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अब मैं क्या कहूँAur jese aap Nisha ke bare mein bta rahe hein janab woh iss se kamm nhi jyada hi hogi.....![]()
अब मैं क्या कहूँAur jese aap Nisha ke bare mein bta rahe hein janab woh iss se kamm nhi jyada hi hogi.....![]()
बहुत ही धमाकेदार अपडेट है कबीर ने पंच से सही कहा है जैसा करोगे वैसा भरोगे#15
एक झटके से मैं चाची से अलग हो गया और दरवाजे पर गया . देखा की वहां पर भैया और मंगू थे. दोनों को ऐसे देख कर मेरा दिल शंका के मारे विचलित होने लगा.
भैया- छोटे तुझे मेरे साथ चलना होगा अभी .
मैं- जी भैया पर कहाँ
भैया- आ तो सही .
हम तीनो जल्दी ही गाँव के पंच के घर पर थे जहाँ और भी भीड़ थी . औरतो का रोना-धोना चालू था . भैया मुझे एक कमरे में ले गए . जहाँ पर पंच के लड़के को एक चारपाई पर बाँधा हुआ था .और वो उस पकड़ को तोड़ने के लिए पूरा जोर लगा रहा था . अपने हाथ -पाँव मार रहा था मैंने देखा की उसकी गर्दन कुछ टेढ़ी हो गयी थी . आँखे पथरा सी गयी थी और हाथो से वो कुछ अजीब इशारे कर रहा था .
“न, मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है , ” मैंने भैया से कहा .
भैया - कोई भी नहीं कह रहा है की इसकी ये हालत तूने की है . तू बस इस को देख . मंगू कहता है की हरिया भी ऐसे ही हालात में तुम्हे मिला था .
मैं-इसे सबसे पहले किसने देखा था और कब .
भैया- थोड़ी देर पहले ही इसे लेकर आये थे . गाँव के कुछ लड़के जंगल में गए थे लकडिया काटने के लिए. ये न जाने कब उनसे अलग हो गया. बाकि लडको ने जब तलाश किया तो ये झाड़ियो में मिला.
मैंने पञ्च को देखा जिसकी शक्ल ऐसी थी की रोने ही वाला हो .
मैं- पंच साहब, तुम्हे दुःख है क्योंकि ये तुम्हारा बेटा है . इसकी नासाज हालत देख कर तुम्हारा कलेजा जल रहा होगा. पर सब कर्मो के लेख है. दो दिन पहले तुमने दो लाशो के लिए फरमान सुनाया था . ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती पर उसकी मार बहुत तेज लगती है . देखो आज तुम्हारा लड़का मौत की दहलीज पर है और तुम, तुम्हारा ये समाज. तुम्हारे बनाये वो तमाम रीती-रिवाज जिनकी दुहाई तुम पंचायत में दे रहे थे .उनमे से एक भी बात तुम्हारे काम नहीं आ रही अब.
पंच ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए और बोला- कुंवर, कुछ भी करके मेरे बेटे को बचा लो . मेरे जीवन के एकमात्र आस यही है .
मैं- मेरे बस में होता तो मैं न हरिया को मरने देता न रामलाल को. अगर इसका शिकारी भी वो ही है जो हरिया का था तो इसे तुरंत शहर के हॉस्पिटल में ले जाना होगा. इसके बदन का खून बहुत जल्दी सूखेगा. खून की जरुरत होगी इसे. कुछ दिनों का समय मिल जायेगा इसे. तब तक तुम लोग प्रयास करना क्या मालूम कोई मिल जाये जो मदद कर दे इसकी.
भैया- मंगू , तुंरत मेरी गाड़ी लेकर आओ . साथ ही एक-दो और साधनों का जुगाड़ करो . इसे तुरंत शहर ले जायेंगे.
बेशक पंच के प्रति मेरे मन में कड़वाहट भरी थी पर उसके लड़के के लिए मैं द्रवित था .पर मैं करता भी क्या हरिया के लिए भी मैं कहाँ कुछ कर आया था . जल्दी ही सारी व्यवस्था हो गयी . भैया ने मुझे घर जाने को कहा क्योंकि वो खुद शहर जा रहे थे .
मेरे लिए यही वो मौका था वो करने का जो मैंने सोचा था . जैसे ही वो लोग शहर के लिए निकले. मैं भी पैदल ही निकल पड़ा अपनी मंजिल की तरफ. एक बार फिर मैं काले मंदिर जा रहा था क्योंकि ये जो भी हो रहा था इसके बारे में अगर कोई बता सकती थी तो वो थी सिर्फ डायन.
गाँव की हद से बाहर आते ही ठण्ड दुगुनी हो गयी जिसे रोकने के लिए मेरी ये जाकेट काफी नहीं थी . मुझे याद आया की मेरा गर्म कम्बल खेतो पर ही रह गया था . वहां जाने का मतलब था की देर में और देर होना और अगर घर जाता दूसरा कम्बल लाने तो फिर चाची या भाभी हजार सवाल करती. तो मैंने पहले खेतो पर जाने का सोचा.
ठिठुरते हुए , गीली पगडण्डी पर पैर घसीटते हुए मैं खेतो की तरफ मुड गया. मैंने दूर से ही जलते अलाव की आंच को देख लिया.
“इस वक्त कौन होगा वहां पर. शायद कोई मजदुर या फिर कोई और ” सोचते हुए मैं कुवे पर बने कमरे के पास पहुंचा तो मैंने जो देखा मेरा दिल इतनी जोर से उछला की धडकनों ने कुछ पलो के लिए हार ही मान ली हो.
मेरी जमीन पर मेरे कुवे पर वो थी . उसकी आमद मेरी जगह पर होना मुझे अन्दर तक हिला गया . नोवेम्बर की ठण्ड में मैं पसीने-पसीने हो गया और होता भी क्यों नहीं. सारी दुनिया से बेखबर अपने आप में मगन वो आंच जलाये उस पर मांस के टुकड़े भून रही थी . चाचड़ चाचड़ करती आंच में मांस की खुसबू भरी हुई थी .
“तुम , तुम यहाँ ” मैंने थूक गटकते हुए उस से पूछा
उसने मेरी तरफ देखा और फिर से मांस के एक टुकड़े को भूनते हुए बेफिक्री से बोली- तुम मेरे घर बिना बताये जा सकते हो और मैं चली आई तो ये सवाल . इस्तकबाल का तो जमाना ही नहीं रहा .
मैं- मुझे उम्मीद नहीं थी तुमसे यूँ ऐसे अचानक से मुलाकात हो जाएगी.
वो- उम्मीद तो हमें भी नहीं थी की भरी दोपहरी में तुम चोरी से हमारे घर छान-बिन करने पहुँच जाओगे.
मैं- तो तुम्हे मालूम हो गया . पर कैसे.
वो- हमारा घर है वो .
मैं- माफ़ी चाहूँगा पर तुमसे मिलना बड़ा जरुरी था मेरे लिए. और संयोग देखो मुलाकात हुई भी तो कैसे.
वो- बैठो, आंच ताप लो आज ठण्ड बहुत बरस रही है .
मैं- ठीक हूँ मैं
वो- बैठ भी जाओ, इतने तकल्लुफ की जरुरत नहीं है तुम्हारी ही जमीन है
उसके ताने ने मुझे चोट पहुचाई. मैं अलाव के पास बैठ गया .
वो- मांस खाओगे, एक दम ताजा है कुछ देर पहले ही शिकार किया है . उसने भुने हुए कलेजे का टुकड़ा मेरी तरफ किया.
मैं- तुम यहाँ कैसे आई.
वो- कितना सोचते हो तुम . अरे इधर पास में ही शिकार किया था मैंने ये जगह बेहतर लगी तो इधर ही दावत सजा दी. तुम भी मेरे साथ शामिल हो जाओ. और हाँ , किसी इन्सान का मांस नहीं है . बकरे का है .थोडा इमांन हममे भी बाकी है .
मैं- इमांन की बात करती हो. तो फिर निर्दोष मासूमो को क्यों मार रही हो.
वो- मैंने तुमसे उस दिन भी कहा था मैं किसी को नहीं मारती. सब कुछ नियति करती है .
मैं- नियति का मोहरा हो क्या तुम
वो- मैं तो बस मैं हूँ.
मैं- तो ये प्यास क्यों. इतने जानवर है जंगल में तो फिर इन्सान ही क्यों .
वो- क्योंकि इंसानों का स्वाद ही अलग है .
मैं- तुमने मुझसे कहा था की जब तुम्हे रक्त तृष्णा होगी तो तुम रक्त पीने मेरे पास आओगी . मैं तुम्हे कहता हूँ अगर तुम गांववालों से दूर रहोगी तो जब भी तुम्हारा मन करेगा. तुम्हारे हर बुलावे पर मैं अपना रक्त तुम्हे अर्पण करूँगा.
मेरी बात सुनकर वो हंसने लगी. उसकी आवाज दूर दूर तक गूंजने लगी.
वो- सौदेबाजी करना चाहते हो मुझ से. तुम्हारे रक्त का क्या ही मोल मेरे लिए वो तो हमारी पहली मुलाकात में ही गिरवी हो गया मेरे पास.
मैं- तो फिर गाँव वाले कब तक ऐसे ही शिकार होकर मरते रहेंगे.
वो-नियती ही जाने इसके बारे में तो .
जी भरकर उसने अपना भोजन किया और फिर बाकि बचे हुए को फेंक दिया. उसके होंठ रक्त से सने थे. आंखो में ऐसा ठंडा खौफ पर उन खौफ भरी आँखों में ही मैंने अपने दिल को डूबता हुआ महसूस किया.
वो- दुबारा कभी भी अकेले मेरे घर नहीं जाना. मैं दुबारा नहीं कहूँगी.
मैं- मेरा मन मुझे बार बार वहां ले जायेगा. तुम रोक नहीं पाओगी
वो-ऐसी भी क्या चाहत एक डायन से मिलने की
मैं- आज तो नहीं मालूम पर एक दिन इस का जवाब जरुर दूंगा तुम्हे.
वो- ठीक है पर हमारी मुलाकात दिन के उजालो में कभी नहीं होगी. मैं तुम्हे कुछ राते बताती हूँ हम केवल तभी मिलेंगे. और यदि तुमने नियम तोडा तो फिर मैं तुम्हारे घर पर दस्तक दूंगी . जिसकी भरपाई तुम कर नहीं पाओगे.
उसने मुझे वो खास राते बताई. जिन्हें मैंने ध्यान से जेहन में बसा लिया.
मैं- इस खूबसूरत डायन का नाम क्या है
वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली- किसी ज़माने में लोग निशा कहते थे .
जैसे ही उसने इतना कहा मेरे सीने में खलबली मच गयी.
निशा का बर्ताव अजीब है उसे भी कबीर से मिलने की लालसा रहती है उसने कहा की वो खुद हैरान है इन दो मुलाकातों के बारे में सोच कर वही भाभी और निशा का किरदार सीधे दिल में उतर जाता है भाभी कबीर का ख्याल रखती है उसे रात के बारे में पूछती है लेकिन वह कुछ नहीं बताता है वही चंपा का किरदार नटखट चुलबुली शरारती है वह कबीर को चाहती हैं लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है उसे शायद कल वाले मांस के टुकड़े देखकर उल्टी आ रही हैसीने के जख्म जो ताजा थे दर्द उतर आया उनमे. न चाहते हुए भी मेरे होंठो से आह निकल गयी.
निशा- क्या हुआ
मैं- कुछ नहीं चोट का दर्द है ठीक हो जायेगा.
निशा- मैं चलती हूँ
मैं- मैं भी , क्या तुम मोड़ तक मेरे साथ चलना पसंद करोगी.
निशा- ठीक है
खामोश कदमो से वो मेरे बराबर चल रही थी . काले घाघरे-चोली में उसके खुले बाल . सच कहूँ तो दिल चाहता था की उसे बस देखता रहूँ. इतनी प्यारी लग रही थी वो की नजर हटे ही नहीं उस चेहरे से.
निशा- क्या सोच रहा है
मैं- यही की किसी दोपहर , किसी पनघट पर तेरी-मेरी मुलाकात हो . मैं ओक लगाऊ तू मटके को मेरी तरफ करे. तेरी खनकती चूडियो से वो पनघट में हलचल मच जाये. तेरे आँचल से अपने भीगे चेहरे को पोंछु मैं .
निशा ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- ये भरम पालने का क्या फायदा . मैं खुद हैरान हूँ , इन दो मुलाकातों के बारे में सोच कर .
मैं- तू क्यों सोचती है जब तूने सब कुछ नियति पर ही छोड़ा हुआ है तो इस मामले को भी नियति के हवाले कर दे.
निशा- हम दोनों की अपनी अपनी हदे है . मेरी हद ये जंगल है . तेरी हद वो गाँव है . इनके बीच जो फासला है वो बना रहना चाहिए इसी में सबकी नेकी है.
बातो ही बातो में हम उस रस्ते पर आ गए थे जहाँ से एक तरफ उसे जाना था तो एक तरफ मुझे. उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा मैंने उसे तब तक देखा जब तक की धुंध ने उसे लील नहीं लिया. पूरा गाँव सुनसान पड़ा था , यहाँ तक की कुत्ते भी दुबके हुए थे. मैंने चाची को जगाना उचित नहीं समझा और अपने चोबारे की तरफ जाने लगा. मैंने देखा की भाभी के कमरे की बत्ती जल रही थी . जैसे ही मैं सीढिया चढ़ने लगा भाभी ने मुझे पकड़ लिया.
भाभी- तो कैसी रही आवारागर्दी के लिए एक और रात
मैं- आप सोयी नहीं अभी तक
भाभी- जिस घर के दो जवान बेटे घर से बाहर हो तो किसी को तो नींद नहीं आयेगी न.
मैं- हमेशा आप पकड़ लेती है मुझे
भाभी- तुम्हे, तुमसे ज्यादा जानती हूँ .
मैं- सो तो है
भाभी- चूँकि तुम शहर नहीं गए तो तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए ये बताने में की इतनी रात तक तुम कहाँ थे .तमाम वो सम्भावनाये जिन पर मैं विचार कर सकती थी मैंने तलाश ली है .
मैं- भाभी आप जैसा सोच रही है वैसा बिलकुल भी नहीं है
भाभी- तो फिर बताओ न मुझे की आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसमे एक जवान लड़का रात रात भर जब और दुनिया रजाई में दुबकी ठण्ड से जूझ रही है , लड़का इन ठिठुरती रातो में घूम रहा है . ऐसी क्या वजह है जो तुम्हे राय साहब की भी परवाह नहीं है . मैं बहुत उत्सुक हूँ उस वजह को जानने के लिए.
मैं-सच कहूँ तो भाभी इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है
भाभी- क्या मेरा देवर गाँव की किसी लड़की या औरत के सम्पर्क में है
मैं- नहीं भाभी बिलकुल नहीं
भाभी- अगर ऐसा हुआ तो मैं उसे तलाश लुंगी देवर जी, और फिर जो होगा उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार होगा तो सिर्फ तुम
मैंने भाभी के चरणों को हाथ लगाया और चोबारे में घुस गया . बिस्तर पर लेटे लेटे मैं बस निशा के बारे में ही सोच रहा था . जब भी आँखे बंद करता वो चेहरा मेरी नींद चुरा लेता. और होता भी क्यों न जब वो जाग रही थी तो मुझे भला नींद कैसे आती.
सुबह मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और फिर खेतो के लिए घर से निकलने लगा. मैंने देखा की पिताजी घर पर नहीं थे . रस्ते में मुझे चंपा मिल गयी.
“रोक रोक साइकिल ” उसने कहा
मैं- क्या काम है जल्दी बोल
चंपा- खेतो पर जा रहा है तो मुझे बिठा ले चल
मैं- पैदल आ जाना तू मुझे जल्दी है
चंपा- मुझे भी जल्दी है , बिठा ले इतने भी क्या नखरे तेरे
मैं- ठीक है
चंपा- आगे बैठूंगी.
मैं- तू भी न , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा
चंपा- यहाँ से लेकर खेतो तक न के बराबर लोग ही मिलेंगे हमें रस्ते में
चंपा से जिद करने का मतलब था खुद के सर में हथोडा मारना तो मैंने चुपचाप उसे आगे डंडे पर बिठा लिया. और साइकिल चलाने लगा.
मैं- डंडे पर क्या आराम मिलेगा तुझे पीछे आराम से बैठती.
मेरे पैर उसकी जांघो और कुलहो पर रगड़ खा रहे थे .
चंपा- डंडे पर ही तो बैठने का मजा है निर्मोही पर तू है की कुछ समझता ही नहीं .
मैं- ऐसी बाते करेगी तो यही उतार दूंगा.
चंपा - मेरी ऐसी बातो से तेरा डंडा झटके खाता है . वैसे तेरा डंडा है मजेदार
मैं- तेरे होने वाले पति का भी ऐसा ही होगा उस पर दिन रात बैठे रहना कोई नहीं रोकेगा तुझे.
चंपा- अभी तो बस तू और मैं है न
मैं- यही तो मुश्किल है
चंपा- चल छोड़ फिर ये बता पंच के लड़के को क्या हुआ है
मैं- मुझे क्या मालूम
चंपा- कल रात को एक काकी कह रही थी की हो न हो कुंवर पर ही किसी का साया है , कुंवर ही ये सारे हमले कर रहा है .
मैं- फिर तो तूने गलती की इस सुनसान में मैंने तुझ पर हमला कर दिया तो कौन बचाएगा तुझे.
चम्पा- मैं तो तरस रही हूँ उस दिन के लिए की तू कब मुझ पर चढ़ जाये.
उसकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .
चंपा- वैसे कबीर, अगर कभी ऐसा हमला मुझ पर हो गया तो तू क्या करेगा .
मैं- शुभ शुभ बोल चंपा. दुआ कर वो दिन कभी न आये. कभी न आये. तू हमारा परिवार है
चंपा - मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी .
बाते करते करते हम खेतो पर आ गए. मैंने साइकिल रोकी और पगडण्डी से होते हुए कुवे पर बने कमरे तक आ पहुंचे . जैसे हम उस जगह पर आये जहाँ मैं कल निशा के साथ था वहां कुछ ऐसा देखा की चंपा खुद को रोक नहीं पायी और उलटिया करने लगी................
ThanksJabardast ek ek update romanch or suspense se bhara hua
Wowww beautiful#19
मैं- नियति शायद यही चाहती थी .
मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.
ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.
ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.
मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .
ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.
मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .
ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.
मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.
ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.
निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .
“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे
मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी
भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों
मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए
भाभी- किसलिए
मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.
भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो
मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .
भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.
मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता
भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी
मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .
पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.
एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .
“कबीर ” बोली वो
कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .
“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .
निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे
मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने
निशा- आओ फिर
निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .
मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे
वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता
मैं- फिर भी ,
निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए
मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .
निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए
मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं
निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का
मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .
निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.
मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .
निशा खामोश रही .
मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू
निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.
मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .
निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं
मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.
मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.
रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .
“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .
“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा
निशा - कबीर तू जा यहाँ से
मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .
निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर
मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.
निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या
मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.
निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर
मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ
निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.
मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .
निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................
Wah manish bhai suspense hi suspense ..................
आज फिर एक बच्चे की लाश मिली वो भी इस स्तिति की कोई जानवर ही ऐशा कर सकता है कबीर ने अंदाजा लगाया की ये काम निशा ने किया है मुझे भी यही लगता है क्यो की वो भी एक दिल की खा रही थी क्या कबीर कोई बड़ी मुसीबत में फंस सकता है भाभी बहुत डरी हुई है#17
मैंने देखा की इधर उधर मांस के बड़े बड़े टुकड़े फैले हुए थे . निशा अपने निशाँ छोड़ गयी थी . मैंने चंपा को पानी लाकर दिया और तमाम उन टुकडो को वहां से साफ़ करके दूर फेंक दिया.
मैं- अब ठीक है
चंपा- हाँ पर ये किसने किया
मैं- कोई शिकारी जानवर रहा होगा. तू आराम कर मैं तब तक काम देखता हूँ . तबियत ठीक लगे तो आ जाना .
मैंने खेतो का दूर तक चक्कर लगाया . बीच बीच से क्यारी-धोरो को भी देखा . जो पगडण्डी कटी थी उसे सुधारा. एक हिस्से में काफी घने पेड़ थी जिनकी बरसो से कटाई नहीं हुई थी मैंने सोचा की इनकी कटाई से इस हिस्से को धुप भी मिलेगी और लकडिया भी .
जब मैं वापिस लौटा तो देखा की भाभी आई हुई थी .
मैं- अरे भाभी आप क्यों आई इधर
भाभी- क्यों मैं नहीं आ सकती क्या
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था .
भाभी- सोचा आज खाना मैं ले चलती हूँ , वैसे भी बहुत दिनों से घर से बाहर निकलना हुआ नहीं मेरा.
चंपा- बढ़िया किया भाभी .
भाभी मुस्कुराई और बोली- खाना खा लो तुम लोग.
खाना खाने के बाद चंपा कुछ सब्जिया तोड़ने चली गयी रह गए हम दोनों .
भाभी- मैं घूमना चाहती हूँ
मैं- जो आपका दिल करे. जहाँ तक जाना है जाइये
मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर लेट गया कमर सीढ़ी करने के लिए. पर मेरा दिल नहीं लग रहा था पल पल हर पल मुझ पर एक नशा चढ़ रहा था निशा का नशा . कल रात इसी जगह पर हम दोनों अलाव के पास बैठ कर बाते कर रहे थे . चारपाई के किनारे को चुमते हुए मुझे बस निशा का सुरूर ही था .
“हाय देखो कैसे चारपाई को चूम रहा है जिसे चूमना चाहिए उसे तो देखता भी नहीं ” चंपा ने मुझे घूरते हुए कहा.
मैं थोडा असहज हो गया.
मैं- तू कब आयी
वो- मैं या विदेश से आई हूँ इधर ही तो थी दो मिनट सब्जी लाने क्या गयी देखो हालत क्या हो गयी तुम्हारी
मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही
चंपा - हाय रे फूटी किस्मत मेरी. भाभी कहाँ है
मैं- इधर ही होंगी बोल रही थी की खेतो का चक्कर लगा कर आती हूँ .
चंपा - सुन .बड़े भैया या राय साहब से कह कर कीटनाशक मंगवा लेना शहर से .सब्जियों की कई क्यारिया ख़राब हो रही है . नुक्सान होगा इस बार .
मैं- तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे
वो- ये मेरा काम नहीं है सब्जिया तू और मंगू उगाते हो . तुम्हे मालूम होना चाहिए. आजकल तुम्हारा ध्यान न जाने कहा है
मैं- कोई बात कल ही शहर चला जाऊँगा.
चंपा- मुझे भी ले चल अपने साथ . बहुत दिन हुए
मैं- चाची या भाभी के साथ जाया कर न
वो- तेरे साथ अलग ही मजा रहेगा.
मैं- और उस मजे की सजा क्या होगी.
चंपा - किस बात की सजा
मैं- तू समझती क्यों नहीं
हम बाते कर ही रहे थे की एकाएक भाभी के चीखने की आवाजे आने लगी. हम दोनों तुरंत भाभी की तरफ भागे. भाभी खेतो के बीच खड़ी खड़ी कांप रही थी .
“भाभी, भाभी क्या हुआ ” मैंने भाभी के पास जाकर कहा . भाभी ने सामने की दिशा में अपना हाथ हिलाया . मैंने आगे आकर देखा सरसों में एक बच्चे की लाश पड़ी थी जिसे बुरी तरह से उधेडा गया था. खून बिलकुल ताजा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. भाभी खौफ के मारे मेरे सीने से लग गयी .
मैं दिलासा भी देता तो क्या देता. एक मासूम को किसी ने उधेड़ कर रख दिया था . हम भाभी को कमरे के पास लेकर आये और थोडा पानी दिया . भाभी ने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं देखा था तो वो बहुत ज्यादा घबरा गयी थी .
मैं- चंपा भाभी का ख्याल रखो
मैंने चंपा से कह तो दिया था पर वो बेचारी खुद उबकाई ले रही थी . खैर मैंने कस्सी उठाई और उस मासूम की लाश की तरफ चल दिया. उसे ऐसे छोड़ता तो कोई और जानवर नाश करता उसके टुकडो का. मने एक गड्ढा खोदा और उस नन्ही सी जान को दफना दिया. मेरे दिल में आग लगी थी . आँखों के सामने तमाम वो द्रश्य आ रहे थे जब निशा अलाव की आंच में मांस के टुकड़े भुन रही थी . अब मुझे समझ आया वो टुकड़े किसी बकरे के नहीं उस मासूम के थे.
मेरे पैर कांप रहे थे. जी घबरा रहा था पर मुझे चंपा और भाभी को भी संभालना था . मैंने फिर हाथ पैर धोये और भाभी की गाड़ी लेकर हम लोग घर आ गए. भाभी को बुखार आ गया था वैध ने कुछ दवाई दी . जिसके असर से भाभी को नींद सी आ गयी. मैंने चंपा को हिदायत दे दी थी की घर में किसी को भी इस घटना के बारे में न बताये.
निशा ने मुझे बताया कुछ था और हो कुछ और रहा था . मैंने उस पर विश्वास किया था . एक डायन पर मैंने विश्वास किया था . पर उसके लिए विश्वास के भला क्या मायने थे . क्या उसके और मेरे दरमियान जो भी बाते हुई थी उनका कुछ नहीं था सिवाय किसी छलावे के. पिछले कुछ दिनों में मैं लगातार लाशे ही देख रहा था . कहीं ये सब मुझ को पागल तो नहीं कर रहा था . छज्जे पर खड़े खड़े मैं ये सब ही सोच रहा था की तभी मैंने पिताजी की गाड़ी को अन्दर आते हुए देखा. गाड़ी से उतरते हुए वो कुछ थके से लग रहे थे . वो सीधा अपने कमरे में चले गए.
मैंने पिताजी के दरवाजे पर दस्तक दी.
पिताजी- अन्दर आ जाओ
मैं अन्दर गया . पिताजी कुर्सी पर बैठे थे .
मैं- आपसे कुछ बात करनी थी .
पिताजी- कहो
मैंने पिताजी को सारी बात बताई की खेतो पर क्या हुआ था .
पिताजी- ये पहली घटना नहीं है इस तरह की , आसपास के गाँवो से लगतार शिकायते आई है हमारे पास . पिछले कुछ महीनो से भेड-बकरिया. घोड़े -मुर्गे गायब हो रहे थे . ठण्ड के मौसम में अक्सर जंगली जानवर गाँवों का रुख कर लेते है पर इस पूर्णिमा से हमले जानवरों पर नहीं इंसानों पर हो रहे है . कुछ गाँवो के मोजिज लोगो से मिल कर हमने सुरक्षा के जरुरी उपाय किये भी पर वो सब नाकाफी है .
मैं- ऐसा चलता रहा तो लोगो का घर से निकलना बंद ही हो जायेगा.
पिताजी खेती का इलाका खुला है जंगल के पास है . इतने बड़े इलाके की तार बंदी न मुमकिन है
मैं- लोगो की टोली उस तरफ भी अगर चोकिदारी करे रातो में तो
पिताजी- नहीं , इन हालात में ये भी मुमकिन नहीं
मैं- तो फिर क्या इलाज इस समस्या का
पिताजी- दरअसल अभी तो मालूम भी नहीं की असल में ये क्या समस्या है. फिर भी हमने एक ओझा को बुलवाया है कल वो पहुँच जायेगा फिर देखते है वो क्या बताता है क्या करता है .
मै वापिस से भाभी के कमरे में आ गया . चाची ने मुझे गर्म चाय का कप दिया . कुछ घूंटो ने मुझे बड़ी राहत दी थी . भाभी के चेहरे पर नींद में भी डर सा था . दूसरी तरफ शहर से भी कोई खबर नहीं आई थी अभी तक. मैंने सोच लिया था की अगर निशा का हाथ है इन सब में तो मैं निशा को रंगे हाथ ही पकडूँगा तब देखूंगा वो क्या कहेगी मुझसे. सोचते सोचते मेरी भी आँख लगी
कबीर को दरवाजा खुला हुआ ही मिलता है ऐसा पहली बार नही हुआ है ये कई बार हुआ है अगर दरवाजा बंद करके सोते हैं तो फिर दरवाजा कोन खुला रखता है क्या घर में कोई आता जाता है या फिर घर में से कोई है जिनका संबंध इन मौत से हो घर में खून मिला है इसका मतलब तो साफ है कि मारने वाला इस घर में आया जरूर है लेकिन क्यू और कोन है इसका पता नही है अभी??? ओझा वाले बाबा को पता है कि कोन कर रह है उसने बताया साथ ही उसने कबीर से कहा कि उसने उसे क्यू छोड़ दिया??? अब देखते हैं इस का उतर क्या मिलता है और वो कोन है???#18
आँख खुली तो मैंने देखा की मेरे ऊपर कम्बल पड़ा था. निचे चाची और चंपा सो रही थी . मेरी नजर घडी पर पड़ी रात के दो बज रहे थे . मुझे महसूस हुआ की खाना खाना है . चंपा और चाची दोनों गहरी नींद में सोयी पड़ी थी . उन्हें जगाना उचित नहीं था पर किसी न किसी को तो रसोई खोलनी ही थी . मैं रसोई में गया और अपने लिए खाना निकाला . मैं वापिस ऊपर आ ही रहा था की कुछ आवाजो ने मेरा ध्यान खींच लिया. मैंने देखा हमारा दरवाजा हमेशा की तरह खुला ही पड़ा था .
“इसे बंद क्यों नहीं करते ” मैंने अपने आप से कहा और थाली को रख कर दरवाजे की तरफ चल दिया.मैं दरवाजे को बंद कर ही रहा था की कुछ गीला गीला सा मेरे हाथ पर लगा. ओस समझ कर मैंने उसे अपनी शर्ट से साफ़ किया और फिर कुण्डी लगा कर वापिस आ गया. मैंने शांति से अपना खाना खाया और अपने कमरे में आकर सो गया.
अगला दिन बड़ा खूबसूरत था , धुंध इतनी घनी थी की मुझे छज्जे से निचे आँगन नहीं दिख रहा था . ओस की वजह से सब कुछ इतना गीला गीला था की जैसे रात में बारिश हुई हो. मैं निचे गया तो चाची से मुलाकात हो गयी .
चाची- सही समय पर उठे हो चाय बन ही रही है .
मैं- हाथ-मुह धोकर आता हूँ
मैंने शाल को उतार कर चाची को दिया और नलके की तरफ जा ही रहा था की चाची ने मुझे टोक दिया.
चाची- ये तेरी शर्ट पर क्या लगा है
मैं- क्या लगा है
कहते हुए मैंने देखा इ शर्ट पर लाल निशान थे . तभी मुझे ध्यान आया की शर्ट से मैंने रात को हाथ साफ़ किया था . मेरे दिमाग में घंटिया सी बजने लगी. चाची मुझे ही देख रही थी .
मैं- कुछ लग गया होगा.
मैं तुरंत दरवाजे के पास गया देखा की कुण्डी पर भी सुर्ख लाल रंग चिपका हुआ था और मुझे कोई ताज्जुब नहीं था ये समझने में की ये खून है. मेरा माथा ठनका दरवाजे पर खून कैसे आया जबकि किसी को भी कोई चोट नहीं लगी थी . सोचते हुए मैंने दरवाजे को साफ़ किया और शर्ट को धोने के लिए डाल दी.
चाय पीते हुए मेरी आँखे एक बार फिर से चाची की कटीली जवानी को निहार रही थी कौन कह सकता था की ये पैंतीस बरस की ये गदराई हुई औरत ना विधवा थी न सुहागन. खिले हुए ताजा गुलाब पर जैसे ओस पूरी रात बरसी हो चाची का यौवन ठीक वैसा ही था .
चाची- क्या देख रहा है ऐसे
मैं- बड़ी प्यारी लग रही हो तुम.
चाची- ये तो तू रोज ही कहता है
मैं- सच ही तो कहता हूँ मैं
चाची- मेरी तारीफ छोड़ और जा भाभी के लिए नाश्ता ले जा. बहुरानी से कहना की उसे निचे आने की जरुरत नहीं है वो आराम ही करे.
मैं नाश्ता लेकर गया . भाभी खिड़की से बाहर देख रही थी .
भाभी- देवर जी तुम ये क्यों लाये
मैं- सारे घर का भार आप पर हैं , इतना तो मेरा भी फर्ज है न भाभी .
भाभी मुस्कुराई.
मैं- अब तबियत कैसी है
भाभी- बेहतर है .
तभी बाहर से गाड़ी की आवाज आई . मैंने देखा भैया सहर से लौट आये थे तो मैं दौड़ के उनके पास गया .
मैं- लड़का कैसा है भैया
भैया- डॉक्टर के पास कोई तोड़ नहीं है . खून की बोतले चढ़ती है और उसका शरीर निचोड़ लेता है . डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए है . पिताजी ने सुचना भिजवाई थी की कोई ओझा आने वाला है तो हम लड़के को गाँव ले आये है वो ही अब कुछ समाधान करेगा.
मैं- आपको क्या लगता है
भैया- मेरे आदमियों ने बहुत तलाश की जंगल में . आसपास के तमाम इलाको में पर हाथ खाली ही रहा . रात को आस पास के गाँवो के मोजिज लोगो की सभा होगी जिसमे देखेंगे की क्या निष्कर्ष निकलता है . मैं बहुत थका हु, खाने को कुछ है तो ले आओ मैं सोऊंगा थोड़ी देर.
दोपहर होते होते ओझा भी गाँव आ पहुंचा . अपने दो चेलो संग. पिताजी ने उसके रहने-सहने की व्यवस्था पहले ही करवा दी थी . ओझा ने जलपान करने के बाद अपना स्थान बना लिया . एक छोटी सी पूजा करने के बाद उसने अपनी कार्यवाही शुरू की . न जाने क्या पढ़ रहा था वो कभी इधर देखता कभी उधर फिर उसने पंच के लड़के को देखा . उसकी नब्ज़ टटोली उसकी काली पड़ गयी आँखों में देखा और शांत हो गया.
“कुछ तो बोलिए महाराज ” पंच ने आग्रह किया
ओझा- ये लड़का तीन दिन के भीतर मर जायेगा.
ओझा ने जैसे ही कहा पंच के परिवार का रोना-पीटना शुरू हो गया. माहौल गमजदा हो गया .
पिताजी- महराज कोई तो उपाय होगा.
ओझा- इस मुर्ख ने स्वयं अपना खून अर्पित किया है . इसने वचन दिया है रक्त की बूँद बूँददेने का वचन की पालना हो रही है .
ओझा की बात तमाम लोगो के सर के ऊपर से गयी.
“किसको रक्त देने का वचन दिया है इसने ” मैंने ओझा से पूछा
ओझा ने जवाब देने में बहुत समय लिया तब तक उसकी नजरे मुझ पर जमी रही फिर वो बोला-लालच, कामना व्यक्ति के सबसे बड़े शत्रु है . इसके हालात भी कुछ ऐसे रहे होंगे की ये सच और झूठ का फर्क नहीं कर पाया और जीवन-मृत्यु के फेर में उलझ गया .
मैं- पर किसको वचन दिया इसने ये तो बताओ
ओझा-धीरज रखो. समय आने पर मालूम हो जायेगा. मैं इसकी मृत्यु नहीं टाल पाऊंगा . कोई भी नहीं टाल पायेगा पर मैं गाँव की सुरक्षा के उपाय जरुर करूँगा. गाँव वाले मेरे बनाये नियमो का पालन करेंगे तो मेरा वचन है सुरक्षित रहेंगे. मैं गाँव की हद को कील दूंगा.
गाँव वालो को ओझा के आश्वासन ने राहत तो मिली पर लड़के मी मौत हो ही जाएगी इस से दुःख भी था . पिताजी ने कुछ समय बाद सबको जाने के लिए कहा और खुद भी चले गए मैं भी वहां से निकल ही रहा था की ओझा ने मुझे रोक लिया.
ओझा- रुको कुंवर
मैं- जी कहिये.
ओझा- उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया...............