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Adultery सपना या हकीकत [ INCEST + ADULT ]

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DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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कुछ मेडिकल इमर्जेंसी की वजह से इन दिनों व्यस्त हूं दोस्तो और परेशान भी 🥲
समय मिलने पर अपडेट दिया जायेगा और सभी को सूचित किया जाएगा ।
तब तक के लिए क्षमा प्रार्थी हूं
🙏

 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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UPDATE 98

नाना के निचे जाते ही मै मा के पास गया जो इस समय नाना के ही कपड़े धुल रही थी ।

मै कपडे निकाल कर सिर्फ अंडरवियर मे अन्दर बाथरूम मे घुसा और पीछे से मा को दबोच लिया

मा कसमसा कर - अह्ह्ह क्या कर रहा है बेटा,, बाऊजी है यही

मै अंडरवियर मे तने लण्ड को मा की पेतिकोट के उपर से ही उनकी गाड मे धंसाते हुए - मा वो तो निचे गये

मा - हा फिर हट मुझे काम करना है
मै फटाक से दरवाजा बंद किया और अपना अंडरवियर निकाल दिया।

मा अभी भी झुकी हुई बालटी मे कपडे डुबो कर उसे गार कर दुसरी बालटी मे रख रही थी ।
मै बहुत ही उत्तेजित था तो मैने झुक कर मा का पेतिकोट एक झटके मे उठाया और उनकी गोरी फैली हुई तरबुज सी गाड़ मेरे सामने थी
मैने मा के कूल्हो को थामा और लण्ड को उनके चुतडो के पाटो पर फिराया जिससे मा सिहर गयी और जिस पोजीशन मे थी वही रुक गयी

मा - अह्ह्ह बेटा रुक जा ना
मै अपने लण्ड की चमडी खिच कर सुपाडे को मा के चुत के मुहाने पर दबाकर - बहुत मन कर रहा है मा अह्ह्ह

मा - ओह्ह बेटा अह्ह्ह्ह
मै एक जोर का धक्का पेला और लण्ड जगह बनाते हुए सीधा मा के भोसड़े मे घुस गया और मै उन्के कूल्हो को थामे धक्के पेलने लगा ।

मा ने सामने हाथ बढ़ा कर टोटी को पकड़ ली लेकिन मेरे धक्के से उनको दिक्कत हो रही थी।

मै धक्के लगाते हुए - मा कूछ बात आगे बढ़ी आपकी और नाना की

मा कसमसा कर - तू ये अभी क्यू पुछ रहा है ,,,अभी चोद ले मुझे अह्ह्ह मै कबसे गरम हो रही थी अह्ह्ह बेटा

मै समझ गया कि कुछ मजेदार जरुर हुआ है दोनो के बीच और उसके लिये मा पूरी तसल्ली से ही मुझे बतायेगी

मैने मा को झुकाये हुए ही लन्ड़ को तेजी से उनकी खुली चुत मे गचागच पेलता रहा ,,, थोडी देर हमारी ये चुदाई सभा चली और मै झड़ने के करीब था और मा ने मेरा माल अपने मुह मे लिया ।


फिर मै और मा एक साथ नहा कर निचे आये । मैने अपने कपडे पहने थे जबकी मा ने ब्लाउज पेतिकोट

निचे हाल मे उतर कर देखा तो नाना कुछ फ़ाईल लेके बैठे है और उनकी नजर मा पर पड़ी तो वो मुस्कुराये और बदले मे मा ने भी एक शर्माहट भरी मुस्कान दी ।

नाना की नजर मा के चुचो की घाटी और पेतिकोट के साइड के कट पर थी जहा से मा के कुल्हे साफ दिख रहे थे । जिसका असर मुझे नाना की धोती मे साफ नजर आ रहा था ।

फिर मा ने उसी अवस्था मे मेरे और नाना के लिए खाना लगाया । फिर मै और नाना खाना खा कर निकल गये ।

सबसे बडी बात थी कि नाना इस उम्र मे भी खुद गाडी चलाते थे ।

मै भी उनके साथ आगे की सीट पर बैठा था , आज नाना काफी खुश लग रहे थे

मै - क्या बात है नाना जी बडे खुश लग रहे है

नाना किसी याद से उभर कर - अह हा खुश तो हू ही ,, अब इतने समय बाद अपने नाती के साथ कही घूमने जा रहा हू ।

मै - वैसे कहा जा रहे है हम लोग
नाना - बस यही पास के गाव गोपालपुर मे मुखिया के घर , मेरे पुराने मित्र रहे है , उन्ही के यहा

मै चुप रहा और गाडी से बाहर खेत खलिहानों को देख रहा था ।
गोपालपुर काफी नामी गिरामी गाव था और वहा के मुखिया जयराज ठाकुर थे । जो नाना के पुराने मित्र थे और
उनका काफी समय प्रतापपुर यानी मेरे नाना के गाव मे ही बिता है ।
रास्ते ने नाना ने बताया कि उनकी पहली बीवी की मृत्यु के बाद उन्होने दुसरी शादी की एक कम उम्र के लड़की से जो अपने माता पिता की एक्लौती संतान थी और कुछ साल बाद वो प्रतापपुर छोड कर यहा गोपालपुर चले आये ।

कुछ किलोमीटर की यात्रा कर हम गोपालपुर गाव पहुचे और गाव मे थोड़ी ही दुर घूसने पर जयराज ठाकुर की हवेली थी जो असल मे उन्के स्वर्गीय सास ससुर की थी ।

हवेली काफी बडी थी और काम करने वालो की कमी नही थी ।
लेकिन फिर भी उस हिसाब से ज्यादा लोग दिखाई नही पड रहे थे जैसा नाना जी ने ब्ताया था । काम करने वाले और कुछ गार्ड बस

नाना जी हवेली के कम्पाउंड मे गाडी पार्क की और हाल की ओर बढ़ गये वही फ़ाईल लेके जो सुबह घर पर देख रहे थे । मै भी उनके पीछे पीछे चला गया ।

हाल मे पहुच कर नाना जी और मै बैठे रहे और थोड़ी ही देर मे एक नौकर पानी देके गया ।

मै - नाना जी मुझे तो बहुत अजीब लग रहा है यहा
नाना हस कर - अरे इसे अपना घर समझो और अभी जयराज से मिलवा दूँगा तो तुम कभी भी यहा आ सकते हो । हर साल सावन मे गोपालपुर मे बहुत जोरदार और बड़ा मेला लगता है ।


मै - ओह्ह
मै बड़ी जिज्ञासा और उत्सुकता से हवेली मे नजर घुमा रहा था ।

थोडी देर बाद एक नौकर आया और नाना को अपने साथ ले गया ।

नाना बहुत ही खुश नजर आ रहे थे और मुझे बोल के गये - कि मै यही आस पास ही रहू और चाहू तो पीछे बागिचे की ओर जा सकता हू ।

मै हा मे सर हिलाया और मोबाईल मे लग गया ।
हवेली के साथ कुछ अच्छी सेल्फी भी निकाली । थोड़ी देर मे हाल मे एकदम चुप्पी सी थी । सारे लोग कही गायब से थे कोई कही नजर नही आ रहा था उपर से मैने पुरानी बड़ी हवेलियो के बारे बहुत भूतिया खिस्से सुने थे तो फटने लगी मेरी ।

मैने एक दो नजर उस जिने की ओर मारा जहा से नाना उपर की ओर गये थे । मगर कोई नजर नही आ रहा था तो मैने सोचा कि क्यू ना पीछे बागिचो मे चला जाऊ


मै उठा और ताकझाक करते हुए एक गलियारे से पीछे की ओर चला गया ।
ताजी हवा मे सास लेते ही मन की सारी शन्काये दुर हो गयी और मै ऐसे ही टहलने लगा ।

पीछे बगिचे के दुसरे छोर पर काफ़ी सारे आदमी काम कर रहे थे और खेतो मे भी लोगो को काम करते देख मन को और भी अच्छा लगा ।

तभी मेरी नजर हवेली के पीछे से लगी एक सीधी पर गयी जो उपर एक बाल्किनी नुमा जगह पर खुलती थी और वही से अन्दर जाने का रास्ता भी था ।

रास्ते मे मुझे कोई रुचि नही थी , मुझे उस बाल्किनी से बागिचे को देखने की तलब हुई । मै फटाफट उस सीढी से उपर वाल्किनी पर गया

वाह क्या नजारा था , दुर तक खुले खेत और बगीचे की रंग बिरंगी हरियाली दिख रही थी ।
मैने जेब से फोन निकाला और तस्वीरे लेना शुरु कर दी और कुछ सेल्फी भी लिये । इसी दौरान मुझे बाल्किनी के गैलरी से कुछ बर्तन के गिरने की आवाजे आई । लेकिन गैलरी मे काफी अन्धेरा सा था ।

मुझे थोडा डर लगा लेकिन पूरी गैलरी खाली सी थी ,,,और उस पार से आ रही रोशनी मे उस 3 फिट चौडी गैलरी से मै चुप चाप जाने लगा । तभी मेरे पैर से कुछ टकराया ,और आवाज से पता चला कि ये तो लकड़ी का दण्डा है । मैने उसे बिना छेड़े आगे बढ़ गया

धीरे धीरे करके मै उसके मुहाने तक आया तो देखा कि मै तो उपर की मन्जिल पर हू और यहा से निचे का खुला हाल साफ देखा जा सकता था ।

मुझे खुशी हुई और राहत भी फिर मुझे निचे जाने के रास्ते का ध्यान आया मगर कोई रास्ता नजर नही आ रहा था ।
हर जगह पर्दे लगे थे और जिस अंधरे से मै आया उधर वापस जाने की हिम्मत नही थी मेरी ।

मै धिरे धीरे एक एक पर्दा हटाता हुआ देखता ,,कोई बंद दरवाजा होता तो कोई उपर जाने की सीढि । ना जाने किस मूर्ख ने इसका डिजाइन किया होगा कि तीन उपर जाने की सीढि मिली लेकिन निचे जाने की एक भी नही ।

मै एक पुरा चक्कर लगाने के करिब था फिर मैने निचे हाल मे देखा और अन्दाजा लगाया कि नाना कहा से उपर आए थे । ये ट्रीक काम की और मुझे निचे जाने वाली सीढ़ी दिखी जोकि बाहर से ही दरवाजे की तरह बंद थी ।

मुझे कुछ अजीब सा लगा कि आखिर इस जीने के दरवाजे को बंद करने की जरुरत क्यू थी
मुझे नाना की फ़िकर हुई कि वो कहा है

मै वापस से एक एक कमरे की खिडकी चेक की और तभी मुझे एक खिडकी से कमरे में कुछ खुस्फुसाहत सुनाई दी ,, मगर अन्दर के पर्दे की वजह से मै कुछ देख नही पा रहा था । पर्दे भी खिडकी से थोड़ी दुरी पर थे जिसे मै ऊँगली से खिसका भी नही सकता था

मुझे इरिटेटिंग सी होने लगी इन पर्दो से । तभी मुझे कुछ ध्यान आया और मै सरपट उसी गैलरी की ओर गया जहा से आया था और इस बार मेरा डर कम हुआ क्योकि मैने मह्सूस कर लिया था कि उपर मेरे अलावा कोई नही है । मैने मोबाईल टॉर्च जलाया और तभी मुझे आगे ही थोडी दुर पर वो डण्डा नजर आया जिससे मै टकराया था । मैने लपक कर उस 2 फीट के करीब के दण्डे की उठाया जिस्पे काफी धुल जमी थी ,,
मैने उसे हौले से गैलरी की दिवार पर झाडा और वापस दबे पाव उसी खिडकी तक चला गया ।

मुझे अभी भी हिचक और डर लग रहा था मगर जिज्ञासा बहुत थी कि आखिर ऐसी कौन सी गुप्त बातचीत चल रही थी यहा

मै धीरे से लकड़ी को खिडकी से अंडर डाला और एक साइड से पर्दा मे लकड़ी डाल कर उसे दुसरी तरफ किया मगर लकड़ी से पर्दा सरक गया । मैने फिर से कोसिस की और इस बार पर्दे को लकड़ी के सिरे मे घुमाकर थोडा सा खीचा और मुझे अन्दर कमरे की झलक मिली और मेरी आंखे चौंधिया गयी मानो

एक बार मैने अपनी आंखो को मला और वापस देखा तो अंदर नाना जी क़्वीन साइज़ बेड पर पुरे नंगे घुटने के बल खडे होकर एक गोरी महिला को झुकाये चोद रहे है । उनकी वो फ़ाईल एक टेबल पर वैसी ही बंद पड़ी है मानो खोली तक ना गयी हो ।

मेरी तो थूक गटकने की नौबत आ गई थी
क्या गजब की कसी हुई औरत थी ,,
और सबसे बढ़ कर ये कि आखिर ये कौन थी जिसे नाना चोद रहे थे,,,और जयराज से मिलने वाले थे तो वो कहा था ।

मेरी हालात खराब हो रही थी और लण्ड में कसाव बढ़ रहा था , मगर उससे भी ज्यादा बेचैनी हो रही थी , मै रुक नही सकता था ।
इसिलिए मै फटाफट उसी अंधरि गैलरी से निकल गया बागीचे ,, थोडा सुकून मिला लेकिन उलझन अब भी थी ।

थोडी देर बाद मे एक नौकर मुझे बुलाने के लिए आया और मै वापस हाल मे आया तो देखा कि वही औरत और नाना हाल मे बैठे हुए थे ।

नाना मुझे देख कर उस औरत की ओर इशारा करते हुए - इनसे मिलो बेटा ये पूनम भाभी है ,,मतलब जयराज की बीवी

मै हाथ जोड उनको नमस्ते किया , तो वो बोली

पूनम मुस्कुरा कर - अरे नही बेटा बैठो ,,
काफी मिठास थी उस औरत की बोली मे ,, उम्र भी मुस्किल से 40 के करीब थी ,,, मगर ठकुराईन का नाना से चक्कर समझ से परे था ।

थोडी देर बातचित चली तो पता चला कि आज जयराज ठाकुर है ही नही और वो दो दिन बाद आयेगा ।
फिर हमने उनसे विदा लिये और निकल गये घर के लिए

गाडी मे

पिछ्ले दिनो मे मै नाना से काफी खुल गया था तो मुझे यही मौका सही लगा ,

मै - नाना ये पूनम जी तो काफी जवान है अभी
नाना हस के - हा बेटा, दरअसल जयराज की दुसरी शादी के वक़्त उसकी उम्र 40 से ज्यादा थी और ये तब 20 की रही होगी


मै हस कर - हा तभी इस उम्र मे रोज नये मर्दो की जरूरत लगती है उनको हिहिहिही


नाना चौक कर अचानक से गाडी का ब्रेक मारा- क्या मतलब
मै हस कर - मुझसे मत छिपायिये नाना जी ,,मैने देखा था थोडी देर पहले उपर कमरे में आपको पूनम जी के साथ

गाडी फिर से चलने लगी
नाना मुस्कुराए - तो तू जासूसी करता है क्या
मैने फिर नाना को पूरी बात बतायी कि कैसे कैसे मै उपर पहुच गया और वो सब देख पाया ।


नाना - मतलब तू भी कम नही है ,,,हा
मै ह्स कर - आखिर नाती किसका हू हिहिहिही
हम दोनो खुब हसे

मै - तब नाना जी इसके बारे मे नही बताया था आपने
नाना ह्स कर - हा ये बात पुरानी है बेटा करीब 18 साल पहले कि उस समय ठकुराइन को आये 2 साल हो गये थे लेकिन जयराज उसकी आकांक्षाओ पर खरा नही उतर पाया ,,,आये दिन ठकुराईन के नये नये यारो के किससे सुनाई देते थे तो एक दिन मौका देख कर हमने भी हाथ साफ किया ,,,,,

मै ह्स कर - और फिर

नाना - लेकिन जयराज को काफी जिल्लत झेलनी पड़ती थी इसिलिए उसने 15 साल पहले प्रतापपुर छोड दिया और यहा आ गया


मै ह्स कर - मगर आपने ठकुराईन को नही छोडा हिहिही

नाना - अरे नही , ऐसा कुछ नही है ,, तब से लेके आज यही नसीब हुआ है 15 साल बाद ,,,वो भी मेरी पहल पर


मै अचरज से - आपकी पहल पर मतलब
नाना - तु तो जान ही रहा है कि मुझे 3 दिनो से काफी उत्तेजना हो रही थी और फिर कल से घर पर और भी दिक्कत महसूस हो रही थी । इसिलिए मैने आज पहल दी ठकुराइन से


मै - वो सब तो ठीक है लेकिन घर मे कैसी दिक्कत हो रही आपको नाना जी

नाना थोडा झेपे - अब क्या बताऊ बेटा,,

मै - आप निश्चिंत होकर बोलिए ,,आखिर आपकी सम्स्या मेरी समसया है

नाना - नही बेटा बात वो नही है ,,, बात कुछ और है फिर पता नही क्या सोचेगा तू मेरे बारे मे


मै उखडे हुए भाव से - अब आप मेरी चिन्ता बढ़ा रहे हैं नाना जी बताईए क्या बाता है ।
नाना जी ने एक खाली जगह पर सड़क के किनारे गाडी रोकि

मै - हा अब बोलिए क्या बात है
नाना झिझक कर - दरअसल बेटा,,कल रात मे मुझे बहुत उत्तेजना मह्सूस हो रही थी और निद नही आ रही थी तो इसिलिए मै हाल मे आकर बैठ गया था ।
फिर थोड़ा हाल मे टहला और अपने कमरे मे जाने को हुआ तो मेरी नजर तेरे मम्मी -पापा के कमरे के खुले दरवाजे पर गयी ।

मुझे लगा कि वो लोग अभी जाग रहे होगे तो चलो थोडा बात कर लू फिर सो जाऊंगा
मगर मै दरवाजे पर जाकर कुछ बोलता , उससे पहले ही मुझे कमरे मे तेरे मम्मी पापा सम्भोग करते हुए दिखे , शायद वो लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गये थे ।

मै ह्स कर - ओह्ह कोई बात नही नाना ,इसमे आपकी कोई गलती नही है ,,मैने भी कभी कभी गलती से देख लिया है मम्मी पापा को वो सब करते हुए ।

नाना ह्स कर - तू बहुत नटखट है और भोला है रे ,, तू तो देख कर निकल गया होगा ना ,,,मगर मै वही रुक गया था और मुझे उत्तेजना होने लगी थी ।

मै हस कर - मतलब सुबह मे मम्मी ने जो दाग पर पोछा मारा , वो आपने किया था ह्हिहिहिही

नाना चुप रहे ।
मै - फिर आगे
नाना - उसके बाद मुझे रात भर अच्छे से नीद नही आई थी और आज सुबह मे छत पर फिर से तेरी मम्मी को गलत कपड़ो मे देख लिया था


मै - ओह्ह्ह ,,,कोई बात नही , मै ये सब मम्मी को नही बताऊंगा ,,,वैसे भी रात मे खुला देख लिया तो खैर सुबह कपडे मे थी वो हिहिही

नाना मुस्कुरा कर - तू बहुत बदमाश है ,,,
मै - आपसे कम
नाना हस कर - क्यू
मै हस कर - मै थोडी दूसरो की मा को देख कर वो सब मह्सूस करता हू हिहिहीही

हम दोनो हसे और फिर घर के लिए निकल गये
घर पहुच कर पता चला कि मा , गीता बबिता को लिवा कर दुकान गयी है और वही से अनुज उनको घुमाने ले जायेगा ।

फिर सोनल ने हमे पानी दिया और नाना आराम करने के लिये गेस्टरूम मे गये और मै भी मा के पास निकल गया ।
दुकान पहुच कर देखा तो मा ब्यस्त थी । मैने भी उनकी मदद की और फिर हम खाली हुए ।
मैने मा को आज के अनुभव के बारे मे बताया और ये भी कि नाना ने कल रात वाली बात कबूल ली ।

मा हस कर - तू बड़ा जिगरी हो रहा है बाऊजी का ,,तुझसे कुछ नही छिपा रहे है कुछ


मै हस कर - अब उनकी दुलारी बेटी का दुलारा बेटा हू तो हिहिहिही,, वैसे आपने बताया नही सुबह वाला

मा शर्मा कर - धत्त , पागल बता दूँगी जल्दी है क्या
मै - हा, तभी ना आगे का प्लान बनेगा
मा शर्मायी और बोली - मैने तो वही किया जैसा तू बोला था ,,

मै - हा देखा मैने आपके कपड़े ठीक थे लेकिन और क्या हुआ कैसे हुआ ये तो बताओ

मा हस कर - वो जब बाऊजी आये तो कपडे धुल रही थी बाथरूम के दरवाजे पर बैठ कर

बाऊजी पीछे से - अभी तू नहायी नही क्या बेटी

मै बाऊजी की आवाज सुन कर चौकी और थोडा शरम आई और फटाक से उन्के सामने खड़ी हो गयी । उनकी नजरे मेरे पेतिकोट मे कसे हुए चुचो पर थी और फिर निचे खुली जांघो पर

रागिनी - हा बाऊजी ये कपडे धुलने थे और निचे पानी नही आ रहा था

बाऊजी मुह इधर उधर फेर रहे थे लेकिन नजर उनकी मेरे कड़े हुए निप्प्ल पर थी ।
बाऊजी - हा राज ने बताया मुझे ,,वो दरअसल मुझे अपने काम के लिए निकलना था तो सोचा नहा लू

रागिनी हस कर - अरे तो आईये नहा लिजिए ना बाऊजी
बाऊजी - हा लेकिन तू ऐसे कब तक
रागिनी शर्मा कर - अब छोडिए वो सब आप आईये
फिर बाऊजी ने अपने कपडे निकाल के जान्घिये मे बाथरूम मे आए और मैने सारे कपडे समेट कर वही खड़ी हो गयी ।
बाऊजी ने पानी डाल कर नहाना शुरू किया और जांघिया भीगा तो उनका वो साफ साफ पता चल रहा था
बाऊजी नहाते समय थोडा झिझक कर रहे थे ,,, मतलब जन्घिये मे हाथ डालने मे और जब पीठ पर साबुन लगाने मे दिक्कत हुई तो

रागिनी - रुकिये बाऊजी ,,मुझे दिजिए साबुन
मैने उनसे साबुन लिया और उनकी पीठ और गरदन कमर तक अच्छे से साफ किया और फिर पानी से धुला भी ।

रागिनी ह्स कर - बाऊजी गर्मी का मौसम है अच्छे से सब जगह साबुन लगा लिजीये

बाऊजी थोडा मुस्कुराए और वही मेरी तरफ पीठ कर जान्घिये मे हाथ डाल कर अच्छे से साबुन लगाया और फिर नहा लिये ।

फिर जब जांघिया बदलने की बारी आई तो मैने उन्हे तौलिया दिया ,,,और मेरी नजर उनके खडे लण्ड पर गयी । उन्होंने ने भी मुझे देखा की मेरी नजर कहा है ।

फिर वो वही खडे हुए अपनी जांघिया को तौलिये की ओट मे निचे सरका दिये और तौलिया लपेट कर जान्घिया धुलने को हुए

रागिनी - अरे बाऊजी रहने दीजिये ,मै सब धुल दूँगी
बाऊजी - नही बेटा तू नही
रागिनी लपक उनके हाथ से जांघिया लेने गयी
वो अपनी ओर खिचे और इसी खीचा तानी मे मेरा हाथ उनके तौलिये को लगा और वो खुल कर निचे आगया और उनका काला मुसल कड़ा और झूलता हुआ मेरे सामने और सख्त हुआ जा रहा था ।

मै तुरन्त खड़ी हुई और मुह फेर ली - माफ करना बाऊजी

बाऊजी बिना कुछ बोले तौलिया लपेट लिये और हस कर बोले - तू अभी भी बचपन के जैसे ही जिद्दी है ,, ले पकड

मुझे शर्म आ रही थी और मै घूम कर बोली - जिद तो आप भी कर रहे थे बाऊजी

मैने उनके हाथ से जांघिया लिया और बालटी मे डालने जा रही थी कि
बाऊजी - अरे नही उसको उसमे मत डाल,,वो कुछ दाग

मैने फटाक से जांघिये को फैलाया तो एक तरफ थोडे वीर्य से धब्बे थे
बाऊजी - इसिलिए मै मना कर रहा था

रागिनी शर्मा कर - ठीक है मै इसको अलग धुल दूँगी

मै - फिर आगे
मा - फिर क्या उसके बाद वो बाहर चले गये और फिर कुछ ही देर मे तू आ गया था
मै - हम्म्म
मै थोडी देर मा से उसी बाथरूम के सीन को लेके कुछ बातें दुहरवाई और फिर आगे का प्लान उन्हे बताया ,,, क्योकि कल के वादे के मुताबिक आज रात मे गीता और बबिता , अनुज के साथ सोने वाली थी ।

जारी रहेगी
Excellent update
Bhai thukrayin ka taka apne hero se bhdwa do
 

Tiger 786

Well-Known Member
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नाना के निचे जाते ही मै मा के पास गया जो इस समय नाना के ही कपड़े धुल रही थी ।

मै कपडे निकाल कर सिर्फ अंडरवियर मे अन्दर बाथरूम मे घुसा और पीछे से मा को दबोच लिया

मा कसमसा कर - अह्ह्ह क्या कर रहा है बेटा,, बाऊजी है यही

मै अंडरवियर मे तने लण्ड को मा की पेतिकोट के उपर से ही उनकी गाड मे धंसाते हुए - मा वो तो निचे गये

मा - हा फिर हट मुझे काम करना है
मै फटाक से दरवाजा बंद किया और अपना अंडरवियर निकाल दिया।

मा अभी भी झुकी हुई बालटी मे कपडे डुबो कर उसे गार कर दुसरी बालटी मे रख रही थी ।
मै बहुत ही उत्तेजित था तो मैने झुक कर मा का पेतिकोट एक झटके मे उठाया और उनकी गोरी फैली हुई तरबुज सी गाड़ मेरे सामने थी
मैने मा के कूल्हो को थामा और लण्ड को उनके चुतडो के पाटो पर फिराया जिससे मा सिहर गयी और जिस पोजीशन मे थी वही रुक गयी

मा - अह्ह्ह बेटा रुक जा ना
मै अपने लण्ड की चमडी खिच कर सुपाडे को मा के चुत के मुहाने पर दबाकर - बहुत मन कर रहा है मा अह्ह्ह

मा - ओह्ह बेटा अह्ह्ह्ह
मै एक जोर का धक्का पेला और लण्ड जगह बनाते हुए सीधा मा के भोसड़े मे घुस गया और मै उन्के कूल्हो को थामे धक्के पेलने लगा ।

मा ने सामने हाथ बढ़ा कर टोटी को पकड़ ली लेकिन मेरे धक्के से उनको दिक्कत हो रही थी।

मै धक्के लगाते हुए - मा कूछ बात आगे बढ़ी आपकी और नाना की

मा कसमसा कर - तू ये अभी क्यू पुछ रहा है ,,,अभी चोद ले मुझे अह्ह्ह मै कबसे गरम हो रही थी अह्ह्ह बेटा

मै समझ गया कि कुछ मजेदार जरुर हुआ है दोनो के बीच और उसके लिये मा पूरी तसल्ली से ही मुझे बतायेगी

मैने मा को झुकाये हुए ही लन्ड़ को तेजी से उनकी खुली चुत मे गचागच पेलता रहा ,,, थोडी देर हमारी ये चुदाई सभा चली और मै झड़ने के करीब था और मा ने मेरा माल अपने मुह मे लिया ।


फिर मै और मा एक साथ नहा कर निचे आये । मैने अपने कपडे पहने थे जबकी मा ने ब्लाउज पेतिकोट

निचे हाल मे उतर कर देखा तो नाना कुछ फ़ाईल लेके बैठे है और उनकी नजर मा पर पड़ी तो वो मुस्कुराये और बदले मे मा ने भी एक शर्माहट भरी मुस्कान दी ।

नाना की नजर मा के चुचो की घाटी और पेतिकोट के साइड के कट पर थी जहा से मा के कुल्हे साफ दिख रहे थे । जिसका असर मुझे नाना की धोती मे साफ नजर आ रहा था ।

फिर मा ने उसी अवस्था मे मेरे और नाना के लिए खाना लगाया । फिर मै और नाना खाना खा कर निकल गये ।

सबसे बडी बात थी कि नाना इस उम्र मे भी खुद गाडी चलाते थे ।

मै भी उनके साथ आगे की सीट पर बैठा था , आज नाना काफी खुश लग रहे थे

मै - क्या बात है नाना जी बडे खुश लग रहे है

नाना किसी याद से उभर कर - अह हा खुश तो हू ही ,, अब इतने समय बाद अपने नाती के साथ कही घूमने जा रहा हू ।

मै - वैसे कहा जा रहे है हम लोग
नाना - बस यही पास के गाव गोपालपुर मे मुखिया के घर , मेरे पुराने मित्र रहे है , उन्ही के यहा

मै चुप रहा और गाडी से बाहर खेत खलिहानों को देख रहा था ।
गोपालपुर काफी नामी गिरामी गाव था और वहा के मुखिया जयराज ठाकुर थे । जो नाना के पुराने मित्र थे और
उनका काफी समय प्रतापपुर यानी मेरे नाना के गाव मे ही बिता है ।
रास्ते ने नाना ने बताया कि उनकी पहली बीवी की मृत्यु के बाद उन्होने दुसरी शादी की एक कम उम्र के लड़की से जो अपने माता पिता की एक्लौती संतान थी और कुछ साल बाद वो प्रतापपुर छोड कर यहा गोपालपुर चले आये ।

कुछ किलोमीटर की यात्रा कर हम गोपालपुर गाव पहुचे और गाव मे थोड़ी ही दुर घूसने पर जयराज ठाकुर की हवेली थी जो असल मे उन्के स्वर्गीय सास ससुर की थी ।

हवेली काफी बडी थी और काम करने वालो की कमी नही थी ।
लेकिन फिर भी उस हिसाब से ज्यादा लोग दिखाई नही पड रहे थे जैसा नाना जी ने ब्ताया था । काम करने वाले और कुछ गार्ड बस

नाना जी हवेली के कम्पाउंड मे गाडी पार्क की और हाल की ओर बढ़ गये वही फ़ाईल लेके जो सुबह घर पर देख रहे थे । मै भी उनके पीछे पीछे चला गया ।

हाल मे पहुच कर नाना जी और मै बैठे रहे और थोड़ी ही देर मे एक नौकर पानी देके गया ।

मै - नाना जी मुझे तो बहुत अजीब लग रहा है यहा
नाना हस कर - अरे इसे अपना घर समझो और अभी जयराज से मिलवा दूँगा तो तुम कभी भी यहा आ सकते हो । हर साल सावन मे गोपालपुर मे बहुत जोरदार और बड़ा मेला लगता है ।


मै - ओह्ह
मै बड़ी जिज्ञासा और उत्सुकता से हवेली मे नजर घुमा रहा था ।

थोडी देर बाद एक नौकर आया और नाना को अपने साथ ले गया ।

नाना बहुत ही खुश नजर आ रहे थे और मुझे बोल के गये - कि मै यही आस पास ही रहू और चाहू तो पीछे बागिचे की ओर जा सकता हू ।

मै हा मे सर हिलाया और मोबाईल मे लग गया ।
हवेली के साथ कुछ अच्छी सेल्फी भी निकाली । थोड़ी देर मे हाल मे एकदम चुप्पी सी थी । सारे लोग कही गायब से थे कोई कही नजर नही आ रहा था उपर से मैने पुरानी बड़ी हवेलियो के बारे बहुत भूतिया खिस्से सुने थे तो फटने लगी मेरी ।

मैने एक दो नजर उस जिने की ओर मारा जहा से नाना उपर की ओर गये थे । मगर कोई नजर नही आ रहा था तो मैने सोचा कि क्यू ना पीछे बागिचो मे चला जाऊ


मै उठा और ताकझाक करते हुए एक गलियारे से पीछे की ओर चला गया ।
ताजी हवा मे सास लेते ही मन की सारी शन्काये दुर हो गयी और मै ऐसे ही टहलने लगा ।

पीछे बगिचे के दुसरे छोर पर काफ़ी सारे आदमी काम कर रहे थे और खेतो मे भी लोगो को काम करते देख मन को और भी अच्छा लगा ।

तभी मेरी नजर हवेली के पीछे से लगी एक सीधी पर गयी जो उपर एक बाल्किनी नुमा जगह पर खुलती थी और वही से अन्दर जाने का रास्ता भी था ।

रास्ते मे मुझे कोई रुचि नही थी , मुझे उस बाल्किनी से बागिचे को देखने की तलब हुई । मै फटाफट उस सीढी से उपर वाल्किनी पर गया

वाह क्या नजारा था , दुर तक खुले खेत और बगीचे की रंग बिरंगी हरियाली दिख रही थी ।
मैने जेब से फोन निकाला और तस्वीरे लेना शुरु कर दी और कुछ सेल्फी भी लिये । इसी दौरान मुझे बाल्किनी के गैलरी से कुछ बर्तन के गिरने की आवाजे आई । लेकिन गैलरी मे काफी अन्धेरा सा था ।

मुझे थोडा डर लगा लेकिन पूरी गैलरी खाली सी थी ,,,और उस पार से आ रही रोशनी मे उस 3 फिट चौडी गैलरी से मै चुप चाप जाने लगा । तभी मेरे पैर से कुछ टकराया ,और आवाज से पता चला कि ये तो लकड़ी का दण्डा है । मैने उसे बिना छेड़े आगे बढ़ गया

धीरे धीरे करके मै उसके मुहाने तक आया तो देखा कि मै तो उपर की मन्जिल पर हू और यहा से निचे का खुला हाल साफ देखा जा सकता था ।

मुझे खुशी हुई और राहत भी फिर मुझे निचे जाने के रास्ते का ध्यान आया मगर कोई रास्ता नजर नही आ रहा था ।
हर जगह पर्दे लगे थे और जिस अंधरे से मै आया उधर वापस जाने की हिम्मत नही थी मेरी ।

मै धिरे धीरे एक एक पर्दा हटाता हुआ देखता ,,कोई बंद दरवाजा होता तो कोई उपर जाने की सीढि । ना जाने किस मूर्ख ने इसका डिजाइन किया होगा कि तीन उपर जाने की सीढि मिली लेकिन निचे जाने की एक भी नही ।

मै एक पुरा चक्कर लगाने के करिब था फिर मैने निचे हाल मे देखा और अन्दाजा लगाया कि नाना कहा से उपर आए थे । ये ट्रीक काम की और मुझे निचे जाने वाली सीढ़ी दिखी जोकि बाहर से ही दरवाजे की तरह बंद थी ।

मुझे कुछ अजीब सा लगा कि आखिर इस जीने के दरवाजे को बंद करने की जरुरत क्यू थी
मुझे नाना की फ़िकर हुई कि वो कहा है

मै वापस से एक एक कमरे की खिडकी चेक की और तभी मुझे एक खिडकी से कमरे में कुछ खुस्फुसाहत सुनाई दी ,, मगर अन्दर के पर्दे की वजह से मै कुछ देख नही पा रहा था । पर्दे भी खिडकी से थोड़ी दुरी पर थे जिसे मै ऊँगली से खिसका भी नही सकता था

मुझे इरिटेटिंग सी होने लगी इन पर्दो से । तभी मुझे कुछ ध्यान आया और मै सरपट उसी गैलरी की ओर गया जहा से आया था और इस बार मेरा डर कम हुआ क्योकि मैने मह्सूस कर लिया था कि उपर मेरे अलावा कोई नही है । मैने मोबाईल टॉर्च जलाया और तभी मुझे आगे ही थोडी दुर पर वो डण्डा नजर आया जिससे मै टकराया था । मैने लपक कर उस 2 फीट के करीब के दण्डे की उठाया जिस्पे काफी धुल जमी थी ,,
मैने उसे हौले से गैलरी की दिवार पर झाडा और वापस दबे पाव उसी खिडकी तक चला गया ।

मुझे अभी भी हिचक और डर लग रहा था मगर जिज्ञासा बहुत थी कि आखिर ऐसी कौन सी गुप्त बातचीत चल रही थी यहा

मै धीरे से लकड़ी को खिडकी से अंडर डाला और एक साइड से पर्दा मे लकड़ी डाल कर उसे दुसरी तरफ किया मगर लकड़ी से पर्दा सरक गया । मैने फिर से कोसिस की और इस बार पर्दे को लकड़ी के सिरे मे घुमाकर थोडा सा खीचा और मुझे अन्दर कमरे की झलक मिली और मेरी आंखे चौंधिया गयी मानो

एक बार मैने अपनी आंखो को मला और वापस देखा तो अंदर नाना जी क़्वीन साइज़ बेड पर पुरे नंगे घुटने के बल खडे होकर एक गोरी महिला को झुकाये चोद रहे है । उनकी वो फ़ाईल एक टेबल पर वैसी ही बंद पड़ी है मानो खोली तक ना गयी हो ।

मेरी तो थूक गटकने की नौबत आ गई थी
क्या गजब की कसी हुई औरत थी ,,
और सबसे बढ़ कर ये कि आखिर ये कौन थी जिसे नाना चोद रहे थे,,,और जयराज से मिलने वाले थे तो वो कहा था ।

मेरी हालात खराब हो रही थी और लण्ड में कसाव बढ़ रहा था , मगर उससे भी ज्यादा बेचैनी हो रही थी , मै रुक नही सकता था ।
इसिलिए मै फटाफट उसी अंधरि गैलरी से निकल गया बागीचे ,, थोडा सुकून मिला लेकिन उलझन अब भी थी ।

थोडी देर बाद मे एक नौकर मुझे बुलाने के लिए आया और मै वापस हाल मे आया तो देखा कि वही औरत और नाना हाल मे बैठे हुए थे ।

नाना मुझे देख कर उस औरत की ओर इशारा करते हुए - इनसे मिलो बेटा ये पूनम भाभी है ,,मतलब जयराज की बीवी

मै हाथ जोड उनको नमस्ते किया , तो वो बोली

पूनम मुस्कुरा कर - अरे नही बेटा बैठो ,,
काफी मिठास थी उस औरत की बोली मे ,, उम्र भी मुस्किल से 40 के करीब थी ,,, मगर ठकुराईन का नाना से चक्कर समझ से परे था ।

थोडी देर बातचित चली तो पता चला कि आज जयराज ठाकुर है ही नही और वो दो दिन बाद आयेगा ।
फिर हमने उनसे विदा लिये और निकल गये घर के लिए

गाडी मे

पिछ्ले दिनो मे मै नाना से काफी खुल गया था तो मुझे यही मौका सही लगा ,

मै - नाना ये पूनम जी तो काफी जवान है अभी
नाना हस के - हा बेटा, दरअसल जयराज की दुसरी शादी के वक़्त उसकी उम्र 40 से ज्यादा थी और ये तब 20 की रही होगी


मै हस कर - हा तभी इस उम्र मे रोज नये मर्दो की जरूरत लगती है उनको हिहिहिही


नाना चौक कर अचानक से गाडी का ब्रेक मारा- क्या मतलब
मै हस कर - मुझसे मत छिपायिये नाना जी ,,मैने देखा था थोडी देर पहले उपर कमरे में आपको पूनम जी के साथ

गाडी फिर से चलने लगी
नाना मुस्कुराए - तो तू जासूसी करता है क्या
मैने फिर नाना को पूरी बात बतायी कि कैसे कैसे मै उपर पहुच गया और वो सब देख पाया ।


नाना - मतलब तू भी कम नही है ,,,हा
मै ह्स कर - आखिर नाती किसका हू हिहिहिही
हम दोनो खुब हसे

मै - तब नाना जी इसके बारे मे नही बताया था आपने
नाना ह्स कर - हा ये बात पुरानी है बेटा करीब 18 साल पहले कि उस समय ठकुराइन को आये 2 साल हो गये थे लेकिन जयराज उसकी आकांक्षाओ पर खरा नही उतर पाया ,,,आये दिन ठकुराईन के नये नये यारो के किससे सुनाई देते थे तो एक दिन मौका देख कर हमने भी हाथ साफ किया ,,,,,

मै ह्स कर - और फिर

नाना - लेकिन जयराज को काफी जिल्लत झेलनी पड़ती थी इसिलिए उसने 15 साल पहले प्रतापपुर छोड दिया और यहा आ गया


मै ह्स कर - मगर आपने ठकुराईन को नही छोडा हिहिही

नाना - अरे नही , ऐसा कुछ नही है ,, तब से लेके आज यही नसीब हुआ है 15 साल बाद ,,,वो भी मेरी पहल पर


मै अचरज से - आपकी पहल पर मतलब
नाना - तु तो जान ही रहा है कि मुझे 3 दिनो से काफी उत्तेजना हो रही थी और फिर कल से घर पर और भी दिक्कत महसूस हो रही थी । इसिलिए मैने आज पहल दी ठकुराइन से


मै - वो सब तो ठीक है लेकिन घर मे कैसी दिक्कत हो रही आपको नाना जी

नाना थोडा झेपे - अब क्या बताऊ बेटा,,

मै - आप निश्चिंत होकर बोलिए ,,आखिर आपकी सम्स्या मेरी समसया है

नाना - नही बेटा बात वो नही है ,,, बात कुछ और है फिर पता नही क्या सोचेगा तू मेरे बारे मे


मै उखडे हुए भाव से - अब आप मेरी चिन्ता बढ़ा रहे हैं नाना जी बताईए क्या बाता है ।
नाना जी ने एक खाली जगह पर सड़क के किनारे गाडी रोकि

मै - हा अब बोलिए क्या बात है
नाना झिझक कर - दरअसल बेटा,,कल रात मे मुझे बहुत उत्तेजना मह्सूस हो रही थी और निद नही आ रही थी तो इसिलिए मै हाल मे आकर बैठ गया था ।
फिर थोड़ा हाल मे टहला और अपने कमरे मे जाने को हुआ तो मेरी नजर तेरे मम्मी -पापा के कमरे के खुले दरवाजे पर गयी ।

मुझे लगा कि वो लोग अभी जाग रहे होगे तो चलो थोडा बात कर लू फिर सो जाऊंगा
मगर मै दरवाजे पर जाकर कुछ बोलता , उससे पहले ही मुझे कमरे मे तेरे मम्मी पापा सम्भोग करते हुए दिखे , शायद वो लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गये थे ।

मै ह्स कर - ओह्ह कोई बात नही नाना ,इसमे आपकी कोई गलती नही है ,,मैने भी कभी कभी गलती से देख लिया है मम्मी पापा को वो सब करते हुए ।

नाना ह्स कर - तू बहुत नटखट है और भोला है रे ,, तू तो देख कर निकल गया होगा ना ,,,मगर मै वही रुक गया था और मुझे उत्तेजना होने लगी थी ।

मै हस कर - मतलब सुबह मे मम्मी ने जो दाग पर पोछा मारा , वो आपने किया था ह्हिहिहिही

नाना चुप रहे ।
मै - फिर आगे
नाना - उसके बाद मुझे रात भर अच्छे से नीद नही आई थी और आज सुबह मे छत पर फिर से तेरी मम्मी को गलत कपड़ो मे देख लिया था


मै - ओह्ह्ह ,,,कोई बात नही , मै ये सब मम्मी को नही बताऊंगा ,,,वैसे भी रात मे खुला देख लिया तो खैर सुबह कपडे मे थी वो हिहिही

नाना मुस्कुरा कर - तू बहुत बदमाश है ,,,
मै - आपसे कम
नाना हस कर - क्यू
मै हस कर - मै थोडी दूसरो की मा को देख कर वो सब मह्सूस करता हू हिहिहीही

हम दोनो हसे और फिर घर के लिए निकल गये
घर पहुच कर पता चला कि मा , गीता बबिता को लिवा कर दुकान गयी है और वही से अनुज उनको घुमाने ले जायेगा ।

फिर सोनल ने हमे पानी दिया और नाना आराम करने के लिये गेस्टरूम मे गये और मै भी मा के पास निकल गया ।
दुकान पहुच कर देखा तो मा ब्यस्त थी । मैने भी उनकी मदद की और फिर हम खाली हुए ।
मैने मा को आज के अनुभव के बारे मे बताया और ये भी कि नाना ने कल रात वाली बात कबूल ली ।

मा हस कर - तू बड़ा जिगरी हो रहा है बाऊजी का ,,तुझसे कुछ नही छिपा रहे है कुछ


मै हस कर - अब उनकी दुलारी बेटी का दुलारा बेटा हू तो हिहिहिही,, वैसे आपने बताया नही सुबह वाला

मा शर्मा कर - धत्त , पागल बता दूँगी जल्दी है क्या
मै - हा, तभी ना आगे का प्लान बनेगा
मा शर्मायी और बोली - मैने तो वही किया जैसा तू बोला था ,,

मै - हा देखा मैने आपके कपड़े ठीक थे लेकिन और क्या हुआ कैसे हुआ ये तो बताओ

मा हस कर - वो जब बाऊजी आये तो कपडे धुल रही थी बाथरूम के दरवाजे पर बैठ कर

बाऊजी पीछे से - अभी तू नहायी नही क्या बेटी

मै बाऊजी की आवाज सुन कर चौकी और थोडा शरम आई और फटाक से उन्के सामने खड़ी हो गयी । उनकी नजरे मेरे पेतिकोट मे कसे हुए चुचो पर थी और फिर निचे खुली जांघो पर

रागिनी - हा बाऊजी ये कपडे धुलने थे और निचे पानी नही आ रहा था

बाऊजी मुह इधर उधर फेर रहे थे लेकिन नजर उनकी मेरे कड़े हुए निप्प्ल पर थी ।
बाऊजी - हा राज ने बताया मुझे ,,वो दरअसल मुझे अपने काम के लिए निकलना था तो सोचा नहा लू

रागिनी हस कर - अरे तो आईये नहा लिजिए ना बाऊजी
बाऊजी - हा लेकिन तू ऐसे कब तक
रागिनी शर्मा कर - अब छोडिए वो सब आप आईये
फिर बाऊजी ने अपने कपडे निकाल के जान्घिये मे बाथरूम मे आए और मैने सारे कपडे समेट कर वही खड़ी हो गयी ।
बाऊजी ने पानी डाल कर नहाना शुरू किया और जांघिया भीगा तो उनका वो साफ साफ पता चल रहा था
बाऊजी नहाते समय थोडा झिझक कर रहे थे ,,, मतलब जन्घिये मे हाथ डालने मे और जब पीठ पर साबुन लगाने मे दिक्कत हुई तो

रागिनी - रुकिये बाऊजी ,,मुझे दिजिए साबुन
मैने उनसे साबुन लिया और उनकी पीठ और गरदन कमर तक अच्छे से साफ किया और फिर पानी से धुला भी ।

रागिनी ह्स कर - बाऊजी गर्मी का मौसम है अच्छे से सब जगह साबुन लगा लिजीये

बाऊजी थोडा मुस्कुराए और वही मेरी तरफ पीठ कर जान्घिये मे हाथ डाल कर अच्छे से साबुन लगाया और फिर नहा लिये ।

फिर जब जांघिया बदलने की बारी आई तो मैने उन्हे तौलिया दिया ,,,और मेरी नजर उनके खडे लण्ड पर गयी । उन्होंने ने भी मुझे देखा की मेरी नजर कहा है ।

फिर वो वही खडे हुए अपनी जांघिया को तौलिये की ओट मे निचे सरका दिये और तौलिया लपेट कर जान्घिया धुलने को हुए

रागिनी - अरे बाऊजी रहने दीजिये ,मै सब धुल दूँगी
बाऊजी - नही बेटा तू नही
रागिनी लपक उनके हाथ से जांघिया लेने गयी
वो अपनी ओर खिचे और इसी खीचा तानी मे मेरा हाथ उनके तौलिये को लगा और वो खुल कर निचे आगया और उनका काला मुसल कड़ा और झूलता हुआ मेरे सामने और सख्त हुआ जा रहा था ।

मै तुरन्त खड़ी हुई और मुह फेर ली - माफ करना बाऊजी

बाऊजी बिना कुछ बोले तौलिया लपेट लिये और हस कर बोले - तू अभी भी बचपन के जैसे ही जिद्दी है ,, ले पकड

मुझे शर्म आ रही थी और मै घूम कर बोली - जिद तो आप भी कर रहे थे बाऊजी

मैने उनके हाथ से जांघिया लिया और बालटी मे डालने जा रही थी कि
बाऊजी - अरे नही उसको उसमे मत डाल,,वो कुछ दाग

मैने फटाक से जांघिये को फैलाया तो एक तरफ थोडे वीर्य से धब्बे थे
बाऊजी - इसिलिए मै मना कर रहा था

रागिनी शर्मा कर - ठीक है मै इसको अलग धुल दूँगी

मै - फिर आगे
मा - फिर क्या उसके बाद वो बाहर चले गये और फिर कुछ ही देर मे तू आ गया था
मै - हम्म्म
मै थोडी देर मा से उसी बाथरूम के सीन को लेके कुछ बातें दुहरवाई और फिर आगे का प्लान उन्हे बताया ,,, क्योकि कल के वादे के मुताबिक आज रात मे गीता और बबिता , अनुज के साथ सोने वाली थी ।

जारी रहेगी
Awesome update
 
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