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Adultery दिलवाले

sunoanuj

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#२६

“कुछ न कुछ तो करेगी बहन की लौड़ी ” आँखे मूंदे मैं सोचने लगा. परिवार के प्रति मेरा कोई विशेष मोह बचा नहीं था . खैर जब मैं गाँव में आया तो मालूम हुआ की चाचा की बॉडी आ चुकी थी और अंतिम संस्कार की तैयारिया हो रही थी . मैंने पुलिस जीप भी देखी तो मेरी उत्सुकता बढ़ गयी. दरोगा ने मुझे देखा तो वो मेरे पास आया.

“पोस्ट मार्टम रिपोर्ट तेरा बचाव कर गयी ” बोला वो

मैं-मैंने बोला था तेरे को मेरा कुछ लेना देना नहीं है

दरोगा- न जाने मेरा मन मनाता नहीं ये बात

मैं- थानेदार है तू , तेरा काम है कातिल को पकड़ना . मैंने नहीं मारा चाचा को पर एक बात तुझसे कहता हूँ अगर मुझे ये काम करना होता तो भी कोई पकड़ नहीं पाता . वैसे क्या मैं रिपोर्ट पढ़ सकता हु

दरोगा- ऐंठ बहुत है तुझमे.

मैं- ऐंठ नहीं है समस्या ये है की आजकल कोइ सच को मानता नहीं है . अनुमान पर आधारित हो गयी है जिन्दगी .

दरोगा- पोस्ट मार्टम में हार्ट अटैक है , पर डॉक्टर बता नहीं पाया की अटैक किस कारण आया . तेरे चाचा का शरीर एक दम स्वस्थ था उनके अनुसार.

मैं- मेरे लिए इतना बहुत है . वैसे ही जीवन में बहुत पंगे है चलो एक तो कम हुआ.

दरोगा- फिर भी जितना हो सके पंगो से दूर रहना

मैंने हाँ में सर हिलाया. उसकी वर्दी पर दो स्टार देख कर दिल में कसक से रह गयी , मेरी ही उम्र का तो था वो , शायद एक दो साल कम या ज्यादा पर इतना ही .

“क्या सोचने लगा कबीर ” दरोगा ने कहा

मैं- कभी ये वर्दी मेरी भी हसरत थी .

फीकी मुस्कान चेहरे पर लिए मैं आगे बढ़ गया. अंतिम संस्कार की तैयारिया लगभग पूरी हो गयी थी , कोई और दौर होता तो उसे कन्धा देने का हक़ मेरा होता . वो कहते है न की ब्याह के लिए पैसा और मुर्दे को अग्नि जरुर मिलती है भारी बारिश के बावजूद चिता में आग एक सेकंड में जल गयी. सबके जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक चिता के पास बैठा रहा . मेरा बाप जब गया था तो मुझे लगा था की छत टूट गयी मेरे सर से , आज ऐसा लगा की जैसे कंधे टूट गए . बेशक कभी चाचा और मेरे सम्बन्ध ठीक नहीं रहे पर आज जो मैं महसूस कर रहा था उसे ही रिश्ते कहते थे. उस रात हवेली में चूल्हा नहीं जला. पूरी रात आँखों आँखों में कट गयी. सुबह मैं मंजू की माँ के पास गया .

“क्यों आया है तू यहाँ पर , क्या तुझे अब भी चैन नहीं ” उसकी माँ फट पड़ी मुझ पर

मैं- काकी, तुझे कोई शिकवा है तो मुझसे कह भाभी के पास जाने की क्या जरुरत थी . ये जानते हुए भी की परिवार बिखर गया है पहले जैसा कुछ नहीं रहा फिर भी तू उसके पास गयी .

काकी- मेरी छोरी को और कितना बर्बाद करेगा तू .

मैं- ऐसी कोई बात नहीं है काकी, निकाल दे तेरे मन के इस वहम को .

काकी- जिसकी जवान छोरी यु खुले में किसी और के साथ मुह काला करे उनका क्या ही जीना है . तुम दोनों तो बेशर्म हो गए, हमारी बची कुची इज्जत को नीलाम मत करो.

मैं- हवेली उसका भी घर है , तू क्या जानती नहीं उस बात को . अरे बचपन से रही है वो उधर, और जब उसका घर जल गया तो मैं कैसे मदद नहीं करूँगा उसकी

काकी- तेरे सिवा कोई और नहीं क्या कोई उसकी मदद करने वाला

मैं- तू ही बता कौन है उसका, तू उसकी माँ है तू ही भूल गयी उसे, तूने ही पराया कर दिया. भाभी के पास जाने की बजाय तू अपनी बेटी को सीने से लगाती यहाँ लेकर आती पर तू नहीं गयी उसके पास और बाते इतनी बड़ी बड़ी. हवेली में नहीं रहेगी तो कहाँ रहेगी बता .

काकी के पास मेरी बात का कोई जवाब नहीं था .

मैं- बचपन की साथी है वो मेरी, एक थाली में खाया साथ में बड़े हुए हम. जब उसने बताया की पति को छोड़ दिया तो इतना दुःख हुआ था मुझे . मैंने कल परसों ही उस से कहा था की घर बसा ले तुझसे ज्यादा मुझे परवाह है उसकी खुशियों की क्योंकि अपनी है वो . तेरे मन के मैल को तो मैं नहीं साफ़ कर सकता पर मैं तुझसे वादा करता हु की उसे उसके हिस्से की ख़ुशी जरुर मिलेगी. जब तक उसका नया घर नहीं बन जाता वो हवेली में ही रहेगी. अगर तेरी ममता जागी तो उसे यहाँ ले आना मैं खुद छोड़ जाऊंगा उसे पर अपनी बेटी को लेकर सर ऊँचा रख ऐसा कुछ नहीं किया उसने जो तुझे बदनामी दे.

दुनिया के दोहरे दस्तूर, अपने घर पर उसे रखना भी नहीं चाहती थी किसी और के साथ रहे तो इनको दिक्कत ही दिक्कत. वापिस आया तो पाया की मामी आई हुई थी.

“मंजू कहाँ है ” मैंने कहा

मामी- अपने विद्यालय गयी है कह कर गयी है की तुम खाना खा लेना .

मैं- तुमने खाया खाना

मामी- सोचा की तुम आओगे तभी खा लुंगी.

मैंने हाथ मुह धोये और हम खाने लगे.

मामी- तुम्हारे मामा मिलना चाहते है तुमसे

मैं- ये भी कोई बात हुई ,अभी मिलता हु उनसे. वैसे वो इधर क्यों नहीं आये

मामी- तुम जानते हो वो तुम्हारी माँ के कितना करीब थे, जब भी इधर देखते है उनका मन रो पड़ता है. मैंने सोचा की कही उनका बी पी न बढ़ जाये इसलिए इधर नहीं लायी .

मैं- फिर भी आना चाहिए था उनको

खैर, हमने खाना खाया . मामा मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे .

“कबीर, मुद्दते हुई मिले नहीं तुम ” मामा ने मुझे गले लगाते हुआ कहा

मैं- लौटा आया हूँ, अब नहीं नहीं जाने वाला

मामा- कबीर, तुमसे कुछ जरुरी बात करनी थी

मैं- जी

मामा- कबीर,कहने को तो कुछ नहीं है पर जो भी है बचा लो. घर का कलेश कुछ नहीं छोड़ता तीन मौत देख चूका हूँ अब और हिम्मत नहीं है. संभाल लो जो भी बचा है

मैं- मामा मेरा कोई दोष नहीं है , चाची मुझे कातिल समझती है पर ऐसा नहीं है . दूसरी बात जो भी हवेली से गया अपनी मर्जी से गया अब हवेली के दरवाजे उनके लिए बंद है . छोटी की शादी में मेरा रहा सहा भ्रम भी दूर हो गया. मैं तो आना ही नहीं चाहता था इस गाँव में अगर मुझे छोटी के ब्याह की सुचना नहीं मिलती पर अब आ गया हूँ तो बहुत से सवालो के जवाब तलाश करूँगा.

मामा- रिश्ते चाहे कितने भी दूर हो जाये रिश्ते टूटते नहीं है .

मैं- ये बात सिर्फ मुझ पर ही लागु नहीं होती.

मामा- तुम पर हक़ समझता हूँ इसलिए तुमसे ही कह सकता हूँ मुझे छुट्टी तीन दिन की ही मिली है पर मैं जल्दी ही वापिस आऊंगा और मिल कर कोशिश करेंगे की फिर से सब हंसी ख़ुशी साथ में जिए.

मामा के जाने के बाद मेरे पास कुछ नहीं था करने को हवेली जाने का मन नहीं था तो ताई के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए..................
बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है भाई! 👏🏻👏🏻👏🏻
 

sunoanuj

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#27

ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.

“आप यहाँ ” मैंने कहा

माँ- मिलना चाहती थी

मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.

माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.

हम दोनों पास में ही बैठ गए.

“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा

माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है

मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी

माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.

मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.

माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर

मैं- जरुर .

कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.

“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.

गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........

होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.

“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .

“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.

“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं- क्या हुआ मुझे,

दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.

“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने

दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में

दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई

मैं- तो

दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .

मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम

दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.

मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .

दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.

मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है

दरोगा- ये भी सही है दोस्त

मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे

दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई

दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.

मैं- तुम कब आई

ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे

मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे

मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता

ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो

मैं- कुछ भी तो नहीं

मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को

ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.

मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है

मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .

कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .

मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है

मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था

मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू

मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को

मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.

मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .

तभी ताई अन्दर आ गयी.

ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.

मैं- पता नहीं

ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है

मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.

दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........

“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
हर अपडेट एक नए रहस्य के साथ ख़त्म होता है !
बहुत ही शानदार लिख रहे हो भाई ! 👏🏻👏🏻👏🏻
 

sunoanuj

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#28

“बहनचोदो , तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की ” हवेली के टूटे दरवाजे को देखते हुए मैं जे सी बी वाले की तरफ लपका . हवेली को बहुत ज्यादा नुकसान कर दिया था इन लोगो ने . मशीन पर चढ़ कर मैंने ड्राईवर का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया.

“घर था ये मेरा, इसे छूने की हिम्मत कैसे हुई तेरी.” मैंने उसकी छाती पर घुटना मारा. दिमाग साला भन्ना गया था. पास पड़ा पत्थर उठा कर मैंने उसे दे मारा. खून से सन गया उसका बदन . पास खड़े ट्रेक्टर वाले कांपने लगे. कुछ मजदुर अपने औजार गिरा कर भागने लगे.

“हमारी कोई गलती नहीं ” एक बुजुर्ग मजदुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

मैं- तो किसकी गलती है , ऐसे किसी का भी घर तोड़ देगा तू

“हमें काम मिला था , ” उसने गिडगिडाते हुए कहा .

“इस से पहले की मैं उम्र का लिहाज भूल जाऊ चले जाओ यहाँ से ” बहुत मुस्किल से मैं अपने गुस्से को काबू कर रहा था .

तभी अचानक से हवेली के एक हिस्से की दिवार गिर गयी. पीछे से भी मशीन लगी थी तोड़ने के काम में .

किसी भी व्यक्ति के लिए सदमे से कम नहीं होता अपने घर को टूटते हुए देखना. मैंने पास में पड़ी फावली उठाई और दूसरी मशीन की तरफ लपका .

“बस यही नहीं करना था ” मुझे किसी की कोई परवाह नहीं थी ड्राईवर का मुह मैंने शीशे में ही दे दिया.

“ये मजदूरी बहुत महंगी पड़ेगी तुझे ” मैंने फावली उसकी पीठ पर दे मारी.

“कबीर, ये मत करो . किसी को मार नहीं सकते तुम ” दरोगे ने मेरी तरफ लपकते हुए कहा .

“आज नहीं , आज नहीं. आज कोई बीच में नहीं आएगा. मेरे घर की एक ईंट भी तोड़ने की हिम्मत कैसे हुई इन बहन चोदो की ” मैंने गुस्से से कहा

दरोगा- कबीर, मैं हु न . मुझे दो मिनट तो दे. सर फट गया है इसका कही मर मरा न जाये ये

मैं- परवाह नहीं मुझे, मुझे ये बताएगा की किसकी शह से इसकी औकात हुई इतनी की ये मेरे घर को ढाहने को तैयार हो गया.

“इन मजदूरो पर अपना जोर मत दिखा कबीर, इन्हें मैंने कहा था हवेली को तोड़ने के लिए ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा .

“तू इतना गिर जाएगी ये सोचा नहीं था मैंने, इस से पहले की मैं भूल जाऊ की तू कौन है इस से पहले की मैं इस खूबसूरत चेहरे की दशा बिगाड़ दू , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये करवाने की भाभी ” मैंने गुस्से से थूका.

भाभी- अपने हक़ से, हवेली की मालकिन होने के नाते मेरा पूरा अधिकार है की मैं अपनी प्रोपर्टी को जैसे चाहू वैसे इस्तेमाल करू.

मैं- कैसे हो गयी तू मालकिन, अरे जब हवेली को जरुरत थी तू छोड़ कर भाग गयी इसे.

भाभी- भागने की बात तू तो कर ही मत कबीर.

मैं- चली जा यहाँ से कहीं ऐसा न हो दुनिया कहे की कबीर ने औरत पर हाथ उठाया.

भाभी- कमजोर समझने की भूल न करियो कबीर, यहाँ से मैं नहीं बल्कि तू जायेगा वो भी अभी के अभी, दरोगा इस हवेली की मालकिन मैं हु , पिताजी ने मरने से पहले हवेली मेरे नाम कर दी थी ये रहे इसके कागज.

दरोगा भाभी के हाथ से लेकर कागज पढने लगा. उसके माथे की त्योरियो को बल खाते हुए मैंने देखा.

“कबीर , ये सही कहती है ” दरोगा ने धीमे से कहा

“कबीर, काजल ये क्या हो रहा है ” ताई जी ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा .

“हवेली तुडवा रही है ये ” मैंने कहा

ताई- काजल, ये क्या हरकत है . तू जानती है न हवेली की क्या अहमियत है हम सब के लिए , फिर क्यों ये तमाशा , गाँव बस्ती को क्यों मौका दे रहे हो तमाशा देखने का.

भाभी- मैं कोई तमाशा नहीं कर रही हूँ बड़ी मम्मी , मैंने कबीर से कहा था कुछ पर इसने मेरी बात नहीं मानी. और हवेली की मालकिन होने के नाते मुझे पूरा हक़ है चाहे मैं इसे रखु या मिटटी में मिला दू.

मैं- जिस कागज के टुकड़े पर तू इतरा रही है न भाभी , उसकी बत्ती बनाने में एक मिनट नहीं लगेगा मुझे.

भाभी- दरोगा इसी वक्त तुम मेरी शिकायत लिखो और इसे यहाँ से बाहर करो.

ताई- दरोगा, हमारे घर के मामले में पड़ने की जरुरत नहीं तुम्हे. अभी हम काबिल है हमारे मसले सुलझाने के लिए. फिलहाल तुम इन मजदूरो को यहाँ से ले जाओ .

दरोगा मेरे पास आया और बोला- कबीर, ऐसा वैसा कुछ मत करना जिससे तुम्हारे लिए परेशानी बढे. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मजदूरो को लेकर चला गया.

ताई- काजल, बेशक तुम मालकिन हो हवेली की . पर हक़ ऐसे नहीं मिलते. हवेली ही क्या हमारे पास जो भी है सब कुछ तुम्हारा ही है न . फिर ये हरकत क्यों . तुम वही काजल हो न घंटो इस सूनी हवेली में बैठा करती थी ,ये इतना गुस्सा क्यों की अपने ही घर को तोड़ने पर आतुर हो गयी तुम

भाभी- जिद नहीं है बड़ी मम्मी मेरी. मैंने कबीर से स्पष्ट शब्दों में कहा था की मंजू को हवेली में ना रहने दे. पर इसकी तो जिद है

ताई- कबीर बस उसकी सुरक्षा चाहता था , ये मसला मेरे संज्ञान में भी था और मैंने कबीर को समझा भी दिया था की मंजू मेरे घर रहेगी.

मैं- मंजू से तो हमेशा ही खुन्नस रखी है भाभी ने

भाभी- उसका कारण भी तुम ही हो, मैं खोदना नहीं चाहती गड़े मुर्दों को

मैं- जब इतना सब कर लिया है तो वो भी कर लो.

“चुप हो जाओ तुम लोग, मैं तुम सबकी माँ हूँ , और हर माँ को पता होता है की उसकी औलादे कैसी है . काजल फ़िलहाल तुम जाओ यहाँ से मैं बाद में मिलूंगी तुमसे और कबीर तुम शांत हो जाओ, क्लेश अच्छा नहीं वो जब घर में मौत हुई पड़ी हो. रिश्तेदार लोग है, परिवार की रही सही इज्जत पर बट्टा मत लगाओ. कबीर हवेली से तुमको कोई नहीं निकाल सकता हवेली तुम्हारी ही है . जो भी नुकसान हुआ है छोटे के दिनों के बाद मरम्मत करवा लेंगे. ” ताई ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा.

मैं बस उसके सीने से लग कर रो पड़ा. बहुत देर तक मैं रोता रहा .

“तू क्यों खड़ी है दूर इधर आ ” ताई ने भाभी को भी गले से लगा लिया. बहनचोद कैसा पारिवारिक प्यार था जिसमे एक दुसरे से नफरत भी थी और लगाव भी था.

“कब तक नीम के निचे ही बैठा रहेगा ” ताई ने कहा

मैं- कुछ नहीं रहा इस गाँव में मेरा , लौटना ही नहीं चाहता था मैं पर मेरी किस्मत न जाने क्या चाहती है मुझे ले आई यहाँ

ताई- अपने घर तो परिंदे भी लौट आते है फिर तू क्यों नहीं आयेगा.

“कुछ देर अकेला छोड़ दो मुझे. ” मैंने कहा

ताई- अकेला छोड़ दूंगी पर अकेला होने नहीं दूंगी. मेरे घर चल अभी के अभी

मैं- आप चलो, मैं आता हु थोड़ी देर में

“नहीं आयेगा फिर तू ” बोली वो

मैं- आ जाऊंगा , थोड़ी देर अकेले रहना चाहता हु.


टूटे कदमो से मैं हवेली के अन्दर गया. धुल मिटटी से सनी चारपाई को सीधा किया. मटके को मुह से लगा कर पानी पिया . माँ की तस्वीर खूँटी पर लटक गयी थी मिअने उसे सीने से लगाया और आंसुओ को बस बहने दिया....................
बहुत ही उम्दा और भावुक अपडेट है !
 
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