर उसकी खुस्बु लेने गया ।
उसके जिस्म मे एक अलग सी सिहरन हुई और वही शिला भी कमलनाथ की इस हरकत से गनगना गयी ।

अगले ही कमलनाथ की नुकीली शिला के सास लेते गाड़ की सुराख पर थी , गीली नरम खुरदरी जीभ का स्पर्श पाते ही शिला ने अपने चुतडो को सख्त करने लगी और दरारो को भींचने लगी
तो कमलनाथ ने दोनो हाथो के उसके चुतडो को थामते हुए पुरा मुह उसकी गाड़ की दरारो मे दे दिया और भर भर थुक उसके गाड़ की छेद्पर ल्गा कर चाटने लगा ।
शिला की सिसकिया और बेचैनी बढ़ गयी । वो अपने मुह पर हाथ रखे तेजी से अपनी चुत झाड़ रही थी , उसकी चुत का पानी उसकी जान्घ पर उल्टे ओर रिस रहाथा वही कमलनाथ अपनी जीभ होठ से उसकी गाड़ चाटना जारी रखा ।
जैसे ही शिला झड़ गयी वो अपने कोहनियो और घुटनो को घसीटतेहुए बिस्तर पर आगे बढ गयी
मुह का निवाला छीनता देख कमलनाथ भी उसकी ओर झपटा मगर शिला खिलाखिलाती हुई बिस्तर के दुसरी ओर उतर गयी और कमलनाथ उसके चेहरे की खुशी देख कर गदगद हो गया ।
वो बड़ी बेशरमी से शिला के सामने ही अपना 8 इंच का मोटा काले बैगन जैसा मुसल बाहर निकाला , जिसका गीला गुलाबी सुपाडा कमरे की रोशनी मे च्मक रहा था

कमलनाथ अपने लण्ड के तने को शिला के सामने सहलाते बड़ी हवसित भरी नजरो से निहारते हुए मुस्करा रहा था ।
शिला एक पल को उसके लण्ड की कसावट और आलू जैसे मोटे गोल सुपाड़े को देख कर ठिठक कर रह गयी थी और फिर इतरा कर शर्म से - धत्त क्या करते है जी , अन्दर करिये और जाईये नहा लिजिए
कमलनाथ मुस्कुराया और अपना मुसल मस्लते हुए - जरा इधर आओ पहले
शिला चहकती हुई ना मे सर हिला के खिलखिलाई बेड से लपक कर अपनी पैंटी और बाकी कपडे अपनी ओर खिंच कर पैंटी को जल्दी जल्दी चढा ली ।
मगर तौलिया अभी भी उसकी जिस्म पर था और फिर उसने ब्रा उठाई साथ ही कमलनाथ को इशारे से बाथरूम मे जाने के लिए कहा ।
कमलनाथ ने भी थोड़ी शरारत की और मुस्कुरा कर - ठिक है लेकिन !!
शिला - लेकिन क्या ?
कमलनाथ ने शरारत भरी मुसकान से - आप इसे नही पहनेंगी
शिला चौक के - क्यू भला ? आप समझ रहे हैं कि क्या बोल रहे है हिहिहिहिही
कमलनाथ - प्लीज ना शिला मान जाओ ना प्लीज
शिला ने हस कर ब्रा साइड मे रखते हुए - अच्छा ठिक है जाईये अब
कमलनाथ खुश हुआ और बाथरूम मे नहाने चला गया इधर शिला ने फटाफट से बिना ब्रा के उपर से कुर्ती डाल लिया और निचे से प्लाजो पहन कर राज के कमरे मे ही अपने बाल झाड़ कर स्वारने लगी ।
ऐसे मे कुछ पल बाद कमलनाथ नहा कर बाहर आया और उसकी निगाहे

शिला के झलकति जांघो पर गयी जिसमे प्लाजो मे से उसकी गुलाबी पैंटी साफ साफ दिख रही थी ।
जिसे देखते ही कमलनाथ का लंड कसने लगा ।
मगर ना जाने क्यू उसे शिला का क्यू ढीला प्लाजो कुछ जम नही रहा था ।
वो वैसे ही अधनंगा जिस्म पर तौलिया लपेटे शिला से बोला - यही पहनोगी क्या ?
शिला ने चौक कर उसकी ओर देखा और फिर हस कर - हमम क्यू क्या हुआ ?
कमलनाथ - इतना ढीला क्यू ?
शिला इतराई और बोली - सुबह आपने ही बोला था कि आप लोग लटको झटको से परेशान हो जाते है हिहिहिही इसिलिए
कमलनाथ बिफरता हुआ - नही नही नही , बदलो इसको !!
शिला को अचरज हुआ कि कैसे कमलनाथ उसपे हक जमा रहा था और वो तुनक कर कमर पर हाथ रखती हुई - हमम तब फिर क्या पहनू उम्म्ं आप ही ब्ता दो ?
कमलनाथ थोडा शर्मा कर झिझक कर - वो लेगी नही है क्या इसपे पहनने के लिए
शिला उसकी बातो से झेप गयि और शर्मा कर हस्ती हुई - धत्त मै नही कुछ बदलने वाली हुउह बडे आये फरमायिश करने
ये बोल शिला अपने समान लेके कमरे से बाहर निकल गयी और कमलनाथ भी मुस्कुरा कर रह गया ।
8 बजने को हो गये थे ।
बाहर के खा पी चुके थे तो रन्गीलाल की पहल पर ये आदेश हुआ कि घर के बाकी जन भी खाना खा ले और जो घर वापस जाने वाले थे वो भी खा कर जल्दी निकल जाये ।
फिर क्या पंखुडियां और उसकी सास , विमला की फैमिली , चंदू की फ़ैमिली , सारे लोग धीरे धीरे करके खाते पीते निकल गये ।
फिर बारी बारी से घर की बाकी महिलाओ और लोगो को भी खाने के लिए बोला गया ।
बाहर सारे लोग जुटे हुए थे , कोई खा रहा था कोई परोस रहा था ।
इधर शिला ने कमलनाथ की फरमाईस मान ली थी और बाहर आने से पहले उसने प्लाजो निकाल कर लेगी डाल लिया था जो उसके गुदाज जांघो मे चिपकी हुई थी । जिसे देख कर कमलनाथ बहुत खुश था और दोनो मे आंख मिचौली जारी थी ।
रागिनी - अरे रज्जो दीदी कहा है ?
रंगीलाल - अरे घर मे ही होगी , उनको इतना काम सौंप दी हो तुम क्या बताऊ मै ,जरा भी खाने पीने का ध्यान नही है
रागिनी चिंतित भाव मे - हमम कोई बात नही , पहले कोई खोज के लाओ वो भी साथ खाये खाना , कल से मै भी फ्री हो जाउन्गी ये पूजा पाठ ने उलझ कर रह गयी थी ।
जंगीलाल - रुकिये भाभी मै बुला के लाता हु
रंगीलाल - हा भाई जा जल्दी
फिर जंगीलाल लपक कर हाल मे गया और दो से तीन बार तेज आवाज मे भाभी भाभी चिल्लाया तो रागिनी के कमरे से रज्जो एक काटन मैस्की मे नहा कर बाहर निकाली
जिसमे उसके मोटे मोटे थन जैसे चुचे तने हुए हिल्कोरे खा रहे थे चलने पर ।

जंगीलाल की आंखे सीधा रज्जो के चुचो मे अटक गयी और वो नजर हटा कर रज्जो के चेहरे पर करता हुआ - भाभी वो सारे लोग आपका खाने के लिए वेट कर रहे है चलिये ।
रज्जो - ओहो अभी तो मै नहा कर आई हु , और गर्मी मे वापस से कपडे पहनने का मूड नही है , ऐसे करिये बच्चो मे किसी से बोलके मेरा खाना यही भिजवा दीजिये ।
जंगीलाल - अच्छा ठिक है
फिर जंगीलाल बाहर आया तो रंगीलाल और बाकी सब ने पूछा क्या हुआ ।
अब जंगीलाल थोडा असहज हुआ कि क्या बोले ।
रंगीलाल अपने भाई को असहज होता देखा इशारे से पुछा क्या हुआ तो जन्गीलाल उसके पास जाकर - भैया वो भाभी ने कहा है कि खाना भीतर ही भिजवा दो
रंगीलाल अचरज से - क्यू ?
जंगीलाल झिझक कर हल्के स्वर मे - वो अभी ज्स्ट नहा कर आई है और मैकसी मे है तो बाहर नही आना चाहती है ऐसे कपडे मे ।
रंगीलाल - ओह ऐसी बात है ,ठिक है फिर उनका खाना लेते जा
जंगीलाल - जी भैया
फिर जंगीलाल ने दो प्लेट खाने से सजाइ और उसको लेके भीतर चला गया
वापस से हाल आने पर जन्गीलाल लो रज्जो नही दिखी तो उसे लगा कि वो रागिनी के कमरे मे ही होगी ।
इसीलिए बिना कोई आवाज दिये वो रागिनी के कमरे के भिड़के हुए दरवाजे को हल्का सा पाव धकेल कर खोला क्योकि उसके दोनो हाथ के प्लेट थे ।
जैसे ही दरवाजा चूँ की आवाज से पूरा खुला तो सामने का नजारा देख कर जन्गीलाल का लण्ड एक ही झटके मे तन कर पजामे मे तम्बू बना गया उसका मुह मे शौक्ड से खुला का खुला रह गया , आंखे फैल सी गयि ।
सामने रज्जो कुलर के आगे अपनी मैकसी को चुचो तक उपर उठाये कुलर की ठंडी हवा सीधा अपनी चुत और जांघ पर ले रही थी । साफ दिख रहा था कि गर्मी से वो खासा परेशां है ।
उसके चर्बीदार भारी उभरे हुए चुतड पूरे नंगे थे ।
दरवाजा खुलने की आवाज और कमरे मे किसी के आने की आहट पर रज्जो भी चौकी और झटके से गरदन घुमा कर दरवाजे की ओर देखा तो उसका शरिर अकड़ गया ।
उसने झट से अपना मैक्सि निचे कर दिया और नजरे इधर ऊधर करने लगी ।
शिला की स्थिति मे बदलाव ने जन्गीलाल की चेतना वापस लाई और वो उस पल को इन्गोर करने की कोसिस करता हुआ रज्जो से नजरे चुरा कर वो खाने की प्लेट वही टेबल पर रखता हुआ - भाभी जी ये खा लिजिएगा ?
ये बोलकर जन्गीलाल झटके से कमरे से बाहर जाना चाहता था मगर जैसे ही रज्जो की नजर खाने के प्लेट पर गयी तो उसने जंगीलाल को रोका ।
रज्जो - सुनिये !!
जंगीलाल उसकी ओर पीठ किये हुए - जी भाभी !
रज्जो - अरे इतना सारा मै नही खा पाऊंगी , थोडा कम करा दीजिये ।
जन्गीलाल - अह भाभी आपको जितना खाना हो खा लिजिए बाकी छोड़ दिजियेगा
ये बोलकर जंगीलाल जैसे ही 2 कदम आगे बढ़ा
रज्जो - अच्छा सुनिये !!
जंगीलाल खीझ कर - जी भाभी !
रज्जो - प्लीज ये सब किसी से कहियेगा मत , वो मुझे गर्मी हो रही थी तो ...।
जंगीलाल - जी भाभी मै समझ गया , आप चिंता ना करे ।
ये बोल कर जंगीलाल आगे बढ कर जैसे ही दरवाजे तक पहुचा कि
रज्जो खुश कर - अच्छा सुनिये !!
जंगीलाल इस बार पूरी तरह से खिझा हुआ घूम कर - हम्म्म बोलिए !
रज्जो थोडा शर्मा कर मुस्कुराते हुए - कुछ नही थैंक्यू कहना था ।
जन्गीलाल अचरज से - थैंकयू , क्यू?
रज्जो - वो आप खा....
रज्जो बोलते हुए अचानक रुक गयी तो जन्गीलाल ने उसकी ओर देखा और उसकी नजरो का पीछा किया तो पाया कि रज्जो की नजर तो उसके टनटनाये लण्ड पर अटक गयी है और ऐसे मे रज्जो क्या सोचेगी उसके बारे मे ।
जंगीलाल ने फौरन उसपे अपना हाथ रख कर घूम गया - स स सॉरी भाभी जी वो वो
रज्जो मुस्कुरा कर - कोई बात नही हो जाता है ऐसा कभी कभी
जन्गीलाल शर्म से पानी पानी हो चुका था और दबे हुए लहजे मे - तो मै जाऊ भाभी
रज्जो हस कर - हमम ठिक है
फिर जंगीलाल तेजी से कमरे से बाहर निकल हाल मे अगया और पंखे निचे खड़े होकर अभी अभी जो हुआ सब उसके दिमाग घूमने लगा ।
आखीर मे रज्जो ने जिसतरह इस बात को हल्के फुल्के अंदाज मे लिया उस्से जन्गीलाल को अब अच्छा लग रहा था । कि इस बात को लेके रज्जो ने कोई ब्वाल नही किया उपर से वो उसके भाई की मेहमान थी तो उसे डर ज्यादा था
फिर वो अपना मुसल सेट करके बाहर खाना खाने आ गया ।
जारी रहेगी ।