Avaran
एवरन
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Raj_sharma Ab Jaldi se Update aana chahiye Review Sab dediye mein
nice update
Shandaar update![]()
Alex in sab ke pas pahuch gaya, aur Cristy ke man ki baate bhi jaan raha hai, kuch bhi ho is tension bhare daur me masti majaak ka kuch maahool in sabko mil hi gaya, waise alex ki shaktiya aage in sabke kaam aayengi, ab 2-3 log hain jinke pas ab shaktiya hain. Overall hamesha ki tarah ye bhi ek dhasu Update hi tha![]()
Acha update tha bhai
Ab jhopdi se tilism mei entry hogi aur aakriti ka bhi bhed khul gy
बहुत ही शानदार रचना लिखी है
आगे तिलिस्म का जादू कहानी को और अथिक रोमांचक बनायेगे
Awesome update❤❤
Bhut hi badhiya update Bhai
Lufasa ne sabhi logo ko aakriti ke kaid se aazad karwa diya aur sabhi logo ka aapas me parichay bhi huva
Idhar in sab logo ne milkar jhopdi ke Pankh to bade kar diye dhekte hai ab ye jhopdi ko udate kese hai
Nice update....
Shandar update bro
Brother itne sare questions phir se aapne jama kar liya hai matlab abhi readers ko aur interesting cheez padhne ko milne wali hai.
Let's see aap kaise har ek sawaal ka jawab dete hain.
Wonderful update brother.
Bhut hi मेहनत se likh rahe hai.aap.... aise hi likhte rahe .....
lovely update. jhopdi ko udana kathin tha par sabne dimag lagakar uda hi diya ,har ek cheej ka istemal hua udane me ,khopdi ki mala ek card ya pass ki tarah thi jisse sab tilisma me jaa sake .
ab tilisma me kaise kaise paheliyo se saamna hota hai sabka dekhte hai .
waise aapne sahi kaha ek lekhak ke baare me ,agar kahani se judaw banana hai to uske paas hunar hona jaruri hai .
Gazab ki update he Raj_sharma Bhai,
Aapsi ekta aur sujhbujh se aakhirkar suyash and party ne mayavan ko paar kar hi liya.........
Sadharan se manushayo ne devtao ke banaye mayajaal ko apne sahas ke bal par paar kar liya..
Sawal to bahut sare he.........lekin uttar bhi sab ke milenge jald hi.........
Keep rocking Bro
फिर एक अद्भुत अविस्मरणीय रोमांचकारी धमाकेदार और क्या क्या यानी बिलकुल निशब्द करने वाला अपडेट है भाई मजा आ गया
सुयश और टीम को अभी तक मायावन पार करने में कुछ दैवी शक्ती का साथ मिला अब सामने हैं सबसे खतरनाक तिलीस्मा जहा सुयश और टीम की इच्छा शक्ती बुद्धी और सुजबुझ के साथ एकता की शक्ति की कसोटी लगने वाली है उसे तोडने में
हर लेखक को पाठकों का प्रतिक्रिया रुप समर्थन मिले तो वो लेखन के लिये एक टाॅनिक का काम करती है
मै मेरी ओर से सभी पाठकों को निवेदन करता हुं आप अपने प्रतिक्रिया रुपी विचार प्रगट कर लेखक का सन्मान करके उनका उत्साह बढायें
बाकी सभी समझदार हैं
खैर देखते हैं आगे क्या रोमांच पिरो के रखा हैं
Raj_sharma bhai next update kab tak aayega?
I
Intezar rahega update ka raj bhai
Raj_sharma Ab Jaldi se Update aana chahiye Review Sab dediye mein
Shaandar jabardast update#144.
सुयश ने उस कील से खोपड़ी की माला उतार ली। माला उतारने के बाद, वह कील थोड़ी सी ऊपर की ओर खिसक गई, पर सुयश इस बदलाव को देख नहीं पाया।
सुयश ने खोपड़ी वाली माला को उलट-पुलट कर देखा, पर उसमें कुछ भी विचित्र नहीं था।
काफी देर तक ऐसे ही झोपड़ी में घूमने के बाद भी, किसी को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिससे यह पता चल पाता कि झोपड़ी कैसे उड़ेगी?
“कैप्टेन, क्यों ना इस काँच के बर्तन में भी हाथ डालकर उन मछलियों को देखें? क्या पता उनमें कुछ रहस्य छिपा हो।” तौफीक ने कहा।
सुयश की बात सुन जेनिथ ने आगे बढ़कर पहले उस नीलकमल को निकाल लिया, पर नीलकमल को निकालते ही झोपड़ी ऊपर की ओर हवा में उड़ने लगी।
यह देख सभी जमीन पर बैठ गये
“यह कैसे संभव हुआ? इस फूल को तो पहले भी हम निकाल कर देख चुके थे, तब तो कुछ नहीं हुआ था।” ऐलेक्स ने आश्चर्य से उस फूल की ओर देखते हुए कहा।
झोपड़ी अब हवा में नाच रही थी, पर अब उसे जमीन पर उतारना किसी को नहीं आता था। झोपड़ी के उड़ने से, इन्हें झटके नहीं लग रहे थे।
जब कुछ देर तक झोपड़ी को उड़ते हुए हो गया, तो सुयश बोल उठा- “लगता है कि इस झोपड़ी को उतारना भी हमें ही पड़ेगा।....जेनिथ तुम फूल को अपनी जगह पर वापस रख दो।”
जेनिथ ने फूल को वापस रख दिया, फिर भी झोपड़ी का उड़ना बंद नहीं हुआ। जेनिथ ने यह देख फूल को थोड़ा हिला-डुला कर देखा।
पर जेनिथ के फूल को हिलाते ही, झोपड़ी एक ही जगह पर गोल-गोल नाचने लगी।
यह देख सुयश उस नीलकमल के पास आकर ध्यान से उस फूल को देखने लगा।
“यह पूरा सिस्टम किसी मशीन की तरह काम कर रहा है।” सुयश ने कहा- “जैसे कि कोई कार। अब अगर ध्यान दें तो उस मटकी का पानी इस झोपड़ी का फ्यूल का काम कर रहा है, यह फूल इस झोपड़ी का स्टेयरिंग है। हम इस फूल को जिस दिशा में घुमा रहें हैं, यह झोपड़ी उस दिशा में घूम जा रही है। फिर तो काँच में मौजूद यह द्रव्य इंजन ऑयल की तरह होगा। इसका साफ मतलब है कि कहीं ना कहीं इस झोपड़ी को स्टार्ट करने वाला इग्नीशन भी रहा होगा, जिससे हमने अंजाने में ही, इस झोपड़ी को आसमान में उड़ा दिया। पर कहां?”
इतना कहकर सुयश अपने हाथ में पकड़ी, उस खोपड़ी की माला को देखने लगा। कुछ पल सुयश ने सोचा और उस खोपड़ी की माला को उसी कील पर टांग दिया।
माला के कील पर टंगते ही झोपड़ी जमीन पर उतर गई। अब झोपड़ी के दरवाजे के सामने पोसाईडन की मूर्ति दिखाई दे रही थी।
पोसाईडन की मूर्ति के पैर में एक बड़ा सा दरवाजा खुला हुआ दिखाई दे रहा था।
“लगता है कि हमें उस पोसाईडन की मूर्ति के, पैर में बने दरवाजे से, अंदर की ओर जाना है।” तौफीक ने बाहर की ओर देखते हुए कहा।
ऐलेक्स ने जैसे ही झोपड़ी के दरवाजे से बाहर जाने के अपना कदम बाहर की ओर बढ़ाया ।
एकाएक क्रिस्टी ने ऐलेक्स का हाथ जोर से अंदर की ओर खींचा।
ऐलेक्स झोपड़ी के अंदर आ गिरा और क्रिस्टी को अजीब सी नजरों से घूरने लगा।
“क्या हुआ क्रिस्टी? तुमने ऐलेक्स के साथ ऐसा क्यों किया?” सुयश ने भी क्रिस्टी को घूरते हुए पूछा।
“कैप्टेन, जब ऐलेक्स ने अपना पैर बाहर की ओर निकाला, तो उसका पैर बाहर दिखाई नहीं दिया, इसी लिये मैंने ऐलेक्स को अंदर की ओर खींचा था।” क्रिस्टी के शब्द पूरी तरह से रहस्य से भरे नजर आ रहे थे।
“मैं कुछ समझा नहीं ।” ऐलेक्स को भी क्रिस्टी की बातें समझ में नहीं आयी- “तुम कहना क्या चाहती हो क्रिस्टी?”
“आओ, दिखाती हूं तुम्हें।” यह कहकर क्रिस्टी ने ऐलेक्स को सहारा देकर जमीन से उठाया और उसे लेकर झोपड़ी के द्वार के पास पहुंच गयी।
“अब जरा एक बार फिर अपना पैर झोपड़ी से बाहर निकालो ऐलेक्स।” क्रिस्टी ने कहा।
ऐलेक्स ने क्रिस्टी के कहे अनुसार अपना एक पैर बाहर निकाला, पर ऐलेक्स को अपना पैर द्वार से बाहर कहीं दिखाई नहीं दिया।
यह देख ऐलेक्स ने घबरा कर अपना पैर वापस अंदर की ओर खींच लिया।
“यह कौन सी परेशानी है? यह दरवाजा हमें कहां ले जा रहा है?” सुयश ने कहा।
“कैप्टेन अंकल, शायद यह द्वार हमें तिलिस्मा में नहीं बल्कि कहीं और ले जा रहा है।” शैफाली ने अपना तर्क दिया।
“तो फिर क्या हम सामने दिख रहे तिलिस्म में प्रवेश नहीं कर सकते?” जेनिथ ने कहा।
“कुछ तो गड़बड़ है, जो हमें समझ में नहीं आ रहा?” सुयश का दिमाग तेजी से चलने लगा- “कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें तिलिस्मा में घुसने के लिये कोई कार्ड या फिर गेट पास जैसी कोई चीज चाहिये, क्यों कि
तिलिस्मा में हमें ले तो यही झोपड़ी जायेगी।”
“कैप्टेन अंकल क्या पता हमें झोपड़ी में मौजूद किसी सामान को लेकर तिलिस्मा में जाना हो?” शैफाली ने कहा- “अगर आप कहें तो ये भी ट्राई करके देख लें।”
“चलो यह भी करके देख लेते हैं।” सुयश ने कहा- “सबसे पहले इस मटकी को ले चलते हैं क्यों कि जब पंख को पानी पिलाने के बाद खिड़की गायब हो गई, तो मटकी क्यों नहीं हुई। इसका मतलब मटकी का काम अभी झोपड़ी से खत्म नहीं हुआ है।”
यह कहकर सुयश ने मटकी तौफीक को पकड़ा कर बाहर निकलने की ओर इशारा किया।
तौफीक ने मटकी को लेकर झोपड़ी से निकलने की कोशिश की। पर वह बाहर नहीं जा पाया।
इसके बाद उसने फूल को ट्राई किया, फिर भी वो सफल नहीं हुआ। अब फूल को यथा स्थान रखकर तौफीक ने खोपड़ी की माला उतार ली।
तौफीक उस खोपड़ी की माला को जैसे लेकर निकलने चला, वह आसानी से बाहर निकल गया।
यह देख सबकी जान में जान आयी।
“तो इस खोपड़ी की माला को लेकर बाहर निकलना था।” सुयश ने हंसकर कहा- “यही है तिलिस्मा का गेट पास।“
अब तौफीक ने खोपड़ी को वापस अंदर की ओर फेंक दिया। इस बार शैफाली खोपड़ी लेकर बाहर निकल गयी।
उसके बाद फिर क्रिस्टी, फिर ऐलेक्स और फिर जेनिथ। जेनिथ ने बाहर निकलकर खोपड़ी को वापस अंदर की ओर फेंक दिया।
पर सुयश ने जब बाहर निकलने की कोशिश की तो इस बार उसे करंट का झटका लगा। तयह देख सुयश हैरान हो गया।
“इस माला ने सबको निकाल दिया, पर यह माला मुझे बाहर लेकर क्यों नहीं जा रही है?” सुयश मन ही मन बड़बड़ा उठा।
तभी तौफीक ने सुयश को बाहर ना निकलते देख पूछ लिया- “क्या हुआ कैप्टेन आप बाहर क्यों नहीं आ रहे हैं?”
सुयश ने तौफीक को भी परेशानी बता दी।
यह सुन तौफीक अंदर की ओर वापस आने चला, पर उसे करंट का झटका लगा, जिसका साफ मतलब था कि बाहर आया हुआ कोई भी व्यक्ति अब अंदर नहीं जा सकता।
यानि कि सुयश को अपनी परेशानी स्वयं ही समाप्त करनी थी। सुयश लगातार सोच रहा था।
तभी उसकी नजर उस कील पर गई, जिस पर वह खोपड़ी की माला लटकी थी।
सुयश अब वहां जाकर ध्यान से उस कील को देखने लगा। कील को छूने पर सुयश को वह कील हिलती हुई दिखाई दी।
अब सुयश इस मायाजाल को समझ गया था।
“तो ये बात है, इस खोपड़ी की माला को उतारते ही यह कील ऊपर की ओर हो जाती है, यानि यही इस झोपड़ी का इग्नीशन है, जो कि इसे उड़ाने में सहायक है। यानि कि मैं बिना माला टांगे यहां से बाहर नहीं जा सकता और बिना इस माला को लिये भी मैं बाहर नहीं जा सकता। ...... हे भगवान अब ये कैसा मायाजाल है?” अब सुयश परेशान हो उठा।
“कैसे....आखिर कैसे यह संभव है?”
तभी सुयश को सामने पड़ी मटकी दिखाई दी।
उसे तुरंत अपने ही बोले शब्द याद आ गये कि मटकी का कार्य अगर खत्म हो जाता तो मटकी भी गायब हो गई होती।
यह ध्यान कर सुयश की आँखें खुशी से चमकने लगीं।
उसने एक हाथ में खोपड़ी और दूसरे हाथ में मटकी लेकर दोनों का वजन किया। दोनों का ही वजन लगभग एक समान ही था।
अब सुयश ने सोने के डोंगे में बंधे धागे को खोलकर उस धागे से मटकी को बांधकर, उसे भी खोपड़ी की माला जैसा बना दिया।
अब सुयश ने खोपड़ी की माला को उतारकर अपने गले में पहन लिया। इसके बाद उस मटकी की माला को उस कील पर टांग दिया।
मटकी को कील पर टांगते ही कील वापस नीचे आ गई।
अब सुयश मुस्कुराया और झोपड़ी के द्वार की ओर चल दिया। वह समझ गया था कि दीवार पर खोपड़ी की माला टंगे रहना जरुरी नहीं था, बल्कि उस कील का नीचे झुके रहना जरुरी था।
सुयश ने अपना एक पैर बाहर निकाला और फिर पूरा का पूरा बाहर निकल गया। सभी सुयश को बाहर निकलते देखकर खुश हो गये।
तभी झोपड़ी हवा में गायब हो गई और झोपड़ी के अंदर रखा वह पत्थर, काँच के बर्तन, मछली और नीलकमल पोसाईडन के पैर में बने दरवाजे में समा गया।
सभी ने एक दूसरे को देखकर, फिर हाथ मिलाये और एकता की शक्ति का मूलमंत्र दोहराते हुए पोसाईडन पर्वत के पैर में बने दरवाजे की ओर बढ़ चले।
यह वो साधारण मनुष्य थे, जिनके पास हिम्मत, विश्वास, बुद्धि, ज्ञान और सबसे बढ़कर कभी ना झुकने का हौसला था।
उन्हें डर नहीं था, देवताओं की उन शक्ति से भी, जो तिलिस्मा के अंदर मौत बनकर बैठी उनका इंतजार कर रहीं थीं।
वह सभी तिलिस्मा की ओर ऐसे बढ़ रहे थे, जैसे कुछ मतवाले हाथियों का झुण्ड लहलहाते हुए गन्ने के खेत की ओर बढ़ता है।
प्रश्नमाला
दोस्तों जैसा कि आप देख रहे हैं कि यह कथानक बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है और हर पेज पर आपके दिमाग एक नया प्रश्न खड़ा करता जा रहा है। प्रश्नों की संख्या अब इतनी ज्यादा हो चुकी है कि अब
वह मस्तिष्क में एकत्रित नहीं हो पा रहे हैं।
तो क्यों न इन सारे प्रश्नों को एक जगह पर एकत्रित कर लें-
1) क्या वेगा अराका द्वीप के बारे में सबकुछ जानता था?
2) ‘अटलांटिस का इतिहास’ नामक किताब ‘लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस' में कैसे पहुची? क्या इसके लेखक वेगा के बाबा कलाट ही थे? क्या इस किताब से और भी राज आगे खुले?
3) क्या वेगा को सम्मोहन आता था?
4) नीलाभ अब कहां गायब हो गया था? उसके पास कैसी शक्तियां थीं?
5) माया से विदा लेने के बाद मेरोन और सोफिया का क्या हुआ?
6) ट्रांस अंटार्कटिक के पहाड़ों में दबा शलाका का महल असल में क्या था?
7) हनुका कौन था? ...देव ने नीलाभ के विवाह में उपहार स्वरुप हनुका को क्यों दिया?
8) क्या थी वह जीवशक्ति और वृक्षशक्ति जिससे मैग्ना ने मायावन का निर्माण किया था?
9) क्या जेनिथ सुयश के सामने तौफीक का राज खोल पायी?
10) पंचशूल का निर्माण किसने और क्यों किया था?
11) क्रिस्टी को नदी की तली से मिली, वह काँच की पेंसिल कैसी थी?
12) हवा के गोले में समाने के बाद गोंजालो का क्या हुआ?
13) कैस्पर के समुद्री घोड़े जीको का क्या रहस्य था? वह उड़ने वाला घोड़ा कैसे बन जाता था?
14) क्या देवी शलाका के भाइयों के पास सच में कोई शक्ति थी?
15) शैफाली को मैग्ना की ड्रेस तक पहुंचाने वाली पेंग्विन और डॉल्फिन क्या थीं?
16) धरा के भाई विराज के बारे में वेगा कैसे जान गया था? वेगा को वीनस की भी सारी बातें पता थीं। तो क्या वेगा के पास और भी कोई शक्ति थी?
17) काँच के अष्टकोण में बंद वह छोटा बालक कौन था? जिसका चित्र देखकर सुयश को कुछ आवाजें सुनाई देनें लगीं थीं?
18) वेदांत रहस्यम् में ऐसे कौन से राज छिपे थे? जिसके कारण शलाका सुयश को वह किताब पढ़ने नहीं दे रही थी?
19) लुफासा की इच्छाधारी शक्ति का क्या रहस्य था?
20) सीनोर राज्य में मकोटा ने पिरामिड क्यों बनवाया था?
21) मकोटा के द्वारा आकृति को दिये ‘नीलदंड’ में क्या विशेषताएं थीं?
22) आकृति का चेहरा शलाका से कैसे मिलने लगा? वह पिछले 5000 वर्षों से जिंदा कैसे है?
23) ऐमू के अमरत्व का क्या राज है?
24) जैगन का सेवक गोंजालो का क्या राज है? सीनोर राज्य में उसकी मूर्ति क्यों लगी है?
25) क्या सनूरा की शक्तियों का राज एक रहस्यमय बिल्ली है?
26) आकृति वेदांत रहस्यम् क्यों छीनना चाह रही थी?
27) आर्यन ने स्वयं अपनी मौत का वरण क्यों किया था?
28) आकृति शलाका के चेहरे से क्यों परेशान है?
29) मैग्ना का ड्रैगन, लैडन नदी की तली में क्यों सो रहा था? मेलाइट उसे क्यों जगाना चाहती थी?
30) पृथ्वी की ओजोन लेयर कैसे टूट गयी थी?
31) 3 आँख और 4 हाथ वाले उस विचित्र जीव का क्या रहस्य था? कैस्पर की शक्तियां इस्तेमाल करके उसे किसने बनाया था?
32) सुर्वया की दिव्यदृष्टि का क्या रहस्य था?
33) ब्रह्मकलश के अमरत्व का क्या रहस्य था?
34) आकृति सुनहरी ढाल क्यों प्राप्त करना चाहती थी?
35) वुल्फा कौन था? क्या उसमें भी शैतानी शक्तियां थीं?
36) उड़नतश्तरी के अंदर मौजूद 6 फुट का हरा कीड़ा बाकी कीड़ों से अलग क्यों था? वह इंसानों की तरह कैसे चल रहा था?
37) मकोटा के सर्पदंड का क्या रहस्य था?
38) सामरा राज्य पर स्थित अटलांटिस वृक्ष का क्या रहस्य है? उसने किस प्रकार युगाका को वृक्षशक्ति दी?
39) सागरिका, वेगिका, अग्निका आदि चमत्कारी पुस्तकों का क्या रहस्य था?
40) कैसा था तिलिस्मा? उसमें कौन सी मुसीबतें छिपीं थीं?
41) क्या तिलिस्मा में घुसे सभी लोग तिलिस्मा को पार कर काला मोती प्राप्त कर सके?
42) क्या माया कैस्पर को उसकी असलियत बता पायी?
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल होंगे जो आपके दिमाग में घूम रहे होंगें।
तो दोस्तों इन सारे अनसुलझे सवालों के जवाब हम इस समय नहीं दे पा रहे हैं। तो इंतजार कीजिए हमारे इसके अगले चैप्टर का जिसमें हम आपको ले चलेंगे, इस तिलिस्म के एक ऐसे अद्भुत संसार में, जहां पर छिपी तिलिस्मी मौत बेसब्री से अपने शिकार का इंतजार कर रही है।....................
दोस्तों इन्द्रधनुष के रंगों की मांनिद होती है एक लेखक की रचनाएं। जिस प्रकार इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार लेखक की रचनाओं में भी सात रंग पाये जाते हैं। हर रंग अपने आप में एक अलग पहचान रखता है।
एक उच्चस्तरीय लेख लिखने के लिए सबसे पहले एक सम्मोहक कथानक की आवश्यकता होती है, फिर इसके एक एक पात्र को मनका समझकर माला में पिरोया जाता है, जिससे पाठकों को हर एक पात्र के जीवंत दर्शन हो सके।
फिर कल्पना के असीम सागर में डुबकी लगाकर मोतियों की तरह एक एक शब्द को चुनकर उनके भावों को अभिव्यक्त करना पड़ता है। तब कहीं जाकर तैयार होती है एक लेखक की रचना।
दोस्तों इस कथा को लिखने में बहुत मेहनत और शोध लगा है। अगर आपको यह कथा अच्छी लगी, तो कृपया इसको रिव्यू देना ना भूलें। आपका यह छोटा सा प्रयास मुझे और अच्छा लिखने के लिये प्रेरित करेगा।
"दूसरों को बनाने में तमाम उम्र गुजारी है,
पंख नये हैं पर अब मेरे उड़ने की बारी है“
जारी ररहेगा_______![]()
लाजवाब update.... Casper ने अपनी पसंद के घोड़े का निर्माण कर लिया....तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।
इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।
मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।
इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?
ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:
“तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”
#145.
चैपटर-1
कल्पना शक्ति: (19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)
जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।
बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।
एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।
माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।
माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।
माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।
माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।
माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।
इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।
इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।
फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।
कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।
दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।
माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।
इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।
हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।
“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।
मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।
“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।
“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”
“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।
“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।
माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।
इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।
गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।
माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।
“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”
सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।
“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”
“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।
“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।
“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”
कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।
“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।
“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”
मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।
तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।
उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”
माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।
कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।
कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।
कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।
माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।
क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।
“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।
“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”
यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।
दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।
"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।
"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।
"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।
कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।
माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।
अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।
तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।
इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।
मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।
मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।
माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।
यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”
कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।
माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।
एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।
कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।
“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”
“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।
“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।
कैस्पर ने ऐसा ही किया।
कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।
जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।
कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।
माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।
उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।
कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।
कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”
“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।
“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।
जारी रहेगा..........![]()
लाजवाब update.... Casper ने अपनी पसंद के घोड़े का निर्माण कर लिया....तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।
इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।
मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।
इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?
ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:
“तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”
#145.
चैपटर-1
कल्पना शक्ति: (19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)
जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।
बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।
एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।
माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।
माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।
माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।
माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।
माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।
इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।
इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।
फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।
कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।
दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।
माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।
इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।
हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।
“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।
मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।
“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।
“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”
“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।
“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।
माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।
इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।
गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।
माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।
“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”
सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।
“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”
“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।
“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।
“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”
कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।
“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।
“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”
मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।
तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।
उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”
माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।
कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।
कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।
कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।
माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।
क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।
“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।
“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”
यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।
दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।
"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।
"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।
"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।
कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।
माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।
अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।
तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।
इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।
मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।
मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।
माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।
यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”
कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।
माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।
एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।
कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।
“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”
“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।
“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।
कैस्पर ने ऐसा ही किया।
कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।
जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।
कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।
माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।
उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।
कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।
कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”
“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।
“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।
जारी रहेगा..........![]()
Excellent update and awesome storyतिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।
इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।
मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।
इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?
ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:
“तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”
#145.
चैपटर-1
कल्पना शक्ति: (19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)
जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।
बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।
एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।
माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।
माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।
माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।
माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।
माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।
इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।
इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।
फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।
कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।
दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।
माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।
इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।
हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।
“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।
मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।
“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।
“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”
“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।
“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।
माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।
इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।
गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।
माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।
“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”
सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।
“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”
“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।
“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।
“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”
कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।
“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।
“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”
मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।
तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।
उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”
माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।
कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।
कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।
कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।
माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।
क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।
“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।
“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”
यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।
दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।
"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।
"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।
"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।
कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।
माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।
अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।
तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।
इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।
मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।
मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।
माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।
यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”
कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।
माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।
एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।
कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।
“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”
“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।
“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।
कैस्पर ने ऐसा ही किया।
कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।
जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।
कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।
माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।
उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।
कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।
कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”
“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।
“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।
जारी रहेगा..........![]()
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।
इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।
मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।
इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?
ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:
“तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”
#145.
चैपटर-1
कल्पना शक्ति: (19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)
जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।
बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।
एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।
माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।
माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।
माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।
माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।
माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।
इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।
इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।
फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।
कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।
दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।
माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।
इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।
हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।
“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।
मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।
“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।
“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।
“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”
“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।
“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।
माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।
इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।
गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।
माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।
“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”
सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।
“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”
“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।
“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।
“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”
कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।
“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।
“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”
मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।
तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।
उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”
माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।
कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।
कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।
कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।
माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।
क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।
“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।
“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”
यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।
दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।
"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।
"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।
"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”
कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।
कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।
माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।
अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।
तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।
इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।
मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।
मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।
माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।
यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”
कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।
माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।
एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।
कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।
“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”
“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।
“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।
कैस्पर ने ऐसा ही किया।
कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।
जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।
कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।
माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।
उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।
कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।
कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”
“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।
“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।
जारी रहेगा..........![]()