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लंबे–लंबे चर्चे और उस से भी लंबी वुल्फ पैक को मारने वालों की लिस्ट। इस बात से बेखबर की जिस होटल में पलक थी, उसका पूरा सिक्योरिटी सिस्टम हैक हो चुका था। आर्यमणि उनकी मीटिंग देख भी रहा था और सुन भी रहा था।
20 फरवरी की शाम तक वुल्फ पैक चोरी के समान ढूंढने निकली सभी प्रहरी टीम को गायब कर चुकी थी। काम खत्म करने के बाद जयदेव को देखने का अपना ही मजा था। एलियन का नेटवर्क हैक करने के बाद तो जैसे सारे राज से परदे उठ गये हो।
जयदेव अपने लोगों के बीच एक मीटिंग करके और खोजी भेजने की मांग कर रहा था। और बाकी के लोगों ने ऐसा धुतकारा की जयदेव अपने बाल खुद ही नोचते कह दिया, “अब समान ढूंढने कोई भी खोजी टुकड़ी नही जायेगी।”...
आर्यमणि को जब वह दृश्य दिखाया गया, आर्यमणि हंसते हुये कहने लगा.... “अभी तक तो सुकून से जीते आये थे। अब पता चलेगा पृथ्वी पर जिंदगी जीना कितना कठिन होता है।”
रूही:– हम न्यूयॉर्क में क्या कर रहे है आर्य? जर्मनी में 8 मार्च की मीटिंग जो फिक्स किये हो, उसपर नही सोचना क्या?
आर्यमणि:– सब अपने तय समय से होगा रूही, धैर्य रखो। फिलहाल मैं संन्यासी शिवम् सर के साथ कुछ दिनों के सफर पर निकल रहा हूं, जब तक तुम लोग भी मौज–मस्ती करो। एक भाग–दौड़ वाला काम समाप्त किया है, आगे एक सर दर्द वाला काम शुरू होने वाला है। बीच में थोड़ा वक्त मिला है तो मौज–मस्ती कर लो। जब दिमाग से चिंतन और बोझ निकलेगा तब जाकर काम करने में भी मजा आयेगा।
रूही:– बॉस ये थ्योरी तुम पर भी लागू होती है। तुम भी आओ मस्ती करने। (रूही बिलकुल धीमे होती) वैसे भी बहुत दिनों से हमारे बीच कुछ हुआ भी नही। मन में कैसी–कैसी उमंगे जगी है, कैसे समझाऊं...
अलबेली:– धीरे से क्या बुदबुदाई... कान लगाने पर भी नही सुन सके...
निशांत:– होने वाले मियां–बीवी है, जिस्म की उफनती प्यास पर ही चर्चा किये होंगे...
आर्यमणि, संन्यासी शिवम् के साथ वहां से हड़बड़ी में निकलते.... “अल्फा पैक के साथ तुम्हारा समय भी मौज मस्ती में कटे निशांत।”
आर्यमणि अपनी बात कहकर संन्यासी शिवम् के साथ अंतर्ध्यान हो गया। दोनो टेलीपोर्ट होकर सीधा बर्कले, कैलिफोर्निया पहुंचे। सुकेश के घर से चोरी का सारा सामान को मिनी–पिकअप ट्रक में इकट्ठा किया, और पूरे ट्रक को टेलीपोर्ट करके सीधा कैलाश मठ पहुंच गये। कैलाश मठ में आचार्य जी के अलावा अपस्यु भी मौजूद था। दोनो की नजरें जैसे ही मिली, एक दूसरे के गले लगते हाल–चाल पूछने लगे।
आर्यमणि:– छोटे, जर्मनी का काम पूरा हो गया?
अपस्यु:– हां बड़े पूरा हो गया।
अपस्यु अपनी बात कहने के साथ ही वुल्फ हाउस का ले–आउट निकाला, साथ में अपना लैपटॉप भी खोल लिया। अपस्यु अपने लैपटॉप पर हर छोटे हिस्से को बड़ा करके दिखाते...
“वुल्फ हाउस के चारो ओर की जितनी भी प्रॉपर्टी को तुमने खरीदा था, वहां ट्रैप बिछा दिया गया है। हमने लगभग 5 किलोमीटर के एरिया को कवर कर लिया है। जमीन के नीचे हर 5 फिट की गहराई पर छोटे एक्सप्लोसिव लगाये है, जो 4o फिट नीचे गहराई तक जाते है।
आर्यमणि:– मतलब एक पॉइंट की गहराई में ऊपर से लेकर नीचे तक 8 एक्सप्लोसिव होंगे...
अपस्यु:– हां, एक पॉइंट पर 8 छोटे एक्सप्लोसिव है और हर 2 फिट की दूरी पर एक पॉइंट है। 10 पॉइंट के एक्सप्लोसिव को यदि डेटोनेट करते हो तो 20 फिट का पूरा एरिया 40 फिट नीचे घुस जायेगा। इतना ही डिमांड था न बड़े...
आर्यमणि:– हां बस इतना ही डिमांड था छोटे। लेकिन एक सवाल है। नही–नही कुछ सवाल है छोटे... जैसे की मैने 100 पॉइंट के एक्सप्लोसिव को उड़ाया और बाकी के एक्सप्लोसिव कोई इस्तमाल में ही नही आया, उसका क्या करेंगे...
अपस्यु:– बड़े ये एक्सप्लोसिव इतने छोटे है कि एक पॉइंट के एक या दो एक्सप्लोसिव खुद से भी फट गये तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। फर्क लाने के लिये एक साथ 4 पॉइंट के एक्सप्लोसिव को उड़ना होगा तब इंपैक्ट आयेगा। दूसरा ये है कि ये जितने भी एक्सप्लोसिव है, उसका कवर घुलने वाली सामग्री से बनाया गया है। एक कमांड दोगे और बचा हुआ पूरा एक्सप्लोसिव का मैटेरियल मिट्टी में मिल जायेगा।
आर्यमणि:– शानदार छोटे... महल के अंदर की व्यवस्था बताओ...
अपस्यु:– बड़े जैसी तुम्हारी मांग थी, उसे पूरा कर दिया गया है। वैसे इतने बड़े महल की दीवार और फ्लोर को 3 इंच छिलवाने में 2000 मजदूरों की जरूरत आन पड़ी थी, लेकिन 3 दिन के अंदर काम पूरा हो गया। जाकर देखो तुम्हारा पूरा महल ही अब बाहर और अंदर से चमकने लगा है।
आर्यमणि:– महल तो नया हो गया लेकिन जो काम कहा था वो पूरा हुआ या नहीं?
अपस्यु:– पूरे घर में ही जाल बिछा दिया है।
आर्यमणि:– खुलकर पूरा बता छोटे...
अपस्यु:– तुम्हारी क्या डिमांड थी बड़े, तुम या अल्फा पैक किसी को देखो और वो एयर टाइड पैकिंग की तरह किसी पलस्टिक में ऐसे चिपके की बस आकर समझ में आये।
आर्यमणि:– हां बिलकुल...
अपस्यु:– वही तो बता रहा हूं बड़े। पूरे घर की हर दीवार, फ्लोर, फिर वो बाहरी दीवार या फ्लोर या फिर घर के अंदर की दीवार हो या फ्लोर उसे 4 इंच छिलवा दिया। छिले हुये हिस्से में पूरा मैकेनिकल सिस्टम इंस्टॉल कर दिया। सिस्टम की वायरिंग कंप्लीट कर दिया और फिर सबको अच्छे से पैक करवा दिया।
आर्यमणि:– इस से क्या होगा????
अपस्यु:– इस से ट्रैप होगा। पूरे घर और बाहर, हर 10 इंच के दूरी पर एक 5 इंच लंबा और 2 इंच चौड़ा शटर लगा है। शटर खुलेगा और उसके अंदर से 1 सेंटीमीटर मोटा बड़ा सा प्लास्टिक चादर उछल कर बाहर निकलेगा और अपने शिकार के ऊपर चिपक जाएगा।
आर्यमणि:– और वो शिकार अपने हाथ से उस प्लास्टिक चादर को उतार देगा।
अपस्यु:– बिलकुल नहीं... पहली बात एक टारगेट पर एक नही बल्कि 2 प्लास्टिक चादर उछलकर जायेगा। एक आगे और एक पीछे से। वह पास्टिक चादर जैसे ही हवा के कॉन्टैक्ट में आयेगा, वैसे ही सिकुड़ जायेगा।
आर्यमणि:– कितना सिकुड़ सकता है चादर...
अपस्यु:– 8 फिट की चादर सिकुड़ कर 1 या 2 सेंटीमीटर (1mm) का बन जायेगा। अब सोचकर देखो कितना टाइट पैकिंग होगी।
आर्यमणि:– वाह... कमाल... अद्भुत... हां लेकिन स्वांस न लेने के कारण दम घुटकर मरेगा तो नहीं...
अपस्यु:– यही तो कमाल है, किसी का दम घुटने की वजह से मौत न होगी। नाक की छेद पर जब प्लास्टिक टाइट होगा तो वहां कोई भी सपोर्टिंग सतह नही मिलेगा और वह प्लास्टिक टूटकर खुद–ब–खुद नाक के बाहरी और भीतरी दीवार से चिपक जायेगा।
आर्यमणि:– अच्छा और किसी के आंख से लेजर किरण निकलती हो, उसका क्या?
अपस्यु:– आंख खोलने का वक्त नहीं मिलेगा। जैसे ही पलक झपके उतना वक्त में तो चिपक चुके होंगे। और यदि कोई वीर आंख बंद नही किया, फिर वो कभी देख नही पायेगा। क्योंकि उसकी आंख से लेजर निकले उस से पहले ही वो प्लास्टिक आंखों पर किसी स्किन की तरह चिपक चुकी होगी। जैसे किसी की आंख पर पलक को स्थाई रूप से चढ़ा दिया गया हो।
आर्यमणि:– कमाल कर दिया छोटे... अब ये बता की हमारे देखने मात्र से अपना टारगेट एयर टाइट पैक कैसे होगा? ये ऑटो कमांड काम कैसे करेगा...
अपस्यु:– क्या बड़े, मजाक कर रहा था। ऐसा सिस्टम अभी डिवेलप कर पाना मुश्किल है। वैसे भी एक वक्त पर 100 लोग सामने है तो कितनो को देख लोगे...
आर्यमणि:– ठीक है समझ गया छोटे... तू कमांडिंग सिस्टम बता...
अपस्यु:– 4000 कैमरा पूरे 10 किलोमीटर के इलाके को कवर कर रहा है। सबको फेस रिकॉग्नाइजेशन मोड पर डाल देना। भिड़ यदि उमड़े तो एक साथ ट्रैप कमांड दे देना। वो लोग जैसे ही रेंज में आयेंगे, सब के सब चिपक जायेंगे। फिर यदि उनमें से किसी को छोड़ना हो तो फेस रिकॉग्नाइजेशन में सबकी तस्वीर पड़ी मिलेगी। वहां देखना, सर्च में डाल देना, कैमरा उसकी लोकेशन बता देगा।
आर्यमणि:– छोड़ेंगे कैसे...
अपस्यु:– आसान है.. हाथ में चाकू या ब्लेड न हो तो अपने पंजे से... जैसे दूसरे एयर टाइट पैक खोलते है।
आर्यमणि:– छोटे वैसे एक झोल है... यदि 20 लोग भिड़ लगाकर आयेंगे तब तो वो प्लास्टिक किनारे के लोगों को ही लपेटेगी, बीच के लोगों का क्या?
अपस्यु:– बड़े पलक झपकते ही जिन्हे चिपका दिया गया हो। जो अपनी उंगली तक को हिला नही पायेंगे, वह कितना देर पाऊं पर खड़े रहेंगे। अब जरा कल्पना करो। 100 लोगों की भिड़। कमांड दिये और पलक झपकते ही 20 लोग गिरे। फिर पलक झपके और फिर 20 लोग गिरे... फिर 20... और ऐसे ही, 10 –12 बार पलक झपकते ही काम खत्म...
आर्यमणि:– एक ही जगह पर होंगे तो कैसे काम खत्म। 5 इंच लंबे और 3 इंच चौड़ा शटर है। उसकी गहराई एक इंच से ज्यादा न होगी क्योंकि 3 इंच गहराई में मैकेनिकल काम भी हुआ है। उसके अलावा फ्लोर पर चलने से या दीवार को हाथ लगाने से कोई भी ट्रैपर बाहर न निकले, ये सिस्टम भी दिये होगे। तो एक जगह पर मात्र 2 प्लास्टिक होगा। हमला करने वाले रेंज में यदि 25 शटर हुये तब तो 10 लोग भी ट्रैप न होंगे।
अपस्यु:– बड़े ये कैसा कैलकुलेशन है? 25 शटर भी खुले तो 50 प्लास्टिक हुआ न...
आर्यमणि:– अच्छा और क्या गारंटी है कि एक के शरीर पर एक्स्ट्रा चादर न चढ़ेंगे। क्योंकि पलक झपकते उछल कर निकलने वाली चीज रिपीट होगी ही होगी।
अपस्यु:– बड़े तुम्हे क्या लग रहा है,उस पूरे घर में कितने ट्रैपर लगे होंगे..
आर्यमणि:– कितने... 500 या 1000...
अपस्यु:– 12लाख 85हजार 3सौ 72 (1285372) ट्रैपर लगे हैं। यदि 2 शिकार के ऊपर प्लास्टिक की चादर ओवरलैप कर गयी और वो ठीक से पैक न हो पाये, तो भी वो दूसरी बार में, तीसरी बार में कभी न कभी ट्रैप होंगे ही। पूरा काम करवाने में ऐसे ही नही मैने 1 करोड़ 56 लाख यूरो खर्च किये है।
आर्यमणि:– भारतीय रुपयों में बता...
अपस्यु:– 140 से 150 करोड़ के बीच...
आर्यमणि:– काफी ज्यादा खर्च हो गया छोटे। भरपाई करनी होगी। खैर कोई न... 8 मार्च को या तो सारा पैसा वसूल हो जायेगा। नही तो अपनी फिजूल खर्ची पर आंसू बहाने के लिये मैं न रहूंगा...
अपस्यु:– बड़े, ऐसा न कहो... कहो तो मैं भी अपनी टीम साथ ले लूं..
आर्यमणि:– नही छोटे... अभी सात्त्विक आश्रम के एक गुरु का भय उनके सामने आने दो। हम दोनो को उसने देख लिया तो दोनो के पीछे लग जायेंगे। मैं नही चाहता की आश्रम अब कमजोर हो।
अब तक जो मूक दर्शक बने आचार्य जी सुन रहे थे.... “गुरुजी फैसला तो सही है किंतु इसका परिणाम सोचा है। जर्मनी से निकल भी गये तो उसके बाद क्या होगा? मंत्र सिद्ध करने नही। कुंडलिनी चक्र जागृत नही करना और 6 करोड़ की आबादी से सीधा दुश्मनी। मुट्ठी भर लोग कितने भी ताकतवर क्यों न हो, अचानक उमरी भिड़ के आगे दम तोड़ ही देते है। तुम एक बार योजना बनाकर उन्हें मारने जा रहे हो लेकिन उसके बाद क्या? वो लोग हर पल तुम्हे मारने की योजना बनायेंगे... एक बात याद रखिए, बचने वाले को हर बार तकदीर की जरूरत पड़ती है लेकिन मारने वाले को बस एक मौका चाहिए। लागातार कोशिश के दौरान क्या उसका नसीब एक बार न लगेगा...
आर्यमणि:– इतनी जल्दी नही मारूंगा आचार्य जी। मैने अपने अभ्यास और मंत्र सिद्धि का स्थान ढूंढ लिया है। जर्मनी में आश्रम का अस्तित्व दिखाने के बाद मैं पूरी अल्फा टीम को लेकर ऐसे आइलैंड पर जाऊंगा जहां टेलीपोर्ट होकर भी नही आ सकते। वहीं मैं अपने अंदर के निहित ज्ञान को निखारूंगा और तब वापिस आऊंगा। तब तक आप लोग गुप्त रूप से सारा काम संभाल लोगे न।
अपस्यु:– मैं बेकार में चिंता कर रहा था। बड़े अच्छा सोचा है। यहां पर कुछ दिन के अभ्यास के बाद मैं भी दिल्ली निकल जाऊंगा। सही वक्त आ गया है।
आर्यमणि:– मेरी सुभकामनाएं है। चलो तो फिर युद्ध अभ्यास किया जाये।..
आचार्य जी दोनो के गले में (आर्यमणि और अपस्यु) अभिमंत्रित मणि की माला डालकर.... “अब आश्रम की पूरी जिम्मेदारी आप दोनो पर है।”.... फिर आर्यमणि के हाथ में एनर्जी फायर (एनर्जी स्टोन से बनी वही माला जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी) रखते.... “इसे अपने बाजुओं में धारण कर लीजिए। जब भी किसी को ताकत का भय दिखाना हो अथवा कहीं भिड़ में घिरे हो, आपको पता ही क्या करना है। अब अभ्यास शुरू कीजिए।”
अगले 7 दिनो तक अभ्यास चला। कैलाश पर्वत के मार्ग पर जमा देने वाली ठंडी और ऊबड़–खाबड़ पर्वतों के पथरीली जमीन पर चलती तेज तूफानों के बीच आत्मा तक को थका देने वाला अभ्यास चला। तेज हवाएं कदमों को लड़खड़ाने पर मजबूर कर दे। पर्वत के संकड़े आकर और उसका ऊबड़–खाबड़ होना, कदम को ठहरने न दे। कई तरह के जहरीले हर्ब और नशीले पदार्थ जब श्वांस द्वारा अंदर शरीर में जाता, तब बचा संतुलन भी कहीं हवा हो जाता। ऐसे विषम परिस्थिति में दोनो नंगे पाऊं अभ्यास कर रहे थे।
एक बार जब अभ्यास शुरू हुआ, फिर न तो रुके और न ही खुद को थकने दिया। ना ही सोए और न ही नींद को खुद पर हावी होने दिया। न भूख लगी न प्यास। रक्त से भूमि लाल होती रही, किंतु कदम रुके नहीं। बस एक दूसरे के साथ लड़ते रहे, अभ्यास करते रहे।
7 दिन बाद जब अभ्यास विराम हुआ, दोनो सीधा पर्वत के संकड़ी भूमि पर गिर गये। गिरे भी ऐसे की सीधा हजार फिट नीचे खाई की गोद में आराम करते। किंतु दोनो सिर्फ इतने होश में की एक दूसरे का हाथ थाम लिया। संकरे पर्वत के एक ओर आर्यमणि तो दूसरी ओर अपस्यु लटक रहा था। और अचेत अवस्था में भी दोनो के हाथ छूटे नहीं।
दोनो की जब आंखे खुली, दोनो आश्रम में लेटे थे। होश तो आ गया था, किंतु शरीर को अभी और आराम की जरूरत थी। 3 दिन फिर दोनो ने पूर्ण रूप से आराम किया। पौष्टिक सेवन और तरह–तरह की जादीबूटीयों से शारीरिक ऊर्जा और क्षमता को एक अलग ही स्तर दिया जा चुका था।
2 मार्च को दोनो (आर्यमणि और अपस्यु) आचार्य जी से विदा ले रहे थे। आर्यमणि, गुरु निशि और उनके शिष्य को जिंदा जलाने वालों के साजिशकर्ता एलियन से हिसाब लेने निकल रहा था, तो वहीं अपस्यु गुरु निशि और अपने सहपाठियों के कत्ल को जिन्होंने अंजाम दिया था, उनसे हिसाब लेने निकल रहा था। आर्यमणि और अपस्यु गले मिलकर एक दूसरे से विदा लिये।
संन्यासी शिवम् संग आर्यमणि 3 मार्च को अल्फा पैक से मिल रहा था। सभी फ्रांस की राजधानी पेरिस में थे। पेरिस के एक बड़े से होटल का ऊपरी मंजिल इन लोगों ने बुक कर रखा था। ऊपरी मंजिल पर 5 वीआईपी स्वीट्स थे। एक स्वीट में इनका डिवाइस और ऑपरेटिंग सिस्टम था। बाकी के 4 स्वीट्स में से एक निशांत, एक अलबेली, ओजल और रूही का था। एक इवान का और एक आर्यमणि के लिये छोड़ रखा था।
थे तो सबके अलग–अलग स्वीट्स, लेकिन पूरा अल्फा पैक रूही वाले स्वीट्स में ही था और सब मिलकर निशांत पर अत्याचार कर रहे थे। अंतर्ध्यान होकर आर्यमणि और संन्यासी शिवम् वहीं पहुंचे। चारो ओर सिरहाने की रूई फैली हुई थी। बिस्तर का पूरा चिथरा उड़ा हुआ था। स्वीट में रखे सोफे को नोच डाले थे। और उसी नोचे हुये सोफे पर निशांत लेटा था। अलबेली और रूही उसके दोनो हाथ पकड़े थे। ओजल और इवान उसके दोनो पाऊं और निशांत के तेज–तेज चिल्लाने की आवाज... “जालिम वुल्फ्स तुम सब मिलकर मेरा शिकार नही कर सकते”...
“यहां हो क्या रहा है?”.... आर्यमणि वहां का नजारा देखकर पूछने लगा...
निशांत:– मेरे दोस्त तू आ गया। भाई जान बचा ले वरना आज तो तेरा दोस्त गियो...
आर्यमणि:– यहां हो क्या रहा है। तुमलोग निशांत को ऐसे पकड़ क्यों रखे हो...
रूही:– जान तुम जरा दूर ही रहो। पहले हमारा काम हो जाने दो फिर बात करते है।
आर्यमणि:– अभी के अभी उसे छोड़ दो। मस्ती मजाक का समय समाप्त हो गया है, अब हमें काम पर ध्यान देंगे...
रूही:– हमारा समय अभी समाप्त नहीं हुआ है।
आर्यमणि:– पर हुआ क्या वो तो बताओ?
रूही:– वो मैं नही बता सकती।
आर्यमणि:– जो भी पहले बताएगा वो मेरे साथ एक्शन करेगा...
“रूही ने कॉलर पकड़कर निशांत का होंठ निचोड़ चुम्मा ले ली।"..... “दीदी ने निशांत को फ्रेंच किस्स किया”... “पहले मैने कहा”... “पहले मैं बोली”... “पहले मैं बोली”...
अलबेली, ओजल और इवान ने एक ही वक्त में मामला बता दिया। बताने के बाद तीनो में “पहले मैं, पहले मैं” की जंग छिड़ चुकी थी और आर्यमणि... वह मुंह छिपाकर हंस रहा था।
“रूही ने कॉलर पकड़कर निशांत का होंठ निचोड़ चुम्मा ले ली।"..... “दीदी ने निशांत को फ्रेंच किस्स किया”... “पहले मैने कहा”... “पहले मैं बोली”... “पहले मैं बोली”...
अलबेली, ओजल और इवान ने एक ही वक्त में मामला बता दिया। बताने के बाद तीनो में “पहले मैं, पहले मैं” की जंग छिड़ चुकी थी और आर्यमणि... वह मुंह छिपाकर हंस रहा था।
आर्यमणि किसी तरह अपनी हंसी रोकते.... “तो तुम लोग अभी निशांत के साथ क्या करने जा रहे थे?”
इवान:– उसके हथियार को निरस्त करने जा रहे थे...
आर्यमणि:– हे भगवान!!! ये सब क्या सुनना पड़ रहा हा? मतलब एक तो रूही उसे चूम ली, और उल्टा निशांत को ही सजा दे रही है?
रूही:– होने वाली बीवी का लिप किस हो गया इस बात से बदन में आग नही लगी, उल्टा तुम्हारी छिछोड़ों जैसी हंसी निकल रही है। तुम्हे तो मैं बाद में देखती हूं। अलबेली तू मेरा मुंह मत देख, इसकी भ्रमित अंगूठी निकाल।
आर्यमणि:– अरे वो निशांत जबरदस्ती चूम लेता फिर न मैं एक्शन लेता। यहां तो तुम ही उसे चूमकर उल्टा उसे सजा दे रही ..
“हां मैने ही चूमा। लेकिन मेरा रोम–रोम तक जानता था, मैं किसे चूमी। मैने अपने आर्य को चूमा था। लेकिन वो आर्य एक भ्रम था और उस भ्रम के पीछे ये निशांत था। मैं अपने आर्य के अलावा किसी को चूम लूं, उस से पहले मुझे मौत न आ जाए। मेरे भावनाओ का मजाक उड़ाने वाला ये होता कौन है?”... रूही बड़े गुस्से में अपनी बात कही।
अलबेली रूही का हाथ थामकर उसे निशांत से अलग करती..... “माफ कर दो। मजाक–मजाक में भूल हो गयी। सारी गलती मेरी ही है। निशांत ने तो बस वही किया जो मै उसे कही थी। हमे नही पता था कि तुम दादा (आर्यमणि) को इतना मिस कर रही थी।”
आर्यमणि:– तुम दोनो (ओजल और इवान) भी निशांत को छोड़ो। निशांत तू बता...
निशांत:– हां गलती हम दोनो की है। मैं और अलबेली संयुक्त अभ्यास पर थे। उसी समय हमने रूही को चौकाने का सोचा था। मैने भ्रम पैदा किया जिस से मैं तुम्हारी तरह दिखने लगा। उसके बाद मैने सोचा...
अलबेली बीच में रोकती... “नही दादा केवल निशांत ने नही बल्कि हम दोनो ने सोचा की रूही को थोड़ा चौकाया जाये। हम दोनो ही एक साथ रूही के रूम में घुसे और रूही शायद आपके ही सपने संजोए बैठी थी। आपको सामने देख व्याकुल होकर भागी चली आयी। जबतक मैं पूरी बात बताई तब तक रूही एक बार चूम चुकी थी। हम दोनो ही दोषी है।”
आर्यमणि:– दोषी तो मैं हूं। शायद कुछ दिनों से रूही पर ध्यान नहीं दे रहा था। देखो जान मैने अपने दोनो कान पकड़ लिये। माफ कर दो अब से एक पल के लिये भी तुम्हारा साथ न छोड़ेंगे....
रूही रोते–रोते हंस दी। दौड़कर आकर आर्यमणि के गले लगती.... “हां सारी गलती तुम्हारी ही है। मुझमें एक पत्नी की भावना जगाकर, उसके साथ रहते हुये भी दूर रहते हो ये अच्छा नही लगता।”
आर्यमणि, रूही की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते, उसे खुद से चिपका लिया और अपनी ललाट ऊपर कर, अपने नीले आंख के रंग को अल्फा के गहरी लाल आंखों में तब्दील कर ओजल और इवान को देखने लगा। ओजल और इवान सवालिया नजरों से आर्यमणि को देखते.... “क्या????”
आर्यमणि:– इस कहानी में तुम दोनो कहां थे?
इवान:– छोटी सी यात्रा पूरी करके जब लौटे तब रूही दीदी और निशांत के बीच कांड हो चुका था। जिस वक्त हम पहुंचे उस वक्त दीदी अपने पंजों से कमरे को कबाड़ रही थी और चिंखती हुई इतना ही कहती... “एक बार अपना भ्रम हटाओ, फिर देखो क्या होता है।”
आर्यमणि:– फिर निशांत पकड़ में कैसे आया?
ओजल:– मैने पकड़वाया... कमरा है ही कितना बड़ा, करते रहो भ्रम। हमने भी चादर पकड़ा और इस कोना से उस कोना तक नाप दिया। पकड़ा गया...
आर्यमणि:– क्या बात है। कमाल कर दिया। चलो इस कमरे से, और इवान रूम सर्विस को कॉल लगाकर यहां का हुलिया ठीक करवाओ।
वहां से सभी निशांत के कमरे में आ गये। बातें फिर शुरू हुई की अल्फा पैक आर्यमणि के गैर–मौजूदगी में क्या कर रही थी? वाकई इन लोगों ने अपने खाली समय का पूरा फायदा उठाया था। यूरोप भ्रमण पर निकले थे। यात्रा के दौरान निशांत के साथ रोज सुबह सुरक्षा मंत्र का अभ्यास तो करते ही थे, साथ में निशांत ने “वायु विघ्न” मंत्र का भी अभ्यास करवाया। “वायु विघ्न” यानी हवा के माध्यम से यदि कोई खतरा सीधा उनके ओर चला आ रहा हो तो इस मंत्र के प्रभाव से वह खतरा टल जायेगा।
इसके अलावा निशांत के साथ पूरे अल्फा पैक ने तरह–तरह के हथियार चलाने का भी अभ्यास किया, जैसे की लाठी, छोटी कुल्हाड़ी, खंजर और बंदूक। सभी को मात्र 7 दिन में ही निशांत ने खतरनाक हथियार चलाने वाला बना दिया था। और वुल्फ तो जैसे पैदाइशी निशानची हो। बंदूक से क्या निशाना लगाते थे, निशांत भी देखकर दंग। जिस अचूक निशाने को निशांत पिछले 1 साल से पाने की कोशिश में जुटा था, उसे तो इन लोगों ने मात्र 7 दिन में हासिल कर लिया।
बातों के दौरान ही पता चला की 2 दिन पहले रूही, अलबेली और निशांत फ्रांस पहुंचे, जबकि रूही ने ओजल और इवान को जर्मनी भेज दिया। चूंकि ओजल और इवान को कोई नहीं जानता था, इसलिए इनका काम था चुपके से पलक के होटल पहुंचना और वहां के चप्पे–चप्पे पर ऑडियो–वीडियो बग फिक्स कर देना, ताकि विपक्ष की पूरी योजना दिखाई तथा सुनाई दे।
दोनो कामयाब होकर लौट रहे थे। दोनो की कामयाबी उस स्वीट्स में दिख रही थी, जहां इनका सिस्टम लगा था। पलक जिस होटल में ठहरी थी, उसके अलावा उन 3–4 होटल में भी सारे बग फिक्स किये जा चुके थे जहां दूसरे एलियन को ठहराया गया था।
आर्यमणि तो सारा हिसाब किताब जान लिया। फिर बात उठने लगी की आर्यमणि ने इतने दिनो तक क्या किया और जर्मनी के लिये उसने क्या योजना बनाई है? तब आर्यमणि अपने योजना का खुलासा करते हुये कहने लगा.... “हमारी योजना उनकी योजना पर निर्भर करती है। यदि वुल्फ हाउस को ये लोग घेर लेंगे और वहां खतरा ज्यादा हुआ, तब मिलने की जगह मांट ब्लैंक (Mont Blanc) होगी। बाकी की योजना बताने नही दिखाने वाली है, इसलिए जर्मनी पहुंचकर सबका खुलासा होगा। तब तक रूही निशांत और अलबेली एक साथ अपना अभ्यास जारी रखेंगे, इसमें उनके साथ संन्यासी शिवम् भी जुड़ेंगे। इधर मैं अपने साला और साली के साथ अपने विपक्षी पर नजर डालेंगे।”
रूही चुटकी लेती.... “ए जी अपनी आधी घरवाली और खुदाई से ऊपर रहने वाले अपने जोरू के भाई का ख्याल रखना।”
रूही की बात पर सब हंसने लगे। 5 मार्च तक वहां का माहोल ऐसा रहा की रूही और आर्यमणि एक दूसरे की झलक तक नही देख पाये। 5 मार्च की सुबह सभी इकट्ठा हुये। ओजल और इवान को फ्लाइट से जर्मनी भेजा गया, वहीं आर्यमणि पूरी टुकड़ी के साथ पानी के रास्ते जर्मनी पहुंचता...
ओजल और इवान दोनो दोपहर के 3 बजे बर्लिन लैंड कर रहे थे। जैसे ही एयरपोर्ट से निकले बाहर पलक खड़ी थी। दोनो ने एक नजर पलक को देखा और हाथ हिलाते उसके करीब पहुंच गये.... “तो क्या खबर लाये हो दोनो।”
ओजल एक पत्र पलक के हाथ में थमा दी। पलक उस पत्र को पढ़ने लगी... “ये लोग खुद को अल्फा पैक कहते है। टेक्नोलॉजी तो इनकी गुलाम हो जैसे। पहले हमे ऊपर से लेकर नीचे तक स्कैन करो। हमारे कपड़ों में कहीं कोई बग तो नही छिपाया, फिर बात करेंगे”..
पलक, अपनी पलक झपकाकर सहमति दी और बिना कोई बात किये तीनो चले जा रहे थे। कार एक बंगलो के सामने रुकी जहां की सुरक्षा तो किसी देश के मुखिया के सुरक्षा से कम नही थी। उसी बंगलो के प्रवेश द्वार पर ही जांचने के सारे उपकरण लगे थे। उनकी जांच जब पूरी हो गयी, उसके बाद उनके मोबाइल को ऑफ करके वहीं बाहर रख दिये और तीनो बंगलो के अंदर।
सभी अपना स्थान ग्रहण करते.... “हां अब बताओ क्या खबर है?”
ओजल:– खबर कुछ अच्छी नहीं है। उन्हे आपकी और महा के बीच हुई कल (4 मार्च) की मीटिंग का पूरा पता है। दोनो भाई–बहन ने सच कहा था कि वो जासूसी करने आये है, बस ये नही बताया था कि हमारे मीटिंग हॉल में इन्होंने ऑडियो–वीडियो बग पहले से लगा चुके थे। हम सोचते रहे की ये लोग छिपकर जासूसी करने आये थे पर ये तो टेक्नोलॉजी वाले निकले।
पलक:– साला ढोंगी... हर चीज में निपुण है वो आर्य। तो वो हमारी मीटिंग के बारे में जानता है, इसका मतलब ये हुआ कि उसे ये भी पता होगा की हम उसके ठिकाने ढूंढ रहे। ठीक है ये बताओ आर्यमणि की क्या योजना है..
इवान:– उसे हमारी संख्या का पता है। डरा हुआ भी है, इसलिए कह रहा था यदि वुल्फ हाउस में ज्यादा खतरा दिखा तो फिर मिलने की जगह मांट ब्लैंक (Mont Blanc) रखेगा। दोनो जगह उसने ट्रैप बिछा रखा है।
पलक:– चलो अभी हमारे शिकारियों को पता करके खुश हो जाने दो की आर्यमणि का ठिकाना कहां है, मुझे तो पहले पता चल चुका है कि उसका ठिकाना क्या हो सकता है। मैं अपनी योजना खुद से बनाऊंगी, बांकी के चुतिये कुछ भी प्लान बनाए मेरे लिये माइंडब्लोइंग प्लान ही होगा। खैर ये बताओ आर्यमणि ने किस प्रकार का ट्रैप लगा रखा है?
इवान:– वो तो पता नही। सिर्फ इतना पता है की उस ट्रैप को जुबान से एक्सप्लेन न करके सीधा डेमो दिखाने की बात कर रहा था।
पलक:– हम्मम... ऐसा नहीं हो सकता की जर्मनी में कदम रखते ही हम अल्फा टीम को दबोच ले..
ओजल:– ये तो बड़ी आसानी से हो सकता है। वो लोग पानी के रास्ते आ रहे है। और पानी से होकर आने वाला एकमात्र रास्ता है, राइन नदी। नदी के रास्ते में पड़ने वाले सिटी पर यदि पहरा बिछा दीये तो वो लोग पकड़ में आ सकते है।
इवान:– और एक बात, आर्यमणि के साथ निशांत भी था। तो मियामी के शिकारी की जो
समीक्षा थी, वह सही थी। आर्यमणि को कम मत आंकना, वह 219 सुपीरियर शिकारी का शिकार कर चुका है।
पलक:– जानती हूं, लेकिन ये भी मत भूलो की उसने सामने से किसी को भी नही मारा, बल्कि छिपकर हमला किया था।
ओजल:– हां सो तो है.. आगे हम क्या करे?
पलक:– जर्मनी पहुंचने के बाद तुम दोनो को क्या करना था?
ओजल:– हमे तो वुल्फ हाउस पहुंचने के ऑर्डर मिले है।
पलक:– ठीक है तुम दोनो वहां निकलो। तुम दोनों के मोबाइल पर बग फिक्स किया जा चुका है। अब जो–जो तुम दोनो देखोगे और सुनोगे, वह सब मैं भी देख सुन रही होंगी...
इवान:– दो दिन से हमने पलक भी नही झपकी है। आर्यमणि तो भूत हो जैसे, सोता ही नही है। पहले आराम करेंगे फिर वुल्फ हाउस के लिये निकलेंगे...
पलक हामी भरकर वहां से निकल गयी और आराम से महा के खोजी दस्ते की रिपोर्ट आने का इंतजार करने लगी। इधर जबतक पलक ने राइन नदी के किनारे बसने वाले हर गांव, हर कस्बे और जर्रे–जर्रे तक यह खबर पहुंचा चुकी थी कि आर्यमणि का पता बताने वाले को 20000 यूरो का इनाम दिया जायेगा।
दरअसल एक सच्चाई तो यह भी थी पलक को जब अपनी बेवकूफी का पता चला की क्यों उसने आर्यमणि से मिलने की जगह नहीं पूछी, उसके बाद ही उसने आर्यमणि को ढूंढने की कभी कोशिश ही नही की। उसे बस आकलन किया था कि जैसे मिलने से पहले मैं उसके बारे में खबर रखना चाहती हूं, ठीक वैसे ही आर्यमणि भी कोशिश करेगा और बस उसके इसी एक गलती का इंतजार था।
यूं तो ओजल और इवान ने सारा काम बड़ी सफाई से किया था। इनके सिक्योर चैनल के हैक की मदद से सारे ठिकानों का पता लगाना। उन ठिकानों पर बग फिक्स करना। सबसे आखरी में ये दोनो भाई–बहन पलक के होटल पहुंचे थे। ये 2 मार्च की ही कहानी थी।
पलक तो पहले से ही उस होटल के हर स्टाफ से लेकर एक–एक कमरे में रुके गेस्ट पर नजर बनाए थी। उसके अपने निजी 30 विश्वसनीय लोग काम कर रहे थे, जिसका पता तो पलक के साथ रहने वाले 4 चमचों को भी नही था। 2 भारतीय मूल के अनजान टीनेजर चेहरे घुसे। घुसने के साथ ही दोनो के गतिविधि पर नजर रखी गयी। बग फिक्स करने से लेकर ताका–झांकी तक सब पलक की नजरों में था।
जैसे ही ओजल और इवान ने अपना काम खत्म किया, वैसे ही होटल प्रबंधन ने बड़ी चालाकी से दोनो को एक कमरे में भेज दिया। दोनो जैसे ही उस कमरे में घुसे, चारो ओर से धुएं ने ऐसा घेरा की सुरक्षा मंत्र तक पढ़ने का समय नहीं दिया। जब आंखें खुली तो ओजल और इवान खुद को ऐसे अंधेरे तहखाने में बंद पाये जहां उनकी वुल्फ विजन भी नही काम कर रही थी। बस एक दूसरे की आवाज सुन सकते थे, लेकिन वह भी संभव नही था। दोनो के मुंह बंधे थे। श्वान्स लेते तो अंदर अजीब सी बु आती, जो इनके दिमाग को बिलकुल स्थूल कर गई थी। दिमाग जैसे हर पल भारी हो रहा हो और किसी काम का ही न रह गया हो।
फिर ओजल और इवान से शुरू हुई थी पलक की पूछताछ। पूछताछ के दौरान यूं तो ओजल और इवान ने बहुत ज्यादा धैर्य का परिचय दिया। उनका प्रशिक्षण काम आया और जुबान नही खुले। जब पलक कुछ भी पता नहीं कर पायी तब बस अल्फा पैक के संपर्क करने का इंतजार करने लगी। बहुत ज्यादा इंतजार करना नही पड़ा और 2 मार्च की देर रात तक रूही ने दोनो से संपर्क कर लिया।
इधर ओजल और इवान के 2 ड्यूलिकेट एलियन तैयार थे। हां लेकिन पलक ने उन्ही 30 एलियन को अपने साथ रखा था, जो अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट करने से इंकार कर चुके थे। बाहर से 2 एलियन बुलाया गया, जिसे पलक ने इतना ही बताया था कि दोनो भाई बहन छिपकर जासूसी करने आये थे।
फिर पलक ने ओजल और इवान का मोबाइल दोनो को थमा कर, कैमरे में कैद दोनो भाई बहन के हाव भाव को दिखाई और उन दोनो एलियन को ओजल और इवान की जगह भेज दिया। वो तो शुक्र था कि आर्यमणि ने 2 दिनो तक केवल ओजल और इवान के बग को देखा था। यदि उनके सिक्योर चैनल को देखते, फिर इनका हैकिंग नजर में आ जाता।
पलक के हाथ 5 मार्च तक बहुत सारा इनफॉर्मेशन लग चुका था और उसे ये भी पता था कि आर्यमणि किस प्रकार के दुश्मन के खिलाफ तैयारी कर रहा होगा। जितना पलक आर्यमणि को समझती थी, उस हिसाब से वह तय कर चुकी थी कि आर्यमणि को एलियन के हर ताकत का पता होगा।
5 मार्च की मीटिंग जिसमें सुरंग खोदने की बात कही गयी। उसपर तो पलक की भी हंसी छूट गयी थी, लेकिन महा की तरह वह भी खामोश थी। पलक को समझते देर नहीं लगी कि महा भी वही सोच रहा था, जो पलक खुद सोच रही थी। लेकिन उसने महा के सामने खुद को बेवकूफ बनाए रखने का ही फैसला किया। भले ही एलियन ने आकर 2 जगह का वर्णन किया हो, लेकिन अब पलक सुनिश्चित थी कि आर्यमणि उनसे कहां मिलने वाला है। दोनो ओर से चूहे बिल्ली का जानदार खेल चल रहा था। मोहरों की बिसाद बिछ चुकी थी और अब बस सह और मात होना बाकी था।
5 मार्च की मीटिंग जिसमें सुरंग खोदने की बात कही गयी। उसपर तो पलक की भी हंसी छूट गयी थी, लेकिन महा की तरह वह भी खामोश थी। पलक को समझते देर नहीं लगी कि महा भी वही सोच रहा था, जो पलक खुद सोच रही थी। लेकिन उसने महा के सामने खुद को बेवकूफ बनाए रखने का ही फैसला किया। भले ही एलियन ने आकर 2 जगह का वर्णन किया हो, लेकिन अब पलक सुनिश्चित थी कि आर्यमणि उनसे कहां मिलने वाला है। दोनो ओर से चूहे बिल्ली का जानदार खेल चल रहा था। मोहरों की बिसाद बिछ चुकी थी और अब बस सह और मात होना बाकी था।
7 मार्च की शाम 5 बजे, पलक की मुलाकात से ठीक एक दिन पहले... पलक को तो रायन नदी के किनारे अल्फा पैक नही मिला, लेकिन अल्फा पैक को नित्या का पता मिल चुका था, जो 2 दिन मौज मस्ती के लिये निकली थी। अल्फा पैक जर्मनी पहुंचकर आधिकारिक मुलाकात से पहले अपना अस्तित्व दिखाना चाह रही थी। वहीं पलक होटल के कमरे में पड़ी फोन की घंटी बजने का इंतजार कर रही थी।
दक्षिण–पश्चिम जर्मनी का एक शहर एन्ज, जिसमे ब्लैक फॉरेस्ट के बहुत सारे हिस्से आते थे। उस शांत शहर के एक निर्जन कॉटेज, जिसके आस–पास कोई दूसरा घर नही था, उसके छत की दीवार पर बने एक झरोखे से आर्यमणि और रूही नजरें गड़ाए हुये थे।
जाने–आने के एकमात्र दरवाजे पर 200 मीटर की दूरी से अलबेली नजर बनाये हुई थी। वहीं निशांत भ्रम जाल के माध्यम से खुद को काली बिल्ली प्रतीत करता, उस जगह के चारो ओर के क्षेत्र का मुआयना कर रहा था। अंदर नजरों के सामने जो नजारे चल रहे थे, उसे कैमरे के हर एंगल में कैद करती रूही, अपने मन में ही कहने लगी.... “इन घिनौने लोगों की कैसी–कैसी फैंटेसी है।”
अंदर जो चल रहा था वह रंगारंग क्रायक्रम से कम न था। अंदर पूरा नंगा होकर हवस का नया ही खेल चल रहा था, जिसमे 2 नंगे जिस्म में से एक पलक का जिस्म था और दूसरा उसके चचेरे भाई तेजस भारद्वाज का। यूं तो दोनो थर्ड जेनरेशन थे। यानी की पलक और तेजस के दादा अपने सगे भाई थे और उन्ही दो भाई के वंश वृक्ष के नीचे एक घर से पलक तो दूसरे घर से तेजस था।
क्या ही दोनो उधम–पटक और उत्पात मचा रखे थे। पूरे कॉटेज की दीवारें तक चरमरा उठी थी। पोर्न वीडियो के जितने भी एक्शन थे, दोनो पूरे जोश के साथ निभा रहे थे, और पलक के मुंह से जो आवाज आ रही थी...... “आह तेजस भैया... ओह तेजस भैया... आह भैया, प्यास मिटा दो... उफ्फ कबसे जली जा रही”...
और तेजस भी उतने ही जोश में.... “आह पलक... उफ्फ कितनी कसी है तेरी चूत... उफ्फ अपने भाई को गदगद कर दी... आ गांड़ भी मरवा ले”...
“मार ले भाई गांड़ क्या हर छेद मार ले... जहां इच्छा वहां घुसा दे... आह्ह्ह भैया, तुम बहुत मस्त चोदते हो... आह्ह्ह्ह मार लो.. ओह्ह्ह बहुत अच्छा लग रहा है।”
फिर दोनो की एक साथ चिंघाड़ निकल गयी और हांफते हुये अलग हो गये।.... “क्या बात है अपनी चचेरी बहन का रूप देखकर तो मेरी हालत खराब कर दिये”.... नित्या अपने रूप में वापस आती हुई कहने लगी...
“बहुत ही चुलबुली है। और जब भी उसके टांगों के बीच का सोचता हूं, नशा चढ़ जाता है।”... तेजस, नित्या के ऊपर आकर उसके योनि पर अपना लिंग घिसते कहने लगा...
“उफ्फ बहुत ज्यादा जोश में हो। अब किसका”... नित्या मचलती हुई कहने लगी...
तेजस उसके होंटो को काटकर अलग होते.... “इस बार भूमि”...
“हाहाहाहाहा... अपनी सगी बहन”... नित्या लन्ड को पूरे मुट्ठी में भींचते कहने लगी....
तेजस:– आह्ह्ह्ह्ह... तू भी बहन के नाम पर जोश में गयी क्या? भूमि तो नायजो की और ओरिजनल मीनाक्षी की बेटी है। और मैं उसकी भाई की जगह आया एक नायजो हूं, जिसने कबसे भूमि के सपने सजा रखे थे। अब बर्दास्त न हो रहा, जल्दी रूप बदल मैं पेलूंगा...
“नहीईईईई... तू धरती का बोझ है।”.... आर्यमणि आवेश में आकर छत की दीवार तोड़कर नीचे आ गया। ठीक दोनो के मुंह के सामने खड़ा होकर चिल्लाने लगा।
नित्या और उसका पुराना आशिक तेजस दोनो हड़बड़ा कर खड़े हो गये। दोनो आर्यमणि को घूरते.... “तो तुझे तेरी मौत यहां खींच लायी है?”
“किसकी मौत किसको कहां खींच लायी है, वह तो बस थोड़े ही वक्त की बात है। लेकिन उस से पहले कपड़े तो पहन ले, या नंगा ही लड़ेगा”....
“तुझे मारना में वक्त ही कितना लगना है”... तेजस अपनी बात कहकर आंखों से लेजर चलाया। खतरनाक किरणे उसके आंखों से निकली। आर्यमणि तो पहले से जानता था कि ये एलियन नायजो क्या कर सकते है, इसलिए तेजस के हाव–भाव देखकर ही आर्यमणि मूव कर चुका था। कॉटेज के जिस हिस्से में तेजस के आंखों का लेजर टकराया, उस हिस्से की 16 फिट ऊंची और 22 फिट लंबी दीवार किरणों के टकराने के साथ ही पूरा ढह गया।
पता न तेजस की आंखों से लेजर के साथ कौन सा खतरनाक चीज जुड़ा था, जो पल भर में ही उस पूरे कॉटेज को ही धराशाही कर गया। 2 दीवार के गिरते ही ऊपर का छत पूरा भारभरा कर गिर गया। रूही भी छत पर थी। छत के साथ वह भी नीचे आयी। लेकिन वह जमीन पर गिरती उस से पहले ही आर्यमणि दौड़ते हुये रूही को पकड़ा और एक छलांग में कॉटेज के सीमा से बाहर था।
तेजस और नित्या ने मिलकर फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी जैसे ही तूफान को उठा दिया। उस तूफान में पूरा कॉटेज तीतर बितर हो गया और दोनो मलवे के बीच में खड़े हो गये.... “कहां भाग गया मदरचोद। एक घंटे पहले आता तो मैं तेरी मां जया की गांड़ मार रहा था। और तुझे पता है, तेरी जो पहली गर्लफ्रेंड मैत्री थी ना उसे लोपचे के खंडहर में मैने तीन दिन तक खूब पेला था, और उसके बाद कमर से काट दिया। साले तेरे दादा वर्घराज को मैने ही जहर दिया था। बुड्ढे को हमारे बार में पता लगाने की कुछ ज्यादा ही चूल मची थी। कितना छिपेगा हां.. आज तेरी गांड़ मारकर तुझे भी बीच से चीड़ दूंगा”...
तेजस बौखलाया था। दिमागी संतुलन खो बैठा हो जैसे। तेज आवाज में अपनी बात कह रहा था और आंखों से लगातार लेजर किरण निकाल रहा था। जैसे ही तेजस की बात समाप्त हुई... आर्यमणि ठीक उसके सामने कुछ दूरी पर खड़ा दिख गया.... “तू घिनौना है। धरती का बोझ है। तू मेरा और मेरे परिवार का दोषी है। तुझे क्या लगा तू अमर जीवन लेकर आया है। तो चल ये भी देख लेते है, आज कौन किसकी मारता है।”
नित्या:– आज तो तू मरा बच्चे। वैसे मैं तो तेरे साथ खेलना चाहती थी, लेकिन मेरा आशिक को ये मंजूर नहीं...
आर्यमणि:– काश मैं भी तुम्हारे बारे में भी ऐसा कह सकता। लेकिन विश्वास मानो जब मैं तुम दोनो को धीमा मारना शुरू करूंगा, तब अपनी जान बक्शने की भीख नहीं मांगोगे... बल्कि हर पल यही कहोगे, प्लीज मुझे अभी मार दो...
तेजस:– हमे मारना बाद में मदरचोद, पहले तो ये दिखा की मौत से बचकर तू कितना भाग सकता है...
आर्यमणि:– बोल बच्चन क्या दे रहा है बे नंगे, मारकर दिखा...
आर्यमणि सीना तान दोनो के सामने खड़ा, मानो निमंत्रण दे रहा हो। नित्या और तेजस दोनो ही एक साथ लेजर चलाना शुरू कर चुके थे और आर्यमणि... आर्यमणि ने उनके अचूक और प्राणघाती लेजर को मिट्टी का ढेला समझ लिया था। प्योर अल्फा की गति का तो ये मुकाबला भी नही कर सकते थे, लेकिन इस बार कदम तो आहिस्ता बढ़ रहा था पर हाथ उतना ही तेज।
जो भी लेजर की किरण उसके ओर आती, हर किरण पर आर्यमणि जैसे टफली मारकर कह रहा हो... “तू दाएं जा, तू बाएं जा”... जैसे हाथ हिलाकर चेहरे या बदन के आगे से मच्छर–मक्खी को भागते है, ठीक उसी प्रकार लेजर की किरणे थी, जिसे आर्यमणि अपने हाथों से झटक रहा था।
अलबेली और रूही अपने बारी की प्रतीक्षा में, जिसे आर्यमणि अपने मन के संवाद से रोक रखा था.... “अभी रुको”...
किसी भी बलवान से यदि उसका बल छीन लिया जाये, फिर वो खुद को असहाय समझने लगता है, जैसे उस से बड़ा कमजोर इस संसार में नही। आर्यमणि अपने सुरक्षा मंत्र और हाथ के झटके से तेजस और नित्या को लगातार असहाय साबित करने में लगा हुआ था। बाहर से अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में रूही और अलबेली घात लगाए बैठी थी। उन दोनो को आर्यमणि अपने मस्तिष्क संवाद से रोक रखा था।
आहिस्ते चलते हुये आर्यमणि तेजस और नित्या के करीब पहुंच गया। फासले एक फिट से भी कम के थे। अब नित्या और तेजस में से किसी के मुंह से शब्द नही फूट रहे थे, बस पागलों की तरह अपने आंख से लेजर चला रहे थे। पाऊं आहिस्ते थे, किंतु हाथ नही। वह अब भी इतने तेज थे कि इतना नजदीक होने के बावजूद एक भी किरण आर्यमणि को छू नही पायी।
फिर शुरू हुआ मौत को भी भयभीत कर देने वाली खौफ और दर्दनाक चींखों का खेल। आर्यमणि सामने सीना ताने खड़ा। उसके एक इशारे पर रूही और अलबेली, दोनो (तेजस और नित्या) के ठीक पीछे खड़ी थी। रूही और अलबेली ने पीछे से तेजस और नित्या के हाथ को पीछे खींचकर उनके शरीर का सारा टॉक्सिक खींचने लगे।
यूं तो तेजस और नित्या दोनो ही पलटना चाह रहे थे, लेकिन सामने खड़ा आर्यमणि ने हाथों के मात्र एक इशारे से दोनो के पाऊं को जड़ों से जकड़ दिया था। ऐसा लग रहा था जमीन से निकली जड़ों ने दोनो को पैंट पहना दिया हो। वहीं रूही ने बचा हुआ कसर भी पूरा कर दिया। ऊपर टॉप भी पहना चुकी थी। सिवाय उनके चेहरे और कलाई के पूरे बदन पर जड़ चढ़ चुका था।
“य्य्य्य, इय्य्य.. ये तुऊऊऊ.. तुमने, कौन सा तिलिस्म किया है?”.... तेजस घबराते हुये पूछने लगा...
आर्यमणि अपने पंजे में पूरा जहर उतारकर एक झन्नाटेदार तमाचा तेजस के गाल पर चिपका दिया। तेजस को ऐसा लगा जैसे भट्टी से अभी–अभी निकले तवे को उसके गाल से चिपका दिया गया हो। ऊपर से जहर का असर इतना दर्दनाक था कि तेजस की चींख रुकी ही नही।
नित्या, तेजस का हाल देखकर तुरंत पाला बदलती.... “देखो आर्यमणि मैं तुम्हारी दुश्मन नही बल्कि अपना दोस्त समझो। मैं तो बस अपने बॉस लोगों का हुक्म बजा रही थी। इसी के बाप सुकेश भारद्वाज ने तुम्हारे दादा को बेज्जत किया था, लेकिन उनके बेइज्जती में मेरा कोई हाथ ना था, मैं बस जरिया थी। उल्टा सजा के तौर पर मुझे कई वर्षों तक जंगल में भटकने छोड़ दिया।”
आर्यमणि:– तुम वही जरिया हो ना, जिसने ओशुज नाम के एक अल्फा वेयरकायोटी को मैक्सिको में कैद करवाई थी। (मैक्सिको की जंगल वाली घटना। जहां वेयरवोल्फ के खून से ड्रग्स के पौधों की सिंचाई करते थे)
नित्या:– तुम्हे कैसे पता...
आर्यमणि:– क्योंकि उस कांड का असर मेरे पूरे अल्फा पैक पर पड़ा था, इसलिए मुझे पता है। तुम सब के कांड तो मुझे शुरू से पता थे, बस जो तब पता नही था वो अब पता कर चुका हूं। तुम्हारा भेद खुल चुका है नायजो... अब न तो पृथ्वी पर तुम्हारी नाजायज हरकतें बर्दास्त हो रही और न ही तुम सब का यहां नाजायज तरीके से रहना। क्या सोचा था, हार–मांस का शरीर होता है इंसान और तुम सब एपेक्स हो। आज मजा लो अपने बोए बीज का...
तेजस का दर्द जब कुछ कम हुआ... “देखो आर्यमणि हजारों की फौज तुम्हे मारने आयी है। उनसे बच गये तो लाख आयेंगे, उनसे भी बचे तो करोड़ों। तब तक वो हमला करते रहेंगे जबतक तुम मर नही जाते...”
“मरना... मरना... मरना... हां मरना... मरने का डर क्यों... वैसे ये मरने का डर तुम दोनो को तो नही होगा क्योंकि अमर जीवन तो तुम्हारे साइंस लैब में मिलता है। है की नही?”.... आर्यमणि दाएं से बाएं गस्त लगाते हुये किसी खौफ की तरह अपनी बात रखा। उसे सुनकर तेजस और भी ज्यादा भयभीत होते... “तुम्हे साइंस लैब के बारे में कैसे पता?”
आर्यमणि:– मुझे क्या पता वो जरूरी नहीं। इस वक्त जो ज्यादा जरूरी है, वो ये की तुम्हे जिंदा रहना है या नही..
दोनो हरबरी में एक साथ... “जिंदा, जिंदा, जिंदा रहना है।”
आर्यमणि:– हम्मम.... ठीक है तो दिया तुम दोनो को जिंदगी। आज तुम्हे एहसास होगा की जीना कितना मुश्किल होता है और मृत्यु कितना सुखद। रूही, अलबेली हो गया क्या?
रूही:– हो गया है बॉस। लेकिन आगे कुछ करने से पहले मुझे अपनी भड़ास निकालनी है।
अलबेली:– और मुझे भी...
दूर से नजर आ रही बिल्ली भी अपने असली स्वरूप में दिखने लगी और निशांत भी जोड़ों से चिल्लाया... “पहले मैं..”
रूही:– ठीक है देवरजी आपको पहला मौका मिलेगा, लेकिन उसके लिये आपको इस नित्या को चूमना होगा...
नित्या:– मुझे छोड़ दो तो चूमना क्या सब करने दूंगी। वो भी जिस लड़की का रूप कहो मैं उस लड़की में बदल सकती हूं। हर रात तुम अलग लड़की के साथ सो सकते हो।
निशांत:– क्या अब भी मुझे चूमना चाहिए...
रूही:– जाने दो, चूमने का हिसाब हम फिर कभी करेंगे...अभी इन एपेक्स सुपरनेचुरल पर हाथ साफ करते है।
निशांत हामी भरते तेजस और नित्या के सामने खड़ा हो गया।.... “तुम लोग गंदे और घिनौने हो। एक ही कुल के लड़कियों के साथ जिस हिसाब से संभोग की इच्छा रखते हो, उस से तुम्हारे समुदाय के विलुप्त होने की कहानी समझ में आती है। तुम्हे जीने का कोई अधिकार नही”..
निशांत अपनी बात पूरी कर जो ही जोरदार थप्पड़ दोनो के गाल पर मारा, दिमाग से “सबसे बढ़कर हम” होने का भूत उतर गया। किसी असहाय इंसान की तरह खड़े थे, और गाल टमाटर की तरह लाल हो गया था।
जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।
पांचवे दिन सारा काम हो जाने के बाद राजकुमार निमेषदर्थ ने इजाजत लीया और वहां से चला गया। उसी शाम विजयदर्थ कुछ लोगों के साथ पहुंचा, जिनमे वो बुजुर्ग स्वामी भी थे। विजयदर्थ, स्वामी और आर्यमणि की औपचारिक मुलाकात करवाने के बाद आर्यमणि को काम शुरू करने का आग्रह किया।
आर्यमणि उस बुजुर्ग को अपने साथ कॉटेज के अंदर ले गया। विजयदर्थ भी साथ आना चाहता था, लेकिन आर्यमणि ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। बुजुर्ग स्वामी और आर्यमणि के बीच कुछ बातचीत हुई और आर्यमणि बाहर निकलकर राजा विजयदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.… "राजा विजयदर्थ ये बुजुर्ग तो मरने वाले हैं।"
विजयदर्थ:– मैने तो पहले ही बताया था। स्वामी जी मृत्यु के कगार पर है।
आर्यमणि:– हां बताया था। लेकिन तब यह नही बताया था कि बिलकुल मृत्यु की दहलीज पर ही है। कहीं वो मेरे क्ला को झेल नही पाये तब"…
विजयदर्थ:– ये बुजुर्ग तो वैसे भी कबसे मरने की राह देख रहे, बस इनके विरासत को कोई संभाल ले। एक सुकून भरी नींद के तलाश में न जाने कबसे है।
आर्यमणि:– हां लेकिन फिर भी जलीय मानव प्रजाति के इतने बड़े धरोहर के मृत्यु का कारण मैं बन जाऊं, मेरा दिल गवारा नहीं करता। फिर आपके लोग क्या सोचेंगे... आप कुछ भी कहे लेकिन वो लोग तो मुझे ही इनके मृत्यु का जिम्मेदार समझेंगे।...
विजयदर्थ:– कोई ऐसा नही समझेगा...
आर्यमणि:– ठीक है फिर आपके लोग ये बात अपने मुंह से कह दे फिर मुझे संतुष्टि होगी...
विजयदर्थ:– मैं अपने लोगो का प्रतिनिधि हूं। मैं कह रहा हूं ना...
आर्यमणि:– फिर आप स्वामी को ले जा सकते है। इस आइलैंड पर मैं जबतक हूं, तबतक अपने हिसाब से घायलों का उपचार करता रहूंगा...
विजयदर्थ:– बहुत हटी हो। ठीक है मैं अपने लोगों को बुलाता हूं।
आर्यमणि:– अपने लोगों को बुलाना क्यों है इतना बड़ा महासागर है। इतनी विकसित टेक्नोलॉजी है, हमे कनेक्ट कर दो...
विजयदर्थ ने तुरंत ही अपनी संचार प्रणाली से सबको कनेक्ट किया। आर्यमणि पूर्ण सुनिश्चित होने के बाद बुजुर्ग स्वामी विश्वेश के पास पहुंचे और अपना क्ला उसकी गर्दन से लगाकर अपनी आंखें मूंद लिया... अनंत गहराइयों के बाद जब आखें खुली, आचार्य जी भी साथ थे...
आचार्य जी:– लगता है अब तक दुविधा गयी नही। जब इतने संकोच हो तो साफ मना कर दो और वो जगह छोड़ दो...
आर्यमणि:– आचार्य जी आपने उस शोधक बच्ची की खुशी देखी होती... वो अदभुत नजारा था। मुझे उनकी तकलीफ दूर करने की इक्छा है... बस मुझे वो राजा ठीक नही लगा... धूर्त दिख रहा है। आप एक बार उसके मस्तिस्क में प्रवेश क्यों नही करते...
आर्यमणि की बात पर आचार्य जी मुस्कुराते.… "अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लो"…
आर्यमणि:– आचार्य जी इसका क्या मतलब है। ये गलत है। बस एक छोटा सा काम कर दो। विजयदर्थ के दिमाग में घुस जाओ...
आचार्य जी:– एक ही बात को 4 बार कहने से जवाब नहीं बदलेगा। यादि तुम ऐसा चाहते हो तो पहले वहां कुछ लोगो को भेजता हूं। तुम अलग दुनिया के लोगों के बीच हो और उसके मस्तिष्क में घुसने पर यदि उन्हे पता चल गया तो तुम सब के लिये खतरा बढ़ जायेगा। उस राजा को जांचते हुए और सावधानी से काम करो। और मैं तो कहता हूं कुछ वक्त ऐसा दिखाते रहो की तुम उनके साथ हो। कुछ शागिर्द को शोधक प्रजाति का इलाज करना सिखा कर लौट आओ, यही बेहतर होगा।…
आर्यमणि:– हां शायद आप सही कह रहे है। ठीक है, आप इस वृद्ध व्यक्ति के ज्ञान वाले सनायु तंतु तक मुझे पहुंचा दीजिए.… मैं सिर्फ इसकी यादों से इसका ज्ञान ही लूंगा।
आचार्य जी:– ठीक है मैं करता हूं, तुम तैयार रहो...
कुछ देर बाद आर्यमणि उस बुजुर्ग का ज्ञान लेकर अपनी आखें खोल दिया। आंख खोलने के साथ ही उसने उस बुजुर्ग की यादें मिटाते... "पता नही अब वो विजयदर्थ तुमसे या मुझसे चाहता क्या है? क्ला से आज तक कोई नही मरा। देखते है तुम्हारा क्या होता है?"
खुद में ही समीक्षा करते आर्यमणि बाहर निकला और अपने दोनो हाथ ऊपर उठा लिया। विजयदर्थ खुश होते आर्यमणि के पास पहुंचा... "अब लगता है उन शोधक प्रजाति का इलाज हो जायेगा"…
आर्यमणि:– हां शायद... मैं कुछ दिनो तक प्रयोगसाला में शोध करूंगा… आपके डॉक्टर आ गये जो रूही का इलाज करने वाले है..
विजयदर्थ ने हां में जवाब दिया। आर्यमणि विजयदर्थ से इजाजत लेकर रूही से मिलने हॉस्पिटल पहुंचा। इवान और अलबेली दोनो ही उसके पास बैठे थे और काफी खुश लग रहे थे। तीनो चहकते हुए कहने लगे, उन्होंने स्क्रीन पर बेबी को देखा... कितनी प्यारी है... कहते हुए उनकी आंखें भी नम हो गयी...
आर्यमणि ने भी देखने की जिद की, लेकिन उसे यह कहकर टाल दिया की गर्भ में पल रहे बच्चों को बार–बार मशीनों और किरणों के संपर्क में नही आना चाहिए। बेचारा आर्यमणि मन मारकर रह गया। थोड़ी देर वक्त बिताने के बाद आर्यमणि वहां से साइंस लैब आ गया। रसायन शास्त्र की विद्या जो कुछ महीने पहले आर्यमणि ने समेटी थी, उसे अपने दिमाग में सुव्यवस्थित करते, आज उपयोग में लाना था।
अपने साथ उसने महासागर के साइंटिस्ट, जीव–जंतु विज्ञान के साइंटिस्ट और मानव विज्ञान के साइंटिस्ट भी थे। जो आर्यमणि के साथ रहकर शोधक प्रजाति पर काम करते। पहला प्रयोग उन घास से ही शुरू हुआ। उसके अंदर कौन से रसायन थे और वो मानव अथवा जानवर शरीर पर क्या असर करता था।
इसके अलावा महासागर के तल में पाया जाने वाला हर्व भी लाया गया। सुबह ध्यान, फिर प्रयोग, फिर परिवार और आइलैंड के जंगल। ये सफर तो काफी दिलचस्प और उतना ही रोमांचक होते जा रहा था। करीब 2 महीने बाद सबने मिलकर कारगर उपचार ढूंढ ही लिया। उपचार ढूंढने के बाद प्रयोग भी शुरू हो गये। सभी प्रयोग में नतीजा पक्ष में ही निकला...
जितना वक्त इन प्रयोग को करने में लगा उतने वक्त में लैब में काम कर रहे सभी शोधकर्ता ने आपस की जानकारी और अनुभवों को भी एक दूसरे से साझा कर लिया। आर्यमणि को हैरानी तब हो गई जब जीव–जंतु विज्ञान के स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट से मिला। उनके पढ़ने, सीखने और जीव–जंतु की सेवा भावना अतुलनीय थी। बस सही जानकारी का अभाव था और महासागरीय जीव इतने थे की सबको बारीकी से जानने के लिये वक्त चाहिए था।
जीव–जंतु विज्ञान वालों ने यूं तो कुछ नही बताया की उनके पास समर्थ रहते भी वो इतने पीछे क्यों रह गये। लेकिन आर्यमणि कुछ–कुछ समझ रहा था। उनके समर्थ का केवल इस बात से पता लगाया जा सकता था कि एक विदार्थी शोधक के अंदरूनी संरचना जानने के बाद सीधा उसके पेट में जाकर अंदर की पूरी बारीकी जानकारी निकाल आया।
ऐसा नही था की वो विदर्थी पहले ये काम नहीं कर सकता था। ऐसा नही था कि अंदुरूनी संरचना का उन्हे अंदाजा न हो, लेकिन उनका केवल यह कह देना की उनके पास जानकारी नही थी, इसलिए नही अंदर घुस रहे थे... आर्यमणि के मन में बड़ा सवाल पैदा कर गया। आर्यमणि ने महज अपने क्ला से वही जानकारी साझा किया जो उसने बुजुर्ग के दिमाग से लिया था। आश्चर्य क्यों न हो और मन में सवाल क्यों न जन्म ले। आर्यमणि जबतक जीव–जंतु विज्ञान में अपना एक कदम आगे उठाने की कोशिश करता, वहीं जीव–जंतु विज्ञान के सोधकर्ता 100 कदम आगे खड़े रहते। पूरा इलाज महज 3 महीने में खोज निकाला।..
एक ओर जहां इनका काम समाप्त हो रहा था वहीं दूसरी ओर अल्फा परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने वाली थी, क्योंकि किसी भी वक्त रूही की डिलीवरी होने वाली थी। अलबेली डिलीवरी रूम में लगातार रूही के साथ रहती थी। अलबेली, रूही के लेबर पेन को अपने हाथ से खींचना चाहती थी...
रूही, अलबेली के सिर पर एक हाथ मारती... "उतनी बड़ी वो शोधक जीव थी। उसका दर्द मुझसे बर्दास्त हो गया, और मैं अपने बच्चे के आने की खुशी तुझे दे दूं। मुझे लेबर पेन को हील नही करवाना"…
अलबेली:– हां ठीक है समझ गयी, लेकिन इतने डॉक्टर की क्या जरूरत थी? क्या दादा (आर्यमणि) को पता नही की एक वुल्फ के बच्चे कैसे पैदा होते हैं।….
रूही:– मैं शेप शिफ्ट करके अपने बच्ची को जन्म नही दूंगी... और इस बारे में सोचना भी मत...
अलबेली:– लेबर पेन से शेप शिफ्ट हो गया तो...
रूही:– मां हूं ना.. अपने बच्चे के लिए हर दर्द झेल लूंगी... और वैसे भी हील करते समय का जो दर्द होता है, उसके मुकाबले लेबर पेन कुछ भी नहीं...
अलबेली:– हे भगवान... कहीं ऐसा तो नहीं की हमने इतने दर्द लिये है कि तुम्हे लेबर पेन का पता ही न चल रहा हो.. क्योंकि लेबर पेन मतलब एक औरत के लिए 17 हड्डी टूटने जितना दर्द...
रूही:– और हमने तो इतने बड़े जीव का दर्द लिया, जिसका दर्द इंसानी हड्डी टूटने से आकलन करे तो...
अलबेली:– 10 हजार हड्डियां... या उस से ज्यादा भी..
रूही:– नीचे देख सिर बाहर आया क्या...
अलबेली नीचे क्या देखेगी, पहले नजर पेट पर ही गया और हड़बड़ा कर वो कपड़ा उठाकर देखी... अब तक रूही की भी नजर अपने पेट पर चली गई... "झल्ली, अंदर मेरी बच्ची के सामने हंस मत, जाकर डॉक्टर को बुला और किसी को ये बात पता नही चलनी चाहिए"…
अलबेली, अपना मुंह अंदर डाले ही... "इसकी आंखें अभी से अल्फा की है, और चेहरा चमक रहा। मुझ से रहा नही जा रहा, मैं गोद में लेती हूं।"
रूही:– अरे अपने ही घर की बच्ची है जायेगी कहां... लेकिन क्यों डांट खाने का माहैल बना रही। आर्यमणि को पता चला की हम बात में लगे थे और अमेया का जन्म हो गया... फिर सोच ले क्या होगा। मैं फसने लगी तो कह दूंगी, मेरा हाथ थामकर अलबेली मेरा दर्द ले रही थी, मुझे कैसे पता चलता...
अलबेली अपना सिर बाहर निकालकर रूही को टेढ़ी नजरों से घूरती... "ठीक है डॉक्टर को बुलाती हूं। तुम पेट के नीचे तकिया लगाओ और चादर बिछाओ... "
रूही अपना काम करके अलबेली को इशारा की और अलबेली जोड़ से चिंखती.… "डॉक्टर...डॉक्टर"..
जैसा की उम्मीद था, पहले आर्यमणि ही भागता आया। यूं तो आया था परेशान लेकिन अंदर घुसते ही शांत हो गया... अलबेली को लगा गया की आर्यमणि को कुछ मेहसूस हो गया था, कुछ देर वह रुका तो आमेया के जन्म का पता भी चल जायेगा..
अलबेली:– बॉस आप नही डॉक्टर को भेजो..
आर्यमणि:– लेकिन वो..
अलबेली धक्का देते.… "तुम बाहर रहो बॉस, लो डॉक्टर भी आ गयी"…
जितनी बकवास रूही और अलबेली की स्क्रिप्ट थी, उतनी ही बकवास परफॉर्मेंस... डॉक्टर अंदर आते ही... "आराम से तो है रूही .. चिल्ला क्यों रही हो"…
जैसे ही डॉक्टर की बात आर्यमणि ने सुना.. वो रूही के करीब जाने लगा। तभी रूही भी तेज–तेज चीखती... "ओ मां.. आआआआ… मर जाऊंगी... कोई बचा लो.. बचा लो".. आर्यमणि भागकर रूही के पास पहुंचा.. उसका हाथ थामते... "क्या हुआ... रूही... आंखें खोलो.. डॉक्टर.. डॉक्टर"…
डॉक्टर:– उसे कुछ नही हुआ, तुम बाहर जाओ.. डिलीवरी का समय हो गया है.…
जैसे ही आर्यमणि बाहर गया। रूही तुरंत अपने पेट पर से चादर और तकिया हटाई। अलबेली लपक कर तौलिया ली और आगे आराम से उसपर अमेया को लिटाती बाहर निकाली… "ये सब क्या है"… डॉक्टर हैरानी से पूछी...
अलबेली उसके मुंह पर उंगली रखकर... "डिलीवरी हो गयी है। अब तुम आगे का काम देखो".... इतना कहकर अलबेली ने कॉर्ड को काट दिया और बच्ची को दोनो हथेली में उठाकर झूमने लगी। इधर डॉक्टर अपना काम करने लगी और रूही अलबेली की खुशी देखकर हंसने लगी।
अलबेली झूमते हुए अचानक शांत हो गई और रूही के पास आकर बैठ गई... रूही अपने हाथ आगे बढ़ाकर, उसके आंसू पोंछती… "अरे, अमेया की बुआ ऐसे रोएगी तो भतीजी पर क्या असर होगा"…
अलबेली, पूरी तरह से सिसकती... "उस गली में हम क्या थे भाभी, और यहां क्या... मेरा तो जीवन तृप्त हो गया।"..
रूही:– पागल मुझे भी रुला दी न... क्यों बीती बातें याद कर रही...
अलबेली:– भाभी, जो हमे नही मिला वो सब हम अपनी बच्ची को देंगे। इसे वैसे ही बड़ा होते देखेंगे, जैसे कभी अपनी ख्वाइश थी...
रूही:– हां बिलकुल अलबेली... अब तू चुप हो जा..
डॉक्टर:– अरे ये बच्ची रो क्यों नही रही..
अलबेली:– क्योंकि इस बच्ची के किस्मत में कभी रोना नहीं लिखा है डॉक्टर... उसके हिस्से का दुख हम जी चुके हैं। उसके हिस्से का दर्द हम ले लेंगे... हमारी बच्ची कभी नही रोएगी...
अलबेली इतना बोलकर अमेया को फिर से अपने हाथो में लेकर झूमने लगी। रूही और अलबेली के चेहरे से खुशी और आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे। इधर आर्यमणि जब बाहर निकला, इवान चिंतित होते... "क्या हुआ जीजू, अलबेली ऐसे चिल्लाई क्यों"…
आर्यमणि:– क्योंकि अमेया आ गयी इवान, अमेया आ गयी...
इवान:– क्या सच में.. मै अंदर जा रहा...
आर्यमणि:– नही अभी नही... अभी आधे घंटे का इनका ड्रामा चलेगा। जबतक मैं ये खुशखबरी अपस्यु और आचार्य जी को बता दूं...
आर्यमणि भागकर अपने कॉटेज में गया और ध्यान लगा लिया.… "बहुत खुश दिख रहे हो गुरुदेव"…
आर्यमणि:– छोटे.. ऐसा गुरुदेव क्यों कह रहे...
अपस्यु:– तुम अब पिता बन गये, कहां मार–धार करोगे। तुम आश्रम के गुरुजी और मैं रक्षक।
आर्यमणि:– न.. मेरी बच्ची आ गयी है और अब मैं गुरुजी की ड्यूटी नही निभा सकता। रक्षक ही ठीक हूं।
आचार्य जी:– तुम दोनो की फिर से बहस होने वाली है क्या...
दोनो एक साथ... बिलकुल नहीं... आज तो अमेया का दिन है...
आचार्य जी:– जिस प्रकार का तेज है... उसका दिन तो अभी शुरू हुआ है, जो निरंतर जारी रहेगा। लेकिन आर्यमणि तुम इस बात पर अब कभी बहस नही करोगे की तुम आश्रम के गुरु नही बनना चाहते। दुनिया का हर पिता काम करके ही घर लौटता है। यह तुम्हारे पिता ने भी किया था और मेरे पिता ने भी... तो क्या वो तुमसे प्यार नहीं करते..
आर्यमणि:– हां समझ गया... गलती हो गयी माफ कर दीजिए...
अपस्यु:– पार्टी लौटने के बाद ले लूंगा.. बाकी 7 दिन के नियम करना होगा...
आचार्य जी:– सातवे दिन, पूरी विधि से वो पत्थर जरित एमुलेट पहनाने के बाद ही अमेया को अपने घर से बाहर निकालना और सबसे पहले पूरा क्षेत्र घुमाकर हर किसी का आशीर्वाद दिलवाना... पिता बनने की बधाई हो..
अपस्यु:– पूरे आश्रम परिवार के ओर से बधाई... अब हम चलते है।
आर्यमणि के चेहरे की खुशी... दौड़ता हुआ वो वापस हॉस्पिटल पहुंचा। सभी रूही को घेरे खड़े थे। आर्यमणि गोद में अमेया को उठाकर नजर भर देखने लगा। जैसे ही अमेया, आर्यमणि के गोद में आयी अपनी आंखें खोलकर आर्यमणि को देखने लगी। आर्यमणि तो जैसे बुत्त बन गया था। चेहरे की खुशी कुछ अलग ही थी। वह प्यार से अपनी बच्ची को देखता रहा। कुछ देर बाद सभी रूही को साथ लेकर कॉटेज चल दिये।
कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।
निशांत अपनी बात पूरी कर जो ही जोरदार थप्पड़ दोनो के गाल पर मारा, दिमाग से “सबसे बढ़कर हम” होने का भूत उतर गया। किसी असहाय इंसान की तरह खड़े थे, और गाल टमाटर की तरह लाल हो गया था।
निशांत मारकर जैसे ही पीछे मुड़ा, ठीक उसी वक्त नित्या और तेजस ने लेजर किरणों से हमला कर दिया। निशांत बिना किसी बात की परवाह किये बस चलता रहा। पलटकर नित्या और तेजस के भौंचक्के चेहरे को देखा तक नहीं। एक गया और दूसरे की बारी थी। निशांत के हटते ही वहां रूही पहुंची।
किरणों का निशाने पर न लगना दोनो को घोर आश्चर्य में डाल चुका था। रूही के झन्नाटेदार गरम तवा वाला तमाचा पड़ते ही दोनो वास्तविकता में लौट आये। कुछ तो दोनो ही बोलना चाह रहे थे, लेकिन रूही थी की तप्पड़ मार मारकर न सिर्फ दोनो के गाल सुजा दी, बल्कि गालों पर पंजे के निशान के गड्ढे पड़ गये थे। अब दोनो के मुंह से आवाज की जगह दर्द भरी चीख निकल रही थी।
अलबेली उनका हुलिया देखकर नाकी धुनते हुये.... “मैं कहां मारूं”...
आर्यमणि:– पहले हील होने का सुख दो। उन्हे एहसास करवाओ की दर्द में जब तड़पते रहे तब उस वक्त कोई दर्द और घाव कम करे तो कैसा लगता है...
अलबेली हामी भरी और दोनो के नजदीक जाकर दोनो के गाल पर हाथ रख दी। टॉक्सिक वाला तमाचा पड़ा था, दर्द से दोनो की पहचान हो गयी थी। जैसे ही अलबेली ने हाथ लगाया, दोनो का दर्द कम होने लगा। एक नजर खोलकर दोनो अलबेली को देखे और उनके आंखों से आंसुओं की धार फुट गयी।.... “दादा ये तो बच्चों की तरह रो रहे हैं।”
आर्यमणि:– पहली बार दर्द और सुकून को साथ में मेहसूस किया है ना... जज्बात तो बाहर आएंगे ही...
नित्या:– अब तो हो गया न... अब हमें जाने... आआआआआ...
इस से पहले कहती की “जाने दो” अलबेली ने ऐसा थप्पड़ मारा की मुंह से “दो” शब्द निकलने की जगह पहले 2 दांत निकल आये बाद में दर्द भरी चीख। फिर तो अलबेली का गाल सुजाओ और गाल की चमरी छिल दो अभियान शुरू हो गया। दे थप्पड़, दे थप्पड़ दोनो के गाल के मांस को ही पंजा आकर से गायब कर दिया। एक किनारे का जबड़ा साफ देखा जा सकता था और चीख... दोनो तो दर्द से जैसे बिलबिला गये हो। अपने दर्द से बिलबिलाते आवाज में तेजस गिड़गिड़ाते हुये कहने लगा.... “हां जिंदगी कठिन होती है, हम समझ गये। अब किसी को परेशान नहीं करेंगे”...
आर्यमणि, दोनो को एक साथ पूरा हील करते.... “अभी तो इनके दिल का भड़ास निकला है। मेरे दादा वर्घराज कुलकर्णी, मेरे बचपन की पहली साथी मैत्री, सात्त्विक आश्रम के न जाने कितने अनुयाई, इन सबका हिसाब बाकी है। और अभी कुछ देर पहले जो तूने मेरी मां के बारे में कहा था न, उसे सुनकर मेरी आत्मा धिक्कार रही है कि मैने सुन कैसे लिया।
नित्या:– इनमे से मैने कुछ भी नही किया... सच कह रही हूं।
तेजस:– ये झूठ बोल रही है आर्य।
आर्यमणि तो था ही गुस्से में। ऊपर से तेजस की आवाज दिल में टीस पैदा कर गयी। आर्यमणि, तेजस के मुंह को दोनो मुक्के के बीच ऐसा बजाया की उसके आगे के 16 दांत बाहर आ गये और होंठ का पूरा हिस्सा कचूमर बन गया। दर्द से इस बार तेजस बेहोश ही हो गया। आर्यमणि उसे वापस से हील किया और होश में लाया। हील तो हो गया पर आगे से, ऊपर और नीचे के 16 दांत गायब हो गये.... “मुझे मेरे दोस्त आर्य कहते है। अंजान लोग भी कह सकते है। लेकिन तुझ जैसा नीच मुझसे इतना फ्रेंडली रहे, अजीब लगता है। मां के लिये कहे अपशब्द याद आ गये और उसी का इमोशन बाहर ले आया। हां बकना शुरू कर और बता”
तेजस:– हर काम में नित्या भी बराबर की भागीदारी है। लेकिन तुम सात्त्विक आश्रम को कैसे जानते हो?
आर्यमणि:– उसपर आराम से चर्चा होगी। हम दोनों के पास बहुत समय होगा। हां लेकिन वो तुम्हारी जान बक्शने की जो मैने बात कही थी, वो मैं कर सकता हूं.... लेकिन..
तेजस:– लेकिन क्या???
आर्यमणि:– अम्म्म बताने का मन नहीं हो रहा। पहले तुम बताओ...
तेजस:– क्या???
आर्यमणि:– वही अपने समुदाय के बारे में कुछ जिसे सुनकर मैं तुम्हे ये बता दूं, की तुम्हे छोड़ा कैसे जाये....
तेजस:– हमारे आंखों के साथ–साथ हाथ में भी शक्ति होती है।
आर्यमणि:– जानता हूं, तुम्हारे थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी ने पूरा बका है। अब तुम उनके नेताओं में से एक हो तो कुछ ऐसा बताओ जो तुम्हारा थर्ड लाइन वाले नही जानते हो।
तेजस:– साले गद्दार... उन्ही के वजह से हमारी ये हालत हुई..
आर्यमणि:– सो तो तुम भी हो। अपनी जान फसी तो तुम भी सब बकने को राजी हो गये। अब कुछ ऐसा बताओ जिसे सुनकर मैं तुम्हारे जिंदा रहने का तरीका बता सकूं।
तेजस:– “ठीक है तो सुनो, हम पृथ्वी पर हजारों वर्षों से है। पृथ्वी पर हाइब्रिड जेनरेशन विकसित होने के साथ ही विलुप्त के कगार पर खड़ा हमारा समुदाय अब 5 ग्रहों पर फल फूल रहा है। अब पांचों ग्रह मिलाकर हमारी 800 करोड़ से ज्यादा की आबादी है। देखा जाये तो पृथ्वी पर कोई आबादी ही नही। सभी आबादी दूसरे ग्रहों पर है। वो इसलिए भी शायद क्योंकि पृथ्वी पर आबादी बढ़ाना सबसे आसान है, इसलिए इसे अंत के लिये छोड़ा है।”
“इन सब में जो सबसे अहम बात है, वो यह कि सात्विक आश्रम पर कभी हमला नायजो ने नही करवाया था। उसका एक अपना पुराना दुश्मन था, शुर्पमारीच। उसी ने हमे पृथ्वी पर बसाया था और वही इकलौता था जो वक्त–वक्त पर सात्विक आश्रम को भी तबाह करता था। उसी के सबसे पहले हमले के बाद प्रहरी संस्था बनी थी। देखा जाये तो उस जैसा दुश्मन कभी सात्विक आश्रम वालों ने देखा ही नहीं था।
आर्यमणि:– शुर्पमारीच हां... तो ये मारीच जो है, उसने तुम्हे पृथ्वी पर क्यों बसाया था?
तेजस:– पहले वादा करो की हमे जान से नही मारोगे, तभी इस सवाल का जवाब दूंगा।
आर्यमणि:– मैं वादा करता हूं कि मेरा कहा मानोगे तो मैं तुम्हे जान से नही मारूंगा। अब बताओ...
तेजस:– नायजो पेड़ पौधे के रखवाले होते है। हमे इस ब्रह्माण्ड के हर जड़ी बूटी, औषधि और पेड़ पौधों का ज्ञान है। इसी ज्ञान में कई रहस्य छिपे है,जैसे की किसी को वश में करना, किसी की सीमित यादें मिटाना, किसी की यादों में झांकना, शरीर में पैरालिसिस जैसी स्थिति उत्पन्न कर देना, इत्यादि–इत्यादि। यूं समझ लो की किसी भी शरीर को हम जब चाहे गुलाम बना सकते है। इस पूरी विद्या में हमने शुर्पमारीच को निपुण किया और बदले में उसने हमे 4 प्लेनेट पर बसाया था। जिनमे से एक पृथ्वी भी था।
आर्यमणि:– तू उस वक्त था क्या?
तेजस:– नही मै तो नही था। वास्तविकता तो ये है कि उस वक्त का कोई भी नही। लेकिन 20 शाही खानदान के 40 परिवार पृथ्वी पर है, उन्हे इतिहास से लेकर आने वाले भविष्य की सारी योजना पता रहती है, उनमें से एक हम दोनो भी है।
रूही:– शाही परिवार या नीच परिवार जहां घर के ही लोगों को देखकर जोश जागता है। पलक भी एक शाही परिवार से ही होगी, रिश्ते में तेरी बहन, भतीजी या पोती लगेगी चुतिये।
आर्यमणि:– रूही छोड़ो भी इनके घिनौने वयभिचार की कहानी। तुम्हारी जानकारी से मेरा दिल पिघल गया। सुनो मैं तुम्हे एक इंजेक्शन दूंगा। ये धीमे जहर का इंजेक्शन है। तुम दोनो को मरने में लगभग 8 घंटे से 10 घंटे लगेंगे। जाहिर सी बात है, एंटीडॉट भी है मेरे पास। तो तुम दोनो करना ये है कि अगले 3 घंटे में यदि तुमने खुद को मारने की इच्छा जाहिर नही किये, तब एंटीडोट मैं तुम्हे एंटीडोट लगा दूंगा। तुम तो जड़ी बूटी के ज्ञानी हो, चाहो तो जहर और एंटीडॉट दिखा सकता हूं...
तेजस और नित्या तिरछी नजरों से एक बार एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए और बड़े यकीन से कहने लगे.... “तुमने हमे क्या लगाया उसकी जानकारी तीन घंटे बाद ले लेंगे। अभी सीधा इंजेक्शन ठोको”
आर्यमणि:– जैसे तुम्हारी मर्जी। निशांत इंजेक्शन लाओ...
इंजेक्शन आर्यमणि के हाथ मे था। यह वही जहर था जो मैक्सिको में आर्यमणि को जगाने के लिये रूही, अलबेली, ओजल और इवान ने लिया था। इस जहर से मौत तो 8 से 10 घंटे में होती है, लेकिन पहले मिनट से ही ये मौत के दर्द का अनुभव करवाने लगता है। आज तक जितने भी इंसान इस जहर के संपर्क में आये, बेइंतहा दर्द के कारण 5 मिनट से ज्यादा कभी कोई दर्द बर्दास्त न कर पाये और खुद की जान ले लेते थे।
इस जहर का खौफनाक असर ऐसा था कि आर्यमणि जब अपने पैक को हील किया, तब हील के दौरान ही उसकी मरने जैसे हालात हो गईं थी। चारो को किसी तरह हील करने के बाद आर्यमणि जब बेहोश हुआ तब उसके शरीर का हीलिंग प्रोसेस इतना स्लो हो चुका था कि उसे आंख खोलने में लगभग 2 महीने लग गये थे। आर्यमणि और उसके पैक ने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल के जहर का स्वाद चखा था। वही जहर अब आर्यमणि तेजस और नित्या को देने जा रहा था।
तेजस और नित्या भी कम न थे। लैब में शरीर पर एक्सपेरिमेंट करने के बाद तो अमर हो जाते हैं, दोनो इसी भ्रम में थे। उन्हें अभी तक पता भी नही चला था कि रूही और अलबेली उनकी कलाई क्यों पकड़ी थे। तेजस और नित्या अब भी सोच रहे थे कि 8 घंटे में असर करने वाला मामूली जहर उनका क्या बिगाड़ लेगा, जबकि उन गधों ने ये तक गौर न किया की थप्पड़ पड़ने से वो हिल न हुये थे। उनके शरीर से सारा एक्सपेरिमेंट निकाल लिया गया था।
पूरा माहोल तैयार था। आर्यमणि बिना कोई देर किये दोनो को इंजेक्शन लगाकर पीछे अपने साथियों के पास खड़ा हो गया। उन सबको कतार में देख तेजस हंसते हुये कहने लगा.... “आर्यमणि तुमने मेहनत तो बहुत की लेकिन हमारे बारे में पूरी जानकारी नही निकाल पाये। ये जहर हमारा क्या बिगाड़ लेगा। लेकिन डर ये है कि कहीं तुम मुकर न जाओ”...
नित्या:– हिहिहिही... अब ये मूर्ख कैसे मुकड़ सकता है। सबके सामने ही उसने वादा... वादा किया है...
नित्या जब वादा बोल रही थी तब पहला मिनट गुजर चुका था। जहर बदन के जिस हिस्से में लगता वहां से वह खून के साथ सर्कुलेट होकर हृदय तक नही पहुंचता था, बल्कि काफी स्लो बढ़ते हुये खून को ही जहर बनाते चलता था। नित्या जब वादा बोल रही थी तभी से पीड़ा शुरू हुई। किसी तरह अपनी बात पूरी करके वह तेजस को देखने लगी।
तेजस के भी चेहरे का रंग उड़ चुका था। दर्द बर्दास्त करने की जद्दो जेहद उसके चेहरे पर भी साफ देखी जा सकती थी। दूसरा मिनट गुजरा तो दोनो को छटपटाते देखा जा सकता था। बदन को तो हिला नही सकते थे लेकिन चेहरे की दर्द भरी सिकन सारी कहानी बयां कर रही थी। जैसे ही दोनो तीसरे मिनट में प्रवेश किये आर्यमणि प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते.... “जिंदा रहना कितना मुश्किल होता है शायद ये पता चलना शुरू हो गया होगा। अभी तो तीसरा मिनट ही है। बस 3 घंटे इसके साथ जूझते रहो फिर तुम दोनो को जाने दूंगा”..
आर्यमणि की बात सुनकर दोनो के आंखों से आंसू का सैलाब उमड़ गया। गले से जितना तेज चीख सकते थे, चीखने लगे। बौखलाहट में आंखों से लेजर किरणे निकालने लगे। अगले 2 मिनट तक यही तमाशा चलता रहा उसके बाद हवा हो चुकी थी सारी हेकड़ी... दर्द से बिलखती आवाज में दोनो चिल्लाने लगे.... “ये कैसा बदला ले रहे। अब बर्दास्त नही हो रहा”..
आर्यमणि:– हां क्या कहे, जरा दोहराना...
तेजस पागलों की तरह अपना गर्दन को घुमाते.... “रोक दो इसे... भगवान के लिये रोक दो”
आर्यमणि:– जब मैत्री के साथ बलात्कार करके उसे मार रहे थे तब ये ख्याल नही आया की उसे भी सम्मान के साथ जीने का हक है...
नित्या:– मैं बहुत बड़ी पापी हूं। ना जाने कितने इंसानों को खा चुकी हूं... मुझे नही जिंदा रहना... मार दो मुझे... प्लीज मार दो मुझे...
आर्यमणि:– ठीक से 10 मिनट भी न गुजरे और जिंदगी हार गये... क्या कहा था मैने जो मरने का भय तुम मुझे दिखा रहे, उसके बदले मैं तुम्हे जीने का भय दिखाऊंगा...
तेजस, गला फाड़ चिल्लाते.... “आखिर मेरा लेजर तुम्हे लग क्यों नही रहा। कौन सा तिलिस्म किये हो जो निशाना तुम सबको बनाता हूं, और लेजर कहीं और लग रहा।”
निशांत:– अबे घोंचू, तू सात्त्विक आश्रम के एक गुरु के सामने खड़ा है। गुरु होने के साथ–साथ ये आश्रम का रक्षक भी है। तुम्हे क्या लगता है, सामने से आश्रम के अनुयाई को छूने की औकद भी है तुम्हारी। भूल गये आश्रम वालों को कैसे पीछे से मारते थे? आज सामना हुआ तो फटने लगी...
दोनो ही गिड़गिड़ाते... “हमे मार दो... प्लीज हमे मार दो... अब और ज्यादा दर्द बर्दास्त नही हो रहा। मार दो ना... खड़े क्यों हो।”
आर्यमणि ने आंखों से मात्र इशारा किया और नित्या और तेजस पूरे जड़ों में जकड़े हुये थे। अब तो उनके भयानक दर्द भरी चीख उनके हलख के नीचे दब गयी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने पलक से संपर्क किया। पलक तो होटल के फोन को ही देख रही थी। जैसे ही रिंग हुआ, पलक एक बार में फोन उठाती.... “हेल्लो”..
आर्यमणि:– लगता है बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी। अपना पुराना ईमेल चेक करो...
पलक, लैपटॉप पर अपना ईमेल खोलती..... “मैं नया और पुराना नही करती, एक ही ईमेल है। कमाल है, ईमेल तो अब तक तुमने भी नही बदला... इस लिंक का क्या करूं?”
आर्यमणि:– अपने समुदाय, यानी नायजो समुदाय के ही लोगों से ये लिंक शेयर करो और जल्दी से जुड़ जाओ... सबको एक साथ बताऊंगा...
पलक:– तुम बस मुझसे मिलने की जगह बताओ... मैं इसके अलावा कुछ नही करने वाली....
आर्यमणि, बातों के दौरान ही नित्या और तेजस की मौत के भीख मांगने वाला छोटा क्लिप सेंड करते.... “ईमेल चेक करो”..
पलक:– हां वही देख रही हूं...
और जैसे ही वह क्लिप चला पलक बौखलाती... “ये सब क्या है?”
आर्यमणि:– नायजो के 2 रॉयल ब्लड मुझसे मौत की भीख मांग रहे... क्या करना है इनका यही पूछने के लिये सबको जोड़ने कह रहा था, लेकिन 800 करोड़ के समुदाय वालों को अपने 2 बंदों की फिकर नही...
पलक, वह लिंक अपने निजी सिक्योर लाइन से शेयर की। साथ में वीडियो क्लिप भी, जिसके नीचे लिखा था, “आर्यमणि हमसे जुड़ेगा और उसके पास नायजो की जानकारी है, इसलिए केवल नायजो को ही कनेक्ट करे”...
कुछ ही देर में बहुत सारे नाजयो एक साथ वीडियो कांफ्रेंस के जरिए जुड़ चुके थे। वीडियो ऑन करके सभी देखने लगे। सबके स्क्रीन के आगे बस काला आ रहा था। जितने भी जुड़े लोग थे, वह आपस में एक दूसरे को नही देख सकते थे। तभी स्क्रीन के आगे नायजो के सबसे बड़े अपराधी का चेहरा सामने आया।
आर्यमणि मुस्कुराते हुये.... “उम्मीद है इस चेहरे को किसी ने भुला नहीं होगा। मैं अभी जल्दी में निपटाऊंगा, क्योंकि असली मजा तो कल आने वाले है। जो लोग मुझे जानते है अथवा नहीं जानते है। उन्हे मैं अपना छोटा सा परिचय दे दूं। मेरा नाम आर्यमणि है। मैं दुर्लभ पाये जाने वाले वेयरवॉल्फ प्योर अल्फा हूं, जिसके पास अपना एक अल्फा पैक है। अल्फा पैक मेहमानो को अपना परिचय दो...
रूही:– मैं रूही। प्योर अल्फा पैक की एक अल्फा हीलर।
अलबेली:– मैं अलबेली। प्योर अल्फा पैक की
आर्यमणि:– तो जैसे की तुम सब अपने आंखों के आगे २ पुतले देख रहे हो, वह महज दो पुतले नही बल्कि 2 रॉयल ब्लड है। तुम सब पहले उन्हे देख और सुन लो, उसके बाद बात करेंगे...
आर्यमणि:– तो जैसे की तुम सब अपने आंखों के आगे २ पुतले देख रहे हो, वह महज दो पुतले नही बल्कि 2 रॉयल ब्लड है। तुम सब पहले उन्हे देख और सुन लो, उसके बाद बात करेंगे...
आर्यमणि अपनी बात कहकर आंखों से मात्र इशारा किया और अगले ही पल जड़ें खुलने लगी। जड़ें नीचे से खुलना शुरू हुई और हर कोई नंगे बदन को खुलते देख रहा था। जड़ें जब खुलकर घुटने के ऊपर पहुंची तब तेजस और नित्या दोनो घुटने पर आ चुके थे। कमर के थोड़े ऊपर तक खुली तो धर को जमीन तक झुका चुके थे। और जब चेहरा खुला तो सर को मिट्टी में रगड़ रहे थे। अपने हाथों से खुदका बाल नोच रहे थे। सबसे आखरी में दोनो का मुंह खोला गया।
जैसे ही मुंह खुला भयावाह चींख चारो ओर गूंजने लगी। चिल्लाते हुये पागलों की तरह दौड़ रहे थे। दौड़ते–दौड़ते जमीन पर फरफराती मछली की भांति उछल रहे थे। खुद के सर को इतना तेज जमीन पर मार रहे थे कि मिट्टी को धंसा चुके थे। दर्द हावी था और गला फाड़ चींख में बस गिड़गिड़ाते हुये मौत की भीख मांग रहे थे।
हालांकि तेजस और नित्या पूर्ण रूप से आजाद थे और एक दूसरे को मार सकते थे, लेकिन पल–पल मौत मेहसूस करवाती दर्द मे दिमाग कितना काम करे। और जो लोग वीडियो देख रहे थे, वो लोग अपने समुदाय के 2 रॉयल ब्लड का यह हाल देखकर खौफ के साए में चले गये। आर्यमणि का एक बार फिर इशारा हुआ और देखते ही देखते दोनो वापस जड़ों के बीच पूर्ण रूप से कैद हो चुके थे। कैद होने क्रम में ही दोनो का चेहरा फोकस करके दिखाया गया, जिसे देखकर सबका मुंह खुला रह गया। पहले सिर्फ रॉयल ब्लड समझ रहे थे लेकिन जब पहचान हुई फिर तो..... पहचान होने के बाद तो देख रहे सभी नायजो अपना सर पकड़कर बैठ गये।
आर्यमणि:– तो देखा तुम सबने कैसे मौत की भीख मांगी जाती है। मुझसे लड़ने आने वालों को सिर्फ इतना ही कहूंगा, मैं तुम्हारे अंदर वो दर्द और भय डाल दूंगा, जिसे मेहसूस कर खुद ही मौत की भीख मांगोगे... मुझे अब आखरी में 2 बातें कहनी है... पहली बात ये की क्या मैं इन्हे जिंदा छोड़ दूं?
आर्यमणि अपनी बात कहकर, जयदेव, सुकेश और पलक का माइक ऑन किया। ये तीनों भी अब एक दूसरे को देख सकते थे। जैसे ही माइक ऑन हुआ चिल्लाते हुये केवल धमकी ही मिल रही थी...
रूही:– ओ खजूर लोग हमारा वक्त बर्बाद मत करो। जिंदा छोड़ दूं, या मार दूं...
पलक:– उन्हे जिंदा छोड़ दो...
रूही:– ठीक है इन्हे छोड़कर हम जा रहे। बाकी डिटेल जान तुम बता दो...
आर्यमणि:– पहले दूसरी बात कह देता हूं। पलक कल तुम अपने कुछ साथी के साथ मुझसे वुल्फ हाउस मिलने आ सकती हो। हां लेकिन उस इकलाफ को लाना मत भूलना...
पलक:– बिलकुल आर्यमणि मैं वहां पहुंच जाऊंगी। कोई समय निर्धारित किये हो?
आर्यमणि:– आज रात ही हम वहां पहुंच जायेंगे, उसके बाद तुम कभी भी आ सकती हो। खुद ही आना किसी दूसरे को अपनी जगह मत भेजना। वैसे तुमने वुल्फ हाउस का पता नही पूछा... लगता है पहले से सब पता किये बैठी हो।
पलक:– हां वो तो तुम्हे भी पता है कि मुझे पता है कि वुल्फ हाउस का पता क्या है। अब ये बताओ, तेजस दादा और अजूरी (नित्या का प्रवर्तित नाम) को जिंदा छोड़ रहे या नही ..
पलक की बात पर आर्यमणि जोर से हंसते.... “यहां कोई इंसानी शिकारी नही जो तुम प्रहरी के पुरानी भगोड़ी और वर्धराज कुलकर्णी पर जिस वेयरवोल्फ नित्या को भगाने का इल्जाम लगा, उसे तुम अजुरि पुकारो। तेजस और नित्या ब्लैक फॉरेस्ट के हिस्से में एक पड़ने वाले एक शहर एन्ज में है। मैने धीमा जहर दिया है जो अपने शिकार को 8 घंटे से पहले नही मारता। अभी जहर दिये मात्र आधा घंटा हो रहा है। बचा सकती हो तो बचा लेना...
आर्यमणि अपनी बात कहकर वीडियो ऑफ कर दिया। वीडियो ऑफ करने के बाद तेजस और नित्या के चेहरे को खोल दिया गया। दोनो के दर्द से बिलबिलाये चेहरे देखने लायक थे।
आर्यमणि:– देखो तुम तो अपने लिये मुझसे मौत मांग रहे थे, लेकिन मैने तुम्हारे समुदाय को खबर कर दिया है। वो लोग शायद तुम्हे बचा ले....
उन्हे चिल्लाते और गिड़गिड़ाते छोड़ पूरा अल्फा पैक निकल आया। कुछ देर में वापस से उनका मुंह बंद हो गया। संन्यासी शिवम्, ओजल और इवान के साथ पहले से वुल्फ हाउस में थे। रात के तकरीबन 10 बजे पूरा वुल्फ पैक भी पहुंच गया। सब के सब लगभग 60 किलोमीटर की रेस लगाकर आ रहे थे। हां एक निशांत था, जो दौड़ नही रहा था, बल्कि आर्यमणि उसे कंधे पर उठाये दौड़ रहा था। रात में किसी से किसी भी प्रकार की बात नही हुई। सभी आराम करने चल दिये।
दूसरी ओर पलक को खबर लगते ही वह भी निकल चुकी थी। उसकी पूरी पलटन ही वुल्फ हाउस के नजदीकी टाउन में थी। नित्या का रोल अब भारती को अदा करना था, इसलिए पूरे 1200 एलियन उसी के कमांड में थे। महा की 400 की टुकड़ी ब्लैक फॉरेस्ट से लगे किसी दूसरे शहर में थी जहां से वुल्फ हाउस 40–45 किलोमीटर पर था।
पलक और उसके 30 विश्ववासनीय लोग प्राइवेट एयरोप्लेन से निकले। 7.३0 बजे तक पलक एन्ज शहर में थी। थोड़ी सी छानबीन के बाद उन्हें एक वीरान सी जगह पर तेजस और नित्या भी मिल गये। पलक और उसके अपने लोगों के अलावा वहां कई सारे वाहन और भी पहुंचे, जिनमे तकरीबन 200 प्रथम श्रेणी के नायजो थे जो सब के सब रॉयल ब्लड के थे। उन सबको लीड भारती ही कर रही थी।
पलक:– भारती तुम यहां क्यों आयी हो?
भारती:– तुम ये मिशन लीड कर रही हो, तो वहीं तक रहो। बाकी अभी तुम्हारी इतनी हैसियत न हुई की मुझसे सवाल करो... रांझे रुके क्यों हो जाकर मेरी बहन और तेजस को छुड़ाकर लाओ...
भारती:– अपनी सगी बहन। बाप भी एक और इंसानी मां की कोख भी एक। समझी क्या?
पलक, अपने लोगों को लेकर किनारे खड़ी होती.... “तुम करो, कोई मदद की जरूरत हो तो याद कर लेना”
भारती उसकी बात पर ध्यान न देकर सामने देखने लगी। वह एलियन रांझे 40–50 लोगों को लेकर पहुंचा और जड़ों को काटकर हटाने लगा। अतिहतन काटकर हटाता रहा। हटाता रहा... हटाता रहा... देखते, देखते लोगों की आंखें पथरा गयी। शाम के 7.30 से देर रात 12 बज गया, लेकिन जड़ था की खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था। जैसे शाम 7.30 बजे पुतला खड़ा था, ठीक वैसे ही 12 बजे तक वो पुतला खड़ा था।
भारती और बाकी के लोग वहां जमीन पर ही आसान लगाकर बैठ गये। जब भारती से बर्दास्त न हुआ तब वह कॉल लगाई। यह कॉल सीधा विशपर प्लेनेट के राजा से कनेक्ट हुआ। भारती संछिप्त में उसे पूरी जानकारी दे चुकी थी।
राजा:– नजदीक से दिखाओ मुझे उन जड़ों को... हम्मम... ये बेल की जड़ें है जो पृथ्वी से निकल रही। किसी मंत्र के वश में है। वो जो आश्रम का गुरु था, वो नित्या और तेजस को मारना चाहता था क्या?
भारती:– पता नही...
राजा:– पलक है क्या वहां?
भारती:– हां यहीं है ..
पलक:– बोलिये राजा करेनाराय जी...
राजा:– पलक क्या वो जो आश्रम का गुरु था, वो दोनो को मारना चाहता था?
पलक:– नही... बिल्कुल नही...
भारती:– तुम्हारा एक्स बॉयफ्रेंड था न, इसलिए उसे अच्छा दिखा रही..
पलक:– जिस हिसाब से दोनो चिंख कर अपने मौत को पुकार रहे थे, विश्वास मानो यदि आर्यमणि उन्हे मार देता तो मैं उसे अच्छा कह सकती थी। खैर अब तक तुम जिंदा रहने और मरने का फर्क नहीं जानती इसलिए इतनी जुबान खुल रही है। राजा करेनाराय जी वो दोनो को नही मरेगा, ये पक्का है।
राजा करेनाराय:– तो फिर इंतजार करो उसका तिलिस्म अपने आप टूटेगा...
उनलोगो ने राजा की बात मानकर कुछ देर इंतजार किया। रात के तकरीबन 1 बजे जड़े अपने आप जमीन में गयी और वहां मौजुद हर किसी का हाथ अपने कान पर। नित्या और तेजस की वो भयावाह चींख और अपने ही हाथों से अपना बाल नोचना। पिछले 7 घंटों से दोनो मौत को भयभीत करने वाले दर्द को झेल रहे थे।
भारती भागकर नित्या के पास पहुंची जबकि पलक तेजस के पास। दोनो के साथ एक जैसा व्यवहार हुआ। तेजस और नित्या, पलक और भारती को धक्का देकर बिलखते और चिल्लाते हुए अपने आंखों से लेजर चलाने लगे। कभी लेजर चलते तो कभी अपना सर जमीन पर पटक रहे थे... “मार दो, मार दो, कोई तो मार दो”..
भयवाह मंजर था। भारती को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो हसरत भरी नजरों से पलक को देखती.... “कुछ तो करो”..
पलक:– इन्हे तगड़ा बेहोश करो और नजदीकी साइंस लैब जल्दी लेकर पहुंचो। वहीं इसका उपचार होगा...
तेजस और नित्या को तुरंत ही बेहोश किया गया। दोनो जब बेहोश हुये उसके बाद तो ऐसा लगा मानो चारो ओर का माहोल पूर्णतः शांत होकर खुशियां बिखेड़ रहा हो।
भारती:– पलक तुम्हारे साथ मैं भी आर्यमणि से मिलने जाऊंगी.... कल के कल वो मेरे हाथों से मरेगा...
पलक:– भारती लेकिन सब पहले से तय हो चुका था न...
भारती:– तय वय को रहने दो और मैं अपने लोगों के साथ अंदर जाऊंगी... तुम्हारा मन हो तो भी, न मन हो तो भी...
पलक:– ठीक है पहले तुम अपने लोगों को लेकर जाना... काम न बना तो पीछे से मैं आऊंगी....
सभी बातें तय हो तो गयी लेकिन तेजस और नित्या के चक्कर में रात काफी हो गयी थी। इसलिए कल की मुलाकात से पहले एक अच्छी नींद सबको चाहिए थी।
8 मार्च की सुबह वोल्फ हाउस के बहुत बड़े से हॉल के बहुत बड़े से डायनिंग टेबल पर पूरा वुल्फ पैक बैठा हुआ था। किचन ओजल और रूही देख रही थी बाकी सब आराम से टेक लगाये थे। चाय–काफी के साथ गरम नाश्ता परोसा जा रहा था।
संन्यासी शिवम:– गुरुदेव आपको क्या लगता है। पहले बात चीत होगी फिर युद्ध या पहले युद्ध होगा और युद्ध में हारने की परिस्थिति में बातचीत करने आयेंगे...
ओजल:– इतनी मेहनत से बनाया है, क्या आप सब पहले इसे खायेंगे...
ओजल की इस तुकबंदी पर सब हंसने लगे। हंसी मजाक के बीच सुबह के नाश्ते से लेकर दोपहर के खाने तक सब बड़े से हॉल के डायनिंग टेबल पर चलता रहा। सभी की हंसी मजाक चल रही थी, इसी बीच स्क्रीन पर चल रही हलचल को देख अलबेली.... “लगता है मेहमान आ गये। दादा, बहुत खा लिया है अब आराम करने की इच्छा हो रही। उनसे कहो 2 घंटे बाद आये।”
आर्यमणि, स्क्रीन को देखते... “ऐसा क्या?”... उधर पलक बहुत सारे भीर के साथ वुल्फ हाउस के दहलीज की सीमा तक पहुंच चुकी थी। सीमा पर बड़ा सा बोर्ड टंगा था, जिसपर खतरा लिखा हुआ था। खतरे के उस बोर्ड के पास पलक चारो ओर घूमकर देख भी रही थी और कानो पर अपने हाथ इस प्रकार रखी थी मानो बात करने के लिये फोन उठाया है।
पलक शायद बात करने का इशारा कर रही थी, और तभी एक ड्रोन उसके कदमों में आकर रुका। पलक एक बार ड्रोन को देखी और उसमे रखा फोन उठाकर... “हेलो, क्या हम आ सकते है?”
आर्यमणि जम्हाई लेते.... “अभी–अभी दिन का खाना हुआ है। वैसे भी रात को चौकीदारी करते–करते सुबह हो गयी थी, इसलिए 2 घंटे बाद आना। अभी हम सब आराम करने जा रहे।”
पलक गुस्से से.... “तुम हमारे सब्र का इम्तिहान ले रहे?”
भारती:– क्या कह रहा है?
पलक:– 2 घंटे बाद आने कह रहा है।
भारती पूरे तैश में आती.... “मेरे शिकारियों, इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जमीन पर कोई भी ट्रैप नही है। ना ही कोई ट्रैप वायर, न कोई बिजली और न ही गड्ढे खोदकर कोई डेथ ट्रैप बनाया गया। महल तक सीधा दौड़ लगा दो...
“नही रुको... सुनो”.... पलक कहती रही लेकिन कोई न सुना। 200 फर्स्ट और सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी एक साथ दौड़ लगा चुके थे। सीमा से कुछ दूर अंदर जाकर जैसे ही वो जंगल में ओझल हुये ठीक उसी वक्त आंखों के सामने बहुत सारे पेड़ चरमरा कर जमीन में घुस गये और कुछ देर पहले जहां बड़े–बड़े पेड़ खड़े थे, वहां के कुछ हिस्सों से पेड़ों का नामो निशान गायब था और उसकी जगह मैदान दिख रहा था जिसपर घास उगे थे, लेकिन कहीं कोई शिकारी नजर नहीं आ रहा था।...
“हेल्लो... हेल्लो”... पलक के फोन से आवाज आ रही थी। पलक फोन उठाती.... “मेरे शिकारी कहां गायब हो गये?”
आर्यमणि:– और बिना इजाजत अंदर घुसो। सभी शिकारी सुरक्षित है, लेकिन अब यदि बिना इजाजत अंदर घुसे तब न तो वो शिकारी सुरक्षित रहेंगे और न ही जबरदस्ती घुसने वाला...
पलक:– और मै जबरदस्ती आऊं तब?
आर्यमणि:–अब तुम्हे थोड़े न असुरक्षित रखेंगे। तुम्हे अंदर लेंगे बाकी के सभी लोग असुरक्षित। इसलिए बात मानो और 2 घंटे इंतजार करो।
पलक गुस्से का घूंट पीती... “क्या यही तुम्हारी मेहमाननवाजी है? कल तो खुद ही कहे थे किसी भी समय आने, अब आज क्या हो गया?”
रूही:– हां कह तो वो सही रही है बॉस। कल तुमने ही किसी भी वक्त आने के लिये कहा था।
आर्यमणि:–हम्मम, माफ करना पलक, मैं जरा नींद में था। ठीक है, तुम अपने कुछ साथियों के साथ आ सकती हो। हां और वो लड़का तो जरूर साथ होना चाहिए, क्या नाम था उसका...
पलक:– नाम था नही, नाम है एकलाफ। हां वो मेरे साथ ही है। कुछ लोग मतलब कितने लोग के साथ आऊं?
आर्यमणि:– तुम्हारा रूतवा तो देख रहा हूं, बड़ी अधिकारी हो गयी हो। तुम्हारी सुरक्षा के लिये इतने सारे लोग। देखो 4–5 लोगों के साथ आ जाओ। मैने तुम्हे बुलाया है तो इस बात के लिये सुनिश्चित रहो की तुम्हे यहां कोई खतरा नहीं। हां लेकिन तुम्हारे साथ जो दूसरे आयेंगे, वो अपनी जुबान और हरकत के लिये खुद जिम्मेदार होंगे। ये बात समझा देना।
पलक, भारती से.... “वो 4–5 लोगों के साथ ही बुला रहा है भारती। क्या करना है?
भारती, पलक के हाथ से मोबाइल छिनती..... “सुन बे चूहे, तुझे छिपकर मारने में मजा आता है। यहां जाल बिछाकर क्या तू खुद को शेर समझ रहा, दम है तो मुझे अंदर आने दे, फिर देख मैं तेरा क्या हाल करती हूं??
आर्यमणि:– अब तुम कौन हो?
भारती:– मैं उसी नित्या की बहन हूं, जिसे कल तुमने मार डाला...
आर्यमणि:– नित्या मर गयी। लानत है तुम लोगों पर, उसकी जान न बचा पाये। अच्छा बहन की मौत का बदला। हम यहां 7 लोग है। ये बताओ तुम वीर प्रजाति के लोग हो, कितने लोगों के साथ मुझसे बदला लेने आओगी?
भारती इस से पहले कुछ कहती, पलक माइक को कवर करती..... “बहुत चालाक है वो। तुम्हे उकसा कर कम लोगों के साथ अंदर बुलाना चाह रहा।”
भारती:– हम्म्म.. ठीक है देखती जाओ फिर। सुन ओ कीड़े, यहां नित्या के 500 सगे संबंधी है जो तुम्हे मारकर अपना बदला लेना चाहते है। साथ में तेजस के भी सगे संबंधी है। तो अब बता कितनो को बदला लेने अंदर बुला रहा। मैं तो अकेले ही आउंगी। बदला लेने वालों की संख्या सुनकर तेरी फटी तो नही न?
आर्यमणि:– कितनी फटी है वो भी चेक कर लेंगे। बदला लेने वाले लोग एक कतार बनाकर अंदर आना शुरू कर दो। बात करने वाले अभी पीछे खड़े रहेंगे...
भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”
भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”
पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?
भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?
पलक:– क्या?
भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”
“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...
पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”
भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।
भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।
वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”
आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...
अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।
आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..
ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”
रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।
अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...
रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...
इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।
अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..
ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...
अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...
तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।
आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।
वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”
भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।
जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।
हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।
हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।
आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...
रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।
आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...
रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..
अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।
घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”
“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।
वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।
मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।
भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।
आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।
रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।
आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...
रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..
आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...
अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...
आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।
डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।
फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।
भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...
अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”
अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।
बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...
भारती:– द द द देखो आर्यमणि...
आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...
रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...
आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?
रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..
आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।
रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...
ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी
एक बार गिड़गिड़ाती और लात खाकर उसका चेहरा दूसरे पाऊं तक पहुंचता। दूसरे से लात खाकर तीसरे और तीसरे से लात खाकर पहले के पास। लात खाती रही और गिड़गिड़ाती रही। फिर अचानक ही जैसे भारती को कुछ याद आया हो और उसने फिर से अपने आंखों से लेजर चला दिया। लेजर किसी के पाऊं में तो नही लगा, लेकिन इसके विस्फोट से सभी उड़ गये। रूही, ओजल और इवान के साथ खुद भारती भी उस धमाके से उड़ी और कहीं दूर जाकर गिरी।
धमाके के कारण उसका प्लास्टिक भी फट गया जिसमे से भारती बड़ी आसानी से निकल गयी। निशांत और संन्यासी शिवम भी उसी जगह मौजूद थे जिसे आर्यमणि ने खुद भेजा था। भारती समझ चुकी थी कि किसी भ्रम जाल के कारण उसका लेजर इन सबको नही लग रहा, लेकिन ये लोग निशाने के आसपास ही रहते है इसलिए धमाके में उड़े। फिर तो भारती की तेज नजर और अल्फा पैक का पाऊं था। किरणे जमीन पर गिरती और धमाके के कारण वुल्फ पैक 10 फिट हवा में।
धमाका चुकी बड़े से इलाके को कवर कर रहा था, इसलिए भ्रम जाल उन्हे धमाके की चपेट से नही बचा पा रहा था। फिर उन सब ने सुरक्षा मंत्र का प्रयोग किया। सुरक्षा मंत्र के प्रयोग से खुद को घायल होने से तो बचा रहे थे, किंतु हवा में उछलकर गिरने से सबकी हड्डियां चटक रही थी।
भारती फिर रुकी ही नही। वह लगातार हमले करती रही और बीच–बीच में शिकारियों के ढेर पर भी विस्फोट कर देती। कुछ प्रलोक सिधार जाते तो कुछ लोग अपना प्लास्टिक निकलने ने कामयाब हो रहे थे। देखते ही देखते वोल्फ पैक घिरने लगा था। तरह–तरह के हमले उनके पाऊं पर चारो ओर से होने लगे थे।
कुछ नायजो केवल अपने साथी को ही छुड़ाने लगे हुये थे। भारती की अट्टहास भरी हंसी चारो ओर गूंजने लगी... “तू बदजात कीड़े, इतनी हिम्मत की मुझसे उलझो। आज इसी जगह पर तुम सबकी लाश गिरेगी”...
रूही जो पिछले 10 मिनट से हो रहे हमले और अपनी मां के कातिल को खुला देख रही थी, वह अंदर ही अंदर बिलबिला रही थी। फिर गूंजी एक दहाड़... शायद यह किसी फर्स्ट अल्फा की दहाड़ से कम नही थी.... “अल्फा पैक... आज इनके रूहों को भी चलो दिखा दे कि जिंदगी कितना दर्द देती है। सभी को एक साथ कांटों की सेज पर सुलाओ।”.... रूही भी चिल्लाती हुई कह गई क्या करना है। ओजल, संन्यासी शिवम के ओर देखते.... “संत जी हम बड़े से सुरक्षा घेरे में लो”...
हवा का रुख एक बार फिर पलट गया। हवा की बड़ी सी दीवार बनी, जिसके ऊपर एक साथ बहुत सारे विस्फोट हो गये। भारती हवा के इस सुरक्षा घेरे को देखकर हंसती हुई.... “जब हम आंखों से लेजर चला रहे थे, तब हमारे सुपीरियर शिकारी स्टैंड बाय में थे। शायद पहली बार अपने रॉयल ब्लड की शक्ति देख रहे हो। तुझे क्या लगता है हवा को जैसा हमने नियंत्रण करना सीखा है, उसके आग तेरा ये जाल काम करेगा। बेवकूफ भेड़िए, देख कैसे टूटता है ये तेरा सुरक्षा घेरा... सभी एक साथ हवा का हमला करेंगे।”...
इधर भारती ने हुकुम दिया उधर पूरा डंप ग्राउंड दर्द की चीख पुकार में डूब गया। बड़बोलेपन की आदत ने आज भारती को डूबा दिया। हवा के बड़े सुरक्षा घेरे के अंदर पहुंचते ही, सभी वुल्फ ने अपनी आंखें मूंद ली। वही ओजल अपना दंश निकालकर सामने के ओर की, जिसे सबने पकड़ रखा था। दंश जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। जैसे ही पूरे वुल्फ पैक ने कमांड दिया, जड़ों के रेशे मोटे नुकीले कांटेदार बन गये और सभी खड़े नायजो के शरीर में ऐसे घुसे की वो लोग कांटों की चिता पर लेटे थे और उनके मुख से दर्द की चीख और पुकार निकल रही थी।
ये सारा काम उतने ही वक्त में हुआ जितने वक्त में भारती ने अपना डायलॉग मारा। इधर भारती ने हमला करने का ऑर्डर दिया, उधर उसके मुंह से ही मौत ही चीख निकल गयी। रूही, ओजल और इवान यहां पर भी नही रुके। वो तीनो जानते थे की लकड़ी घुसे होने के कारण उनका बदन उस जगह को कभी हील न कर पायेगा। दर्द के ऊपर महा दर्द देते तीनो ने ही अपने हाथ को जड़ों के ऊपर रख दिये और उन जड़ों से कैस्टर ऑयल के फूल का जहर हर किसी के बदन में उतार दिया।
वहां के दर्द, चीख और गिड़गिगाना सुनकर तो जंगल के जानवर तक भयभीत हो होकर आस–पास के जगह को छोड़ दिया। ओजल और इवान ने मिलकर लगभग 200 नायजो के मुंह को बंद करके उन्हे पूरा जड़ों ने लेपेटकर वापस डंपिंग ग्राउंड में छोड़ दिया, जबकि अकेली भारती को सीधा किसी पुतले की तरह खड़ा कर दिये। भारती हालांकि खुद को जड़ों से छुड़ा तो सकती थी, लेकिन ये मामूली जड़े नही थी। ये कांटो की लपेट थी जो बदन में घुसने के साथ ही प्राण को हलख तक खींच लाये थे और अगले 2 मिनट में वह मौत के सबसे खरनाक दर्द को मेहसूस करने लगी थी। भारती के दर्द और गिड़गिड़ाने की आवाज चारो ओर गूंज रही थी और अल्फा पैक वहीं डंपिंग ग्राउंड में कुर्सी लगाकर भारती के दर्द भरे आवाज को सुनकर सुकून महसूस कर रहा था।
वोल्फ हाउस के अंदर केवल अलबेली और आर्यमणि थे। बाकी सभी डंपिंग ग्राउंड में थे... “दादा जबतक वो लोग खेलने गये है, पलक को बुलाकर बात–चित वाला काम खत्म कर लो”..
आर्यमणि:– नेकी और पूछ–पूछ.. चलो बुला लेते है।
पलक को कॉल किया गया। पलक अपने चार चमचे के अलावा महा को भी साथ ली और 5 मिनट में सभी वुल्फ हाउस में थे। वोल्फ हाउस के अंदर सभी अपना स्थान ग्रहण किये।
आर्यमणि:– ये एकलाफ कौन है जो मुझे बिना जाने गंदी और भद्दी गालियां दे रहा था।
एकलाफ:– अपनी जगह बुलाकर ज्यादा होशियार बन रहा है। दम है तो हमारी जगह आकर ऐसे अकड़कर बात कर...
आर्यमणि:– अच्छा तो वो तू है... अलबेली तुम्हारा एक्सपर्ट कॉमेंट...
अलबेली:– ये चमन चिंदी... घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी देन... ये इतना अकड़ रहा था कि आपको गाली दे, तू इधर आ बे...
पलक, गुस्से से अपनी लाल आंखें दिखाती... “तुम बात करने यहां बुलाए हो या उकसाने”...
आर्यमणि:– इतना कमजोर दिमाग कब से हो गया। तुम ही कही थी ना ये सबके सामने गाली देगा... क्या हुआ इसके औकाद की, हमारा जलवा देखकर घट गया क्या?
एकलाफ:– एक बाप की औलाद है तो फेयर फाइट करके दिखा...
अलबेली:– पृथ्वी क्या पूरे ब्रह्मांड में सभी एक बाप की ही औलाद होते है। उसमे भी भारत में लगभग सभी को अपने बाप का नाम पता होता है। और जिन्हे नहीं पता होता है उसमे से एक नाम है एकलाफ। किसका बीज है उसके बारे में उसकी मां तक कन्फर्म नही कर सकती, क्योंकि उस बेचारी को तो पता ही नही होता की उसके पति के वेश में कौन बहरूपिया बीज डालकर चला गया। तभी तो तू घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी पैदाइश निकला है।
एकलाफ, गुस्से में कुर्सी के दोनो हैंडरेस्ट उखाड़ कर तेज चिल्लाती... “दो कौड़ी की जानवर”... गुस्से में चिल्लाकर अभी एकलाफ ने मुंह से पूरी बात निकाली भी नही थी कि अलबेली काफी तेज मूव करती उसके पास पहुंची और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर लगाकर वापस आर्यमणि के पास। एकलाफ की आवाज मुंह में ही घुस गयी। प्रतिक्रिया में पलक के साथ–साथ उसके तीन और चमचे, सुरैया, ट्रिस्कस और पारस भी गुस्से में खड़े थे।
महा:– सगळेच वेडे झाले आहेत (सब पागल हो गये है।)। यहां क्या ऐसे ही चुतियापा करना है?
आर्यमणि:– झूठे प्रहरियों को उनकी ओकाद दिखा रहे।
महा:– मांझे..
अलबेली:– मतलब प्रहरी संस्था सात्विक आश्रम का अभिन्न अंग है जिसकी देख रख सात्विक आश्रम के गुरु करते थे। इसलिए अब सात्विक आश्रम के गुरु चाहते है कि प्रहरी संस्था के तात्कालिक सदस्यों को निकालकर, नए रूप से सदस्यों को भर्ती करेंगे जो सात्त्विक आश्रम के प्रारूप के अनुसार होगा।
महा:– अब ये सात्विक आश्रम कहां है।
अलबेली:– इस चुतिये को तो अपने धरोहर का नाम नहीं पता, इतिहास घंटा जानेगा।
महा:– तुम एक वेयरवोल्फ होकर...
आर्यमणि:– महा आगे कुछ बोलने से पहले जुबान संभालकर.....
महा:– तो पहले अपने पैक को शांत करवाओ... कुछ भी बकवास करते है। यहां क्यों बुलाए हो उसपर सीधा–सीधा बात करते है...
सबके बीच इतनी ही बातें हुई थी की हॉल में भयानक चिल्ल्हाट ही आवाज गूंजने लगी। सबके कान खड़े और हृदय में कम्पन हो गया हो जैसे।....... “हमारे साथ आये लोगों के साथ तुम क्या कर रहे हो आर्य”... महा उस जगह के चारो ओर देखते हुये कहने लगा...
आर्यमणि:– जो लोग लड़ने आये थे वो यदि हमारी चीख निकाल रहे होते तो क्या तुम ऐसे ही पूछते...
महा:– पुलिस किसी क्रिमिनल को पीटकर उसकी चीख निकलवाए उसे जायज कहते है। वहीं क्रिमिनल यदि पुलिसवालों की चीख निकलवाए तो उसे गुंडागर्दी और नाजायज कहते हैं।
आर्यमणि:– बात तो तुम्हारी सही है महा लेकिन यहां थोड़ा सा अंतर है। अंतर ये है की जिसे तुम पुलिस समझ रहे वो बहरूपिया पुलिस है। और जो उन्हें पीट रहे है, वो एक सच्चा सोल्जर है। खैर अब तो तुम महफिल में बैठ ही गये तो सब जानकर ही उठोगे...
पलक अपनी जगह से खड़ी होती..... “यहां बहरूपिया कौन है और कौन असली सोल्जर ये कुछ ही क्षण में पता चल जायेगा। तुम्हे लगता है उन धैर्य खोये हुये भिड़ को मारकर अथवा यहां जाल बिछाकर खुद को सुरक्षित समझते हो। तुम्हे क्या लगता है, मुझे ये पता नही की तुम्हारे लोग उसी रात असली ओजल और इवान को मेरे कैद से निकाल कर ले गये, जिस दिन बहरूपिए मेरे पास पहुंचे थे। तुम्हे क्या लगता है, मैं जो तुमसे कही थी कि जिस दिन मिलूंगी तुम्हारे सीने से दिल चीरकर निकाल लूंगी, क्या मैं भूल गयी। क्या तुम्हे वाकई लगता है कि तुम यहां जीत गये। तो फिर चलो शुरू करते है।”
आर्यमणि और अलबेली दोनो एक दूसरे की सूरत देखने लगे। मानो आपस में ही कह रहे हो.... “लगता है चूक हो गयी।”.... और वाकई चूक हो चुकी थी। श्वान्स के द्वार कुछ तो शरीर के अंदर गया था जो हाथ तक हिलाने नही दे रहा था। हवा में ऐसा क्या छोड़ा गया जो बाकियों पर असर नही हुआ लेकिन आर्यमणि और अलबेली दोनो स्थूल से पड़ गये थे।
बस 2 सेकंड और बीता, उसके बाद तो आर्यमणि के पास खड़ी अलबली धराम से जमीन पर गिर गयी। शरीर इतना अकड़ा हुआ था कि अलबेली जब गिरी तो उसकी एक हड्डी तक नही मुड़ी।
पलक:– एकलाफ अपने थप्पड़ का बदला इस लड़की के जान बाहर निकालकर लो।
आर्यमणि की आंखें फैल गयी, जैसे वो अलबेली के लिये रहम की भीख मांग रहा था। पलक कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाती, अपनी ललाट उठाकर.... “क्यों निकल गयी हेंकड़ी। एकलाफ खड़े क्यों हो, कमर पर ऐसा तलवार चलाओ की ये लड़की 2 हिस्सों में बंट जाये।
एकलाफ अपने कमर का बेल्ट निकाला। बेल्ट न कहकर तलवार कहना गलत नही होगा। उसकी बनावट ही कुछ ऐसी थी कि सीधा करके उसके 2 जोड़ के बीच जैसे ही हुक फसाया गया, स्टील के चौड़े, चौड़े हिस्से एक साथ मिलकर तलवार का निर्माण कर गये। एकलाफ तलवार लेकर आगे बढ़ा ही था कि बीच में महा आते.... “देखो ये तुमलोग गलत कर रहे हो। हमे यहां बातचीत के लिये बुलाया गया था।”
पलक:– हां तो आर्यमणि से बात चीत हो जायेगी। बाकी के लोग उतने जरूरी नही। महा रास्ते से हट जाओ अन्यथा हम तुम्हे मारकर भी अपना काम कर सकते हैं।
महा:– ये तुम गलत कर रही हो... अभी बहुत सी नई बातें सामने आयी थी, और तुम बात–चित का जरिया बंद कर रही हो।
एकलाफ:– कोई इस चुतिये को हटाएगा, ताकि मैं इस बड़बोले जानवर को काट सकूं...
महा, चिढ़कर वहां से हटा। महा के हटते ही एकलाफ ने तलवार चलाया। तलवार चलाया लेकिन तलवार सुरक्षा मंत्र के ऊपर लगा। ऐसा लगा जैसे तलवार हवा से टकराई हो। “हवा से खुद की सुरक्षा कर रही हो। तुम्हे पता नही क्या ये हवा हमारी गुलाम है।”... एकलाफ चिल्लाते हुये कहने लगा...
पलक:– रुको जरा, ये कहां जायेंगे। पहले उन लोगों का भी इलाज कर दे जो बाहर हमारे 1000 लोगों को या तो मार चुके या मार डालेंगे। स्टैंड बाय टीम वुल्फ हाउस के पीछे जाओ और सबको काट कर अपने जितने लोग बच सकते है बचा लो।
एकलाफ:– मैं रुकूं या फिर इस बदजात हरामजादी को मार डालूं,जिसने मुझे क्या कुछ नही सुनाया?
पलक:– हां उसे मार देना लेकिन उस से पहले इस कमीने आर्यमणि के मुंह पर गाली दो। बहुत घमंड है ना इसे अपनी प्लानिंग पर... दिखाओ की हमारी औकाद क्या है।
एकलाफ:– बड़े शौक से तुम लोग जरा अपना कान बंद कर लो।
सबने अपने कान बंद किये। एकलाफ पहले तो जमीन पर थूका, उसके बाद जैसे ही मुंह खोला, बड़ा सा विस्फोट छोटे से दायरे में हुआ और, आर्यमणि और अलबेली दोनो कितने नीचे गड्ढे में गये वो ऊपर से बता पाना मुश्किल था, क्योंकि गड्ढा इतना नीचे था कि ऊपर से केवल अंधेरा ही नजर आ रहा था।
पलक के सारे चमचे जो फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी थे, वो सभी गड्ढे के पास पहुंचकर अपने हाथों से हवा का बवंडर उठाते, उनमें से तीर, भला, बिजली और आग को पूरा उस गड्ढे में झोंक दिया। ऐसा लगा जैसे आग का तूफान ही बड़ी तेजी से नीचे कई 100 फिट गड्ढे में गया और धधकता वो बवंडर लगातार जलता ही रहा।
पलक:– अरे नही.... हटो, हटो सब वहां से... आर्य को नही मारना था।
एकलाफ:– सॉरी पलक, लेकिन अब तो उसका तंदूर बन गया होगा।
पलक, पूरे गुस्से में.... “तुम चारो को मैं बाद में देखती हूं। घर के पीछे निकली टीम में से कुछ लोग हॉल में जल्दी आओ, और रस्सियां भीं लेकर आना... जल्दी करो।”
सुरैया (नाशिक में मिले चार चमचों में से एक चमची).... “पलक क्या तुम नीचे जाने वाली हो?”...
पलक:– हां बेवकूफों... तुम चारो ने सब गड़बड़ कर दिया। देखना होगा ये प्योर अल्फा इतना तापमान झेल पाया या नही। काश उसमे थोड़ी भी जान बाकी हो...
जबतक पलक के सामने उसके 6 विश्वशनीय लोग आकार खड़े हो गये.... “यहां के लिये क्या ऑर्डर है।”
पलक:– 2 आदमी पानी के सप्लाई लाइन को उस गड्ढे में डालो। और 2 आदमी रस्सी को हुक में डालकर फसाओ, मुझे उस गड्ढे के तल तक उतरना है।
पलक की टीम का हेड सोलस:– मैम आप यहीं रहिए, मैं नीचे जाता हूं..
पलक:– नही मुझे जाना है। जितना कही उतना करो....
सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।
सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।
पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...
सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...
एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?
पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...
सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...
पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...
पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...
महा:– जैसा आप कहो मैम....
पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।
तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?
सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?
पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?
सोलस:– मतलब..
पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...
सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...
पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...
सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।
पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।
सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...
पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...
सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।
पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...
इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।
अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।
आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”
अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।
आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।
अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?
आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...
अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..
रूही:– हां जान, बोलो...
आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।
रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...
आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...
फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।
इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....
“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”
आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”
आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।
रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।
आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..
रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...
आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।
रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...
आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।
ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।
रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”
ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।
इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।
आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।
रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।
आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...
रूही:– मतलब...
आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?
निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...
संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।
संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।
संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...
निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”
रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...
निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।
रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...
निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”
“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...
रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...
निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..
रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...
लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।