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Adultery तेरे प्यार में .....

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Ye manju uske kabeer ke bachpan ki sathi thi, per uski masuka nahi, wo sayad nisha hi hai🤔 ha jIsa ki foji bhaiya ki sabhi story me hota hai 2 per haath saaf kiya hi hoga :blush1: awesome update bhai :claps::claps::claps:

Waah ant ki chand line man ko chhu gayi. :claps: ye mznju to poori chudakkad nikali😁 aur kabeer per hamla hua hai to uske pariwaar ya aas pas walo ki hi den hai, per kon? Ye dekhne wali baat hai.:sigh: Waise kabeer bhi sakht londa hai, pel kar hi chhodega. Ek baar phir se shandaar update bhai :claps::claps:

Nisha aur kabeer ka rola tha☺️ aur ho bhi kyu na, wo ishq hi kya jiske charche na ho :dazed:

Fir se wahi purane rang me laut asye dost, aur humko bhi usi purani gaon ki galiyo ke mahol me ghuma diya ju ne :approve: ye maahol ye saadgi, jaha kuch na hokar bhi sab kuch mil jaaye, nisha aur kabeer ek doosre ke liye hi hai, per saadi nahi kar paaye??? Karan thos hona chahiye?🤔 awesome update and superb writings :claps:

Jungle me mangal kiya hoga kabeer ke baapu ne😁 kuch go locha hzi bhai,aur znt me wah kon tha jo teen shades ke neeche kabeer ko dikha?🤔 dekhna hoga.
Awesome update and beautiful ✍️
कबीर के परिवार के नाटक अभी तो चालू ही रहेंगे भाई
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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starting to aap ki DHAMAKEDAR hi hoti hai.....

mind blowing .................. :happy:

tisara bhai ke bare main bhi soch lena ................................😊


aisa nahi bolte MANISHBHAI

wah............................ :adore:
आंखे तरस गई भाई आपके दीदार को ❤️ बस brego4 bhai और आ जाए तो मेरी हिम्मत बढ़े. अपने भाइयों को अगर भुला दिया तो क्या जीना हुआ हमारा
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#27

ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.

“आप यहाँ ” मैंने कहा

माँ- मिलना चाहती थी

मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.

माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.

हम दोनों पास में ही बैठ गए.

“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा

माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है

मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी

माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.

मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.

माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर

मैं- जरुर .

कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.

“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.

गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........

होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.

“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .

“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.

“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं- क्या हुआ मुझे,

दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.

“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने

दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में

दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई

मैं- तो

दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .

मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम

दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.

मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .

दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.

मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है

दरोगा- ये भी सही है दोस्त

मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे

दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई

दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.

मैं- तुम कब आई

ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे

मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे

मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता

ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो

मैं- कुछ भी तो नहीं

मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को

ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.

मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है

मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .

कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .

मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है

मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था

मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू

मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को

मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.

मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .

तभी ताई अन्दर आ गयी.

ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.

मैं- पता नहीं

ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है

मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.

दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........

“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#25

“कबीर मेरा बिलकुल भी मूड नहीं है देने का , तू जानता है मैंने कभी तुझे मना नहीं किया पर अभी मन नहीं है मेरा ” मंजू ने अपना हाथ हटाते हुए कहा

मैं- ठीक है नाराज क्यों होती है . चल सोते है

निचे आने के बाद मैंने एक बार फिर से चेक किया की दरवाजे सब बंद है की नहीं फिर हम बिस्तर पर आ गए.

मंजू- बहुत बरसो बाद हवेली ने रौशनी देखी है

मैं- समय का फेर है सब यार.

मन्जू- तुझे सच में दुःख नहीं है न चाचा की मौत का

मैं- दुःख है पर इतना नहीं है, हमेशा से ही उसका और मेरा रिश्ता ऐसा ही रहा था

बहुत दिनों में वो रात थी जब मैं गहरी नींद में सोया हु. सुबह उठा तो मंजू सफाई में लगी हुई थी . आसमान तन कर खड़ा था बरसने के लिए, मैंने जाकेट पहनी और बाहर निकल गया. कल की अफरा तफरी में मुझे ये होश ही नहीं था की जला सिर्फ मंजू का घर ही नहीं था बल्कि पिताजी की जीप में भी आग लगी थी . इतना लापरवाह कैसे हो सकता था मैं जो ये बात नोटिस नहीं कर सका मैं. अभी गाडी तो चाहिए थी ही , पहले की बात और थी जब साइकिल से दुरी नाप देते थे पर अब उम्रभी वो ना रही थी गाड़ी का जुगाड़ करना ही था . खैर, मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल दिया.

एक मन मेरा था की गीली मिटटी में ट्रेक्टर से मेहनत कर ली जाये और दूजा मन था की जंगल में चला जाये. बाड में बने छेद से मैं जंगल में घुस गया . पूरी सावधानी से होते हुए मैं एक बार फिर से उसी झोपडी पर पहुँच गया . पर अफ़सोस की झोपडी का वजूद नहीं बचा था , शेष कुछ था तो बस सरकंडो की राख . कोई था जिसे ये भी मालूम था की मैं यहाँ तक आ पहुंचा हु.

“कुछ तो कहानी रही होगी तुम्हारी भी , कोई तो बात थी जरुर, जो तुम्हारा ये हाल हुआ ” मैंने कहा और आसपास तलाश करने लगा. अक्सर लोग हड़बड़ी में कुछ गिरा जाते है या कुछ छूट जाता है. एक तो बहनचोद ये बारिस का मौसम , इसकी वजह से उमस इतनी थी की झाड़ियो में घुसना साला सजा ही था ऊपर से जब देखो तब बारिश . जैसे तैसे करके मैं अपनी तलाश में लगा था और मुझे थोड़ी ही दूर एक छोटा पोखर मिला. दरअसल वो एक गड्ढा था जिसमे बारिश का पानी इकठ्ठा हुआ पड़ा था . पास में एक बड़ा सा पत्थर था पर मेरी दिलचस्पी उस चीज में थी जिसे मैंने अपने हाथ में उठा लिया था .

किसी औरत के कच्छी थी वो . बेहद ही सुन्दर कच्छी . हलके नीले रंग की कच्छी जिस पर तारे बने हुए थे . खास बात ये थी की उस पर मिटटी नहीं थी . मतलब की किसी ने उसे खुद उतार कर रखा हो . बेशक वो गीली थी पर गन्दी नहीं थी ,इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही मतलब था की हाल फिलहाल में ही कोई औरत थी इधर. पर मुद्दे की बात ये नहीं थी , जंगल में आई हो कोई चुदने . गाँव देहात में ये कोई अनोखी घटना तो नहीं थी .

घूमते घूमते मैं एक बार फिर उसी खान के पास पहुँच गया. इसकी ख़ामोशी मुझे अजीब बहुत लगती थी. एक बार फिर मैं सधे कदमो से अन्दर को चल दिया. पानी थोडा और भर गया था लगातार बारिश की वजह से . धीरे धीरे अँधेरा घना होने लगा.

“जब यही आना था तो कोई बैटरी साथ लानी थी ” मैंने खुद पर लानत देते हुए कहा. आँखे जितना अभ्यस्त हो सकती थी मैं चले जा रहा था , आज कुछ और आगे पहुँच गया था मैं. अजीब सी बदबू मेरी सांसो में समा रही थी , नहीं ये किसी मरे हुए जानवर की तो हरगिज नहीं थी . मेरे फेफड़ो में कुछ तो भर रहा था पर क्या . खुमारी थी या कोई मदहोशी पर अच्छा बहुत लग रहा था .

पैर में कोई कंकड़ चुभा तो जैसे होश आया. सीलन, फिसलन बहुत थी , ना जाने पानी किस तरफ से इतना अन्दर तक आ गया था . तभी मेरा सर किसी चीज से टकराया और मैं निचे गिर गया.

“क्या मुशीबत है यार ” मैंने अपने गीले हाथो को जैकेट से पोंछते हुए कहा कंकडो पर हाथ की रगड़ से लगा की हथेली छिल ही गयी हो. दर्द सा होने लगा था तो मैंने वापिस लौटने का निर्णय लिया. खान से बाहर आकर पाया की छिला तो नहीं था पर रगड़ की वजह से लाली आ गयी थी. खेतो पर आने के बाद मैं सोचने लगा की क्या करना चाहिए. दिल तो कहता था की जमीन समतल की जाये पर फिर जाने दिया. इस मौसम में और क्या ही किया जा सकता था सिवाय खाट लेने के. तीनों निचे पड़ी चारपाई पर जैसे ही मैं जाने लगा पैर में फिर कंकड़ चुभा.

“क्या चुतियापा है ” चप्पल से कंकड़ को निकाल कर फेंक ही रहा था की हाथ रुक गये.

कांच का टुकड़ा था वो बेतारिब सा . मैंने उसे फेंका , घाव पर मिटटी लगाई और लेट कर बारिश को देखने लगा की तभी पगडण्डी से मैंने उसे आते देखा तो माथा ठनक गया.........

“ये बहनचोद इधर क्यों ” मैंने अपने आप से सवाल किया और उस खूबसूरत नज़ारे में फिर खो गया . बारिसो के शोर में भी उसकी पायल की झंकार अपने दिल तक महसूस की मैंने. कलपना कीजिये दूर दूर तक कोई नहीं सिवाय इस बरसात के और खेतो की आपके सामने यौवन से लड़ी कामुक हसीना जिसके माथे से लेकर पेट तक को बूंदे चूम रही हो , छतरी तो बस नाम की थी ना उसे परवाह थी भीगने की ना मौसम की कोई कोताही थी .

“जानती थी तुम यही मिलोगे ” भाभी ने पानी झटकते हुए कहा.

मैं- इतनी तो कोई बेताबी नहीं थी की बरसते मेह में ही चली आई.

“बात करनी थी तुमसे ” बोली वो

मैं- तो भी को कोई बात नहीं थी . इतना तो तुम्हे जान ही गया हु, तो सीधा मुद्दे पर आओ

भाभी- मुझे मालूम हुआ की तुमने मंजू को हवेली में रहने को कहा है

मैं- हवेली मेरी है मैं चाहे जिसे रहने को कहू किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए

भाभी- मुझे दिक्कत है .

मैं- तुम्हे मंजू से दिक्कत है या इस ख्याल से दिक्कत है की रात को उसकी चूत मेरे लिए खुलती है

भाभी- तमीज , तमीज मत भूलो कबीर.

मैं- तकलीफ बताओ अपनी भाभी , रिश्तो के गणित में मत उलझो

भाभी- मंजू की माँ और उसका भाई आये थे मेरे पास. गाँव-बस्ती में अभी भी कुछ नियम-कायदे चलते है . उनको आपत्ति है मंजू का तुम्हारे साथ रहने से . उन्होंने कहा है की या तो कबीर समझ जाये या फिर ........

भाभी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मैं- या फिर क्या.... क्या वो लोग झगडा करना चाहते है , भाभी तुम भी जानती हो की उसका घर जल गया है जब तक उसका नया घर नहीं बन जाता वो कहाँ रहेगी .

भाभी- कही भी रह सकती है , चाहे तो मेरे घर चाहे तो ताई के घर पर हवेली में नहीं .

मैं-मेरी मर्जी में जो आएगा वो करेगा . मंजू का हवेली पर उतना ही हक़ है जितना की मेरा .

भाभी- उफ़ ये उद्दंडता तुम्हारी, मैंने चाह तो अभी के अभी गांड पर लात मार कर उसे बाहर फेंक सकती हूँ और ये मत भूलना की हवेली पर सिर्फ तुम्हारा अकेले का ही अधिकार नहीं

मैं- मेरे अकेले का ही अधिकार है , कहाँ गयी थी तुम जब हवेली की नींव दरक रही थी जब हवेली सुनी पड़ी थी .

भाभी- ये तुम भी जानते हो और मुझे कहने की जरुरत नहीं की कितना प्यार है मुझे उस से .वो मैं ही थी जिसने उस ख़ामोशी को सीने में उतारा है

“मंजू तो वही रहेगी चाहे जो कुछ हो जाये ” मैंने कहा

भाभी- जिद मत करो कबीर. उसकी माँ से वादा करके आई हु मैं

मैं- जिद कहाँ की भाभी ,ये मेरा कर्तव्य है उसके प्रति जिद कर बैठा तो कहीं हवेली उसके नाम न कर बैठू .

भाभी- मजबूर मत कर कबीर मुझे, उसे या तो मेरे घर रहने दे या फिर ताई के . इसमें तेरी बात भी रह जाएगी और मेरा मान भी. इतना हक़ तो मेरा आज भी है तुम पर . बरसो पहले हुए कलेश के घाव आज तक तकलीफ दे रहे है नया कलेश मत कर कबीर. मान जा .

मैं- मुझे लगता है की तुम्हे जाना चाहिए भाभी .


“अगर तुम्हारी यही इच्छा है कबीर तो ये ही सही इसे भी पूरा करुँगी ” भाभी ने फिर मुड कर ना देखा. ..............
Ye bhabhi chahti kya hai? Waise kah to sahi rahi thi wo, gson me aisa nahi chalta :dazed: har jagah ke kuch niyam kayde hote hai , samaaj ke kuch usool bhi dekhne padte hai. 🤨 khair wo jhoopdi aur jeep, dono ki chaa mud gayi☺️ aur kabeer ko abhi tak koi thos saboot bhi nahi mila? Dekhte hai aage kya hota? Awesome update again :roflbow::roflbow:
 

Raj_sharma

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कहानी पसंद करने के लिए आभार आपका. मेरी लेखनी का स्तर अभी the black blood भाई जैसा नहीं हुआ है. ये तुलना बेकार है ❤️
Bhopa swami likhta badhiya hai, isme koi shak nahi dost, per tum bhi kaha kam ho😁
 

Raj_sharma

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गाँव ने हम जैसों को छोड़ा है हमने गाँव को सीने मे बसा लिया है जिस मिट्टी मे जन्म लिया उसे भूल जाए तो धिक्कार है हम पर
Satya vachan bhai, jan ni dur janm bhoomi bhulaaye nahi jaate
 

Raj_sharma

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ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.

“आप यहाँ ” मैंने कहा

माँ- मिलना चाहती थी

मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.

माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.

हम दोनों पास में ही बैठ गए.

“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा

माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है

मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी

माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.

मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.

माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर

मैं- जरुर .

कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.

“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.

गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........

होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.

“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .

“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.

“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं- क्या हुआ मुझे,

दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.

“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने

दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में

दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई

मैं- तो

दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .

मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम

दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.

मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .

दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.

मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है

दरोगा- ये भी सही है दोस्त

मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे

दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई

दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.

मैं- तुम कब आई

ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे

मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे

मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता

ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो

मैं- कुछ भी तो नहीं

मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को

ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.

मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है

मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .

कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .

मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है

मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था

मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू

मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को

मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.

मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .

तभी ताई अन्दर आ गयी.

ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.

मैं- पता नहीं

ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है

मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.

दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........

“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
Ye saali bullet itne din se fasi padi thi?😱 aur ye haweli me ab kon aa gaya? Kahi bhabhi to gundo ko nzhi bhej diya?🤔 Khair, awesome update again foji bhai 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Emotions :cry2:Nisa ko uske ghar le gaya wo, wada jo kiya tha, aur foji bhai... mera matlab hero ki khasiyat hi yahi hoti hai story me, chahe sutaai ho jaye, per jaana jaroor hai 😁 mind blowing update again :claps:

Kabeer ne nisha ki maa ko sach bata diya, and uske chavha ki ladki hi use raakhi bandhne nahi aai? Matlab saaf hai , ab un sab ne bhula hi diya hai usko. :dazed:
Koi
na wo log chaa mudaaye apni :beee:
Awesome update and beautiful writing ✍️

Ye sale kabeerwa ne to kisi ko nahi choda , bada hi chodu nikla ye to:D
Ant ki line: paisa nahi to fir kya?🤔
Ye sochne wali baat thi manish bhai. Awesome update and superb story 👌🏻 chaa gaye.

Ye saala lafda kya hai foji bhaiya? Paisa, power, ya jameen, per yaha to lafda hi kuch alag level ka hai?🤔
Khair nisha kheto me aai hai to kuch nai purani baate to hongi hi😁
Mind blowing update 👌🏻👌🏻👌🏻

:bow::roflbow: Nisabd, gsjab ki likhawat hai foji bhai, kya must sama bandha hai.👌🏻👌🏻

Gaanv ka jigolo :D

Nisha laut aayi??🤔 or kabeer ko uska baap kya batana chahta tha? Andhera ujaala? Dimaak hila diya bc :dazed: khair , awesome update again foji bhaiya 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
❤️
 
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