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पार्टी करना बहुत जरूरी है भाईWaise hamare foji bhai ke mood per bhi depend karta hai. Kabhi kabhi bhai bhi party kar liya karte hai
पार्टी करना बहुत जरूरी है भाईWaise hamare foji bhai ke mood per bhi depend karta hai. Kabhi kabhi bhai bhi party kar liya karte hai
हम तो मुसाफिर है कभी यहां कभी वहांManish bhai gaon konsa hai aapka
Rama ko blackmail ker raha tha sirf itna batane k liye ki uski beti ko uske hi ashiq yani ki jarnail Singh n mara tha#84
वैध और रमा बिस्तर पर एक दुसरे संग लिपटे पड़े थे. मेरी आँखे ये देख कर हैरान थी की एक बुजुर्ग रमा जैसी औरत की ले रहा था . रमा और वैध के ऐसे सम्बन्ध होगने कोई सोच भी नहीं सकता था . वैध मुझे शुरू से ही कुछ अजीब तो लगता था पर इतना घाघ होगा ये सोचा नहीं था. खैर, मुझे इतंजार करना था . कुछ देर बाद चुदाई ख़त्म हुई और दोनों बिस्तर पर बैठ गए.
रमा- वैध, तुमने वादा किया था मुझसे
वैध- तेरे काम में ही लगा हूँ
रमा- कितने साल बीत गए ये सुनते सुनते तुमने बदले में मेरा जिस्म माँगा था मैंने तुमको वो भी दिया आज तक देती आ रही हूँ और कितना इंतज़ार करना होगा
वैध- जिस्म देकर कोई अहसान नहीं किया तूने , अपनी लाज बचाने का सौदा था वो . ठाकुर से चुद रही थी थोडा मैंने चोद लिया तो क्या हुआ .
रमा- तूने सौदा किया था मुझसे
वैध- रंडिया कब से सौदा करने लगी. तू और वो साली तेरी दोस्त कविता रंडिया ही तो थी .ठाकुर की रंडिया , उसको घर में रखा था जब बाहर चुद रही थी तो घर वालो से क्यों नहीं , मैंने भी चोद लिया तो क्या गुनाह किया .
तो वैध भी चोदता था कविता को. साला हद ठरकी निकला ये साला. हिकारत से मैंने थूका.
रमा- गरीब की आह में आवाज नहीं होती वैध पर जब लगती है न तो बड़ी जोर से लगती है .
वैध- धमकी दे रही है तू मुझे
रमा- मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ की तू अपना वादा निभा
वैध- तो समझ ले की मैंने वादा तोड़ दिया.
रमा- तू ऐसा नहीं कर सकता , तुजे अंजाम भुगतना होगा इसका.
वैध- जानती नहीं तू मेरे ऊपर किसका हाथ है
रमा- जानती हूँ ”
वैध- जानती है तो जब भी बुलाऊ आया कर और चुद कर चुपचाप चली जाया कर
रमा इस से पहले कुछ कहती अन्दर से निकल कर मैं उन दोनों के सामने आकर खड़ा हो गया. दोनों की गांड फट गयी मुझे अचानक से देख कर.
मैं- किसका हाथ है तेरे सर पर वैध
“कुंवर आप यहाँ ” वैध की आँखे बाहर आने को हो गयी .
मैं- ये मत पूछ मैं यहाँ क्यों ये बता की तेरे सर पर किसका हाथ है जो तू रमा से किया अपना वादा नहीं निभा रहा . औरत की चूत इतनी भी सस्ती नहीं की तू चोद ले और बदले में उसे कुछ न दे.
वैध मिमियाने लगा.
मैं- रमा से क्या वादा किया था तूने , मैं सुनना चाहता हूँ और अगर तेरी जुबान तुरुन्त शुरू नहीं हुई तो ये रात बहुत भारी पड़ेगी तुझ पर .
वैध- मैं अभिमानु ठाकुर से कहूँगा की तुम चोरी से मेरे घर में घुसे और मुझे पीटा
मैं- ये कर ले तू पहले, चल भैया के पास अभी चल रमा को तूने चोदा मैं गवाह हूँ वो ही करेंगे तेरा फैसला .
वैध के बदन में बर्फ जम गयी .
मैं- तो बता फिर क्या वादा था वो.
वैध की शकल ऐसी थी की रो ही पड़ेगा . मैंने एक थप्पड़ मारा उसके गाल पर और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी .
वैध- मैंने रमा से वादा किया था की वो अगर मेरे साथ सोएगी तो मैं उसे बता दूंगा की इसकी बेटी को किसने मारा था
वैध की बात ने मुझे भी हिला कर रख दिया था . जिस सवाल को मैं बाहर तलाश रहा था उसे इस चुतिया ने अपने सीने में दफ़न कर रखा था . रमा की आँखों से आंसू बहने लगे , मैं समझ सकता था एक माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी. औरत चाहे जैसी भी हो पर उसका माँ का स्वरूप , उसका दर्जा बहुत बड़ा होता है .
मैं- वादा निभाने की घडी आ गयी है वैध, मैंने भी रमा से एक वादा किया है तू बता मुझे कौन था वो हैवान
वैध ने थूक गटका और बोला- ठाकुर जरनैल सिंह, छोटे ठाकुर ने मारा था रमा की बेटी को .
वैध की आवाज बेशक कमजोर थी पर उसके शब्दों का भार बहुत जायदा था .
मैं- होश में है न तू
वैध- झूठ बोलने का साहस नहीं है मुझमे
चाचा ने अपनी ही प्रेयसी की बेटी का क़त्ल कर दिया था . रमा तो ये सुनकर जैसे पत्थर की ही हो गयी थी .
मैं-रमा तुझसे वादा किया है मैं चाचा को तलाश कर लूँगा तेरी आँखों के सामने ही उसे सजा दूंगा.
रमा की आँखों से झरते आंसुओ के आगे मेरे शब्द कमजोर थे मैं जानता था . दर्द आंसू बन कर बह रहा था . रमा कुछ नहीं बोली , दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल गयी .रह गए हम दोनों
मैं- बड़ा नीच निकला तू वैध. दिल करता है की अभी के अभी तुझे मार दू पर अभी तुझसे कुछ और सवाल करने है जिनके सही सही जवाब चाहिए मुझे, बता भैया के साथ कहाँ जाता है तू .
वैध- कही नहीं जाता मैं
मैं- सुना नहीं तूने
मैंने फिर से एक थप्पड़ मारा.
मैं- बेशक तेरी वफ़ादारी रही होगी भैया से पर आज की रात यदि मुझे तेरा कत्ल करके तेरी रूह से भी अपने जवाब मांगने पड़े न तो भी मैं गुरेज नहीं करूँगा. अब तू सोच ले.
वैध-उनको तलाश है
मैं- किस चीज की तलाश
वैध- ऐसी दवा की जो प्यास को काबू कर सके.
मैं- कैसी प्यास
वैध- रक्त तृष्णा को काबू करना चाहते है वो .
ये रात साली कयामत ही हो गयी थी . भैया को रक्त की प्यास थी . मेरा तो सर ही चकरा गया .
मैं- भैया को रक्त की प्यास , तो क्या भैया ही वो आदमखोर है
वैध- नहीं वो नहीं है .
मैं- तो फिर कौन है किसके लिए भैया को दवा की तलाश है
वैध- नहीं जानता न उन्होंने कभी बताया. अभिमानु को दवाओ का ज्ञान मुझसे भी जायदा है जंगल में अजीब बूटियों की तलाश रहती है उनको वो मुझे सहयोग के लिए ले जाते है .
मैं- क्या कभी भैया ने उस आदमखोर का जिक्र किया तुमसे
वैध- नहीं कभी नहीं .
मैं- कब से जारी है ये तलाश ,
वैध- ठीक तो याद नहीं पर करीब ५-७ साल से वो लगातार इसी प्रयास में लगे है .
मैं- क्या कभी किसी पुरे चाँद की रात को तू भैया के साथ रहा है
वैध- नहीं , कभी नहीं .
मैं- और कोई ऐसी बात जो तुझे लगता है की मुझे बतानी चाहिए
वैध- बस इतना ही
मैं- आज के बाद रमा की तरफ आँख भी उठा कर नहीं देखेगा तू . मुझे मालूम हुआ की इस कमरे में हुई कोई भी बात हमारे सिवा किसी को भी मालूम हुई तो तेरा अंतिम दिन होगा वो.
वैध के घर से निकल तो आया था पर कदमो में जान नहीं बची थी , या तो मेरा भाई ही वो आदमखोर था और वो नहीं था तो फिर किसकी रक्त तृष्णा का इलाज तलाश रहा था वो . आने वाले कल का सोच कर मेरी आत्मा कांप गयी.
Suraj bhan se bhi kuch ziada pata nahi chala or bhayya bhi khul k batane wale nahi#85
चौपाल के पेड़ के निचे बैठे बैठे मैंने सोचा की सूरजभान को पकडूँगा दिन उगते ही . उस से ही शुरू करूँगा अब जो भी होगा किसी का लिहाज नहीं करूँगा. मैंने रमा से वादा किया था की उसकी बेटी के कातिल से मैं बदला लूँगा पर वो कातिल मेरा चाचा था . खून ही खून को बहाने वाला था . सुबह होते ही मैं मलिकपुर पहुँच गया . सूरजभान मुझे रमा की दुकान के पास ही मिल गया . मैं उसके पास गया .मुझे देख कर वो चौंक गया.
सूरजभान- तू यहाँ क्या कर रहा है
मैं- तुझसे ही मिलने आया हूँ
सूरज-मुझसे, भला मुझसे क्या लेना देना तेरा
मैं- कुछ बात करनी थी तुझसे , सिर्फ बात करनी है फिर मैं लौट जाऊंगा.
सूरज ने कुछ पल सोचा फिर अपने कंधे उचकाए और बोला- ठीक है
हम दोनों पास में बड़ी एक बेंच पर बैठ गए .
मैं- देख सूरजभान मैं मानता हूँ की पिछला कुछ वक्त हम दोनों के लिए ठीक नहीं रहा , तेरे मेरे बिच जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था . मेरे कुछ सवाल है जिनके जवाब मैं तुझसे चाहता हूँ
सूरज- मेरी कोई मंशा नहीं थी तुझसे झगडा करने की . खैर जो हुआ सो हुआ बता क्या पूछना चाहता है तू
मैं- क्या वजह है की अभिमानु भैया मुझसे ज्यादा तुझे चाहते है
सूरज- ऐसा नहीं है , वो बस मेरी मदद कर रहे है मेरे व्यापार को शुरू करने में .
मैं- पर किसलिए
सूरज- कभी बताया नहीं पर शायद नंदिनी दीदी ने कहा हो उनसे .
मैं- भैया ने काफी सालो से मलिकपुर की तरफ देखा भी नहीं था फिर ऐसा क्या हुआ की वो लौट आये यहाँ
सूरज- कबीर तेरी मेरी उम्र लगभग एक सी ही है , मुझे क्या मालूम की पहले क्या हुआ था और क्या नहीं .
मैं- तू समझ नहीं रहा है मेरी बात को सूरजभान, भैया कुछ तो ऐसी बात करते होंगे तुझसे जो तू समझ नही पाता होगा. कोई तो बात उनका व्यवहार तू इतने साथ रहता है उनके कुछ तो खटकता होगा तुझे.
सूरज- भैया बहुत अच्छे है , तू भाग वाला है कबीर जो तेरे सर पर बड़े भाई का हाथ है . कभी कभी मुझे जलन होती है तुझसे की काश तेरी जगह मैं होता.
मैं- समझ सकता हूँ नंदिनी भाभी और भैया की प्रेम कहानी मलिकपुर में ही शुरू हुई थी उसके बारे में बता दे कुछ जानता है तो .
सूरज- मैं छोटा था तब पर फिर भी इतना जानता हूँ की पिताजी और तेरे चाचा दोनों इस ब्याह के खिलाफ थे , पिताजी और ठाकुर जरनैल की तब ताजा ताजा लड़ाई हुई थी किसी बात को लेकर . उसी समय अभिमानु भैया और नंदिनी दीदी के प्रेम वाली बात सामने आ गयी थी .
मैं- कोई है जो आसपास के गाँव वालो को मार रहा है ,
सूरज- तलाश में हूँ उसकी
मैंने सूरजभान के कंधे पर हाथ रखा और बोला- हमारे दरमियाँ जो भी हुआ नहीं होना चाहिए था . कुछ बाते समझनी चाहिए थी मुझे .
सूरजभान से मिलकर मुझे इतना समझ आया था की रुडा और चाचा के बीच जो बात हुई थी ठोस ही रही होगी वर्ना चाचा ये जानते हुए भी रुडा किसी ज़माने में राय साहब का दोस्त रहा था रुडा का गिरेबान नहीं पकड़ता . शायद यही बात चाचा और पिताजी के झगडे का कारन रही होगी. दोपहर में खेतो पर भैया मिले .
मैं- आपसे बात करनी थी भैया
भैया- हाँ, पर पहले तू मेरी मालिश कर दे.
मैं- जरुर
भैया ने अपनी शर्ट उतारी और औंधे लेट गए . मैंने तेल लिया भैया की पीठ पर मालिश करने लगा. मैंने देखा की पीठ पर काफी खरोंचे थी .
मैं- ये चोट कैसी पीठ पर
भैया- कीकर काटी थी कांटे लग गए कुछ
मुझे यकीं नहीं हुआ इस बात का क्योंकि भैया ने खेती या पेड़ो का काम मेरे देखते देखते कभी ही किया हो
भैया- कुछ कह रहा था तू .
मैं- भैया गाँव की सब औरते अपने अपने परिवार के साथ राजी ख़ुशी रहती है मुझे चाची की फ़िक्र होती है , वो कहती नहीं पर उनका दुःख समझता हूँ मैं
भैया- जानता हु तू क्या कहना चाहता है छोटे, पर हम कर भी तो नहीं सकते कुछ चाचा न जाने कहाँ गायब हो गया मैं थक गया , हार गया उसे ढूंढते हुए. गाँव शहर जहाँ भी जिसने भी बताया वाही गया उसे तलाशने पर वो नहीं मिला कभी भी .
मैं- अगर पिताजी चाचा से झगडा नहीं करते तो क्या पता चाचा हमारे साथ होते.
भैया- पिताजी चाचा को बहुत चाहते थे
मैं- आप मुझे कितना चाहते है भैया
भैया- तुझे क्या लगता है कितना चाहता हूँ मैं तुझे
मैं- आप मुझे जरा भी नहीं चाहते भैया
भैया ने पीठ मोड़ी और मेरी तरफ होकर बोले- फिरसे बोल जरा
मैं- आप मुझे नहीं चाहते , अगर चाहते तो उस तस्वीर को कमरे से नहीं हटाते मुझे बता देते की वो तस्वीर किसकी है .
भैया- बस इतनी सी बात के लिए अपने भाई के प्यार पर सवाल उठा रहा है तू छोटे
मैं- सवाल तो बहुत है पर आप जवाब नहीं देंगे
भैया- और क्या है वो सवाल
मैं- आप हमेशा से जानते थे न की रमा की बेटी को चाचा ने मारा था .
भैया खामोश से हो गए.
मैं- आप जानते थे न भैया. आप जानते थे फिर भी आपने छिपाया इस बात को
भैया- छिपाता नहीं तो क्या करता मैं छोटे
मैं- आप समझा सकते थे चाचा को रोक सकते थे
भैया- काश मैं कर पाता उसे न जाने किस चीज का जूनून था , रुडा से लड़ाई करके आया था वो . फिर घर आते ही पिताजी से लड़ पड़ा . तेरी भाभी और मेरा ब्याह नहीं होने देना चाहता था वो .
मैं- क्या दिक्कत थी चाचा को इस रिश्ते से
भैया- आजतक नहीं मालूम हुआ किसी को
मैं- जंगल में क्या तलाशते है आप
भैया- मुझे भला क्या जरुरत है कुछ तलाशने की सब कुछ तो है मेरे पास
मैं- पक्का कुछ नहीं तलाशते आप
भैया- साफ साफ बोल न छोटे
मैं- कुछ नहीं तलाशते तो तलाशनी शुरू कर दीजिये भैया , जिस रक्त तृष्णा की दवा आप ढूंढते है न आपके भाई को भी उसकी जरुरत पड़ने वाली है बहुत जल्द.
मैंने अपना राज भैया के सामने खोल दिया था मैं जानता था की मेरा भाई हद से ज्यादा मुझे चाहता है उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाना था मुझे अब ...........................
Bhayya ki tow bolti hi band ho gayi yeh jaanker ki Kabir ko bhi aage jaker woh dawa ki zaroorat padegi jise woh jee jaan laga ker dhoondh raha h#86
मैं- मुझे भी उस दवा की जरुरत पड़ेगी भैया,
मैंने फिर से कहा . भैया की नजरे बस देखती रही मुझ को पर वो कुछ बोले नहीं , एक शब्द. मेरे कान बेकरार थे उनके मुह से कुछ भी सुनने को . पांच, दस, बीस, तीस मिनट बीते भैया कुछ न बोले. शून्य में ताकते रहे वो .
“भैया, कुछ तो बोलिए ” मैं भैया को ख्यालो की दुनिया से धरातल पर लाया.
भैया- रूपांतरण हुआ
मैं- नहीं काबू है अभी तो मेरा खुद पर , पर नहीं जानता कब तक रख पाऊंगा.
भैया- तेरा भाई अभी जिन्दा है , भरोसा रख कुछ नहीं होगा तुझे, मैं होने ही नहीं दूंगा कुछ तुझे. ये बात किसी और को मत बताना. चाहे कुछ भी हो जाये मत बताना.
भैया ने मुझे दिलासा तो दिया था पर उनके चेहरे का तेज खो गया था . भैया वहां से चले गए . मैं खेतो में घुमने चल पड़ा कुछ दूर जाने पर मैंने चंपा को देखा अकेले पगडण्डी पर बैठे हुए.
मैं- यहाँ क्यों बैठी है
चंपा- बस ऐसे ही , तुम बताओ आजकल मिलते ही नहीं न जाने कहाँ गायब रहते हो .
मैं- कुछ जरुरी काम पुरे कर रहा हूँ. तेरे ब्याह के बाद मैं भी शादी करके जीवन शुरू करना चाहता हूँ .
चंपा- तूने बताया नहीं कौन है वो
मैं-सबसे पहले तुझे ही बताया था
चंपा ने इधर उधर देखा और बोली- क्या तू सच में डाकन से ही ब्याह करेगा.
मैं- सच में ही
चंपा- पागल हुआ है तू.
मैं- पागल ही सही , दीवानों को ये जमाना पागल ही समझता है खैर तू बता कैसी कट रही है तेरी.
चंपा- बस जी रही हूँ, जबसे तू रूठा है लगता है बदन का एक हिस्सा टूट गया है .
मैं- मैं कहाँ रूठा तुझसे. मुझे कोई गिला नहीं तुझे , ये तेरी जिन्दगी है इसे तुझे जीना है . तू अपनी मर्जी से जी , जीना भी चाहिए .
चंपा- गलतिया तो इंसानों से ही होती है न
मैं- कोई गलती नहीं मानता मैं इसे. दो पक्षों की रजामंदी है तो कोई गलती नहीं . तू भी अपने दिल से इस मलाल को निकाल दे. जब से तेरी हंसी रूठी है घर की रौनक ही गायब हो गयी . और फिर कहे भी तो किस हक़ से हमाम में तू भी नंगी मैं भी नंगा . रिश्तो की डोर तुझसे भी टूटी मुझसे भी टूटी. तुझे गलत कहा तो मैं सही कैसे हुआ फिर. मेरे मन की ब्यथा मैं तुझे नहीं बता सकता तू अपने मन की बात मुझे नहीं बता सकती . बस इतना जरुर याद रखना कबीर चंपा के साथ पहले भी था और हमेशा रहेगा.
इस से पहले की चंपा की आँखों से आंसू गिर पड़ते मैंने उसके चेहरे को हाथो में लिया और उसके गुलाबी लबो को चूम लिया.
“”दोस्ती में शर्ते नहीं होती, दोस्ती में बंधन नहीं होता. दोस्ती में मजबुरिया नहीं होती दोस्ती बस दोस्ती होती है . ये कभी मत भूलना कबीर की दोस्त है तू. ” मैंने चंपा के सर पर हाथ फेरा .
रिश्तो की इस भूलभुलैया में उलझे हुए मैं इतना तो समझ गया था की अभिमानु भैया के लिए कितनी मुश्किल रही होगी इस परिवार को एक सूत्र में थामे रखना. कुछ देर खेतो पर रहने के बाद मैं रमा के पुराने घर पर पहुँच गया . मजदूरो ने तक़रीबन काम ख़तम कर दिया. घर तैयार था बस रमा को वापिस लाना था यहाँ.
मलिकपुर जाने से पहले मैं कपडे बदलने के लिए घर गया . अपने चौबारे में था ही की भाभी आ गयी .
मैं- भाभी, थोड़ी मदद चाहिए
भाभी- क्या चाहिए बताओ
मैं- कुवे पर एक कमरा बनाना है , भैया हाँ नहीं कह रहे आप कहेंगी तो आपका कहा नहीं टालेंगे वो.
भाभी- उन्होंने बताया था मुझे इस बारे में
मैं- आप तो जानती हो मना लो न भैया को
भाभी- वो कभी नहीं मानेंगे .
मैं- भैया नहीं मानेगे तो तुम मान जाओ भाभी
भाभी- जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो मेरा मानना ना मानना क्या रह गया.
मैं- उस को नहीं छोड़ सकता बड़ी मुश्किल से उसने हाँ की है उसका हाथ छोड़ा तो जमाना रुसवा करेगा मुझे और आगे कोई मोहब्बत नहीं करेगा
भाभी- मोहब्बत , हम्म्म, मोहब्बत कैसी है तुम्हारी मोहब्बत महज कुछ मुलाकातों को मोहब्बत मान बैठे हो तुम . कितने समय से जानते हो तुम उसको. जानते क्या हो तुम उसके बारे में. मानती हूँ की मोहबत में सवाल-जवाब नहीं होते, उंच-नीच नहीं होती. कुछ भी नहीं होता . बस हो जाता है प्रेम. पर प्यारे देवर जी, जिसे हम चाहते है उसके बारे में हमें थोडा बहुत तो मालूम होना चाहिए न . मैं जानती हूँ की तुम उसका साथ नहीं छोड़ोगे पर मेरा एक कहा जरुर मानना,
मैं- जी भाभी
भाभी- जैसा की तुमने कहा की चंपा के ब्याह के अगले दिन ही तुम उससे ब्याह रचाने का सोच रहे हो . तो डाकन से जाकर कहना की जब तुम उसे लेने आओगे तो वो दिन के उजाले में लेने आओगे. होली के दिन जब फाग से ये धरती अम्बर रंग होगा तब तुम उसे लेने आओगे . अंधेरो की रानी उजालो को कैसे संभालती है देखना है मुझे.
मैं- परीक्षा लेना चाहती हो हमारी मोहब्बत की
भाभी- वो आशिकी ही क्या जिसमे इम्तिहान न हो.
मैं- ये भी सही
चोबारे से निचे आया तो आँगन में ही चाची मिल गयी.
चाची- कहाँ भागमभाग रहता है तू आजकल
मैं- कल करना चाहता था पर भाभी सो गयी तुम्हारे पास
चाची- उसके अलावा भी मेरा तुमसे कोई रिश्ता है न
मैं- बिलकुल
चाची- बहुरानी ने बताया की तू ब्याह करने वाला है कम स कम मुझे तो बता ही देता .
मैं- तुम्हे मिलवा ही दूंगा उस से चाची बस कुछ दिनों के बात है .
ये कह कर मैं चलने लगा तो चाची ने मुझे टोका.
चाची- कबीर रुक एक मिनट.
मैं- क्या हुआ
चाची- जेठ जी को तो बता दे कम से कम. बेहतर होगा की लड़की के घर वो ही जाये
मैं- समय आएगा तो बता दूंगा चाची.
हल्का अँधेरा होते होते मैं मलिकपुर पहुँच गया रमा के ठेके पर .
“तुम यहाँ , ” उसने पूछा मुझसे
मैं- तुम्हे लेने आया हूँ.
रमा- कहाँ चलना है
मैं- घर, तुम्हारे घर.
Okyनहीं नहीं नहीं
party to bahut jaroori hai .....पार्टी करना बहुत जरूरी है भाई
ये खूनी कबीर के पूज्य पिताजी 'मर्यादा पुरुषोत्तम' राय साहब हैंआदमखोर कोई कबीर के घर वाला ही करीबी है वर्ना घर के दरवाज़े पर लगा खून कैसे आया वर्ना उसने हर बार कबीर को ही ज़िंदा क्यों छोड़ा और आखरी बार जंगल में पिट पिटा के शांत क्यों बैठा है
Wo diologs tha Nandini bhabhi ka...koi fauji bhai ne thodi hi apni taraf se kaha tha. Bty apun bhi Thakur hi hai..sidha sada bedag pak nirmal... bilkul Gopal ji ki tarah
Thakur hone ki nishani ke arop... Ham par bhi lagoo ho rahe hain....Kya sach me