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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
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Superb Updateee

Kamla ki entry kab hogi mahal mein aur woh kab Sukanya aur uske pati aur bete ki band bajayegi.
शुक्रिया Devil the king Ji
जल्दी ही एंट्री करवाएंगे
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
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lagta hai kamla hi haveli me aakar shukanya ki band bajayegi....ab aage dekhte hai kamla ki shadi kis ke sath hogi....

शुक्रिया Lucky जी
शादी करके कमला ही हवेली आया यह तो तय हैं लेकिन उससे पहले बहुत बवाल होने वाला हैं।
 

mashish

BHARAT
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203
अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन

Update - 2

सुरभि किचन में जाती हैं। जहां वाबर्ची दिन के खाने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यंजन बाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें तैयारी करते हुए देखकर सुरभि, उन वाबर्चिओ में एक बुजुर्ग वबर्ची से बोले…."दादा भाई ( बड़े भाई को बंगाली भाषा में दादा बोला जाता हैं मैं यहां दादा के साथ भाई जोड़कर लिखूंगा) दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।" सुरभि को रसोई घर में देखकर बुजुर्ग वबर्ची बोले…" रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम कर तो रहे हैं तैयारी।" बुजुर्ग की बातों को सुनाकर सुरभि बोली…"दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरी हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे।" बुजुर्ग सुरभि की बातो को सुनाकर मुस्कुराते हुए बोले…."क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सब का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आपको रानी मां बोलते हैं"बुजुर्ग के तर्क को सुनाकर सुरभि बोले…"दादाभाई आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हों। आप मुझे मां बोलते हों जो मुझे अच्छा नहीं लगती। जब राज पाट थी तब की बात अलग थीं अब तो राज पाट नहीं रही और न ही राजा रानी रहे।" बुजुर्ग सुरभि की बातों को सुनाकर अपना तर्क देते हुए बोले…"राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, एक बात ओर बता दु राजा रानी कहलाने के लिए राज पाट नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में ओर राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।" बुजुर्ग के तर्क, अपनी और अपने पति की तारीफ सुनाकर सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…"जब भी मैं अपको रानी मां बोलने से मना करती हूं आप हर बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले" बुजुर्ग सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर और उनके तर्को को सुनाकर बोले…." रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आपको क्या कह कर बुलाए।" बुजुर्ग के तर्क सुनाकर सुरभि बोली…."मुझे नहीं पता आपका जो मन करे वो बोले लेकिन रानी मां नहीं" बुजुर्ग बोले…"हमारा मन अपको रानी मां बोलने को करता हैं और हम आपको रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देंगे तो आप हमें दण्ड दे सकते हैं लेकिन हम आपको रानी मां बोलना बंद नहीं करेंगे" सुरभि कुछ बोलती उससे पहले रसोई घर के बाहर से किसी ने बोला…."क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहीं हैं" रसोई घर के बाहर सुकन्या खड़ी होकर इनकी सारी बाते सुन रहीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुनाकर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सुकन्या सहन कर सकती थीं किया जब उसकी सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर आते हुए बोली, सुकन्या का बुजुर्ग से बदसलूकी से बोलना सुरभि से सुना नहीं गया तब वह बोलीं…." छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। काम से काम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।" एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।" सुकन्या की बाते सुनाकर सुरभि को गुस्सा आ जाता हैं। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोलती हैं…" छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करते हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं और तुम्हारे पिताजी के उम्र की हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलते हों।" एक नौकर का अपने पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहे हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे की पक्ष नहीं लोगी तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपकी तारीफ नहीं करेगा अपको अपनी तारीफे सुनने में मजा जो आती हैं।" सुकन्या की बातो को सुनाकर वह मौजुद सब को गुस्सा आ जाता हैं। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ नहीं बोल पता हैं। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बड़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। लेकिन नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी लेकर सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई ओर नौकर को कसके एक तमाचा जड़ दिया और बोली….." ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं हैं इतनी महंगी साड़ी खरीदने कि।" सुकन्या एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर पैर पटकते हुए अपने रूम में चाली गई। लड़के को तमाचा इतने जोरदार लगाया गया जिससे लड़के का गाल लाल हों गया। लड़का गाल सहला रहा था की सुरभि उसके पास आई उसके दुसरे गाल को सहलाते हुए बोली…." धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।"


सुरभि का अपने प्रति स्नेह देखकर धीरा की आंखे नम हों गया। धीरा नम आंखो को पोंछते हुआ बोला….


धीरा….. रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया लेकिन जब उन्होंने अपका अपमान किया मैं यह सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिला।


सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।


धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……


धीरा….. रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो यह बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको ख़बर पहुंचा देंगे।


सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।


सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोलता हैं….


रतन…. ये छोटी मालकिन पुरा का पुरा नागिन हैं जब देखो फन फैलाए खड़ी रहती हर वक्त डसने को तैयार रहती हैं।


धीरा:- अरे चाचा धीरे बोलो नहीं तो फिर से डसने आ जायेंगे।


ऐसे चुहल करते हुए खाने की तैयारी करने लगते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। उसको देखकर सुरभि बोलती हैं…..


सुरभि:- छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं।


सुकन्या सुरभि के देखकर अपना मुंह भिचकते हुए बोली…..


सुकन्या…. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे यह तक आ गईं।


सुकन्या की तीखी बाते सुनाकर सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को समाहल कर सुकन्या को समझाते हुए बोलती हैं…….


सुरभि…. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गई। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।


सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली कौन होती हों। आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।


सुरभि:- छोटी ये क्या बहकी बहकी बाते कर रहीं हैं। मैं तुझे अपना छोटी बहन मानती हूं।


सुकन्या:- आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों दुबारा अपमानित हों। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।


सुरभि से ओर सहन नहीं होती। सुरभि की आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों जाती हैं। सुरभि अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली जाती हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या बोलती हैं……


सुकन्या…. कुछ भी कहो इस सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। इसकी चमड़ी तो गेंडे के चमड़ी जैसी मोटी हैं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। इन कर्मजले नौकरों को इस सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मैं बोलकर अपना गला सुख लेटी हैं।


सुकन्या कुछ वक्त ओर अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं। फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि आकर अपने कमरे में बेड पर उल्टी होकर लेट जाती हैं और रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देखकर उसके पास बैठते हुए बोलती हैं……


बूढ़ी औरत…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?


सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनाकर उठकर बैठ जाती हैं और बहते आशु को पोंछते हुए बोलती हैं…..


सुरभि…... दाई मां आप कब आएं?


दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह हैं।


सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती रहती हैं।


दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आपकी जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास अपको अपमानित करके निकलते हैं।


सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।


दाई मां:- राना मां छोटी मालकीन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान होकर महल का सारा बार उन्हे सोफ दो और छोटी मालकिन इस महल पार राज कर पाए।


सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का सारा भार सोफ देती हूं। काम से काम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।


दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी मत करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करेंगी और महल की शांति को भंग कर देगी। अब आप मेरे साथ रसोइ घर में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे।


सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकीन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को रसोई घर ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सब को बुलाकर खाना खिलाती हैं और ख़ुद भी खाती हैं। राजेन्द्र और उसका भाई रावण दोनों वह मौजुद नहीं थे। तो उनको छोड़कर बाकी सब खाना खाकर अपने अपने रूम में विश्राम करने चले जाते हैं।


कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लागी हुई हैं। उसकी आंखें सुर्ख लाल चहरा गुस्से से लाला आंखों में काजल उसके इस रूप में बस दो ही कमी हैं। उसके एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला पकड़ा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लागी हुई हैं। एक औरतों रुकने को कह रहे हैं लेकिन रूक ही नहीं रहीं। तभी लड़की ने अपनी हाथ में कुछ उठाया और उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली….


औरत…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।


कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।


औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।


मनोरमा:- अरे उतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने घर का सारा समान तोड दिया।


कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं।


मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं और तू तोड़ फोड़ करने लग गई।


कमला…. मां अपको कितनी बार कहा हैं आप अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आपके कारण कुछ कह नहीं पाई उनका गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।


मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।


घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश किया । घर की दासा और कमला को थोड़ फोड़ करते हुए देखकर बोले……


महेश….. मोना (मनोरमा) कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं।


मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के सामने को तोड़ कर निकल रहीं हैं।


महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं तो निकल अपना गुस्सा जितना तोड़ना हैं तोड़ काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।


मनोरमा…. आप तो चुप ही करों। कमला का हाथ पकड़कर खिचते हुए सोफे पर बिठाया हुए बोला .. तू या बैठ यह से हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।


कमला चुप चाप सोफे पर बैठ गई। मनोरमा भी दूसरे सोफे पर बैठ गई। महेश आकर कमला के पास बैठा और पुछा……


महेश…. कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण होगा?


कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आकर थोड़ फोड़ करने लागी।


मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू अपनी गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी


महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब बही करेगी जो तुमने किया।


मनोरमा…. अब मैंने किया किए जो कोमल करेगी।


महेश…. गुस्से में आपने पति का सार फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।


कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सर फोड़ा है मुझे पता नहीं थी आज पाता चल गईं।


मनोरमा कुछ नहीं बोल रहीं थी बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और ये दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे। आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में बताउंगा।

Awesome update
 

Sauravb

Victory 💯
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अजनबी हमसफ़र -रिश्तों का गठबंधन

कुछ विशेष बाते और पत्रों का परिचय:-

कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। जिसका किसी भी जीवित या मृत्य व्यक्ति से कोई संबंध नहीं हैं। जगह का नाम वास्तविक हैं लेकिन वह की किसी भीं वास्तविक घटना का कहानी से कोई संबंध नहीं हैं। अगर किसी भी घटना से कोई समनता होता हैं तो यह एक सहयोग होगा।


कहानी की शुरुवात कलकत्ता के एक राज परिवार से होता है। जो बहुत समय पहले दार्जलिंग के हसीन वादियों और शांत वातावरण से मोहित होकर अपना डेरा दार्जलिंग में जमा लिया। जिनका शासन पश्चिम बंगाल एवम उसके आस पास के राज्यों में हुआ करता था। समय के साथ साथ परिवर्तन आया और इनके अधिपत्य राज्यों की सीमाएं छोटी होती गई। इनके राज्यों की सीमाएं तब ओर कम हों गया जब ब्रिटिश साम्राज्य ने अपना पैर पसारना शुरू किया। ब्रिटिश साम्राज्य ने अनैतिक तरीकों से देश के दूसरे राजाओं का जो हल किया वह हल इस राज परिवार का भी हुआ। इनसे इनका सारा राज पाट छीन लिया गया और इन्हें सिर्फ इनके हिस्से की जमीनों का जमींदार बाना दिया गया। धीरे धीरे समय बिता गया और इनसे इनकी जमीनें छीनता गया। अंत में इनके पास कुछ पांच छः सो एकड़ जमीनें बच्ची जो दार्जलिंग और उसके आस पास के शहरों में था। इसलिए पुरा राज परिवार कलकत्ता छोड़कर दार्जलिंग में बस गए। देश आजाद होने के बाद जनता द्वारा चयनित राजनयिक पार्टियां देश पर शासन करने लगे लेकिन दार्जलिंग की जनता अपने समस्याओं को लेकर राज परिवार के पास आने लगे। पीढ़ी दर पीढ़ी राज परिवार जनता की हितैषी रहे। वैसे ही एक पीढ़ी 80 के दसक में दार्जलिंग की जनताओ के सुख दुख का ध्यान रख रहे हैं। लेकिन कहते हैं न अच्छे लोगों के साथ ही ज्यादातर बुरा होता हैं वैसे ही इनके साथ हुआ हैं। आगे की कहानी में विस्तार से जानेंगे अब इस कहानी में आने वाले कुछ मूल पत्रों का परिचय जान लेते हैं।


1 राजेंद्र प्रताप राना:- लोग इन्हें रानाजी या राजा जी के नाम से संबोधित करते हैं। बहुत ही सुलझे हुए और व्यक्तिव के बहुत धनी हैं। हर काम को सुनियोजित और सोच समझकर करते हैं। लेकिन इनकी एक गलती की सजा इनके परिवार पर आफत की बदल लेकर आएगा।


2 सुरभि राना:- ये हैं राजेंद्र जी की धर्मपत्नी या कहूं अर्धांगिनी जैसा इनका नाम वैसा ही इनका गुण घर में इनका ही राज चलता हैं । परिवार के सदस्य हों या घर में काम करने वाले नौकर चाकर सब से प्रेम भाव का व्यव्हार करते हैं।


3 रघु वीर राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि का एक मात्र चस्मो चिराग इनकी अभी तक शादी नहीं हुआ हैं। इनकी शादी के लिए लड़की की खोज जारी हैं। राजेंद्र जी और सुरभि जी के अच्छे संस्कारों के चलते इनके अदंर कोई दुर्गूर्ण नहीं हैं। अपनी पढ़ाई समाप्त कर चुके हैं और अपने पिता के कामों में हाथ बाटाते हैं साथ ही गरीब और अनाथ बच्चों को पढ़ाते हैं।


4 पुष्पा राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि जी की एक मात्र सुपुत्री सब की लाडली हैं और स्वभाव से नटखट हैं। ये अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में हैं। जो इस वक्त कलकत्ता में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं


5 रावण राना:- ये हैं राजेंद्र उर्फ रनाजी का छोटा भाई जैसा नाम वैसा ही गुण इनके मन में हमेशा छल चातुरी चलता रहता हैं। अपने बड़े भाई से बैर रखता हैं और सारी संपत्ति को अकेले कैसे हड़प ले इसी ताक में लगे रहते हैं।


6 सुकन्या राना:- ये हैं रावण की बीवी अत्यधिक सुंदर हैं जिस करण घमंड कूट कूट कर भरी हुई हैं इनकी अपने जेठानी से बिल्कुल नहीं बनती हैं। घर की पूरी भाग दौड़ जो सुरभि के हाथ में हैं इसे छिनने के ताक में लगे रहते हैं।


7 अपस्यू राना:- ये हैं रावण और सुकन्या जी का एक मात्र जलता हुआ चिराग। इनके नाम का इनके गुणों से दुर दुर तक कोई सरोकार नहीं हैं। कहते हैं मां बाप का गुण इनके बच्चों को उपहार में मिलता हैं। वैसे ही इनके अदंर अपने मां बाप के सारे दुर्गुणों का भंडार पर्याप्त मात्रा में हैं। बस इनके अदंर एक सदगूर्ण यह हैं ये अपने चचेरी बहन पुष्पा से बहुत अधिक स्नेह करते हैं।


8 महेश बनर्जी:- ये एक कम्पनी में ऊंचे पद पर काम करते हैं। स्वभाव से बहुत परोपकारी हैं। कभी कभी इनका यह गूण इन्हे ही परेशानी में ढाल देते हैं। इनके पूर्वज भी जमींदार हुआ करते थे लेकिन अंग्रेजी और विद्रोहीओ ने इनकी सारी जमींदारी छीन लिया हैं। इनकी किस्मत अच्छी थी जो ये जिंदा बच गए हैं।


9 मनोरमा बनर्जी:- इनका स्वभाव बहुत गुस्सैल हैं और इनका स्वभाव थोडा चिड़चिड़ा हों गया हैं जब से इनके बेटे पांच साल के उम्र में किसी बीमारी के चलते मारे गए हैं।


10 कमला बनर्जी:- ये भी अपने मां की तरह गुस्सैल हैं और गुस्सा आने पर घर का सारा सामना तोड़ देते हैं। जिसका हर्जाना महेश बनर्जी जी को भरना पड़ता हैं। बाकी इनकी खूबसूरती बे मिसाल हैं और बुद्धि और समझदारी भरपूर मात्रा में हैं। इस वक्त अपने कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्त हैं। ये लडको को कूटने के मामले में बिल्कुल भी परहेज नहीं करते किसी लड़के ने इनके साथ बदसलूकी किया तो उसे अपने चप्पल से मर मर के अपनी चप्पल तो थोड़ ही लेते है साथ ही लड़के की तोबड़े का नक्शा ही बिगड़ देते हैं।


ये तो हैं कुछ मूल किरदारों का परिचय बाकी जैसे जैसे कहानी आगे बड़ता जाएगा वैसे वैसे ओर भी किरदार जुड़ते जायेंगे। अब कुछ पाठक पूछेंगे इसमें तो हीरो का कोई परिचय ही नहीं हैं तो महाशय अभी हीरो के मां बाप एक नहीं हुऐ हैं मतलब अभी हीरो के मां बाप कुवारे हैं तो हीरो का परिचय कैसे दे दू। आज के लिए बस इतना ही जल्दी ही पहला अपडेट पेश करूंगा।


Shandar suruwat bhai..
 
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mashish

BHARAT
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अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन Update - 3
सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….
सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।
रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।
सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।
रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।
सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।
रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।
सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..
रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?
राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।
सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।
सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……
रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।
राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।
सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…
सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……
अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।
रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।
अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….
अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।
सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।
अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।
सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……
राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।
अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……
सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….
सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।
रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….
सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।
रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।
सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।
रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।
सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।
रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।
सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।
रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।
रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।
सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।
सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..
महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।
मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।
कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।
मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….
कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।
मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।
कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।
महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……
मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।
कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।
कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….
कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।
मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….
कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?
पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….
मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा
सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।
अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन Update - 3
सुबह का वक्त हैं। महल में सब उठ चुके हैं। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे हैं। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….
सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।
रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।
सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।
रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।
सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।
रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।
सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..
रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?
राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।
सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।
सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……
रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।
राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।
सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…
सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……
अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।
रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।
अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….
अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।
सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।
अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।
सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……
राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।
अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……
सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….
सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।
रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….
सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।
रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।
सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।
रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।
सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।
रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।
सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।
रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।
रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।
सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।
सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..
महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।
मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।
कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।
मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….
कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।
मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।
कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।
महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……
मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।
कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।
कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….
कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।
मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….
कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?
पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….
मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा
सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।
अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन
Update - 2
सुरभि किचन में जाती हैं। जहां वाबर्ची दिन के खाने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यंजन बाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें तैयारी करते हुए देखकर सुरभि, उन वाबर्चिओ में एक बुजुर्ग वबर्ची से बोले…."दादा भाई ( बड़े भाई को बंगाली भाषा में दादा बोला जाता हैं मैं यहां दादा के साथ भाई जोड़कर लिखूंगा) दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।" सुरभि को रसोई घर में देखकर बुजुर्ग वबर्ची बोले…" रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम कर तो रहे हैं तैयारी।" बुजुर्ग की बातों को सुनाकर सुरभि बोली…"दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरी हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे।" बुजुर्ग सुरभि की बातो को सुनाकर मुस्कुराते हुए बोले…."क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सब का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आपको रानी मां बोलते हैं"बुजुर्ग के तर्क को सुनाकर सुरभि बोले…"दादाभाई आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हों। आप मुझे मां बोलते हों जो मुझे अच्छा नहीं लगती। जब राज पाट थी तब की बात अलग थीं अब तो राज पाट नहीं रही और न ही राजा रानी रहे।" बुजुर्ग सुरभि की बातों को सुनाकर अपना तर्क देते हुए बोले…"राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, एक बात ओर बता दु राजा रानी कहलाने के लिए राज पाट नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में ओर राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।" बुजुर्ग के तर्क, अपनी और अपने पति की तारीफ सुनाकर सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…"जब भी मैं अपको रानी मां बोलने से मना करती हूं आप हर बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले" बुजुर्ग सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर और उनके तर्को को सुनाकर बोले…." रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आपको क्या कह कर बुलाए।" बुजुर्ग के तर्क सुनाकर सुरभि बोली…."मुझे नहीं पता आपका जो मन करे वो बोले लेकिन रानी मां नहीं" बुजुर्ग बोले…"हमारा मन अपको रानी मां बोलने को करता हैं और हम आपको रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देंगे तो आप हमें दण्ड दे सकते हैं लेकिन हम आपको रानी मां बोलना बंद नहीं करेंगे" सुरभि कुछ बोलती उससे पहले रसोई घर के बाहर से किसी ने बोला…."क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहीं हैं" रसोई घर के बाहर सुकन्या खड़ी होकर इनकी सारी बाते सुन रहीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुनाकर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सुकन्या सहन कर सकती थीं किया जब उसकी सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर आते हुए बोली, सुकन्या का बुजुर्ग से बदसलूकी से बोलना सुरभि से सुना नहीं गया तब वह बोलीं…." छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। काम से काम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।" एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।" सुकन्या की बाते सुनाकर सुरभि को गुस्सा आ जाता हैं। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोलती हैं…" छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करते हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं और तुम्हारे पिताजी के उम्र की हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलते हों।" एक नौकर का अपने पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहे हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे की पक्ष नहीं लोगी तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपकी तारीफ नहीं करेगा अपको अपनी तारीफे सुनने में मजा जो आती हैं।" सुकन्या की बातो को सुनाकर वह मौजुद सब को गुस्सा आ जाता हैं। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ नहीं बोल पता हैं। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बड़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। लेकिन नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी लेकर सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई ओर नौकर को कसके एक तमाचा जड़ दिया और बोली….." ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं हैं इतनी महंगी साड़ी खरीदने कि।" सुकन्या एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर पैर पटकते हुए अपने रूम में चाली गई। लड़के को तमाचा इतने जोरदार लगाया गया जिससे लड़के का गाल लाल हों गया। लड़का गाल सहला रहा था की सुरभि उसके पास आई उसके दुसरे गाल को सहलाते हुए बोली…." धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।"
सुरभि का अपने प्रति स्नेह देखकर धीरा की आंखे नम हों गया। धीरा नम आंखो को पोंछते हुआ बोला….
धीरा….. रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया लेकिन जब उन्होंने अपका अपमान किया मैं यह सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिला।
सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।
धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……
धीरा….. रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो यह बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको ख़बर पहुंचा देंगे।
सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।
सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोलता हैं….
रतन…. ये छोटी मालकिन पुरा का पुरा नागिन हैं जब देखो फन फैलाए खड़ी रहती हर वक्त डसने को तैयार रहती हैं।
धीरा:- अरे चाचा धीरे बोलो नहीं तो फिर से डसने आ जायेंगे।
ऐसे चुहल करते हुए खाने की तैयारी करने लगते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। उसको देखकर सुरभि बोलती हैं…..
सुरभि:- छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं।
सुकन्या सुरभि के देखकर अपना मुंह भिचकते हुए बोली…..
सुकन्या…. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे यह तक आ गईं।
सुकन्या की तीखी बाते सुनाकर सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को समाहल कर सुकन्या को समझाते हुए बोलती हैं…….
सुरभि…. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गई। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।
सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली कौन होती हों। आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।
सुरभि:- छोटी ये क्या बहकी बहकी बाते कर रहीं हैं। मैं तुझे अपना छोटी बहन मानती हूं।
सुकन्या:- आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों दुबारा अपमानित हों। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।
सुरभि से ओर सहन नहीं होती। सुरभि की आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों जाती हैं। सुरभि अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली जाती हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या बोलती हैं……
सुकन्या…. कुछ भी कहो इस सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। इसकी चमड़ी तो गेंडे के चमड़ी जैसी मोटी हैं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। इन कर्मजले नौकरों को इस सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मैं बोलकर अपना गला सुख लेटी हैं।
सुकन्या कुछ वक्त ओर अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं। फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि आकर अपने कमरे में बेड पर उल्टी होकर लेट जाती हैं और रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देखकर उसके पास बैठते हुए बोलती हैं……
बूढ़ी औरत…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?
सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनाकर उठकर बैठ जाती हैं और बहते आशु को पोंछते हुए बोलती हैं…..
सुरभि…... दाई मां आप कब आएं?
दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह हैं।
सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती रहती हैं।
दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आपकी जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास अपको अपमानित करके निकलते हैं।
सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।
दाई मां:- राना मां छोटी मालकीन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान होकर महल का सारा बार उन्हे सोफ दो और छोटी मालकिन इस महल पार राज कर पाए।
सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का सारा भार सोफ देती हूं। काम से काम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।
दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी मत करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करेंगी और महल की शांति को भंग कर देगी। अब आप मेरे साथ रसोइ घर में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे।
सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकीन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को रसोई घर ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सब को बुलाकर खाना खिलाती हैं और ख़ुद भी खाती हैं। राजेन्द्र और उसका भाई रावण दोनों वह मौजुद नहीं थे। तो उनको छोड़कर बाकी सब खाना खाकर अपने अपने रूम में विश्राम करने चले जाते हैं।
कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लागी हुई हैं। उसकी आंखें सुर्ख लाल चहरा गुस्से से लाला आंखों में काजल उसके इस रूप में बस दो ही कमी हैं। उसके एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला पकड़ा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लागी हुई हैं। एक औरतों रुकने को कह रहे हैं लेकिन रूक ही नहीं रहीं। तभी लड़की ने अपनी हाथ में कुछ उठाया और उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली….
औरत…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।
कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।
औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।
मनोरमा:- अरे उतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने घर का सारा समान तोड दिया।
कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं।
मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं और तू तोड़ फोड़ करने लग गई।
कमला…. मां अपको कितनी बार कहा हैं आप अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आपके कारण कुछ कह नहीं पाई उनका गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।
मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।
घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश किया । घर की दासा और कमला को थोड़ फोड़ करते हुए देखकर बोले……
महेश….. मोना (मनोरमा) कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं।
मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के सामने को तोड़ कर निकल रहीं हैं।
महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं तो निकल अपना गुस्सा जितना तोड़ना हैं तोड़ काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।
मनोरमा…. आप तो चुप ही करों। कमला का हाथ पकड़कर खिचते हुए सोफे पर बिठाया हुए बोला .. तू या बैठ यह से हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।
कमला चुप चाप सोफे पर बैठ गई। मनोरमा भी दूसरे सोफे पर बैठ गई। महेश आकर कमला के पास बैठा और पुछा……
महेश…. कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण होगा?
कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आकर थोड़ फोड़ करने लागी।
मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू अपनी गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी
महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब बही करेगी जो तुमने किया।
मनोरमा…. अब मैंने किया किए जो कोमल करेगी।
महेश…. गुस्से में आपने पति का सार फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।
कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सर फोड़ा है मुझे पता नहीं थी आज पाता चल गईं।

मनोरमा कुछ नहीं बोल रहीं थी बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और ये दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे। आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में बताउंगा।
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