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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

brego4

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haha super curiously exciting story yaar manish you rock !

Ojha ki to aisi fati jaise ki kisi desert mein saanp dikh gya ho

lekin fir bhi jaise champa ne kabir par shaq kiya aise aur bhi log kar sakte hain may be from kabir's family too. this could be the reason nisha has come to clear doubts from people's mind regarding kabir lekin wo khud kitni paak-saaf hai ye to suspense hi hai ?
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अब तक की कहानी में काफी कुछ रोचक चीज़ें दिखने को मिली हैं। गांव में हो रही हत्याएं यकीनन रहस्यपूर्ण हैं और ऐसे हर मौके पर कबीर का मौजूद होना कहीं न कहीं उसको सबकी नज़रों में संदिग्ध बना रहा है जोकि स्वाभाविक है। डायन निशा का किरदार और उसका रूप सौंदर्य काफी बढ़िया डेवलप किया है आपने। उसके बारे में बस यही कहूंगा की ऐसी डायन मिले तो हम भी दुनिया संसार त्यागने को राजी हो जाएंगे। :D
चाची के साथ कबीर की नजदीकियां और चंपा के साथ उसका संबंध रफ्ता रफ्ता उस तरफ ही बढ़ रहा है जिस तरफ की हम सब उम्मीद किए हुए हैं। भाभी का किरदार अभी साफ सुथरा है, किंतु आगे क्या हो कौन जाने। बहरहाल मौजूदा अध्याय में कबीर को भी कहीं न कहीं लगता है की डायन निशा का हत्याओं से वास्ता है, ये अलग बात है कि उसने इस बात को कबूल नहीं किया और खुद ओझा से मिलने की बात कही। अपनी बात को साबित करते हुए वो ओझा से मिलने आ भी गई, जिसे देख ओझा साहब के चेहरे का रंग उड़ा हुआ नजर आया। अब देखना यही है कि इसके आगे क्या दिलचस्प होता है। बहुत अच्छा लगा फ़ौजी भाई की आपने लिखना जारी रखा और अपने पाठकों के सामने इतनी खूबसूरत कहानी पेश कर दी। उम्मीद है ये क्रम चलता ही रहेगा। :hug:
 

Tiger 786

Well-Known Member
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#20



मैंने देखा की वनदेव के पत्थर के पास चंपा बैठी थी. उन्हें वहां देख कर मेरा दिल धक से रह गया . हम दोनों की नजरे मिली.

मैं- चंपा. पागल हुई है क्या तू, इतनी रात को जंगल में अकेले क्या करने आई तू.

चंपा- तू भी तो अकेला ही आया न .

मैं- मेरी बात और है . मुझे कुछ काम था .

चंपा- मुझे भी कुछ काम था कबीर

मैंने देखा की चंपा की आँखे मुझ पर जमी हुई थी वो बहुत गौर से मेरा विश्लेषण कर रही थी .

मैं- किसी को मालूम हुआ की तू ऐसे जंगल में है कोई क्या सोचेगा.

चंपा- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कबीर.

मेरे मन का चोर समझ रहा था की चंपा ने कही मुझे निशा संग न देख लिया हो . दूसरा उसकी जंगल में उपस्तिथि से मैं घबरा गया था . यहाँ उसे कुछ हो जाता तो ये सोच कर ही मैं कांप उठा था .

मैं- तो अब क्या

चंपा- तू ही बता अब क्या

मैं- मैं क्या बताऊ घर चलते है और क्या

चंपा -कबीर तू कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रहा है न

मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है चंपा

चंपा- गाँव में एक घटना और हुई है इस रात चक्की वाले चंदर पर हमला हुआ , उसकी किस्मत बढ़िया थी जो वो बच गया पर कातिल उसके घोड़े को मार गया .

मैं- गलत हुआ ये . पर जब तुझे मालूम है की राते सुरक्षित नहीं है तो तू क्यों जंगल तक आई .

चंपा- मैं तेरा पीछा करते हुए आई कबीर.

मेरा माथा घूम गया .

मैं- मेरा पीछा पर क्यों चंपा

चंपा- क्योकि जब वो हमलावर चक्की से भागा तो हल्ला हो गया मैंने तुझे जाते हुए देखा और तेरा पीछा करते करते यहाँ तक आ गयी .

मैं- तो तू शक कर रही है मुझ पर

चंपा- मेरी आँखे कुछ कह रही है दिल कुछ और कह रहा है . तुझ पर शक करना खुद पर शक करने जैसा है पर आँखों ने जो देखा वो झुठला भी तो नहीं सकती न मैं और फिर जब जब ये घटनाये हुई है तुम्हारा वहां होना संयोग तो नहीं न . कबीर तू मेरी कसम खा , मुझे विश्वास दिला तेरा इन सब से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं चंपा के पास गया और बोला- मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊ चंपा. बचपन से तू जानती है मुझे . मैंने आजतक एक चींटी को भी नहीं दुःख दिया. तू ही बता मैं क्या करू जिस से तुझे यकीन हो जाये.

चंपा- तो फिर तू अकेला जंगल में क्या कर रहा था .

मैं- उस वजह को तलाश रहा था जिसने हरिया और उन सब को मारा.

चंपा- मुझे कुछ समझ नही आ रहा .

मैं- घर चल पहले. फिर तू चाहे कितने ही सवाल कर लेना . पर मैं फिर कहूँगा की मैं बेकसूर हूँ , आज बेशक सबूत नहीं है मेरे पास पर एक दिन उस कातिल को घसीट कर गाँव वालो के सामने जरुर लेकर आऊंगा.

न चाहते हुए भी मैंने चंपा की आँखों में अविश्वास ही देखा . रस्ते भर वो डरी सी रही उसे लगा होगा की मैं कही उस पर हमला ना कर दू.



मेरी दूसरी चिंता थी की कोई गाँव वाला एक जवान लड़की को मेरे साथ इतनी रात को देखता तो लांछन लगता ही लगता तो पूरी सावधानी से मैंने उसे छोड़ा और फिर सोने चला गया. मैं चाह कर भी चंपा को दोष नहीं दे सकता था उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ये ही समझता .



सुबह थोड़ी देर से उठा तो देखा की चंपा रसोई में थी .

मैं- तू रसोई में भाभी , चाची कहाँ है

चंपा-मंदिर गयी है

मैं- तू अभी तक रात वाली बात पर ही अटकी है क्या

चंपा- पूरी रात नींद नहीं आई मुझे .

मैंने चंपा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में ये पहली बार था जब मैंने उसके साथ ऐसी हरकत की थी . मैंने अपना हाथ उसके सर पर रखा और बोला- मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ चंपा, मैं निर्दोष हूँ . तेरी मेरी दोस्ती की कसम खाकर कहता हूँ मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से तेरी नजरो में गिर जाऊ.

मैंने उसके माथे को चूमा और रसोई से बाहर निकल गया. आँगन में भैया मुगदर फिरा रहे थे.

मैं- इतनी मेहनत सुबह सुबह भैया

भैया- कई दिन हो गए थे . तू भी तो न जाने कहाँ भागता फिरता है

मैं- आओ फिर दो दो हाथ करते है बहुत दिन हुए मेरा बदन भी टुटा टुटा सा है

भैया- तो देर किस बात की चल अखाड़े में

मैं भैया की पीठ पर बैठ गया और हम दोनों अखाड़े में आ गए.

“मजा नहीं आ रहा है लगता है तेरा जोर कम हो गया है ” भैया ने मुझे पटखनी देते हुए कहा .

मैं- थोड़ी देर तो बड़े भाई का लिहाज करना ही है एक दम से हरा दिया तो फिर दिन भर ये कहते फिरोगे की छोटे भाई से तो हारना ही था न

भैया- अच्छा बच्चू आ फिर अबकी बार.

भैया ने फिर से मुझे उठा कर मिटटी में फेंक दिया. इस बार मुझे थोड़ी हैरानी हुई. ताकत में मैं भैया से इतना भी कम नहीं था .अगले दांव में मैंने भैया को काबू में कर लिया पर थोड़ी देर के लिए ही

मैं- क्या बात है भैया आज तो बड़ी फॉर्म में हो

भैया- काफी दिनों बाद खेल रहे है न तो थोडा जोश ज्यादा है .

मैंने हँसते हुए भैया के पैर को पकड़ा और उन्हें लगभग चित ही कर दिया था की पिताजी की आवाज से मेरा ध्यान भटका और फिर बाज़ी भैया ने मार ली.

मैं- क्या पिताजी आप भी न .मैं जीत ही गया था

भैया- फिर कोशिश कर लेना छोटे

पिताजी- इतने बड़े हो गए हो अभी तक नादानी नहीं गयी तुम्हारी .तुम मेरे साथ आओ अभी

पिताजी ने भैया को बुलाया और वो दोनों वहां से चले गए. थोड़ी देर मैंने और कसरत की और फिर मैं भी नहाने चला गया . दोपहर को मैं ओझा के स्थान पर पहुँच गया . मेरे दिल में बेचैनी थी .ओझा मुझे देख कर मुस्कुराया.

मैं- महाराज, आपने गाँव की हद को कील दिया तब भी चक्की वाले पर हमला हुआ.

ओझा- कीलने का काम अभी अपूर्ण है वत्स

मैं- एक बात कहनी थी , वो आज आ रही है तुमसे मिलने

जैसे ही मैंने ओझा को ये बात कही उसकी भ्र्कुतिया तन गयी .

ओझा- चलो तुमने मेरी मेहनत आसान कर दी . गाँव वालो का संकट आज ही दूर हो जायेगा.

ओझा की बात में मुझे उपहास सा लगा. मैं थोडा घबराया भी था की क्या होगा जब निशा और ओझा का सामना होगा. दोपहर थोड़ी और बीती एक समय ऐसा आया जब ओझा और मैं ही उस स्थान पर रह गए थे .

तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान अपनित तरफ खींचा मैंने पलट कर देखा और देखता ही रह गया . निशा स्थान की दहलीज पर खड़ी थी . कसम से उसे उस लम्हे में जो भी देखता कोई मान ही नहीं सकता था की वो एक डायन थी . सफ़ेद साडी में उसे देखना जैसे की स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

“ओझा, मालूम हुआ मुझे की तुझे बड़ी शिद्दत थी मुझसे मुलाकात करने की . ” उसने कहा

उसने अपना पैर दहलीज पर रखा और मैंने देखा ओझा के माथे से पसीना बह चला....

“मैं आ गयी हूँ , जो जो बाते तूने कही है उनको प्रमाणित करने का समय आ गया है ” निशा के शब्दों से वातावरण को थर्राते हुए मैंने महसूस किया.
Nisha ka kirdaar damdar lag raha hai
Awesom update
 

Studxyz

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ये चंपा भोसड़ी वाली लंड की तलाश करती करती अब जासूसी पर उतर आयी है और सीधा कबीर पर ही शक कर रही है उधर वादे के अनुसार निशा डायन जी अपस्रा के रूप में पधार गयी और देखते ही ओझा की ओझागिरी निकल गयी :D

ओझा का तो ये हाल हो गया की गांड लगी फटने तो खैरात लगी बटने :vhappy:
 
Last edited:

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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मैंने देखा की वनदेव के पत्थर के पास चंपा बैठी थी. उन्हें वहां देख कर मेरा दिल धक से रह गया . हम दोनों की नजरे मिली.

मैं- चंपा. पागल हुई है क्या तू, इतनी रात को जंगल में अकेले क्या करने आई तू.

चंपा- तू भी तो अकेला ही आया न .

मैं- मेरी बात और है . मुझे कुछ काम था .

चंपा- मुझे भी कुछ काम था कबीर

मैंने देखा की चंपा की आँखे मुझ पर जमी हुई थी वो बहुत गौर से मेरा विश्लेषण कर रही थी .

मैं- किसी को मालूम हुआ की तू ऐसे जंगल में है कोई क्या सोचेगा.

चंपा- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कबीर.

मेरे मन का चोर समझ रहा था की चंपा ने कही मुझे निशा संग न देख लिया हो . दूसरा उसकी जंगल में उपस्तिथि से मैं घबरा गया था . यहाँ उसे कुछ हो जाता तो ये सोच कर ही मैं कांप उठा था .

मैं- तो अब क्या

चंपा- तू ही बता अब क्या

मैं- मैं क्या बताऊ घर चलते है और क्या

चंपा -कबीर तू कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रहा है न

मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है चंपा

चंपा- गाँव में एक घटना और हुई है इस रात चक्की वाले चंदर पर हमला हुआ , उसकी किस्मत बढ़िया थी जो वो बच गया पर कातिल उसके घोड़े को मार गया .

मैं- गलत हुआ ये . पर जब तुझे मालूम है की राते सुरक्षित नहीं है तो तू क्यों जंगल तक आई .

चंपा- मैं तेरा पीछा करते हुए आई कबीर.

मेरा माथा घूम गया .

मैं- मेरा पीछा पर क्यों चंपा

चंपा- क्योकि जब वो हमलावर चक्की से भागा तो हल्ला हो गया मैंने तुझे जाते हुए देखा और तेरा पीछा करते करते यहाँ तक आ गयी .

मैं- तो तू शक कर रही है मुझ पर

चंपा- मेरी आँखे कुछ कह रही है दिल कुछ और कह रहा है . तुझ पर शक करना खुद पर शक करने जैसा है पर आँखों ने जो देखा वो झुठला भी तो नहीं सकती न मैं और फिर जब जब ये घटनाये हुई है तुम्हारा वहां होना संयोग तो नहीं न . कबीर तू मेरी कसम खा , मुझे विश्वास दिला तेरा इन सब से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं चंपा के पास गया और बोला- मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊ चंपा. बचपन से तू जानती है मुझे . मैंने आजतक एक चींटी को भी नहीं दुःख दिया. तू ही बता मैं क्या करू जिस से तुझे यकीन हो जाये.

चंपा- तो फिर तू अकेला जंगल में क्या कर रहा था .

मैं- उस वजह को तलाश रहा था जिसने हरिया और उन सब को मारा.

चंपा- मुझे कुछ समझ नही आ रहा .

मैं- घर चल पहले. फिर तू चाहे कितने ही सवाल कर लेना . पर मैं फिर कहूँगा की मैं बेकसूर हूँ , आज बेशक सबूत नहीं है मेरे पास पर एक दिन उस कातिल को घसीट कर गाँव वालो के सामने जरुर लेकर आऊंगा.

न चाहते हुए भी मैंने चंपा की आँखों में अविश्वास ही देखा . रस्ते भर वो डरी सी रही उसे लगा होगा की मैं कही उस पर हमला ना कर दू.



मेरी दूसरी चिंता थी की कोई गाँव वाला एक जवान लड़की को मेरे साथ इतनी रात को देखता तो लांछन लगता ही लगता तो पूरी सावधानी से मैंने उसे छोड़ा और फिर सोने चला गया. मैं चाह कर भी चंपा को दोष नहीं दे सकता था उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ये ही समझता .



सुबह थोड़ी देर से उठा तो देखा की चंपा रसोई में थी .

मैं- तू रसोई में भाभी , चाची कहाँ है

चंपा-मंदिर गयी है

मैं- तू अभी तक रात वाली बात पर ही अटकी है क्या

चंपा- पूरी रात नींद नहीं आई मुझे .

मैंने चंपा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में ये पहली बार था जब मैंने उसके साथ ऐसी हरकत की थी . मैंने अपना हाथ उसके सर पर रखा और बोला- मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ चंपा, मैं निर्दोष हूँ . तेरी मेरी दोस्ती की कसम खाकर कहता हूँ मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से तेरी नजरो में गिर जाऊ.

मैंने उसके माथे को चूमा और रसोई से बाहर निकल गया. आँगन में भैया मुगदर फिरा रहे थे.

मैं- इतनी मेहनत सुबह सुबह भैया

भैया- कई दिन हो गए थे . तू भी तो न जाने कहाँ भागता फिरता है

मैं- आओ फिर दो दो हाथ करते है बहुत दिन हुए मेरा बदन भी टुटा टुटा सा है

भैया- तो देर किस बात की चल अखाड़े में

मैं भैया की पीठ पर बैठ गया और हम दोनों अखाड़े में आ गए.

“मजा नहीं आ रहा है लगता है तेरा जोर कम हो गया है ” भैया ने मुझे पटखनी देते हुए कहा .

मैं- थोड़ी देर तो बड़े भाई का लिहाज करना ही है एक दम से हरा दिया तो फिर दिन भर ये कहते फिरोगे की छोटे भाई से तो हारना ही था न

भैया- अच्छा बच्चू आ फिर अबकी बार.

भैया ने फिर से मुझे उठा कर मिटटी में फेंक दिया. इस बार मुझे थोड़ी हैरानी हुई. ताकत में मैं भैया से इतना भी कम नहीं था .अगले दांव में मैंने भैया को काबू में कर लिया पर थोड़ी देर के लिए ही

मैं- क्या बात है भैया आज तो बड़ी फॉर्म में हो

भैया- काफी दिनों बाद खेल रहे है न तो थोडा जोश ज्यादा है .

मैंने हँसते हुए भैया के पैर को पकड़ा और उन्हें लगभग चित ही कर दिया था की पिताजी की आवाज से मेरा ध्यान भटका और फिर बाज़ी भैया ने मार ली.

मैं- क्या पिताजी आप भी न .मैं जीत ही गया था

भैया- फिर कोशिश कर लेना छोटे

पिताजी- इतने बड़े हो गए हो अभी तक नादानी नहीं गयी तुम्हारी .तुम मेरे साथ आओ अभी

पिताजी ने भैया को बुलाया और वो दोनों वहां से चले गए. थोड़ी देर मैंने और कसरत की और फिर मैं भी नहाने चला गया . दोपहर को मैं ओझा के स्थान पर पहुँच गया . मेरे दिल में बेचैनी थी .ओझा मुझे देख कर मुस्कुराया.

मैं- महाराज, आपने गाँव की हद को कील दिया तब भी चक्की वाले पर हमला हुआ.

ओझा- कीलने का काम अभी अपूर्ण है वत्स

मैं- एक बात कहनी थी , वो आज आ रही है तुमसे मिलने

जैसे ही मैंने ओझा को ये बात कही उसकी भ्र्कुतिया तन गयी .

ओझा- चलो तुमने मेरी मेहनत आसान कर दी . गाँव वालो का संकट आज ही दूर हो जायेगा.

ओझा की बात में मुझे उपहास सा लगा. मैं थोडा घबराया भी था की क्या होगा जब निशा और ओझा का सामना होगा. दोपहर थोड़ी और बीती एक समय ऐसा आया जब ओझा और मैं ही उस स्थान पर रह गए थे .

तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान अपनित तरफ खींचा मैंने पलट कर देखा और देखता ही रह गया . निशा स्थान की दहलीज पर खड़ी थी . कसम से उसे उस लम्हे में जो भी देखता कोई मान ही नहीं सकता था की वो एक डायन थी . सफ़ेद साडी में उसे देखना जैसे की स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

“ओझा, मालूम हुआ मुझे की तुझे बड़ी शिद्दत थी मुझसे मुलाकात करने की . ” उसने कहा

उसने अपना पैर दहलीज पर रखा और मैंने देखा ओझा के माथे से पसीना बह चला....

“मैं आ गयी हूँ , जो जो बाते तूने कही है उनको प्रमाणित करने का समय आ गया है ” निशा के शब्दों से वातावरण को थर्राते हुए मैंने महसूस किया.
वाह अब आएगा मज़ा।
ना ही ओझा कुछ साबित कर पाएगा, ना वो कुछ बिगाड सकेगा निशा का। देखते हैक्या होता है आगे।।
गजब का अपडेट
 

Avinashraj

Well-Known Member
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मैंने देखा की वनदेव के पत्थर के पास चंपा बैठी थी. उन्हें वहां देख कर मेरा दिल धक से रह गया . हम दोनों की नजरे मिली.

मैं- चंपा. पागल हुई है क्या तू, इतनी रात को जंगल में अकेले क्या करने आई तू.

चंपा- तू भी तो अकेला ही आया न .

मैं- मेरी बात और है . मुझे कुछ काम था .

चंपा- मुझे भी कुछ काम था कबीर

मैंने देखा की चंपा की आँखे मुझ पर जमी हुई थी वो बहुत गौर से मेरा विश्लेषण कर रही थी .

मैं- किसी को मालूम हुआ की तू ऐसे जंगल में है कोई क्या सोचेगा.

चंपा- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कबीर.

मेरे मन का चोर समझ रहा था की चंपा ने कही मुझे निशा संग न देख लिया हो . दूसरा उसकी जंगल में उपस्तिथि से मैं घबरा गया था . यहाँ उसे कुछ हो जाता तो ये सोच कर ही मैं कांप उठा था .

मैं- तो अब क्या

चंपा- तू ही बता अब क्या

मैं- मैं क्या बताऊ घर चलते है और क्या

चंपा -कबीर तू कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रहा है न

मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है चंपा

चंपा- गाँव में एक घटना और हुई है इस रात चक्की वाले चंदर पर हमला हुआ , उसकी किस्मत बढ़िया थी जो वो बच गया पर कातिल उसके घोड़े को मार गया .

मैं- गलत हुआ ये . पर जब तुझे मालूम है की राते सुरक्षित नहीं है तो तू क्यों जंगल तक आई .

चंपा- मैं तेरा पीछा करते हुए आई कबीर.

मेरा माथा घूम गया .

मैं- मेरा पीछा पर क्यों चंपा

चंपा- क्योकि जब वो हमलावर चक्की से भागा तो हल्ला हो गया मैंने तुझे जाते हुए देखा और तेरा पीछा करते करते यहाँ तक आ गयी .

मैं- तो तू शक कर रही है मुझ पर

चंपा- मेरी आँखे कुछ कह रही है दिल कुछ और कह रहा है . तुझ पर शक करना खुद पर शक करने जैसा है पर आँखों ने जो देखा वो झुठला भी तो नहीं सकती न मैं और फिर जब जब ये घटनाये हुई है तुम्हारा वहां होना संयोग तो नहीं न . कबीर तू मेरी कसम खा , मुझे विश्वास दिला तेरा इन सब से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं चंपा के पास गया और बोला- मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊ चंपा. बचपन से तू जानती है मुझे . मैंने आजतक एक चींटी को भी नहीं दुःख दिया. तू ही बता मैं क्या करू जिस से तुझे यकीन हो जाये.

चंपा- तो फिर तू अकेला जंगल में क्या कर रहा था .

मैं- उस वजह को तलाश रहा था जिसने हरिया और उन सब को मारा.

चंपा- मुझे कुछ समझ नही आ रहा .

मैं- घर चल पहले. फिर तू चाहे कितने ही सवाल कर लेना . पर मैं फिर कहूँगा की मैं बेकसूर हूँ , आज बेशक सबूत नहीं है मेरे पास पर एक दिन उस कातिल को घसीट कर गाँव वालो के सामने जरुर लेकर आऊंगा.

न चाहते हुए भी मैंने चंपा की आँखों में अविश्वास ही देखा . रस्ते भर वो डरी सी रही उसे लगा होगा की मैं कही उस पर हमला ना कर दू.



मेरी दूसरी चिंता थी की कोई गाँव वाला एक जवान लड़की को मेरे साथ इतनी रात को देखता तो लांछन लगता ही लगता तो पूरी सावधानी से मैंने उसे छोड़ा और फिर सोने चला गया. मैं चाह कर भी चंपा को दोष नहीं दे सकता था उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ये ही समझता .



सुबह थोड़ी देर से उठा तो देखा की चंपा रसोई में थी .

मैं- तू रसोई में भाभी , चाची कहाँ है

चंपा-मंदिर गयी है

मैं- तू अभी तक रात वाली बात पर ही अटकी है क्या

चंपा- पूरी रात नींद नहीं आई मुझे .

मैंने चंपा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में ये पहली बार था जब मैंने उसके साथ ऐसी हरकत की थी . मैंने अपना हाथ उसके सर पर रखा और बोला- मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ चंपा, मैं निर्दोष हूँ . तेरी मेरी दोस्ती की कसम खाकर कहता हूँ मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से तेरी नजरो में गिर जाऊ.

मैंने उसके माथे को चूमा और रसोई से बाहर निकल गया. आँगन में भैया मुगदर फिरा रहे थे.

मैं- इतनी मेहनत सुबह सुबह भैया

भैया- कई दिन हो गए थे . तू भी तो न जाने कहाँ भागता फिरता है

मैं- आओ फिर दो दो हाथ करते है बहुत दिन हुए मेरा बदन भी टुटा टुटा सा है

भैया- तो देर किस बात की चल अखाड़े में

मैं भैया की पीठ पर बैठ गया और हम दोनों अखाड़े में आ गए.

“मजा नहीं आ रहा है लगता है तेरा जोर कम हो गया है ” भैया ने मुझे पटखनी देते हुए कहा .

मैं- थोड़ी देर तो बड़े भाई का लिहाज करना ही है एक दम से हरा दिया तो फिर दिन भर ये कहते फिरोगे की छोटे भाई से तो हारना ही था न

भैया- अच्छा बच्चू आ फिर अबकी बार.

भैया ने फिर से मुझे उठा कर मिटटी में फेंक दिया. इस बार मुझे थोड़ी हैरानी हुई. ताकत में मैं भैया से इतना भी कम नहीं था .अगले दांव में मैंने भैया को काबू में कर लिया पर थोड़ी देर के लिए ही

मैं- क्या बात है भैया आज तो बड़ी फॉर्म में हो

भैया- काफी दिनों बाद खेल रहे है न तो थोडा जोश ज्यादा है .

मैंने हँसते हुए भैया के पैर को पकड़ा और उन्हें लगभग चित ही कर दिया था की पिताजी की आवाज से मेरा ध्यान भटका और फिर बाज़ी भैया ने मार ली.

मैं- क्या पिताजी आप भी न .मैं जीत ही गया था

भैया- फिर कोशिश कर लेना छोटे

पिताजी- इतने बड़े हो गए हो अभी तक नादानी नहीं गयी तुम्हारी .तुम मेरे साथ आओ अभी

पिताजी ने भैया को बुलाया और वो दोनों वहां से चले गए. थोड़ी देर मैंने और कसरत की और फिर मैं भी नहाने चला गया . दोपहर को मैं ओझा के स्थान पर पहुँच गया . मेरे दिल में बेचैनी थी .ओझा मुझे देख कर मुस्कुराया.

मैं- महाराज, आपने गाँव की हद को कील दिया तब भी चक्की वाले पर हमला हुआ.

ओझा- कीलने का काम अभी अपूर्ण है वत्स

मैं- एक बात कहनी थी , वो आज आ रही है तुमसे मिलने

जैसे ही मैंने ओझा को ये बात कही उसकी भ्र्कुतिया तन गयी .

ओझा- चलो तुमने मेरी मेहनत आसान कर दी . गाँव वालो का संकट आज ही दूर हो जायेगा.

ओझा की बात में मुझे उपहास सा लगा. मैं थोडा घबराया भी था की क्या होगा जब निशा और ओझा का सामना होगा. दोपहर थोड़ी और बीती एक समय ऐसा आया जब ओझा और मैं ही उस स्थान पर रह गए थे .

तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान अपनित तरफ खींचा मैंने पलट कर देखा और देखता ही रह गया . निशा स्थान की दहलीज पर खड़ी थी . कसम से उसे उस लम्हे में जो भी देखता कोई मान ही नहीं सकता था की वो एक डायन थी . सफ़ेद साडी में उसे देखना जैसे की स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

“ओझा, मालूम हुआ मुझे की तुझे बड़ी शिद्दत थी मुझसे मुलाकात करने की . ” उसने कहा

उसने अपना पैर दहलीज पर रखा और मैंने देखा ओझा के माथे से पसीना बह चला....

“मैं आ गयी हूँ , जो जो बाते तूने कही है उनको प्रमाणित करने का समय आ गया है ” निशा के शब्दों से वातावरण को थर्राते हुए मैंने महसूस किया.
Beautiful update with suspens great update bhai clear kar dete jayada maza aata
 
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