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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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रिचा 10 मिनट में हॉल में आने के लिये कहकर कमरे से निकल गई। आर्यमणि हालात को समझते हुये कुछ सोचा। टेस्ट में बॉडी डैमेज होना ही था और वो अपनी हीलिंग कैपेसिटी जाहिर नहीं होने दे सकता था, इसलिए उसने अपने पास से लेथारिया वुलपिना निकला और एक बार में इतनी मात्रा ले ली, जिसका असर 5–6 घंटे में खत्म ना हो।


दोनो साथ निकले। कुछ ही देर में आर्यमणि एक बड़े से होटल के रिसेप्शन एरिया में था। रिचा उसे अपने साथ लेकर किचेन के एरिया में आयी, जिसके दरवाजे पर खड़े 2 मुलाजिम ने रिचा से कुछ बातचीत की और आर्यमणि को लेकर चल दिये। किचेन के पीछे लगे लिफ्ट से रिचा ने माइनस 4 बटन प्रेस किया और बेसमेंट के नीचे बने तीन मजिली इमारत के बारे में बताती हुई, वर्क स्टेशन तक ले आयी। ये जगह किसी सीक्रेट एजेंसी के वर्क स्टेशन से कम नहीं लग रहा था। रिचा आर्यमणि को लेकर एक खाली कमरे में पहुंची। कमरे में जरूरत कि कुछ चीजें थी और चारो ओर कवर करता कैमरा लगा हुआ था।


रिचा:- सॉरी आर्य, नथिंग प्रसनल।


आर्यमणि:- मेरे लिए तो ये पर्सनल ही है। मै बस अपनी बहन भूमि और अपनी होने वाली पत्नी पलक के लिए यहां हूं, जो इस जगह को मंदिर मानती है। तुम बेफिक्र होकर प्रयोग शुरू करो।


"हम्मम, कुर्सी पर बैठ जाओ"…


आर्यमणि कुर्सी पर बैठ गया। रिचा ने उसके हाथ और पाऊं को बांध दिया, और मुंह में कपड़ा। शर्ट के बटन को खोलकर, इलेक्ट्रिक वायर की दो चिमटी उसके निपल पर लगा दी। सर पर एक इलेक्ट्रिक ताज, दोनो हाथ, दोनो पाऊं और गर्दन के दोनो ओर चिमटी।


रिचा कैमरे को दिखाकर थम्स उप की और उधर से उसके ब्लूटूथ पर इंस्ट्रक्शन आने शुरू हो गए…. करंट प्रवाह होना शुरू हुआ। धीरे-धीरे धीरे करेंट फ्लो बढ़ता चला गया। आर्यमणि का पूरा बदन झटके के साथ हिलने लगा। लेकिन यहां आर्यमणि की धड़कने बढ़ नहीं रही थी, उल्टा जैसे-जैसे करंट बढ़ रहा था आर्यमणि का हार्ट रेट धीरे-धीरे कम होते-होते 40, 30, 20 तक पहुंच गया।


उसका दिमाग सुन पड़ने लगा। धड़कन धड़कने की रफ्तार बिल्कुल न्यूनतम हो गई। 3 सेकंड में धड़कन एक बार धड़क रही थी। आर्यमणि का स्वांस लेना दूभर हो गया था। छटपटाते हुए उसने कुर्सी के हैंड रेस्ट को उखाड़ दिया। उतनी ही तेजी के साथ बदन से लगे वायर को नोचकर हटा दिया और वहीं नीचे जमीन में बेसुध गिर गया।
wese to jitna me soch rha tha utna kuch nhi hua pehle se koi checkup nhi huye jisse aarya pakdaya nhi ki usne Letharia Wulapina liya ho lekin is update ke starting se lekar to yaha tak jitna quote kara utne part tak to richa ek dayan hi najar aa rahi thi jo bus prahari ke kuch uchch adhikhariyo ke kehne par apni bhabhi ke bhai ka test lene le aayi jab ki usko pata tha ye kitna khatrnaak hai aur richa ek tarha se galat bhi nhi kahenge kyu ki wo prahari hone ka farj nibha rahi hai agar uski personal greediness ko ignore kr diya jaye to..........
रिचा को उधर से जो भी संदेश मिला हो। इधर से वो बड़े गुस्से में… "जितना करंट आप लोगों ने टेस्ट के नाम पर इसके अंदर प्रवाह करने के आदेश दिए है, उसका 20% भी आप में से कोई झेल नहीं पता और किसी भी वुल्फ का तो आधे में जान निकल गई होती।"..
yaha thoda laga ki sayad richa me bhi thodi bhot insaaniyat hai ya fir Bhoomi didi ka dar keh lo ya fir sayad aarya ki sehanshakti se impress ki itna sehanshakti wale ke pass aur bhi shakti ho sakti hai ....ab dekho richa ka asli character to aage pata chalega
फिर से ब्लूटूथ पर कुछ करने के आदेश मिले और रिचा आर्यमणि को सीधा करके एक चाकू उसके सीने में आधा इंच घुसाकर ऊपर से लेकर नीचे पेट में लगी पट्टियों तक चिर दी। आर्यमणि की तेज चींख उस बंद कमरे में गूंज उठी। खून उसके शरीर से बहने लगा और जख्म भरने के कहीं कोई निशान नजर नहीं आ रहे थे।


फिर सबसे आखरी में हुक्म आया, वुल्फबेन का इंजेक्शन उसके नर्व में चढ़ाया जाय। वुल्फबेन सबसे आखरी टेस्ट था। ये आम इंसान पर कुछ असर नहीं करती। लेकिन यदि किसी वुल्फ को वुल्फबेन इंजेक्ट किया गया हो, तब उसकी ज़िंदगी उतनी ही है जबतक वो वुल्फबेन ब्लड फ्लो के जरिए सीने तक नहीं पहुंचे। एक बार वुल्फबेन किसी वेयरवुल्फ के सीने के अंदर पहुंची, उसकी मृत्यु निश्चित है।


रिचा को कोई आपत्ती नहीं थी इस आखरी टेस्ट से। उसने वुल्फबेन को इंजेक्ट कर दिया और घड़ी देखने लगी। तकरीबन 4 घंटे भर बाद पूर्णतः सुनिश्चित हो चुका था कि आर्यमणि कोई शेप शिफ्टर नहीं है, बल्कि सिक्किम के जंगलों में कुछ ऐसा हुए की उसकी ताकत आम लोगों से ज्यादा है।


नजर धुंधली सी थी, जो धीरे-धीरे साफ होती जा रही थी। आर्यमणि शायद किसी बाथरूम मे था, लेकिन काफी बड़ी ये जगह थी। एक किनारे से केवल बाथ टब रखे हुए थे और सामने दूसरे किनारे से शॉवर लगा हुआ था और सेक्शन को सीसे से पार्टेशन किया गया था।


आर्यमणि बाथ टब से उठकर खड़ा हुआ। उसके पूरे बदन पर हल्के नीले रंग का चिपचिपा द्रव्य लगा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे ग्रीस में डुबाकर छोड़ दिया हो। उसके बदन से पूरे कपड़े गायब थे। तभी उस बाथरूम का दरवाजा खुला और रिचा वहां पहुंच गई।


"सामने के शॉवर में नहा लो, जबतक मै तुम्हारे लिए कपड़े निकाल लाती हूं।"


आर्यमणि:- मै कितनी देर से यहां पर हूं, और ये मेरे पूरे बदन पर चिपचिपा सा क्या लगा हुआ है।


रिचा, उसके करीब आकर उसके सीने पर अपनी उंगली रखकर ऊपर के उस द्रव्य को साफ करती…. "ये संजीवनी रस है, जो जख्म को जादुई तरीके से भर देता है। याद है मैंने कहां चाकू मारा था।"..


"हम्मम ! ठीक है", कहते हुए आर्यमणि शॉवर की ओर चला गया और जल्दी से खुद को साफ करते हुए तौलिया उठा लिया। रिचा उसके हाथ से तौलिया लेकर उसके बदन को पोंछती हुई कहने लगी…. "तुम बहुत ताकतवर हो। इतनी शक्ति कहां से अर्जित की।"..


"समय क्या हो रहा है।".. "लगता है किड नाराज हो गया है। इसे खुश करना पड़ेगा।"….. "रिचा तुम गलत जगह टच कर रही हो।"….. "मै तो देख रही थी बच्चे हो या जवान भी हुये की नहीं।"…… "तुम्हारा हो गया हो तो क्या तुम मुझे कपड़े दोगी, ये सब फिर कभी और चेक कर लेना।"…


रिचा उसके हाथ में कपड़े थामती हुई…. "तुम इंपोटेंट हो क्या, मेरे छूने पर भी तुम्हारा लिंग में हलचल नहीं हुई।"..


आर्यमणि अपने कपड़े पहनते… "ये कोई नया टेस्ट है या मेरा टेस्ट पुरा हुआ।"..


रिचा:- हां टेस्ट पुरा भी हुआ और लोगो को यकीन भी।


आर्यमणि:- ठीक है मुझे बाहर लेकर चलो।
To wolfben bhi dekar hi maane khair last test tha ab Werewolf hone ka shak hai to fir ye ek asli test hai lekin ise test to kahenge nhi kyu ki agar nhi hai to to bach jayega aur hua to fir to ram naam satya ......kahe ka test ........khair test ke bad ke aarya ke reaction mujhe to laga ki aaj to aag laga dega kyu ki sayad baat limit se kahi jyada aage nikal gyi thi richa ka to meko akhiri samay sa najar aa raha tha jo ki nhi hua ....aarya ko to meeting ki jaldi thi lekin richa ne aarya ki manhood par sawal utha diye hai to dekho ab iska jawab aarya kese deta hai .......
रिचा के साथ वो वापस लौट भी रहा था और बार-बार उसकी नजर घड़ी पर भी थी। जैसे ही वो घर पहुंचा, अपनी बाइक निकालकर वो तूफान से भी ज्यादा गति में निकला। अंधेरा पता नहीं कब हुआ था, घड़ी में 8 बज रहे थे। आर्यमणि जंगल के ओर निकल चुका था। तकरीबन 15 मिनट लगे, उसे नागपुर से जबलपुर के रास्ते में पड़ने वाले उन वीरान घाटीयों के जंगल में पहुंचने में, जहां आर्य ने मार्क किया था।


इसके पूर्व सुबह रूही और आर्यमणि के बीच एक छोटी सी योजना बनी थी। योजना थी, सरदार खान के एक अल्फा पैक, जिसका मुखिया नरेश था, उसे मारकर रूही को अल्फा बनाना। योजना कुछ इस तरह से थी कि नरेश के पैक का एक बीटा विकास, जो कॉलेज में साथ ही पढ़ता था, उसे झांसे में लेकर ट्विन वुल्फ पैक के इलाके तक ले जाना था। जब भटका हुआ ट्विन अल्फा का पैक और सरदार खान के पैक में खूनी भिड़ंत होती, तब नरेश को मारकर रूही को उसकी शक्ति दे दी जाती।


लेकिन जब योजना को धरातल पर लाया गया तब बाजी थोड़ी उल्टी पड़ गई। रूही, विकास को लेकर ट्विन अल्फा के सीमा में घुसती और वहां विकास को घायल करके वोल्फ कॉलिंग साउंड देती। नतीजा ये होता की सरदार खान का पैक पहले ट्विन वुल्फ के इलाके में पहुंचता और बाद में ट्विन वुल्फ से खूनी भिड़ंत होती। लेकिन हो गया उल्टा। शायद हमले के इरादे से ट्विन वुल्फ भी घात लगाये बैठे थे। कुछ दिन पूर्व हुए उनके 2 अल्फा की मौत ने शायद उनके अंदर बौखलाहट भर दी थी। रूही जैसे ही उनके इलाके में घुसी, ट्विन वुल्फ ने मौका तक नहीं दिया। ट्विन अल्फा के एक अल्फा अपने कुछ बीटा के साथ विकास को इस कदर नोच खाया की उसकी दर्द भरी चीख सरदार खान के इलाके तक किसी भयावह आवाज की तरह सुनाई दे रही थी। वहीं ट्विन अल्फा के दूसरे अल्फा ने रूही को पेड़ से बांध दिया और पेट चीड़कर उसके खून को बाहर रिस्ता छोड़ दिये।


गाड़ी लगाकर आर्यमणि अभी घाटियों के अंदर प्रवेश ही किया था कि वुल्फ साउंड सुनाई देने लगा। "वुउउउ वुउउउ वुउउउ वुउउउ" करके तकरीबन 50 वुल्फ एक साथ आवाज़ लगा रहे थे। आवाज़ नक्शे के हिसाब से तीसरे प्वाइंट से आ रही थी। ये सरदार खान और ट्विन वुल्फ पैक के इलाके का बॉर्डर था। वहीं ट्विन वुल्फ पैक के इलाके से विकास की तेज चींख लागातार बनी हुई थी जो धीरे–धीरे बिलकुल शांत हो गयि। सरदार खान के क्षेत्र से एक साथ सभी के शोक की आवाज़ आनि शुरू हो गई। मतलब सरदार खान के पैक का एक वुल्फ, विकास, ट्विन वुल्फ के इलाके में मारा जा चुका था। और सरदार खान का पैक अपनी असहाय आवाज मे साथी के मरने का शोक मना रहा था।


अभी सरदार खान के खेमे में शोक समाप्त भी नही हुआ था कि रूही की दर्द भरी चीख गूंजी, जो धीरे–धीरे सिसकियों में तब्दील हो गयि। इस बार सरदार खान के इलाके से केवल नरेश की आवाज आयि। बड़े से पैक के मुखिया का सिंगल वुल्फ साउंड, जिसका मतलब था, हम तुम तक नही पहुंच सकते। आर्यमणि के कान तक जैसे ही रूही की आवाज पहुंची, आर्यमणि अपनी बाइक छोड़कर काफी तेज दौड़ लगा दिया। जब वह रुका तब वो ट्विन वुल्फ पैक के इलाके में था और सामने का नजारा भयावह । रूही को ट्विन पैक के कम से कम 20 बीटा ने घेर रखा था। उसका पेट बीच से चिरा हुए था और बूंद-बूंद करके उसके खून को ट्विन पैक के बीटा चूस रहे थे।


ट्विन अल्फा का एक भाई रूही से…. "नगोड़ी ट्विन के इलाके में घुसने की हिम्मत। सुन तू अपने अल्फा को आवाज़ दे। वो यदि यहां आ गया तो मै तुझे छोड़ दूंगा और पैक का हिस्सा बना लूंगा।"..


रूही दर्द से कर्राहती हुई…. "जिसने तेरे 2 अल्फा को मरा था वह क्या है मुझे भी पता नहीं, लेकिन मै उसके पैक का हिस्सा हूं। वो यहां आया ना तो तुझसे और तेरे इस पैक से इतनी बातें भी नहीं करेगा। मुझ अकेली के लिए तूने पुरा पैक दाव पर लगा लिया।"


ट्विन अल्फा का दूसरा भाई…. "ख़ामोश गिरी हुई वेयरवुल्फ जो किसी इंसान का हुक्म मानने को मजबूर हो। बच्चो, खाने का समय हो गया। अपने जैसे को ज्यादा तड़पाते नहीं।"


"इतनी जल्दी भी क्या है, अभी तो खेल शुरू ही हुआ है। रूही हौसला रखना। मै बस 5 मिनट में इन्हे निपटाकर आया।"… आर्यमणि उनके सामने आते हुये कहने लगा।


ट्विन ब्रदर एक साथ… "क्या इसी ने मेरे पैक के 2 अल्फा को मारा था।"


रूही:– पूछ क्या रहा है, अभी कुछ देर में तुझे भी काल के दर्शन होंगे...


ट्विन ब्रदर:– अब आएगा मज़ा शिकार का"..


देखते ही देखते पुरा झुंड आर्यमणि के ओर बढ़ने लगा। एक साथ चारो ओर से आर्यमणि घिरा हुआ था। आर्यमणि सभी के खूनी जज्बात को मेहसूस कर सकता था। एक साथ सभी के क्ला आर्यमणि के बदन को फाड़ने के लिए दौड़ लगा चुके थे। आर्यमणि अपने गुस्से को समेटा और सबसे पहला वुल्फ जब हवा में उछलकर आर्यमणि के चेहरे पर अपने पंजे के निशान देने के कोशिश में था, आर्यमणि अपना एक हाथ ऊपर करके हवा में ही उसका गला पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके ठुड्ढी पर इतना तेज मुक्का मारा की आर्यमणि के हाथ में उसका धर था और सर ट्विन ब्रदर के पाऊं में जाकर गिरा।


जैसे ही उनके बीच का साथी मरा, बचे हुए सारे बीटा गुस्से में वूऊऊऊऊऊ की खौफनाक आवाज निकालने लगे। आवाज इतनी खौफनाक थी कि आम इंसान डर से मूत दे। ट्विन अल्फा पैक अपने रौद्र रूप में आ चुकी थी और उनके सभी बीटा एक साथ आर्यमणि के ऊपर हमला कर चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे सियार का पूरा झुंड आज किसी शेर के शिकार पर निकला है। रूही को आर्यमणि लगभग दिखना बंद हो चुका था। केवल नीचे सूखे पत्तों के मसले जाने की तेज–तेज आवाज आ रही थी। तभी एक के बाद एक दर्द भरी चींख का सिलसिला शुरू हो गया।


भिड़ को चीरकर जो खड़ा हुआ, वो एक पूर्ण वेयरवुल्फ था। गाढ़े लाल रंग की आखें जो आज तक किसी अल्फा की नहीं हुई। चमचमाते उजले रंग का उसका पूरा शरीर था। वेयरवुल्फ और सुपरनैचुरल की दुनिया का एक ऐसा अद्भुत नजारा, जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा था। और जिन्होंने भी कभी ऐसे किसी वेयरवोल्फ को देखा उसे सब पागल ही मानते थे। दंत कथाओं का एक वेयरवोल्फ जिसके होने के बारे में कोई सोच भी नही सकता था।

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आर्यमणि पहली बार अपने पूर्ण स्वरूप में रूही के सामने खड़ा था। और फिर वहां का जर्रा–जर्रा उस खौफनाक गूंज की गवाह बनी, जिसे सुनकर ट्विन अल्फा के कुछ बीटा की धड़कने डर से ही थम गई। आर्यमणि की दहाड़ कुछ ऐसी थी की 10 मीटर के दायरे से बाहर किसी को सुनाई ना दे। और 10 मीटर के अंदर ऐसा भौकाल था मानो 10–12 तेज बिजली के कड़कने की आवाज एक साथ आ रही हो। आर्यमणि की दहाड़ ऐसी, जिसे सुन उसके पैक की एक बीटा रूही ने जंजीर से खुद को इस कदर छुड़ाया की कलाई पूरा खिसक गई। खून का बहाव इस कदर तेज की पेट से खून की धार निकलने लगी। लेकिन आर्यमणि की एक रण हुंकार (war cry) पर रूही पूरी तरह से सबको चीड़ने को तैयार थी। माहौल में आर्यमणि की एक खौफनाक गरज, जिसे सुनकर ट्विन अल्फा का प्रत्येक बीटा अपने घुटने पर आ गया और आर्यमणि से नजर नहीं मिला पा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ एक-एक करके बीटा के पास पहुंचा। किसी के हाथ तो किसी के पाऊं तोड़कर लिटाता चला गया।


अपने बीटा को असहाय हालत में देखकर ट्विन ब्रदर ने तुरंत ही एक दूसरे का कंधा थमा और देखते ही देखते दोनो एक दूसरे में समाते चले गये। दोनो मिलकर जब एक हुये, भीमकाय सी उनकी साइज थी। तकरीबन 12 फिट लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था। ऐसा लग रहा था सामने कोई दैत्य खड़ा हो। उनके ठीक पीछे रूही अपनी भृकुटी (eyebrow) ताने उन ट्विन ब्रदर्स पर हमला करने को तैयार। रूही उछलकर उनके पीठ पर अपने पंजे को घुसा दी। दत्यकार वुल्फ पर कुछ असर तो नही हुआ लेकिन नतीजा रूही को भुगतना पड़ा।


"कहां तू हम बड़ों के बीच में आ गयि, चल अभी दूर हट"… शायद ऐसा ही कुछ प्रतिक्रिया रहा हो जब दैत्याकार वुल्फ रूही को देख रहा था। "ओ..ओ लगता है जोश–जोश में कुछ गड़बड़ हो गयि"… शायद रूही के हाव–भाव थे, जब उसने दैत्याकार वुल्फ को घूरते देखी होगी। जैसे किसी खिलौने को उठाकर दूर फेंक देते है ठीक उसी प्रकार रूही को भी उठाकर ऐसा फेके की दर्द भरी कर्राहट रूही के मुंह से निकल गयि।


पैक यानी परिवार। वो भी एक मुखिया के सामने उसके बीटा पर जानलेवा हमला। ट्विन वुल्फ और आर्यमणि दोनो के दिल में एक सी आग लगी थी और दोनो ही एक दूसरे को परस्त करने दौड़े। दैत्याकार वुल्फ तेजी से दौड़ते हुए आर्यमणि के जबड़े पर ऐसा मुक्का मारा की पूरा जबड़ा ही हिला डाला। लेकिन आर्यमणि न तो अपनी जगह से हिला और न ही एक कदम पीछे गया। बस जब जबड़े पर कड़क मुक्का पड़ा तब मुंह से खून और खून के साथ जमीन पर एक दांत भी गिरा। आर्यमणि अपने उस टूटे दांत को देखकर गुस्से में भृकुटी तान दिया और जैसे ही सामने देखा.… ट्विन ब्रदर का दूसरा करारा मुक्का। आर्यमणि इस बार भी न तो हिला और न ही अपनी जगह से खिसका, बस तेज श्वास के साथ दर्द को भी पी गया।


अभी दूसरे मुक्के का दर्द ठीक से पिया भी नही था की तीसरा कड़ाड़ा मुक्का पड़ गया। अब तो एक के बाद एक जोरदार मुक्के पड़ते ही जा रहे थे। मानो आर्यमणि का चेहरा मंदिर का घंटा बन गया हो। तभी आया आर्यमणि के खून उबाल और फिर मचा दिया बवाल। साला 2 शरीर को जोडकर तू क्या गुंडा बनेगा रे बाबा। अभी तुझे मैं जरासंध बनाता हूं.… आर्यमणि ने मुट्ठी में दैत्याकार वुल्फ के बाल को दबोचा और जैसे मुट्ठी में पकड़ कर किसी कागज को चिड़ते हैं, ठीक वैसे ही आर्यमणि ने दैत्याकार वुल्फ को चीड़कर ट्विन वोल्फ को अलग किया और दूर फेंक दिया।


ट्विन एक साथ आर्यमणि के सामने पहुंचे। एक ओर से एक भाई तो दूसरे ओर से दूसरा भाई। लड़ाई के पहले हिस्से में ट्विन जहां मुक्का मार रहे थे। वहीं दूसरे हिस्से मे अपने पंजे चला रहे थे। 5 नाखूनों का पुरा क्ला आर्यमणि के चेहरे पर लगा और 5 नाखूनों के निशान उसके गाल पर छप गये। गाल से टप-टप करके खून नीचे गिरने लगा। आर्यमणि के हीरो वाले चेहरे पर वार, अब तो नही चलनी थी ये सरकार। वैसे भी ट्विन ब्रदर लगा रहे थे पूरा जोर और आर्यमणि मात्र उनसे कर रहा था खिलवाड़। लेकिन खेल–खेल में खेला हो गया।


उस ट्विन में दोबारा अपने पंजे उठाये थे। दूसरे गाल को भी पूरा फाड़ने का इरादा था। लेकिन आर्यमणि के सामने तो वो मात्र आदा–पदा ही था। आर्यमणि ने ट्विन वुल्फ के उस अल्फा का हाथ पकड़कर अपने फौलादी पंजों में कैद कर लिया। हाथ को उल्टा ऐसे मड़ोरा जैसे कपड़े निचोड़ दिए हो। फर्क सिर्फ इतना था की पानी की जगह खून और हड्डी का पाउडर नीचे गिर रहा था। निचोड़ने के बाद बारी आयि तोड़ने की। आर्यमणि उसके जांघ पर एक लात मारा और वो अल्फा दर्द से कर्राहते हुए अपनी आवाज़ निकालने लगा।


उसका जुड़वा भाई दाएं ओर से आर्यमणि के गर्दन से खून पीने में व्यस्त था। शायद आर्यमणि को कोई मच्छर लगा हो, इसलिए पड़ोस वाले भाई पर ध्यान न गया। लेकिन अब काल के दर्शन तो उस दूसरे भाई को भी करना था। अपने भाई की दर्द से बिलबिलाती आवाज सुनते ही खून पीना छोड़कर उसने तेज दहार लगाया। उसकी दहाड़ सुनकर उसके बीटा जो सहमे थे, अपने अल्फा की आवाज़ पर एक बार फिर उग्र रूप धारण कर चुके थे। लेकिन हमला करने के लिए उसके बीटा जबतक पहुंचते, आर्यमणि ने ट्विन के दूसरे अल्फा का दोनो हाथ पकड़कर उल्टा घुमा दिया।


"साले चीटर मैं अकेला और तू पहले से २ भाई लड़ रहा था। इतने से भी ना हुआ तो मुझे मारने के लिये और लोगों को बुलावा भेज रहा। ले साले एक्शन रिप्ले करता हूं। तेरे भाई का एक हाथ निचोड़ा था, तेरे दोनो हाथ निचोड़ देता हूं।"


आर्यमणि ने दूसरे भाई का तो दोनो हाथ उल्टा घूमाकर निचोड़ दिया। हाथ से कैल्शियम (हड्डी) और आयरन (ब्लड) का सिरप चुने लगा। उसे जैसे ही आर्यमणि ने छोड़ा वो धराम से नीचे जमीन में गिरा और उसके बीटा कूद–कूद कर हमला करने लगे। सबसे आगे आये तीन बीटा को आर्यमणि ऐसा मसला की उनकी कुरूर हत्या देखकर बाकी के बीटा अपनी जान बचाकर भागे। आर्यमणि भागने वालों के पीछे नहीं गया, बल्कि रूही के पास चला आया। आर्यमणि अपने साथ लाये बैग से स्ट्रिच करने वाला स्टेपलर निकला और रूही के पेट को सिलते हुए… "बहुत दर्द हो रहा है क्या"… रूही ने हां में सर हिलाया और धीमी-धीमी श्वांस लेने लगी।


आर्यमणि उसके पेट पर हाथ रखकर अपनी आखें मूंद लिया। आर्यमणि के नर्व में जैसे काला-काला कुछ प्रवाह होना शुरू हो गया हो और धीरे-धीरे रूही राहत की श्वांस लेने लगी। दर्द से बिलबिलाते रूही के पूरे बदन को एक असीम सुख का अनुभव होने लगा। वेयरवुल्फ की एक खास गुण, हील करना। यूं तो हर वेयरवुल्फ अपने नब्ज मे दर्द को खींचकर सामने वाले को राहत दे सकता था। किसी के भी तड़प को सुकून मे बदल सकता था, लेकिन फटे मांस, या टूटी हड्डी को हर वेयरवुल्फ हील नहीं कर सकते थे। हां हर वेयरवुल्फ हील भी कर सकते थे लेकिन इस लेवल पर नहीं। आर्यमणि अपने हाथ से रूही का दर्द खींचने लगा। रूही के खुद की हीलिंग क्षमता के साथ आर्यमणि के हीलर हाथ। थोड़ी ही देर में रूही सुकून में थी और वो पूरी तरह से हील हो चुकी थी।



जैसे ही रूही हिल हुई वह अपने घुटनों पर बैठकर अपना सर झुकाती… "दंत कथाओं का एक पात्र प्योर अल्फा से कभी मिलूंगी, ये तो कभी ख्यालो में भी नही था। प्योरे अल्फा अब तक की एक मनगढ़ंत रचना, जो किसी पागल के कल्पना की उपज मानी जाती थी, वह सच्चाई थी, यकीन करना मुश्किल है। मेरे नजरों के सामने एक प्योरे अल्फा हैं, अद्भुत... अब समझ में आया कि क्यों तुम पर वेयरवोल्फ के एक भी नियम लागू होते। अब समझ में आया की क्यों तुम्हे पहचान पाना इतना मुश्किल है। तुम तो सच के राजा निकले।"
To aakhir aarya ka asli roop ke darshan sab ko ho hi gaye ek Pure Alfa jo ki Werewofl ki duniya me bhot hi rare hote hai kyu ki sayad werewofl ki pravatti hi esi hoti hai maans khana khoon peena wgeraha wgeraha .......lekin aarya ke dada Vardhraj Kulkarni ji sayad jaante the ya fir unhi ki wajha se aarya wolf bana wo to bad me pata chalega lekin unhone aarya ka usi tarha se taiyaar kiya bachpan se agar is baat ko socha jaye to kyu ki non veg uske dada ne band karwa diya tha bachpan me hi aur fir baaki kahniyo ke jariye use har paristithi me patience aur calm rehna bhi sikhaya ...... wese action ke bich ye apki funny commentry goosebumps feel kare ya hase ? aap hi batao ? dono ek saath nhi hota re baba............ lekin kuch scene sahi me goosebumps de gaye jese jab aarya apne asli roop me ata hai aur dahaad maarta hai tab roohi bandhi halat me bhi jese tese apne ko chudhha ke aarya ke samman me niche jhukti hai alag hi level tha wo scene ka....... nishaan to heal ho jaenge lekin ye jo ek daant gaya wo kaha se layega aarya ?
 

Lib am

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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
ये तो अलग लेवल का गोलमाल चल रहा है। वैंडिगो वो भी इतने सारे, इसका मतलब रीच स्त्री और उध्यात ने अपना कांड करना शुरू कर दिया है। अगर आर्य प्योर अल्फा नही होता तो अब तक तो ये सब उसको चबा कर खा चुके होते।

अच्छा हुआ जो वो साधु वहां आ गाये वर्ना पता नही कब तक ये सब चलता रहता। मगर साधुओं ने आर्य और निशांत दोनो को ही आगे की राह दिखा दी है, अब आर्य तो इसी मकसद से आया है तो वो तो अब अनुसरण कर लेगा मगर निशांत के लिए ये बहुत बड़ा निर्णय होगा और देखना होगा की वो क्या इस राह पर चलेगा।

अब देखना है कि क्या आर्य अब इस युद्ध में आर्य बन कर हिस्सा लेगा या सीधे प्योर अल्फा बन कर। अभी तक निशांत और आर्य दोनो ने हो अंगूठी का इस्तेमाल नहीं किया है तो शायद अब दोनो इनका भी इस्तमाल करे।

जैसे साधु ने कहा था कि पारीयान की आत्मा यहीं है तो क्या वो आत्मा उन अंगुतियों से जुड़ी है या उस पोटली से या फिर किसी और तरह से। रोमांचक अपडेट
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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भाग:–29




जैसे ही रूही हिल हुई वह अपने घुटनों पर बैठकर अपना सर झुकाती… "दंत कथाओं का एक पात्र प्योर अल्फा से कभी मिलूंगी, ये तो कभी ख्यालो में भी नही था। प्योरे अल्फा अब तक की एक मनगढ़ंत रचना, जो किसी पागल के कल्पना की उपज मानी जाती थी, वह सच्चाई थी, यकीन करना मुश्किल है। मेरे नजरों के सामने एक प्योरे अल्फा हैं, अद्भुत... अब समझ में आया कि क्यों तुम पर वेयरवोल्फ के एक भी नियम लागू होते। अब समझ में आया की क्यों तुम्हे पहचान पाना इतना मुश्किल है। तुम तो सच के राजा निकले।"


प्योर अल्फा यह कोई शब्द, उपाधि या फिर वेयरवॉल्फ के प्रकार नही था। यह तो अपने आप में एक पूरी सभ्यता का वर्णन था। पौराणिक कथाओं की माने तो वेयरवोल्फ के जितने भी प्रकार होते है फिर चाहे वह बीटा, अल्फा या बीस्ट अल्फा क्यों न हो सब में खून के पीछे आकर्षण और प्रबल मानहारी प्रवृत्ति होती है। और अपने इसी आदतों के कारण वेयरवोल्फ अपनी बहुत सी अलग ताकत को खो देते हैं, जैसे की खुद को और किसी और को हिल करने की अद्भुत क्षमता। दूसरों के हिल किए जहर को हथियार के तरह इस्तमाल करना। कुछ अनहोनी होने से पहले के संकेत। किसी भी जीव के भावना को दूर से मेहसूस करना। अपने क्ला पीछे गर्दन में घुसकर किसी के भी मस्तिस्क के यादों में झांकना... और उन्हें मिटाने तक की काबिलियत... हालांकि यादों में तो हर अल्फा वुल्फ झांक सकते हैं लेकिन चुनिंदा यादों को मिटाने की शक्ति ट्रू–अल्फा होने के बाद ही विकसित होती है...

यधपी यह सभी गुण हर वेयरवोल्फ में पाए जाते हैं। लेकिन जैसे–जैसे वेयरवॉल्फ के अंदर का दरिंदा प्रबल होता है, बाकी सारी शक्तियां स्वतः ही कमजोर होती चली जाती है। इसलिए वेयरवोल्फ में सर्वोत्तम एक ट्रू–अल्फा माना जाता है। हां लेकिन एक ट्रू–अल्फा भी अपनी सर्वोत्तम शक्ति को खो देता है जब वह दरंदगी पर उतर जाता है। ट्रू–अल्फा को कठोर अनुसरण तमाम उम्र करनी होती है। और सबसे आखरी में वुल्फ के नियम... यह नियम हर वुल्फ पर लागू होते हैं, किसी में थोड़ा ज्यादा तो किसी में थोड़ा कम.… जैसे की वुल्फ को मारने की विधि... दूसरा इनका इंसानी पक्ष निर्बल होता है और वुल्फ साइड उतना ही बलशाली... एक बीटा 4 शेर के समान शक्तियां रखता है...

लेकिन प्योर अल्फा के साथ कोई बंदिशे नही। वेयरवॉल्फ के सारे अलौकिक गुण किसी परिस्थिति में नही खो सकता, फिर वह खुद को पूरा सैतान बना ले या फिर खुद को पूरा इंसान। इनके किसी भी रूप में, फिर वो इंसानी रूप हो या भेड़िए का, शक्ति एक समान होती है। इसके क्ला या फेंग से घायल होने वाले वुल्फ नही बनते... और भी बहुत सारे गुण जो वक्त के साथ एक प्योर अल्फा अपने अंदर विकसित कर सकता है। जबतक प्योर अल्फा खुद अपनी असलियत ना सामने लाये तबतक कोई जान नही सकता। और इनकी एक ही पहचान होती है जो हर वेयरवोल्फ को उसका अल्फा पौराणिक कहानियों का एक शक्तिशाली वुल्फ के रूप में बताता है... "प्योर अल्फा जब रूप बदलकर वेयरवोल्फ बनता है, तब उसका रूप अलौकिक होता है। उसका पूरा बदन चमक रहा होता है, जिसे दूर से भी देखकर पहचान सकते हैं।"


रूही के अंदर की हालत वही समझती थी। अंदर ऐसी भावना थी जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता था। वह अभी अपने घुटनों पर थी। अपना सर झुकाये घोर आश्चर्य और अप्रतिम खुशी में संलिप्त थी। आर्यमणि, रूही का हाथ थामकर उसे उठाते हुये... "आओ मेरे साथ।" रूही, आर्यमणि के साथ घायल पड़े ट्विन अल्फा के पहले भाई के पास पहुंची।… "इसे मारकर अल्फा बनो। हां लेकिन खून चूसना और मांस भक्षण नहीं। मुझे अपने पैक में किसी भी जीव के खून चूसने और उनका मांस खाने वाले नहीं चाहिए।"


रूही अपनी सहमति देती.… "आप बैठ जाइये और शिकार का मज़ा लीजिए।"… रूही आगे बढ़ी। पाऊं के पास ही ट्विन अल्फा दर्द से बिलख रहे थे। हाथ तो बचा ही नहीं था। किसी तरह अपनी हलख से दर्द भरी आवाज मे रहम की भीख मांग रहे थे। रूही आराम से बैठकर ट्विन अल्फा के सर पर हाथ फेरती एक बार आर्यमणि से नजरें मिलाई। आर्यमणि ने इधर नज़रों से सहमति दिया और उधर रूही अपने 4 इंच लंबी धारदार नाखून, ट्विन अल्फा के गर्दन में घुसाकर पूरा गला फाड़ दी। गला फाड़कर अंदर के नालियों को तब तक दबोचे रही जबतक की उनके प्राण, उनके शरीर से ना निकल गये।


जैसे ही शरीर से प्राण निकला, रूही की विजयी दहाड़ अपने आप ही निकल गई। पीली सी दिखने वाली रूही की आंखें लाल दिखने लगी। पास पड़े घायल सभी बीटा और ट्विन का बचा हुआ एक अल्फा सोक की धुन निकालने लगा। रूही ने जब खुद के अंदर एक अल्फा की ताकत को मेहसूस की, तब एक और दहाड़ लगा दी। इधर रूही की ताकत के नशे कि दहाड़ निकली उधर आर्यमणि दहाड़। जैसे ही उसकी दहाड़ रूही सुनी वो अपने घुटने और पंजे को जमीन से टिकाकर गुलामों की तरह सर झुकाने पर विवश हो गई। रूही की नजर जमीन को ताक रही थी…. "रूही ताकत को मेहसूस करना अच्छी बात है लेकिन मेरा पैक ताकत के नशे को मेहसूस करे, मंजूर नहीं।"..


रूही…. पहली बार था, मै अपने अरमान काबू नहीं कर पायि।


आर्यमणि:- अगले 2 महीने तक मै तुम्हे शक्तियों को काबू करना सिखाऊंगा। काम जल्दी खत्म करो। पहले दूसरे अल्फा की शक्ति लो, फिर यहां से भागे बीटा को खत्म करो। मै नहीं चाहता कि प्योर अल्फा की भनक भी किसी को लगे।


रूही:- जैसा आप चाहो।


रूही ट्विन ब्रदर के बचे दूसरे भाई की ताकत को भी खुद में समाती, तेज दहाड़ के साथ दौड़ लगा दी। तकरीबन आधे घंटे बाद रूही खून में नहाकर विजयि मुस्कान के साथ लौटी… "लाश तक के निशान को मिटा आयी बॉस।"


आर्यमणि:- यहां भी सब साफ है.. अब चलें..
Acha update tha .....Pure Alfa aur uski shaktiyon ka purn varnan bhot se sawal ke answer mil gaye.....lekin pichle update me ek ciz me puch nhi paya tha ye werewolf ki skin ko aap stitch kar rahe the machine se :what3: apko atpata sa nhi lag raha ? khair ignore kr dete hai .........
रूही आर्यमणि के करीब पहुंचकर कहने लगी… "जानवर जंगल में सहवास करते है और उनके बीच कोई बंधन नहीं होता"..


आर्यमणि उसकी आखों में झांका और उसके होंठ से होंठ लगाकर उसे चूमने लगा। रूही तुरंत ही अपने सारे कपड़े निकालकर नीचे बैठ गई और आर्यमणि के पैंट को खोलि और लिंग को बाहर निकालकर उसपर अपनी जीभ फिराने लगी। आर्यमणि उसके सर पर अपने दोनो पंजे टिकाये गर्दन को ऊपर करके तेज-तेज श्वांस लेने लगा। रूही कुछ देर तक अपनी जीभ लिंग पर फिराने के बाद, लिंग को पूरा मुंह के अंदर लेकर उसे चूसने लगी। ये उत्तेजना आर्यमणि के धड़कनों को उस ऊंचाई पर ले गयि जिस कारण उसका शेप शिफ्ट हो गया और वो पूर्ण वुल्फ दिख रहा था।


बिल्कुल सफेद वुल्फ अपने तरह का इकलौता। जैसे ही आर्यमणि ने शेप शिफ्ट किया उसने बड़ी बेरहमी से रूही का बाल पकड़ कर उठाया और उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए उसके योनि को अपने बड़े से पंजे में दबोच कर मसलने लगा। उत्तेजना आर्यमणि पर पूरा हावी था और वो पूरी तरह से रूही पर हावी हो चुका था। दर्द और मज़ा का ऐसा खतरनाक मिश्रण रूही ने आज से पहले कभी मेहसूस नहीं की थी। वो भी अपने हाथ नीचे ले जाकर अपने दोनो हाथो से आर्यमणि के लिंग को पूरे गति में ऊपर नीचे करने लगी। लिंग पर हाथ की गर्माहट, आर्यमणि के अंदर के तूफान को ऐसा भड़काया... उसने तेजी से रूही को पेड़ से टिका दिया। रूही भी अपने हाथ के सहारे के पेड़ को पकड़ती कमर को पूरा झुका दी और अपने दोनो टांग को पूरा खोलकर, आर्यमणि को निमंत्रण देने लगी।


पंजे वाले दोनो हाथ रूही के कमर के दोनों ओर और जोरदार झटके के साथ पुरा लिंग योनि के अंदर। रूही सिसकियां लेती अपने कमर को आगे पीछे हिलाने लगी। हर धक्के के साथ नीचे के ओर लटक रहे स्तन मादक थिरक के साथ हिल रहे थे। रूही का पूरा बदन धक्के के झटके से हिल रहा था। आर्यमणि का जोश पूरे उफान पर था, जो रूही के योनि के अंदर तूफान मचा रहा था।


आर्यमणि लगातार धक्के दिए जा रहा था। प्योर अल्फा के स्टेनमना के सामने रूही कबका थक चुकी थीं। उसकी उखड़ती स्वांस अब बस इस खेल को अंतिम चरण में देखना चाहती थीं। तभी आर्यमणि की गति काफी तेज हो गई। रूही तेजी के साथ सीधी खड़ी हुई और घूमकर आर्यमणि के लिंग को अपने मुट्ठी में भरकर तेज-तेज मुठ्ठीयाने लगी। कुछ ही देर में तेज पिचकारी के साथ आर्यमणि ने अपना वीर्य छोड़ दिया और हांफते हुए वो पीछे हट गया।
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Roohi se jyada nainu bhaiya ko padi thi lagta hai intimate scene daalne ki story me abhi just ladai kari upr se roohi khoon me bhidi aur sex karwa diya:huh: ..... nainu bhaiya karna kya cha rahe the ?
रूही:- तुम्हे अपनी रानी चाहिये तो सेक्स के वक़्त तुम्हे अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू पाना सीखना होगा। तुम्हे कोई पकड़ नहीं पाया क्योंकि तुम पूर्ण नियंत्रण सीख कर नागपुर पहुंचे सिवाय एक के... राइट बेबी।


आर्यमणि:- हम्मम ! सही अनुमान है। बस एक ही बात का अब डर लगा रहा है।


रूही:- क्या?


आर्यमणि:- कहीं तुम मुझे ना चाहने लगो और हमारी बात पलक को ना पता चल जाये।


रूही:- हम सीक्रेट रिलेशन मेंटेन रखेंगे तुम परेशान ना हो। चलो अब स्माइल करो।
roohi kehna kya cha rahi hai wo thoda smjh nhi aya rani chahiye to sex ke waqt badi dhadkano par kabu karna hoga ?
aur abhi kal hi to rishta tay hua tha aaj affair bhi tay ho gaya wah wah :fool: rani rani kar ke lagta hai aarya itihaash me chala gaya jab raja ki kayi raaniya hua karti thi...........
रूही:- मेरी आई एक ट्रू–अल्फा थी। जिसके पैक को शिकारियों ने खत्म कर दिया, और मेरी मां को पकड़कर सरदार खान को सौंप दिया। मेरा जन्म सरदार खान के किले में ही हुआ था। मेरी आई एक कमल की हिलर थी, तुम्हारी तरह शानदार हीलर। सरदार खान की हवसी नजर मुझ पर हमेशा टिकी रहती और मेरी आई हम दोनों के बीच। एक दिन गुस्से में सरदार खान ने उसे खत्म कर दिया।


आर्यमणि:- तो क्या सरदार खान तुम्हारे साथ...


रूही:- जाने दो दरिंदे हैवानों की याद मत दिलाओ। उनका कोई परिवार नहीं होता। मै उस किले कि ऐसी बीटा वुल्फ थी, जिसका कोई पैक नहीं। उस किले में मुझे सड़क से लेकर बाजार तक नोचा गया है। और मेरी बेबसी पर सब हंसते रहते... जानते हो आर्य कॉलेज में जब लड़कों को अपने ओर हसरत भरी नजरो से घूरते देखती हुं, तब जहन में एक ही ख्याल आता रहता है... तुम्हारे लिए मैं यहां खास हूं लेकिन अपनी गली में मै सबकी रखैल सी हूं, जब जहां जिसका मन किया उसने नोचा, फिर किसी ने रहम नहीं दिखाया"

"मुझे नफरत है शिकारियों से। खुद को प्रहरी बताते है, पहरा देने वाले और भटकों को खत्म करने वाले। फिर क्या गलती थी मेरी आई की, जिन्हें इन दरिंदो के बीच में छोड़ दिया। अपने होश संभालते ही केवल नरक देखा है मैंने और महसूस की थी मेरी आई का दर्द, जो मुझे बचाने के लिए वहां घुटती रहती थी। कयी साल आर्य, नरक के कयी साल। हां लेकिन शायद ऊपर कहीं खुदा था, जब पहली वो इंसान मेरे जीवन में आयी। तुम्हारी बहन भूमि। मेरे लिए तो ईश्वर, अल्लाह, मसीहा ऊपर वाले के जितने नाम है, सब वही है।"

"7 साल पहले वो प्रहरी की मेंबर कॉर्डिनेटर बनी थी और अपने 10 साथियों के साथ हमारे किले में घुसी। निडर और ताकतवर प्रहरी, जिसे अपना कर्तव्य याद था कि केवल इंसान ही उनकी जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सुपरनेचुरल का भी क्षेत्र उनके पहरे के क्षेत्र में आता है।"

"सड़क पर 4 जानवर मुझे नोच रहे थे और मेरी ख़ामोश आंखों के अंदर के आंसू भूमि ने देखे थे। उसका चाबुक चला और 2 बीटा को उसी किले में साफ कर दिया, बिना यह सोचे कि वह 200 से ऊपर वुल्फ से घिरी है। उसी ने मुझे बचाया था। फिर ये तय हुआ कि सुपरनैचुरल शांत है तो क्या हुआ, ऐसे जानवरो की जिंदगी उसे अपने क्षेत्र में नही चाहिये। सभी बच्चे air जवान वेयरवोल्फ पढ़ने जायेंगे और सबके डिटेल प्रहरी ऑफिस में पहुंचने चाहिये। उसी ने मुझे तुम्हारी जिम्मेदारी दी थी, कही थी नजर बनाए रखो।"

"सरदार खान, भूमि के वजह से ही बौखलाए हुए है। अपने अंदर कई सारे राज दबाए बैठा है वो बीस्ट, जिसकी जानकारी भूमि को चाहिए। क्योंकि उसको भनक लग गई है, शिकारी का बहुत बड़ा जत्था अपने आर्थिक फायदे के लिए वुल्फ से मर्डर करवाते है। केवल नागपुर में ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में यह खेल चल रहा है।"


आर्यमणि:- हां इस खेल के बारे में मुझे भी भनक है। खैर, इतने इमोशनल सेशन के बाद एक सवाल का जवाब दो, पहली मुलाकात से ही मेरे पीछे क्युं पड़ी हो।


रूही:- मज़े करने के लिए। क्या मेरा हक नहीं बनता अपने मन से मज़े करने के। हां लेकिन मैं उनकी तरह तुम्हे निचोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए जबरदस्ती नहीं की।


आर्यमणि:- अच्छी लगती हो ऐसे बात करते। अब से पिछली ज़िंदगी को अलविदा कह दो। मुझे अपने पैक मे सब बिल्कुल मस्त और हसने वाले खास इंसान चाहिये। क्या समझी..


रूही:- बॉस बोल तो ऐसे रहे हो जैसे खुद हंसमुख होने का टैग लिए घूमते हो। सब तो तुम्हे खडूस ही कहते हैं।


आर्यमणि:- बकवास बंद... मुझे एक कंप्लीट पैक चाहिये। और हां तुमने मेरा दिल जीत लिया है, इसलिए तुम्हारी जहां से प्योर अल्फा की याद नही मिटा रहा। अब तुम एक अल्फा हो और अपने फर्स्ट अल्फा के लिए कोई ढंग का पैक बनाओ। तुम जानती हो न मुझे अपने पैक में कैसे वुल्फ चाहिये या उसकी भी डिटेल देनी होगी...
Roohi jiski maa ek True Alpha jiska khud ka pack tha lekin kuch ese prahari jo sirf prahari hone ka fayda utha rahe the unhone wo pack ko khatm kar ke Sardar khan ko soup diya roohi ki maa ko ......aur isme meko sardar khan ka haath lag raha hai kyu ki usko pata hoga ki True Alpha ka khud ka pack uske liye kabhi bhi khatra ban sakta hai ............ roohi ka past dukh aur peeda se bhara raha hai aur uske saath bhot aatyachaar hua lekin bhoomi didi uski life me naa sirf ek masiaah ban kar aayi balki unhone use jeene ke liye ek nayi zindagi di aur ab aarya ke pack me hone se use apne saath huye karmo ka badla lene ka mauka bhi mil gaya hai ...ab bus aarya ke tandav ka wait hai kab Sardar khan se ladai hogi ....... wese yaha kuch baatein gaur karne wali hai jese ki roohi ne jese hi corrupt prahario ka bataya aur aary ne kaha use pata hai to kya ye wohi prahari the jinhone maitrayi ko mara tha aur jinki talash me wo aya hai ? hmm to bhoomi didi ki jasoos yahi thi tabhi wo jungle me jab roohi ko bachaya tha wo wala kissa bhoomi ko nhi pata ......
रूही:- बॉस पैक के लिये वेयरवोल्फ को तो मैं ढूंढ लूंगी लेकिन वो मेरे घर में, मेरे बिस्तर पर… उस वादे का क्या हुआ?


आर्यमणि:- बड़ी उम्मीदें जाग रही है तुम्हारी तो। मुझे निचोड़ने का इरादा तो नही?


रूही:- अपने बॉस से उम्मीद कर रही हूं और ये मेरा हक है। वुल्फ पैक के नियम तो मालूम ही होंगे, या उसकी पूरी डिटेल भी बतानी होगी।


आर्यमणि:- हां समझ गया। यूं तो धड़कन काबू करने के लिये रोज ही प्रैक्टिस चालू रहेगी। लेकिन सरदार खान के किले में बिस्तर वाला खेल एक शुभ मुहरत पर होगा। उस दिन बीस्ट की कहानी खत्म करेंगे और साथ में पूरी रात तुम मुझे निचोड़ती रहना। चलो अब चला जाय।
ek session khatam hua nhi ki aage ke session ki bhi sochh li .......:nocomment:
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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एक अध्याय समाप्त होने को था, और पहला लक्ष्य मिल चुका था। रात के तकरीबन 10.30 बजे आर्यमणि वापस आया। भूमि हॉल में बैठकर उसका इंतजार कर रही थी। आर्यमणि आते ही भूमि के पास चला गया… "किस सोच में डूबी हो।"..


भूमि:- सॉरी, वो मैंने तुझे टेस्ट के बारे में कुछ भी नही बताया।


आर्यमणि:- वो सब छोड़ो, मुझे पढ़ने में मज़ा नहीं आ रहा, मुझे कुछ पैसे चाहिए, बिजनेस करना है।


भूमि:- हाहाहाहा… अभी तो तूने ठीक से जिंदगी नहीं जिया। 2-4 साल अपने शौक पूरे कर ले, फिर बिजनेस करना।


आर्यमणि:- मुझे आप पैसे दे रही हो या मै मौसी से मांग लूं।


भूमि:- तूने पक्का मन बनाया है।


आर्यमणि:- हां दीदी।


भूमि:- अच्छा ठीक है कितने पैसे चाहिए तुझे..


आर्यमणि:- 10 करोड़।


भूमि:- अच्छा और किराये के दुकान में काम शुरू करेगा।


आर्यमणि:- अभी स्टार्टअप है ना, धीरे-धीरे काम बढ़ाऊंगा।


भूमि:- अच्छा तू बिजनेस कौन सा करेगा।


आर्यमणि:- अर्मस एंड अम्यूनेशन के पार्ट्स डेवलप करना।


भूमि:- क्या है ये सब आर्य। गवर्नमेंट तुम्हे कभी अनुमति नहीं देगी।


आर्यमणि:- दीदी भरोसा है ना मुझ पर।


भूमि:- नहीं।


आर्यमणि:- क्या बोली?


भूमि:- भाई कुछ और कर ले ना। ये हटके वाला बिजनेस क्यों करना चाहता है। आराम से एक शॉपिंग मॉल का फाइनेंस मुझसे लेले। मस्त प्राइम लोकेशन पर खोल। तेजस दादा को टक्कर दे। ये सब ना करके तुझे वैपन डेवलप करना है। भाई गवर्नमेंट उसकी अनुमति तुम्हे नहीं देगी वो सिर्फ इशारों और डीआरडीओ करता है।


आर्यमणि:- अरे मेरी भोली दीदी, गन की नली उसके पार्ट्स, ये सब सरकारी जगहों पर नहीं बनता है। मैंने सब सोच रखा है। मेरा पूरा प्रोजक्ट तैयार भी है। तुम बस 10 करोड़ दो मुझे और 2 महीने का वक़्त।


भूमि:- ठीक है लेकिन एक शर्त पर। तुझे कितना जगह में कैसा कंस्ट्रक्शन चाहिए वो बता दे। काम हम अपनी जगह में शुरू करेंगे।


आर्यमणि:- जगह 6000 स्क्वेयर फुट। 1 अंडरग्राउंड फ्लोर और 4 फ्लोर उसके ऊपर खड़ा।


भूमि:- ओह मतलब तू प्रोजेक्ट के बदले सरकार से लॉन लेता, फिर अपना काम शुरू करता।


आर्यमणि:- हां यही करने वाला था।


भूमि:- कोई जरूरत नहीं है, तू बस अपना प्रोजेक्ट रेडी रख, बाकी सब मैं देख लूंगी। और कुछ..


आर्यमणि:- हां है ना…


भूमि:- क्या?


आर्यमणि:- जल्दी से खुशखबरी दो, मै मामा कब बन रहा हूं।


भूमि:- हां ठीक मैंने सुन लिया, अब जाएगा सोने या थप्पड़ खाएगा। ..


सुबह-सुबह का वक़्त और आर्यमणि की बाइक सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस के घर पर। घर की बेल बजी और नम्रता दरवाजा पर आते ही…. "आई पहली बार तुम्हारे छोटे जमाई घर आये है, क्या करूं?"..


"छोटे जमाई"… सुनकर ही पलक खुशी से उछलने लगी। वो दौड़कर बाहर दरवाजे तक आयी और आर्यमणि का हाथ पकड़कर अंदर लाते…. "हद है दीदी आप तो ऐसे पूछ रही हो जैसे पहली बार कोई दुल्हन घर आ रही हो। यहां बैठो आर्य, क्या लोगे।"


आर्यमणि:- कल तुम्हारे लिए कुछ शॉपिंग की थी, रख लो।


नम्रता:- जारा मुझे भी दिखाओ क्या लाये हो?


जैसे ही नम्रता बैग दिखाने बोली, पलक, आर्यमणि के हाथ से बैग छीनकर कमरे में भागती हुई…. "पहनकर दिखा देती हूं दीदी, मेरे लिए ड्रेस और एसेसरीज लेकर आया है।"..


नम्रता:- हां समझ गई किस तरह के ड्रेस लाया होगा। और आर्य, आज से कॉलेज जाने की अनुमति..


आर्यमणि:- अनुमति तो कल से ही मिल गयि थी। लेकिन हां कल किसी ने जादुई घोल में लिटा दिया तो मेरे पूरे जख्म भर गये।


"माफ करना आर्य, तुम्हारे कारनामे ही ऐसे थे कि किसी को यकीन कर पाना मुश्किल था। हां लेकिन वो करंट वाला मामला कुछ ज्यादा हो गया था।"…. राजदीप उन सब के बीच बैठते हुए कहने लगा।


अक्षरा:- टेस्ट के नाम पर जान से ही मार देने वाले थे क्या? सीधा-सीधा वुल्फबेन इंजेक्ट कर देते।


राजदीप:- फिर पता कैसे चलता आर्यमणि कितना मजबूत है। क्यों आर्य?


आर्यमणि:- हां बकड़े की जान चली गई और खाने वाले को कोई श्वाद ही नहीं मिला।


राजदीप:- बकरे से याद आया, आज मटन बनाते है और रात का खाना हमारे साथ, क्या कहते हो आर्य।


"वो भेज है दादा, नॉन भेज नहीं खाता।".. अंदर से पलक ने जवाब दिया।
Bhoomi ko pata tha litreally aur usne aarya ko bataya nhi uske bad bhi ye gussa nhi hai ese kese ...... I isss Hurt :angrysad: vhery vhery hurt.....khair lekin ye arms and ammunition ka business hi kyu ye thoda sochne wali baat hai aarya iska business dal ke ky karega agar wo prahari hota to bhi smjh ata ki latest guns wgerah ki jarurt padti hai supernatural se ladne lekin aarya khair...... .

to aarya ne jesa kaha tha ki wo shopping ka bad sabke saamne dega to usne ye bhi kr diya aur aarya ka rajdeep ko sirf taunt dena ...... ekad mukka deta to bhi chal jata itna to saale pr hak banta hai :beaten::chair:
राजदीप:- पहला वुल्फ जो साकहारी होगा।
ye baawda hai ke ? kal hi test liya aur baat bhi kr rahe hai fir bhi ye wolf keh raha hai aarya ko ....ya to rajdeep ne jaan kr kaha aur usko abhi bhi shak hai aarya pr ya fir nainu bhaiya ko smjhh nhi aa raha tha kya likhe to yahi likh diya jaldi jaldi me ?

आर्यमणि:- मेरे दादा जी मुझे कुछ जरूरी ज्ञान देने वाले थे। इसलिए मै जब मां के गर्भ में नहीं था उस से पहले ही उन्होंने मां को नॉन भेज खाने से मना कर दिया था। जबतक मै पुरा अन्न खाने लायक नहीं हुआ, तबतक उन्होंने मां को मांस खाने नहीं दिया था। दादा जी मुझे कुछ शुद्घ ज्ञान के ओर प्रेरित करने वाले थे इसलिए..


उज्जवल:- तुम्हारे दादा जी बहुत ज्ञानी पुरुष थे। अब लगता है वो शायद किसी के साजिश का शिकार हो गये। कोई अपनी दूर दृष्टि किसी कार्य में लगाये हुये था जिसके रोड़ा तुम्हारे दादा जी होंगे। दुश्मन कोई बाहर का नहीं था, वो तो अब भी घर में छिपा होगा।
hmm jesa ki mene kaha tha aarya ke dada ko pehle se hi kuchh pata tha aur wo aarya ko usi tarha se taiyaar kr rahe the ......ab to Vardhraj Kulkarni ki history jab khulegi uska wait hai ...... eagerly waitinnnnggggggggg
aur ujjawal ji ka ye itne bharose ye kehna ki wo to ab bhi ghar me chipa hoga meko kuch jacha nhi inko kese pata wo abhi bhi zinda hai mar bhi to sakta tha ?
राजदीप:- ये उस दिन भी ऐसे ही तैयार होकर निकली थी ना? आई हमारे लगन फिक्स करने से पहले कहीं दोनो के बीच कुछ चल तो नही रहा था? जब इसका लगन तय कर रहे थे, तब पलक ने एक बार भी नहीं कहा कि वो किसी और को चाहती है। दाल में कुछ काला है।
ye banda sahi me policegiri kar raha hai har baat me pehle wo aarya ko wolf bolna aur ab palak ka rishte ke liye ha krte time apne bf ke baare me nhi bolna isne pakad liya ye kuch to khela karega ...... khela hobe bhot bada khela hobe ......
"बहुत स्वीट दिख रहे हो, चॉकलेट की तरह"… पलक आर्य के गाल को चूमती हुई कहने लगी।
haa wo kal raat hi tension release kari hai aarya ne :lol1: isliye aaj fresh fresh chocolate sa lag raha hai
आर्यमणि पार्किंग में अपनी कार खड़ी किया, तभी रूही भी उसके पास पहुंच गई… "हीरो लग रहे हो बॉस।"


आर्यमणि:- थैंक्स रूही..बात क्या है जो कहने में झिझक रही हो।


रूही:- तुम्हे कैसे पता मै झिझक रही हूं।


आर्यमणि उसके सर पर टफ्ली मारते… "मै किसी के भी इमोशंस कयि किलोमीटर दूर से भांप सकता हूं, सिवाय अपनी रानी के।"..


रूही:- चल झूटे कहीं के…


आर्यमणि, उसे आंख दिखाने लगा। रूही शांत होती… "सॉरी बॉस।"..


आर्यमणि:- जाकर कोई बॉयफ्रेंड ढूंढ लो ना।


रूही:- हमे इजाज़त नहीं आम इंसानों के साथ ज्यादा मेल-जोल बढ़ना। वैसे भी किसी पर दिल आ गया तो जिंदगी भर उसे साथ थोड़े ना रख सकते है। पहचान तो खुल ही जाना है। मुझसे नहीं तो मेरे बच्चे से।


आर्यमणि:- तुम मेरे पैक में हो और पहले ही कह चुका हूं, पुरानी ज़िन्दगी को अलविदा कह दो। खुलकर अपनी जिंदगी जी लो। तुम जिस भविष्य कि कल्पना से डर रही हो, उसकी जिम्मेदारी मेरी है।


रूही:- क्या सच में ऐसा होगा।


आर्यमणि:- मेरा वादा है।


रूही आर्यमणि की बात सुनकर उसके गले लग गई। आर्यमणि उसे खुद से दूर करते… "यहां इमोशन ना दिखाओ, जबतक सरदार का कुछ कर नहीं लेते। अब तुम बताओगी झिझक क्यों रही थी।"..


रूही:- अलबेली इधर आ…


रूही जैसे ही आवाज़ लगाई, बाल्यावस्था से किशोरावस्था में कदम रखी, प्यारी सी लड़की बाहर निकलकर आयी.. आर्यमणि उसे देखकर ही समझ गया वो बहुत ज्यादा घबरायि और सहमी हुई है। उसके खुले कर्ली बाल और गोल सा चेहरा काफी प्यारा और आकर्षक था, लेकिन अलबेली की आंखें उतनी ही खामोश। देखने से ही दिल में टीस उठने लगे, इतनी प्यारी लड़की की हंसी किसने छीन ली।


आर्यमणि, थोड़ा नीचे झुककर जैसे ही अलबेली के चेहरे को अपने हाथ से थामा... उस एक पल में अलबेली को अपने अंदर किसी अभिभावक के साये तले होने का एहसास हुआ, जो अंदर से मेहसूस करवा जाए कि मै इस साये तले खुलकर जी सकती हूं। उस एक पल का एहसास... और अलबेली के आंखों से आंसू फुट निकले...


आर्यमणि उसके चेहरे को सीने से लगाकर उसके बलो में हाथ फेरते हुए… "अलबेली रूही दीदी के साथ रहना। आज से तुम्हारे इस प्यारे चेहरे पर कभी आंसू नहीं आयेंगे, ये वादा है। जाओ तुम कार में इंतजार करो।"..


रूही:- ट्विन अल्फा के मरने के जश्न में अलबेली के बदन को नोचा जा रहा था। ये भी उस किले के उन अभगों मे से है, जिसका कोई पैक नहीं, सिवाय इसके एक जुड़वा भाई के। इसका जुड़वा, इसे बचाने के लिए बीच में आया तो उसे कल रात ही मार दिया गया। किसी तरह मै अलबेली को वहां से निकाल कर लायी हूं, लेकिन सरदार को मुझपर शक हो गया...


आर्यमणि:- हम्मम ! किसकी दिमागी फितूर है ये..


रूही:- और किसकी सरदार खान के चेले नरेश और उसके पूरे पैक की।


आर्यमणि:- चलो सरदार खान के किले में चलते है। अपना पैक के होने का साइन बनाओ। आज प्रहरी और सरदार खान को पता चलना चाहिए कि हमारा भी एक पैक है। अलबेली यहां आओ।


अलबेली:- जी भईया..


आर्यमणि:- तुम अपने बदले के लिए तैयार रहो अलबेली। हमे घंटे भर में ये काम खत्म करना है। लेकिन उससे पहले इसे ब्लड ओथ लेना होगा। क्या ये अपना पैक छोड़ने के लिए तैयार है?


रूही:- इसका कोई पैक नहीं। बस 2 जुड़वा थे। इसके अल्फा को पिछले महीने सरदार ने मार दिया था और बचे हुए बीटा अलग-अलग पैक मे समिल हो गये सिवाय इन जुड़वा के, जिन्हें कमजोर समझ कर खेलने के लिये किले में भटकने छोड़ दिया।


आर्यमणि:- चलो फिर आज ये किला फतह करते है। ब्लड ओथ सेरेमनी की तैयारी करो।


रूही अलबेली को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंची। चारो ओर का माहौल देखने के बाद रूही ने आर्यमणि को बुलाया। आर्यमणि वहां पहुंचा। रूही, चाकू अलबेली के हाथ में थमा दी। अलबेली पहले अपना हथेली चिर ली, फिर आर्यमणि का। और ठीक वैसे ही 2 मिनट की प्रक्रिया हुई जैसे रूही के समय में हुआ था।


अलबेली भी अपने अंदर कुछ अच्छा और सुकून भरा मेहसूस करने लगी। रूही के भांति वह भी अपने हाथ हाथ को उलट–पलट कर देख रही थी। अलबेली को पैक में सामिल करने के बाद आर्यमणि, उन दोनों को लेकर सरदार खान की गली पहुंचा, जिसे उसका किला भी मानते थे। जैसे ही किले में आर्यमणि को वेयरवॉल्फ ने देखा, हर कोई उसे ही घुर रहा था। आर्यमणि आगे–आगे और उसके पीछे रूही और अलबेली। तीनों उस जगह के मध्य में पहुंचे जिसे चौपाल कहते थे। इस जगह पर आम लोगों को आने नहीं दिया जाता था। 4000 स्क्वेयर फीट का खुला मैदान, जिसके मध्य में एक विशाल पेड़ था और उसी के नीचे बड़ा सा चौपाल बना था, जहां बाहर से आने वालों को यहां लाकर शिकार किया करते थे तथा सरदार खान की पंचायत यहीं लगती थी।


रूही को देखते ही वहां का पहरेदार भाग खड़ा हुआ। रूही ने दरवाजा खोला, आर्यमणि सबको लेकर अंदर मैदान में पहुंचा। रूही अपने चाकू से उस चौपाल के पेड़ पर नये पैक निशान बनाकर उसे सर्किल से घेर दी। सर्किल से घेरने के बाद पहले आर्यमणि ने अपने खून से निशान लगाया, फिर रूही ने और अंत में अलबेली ने। यह लड़ाई के लिये चुनौती का निशान था। इधर किले कि सड़क पर जैसे ही आर्यमणि को सबने देखा, सब के सब सरदार खान के हवेली पहुंचे। मांस पर टूटा हुआ सरदार खान अपने खाने को छोड़कर एक बार तेजी से दहारा….. "सुबह के भोजन के वक़्त कौन आ गया अपनी मौत मरने।".. ।


नरेश:- सरदार वो लड़का आर्यमणि आया है, उसके साथ रूही और अलबेली भी थी।


सरदार:- अलबेली और रूही के साथ मे वो लड़का आया है। क्या वो हमसे अलबेली के विषय में सवाल-जवाब करने आया है? या फिर कॉलेज के मैटर में इसने जो हमारे कुछ लोगों को तोड़ा था, उस बात ने कहीं ये सोचने पर तो मजबूर नहीं कर दिया ना की हम कमजोर है। नरेश कहीं हमारी साख अपने ही क्षेत्र में कमजोर तो नहीं पड़ने लगी...


नरेश:- खुद ही चौपाल तक पहुंच गया है सरदार, अब तो बस भोज का नगाड़ा बाजवा दो।


सरदार ने नगाड़ा बजवाया और देखते ही देखते 150 बीटा, 5 अल्फा के साथ सरदार चौपाल पहुंच गया। सरदार और उसके दरिंदे वुल्फ जैसे ही वहां पहुंचे, पेड़ पर नए पैक का अस्तित्व और उसपर लड़ाई की चुनौती का निशान देखते ही सबने अपना शेप शिफ्ट कर लिया… खुर्र–खुरर–खुर्र–खूर्र करके सभी के फेफरों से गुस्से भरी श्वंस की आवाज चारो ओर गूंजने लगी.…
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to ek member aur jud gayi Albeli chalo acha hai lekin abhi tak sirf female hi judi hai koi male aaeyag ki nhi ?
 

Sk.

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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
प्रणाम मित्र

क्या रोमांचक दृश्य बनाया आप ने, आखिर आर्यमणि का प्योर अल्फा का रूप निशांत के सामने आ ही गया

और ये रहस्यमय सन्यासी कौन हैं जो आर्यमणि को और निशांत दोनों को अच्छे से जानते हैं क्या ये आर्यमणि के दादाजी के साथी हैं या इनका भी कोई राज हैं सायद अगले कुछ अनुच्छेद मे आप यह बता दे

रीछ स्त्री का भी पता चल गया और जिसने उसे आजाद किया उस तांत्रिक का भी पता चल गया है और तो और इनका मकसद भी लगभग पता चल गया है, एडियाना की आत्मा भी मैदान में है
यह लड़ाई काफी दिलचस्प होगी, देखना होगा कि क्या होगा इस लड़ाई मैं संशय तो आप ने काफी बना कर रखा है मित्र और जिस तरह आप संशय छोडते अंतिम मे उस से अगले अनुच्छेद की प्रतीक्षा बढ़ जाती हैं 🙏
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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उस दिन केवल अपने हाथो से तोड़ा था फिर भी जख्म भड़ने के लिए इस सरदार को हील करना पड़ा था।
Ye kab huyi...........maine konsa update miss kara sardar khan se to ladai huyi hi nhi
आर्यमणि की बात सुनकर सरदार ने एक जोरदार वूल्फ साउंड "वूऊऊऊऊ" की आवाज़ लगाई और देखते ही देखते सभी शेप शिफ्टर वापस से इंसान बन गए। सरदार भी अपने असली स्वरूप में आया…. "आर्यमणि, तुम जंग छेर रहे हो।".
ye wali wolf sound ka imagination me kutte uunnnn wala sound aya dimaag me ab khauf hi itna kar diya aarya ne sardar ke dimaag me ki usko ese sound nikaal ke apne bita ko vapis insaan roop me lana pada ....

सरदार कुछ बोलता उससे पहले ही नरेश ने हमले की गरज लगा दीया। शायद रणनीति जैसे पहले से तय हो। 42 बीटा रूही और अलबेली पर हमला करने चले गये और अकेला नरेश अपनी जगह खड़ा रहा। नरेश को लगा आर्यमणि उन दोनों को बचाने जाएगा, लेकिन इसके उलट आर्यमणि ने तेजी के साथ अपने कदम नरेश के ओर बढ़ा दिया।


नरेश जब अपना शेप शिफ्ट किया तब वो आर्यमणि से 2 फिट लंबा लग रहा था और वैसा ही चौड़ा भी। आर्यमणि उसके सामने किसी बच्चे की तरह दिखने लगा। बच्चा समझकर नरेश ने अपना पंजा चलाया और आर्यमणि ने उसके पंजे पर ही अपना ऐसा मुक्का चलाया की कलाई की हड्डी पाउडर बन गयि।


अगले ही पल आर्यमणि ने दूसरा हाथ पकड़कर मरोड़ दिया। ऐसा लगा जैसे कपड़े को निचोड़ रहा था। हाथ के अंदर का हड्डी कहीं हवा हो गया हो और हाथ मांस के सहारे झूल रही थी। दोनो हाथ को बेजान करने के बाद आर्यमणि एक जोरदार मुक्का उसके जांघ पर मारा। ऐसा लगा जैसे रोड रोलर के बीच एक ईंट आ गयि हो। ठीक वैसा ही हाल जांघ की की हड्डी का था। आशानिया पीड़ा से नरेश लगातार बिलबिला रहा था। लेकिन आर्यमणि, नरेश को वहां नीचे जमीन पर गिरने नही दिया क्योंकि पास में ही शक्ति का भूखा एक बीस्ट अल्फा था। इसलिए नरेश का अचेत शरीर को हवा में उछाल दिया जो सीधा गिरा पेड़ के पास।


इधर रूही अकेली ही नरेश के 42 बीटा के साथ जूझ रही थी और अलबेली को अपने पीछे लिये, बीटा के वार को झेलती उसपर हमला भी कर रही थी। महज चंद सेकेंड में नरेश को पेड़ के पास फेंककर आर्यमणि उसके बीटा की भीड़ पर टूट पड़ा। आर्यमणि के दमदार पंच पड़ना शुरू हो गया। वो इतनी तेज गति से एक के बाद दूसरे को मारता जा रहा था कि रूही और अलबेली को घेरे भिड़, जादुई तरीके से गायब हो गयि और उस माहोल में केवल दर्द भरी चींखें गूंज रही थी। जिसे भी कराड़ा मुक्का पड़ता, उसकी हड्डियां आगे से टूटकर शरीर के पीछे तक घुस जाती और वो बीटा तेज कर्रहाते हुए जमीन पर। अब तो आगे से एक नई अल्फा रूही और पीछे से किंग अल्फा आर्यमणि का हमला लगातार होते जा रहा था और सरदार खान सबको घायल होते देख रहा था।…. "सब क्लियर हो गया रूही।"..


रूही:- हां बॉस सब क्लियर..


आर्यमणि:- चलो अलबेली को कहो उस नरेश को अपने पंजे से पुरा सजा दे, और कल की पूरी भड़ास निकाल ले…


सरदार खान:- नहीं..


सरदार खान की नहीं होती रही लेकिन अलबेली ने अपने पंजे से नरेश कर सर उतार दिया। उसके बाद अलबेली और रूही ने मिलकर नरेश के बाकी पैक को भी ऊपर का टिकिट थमा दिया..… "बॉस यहां का काम हो गया।"


आर्यमणि:- रूही, अलबेली के साथ जाकर कार में बैठो मै आता हूं। सरदार जरा हम दोनों चौपाल पर बैठे, कुछ काम की बातें कर लेते है।


सरदार अपनी गुस्से में लाल आखें दिखाते…. "अब बात करने को बचा क्या है?"..
Sasura to gussa huyi gawa....... Aarya ek Pure Alpha hai isiliye wo sirf sabko injured kar deta hai ? aur khatam krne ke liye roohi ko keh deta hai ? ya fir kuch aur baat hai khair jo bhi thoda sukoon mila bhali action wesa nhi tha lekin albeli ke saath jo hua uska badla usne le liya ......
आर्यमणि:- कब तक इन अल्फा और बीटा की शक्तियों से बीस्ट बनते रहोगे, जो वुल्फबेन, माउंटेन एश, सिल्वर और ना जाने किस-किस चीज की गुलाम होगी। बाकी यदि तुम्हे लगता है कि मैंने यहां आकर तुम्हे नीचा दिखाया और तुम्हारी शक्तियों को चैलेंज किया है तो बेशक जंग छेड़ दो, मै हमेशा तैयार हूं।


सरदार:- तुम लोग जाओ यहां से, जरा हम फर्स्ट अल्फा आपस में कुछ बातें कर ले।


भीड़ के चौपाल से हटते ही… "सरदार वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में तूमने अपने लोग भेजे थे?"


सरदार:- हम्मम ! चारो ओर की खबर रखते हो।


आर्यमणि:- मेरे पास ऐसे कई सारे राज है जो तुम्हारे बहुत काम के है। जैसे लोपचे का वो भटकता मुसाफिर, एडियाना का मकबरा कुछ दिन में मेरे पास अनंत कीर्ति की वो पुस्तक भी खुली हुई होगी।


सरदार:- ये मनगढ़ंत बाते है जो तुम मेरे दुश्मनी से बचने के लिए कर रहे।


आर्यमणि:- "सरदार जितना बेवकूफ तुम खुद को दिखा रहे उतने हो नहीं। तुम अब भी यह पता लगाने में जुटे हो की मै हूं क्या? तुम्हारे शरीर को मेरा वो सई वैपन भेद नहीं पता, तुम चाहते तो मुझ पर बिना डरे हमला कर सकते थे, और हारने की स्थिति में तुम बड़ी आसानी से, यहां से भाग सकते थे, ये तो वक़्त की बात है जब हम भिड़े होते।"

"लेकिन तुमने पहली ही मुलाकात में मेरे अंदर वो मेहसूस किया जो कभी तुम्हारे पास थी लेकिन दूर हो गई। जिसकी तलाश में तुम कई दशकों से घूम रहे। अब मान भी जाओ सरदार की ये प्रहरी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते जिसके लिए तुम काम करते हो।"


सरदार:- एक छोटा सा लड़का इतना स्मार्ट भी हो सकता है, ये तो कमाल हो गया। लेकिन बच्चे मुझे कुछ जानकारी निकालनी हो तो, मै वो बड़ी आसानी से निकाल सकता हूं। केवल अपने पांचो नाखून तुम्हारे गर्दन के पीछे घुसाने होंगे।


आर्यमणि:- तुम वो भी नहीं कर सकते क्योंकि थोड़ा भी उल्टा हुआ तो तुम अपनी इस बीस्ट की शक्ति से हाथ धो बैठोगे। अभी चलता हूं, लेकिन तुम्हे सच जानने का पूरा मौका मिलेगा।


सरदार:- कब... ???


आर्यमणि:- चन्द्र ग्रहण की रात सरदार, ताकि तुम मेरे साथ धोका ना कर सको। फिलहाल चलता हूं। साथ काम करोगे तो लंबा खेलेंगे, वरना तुम प्रहरी को उल्लू बना सकते हो, मुझे नही।
Hmm aarya aur sardar ki baaton se lag raha hai ki sardar khan pehle true alpha tha lekin uske sar par ye khoon ka nasha chada aur wo apni shakti khota chala gaya aur ab usi ko vapis paane ke chakkar me beast wolf ban gaya ......aur ab use ye Lopche ke bhatakte musafir aur adiana ka mukbara aur Anant kirti ki pustak ki jarurt hai jiska hint aarya ne sardar ko de diya hai ki use pata hai aur sayad wo aarya ke pass hai ya use pata hai ki kaha hai ...... hmmm acha khel chal raha hai aage bhot maja aane wala.......
मीनाक्षी:- इसलिए तो दिमाग खराब हो गया। कहता है फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ लूंगा लेकिन ये कोशिश नहीं करूंगा। मैंने सुकेश का चेहरा देखा था जब आर्यमणि ने ये जवाब दिया। उतर गया था। बड़ी उम्मीद थी उन्हें की उस किताब का कोई उत्तराधिकारी मिले। शायद ये हार जाता, लेकिन एक कोशिश कर लेता तो क्या चला जाता।
ab ye kab hua us din to secret room me 4 log the fir ye inhone kaha se dekh liya tha chehra lagta hai nainu bhaiya ko badam nhi mil rahe hai .........
आर्यमणि जंगल के अपने मीटिंग पॉइंट पर पहुंच चुका था। रूही और अलबेली भी वहां पहुंच चुकी थी।… "तुम दोनो में से कोई बताएगा सरदार खान की उम्र क्या होगी।"..


दोनो एक साथ… "70-80 साल"


आर्यमणि:- गलत, लगभग 500 साल। इंसानों और भेड़ियों का मांस खाता है, इसलिए वो बीस्ट की तरह दिखता है। यदि नहीं खाता तो इंसान की तरह दिखता। अब ये बताओ जब प्रहरी इतने बड़े शिकारी है तब ये सरदार खान आज तक इतने साल जीवित कैसे रह गया?


कोई और यह बात कहता तो शायद रूही और अलबेली उसे पागल समझती। लेकिन आर्यमणि ने खुलासा किया था इसलिए दोनो सोचने पर मजबूर हो गई की आखिर एक वुल्फ का इतना लंबा जीवन काल कैसे हो सकता है...
Jesa ki mera aaklan tha ek true alpha ki power khone k bad wo wolf aur insaano ke kha kr beast ban gaya lekin power nhhi mili ab apni wo power vapis paana chahata hai aur jiska jhaansa aarya ne de diya hai ab dekhna hai ki sardar khan kab tak jhaanse me rehta hai ...... aur aarya ka aakhiri sawal ek taraf ishaara kar raha hai ki koi to esa parivar hai jiske liye sardar khan kaam karta hai aur wohi jaan na aarya aur bhoomi didi ko

behtreen update

lekin mera abhi bhi Vaidehi pr doubt hai dekho ab ..........
 
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सैकड़ों की तादाद में वैंडिगो का आर्य से चिपकना वैसा ही लग रहा था जैसे " द लोस्ट वर्ल्ड " में छोटे छोटे अनगिनत डायनासोर का एक व्यक्ति पर धावा बोल देना ।

वैंडिगो , एडियाना की सेनाएं थी और निर्देश एक तांत्रिक का फाॅलो कर रही थी । उस तांत्रिक का जिसने एक सालों पुरानी ताकतवर रीछ स्त्री को मुक्त करा दिया था ।
तांत्रिक उध्यात , रीछ स्त्री महाजनिका , वैंडिगो सभी के सभी एडियाना के मकबरे पर और उसके आसपास पाए गए । इसका मतलब सभी का कनेक्शन एडियाना से ही जुड़ा हुआ है ।
एडियाना ने भले ही अपना भौतिक शरीर त्याग दिया है पर उसकी आत्मा अभी भी उसके मकबरे में कैद है ।

इन सभी के बारे में इतना महत्वपूर्ण अपडेट्स यूं ही नहीं हो सकता । क्या यह बहरूपिया चोगा और बिजली का खंजर प्राप्त करने हेतु है ?
रीछ स्त्री को मुक्त कराने के पीछे तांत्रिक का मकसद क्या है ?

अच्छा हुआ जो उस समय सिद्ध और साधुओं का एक ग्रुप वहां मौजूद था । अन्यथा वो वैंडिगो से ही पार नहीं पाते । रीछ स्त्री और तांत्रिक तो दूर की कौड़ी थी ।
पर ये साधु संतो की टोली है कौन ? इन्हें तो सब कुछ पता है । सब कुछ यहां तक कि आर्य और निशांत का पुरा बायोडाटा भी इनके पास है ।
यह तो समझ में आ रहा है कि वो लोग भी रीछ स्त्री के तलाश में ही वहां पहुंचे थे । पर उनका मकसद सिर्फ रीछ स्त्री मात्र ही थी या खंजर और बहरूपिया चोगा भी ।
नाम से ही आस्था पनपने लगती है । ओमकार नारायण । काफी सिद्ध और अन्तर्यामी पुरुष लगते हैं ये । आर्य को इशारे इशारे में बहुत कुछ बता दिया था और आर्य समझ भी गया । हम ही बेचारे निकले जो कुछ समझ ही न पाए ।

ऐसा प्रतीत होता है अब बारी है तंत्र मंत्र विद्या सिखने की । आर्य को सही मायने में एक योग्य गुरु नारायण जी के रूप में प्राप्त हुआ ।

हम तो यही सोच रहे हैं कि ये प्रहरी यदि वहां मौजूद होते तो क्या करते ! लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त करते या भाग खड़े होते !

एक और बेहतरीन अपडेट नैन भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड ब्रिलिएंट एंड
जगमग जगमग ।
 

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रूही, हंसती हुई... "पागल अभी प्रैक्टिस करने के लिए तेरी उम्र नही हुई। एडल्ट स्किन पर कुछ गड़बड़ भी हुई तो स्किन हटाकर हिल कर लेंगे। लेकिन जैसा की तुम्हारे Xabhi चाचू कहते है, बार–बार टैटू बनाने से स्किन कैंसर हो जाता है, इसलिए तुम्हारे स्किन के साथ यह जोखिम हो सकता है।
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अलबेली के वहां से जाते ही रूही शरारती मुस्कान के साथ आर्यमणि को आंख मार दी, और हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाने लगी। कुछ दूर चलने के बाद रूही ने झाड़ियों का परदा हटाया और जो नजारा आंखों के सामने था उसे देखने के बाद.… "यहां तो तुमने पूरे सुहागरात की तैयारी कर रखी हो।"


चारो ओर फूल की झाड़ियां लगी थी। बीच में मखमली गद्दा, और किनारे पर कुछ अतिरिक्त वस्त्र भी रखा हुआ था। शायद अपनी पिछली मिलन में फटे कपड़े रूही को याद थे। आर्यमणि, रूही की तैयारी देखकर हंसने लगा और जाकर सीधा लेट गया।


रूही:– ये क्या है बॉस...


आर्यमणि:– मुझे बस मजे लेने है। तुम मेरे लिंग को खड़ा करो, उसपर बैठो, खेलो–कूदो और मुझे संतुष्ट करो।


रूही की आंखों में जैसे चमक आ गयि हो... "बॉस फिर आपके कंट्रोल का क्या?"


आर्यमणि:– सेक्स जैसे प्रक्रिया में भी कोई अपने एक्सिटमेंट को सम्पूर्ण नियंत्रण कर सकता है क्या? मैं यहां लेटे हुये एक्साइटमेंट और धड़कन बढ़ने की प्रक्रिया को अलग करने की कोशिश करता हूं।

रूही, पूर्ण जिज्ञासावश.… "क्या यह संभव है बॉस?"..


आर्यमणि:– हम न तो जानवर है और न ही इंसान। जिसे भगवान ने इतना खास बनाया हो, वो लोग यह कारनामे भी कर सकते है। हां पर थोड़ा वक्त लगेगा...


रूही:– ये पहला ऐसा काम होगा जहां वक्त लगना सबसे ज्यादा एक्साइटिंग है... क्या कहते हो बॉस..


आर्यमणि:– बातों में ही तुम सब कुछ कर लेना...


रूही, आर्यमणि की बात सुनकर हसने लगी और छलांग लगाकर ऊसके ऊपर कूदती... "आज तो सच में आपको निचोड़ लूंगी बॉस"… कहते हुये रूही सीधा अपने होंठ आर्यमणि के होंठ से लगा दी और हाथ नीचे ले जाकर उसके लिंग को मुट्ठी में दबोच लिया। आर्यमणि भी रूही का साथ देते उसके टॉप में हाथ डालकर उसके स्तन को मुट्ठी में पकड़कर दबोचने लगा।


कुछ ही देर बीते थे और दोनो के अंदर का जानवर जैसे जाग गया हो। पागलों की तरह एक दूसरे के बदन पर पंजे के निशान दे रहे थे। दोनो के शेप कब शिफ्ट हुए यह भी पता नही। बस पागलों की तरह दोनो एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे। रूही अपने मुंह में पूरा लिंग दबाए, नीचे अंडकोष को अपने मुट्ठी में दबोचे थी। वहीं आर्यमणि एक हाथ से रूही के गोल–सुडोल आकर्षक स्तन को दबा रहा था तो दूसरे हाथ से उसके योनि के साथ बड़ी बेरहमी से खेल रहा था।


एक दूसरे के अंगों के साथ खेलते हुए जोश इतना उफान पर था कि आर्यमणि रूही को पटक कर नीचे कर दिया और उसके ऊपर चादर की तरह बिछकर लिंग को एक ही झटके में उसके योनि में उतार दिया.… "आह्ह्हहह्ह्हह्ह्ह्ह्ह" की मादक सिसकारी के साथ रूही अपना मुंह खोलकर आर्यमणि के कंधे पर अपना फेंग पूरा घुसा दी और रूही के क्ला आर्यमणि की पीठ में घुसे थे। आर्यमणि के कंधे और पीठ से निकलता लहू मानो अंदर के जोश को और चौगुना कर दिया हो। फिर तो आर्यमणि इतने जोश के साथ धक्के मार रहा था कि रूही हर धक्के के साथ अपनी सिसकारी और भी ज्यादा बढ़ा रही थी।
:huh::beee::censored::nocomment:

आर्यमणि के कान तक जैसे यह आवाज पहुंची हो और अचानक ही आर्यमणि घबराकर रूही के ऊपर से उठते... "नही ओशून, मैं यह करना नही चाहता था। तुम ठीक तो हो न। तुम्हे दर्द तो नहीं हो रहा।"…. आर्यमणि व्याकुलता से अपनी बात बड़बड़ाते हुये अपना एक पंजा रूही के स्तनों के बीच रखा और दूसरा पंजा रूही के योनि पर। दोनो पंजे रखने के बाद आर्यमणि लगातार ओशून का नाम बड़बड़ाते हुए रूही का दर्द अपने पंजे में उतार कर उसे दर्द मुक्त करने लगा।


कुछ देर बीत चुके थे। रूही का दर्द सुकून में बदल चुका था लेकिन आर्यमणि की आंखें अब भी नम थी और मुख से ओशून ही निकल रहा था। रूही, आर्यमणि को बड़े ध्यान से देखती जैसे ही उसके इमोशन को पढ़ने की कोशिश कि... तभी आर्यमणि की तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंज उठी। रूही अपने घुटनों पर आती केवल जमीन को ही तक रही थी। जैसे ही रूही ने अपना सर उठाकर कुछ कहना चाहा, उसका सामना आर्यमणि की घूरती नजरों से हुआ, उसके बाद तो जैसे रूही की आवाज गले में ही अटक गई हो और कितना भी कोशिश करके देख ली, लेकिन सर ऊपर नही उठा पाई।


आर्यमणि अपने कपड़े पहना और बिना कुछ बोले चुप–चाप वहां से चला गया।… "अकडू बॉस की तो यहां अलग ही कहानी है। कौन है ये ओशून जो एक पहाड़ जैसे अडिग इंसान को ऐसा उलझाया, कि वह भूल ही गया की किसके साथ संभोग कर रहा?"
hmm wese to aap mana kare ho zikr karne ki lekin aap ne kar hi diya hai to humara bhi banta hai .......aur ye part ko dekh ke esa lag raha hai ki oshoon ne madad to ki hai aur aaryamani ke dil me oshoon ke liye ek alag hi jagah ban gyi hai aur undono ke bich pehle esa kuch gathith hua hai jiske wajha se aur roohi ki dard bhari aawaaj trigger kr gyi aur wo bhool gaya ki saamne roohi hai ya oshoon .....
इस छोटी सी वार्तालाप के बाद रूही वहां से चली गयि। रूही तो चली गयि लेकिन उसके जाते ही ठीक पीछे से पलक पहुंच गयि... "मेरे किंग वो रूही क्या कह रही थी?"..


आर्यमणि:– मैं उसके पैक का मुखिया हूं, इसलिए मुझसे मिलने चली आयि।


पलक:– क्या पैक के मुखिया???


आर्यमणि:– चौकने का अच्छा नाटक था। सरदार खान से तो अब तक ये खबर पूरे प्रहरी समुदाय में फैल ही चुकी होगी। क्यों तुम्हे किसी ने नहीं बताया की मैं सरदार खान के चौपाल में घुसकर उसके यहां रह रहे नरेश और उसके बड़े से पैक को समाप्त कर दिया...


पलक:– तुम्हे हुआ क्या है आर्य? सरदार खान और प्रहरी का क्या संबंध? तुम तो वुल्फ भी नही फिर उन्हे मारा कैसे?


आर्यमणि:– मैं एक बोर्न हंटर हूं। वेयरवोल्फ को मारने के लिए मुझे सोचना भी पड़ेगा क्या? छोड़ो ये सब चलो लॉन्ग ड्राइव पर चला जाए...


पलक:– चलो चलते हैं। वैसे भी जो बॉम्ब फोड़ा है उसका पूरी कहानी जाने बिना चैन न मिलेगा...


इधर आर्यमणि और पलक दोनो पार्किंग में चल दिए। पीछे से निशांत भी पहुंचा और दोनो को साथ जाते देख उसके हलख में जान वापस आयि। पलक और आर्यमणि का यह लॉन्ग ड्राइव, आर्यमणि के लिए काफी लाभदायक रहा। प्रहरी और वेयरवोल्फ के बीच चल रहे सांठ–गांठ की कहानी उसने पलक को बता दिया। साथ में आर्यमणि ने पलक का इस ओर ध्यान भी खींचा की कैसे भारद्वाज खानदान को कुछ लोग बर्बाद करने पर लगे है। वरना क्या इस वक्त केवल 2 ही भारद्वाज परिवार अस्तित्व में होता, बाकी परिवारों का क्या हुआ? और सबसे आखिर में उसने पैक बनाने के पीछे के कारण को बताया। जिसका एक कारण नागपुर में रह रहे सरदार खान की उम्र लगभग ५०० वर्ष कैसे हो गयि, जरूर प्रहरी का कोई काला राज इसके पीछे है? और दूसरा कारण सरदार खान अपने अंदर बहुत से राज समेटे है जिसका पता लगाने के लिए उसके किले में घुसना जरूरी था। और किले में घुसने के लिए उसे एक पैक की जरूरत थी।


आर्यमणि की बात सुनकर पलक के जैसे होश ही उड़ गए थे। वह गाड़ी मोड़कर वापस कॉलेज चली आयि और आर्यमणि से विनती करती हुई कहने लगी, जबतक पलक प्रहरी की एक मीटिंग न ले ले, वह किसी से भी इस बात की चर्चा न करे। आर्यमणि मान गया और मुस्कुराते हुए वहां से निकला।
bada ajeeb sambvaad tha wese to aaryamani ka apne aapko bornhunter kehna ...... aur uske bad palak ka vinti karna ki palak jab tak ek meeting na le le wo ye baat kisi ko na bataye palak ke dimaag me bhi kuch to chal raha hai ab fir doubt aa gaya palak pr ki kahi ye koi khel to nhi rach rahi....... ye nainu bhaiya bhi naa bade tej hai readers ke dimaag me jab tak khalbali na machaye inka khana to digest hota na hoga ......


रूही शरारत करती पीछे के ओर चल दी और एक–एक करके अपने सारे कपड़े उतारती... "बॉस हम्मम, हम्मम नही.. ये वक्त आह्ह्हह, उह्ह्ह, आउच का है।"


छटे बादल गिल्ट का और सारे पुर्जे सेक्स की आग में भड़क उठे। एक बार और धका–धक धक्के मारने का काम शुरू हो गया। जोश उफान पर और अरमान तूफान पर था। आज भी आर्यमणि ने शेप शिफ्ट कर लिया। लेकिन कल के मुकाबले आज दिमाग पूरा खुला था। शुरू से लेकर बीच तक तो शेप शिफ्ट नही हुआ था लेकिन जैसे–जैसे चरम की ऊंचाई पर पहुंचा, वैसे–वैसे आर्यमणि की धड़कने बेकाबू हो गयि।


लगभग 7 दिन का देह तोड़ धकाधक लिंग की लंबाई से योनि की गहराई मापने के बाद, पहले आर्यमणि ने पूरा नियंत्रण सीखा और उसके बाद रूही को नियंत्रण सिखाया। पहले जैसे–जैसे आर्यमणि चरम के ओर बढ़ता, वैसे ही उसकी धड़कने बढ़ने लगती। लेकिन अब उल्टा हो रहा था, धड़कन बढ़ने के बदले घटने लगती थी। "प्रैक्टिस मेक ए मैन परफेक्ट एंड वुमन टू (practice make a man perfect & woman too)" के तर्ज पर कुछ और दिन दोनो ने मजे लूटे। और फिर कहां–कहां नही लूटे। कम समय का सेक्स हो जैसे की कार या फिर किसी कोपचे में, या फिर हो लंबा मैराथन जैसे की बिस्तर में रात भर। फिर चाहे मिशनरी पोजीशन हो या स्पूनिंग या फिर हो रिवर्स स्पूनिंग... हर तरह के माहोल में हर तरह की पोजिशन में पारंगत हासिल करके ही दम लिया। आर्यमणि न सिर्फ खुद पारंगत हुआ बल्कि रूही को भी पारंगत कर दिया।
haa sahi hai aur kuch to skills bachi hi na hai jo isme parangat haasil karwa rahe ho .......
 

Tiger 786

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Scene:-7
सामने के बड़े से डायनिंग टेबल पर सभी अल्फा बैठे हुए थे और मुखिया की कुर्सी पर उनकी फर्स्ट अल्फा या शायद बीस्ट अल्फा बैठी हुई थी। मैं अपना चस्मा निकालकर ऊपर ओशुन के ओर देखा जो फिलहाल तो ठीक थी, लेकिन जैसे ही वहां से मैंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया। जंजीर के खड़कने की आवाज आने लगी। जंजीर से लगा बेयरिंग घूमकर एक राउंड टाईट किया गया, और उसी के साथ ओशुन के के हाथ पाऊं भी अलग अलग दिशा में फ़ैल गए।


"पहले एक्शन देखकर बात करोगे या बात करने के बाद एक्शन दिखाऊं, मर्जी तुम लोगो की है। एक राउंड और घूमने का मतलब मै समझ जाऊंगा। ओह हां एक बात और मै बता दू, मेरे मार से तुम लोग हील नहीं होगे। नहीं विश्वास हो तो शूहोत्र लोपचे से पूछ लो जो आज-कल तुम लोगों के बीच लंगड़ा लोपचे के नाम से मशहूर है।"…


उनकी जगह, उनका घर, और मै अपनी छाती चौड़ी किए, उन्हें चुनौती दे रहा था। ईडन से ज्यादा तो उसके चेलों में आक्रोश भरा था। लाजमी भी है, फर्स्ट अल्फा खुश तो अल्फा बनने में कामयाबी मिलेगी। मै चारो ओर से घिर चुका, एक साथ चारो ओर से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गए। कितने वुल्फ मुझे घेरे खड़े थे पता नहीं। लेकिन उन सब के कद के नीचे मै कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी वहां "खट खट खट" का साउंड हुआ और गुस्साए वुल्फ ने मेरा रास्ता छोड़ा…


"तुम्हारी हिम्मत की मै फैन हो गई। जिस जगह तुम्हारे खानदान प्रहरी के सारे शिकारी सर झुकाकर जाते है, वहां तुम इतने दिलेरी से बात कर रहे। ये तो कमाल हो गया।"..


मै:- ज्यादा बात करना और कहानी सुनने से मै बोर हो जाता हूं। ओशुन को छोड़ दो और उसे अपने ब्लड ओथ पैक तोड़कर जाने दो।


ईडन की अट्टहास भारी हंसी..… "ठीक है यही सही, पहले वो ओशुन फिर बाद में ये लड़का। लड़के को जान से मत मारना थोड़ी जान बाकी रहे, इस बात का ख्याल रखना।


जंजीर को एक राउंड और टाईट किया गया। मैंने ऊपर देखा और खुद से कहा.. "अब यही सही।".. सामने भिड़ लग चुकी थी और मैंने कमर से खंजर निकाल लिया। तभी वो लोग एक साथ हावी हो गए। मै भागकर निकलना तो चाहता था लेकिन मेरे शारीरिक क्षमता उनसे ज्यादा नहीं थी।


फिर से वूल्फ हाउस के दरिंदो के नाखून और दांत मेरे बदन को फ़ाड़ रहे थे। इस बार फाड़ने के साथ-साथ अपने घुसे दातों से मांस का हिस्सा भी फाड़ लेना चाहते थे। ऐसा लग रहा था मै एक लाश हूं जिसे चारो ओर से गिद्धों ने ढक रखा था और मांस नोचकर खा लेना चाह रहे थे।


वहीं दूसरी ओर ओशुन की चींख मेरे हृदय में भय पैदा कर रही था। मैं घुंटनो के बल फर्श पर हाथ टिकाए हुए था। ओशुन की आवाज फिर से मेरे कानो तक पहुंचीं। एक लम्बी और गहरी चींख। मैंने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया। अपनी ताकत को मेहसूस करने लगा। वुल्फ की वो तेज दहाड़ जो आज तक इस घर में नहीं गूंजी, मेरे गले से वो आवाज़ निकल रही थी।


मैंने अपने बदन पर लदे उन मजबूत मांशाहारियों को चिल्लाते हुए ऊपर की ओर धकेला और सब के सब बिखर गए। मेरे तेज और लंबी गूंज के कारन वहां मौजूद बीटा अपना सर नहीं उठा पा रहे थे। सभी अल्फा अपनी जगह खड़े होकर बस मुझे ही घुर रहे थे। हर कोई ये गणना करने की कोशिश कर रहा था कि मै कौन सा वेयरवुल्फ हूं। शरीर उजला, गहरी लाल आंखें और दहाड़ ऐसी के केवल फर्स्ट अल्फा ईडन ही मुझसे नजरे मिला पा रही थी।

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Wah nainu bhai scene pad ke hi rongte khade ho gaye to story to Ghazab hogi💥💥💥💥💥💥
 

Tiger 786

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वेयरवोल्फ और उसके शिकार की अहम जानकारी



वेयरवोल्फ क्या है?

वेयरवोल्फ एक प्रकार का रूप–बदल इंसान होता है जो इंसान से भेड़िया और भेड़िए से इंसान बन सकते हैं। वेयरवोल्फ का जीवन उनके चरित्र का उल्लेख करते हैं। जिनकी मानसिक मनोदशा हिंसक होती है उनमें खून पीने और मांस खाने की तलब उतनी ही ज्यादा होती है।

शेर की तरह ही, एक बार जिन वेयरवॉल्फ को इंसानी मांस और खून मुंह में लग जाता है फिर वह किसी अन्य जानवर का शिकार नही करते। केवल और केवल इंसान का शिकार करते है। भेड़िए की तरह ही वेयरवोल्फ भी झुंड में रहना पसंद करते हैं और उनका झुंड ही उनका परिवार होता है। इनका झुंड की ताकत को ऐसा भी समझा जा सकता है कि एक आम वेयरवोल्फ मुखिया बनने के लिए कितना ही अपने मुखिया पर हमला क्यों न करे, किंतु झुंड का मुखिया कभी पलट कर अपने सदस्य को मारने की कोशिश नही करता। अपने झुंड को बचाने के लिए कोई भी सदस्य किसी भी हद तक जा सकता है। "वूऊऊऊऊऊ" यह एक ऐसा वुल्फ कॉलिंग साउंड है जिसके एक आवाज पर पूरा पैक दौड़ा चला आया। "वूऊऊऊऊऊ" वुल्फ कॉलिंग का वह आवाज भी है जिसे पैक का कोई भी सदस्य कई मिलों दूर से भी सुन सकता है। वहीं जब कोई वेयरवोल्फ बागी होकर झुंड छोड़ता है तब कई बार उनके झुंड के दूसरे वेयरवोल्फ ही उसे मार देते है।


वेयरवोल्फ के रूप, आकर और संरचना.…

इंसानी रूप से जब यह रूप–बदल जीव अपना रूप बदलते है, फिर इनकी लंबाई 7 से 8 फिट तक होती है। इनका चेहरा का आकार बदलकर भेड़िए की तरह दिखने लगता है और उन्ही की तरह इनके 2 बड़े–बड़े, नुकीले दांत दोनो किनारे से निकल आते हैं, जिन्हे फेंग कहते है। किसी भी मांस को यह फेंग फाड़ सकने में सक्षम होते है।


रूप बदलने के बाद जैसे इनके शरीर का आकार लंबा और दैत्यकारी हो जाता है। ठीक उसी के साथ इनकी भुजाएं और पाऊं की लंबाई भी बदल जाती है और पूरे शरीर पर बाल होते है। इनके चौड़े हथेली बड़े से पंजे की तरह दिखते है जिसमे बड़े, मजबूत और धारदार नाखून लगे होते है, जिन्हे क्ला कहते है। एक क्ला की लंबाई 2 इंच से लेकर 6 इंच तक हो सकती है। यह क्ला गेंडे की चमरी को भी आसानी से फाड़ सकती है।

कुछ वेयरवोल्फ पूर्णतः भेड़िया बन जाते हैं जो अपने दोनो पाऊं के जगह 4 पाऊं पर किसी जानवर की तरह खड़े रहते है। इस प्रकार के वेयरवोल्फ को सबसे खतरनाक माना जाता है। इन वेयरवोल्फ की लंबाई 8 से 10 फिट और ऊंचाई से 6 फिट तक होती है। इसे अजय आकार भी माना जाता है जो किसी भी 2 पाऊं पर खड़े वेयरवोल्फ से हार नही सकता।


वेयरवोल्फ के प्रकार.… और उनकी पहचान..

किसी भी झुंड में 2 प्रकार के वेयरवोल्फ होते हैं। सबसे पहले होता है बीटा। किसी भी झुंड में इनकी संख्या ज्यादा होती है और ये काफी आक्रामक प्रवृति के होते है। सबसे पहले शिकार के ओर दौड़ना, खूनी भिडंत करना या किसी भी प्रकार की जंग इन्ही के आक्रमक स्वभाव के वजह से होती है... एक बीटा की पहचान उसकी पीली आंखों से किया जाता है।

इन सभी बीटा को झुंड का मुखिया नियंत्रित करता है, जिन्हे अल्फा कहते है। एक अल्फा काफी हद तक खुद को नियंत्रित रखता है और अपनी मर्जी अनुसार आक्रमक होता है। हां लेकिन किसी एक अल्फा में इतनी ताकत होती है कि वह अकेले ही 20 बीटा का शिकार कर ले। इनकी पहचान इनके लाल आंखों से होती है और हर झुंड का अपना एक अल्फा होता है।

वैसे झुंड में एक हॉफ अल्फा भी होती है। हॉफ अल्फा वह वेयरवोल्फ होते है, जिनमे सारे गुण तो अल्फा के ही होते है, और उनकी आंखें भी लाल ही होती है, परंतु उनमें वह ताकत नही होती जो आम तौर पर एक अल्फा की होनी चाहिए।


बीस्ट वुल्फ या फर्स्ट अल्फा.…

ताकत का नशा वेयरवोल्फ के अंदर भी होता है। हर वेयरवोल्फ ताकत का भूखा होता है और शक्तियां अर्जित करने के लिए उतना ही आक्रमक। एक वेयरवोल्फ, जिस किसी भी दूसरे वेयरवॉल्फ को अपने क्ला (पंजे के बड़े बड़े नाखून) या फेंग से मारता है, फिर उसकी ताकत हासिल कर लेता है। एक लंबे वक्त तक दूसरे अल्फा और बीटा वेयरवोल्फ को मारकर ताकत हासिल करते–करते एक अल्फा बीस्ट अल्फा में बदल जाता है। यह होता एक अल्फा ही है किंतु इसकी चमरी इतनी सख्त हो जाती है जैसे किसी हीरे की चमरी हो। आंख तक को किसी बंदूक की गोली से भेदा नही जा सकता हो।

एक बीस्ट वुल्फ प्रायः 3–4 या उससे अधिक वुल्फ पैक को अपने अंदर रखते है, इसलिए इन्हे फर्स्ट अल्फा भी कहा जाता है। कई अल्फा के ऊपर का एक अल्फा... कुछ पैक फर्स्ट अल्फा के साथ अपनी मर्जी से रहते है तो ज्यादातर पैक को फर्स्ट अल्फा अपने साथ रहने पर मजबूर करता है। जहां अपने झुंड के लिए कोई भी वेयरवोल्फ कुछ भी कर सकता है वहीं फर्स्ट अल्फा या बीस्ट अल्फा थोड़े अलग होते है। यह रहते पैक के साथ ही हैं लेकिन अपने साथ रह रहे कई पैक में से किसी भी अल्फा या बीटा वेयरवोल्फ का शिकार उनके पैक के सामने ही कर लेते है।



वेयरवोल्फ के जानवर नियंत्रण शक्ति (Animal control power) और कुछ खास शक्तियां.....

कोई भी वेयरवोल्फ अपने आंखों से दूसरे जानवर, तथा खुद से निचले स्तर के वेयरवोल्फ को नियंत्रित कर सकता है। जैसे एक अल्फा, अपने बीटा और हॉफ अल्फा को कंट्रोल कर सकता है। वहीं फर्स्ट अल्फा, अल्फा वेयरवोल्फ को कंट्रोल कर सकता है।

हर वेयरवोल्फ में कमाल की सूंघने की शक्ति होती है। गंध की पहचान करने में ये कुत्तों से 100 गुना आगे होते है। वेयरवोल्फ के सूंघने की शक्ति के साथ साथ वह खून में बहने वाले हार्मोंस को महसूस कर किसी के भी भावना को मिलो दूर से महसूस कर सकते हैं। वह किसी के हंसना, रोना, उदास होना इत्यादि भावनाएं।

इन सब के अलावा वेयरवोल्फ हृदय के धड़कन को भी महसूस कर सकते हैं। किसी से बात करते वक्त उसके हृदय की धड़कन में आए परिवर्तन से ये लोग सच और झूठ का भी पता लगा सकते हैं। हां लेकिन यह बात भी सत्य है की ताजा टपकते खून की खुशबू में वेयरवोल्फ का दिमाग इस कदर आकर्षित करता हो, मानो किसी नशेड़ी को महीने दिन बाद उसके नशे के समान का दर्शन हुआ हो। फिर सारे सेंसस बिलकुल गायब। दिमाग या तो अंदर के आकर्षण को काबू करने में लगा रहता है या फिर खुद बेकाबू होकर खून के पास पहुंच जाते हैं और भेड़िया तो हमेशा भूखा ही होता है।


एक वेयरवोल्फ कैसे बनते हैं.…

वेयरवोल्फ बनने के 2 तरीके है। पहले नर और मादा वेयरवोल्फ के मिलन से जो बच्चा पैदा होता है वह वेयरवोल्फ होता है या नही तो किसी अल्फा के बाइट के बीटा वेयरवोल्फ बनता है। हां लेकिन किसी अल्फा द्वारा काटे जाने पर यदि इंसानी शरीर का इम्यून सिस्टम उस बाइट को स्वीकार कर लेता है तभी वह इंसान बीटा वेयरवोल्फ बनता है। यदि किसी इंसान के शरीर का इम्यून सिस्टम बाइट को रिजेक्ट कर देता है तब इंसान वेयरवोल्फ नही बनता अलबत्ता शरीर में कई तरह के केमिकल रिएक्शन के कारण उसकी मौत तक हो सकती है। इसलिए जब भी किसी अल्फा को अपने पैक का विस्तार करना होता है तब वह किसी किशोर अवस्था वाले लड़के या लड़की का चयन करता है जिनका इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग हो।

कुछ अन्य बातें...

१) किसी भी वेयरवोल्फ से उसकी शक्तियां चुराई जा सकती है। एक अल्फा कल बीटा भी हो सकता है।

२) हर वेयरवोल्फ के पास असमान्य रूप से हील होने की क्षमता होती है। बड़ा से बड़ा घाव महज मिनटों में भर जाता है और चोट के निशान भी नही होते।

३) हां लेकिन किसी बीटा को यदि उसका अल्फा चोट देता है फिर वह वेयरवॉल्फ इंसानी क्षमता जैसा सामान्य रूप से ही हिल करता है और उसके निशान हमेशा के लिए रह जाते हैं।

४) जैसे हर वेयरवोल्फ खुद को हिल कर सकता है ठीक उसी प्रकार वह अपनी नब्ज में दूसरों के दर्द और तकलीफ को उतारकर दूसरों को भी हिल कर सकता है। हर किसी वेयरवोल्फ में दूसरों को हिल करने की बहुत ही न्यूनतम क्षमता होती है। हां लेकिन एक ट्रू अल्फा दुनिया का सबसे शानदार हीलर होता है और यदि वो लगातार हिल करके अपने इस गुण को निखरते रहे फिर तो वह क्या न हिल कर दे.…

ट्रु अल्फा:– वेयरवोल्फ की दुनिया में यह नाम काफी दुर्लभ माना जाता है। जहां एक बीटा, भले ही वो 2 वेयरवोल्फ के मिलन से पैदा हुआ बीटा क्यों न हो, अल्फा बनने के लिए या तो कई सारे बीटा को मारते है या फिर उन्हे किसी अल्फा को मारना होता है। वहीं एक ट्रू–अल्फा इन सब से अलग होता है। वह अपनी इच्छा शक्ति से अल्फा बनता है। जो हिल करने के दर्द को लगातार झेलता है। कभी किसी का शिकार नही करता और न ही मांसहारी प्रवृति को अपने ऊपर हावी होने देता। इन्ही सब लागातार परिश्रम और अथक मेहनत के बाद एक ट्रू–अल्फा बनता है जिसकी शक्ति को कोई चुरा नही सकता।

वेयरवोल्फ कड़ी उनके शक्तियों के हिसाब से...

१) फर्स्ट अल्फा या बीस्ट अल्फा
२) ट्रू अल्फा
३) अल्फा
४) वेयरकायोटी (फीमेल फॉक्स शेप शिफ्टर, जो बीटा होती है और इनकी आंखें नीली होती है)
४) हॉफ अल्फा
५) बीटा
६) ओमेगा... (ओमेगा उन वेयरवोल्फ के लिए इस्तमाल होता है जिनका कोई पैक न हो। यह अल्फा या बीटा कोई भी हो सकते हैं। ओमेगा को हमेशा सबसे नीचे माना गया है क्योंकि अकेला वुल्फ सबसे कमजोर होता है, फिर वह अल्फा ही क्यों न हो)


कुछ खास बातें वेयरवोल्फ पैक के.…

वेयरवोल्फ के पैक में होने के एक ही नियम है, वह है ब्लड ओथ... एक अल्फा अपने पैक के सभी वुल्फ से ब्लड ओथ के साथ जुड़ता है। ब्लड पैक से जुड़े वुल्फ अपने मुखिया के ब्लड को, ब्लड ओथ के वक्त महसूस कर सकते है। एक पैक से जुड़े वुल्फ दूसरे पैक में, पैक तोड़ कर जा तो सकता है लेकिन ब्लड ओथ से जुड़े होने के कारण 2 पैक में खूनी भिडंत होनी आम बात है। या कभी–कभी खुशी से जाने भी देते हैं।

वहीं यदि किसी पैक ने दूसरे पैक के मुखिया को मार दिया तब वह हारे हुए पैक का मालिक बन जाता है। उसके बाद जीता हुआ पैक या तो दूसरे पैक के वुल्फ को अपने पैक में सामिल कर ले, या फिर गुलाम बनाकर रखे या फिर चाहे मार ही दे, वह जीते हुए पैक के मुखिया के ऊपर निर्भर करता है।

यदि कोई वुल्फ मरने की स्थिति में हो और उसकी जान कोई और बचाता है, उस परिस्थिति वुल्फ अपने ब्लड ओथ पैक को तोड़ सकता है और जान बचाने के एवज में उसे अपना मुखिया चुन सकता है। २ पैक के बीच शक्ति के वर्चस्व और क्षेत्र को लेकर खूनी भिडंत होनी आम सी बात है।



वेयरवोल्फ को रोकने और मारने के तरीके.....

वेयरवुल्फ मे कुछ बातें असमान्य होती है। कोई भी वेयरवुल्फ कितना भी घायल क्यों ना हो महज चंद मिनट में हील हो जाते है, इसलिए शिकारी उन्हे मारने के लिए खास हथियार का इस्तमाल करते है।

माउंटेन एश या अवरुद्ध भस्म.… हिमालय के क्षेत्र में पाया जानेवाला एक खास फुल जिसका भस्म की रेखा लक्ष्मण रेखा की तरह होती है। माउंटेन एश या अवरुद्ध भस्म 2 अलग दुनिया की दीवार मानी जाती है। अर्थात यदि हम धरती पर है और धरती पर पाए जाने वाले जीव के अलावा कोई अन्य जीव इसके रेखा को पार नही कर सकता है। इसी तरह यदि यह माउंटेन एश या अवरुद्ध भस्म किसी और डायमेंशन या अलग दुनिया में हो तो वहां पृथ्वी का कोई भी जीव इस अवरुद्ध भस्म को पार नही कर सकता।

सुपरनैचुरल के लिए यह माउंटेन एश किसी बुरे सपने की तरह होता है। इसकी रेखा यदि खींच दी गई हो और गलती से कोई सुपरनैचुरल इसकी रेखा को छू भी ले, फिर 4 दिन तक गहरे सदमे में रहता है।


लेथारिया वुलपिना:– वेयरवोल्फ के लिए एक तरह का धीमा जहर जो रक्त कोशिकाओं को तोड़ देता है। यदि समय रहते इलाज नहीं किया गया फिर तो वुल्फ न तो मरते हैं और न ही जीते है बस काली रक्त हर वक्त आंख, कान और नाक से निकलता रहता है। इसके बाद किसी भी वुल्फ को काबू में करना अथवा मारना आसान हो जाता है।

करंट फ्लो:– यूं तो करेंट हर किसी के लिए घातक होता है, लेकिन वेयरवोल्फ जो खुद को हिल कर सकते है, जिन्हे आसानी से नहीं मारा जा सकता, करेंट फ्लो एक विकल्प रहता है।

वोल्फबेन:– ये आम इंसान पर कुछ असर नहीं करती लेकिन यदि यह जहर किसी वुल्फ के सीने तक पहुंच जाता तो उसकी मृत्यु उसी वक़्त हो जाती।

कैनिन मॉडिफाइड वायरस:– कैनिन मॉडिफाइड वायरस को खाने में मिलाकर खिला दिया जाता। कैनिन वायरस कुत्ते में पाया जाना वाला वायरस है, जिसके मॉडिफाइड फॉर्म को एक वुल्फ पर ट्राय किया गया। परिणाम यह हुआ कि ये वायरस शरीर में जाते ही शेप शिफफ्टिंग बंद हो जाता है। लूथरिया वोलापिनी की तरह ही काले रक्त बहने लगते है और एक वुल्फ आम इंसान से ज्यादा कुछ नहीं रहता।


पूर्णिमा, अमावस्या और चंद्रग्रहण:– कोई भी शिकारी वुल्फ का शिकार करने के लिए इन सभी मौकों को भुनता है। जहां एक ओर पूर्णिमा की रात वुल्फ काफी आक्रमक होते है, और उन्हें रक्त और मांस का झांसा देकर फंसाया जा सकता है। वहीं चंद्रग्रहण और अमावस्या तो शिकारियों के लिए लॉटरी से कम नहीं। एक छोटा सा विंडो 10 मिनट से लेकर 1 घंटे के बीच खुलता है, जिसमे हर वेयरवॉल्फ अपनी शक्तियां खोकर आम इंसान की तरह रहता है, और आम इंसान वाले सारे वार कारगर होते हैं।



फिलहाल इतनी जानकारी दी गई है... इसमें जैसे–जैसे कुछ नया आता है, अपडेट होता रहेगा.…
Werewolf ke bare mai achi khasi research ki hogi nainu bhai apne
 
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