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Incest रिश्तों का कामुक संगम

Kumarshiva

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ननद भौजाई होली में रगड़ाई भाग-२

राजू और गुड्डी ठंढई पी चुके थे। ठंढई पीने के बाद दोनों एक दूजे से लिपट गए।
गुड्डी अपने चूचियों को राजू की छाती में दबाते हुए बोली," राजू, हम चाहत बानि की आज होली के दिन, तू आपन गलती सुधार लअ। उ गलती जउन तू हमार गर्भपात कराके कइले रहलु। आज तू आपन लांडरूपी हल से, हमार कोख रूपी खेत में बूर के माध्यम से आपन वीर्य रूपी बिया गिरा द। उ बिया हम आपन कोख में फसल जइसे पूरा आठ नौ महीना तक रखब और ओकर बाद बच्चा जनके, हम दुनु उ बच्चा के फसल जइसन लहलहात देखब।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू सच कहत बारू। हम तहार गुनाहगार बानि। केहू आपन बच्चा के कइसे गिरा सकेला।"
गुड्डी," अब तू हमार जइसन मत सोच, जउन हो गइल उ हो गइल। अब हमनी के आगे के सोचे के बा। हम दुनु के खातिर जउन तू उ समय कइले रहलु, उ ठीक रहे। पर भगवान आपन प्यार के एगो अउर मउका देले बानि। ई मउका हाथ से जाय न दअ। सोच जब बच्चा होई त का होई?
राजू उसके चूचियों पर सर रख पूछा," का होई?
गुड्डी," जब हमार प्रसव हो जाई अउर बच्चा जनम ली, त हम दुनु माई- बाबू बन जाएब। हम बहिन होखे आपन सगा भाई के बच्चा के माई बनब। तू आपन सगी बहिनिया के बच्चा के बाप बनबु। जउन बच्चा तहार भगना चाहे भगनी होखे चाही उहे असल में तहार बेटा चाहे बेटी होई। वसही हम ओकर माई रहब, फुआ से पहिले।"
राजू," मतलब ई कि, उ हमार बच्चा भी रही अउर भांजी भी, वसही तू ओकर माई भी रहबु अउर फुआ भी। ई कइसन रिश्ता के उलझन होई।"
गुड्डी," रिश्ता के उलझन न, रिश्तों के कामुक संगम होई। भाई बहिन के अंतरंग, अनुचित पर निश्छल अउर पवित्र प्रेम के प्रतीक। उ तहार अउर हमार काम वासना के अगिया कभू बूते न दी, काहे कि ओकरा देख के हम दुनु आपस के कामुक कुकृत्य याद कइके फेर से रिश्ता के कामुक संगम में डुबकी लगाएब।"
राजू," गुड्डी दीदी, तहरा केतना बच्चा चाही?
गुड्डी," राजू, हम चाहत बानि कि हमनी कम से कम चार बच्चा करि। हमके बड़ा शौक बा, घर में ढ़ेर बच्चा होखे चाही। हम दिनभर घर अउर बच्चा संभारब, अउर रतिया में बचवन के पापा के।"
राजू," लेकिन ओकर मतलब बा कि पूरा पांच साल हम दुनु के चुदाई बन्द हो जाई।"
गुड्डी," जब घर के आगे के दरवाजा बंद होखेला न, त लोक घर के बाहर न रहेला। पाछे के दरवाजा से अंदर घुसेला। आगे से बूर में न डाल पईबु, त हमार गाँड़ में लांड डालके मज़ा लिहा। उमे त कोनो रोक न रही।"
राजू," गुड्डी दीदी, तब त मज़ा आ जाई। एतना बच्चा होई त तू अगला दस साल तक दूध देत रहबु। तहार दूध पीके हम तहरे खूब चोदब।"
गुड्डी," ई त तहार हक़ बा, बोले वाला बात नइखे। हर मरद आपन माई के अलावा पत्नी के दूध जरूर पिएला। एमे कुछ गलत नइखे। स्त्री के स्तन इहे खातिर होखेला, अगर ई खाली बच्चा के दूध पियाबे खातिर रहित, त बच्चा जेतना दूध पिएला उ से बहुत ज्यादे दूध चुच्ची में आवेला।"
राजू," फेर त हम रोज राति तहार दूध पियब।"
गुड्डी," पहिले हमके जमके चोदके, हमार दूध पीके आपन थकान मिटा लिहा। ओकर बाद हमार बाँहिया में सूत रहिया। मोर बचवन के होखे वाला पापा।"
राजू," गुड्डी दीदी, ई शुभ काम में देरी काहे के।" राजू ने गुड्डी की बूर में लण्ड डाल उसे घोड़ी बनाके चोदने लगा।गुड्डी अपने भाई का लण्ड पूरे मज़े से लेने लगी। राजू और गुड्डी की भीषण चुदाई चल रही थी।

तभी कोई बोला," गुड़िया तू इहे सब करेलु भाई के साथ।"
दोनों ने मुड़के देखा, तो वहां गुड़िया का पति अशोक खड़ा था।
गुड्डी पहले तो चौंकी क्योंकि ये राजू और गुड्डी का निजी अंतरंग क्षण था। पर फिर खुद को संभाल बोली," जब भतार के लांड में नइखे दम, त मेहरू के दोसर लांड लेवे में काहे के शरम। रउवा के आश्चर्य काहे होता, तहरा त सब मालूमे बा। केहू अउर त नइखे आईल रउवा साथे।"
अशोक," न, केहू नइखे।"
राजू," जीजा देख औरतिया के कइसन चोदल जावेला। सिखबा त सीख ल।"
गुड्डी," ई सीख के का करिहें, एकर त लांड न खड़ा होखेला। ई खाली गाँड़ मराबे जानेला। देखबा, असली लांड कइसन होखेला।" ऐसा बोल गुड्डी उठी और अपने छोटे भाई का लण्ड हिलाते हुए बोली," ई देख अइसन होखेला, लंबा, मोटा, अउर कड़क। औरत दिनभर जउन काम करेली, रात के पति के नीचे बूर में लांड लेके, पेलवाके थकान दूर कर आराम से सुतेली।"
अशोक," हमरा माफ कर द। तू आपन भाई के साथे रासलीला मना ताकि तू बच्चा के माई बने। बच्चा के नाम हम देब।
गुड्डी," उ त देबे करबु ऐसे कि तहार सच्चाई दुनिया के सामने न आ जाये।"
राजू," जीजा, अगर तू चाहेलु कि बच्चा के तहार नाम मिले त, हम चाहत बानि कि तू हमसे आपन पत्नी के चुदाबे खातिर प्रार्थना कर।"
गुड्डी समझ गयी कि राजू का मक़सद अशोक को जलील करना है, वो मन ही मन हंसी और फिर अशोक से बोली," का भईल इहे मउका बा, तू ई घर के अउर आपन जीवन में सुकून चाहेलु, त हमार भाई के आगे हाथ जोड़के प्रार्थना करअ ल। उ हमार कोख में बच्चा देके तहरा, दुनिया के नज़र में नामर्दगी के श्राप से बचाई।"
अशोक उसके आगे हाथ जोड़के बोला," राजू जी, हमार पत्नी के चोदीं, एकरा चोदके संतुष्ट कर दी।ई बहुत बड़की चुदक्कड़ बिया। ई सदा तहार लांड के सपना देखेलि। जल्दी से एकरा कोख में बीज गिराके एकरा गाभिन कर दी। ताकि ई समय से बच्चा जनी, अउर हम उ बच्चा के बाप। मतलब बच्चा त तहार रही, पर हम नाम देब।"
राजू," मज़ा न आईल ढंग से दलाली कर, सोच ई तहार पत्नी न रंडी बिया। अउर रंडी के काम ग्राहक के साथ भरपूर चुदाई कर, संतुष्टि दे अउर ओकरा बदला में दाम ले।"
गुड्डी," हम रंडी बानि, राजू बाबूजी। हमरा रउवा से पइसा न, बच्चा चाही। प्लीज हमके बच्चा दे दी।"
अशोक," हाँ, सचमुच, हमार पत्नी के चोद ओकर गोद भराई पूरा कर द। हम राउर सामने हाथ जोड़त बानि।"
राजू हंसते हुए, काहे न, तहार पत्नी के बच्चा हो जाये।तनि आपन पत्नी के बूर चियार के, हमार लांड डाल दअ।"
अशोक ने राजू के कहे अनुसार अपनी पत्नी की बूर खोलके उसमें राजू का तगड़ा लण्ड घुसा दिया।"
राजू अब गुड्डी को रफ्तार से चोदने लगा। अशोक भी वहीं बैठ उनकी चुदाई देखने लगा। गुड्डी बोली," सुन रे भड़वा, पत्नी के दलाल तनि नज़र रख, जब तलिक ई हमके चोदत बा।"
अशोक थोड़ी दूर जाके बैठ गया, जहां से सब दिखाई दे चुदाई भी और घर का मुख्य दरवाजा भी। वो खुद ठंढई पीने लगा और थोड़ी देर में बेहोश हो गया। राजू गुड्डी को तेजी से चोदते हुए हांफ रहा था। गुड्डी की आँहें और सिसकारियां उसे और तेजी से चोदने की प्रेरणा दे रही थी। तभी गुड्डी ने राजू से बोला," राजू तनि सांस ले ल। तनि ठंढई पी ल। हम कहूँ भगत नइखे।" राजू उसकी बात मान रुक गया।

राजू जमीन पर बैठ, अपनी बहन को खुद की ओर गोद में बिठा, उसे ठंढई पिला रहा था। गुड्डी ठंढई का गिलास पकड़े हुए, अपने भाई को ठंढई पिला रही थी। गुड्डी राजू से पूरी तरह चिपकी हुई थी। गुड्डी राजू के सर को अपने चूचियों के बीच छुपा रही थी, ताकि राजू उसकी चुच्चियों का भरपूर आनंद ले सके। इतने में राजू ने अपना लण्ड, उत्तेजित हो उसकी बूर में घुसा दिया। गुड्डी की बहती बूर आसानी से उस लण्ड को अपने भीतर स्वागत की। उसके मुँह से आनंद भरी सिसकारी मुस्कुराहट के साथ निकल गई। राजू ने गुड्डी के बाल पकड़े और उसके गले को चूमते हुए उसके चूतड़ों का मर्दन करने लगा।
गुड्डी बोली," राजू, आज तहरा मन न करेला का, हमार गाँड़ मारेके। तहरा त बहुत मज़ा आवेला गाँड़ मारे में।"
राजू गुड्डी के गाँड़ की छेद में उंगली डाल बोला," काहे न रंडी साली, तहार गाँड़ मारे में अउर मज़ा आयी।"
गुड्डी," त कउन बात के इंतज़ार बा, डाल द गांड़ियाँ में लांड, अउर पेलआ कसके।"
उनदोनों के सामने तभी राजू का छोटा भाई अनिल आ गया। अनिल शहर में पढ़ाई करता था, वो होली के दिन चला आया था।
अनिल," भउजी, ई तू आपन भाई के साथे का कर रहल बारू। छि..छि...तहरा शरम नइखे आवत, बियाहल होखे भी तू पराया मरद उहू में आपन सगा भाई साथ एतना घटिया हरकत करत बारू। सच कहेला लोक कि औरत तेरियाचरित्र होखेलि। ओकरा पर कभू भरोसा न कइल जा सकेला।"
राजू आगे बढ़ उसे पीटना चाहता था, पर गुड्डी आगे बढ़ राजू को रोकी। फिर अपने देवर की ओर पलट बोली," आपन भैया से पूछ ल, हम जे कर रहल बानि ओकरा से पूछ के। तहार भैया के त खड़ा भी न होखेला। हम तेरियाचरित्र नइखे हम त खाली आपन भाई के बानि। पहिले आपन बहिन के संभालअ, हमार भाई के रिझा के फेर ओकरा से चोदबा लेले बिया।" ऐसा बोल वो राजू को उसके सामने चूम ली।
उसी समय मीरा पूरी नंगी पके मांस का पतीला लेकर आ गयी। राजू ने अनिल को बोला," उ देख तहार मादरजात लंगटी बहिन हमरा खातिर मांस लेकर आवतिया। कसम से एकर सील फाड़े में बड़ा मजा आईल। हमरा से एतना खुश बिया कि हमरा खातिर मांस पकौलस।"
मीरा अपने छोटे भाई को देख बोली," आह, ओह अनिल तू कब आइलु। खबर भी न कइलु।"
अनिल बोला," उ छोड़ मीरा दीदी, तू इँहा का गुल खिलावत बिया। ई घर के मान मर्यादा, इज़्ज़त सब माटी में मिला देलु।"
मीरा," का कइनी, हम त होली खेलत बानि। भाभी के भाई के साथ। एमे का गलत बात बा।"
अनिल," अइसे कउन शरीफ घर के लइकी होली खेलत बिया। भाँग पीके, कपड़ा फड़वा के, लंगटी घूमत बिया।"
राजू," अनिल तू न बुझबू, इहे उमर बा मस्ती के। आपन दीदी के साथ तू भी शामिल हो ल। बहुत मज़ा आयी।"
गुड्डी," हाँ बिल्कुल। अनिल बाबू देखअ आपन दीदी के। कइसन सुंदर बिया। हम दावा से कहत बानि, भाई बहिन के बीच होली में कउनु बाधा होवे के न चाही। हम दुनु भाई बहिन के देख लअ केतना स्वतंत्र आउर मस्ती में होली के आनंद ले रहल बानि। भाँग के नशा के साथ, लंगटी दीदी के बाँहिया में ले अउर बिन हिचक ओकरा चोद के मज़ा ले लअ।"
राजू," का सोचत बारआ, उठा के ले चल आपन बहिनिया के, ऊंहा गाछ बिरिछ के बीच। हम दुनु मिलके आपन बड़ बहिन के चोदब। मीरा आपन भाई के भाँग पिया दअ।"
मीरा हंसते हुए अनिल के सामने आई और बोली," अनिल ई लअ भाँग पी ल, ताकि कउनु हिचक न रहे। तू चिंता मत कर हम केहू के न कहब, ई बात हम चार लोकन के बीच रही।" वो उसे भाँग वाली मीठी लस्सी का बड़ा गिलास देते हुए बोली।
अनिल उसकी ओर देख बोला," लेकिन ई गलत बात बा ना दीदी, आपन सगी बहिन के साथ कउन अइसे करेला।"
मीरा उसका हाथ पकड़ अपने चुच्चियों पर रख बोली," तहरा सामने उदाहरण बा, अउर अब तू भी अइसन करबे करबु।"
अनिल," तहरा अइसन काहे बुझाता?
मीरा," काहे कि, भउजी के भैया न चोदेला। उ त सौभाग्यशाली बिया, कि ओकर भाई ही ओकरा चोद के यौन सुख देवेला। काल के हमार पति अइसन निकली, जेकर खड़ा न होखे, त तहार बहिन के का होई। अउर एक बात, ई दुनु लोक मज़ाक उड़ावत बारन, हमार दुनु भाई नामर्द बा। अब ई घर के इज्जत तहरा हाथ में बा, हम त ई घर के इज्जत बचाबे चाहेनि, हमरा चोद के साबित कर द तू घर के असली मरद बारू।" मीरा ये बोल गुड्डी और राजू की ओर मुड़ कुटिल मुस्कान दी।
अनिल उसकी ओर देख बोला," अगर ई बात बा त हम साबित कर देब कि ई घर में नामर्द न मरद भी रहेला।" ऐसा बोल उसने हाथ पड़ी ठंडई पी, उसके बाद उसने एक और गिलास में ठंढई डाल पी गया। तीनों उसे ऐसा करते देख खुश थे। अनिल ने जैसे ही दूसरा गिलास खत्म किया मीरा उसे चूमने लगी। उसने तेजी से कपड़े उतार दिए। और नंगा हो अपना कड़ा लण्ड सबको दिखाया। वो बोला," ई देखअ लांड, कइसन टनटनाइल बा। सच्चा मरद के ही अइसन होखेला।"
गुड्डी बोली," हाँ, सच बा लेकिन लागत बा मीरा दीदी के नाम पर ज्यादा फनफनात बा।"
मीरा ये सुन बोली," काहे न होई, भउजी राउर भाई के भी त इहे हाल बा।"
मीरा अनिल का लण्ड थाम बोली," बाप रे बाप केतना बड़ा बा, उफ़्फ़फ़ हमार भाई केहू से कम नइखे।" ऐसा बोल वो नीचे बैठ उसका लण्ड चूमने लगी।
गुड्डी बोली," अरे अभी रुक जा तू लोक, उ बेचारा अभी आईल बा, ओकरा कुछ खिया त दे। राजू भी थकल बा। ई सब करे खातिर अभी त पूरा दिन बा।"
मीरा को गुड्डी ने उठाया, दोनों ने अपने भाइयों को बिठाया। इसके बाद मीरा और गुड्डी ने अपने भाइयों के लिए मांस प्लेट में निकाला और उनके गोद में बैठ अपने हाथों से मांस खिलाने लगी। दोनों नंगे भाई अपनी सगी नंगी बड़ी बहनों को अपने लण्ड पर बैठाए उनके हाथों से स्वादिष्ट मांस खा रहे थे। इस बीच वो भाँग वाली ठंढई पीते रहे। गुड्डी और मीरा भी उनके साथ साथ खा पी रही थी। इस बार गुड्डी ने ठंढई में शिलाजीत भी मिला दिया था, जिसके प्रभाव से दोनों भाइयों का लण्ड थोड़ी ही देर में सांप की तरह फुंफकारने लगा।
मीरा ने गुड्डी को टोका भी था, तो गुड्डी बोली," चुदाई के आज भरपूर आनंद लेवे के बा। दुनु भाँग के साथ शिलाजीत खाई त सवेरे तक, लांड टाइट रही। हमनी थकब त चली, पर ई दुनु न थके के चाही। आज शाम तलिक त ई दुनु रुकी न एकर बाद। होली के असली मज़ा त इहे में बा, रगड़ रगड़ के चोदे भाई, बहिन के बूरवा से झड़ी मलाई।" ऐसा बोल दोनों हंस दी और उन्होंने भी भाँग की ठंढई की एक गिलास गटका ली।
अनिल फिर मीरा को गोद में उठा उसे बगीचे के अंदर ले गया। उनदोनो को जाते देख गुड्डी बोली," एक अउर भाई बहिनचोद बन गईल।"
राजू," अनिल मीरा के बियाह कभू न हो पाई। मीरा लेकिन चाहे त आपन भाई के दैहिक सुख दे सकेलि, कभू बियाह न कइके, आपन भाई संग इंहे घर में रह के।"
गुड्डी," राजू, का तू हमरा संग बियाह करबअ? या हमके अपना साथ असही रखबअ?"
राजू," तू का चाहेलु, हम तहरा कइसे रखि? तू त हमार बड़ बहिन बारू, अब तू ही बताबा?
गुड्डी," गांव में त तू हमरा से बियाह न कर सकअ तारअ। मतलब तू हमके सबके सामने बहिन बना के रखबु अउर घर के भीतर पत्नी के तरह रखबु।"
राजू," बहिन बना के रखे से का मतलब बा, तू हमार त सच में बहिन बारू। लोक के का पता चली कि का होता।"
गुड्डी," राजू, मरद अगर बिना बियाह के कउनु औरत के घर में रखेला त समाज उ औरत के बड़ा गंदा नज़र से देखेला। जाने का कहेला लोक उ औरत का?
राजू उसके बालों को सहलाते हुए बोला," का कहेला लोक उ औरत के? बोलअ ना?
गुड्डी," राजू, बड़ा ही घटिया अउर गंदा नाम से बोलेला जमाना। औरत खातिर बहुत अपमानजनक बात होखेला। लेकिन औरत जब मनपसंद मरद संग रहेली, त ओकरा कउनु फरक न पड़ेला, काहे कि उ मरद के साथ सुरक्षित अउर संरक्षित महसूस करेली। उ शबद गाली होखेला।"
राजू," कउन शबद कउन गाली, खुलके बोल रानी?
गुड्डी," राजू, तहरा नइखे पता कि लइकी बिना ब्याह के लइका साथ रहेली त, दुनिया ओकरा का कहेला?
राजू," बोल ना, तू डेरात बाड़े कि लजात बाड़े?
गुड्डी," न डेरात बानि न लजात बानि। ओकरा दुनिया उ मरद के रखैल कहेला। हम तहार रखैल बनके रहब। रखैल ओकरा कहेला जउन कउनु पराया मरद के बिस्तर के शोभा बढावेली। हर रखैल के उ मरद मालिक होखेला। तू हमार मालिक अउर हम तहार रखैल बानि।"
राजू," देख ल तू खुद हमार रखैल बने चाहेलु अउर हमके मालिक बुला रहल बारू। एकर मतलब बा तहार सम्पूर्ण समर्पण, बुझलु न।"
गुड्डी," जी एकदम।"
राजू," उफ़्फ़फ़ एकदम रखैल बने खातिर जन्म लेले बारू बुझाता। माई भी तहरे जइसन छिनरी बिया।"
गुड्डी," छिनार अगर बिया त तहरे खातिर, हमहु छिनार बानि तहरे खातिर। आवा छिनरी बहिन के चोद ल, राजा।"
राजू ने इस बार उसकी गाँड़ में लण्ड डाल दिया। गुड्डी ने ही उसे अपनी गाँड़ फैला, उसके सामने सिंकुड़ी भूरी छेद को परोसा। राजू भी जानता था कि गुड्डी गाँड़ मरवाने के लिए बेचैन थी। राजू ने जड़ तक लण्ड डाल उसकी गाँड़ के कसाव को ढीला कर दिया। गुड्डी ने जितना हो सके गाँड़ को ढीला छोड़ रखा था, ताकि राजू का लण्ड आराम से अंदर बाहर हो सके। थोड़ी देर बाद गुड्डी की गाँड़ लण्ड को अपने अंदर समावेशित कर ली। लण्ड अब गाँड़ में ऐसे चिपक चुका था, जैसे उसके गाँड़ का ही हिस्सा हो।
गुड्डी," राजू, उफ़्फ़फ़ बड़ा दिन बाद गाँड़ में लांड ढुकल बा। हाय, आह.. केतना कसाईल बा। उउम्म बूर के चुदाई अऊर गाँड़ के चुदाई दुनु में हमके बहुत मज़ा आवेला। सच बताई गाँड़ मराबे में अउर निम्मन लागेला।"
राजू उसकी गाँड़ मारते हुए बोला," सच दीदी तहार गाँड़ आज भी उतने टाइट बा, जेतना पहिले। मन करेला, तहार गाँड़ में ही लांड घुसाए रखि। जब लांड निकालत बानि, त भीतरी तहार गुलाबी गाँड़ के त्वचा देख मन अउर ललचा जाता। मन करेला बार बार तहार गाँड़ खोल के उ देख अपना आप के उत्तेजित रखी।"
गुड्डी," अच्छा, जइसे अच्छा बुझाता तहरा वइसे कर। लेकिन आपन लांड त न चटेबु, गाँड़ से निकाल के।" गुड्डी ने ऐसे पूछा जैसे उसे इशारा कर रही हो, उससे ये करवाने के लिए।"
राजू," काहे तहरा मन बा लांड चाटेके।"
गुड्डी," अगर तू दबाव देबु, त हम का कर सकेनि। तू जउन कहबू उ करे कब के पड़ी।"
राजू मुस्कुराते हुए," चल उठ रंडी साली, चल चाट आपन गाँड़ के रस, ई लांड से।"
गुड्डी भी मुस्कुराते हुए लण्ड को चाटने लगी। उसकी ये घिनौनी कामुक कृत्य चुदाई को और भी रसप्रद बनाने लगी। गुड्डी की आंखों शरम बिल्कुल भी नहीं थी, वो राजू की आंखों में निर्लज्जता से देख रही थी। लण्ड को ऐसे चूस रही थी, जैसे वो अभी अभी लॉलीपाप बनी हो। मन भर चाटने के बाद, राजू ने उसकी गाँड़ चुदाई शुरू कर दी।
पूरे दोपहर बीत गयी उनकी चुदाई करते हुए, पर दोनों में से कोई शांत नहीं हो पा रहा था।
उधर मीरा और अनिल जीवन में पहली बार कौटुम्बिक व्यभिचार का रस प्राप्त कर रहे थे।
दोनों बूर और लण्ड के अद्भुत संपर्क का कामुक आनंद उठा रहे थे। अनिल अपनी बड़ी बहन को बगीचे के बीचों बीच लिटा के चोद रहा था। मीरा अपने भाई के नीचे लेटी चुदने का सुख प्राप्त कर रही थी।
मीरा," आह... अनिल तू लइका सब होस्टल में का सब करेलु। लइकी के बारे में ऊंहा का बात होखेला।"
अनिल," मीरा दीदी, ऊंहा डेली रात में सब गंदा ब्लू फिलिम देखेला। सब मस्तराम के किताब पढेला। सब अभी जवान बा, त खाली लइकियन के बूर, गाँड़, चुच्ची, माहवारी, चुदाई के बात करेला। हर रूम में अधनंगी लइकी के पोस्टर बा। हम सब त गर्ल्स हॉस्टल से अंडरगारमेंट्स चुरा के ले आवेनि अउर उहे में मूठ मारेनी। पहिले त सीनियर्स सब करौलस, बाद में हमनी खुद कइनी। ऊंहा हमनी क्लास के लइकी के बारे में खूब गंदा गंदा बात करत बानि। जइसे उ लइकी चुदी त का सब करि। ओकरा कइसे चोदल जाउ। इहे सब।"
मीरा," बड़ा कमीना बारे तू सब।"
अनिल," सच में बहुत कमीना सब बा।"
मीरा," हम भी ब्लू फिलिम देखे चाहेली, अनिल तू हमके देखाबे। हम देखे चाहत बानि कि लइका सब लइकी के कइसे चोदेला।"
अनिल," हम त तहरा साथ ब्लू फिलिम जइसन चुदाई करब। सच दीदी जाने केतना फिलिम में हम तहरा सोचके मूठ मारनी।"
मीरा," अब तहरा मूठ मारेके जरूरत नइखे, हम भी बहुत बूर में उंगली कइनी ह। अब हमनी लांड बूर के खेल खेलब।"
अनिल," लेकिन हमके पता कइसे चली कि तहरा लांड चाही।"
मीरा," जब भी हम तहरा देख के आपन गाल सहलाएब, तू बूझ जहिया कि हमरा चुदाई चाही। हमनी कहूँ जगह खोजके चुदाई कर लेब।"
अनिल," अच्छा, लागत बा तू बहुत पियासल बारू।"
मीरा," तहरा अंदाज़ा नइखे, तहार दीदी के केतना बुरा हाल बा। वादा कर तू, हमके खुश रखबू। अउर हमनी के ई राज़ हमेशा राज़ रही।"
अनिल," हम कसम खाके कहत बानि, जब तक हम तहरा साथ रहब तहरा चुदाई के कमी न महसूस होई। जगह खाली तू चुनबू, हम तहार खुशी के सीमा चुनब। तहार इज्जत घर के इज्जत बा। हम ई हमेशा राज़ रखब। अगर तहरा देहि के रहे त हमरा पहिले काहे न देलु, जउन राजू के दे देलु। परिवार के लइकी पर पहिला हक़ त परिवार के ही बा।"
मीरा," लइकी त दूध के कटोरी होखेलि, बस हिम्मत होखे के चाही बिलाड़ के दूध पीएके। उ हिम्मत कइके कटोरी के दूध चख लेलस। तू अगर पहिले हिम्मत कइले रहतु, त ई दूध के कटोरी केहु के हाथ न लगत। लेकिन अब तू दूध के कटोरी अपना पंजा में कस लेलु, त अब इ तहरे पास रही।"
इसी बात को सुनकर अनिल अपनी बहन को चूमके उसे जोरसे चोदने लगा। मीरा भी कमर उचका चुदाई में भरपूर सहयोग कर रही थी। दोनों भाई बहन भाँग के नशे में जी तोड़ चुदाई करते हुए, पसीने से भीग चुके थे। अनिल का लण्ड मीरा की बूर की अच्छी खबर ले रहा था। सच कहते हैं चुदाई में रिश्ते नाते नहीं बस मर्द और औरत की वासना होती है। वासना सिर्फ जिस्म चाहती है, रिश्तों की मर्यादा नहीं। रिश्तों की मर्यादा काम पिपासा के आगे घुटने टेक देती है। उसके घुटने टेकते ही, सिर्फ मर्द औरत का रिश्ता बचता है। घर के संस्कार, अच्छे बुरे का एहसास, सही गलत का फर्क सब वासना की आंधी में उड़ जाते हैं। जैसे इस समय मीरा और अनिल पशुओं की भांति चुदाई कर रहे थे। मीरा की मर्यादा अनिल के लण्ड से हार गई थी। वहीं अनिल सगी बहन की जवानी चखने में लगा हुआ था। दोनों की ही आंखों में वासना तैर रही थी, जिसे दोनों एक दूसरे के साथ संभोग से मिटाने का प्रयास कर रहे थे।
दोनों रुक जाते, फिर चुदाई करने लगते, फिर हांफते, फिर रुकते और फिर चुदाई करने लगते।

उधर राजू और गुड्डी गुदा मैथुन का सुख बहुत देर से भोग रहे थे। गुड्डी ने तो इस दौरान बहुत बार राजू का लण्ड चूसा और अपनी गाँड़ का स्वाद चखा। इधर भी हवस पूरे चरम पर थी। दोनों का तन अब टूट रहा था, पर मन नहीं भरा था। दोनों ने आखिरकार थक के, चुदाई को विराम दिया और रात को फिर चुदाई का वादा किया। गुड्डी और राजू, मीरा और अनिल को ढूंढने गए तो देखा, मीरा अनिल के ऊपर बैठी कूद रही थी, जैसे कोई घुरसवारी कर रहा हो। अनिल उसके दोनों चुच्चियों को कसके थाम, उन भूरे उठे चुचकों का बेदर्दी से मर्दन कर रहा था। मीरा की तेज सिसकारियां माहौल में उत्तेजना का लवण फेंट रही थी। दोनों भाई बहन पिछले दो घंटे से चुदाई की रासलीला कर रहे थे। मीरा को अब समझ आया था कि कौटुम्बिक व्यभिचार असल में कितना रसप्रद और संक्रामक होता है। क्यों उसकी गुड्डी भाभी अपने सगे भाई के साथ काम लीला का आनंद उठाती है।
गुड्डी," मीरा चल अब, केतना चुदाई करबेबु। सांझ होखे वाला बा। अब त बाबूजी भी लौटिहन।"
मीरा," भउजी, रउवा त केतना दिन से भाई के लांड लेत बारि। हम त पहिल बेर लेत बानि। तनि अउर देर एकर लौड़ा हमार बूर में रहे दी। अभी त शुरुआत भईल ह।"
अनिल," हाँ, भउजी मीरा दीदी त अभी जोशियाईल बिया। एतना मस्त माल हमार बहिन बिया, कउनु हीरोइन के फेल कर दी। हम त अब एकर साथे ही घर बसाईब अउर एकरा आपन दुलहिन बनायेब।"
गुड्डी," अरे छोड़ एकरा न त ई बेचारी दुलहिन बने से पहिले, सुहागरात मनाबे लायक न बची। पिछला दु घंटा से एकर बूर के भीतरी एतना मोटा लौड़ा घुसल बा, एकरा काल होश न रही।"
मीरा," भउजी रउवा भी त चुदबात रहनि न। हमरा न कुछ होई। अभी त मज़ा शुरू भईल बा।"
गुड्डी," अरे हमके त आदत बा। आजे तहार बूर के ढक्कन खुलल बिया। बूर के ढीला होखे में टाइम लागी। अभी चल उठ।"
गुड्डी उसे जबरदस्ती उठा वहां से ले जाने लगी। अनिल अपनी बहन को देखते हुए बोला," मीरा दीदी, तू टेंशन मत ले।" मीरा हाथ छुड़ा उसके पास आई और धीरे से बोली," आज रात हम दरवाजा खुला रखब।" ऐसा बोल वो वापिस गुड्डी के साथ चल दी। राजू और अनिल दोनों अपनी बहनों को जाते हुए देख रहे थे।
दोनों ने सिगरेट सुलगाई और कपड़े डाल नहाने चले गए।
तभी राजू ने अनिल के कान में कुछ कहा। और दोनों वापस अपनी बहनों के पास आ गए। राजू बोला," दीदी काहे ना हम सब एक साथ नहा ली।
अनिल," हाँ, मीरा दीदी ऊंहा जउन बोरिंग बा, उंहे चारो आदमी नहाये चली। ऊंहा हौद में पानी भरल रहेला। का ख्याल बा।"
दोनों ही लड़कियों ने अपनी सहमति दे दी। दोनों ने फिर अपनी बहनों को गोद में उठा लिया और उन्हें पानी से भरे हौद की ओर ले गए। भाँग के नशे में चारों हँस रहे थे।
गुड्डी बोली," खाली साथ में नहैया, हमनी के चोदिह ना।"
राजू और अनिल उन दोनों को ले पानी के हौद के पास पहुंच गए और दोनों लड़कियों को पानी में प्यार से उतार दिया। दोनों उसमें प्यार से अपने बदन को रगड़ रगड़ नहाने लगी। दोनों लड़के भी पानी में उतर नहाने लगे। सब अपने रंग उतारने लगे। लेकिन दोनों भाई बहन युगल एक दूसरे को लगातार ताड़ रहे थे। कुछ ही पलों में गुड्डी राजू के पास आ गयी, और अपने नंगे बदन से पानी में भी आग लगाने वाली जवानी को उसके सामने रख बोली," राजू तनि हमार पाछे से रंग छोड़ा द।"
राजू," काहे ना, आवा तहार अंग अंग से रंग छुड़ा देत बानि।"
गुड्डी ने अपने गीले बाल आगे कर लिए और अपनी चिकिनी पीठ और गाँड़ उसके सामने कर दी। राजू उसकी पीठ रगड़ने लगा। मीरा भी मौके का फायदा उठा अपने भाई के पास पहुंची और उसे भी ऐसा करने बोली। अनिल भी वैसा ही कर रहा था।
गुड्डी बोली," इँहा चुदाई न करेके बा।"दरअसल दोनों ही लड़कियां रंगों में डूबी और पानी में गीली बहुत ही कामुक लग रही थी। दोनों ही भाई अपनी बहनों के हर अंग को रंगों की परत से आज़ाद करना चाह रहे थे। उन दोनों को भी इसमें मज़ा आ रहा था। उन दोनों ने लड़कों को अपने यौनांगों को छूने की आज़ादी तो दी थी, पर चुदाई की आज़ादी नहीं दी थी। वो अपनी बहनों की गाँड़, चूचियाँ और बूर पर खास तवज़्ज़ो दे रहे थे।गांव की ये देसी लड़कियां, रंगों में लिपटी और पानी में गीली अपने ही भाइयों के सामने निर्वस्त्र जल क्रीड़ा करते हुए रंगों को उतार और उतरवा रही थी। शरीफ घर की लड़कियों को जब छिनारपन करने का मौका मिलता है, तो वो अपनी सीमाएं भूल जाती है। इसके बाद लड़कियों ने भी उनके रंग छुड़ाने लगी। वो लोग आपस में एक दूसरे को छेड़ रहे थे। ऐसे में उन सबका उत्तेजित होना स्वाभाविक था। दोनों ही लडकियों के भीतर फिरसे चुदने की बेरहम प्यास जाग गयी। गुड्डी ने मीरा को आंख मार कर इशारा किया। दोनों अपने भाई की गोद में उनके ओर मुड़के बैठ गयी। और उनका लण्ड उनके गाँड़ की दरार के बीच आ गया। गुड्डी और मीरा आगे पीछे करते हुए लण्ड को चूतड़ों से रगड़ते हुए मज़ा ले रही थी। इतने में अशोक ने पूछा," मीरा दीदी, ई का करत बारू?
मीरा," तहार लांड से रंग छुड़ा रहल बानि।" और वो दोनों लड़कियां जोर से हंसी।
राजू ने गुड्डी की गाँड़ में एक चाटा मारा और बोला," तनि अच्छा से कर न दीदी।" गुड्डी और तेज और दम लगा उसका लण्ड मसलने लगी। माहौल फिर से गरमा चुका था। कब उनका लण्ड अपनी अपनी बहनों की बूर की गहराइयों को चूमने लगा, उनको भी नहीं पता चला। पानी की वजह से लड़कों को लड़कियों का वजन आधा लग रहा था। इसका फायदा उठा वो उन्हें तेजी से चोदने लगे थे। गुड्डी और मीरा अपने दोनों हाथ अपने भाइयों के कंधे पर जमा अपना वजन टिकाए हुए थे। उनके भारी गीले चूतड़ पानी से टकराते तो पानी के छींटे चारों ओर उड़ते थे। उनके गीले बाल उनके कंधे और पीठ से चिपके हुए थे। उन चारों की कामुक आवाज़ गूंज रही थी। आखिर में राजू ने गुड्डी की बूर में अपना माल गिरा दिया। अनिल ने भी मीरा के अंदर ही वीर्य का स्खलन कर दिया। दोनों ही लड़कियां उखड़ती साँसों से कुछ देर तक अपने भाइयों के साथ चिपकी रही। करीब आधे घंटे नहाने के बाद, चारों वापस घर आ गए।

रात को गुड्डी ने पति के लिए चटाई नीचे लगा दी और राजू को बिस्तर पर आने के लिए न्योता दे डाला। वैसे ही मीरा रात को खाना खाने के बाद अपने कमरे में अनिल का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। तभी बिजली चली गयी और राजू गुड्डी के कमरे में और अनिल मीरा के कमरे में पहुंच गया। गुड्डी का पति अशोक नीचे सो रहा था। राजू उसे लांघ कर गुड्डी के बिस्तर पर चढ़ गया। गुड्डी सारा काम खत्म करने के बाद, राजू के साथ बिस्तर में गुटरगूँ करने को तैयार थी। राजू कुछ ही देर में गुड्डी को उसके बिस्तर पर किसी फूल की तरह मसल रहा था। उसका यौवन रस राजू जैसा भंवरा ही पी सकता था। दूसरी तरफ मीरा भी बिस्तर में पेली जा रही थी।
गुड्डी की सिसकियां और आँहें उसके नियंत्रण में नही थी। दोनों भाई बहन चुदाई की आग में भड़के भूल गए थे कि वो कहाँ हैं। दोनों अपने संभोग में इतने लीन थे, कि उनकी आवाज़ों ने कब गुड्डी के ससुर को कमरे में बुला लिया उन्हें पता ही नहीं चला। दरअसल वो जब रात को मूतने उठा तो, उसकी नज़र खुली हुई खिड़की पर गयी, जहां उसे कमर से ऊपर नंगी हिलती चूचियों की मालकिन गुड्डी और उसके नीचे उसका भाई दिखा। वो सीधा कमरे में आ गुस्से में बत्तियां जला दी। राजू और गुड्डी बिल्कुल नंगे थे। फर्श पर उसका बेटा सो रहा था।
ससुर," बहु ई का हो रहल बा। तहरा शरम नइखे आवत का? भाई के साथ...छि...छि...
वो इतनी जोर से चिल्लाया कि घर में सब जग गए। अशोक भी उठ गया। उसकी आवाज़ सुन मीरा और अनिल भी चुदाई बीच में रोक बातें सुनने लगे। मीरा ने मौके का फायदा उठा अनिल को कमरे से जाने को कहा। अनिल ने भी मौके की नजाकत को समझ वहां से निकलना ही ठीक समझा। उधर गुड्डी के कमरे में उसका ससुर अपने गले की तीव्रता नाप रहा था।
ससुर," रे बेशर्म तहार सामने तहार पत्नी तहार बिस्तर पर केहू अउर के साथ चुद रहल बिया अउर तू इँहा नीचे चटाई बिछा के लेटल बारअ।"
अशोक चुप रहा। गुड्डी और राजू एक दूसरे से चिपके हुए थे और दोनों स्तब्ध थे।
ससुर," बेशरम निर्लज्ज कहीं के, अइसन भाई पहिल बेर देखनि ह, जउन बहिन के ही चोद रहल बा। कइसन कुलक्षिणी बियाह के ले आइनि ह। रुक अभी रुक तू दुनो के बतावत बानि।" ऐसा बोल वो आगे बढ़ा।
तभी अशोक बीच में आ बोला," ई दुनु जउन करत बा, उ हमार मर्ज़ी से कर रहल बा। हमनी ई दुनु के इजाजत देनी ह।"
ससुर," अशोक ई का कहत बारे तू, पगला गईल हाउ का। छोड़ हमके।"
अशोक," पिताजी, हम सच कहत बानि। एमे ई दुनु के कउनु दोष नइखे।"
ससुर," हमरा पास तहार बकवास सुने के समय नइखे। अभी दुनाली लेके आवत हईं।" और वो दूसरे कमरे में गया। इतने में अशोक बोला," राजू गुड्डी तू दुनु भाग जो, अभी पिताजी के ऊपर खून सवार बा। हम इँहा देखब।"
गुड्डी," लेकिन रउवा इँहा..... कहीं कुछ अनर्थ न हो जाये।" वो रोते हुए बोली।
अशोक," अनर्थ हो जायीं, अगर तू लोक इँहा रुकबआ त। हम सच कहत बानि भाग जो। हम देख लेब।"
राजू भी कुछ कहना चाहता था, तभी गुड्डी का ससुर बंदूक लेकर आ गया। अशोक ने आगे बढ़ उनको रोक लिया। और चिल्ला के उनको भागने को कहा। अब दोनों के पास कोई चारा नहीं था। दोनों ने खिड़की से छलांग लगाई। अशोक का बाप चिल्ला के बोला," तू दुनु कहाँ, भागत बारे। तहार बाप के बताएब, का करेलु तू सब। रुक बहनचोद कहीं के।"
राजू को गुस्सा आया तो वो मुड़के जाने लगा, तो गुड्डी बोली," ई मउका ठीक नइखे। अभी भाग इँहा से।"
गुड्डी और राजू बिल्कुल नंगे वहां से आधी रात भाग गए। दोनों बहुत देर तक खेतों और बगीचों में नंगे भागते रहे। आखिर कर जब वो लोग काफी दूर निकल आये तो, दोनों ने एक पेड़ के नीचे आश्रय लिया। चांदनी रात में, पूर्णिमा का चांद जैसे उनका मार्गदर्शक और संरक्षक दोनों था। गुड्डी अपने भाई के साथ लिपटी हुई, उसकी बांहों में समाई हुई थी।
Bahut hi shandar update
Phir bhi same complain
Aap bahut der se update de rhe ho
Koi mjja nhi Raj jata kam se kam weekend update dete ya 15 din me, 1 month ke bad update de rahe ho
 
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rajeev13

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Bhai jitna bhi time lage update continue karo ye xforum ki best story hai :respekt:
इस बार थोड़ा ज्यादा समय लगेगा, क्योंकि वो अपने निजी कार्यों के कारण बहुत ज्यादा व्यस्त रहेंगे कुछ महीनों तक !
 

vyabhichari

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आदम और हव्वा

कहते हैं कि पृथ्वी पर सबसे पहले आदम और हव्वा हुए। जिन्होंने स्वर्ग से निकाले जाने के बाद, पृथ्वी पर समागम किया और इस संसार में लोग आए। इस दुनिया में सब उनके ही बच्चे हैं। आदम और हव्वा बिना कपड़ों के, सम्पूर्ण नग्नावस्था में एक दूसरे के हाथों में हाथ डाल विचरण करते थे। उन्हें अपनी नग्नता सामान्य एवं स्वाभाविक लगती थी, जब तक उन्होंने वो फल नहीं खा लिया, जिसे खाने से ईश्वर ने उन्हें मना किया था। फल खाते ही उन्हें अपनी नग्नता पर लज्जा आने लगी और ईश्वर से भी छुपने लगे। तब ईश्वर ने उन दोनों को स्वर्ग के बगीचे से निकाल दिया।
गुड्डी और राजू ने भी कौटुम्बिक व्यभिचार का निषिद्ध फल खा लिया था, और ये बात सामने आ गयी थी। दोनों अब न तो घर जा सकते थे और न ही गुड्डी के ससुराल। दोनों हाथ में हाथ डाल भागे चले आ रहे थे।
राजू," गुड्डी दीदी हम बहुत दूर आ गईल बानि।"
गुड्डी," राजू, उ त ठीक बा, पर हमार ससुर बाबूजी के बात बता दी तब का होई?
राजू," अब तक त उ बाबूजी के बता दिहले होई। जउन बंधन में तू अउर हम बंध गईल बानि, दुनिया के नज़र में घोर पाप बा। हम दुनु लोकन उनका नज़र में पाप अउर घोर व्यभिचार कइले बानि।"
गुड्डी," हम बाबूजी के समझाईब, कि हमनी पाप ना प्यार कइनी ह।"
राजू," केकरा केकरा समझईबु, सच त इहे बा कि जवानी के जोश में, विपरीत लिंग के लंगटा बदन के भूख, काम के प्यास बुझाबे खातिर, हमनी यौनेच्छा के चरम पर जाए खातिर आपन पवित्र भाई बहिन के रिश्ता के कलंकित करनी। कौटुम्बिक व्यभिचार के वासना के आंधी में हम दुनु भ्रष्ट हो गइनी अउर ओकर प्रतिबंधित रसपान कइनी। सच बताई त तहरा चोदे के असली मज़ा आवेला काहे कि तू हमार सगी दीदी बारू, मन त होखेला तहरा हमेशा लंगटी रखी। तहरा खूब रगड़ रगड़ के चोदी।"
गुड्डी," तू बिल्कुल सच कहअ तारअ, राजू। एक त तू हमार सगा भाई बारअ, ऊपर से छोट, मतलब अगर केहू भ्रष्ट भईल बा त उ पहिला हम बानि। बड़ बहिन होबे खातिर हमार जिम्मेदारी बा कि, तू अगर गलत करअ तारअ त हम तहरा अच्छा रास्ता पर लाई। लेकिन इँहा त हम बड़की बहिन ना, बड़की रंडी जइसन तहरा वासना अउर व्यभिचार के दलदल में खींच लेनी। कइसन बुझाता तहरा ई गंदा कौटुम्बिक व्यभिचार के वासना के दलदल।"
राजू," गुड्डी दीद.."
गुड्डी उसके होठों पर उंगली रख बोली," तू हमके रंडी बोल, गुड्डी रंडी....। आह.... उफ़्फ़फ़ बोल ना।"
राजू," गुड्डी रंडी.... चुदक्कड़ रंडी.....बेशरम रंडी......मादरचोद रंडी...... भोंसड़ीवाली रंडी..... तू रंडी बने खातिर जन्म लेलु। अब त तू ससुराल भी न जा सकेलु रंडी साली, अब त हम तहरा रंडी बनाके अपना पास रखब।"
गुड्डी," आह.....आह....आ...उफ़्फ़फ़... तू केतना बढ़िया से हमके गरिया रहल बारू। एतना गंदा गंदा गारी तहरा से सुनके बूर ढेरी पनिया गईल बा। लेकिन हम चाहत बानि कि तू अभी हमार गाँड़ मारअ।" उसके गले में हाथ डालकर बोली।
राजू," काहे न रंडी साली, सब रंडी गाँड़ मराबे चाहेली।"
गुड्डी," राजू, तू हमके ले चल कहीं अउर। न ससुराल जाएब न घर, एगो अलग दुनिया बना। जहां तू हम अउर हम दुनु के प्यार रहे। ऊंहा जी भर के हम प्यार करब, तहरा साथ।"
राजू," तहरा साथ बीना के भी हमरा ख्याल रखे के बा। तू दुनु हमार नया दुनिया में बारू। अब तहार मायका ही तहार ससुराल होई। माई तहार सास, अउर सौतन दुनु बनी। तू जउन घर में बेटी बनके जनम लेलु, अब उ घर के बहु बनबु। केतना मज़ा आई, काल तक जउन भाई के साथ लड़ाई करत रहलु अब ओकर लांड से बूर चुदेबु।"
गुड्डी," काल तक जेकरा बाबूजी कहत रही, उ ससुरजी बन जायीं अउर माई सासु माँ। का माई बाबूजी मान जहिये ई अजीब रिश्ता के राजू?
राजू," अउर चारा बा का कउनु। हमनी के मार-पीट के भगहिये त ना न। स्वीकार त करबे करिहन। न त हम दुनु मर जाये के शर्त रख देब। केहू माई बाप आपन बच्चा के न मारि।"
गुड्डी," तहार बात सुनके हमरा देहिया में गुदगुदी होता। आउच... आह... राजू..आराम से अइसे अउर गुदगुदी न कर।"
राजू उसे अपने गोद में बिठा उसके चुचकों को छेड़ते हुए बोला," आज रात हमनी ई खुला खेत में चुदाई करब। तू भी लंगटी बारि, हम भी लंगटे बानि। काल के जश्न हम आज मनाएब। इँहा भोरे तक केहू तंग न करि।"
गुड्डी," ई खेत हमार बिछौना बा, उ चांद हमनी के दिया, हमार लंगा रूप सलौना बा, पेलअ जी भर सजनी के पिया।"
राजू," तू लंगटी बड़ सुंदर लागेलु, तहार बदन चक्कू के धार बा, आज लांड बड़ा फनफनाता साला, घुसाईब जाई गाँड़ के पार बा।"
राजू उसके गाँड़ की नन्ही भूरी सुराख को, देखना चाहता था। तभी गुड्डी ने अपने चूतड़ों के द्वार खोल, उस गुलाब की सुंदर कली के दर्शन उसे करा दिया। उसने गुड्डी के चूतड़ों में छिपे उस अद्भुत कामुक अंग को देख कहा," गुड्डी दीदी, सच में तहार गाँड़ के ई छेद बहुत कमाल बा। एकरा खातिर हम जान भी दे सकेनि।"
गुड्डी," हहम्मम, तू असही कहेलु, एतना पसंद बा त, हमके एतना दिन अकेले काहे छोड़लु। ई छेदा से त गूँ* निकलेला, एकरा पीछे काहे जान देबे चाहेलअ।"
राजू ने गुड्डी की गाँड़ की भूरी छेद के पास अपनी नाक लायी और उसकी कामुक गंध को सूंघ उसकी जीभ उन चमड़ी की झुर्रीदार सिलवटों की गहराइयों में उतर गई। गुड्डी को अपनी मलद्वार पर राजू की गर्म जीभ का एहसास बड़ा अलग और अनोखा लग रहा था। उस द्वार से अब तक गुड्डी के शरीर का मल निकलता था, राजू का जीभ भी उस मार्ग के अनजान मोड़ों से गुजरना चाहता था। एक स्त्री के लिए इससे गौरव का क्षण क्या होगा कि चुदायी के दौरान उसका पुरुष उसके पार्श्वद्वार को चूमते हुए अपने मुखरस से भिगो रहा है। गुड्डी मुस्कुराई और उसने राजू से औपचारिकता के लिए बस इतना कहा," राजू, छोड़ दअ काहे तू उ छेद में भिड़ल बारे। गंदा बा ।" हालांकि वो जानती थी कि राजू उसे छोड़ेगा नहीं।
राजू," एतना सुंदर गाँड़ बा अउर एकर गमक मनमोह लेता। आज त खूब चूसब तहार गाँड़ के। असही चूतड़ फ़इलाक़े खड़ा रह रंडी।"
गुड्डी अपनी गाँड़ हिला रही थी , तभी राजू उसके नन्हे छेद में उंगली घुसा दिया। गुड्डी बिदकी फिर बोली," ई का करआ तारा?"
राजू उसकी गाँड़ में उंगली दो चार बार कर बोला," तहार गाँड़ के छेद ऊपर से त टेस्टी बा, भीतरी के टेस्ट करे चाहेनि।" ऐसा बोल उसने उस उंगली को मुंह मे रख स्वाद लिया। राजू उस स्वाद और गंध से उत्तेजित हो उठा। गुड्डी उसकी हरकत पे मुस्कुराती रही, और उसे उंगलियां चाटते देखते हुए और उत्तेजित हो गयी। राजू उस गाँड़ के छेद में जीभ को एक योद्धा की तरह उतार दिया था। उस कठिन सिंकुड़े छेद को भेद राजू की जीभ काफी अंदर तक जा चुकी थी। गुड्डी भी उत्तेजित हो अपनी गाँड़ हिला रही थी। उसके बदन में चुदायी का कीड़ा कुलबुलाने लगा था। राजू उसकी गाँड़ की मीठी मीठी अंदरूनी दीवार को जीभ से छेड़ता रहा। क्या स्वाद था, उस मखमली और गुद्देदार गाँड़ के छेद का। इस अनैतिक कार्य का लुत्फ ही अलग था। राजू ने कोई दस से पंद्रह मिनट गुड्डी को खड़ा किया और उसकी गाँड़ की अंदर और बाहर को जीभ से चाटता रहा। गुड्डी उसके माथे पर सर रख बोली," गाँड़ चाटे में बहुत मज़ा आवेला राजू। तू हमार गाँड़चट्टा भाई बारू।
राजू बोला," अइसन मस्त गाँड़ के अगर चूसब न त अपमान होई, एकर।"
गुड्डी," आह....उहहहहह ... अब त चूस लेलअ। अब असली खेल शुरू करअ न।"
अचानक रुक राजू बोला," चुदाई से पहिले हमके कुछ कहे के बा?
गुड्डी अपने चुच्चियों को सहलाती हुई बोली," राजू का बोल?
राजू," शुद्धिकरण करे के पड़ी?
गुड्डी," केकर ?
राजू," तहार शुद्धिकरण, एतना दिन न रहनि हम त तहार दिल मचलत होई चुदाई खातिर। अशोक तहरा छूले भी होई।"
गुड्डी," हाँ, त अब का नहा के आई।?"
राजू," नहाय के त पड़ी, पर तालाब में न, हमार मूत से तहरा स्नान करे पड़ी।"
गुड्डी," आ....बदमाश हमके मूत में नहेबा।"
राजू," हाँ।"
गुड्डी," उफ़्फ़फ़.... मरद के पेशाब में हम नाहएब, इहे शुद्धिकरण बा, तू जउन कहेलु। तहार मूत में नहेले से हम शुद्ध हो जाएब अउर नज़र गुज़र भी उतर जाई। प्लीज हमरा पर मूत के हमके अपना लायक बना ल।"
राजू ने गुड्डी को अपने सामने बिठाया और उसपर गर्म मूत की धार छोड़ दी। गुड्डी घुटनों पर बैठी, राजू के लण्ड से निकलते मूत की धार के लिए लालायित हो रही थी। तभी राजू ने गुड्डी की मांग पर मूत की धार छोड़ दी, और उसके माथे का सिंदूर धुलने लगा। गुड्डी मुस्कुराते हुए अपने बालों और माथे से टकराते हुए मूत की गड़गड़ाती मोटी धार का आनंद उठा रही थी।
राजू," जइसे शेर आपन क्षेत्र के मूतके चिन्हित करेला, वइसन ही हम आज तहरा आपन मूत से नहाके हम तहरा आपन मिल्कियत बना लेत बानि। ई मूत में नहाके तहरा केहू गलत इरादा से छूने अउर देखने होई त, सब धुला जाई।"
गुड्डी के चेहरे पर मूत की धार उसके गालों और होंठों पर सावन की बूंदों की तरह बरसके छींटे उड़ा रही थी। गुड्डी के मुंह में ढुलकती राजू के पेशाब की धार उसके उत्तेजना और समर्पण का प्रतीक था। गुड्डी मुँह में भरते पेशाब को जितना हो सके पीती थी और मुस्कुराते हुए उगल भी देती थी। गुड्डी ने अपने दोनों हाथ केहुनी से मोड़ ऊपर उठा सिर के पास रख लिया था। राजू उसके मुँह और चेहरे पर पेशाब की धार मनचाहे ढंग से गिरा रहा था। कभी उसके माथे पर गिराता तो कभी आंखों पर, गुड्डी उसकी हरकतों से खुश हो रही थी। तभी उसकी नज़र गुड्डी के गले में लटके मंगलसूत्र पर पड़ी।
राजू," गुड्डी दीदी जरा आपन चुच्ची ऊपर उठा अउर मंगलसूत्र ओपर रख।" गुड्डी की आँखे बंद थी, पर उसने राजू की आज्ञा का पालन किया और अपने मंगलसूत्र को चुच्चियों पर रख उन्हें हाथों के सहारे उठा ली। राजू का अगला निशाना उसके चुच्चियों पर टिका मंगलसूत्र था, और उसने लण्ड को नीचे कर उसके ऊपर धार बरसाने लगा। गुड्डी को अपने शादी का सबसे पवित्र बंधन जो उसके गले में था, कोई भी स्त्री जिसे अपना सम्मान समझती है, उस पर मुतवाते हुए प्रसन्न थी। उसे ये अनोखा, अद्भुत और अति उत्तेजक लग रहा था। हाय री वासना, एक कामुक स्त्री से जो न कराए।
गुड्डी," उफ़्फ़फ़, राजू आह... आपन मूत से तू ई मंगलसूत्र के धो दिहलु। हमार मांग के सिंदूर धो दिहलु। विवाहित औरत के ऐसे बढ़िया शुद्धिकरण न हो सकेला। ई त पवित्र जल से भी पवित्र बा। आह... ई गरम मूत के धार ई रतिया में बड़ा निम्मन बुझाता। अउर नहा द हमके, आपन मूत से...केतना बढ़िया बुझाता....हाय.... दैय्या।"
राजू ने उसके गले और चूचियों को पूरा गीला कर दिया था। उसने निशाना लगा उसके भूरे चुचकों पर बारी बारी से मूत की धार बरसा दी। दोनों मुस्कुरा रहे थे। गुड्डी सामने से पूरी गीली हो चुकी थी, पर राजू अभी रुकने वाला नहीं था। वो गुड्डी के चारों ओर गोल गोल घूमकर उसे अपने मूत में नहला रहा था।
राजू," गुड्डी दीदी, आज तहार बढ़िया से शुद्धिकरण कर देम।"
गुड्डी," राजू, जइसे शेर सब आपन क्षेत्र के मूत के निशान देवेला, वसही तू हमरा पर मूत के हमरा आपन जागीर बनावत बारू। हम कुतिया बनत बानि, तू हमार बूर अउर गाँड़ के भी आपन मूत से धो दअ।"
ऐसा बोल गुड्डी चौपाया हो गयी। वो अपनी चूतड़ों को फैला अपनी बूर और गाँड़ राजू के मूत की धार से टकराने देने लगी। राजू ने अपनी बहन की इस हरकत से उसकी भड़कती वासना और कामुकता का असली चरित्र परिचय प्राप्त किया। थोड़ी ही देर में उसकी मूत की धार शिथिल हो गयी। गुड्डी पूरी तरह उसके मूत के धार में भीग चुकी थी। राजू के मुख पर एक विजयी मुस्कान थी, वहीं गुड्डी निर्लज्जता से बोली," राजू हमके भी पेशाब लागल बा।"
राजू घुटनों पर बैठ बोला," गुड्डी दीदी, तू भी आपन पेशाब से हमके नहा दे। आवा आपन बूर के खोल द हमरा मुँह पर, फूटे दे खाड़ा पानी के धार।"
गुड्डी मुस्काते हुए उसके चेहरे के सामने गयी और अपने हाथों से बूर के फांकों को फैला उसके माथे पर मूतने को तैयार थी। तभी बूर से तेज सीटी की आवाज़ आयी। राजू ने उसे छेड़ते हुए कहा," गुड्डी दीदी ई बूर से सीटी के आवाज़ काहे आता।"
गुड्डी बोली," गाड़ी जब स्टेशन से निकलेला त पहिले इंजन सीटी मारेला, ई उहे बा।" गुड्डी," ई लअ होली पर बहिन के गरम गरम पियर मूत।" गुड्डी सर से पाँव तक गीली थी, उसके बाल पूरी तरह गीले थे, जिससे पेशाब टपक रहा था। गुड्डी गर्दन झुकाए अपने छोटे भाई के चेहरे पर बूर से बहती धार का निशाना लगा रही थी। राजू गुड्डी की मूत को जितना हो सके मुँह में भर पीने की कोशिश कर रहा था। बहन के बूर से बरसती पेशाब की ये निश्छल धारा किसी देसी दारू जितनी ही स्वादिष्ट और नशीली थी, जिसे पीकर राजू के मन में वासना गुड्डी के प्रति भड़क रही थी। अगम्यगमन या कौटुम्बिक व्यभिचार का ये के वीभत्स किंतु असंसाधित रूप अभी एकदम स्वाभाविक और प्राकृतिक लग रहा था। राजू गुड्डी के पेशाब को पीते हुए उसके चूतड़ों को सहला रहा था। गुड्डी ने अपने भाई के पूरे तन बदन को भिगो दिया था। दोनों की वासना पाशविक यौनाचार के लिए तीव्र अनुपात में बढ़ रही थी। गुड्डी अपने मूत्राशय में जमा सारा मूत्र राजू को पिला चुकी थी।
फिर वो राजू के मुंह पर बूर रगड़ते हुए बोली," एक एक बूंद चाट जो आपन छिनार बहिनी के पेशाब के।" राजू अपनी जीभ निकाल उसके मूत्रद्वार को चाट रहा था। अचानक उसने गुड्डी को वही बिठा लिया और उसके बाल पकड़ बोला," आज तहार गाँड़ फाड़ देब, एतना चोदब तहार गाँड़ के कि छेदा दु दिन तक खुलल रही।"
गुड्डी," आह...उम्म... अच्छा उ त बाद में देखल जाई, पहिले लांड घुसाबअ त।" गुड्डी उसे उकसाने के लिए बोली। राजू ने उत्तेजना में गुड्डी को थप्पड़ मारा और बोला," साली छिनार कहीं के, हमके चुनौती दे रहलु का। बाप बाप करबु अभी, जब गाँड़ में ई लांड जायीं, हरामज़ादी।"
गुड्डी को थप्पड़ और उत्तेजित कर रहा था, बोली," इसस्स... आह... तहार लांड कहां गायब हो जाई ई गाँड़ में न, तहरा उतरे के पड़ी लांड खोजे खातिर। बहुत जबरदस्त गाँड़ बा हमार।"
राजू ने गुड्डी के मुंह पर एक और थप्पड़ मारा और उसके मुँह में थूकते हुए बोला," बहुत बोल रहल बारू, अभी देखावत हईं तहरा।"
राजू ने गुड्डी को अपनी दासी की तरह अपने सामने घोड़ी बनाया और गुड्डी की गाँड़ पर थूक दिया और लण्ड उसके गाँड़ की सिंकुड़े भूरे छेद पर दबाने लगा। कुछ पल गाँड़ के छेद और लण्ड के बीच संघर्ष चलता रहा। फिर अचानक सुपाड़े ने अपने दबाव से सिंकुड़े छेद को फैला अपनी घुसपैठ करने लगा। गुड्डी उस लण्ड के लिए जितनी उत्सुक और कामुक थी उतनी ही उस हमले को लेकर सतर्क और तैयार थी। अपने गाँड़ के फैलते छेद को महसूस कर वो आने वाली क्षणिक पीड़ा का इंतज़ार कर रही थी, जिसके बाद उसे असीम आनंद के सफर पर निकलना था। लेकिन राजू के और जोर लगाने पर अधखुली गाँड़ की छेद से लण्ड फिसल उसकी बूर से टकरा गया। गुड्डी ने राजू को चिढ़ाते हुए बोली," का भूल गईलु कि लांड कहाँ घुसाबे के बा।" राजू ने उसकी गाँड़ पर कसके दो चाटे मारे और बोला," कुत्ती साली, गाँड़ में अउर थूक डाले के पड़ी,चल गाँड़ पर अउर थूक लगा।" गुड्डी ने थूक हथेली पर निकाल अपने परोसे गए गाँड़ के भूरे छेद पर मला और थोड़ा राजू के लण्ड पर मल दिया।
गुड्डी," अब घुसाबा।
राजू ने इस बार जोर लगाते हुए गुड्डी की गाँड़ पर हमला किया। इस बार दबाव से गुड्डी की गाँड़ पूरी खुल गई और सुपाड़ा उसकी गाँड़ में घुस गया। गुड्डी के मुंह से चीख निकल पड़ी। उसके मुँह से आह हहहहह, आ..आ.. फूटी।
राजू को उस पर कोई दया नहीं आई, बल्कि वो अब हंसते हुए बोला," का भईल, आ गईलु औकात पर।"
गुड्डी को दर्द तो हो रहा था, पर उसे ये राजू का अपने उपर ये मर्दाना वर्चस्व अच्छा लग रहा था। गुड्डी उसे उकसाते हुए बोली," राजू भैया, इहे बा तहार मर्दानगी का। एक बेर में गाँड़ में घुसा भी न पाइलु। हमार गाँड़ ज्यादा टाइट बा का।"
राजू उसके बाल खींच और चूतड़ों पर ताबड़तोड़ पांच छह थप्पड़ चिपका दिए। गुड्डी के चूतड़ लाल हो गए, पर गुड्डी की कराह में दर्द से ज्यादा कामोन्माद था। राजू ने गुड्डी से कहा," बड़ा टाइट बोल रहल बारू न, तनि देर में तहार गाँड़ के चोद के एतना ढीला कर देब कि गाँड़ न गुफा लागी, बुरचोदी रंडी।"
गुड्डी बोली," आह...ऊऊऊ... घुसा न बहिनचोद... इँहा दहाड़े से काम न चली, शिकार करे पड़ी।" राजू ने इस बार उसकी बात मान एक जोड़ का झटका दिया। लण्ड उसकी गाँड़ की चैड़ाई को पूरी तरह खोल अंदर प्रवेश कर गया। गुड्डी जोर से चीखी पर राजू के लिए ये संतुष्टि वाली चीख थी। राजू ने हंसते हुए उसे कुछ समय दिया, ताकि उसकी गाँड़ लण्ड के लिये अभ्यस्त हो जाये। गुड्डी अब तैयार हो चुकी थी, राजू के लौड़े की मार खाने के लिए। गुड्डी अपने चूतड़ फैलाये बोली," उफ़्फ़फ़.... एतना बड़का लांड हमार गाँड़ के भीतरी कोना के चूम रहल बा। अब चोदअ न राजा, हमार गाँड़ अब तहार लांड के आत्मसात कर लेले बा।"
राजू उसके चूतड़ को मसलते हुए बोला," रंडी साली, आ गईलु औकात में न, अभी त शुरुआत भी न कइनी त चिल्लात बारू।"
गुड्डी जान गई थी कि राजू आज उसपर कोई रहम नहीं करेगा, क्योंकि उसीने उसको भड़का दिया था। वो किसी हलाल होने वाली बकड़ी की तरह अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी। राजू किसी कसाई सा बकरी हलाल करने से पहले आखरी बार अपनी आसान को सुधार रहा था। यहां बकरी कसाई से ज्यादा उतावली थी ज़िबह होने के लिए।
राजू गुड्डी की गाँड़ में लण्ड घुसा चुका था। गुड्डी अपने गाँड़ में राजू का सर्प रूपी लण्ड को गाँड़ के भीतरी मांसल दीवारों पर महसूस कर रही थी। उसके गाँड़ के कोमल उत्तक उसके लण्ड को अच्छे से घेर चुके थे, जिससे लण्ड पर उनका कसाव और उनपर लण्ड का कठोर दबाव महसूस किया जा सकता था। राजू का लण्ड जैसे उसके गाँड़ को अंदर से फैला, हर रिक्त स्थान पर कब्ज़ा कर चुका था। वो लण्ड के पत्थर से मजबूत दंड पर लगभग झूल सी गयी थी। इतने में राजू ने उसे संभाल लण्ड को झटका दिया और उसकी गाँड़ को थोड़ा और खोल दिया।
गुड्डी के मुँह से उह..... आह.....आ.... की आवाज़ें उसके झटकों के साथ तालमेल बिठाने लगी। राजू अब कमर के झटकों को धीरे धीरे तेज करने लगा। उसकी गाँड़ की कसी दीवारों से रगड़ खाते सुपाड़े से दोनों को अपने हिस्से का काम सुख मिलने लगा। गुड्डी की कमर भी अब राजू के झटकों के साथ, आगे पीछे हो रही थी। गुड्डी सिसयाते हुए राजू की ओर कामुक आंखों से देख रही थी।
राजू," अब बताबा गुड्डी दीदी, मज़ा आ रहल बा लांड लेवे में?
गुड्डी," आह... उम्म्म्म... गाँड़ में लांड लेवे में बहुत अच्छा बुझा रहल बा। बहुत दिन बाद तू घुसेलु न, सच बताई त तहार लांड गाँड़ के पूरा खोल देले बा। उफ़्फ़फ़ गाँड़ मराबे के मज़ा ही अलग बा। हम त तहरा जान बूझ के उकसौनी ह, ताकि तू बढ़िया से गाँड़ मारअ।"
राजू," अच्छा...रानी तू चिंता मत कर तहार गाँड़ आज हम छोड़ब न। सारा रात तहार गाँड़ मारब।"
गुड्डी," का! सारा रात उफ़्फ़फ़ ..... लागत बा एतना दिन के कसर आज रतिया में ही पूरा करबआ का? लेकिन हम तहरा मना न करब। ई वासना के आंधी में गुदा मैथुन जइसन अप्राकृतिक यौनाचार भी केतना आनंदमयी बुझा रहल बा।"
राजू," सच बात त ई बा कि तू बहुत कामुक स्त्री बारू। तहरा जइसन औरत के जेतना चुदाई मिले उ कम बा। हम ई भांप गइनी ह कि, तहरा शांत खाली हम कर सकेनि दोसर केहू ना।"
गुड्डी कमर हिलाते हुए बोली," सच राजू तू ठीक कहेलु, हमरा जइसन कामुक लड़की के बूर अउर गाँड़ हमेशा चुदाबे खातिर तैयार रहेला। खाली लांड मिले के देरी बा। देखअ न, बूर केतना पनियाईल बा। हम काम सुख के अथाह सागर में डूबे चाहत बानि। हमके चुदाई के हर रूप भोगे के बा।
राजू उसके गाँड़ में लण्ड और ठेलते हुए बोला," चुदाई में त अनंत संभावना बा छम्मकछल्लो, बात ई ह कि तहार सीमा कहां खत्म होता?
गुड्डी राजू की आंखों में देख बोली," हम न.. कइसे बताई। जाने तू का सोचबु?
राजू," तहार कउनु बात से हैरानी न होई बोल?
गुड्डी," हमके लांड चटाबअ न, सीधा हमार गाँड़ से मुंह में दे दअ। उफ़्फ़फ़ केतना घटिया बात बा।"
राजू ने लण्ड निकाल गुड्डी की खुली गाँड़ में थूक दिया और अपना लण्ड उसकी ओर कर दिया। गुड्डी ने अपनी गाँड़ से निकले ताजे लण्ड में गाँड़ की खुशबू अपने नथुनों में महसूस की नजर बिना देर किए सुपाड़े को आइसक्रीम की तरह चाटने लगी। राजू को उसके आंखों में एक अजीब चमक और संतुष्टि दिखी। गुड्डी किसी कुतिया की तरह उसके लण्ड पर जीभ लपलपा रही थी। उसके चेहरे पर लज्जा या शंका तनिक भी नहीं थी, वो बिना संकोच के उसके लण्ड का स्वाद चख रही थी, या यूं कहें कि अपनी गाँड़ का। गुड्डी लण्ड का हर हिस्सा चाट कर साफ कर रही थी। राजू ने गुड्डी के कृत्य को और ओछा एवं घिनौना बनाने के लिए लण्ड पर थूक दिया, जो गुड्डी के होंठों पर भी गिरी। गुड्डी उसकी ओर देख हँसी और उसके थूक को लण्ड से सुरूप कर चट कर गयी। राजू ने अपना लण्ड उसके होंठों पर पटकते हुए कहा," घटिया कुत्ती साली, बहुत बड़की रंडी बारू तू।"
गुड्डी बिना कुछ बोले उसका लण्ड वापिस अपनी गाँड़ में डलवाने के लिए प्रस्तुत कर दिया। राजू ने फिर गुड्डी की गाँड़ में लण्ड डालते हुए, उसकी गाँड़ फैला दी।
गुड्डी," राजू, तू मरद बारअ, जब गाँड़ मारत बारे त हमके तहरा मुँह से गाली अपशब्द सुने के बा। हम बहुत गाँड़ मराईब, अगर तू गंदा गंदा गाली देबु।"
राजू," अच्छा, भाईचोदी, बूर के आग भाई के लांड से बुझावेलु। साली कुत्ती कमीनी हरामज़ादी तू पैदा ही हमार छिनार बने खातिर भईल बारू। रंडी बारू तू रंडी .....तहरा जइसन बेहया रंडी जउन भाई के लांड से शांत होखेलि कहूँ न होई।" ऐसा बोल राजू ने गुड्डी की दोनों चूचियाँ कसके दबा दी।
गुड्डी सिसक उठी और बोली," हाय दैय्या, केतना मीठा लागअता, चुदाई के घड़ी में ई गंदा, घटिया अउर कड़वा गाली। सुनके बूर अउर पानी छोड़ रहल बा। ए राजा सच में तू हमके आपन चुदाई दासी बना ले। हम सच में तहार हर जरूरत के ध्यान रखब। हमार अंग अंग हमार रोम रोम तहार लांड के छत्रछाया में दासी रही।"
राजू," कइसन लागल तहरा लांड के स्वाद?
गुड्डी," राजू ई पूछ कि लांड पर गाँड़ के स्वाद कइसन बा? गाँड़ के स्वाद लांड पर बहुत ही अलग होखेला। सबके बुझाता ई घिनौना होई, लेकिन सच बताई त इहे असली मज़ा बा। आपन गाँड़ में बड़ी देर से आवत जावत लांड पर खूब चिकना चिपचिपा पदार्थ लग जाता, जउन देखे में घिनाता, पर जब ओकरा चाटे के आदत लग जाता, त उ बहुत अलग मज़ा देता। गाँड़ के स्वाद अब हमके बहुत ही निम्मन बुझावेला।"
राजू," लेकिन तहार गाँड़ में गंदगी त होत होई?
गुड्डी," उम्म्म्म.... कइसन गंदगी उ त शरीर के हिस्सा बा। शरीर में ही बनेला, अउर शरीर में वापस आवेला। उफ़्फ़फ़... हाँ शुरू में तनि अजीब बुझाता पर, जब चुदाई में परिपक्वता आवेला त पता चलेला कि चुदाई जेतना घिनौना अउर असुरक्षित होखे उतना ही उत्तेजित अउर चरमसुख देवेला।"
राजू," उफ़्फ़फ़ आह.... असुरक्षित यौन संबंध से डर न लागेला?
गुड्डी," काहे के डर। परिवार के ही सदस्य त बानि। असुरक्षित यौन शब्द बड़ा लुभावना बा। कभू बूर में डाल द, त कभी गाँड़ में अउर कभू मुँह में बिना कइसनो झिझक के। चुदाई के असली मज़ा असही आवेला।" गुड्डी अपनी बूर में उंगली करते हुए बोली।
राजू ने लण्ड निकाला तो, उसके सामने गुड्डी की गुलाबी गाँड़ की खुली छेद थी, जो लण्ड के आवागमन से काफी खुल गया था। राजू जानबूझकर उसकी गाँड़ में लण्ड घुसा देता और झट से पूरा निकाल देता। जिससे लण्ड पूरी अंदर तक जाता और फिर गाँड़ की दीवारों से टकराते हुए बाहर निकल आता। गुड्डी के गाँड़ के छेद के भीतरी उत्तक लण्ड का स्पर्श पाते तो इससे उसको अत्यधिक उत्तेजना हो रही थी। गुड्डी अपनी बूर सहलाते हुए उंगली करते हुए अपने भाई को चुदाई के लिए उकसा रही थी।
उसका सुपाड़ा गुड्डी के गाँड़ के भीतर इकट्ठे मल को महसूस कर रहा था। राजू गुड्डी की गाँड़ के शायद इतने अंदर तक कभी नहीं जा पाया था। गुड्डी अपनी ट* उसके लण्ड पर सनती हुई महसूस कर रही थी। राजू ने गुड्डी को झुका, उसके बाल पकड़ रखे थे।
गुड्डी," राजू, तहार लांड हमार गाँड़ के भीतरी गू* में सन गईल बा।"
राजू," रहे द, एहि में त मज़ा आयी। तहरा सभ्य तरीका से खूब चोदनी ह, आज तहरा साथ एकदम गंदा चुदाई होई।"
गुड्डी," मतलब तू का करबु आज?
राजू," तू आज आपन गू* के हमार लांड से जीभ से चाट के साफ करबु। हमार लांड तहार गाँड़ के चुदाई से पूरा खोल दी।
राजू ने लण्ड को खूब अंदर तक ठेला हुआ था। राजू ने सोचा कि लण्ड को गुड्डी से अब चटवा लिया जाए। राजू ने बेझिझक लण्ड निकाला और गुड्डी को चाटने कस लिए दी। वो बेहिचक उस लण्ड को उत्तेजना में चाट रही थी। राजू को गुड्डी का उतावलापन, उसकी बेहयाई, उसका राजू के लण्ड के प्रति समर्पण देख काफी सुकून मिल रहा था। वो गुड्डी को किसी पालतू कुतिया की तरह पुचकार रहा था। गुड्डी स्वयं लण्ड की दासता स्वीकार चुकी थी। राजू हंसते हुए अपने गंदे लण्ड को गुड्डी के चेहरे और होंठों पर मल दिया। इसके बाद राजू ने गुड्डी के बाल खींच उसके मुंह पर थूक दिया। इस तरह बेगैरत रंडी की तरह चुदने में गुड्डी को बहुत ही ओछा, अपमानजनक के बावजूद अति उत्तेजक लग रहा था। गुड्डी के बदन पर कपड़े तो पहले ही नहीं थे, और अब लाज शरम भी वो उतार फेंकी थी।

सारी रात राजू गुड्डी को अलग अलग आसनों में जीभर कर चोदता रहा। गुड्डी खुद भी चुदाई के लिए बेचैन थी, राजू ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया और गुड्डी के प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक तीनों काम छेदों अर्थात बूर, गाँड़ एवं मुँह को खूब चोदा। राजू गुड्डी के किसी भी छेद में जब मर्जी लण्ड डाल देता। गुड्डी को राजू का उग्र कामुक पाशविक रूप बहुत उत्तेजित लग रहा था। गुड्डी खुद भी किसी सड़क छाप रंडी की तरह पूरी रात चुदती रही। जब सुबह होने को थी, तब राजू और गुड्डी अपने चरम पर आ गए। राजू ने अपना लण्ड निकाला और गुड्डी के चेहरे के सामने लण्ड को हिलाते हुए बोली," उउम्म... आपन ताज़ा ताज़ा मूठ पिलाबआ राजा। हम तहार मूठ के दीवानी बानि। तहार उम्म्म्म.... उफ़्फ़फ़......तहार मूठ एतना मस्त बा। आह.... उम्म्म्म..."
गुड्डी घुटनों के बल बैठी अपनी जीभ गोलगोल लपलपा रही थी। कभी जुबान बाहर निकालके कामुक अंदाज़ में होंठ चाटती, कभी जीभ कुतिया की तरह बाहर निकालती और लटकाती। राजू उसके सर पर हाथ रखा था और गुड्डी के हाथ लण्ड को निचोड़ने पर लगे हुए थे।
गुड्डी की आंखों में वासना और मर्दाना सफेद पानी की लालसा साफ झलक रही थी। वो राजू को उकसाते हुए अपनी उँगली से मुँह की ओर इशारा कर रही थी।
गुड्डी," उम्म्म्म... मममम... आ.... पिलाबा न केतना इंतज़ार कराबेलु, तू आपन रंडी के। हाय सारा रात हम चार से पांच बार झड़नी, पर तहार एको बार न गिरल। हमके पिलाबे खातिर संभाल के रखले बारू। हमके मूठ के गंध सूंघे के बा, ओकरा आपन चेहरा पर मले के बा, फेर पूरा चाट चाट के पिये के बा। गरम गरम मूठ ....उम्म्म्म.... उम्म्म्म।"
राजू को अपनी बहन का रंडीपना देख उसके आण्डों से सफेद पानी की गाढ़ी मलाईदार ज्वालामुखी फूट पड़ी। गुड्डी का चेहरा राजू के लण्ड से बहते पानी के तीव्र धार से पूरी तरह गीला हो उठा। गुड्डी के गाल, होठ, नाक, पलकें सब उस मटमैले सफेद चिपचिपे पानी से भीग चुके थे। गुड्डी मुस्कुराते हुए अपने चेहरे पर जमा उस गाढ़े अवलेह जो जेली जैसी थी, उसे अपने चेहरे पर मल रही थी। राजू अपने लण्ड की आखरी बूंद झाड़ झाड़ के उसके मुंह पर फेंक रहा था।
गुड्डी पहले तो राजू के पेशाब से नहा चुकी थी, और अब उसके वीर्य/मूठ को अपने चेहरे पर लगा रही थी। राजू ने मन में सोचा कि एक स्त्री का इससे ज्यादा समर्पण क्या हो सकता है। गुड्डी अपने चेहरे पर गिरे मूठ को उंगलियों से चाट रही थी।
गुड्डी," उम्म्म्म.... ऊम्म्म्म्म.... केतना निम्मन बुझाता ई तहार लांड के पानी। मन करेला कि पीते रही, ई हवस अउर अगम्यगमन के कामुक फल बा।"
राजू," अभी तू बहुत खूबसूरत लगआ तारु। लेकिन जइसे हम तहरा कामुक फल देनी, वइसे हमके भी मिले के चाही। सारा रात तू रह रहके बूर से पांच छह बेर झड़ना जइसे पानी बहेलु, हम उ पानी पिये चाहेनि।"
गुड्डी," राजू, तू सच में उ पिये चाहेलु का। उ जब तू हमार गाँड़ में लांड घुसइले रहलु अउर एक हाथ से बूर के दाना के मसलत रहलु त निकलल रहे। हमार बूर के बहुत भीतरी तक उंगली घुसाबा अउर अंगूठा से दाना के छेड़अ।" ऐसा बोल गुड्डी उसके सामने खड़ी हो गयी और राजू उसके सामने बैठ गया। गुड्डी अपने हाथों से बूर फैला बोली," देखत का ह, घुसाबा न बूर में आपन बिचला दुनु उंगली।" राजू ने वही किया उंगलियां आसानी से भीतर घुस गई।
फिर गुड्डी बोली," अब आह....उंगली के भीतरी में ऊपर के ओर टेढ़ा कर ल। आह.... हाँ... असही...अब आपन अउठा से ई बूर के दाना के छेड़त, जोड़ जोड़ से उंगली कर राजा....।"
राजू ने अपनी दीदी के कहे अनुसार वैसा ही करने लगा। गुड्डी एक बार फिर उत्तेजित हो उठी। उसके दोनों हाथ बूर को फैलाये हुए थे। बूर का दाना कड़क हो चुका था। राजू के अंगूठे के घर्षण से वो भी गीला था। उधर उसकी उंगलियां उसके बूर में तेजी से हरकत कर रही थी। राजू के सामने गुड्डी की बूर खुलके उसे चूमने का निमंत्रण भी दे रही थी, जिस अवसर को राजू ने बेकार नहीं जाने दिया। गुड्डी की बूर चूमके उसने गुड्डी का एहसास दुगना कर दिया। अचानक गुड्डी की टांगे ढीली हो गयी, उसका चेहरा बेचैन हो उठा, वो लगभग चिल्लाते हुए बोली," राजू....राजू....आह...ऊफ़्फ़फ़फ़....माई....रे माई..... रुकिहा न करत रहा, आह...बस निकले वाला बा....ई ल....आ आ........ऊ.....।" ऐसा करते हुए उसकी मूत्रद्वार से काफी सारा पानी तेज गति से छुलछुलाते हुए बह निकला, जो राजू के चेहरे को पूरी तरह तर कर गया। गुड्डी उसके बाल पकड़ झड़ती रही, और अपना कामुक फल राजू को पिलाती रही। गुड्डी के मुंह से आँहें रुक नहीं रही थी। उधर राजू गुड्डी की निश्छल धार का रसपान कर रहा था। राजू लेकिन उंगली करना जारी रखे था, वो रह रहके लगभग सात आठ बार पानी प्रचुर मात्रा में बहाई। राजू अब तक उस धार में नहा चुका था। जब दोनों शांत हुए तो दोनों एक दूसरे की ओर लज्जाभरी मुस्कान से देख रहे थे। फिर गुड्डी उसके गले लग गयी और दोनों उस पेड़ के नीचे लेट गए।
थोड़ी देर बाद गुड्डी बोली," राजू, भोर होखे वाला बा, पास के गांव से एक जोड़ी कपड़ा ले आवा। रात त गुजर गईल, पर अब दिन में अइसे कइसे रहब।" राजू बिना देर किए, पास के गांव में घुस गया और एक घर के आंगन में टंगी रस्सी पर से गुड्डी के लिए साड़ी ब्लाउज, और खुद के लिए लुंगी ले आया। गुड्डी तब तक उसका इंतजार कर रही थी। राजू जब वापस आया तो गुड्डी ने कहा," राजू, हमनी के नहा लेबे के चाही, आवा पास में ही तालाब बा।"
राजू और वो हाथ में हाथ डाले तालाब पर पहुंचे और वहां जल क्रीड़ा और काम क्रीड़ा का एक और दौर चला, इसके बाद दोनों नहाके बाहर आ गए। दोनों वापस कपड़े पहन अपने गांव की ओर चल दिये।
वहां, धरमदेव के उपर गुड्डी के ससुर ने फोन से बम मार दिया था। उसने धरमदेव को बेहद गंदी गालियों के साथ खूब खड़ी खोटी सुनाई। उसके खून को गंदा और घटिया बोला।
धरमदेव को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो क्या करे। एक तरफ उसके कर्ज के चक्कर में उसकी सारी ज़मीन जब्त होने वाली थी तो दूसरी तरफ उसके बेटे बेटी का राज़ खुल गया था, जिससे उसकी इज़्ज़त जा रही थी। बीना को जब धरमदेव ने बताया कि राजू और गुड्डी आपस में चुदाई करते हैं, तो वो भी अवाक रह गयी। हालांकि वो खुद राजू के साथ सगी माँ होकर उसके संग अनगिनित बार संभोग कर चुकी थी। अगर कोई बेटा सगी माँ को चोद रहा हो, तो सगी बहन को चोदना कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं थी। पर औरत तो औरत ठहरी उसे मर्द का प्यार बांटना पसंद नहीं होता। बीना के मन में गुड्डी के प्रति ईर्ष्या और जलन हुई, और राजू के प्रति थोड़ा गुस्सा आया। उसके मन में राजू और गुड्डी के अंतरंग क्षणों के कल्पना के तस्वीर चलने लगे। बीना बहुत दिनों से प्यासी थी, राजू के गुड्डी के ससुराल जाने के बाद वो सही चुदाई के लिए तड़प रही थी। वो खुद राजू के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, ताकि राजू के आते ही वो राजू के साथ फिर से रंगरेलियां मनाए।
उधर राजू और गुड्डी गांव के बाहर मंदिर के पास पहुंच चुके थे। राजू ने एक छोटे बच्चे को अरुण को बुलाने के लिए बोला। उसने उसे बदले में दस रुपये देने का वादा किया। वो बच्चा अरुण के घर पहुंचा और दरवाजा खटखटाया। इस वक़्त शाम होने वाली थी। अंदर रंजू आंगन में दिया दिखाने के बाद, अरुण के कमरे में आकर उसके आदेशानुसार पूर्ण नग्नावस्था में अरुण के साथ संभोग का आनंद ले रही थी। अरुण का आदेश था कि शाम को दिया दिखाने के बाद, रंजू अरुण के सामने अपने सभी कपड़े उतार निर्वस्त्र होकर अरुण के साथ संभोगरत रहेगी। अरुण रंजू की चूचियों को पीते हुए उसके ऊपर चढ़ उसकी बूर चोद रहा था। रंजू अरुण को बांहों में समेटे हुए चुदने का लाभ उठा रही थी। दरवाजे पर दस्तक सुन दोनों रुके।
अरुण को संभोग में व्यवधान बिल्कुल पसंद नहीं था। उसने लगभग झल्लाते हुए कहा," जाने के आपन मैय्या चुदाबे आईल बा? ओह... हरामी के छोड़ब न अगर केहू फालतू आईल होई।"
रंजू," खटखटाबे द, तू चालू रख। जाए दे, हम पूरा उत्तेजना में बानि, बस तनि देर लगी चरमसुख पहुंचे में।"
अरुण," तू अउर जल्दी चरमसुख पहुँचबु, तहरा त रात भर पेलब न तभियो न झड़बु। देख के आवे दे, शायद केहू के जरूरी होई।"
रंजू को बिस्तर पर वैसे ही छोड़ वो एक तौलिया लपेट दरवाजा खोला। सामने बच्चे को देख बोला," का रे दरवाजा काहे पीटत बारे? कहीं भूकंप आइल बा का?
बच्चा," न तहार दोस्त राजू, तहरा पुराना मंदिर पर बुला रहल बा। इहे बताबे खातिर आईल बानि। बहुत जरूरी बा उ कहलस अउर तहरा तुरत आवे कहलस ह। बाकी हमके दस रुपया दे द, उ कहले बा कि तू देबु।"
अरुण समझ गया कि मामला कुछ गंभीर है। उसने रंजू को वापस आ सब समझाया और उस लड़के को अपने बाइक पर बिठा पुराने मंदिर की ओर निकल गया। वो बच्चा उसे राजू के पास ले गया जो मंदिर के पीछे बैठा था। अरुण ने उसे दस रुपये दिए और वो भाग गया।
राजू ने उसे सब बताया, तो अरुण समझ गया कि उनका घर जाना ठीक नहीं है। अंधेरा होते ही वो उनदोनों को अपनी बाइक से अपने घर ले आया, किसी को कानों कान खबर न हुई। रंजू ने उनदोनों के लिए अलग कमरा में बिस्तर लगा दिया।
अगला दिन अरुण राजू के कहे अनुसार उसके घर के माहौल का जायजा लेने पहुंचा। उसने घर के बाहर से ही धरमदेव और बीना की बात सुनी।
धरमदेव बोल रहा था," अगर सामने दुनु आ जाई त दुनु के काट देब। घर के इज्जत त आपन ससुरारि में लुटा आईल तहार बेटी। जाने कहाँ भाग के गईल बारे?
बीना," रउवा शांत रही, बा त दुनु आपन बच्चा। लेकिन गुड्डी त बड़की बहिन बा उ राजू के साथ अइसन काम कइलस, ई समझ नइखे आवत। उ त बड़ रहलस, राजू त भोला भाला बा।" उसकी बातों में चिंता से ज्यादा ईर्ष्या थी। अरुण समझ गया था कि अभी राजू और गुड्डी का अभी घर आना ठीक नहीं है। घर आकर उसने राजू को बताया कि उन दोनों को अभी कुछ दिन छुप के रहना पड़ेगा। उसने राजू को अपने ही घर रहने की सलाह दी, क्योंकि वहां उनको ढूंढने उसका बाप नहीं आएगा। गुड्डी और राजू सारा दिन कमरे में बंद रहते, पूरी पूरी रात चुदायी चलती और दिन में खाना खाके सो जाते थे। एक दिन गुड्डी रात को उठी तो उसने देखा रंजू अपने बेटे से चुदवा रही है। उसने उनको देख राजू और अपनी माँ की खूब गंदी कल्पना की। अगले दिन गुड्डी ने रंजू से इसके बारे में बात की।(इसकी विस्तृत जानकारी अगले भाग में दी जाएगी।)

आखिर वो दिन कल आने वाला था, जब बैंकवाले धरमदेव की जमीन जब्त करने वाले थे। धरमदेव पहले से ही अपने निजी जीवन में तनावग्रस्त था, और अब उसकी जमीन भी जानेवाली थी। धरमदेव उस दिन सवेरे से गायब था। धीरे धीरे दिन चढ़ा, शाम हुई, पर बीना को उसके लौटने का नामो निशान नहीं मिल रहा था। आखिर जब रात गहराई तो अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। वो समझी की धरमदेव होगा और मन ही मन उसे खूब खड़ी खोटी सुनाने की सोची। लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा खोला बाहर चार पांच लोग थे। उन्होंने बताया कि अभी थोड़ी देर सूरज ढलने से ठीक पहले धरमदेव नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली। दो लोगों ने उसे नदी में कूदते हुए देखा , पर नदी का बहाव आज तेज था इस वजह से वो उसे बचा नही पाए। पुलिस की टीम उसकी लाश ढूंढने में लगी थी। बीना ये सुनते ही फूट फूट कर रोने लगी। थोड़ी देर में अरुण की माँ रंजू और अन्य महिलाएं भी आ गयी। रंजू और वो साथ विलाप करने लगी। गुड्डी और राजू इस दुख से अनजान रंजू के घर में अपनी वासना की आग बुझाने में लगे हुए थे। उस रात जब रंजू लौटी तो उसने धरमदेव के आत्महत्या की बात सिर्फ अरुण को बताई। अगले दिन पुलिस को एक मगरमच्छ की आधी खाई लाश मिली, जिसका चेहरा पूरी तरह बर्बाद हो चुका था। उसके बदन पर जो गमछा था, उससे सब समझ गए कि ये धरमदेव ही है। लाश को बड़ी मुश्किल से निकाला गया। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर और लाश बीना के घर पहुंचवा दिया। इन सब कामों में अरुण आगे था, उसीने सब औपचारिकताएं पूरी की। वापस आकर उसने राजू और गुड्डी को सारी बात बताई। बेटा होने के नाते राजू को ही अंतिम संस्कार करना था। दोनों भोग विलास के मायाजाल से निकल घर पहुंचे। सामने लाश बांस की काठी पर सफेद चादर में लिपटी हुई थी। घर में रिश्तेदार आ चुके थे। बीना कल बालू साड़ी में ही थी और उसकी ननद बंसुरिया दोनों रो रही थी। गुड्डी और राजू ये मातम देख भावुक हो गए। गुड्डी भी रोने लगी, राजू भी वहीं लाश के पास बैठ गया। तभी उसकी माँ उठ राजू के पास आई, वो गुस्से में थी उसने आंसू पोंछकर राजू को थप्पड़ मारा। राजू ने बीना को नहीं रोका। वो उसे गले लगाना चाहता था, पर बीना दबे आवाज़ में बोली," हाथ मत लगा हमके, जउन भईल बा उ तहरा अउर तहार मुँहझौंसी बहिन के कारण। तहार बाप के जमीन सरकार जब्त कर लेले बा। कहाँ रहे, ई कुलक्षिणी के लेके। दुनु कहां मुँह कारी करत रहे।"
राजू ने कुछ नहीं कहा। बंसुरिया वहां आई तो उसने राजू को बीना से छुड़ाया। बंसुरिया बोली," का बीना भउजी, राजू के काहे मारेलु, अभी एकरा ढेरी काम बा। राजू तनि देर में संस्कार करे तहरा जाय के पड़ी।" राजू अपनी बुआ और लगभग सौतेली मां की बात मान बोला," जी बंसुरिया फुआ।"
थोड़ी देर में सब लाश जलाने घाट पर चले गए। राजू ने मुखाग्नि दी और धरमदेव का पार्थिव शरीर पंच तत्व में विलीन होने लगा। राजू को अपने बाप के जाने का बेहद दुख था। पर हर अंत एक नया आरंभ लेकर आती है। ये राजू के युग का आरंभ था। राजू के सामने अब गुड्डी और बीना की जिम्मेवारी थी, साथ ही उसे अपनी जमीन भी छुड़ानी थी। राजू जब घर पहुँचा तो, बैंकवाले घर खाली कराने आये थे। अरुण और राजू ने उनसे मिलकर पंद्रह दिन का समय लिया, उन्होंने भी घर की स्थिति देख उसे उतने दिन की मोहलत दे दी। राजू घर आकर नहाया और सीधा अपने कमरे में बंद हो गया। बीना के घर में काफी लोग थे, इसलिए उसने गुड्डी और राजू से अभी कोई चर्चा करना ठीक ना समझा। बीना,गुड्डी और राजू सब बीते दिनों के बारे में सोचकर भावुक थे। धरमदेव जैसा भी था बीना का पति था, गुड्डी और राजू का बाप था। सब अगले दो तीन दिन तक उसकी याद में खोए हुए थे।
 
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